दुर्व्यवहार और यातना के दिन
2006 की गर्मियों में एक दिन लगभग 11 बजे मैं अपनी मेजबान के घर पर परमेश्वर के वचनों के कुछ भजन सुन रही थी, तभी पुलिस अचानक कमरे में घुस आई और मुझे, मेरी मेजबान बहन झाओ गिलान और उसकी 6 साल की बेटी को थाने ले गई।
जैसे ही हमने थाने में प्रवेश किया, कुछ महिला अधिकारियों ने जबरन हमारे सारे कपड़े उतार दिए। जब मेरे शरीर पर अधोवस्त्र के अलावा कुछ नहीं बचा, तो मैंने सहज रूप से उनसे बचने की कोशिश की, ताकि वे उसे भी न उतार लें। अचानक एक महिला अधिकारी ने झपटकर मेरे अंदर के पूरे कपड़े को फाड़ दिया, उसे बहुत सावधानी से भींचा और फिर अपने निरीक्षण में चीरकर अलग कर दिया। जब पूरे शरीर की तलाशी हो गई, तो हमें एक कार्यालय में ले जाया गया। वहाँ पुलिस अधिकारी मेरे पास से मिली एक छोटी-सी नोटबुक के पन्ने पलट रहे थे। उसमें बहुत सारे फोन नंबर लिखे देख उन्हें लगा कि मैं शायद कोई अगुआ हूँ, इसलिए उन्होंने कहा कि वे मेरे मामले की रिपोर्ट प्रांतीय सार्वजनिक सुरक्षा कार्यालय तक करेंगे। झू नामक एक अनुभाग प्रमुख ने मुझसे पूछा, “तुमने सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर विश्वास करना कब शुरू किया? कलीसिया में तुम्हारी क्या भूमिका है?” मैं बिल्कुल भी कुछ नहीं बोली, तो उसने गुस्से में जोर से मेरा जबड़ा पकड़कर मेरा सिर उठा दिया—वह इतनी जोर से दबा रहा था कि मैं बिल्कुल भी हिल नहीं पा रही थी। वह भद्दे ढंग से मुस्कुराया और बोला, “तुम दिखने में बुरी नहीं हो, प्यारी और जवान हो। तुम बहुत कुछ कर सकती थी, लेकिन तुम तो परमेश्वर में विश्वास करना चाहती हो!” वहाँ मौजूद अन्य अधिकारी खी-खी करते हुए एक तरफ चले गए। मैं विद्रोह और क्रोध से भर गई। मैं सोच रही थी, “यह किस तरह की ‘जनता की पुलिस’ है? ये ठगों और जानवरों के झुंड हैं!” अनुभाग-प्रमुख झू मुझसे बार-बार मेरी व्यक्तिगत जानकारी माँगते हुए पूछता रहा कि कलीसिया का अगुआ कौन है। जब मैंने उन्हें कुछ नहीं बताया, तो उनमें से एक अधिकारी ने मुझे बहुत जोर से मारना शुरू कर दिया। मुझे चक्कर आ गया और पिटाई से मेरी नजर के आगे धुँधलका छा गया; मैं नीचे गिर जाती थी और वह मुझे घसीटकर वापस उठाता, ताकि मुझे मारता रहे। ऐसा करते हुए वह चिल्लाता, “केंद्र सरकार ने बहुत पहले ही आदेश दे दिया था कि तुम लोगों को मारना अपराध नहीं है, हम तुम्हें पीट-पीटकर मार भी दें, तो भी कोई बात नहीं! अगर तुम मर गई, तो हम तुम्हें पहाड़ियों पर ले जाकर दफना सकते हैं। किसी को पता नहीं चलेगा!” यह देखकर कि वह कितना क्रूर और भयानक रूप से दुष्ट है, मैं घबराहट और भय की स्थिति में पड़ गई—मुझे डर लगा कि ये वाकई मुझे पीट-पीटकर मार डालेंगे। मैं लगातार अपने मन में परमेश्वर को पुकारकर उससे अपनी रक्षा की गुहार कर रही थी। उस समय परमेश्वर के वचनों से कुछ मेरे दिमाग में आया : “सत्ता में रहने वाले लोग बाहर से दुष्ट लग सकते हैं, लेकिन डरो मत, क्योंकि ऐसा इसलिए है कि तुम लोगों में विश्वास कम है। जब तक तुम लोगों का विश्वास बढ़ता रहेगा, तब तक कुछ भी ज्यादा मुश्किल नहीं होगा” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 75)। यह बहुत सही है। परमेश्वर का हर चीज पर सामर्थ्य है, इसलिए पुलिस चाहे जितनी शातिर और क्रूर हो, वे लोग भी परमेश्वर के हाथों में ही हैं। अगर परमेश्वर ने मुझे मरने नहीं दिया, तो शैतान भी मेरी जान नहीं ले सकता। अगर पुलिस वाकई मुझे पीट-पीटकर मार भी डाले, तो भी मेरी आत्मा परमेश्वर के हाथों में होगी। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी और मैं धीरे-धीरे शांत हो पाई।
चीफ झू जो जवाब चाहता था, उसके न मिलने पर वह गुस्से से चिल्लाया, “मुझे लगता है कि तुम मुश्किल से ही मानोगी। मैं आज जबरन तुम्हारा यह मुँह खोल दूँगा। मेरे आगे कोई नहीं टिकता—मैंने पिछले दो दिनों में ही दो और लोगों को तब तक लटकाए रखा, जब तक कि वे मर नहीं गए।” फिर कुछ अधिकारी आए, मुझे हथकड़ी लगाई और एक लोहे के दरवाजे से लटका दिया, मेरे पैर जमीन से ऊपर थे और शरीर का पूरा भार मेरी कलाइयों पर टिका हुआ था। इसके बाद उन्होंने गिलान को घसीटा। पिटाई से उसका पूरा चेहरा सूज गया था और उसके बाल पूरी तरह से अस्त-व्यस्त हो गए थे। पुलिस ने उसे भी लोहे के दरवाजे से लटका दिया। चीफ झू हमें दर्द में देखकर दुष्टतापूर्वक मुस्कराया और बोला, “मजे करो,” फिर मुड़कर बाहर चला गया। जैसे-जैसे समय बीतता गया, उस तरह हथकड़ी लगी होने से मेरी कलाइयों पर दबाव बढ़ता गया और ऐसा महसूस हुआ कि मेरी बाँहें अपनी जड़ से उखड़ रही हैं। तड़पाने वाले इस दर्द से मेरा पूरा शरीर पसीने-पसीने हो गया। जल्दी ही मेरे कपड़े पूरी तरह से भीग गए। दर्द कम करने के प्रयास में मैंने अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं और एड़ियाँ लोहे के फाटक की सलाखों से लगाने की पूरी कोशिश की, लेकिन मैं नीचे फिसल जाती थी। मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था और मुझे साँस लेने में दिक्कत हो रही थी। मुझे लगा, मेरा दम घुटने वाला है। चीफ झू के इस कथन के बारे में सोचना कि पिछले कुछ दिनों में उसने दो लोगों को तब तक लटकाए रखा जब तक कि वे मर नहीं गए, मेरे लिए डरावना था; मुझे चिंता हुई कि मैं सचमुच वहाँ मर जाऊँगी। मैं परमेश्वर से प्रार्थना करती रही, “हे परमेश्वर, मैं इसे अब और नहीं सह सकती। मैं और ज्यादा समय तक अडिग नहीं रह सकती—कृपया मुझे बचा लो...।” अपनी प्रार्थना के बाद मुझे परमेश्वर के वचनों का एक भजन याद आया, जिसका शीर्षक है “तुम्हारी पीड़ा जितनी भी हो ज़्यादा, परमेश्वर को प्रेम करने का करो प्रयास।” परमेश्वर कहता है : “इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिल्कुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे तुरंत आस्था और शक्ति दी। मेरा जीवन और मृत्यु परमेश्वर के हाथों में है, और मैं तब तक नहीं मरूँगी जब तक कि परमेश्वर इसकी अनुमति न दे। और अगर मुझमें सिर्फ एक ही साँस बची हो, तो भी मुझे परमेश्वर के प्रति समर्पित होना होगा और उसके लिए अपनी गवाही में अडिग रहना होगा। और इसलिए मैं प्रार्थना करते हुए परमेश्वर के सहारे बनी रही और जल्द ही मैं धीरे-धीरे शांत होती चली गई और मेरा दर्द बहुत कम हो गया। सिर घुमाकर देखा तो गिलान के चेहरे पर एक बहुत ही दृढ़ अभिव्यक्ति थी और मैंने चुपचाप परमेश्वर को धन्यवाद दिया। मैं जान गई थी कि हम पूरी तरह से परमेश्वर द्वारा दी गई शक्ति और आस्था के कारण ही बच पाए हैं।
