ईर्ष्या के बंधनों से आज़ाद
जनवरी 2018 में, मैंने अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार किया और जल्दी ही, मुझे कलीसिया में भजनों के संगीत वीडियो में प्रमुख गायिका का कर्तव्य निभाने को दिया गया। शुरुआत में, कई भाई-बहनों ने कहा कि मैं बहुत अच्छा गाती हूँ, जहां भी मैं जाती, सब मुझे पहचान लेते। इससे मुझे बड़ी खुशी हुई। कुछ महीने बाद, मुझे कलीसिया अगुआ चुना गया। वहां कई नए सदस्यों का सिंचन करना था और सुसमाचार कार्य पर नजर रखनी थी। नए सदस्यों की समस्या का बेहतर ढंग से समाधान करने के लिए मैं अक्सर सुसमाचार फ़िल्में देखती थी, ताकि परमेश्वर के कार्य को जानने से जुड़े सच से खुद को लैस कर सकूँ। हर बार जब नए सदस्यों के मन में ऐसी धारणा या समस्या होती जो वे समझ नहीं पाते, तो मैं उनके साथ सक्रिय रूप से सहभागिता करके उन्हें हल कर देती थी। मेरे भाई-बहन अक्सर मेरी अच्छी काबिलियत और समझ की सराहना करते थे। उनकी मंजूरी पाकर मैं बहुत खुश थी। लेकिन मैं, सुसमाचार के कार्य में कभी प्रभावकारी नहीं रही थी। उस समय, सुसमाचार के प्रचार के लिए बहन क्लेयर को हमारी कलीसिया में भेजा गया। उसने तुरंत खुद को काम में झोंक दिया, वह सहभागिता करने और दूसरों के कर्तव्यों में आई समस्याओं को हल करने की खातिर पहल करने में सक्षम थी। सभाओं में भी सक्रिय रूप से सहभागिता करती थी। क्लेयर को कर्तव्य के प्रति जिम्मेदार देखकर मुझे खुश होना चाहिए था, मगर पता नहीं क्यों मुझे वह पसंद नहीं आई। जब भी वह भाई-बहनों के साथ सहभागिता करती, मैं उसे देखना भी नहीं चाहती थी। खास तौर पर जब मैं उन्हें यह कहते सुनती, “क्लेयर इतनी अच्छी है कि उसे सुसमाचार उपयाजक होना चाहिए,” तो मैं और ज्यादा परेशान हो जाती। मैंने सोचा, “क्लेयर के आने से पहले, कई भाई-बहन मेरी अच्छी काबिलियत, समझ और नए सदस्यों के सिंचन के लिए मेरी प्रशंसा किया करते थे, सब मेरे बारे में ऊँचा सोचते थे, मगर अब वे सिर्फ यह सोचते हैं कि वो सबसे अच्छी है और उसी का आदर करते हैं। अब मेरे बारे में कौन ऊँचा सोचेगा?” उसी समय से, मुझे क्लेयर से ईर्ष्या होने लगी, मुझे डर था कि वह भाई-बहनों के दिलों में मेरी जगह ले लेगी।
उसके बाद, मैंने देखा कि क्लेयर अक्सर नए सदस्यों की स्थिति जानने के लिए उन्हें बुलाती थी, और कई नए सदस्य समस्याओं के हल के लिए उसके पास जाते थे। एक बार, मेरे द्वारा सिंचित एक बहन को सुसमाचार कार्य में समस्याएँ आईं तो उसने मेरी राय माँगी। मेरी सहभागिता के बाद, वह क्लेयर के पास गई। जब मैंने सुना कि वह क्लेयर के पास गई है, तो मुझे बुरा लगा। मैंने मन में सोचा, “शायद उसने मेरे सुझावों को गंभीरता से नहीं लिया, उसे लगता होगा कि क्लेयर मुझसे बेहतर है, और वह अब मेरा आदर नहीं करती। मैं सुसमाचार कार्य में इतनी बुरी हूँ, इसलिए मुझे अपनी कमियों से उबरने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। फिर मैं क्लेयर से बेहतर हो जाऊँगी, आने वाले समय में, भाई-बहन समस्या होने पर, उसके बजाय मेरे पास आएंगे।” उसके बाद के दिनों में, मैं चुपचाप क्लेयर से प्रतिस्पर्धा करने लगी। मैंने देखा कि क्लेयर रोजाना रात का खाना देर से खाती है क्योंकि वह अपने कर्तव्य में व्यस्त रहती है, कभी-कभी तो वह सारी रात काम करती रहती थी। इसलिए मैंने भी अपने कर्तव्य के लिए देर तक जगने की कोशिश की, ताकि भाई-बहनों देखें कि