मन की जलन हड्डियों को भी जला देती है

27 फ़रवरी, 2022

सू वान, चीन

नवंबर 2020 में मुझे सिंचन-कार्य की प्रभारी टीम-अगुआ के रूप में चुना गया। उस समय मैं बहुत खुश थी और महसूस करती थी कि टीम-अगुआ के रूप में चुने जाने का मतलब है कि सत्य समझने और जीवन में प्रवेश करने के मामले में मैं अन्य भाई-बहनों से ज्यादा बेहतर हूँ। मैं अपना कार्य अच्छे से करना चाहती थी, ताकि हर कोई मेरे बारे में अच्छा सोचे। कुछ समय बाद नए सदस्यों के सिंचन के प्रयासों से कुछ परिणाम प्राप्त हुए और ज्यादातर नए सदस्य नियमित रूप से सभाओं में शामिल होते और अपना कार्य करते। भाई-बहन कहते कि सत्य के बारे में मेरी संगति स्पष्ट होती थी और मैं कुछ वास्तविक समस्याएँ हल कर सकती थी। सबसे अपनी प्रशंसा सुनकर मैं अपने आप से बहुत प्रसन्न होती। लेकिन एक महीने बाद बहन शांग जेन के आगमन ने अप्रत्याशित रूप से सब-कुछ बदल दिया।

शांग जेन पहले कलीसिया की अगुआ रह चुकी थी और सत्य के बारे में स्पष्ट रूप से संगति करती थी। वह एक ऊँची काबिलियत वाली इंसान और एक सक्षम कार्यकर्ता थी। आने के ठीक बाद उसने हमारे काम में कुछ समस्याएँ और भटकाव देखे और संगति करने और चीजें हल करने के लिए जल्दी से परमेश्वर के वचन ढूँढ़ लिए। धीरे-धीरे मैंने देखा कि भाई-बहन अपनी समस्याओं पर संगति के लिए शांग जेन को खोजने लगे और मुझे गुस्सा आने लगा। मैंने मन ही मन सोचा, “मैं टीम-अगुआ हूँ, इसलिए अगर सत्य के बारे में मेरी संगति और समस्याएँ हल करने की मेरी क्षमता शांग जेन जितनी अच्छी नहीं है, तो हर कोई मेरे बारे में क्या सोचेगा? क्या वे यह नहीं सोचेंगे कि मैं एक सक्षम टीम-अगुआ नहीं हूँ और समस्याएँ हल नहीं कर सकती?” जब मैंने इस तरह सोचा, तो मैंने सचमुच अपमानित महसूस किया और शांग जेन के प्रति पूर्वाग्रह विकसित कर लिया। मुझे लगा कि वह हमारे काम में भटकाव दिखाकर और भाई-बहनों की समस्याएँ हल करके दिखावा कर रही है। मुझे लगा कि वह मेरा—टीम-अगुआ—का सम्मान नहीं करती और जानबूझकर मुझे शर्मिंदा और अपमानित करती है। मैंने मन ही मन सोचा, “भले ही तुम पहले अगुआ थीं और तुम्हारे पास कुछ कार्य-अनुभव है, फिर भी मेरी काबिलियत तुमसे कम नहीं और मुझे विश्वास है कि मैं हर तरह से तुम्हारे जितनी ही अच्छी हूँ।” इज्जत बचाने के लिए मैंने सभाओं में परमेश्वर के वचनों पर मनन करने की बहुत कोशिश की और उससे बेहतर संगति करनी चाही। जब भाई-बहनों को समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता, तो मैं संगति कर उन्हें हल करने के लिए परमेश्वर के वचन खोजने में समय बिताती और सोचती कि मैं कैसे कुछ अच्छे अनुभवों के बारे में बात कर सकती हूँ, ताकि भाई-बहन देख सकें कि वास्तव में सत्य वास्तविकता किसके पास है।

एक बार एक सभा में एक बहन ने अपना कार्य करने में सामने आई एक कठिनाई का जिक्र किया और जानना चाहा कि उसे कैसे हल किया जाए। मैंने मन ही मन सोचा : “मुझे जल्दी से बहन की समस्या हल करने के लिए परमेश्वर के वचनों के कुछ प्रासंगिक अंश खोजने चाहिए। इस बार मुझे निश्चित रूप से अपनी खोई हुई जमीन वापस हासिल करनी है और शांग जेन को पछाड़ना है।” लेकिन जितनी तेजी से मैंने ऐसा करना चाहा, मैं उतनी ही भ्रमित होती गई। यह न जानने के कारण कि परमेश्वर के वचनों का कौन-सा अंश उपयुक्त होगा, मैं पाठ उलटती-पलटती रही। अंत में शांग जेन ने उसके साथ संगति कर उसकी समस्या का समाधान किया। मैंने बहुत निराश महसूस किया, और मैं शर्म से गड़ गई, मैं बस कहीं जाकर मुँह छिपा लेना चाहती थी। जितना ज्यादा मैंने खुद को साबित करना चाहा, उतना ही ज्यादा मैंने बेवकूफी की। मुझे लगा, मैं चाहे जितनी भी मेहनत कर लूँ, मैं कभी शांग जेन से बराबरी नहीं कर सकती। मैं बहुत पीड़ित और उदास हो गई और मुझे लगा कि अपना कर्तव्य निभाने की कोशिश में मैंने अपनी इज्जत गँवा दी है। मुझे यह भी लगा कि सभी ने पूरी तरह से देख लिया है कि वास्तव में कैसे मैंने बराबरी करनी चाही, और भाई-बहन निश्चित रूप से शांग जेन को मुझसे ज्यादा योग्य टीम-अगुआ समझते हैं। ऐसी स्थिति में शायद मुझे कम से कम अपनी इज्जत बचाने के लिए जल्द से जल्द इस्तीफा दे देना चाहिए। मैं जानती थी कि मुझे शांग जेन से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए, लेकिन मैं इस पर काबू नहीं पा सकी। मैं पीड़ित और निराश थी और नहीं जानती थी कि प्रतिष्ठा और रुतबे के बंधनों से कैसे बचा जाए। यहाँ तक कि मैंने खुद को परिभाषित भी किया और महसूस किया कि चूँकि मैंने हमेशा उन चीजों का अनुसरण किया है, इसलिए शायद यह सिर्फ मेरी प्रकृति है और मैं इसे नहीं बदल सकती। मैं भाई-बहनों से खुलकर बात करके अपनी समस्या का समाधान ढूँढ़ना चाहती थी, लेकिन डरती थी कि वे मुझे हेय दृष्टि से देखेंगे। मैं भाई-बहनों के सामने यह भी नहीं स्वीकारना चाहती थी कि मैं शांग जेन जितनी अच्छी नहीं हूँ। इसलिए मैं हमेशा नकारात्मक रही और मैंने शांग जेन के प्रति गहरे से गहरा पूर्वाग्रह विकसित कर लिया। जब मैंने देखा कि वह सभाओं में कितनी सक्रिय है, तो मुझे लगा कि वह दिखावा कर रही थी, हैसियत के लिए मुझसे होड़ कर रही थी। उसकी उपेक्षा करने की मेरी इच्छा प्रबल से प्रबलतर होती गई। यहाँ तक कि मैंने अपने असंतोष के बारे में दूसरी बहन को