प्रतिस्पर्धा कष्ट को जन्म देती है

05 फ़रवरी, 2023

अप्रैल 2021 में, कलीसिया ने मेरे और चेन शी के लिए मिलकर सिंचन कार्य करने की व्यवस्था की। जब मैंने यह खबर सुनी तो थोड़ी दुखी हो गई। चेन शी काबिल थी और सत्य पर स्पष्ट सहभागिता करती थी। मुझे डर था कि थोड़े ही अभ्यास से वह मुझसे बेहतर प्रदर्शन करने लगेगी। पहले मैं उसके काम को जाँचती थी, तो अगर उसने मुझसे बेहतर किया तो मैं इसे कैसे सहूँगी? बाद में पता चला कि अगुआ ने उसे बहुत मदद और समर्थन दिया था और उसे कई जरूरी कार्य करने को दिये थे। मैं समझ गयी कि अगुआ उसे विकसित करना चाहते हैं। मैं बहुत निराश हुई और मन ही मन खुद को उसके खिलाफ खड़ा कर दिया, मैं कड़ी मेहनत करना चाहती थी ताकि वह मुझसे आगे ना बढ़ सके। मैंने खुद को सभाओं में दूसरों के साथ संगति करने में व्यस्त कर दिया, हमेशा भाई-बहनों के कार्य की जानकारी रखती और समस्याओं का समाधान किया करती थी। मैं काम की चर्चाओं में जुड़ी रहती थी, और दूसरे भी ज्यादातर मुझसे सहमत होते थे। हमारे सिंचन का परिणाम कुछ समय बाद दिखना शुरू हो गया। मैं खुद से बहुत खुश थी और खुद को निपुण महसूस कर रही थी। चेन शी के लिए ऐसे काम नये थे, पहले वह चीजों को संभाल नहीं पाती थी, और यह उसके लिए मुश्किल था। मैं जानती थी कि मुझे उसकी मदद करनी चाहिये ताकि वह कार्य से जल्दी परिचित हो और सिद्धांतों को सीख जाये, लेकिन मुझे डर था कि वह मुझसे आगे निकल जायेगी, इसीलिए मैंने उसे विस्तार से बताये बिना बस एक संक्षिप्त, सरल रूपरेखा बताई। जब मैंने उसे कर्तव्य में चुनौतियों की वजह से बुरी हालत में देखा तो मैं मन ही मन खुशी हुई, लगा कि मैं अभी भी उससे ज्यादा काबिल हूँ। कुछ समय बाद, चेन शी को धीरे-धीरे काम की जानकारी हो गई और उसे अपने कर्तव्य में कुछ परिणाम मिलने लगे। भाई-बहनों की समस्याओं को कैसे हल किया जाये, मैं अक्सर इस पर उसकी संगति सुनती थी और महसूस करती थी कि यह बहुत व्यावहारिक और स्पष्ट थी, जिसने मुझे बेचैन कर दिया। लगता है कि वह मुझसे ज्यादा काबिल है। अगर ऐसा ही चलता रहा, तो वह अपने कर्तव्य में और बेहतर होती जायेगी, और कुछ समय में तो लोग भी उसे बेहतर मानने लगेंगे। ऐसा हुआ तो क्या वह मुझसे बेहतर नहीं दिखने लगेगी? मुझे और ज्यादा खतरा महसूस हुआ। जब भी हम दूसरों के साथ सभा में होते थे, तो मैं उसकी संगति देखा करती थी। जब मैंने देखा कि यह प्रबोधन है, तो उससे बेहतर संगति करने के तरीके सोचने लगी। एक बार, एक बहन अपने अहंकार की वजह से दूसरों के साथ अच्छा काम नहीं कर पा रही थी, और इसका असर उसके काम पर पड़ रहा था। मैंने बहुत सोचा कि उसकी समस्या की जड़ क्या थी, मुझे परमेश्वर के वचनों के किस अंश का उपयोग करना चाहिए, और अपने अनुभव को अपनी संगति में कैसे शामिल करूँ। लेकिन मेरी मानसिकता ही गलत थी, मैं इसे शांति से नहीं सोच सकी, अंत में, मैंने कुछ सतही समझ के आधार पर संगति की जिससे उसकी हालत में सुधार नहीं हुआ। लेकिन चेन शी ने परमेश्वर के वचनों और अपने अनुभवों पर संगति की। वह बहन इससे जुड़ सकी और फिर अपनी हालत को बदलने के लिए तैयार हो पाई। यह देखकर मैं परेशान हो गई। परमेश्वर ने उसे प्रबुद्ध क्यों किया, मुझे क्यों नहीं? उसे मुख्य भूमिका निभाने को मिली, तो क्या दूसरे यह नहीं सोचेंगे कि वह मुझसे बेहतर है? इस विचार पर, मैंने अपना मन बना लिया। अगली बार जब किसी को कोई समस्या हो तो मुझे जरूर इसमें अच्छा प्रदर्शन दिखाना होगा, ताकि सब देख सकें