पुलिस ने सुबह 4 बजे के आसपास हमें नीचे उतारा। हमारे हाथ-पैर सुन्न हो गए थे, कुछ महसूस नहीं हो रहा था, मरे नहीं थे, इसलिए हम बस फर्श पर ढह गए। हमें उस दर्द में देखकर चीफ झू ने खूब खुश होते हुए मुझसे पूछा, “क्या तुमने इस बारे में कुछ सोचा है? उन हथकड़ियों से लटकना इतना अच्छा नहीं लगता, है न?” मैंने उसे नजरअंदाज कर दिया। यह मानकर कि मैं यातना बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगी और निश्चित रूप से अपने भाई-बहनों को धोखा दे दूँगी, वह बहुत आश्वस्त दिख रहा था। लेकिन वह नहीं जानता था कि जितना ज्यादा वे हम पर अत्याचार कर रहे थे, उतना ही स्पष्ट रूप से मैं देख पा रही थी कि वे कितने बुरे और बर्बर हैं, उतना ही स्पष्ट रूप से मैं कम्युनिस्ट पार्टी को परमेश्वर-विरोधी दानव के रूप में देख पा रही थी, और उतना ही ज्यादा मैं अपने विश्वास में दृढ़ हो गई थी कि मुझे अपनी गवाही में अडिग रहना चाहिए और शैतान को अपमानित करना चाहिए। अगली दोपहर तक उन्होंने अपनी पूछताछ जारी रखी। तब चीफ झू को फोन पर मैंने यह कहते सुना, “इस औरत पर कोई उपाय काम नहीं कर रहा—न साम, न दंड। मैं दशकों से मामले सँभाल रहा हूँ, लेकिन इतना कठिन मामला मेरे सामने कभी नहीं आया!” फोन काटने के बाद उसने मुझे कोसना शुरू कर दिया, “तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासी बहुत सख्तजान हो! मैं नहीं मानता कि मैं तुम्हारा मुँह नहीं खुलवा सकता। आज हम तुम्हें कहीं और ले जा रहे हैं, वहाँ तुम्हारे लिए यह इतना आसान नहीं होगा। मेरे पास तुम्हें बुलवाने के बहुत तरीके हैं!” इसके बाद वह और एक अन्य अधिकारी बगल के कमरे में चले गए। मैंने बहुत अस्पष्ट रूप से उसे यह कहते सुना, “उसे साँप के कुंड में ले जाकर नग्न अवस्था में फेंक दो। तभी उसका मुँह खुलेगा!” “साँप का कुंड” शब्द सुनकर मैं चौंककर डर गई। हर जगह साँपों के रेंगने के विचार से ही मेरे पूरे शरीर के रोंगटे खड़े हो गए, इसलिए मैंने जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना कर मुझे साहस देने के लिए कहा, ताकि मैं कभी यहूदा बनकर उसे धोखा न दूँ, भले ही वे मुझे साँपों के कुंड में फेंक दें। प्रार्थना करने के बाद मुझे याद आया कि दानिय्येल को शेरों की माँद में फेंक दिया गया था; उन्होंने उसे काटा नहीं, क्योंकि परमेश्वर ने इसकी अनुमति नहीं दी थी। क्या मैं भी पूरी तरह से परमेश्वर के हाथों में नहीं थी? इन विचारों ने मुझे धीरे-धीरे शांत कर दिया। बाद में चीफ झू ने एक फोन पर बात करने के बाद कहा कि उसे एक जरूरी मामला सँभालना है और वह एक अन्य अधिकारी को अपने पीछे लिए तेजी से चला गया। उसके जाते ही, जो अधिकारी मुझ पर नजर रखने के लिए रह गया था, उसके परिवार का फोन आया कि उसके बेटे को कुछ हो गया है और उसकी हालत गंभीर है। उसने मेरी हथकड़ी को लोहे की कुर्सी पर बाँधा और फिर हड़बड़ी में चला गया। मुझे कोई संदेह नहीं था कि परमेश्वर ने मेरी प्रार्थना सुन ली है और मेरे लिए एक रास्ता खोल दिया है। मैंने दोबारा प्रार्थना की : “परमेश्वर, मैंने तेरे अद्भुत कर्म देखे हैं और मैं तुझे धन्यवाद देती हूँ!”
यह देखकर कि पूछताछ का कोई नतीजा नहीं निकला, पुलिसवाले इतना गुस्सा थे कि उन्होंने मुझे सोने नहीं दिया। मुझे बहुत नींद आ रही थी, लेकिन जैसे ही मैं अपनी आँखें बंद करती, वैसे ही एक पुलिस वाला मेरे कंधे पकड़कर चिल्लाते हुए मुझे बहुत जोर से झिंझोड़ देता, “तुम सोना चाहती हो? तुम सोना चाहती हो?” वे मुझे इस तरह बार-बार डराते और मुझे सोने नहीं दिया। पुलिस ने मुझे चार दिन और चार रात यातना दी और न तो मुझे कुछ खाने-पीने दिया, न ही सोने दिया। मैं इस यातना से बेहद कमजोर हो गई थी, मेरे पेट में तेज दर्द था, साँस लेने में दिक्कत हो रही थी और मेरा शरीर बेहद थक गया था। लेकिन उन्होंने चाहे मुझसे जितनी पूछताछ की हो, मैंने उन्हें कुछ नहीं बताया। जब चीफ झू ने देखा कि उसकी कोई तकनीक काम नहीं कर रही, तो वह दरवाजा जोर से बंद कर गुस्से में वहाँ से चला गया। जब वह लौटा तो उसके पास तीन-चार कागज के टुकड़े थे, जिन पर कुछ लिखा था। उसने उन्हें मेज पर पटककर मुझे स्वीकारोक्ति पर हस्ताक्षर करने और अँगूठे का निशान लगाने का आदेश दिया। मैंने कहा, “मैंने इनमें से कुछ नहीं कहा, इसलिए मैं हस्ताक्षर नहीं करूँगी।” उसने दूसरे अधिकारियों को इशारा किया और उनमें से कई दौड़े-दौड़े आए, कुछ ने मेरी बाँहें खींचीं और कुछ ने मेरी कलाइयाँ जोरों से दबा दीं, जिससे मेरी मुट्ठी खुल गई, फिर उन्होंने उस नकली स्वीकारोक्ति पर जबरन मेरी पूरी हथेली का निशान लगवा लिया। चीफ झू ने उसे उठाकर बड़ी प्रसन्नता से कहा, “हम्म! अभी भी मुझसे लड़ने की कोशिश कर रही हो? तुम्हें लगता है कि तुम बिना कुछ कहे बच सकती हो? मैं अभी भी तुम्हें दोषी ठहराकर आठ-दस साल की सजा दिलवा सकता हूँ!”