मैं भी जिम्मेदार हूँ और उसके जितनी ही अच्छी हूँ। फिर, कलीसिया ने सुसमाचार उपयाजक के लिए चुनाव कराया। सभी पहलुओं को देखा जाए तो, क्लेयर इस कर्तव्य के लिए सबसे अच्छी थी, मगर मैं उसे नहीं चुनना चाहती थी। मैंने सोचा कि वह मुझसे ज्यादा काबिल है और अगर वह सुसमाचार उपयाजक बन गई, तो हर किसी का ध्यान धीरे-धीरे उसकी ओर चला जाएगा। मगर कलीसिया अगुआ सारा काम अकेले नहीं कर सकते और काम के कुछ हिस्से के जिम्मेदारी लेने के लिए उपयाजकों की जरूरत होगी, इसके मद्देनजर, मैंने सोचा, “क्या मुझे उसे चुनना चाहिए? अगर मैंने उसे चुना, तो भाई-बहन पक्के तौर पर मुझे छोड़कर उसके पास चले जाएंगे और मैं किनारे कर दी जाऊँगी।” मगर यह तो मानना ही था कि क्लेयर में बहुत अच्छी काबिलियत है, वह सुसमाचार उपयाजक का कार्य संभाल सकती है। मैंने काफी देर विचार करने के बाद, न चाहकर भी उसे चुन लिया।
एक बार, कलीसिया को एमवी ग्रुप में रिकॉर्ड करने के लिए ऐसी बहन की तलाश थी, जिसे अच्छी फिलिपीनो और अंग्रेजी आती हो। क्लेयर की फिलिपीनो और अंग्रेजी, दोनों अच्छी थी, तो आखिर में भाई-बहनों ने उसे ही चुन लिया। मुझे बहुत निराशा हुई, “मेरी फिलिपीनो और अंग्रेजी भी तो अच्छी है, फिर भाई-बहनों ने मुझे न चुनकर उसे क्यों चुना?” मैं उससे जलने लगी, उसके लिए दिल में थोड़ी नफरत भी पैदा हो गई। उस समय, क्योंकि क्लेयर ने थोड़ा अहंकारी स्वभाव उजागर किया था, इसलिए हमारे अगुआ जाँच कर रहे थे कि वह कर्तव्य कैसे निभाती है, उन्होंने मुझे उसका मूल्यांकन लिखने को कहा। मैं बहुत खुश हुई, मैं उसकी कमियों के बारे में अधिक लिखना चाहती थी, ताकि हमारे अगुआ उसे कोई और कर्तव्य सौंप दें और मुझे उसके साथ कर्तव्य न निभाना पड़े। भले ही अंत में मैंने ऐसा नहीं किया, पर फिर भी मैं चाहती थी वो चली जाए। जब मैंने इस बारे में सोचा कि कैसे सभी भाई-बहन सवालों के जवाब पाने उसके पास जाते थे और कैसे वे अब मेरा आदर नहीं करते, तो मुझे बहुत पीड़ा हुई और बुरा भी लगा। उसके साथ मिलकर कर्तव्य निभाते हुए भी, मैं उसे देखना नहीं चाहती थी। उस समय मैं ईर्ष्या से भर गई थी और भ्रष्ट स्वभाव ने वास्तव में मेरे दिल पर कब्जा कर लिया था।
उसके बाद, मुझे अपने कर्तव्य में पवित्र आत्मा के कार्य और मार्गदर्शन का एहसास होना बंद हो गया। जब कुछ समस्याएं होतीं, तो उनके सार न समझ पाती, समझ न आता कि इन्हें हल कैसे करूं। मैं अपने कर्तव्यों में बिल्कुल प्रभावहीन थी। मुझे बिल्कुल भी एहसास नहीं हुआ कि मेरी नकारात्मक स्थिति पहले से मेरे कर्तव्यों पर असर डाल रही थी। तब मैंने एक सभा में परमेश्वर के इन वचनों को पढ़ा : “कलीसिया का अगुआ होने के नाते तुम्हें समस्याएँ सुलझाने के लिए केवल सत्य का प्रयोग सीखने की आवश्यकता ही नहीं है, बल्कि प्रतिभाशाली लोगों का पता लगाने और उन्हें विकसित करना सीखने की आवश्यकता भी है, जिनसे तुम्हें बिल्कुल ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए या जिनका बिल्कुल दमन नहीं करना चाहिए। इस तरह के अभ्यास से कलीसिया के काम को लाभ पहुँचता है। अगर तुम अपने कार्यों में सहयोग के लिए सत्य के कुछ खोजी तैयार कर सको और सारा काम अच्छी तरह से करो, और अंत में, तुम सभी के पास अनुभवजन्य गवाहियाँ हों, तो तुम एक योग्य अगुआ या कार्यकर्ता होंगे। यदि तुम हर चीज़ सिद्धांतों के अनुसार संभाल सको, तो तुम अपनी निष्ठा को लेकर प्रतिबद्ध