रुतबे से आजादी पाना

15 दिसम्बर, 2020

दोंग एन, फ्रांस

मैं 2019 में एक कलीसिया की अगुआ बनी। मैंने सारे काम अपने ढंग से किए, अपने कर्तव्य में गैर-जिम्मेदार रही, और मैंने सही लोगों को सही काम नहीं सौंपे, जिससे कलीसिया के जीवन पर बुरा असर पड़ा। मैं पछतावे से भर गई। इसलिए मैंने कलीसिया के काम पर अच्छी पकड़ रखने का संकल्प लिया। उस वक्त दो समूह-अगुआओं को कहीं और नियुक्त करना था, पर उनकी जगह लेने के लिए मुझे दूसरे उपयुक्त लोग नहीं मिले। मैं फिक्र और सोच में डूब गई, "अगर मुझे इन पदों के लिए योग्य लोग नहीं मिल पाए, तो मेरे अगुआ कहेंगे कि मुझे व्यावहारिक कार्य करना नहीं आता। अगर मुझे ही बदल दिया गया तो?" मैंने अपना दिमाग कुरेदा, तो बहन झांग का खयाल आया : वह बहुत काबिल और अपने काम में कुशल थी। वह एक समूह-अगुआ के रूप में बढ़िया रहेगी। यह खयाल आने पर मैंने राहत की साँस ली। मुझे लगा, उस पद के लिए मुझे कोई मिल गया है, और उस काम पर सही व्यक्ति के तैनात होने से मेरा काम अब आसान हो जाएगा।

किंतु उसी पल एक दूसरी कलीसिया की अगुआ बहन ली ने मुझे फोन किया और कहा कि उसकी कलीसिया में बड़ी संख्या में नए धर्मांतरित आ गए हैं और उनके सिंचन के लिए उसके पास ज्यादा लोग नहीं हैं। वह मुझसे नए धर्मांतरितों के सिंचन का प्रभार सँभालने के लिए बहन झांग को उसकी कलीसिया में नियुक्त किए जाने की संभावना के बारे में बात करना चाहती थी। मैं इस विचार के बिलकुल खिलाफ थी। "हमारी कलीसिया का क्या होगा?" मैंने सोचा। "अगर बहन झांग को कहीं और नियुक्त कर दिया गया, तो हम लोग क्या करेंगे? अगर मुझे समूह-अगुआ बनाने के लिए और कोई नहीं मिला और मैं इस काम को ठीक से नहीं सँभाल पाई, तो हो सकता है, मुझे ही बदल दिया जाए!" मुझे चुप देखकर बहन ली ने कहा, "तुम्हारी कलीसिया के ज्यादातर लोग बहुत पुराने विश्वासी हैं और अपनी आस्था में मजबूत हैं। बहन झांग का तबादला किए जाने पर तुम किसी दूसरे को कभी भी प्रशिक्षित कर सकती हो। तुम्हारे काम पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।" मैं वास्तव में यह सब नहीं सुनना चाहती थी और मेरे अंदर प्रतिरोध उमड़ रहा था। मैंने सोचा, "तुम इसे हलके में ले रही हो, मानो किसी को प्रशिक्षित करना इतना आसान है!" मैं जानती थी कि बहन ली की कलीसिया को मदद की जरूरत है, लेकिन मैं अपने भ्रष्ट स्वभाव के नियंत्रण में थी। उसने चाहे जो भी कहा, मैंने उसकी बात मानने से इनकार कर दिया। मैंने यह सोचकर उसे दोष भी दिया कि वह स्वार्थी है और सिर्फ अपनी कलीसिया के बारे में सोच रही है। यह देखकर कि मैं इस विचार के कितनी खिलाफ हूँ, बहन ली ने जोर देना छोड़ दिया। इस बातचीत के बाद मैं बहुत बेचैन हो गई और मन ही मन ठान लिया कि मैं नहीं मानूँगी, और कोई भी कहे, मैं बहन झांग को नहीं छोड़ूँगी। अगले दिन मुझसे इस मुद्दे पर बात करने के लिए मेरी अगुआ आ गई। मैं लगातार उसे बताती रही कि हमारी कलीसिया में लोगों की कितनी कमी है और हम कितनी तकलीफें झेल रहे हैं। मैं अपनी कठिनाइयों के बारे में बोलती रही, ताकि अगुआ को कुछ कहने का मौका न मिले। आखिरकार वह कुछ नहीं बोल सकी, और उसने मुद्दे पर जोर नहीं दिया। इससे मैं प्रसन्न हुई : मैं बहन झांग को रख सकती थी। उस शाम बहन झांग की तरक्की के बारे में