कि मैं समस्याओं को हल करने के लिए सत्य पर सहभागिता कर सकती हूँ। बाद में, एक बहन ने बताया कि निपटान किये जाने के बाद कैसे वह दूसरों की आलोचना करती थी। मैं सोच रही थी कि मेरा भी ऐसा ही अनुभव था, तो इस बार मैं अच्छी तरह से संगति कर सकती थी। लेकिन मेरे कुछ कहने से पहले ही, चेन शी ने संगति करना शुरू कर दिया और इसे अपने असली अनुभवों से जोड़कर स्पष्ट बात की, और उसने वह सब बोला जो मैं बोलना चाह रही थी। मेरे पास अपनी समझ का एक सरल विवरण देने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। यह देखकर कि सभा के बाद चेन शी अच्छे मूड में थी, मुझे और भी जलन हुई और मैं उसे देखना भी नहीं चाहती थी। उस शाम मैं बिस्तर पर लेटी तो बिल्कुल भी नींद नहीं आयी। मुझे यह सोचकर बहुत बुरा लगा कि दूसरों को चेन शी की संगति कितनी पसंद आयी। लगा मैं उससे आगे कभी नहीं निकल पाऊँगी। तब मुझे पता चल गया था कि मेरी हालत अच्छी नहीं थी। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना कर मुझे प्रबुद्ध करने और खुद को जानने के लिए प्रेरित करने की विनती की।

बाद में एक सभा में, मैंने पढ़ा कि परमेश्वर कहता है : “नाम और लाभ के लिए ललचाना मनुष्यों का स्वाभाविक और जाना-पहचाना व्यवहार है, जिनमें शैतान की दुष्ट प्रकृति मौजूद है। इसका कोई भी अपवाद नहीं है। सभी भ्रष्ट मनुष्य नाम और रुतबे के लिए जीते हैं, और सभी मनुष्य नाम और रुतबे के अपने संघर्ष में कोई भी कीमत चुकाने को तैयार रहते हैं। शैतान की सत्ता के अधीन रहने वाले सभी लोगों का यही हाल है। इसलिए, जो कोई सत्य को स्वीकारता या समझता नहीं है, जो सिद्धांतों के अनुसार नहीं चल सकता, शैतान के स्वभाव के साथ जीने वाला व्यक्ति है। शैतानी स्वभाव तुम्हारी सोच और व्यवहार पर हावी हो गया है; शैतान ने पूरी तरह तुम्हें अपने नियंत्रण और बंधन में जकड़ लिया है; और अगर तुम सत्य को स्वीकार करके शैतान को त्याग नहीं पाते, तो तुम बचकर नहीं निकल पाओगे। ... हमेशा सभी से आगे निकलने, सब-कुछ दूसरों से बेहतर करने और हर तरह से भीड़ से अलग दिखने की मत सोचो। यह किस तरह का स्वभाव है? (अहंकारी स्वभाव।) लोगों का स्वभाव हमेशा अहंकारी होता है, यदि वे सत्य के लिए प्रयास करना और परमेश्वर को संतुष्ट करना भी चाहें, तो कर नहीं पाते। वे अपने अहंकारी स्वभाव के नियंत्रण में होते हैं जिसकी वजह से वे आसानी से भटक जाते हैं। ... जब तुम्हारा ऐसा स्वभाव होता है, तो तुम हमेशा दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करते हो, हमेशा उनसे आगे निकलने की कोशिश करते हो, हमेशा मुकाबला करते हो, हमेशा लोगों से लेने की कोशिश करते हो। तुम अत्यधिक ईर्ष्यालु होते हो, तुम किसी का आज्ञापालन नहीं करते, और तुम हमेशा खुद को अलग दिखाने की कोशिश करते हो। यह समस्या है; ऐसे तो शैतान काम करता है। यदि तुम वाकई परमेश्वर के स्वीकार्य प्राणी बनना चाहते हो, तो अपने सपनों के पीछे मत भागो। अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जो तुम हो, उससे श्रेष्ठ और अधिक सक्षम दिखने का प्रयास करना बुरी बात है; तुम्हें परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं का पालन करना चाहिए और अपने अधिकार-क्षेत्र से बाहर नहीं जाना चाहिए; इसी को समझदारी कहते हैं(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, व्यक्ति के आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत)। परमेश्वर के वचनों ने मेरी असली हालत का