उस शाम पुलिस मुझे एक सुनसान फैक्टरी में ले गई और मुझे अपने जूते और मोजे उतारने का आदेश दिया, जिससे मैं नंगे पैर रह गई। फिर दो पुलिस वाले मेरी बगल में खड़े होकर मेरा एक-एक हाथ पकड़े मुझे एक अँधेरे गलियारे से ले गए, जिसमें जितना हम आगे चलते गए, उतना ही ज्यादा अँधेरा होता गया। मेरे रोंगटे खड़े हो गए। वे मुझे लोहे के तीन फाटकों में से ले गए और फिर मुझे एक कमरे में धकेल दिया। मैंने कोने में एक आदमी को भारी जंजीरों से बँधे, हाथ-पैर फैलाकर पसरे हुए देखा जो कमजोरी से कराह रहा था। दीवार से बहुत सारी मोटी जंजीरें लटकी हुई थीं और वहाँ बिजली के डंडे और लोहे की छड़ें पड़ी थीं। मुझे लगा, जैसे मैं नरक में गिर गई हूँ। मैं घबरा गई और मुझे लगा कि इस बार मेरा वहीं मरना तय था। मैंने बार-बार परमेश्वर से प्रार्थना की। तब एक अधिकारी ने धमकाते हुए कहा, “अगर तुम जल्दी करती हो, तो तुम्हारे पास कबूल करने का अभी भी समय है। तुम बोलोगी या नहीं?” मैंने कहा, “मैंने कोई कानून नहीं तोड़ा। मेरे पास कबूल करने के लिए कुछ नहीं है।” उसने रुखाई से उपहासपूर्वक हाथ लहराया और फिर दो अन्य पुरुष अधिकारी भेड़ियों की तरह मेरी ओर झपटे और उन्होंने तुरंत मुझे फर्श पर गिरा दिया। मैंने जमकर संघर्ष किया, लेकिन उन्होंने मेरे पैरों पर मजबूती से घुटने टेक दिए और विरोध की मेरी बेतहाशा कोशिशों के बीच मेरी कमीज और पतलून फाड़ दी। उन्होंने मेरे सारे कपड़े फाड़ दिए, और अंततः मुझे फर्श पर औंधे मुँह लिटाकर छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने मेरी जाँघों पर बहुत जोर से घुटने टेके और मेरी बाँहें मेरी पीठ के पीछे मरोड़ दीं, ताकि मैं हिल न पाऊँ। एक दूसरा अधिकारी एक बिजली का डंडा लेकर मेरी कमर, पीठ और नितंबों पर पागलों की तरह झटके देने लगा। हर झटके से मेरा शरीर सूजकर सुन्न हो जाता था और लगता कि दर्द सीधे मेरी हड्डियों में छेद कर रहा था। मैं पूरी तरह बेकाबू होकर काँप रही थी और पैर जमीन पर पटक रही थी। जितना मैं संघर्ष करती, उतना ही कसकर वे मुझे पकड़ते। एक अधिकारी हालात का फायदा उठाकर पागलों की तरह हँसते और कुछ अश्लील बातें करते हुए मेरे नितंब टटोलने लगा। एक अन्य अधिकारी बिजली के झटके देते हुए चिल्लाया, “तुम बोलोगी या नहीं? शर्त लगा लो, मैं तुमसे बुलवाकर मानूँगा!” पाँच-छह बार बिजली का करंट लगाने के बाद उन्होंने मुझे पलट दिया, फिर से मेरी जाँघों पर जोर से घुटने टेक दिए और मेरी छाती, पेट और पेड़ू और जाँघ के जोड़ पर झटके देते रहे। जब उन्होंने मुझे बीच में झटका दिया, तो लगा जैसे मेरा पेट और आँतें एक-साथ मथी जा रही हों—यह बेहद दर्दनाक था। छाती पर झटका दिए जाने पर मुझे अपना दिल सिकुड़ता महसूस हुआ और मुश्किल से साँस आई। जब उन्होंने मेरे पेडू और जाँघ के जोड़ पर झटका दिया, तो ऐसा लगा जैसे मुट्ठी भर नुकीली कीलें अचानक मेरे माँस में घुस गई हों और मेरी साँस थम गई। वैसे दर्द को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।
इसके बाद मैं बेहोश हो गई। पता नहीं कितने समय बाद उन्होंने मुझे जगाने के लिए मुझ पर ठंडा पानी छिड़का और फिर से मुझे बिजली के झटके देने लगे। अधिकारियों में से एक ने मेरे निप्पलों पर भी चिकोटी काटी, उन्हें खींचा और फिर जोर से दबाया और चार-पाँच मिनट तक ऐसा करते रहे। मुझे लगा, जैसे मेरे निप्पल उखाड़े जा रहे हों—बेहद तेज दर्द हो रहा था। एक अन्य अधिकारी उसी समय मेरे स्तनों पर बिजली का झटका दे रहा था। हर झटके के साथ मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे मेरे स्तनों का माँस छीला जा रहा हो, लगा जैसे मेरा दिल धड़कना बंद कर देगा। मुझे हर जगह पसीना आ रहा था और मैं लगातार काँप रही थी। वे मुझे बिजली के झटके देते जा रहे थे, मेरे साथ खिलवाड़ कर रहे थे और इस दौरान भद्दी-भद्दी बातें कह रहे थे। मुझे लगा कि वे नरक की दुष्ट आत्माएँ और शैतान हैं, जो अपने मनोरंजन के लिए लोगों को यातना देने में माहिर हैं। बाद में मुझे इतना दर्द हुआ कि मेरा मूत्र निकल गया और मैं फिर बेहोश हो गई। मुझे नहीं पता कितना समय बीता कि उन्होंने मुझे दोबारा ठंडा पानी डालकर जगाया और छाती, पेट और मेरे पेडू और जाँघ के जोड़ पर झटके देने लगे। मुझे लगा कि जैसे उन तमाम झटकों से मेरा माँस जल रहा हो। अधिकारियों में से एक मेरी पिटाई करते हुए चिल्लाया, “अब तुम्हारा परमेश्वर कहाँ है? उसे आकर बचाने के लिए कहो! मैं तुम्हारा परमेश्वर हूँ!”
