मैं एक झूठी अगुआ कैसे बनी
2019 के अंत में, मुझे कलीसिया के वीडियो कार्य का प्रभारी बना दिया गया। मैं बहुत दबाव महसूस करने लगी क्योंकि इस काम के लिए जो कौशल चाहिए था, वह मैंने पहले कभी सीखा नहीं था। इस अनजाने काम का मिलना ऐसा था मानो मेरे सीने पर भारी बोझ रख दिया गया हो। मैं जब काम की प्रगति का जायजा लेती, तो समूह अगुआ अक्सर तकनीकी मुद्दों पर चर्चा करते और मैं वहाँ बैठकर उनकी आधी बातें ही समझ पाती थी। अगर वे किसी बात पर असहमत होते, तो मेरे विचार और सुझाव मांगते और मैं बहुत घबरा जाती, क्योंकि मुझे तो यही समझ नहीं आता था कि समस्या क्या है। कभी-कभार जो मेरे मन में आता, वह सुझाव दे देती, लेकिन उसे स्वीकार नहीं किया जाता था। जब कभी ऐसा होता तो मुझे बड़ी शर्मिंदगी महसूस होती। मैं कलीसिया अगुआ थी, अगर मैं इन समस्याओं को न देख पाऊँ या उन्हें ठीक करने का कोई उपाय न सुझा पाऊँ, तो भाई-बहन मेरे बारे में क्या सोचेंगे? जब कई बार इस तरह की बातें हो गईं, तो मेरा मन नहीं हुआ कि मैं काम की चर्चाओं में हिस्सा लूँ। मैंने सोचा, “इस प्रकार की तकनीकी समस्याएँ वाकई मेरी समझ से परे हैं और अब सीखने का समय भी निकल चुका है। वे लोग वीडियो बनाते हैं, बेहतर होगा कि मैं काम के उस हिस्से पर उन्हें ही चर्चा करने दूँ। मैं इस मामले में उन्हें कुछ नहीं बता सकती, हाँ, मैं उनके जीवन प्रवेश में जरूर मदद कर सकती हूँ। अगर उनकी स्थिति सामान्य रहे और वे तकनीकी पहलुओं को संभाल सकें तो क्या तब भी मैं अपना कर्तव्य अच्छे से नहीं निभा रही होऊँगी? इस तरह, उनके सामने मुझे शर्मिंदगी नहीं उठानी पड़ेगी।” इन सब बातों पर विचार कर, कार्य पर चर्चा करने का काम मैंने उन्हीं पर छोड़ दिया और मैंने भाग लेना बंद कर दिया।
कुछ समय के उपरांत, मैंने पाया कि वीडियो बनाने का काम बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रहा है, एक तो कुछ सैद्धांतिक समस्याएं आ खड़ी हुईं, दूसरा, भाई-बहन साथ मिलकर काम नहीं कर रहे थे। समूह अगुआ, बहन सारा के खिलाफ एक के बाद एक कई बहनों की शिकायत मेरे पास आने लगीं कि वह दूसरों पर रोब झाड़ती है, कुछ कार्य चर्चाओं में उसने लोगों को अपनी बात मानने पर मजबूर किया, जिसकी वजह से वीडियो पर बार-बार काम करना पड़ा। मैंने सोचा, “सारा तो बहुत काबिल है। हालाँकि उसका स्वभाव थोड़ा अहंकारी है, लेकिन वह अपने काम में काफी कुशल है। प्रतिभाशाली लोगों का थोड़ा-बहुत अहंकारी होना तो सामान्य-सी बात है, मुझे बस उसके साथ संगति करनी होगी।” इसलिए मैंने परमेश्वर के वचन लेकर उसके साथ संगति की कि लोगों से कैसे सहयोग करना चाहिए और उसे क्या सबक सीखने चाहिए। सारा ने मेरी बातों को स्वीकार कर खुद को बदलने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन उसके कुछ ही समय बाद बहन एल्सी मेरे पास आई और कहा कि उसने काफी मेहनत करके एक वीडियो बनाया है, लेकिन सारा ने वीडियो देखते ही उसे खारिज कर दिया और बातचीत करने की कोई गुंजाइश ही नहीं छोड़ी। इस बात को लेकर एल्सी बहुत परेशान हो गई, उसने मुझसे पूछा कि इस समस्या को कैसे सुलझाया जाए। मैंने सोचा, “एल्सी ने जो वीडियो बनाया है, क्या वाकई उसमें कोई गड़बड़ी है या इस मामले में सारा का अहंकारी स्वभाव आड़े आ रहा है?” मैंने एल्सी को विस्तार से स्थिति बताने को कहा, ताकि मुझे ठीक-ठीक पता चल सके कि आखिर समस्या क्या है, लेकिन फिर ख्याल आया कि मुझे तो उस काम की कोई समझ ही नहीं है। अगर उसने मुझे बताया और मैं समस्या समझ नहीं पाई, तो वह मेरे बारे में क्या सोचेगी? मैंने सोचा, “छोड़ो, जाने दो, उन्हें इस मुद्दे को आपस में ही निपटाने देती हूँ। बेहतर होगा कि मैं एल्सी के साथ उसकी स्थिति के बारे में संगति करूं और उससे कहूँ कि वह इसे काट-छांट के रूप में अनुभव करे। अगर वह इस मामले में सही नजरिया रखे, तो सारा के साथ काम करने की उसकी समस्या हल हो जाएगी।” तो मैंने एल्सी के साथ संगति कर उससे कहा कि वह लोगों की सलाह माने, अपने अहंकार को आड़े न आने दे, पहले सत्य का अभ्यास करे और लोगों के साथ अच्छे से सहयोग करे। मेरी बात सुनने के बाद भी एल्सी की त्योरियाँ चढ़ी रहीं और वह निराश होकर चली गई। मैं भी बहुत परेशान थी, क्योंकि मैं जानती थी कि अभी भी उसकी समस्या का समाधान नहीं हुआ है। मैं देखना चाहती थी कि एल्सी के वीडियो में क्या समस्या है, लेकिन मुझे चिंता थी कि मैं इसका पता नहीं लगा पाऊंगी और नाकाबिल दिखूँगी। मैंने सोचा, “जाने दो, उन्हें आपस में ही इस समस्या का समाधान खोजने देती हूँ।” फिर मैं सारा के साथ संगति करने गई ताकि उसकी स्थिति हल