खुलासा कर दिया। मैं हमेशा दूसरों के बीच पहले स्थान के लिए लड़ना चाहती थी और किसी से नीचे नहीं रहना चाहती थी, इसलिए मैं लगातार प्रतिस्पर्धा कर रही थी, और दूसरों से ऊपर होना चाहती थी। क्योंकि मैं पहले चेन शी के काम को जाँचती थी, इसलिए जब मैंने उसके साथ भागीदारी की तब मैं कार्य की क्षमताओं या सत्य पर संगति में उससे बदतर नहीं होना चाहती थी। जब पहले वह मुझसे बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाती थी तो मुझे बहुत खुशी होती थी। लेकिन जब मैंने देखा कि वह तेजी से आगे बढ़ रही है, समस्याओं को हल कर रही है, और यहाँ तक कि भाई-बहनों की स्वीकृति भी पाने लगी है, तो मैं असंतुष्ट और ईर्ष्यालु हो गई, और हमेशा उससे प्रतिस्पर्धा करने लगी। सत्य पर सहभागिता करते समय और समस्याओं को हल करते समय भी मैं दिखावा करना चाहती थी, ताकि दूसरे लोग मुझे बेहतर मानें। लेकिन मेरी मंशा ठीक नहीं थी। मैंने परमेश्वर के वचनों पर गंभीरता से विचार करने पर नहीं बल्कि सिर्फ नाम और लाभ पर ध्यान दिया, इसीलिए मैं सिर्फ खोखले सिद्धांत पर ही संगति कर पाती थी, जो दूसरों के लिए बिल्कुल भी शिक्षाप्रद नहीं था। इस बारे में मैंने आत्मचिंतन नहीं किया, बल्कि मुझे प्रबुद्ध ना करने के लिए मैंने परमेश्वर को दोष दिया, और प्रतिरोधी हो गई। इस पल मुझे एहसास हुआ कि मैं कितनी अहंकारी और अविवेकी हो रही थी। कलीसिया ने मेरे और चेन शी के लिये सिंचन कार्य की व्यवस्था की थी, ताकि हम एक-दूसरे के पूरक बनकर काम करें, अपने व्यक्तिगत कौशल का उपयोग करें, और मिलकर अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभायें। यह स्पष्ट था कि मेरा उससे कोई मेल नहीं था, लेकिन मुझमें इसकी आत्म-जागरूकता का अभाव था। मैं हमेशा उससे बेहतर बनने और अहम भूमिका निभाने की कोशिश करती थी, छिपकर रुतबे में लाभ और हानि की गणना करती थी, अपने कर्तव्य या कलीसिया के कार्य के बारे में बिल्कुल भी विचार नहीं करती थी। मैं बहुत अहंकारी और अविवेकी थी, और शैतानी स्वभाव दिखा रही थी, और परमेश्वर से घृणा करती थी।

बाद में, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे अपने रवैये को सुधारने और चेन शी के साथ अच्छे से काम करने के लिए मेरा मार्गदर्शन करने को कहा। उसके बाद, जब मैंने सत्य पर उसकी सहभागिता को खुद से ज्यादा स्पष्ट देखा और प्रतिस्पर्धी महसूस किया, तो मैंने प्रार्थना कर अपनी इच्छाओं का त्याग किया। ऐसे अभ्यास करने से, मेरी हालत में धीरे-धीरे सुधार हुआ। लेकिन क्योंकि मुझे अपनी प्रकृति और सार की सही समझ नहीं थी, इसलिए कुछ समय बाद वही समस्या फिर उठ खड़ी हुई। सभाओं में चेन शी और मैंने कुछ भाई-बहनों की मेजबानी की, ज्यादातर संगति उसने की, जबकि मैंने बस इधर-उधर थोड़ा-बहुत योगदान दिया। एक या दो बार तो ठीक था, लेकिन फिर मुझे लगने लगा कि मेरा वजूद ही नहीं है, और हर सभा से निराश होकर निकली। क्या मैं हमेशा दूसरी भूमिका निभाती रहूँगी? इससे नाखुश होकर, मैं चुपके से प्रतिस्पर्धी बन गई। मैं सत्य पर चेन शी से बेहतर संगति नहीं कर सकी और समस्याओं को हल नहीं कर सकी, तो मैंने कार्यों की देख-रेख करने और उनकी खोज-खबर रखने में अपना ध्यान लगाया ताकि सिंचन कार्य को ज्यादा प्रभावी बना सकूँ। इससे मेरी काबिलियत दिखती। जब किसी चीज की खोज-खबर रखने की जरूरत होती थी, तो मैं चेन शी से बात किये बिना खुद ही चली जाती थी। बाद में, मैं इस मामले में उससे थोड़ा बेहतर करने लगी और फिर से अहंकारी