मैं बिजली के झटकों से बार-बार बेहोश होती रही और वे बार-बार पानी डालकर मुझे जगाते रहे। अंत में, मुझमें संघर्ष करने या हिलने-डुलने की बिल्कुल भी ताकत नहीं बची। मैं अधमरी हालत में फर्श पर पड़ी बेहद उदासी, क्रोध और दर्द महसूस कर रही थी। मुझे नहीं पता था कि वे मुझे और कब तक यातना देंगे और मेरे साथ दुर्व्यवहार करेंगे। मैं वाकई इसे अब और नहीं सह सकती थी और मैं इस कष्ट से जल्द से जल्द बचने के लिए अपनी जीभ काटकर खुद को खत्म कर लेना चाहती थी। जब मैं ढहने के कगार पर ही थी, तभी मैंने इस भजन के बारे में सोचा : “शैतान ने मेरा इतना नुकसान किया कि यकीन न हो। मैंने दानव का चेहरा देखा। भूल न सकूँ युगों की नफरत। शैतान के सामने झुकने से तो अच्छा है मरना! परमेश्वर ने इंसान को बचाने के लिए देहधारण किया, यातना और तिरस्कार सहा। मुझे परमेश्वर का इतना प्रेम मिला, मैं उसकी कीमत चुकाए बिना कैसे आराम करूँ? इंसान होने के नाते, मुझे उठना होगा, परमेश्वर की गवाही के लिए अपना जीवन देना होगा। तन भले ही टूट जाए, दिल बने और मजबूत। मौत आने तक मैं बिना पछतावे के परमेश्वर के प्रति वफादार रहूँगा। एक बार भी परमेश्वर को संतुष्ट कर सकूँ, तो मरने तक खुशी-खुशी समर्पण कर दूँ।” मैंने सोचा कि कैसे परमेश्वर ने देहधारण किया है और सिर्फ मानवजाति को बचाने के लिए कितना बड़ा अपमान सहा है, कैसे वह हमारा सिंचन और पोषण करने के लिए अपने वचन साझा करता है। परमेश्वर ने हमारे लिए बहुत बड़ी कीमत चुकाई है और मेरी गिरफ्तारी के बाद से ही वह हमेशा मेरा मार्गदर्शन और रक्षा करता रहा है। मैंने परमेश्वर के अनुग्रह का इतना आनंद लिया था, लेकिन क्या मैंने कभी उसके लिए कुछ किया था? युगों-युगों से संत परमेश्वर के लिए शहीद होकर अपना बलिदान करने और रक्त बहाने में समर्थ रहे हैं, लेकिन थोड़ी-सी पीड़ा का अनुभव करते ही मैं मृत्यु के जरिये उससे बचना चाहती थी। मैं कितनी कायर थी! परमेश्वर के लिए यह कैसी गवाही थी? क्या मैं शैतान को खुद पर हँसने नहीं दे रही थी? इस विचार पर मैंने मन ही मन प्रार्थना की, “परमेश्वर, शैतान मुझे चाहे कितना भी प्रताड़ित करे, मैं उसके आगे कभी नहीं झुकूँगी। मैं तुम्हारे लिए जिऊँगी।”
इसके बाद वे मुझे बार-बार बिजली के झटके देते रहे और मैं दाँत पीसती रही, मगर कोई आवाज नहीं निकाली। आखिरी बार बिजली के झटके से बेहोश होने के बाद मैंने खुद को एक ऐसी जगह खड़ा पाया, जहाँ दूर बाज की चोंच के आकार का एक पहाड़ दिखाई दे रहा था, जो मुरझाए पेड़ों, सूखे और मृत बाँस, फूलों और घास से घिरा था। केवल पहाड़ हरा था। सूखे, फटे हुए होठों वाले बहुत-से लोग पहाड़ पर चढ़ रहे थे और कुछ रास्ते में ही प्यास से मर गए थे। मैं भी बुरी तरह प्यासी थी और जब मैं पहाड़ की तलहटी में पहुँची, तो मैंने वहाँ से पानी निकलने की आवाज सुनी। मैं दौड़कर उस पर चढ़ने लगी और मुश्किल से आधा रास्ता तय करने के बाद मैं सिर उठाकर बाज की चोंच से टपक रहे पानी को पीने लगी। उसका स्वाद मुझे बहुत मीठा लगा! पानी पीते हुए मैंने गाना सुना। मैंने सिर घुमाया तो देखा कि दो पंक्तियों में सफेद कपड़े पहने लोग एक भजन गा रहे थे; वे स्वर्गदूतों की तरह लग रहे थे। गाने के बोल ये थे : “अंत के दिनों के कार्य में हमसे परम आस्था और प्रेम की अपेक्षा की जाती है। थोड़ी-सी लापरवाही से हम लड़खड़ा सकते हैं, क्योंकि कार्य का यह चरण पिछले सभी चरणों से अलग है : परमेश्वर लोगों की आस्था को पूर्ण कर रहा है—जो कि अदृश्य और अमूर्त दोनों है। परमेश्वर वचनों को आस्था में, प्रेम में और जीवन में परिवर्तित करता है। लोगों को उस बिंदु तक पहुँचने की आवश्यकता है जहाँ वे सैकड़ों बार शुद्धिकरणों का सामना कर चुके हैं और अय्यूब से भी ज़्यादा आस्था रखते हैं। किसी भी समय परमेश्वर से दूर जाए बिना उन्हें अविश्वसनीय पीड़ा और सभी प्रकार की यातनाओं को सहना आवश्यक है। जब वे मृत्यु तक समर्पित रहते हैं, और परमेश्वर में अत्यंत विश्वास रखते हैं, तो परमेश्वर के कार्य का यह चरण पूरा हो जाता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मार्ग ... (8))। गीत की ध्वनि घाटी में गूँज रही थी—वह स्पष्ट, सुरीली और सुंदर थी। उसे सुनना मेरे लिए बहुत सुखद और प्रेरणादायक था। फिर मैं अचानक जाग गई। मुझे अब भी बहुत दर्द हो रहा था, लेकिन मैंने अपने मन में शांति महसूस की। मैंने एक थके हुए अधिकारी को जोर से साँस लेते और कुर्सी पर आराम करते देखा। एक दूसरे अधिकारी ने कहा, “मान गए। यह औरत लोहे की बनी है—इसे कोई नहीं मार सकता।” यह सुनकर मैंने परमेश्वर को धन्यवाद और स्तुति अर्पित की। यह परमेश्वर ही था, जो मेरा प्रबोधन और मार्गदर्शन कर रहा था, मुझे यह दर्शन करा रहा था, मुझे शक्ति देकर इस कठिन समय में मेरा मार्गदर्शन कर रहा था। परमेश्वर में मेरी आस्था बढ़ गई। बाद में एक अधिकारी ने मेरी कमीज और पतलून मेरे ऊपर फेंकी और निराश होकर चला गया। मैं बिजली के झटकों से कमजोर हो गई थी और मुझे बैठने में बहुत दर्द हो रहा था। बड़ी कोशिश से फर्श पर लेटकर मैंने अपने कपड़े पहने, लेकिन मेरा अधोवस्त्र कहीं नहीं दिख रहा था और उन्होंने मेरे कपड़े फाड़ दिए थे। मैं मुश्किल से खुद को उनसे ढक पाई। मुझे ऐसा लगा, जैसे बिजली के झटकों से मेरी त्वचा की एक परत उतर गई हो और मेरे कपड़े मेरे शरीर से बुरी तरह चिपक गए थे। बिजली के झटकों से मुझे जो घाव हुए थे, उन्हें ठीक होने में एक साल से ज्यादा समय लग गया और मुझ पर उनके लक्षण छूट गए। अब तक मैं अक्सर पूरे शरीर में अनचाही ऐंठन अनुभव करती हूँ, अपने जबड़े नहीं खोल पाती हूँ और मेरा पूरा शरीर अकड़ा रहता है। जब यह रात में होता है, तो मैं ठीक से सो नहीं पाती और अगले दिन थकी हुई और ऊर्जाहीन होती हूँ।