हो। कुछ लोग हमेशा इस बात से डरे रहते हैं कि दूसरे लोग उनसे बेहतर और ऊपर हैं, अन्य लोगों को पहचान मिलेगी, जबकि उन्हें अनदेखा किया जाता है, और इसी वजह से वे दूसरों पर हमला करते हैं और उन्हें अलग कर देते हैं। क्या यह प्रतिभाशाली लोगों से ईर्ष्या करने का मामला नहीं है? क्या यह स्वार्थपूर्ण और घृणास्पद नहीं है? यह कैसा स्वभाव है? यह दुर्भावना है! जो लोग दूसरों के बारे में सोचे बिना या परमेश्वर के घर के हितों को ध्यान में रखे बिना केवल अपने हितों के बारे में सोचते हैं, जो केवल अपनी स्वार्थपूर्ण इच्छाओं को संतुष्ट करते हैं, वे बुरे स्वभाव वाले होते हैं, और परमेश्वर में उनके लिए कोई प्रेम नहीं होता। अगर तुम वाकई परमेश्वर की इच्छा का ध्यान रखने में सक्षम हो, तो तुम दूसरे लोगों के साथ निष्पक्ष व्यवहार करने में सक्षम होंगे। अगर तुम किसी अच्छे व्यक्ति की सिफ़ारिश करते हो और उसे प्रशिक्षण प्राप्त करने और कोई कर्तव्य निभाने देता है, और इस तरह एक प्रतिभाशाली व्यक्ति को परमेश्वर के घर में शामिल करते हो, तो क्या उससे तुम्हारा काम और आसान नहीं हो जाएगा? तब क्या यह तुम्हारा कर्तव्यनिष्ठा प्रदर्शित करना नहीं होगा? यह परमेश्वर के समक्ष एक अच्छा कर्म है; अगुआ के रूप में सेवाएँ देने वालों के पास कम-से-कम इतनी अंतश्चेतना और समझ तो होनी ही चाहिए” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, मुझे समझ आया कि मैं सिर्फ इज्जत और रुतबे के लिए कर्तव्य निभाती थी, ताकि लोग मेरे बारे में ऊँचा सोचें और मुझे पूजें। जब क्लेयर कलीसिया में आई, और मैंने देखा कि वह सत्य पर सहभागिता करके समस्या हल कर सकती है, और लोग सहभागिता के लिए मेरे बजाय उसे खोजेंगे, तो मुझे क्लेयर से ईर्ष्या हुई और डर लगा वह मेरी जगह ले लेगी, तो मैं हर मोड़ पर उसके साथ होड़ करने लगी, अपनी कमियाँ दूर करने के लिए मैंने कड़ी मेहनत की ताकि उससे आगे निकल सकूँ। जब कलीसिया को एक सुसमाचार उपयाजक को चुनने की जरूरत थी, तो मैं स्पष्ट रूप से जानती थी कि क्लेयर यह काम कर सकती है, मगर मैं उसे इसलिए नहीं चुनना चाहती थी कि वह मेरी प्रतिष्ठा चुरा लेगी, मन-ही-मन मैं उससे नफरत करने लगी। उसे भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करते देख मुझे बड़ी खुश हुई, जब उसका मूल्यांकन लिखने की बात आई तो मेरे मन में दुष्ट ख्याल आए। मैं उसकी कमियों का पूरा बखान करना चाहती थी, ताकि उसे दूर भेज दिया जाए, और मुझे यह डर न रहे कि भाई-बहन उसका आदर करेंगे। परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन द्वारा मुझे एहसास हुआ कि मुझे उसकी काबिलियत से ईर्ष्या थी और मैं उसे खुद से बेहतर होते नहीं देख सकती थी, इस तरह मैंने एक कपटी स्वभाव दिखाया। बाहर से तो मैं अच्छी तरह अपना कर्तव्य निभा रही थी, मगर दिल से मैंने कलीसिया के कार्य के बारे में थोड़ा-भी नहीं सोचा। क्लेयर सुसमाचार कार्य में अच्छी थी, और मुझे उसका साथी बनना चाहिए था ताकि सुसमाचार कार्य प्रभावशाली बने। हालांकि, मैंने सिर्फ यह सोचा कि मैं कैसे उससे बेहतर हो जाऊँ, कैसे उसे जाने पर मजबूर करूँ और कैसे अपने रुतबे की रक्षा करूँ। परमेश्वर हमारे दिलों और कर्तव्यों के प्रति हमारे रवैये की जांच करता है। मैंने परमेश्वर का भय माने बिना अपना कर्तव्य निभाया, सिर्फ शोहरत, लाभ और रुतबे की परवाह की। परमेश्वर को इस बर्ताव से नफरत और घृणा है।