कर सकूँ। मैंने उससे साफ कहा बताया कि उसका स्वभाव अहंकारी है, उसे दूसरों के साथ मिलकर काम करना चाहिए और एक-दूसरे की क्षमताओं से सीखना चाहिए, भले ही उसके पास अच्छे सुझाव हों, उसे दूसरों के साथ उन पर चर्चा करनी चाहिए। सारा ने वादा किया कि वह खुद को बदलेगी, लेकिन उसके बावजूद, उसका अहंकार कायम रहा, उसे यही लगता कि उसकी राय दूसरों से बेहतर है। वह खुद को ज्यादा कुशल और अनुभवी समझती और सोचती कि दूसरे उससे कमतर हैं और जब वह उनके साथ काम करती तो यही सोचती कि अंतिम निर्णय उसी का होना चाहिए। यदि भाई-बहन ऐसी किसी प्रोडक्शन योजना पर सहमत होते जिससे सारा सहमत न होती, तो वह उसे नकार देती और उसके हिसाब से फिर बनाने को कहती। अगर दूसरों को लगता कि उसकी योजना ठीक नहीं है और कोई सलाह देते, तो वह उसे कभी स्वीकार न करती और उनकी सलाह को बेकार कहकर खारिज कर देती। भाई-बहन उससे बातचीत ही न कर पाते और उन्हें फिर से उस पर काम करना पड़ता। सबकी हालत बद से बदतर होती जा रही थी और वे नकारात्मकता में जीने लगे थे। यह देखकर कि सारा अहंकारी और दंभी है, खुद को ही कानून समझती है और उसके कारण काम की प्रगति गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है, तो मुझे बहुत बेचैनी महसूस होने लगी, लेकिन मैं उन तकनीकी मुद्दों पर अपनी पकड़ नहीं बना पाई थी। उस समय मुझे थोड़ा आभास था कि सारा सत्य नहीं स्वीकारती और न ही उसने पश्चात्ताप करके खुद को बदला है। शायद वह अब इस काम के लायक नहीं है। लेकिन फिर मुझे लगा कि वह इस मामले में दूसरों से बेहतर है और अगर उसे बर्खास्त कर दिया, तो क्या कोई और इस काम को संभालने लायक होगा। अनिश्चय की स्थिति में मैं अपने वरिष्ठ अगुआओं की जानकारी में इस बात को लाना चाहती थी, लेकिन फिर मुझे चिंता हुई कि अगर उन्होंने देख लिया कि मैंने अपने काम में गड़बड़ी की है, तो शायद वे मेरी काट-छाँट कर मुझे बर्खास्त कर सकते हैं। इस उधेड़बुन के चलते, मैंने सारा के साथ फिर से संगति करने का फैसला किया। मैंने उससे मिलकर उसे उसके अहंकारी स्वभाव के बारे में बताया, तानाशाह होने और अपनी ही राय पर अड़े रहने के लिए उसे उजागर किया। मैंने उससे कहा कि वह एक मसीह-विरोधी के मार्ग पर चल रही है। यह सुनने के बाद वह एक शब्द नहीं बोली, लेकिन यह स्पष्ट था कि उसके अंदर प्रतिरोध का भाव था। उसके बाद भी, वह मनमर्जी चलाती रही और अक्सर दिखावा करके दूसरों को नीचा दिखाती रही। अधिकांश भाई-बहन विवश महसूस कर रहे थे और उसके साथ काम नहीं करना चाहते थे। उसकी गड़बड़ी और व्यवधान के कारण, वीडियो के काम में देरी हो गई। आखिरकार, मेरे पास उच्च स्तर के अगुआओं को इस मुद्दे की रिपोर्ट करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। जांच-पड़ताल के बाद, सारा को समूह अगुआ के पद से बर्खास्त कर दिया गया और मुझे वास्तविक कार्य न करने या वास्तविक समस्याओं को हल न करने के कारण हटा दिया गया।
बर्खास्तगी के बाद, मैंने माना कि मैं काबिल नहीं थी, मुझे उस काम की कोई समझ नहीं थी और वास्तविक कार्य नहीं कर सकती थी। मुझे अपनी ही समस्याओं की कोई वास्तविक समझ नहीं थी। बाद में, जब मैंने झूठे अगुआओं की विभिन्न अभिव्यक्तियों को समझने के बारे में परमेश्वर की संगति पढ़ी, तो मैंने जो कुछ किया था, उन बातों पर चिंतन कर उन्हें समझना शुरू किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “नकली अगुआ सतही कार्य करने में माहिर होते हैं, लेकिन वे कभी भी वास्तविक कार्य नहीं करते। वे विभिन्न पेशेवर कार्यों का निरीक्षण, पर्यवेक्षण या मार्गदर्शन नहीं करते, या समय-समय पर यह पता नहीं लगाते कि विभिन्न टीमों में क्या चल रहा है, यह निरीक्षण नहीं करते कि कार्य किस तरह से आगे बढ़ रहा है, क्या समस्याएँ हैं, क्या टीम सुपरवाइजर अपना काम करने में निपुण हैं, और भाई-बहन सुपरवाइजरों के बारे में कैसी सूचना देते हैं या उनका कैसा मूल्यांकन करते हैं। वे यह नहीं जाँचते हैं कि टीम के अगुआ या सुपवाइजर किसी को बेबस तो नहीं कर रहे हैं, क्या लोगों के सही सुझावों को अपनाया जा रहा है या नहीं, क्या किसी प्रतिभाशाली व्यक्ति या सत्य का अनुसरण करने वाले व्यक्ति को दबाया या बहिष्कृत तो नहीं किया जा रहा है, क्या किसी सीधे-सादे व्यक्ति को धमकाया तो नहीं जा रहा है, क्या नकली अगुआओं को उजागर कर उनकी सूचना देने वाले लोगों पर हमला तो नहीं किया जा रहा है, उनसे बदला तो नहीं लिया जा रहा है, उन्हें हटाया या निष्कासित तो नहीं किया जा रहा है, क्या टीम के अगुआ या सुपरवाइजर बुरे लोग तो नहीं हैं और क्या किसी को सताया तो नहीं