बताने और उससे मेरा पक्ष लेने और शांग जेन की आलोचना के लिए कहने के बारे में भी सोचा। मैं थोड़ा-बहुत जानती थी कि ऐसा करने से मैं शांग जेन के विरुद्ध गुटबाजी कर रही थी। लेकिन मैंने आत्मचिंतन नहीं किया। एक शाम मैंने एक बहन को बताया कि मैं कितनी नकारात्मक थी। सभाओं में आम तौर पर शांग जेन ही सुझाव देती थी कि हमें परमेश्वर के किन वचनों पर संगति करनी चाहिए, इसलिए मुझे लगता था कि वह मेरा सम्मान नहीं करती। मुझे बेबसी महसूस होती है, यहाँ तक कि अब मैं टीम-अगुआ भी नहीं बनी रहना चाहती। मैंने सोचा था कि वह बहन मेरा पक्ष लेगी, लेकिन इसके बजाय उसने मुझे सलाह दी कि मैं शांग जेन के साथ ठीक से व्यवहार करूँ और अपनी समस्याओं पर और ज्यादा आत्मचिंतन करूँ। अगले कुछ दिनों में, मैंने देखा कि शांग जेन के साथ उसकी अच्छी पट रही है, तो मैं असहज महसूस करने लगी। मैंने मन ही मन सोचा : “मैंने तुम्हारे साथ बहुत-कुछ साझा किया, तो फिर तुम शांग जेन के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त क्यों नहीं हो सकती?” इस तरह के विचार ने मुझे चौंका दिया। “मैं ऐसा सोच भी कैसे सकती हूँ? क्या मैं एक गुट बनाने और शांग जेन को बाहर करने की कोशिश नहीं कर रही हूँ?” जितना ज्यादा मैंने सोचा, उतनी ही ज्यादा मैं भयभीत हो गई और आत्मचिंतन करना शुरू किया। तब मुझे परमेश्वर के वचन याद आए : “जब कोई व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति को देखता है जो उनसे बेहतर है, तो लोगों के मन में अपनी जगह बचाए रखने के लिए वह उन्हें नीचे गिराने की कोशिश करता है, उनके बारे में अफवाहें फैलाता है, या उन्हें बदनाम करने और उनकी प्रतिष्ठा कम करने के लिए कुछ घिनौने तरीकों का इस्तेमाल करता है—यहाँ तक कि उन्हें रौंदता है—यह किस तरह का स्वभाव है? यह केवल अहंकार और दंभ नहीं है, यह शैतान का स्वभाव है, यह द्वेषपूर्ण स्वभाव है। यह व्यक्ति अपने से बेहतर और मजबूत लोगों पर हमला कर सकता है और उन्हें अलग-थलग कर सकता है, यह कपटपूर्ण और दुष्ट है। वह लोगों को नीचे गिराने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेगा, यह दिखाता है कि उसके अंदर का दानव काफी बड़ा है! शैतान के स्वभाव के अनुसार जीते हुए, संभव है कि वह लोगों को कमतर दिखाए, उन्हें फँसाने की कोशिश करे, और उनके लिए मुश्किलें पैदा कर दे। क्या यह कुकृत्य नहीं है? इस तरह जीते हुए, वह अभी भी सोचता है कि वह ठीक है, अच्छा इंसान है—फिर भी जब वह अपने से बेहतर व्यक्ति को देखता है, तो संभव है कि वह उसे परेशान करे, उसे पूरी तरह कुचले। यहाँ मुद्दा क्या है? जो लोग ऐसे बुरे कर्म कर सकते हैं, क्या वे अनैतिक और स्वेच्छाचारी नहीं हैं? ऐसे लोग केवल अपने हितों के बारे में सोचते हैं, वे केवल अपनी भावनाओं का खयाल करते हैं, और वे केवल अपनी इच्छाओं, महत्वाकांक्षाओं और अपने लक्ष्यों को पाना चाहते हैं। वे इस बात की परवाह नहीं करते कि वे कलीसिया के कार्य को कितना नुकसान पहुँचाते हैं, और वे अपनी प्रतिष्ठा और लोगों के मन में अपने रुतबे की रक्षा के लिए परमेश्वर के घर के हितों का बलिदान करना पसंद करेंगे। क्या ऐसे लोग अभिमानी और आत्मतुष्ट, स्वार्थी और नीच नहीं होते? ऐसे लोग अभिमानी और आत्मतुष्ट ही नहीं, बल्कि बेहद स्वार्थी और नीच भी होते हैं। वे परमेश्वर के इरादों को ले कर बिल्कुल विचारशील नहीं हैं। क्या ऐसे लोगों में परमेश्वर का भय मानने वाला दिल होता है? उनके पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल बिल्कुल नहीं होता। यही कारण है कि वे बेतुके ढंग से आचरण करते हैं और वही करते हैं जो करना चाहते हैं, उन्हें कोई अपराध-बोध नहीं होता, कोई घबराहट नहीं होती, कोई भी भय या चिंता नहीं होती, और वे परिणामों पर भी विचार नहीं करते(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, पाँच शर्तें, जिन्हें परमेश्वर पर विश्वास के सही मार्ग पर चलने के लिए पूरा करना आवश्यक है)। जब मैंने पहले परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा था, तो मैंने कभी नहीं सोचा था कि वे मुझ पर लागू होते हैं। फिर आखिरकार मैंने देखा कि परमेश्वर के वचनों ने मेरी स्थिति प्रकट कर दी। मैंने कभी कल्पना नहीं की थी कि मैं इतनी धूर्त और द्वेषपूर्ण हो सकती हूँ। शांग जेन को सत्य के बारे में मुझसे बेहतर संगति करते और भाई-बहनों की वास्तविक समस्याएँ हल करते देख न केवल मैं दुखी हुई, बल्कि उससे नाराज और ईर्ष्यालु भी हो गई। मुझे लगा कि उसकी श्रेष्ठता ने मुझे दूसरों की नजर में गिरा दिया है। अपनी इज्जत और हैसियत बचाने के लिए मैं लगातार उससे आगे निकलने के तरीके सोचने की कोशिश कर रही थी। जब मैं ऐसा नहीं कर पाई, तो इससे मुझमें उसके प्रति पूर्वाग्रह पैदा हो गया और मैंने यह सोचकर उसकी आलोचना की कि वह दिखावा करके मेरी हैसियत छीनने की कोशिश कर रही है। मैं उसकी पीठ पीछे एक गुट बनाने की कोशिश कर रही थी और उसके प्रति पूर्वाग्रह फैला रही थी, ताकि हर कोई उसे अलग कर दे। मैं वाकई अहंकारी थी। मैं किसी को भी अपने से बेहतर नहीं होने दे सकती थी और टीम-अगुआ के रूप में अपनी हैसियत बनाए रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकती थी। ऐसा करके क्या मैं उन मसीह-विरोधियों से जरा भी अलग थी, जो