हो गई। लगा, मैं उससे बदतर नहीं हूँ! उसके बाद से, मैं संगति करने और समस्याओं को हल करने में भी उससे आगे निकलने का तरीका खोजना चाहती थी। एक बार सभा में, उसे हमेशा सामने रखने के बजाय मैं सारी जिम्मेदारी निभाना चाहती थी, इसलिए मैं एक बहन की समस्याएं हल करने का प्रयास करने लगी। लेकिन मेरा इरादा सही नहीं था और मैंने उसकी समस्या को समझने से पहले ही संगति करने की जल्दी कर दी। नतीजतन, मैंने कुछ ठीक किये बिना ही बहुत सहभागिता की। दूसरों ने देखा कि मेरी हालत ठीक नहीं थी तो उन्होंने मेरे साथ संगति करते हुए नाम और रुतबे के लिए अपनी साथी से प्रतिस्पर्धा नहीं करने को कहा, क्योंकि इससे हमारी प्रभावशीलता पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। मेरे लिए उनका इस बात पर जोर देना बहुत शर्मनाक और परेशान करने वाला था। जब मैंने इतना समय ले लिया, तो हमारे पास अपने काम की समस्याएं हल करने का समय ही नहीं बचा, और सभा को जल्दबाजी में समेटना पड़ा। घर के रास्ते पर, मैंने सभा में अपने व्यवहार के बारे में विचार किया। इस बात को हजम कर पाना बहुत मुश्किल था। मैं सिर्फ यह साबित करना चाहती थी कि मैं चेन शी से बेहतर हूँ, जिसमें मैंने बहुत समय बर्बाद कर दिया, हमारे काम की समस्याएँ अनसुलझी रहीं और सभा फलदायी नहीं रही। मैं कलीसिया के काम और कलीसिया जीवन में रुकावट पैदा कर रही थी। मैं जितना इस बारे में सोचती, उतनी ज्यादा परेशान हो जाती, और व्यथित महसूस करती थी। मुझे नहीं पता था कि अपने भ्रष्ट स्वभाव को कैसे सुलझाऊँ। कुछ समय तक, क्योंकि मैं नाम और लाभ के लिए लड़ने की हालत में फँसी रही, इसीलिए जब मैंने चेन शी को काम और हालात में संघर्ष करते देखा तो मैं उसकी मदद नहीं करना चाहती थी, और अक्सर, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से यही कहती थी कि वह कोशिश नहीं कर रही थी, जिससे वह और ज्यादा निराश हो गई थी। हमारे बीच दूरियाँ बढ़ती गईं और हमारा कार्य प्रदर्शन प्रभावित हुआ। जब अगुआ को मेरी हालत का पता चला, तो नाम और लाभ के लिए लड़ने और अपने साथी को किनारे करने पर मुझे फटकारा, और कहा कि यह बुरी मानवता का प्रदर्शन है। उसकी यह बात सुनकर कि मुझे बड़ा झटका लगा, तो मैंने प्रार्थना की, परमेश्वर से कहा कि मुझे प्रबुद्ध करे ताकि मैं खुद को जान सकूँ, और मेरी समस्याओं का समाधान हो सके।

फिर मैंने परमेश्वर के कुछ वचन पढ़े। “तुम लोगों में से हर एक अधिकता के शिखर तक उठ चुका है; तुम लोग बहुतायत के पितरों के रूप में आरोहण कर चुके हो। तुम लोग अत्यंत स्वेच्छाचारी हो, और आराम के स्थान की तलाश करते हुए और अपने से छोटे भुनगों को निगलने का प्रयास करते हुए उन सभी भुनगों के बीच पगलाकर दौड़ते हो। अपने हृदयों में तुम लोग द्वेषपूर्ण और कुटिल हो, और समुद्र-तल में डूबे हुए भूतों को भी पीछे छोड़ चुके हो। तुम गोबर की तली में रहते हो और ऊपर से नीचे तक भुनगों को तब तक परेशान करते हो, जब तक कि वे बिलकुल अशांत न हो जाएँ, और थोड़ी देर एक-दूसरे से लड़ने-झगड़ने के बाद शांत होते हो। तुम लोगों को अपनी जगह का पता नहीं है, फिर भी तुम लोग गोबर में एक-दूसरे के साथ लड़ाई करते हो। इस तरह की लड़ाई से तुम क्या हासिल कर सकते हो? यदि तुम लोगों के हृदय में वास्तव में मेरे लिए आदर होता, तो तुम लोग मेरी पीठ पीछे एक-दूसरे के साथ कैसे लड़ सकते थे? तुम्हारी हैसियत कितनी भी ऊँची क्यों न हो, क्या तुम फिर भी गोबर में एक बदबूदार छोटा-सा कीड़ा ही नहीं हो? क्या तुम पंख उगाकर आकाश में उड़ने वाला कबूतर बन पाओगे?