मेरी गिरफ्तारी के पाँचवें दिन पुलिस मुझे हिरासत-केंद्र ले गई। पाँच दिनों तक बिना कुछ खाए-पिए रहने के बाद मेरा गला इतना सूख गया था कि मैं कुछ निगल नहीं पा रही थी। दूसरे कैदी मेरे लिए ढेर सारा ठंडा, सूखा चावल लेकर आए, चॉपस्टिक से मेरा मुँह खोलकर उसे जबरन मेरे मुँह में डालते हुए चिल्लाए, “जल्दी से इसे निगल जाओ, वरना देखो, क्या होता है!” ऐसा लगा, जैसे नाखून निगल रही हूँ—मेरा गला इतना दुखा कि मेरे चेहरे पर आँसू बहने लगे। इस तरह का अपमान और धौंस वहाँ आम बात थी। एक दिन प्रधान कैदी कहीं से कैंची लाया, मुझे जबरन स्टूल पर बैठा दिया और कुछ अन्य कैदियों से पूछा कि इसका हेयर-कट कैसा होना चाहिए। उनमें से एक ने कहा, “यह धार्मिक है, इसलिए इसका हेयर-कट किसी चुड़ैल जैसा कर दो!” प्रधान कैदी ने फौरन मेरी चोटियाँ काट दीं और बाकी लोग इस तरह मेरे बाल बिखरे देख उत्तेजित होकर हँसने लगे। उनमें से एक ने कहा, “इसके बाल नन जैसे बना दो!” प्रधान कैदी ने मेरे बालों का एक बड़ा हिस्सा काट दिया, जिससे खोपड़ी दिखने लगी, और बाकी लोग फिर हँसने लगे। यह मेरे लिए भयानक अपमान था और मैं अपने आँसू नहीं रोक पाई। हथकड़ियाँ लटकी होने और करंट लगने के बाद से मैं अपने हाथ-पैर उठाने में असमर्थ थी और चलने की कोशिश से मेरे पैर बहुत दुखते थे। लेकिन मुझे अभी भी अन्य सभी के साथ दैनिक व्यायाम करना होता था, पैर उठाना-गिराना और जोर से आवाजें करना वाकई बहुत मुश्किल होता था। ये गतिविधि हर बार बहुत दर्दनाक होती थीं। मैं पूरी तरह कमजोर और अशक्त थी और दूसरों के साथ कदमताल नहीं कर पाती थी, इसलिए प्रधान कैदी मेरे शरीर पर सुई चुभोता और नीले निशान पड़ जाते। माहवारी के दौरान मुझे विशेष रूप से असुविधा होती थी। वहाँ कोई टॉयलेट-पेपर नहीं था, मेरे पास कोई अधोवस्त्र नहीं था और प्रधान कैदी ने मुझे सिर्फ एक जेल की वर्दी दी थी, इसलिए मेरी पतलून खून से सनी रहती थी और मैं उसे बदल नहीं सकती थी। वर्दी का कपड़ा भी बहुत खुरदरा था, इसलिए उस पर लगा खून सूखने के बाद सख्त हो जाता था। मेरे पेडू और जाँघ के जोड़ पर बिजली के झटकों से लगे घाव भरे नहीं थे, इसलिए चलने में बहुत दर्द होता था और हर बार व्यायाम करने पर वर्दी उन घावों से रगड़ खाती थी, जिससे चाकू से काटे जाने जैसा महसूस होता था। सबसे बुरी बात यह थी कि टॉयलेट-पेपर के अभाव में मेरे पास खुद को साफ रखने के लिए ठंडे पानी का इस्तेमाल करने के अलावा कोई चारा नहीं था। विश्वासी बनने से पहले मुझे रक्तस्राव की बीमारी थी और मुझे डर था कि ठंडे पानी के कारण वह फिर से न उभर जाए। उन दिनों मुझे लगता कि मैं इसे वास्तव में नहीं सह पाऊँगी। मुझे नहीं पता था कि यह सब कब खत्म होगा और मैं दानवों की उस जेल में एक पल भी नहीं रुकना चाहती थी। जब मेरा कष्ट एक निश्चित बिंदु पर पहुँच गया, तो फिर से मुझे मरने का खयाल आने लगा। यह जानकर कि मेरा हृदय परमेश्वर से भटककर दूर जा रहा है, मैंने प्रार्थना कर परमेश्वर से अपनी हालत पर काबू पाने में मार्गदर्शन करने के लिए कहा। फिर एक दिन मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश याद आया : “जब तुम कष्टों का सामना करते हो, तो तुम्हें देह की चिंता छोड़ने और परमेश्वर के विरुद्ध शिकायतें न करने में समर्थ होना चाहिए। जब परमेश्वर तुमसे अपने आप को छिपाता है, तो उसका अनुसरण करने के लिए तुम्हें अपने पिछले प्रेम को डिगने या मिटने न देते हुए उसे बनाए रखने के लिए विश्वास रखने में समर्थ होना चाहिए। परमेश्वर चाहे कुछ भी करे, तुम्हें उसकी योजना के प्रति समर्पण करना चाहिए, और उसके विरुद्ध शिकायतें करने के बजाय अपनी देह को धिक्कारने के लिए तैयार रहना चाहिए। जब परीक्षणों से तुम्हारा सामना हो, तो तुम्हें परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहिए, भले ही तुम फूट-फूटकर रोओ या अपनी किसी प्यारी चीज से अलग होने के लिए अनिच्छुक महसूस करो। केवल यही सच्चा प्यार और विश्वास है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। परमेश्वर के वचनों से मैं समझ गई कि वह मुझे परखने के लिए बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न का अनुभव करवा रहा है, यह देखने के लिए कि मेरी उसमें सच्ची आस्था है या नहीं। इससे मुझे अय्यूब और पतरस का खयाल आया। शैतान द्वारा अय्यूब पर हमला कर उसे प्रताड़ित किया गया था—उसके पूरे शरीर पर फोड़े होने से उसकी हालत बेहद दयनीय हो गई थी और वह राख के ढेर पर बैठकर अपने शरीर को ठीकरे से खुरचने लगा था। फिर भी उसने परमेश्वर को दोष नहीं दिया, अपितु उसके नाम की स्तुति की। पतरस को परमेश्वर के लिए उलटा सूली पर चढ़ा दिया गया था और वह एक जबरदस्त गवाही देते हुए मृत्युपर्यंत समर्पित रहा। दोनों ने अपनी पीड़ा के बीच परमेश्वर की गवाही दी। उनकी तुलना में मुझमें वाकई बहुत कम आस्था थी। जितना ज्यादा मैंने इस बारे में सोचा, मुझे उतनी ही ज्यादा शर्मिंदगी महसूस हुई, इसलिए मैंने मौन प्रार्थना की : “हे परमेश्वर, चाहे जितने कष्ट हों, मैं तुम्हारा अनुसरण करना चाहती हूँ! बड़ा लाल अजगर मुझे जितना ज्यादा प्रताड़ित करेगा, उतना ही मैं तुम पर निर्भर रहना चाहती हूँ और अपनी गवाही में दृढ़ रहकर शैतान को अपमानित करना चाहती हूँ!”