चर्चा करने के लिए मैं कुछ उपयाजकों से मिली। पर मैंने उन्हें यह नहीं बताया कि बहन ली अपनी कलीसिया में किन मुश्किलों से जूझ रही है और हमारी अपनी अगुआ भी बहन झांग को वहाँ भेजने के बारे में बात करने आई थी। चूँकि मैंने उन्हें वह सब नहीं बताया, जो कि हुआ था, इसलिए वे सब बहन झांग को समूह-अगुआ बनाने के ले राजी हो गए। मैं खुश हो ही रही थी कि हमारी अगुआ मुझसे और मेरी कार्य-संगिनी से बात करने के लिए आकस्मिक दौरे पर आ गई। अंतत: यह तय कर लिया गया कि काम की जरूरत के मुताबिक बहन झांग का तबादला कर दिया जाएगा। सबको इसके लिए राजी देखकर मैं विरोध नहीं कर पाई, लेकिन मैं इस बात से सचमुच खुश नहीं थी; मुझे लगा मानो किसी ने मेरा दायाँ हाथ काट दिया हो। अगले कुछ दिनों में यह पूरा मामला मन में आने पर मैं वाकई बहुत परेशान रही। अपना काम करने में भी मेरा मन नहीं लगा। मैं रात को बिस्तर पर करवट बदलती रहती, जरा भी सो न पाती, मन में बार-बार इस मामले पर विचार करती रहती। आखिरकार, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : "प्रिय परमेश्वर, मैं बस अपना पद बचाए रखने के लिए बहन झांग को छोड़ने को तैयार नहीं थी। मैं इस बात को मन से निकाल नहीं पा रही। प्रिय परमेश्वर, मेरा मार्गदर्शन करो और मुझे इस हालत से बाहर निकालो। कृपया मुझे खुदगर्जी छोड़ खुद को थोड़ा जानने लायक बनाओ।"

इस प्रार्थना के बाद मैंने परमेश्वर के वचनों में यह पढ़ा : "लोग कभी-कभार ही सत्य का अभ्यास करते हैं; वे अक्सर सत्य से अपना मुंह मोड लेते हैं, और ऐसे भ्रष्ट शैतानी स्वभाव में जीते रहते हैं, जो स्वार्थपूर्ण और घिनौना होता है। वे सिर्फ अपनी प्रतिष्ठा, साख, रुतबे और हितों को देखते हैं, उन्हें सत्य की प्राप्ति नहीं होती है। इसलिए उनके कष्ट बहुत बड़े होते हैं, उनकी चिंताएँ बहुत ज्यादा होती हैं, और उनकी बेड़ियाँ अनगिनत होती हैं"("अंत के दिनों के मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'जीवन में प्रवेश अपने कर्तव्य को निभाने का अनुभव करने से प्रारंभ होना चाहिए')। "क्रूर मानवजाति! साँठ-गाँठ और साज़िश, एक-दूसरे से छीनना और हथियाना, प्रसिद्धि और संपत्ति के लिए हाथापाई, आपसी कत्लेआम—यह सब कब समाप्त होगा? परमेश्वर द्वारा बोले गए लाखों वचनों के बावजूद किसी को भी होश नहीं आया है। लोग अपने परिवार और बेटे-बेटियों के वास्ते, आजीविका, भावी संभावनाओं, हैसियत, महत्वाकांक्षा और पैसों के लिए, भोजन, कपड़ों और देह-सुख के वास्ते कार्य करते हैं। पर क्या कोई ऐसा है, जिसके कार्य वास्तव में परमेश्वर के वास्ते हैं? यहाँ तक कि जो परमेश्वर के लिए कार्य करते हैं, उनमें से भी बहुत थोड़े ही हैं, जो परमेश्वर को जानते हैं। कितने लोग अपने स्वयं के हितों के लिए काम नहीं करते? कितने लोग अपनी हैसियत बचाए रखने के लिए दूसरों पर अत्याचार या उनका बहिष्कार नहीं करते?