सिर्फ हैसियत के लिए दूसरों पर हमला कर उन्हें बाहर कर देते हैं? सत्य के बारे में मेरी समझ उथली थी और मैं वास्तविक समस्याएँ हल नहीं कर पाती थी। लेकिन मैं शांग जेन को किसी के साथ भी संगति कर उसकी मदद नहीं करने देती थी, तो क्या मैं भाई-बहनों को नुकसान नहीं पहुँचा रही थी? मुझमें मानवता नहीं थी! जब मुझे इसका एहसास हुआ, तो मुझे अपराध-बोध हुआ। मैंने भाई-बहनों को नीचा दिखाया था। तब मैंने प्रतिष्ठा के लिए शांग जेन के साथ प्रतियोगिता करने के बारे में खुलकर बात करने और संगति करने का साहस जुटाया और उससे माफी माँगी। उसने कहा कि वह जानती थी कि जब वह सभाओं के दौरान संगति करती थी तो मैं बहुत खुश नहीं होती थी, इसलिए वह बेबस महसूस करती थी और इस डर से बहुत ज्यादा साझा करने की हिम्मत नहीं करती थी क्योंकि इसका मुझ पर प्रभाव पड़ेगा। तभी मुझे एहसास हुआ कि प्रतिष्ठा के लिए मेरे संघर्ष ने उसे नुकसान पहुँचाया है, और मुझे अपराध-बोध हुआ।

इसके बाद मैंने अभ्यास के मार्ग की खोज जारी रखी और मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “कलीसिया का अगुआ होने के नाते तुम्‍हें समस्याएँ सुलझाने के लिए केवल सत्य का प्रयोग सीखने की आवश्‍यकता ही नहीं है, बल्कि प्रतिभाशाली लोगों का पता लगाने और उन्‍हें विकसित करना सीखने की आवश्‍यकता भी है, जिनसे तुम्‍हें बिल्कुल ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए या जिनका बिल्कुल दमन नहीं करना चाहिए। इस तरह के अभ्यास से कलीसिया के काम को लाभ पहुँचता है। अगर तुम अपने कार्यों में सहयोग के लिए सत्य के कुछ खोजी तैयार कर सको और सारा काम अच्‍छी तरह से करो, और अंत में, तुम सभी के पास अनुभवजन्‍य गवाहियाँ हों, तो तुम एक योग्य अगुआ या कार्यकर्ता होंगे। यदि तुम हर चीज़ सिद्धांतों के अनुसार संभाल सको, तो तुम अपनी वफादारी निभा रहे हो। कुछ लोग हमेशा इस बात से डरे रहते हैं कि दूसरे लोग उनसे बेहतर और ऊपर हैं, अन्‍य लोगों को पहचान मिलेगी, जबकि उन्हें अनदेखा किया जाता है, और इसी वजह से वे दूसरों पर हमला करते हैं और उन्हें अलग कर देते हैं। क्या यह प्रतिभाशाली लोगों से ईर्ष्या करने का मामला नहीं है? क्या यह स्‍वार्थपूर्ण और निंदनीय नहीं है? यह कैसा स्वभाव है? यह दुर्भावना है! जो लोग दूसरों के बारे में सोचे बिना या परमेश्वर के घर के हितों को ध्‍यान में रखे बिना केवल अपने हितों के बारे में सोचते हैं, जो केवल अपनी स्‍वार्थपूर्ण इच्छाओं को संतुष्ट करते हैं, वे बुरे स्वभाव वाले होते हैं, और परमेश्वर में उनके लिए कोई प्र‍ेम नहीं होता। अगर तुम वाकई परमेश्वर के इरादों का ध्यान रखने में सक्षम हो, तो तुम दूसरे लोगों के साथ निष्पक्ष व्यवहार करने में सक्षम होंगे। अगर तुम किसी अच्छे व्यक्ति की सिफ़ारिश करते हो और उसे प्रशिक्षण प्राप्‍त करने और कोई कर्तव्य निर्वहन करने देते हो, और इस तरह एक प्रतिभाशाली व्यक्ति को परमेश्वर के घर में शामिल करते हो, तो क्या उससे तुम्‍हारा काम और आसान नहीं हो जाएगा? तब क्या यह तुम्‍हारा कर्तव्‍य के प्रति वफादारी प्रदर्शित करना नहीं होगा? यह परमेश्वर के समक्ष एक अच्छा कर्म है; अगुआ के रूप में सेवाएँ देने वालों के पास कम-से-कम इतनी अंतश्‍चेतना और तर्क तो होना ही चाहिए। ... हमेशा अपने लिए कार्य मत कर, हमेशा अपने हितों की मत सोच, इंसान के हितों पर ध्यान मत दे, और अपने गौरव, प्रतिष्ठा और हैसियत पर विचार मत कर। तुम्‍हें सबसे पहले परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करना चाहिए और उन्‍हें अपनी प्राथमिकता बनाना चाहिए। तुम्‍हें परमेश्वर के इरादों का ध्‍यान रखना चाहिए और इस पर चिंतन से शुरुआत करनी चाहिए कि तुम्‍हारे कर्तव्‍य निर्वहन में अशुद्धियाँ रही हैं या नहीं, तुम वफादार रहे हो या नहीं, तुमने अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी की हैं या नहीं, और अपना सर्वस्व दिया है या नहीं, साथ ही तुम अपने कर्तव्य, और कलीसिया के कार्य के प्रति पूरे दिल से विचार करते रहे हो या नहीं। तुम्‍हें इन चीज़ों के बारे में अवश्‍य विचार करना चाहिए। अगर तुम इन पर बार-बार विचार करते हो और इन्हें समझ लेते हो, तो तुम्‍हारे लिए अपना कर्तव्‍य अच्‍छी तरह से निभाना आसान हो जाएगा(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, अपने भ्रष्ट स्वभाव को त्यागकर ही आजादी और मुक्ति पाई जा सकती है)। परमेश्वर के वचनों से मैं समझ गई कि अगुआओं और कार्यकर्ताओं को यह सीखना होगा कि कैसे प्रतिभाशाली लोगों की पहचान कर उन्हें विकसित किया जाए। वे अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत की रक्षा के लिए प्रतिभाशाली लोगों से ईर्ष्या या उनका दमन नहीं कर सकते, इससे परमेश्वर घृणा करता है। शांग जेन सत्य के बारे में स्पष्ट रूप से संगति कर वास्तविक समस्याएँ हल कर सकती थी। इससे कलीसिया के काम को फायदा हुआ था और भाई-बहनों को जीवन में प्रवेश करने में मदद मिली थी। मुझे परमेश्वर के इरादों के बारे में विचारशील होना था और अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत छोड़नी थी, शांग जेन के साथ मिलकर काम करना था और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाना था। टीम-अगुआ के रूप में चुना जाना परमेश्वर की कृपा