जा रहा है। अगर नकली अगुआ इनमें से कोई भी ठोस कार्य नहीं करते तो उन्हें बरखास्त कर दिया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, मान लो कि कोई व्यक्ति नकली अगुआ को सूचना देता है कि एक सुपरवाइजर अक्सर लोगों को बेबस करता है और दबाता है। सुपरवाइजर ने कुछ कार्य गलत किए हैं, लेकिन वह भाई-बहनों को कोई सुझाव नहीं देने देता और वह खुद को सही साबित करने और अपना बचाव करने के बहाने भी तलाशता है और कभी अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं करता। क्या ऐसे सुपरवाइजर को तुरंत बरखास्त नहीं किया जाना चाहिए? ये ऐसी समस्याएँ हैं जिन्हें अगुआओं को समय रहते ठीक कर लेना चाहिए। कुछ नकली अगुआ अपने द्वारा नियुक्त सुपरवाइजरों को उजागर नहीं होने देते, फिर चाहे उनके काम में कोई भी समस्या क्यों न पैदा हो रही हो, और वे निश्चित रूप से उनकी रिपोर्ट उच्च अधिकारियों तक नहीं जाने देते—यहाँ तक कि वे लोगों को समर्पण करना सीखने को कहते हैं। यदि कोई व्यक्ति सुपरवाइजर से जुड़ी समस्याएँ उजागर करता है, तो ये नकली अगुआ यह कहते हुए उन्हें बचाने या वास्तविक तथ्यों को छिपाने की कोशिश करते हैं कि ‘सुपरवाइजर के जीवन प्रवेश में समस्या है। उसका अहंकारी स्वभाव होना सामान्य है—थोड़ी-सी भी काबिलियत वाला हर इंसान अहंकारी होता है। यह कोई बड़ी बात नहीं है, मुझे बस उनके साथ थोड़ी संगति करने की आवश्यकता है।’ संगति में सुपरवाइजर अपना पक्ष रखता है, ‘मैं मानता हूँ कि मैं अभिमानी हूँ। मैं मानता हूँ कि ऐसे मौके होते हैं जब मैं अपने घमंड, गर्व और रुतबे की परवाह कर दूसरे लोगों के सुझाव स्वीकार नहीं करता। लेकिन दूसरे लोग इस पेशे में अच्छे नहीं हैं, वे अक्सर बेकार सुझाव देते हैं, यही कारण है कि मैं उनकी बातें नहीं सुनता।’ नकली अगुआ स्थिति को पूरी तरह से समझने की कोशिश नहीं करता, वह सुपरवाइजर के कार्य के नतीजे नहीं देखता और उनकी मानवता, स्वभाव और अनुसरण कैसे हैं, इस पर तो बिल्कुल भी ध्यान नहीं देता। वह बस चीजों को कम आँकते हुए कहता है, ‘मुझे यह सूचना दी गई थी, इसलिए मैं तुम पर नजर रख रहा हूँ। मैं तुम्हें एक और मौका दे रहा हूँ।’ इस बातचीत के बाद सुपरवाइजर कहता है कि वह पश्चात्ताप करने के लिए तैयार हैं, लेकिन नकली अगुआ इस बात पर कोई ध्यान नहीं देता कि उस सुपरवाइजर ने बाद में वास्तव में पश्चात्ताप किया या नहीं, या सिर्फ झूठ बोला है और धोखा दिया है” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (3))। “नकली अगुआ अत्यंत नीरस और सतही तरीके से काम करते हैं : वे लोगों को बातचीत के लिए बुलाते हैं, थोड़ा मानसिक कार्य करते हैं, लोगों को थोड़ा प्रोत्साहित करते हैं और सोचते हैं कि यही असली कार्य है। यह सतही है, है न? और इस सतहीपन के पीछे कौन-सी समस्या छिपी है? क्या यह बुद्धिहीनता नहीं है? नकली अगुआ बेहद बुद्धिहीन होते हैं और वे लोगों और चीजों को भी अत्यंत बुद्धिहीन ढंग से देखते हैं। लोगों के भ्रष्ट स्वभावों का समाधान करने से ज्यादा कठिन कुछ नहीं है—तेंदुआ अपने धब्बे नहीं बदल सकता। नकली अगुआ इस समस्या की असलियत बिल्कुल नहीं समझ पाते। इसलिए जब कलीसिया में ऐसे सुपरवाइजरों की बात आती है जो लगातार बाधाएँ पैदा करते हैं, जो हमेशा लोगों को बेबस करते और पीड़ा पहुँचाते हैं तो नकली अगुआ उनसे बात करने, और चंद शब्दों में उनकी काट-छाँट करने के सिवाय कुछ नहीं करता, और बस काम खत्म। वे उन्हें तुरंत बरखास्त कर उनमें फेरबदल नहीं करते। नकली अगुआओं का यह दृष्टिकोण कलीसिया के कार्य को बहुत नुकसान पहुँचाता है और अक्सर कुछ बुरे लोगों के बाधा डालने के कारण कलीसिया का कार्य अटक जाता है, उसमें देरी होती है, क्षति होती है और वह सामान्य रूप से, सुचारु रूप से और कुशलता से आगे नहीं बढ़ पाता—यह सब नकली अगुआओं द्वारा अपनी भावनाओं के आधार पर कार्य करने, सत्य सिद्धांतों का उल्लंघन करने और गलत लोगों का उपयोग करने का गंभीर दुष्परिणाम होता है। बाहरी तौर पर देखें तो नकली अगुआ मसीह-विरोधियों की तरह जानबूझकर असंख्य बुरे काम नहीं कर रहे होते, न ही अपने तरीके से काम कर रहे होते हैं और न अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर रहे होते हैं। लेकिन नकली अगुआ कलीसिया के कार्य में आने वाली विभिन्न समस्याओं को तुरंत हल करने में सक्षम नहीं होते और जब विभिन्न टीमों के सुपरवाइजरों में समस्याएँ आती हैं और जब ये सुपरवाइजर अपने कार्य की जिम्मेदारी उठाने में असमर्थ होते हैं तो नकली अगुआ उनके कर्तव्यों को तुरंत बदल नहीं पाते या उन्हें बरखास्त नहीं कर पाते, जिससे