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब झड़ते हुए पत्ते अपनी जड़ों की ओर लौटेंगे, तो तुम्हें अपनी की हुई सभी बुराइयों पर पछतावा होगा)। परमेश्वर के वचनों से अपनी तुलना करके, मैंने जाना कि मैं ऐसी ही थी। मैं हमेशा खुद की बहुत परवाह करती थी, सोचती थी कि मैं हर तरह से चेन शी से बेहतर हूँ क्योंकि मैं पहले उसकी जाँच करती थी। मैंने खुले तौर पर और छिपकर भी उसे मात देने की कोशिश की। मैंने उसके साथ सिंचन कार्य की प्रगति पर चर्चा नहीं की, बल्कि अकेले फैसला लिया, और मैं खुद को उससे बेहतर साबित करने के लिए सभाओं में समस्या का समाधान करना चाहती थी, लेकिन मैंने इस बात पर विचार नहीं किया कि मैं लोगों की समस्याओं का समाधान कर सकती हूँ या नहीं, या यह सभा की प्रभावशीलता पर असर डालेगा या नहीं। जब मैंने देखा कि वह काम में संघर्ष कर रही है और अच्छी स्थिति में नहीं है, तो ना केवल मैं उसकी मदद करने में असफल रही, बल्कि मैंने उसके दुख में आनंद लिया, जानबूझकर उसे छोटा दिखाया और उसकी पीड़ा में खुश हुई। इसने उसे और ज्यादा नकारात्मक बना दिया। मैंने देखा कि मुझमें जरा-सी भी मानवता नहीं थी। मैंने यह भी जाना कि परमेश्वर उन कीड़ों का खुलासा करता है जो अपनी हैसियत नहीं जानते और हमेशा कबूतर की तरह आसमान में उड़ना चाहते हैं। मैं बहुत शर्मिंदा थी। मुझे लगा जैसे मैं भी उतनी ही बदसूरत थी, और मुझे कोई शर्म नहीं थी। मुझे साफ तौर पर सच की ज्यादा समझ नहीं थी और मैं दूसरों की व्यावहारिक समस्याओं को हल नहीं कर पाती थी, फिर भी मैं दिखावा करना और दूसरों से आगे निकलना चाहती थी। इससे ना केवल मेरी बहन को चोट पहुँची, बल्कि कलीसिया के काम पर भी बुरा असर पड़ा। जितना ज्यादा मैंने इसके बारे में सोचा, उतनी ही ज्यादा दोषी और ऋणी महसूस किया। मैंने मसीह-विरोधियों को उजागर करने वाले परमेश्वर के कुछ वचन भी पढ़े। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “चाहे वे किसी भी समूह में क्यों न हों, मसीह-विरोधियों का आदर्श वाक्य क्या होता है? ‘मुझे प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए! प्रतिस्पर्धा! प्रतिस्पर्धा! मुझे सर्वोच्च और सबसे शक्तिशाली बनने के लिए प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए!’ यह मसीह-विरोधियों का स्वभाव है; वे जहाँ भी जाते हैं, प्रतिस्पर्धा करते हैं और अपने लक्ष्य हासिल करने का प्रयास करते हैं। वे शैतान के अनुचर हैं, और वे कलीसिया के काम में बाधा डालते हैं। मसीह-विरोधियों का स्वभाव ऐसा होता है : वे कलीसिया के चारों ओर यह देखने से शुरुआत करते हैं कि कौन लंबे समय से परमेश्वर पर विश्वास कर रहा है और किसके पास पूँजी है, किसके पास कुछ गुण या विशेष कौशल हैं, कौन भाई-बहनों के जीवन-प्रवेश में लाभकारी रहा है, किसे अच्छा माना जाता है, किसमें वरिष्ठता है, किसका भाई-बहनों के बीच आदर से उल्लेख किया जाता है, किसमें अधिक सकारात्मक चीजें हैं। उन्हीं लोगों से उन्हें प्रतिस्पर्धा करनी है। संक्षेप में, हर बार जब मसीह-विरोधी लोगों के समूह में होते हैं, तो वे हमेशा यही करते हैं : वे हैसियत के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, अच्छी प्रतिष्ठा के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, मामलों पर अपना कहा मनवाने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं और समूह में निर्णय