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दुष्टों को निश्चित ही दंड दिया जाएगा)। परमेश्वर के वचनों ने मेरे दिल को बेध दिया। परमेश्वर ने शैतान द्वारा इंसान को भ्रष्ट किए जाने की बदसूरती, शोहरत और दौलत की खातिर लोगों के आपस में लड़ने-झगड़ने का खुलासा किया—मेरा भी ठीक यही हाल था। मैंने बहन झांग के इस मामले में जो कुछ प्रकट किया था, उसके बारे में सोचा। अगुआ के अपने पद की रक्षा करने के लिए मैंने समग्र रूप से परमेश्वर के घर के कार्य की अनदेखी की, इस डर से कि अगर हमने बहन झांग को जाने दिया तो हमारी कलीसिया के काम पर बुरा असर पड़ेगा, और मैं अगुआ का अपना पद गँवा बैठूँगी। इसी वजह से जब मेरी अगुआ बहन झांग के बारे में बात करने के लिए आई, तो मैंने इनकार करने के लिए तमाम तरह के तर्क पेश कर दिए। सारे फैसले मैंने किए और बहन झांग के कामों की व्यवस्था करने में पहल की। मैंने बहन ली और अपनी अगुआ के साथ चाल चली और उपयाजकों को झाँसा देने का कुचक्र रचा। मैंने कोई कसर नहीं छोड़ी और अपनी शोहरत, दौलत और रुतबे को बचाने के लिए खूब दिमाग लगाया। मैं कितनी ज्यादा स्वार्थी, नीच और कपटी थी! इसने मुझे जंगलराज के जंगली जानवरों की याद दिला दी। वे इलाके और खाने को लेकर एक-दूसरे से लड़ते और उन्हें मार डालते हैं, और सबसे ताकतवर अपना दबदबा जमा लेता है। और यहाँ मैं थी : लोगों पर नियंत्रण करने और अपने पद की रक्षा करने की होड़ में मैं एक जंगली जानवर जैसी बन गई थी, जिसमें बिलकुल भी इंसानियत नहीं थी। मुझे एहसास हुआ कि मेरा व्यवहार कितना भयंकर था। हालाँकि मैं यों जता रही थी मानो मैं बड़ा बोझ ढो रही हूँ, अपनी कलीसिया के काम के बारे में सोच रही हूँ, पर दरअसल गहराई में मैं अपने पद के बारे में सोच रही थी। जैसे कि परमेश्वर के वचन प्रकट करते हैं : "कितने लोग अपने स्वयं के हितों के लिए काम नहीं करते? कितने लोग अपनी हैसियत बचाए रखने के लिए दूसरों पर अत्याचार या उनका बहिष्कार नहीं करते?" शुरू से आखिर तक मैं बहन झांग को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही थी, और उसे छोड़ने को तैयार नहीं थी। मैं उसे अपनी कलीसिया का एक सदस्य मानती थी, और सोचती थी कि उसके काम के बारे में हमारी ही चलनी चाहिए। मुझे प्रभारी बनना था और किसी और को दखल देने का अधिकार नहीं था। मैंने देखा कि मैं कितनी घमंडी हूँ। सीधी-स्पष्ट बात है कि मैं अपनी इंसानियत और समझ खो चुकी थी! तभी मैंने उस वक्त को याद किया, जब मैं धार्मिक लोगों के सामने सुसमाचार का प्रचार करती थी, तब पादरियों ने देखा कि उनकी सभाओं के अनेक सदस्य परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य स्वीकार कर रहे हैं, और उनके पद खतरे में पड़ते जा रहे हैं। उन्होंने लोगों को सच्चे मार्ग की जाँच-पड़ताल करने से रोकने की भरसक कोशिश की। उन्होंने न केवल सुसमाचार फैलाने वालों पर हमला किया, बल्कि बेशर्मी से यह दावा भी किया कि विश्वासी उन्हीं के झुंड के हैं और कोई उन्हें चुराकर नहीं ले जा सकता। तब मुझे एहसास हुआ कि सार रूप में मेरा व्यवहार उन पादरियों के व्यवहार से जरा भी अलग नहीं है। अपना पद और आजीविका बनाए रखने के लिए मैं भाई-बहनों को अपने नियंत्रण में रखना चाहती थी, और परमेश्वर के घर को उन्हें कहीं और नियुक्त नहीं करने देना चाहती थी। मैं परमेश्वर की भेड़ों को हथियाने और इन लोगों के लिए परमेश्वर के साथ होड़ लगाने की कोशिश कर रही थी! इस खयाल से मुझे डर लगने लगा। डर से काँपते हुए मैंने परमेश्वर के सामने जाकर प्रार्थना की : "प्रिय परमेश्वर, मैंने गलती की है। मैंने तुम्हारा प्रतिरोध किया है, और मैं तुम्हारे सामने पश्चात्ताप करना चाहती हूँ।"