कलीसिया के कार्य को गंभीर नुकसान होता है। और इस सबका कारण यह है कि नकली अगुआ अपने कर्तव्य में लापरवाही बरतते हैं” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (3))। परमेश्वर के ये वचन पढ़कर मैं बहुत दुखी हुई, मेरा दिल टूट गया। मुझे लगा कि परमेश्वर जिस झूठे अगुआ का वर्णन कर रहा है वह मैं ही हूँ। परमेश्वर ने खुलासा किया कि झूठे अगुआ वास्तविक कार्य नहीं करते, निरीक्षण नहीं करते, पर्यवेक्षण या प्रत्यक्ष कार्य नहीं करते, कभी वास्तविक समस्याओं को प्रत्यक्ष रूप से समझने या विशिष्ट कार्यों पर अनुवर्ती कार्रवाई करने का प्रयास नहीं करते। जब कोई निरीक्षक की किसी समस्या की रिपोर्ट करता है, तो वे न तो कभी पूरी तरह से जांच करते हैं और न ही निरीक्षक के सार और उसके काम के प्रभावों को समझने का प्रयास करते हैं। वे केवल उनके साथ संगति करके थोड़ा-बहुत वैचारिक काम करते हैं और सोचते हैं कि इससे समस्या का समाधान हो जाएगा। इसका मतलब है कि वे अनुचित निरीक्षकों को तुरंत स्थानांतरित नहीं करते, जिससे काम को गंभीर नुकसान होने लगता है। मेरा व्यवहार भी तो ठीक वैसा ही था जिसका खुलासा परमेश्वर ने किया था। मैं शायद ही कभी काम में शामिल होती थी। मैं न तो कभी उस बारे में पूछताछ करती कि प्रगति कैसी चल रही है और न ही कभी कोई मार्गदर्शन प्रदान करती। मुझे पता था कि वीडियो निर्माण कार्य धीमा चल रहा था, लोगों ने रिपोर्ट भी की थी कि सारा अहंकारी है, वह अपने तरीके से ही चलने पर जोर देती है जिससे काम प्रभावित होता है, फिर भी मैंने केवल उसकी स्थिति पर संगति की थी। मैंने वीडियो निर्माण प्रक्रिया के बारे में उनके विवादों की न तो जांच की थी और न ही यह पता लगाने की कोशिश की कि समस्या का मूल क्या है, मैंने केवल उनसे इस बात पर संगति की कि उन्हें अपने भ्रष्ट स्वभाव को पहचानकर सबक सीखना चाहिए। मैंने समस्याओं को हल करने और वास्तविक कार्य करने के एक तरीके के रूप में संगति और वैचारिक कार्य करने का सोचा, मैंने उन वास्तविक समस्याओं के बारे में न तो पूछा और न ही उन्हें हल किया जो कार्य की प्रगति में बाधा बन रही थीं। जो समूह अगुआ कार्य बाधित और अस्तव्यस्त कर रही थी, मैंने उसका न तो तबादला किया और न ही उससे बातचीत करके कोई समाधान निकाला, मैंने तो जैसे उसे वीडियो कार्य में बाधा डालने की छूट दे रखी थी। क्या मैं वही झूठी अगुआ नहीं थी जिसका खुलासा परमेश्वर ने अपने वचनों में किया था? उस दौरान, कई लोगों ने मुझसे शिकायत की थी कि वे सारा के सामने बेबस हैं। सभी वीडियो की मंजूरी उसी को देनी थी और अगर दूसरे लोग बिना उसे बताए कोई निर्णय लेते हैं, तो वह उसे अस्वीकार कर देती है। भाई-बहन चाहे कोई भी चर्चा कर रहे हों, उन्हें उसकी राय का इंतजार करना पड़ता था, जिसके कारण काम में बहुत देरी जाती थी। वास्तव में, समूह में उसी का दबदबा चलता था और उसी का निर्णय अंतिम होता था। लोग लगातार उसकी समस्याओं की शिकायत करते थे, लेकिन मैं अंधी और अनजान बनी रहती और शायद ही कभी काम को गहराई से समझने की कोशिश करती थी। मैं समस्याओं को केवल सतही तौर पर देखती थी और सारा के गंभीर मुद्दों को नहीं समझ पाई। मुझे अभी भी यही लगता था कि वह कुशल है, बस उसका स्वभाव थोड़ा अहंकारी है और थोड़ी-बहुत संगति से वह स्वयं पर विचार कर आत्मज्ञान प्राप्त कर सकती है। चूँकि मैं उसकी प्रकृति को स्पष्ट रूप से नहीं देख पा रही थी कि वह क्या कर रही है, तमाम संगति के बावजूद, मैं केवल शब्दों और सिद्धांतों की बात कर रही थी और वास्तविक समस्या को बिल्कुल भी हल नहीं कर रही थी। नतीजतन, छह महीनों में ही, बहुत-से लोग उसके द्वारा विवश, नकारात्मक और कमजोर महसूस करने लगे थे, निर्माण कार्य अप्रभावी हो गया और वीडियो कार्य बुरी तरह से बाधित और अस्तव्यस्त हो गया था। तब जाकर मुझे साफ तौर पर दिखाई देने लगा कि मेरे वास्तविक कार्य न करने और गलत समूह अगुआ को समय पर स्थानांतरित न करने के कारण कार्य को भारी नुकसान पहुँचा है। मैं वाकई एक झूठी अगुआ थी। शुरू में तो मुझे यही लगा कि मैं अपने काम में इसलिए असफल हो गई क्योंकि मैं काबिल नहीं हूँ और मुझे उस काम की कोई समझ नहीं है। लेकिन जब मैंने परमेश्वर के वचनों के खुलासे में खुद को जाँचा तो जाना कि मैंने मुद्दों को सीधे तौर पर समझने या वास्तविक समस्याओं को हल करने की कभी कोशिश ही नहीं की थी। यह केवल खराब काबिलियत का मामला नहीं था, यह वास्तविक कार्य न करने का मामला था।