थी, जिससे मुझे अभ्यास करने का मौका मिला था। इसका मतलब यह नहीं था कि मैं सब-कुछ समझती हूँ या मैं उस कर्तव्य के योग्य थी। सत्य के बारे में मेरी समझ उथली और समस्याएँ समझने में मेरी असमर्थता सामान्य थी, इसलिए मुझे शांग जेन से सीखना चाहिए था। लेकिन मैंने खुद को हमेशा टीम-अगुआ के रूप में देखा और यह सोचा कि मुझे हर समस्या समझने और उसका समाधान करने में सक्षम होना चाहिए और मैं संभवतः किसी और से कम सक्षम नहीं हो सकती। इसलिए मैं हमेशा शांग जेन के साथ संघर्ष और प्रतिस्पर्धा कर रही थी और अगर मैं उससे बेहतर नहीं कर पाती थी, तो नकारात्मक होकर पीड़ित हो जाती थी। मैं बहुत मूर्ख थी! परमेश्वर ने वस्तुतः कभी यह अपेक्षा नहीं की है कि अगुआ और कार्यकर्ता हर समस्या का समाधान करने में सक्षम हों। परमेश्वर आशा करता है कि मैं ईमानदार रहूँगी, केवल उसी के बारे में संगति करूँगी जो मैं समझती हूँ और जो कुछ मैं नहीं समझती, उस पर भाई-बहनों के साथ मिलकर चर्चा करूँगी। यही वह अभ्यास है, जो परमेश्वर के इरादे के अनुरूप है। परमेश्वर का इरादा समझने के बाद मैंने शांग जेन से ईर्ष्या करना बंद कर दिया और उसके किसी भी अच्छे विचार को स्वीकार कर लागू करने में सक्षम हो गई। जब भाई-बहन सभाओं में अपनी कठिनाइयाँ लाते, तो शांग जेन और मैं संगति कर उनकी मदद करने के लिए मिलकर काम करते और इस तरह कई समस्याओं का समाधान हो जाता था।

इस अनुभव के बाद मुझे लगा कि मैं बदल गई हूँ और अब प्रतिष्ठा और रुतबे पर उतना ध्यान नहीं देती। लेकिन मैं शैतान द्वारा इतनी बुरी तरह से भ्रष्ट कर दी गई थी कि जब मुझे उपयुक्त स्थिति मिली, तो मैं अपने पुराने तरीकों पर लौट आई। वास्तविक काम न कर पाने के कारण जुलाई 2021 में मुझे बरखास्त कर दिया गया और शांग जेन को नई टीम-अगुआ चुना गया। इस नतीजे का सामना करते हुए मैंने स्वीकार किया कि वह वास्तव में हर तरह से मुझसे बेहतर थी और उसे चुनने से भाई-बहनों के जीवन में प्रवेश में लाभ होगा। लेकिन कुछ समय बाद मैंने देखा कि अपने कर्तव्य-पालन के दौरान शांग जेन ने अपने ऊपर एक दायित्व ले लिया। जब भाई-बहनों के सामने कठिनाइयाँ और समस्याएँ आतीं, तो वह उनके साथ संगति कर समय पर उनकी समस्याओं का समाधान कर पाती। वह हमारे कलीसियाई जीवन में होने वाले भटकावों को भी सारांशित करने में सक्षम थी। इससे मेरी कुछ भावनाएँ उद्वेलित हो गईं : “अगर टीम-अगुआ के रूप में शांग जेन मुझसे ज्यादा प्रभावी है, तो क्या इससे मैं और भी बुरी नहीं दिखूँगी? सब मेरे बारे में क्या सोचेंगे? वे निश्चित रूप से सोचेंगे कि मुझमें योग्यता की कमी है और मेरी काबिलियत कम है।” उस समय इस तरह से सोचते हुए मुझे आशा नहीं थी कि कलीसियाई जीवन में सुधार होगा। अतीत में सभाओं के दौरान, चाहे परमेश्वर के वचनों के ज्ञान के बारे में संगति करना हो या हमारे काम में समस्याओं को सारांशित करना, मैं हमेशा संगति करने की पहल करती थी और सभी में ऐसा करने के लिए उत्साह पैदा करती थी। लेकिन उस दौरान सभाओं में मैं हमेशा सबसे अंत में बोलती थी। कभी-कभी जब मुझे थोड़ी प्रबुद्धता और रोशनी प्राप्त हो जाती, तो मैं उसके बारे में बात करने की इच्छुक नहीं होती थी और अंत में बेमन से कुछ शब्द कह देती थी। जब शांग जेन मुझसे विस्तार से बताने के लिए कहती, तो मैं और कुछ नहीं कहना चाहती थी। उस समय भाई-बहनों को अपना कर्तव्य निभाने में मुश्किलें आ रही थीं और वे निराश स्थिति में थे, लेकिन शांग जेन काम में इतनी व्यस्त रहती थी कि तुरंत समस्याओं से नहीं निपट पाती थी। मैंने न केवल मदद की पेशकश नहीं की, बल्कि असल में यह सोचकर उसकी दुर्दशा का आनंद भी लिया : “देखो—तुम वास्तव में इतनी महान टीम-अगुआ नहीं हो। तुम मुझसे बेहतर नहीं हो!” मैंने देखा कि भाई-बहनों की समस्याओं का तुरंत समाधान नहीं हो पा रहा था और कलीसियाई जीवन निष्प्रभावी था। लेकिन मैंने शांग जेन की मदद नहीं की और यह उम्मीद तक की कि इस तरह की हालत बनी रहेगी। फिर मैंने देखा कि शांग जेन ने जल्दी ही अपनी समय-सारणी समायोजित कर वे समस्याएँ सुलझा लीं। इससे मैं फिर से बहुत दुखी हो गई और उससे और ज्यादा ईर्ष्या करने लगी। धीरे-धीरे मैं उसे ज्यादा से ज्यादा नापसंद करने लगी। अंततः बात इस हद तक पहुँच गई कि मैं उसके द्वारा कही गई कोई बात या उसके द्वारा व्यक्त किया गया कोई दृष्टिकोण सुनना तक नहीं चाहती थी। सभाओं के दौरान जब वह संगति कर रही होती, तो मैं मुड़कर दूसरी ओर देखने लगती। मैं जानती थी कि मैं ज्यादा से ज्यादा ईर्ष्यालु होती जा रहा हूँ और मेरा स्वभाव द्वेषपूर्ण था, जो उसे भी नुकसान पहुँचाएगा और कलीसियाई जीवन को भी प्रभावित करेगा। मैं इसे जारी नहीं रखना चाहती थी, लेकिन मैं अपनी हालत से मुक्त नहीं हो पाई। अपनी पीड़ा में मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : “हे परमेश्वर! मैं शांग जेन से ईर्ष्या नहीं करना चाहती, लेकिन मैं खुद पर काबू नहीं रख पाती। कृपया मुझे बचा लो, ताकि मैं प्रतिष्ठा और हैसियत के पीछे भागने के खतरे और नतीजे समझ सकूँ और आगे अपने भ्रष्ट स्वभाव से न बँधी रहूँ।” इसके बाद मैंने भाई-बहनों के साथ खुलकर अपनी गलत स्थिति साझा की। मैंने जो कहा, उसे सुनने के बाद शांग जेन ने कहा कि उसने कभी नहीं सोचा था कि मैं उसके साथ ऐसा करूँगी और उसे दुख हुआ। जब उसने यह कहा, तो मुझे बहुत अपराध-बोध हुआ। हम इतने लंबे समय से एक-दूसरे को जानते थे और मैं अक्सर उससे ईर्ष्या करती थी और उसके पीठ-पीछे उसकी आलोचना करती थी, लेकिन उसने मुझसे बहस नहीं की। उसने मुझे माफ कर दिया और मेरी मदद करने के लिए सत्य पर संगति की। मुझमें रत्ती भर भी मानवता नहीं थी और मैं बहुत द्वेषपूर्ण थी जो मैंने उसके साथ उस तरह का व्यवहार किया।