जल्दी ही परमेश्वर ने मेरा इम्तहान लेने के लिए फिर एक स्थिति तैयार की। एक दूसरी कलीसिया की अगुआ ने एक संदेश भेजा, जिसमें दस्तावेज-संपादन का कार्यभार सँभालने के लिए किसी को शीघ्रता से भेजने को कहा गया था। उसने सुन रखा था कि हमारी कलीसिया की बहन चेन इस काम में कुशल है और अपना कर्तव्य जिम्मेदारी से पूरा करती है, इसलिए उसने पूछा कि क्या बहन चेन इस पद का कार्यभार सँभाल सकेगी? मैं अच्छी तरह से जानती थी कि बहन चेन इस काम के लिए एकदम सही होगी, लेकिन वह हमारी कलीसिया में एक इंजीलवादी थी, और वह इस काम में भी काबिल थी। अगर बहन चेन का तबादला हो गया और इसके परिणामस्वरूप हमारा सुसमाचार-कार्य प्रभावित हुआ, तो क्या होगा? अगर मेरे व्यावहारिक कार्य करने में अक्षम होने के कारण अगुआ मुझसे निपटी, तो क्या होगा? शायद मैं अपना पद भी न बचा पाऊँ। मैंने तय किया कि बेहतर होगा अगर वे किसी और को ढूँढ़ लें, इसलिए मैंने जानबूझकर उस अगुआ के संदेश का जवाब नहीं दिया। फिर एकाएक मन में कौंधा, "पहले भी मैं अपना पद बनाए रखने के लिए बहन झांग को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुई थी। इस बार मैं इतनी बाधक नहीं हो सकती।" लेकिन मैं अभी भी सचमुच पीड़ा और अंतर्द्वंद्व महसूस कर रही थी। मैंने सोचा, "जब भी किसी को कहीं और नियुक्त करने की जरूरत पड़ती है, तो मैं इतनी प्रतिरोधी क्यों हो जाती हूँ? मैं हमेशा अपने काम पर बुरा असर पड़ने और अपना पद खो देने की फिक्र करती रहती हूँ। मैं शोहरत, दौलत और रुतबे की बेड़ियों और बंधनों से कैसे आजाद हो सकती हूँ?" फिर मैंने परमेश्वर से मौन प्रार्थना की, और उससे रुतबे के पीछे भागने के मेरे सार को समझने में मेरा मार्गदर्शन और अगुआई करने और देह-सुख का त्याग कर सत्य का अभ्यास करने में मेरी मदद करने के लिए कहा।

अपनी आराधना के दौरान मैंने परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़ा : "मसीह-विरोधियों के व्यवहार का सार यह है कि वे लगातार ऐसे बहुत-से साधनों और तरीकों का इस्तेमाल करते रहते हैं, जिनसे वे रुतबा हासिल करने और लोगों को जीतने के अपने लक्ष्य को पूरा कर सकें, ताकि लोग उनका अनुसरण करें और उनका स्तुतिगान करें। संभव है कि अपने दिल की गहराइयों में वे जानबूझकर मानवता को लेकर परमेश्वर से होड़ न कर रहे हों, पर एक बात तो पक्की है, अगर मनुष्यों को लेकर वे परमेश्वर के साथ होड़ न भी कर रहे हों तो भी वे मनुष्यों के बीच रुतबा और शक्ति पाना चाहते हैं। अगर वह दिन आ भी जाए जब उन्हें यह अहसास होने लगे कि वे परमेश्वर के साथ होड़ कर रहे हैं, और वे अपने-आप पर लगाम लगा लें, तो भी वे दूसरे तरीकों का इस्तेमाल करके लोगों के बीच रुतबा और मान्यता पाने की कोशिश करते रहते हैं। संक्षेप में, भले ही मसीह-विरोधी जो कुछ भी करते हैं उससे वे अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन करते प्रतीत होते हैं, और परमेश्वर के सच्चे अनुयायी लगते हैं, पर लोगों को नियंत्रित करने और उनके बीच रुतबा और शक्ति हासिल करने की उनकी महत्वाकांक्षा कभी नहीं बदलेगी। चाहे परमेश्वर कुछ भी कहे या करे, चाहे वह लोगों से कुछ भी चाहता हो, वे वह नहीं करते जो उन्हें करना चाहिए, या अपने कर्तव्य उस तरह से नहीं निभाते कि वे परमेश्वर के वचनों और जरूरतों के अनुरूप हों, न ही वे