लेने की परम शक्ति के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिनकी प्राप्ति उन्हें खुश कर देती है। ... मसीह-विरोधियों का इतना घमंडी, घिनौना और अविवेकी स्वभाव होता है। उनके पास न तो जमीर होता है, न विवेक, न ही सत्य का कोई कण। मसीह-विरोधी के कार्यों और कर्मों में देखा जा सकता है कि वह जो कुछ करता है, उसमें सामान्य व्यक्ति का विवेक नहीं होता, और भले ही कोई उनके साथ सत्य के बारे में संगति करे, वे उसे नहीं स्वीकारते। तुम्हारी बात कितनी भी सही हो, उन्हें स्वीकार्य नहीं होती। एकमात्र चीज, जिसका वे अनुसरण करना पसंद करते हैं, वह है प्रतिष्ठा और हैसियत, जिसके प्रति वे श्रद्धा रखते हैं। जब तक वे हैसियत के लाभ उठा सकते हैं, तब तक वे संतुष्ट रहते हैं। वे मानते हैं कि यह उनके अस्तित्व का मूल्य है। चाहे वे किसी भी समूह के लोगों के बीच हों, उन्हें लोगों को वह ‘प्रकाश’ और ‘गर्मी’ दिखानी होती है जो वे प्रदान करते हैं, अपनी विशेष प्रतिभा, अपनी अद्वितीयता दिखानी होती है। चूँकि वे मानते हैं कि वे विशेष हैं, इसलिए वे स्वाभाविक रूप से सोचते हैं कि उनके साथ दूसरों से बेहतर व्यवहार किया जाना चाहिए, कि उन्हें लोगों का समर्थन और प्रशंसा मिलनी चाहिए, कि लोगों को उन्हें सम्मान देना चाहिए, उनकी पूजा करनी चाहिए—उन्हें लगता है कि यह सब उनका हक है। क्या ऐसे लोग निर्लज्ज और बेशर्म नहीं होते?(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग तीन))। परमेश्वर खुलासा करता है कि मसीह-विरोधी किसी के साथ साझेदारी में काम नहीं कर सकते। वे हमेशा केंद्र में रहना चाहते हैं, और चाहते हैं कि दूसरे उनकी प्रशंसा और आराधना करें। ऐसे व्यक्ति का स्वभाव दुष्ट होता है—वे परमेश्वर से घृणा करते हैं और उसका शाप पाते हैं। आत्मचिंतन करने पर, मैंने देखा कि मुझमें एक मसीह-विरोधी का स्वभाव भी दिख रहा था। कलीसिया ने मेरे और चेन शी के लिए मिलकर कार्य करने की व्यवस्था की थी, लेकिन मैं एक सितारा बनकर अकेली चमकना चाहती थी। चेन शी की स्पष्ट सहभागिता और उसे दूसरों की स्वीकृति पाते देखकर मुझे उससे जलन हुई, और लगा कि अगर वह कलीसिया में रहेगी, तो मुझे कोई अहमियत नहीं मिलेगी। मैंने उसे अपना प्रतिद्वंद्वी माना। मैंने काम में उसका संघर्ष देखा लेकिन उसकी मदद करने के बजाय उसे अकेले काम करने के लिए छोड़ दिया, जिससे वह नकारात्मक महसूस करने लगी। मैंने बार-बार उसे बाहर रखा, तो उसकी हालत बदतर होती गई, लेकिन मैंने दोषी या परेशान महसूस नहीं किया। इसके बजाय, ऐसा लगा मानो अब मैं सुर्खियाँ बटोरने और प्रमुख भूमिका निभाने में सक्षम हो गई हूँ। कर्तव्य के प्रति उसके उत्साह को निशाना बनाने के लिए मैंने जानबूझकर कुछ अपमानजनक बातें कहीं, ताकि उसकी असली खूबियाँ सामने ना आये। यह उसके लिए बहुत दुखदायी था। मैं इन शैतानी जहर के साथ जी रही थी जैसे “केवल एक ही अल्फा पुरुष हो सकता है” और “सारे ब्रह्मांड का सर्वोच्च शासक बस मैं ही हूँ।” मैं सबसे अलग दिखना चाहती थी। मैंने उसे बाहर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और उसे सिर्फ इसीलिए चोट पहुँचायी ताकि मैं बाकियों से ऊपर खड़ी हो सकूँ। मुझमें लेशमात्र भी विवेक नहीं था। मैंने कलीसिया के कुछ मसीह-विरोधियों के बारे में सोचा। दूसरों के बीच वे सिर्फ अपने रुतबे की परवाह करते थे, उनकी प्रशंसा पाना चाहते थे। उन्हें किसी को खुद से आगे निकलते देखना बर्दाश्त नहीं था, और जब उनके रुतबे पर खतरा मंडराता, तो