मैं खुद पर करती रही, “मैं इस काम के बारे में अधिक जानने की इच्छुक क्यों नहीं हूँ?” जब मैंने अपने पिछले कुछ विचारों और व्यवहारों को याद किया, तो समझ में आया कि मेरा दृष्टिकोण ही भ्रामक था। मुझे लगता था कि मैं उस काम को नहीं समझती, इसलिए मैं उससे जुड़े मुद्दों से बचना चाहती थी, यही सोचकर, मैं न तो उसकी जांच और न ही उस बारे में कोई अध्ययन करना चाहती थी। मुझे डर था कि अगर मैं जानकार लोगों के साथ उन समस्याओं पर चर्चा करूँगी, तो मेरा अज्ञान बाहर आ जाएगा। तो उस काम का उत्तरदायित्व मुझ पर होने के बावजूद, मैं उसे अनदेखा करना चाहती थी। बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों में पढ़ा : “नकली अगुआओं के काम की मुख्य विशेषता है सिद्धांतों के बारे में बकवास करना और नारे लगाना। अपने आदेश जारी करने के बाद वे बस मामले से पल्ला झाड़ लेते हैं। वे कार्य के आगे के विकास के बारे में कोई सवाल नहीं पूछते; वे यह नहीं पूछते कि कोई समस्या, विचलन या कठिनाई तो उत्पन्न नहीं हुई। वे किसी को कोई काम सौंपते ही अपना कार्यभार समाप्त हुआ मान लेते हैं। वास्तव में, अगुआ होने के नाते, कार्य की व्यवस्था करने के बाद, तुम्हें कार्य की प्रगति का अनुवर्तन करना चाहिए। अगर तुम उस कार्यक्षेत्र से परिचित नहीं हो तब भी—यदि तुम्हें इसके बारे में कोई भी जानकारी न हो तब भी—तुम अपना काम करने का तरीका खोज सकते हो। तुम किसी ऐसे व्यक्ति को खोज सकते हो जो इस पर सचमुच पकड़ रखता हो, जो विचाराधीन पेशे को समझता हो, चीजों का पुनरीक्षण कर सकता हो और सुझाव दे सकता हो। उनके सुझावों से तुम उपयुक्त सिद्धांतों की पहचान कर सकते हो, और इस तरह तुम काम के अनुवर्तन में सक्षम हो सकते हो। चाहे विचाराधीन पेशे के प्रकार से तुम परिचित हो या नहीं, या उस काम को समझते हो या नहीं, उसकी प्रगति से अवगत रहने के लिए तुम्हें कम से कम उस कार्य का प्रभार अवश्य लेना चाहिए, अनुवर्ती कार्य करने चाहिए, उसकी प्रगति के बारे में लगातार सवाल करने चाहिए। तुम्हें ऐसे मामलों पर पकड़ बनाए रखनी चाहिए; यह तुम्हारी जिम्मेदारी है, यह तुम्हारे कार्यभार का अंग है। काम का अनुवर्तन न करना, काम दूसरे को सौंपने के बाद और कुछ न करना, उससे पल्ला झाड़ लेना—यह नकली अगुआओं के कार्य करने का तरीका है। कार्य के संबंध में अनुवर्तन न करना या निर्देश न देना, आने वाली समस्याओं के समाधान के बारे में पूछताछ न करना और काम की प्रगति या उसकी दक्षता पर पकड़ न रखना—ये भी नकली अगुआओं की अभिव्यक्तियाँ हैं” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (4))। परमेश्वर के वचनों से, मैंने जाना कि इस आधार पर विशिष्ट कार्यों पर अनुवर्ती कार्रवाई न करना कि मुझे उन क्षेत्रों की कोई समझ नहीं है और कार्य में मौजूद वास्तविक समस्याएँ हल न करना एक ऐसे झूठे अगुआ की अभिव्यक्ति है जो गैर-जिम्मेदार है और अपने दायित्वों से भागता है। एक अगुआ के नाते, कम से कम यह कार्य की अध्यक्षता और उस पर अनुवर्ती कार्रवाई करनी चाहिए, उसकी प्रगति के बारे में पूछनाऔर अगर कोई समस्या है तो उसका पता लगाकर उसका समाधान करना चाहिए। अगर तुम्हें उस कार्य की अच्छी समझ नहीं भी है, तो भी तुम उस विषय के जानकार लोगों से जांच करने और सुझाव देने के लिए कह सकते हो और अपनी कमियों को पूरा करने के लिए उनके साथ मिलकर काम कर सकते हो। इस तरह तुम अच्छा काम कर सकते हो। लेकिन मैं तकनीकी काम से जुड़ी किसी भी चीज से बचने की कोशिश करती और किसी कार्य-विशेष में इस आधार पर हिस्सा न लेती कि मुझे उस कार्य की समझ नहीं है। मैं ऐसा अपनी कमियों और दोषों को छिपाने और अपनी छवि तथा हैसियत को बनाए रखने के लिए करती, क्योंकि मुझे डर रहता कि अगर मैं भाई-बहनों का मार्गदर्शन न कर पाई तो उनकी नजर में गिर जाऊँगी। जब वीडियो निर्माण में समस्याएँ होतीं, भाई-बहन किसी बात पर असहमत होते, एक-दूसरे से सहयोग न कर पाते और उस कारण कार्य की प्रगति धीमी पड़ जाती, तो उस समस्या को सुलझाने के बजाय, मैं अपने आपको उस सबसे अलग रखती। क्या मैं वही झूठी अगुआ नहीं थी जिसका खुलासा परमेश्वर के वचनों में किया गया है? वास्तव में, कलीसिया के सभी कार्यों में सत्य सिद्धांत होते हैं, इसलिए केवल विशिष्ट ज्ञान में महारत हासिल कर लेना ही किसी काम को अच्छे से करने के लिए पर्याप्त नहीं होता। एक अगुआ के नाते, भले ही तुममें किसी कार्य-विशेष की समझ न हो, लेकिन तुम्हें सत्य के प्रासंगिक सत्य सिद्धांतों को जानना चाहिए ताकि तुम उसका मार्गदर्शन कर सको और उसकी जांच कर सको। कुछ अगुआओं को शुरू में किसी कार्यक्षेत्र की समझ नहीं होती, लेकिन वे पूरी मेहनत से अध्ययन करते हैं और सत्य के प्रासंगिक सत्य सिद्धांतों में महारत हासिल कर