फिर, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “जैसे ही कोई ऐसी बात आती है जिसमें प्रतिष्ठा, हैसियत या विशिष्ट दिखने का अवसर सम्मिलित हो—उदाहरण के तौर पर, जब तुम लोग सुनते हो कि परमेश्वर के घर की योजना विभिन्न प्रकार के प्रतिभावान व्यक्तियों को पोषण देने की है—तुममें से हर किसी का दिल प्रत्याशा में उछलने लगता है, तुममें से हर कोई हमेशा अपना नाम करना चाहता है और सुर्खियों में आना चाहता है। तुम सभी प्रतिष्ठा और हैसियत के लिए लड़ना चाहते हो। तुम्हें इस पर शर्मिंदगी भी महसूस होती है, पर ऐसा न करने पर तुम्हें बुरा महसूस होगा। जब तुम्हें कोई व्यक्ति भीड़ से अलग दिखता है, तो तुम्हें ईर्ष्या, घृणा और रोष महसूस होता है औरतुम सोचते हो कि यह अन्याय है : ‘मैं भीड़ से अलग क्यों नहीं हो सकता? हमेशा दूसरे लोग ही क्यों सुर्खियों में आ जाते हैं? कभी मेरी बारी क्यों नहीं आती?’ और रोष महसूस करने पर तुम उसे दबाने की कोशिश करते हो, लेकिन ऐसा नहीं कर पाते। तुम परमेश्वर से प्रार्थना करते हो और कुछ समय के लिए बेहतर महसूस करते हो, लेकिन जब तुम्हारा सामना दुबारा ऐसी ही परिस्थिति से होता है, तो तुम फिर भी उसे नियंत्रित नहीं कर पाते। क्या यह एक अपरिपक्व आध्यात्मिक कद का प्रकटीकरण नहीं है? जब लोग ऐसी स्थितियों में फँस जाते हैं, तो क्या वे शैतान के जाल में नहीं फँस गए हैं? ये शैतान की भ्रष्ट प्रकृति के बंधन हैं जो इंसानों को बाँध देते हैं” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों ने मेरी हालत का खुलासा कर दिया। मैं अपनी बहन से ईर्ष्या करती थी क्योंकि मुझमें नाम और रुतबे की प्रचंड इच्छा थी, मैं भीड़ से अलग दिखकर लोगों के दिलों में जगह बनाना चाहती थी। मुझे याद आया, कॉलेज के दिनों में, दूसरी की शाबाशी और प्रशंसा पाने के लिए, मैं अपने सहपाठियों से होड़ करती थी, अगर मेरे अलग दिखने की संभावना होती तो मुझे उन्हें चोट पहुँचाने की भी परवाह नहीं होती थी। परमेश्वर में विश्वास करने के बाद, मैं कलीसिया में फिर से वैसा ही व्यवहार करने लगी। क्लेयर को खुद से बेहतर देखकर, मैं उससे आगे निकलना चाहती थी, क्योंकि मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों की प्रशंसा चाहती थी, मेरी महत्वाकांक्षा थी कि लोग मेरी सराहना करें, मुझे पूजें, जिससे पता चला मैं कितनी अहंकारी थी। मैं प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भाग रही थी, मैं अपने कर्तव्य में पवित्र आत्मा का कार्य भी हासिल नहीं कर सकी और अंधकार में जा गिरि। ये शैतान की भ्रष्ट प्रकृति के बंधन थे जिन्होंने मुझे बांधकर नुकसान पहुंचाया। बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश देखा, जिससे मुझे नाम और लाभ के पीछे भागने के सार और नतीजों को समझने में थोड़ी मदद मिली। परमेश्वर कहते हैं : “कुछ लोग परमेश्वर में विश्वास तो करते हैं, लेकिन सत्य का अनुसरण नहीं करते। वे हमेशा देह के स्तर पर जीते हैं, दैहिक-सुखों की इच्छा करते हैं, हमेशा अपनी स्वार्थपूर्ण इच्छाओं को पूरा करते हैं। वे चाहे कितने भी वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास करें, वे कभी भी सत्य वास्तविकता में प्रवेश नहीं करेंगे। यह परमेश्वर को शर्मिंदा करने का संकेत है। तुम कहते हो, ‘मैंने परमेश्वर के प्रतिरोध जैसा कुछ नहीं किया। मैंने उसे शर्मिंदा कैसे कर दिया?’ तुम्हारे सभी विचार और ख्याल दुष्टतापूर्ण हैं। तुम जो करते हो, उसके पीछे की मंशाएँ, लक्ष्य और उद्देश्य और तुम्हारे कार्यों के परिणाम हमेशा शैतान को संतुष्ट करते हैं, जिससे तुम उसके उपहास के पात्र बनते हो और उसे तुम्हारे विरुद्ध कुछ-न-कुछ जानकारी मिल ही जाती है। तुमने एक भी गवाही नहीं दी है जो एक ईसाई को देनी चाहिए। तुम शैतान के हो। तुम सभी चीज़ों में परमेश्वर का नाम बदनाम करते हो और तुम्हारे पास सच्ची गवाही नहीं है। क्या परमेश्वर तुम्हारे द्वारा किए गए कृत्यों को याद रखेगा? अंत में, परमेश्वर तुम्हारे सभी कृत्यों, व्यवहार और कर्तव्यों के बारे में क्या निष्कर्ष निकालेगा? क्या उसका कोई नतीजा नहीं निकलना चाहिए, किसी प्रकार का कोई वक्तव्य नहीं आना चाहिए? बाइबल में, प्रभु यीशु कहता है, ‘उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, “हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्चर्यकर्म नहीं किए?” तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, “मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ”’ (मत्ती 7:22-23)। प्रभु यीशु ने ऐसा क्यों कहा? धर्मोपदेश देने, दुष्टात्माओं को निकालने और प्रभु के नाम पर इतने चमत्कार करने वालों में से इतने सारे लोग कुकर्मी क्यों हो गए? इसका कारण यह था कि उन्होंने प्रभु यीशु द्वारा व्यक्त किए गए सत्यों को स्वीकार नहीं किया, उन्होंने उसकी आज्ञाओं का पालन नहीं किया, और सत्य के लिए उनके दिल में कोई प्रेम नहीं था। वे सिर्फ प्रभु के लिए किए गए अपने काम, उठाए गए कष्टों और त्यागों के बदले में स्वर्ग के राज्य के आशीष चाहते थे। ऐसा करके, वे परमेश्वर के साथ एक सौदा करने की कोशिश कर रहे थे, और वे परमेश्वर का इस्तेमाल करने और परमेश्वर को धोखा देने की कोशिश कर रहे थे, इसलिए प्रभु यीशु उनसे नाराज था, उनसे घृणा करता था और उनकी कुकर्मियों के रूप में निंदा करता था। आज लोग परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना को स्वीकार कर रहे हैं, लेकिन कुछ अब भी नाम और हैसियत के पीछे भागते हैं, और हमेशा विशिष्ट दिखना चाहते हैं, हमेशा अगुआ और कार्यकर्ता बनना और नाम और हैसियत पाना चाहते हैं। हालांकि वे सभी कहते हैं कि वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं और उसका अनुसरण करते हैं, और वे परमेश्वर के लिए त्याग करते हैं और खपते हैं, पर वे अपनी प्रतिष्ठा, लाभ और हैसियत के लिए ही अपने कर्तव्य निभाते हैं और उनके सामने हमेशा निजी योजनाएँ रहती हैं। वे परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी या निष्ठावान नहीं हैं, वे थोड़ा भी आत्मचिंतन किए बिना अनियंत्रित रूप से बुरे कर्म कर सकते हैं, इसलिए वे कुकर्मी बन जाते हैं। परमेश्वर इन कुकर्मियों से घृणा करता है, और उन्हें बचाता नहीं है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मुझे शर्मिंदगी महसूस हुई। मेरी सोच, विचार, मंशाएं और प्रेरणाएं परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए नहीं थीं, बल्कि दूसरों की प्रशंसा पाने के लिए थीं। जब मैंने अपने भाई-बहनों को मेरी जगह क्लेयर पर अधिक ध्यान देते पाया, तो मुझे ईर्ष्या महसूस हुई, मैंने उसके साथ होड़ की, मैं उससे आगे निकलना चाहती थी, मैंने यह भी चाहा की कि उसे दूसरी कलीसिया में ट्रांसफर कर दिया जाए। एक कलीसिया अगुआ के