फिर एक दिन पुलिस ने मेरे पति को बुलाया। यह देखकर कि मुझे इस हद तक प्रताड़ित किया गया था कि मैं इंसान भी नहीं दिखती थी, वह वहीं रोने लगा और बोला, “तुम इतनी यातना कैसे सह रही हो? चीफ झू ने कहा है कि अगर तुम उन्हें सिर्फ वह बता दो जो तुम जानती हो, तो हम घर जा सकते हैं।” यह देखकर कि मैं अभी भी नहीं बोलूँगी, चीफ झू ने फिर मेरी बेटी को फोन किया। उसने रोते हुए कहा, “माँ, तुम कहाँ हो? स्कूल के शिक्षक और दूसरे बच्चे कह रहे हैं कि मैं एक संप्रदाय की अगुआ की बेटी हूँ। वे सभी मुझे धमका रहे हैं और मेरी उपेक्षा कर रहे हैं। मैं रोज कक्षा के कोने में छिपकर रोती हूँ...।” मैंने फोन अपने कान से हटा लिया, मैं वाकई और नहीं सुन सकती थी। लगा, जैसे मेरे दिल में चाकू घुसाकर घुमा दिया गया हो और मैं रो पड़ी। चीफ झू ने इस मौके का फायदा उठाते हुए कहा, “बस बात करो। हमें एक घर बता दो, जिसमें कलीसिया का पैसा जमा है, बस एक, और तुम फिर अपने परिवार के साथ जा सकती हो।” मैं उस समय कुछ कमजोर-सी महसूस कर रही थी। मैंने सोचा कि अगर मैंने कभी कुछ नहीं कहा, तो मेरे पति और बेटी को भी फँसा दिया जाएगा, इसलिए मैं कुछ ऐसी जानकारी साझा कर देती हूँ, जो ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है। तब मुझे एहसास हुआ कि यह परमेश्वर के इरादे के अनुरूप नहीं है, इसलिए मैंने जल्दी से प्रार्थना कर परमेश्वर से मेरी रक्षा करने के लिए कहा ताकि मैं शैतान के इस प्रलोभन पर विजय पा सकूँ। फिर मैंने परमेश्वर के इस कथन के बारे में सोचा : “मेरे लोगों को, मेरे लिए मेरे घर के द्वार की रखवाली करते हुए, शैतान के कुटिल कुचर्क्रों से हर समय सावधान रहना चाहिए ... ताकि शैतान के जाल में फँसने से बच सकें, और तब पछतावे के लिए बहुत देर हो जाएगी” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 3)। परमेश्वर के वचनों का प्रबोधन एकदम ठीक समय पर आया। मुझे अचानक एहसास हुआ कि शैतान परिवार के लिए मेरे प्यार का इस्तेमाल मुझ पर हमला करने के लिए कर रहा है, ताकि मैं परमेश्वर को धोखा दे दूँ। मैं उसकी चाल में नहीं फँस सकती—मैं अपने परिवार के लिए भाई-बहनों के साथ विश्वासघात नहीं कर सकती। और फिर मुझे परमेश्वर के वचनों से कुछ और याद आया : “तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें अपने जीवन की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। जब मैंने परमेश्वर के वचनों पर विचार किया, तो मुझे बहुत अपराध-बोध और आत्म-ग्लानि हुई। मैंने अय्यूब को शैतान द्वारा प्रलोभन देने, उसके द्वारा अपने बच्चे और सारी संपत्ति खो देने और फिर भी परमेश्वर को दोष नहीं देने के बारे में सोचा। उसने परमेश्वर पर अपनी आस्था बनाए रखी और उसके लिए एक अद्भुत और जबरदस्त गवाही दी। लेकिन पुलिस के प्रलोभनों के सामने मैं अपने परिवार के हितों की रक्षा के लिए भाई-बहनों के साथ विश्वासघात करने और परमेश्वर को धोखा देने को तैयार थी। मुझमें वाकई जमीर की कमी थी; मैं बहुत स्वार्थी और नीच थी और परमेश्वर को नुकसान पहुँचा रही थी। जब-जब मैं संकट में पड़ी, तब परमेश्वर मेरा मार्गदर्शक और रक्षक रहा और अपने वचनों से मुझे आस्था और शक्ति देता रहा। मेरे लिए उसका प्रेम बहुत वास्तविक है और अब जबकि मेरे लिए चुनाव करने का समय आया था, तो मैं अपने पति और बेटी के लिए कलीसिया के अन्य सदस्यों के साथ विश्वासघात नहीं कर सकती थी। जीवन में सभी की किस्मत परमेश्वर द्वारा पहले से निर्धारित है और मेरे पति और बेटी की किस्मत परमेश्वर के हाथों में थी, शैतान उसे तय नहीं करता। मैं जान गई थी कि मुझे सब-कुछ परमेश्वर को सौंप देना चाहिए। जब मैंने इसके बारे में इस तरह से सोचा, तो मेरा परिवार जो झेल रहा था, वह अब मेरे लिए दुखद नहीं रहा और मैंने दैहिक इच्छाओं के खिलाफ विद्रोह करने और परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग रहने के लिए दृढ़ संकल्प महसूस किया।
मेरी गिरफ्तारी के 28वें दिन पुलिस ने मुझे और गिलान को हिरासत-केंद्र भेज दिया और हमें उन वेश्याओं के साथ बंद कर दिया, जिन्हें यौन संक्रमण था। वह एक ऐसी कोठरी थी, जिसके पास पुलिस तक नहीं फटकना चाहती थी। कुछ कैदियों के पूरे शरीर पर घाव थे और उनकी त्वचा सड़ रही थी और कुछ के जननांगों पर छाले पक रहे थे, जो उनके लिए असहनीय रूप से दर्दनाक था; उन्होंने खुद को गंदी चादरों से ढँक रखा था और कंक्रीट के बिस्तर पर गिर-पड़ रहे थे। कोई दवा उपलब्ध नहीं थी, इसलिए वे दर्द कम करने के लिए नमक और टूथपेस्ट का ही इस्तेमाल कर पाते थे। उनके द्वारा धोकर बाहर सुखाए गए कुछ अधोवस्त्रों तक की सीवन में से कीड़े अंदर-बाहर रेंग रहे थे। मैंने मन ही मन सोचा, “यह जगह इंसानों के लिए नहीं है; यह बीमारी का कुंड है! मैं यहाँ कैसे जिऊँगी, अगर मैं यहाँ रहते हुए किसी यौन रोग या एड्स से ग्रस्त हो गई तो?” एक तरह से डरते हुए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना कर अपनी रक्षा और मार्गदर्शन करने के लिए कहा। इसके बाद मैंने उसके इस कथन के बारे में सोचा : “संसार में घटित होने वाली समस्त चीजों में से ऐसी कोई चीज नहीं है, जिसमें मेरी बात आखिरी न हो। क्या कोई ऐसी चीज है, जो मेरे हाथ में न हो?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 1)। हाँ, सभी चीजें परमेश्वर के हाथ में हैं और अगर वह अनुमति नहीं देगा, तो इन महिलाओं के साथ रहते हुए मुझे कोई संक्रमण नहीं होगा; अगर मैं वास्तव में संक्रमित हो भी गई, तो यह ऐसी चीज होगी जिसका मुझे अनुभव करना चाहिए। इन विचारों ने मेरा डर खत्म कर दिया और मैं शांति से स्थिति का सामना करने लायक हो गई। हालाँकि मैं अगले छह महीने तक उन अन्य कैदियों के साथ सोती और खाती रही, फिर भी परमेश्वर की सुरक्षा के कारण मुझे कोई संक्रमण नहीं हुआ।