लेते हैं, जिसके बाद वे वास्तविक में मार्गदर्शन कर उसकी जांच कर सकते हैं और इस तरह काम में सुधार होता रहता है। मैंने अपने आपसे सवाल किया, “मैं हमेशा कहती रही कि मुझे उस कार्यक्षेत्र की समझ नहीं है, लेकिन क्या मैंने कभी उसका अध्ययन करने के लिए कड़ी मेहनत की? क्या मैंने कभी कोई प्रयास किया या कीमत चुकाई? जब मुझे यह नहीं पता था कि काम की जांच कैसे करनी है, तो क्या मैंने सत्य सिद्धांत खोजे?” मैंने इनमें से कुछ भी नहीं किया। मैंने अपने कर्तव्य में धूर्तता दिखाई, प्रगति करने की कोशिश नहीं की और जब मुझे काम समझ में नहीं आ रहा था तो मैंने औरों से सीखने की कोशिश भी नहीं की, सत्य सिद्धांतों की खोज तो बिल्कुल ही नहीं की। मैंने उस कार्यक्षेत्र के बारे में अपनी अज्ञानता का इस्तेमाल अपने नाम और रुतबे की रक्षा के लिए किया, इस कारण ऐसी बहुत-सी वास्तविक समस्याएं और कठिनाइयाँ जो लोगों को उनके काम में हुईं, और इसने वीडियो कार्य के नतीजे को गंभीरता से प्रभावित किया। ये मेरे नारे लगाने और वास्तविक कार्य न करने या वास्तविक समस्याओं को हल न करने का परिणाम था।
बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों में यह भी पढ़ा : “जब परमेश्वर कहता है कि लोग अपनी शोहरत, लाभ और रुतबे को अलग रखें, तो ऐसा नहीं है कि वह लोगों को चुनने के अधिकार से वंचित कर रहा है; बल्कि यह इस कारण से है कि शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागते हुए लोग कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन-प्रवेश को अस्त-व्यस्त कर देते हैं, यहाँ तक कि उनका ज्यादा लोगों के द्वारा परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने, सत्य को समझने और इस प्रकार परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करने पर भी प्रभाव पड़ सकता है। यह एक निर्विवाद तथ्य है। जब लोग अपनी शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागते हैं, तो यह निश्चित है कि वे सत्य का अनुसरण नहीं करेंगे और ईमानदारी से अपना कर्तव्य नहीं पूरा करेंगे। वे सिर्फ शोहरत, लाभ और रुतबे की खातिर ही बोलेंगे और कार्य करेंगे, और वे जो भी काम करते हैं, वह बिना किसी अपवाद के इन्हीं चीजों के लिए होता है। इस तरह से व्यवहार और कार्य करना, बिना किसी संदेह के, मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलना है; यह परमेश्वर के कार्य में विघ्न-बाधा डालना है, और इसके सभी विभिन्न परिणाम राज्य के सुसमाचार के प्रसार और कलीसिया के भीतर परमेश्वर की इच्छा पूरी करने में बाधा डालना है। इसलिए, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागने वालों द्वारा अपनाया जाने वाला मार्ग परमेश्वर के प्रतिरोध का मार्ग है। यह उसका जानबूझकर किया जाने वाला प्रतिरोध है, उसे नकारना है—यह परमेश्वर का प्रतिरोध करने और उसके विरोध में खड़े होने में शैतान के साथ सहयोग करना है। यह लोगों की शोहरत, लाभ और रुतबे के पीछे भागने की प्रकृति है। अपने हितों के पीछे भागने वाले लोगों के साथ समस्या यह है कि वे जिन लक्ष्यों का अनुसरण करते हैं, वे शैतान के लक्ष्य हैं—वे ऐसे लक्ष्य हैं, जो दुष्टतापूर्ण और अन्यायपूर्ण हैं। जब लोग शोहरत, लाभ और रुतबे जैसे व्यक्तिगत हितों के पीछे भागते हैं, तो वे अनजाने ही शैतान का औजार बन जाते हैं, वे शैतान के लिए एक साधन बन जाते हैं, और तो और, वे शैतान का मूर्त रूप बन जाते हैं। वे कलीसिया में एक नकारात्मक भूमिका निभाते हैं; कलीसिया के कार्य के प्रति, और सामान्य कलीसियाई जीवन और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामान्य लक्ष्य पर उनका प्रभाव बाधा डालने और काम बिगाड़ने वाला होता है; उनका प्रतिकूल और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ (भाग एक))। जब मैंने परमेश्वर के वचनों पर विचार किया, तो देखा कि मैं जो कुछ भी कर रही थी, वह सब केवल अपनी छवि और रुतबे को बनाए रखने के लिए था, मैं कलीसिया के कार्य की रक्षा के लिए कुछ नहीं कर रही थी, जिससे उसे नुकसान हुआ था। मैं शैतान की अनुचर बनकर कलीसिया के काम को बाधित और अस्तव्यस्त कर रही थी। मुझे डर था कि अगर मुझे उस कार्य-विशेष का ज्ञान नहीं हुआ, तो लोग मुझे नीची नजर से देखेंगे, इसलिए मैं काम की चर्चाओं में हिस्सा न लेती, न ही मैं विशिष्ट कार्य का जायजा लेती। जब मैंने देखा कि समूह अगुआ खुद को ही कानून मानकर काम में बाधा डाल रही है और मैं उस समस्या को नहीं सुलझा सकती, तो मेरे मन में इस बात का खौफ था कि वरिष्ठ अगुआओं को पता चल जाएगा कि मैं वास्तविक कार्य नहीं कर सकती