नाते, मैंने कलीसिया के काम को अच्छे से करने या लोगों को विकसित करने पर ध्यान नहीं दिया, इसके बजाय मैं कर्तव्य को अनदेखा कर रही थी; काबिलियत से जलती थी, नाम और लाभ के लिए होड़ कर रही थी। मैं उन कुकर्मियों जैसी ही थी जिनकी प्रभु यीशु ने निंदा की थी। उनके प्रयास अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे को बनाए रखने और दूसरों की नजरों में ऊँचा उठने के लिए थे। मैं भी वैसी ही थी। मैंने अपने भाई-बहनों की प्रशंसा पाने के साथ अपनी इज़्ज़त और रुतबे को बनाने के लिए खुद को खपाया। जब मैं दिखावा करने में व्यस्त थी, तो अपने कर्तव्य को लेकर मेरी मंशाएं ठीक नहीं थीं, जिससे पवित्र आत्मा के कार्य को हासिल करना नामुमकिन हो गया। मेरी सहभागिता में कोई रोशनी नहीं थी, मैं भाई-बहनों की समस्याएं हल नहीं कर पा रही थी। अब मैं समझ गई कि नाम, लाभ और रुतबे के पीछे भागना सचमुच बहुत बुरी बात है और परमेश्वर को इससे नफरत है। प्रभु यीशु ने कहा था : “उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, ‘हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्चर्यकर्म नहीं किए?’ तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, ‘मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ’” (मत्ती 7:22-23)। परमेश्वर उन लोगों से नफरत करता है जो बाहर से तो तकलीफ उठाते दिखते हैं, मगर वे सिर्फ अपनी मंशाओं और इरादों को पूरा करने के लिए काम करते हैं। वे सिर्फ अपने फायदे के लिए काम करते हैं। परमेश्वर की गवाही देने या उसे संतुष्ट करने के लिए कुछ भी नहीं करते। यही वजह है कि इतना सारा काम करने के बाद भी, परमेश्वर इसे स्वीकार नहीं करता। मैं भी यही कर रही थी। बाहर से तो मैं अपना कर्तव्य निभा रही थी, मगर मैंने सत्य की खोज करने या आत्मचिंतन करके खुद को जानने की कोशिश नहीं की, मैंने अपने साथियों की खूबियों से सीखने की कोशिश नहीं की। इसके बजाय, मैं प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागने के गलत मार्ग पर चल पड़ी, मैं उन कुकर्मियों से बिल्कुल भी अलग नहीं थी। मैंने सोचा कि कैसे पौलुस ने सिर्फ दूसरों की नजरों में ऊँचा उठने और अपनी पूजा करवाने के लिए खुद को इतना अधिक खपाया और कष्ट सहा। वो अक्सर खुद की बड़ाई करता था और यह दिखाता था कि उसने कितना सहा है, कितनी भाग-दौड़ की है, उसने कहा कि वो “महानतम शिष्यों से कम नहीं,” उसने जीते हुए खुद को मसीह तक कह दिया। उसके काम और उसकी बातें परमेश्वर की गवाही नहीं देते थे, वे उसकी गवाही देते थे। इसके कारण दो हजार साल बाद भी लोग उसका आदर करते और उसे पूजते हैं, यहाँ तक कि उसके शब्दों को परमेश्वर के वचन मानते हैं। अंत में, परमेश्वर ने अपने स्वभाव का अपमान करने के लिए उसे दंड दिया। अगर मैं अपना कर्तव्य निभाते हुए, नाम, लाभ और प्रतिष्ठा के पीछे भागती रही, तो मैं अनजाने में पौलुस की तरह बन जाऊँगी, गलत मार्ग पर चलूँगी, एक दुष्ट इंसान बन जाऊँगी और परमेश्वर मुझे ठुकराकर हटा देगा। इस बात का एहसास होने पर, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : “सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मैं अपने भ्रष्ट स्वभाव को कर्तव्य में रोड़ा नहीं बनने देना चाहती, मैं अपने भ्रष्ट स्वभाव को ठीक करके अपनी बहन के साथ अच्छे से कर्तव्य निभाना चाहती हूँ। कृपया मुझे राह दिखाओ ताकि मैं इस समस्या को हल कर सकूँ।”