उसके कथनों और सत्य को समझते हुए शक्ति और रुतबे का मोह ही त्यागते हैं। पूरे समय उनकी महत्वाकांक्षा उन पर सवार रहती है, उनके व्यवहार और विचारों को नियंत्रित और निर्देशित करती है, और उस रास्ते को तय करती है जिस पर वे चलते हैं। यह एक मसीह-विरोधी का सार-संक्षेप है। यहाँ क्या बात रेखांकित होती है? कुछ लोग पूछते हैं, 'क्या मसीह-विरोधी वे लोग नहीं हैं जो लोगों को जीतने के लिए परमेश्वर से होड़ करते हैं, और जो उसे नहीं मानते?' वे परमेश्वर को मानने वाले भी हो सकते हैं, वे सही तौर पर उसे मानने वाले और उसके अस्तित्व में विश्वास रखने वाले हो सकते हैं, वे उसका अनुसरण करने और सत्य की खोज के इच्छुक भी हो सकते हैं, पर एक चीज कभी नहीं बदलेगी : वे शक्ति और रुतबे की अपनी महत्वाकांक्षा का त्याग कभी नहीं करेंगे, न ही वे अपने वातावरण के कारण या अपने प्रति परमेश्वर के रवैये के कारण इन चीजों का पीछा करना छोड़ेंगे। ये एक मसीह-विरोधी की विशिष्टताएँ हैं। किसी व्यक्ति ने कितना ही कष्ट क्यों न उठाया हो, उसने सत्य को कितना ही क्यों न समझ लिया हो, उसने कितनी ही सत्य-वास्तविकताओं में प्रवेश क्यों न कर लिया हो, उसे परमेश्वर का कितना ही ज्ञान क्यों न हो, इन बाहरी प्रतिभासों और अभिव्यक्तियों से परे, वह व्यक्ति कभी भी रुतबे और शक्ति के लिए अपनी महत्वाकांक्षा और प्रयासों पर न तो लगाम लगाएगा और न ही इनका परित्याग करेगा, और इससे उसका प्रकृति सार स्पष्ट रूप से निर्धारित हो जाता है। ऐसे लोगों को मसीह-विरोधियों के रूप में परिभाषित करने में परमेश्वर ने जरा-सी भी गलती नहीं की है, इसे उनके प्रकृति सार ने ही निर्धारित कर दिया है"("अंत के दिनों के मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'नायकों और कार्यकर्ताओं के लिए, एक मार्ग चुनना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है (3)')। परमेश्वर ने मसीह-विरोधियों की प्रकृति और लक्षण इस रूप में प्रकट किए कि वे सत्ता और रुतबे को सँजोने वाले होते हैं और इन चीजों को अपने जीने का प्रयोजन मानते हैं। उनके हर काम की जड़ और प्रेरणा शोहरत, दौलत और रुतबे की उनकी आकांक्षा होती है, इस हद तक कि वे परमेश्वर की भेड़ों को भी अपनी मानते हैं, परमेश्वर का विरोध करते हैं, और प्रायश्चित करने से साफ इनकार कर देते हैं, जब तक कि अंतत: उन्हें उजागर करके हटा नहीं दिया जाता। परमेश्वर के वचनों का चिंतन करके मैं भयभीत होने लगी। मैंने सचमुच अपने रुतबे को सँजोया था। तब पहली बार, मैंने अपना पद बचाने के लिए बहन झांग की कहीं और नियुक्ति से इनकार कर दिया था। अब इस बार, मैं अपने पद की खातिर बहन चेन को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी। मैंने बस अपने रुतबे के बारे में सोचा और परमेश्वर के घर के कार्य के बारे में सोचना तो दूर, परमेश्वर की इच्छा पर भी कोई ध्यान नहीं दिया। परमेश्वर के घर के कार्य की कीमत पर भी मैं अपना पद बनाए रखने के लिए कृतसंकल्प थी, यहाँ तक कि अपने रुतबे की खातिर लोगों पर नियंत्रण करने के लिए मैं परमेश्वर के साथ होड़ लगाने में भी सक्षम थी। परमेश्वर के प्रति मेरा सम्मान कहाँ था? मेरी आस्था परमेश्वर में नहीं थी; मैंने अपनी आस्था रुतबे और सत्ता में रखी थी, और क्या यह किसी मसीह-विरोधी की प्रकृति नहीं