एक बार एक सभा में मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : “मसीह-विरोधी अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा को किसी भी चीज से ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं। ये लोग कपटी, चालाक और दुष्ट ही नहीं, बल्कि अत्यधिक विद्वेषपूर्ण भी होते हैं। जब उन्हें पता चलता है कि उनकी हैसियत खतरे में है, या जब वे लोगों के दिलों में अपना स्थान खो देते हैं, जब वे लोगों का समर्थन और स्नेह खो देते हैं, जब लोग उनका आदर-सम्मान नहीं करते, और वे बदनामी के गर्त में गिर जाते हैं, तो वे क्या करते हैं? वे अचानक बदल जाते हैं। जैसे ही वे अपनी हैसियत खो देते हैं, वे कोई भी कर्तव्य निभाने के लिए तैयार नहीं होते, वे जो कुछ भी करते हैं, अनमने होकर करते हैं, और उनकी कुछ भी करने में कोई दिलचस्पी नहीं रहती। लेकिन यह सबसे खराब अभिव्यक्ति नहीं होती। सबसे खराब अभिव्यक्ति क्या होती है? जैसे ही ये लोग अपनी हैसियत खो देते हैं और कोई उनका सम्मान नहीं करता, कोई भी उनसे गुमराह नहीं होता, तो उनकी घृणा, ईर्ष्या और प्रतिशोध बाहर आ जाता है। उनके पास न केवल परमेश्वर का भय मानने वाला दिल नहीं रहता, बल्कि उनमें समर्पण का कोई अंश भी नहीं होता। इसके अतिरिक्त, उनके दिलों में परमेश्वर के घर, कलीसिया, अगुआओं और कार्यकर्ताओं से घृणा करने की संभावना होती है; वे दिल से चाहते हैं कि कलीसिया के कार्य में समस्याएँ आ जाएँ या वह ठप हो जाए; वे कलीसिया, और भाई-बहनों पर हँसना चाहते हैं। वे उस व्यक्ति से भी घृणा करते हैं, जो सत्य का अनुसरण करता है और परमेश्वर का भय मानता है। वे उस व्यक्ति पर हमला करते हैं और उसका मजाक उड़ाते हैं, जो अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान और कीमत चुकाने का इच्छुक होता है। यह मसीह-विरोधियों का स्वभाव है—और क्या यह विद्वेषपूर्ण नहीं है? ये स्पष्ट रूप से बुरे लोग हैं; मसीह-विरोधी अपने सार में बुरे लोग होते हैं(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग दो))। परमेश्वर मसीह-विरोधियों की धोखेबाज़ी, दुष्टता और द्वेषपूर्ण प्रकृति उजागर करता है। जैसे ही वे अपना रुतबा या दूसरों का समर्थन खो देते हैं, वे ईर्ष्यालु और प्रतिशोधी हो जाते हैं। वे न केवल अपना कर्तव्य निभाने में खानापूरी करते हैं, बल्कि यह उम्मीद भी करते हैं कि कलीसिया के काम में त्रुटियाँ हों, ताकि वे परमेश्वर के घर और भाई-बहनों का उपहास उड़ा सकें। परमेश्वर के वचनों ने मेरी स्थिति प्रकट कर दी। बरखास्त किए जाने के बाद मैं देख सकती थी कि शांग जेन ने अपने कर्तव्य-पालन में एक दायित्व उठाया था और वह सक्रिय रूप से भाई-बहनों की समस्याएँ हल कर सकी। मुझे डर था कि अगर उसने अच्छा काम किया और कलीसियाई जीवन में सुधार हुआ, तो इससे पता चलेगा कि मैं उसके जितनी अच्छी नहीं थी। भाई-बहनों के दिलों में अपनी हैसियत और छवि बचाने के लिए मैं उम्मीद कर रही थी कि कलीसियाई जीवन निष्प्रभावी होगा। इसलिए अगर मुझमें स्पष्ट रूप से प्रबुद्धता और रोशनी भी होती, तो भी मैं उनके बारे में संगति करने की इच्छुक नहीं होती थी। अगर शांग जेन काम में व्यस्त होने के कारण भाई-बहनों की समस्याओं का तुरंत समाधान न कर पाई, तो मैंने मदद नहीं की। इसके बजाय मैंने उसकी दुर्दशा का आनंद लिया, उस पर हँसने का इंतजार किया। मैं उससे ईर्ष्या करती थी क्योंकि काम में वह मुझसे ज्यादा सक्षम थी। मुझे उसकी कोई बात पसंद नहीं आई और मैंने उसे पूरी तरह से ठुकरा दिया। मैं मसीह-विरोधी का द्वेषपूर्ण स्वभाव व्यक्त कर रही थी! कलीसियाई जीवन की प्रभावशीलता का सीधा संबंध भाई-बहनों के जीवन-प्रवेश से है और वे केवल तभी अपना कर्तव्य ठीक से निभा सकते हैं, जब उनके स्थिति सामान्य हो और वे जीवन में प्रवेश कर चुके हों। लेकिन लोगों की नजरों में अपनी हैसियत बनाए रखने के लिए मैं न केवल कलीसियाई जीवन का समर्थन करने में विफल रही, बल्कि यह आशा भी की कि भाई-बहनों की समस्याएँ अनसुलझी रह जाएँगी और वे अपना कर्तव्य निभाने में निष्प्रभावी हो जाएँगे। मैं बहुत धूर्त और द्वेषपूर्ण थी! परमेश्वर के घर द्वारा किसी को पदोन्नत या बरखास्त किया जाना काम की आवश्यकताओं पर आधारित होता है। मैं अपना काम नहीं कर पाई, इसलिए बरखास्त कर दी गई और फिर एक ज्यादा उपयुक्त इंसान ने उसे सँभाल लिया। मैंने न केवल शांग जेन के साथ अच्छा काम नहीं किया, बल्कि पीछे से उसे कमजोर भी किया। मैंने रुकावट और बाधा पैदा की और उसे चोट पहुँचाई। क्या मैं इंसान थी भी? इस विचार पर मैं पछतावे से भर गई और मेरे आँसू बह निकले। इतनी द्वेषपूर्ण होने पर मुझे खुद से नफरत हो गई और मैं परमेश्वर के सामने जीने के लायक नहीं थी। मुझे याद आया कि बाइबल में कहा गया है : “मन के जलने से हड्डियाँ भी जल जाती हैं” (नीतिवचन 14:30)। यह कितना सच है। ईर्ष्या लोगों से घृणा करवा सकती है, यहाँ तक कि अनुचित कार्य भी करवा सकती है।