एक बार, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा : “हमेशा अपने लिए कार्य मत कर, हमेशा अपने हितों की मत सोच, इंसान के हितों पर ध्यान मत दे, और अपने गौरव, प्रतिष्ठा और हैसियत पर विचार मत कर। तुम्हें सबसे पहले परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना चाहिए और उन्हें अपनी प्राथमिकता बनाना चाहिए। तुम्हें परमेश्वर की इच्छा का ध्यान रखना चाहिए और इस पर चिंतन से शुरुआत करनी चाहिए कि तुम्हारे कर्तव्य निर्वहन मेंतुम अशुद्धियाँ रही हैं या नहीं, तुम निष्ठावान रहे हो या नहीं, तुमने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं या नहीं, और अपना सर्वस्व दिया है या नहीं, साथ ही तुम अपने कर्तव्य, और कलीसिया के कार्य के प्रति पूरे दिल से विचार करते रहे हो या नहीं। तुम्हें इन चीज़ों के बारे में अवश्य विचार करना चाहिए। अगर तुम इन पर बार-बार विचार करते हो और इन्हें समझ लेते हो, तो तुम्हारे लिए अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाना आसान हो जाएगा। अगर तुम्हारे पास ज्यादा काबिलियत नहीं है, अगर तुम्हारा अनुभव उथला है, या अगर तुम अपने पेशेवर कार्य में दक्ष नहीं हो, तब तुम्हारेतुम्हारे कार्य में कुछ गलतियाँ या कमियाँ हो सकती हैं, हो सकता है कि तुम्हें अच्छे परिणाम न मिलें—पर तब तुमने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया होगा। तुमतुम अपनी स्वार्थपूर्णइच्छाएँ या प्राथमिकताएँ पूरी नहीं करते। इसके बजाय, तुम लगातार कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करते हो। भले ही तुम्हें अपने कर्तव्य में अच्छे परिणाम प्राप्त न हों, फिर भी तुम्हारा दिल निष्कपट हो गया होगा; अगर इसके अलावा, इसके ऊपर से, तुम अपने कर्तव्य में आई समस्याओं को सुलझाने के लिए सत्य खोज सकते हो, तब तुम अपना कर्तव्य निर्वहन मानक स्तर का कर पाओगे और साथ ही, तुम सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर पाओगे। किसी के पास गवाही होने का यही अर्थ है” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों से मुझे अभ्यास का मार्ग मिला। हमें दूसरों के सामने शाबाशी और प्रशंसा के लिए अपने कर्तव्य नहीं करने चाहिए। इसके बजाय हमें अपने रुतबे और प्रतिष्ठा को किनारे करके कलीसिया के हितों के बारे में सोचना चाहिए, अपने कर्तव्य को सबसे आगे रखना चाहिए। यही परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप है। क्लेयर सुसमाचार कार्य अच्छे से करती थी और जिम्मेदार भी थी। मुझे उससे ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए थी। मुझे उसकी खूबियों से सीखकर अपनी कमियों की भरपाई करनी चाहिए, और उसके साथ सहयोग कर अपना कर्तव्य उचित ढंग से निभाना चाहिए।
एक बार, मैं अपने चचेरे भाई को सुसमाचार सुनाना चाहती थी, मगर उसके मन में कई धार्मिक धारणाएं थीं। मुझे डर था कि मेरी सहभागिता स्पष्ट नहीं होगी, और मैं उसकी समस्या नहीं सुलझा पाऊँगी, तो मैं चाहती थी कि कोई बहन मेरे साथ चले। मैंने सोचा क्लेयर सुसमाचार के प्रचार में कितनी अच्छी है, उसे साथ लेना अच्छा रहेगा, मगर मुझे संकोच हुआ। मैंने सोचा, “उसे अपने साथ ले गई, तो क्या यह साबित नहीं हो जाएगा कि मैं उससे कमतर हूँ? कि मैं परमेश्वर के कार्य की गवाही नहीं दे सकती या धार्मिक धारणाएं नहीं मिटा सकती? मेरे भाई-बहनों को