थी? मैं अच्छी तरह जानती थी कि बहन चेन दस्तावेज-संपादन में कुशल है और उसे इस तरह के काम में आनंद आता है। लेकिन अपने पद को बचाए रखने के लिए मैंने उसकी राय नहीं पूछी थी, न ही मैंने उसे उसकी क्षमता के अनुरूप किसी उपयुक्त काम में लगाया था, इसके बजाय मैंने उसके मालिक जैसा व्यवहार किया और उसे दूसरी कलीसिया में जाकर काम करने देने से मना कर दिया। मैं कलीसिया को अपने इलाके की तरह ले रही थी और मेरे कहे बिना किसी को भी कहीं और नियुक्त नहीं किया जा सकता था। क्या मैं किसी मसीह-विरोधी की ही तरह लोगों को पिंजरे में बंद कर उन पर नियंत्रण करने की कोशिश नहीं कर रही थी? अपने पद पर मजबूत पकड़ बनाने के लिए मैंने क्षमता और हुनर वाले भाई-बहनों को अपनी कलीसिया में रखने की कोशिश की। मैंने उनके साथ इस तरह व्यवहार किया, मानो वे मेरी अपनी संपत्ति हों, और मैंने उन पर राज किया और चाहा कि मेरे पद के लिए ज्यादा लोग मेहनत करें। परमेश्वर ने मेरी इस महत्वाकांक्षा से वाकई घृणा की और मैं शापित होने के योग्य हूँ! मैंने देखा कि परमेश्वर में इतने वर्षों की आस्था के बाद भी अनुसरण के बारे में मेरी सोच नहीं बदली है, और मैं शोहरत, दौलत और रुतबे की बेड़ियों में कसकर जकड़ी हुई हूँ और मसीह-विरोधियों की राह पर चल रही हूँ। तब मेरे मन में एक मसीह-विरोधी का खयाल आया, जिसे मैं जानती थी। वह हमेशा शोहरत, दौलत और रुतबे के पीछे भागता था, अगुआ बनने के बाद उसने लोगों को अपने नियंत्रण में करके अपनी खुद की स्वतंत्र जागीर बनाने की कोशिश की और अपने पद को मजबूत करने का प्रयास किया। उसने सत्य को बिलकुल स्वीकार नहीं किया और वह एक तानाशाह की तरह पेश आया। उसने परमेश्वर के घर के कार्य में गंभीर अड़चनें पैदा कीं, और आखिर में उसे उजागर करके हटा दिया गया। मुझे एहसास हुआ कि शोहरत, दौलत और रुतबे का अनुसरण मसीह-विरोधियों का मार्ग है, जो नरक में ले जाएगा! परमेश्वर ने मुझे उजागर करने के लिए बार-बार हालात पैदा किए, ताकि मैं अपनी शैतानी प्रकृति को पहचान सकूँ और समझ सकूँ कि मैं गलत रास्ते पर हूँ, ताकि मैं समय रहते वापस लौट सकूँ। ये हालात मुझ पर उसका न्याय थे, बल्कि उससे भी ज्यादा वे परमेश्वर का महान प्रेम और उद्धार थे! जब मैंने परमेश्वर के उन श्रमसाध्य प्रयासों के बारे में चिंतन किया, तो मैं झुकने लगी और तब मैंने ऐसे हालात के प्रति प्रतिरोध महसूस नहीं किया। मैंने अनुभव किया कि परमेश्वर की हर व्यवस्था ठीक मेरी जरूरत के अनुसार थी। मैं सचमुच पश्चात्ताप करना चाहती थी और उन स्थितियों को विनम्र हृदय से अनुभव करना चाहती थी।

बाद में मैंने परमेश्वर के वचनों के दो अंश पढ़े। "कर्तव्य क्या है? कर्तव्य तुम लोगों द्वारा प्रबंधित नहीं है—यह तुम्हारा अपना कार्यक्षेत्र या तुम्हारी अपनी रचना भी नहीं है। इसकी बजाय, यह परमेश्वर का कार्य है। परमेश्वर के कार्य के लिए तुम लोगों के सहयोग की आवश्यकता है, जो तुम लोगों के कर्तव्य को उत्पन्न करता है। परमेश्वर के कार्य का वह हिस्सा जिसमें मनुष्य को अवश्य सहयोग करना चाहिए वह है उसका कर्तव्य। कर्तव्य परमेश्वर के कार्य का एक हिस्सा है—यह तुम्हारा कार्यक्षेत्र नहीं है, तुम्हारा घरेलू मामला नहीं है, और न ही यह तुम्हारा व्यक्तिगत मामला है। चाहे तुम्हारा कर्तव्य आंतरिक या बाहरी