हिरासत-केंद्र में पुलिस ने मेरे आसपास रहने और कलीसिया के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए कुछ जासूस नियुक्त कर दिए। हिरासत-केंद्र में रखे जाने के कुछ ही समय बाद एक दूसरी कैदी ने मुझसे यह कहकर मेरे अनुग्रह की पात्र बनने की कोशिश शुरू कर दी कि वह भी विश्वासी बनना चाहती है और यह पूछने से पहले कि क्या मैं अगुआ हूँ, बोली कि वह वास्तव में उन लोगों की प्रशंसक है, जो कलीसिया में अगुआ या कार्यकर्ता हैं। तभी से मेरा पहरा तुरंत बढ़ गया और मैंने जल्दी से विषय बदल दिया। इसके बाद जब भी वह परमेश्वर में विश्वास के बारे में कुछ कहती, मैं बात बदल देती, इससे उसे मुझसे कुछ हासिल नहीं हुआ। जल्दी ही उसने हिरासत-केंद्र छोड़ दिया। इसके कुछ ही समय बाद, जब मैं एक दिन पुरुषों की कोठरी से गुजर रही थी, तो एक पुरुष कैदी ने मेरी तरफ एक कागज का टुकड़ा फेंका। उसमें लिखा था कि उसे सुसमाचार साझा करने के लिए गिरफ्तार किया गया है और 1.5 साल की सजा सुनाई गई है। उसने यह भी कहा कि उसे उम्मीद है कि हम एक-दूसरे की मदद कर सकते हैं और वह चाहता है कि मैं उसके पत्र का जवाब दूँ। मैं सोच रही थी कि क्या वह वास्तव में विश्वासी है। जब मैं इसे लेकर असमंजस में थी कि उसके पत्र का जवाब दूँ या नहीं, तो अचानक परमेश्वर के वचनों में से कुछ मेरे दिमाग में आया : “तुम लोगों को जागते रहना चाहिए और हर समय प्रतीक्षा करनी चाहिए, और तुम लोगों को मेरे सामने अधिक बार प्रार्थना करनी चाहिए। तुम्हें शैतान की विभिन्न साजिशों और चालाक योजनाओं को पहचानना चाहिए, आत्माओं को पहचानना चाहिए, लोगों को जानना चाहिए और सभी प्रकार के लोगों, घटनाओं और चीजों को समझने में सक्षम होना चाहिए” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 17)। परमेश्वर के वचन मेरे लिए तात्कालिक चेतावनी थे। क्या यह कोई शैतान का कुचक्र था? उस समय मैं वाकई यह समझ पाने में नाकाम थी, इसलिए मैंने बार-बार परमेश्वर से प्रार्थना कर इसका भेद खोलने के लिए कहा। लगभग एक हफ्ते बाद जब सब कैदी आँगन में एकत्र थे, तो मेरी नजर उस व्यक्ति पर पड़ी। उसका सिर मुँडा हुआ न देखकर मैं भ्रम में पड़ गई—सजा सुनाए जाने पर सभी पुरुष कैदियों को अपना सिर मुँड़वाना पड़ता है, तो फिर इसके सिर पर अभी भी बाल क्यों हैं? मैं इस बारे में सोच ही रही थी कि मेरी बगल में खड़ी एक महिला कैदी ने मुझे थपथपाकर उसकी ओर इशारा करते हुए बहुत प्रसन्न स्वर में कहा, “वह आदमी एक पुलिस अधिकारी है, उसने कुछ समय पहले मेरी सेवाओं के लिए भुगतान किया था।” मुझे तुरंत एहसास हो गया कि वह पुलिस वाला था, जो मुझसे कबूलवाने के लिए मेरे करीब आने की कोशिश कर रहा था। मैंने देखा कि बड़े लाल अजगर के पास वाकई तमाम तरह की चालें हैं—वह बहुत ही नीच और घृणित है! मैंने अपने दिल में परमेश्वर को उसकी सुरक्षा के लिए धन्यवाद दिया, जिसने मुझे समय-समय पर शैतान की चालें समझने का मौका दिया और मुझे उनके झाँसे में आने से रोका।
जनवरी 2007 में पुलिस ने मुझे गिलान और नशीली दवा के अपराधों के लिए दोषी तीन अन्य कैदियों के साथ एक श्रम-शिविर में भेज दिया। उस दिन मैंने जो अपमान सहा, उसे मैं कभी नहीं भूलूँगी। जब हम वहाँ पहुँचे, तो दोपहर हो गई थी और हलकी बर्फ गिर रही थी; सैकड़ों अन्य कैदी श्रम-शिविर के प्रांगण में भोजन के लिए लाइन लगाए खड़े थे। पुलिस अधिकारी अपने चेहरे पर दुष्टतापूर्ण भाव-भंगिमा लिए हमारे पास आए और नशीली दवाओं के अपराधियों से कहा कि जाकर खाना खा लो, सिर्फ गिलान और मैं वहाँ रह गए। फिर उन्होंने हमें अपने सारे कपड़े उतारने का आदेश दिया। मैं सोच रही थी कि क्या वे हमारी तलाशी लेने जा रहे हैं, जबकि अन्य सभी कैदी हमें देख रहे थे। जब मैंने अपने कपड़े नहीं उतारे, तो कुछ अधिकारी हम पर झपट पड़े और जबरन मेरे और गिलान दोनों के सारे कपड़े उतार दिए। मेरे लिए उन सभी लोगों के सामने पूरी तरह से नग्न होना मार दिए जाने से बदतर था। निगाहों की कई कतारें हम पर टिकी थीं, मैंने अपना सिर नीचे कर लिया था, छाती हाथों से ढक ली और उकडूँ बैठ गई। एक अधिकारी ने मुझे वापस ऊपर उठाया और चिल्लाकर हाथ सिर के पीछे रखने, पैर अलग करके खड़े होने और सभी कैदियों का सामने उठक-बैठक करने के लिए कहा। गिलान को भी ऐसा ही करना था और मैं देख सकती थी कि उसका पूरा शरीर काँप रहा था। वह पहले ही इतनी दुबली थी कि सिर्फ खाल और हड्डी भर रह गई थी और उसके शरीर पर घावों के कुछ निशान थे—उसे भी बहुत यातनाएँ दी गई होंगी। पुलिस ने हमारी ओर इशारा करके दूसरों से चिल्लाकर कहा, “ये दोनों सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करती हैं। अगर तुम में से कोई विश्वासी बनेगा, तो तुम्हारा भी यही हाल होगा!” इस पर कैदियों में खूब बहस छिड़ गई और उनमें से कुछ ने उपहास करते हुए कहा, “तेरा परमेश्वर आकर तुझे बचाता क्यों नहीं?” करीब 10 मिनट तक हमें ऐसे ही सैकड़ों लोगों के सामने उठक-बैठक करनी पड़ी। मैंने पहले कभी ऐसा अपमान नहीं सहा था और मैं रुलाई नहीं रोक पाई। अगर वहाँ कोई दीवार होती, तो मैं उस पर अपना सिर पटककर अपनी जीवन-लीला समाप्त कर देती। तब मुझे कलीसिया का एक भजन याद आया : “दानव राजा शैतान पूरी तरह से क्रूर, बेहद बेशर्म और घृणित है। मुझे शैतान का राक्षसी चेहरा स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, और मेरा हृदय मसीह से और भी अधिक प्रेम करता है। मैं कभी भी शैतान के सामने घुटने टेककर और परमेश्वर को धोखा देकर एक अधम जीवन नहीं जिऊँगा। मैं सहूँगा सारी कठिनाई और दर्द, और सबसे अँधेरी रातें गुजार लूँगा। परमेश्वर के दिल को सुकून देने के लिए मैं विजयी गवाही