पता चला, तो क्या वे मेरे बारे में नीचा सोचेंगे? अगर क्लेयर ने मेरे चचेरे भाई की धारणाओं को मिटा दिया तो मेरे भाई-बहन पक्के तौर पर उसका और आदर करने लगेंगे।” यह विचार मन में आने पर, मुझे एहसास हुआ कि मैं फिर से नाम और लाभ के लिए होड़ कर रही हूँ, तो मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की। फिर, मुझे मैंने परमेश्वर के वचनों का अंश याद आया : “तुम्हें नजरअंदाज करने औरइन चीजों को अलग करने, दूसरों की अनुशंसा करने, और उन्हें विशिष्ट बनने देने का तरीका सीखना चाहिए। विशिष्ट बनने और कीर्ति पाने के लिए संघर्ष मत करो अवसरों का लाभ उठाने के लिए जल्दबाजी मत करो। तुम्हेंइन चीजों को दरकिनार करना आनाचाहिए, लेकिन तुम्हें अपने कर्तव्य के निर्वहन में देरी नहीं करनी चाहिए। ऐसा व्यक्ति बनोजो शांत गुमनामी में काम करता है, और जो समर्पण से अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए दूसरों के सामने दिखावा नहीं करता है। तुमजितना अधिक प अपने अहंकारऔर हैसियतको छोड़ते हो, और जितना अधिक अपने हितों को नजरअंदाज करते हो, उतनी ही शांति महसूस करोगे, तुम्हारे हृदय में उतना ही ज्यादा प्रकाश होगा, और तुम्हारी अवस्था में उतना ही अधिक सुधार होगा। तुम जितना अधिक संघर्ष और प्रतिस्पर्धाकरोगे, तुम्हारी अवस्था उतनी ही अंधेरी होती जाएगी। अगर तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है, तो इसे आजमाकर देखो!” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे प्रबुद्ध किया। मुझे अपने अहंकार और रुतबे को किनारे कर उसके साथ सहयोग करना था। इस तरह अभ्यास करने से मेरे कर्तव्य को लाभ होगा। अगर मैं उससे ईर्ष्या करती रही, नाम और लाभ के लिए उससे होड़ करती रही, तो मेरी हालत अधिक नकारात्मक और अंधकारमय हो जाएगी, क्योंकि नाम और रुतबे के पीछे भागना शैतान का मार्ग है। इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मेरा स्वभाव अब भी भ्रष्ट है। मैं अपनी बहन से ईर्ष्या करती हूँ, नाम और लाभ के लिए उससे होड़ करती हूँ, मगर मैं दैहिक इच्छाओं को त्याग करने और खुद को किनारे कर बहन की साथी बनने को तैयार हूँ ताकि मैं सत्य पर अमल कर तुम्हें संतुष्ट कर सकूँ।” प्रार्थना करके मुझे काफी सुकून मिला, मैंने क्लेयर को अपनी स्थिति के बारे में बताया। वह फौरन तैयार हो गई और उसने मुझसे चर्चा की कि हमें भाई के सामने अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य की किस प्रकार मिलकर गवाही देनी चाहिए। मैंने सोचा कि कैसे मैं प्रतिष्ठा और रुतबे के कारण क्लेयर से ईर्ष्या करती थी, और कैसे मैंने के साथ सामंजस्य का दिखावा किया, मगर उसे कभी मेरी असली सोच का पता नहीं चला। इसलिए, मैंने तय किया कि मैं क्लेयर को सब खुलकर बता दूँगी। रात के खाने के बाद, मैंने क्लेयर से बात की, मैंने अपनी सारी भ्रष्टता उसके सामने उजागर कर दी और उस समय आत्मचिंतन से जो कुछ समझा था, वह भी बताया। यह सब सुनकर उसने कहा, “कोई बात नहीं। इस मामले में मैं भी काफी भ्रष्ट हूँ। इस तरह खुलकर बोलना बहुत अच्छी बात है।” सब खुलकर बताने पर मुझे राहत महसूस हुई। अब मैं क्लेयर के साथ मिलकर सामंजस्य के साथ कर्तव्य निभा सकती हूँ, मुझे इसमें काफी सुरक्षा और सुकून का एहसास होता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद!
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?