मामलों से निपटना हो, यह परमेश्वर के घर का कार्य है, यह परमेश्वर की प्रबंधन योजना के एक हिस्से का निर्माण करता है, और यही वह आदेश है जो परमेश्वर ने तुम्हें दिया है। यह तुम लोगों का व्यक्तिगत कारोबार नहीं है"("अंत के दिनों के मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'केवल सत्य के सिद्धांतों की खोज करके ही अपना कर्तव्य अच्छी तरह निभाया जा सकता है')। "तुम जो भी कार्य करो, उसे परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार करो। उदाहरण के लिए, अगर तुम्हें कलीसिया के अगुआ के रूप में चुना गया है, तो अगुआई करना तुम्हारा कर्तव्य है—अगर तुम इसे अपना कर्तव्य मानते हो तो तुम्हें इसे कैसे करना चाहिए? (परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुरूप।) परमेश्वर की अपेक्षाओं के अनुसार काम करना इसे कहने का एक आम तरीका है। इसका खास ब्यौरा क्या है? सबसे पहले, तुम्हें यह मालूम होना चाहिए कि यह एक कर्तव्य है, यह कोई ओहदा नहीं है। अगर तुम सोचोगे कि तुम्हें एक ओहदा मिल गया है तो इससे समस्याएँ पैदा हो जाएँगी। लेकिन अगर तुम लोग कहते हो, 'मुझे कलीसिया के अगुआ के रूप में चुना गया है, इसलिए मुझे दूसरों से एक दर्जा नीचे रहने की जरूरत; तुम सब मुझसे ऊपर हो और मुझसे बड़े हो,' तो यह भी एक गलत रवैया है; अगर तुम सत्य को नहीं समझते हो तो कितना भी दिखावा करने से तुम्हारा कोई भला नहीं होगा। तुम्हें सत्य की सही समझ होनी चाहिए। सबसे पहले, तुम लोगों को यह मालूम होना चाहिए कि यह कर्तव्य बहुत महत्वपूर्ण है। किसी कलीसिया के दर्जनों सदस्य होते हैं, और तुम्हें यह सोचना होगा कि इन लोगों को परमेश्वर के सामने कैसे लाया जाए और इनमें से बहुसंख्यक लोगों को सत्य को समझने और सत्य-वास्तविकता में प्रवेश करने के योग्य कैसे बनाया जाए। इसके साथ ही, कमजोर और ढीले लोगों के मामले में तुम्हें उन्हें उनकी कमजोरी और ढीलेपन से मुक्ति दिलाने का प्रयास करना होगा, ताकि वे सक्रिय रूप से अपने कर्तव्यों का पालन कर सकें, और जो लोग अपने कर्तव्यों का पालन करने में सक्षम हैं, तुम्हें उन्हें पूरे मनोयोग से इनका पालन करने में सक्षम बनाना होगा। उन्हें अपने कर्तव्यों का पालन करने से जुड़े सत्यों को समझाओ, ताकि वे उनका पालन करने में कोई ढील न बरतें और उन्हें अच्छी तरह से संपन्न करें, और परमेश्वर के साथ एक सामान्य सम्बंध बना सकें। ऐसे लोग भी होते हैं जो विघ्न और व्यवधान डालते हैं, या जो वर्षों से परमेश्वर में विश्वास करते रहे हैं पर एक दुष्ट मानवता रखते हैं; इन लोगों मे से जिनका निपटारा होना है उनका निपटारा होगा, और जिनका शुद्धिकरण होना है उनका शुद्धिकरण होगा। हर व्यक्ति के लिए उसकी किस्म के अनुसार उपयुक्त व्यवस्थाएँ की जाएँगी। यह भी महत्वपूर्ण है कि जो थोड़े-से अपेक्षाकृत भली मानवता वाले लोग कलीसिया में आते हैं, जिनमें कुछ क्षमता होती है, जो किसी काम के एक पहलू की जिम्मेदारी ले सकते हैं, उन सबको भी विकसित करने की जरूरत है। ... तुम्हें हर व्यक्ति का अधिकतम उपयोग करना होगा, उनकी व्यक्तिगत क्षमताओं का पूरा-पूरा लाभ उठाना होगा और उनकी योग्यता के अनुसार उनके लिए उपयुक्त जिम्मेदारियाँ तय करनी होंगी, उनकी क्षमता का स्तर क्या है, उनकी उम्र क्या है, वे कितने समय से परमेश्वर में विश्वास करते रहे हैं। तुम्हें हर किस्म के व्यक्ति के लिए उसके अनुकूल एक साँचे में ढली योजना बनानी होगी, जो हर व्यक्ति के अनुसार बदलती रहेगी, ताकि वे परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्यों को पूरा कर सकें और अपने कार्यों को अधिकतम ऊंचाई तक ले जा सकें"("अंत के दिनों के मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'कर्तव्‍य का समुचित निर्वहन क्‍या है?')