और मुझे बर्खास्त कर दिया जाएगा, तो यह सोचकर मैंने वरिष्ठ अगुआओं से इसकी रिपोर्ट नहीं की और न ही कोई समाधान खोजा, बस कलीसिया के काम को प्रभावित होते देखती रही। मैं खुलेआम तथ्यों को छिपा कर अपने वरिष्ठों और अधीनस्थों को धोखा दे रही थी और लोगों को यह विश्वास दिला रही थी कि जिस काम का मैं निरीक्षण कर रही हूँ, वह समस्या-मुक्त है और सामान्य रूप से प्रगति कर रहा है, ताकि मैं अपने अगुआ पद की रक्षा कर सकूं। जब मैं अपनी छवि और रुतबे को बचाने की पूरी कोशिश कर रही थी, तब मेरे भाई-बहन बेबस महसूस कर रहे थे और उनके पास अपने कार्य को आगे बढ़ाने का कोई रास्ता नहीं था। वे पीड़ा और दुख में जी रहे थे, उन्हें अपने जीवन प्रवेश में भी कष्ट झेलने पड़े और कार्य बुरी तरह से बाधित हुआ, लेकिन मैंने इनमें से किसी की भी परवाह नहीं की। क्या यह झूठे अगुआ होने की अभिव्यक्ति नहीं थी? जब मैंने इन बातों पर विचार किया, तो मुझे थोड़ा डर लगा, अफसोस और पछतावा हुआ। इतनी स्वार्थी और कपटी होने पर मुझे खुद से नफरत हो गई। मेरा जमीर एकदम सुन्न और संवेदनहीन हो गया था! सुसमाचार के प्रसार में वीडियो कार्य एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मैं इतना महत्वपूर्ण कार्य कर रही थी, तो भी मैंने परमेश्वर के इरादों का विचार नहीं किया, मैंने हर चीज में अपनी छवि और रुतबा बनाए रखकर, कलीसिया के कार्य को बाधित और अस्त-व्यस्त कर दिया। मैंने अपने कर्तव्य के प्रति जैसा बर्ताव किया था और कलीसिया के काम को जो नुकसान पहुँचाया था, उसके बारे में सोचकर ही मेरे दिल में जैसे तीर चुभ जाता था। मैं बेहद शर्मिंदा थी। पश्चात्ताप के आँसू लिए, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मैं अपने कर्तव्य में चालाक और विश्वासघाती थी, मैंने कोई वास्तविक कार्य नहीं किया और कलीसिया के काम को जो नुकसान पहुँचाया है, उसकी भरपाई करने में पहले ही बहुत देर हो चुकी है। मैं भविष्य में अपने कर्तव्य में तेरे आगे पश्चात्ताप करना चाहती हूँ, और तुझसे विनती करती हूँ कि तू मेरी जांच कर।”
बाद में, मुझे परमेश्वर के वचनों में अभ्यास और प्रवेश के कुछ मार्ग मिले। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “तुम साधारण और सामान्य इंसान कैसे बन सकते हो? कैसे तुम, जैसा कि परमेश्वर कहता है, एक सृजित प्राणी का उचित स्थान ग्रहण कर सकते हो—कैसे तुम अतिमानव या कोई महान हस्ती बनने की कोशिश नहीं कर सकते? एक साधारण और सामान्य इंसान बनने के लिए तुम्हें कैसे अभ्यास करना चाहिए? यह कैसे किया जा सकता है? ... पहली बात, खुद को यह कहते हुए कोई उपाधि देकर उससे बँधे मत रहो, ‘मैं अगुआ हूँ, मैं टीम का मुखिया हूँ, मैं निरीक्षक हूँ, इस काम को मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता, मुझसे ज्यादा इन कौशलों को कोई नहीं समझता।’ अपनी स्व-प्रदत्त उपाधि के फेर में मत पड़ो। जैसे ही तुम ऐसा करते हो, वह तुम्हारे हाथ-पैर बाँध देगी, और तुम जो कहते और करते हो, वह प्रभावित होगा। तुम्हारी सामान्य सोच और निर्णय भी प्रभावित होंगे। तुम्हें इस रुतबे की बेबसी से खुद को आजाद करना होगा। पहली बात, खुद को इस आधिकारिक उपाधि और पद से नीचे ले आओ और एक आम इंसान की जगह खड़े हो जाओ। अगर तुम ऐसा करते हो, तो तुम्हारी मानसिकता कुछ हद तक सामान्य हो जाएगी। तुम्हें यह भी स्वीकार करना और कहना चाहिए, ‘मुझे नहीं पता कि यह कैसे करना है, और मुझे वह भी समझ नहीं आया—मुझे कुछ शोध और अध्ययन करना होगा,’ या ‘मैंने कभी इसका अनुभव नहीं किया है, इसलिए मुझे नहीं पता कि क्या करना है।’ जब तुम वास्तव में जो सोचते हो, उसे कहने और ईमानदारी से बोलने में सक्षम होते हो, तो तुम सामान्य विवेक से युक्त हो जाओगे। दूसरों को तुम्हारा वास्तविक स्वरूप पता चल जाएगा, और इस प्रकार वे तुम्हारे बारे में एक सामान्य दृष्टिकोण रखेंगे, और तुम्हें कोई दिखावा नहीं करना पड़ेगा, न ही तुम पर कोई बड़ा दबाव होगा, इसलिए तुम लोगों के साथ सामान्य रूप से संवाद कर पाओगे। इस तरह जीना निर्बाध और आसान है; जिसे भी जीवन थका देने वाला लगता है, उसने उसे ऐसा खुद बनाया है। ढोंग या दिखावा मत करो। पहली बात, जो कुछ तुम अपने दिल में सोच रहे हो, उसे खुलकर बताओ, अपने सच्चे विचारों के बारे में खुलकर बात करो, ताकि हर कोई उन्हें जान और उन्हें समझ ले। नतीजतन, तुम्हारी चिंताएँ और तुम्हारे और दूसरों के बीच की बाधाएँ और संदेह समाप्त हो जाएँगे। तुम किसी और चीज से बाधित हो। तुम हमेशा खुद को टीम का मुखिया, अगुआ, कार्यकर्ता, या किसी पदवी, हैसियत और प्रतिष्ठा वाला इंसान