दूँगा” (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ, अँधेरे और दमन के बीच उठ खड़े होना)। इन भजन-गीतों पर विचार करते हुए हुए मैंने प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ाए जाने के बारे में सोचा—रोमन सैनिकों ने उसे पीटा था, अपमानित किया था और उसके चेहरे पर थूका था। परमेश्वर पवित्र है, इसलिए उसे इस तरह की पीड़ा नहीं सहनी चाहिए थी, लेकिन उसने मानवता को बचाने के लिए भारी दर्द और अपमान सहा था और अंत में हमारे लिए उसे सूली पर चढ़ा दिया गया। उसने बेहद अपमान और पीड़ा झेली। लेकिन एक भ्रष्ट इंसान होकर मैंने अपमानित किए जाने पर मरना चाहा और मेरे पास कोई गवाही नहीं थी। परमेश्वर का अनुसरण करने के कारण मुझे दानवों और शैतान द्वारा अपमानित किया जा रहा था—यह उत्पीड़न धार्मिकता के लिए था और यह महिमा की बात थी! कम्युनिस्ट पार्टी ने जितना ज्यादा मुझे अपमानित और प्रताड़ित किया, उतना ही मैं देख पाई कि वह कितनी घृणित और नीच है और उतना ही ज्यादा मैं उसे ठुकराकर उसके विरुद्ध विद्रोह कर पाई और परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में दृढ़ रहने का अपना संकल्प कायम रख पाई।
इसके बाद कुछ जेल-प्रहरी हमें एक सीढ़ी के पास खड़ा करने के लिए ले गए और उसी समय दो अन्य कैदी नीचे उतरकर हमें लात-घूँसे मारने लगे, मुझे बालों से पकड़कर उन्होंने मेरा सिर दीवार पर दे मारा, जिससे मेरे कान बजने लगे। तुरंत मैं कुछ नहीं सुन पाई और मुझे ऐसा लगा, जैसे मेरा सिर फट गया हो। गिलान की आँखों, नाक, मुँह और कान से खून बह रहा था। पिटाई के बाद कैदी हमें सजा के तौर पर खड़ा रखने के लिए बालकनी में खींच ले गए। उस समय भारी बर्फबारी हो रही थी, ठंडी हवा चल रही थी और रात का तापमान हिमांक से सात-आठ डिग्री नीचे गिर गया था। हमने केवल लंबा अधोवस्त्र पहन रखा था, इसलिए हम ठंड से काँप रहे थे। जब एक समय मैं वाकई इसे और सहन नहीं कर पाई और अपनी मुद्रा बदलने के लिए अपने पैर थोड़ा उठाए, तभी कैदी इस तरह वहाँ आ गए, जैसे मुझे मारने वाले हों। अगले दिन मेरा पूरा शरीर ठंड से दर्द कर रहा था और ऐसा लग रहा था, जैसे मेरी हृदयगति रुकने वाली हो। मेरे पैरों में भी तेज दर्द हो रहा था। यह एहसास मौत से भी बदतर था और इसे हर क्षण सहना मुश्किल हो गया था। जब दर्द चरम पर पहुँच गया, तो मैंने वाकई बालकनी से कूदकर अपनी जीवन-लीला समाप्त कर देनी चाही। लेकिन फिर मुझे तुरंत एहसास हुआ कि ऐसा सोचना परमेश्वर के इरादे के अनुरूप नहीं है, इसलिए मैंने जल्दी से उसे पुकारा, “परमेश्वर, मैं अब लगभग और नहीं सह सकती। मैं वाकई अब और नहीं सह सकती—कृपया मुझे आस्था दो, ताकि मैं यह पीड़ा सह सकूँ।” अपनी प्रार्थना के बाद मैंने परमेश्वर के वचनों के एक भजन के बारे में सोचा जिसका शीर्षक है, “तुम्हारी पीड़ा जितनी भी हो ज़्यादा, परमेश्वर को प्रेम करने का करो प्रयास” : “इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिल्कुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर हमेशा मेरा मार्गदर्शन कर रहा था, मेरी देखभाल कर रहा था और मुझ पर नजर रखे था। जब मैंने स्वयं द्वारा अनुभव की गई यातना और अपमान के बारे में सोचा, तो मुझे एहसास हुआ कि अगर परमेश्वर का मार्गदर्शन या उसके वचनों द्वारा दी गई आस्था और शक्ति न होती, तो मैं उन दानवों के दुर्व्यवहार से बच न पाती। परमेश्वर ने मुझे अब तक दिखाया था कि कैसे जीना है और उसे आशा थी कि मैं शैतान के सामने उसकी गवाही दे सकती हूँ। लेकिन अब थोड़ी सी शारीरिक तकलीफ से बचने के लिए मैं अपनी जिंदगी खत्म कर देना चाहती थी। मैं बहुत कमजोर थी। यह परमेश्वर के लिए गवाही कैसे थी? क्या मरने का मतलब यह नहीं होगा कि मैं शैतान की चालों का शिकार हो गई? मैं मर नहीं सकती, मुझे अपनी गवाही में अडिग रहना था और शैतान को शर्मसार करना था। जब मैंने इस बारे में इस तरह से सोचा, तो अनजाने ही मुझे ठंड महसूस होनी बंद हो गई और हर जगह गर्माहट महसूस होने लगी।
प्रधान बंदी ने हमें तीसरे दिन की दोपहर तक वहीं खड़ा किए रखा। गिलान और मेरे, दोनों के पैर बेहद सूज गए थे और लगा, जैसे उनमें खून जम गया हो। हमारे पैरों में हर जगह रक्त-वाहिकाएँ दिखाई दे रही थीं और बहुत दर्द हो रहा था, लेकिन मैंने फिर भी परमेश्वर को धन्यवाद दिया। ठंडे, बर्फीले मौसम में गिलान और मैं दो दिन और दो रात बिना कुछ खाए-पिए बालकनी में खड़े रहे, लेकिन हम ठंड से जमकर मरे नहीं, यहाँ तक कि हमें जुकाम तक नहीं हुआ। यह परमेश्वर की सुरक्षा थी।
श्रम-शिविर के दौरान मुझे रोज एक दर्जन से ज्यादा घंटे, यहाँ तक कि 22 घंटे तक की कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी और अपना कार्य पूरा करने में विफल रहने पर प्रधान कैदी द्वारा अक्सर पीटा और दंडित किया जाता था। लेकिन परमेश्वर ने मुझे प्रबुद्ध करना और मार्गदर्शन करना जारी रखा, जिससे मैं डेढ़ साल की जेल की नारकीय जिंदगी गुजार पाई। परमेश्वर पूरे समय मेरे साथ था, मुझ पर नजर रखे था और मेरी रक्षा कर रहा था। मुझे कई बार इस हद तक प्रताड़ित और अपमानित किया गया कि मैंने अपना जीवन समाप्त कर लेना चाहा और ये परमेश्वर के वचन ही थे जिन्होंने मुझे आस्था और शक्ति दी, हर तूफान में मेरा मार्गदर्शन किया। परमेश्वर ने मुझे यह जीवन दिया है! बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न का अनुभव करके मैंने सीखा है कि केवल परमेश्वर ही है, जिस पर हम वास्तव में भरोसा कर सकते हैं; केवल वही वास्तव में मानवजाति से प्रेम करता है और केवल वही हमें शैतान की भ्रष्टता और तबाही से बचा सकता है और प्रकाश में जीने के लिए ले जा सकता है। मैं परमेश्वर को धन्यवाद देती हूँ!
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?