। परमेश्वर के वचनों ने मुझे दिखाया कि कर्तव्य किसी का निजी उद्यम नहीं होता। हमारा कर्तव्य परमेश्वर से आता है और हमें उसे उसकी अपेक्षा के अनुसार ही निभाना चाहिए। लोगों को प्रशिक्षण देना ऐसी चीज है, जिसकी परमेश्वर अगुआओं से अपेक्षा करता है। परमेश्वर ने अपने कार्य के लिए सभी प्रकार के कुशल लोग तैयार किए हैं और एक कलीसिया की अगुआ के रूप में मुझे अपना कर्तव्य उसकी अपेक्षाओं और सिद्धांतों के अनुसार निभाना चाहिए। जब मुझे कोई प्रतिभाशाली व्यक्ति मिले, तो मुझे उसे प्रशिक्षित कर उसकी सिफारिश करनी चाहिए, ताकि हर कोई सही जगह पर अपनी क्षमताओं का पूरा विकास कर सके, अपना कर्तव्य निभा सके, और सुसमाचार-कार्य बेहतर ढंग से फैलाने के लिए अपना-अपना कार्य पूरा कर सके। सिर्फ यही परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप है, और भाई-बहन भी यही करना चाहते हैं। एक बार परमेश्वर की इच्छा को समझ लेने के बाद मैंने उस दूसरी कलीसिया की अगुआ को एक संदेश भेजकर इस बात की पुष्टि कर दी कि मैं बहन चेन को उनके यहाँ स्थानांतरित कर दूँगी। इस तरह से अभ्यास शुरू करने पर मेरे दिल को बड़ा सुकून मिला। फिर मैंने परमेश्वर के आशीष देखे। मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि उस साल नवंबर में हमारे सुसमाचार-कार्य से हासिल नए धर्मांतरितों की संख्या पिछले महीने के मुकाबले तीन गुना ज्यादा हो गई। मैं जानती थी कि यह परमेश्वर के कार्य से ही हासिल हो सका है, और मैं उसका धन्यवाद और उसका गुणगान करने से नहीं रुक पाई!

पहले, शोहरत और दौलत के लिए होड़ लगाने या शोहरत, दौलत और रुतबे का अनुसरण करने की भ्रष्टताओं के लिए मैंने कभी घृणा का अनुभव नहीं किया था। मेरा खयाल था कि यह देखकर कि जब हर कोई शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया है, तो फिर हम सभी का स्वभाव एक-जैसा होगा, और यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे दो-चार दिन में बदला जा सके। इस सोच ने मुझे समस्या को सुलझाने के लिए सत्य की खोज करने से रोक दिया था। परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना से गुजरकर, और परीक्षा लिए जाने और उजागर किए जाने के कारण आखिरकार मैं उन चीजों का अनुसरण करने के सार को कुछ हद तक समझ गई। मैंने देखा कि ऐसी चीजों का अनुसरण करना परमेश्वर का प्रतिरोध करना है, और मैं दिल की गहराई से खुद से नफरत करने लगी। मैं सत्य का अनुसरण करने, प्रायश्चित करने और बदलने को तैयार हो गई। यह परमेश्वर के कार्य के कारण ही है कि अब मैं देह-सुख का त्याग करने और सत्य का कुछ अभ्यास करने में सक्षम हूँ। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद!

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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