मानते हो : अगर तुम कहते हो कि तुम कोई चीज नहीं समझते, या कोई काम नहीं कर सकते, तो क्या तुम खुद को बदनाम नहीं कर रहे? जब तुम अपने दिल की ये बेड़ियाँ हटा देते हो, जब तुम खुद को एक अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में सोचना बंद कर देते हो, और जब तुम यह सोचना बंद कर देते हो कि तुम अन्य लोगों से बेहतर हो और महसूस करते हो कि तुम अन्य सभी के समान एक आम इंसान हो, और कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जिनमें तुम दूसरों से कमतर हो—जब तुम इस रवैये के साथ सत्य और काम से संबंधित मामलों में संगति करते हो, तो प्रभाव अलग होता है, और परिवेश भी अलग होता है। अगर तुम्हारे दिल में हमेशा शंकाएँ रहती हैं, अगर तुम हमेशा तनावग्रस्त और बाधित महसूस करते हो, और अगर तुम इन चीजों से छुटकारा पाना चाहते हो लेकिन नहीं पा सकते, तो तुम्हें परमेश्वर से गंभीरता से प्रार्थना करनी चाहिए, आत्मचिंतन करना चाहिए, अपनी कमियाँ देखनी चाहिए और सत्य की दिशा में प्रयास करना चाहिए। अगर तुम सत्य को अमल में ला सकते हो, तो तुम्हें परिणाम मिलेंगे” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर के वचनों को सँजोना परमेश्वर में विश्वास की नींव है)। परमेश्वर के वचन पढ़कर, मेरा दिल रोशन हो गया। मैं हमेशा खुद को अगुआ के पद पर रखती थी। मैं हमेशा यह दिखावा करना चाहती थी कि मैं सब-कुछ जानती हूँ ताकि लोग मेरा सम्मान करें, मैं नहीं चाहती थी कि लोग मेरा असली चेहरा देखें। मेरा मानना था कि एक अगुआ होने के लिए, मुझे दूसरों से ऊपर होना चाहिए और कुछ भी करने में सक्षम होना चाहिए, लेकिन यह मेरी भूल थी। सच तो यह है कि मैं दूसरों से बेहतर नहीं थी। मेरा भ्रष्ट स्वभाव भी बाकी भाई-बहनों की तरह ही था। ऐसी कई चीजें थीं जिन्हें मैं न तो स्पष्ट रूप से देख पाती थी और न ही समझ पाती थी। अगुआ होना महज अभ्यास करने का अवसर था। मुझे अपना पद अलग रखना चाहिए, मुझे ईमानदार होना चाहिए, दूसरों के आगे मुझे अपने वास्तविक स्वरूप के बारे में खुलकर बात करनी चाहिए और सभी के साथ मिलकर समान स्तर पर काम करना चाहिए। अगर मुझे कुछ समझ में न आए, तो उसे स्वीकार करना चाहिए और जो लोग संगति को अधिक समझते हैं उन्हें उस काम को करने देना चाहिए। इस तरह, मैं न केवल काम की समस्याओं को तुरंत हल कर सकती हूँ, बल्कि मैं अपनी कमियों को भी दूर कर सकती हूँ। यदि कोई ऐसी समस्या है जो मुझे समझ में नहीं आ रही है या जिसे मैं हल नहीं कर पा रही हूँ, तो मुझे उसे तुरंत वरिष्ठ लोगों की जानकारी में लाना चाहिए ताकि समय पर न संभालने के कारण होने वाले गंभीर दुष्परिणामों से बचा जा सके।
अब मुझे फिर से कलीसिया अगुआ के रूप में कार्य करने के लिए चुना गया है। मैं बहुत आभारी हूँ, मैं जानती हूँ कि परमेश्वर ने मुझे यह अवसर दिया है ताकि मैं पश्चात्ताप कर सकूँ। मैं अपने पिछले अपराधों की भरपाई तो नहीं कर सकती, इसलिए मैं अपना कर्तव्य निभाते हुए भविष्य में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना चाहती हूँ। मैंने शपथ ली है : “परमेश्वर, इस कर्तव्य को अच्छी तरह से निभाने के लिए मैं वह सब करने को तैयार हूँ जो मैं कर सकती हूँ और जो मुझे करना चाहिए। अगर कभी मैं अपने भ्रष्ट स्वभाव के सहारे फिर से अपने कर्तव्य के प्रति गैर-जिम्मेदार हो जाऊँ, तो उम्मीद है कि तू मुझे ताड़ना देकर अनुशासित करेगा।” मेरे कर्तव्य में अब कई ऐसे काम हैं जिनके बारे में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है। जब कभी भाई-बहन काम के बारे में चर्चा करने के लिए मेरे पास आते हैं, तो मुझे उनमें से कुछ बातें बहुत अच्छे से समझ नहीं आतीं और इच्छा होती है कि उससे बच निकलूँ और उसमें हिस्सा न लूँ, लेकिन जब मैं अपनी पिछली असफलताओं से सीखे सबक के बारे में सोचती हूँ, तो थोड़ा डर जाती हूँ और तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना करती हूँ। मैं उससे विनती करती हूँ कि मैं शांत रहूँ, ध्यान से सुनूँ और उन समस्याओं को हल करने के तरीके खोजने के लिए भाई-बहनों के साथ मिलकर काम करूँ। जब मैं भार वहन करती हूँ और उन कार्यों से जुड़ती हूँ, तो मैं समस्या भी समझ लेती हूँ और कभी-कभी कुछ उचित सुझाव भी दे देती हूँ। जब कभी सिद्धांत को लेकर ऐसी समस्याएँ होती हैं जिन्हें मैं स्पष्ट रूप से नहीं जान पाती या हल नहीं कर पाती, तो मैं उनकी रिपोर्ट ऊपरी स्तर के अगुआओं को करके मदद मांगती हूँ। इस तरह काम में देरी नहीं होती और समस्या का समाधान शीघ्र हो जाता है।
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?