उस रात मैंने परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : “अगर तुम हमेशा उन चीजों में विघ्न-बाधा डालते को और उन चीजों को कमजोर करते हो जिनकी परमेश्वर रक्षा करना चाहता है, अगर तुम हमेशा ऐसी चीजों का अपमान करते हो, और हमेशा उनके बारे में धारणाएँ और राय रखते हो, तो तुम परमेश्वर का विरोध कर रहे हो और उसके खिलाफ खड़े हो रहे हो। अगर तुम परमेश्वर के घर के कार्य और परमेश्वर के घर के हितों को महत्वपूर्ण नहीं मानते, और हमेशा उन्हें कमजोर करना चाहते हो, और हमेशा चीजों को तबाह करना चाहते हो, या हमेशा उनसे लाभ कमाना, धोखा देना या गबन करना चाहते हो, तो क्या परमेश्वर तुमसे गुस्सा होगा? (बिल्कुल होगा।) परमेश्वर के गुस्से के क्या परिणाम हैं? (हमें दंडित किया जाएगा।) यह निश्चित है। परमेश्वर तुम्हें माफ नहीं करेगा, बिल्कुल भी नहीं! क्योंकि तुम्हारे कारण कलीसिया का कार्य बिखर रहा और नष्ट हो रहा है, और यह परमेश्वर के घर के कार्य और हितों के विपरीत है। यह बहुत बड़ी बुराई है, यह परमेश्वर के साथ दुश्मनी मोल लेना है, और यह परमेश्वर के स्वभाव को सीधे तौर पर नाराज करता है। परमेश्वर तुमसे गुस्सा कैसे नहीं होगा? अगर कुछ लोग खराब काबिलियत के कारण अपने काम करने में सक्षम नहीं हैं और अनजाने में बाधा और गड़बड़ी पैदा करने वाले काम करते हैं, तो इसे माफ किया जा सकता है। लेकिन, अगर अपने व्यक्तिगत हितों के कारण तुम ईर्ष्या और झगड़े में लिप्त होते हो और जानबूझकर ऐसे काम करते हो जो परमेश्वर के घर के कार्य में विघ्न-बाधा डालता और उसे नष्ट करता है, तो इसे जानबूझकर किया गया उल्लंघन माना जाता है, और यह परमेश्वर के स्वभाव को नाराज करने का मामला है। क्या परमेश्वर तुम्हें माफ करेगा? परमेश्वर अपनी 6,000 वर्षीय प्रबंधन योजना का कार्य कर रहा है, और इसमें उसकी सारी मेहनत लगी है। अगर कोई परमेश्वर का विरोध करता है, जानबूझकर परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाता है, और जानबूझकर परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाने की कीमत पर अपने व्यक्तिगत हितों और अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे का अनुसरण करता है, और कलीसिया के कार्य को बिगाड़ने में कोई संकोच नहीं करता है, जिससे परमेश्वर के घर का कार्य बाधित और नष्ट हो जाता है, और यहाँ तक कि परमेश्वर के घर को भारी भौतिक और वित्तीय नुकसान भी होता है, तो क्या तुम लोगों को लगता है कि ऐसे लोगों को माफ किया जाना चाहिए? (नहीं, उन्हें माफ नहीं करना चाहिए।)” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग एक))। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि उसका स्वभाव अपमान बर्दाश्त नहीं करता। सबके साथ अपनी हैसियत बनाए रखने के लिए मैंने शांग जेन का बिना किसी स्पष्ट वजह के विरोध किया था, मैं हमेशा उम्मीद करती थी कि उसे अपमानित किया जाएगा, जिससे कलीसिया के काम पर असर पड़ा। मैं अपने लक्ष्य हासिल करने की कीमत पर कलीसिया के हित त्यागने के लिए तैयार थी। यह परमेश्वर का विरोध करना है। मैंने विचार किया कि कैसे परमेश्वर ने इस आशा से मानवजाति को बचाने के लिए इतनी बड़ी कीमत चुकाई है कि मानवता सत्य प्राप्त कर सकती है, अपने जीवन-स्वभाव बदल सकती है और परमेश्वर का उद्धार प्राप्त कर सकती है। जब भाई-बहनों का कलीसियाई जीवन अच्छा होता है और अगुआओं के रूप में अच्छे लोग होते हैं, तभी वे सत्य समझ सकते हैं, सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर सकते हैं और परमेश्वर का उद्धार प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन मैं परमेश्वर के इरादों के प्रति बिल्कुल भी विचारशील नहीं थी। जब मैंने देखा कि कलीसियाई जीवन निष्प्रभावी है, तो मैं आश्चर्यजनक रूप से खुश थी और मैंने यहाँ तक आशा की कि यह स्थिति जारी रहेगी। मैं इतनी घिनौनी और द्वेषपूर्ण कैसे हो सकती थी? शैतान आशा करता है कि मानवजाति को बचाने का परमेश्वर का कार्य विफल हो जाएगा और परमेश्वर के घर का कार्य पंगु हो जाएगा। वह आशा करता है कि भाई-बहन परमेश्वर का उद्धार खो देंगे और अंततः उसके साथ नरक में उतरकर नष्ट हो जाएँगे। मैं आज इस तरह से सोच और कार्य कर सकती हूँ, तो क्या इस तथ्य का यह मतलब नहीं है कि कलीसिया का काम बाधित करने और बिगाड़ने में मैं राक्षस शैतान जैसी ही हूँ? परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव अपमान बर्दाश्त नहीं करता और अगर मैं उस रास्ते पर चलती रही और पश्चात्ताप करने में विफल रही, तो मैं निश्चित रूप से और भी बड़ा पाप करूँगी, परमेश्वर के स्वभाव का अपमान करूँगी और उसके द्वारा ठुकराई, और हटा दी जाऊँगी। तभी मैंने वास्तव में अपने दिल में जाना कि नाम और रुतबे के पीछे भागना अच्छा मार्ग नहीं है। मुझे याद आया कि परमेश्वर के वचन क्या कहते हैं : “शैतान मनुष्य के विचारों को नियंत्रित करने के लिए प्रसिद्धि और लाभ का तब तक उपयोग करता है, जब तक सभी लोग प्रसिद्धि और लाभ के बारे में ही नहीं सोचने लगते। वे प्रसिद्धि और लाभ के लिए संघर्ष करते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए कष्ट