वे दूसरे व्यक्ति को दबाने और दंडित करने के लिए घिनौनी तरकीबों का सहारा लेते थे। आखिर में उनके कुकर्मों के कारण परमेश्वर ने उन्हें उजागर कर त्याग दिया। मैं हमेशा दूसरों की प्रशंसा और स्वीकृति चाहती थी। मैं अपनी साथी को नीचा दिखाना चाहती थी, ताकि वह अपनी जगह न बना सके। मैं मसीह-विरोधी पथ पर थी। अगर मैं पीछे ना हटकर नाम और लाभ के लिये लड़ती रही, और कलीसिया के काम में बाधा डालती रही, तो मेरा भी मसीह-विरोधियों जैसा हाल होगा, परमेश्वर मुझे दंड और शाप देगा! यह मेरे लिए एक भयावह विचार था, मैं प्रार्थना और पश्चाताप करने के लिए दौड़ पड़ी।

मैंने कई अंश पढ़े। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “रुतबे और प्रतिष्ठा को छोड़ना कठिन होता है। लोगों को सत्य का अनुसरण करना चाहिए। आंशिक रूप से, उन्हें स्वयं को जानना चाहिए और साथ ही, उन्हें सत्य को स्वीकार करना चाहिए और स्वयं को उजागर करने में सक्रिय होना चाहिए। इस तरह से एक प्रभाव पैदा किया जा सकता है। अगर तुम यह स्वीकार करते हो कि तुम्हारे पास सत्य नहीं है, और तुममें बहुत सारी कमियाँ हैं, फिर भी तुम लोगों को यह सोचने देने की कोशिश करते हो कि तुम हर चीज में अच्छे और पूर्ण हो, तो यह जोखिम से भरा है—तुम्हारे प्रसिद्धि और लाभ के चक्कर में पड़ जाने की पूरी संभावना है। तुम्हें यह स्वीकार करना चाहिए कि तुम्हारे पास सत्य नहीं है और तुममें बहुत-सी कमियाँ हैं, कमजोरियाँ और दोष हैं, और कई ऐसे काम हैं जो तुम नहीं कर सकते, जो तुम्हारी क्षमता से बाहर हैं। तुम्हें यह स्वीकार करना चाहिए कि तुम एक साधारण व्यक्ति हो, तुम कोई अतिमानव या सर्वशक्तिमान नहीं हो। जब तुम इस तथ्य को स्वीकार कर लेते हो और दूसरों को भी इस बात से अवगत करा देते हो, तो पहला काम यह तुम्हारे प्रतिस्पर्धी व्यवहार पर रोक लगाने का करता है; यह कुछ हद तक तुम्हारी प्रतिस्पर्धी मानसिकता और प्रतिस्पर्धा करने की इच्छा को नियंत्रित कर देता है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग तीन))। “तुम लोगों के आचरण के कौन-से सिद्धांत हैं? तुम्हारा आचरण तुम्हारे पद के अनुसार होना चाहिए, अपने लिए सही पद खोजो और जो कर्तव्य तुम्हें निभाना चाहिए उसे निभाओ; केवल ऐसा व्यक्ति ही समझदार होता है। उदाहरण के तौर पर, कुछ लोग एक पेशे में अच्छे होते हैं और उसके सिद्धांतों को समझते हैं, और उन्हें वह जिम्मेदारी लेनी चाहिए और उस क्षेत्र में अंतिम जाँचें करनी चाहिए; कुछ ऐसे लोग हैं जो अपने विचार और अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं, जिससे हर व्यक्ति उनके विचार पर आगे कार्य करने और अपना कर्तव्य बेहतर तरीके से निभाने में सक्षम हो पाता है—तो फिर उन्हें अपने विचार साझा करने चाहिए। यदि तुम अपने लिए सही पद खोज सकते हो और अपने भाई-बहनों के साथ सद्भाव से कार्य कर सकते हो, तो तुम अपना कर्तव्य पूरा करोगे, और तुम अपने पद के अनुसार आचरण करोगे(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, व्यक्ति के आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत)। “चूँकि किसी के लिए भी अपने दम पर किसी काम को पूरा करना इतना आसान नहीं होता, चाहे वह किसी भी क्षेत्र से जुड़ा हो या कोई भी काम कर रहा हो, अगर कोई बताने और सहायता करने वाला हो तो यह हमेशा अच्छा ही होता है—अपने स्तर पर करने से कहीं ज्यादा आसान होता है। इसके अलावा, लोगों की काबिलियत क्या कर सकती है या वे स्वयं क्या अनुभव कर