उठाते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपमान सहते हैं, प्रसिद्धि और लाभ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर देते हैं, और प्रसिद्धि और लाभ के लिए कोई भी फैसला या निर्णय ले लेते हैं। इस तरह शैतान लोगों को अदृश्य बेड़ियों से बाँध देता है और उनमें उन्हें उतार फेंकने का न तो सामर्थ्‍य होता है, न साहस। वे अनजाने ही ये बेड़ियाँ ढोते हैं और बड़ी कठिनाई से पैर घसीटते हुए आगे बढ़ते हैं। इस प्रसिद्धि और लाभ के लिए मानवजाति परमेश्वर से दूर हो जाती है, उसके साथ विश्वासघात करती है और अधिकाधिक दुष्ट होती जाती है। इसलिए, इस प्रकार एक के बाद एक पीढ़ी शैतान की प्रसिद्धि और लाभ के बीच नष्ट होती जाती है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है VI)। पहले मैंने अपने शोहरत और हैसियत के पीछे भागने को गंभीरता से नहीं लिया था। मैंने हमेशा महसूस किया कि मैं बस यही चाहती हूँ कि दूसरे लोग मेरे बारे में ऊँची धारणा बनाएँ और मैं कभी भाई-बहनों को नुकसान न पहुँचाऊँ या कलीसिया के हितों को खतरे में न डालूँ। लेकिन तब परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन और तथ्यों ने दिखाया कि चीजें उतनी सरल नहीं हैं, जितनी मैंने सोची थीं। प्रतिष्ठा और हैसियत वे औजार हैं, जिनका उपयोग शैतान लोगों को चोट और नुकसान पहुँचाने के लिए करता है, वे शैतान द्वारा डाली गई वे बेड़ियाँ हैं जिन्होंने मुझे नियंत्रित किया, ताकि मैं किसी भी समय परमेश्वर के विरूद्ध विद्रोह और विरोध कर दूँ। अगर मैंने सत्य का अनुसरण नहीं किया और परमेश्वर का न्याय और ताड़ना स्वीकार नहीं की, बल्कि उन चीजों के पीछे भागती रही, तो मैं बर्बाद हो जाऊँगी। प्राचीन काल से ही हैसियत और सत्ता की दौड़ ने अच्छे दोस्तों को दुश्मन और करीबी रिश्तेदारों को एक-दूसरे के प्रति मतलबी और क्रूर बना दिया है। मैंने शांग जेन के साथ ऐसा ही व्यवहार किया था। अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत बनाए रखने के लिए मैं उसे कभी बर्दाश्त नहीं कर पाई। मैंने उसके साथ खुले तौर पर भी होड़ की और गुप्त रूप से भी, और जब मैं उससे बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाई, तो उसकी आलोचना करने के लिए मैंने उसके पीछे गुट बना लिया। जब मैंने देखा कि कलीसियाई जीवन के नतीजे खराब आ रहे हैं, तो मैंने उसे ठीक रखने की कोशिश नहीं की। मैंने एक अलगाव भरा दृष्टिकोण अपनाया, शांग जेन को असफल होते देखना चाहा, ताकि उस पर हँस सकूँ। मैं हैसियत पाने की अपनी इच्छा पूरी करने के लिए कलीसिया के काम को नुकसान होते देखने के लिए भी तैयार थी। मैंने देखा कि प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागना परमेश्वर का विरोध करना है। मैं डर गई और जान गई कि अगर मैंने पश्चात्ताप नहीं किया और प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागती रही, कलीसिया का काम रोककर खराब करती रही, तो मैं मसीह-विरोधी बन जाऊँगी और कलीसिया से निष्कासित कर दी जाऊँगी और बचाए जाने का मौका गँवा दूँगी। जब मैंने यह देखा, तो मैं परमेश्वर की बहुत आभारी हो गई। न चाहते हुए भी मैं हमेशा प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागती रहती थी। उस समय परमेश्वर एक वास्तविक स्थिति निर्मित कर रहा था, ताकि मैं इन चीजों के लिए अपनी होड़ की कुरूपता देख सकूँ और अंततः मैं व्यक्तिगत अनुभव से प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागने की पीड़ा और खतरनाक नतीजे समझ गई थी। परमेश्वर के वचनों के न्याय और प्रकाशन के माध्यम से मैंने यह भी जाना कि उसका धार्मिक स्वभाव अपमान बर्दाश्त नहीं करता और अपने दिल में, मैं प्रतिष्ठा और रुतबे का बंधन तोड़ना चाहती थी। मैं पश्चात्ताप करना और बदलना चाहती थी। पहले मैंने हमेशा नकारात्मक और कमजोर महसूस किया था, क्योंकि मुझे लगता था कि प्रतिष्ठा और रुतबे की मेरी इच्छा इतनी गंभीर है कि बदली नहीं जा सकती और मुझमें सत्य का अनुसरण करने का आत्मविश्वास नहीं है। तब मैं समझ गई कि भले ही मैं भ्रष्ट हूँ, लेकिन अगर मैं सत्य का अनुसरण करने और बदलने के लिए तैयार हूँ, तो परमेश्वर सत्य को समझने, प्रतिष्ठा और रुतबे की बेड़ियाँ त्यागने और उद्धार के मार्ग पर चलने में मेरा मार्गदर्शन करेगा।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों में यह पढ़ा : “हमेशा सभी से आगे निकलने, सब-कुछ दूसरों से बेहतर करने और हर तरह से भीड़ से अलग दिखने की मत सोचो। यह कैसा स्वभाव है? (अहंकारी स्वभाव।) लोगों का स्वभाव हमेशा अहंकारी होता है, और यदि वे सत्य के लिए प्रयास करना और परमेश्वर को संतुष्ट करना भी चाहें, तो कर नहीं पाते। अपने अहंकारी स्वभाव के नियंत्रण में होने के कारण लोगों के आसानी से भटकने की काफी संभावना होती है। जैसे, कुछ लोग ऐसे होते हैं जो हमेशा परमेश्वर की अपेक्षाओं के बजाय अपने नेक इरादे जताकर दिखावा करना चाहते हैं। क्या परमेश्वर ऐसे नेक इरादों की अभिव्यक्ति को स्वीकृति देगा? परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील रहने के लिए, तुम्हें परमेश्वर की अपेक्षाओं का पालन करना होगा और अपना कर्तव्य निभाने के लिए तुम्हें परमेश्वर की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होना होगा। नेक इरादे व्यक्त करने वाले लोग परमेश्वर के इरादों के प्रति विचारशील नहीं रहते, बल्कि नई-नई चालें चलने और ऊँची लगने वाली बातें कहने की कोशिश करते हैं। परमेश्वर यह नहीं कहता कि तुम इस तरह विचारशील बनो। कुछ लोग कहते हैं कि यह उनका प्रतिस्पर्धी होना है। प्रतिस्पर्धी होना अपने आप में एक नकारात्मक बात है। यह शैतान के अभिमानी स्वभाव का खुलासा है—प्रकटन है। जब तुम्हारा ऐसा स्वभाव होता है, तो तुम हमेशा दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करते हो, हमेशा उनसे आगे निकलने की कोशिश करते हो, हमेशा प्रतिस्‍पर्धा करते हो, हमेशा लोगों से कुछ लेने की कोशिश करते हो। तुम अत्यधिक ईर्ष्यालु होते हो, किसी के सामने नहीं झुकते और हमेशा खुद को भीड़ से अलग दिखाने की कोशिश करते हो। इससे समस्‍या होती है; शैतान इसी तरह काम करता है। यदि तुम वाकई एक स्वीकार्य सृजित प्राणी बनना चाहते हो, तो अपने सपनों के पीछे मत भागो। अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपने कद से अधिक श्रेष्ठ और सक्षम होने का प्रयास करना बुरी बात है; तुम्हें परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करना सीखना चाहिए और तुम्हें उस स्थान पर दृढ़ रहना चाहिए, जहाँ एक मनुष्य को होना चाहिए; इसी को समझदारी दिखाना कहते हैं(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, व्यक्ति के आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत)। “अपने आचरण के संबंध में तुम लोगों के क्‍या सिद्धांत हैं? तुम्हारा आचरण तुम्हारे पद के अनुसार होना चाहिए, अपने लिए सही स्‍थान खोजो और जो कर्तव्य तुम्हें निभाना चाहिए उसे निभाओ; केवल ऐसा व्यक्ति ही समझदार होता है। उदाहरण के तौर पर, कुछ लोग कुछ पेशेवर कौशलों में निपुण होते हैं और सिद्धांतों की समझ रखते हैं, और उन्हें जिम्मेदारी लेनी चाहिए और उस क्षेत्र में अंतिम जाँचें करनी चाहिए; कुछ ऐसे लोग हैं जो अपने विचार और अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं, और दूसरों को प्रेरित कर उन्हें अपने कर्तव्य बेहतर तरीके से निभाने में मदद कर सकते हैं—तो फिर उन्हें अपने विचार साझा करने चाहिए। यदि तुम अपने लिए सही स्‍थान खोज सकते हो और अपने भाई-बहनों के साथ सद्भाव से कार्य कर सकते हो, तो तुम अपना कर्तव्य पूरा करोगे, और तुम अपने पद के अनुसार आचरण करोगे(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, व्यक्ति के आचरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत)। परमेश्वर के वचनों से मुझे अभ्यास के मार्ग मिले। परमेश्वर हर इंसान को अलग-अलग गुण और काबिलियत प्रदान करता है। वह आशा करता है कि हम उसकी संप्रभुता और व्यवस्थाओं के आगे समर्पित होंगे और अपनी अवस्था में अपने कौशलों का पूरा इस्तेमाल करेंगे। शांग जेन में मुझसे ज्यादा काबिलियत है और वह वास्तविक समस्याएँ हल कर सकती है। उसके टीम-अगुआ होने से काम में लाभ होता है और यह एक अच्छी बात है। मैंने जीवन में बहुत गहराई से प्रवेश नहीं किया है, इसलिए मुझे सुधार करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। यही समझ मुझमें होनी चाहिए थी। मुझे हमेशा डर लगता था कि लोग कहेंगे कि मैं अयोग्य हूँ और मुझमें कम काबिलियत है। ऐसा इसलिए था क्योंकि मेरी प्रकृति बहुत अहंकारी थी और मैं खुद को नहीं समझती थी या सही अवस्था नहीं अपनाती थी। शांग जेन जीवन में प्रवेश करने पर ध्यान केंद्रित करती थी और उसमें भाई-बहनों के लिए प्रेम था। जब उसने मेरी समस्याएँ देखीं, तो वह मुझे सलाह देने और मेरी मदद करने में सक्षम रही। मुझे उसके साथ काम करने का मौका सँजोना चाहिए, उसकी खूबियों से सीखना चाहिए और परमेश्वर द्वारा प्रदान किए गए परिवेश में जीवन में अपने प्रवेश पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इस तरह से अभ्यास करने से जीवन में मेरे प्रवेश में लाभ होगा। इस तरह की मानसिकता से मुझे स्वतंत्रता की समझ प्राप्त हुई। इसके बाद मैंने शांग जेन से ईर्ष्या नहीं की। सभाओं में मैं सक्रिय रूप से उसके साथ संगति और सहयोग कर पाई, मैं जो समझती थी उसके बारे में संगति कर पाई और भाई-बहनों की मदद करने की भरसक कोशिश कर पाई। इस तरह से अभ्यास करने के बाद मुझे शांति और सहजता की ऐसी समझ आई जो पहले कभी नहीं आई थी।

इस अनुभव से गुजरने से मुझे अपनी भ्रष्ट प्रकृति बेहतर ढंग से समझने में मदद मिली। मैंने देखा कि मैं शैतान द्वारा इतनी बुरी तरह से भ्रष्ट कर दी गई थी कि अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे की रक्षा के लिए मैं कुछ भी कर सकती थी और मैं वास्तव में कपटी और द्वेषपूर्ण थी। जब मैं हैसियत के लिए लड़ रही थी और दूसरे लोगों की योग्यताओं से ईर्ष्या कर रही थी, तो यह वास्तव में दर्दनाक था। यह परमेश्वर के वचनों का न्याय और प्रकाशन ही था, जिसने मुझे प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागने का सार स्पष्ट रूप से दिखाया, मुझे ईर्ष्या के बंधनों से मुक्त किया, ताकि मैं और ज्यादा सहज और मुक्त हो सकूँ। मैं अपने दिल की गहराई से परमेश्वर का धन्यवाद करती हूँ!

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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