सकते हैं, इसकी सीमाएं होती हैं। कोई भी इंसान हरफनमौला नहीं हो सकता; किसी के लिए भी हर चीज़ को जानना, सीखना, उसे पूरा करना असंभव होता है और सभी को इस बात की समझ होनी चाहिए। इसलिए तुम चाहे जो काम करो, वह महत्वपूर्ण हो या न हो, तुम्हारी मदद करने के लिए हमेशा कोई-न-कोई होना चाहिए, तुम्हें सुझाव और सलाह देने वाला, या तुम्हारे साथ सहयोग करते हुए काम करने वाला। काम को ज़्यादा सही ढंग से करने, कम गलतियाँ करने और कम भटकने का यही एकमात्र तरीका है—जो बहुत अच्छी बात है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपना आज्ञापालन करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर का नहीं (भाग एक))। मुझे परमेश्वर के वचनों में अभ्यास का मार्ग मिला। मुझे नाम और रुतबे के पीछे भागने की इच्छा छोड़नी होगी, अपनी कमियों और खामियों का सामना करने लायक बनकर, अपने स्थान पर खड़ी होना होगा, जब चीजों का सामना हुआ तो कलीसिया के हितों और दूसरों के जीवन प्रवेश पर विचार किया, अपने साथी के साथ अच्छे से काम करना होगा ताकि हम मिलकर कलीसिया के काम को आगे बढ़ा सकें, और अच्छे से कर्तव्य निभा सकें। पहले मैं चेन शी के काम के लिए जिम्मेदार थी और मुझे थोड़ा काम का अनुभव भी था, लेकिन सत्य और समस्या-समाधान पर संगति करने में मैं फिर भी बहुत पीछे रह गई। मुझे व्यावहारिक अनुभव नहीं था और मैं बहुत से मुद्दों को समझ नहीं सकी या हल नहीं कर सकी। ये मेरी कमियाँ थीं। मुझे उन्हें स्वीकारना चाहिये और उनका सामना करना चाहिये। चेन शी की संगति रोशन करने वाली और भाई-बहनों के जीवन प्रवेश के लिए मददगार थी। मुझे उसका समर्थन करना चाहिये और उसे उसका कौशल दिखाने देना चाहिये। इस तरह मैं उसकी खूबियों से सीखकर अपनी कमजोरियों को दूर कर पाती, जिससे मेरे जीवन प्रवेश और कलीसिया के कार्य को लाभ पहुँचता।

बाद में, जब मैंने सभाओं में सहभागिता करने के लिए चेन शी के साथ काम किया, तो मैं सही इरादा रखती थी और जो समझ में आता उस पर ही संगति करती थी। जिसके बारे में चेन शी को समझ होती थी उस पर उसे सहभागिता करने देती थी, और मैं इसकी पूरक बन जाती थी। जब मैं दूसरों को उसकी संगति स्वीकारते देखती थी तो कभी-कभी प्रतिस्पर्धा महसूस होती थी, लेकिन मैं जल्दी से देख पाती थी कि मेरी हालत ठीक नहीं है, फिर मैं प्रार्थना कर खुद की इच्छाओं को त्याग देती, कलीसिया के काम को प्राथमिकता देने और चेन शी के साथ सहयोग करने को तैयार हो जाती थी। तब, मेरी ईर्ष्या इतनी प्रबल नहीं रहती थी और मैं उसके साथ प्रतिस्पर्धा करने की बात सोचना बंद कर देती थी। इसके बजाय, मैं सोचती थी कि दूसरों की समस्याओं को हल करने के लिये उसके साथ कैसे काम करूँ। मैं अब अपने भ्रष्ट स्वभाव से पिछड़ नहीं रही थी और अपनी भूमिका निभाने में सक्षम हो गई थी। मैं जानबूझकर चेन शी के साथ मिलकर काम करती थी, और जब उसे कोई समस्या आती तो मदद की पेशकश करती थी। कुछ समय के बाद, हमारे सिंचन कार्य में सुधार हुआ और हम दोनों ने प्रगति कर ली। मुझे बहुत शांति महसूस हुई।

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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परेमश्वर के सामने जीवन जीना

योंगसुई, दक्षिण कोरियासर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "वास्तविकता में प्रवेश करने के लिए इंसान को सबकुछ वास्तविक जीवन की ओर मोड़ देना चाहिए।...

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