मैं एक झूठी अगुआ कैसे बनी

18 अक्टूबर, 2022

2019 के आखिर में मुझे कलीसिया में वीडियो के काम की इंचार्ज बना दिया गया। उस वक्त मुझे काफी दबाव महसूस हुआ था। वीडियो के काम में पेशेवर हुनर चाहिए थे, जिनका मुझे पहले कोई अनुभव नहीं था। एक अनजान पेशे का सामना करते हुए मुझे अपने दिल पर पहाड़-सा बोझ महसूस हो रहा था। जब भी मैं काम की खोज-खबर लेती तो समूह अगुआ पेशेवर मसलों की चर्चा करने लगते, मैं बिना कुछ समझे बस सुनती रहती। जब वे कुछ विवादों की चर्चा करते तो मेरी राय और सुझाव जानना चाहते, जिससे मैं बहुत घबरा जाती क्योंकि मुझे पता ही न चलता कि समस्या कहाँ है। कभी-कभी मैं अपनी समझ से कुछ सुझाव दे देती, पर उन्हें अपनाया न जाता। जब भी ऐसा होता तो मुझे शर्मिंदगी महसूस होती। एक अगुआ होने के नाते मैं समस्या को समझ न पाती, और बदलाव के लिए कोई सुझाव न दे पाती। भाई-बहन मेरे बारे में क्या सोचते होंगे? कुछ बार ऐसा होने के बाद मैं कामकाज की चर्चाओं में भाग लेने से कतराने लगी। मैं सोचती, "मैं इन पेशेवर मसलों के बारे में नहीं जानती, और अब सीखने के लिए बहुत देर हो चुकी है। यही लोग वीडियो बना रहे हैं, तो इन्हें ही पेशेवर मुद्दों की चर्चा करने दो। मैं इस मामले में उनकी मदद नहीं कर सकती, पर मैं जीवन प्रवेश के मामले में उनकी ज्यादा मदद कर सकती हूँ। अगर उनकी हालत सामान्य है, तो वे अपने पेशेवर क्षेत्र में अच्छा काम करेंगे, तो क्या मैं अपना कर्तव्य नहीं निभा रही? और इस तरह, मुझे उनके सामने शर्मिंदा भी नहीं होना पड़ेगा।" मन में यह विचार आने के बाद, मैंने काम की चर्चा उन्हीं पर छोड़ दी, और इसमें हिस्सा लेना बंद कर दिया।

कुछ दिन बाद, मैंने देखा कि वीडियो बनाने का काम बहुत धीमे चल रहा था, और सिद्धांत से जुड़े कुछ मसले भी थे, भाई-बहन आपस में मिल-जुलकर सहयोग नहीं कर रहे थे। बहुत-सी बहनों ने शिकायत की कि समूह अगुआ, बहन शान बहुत रौब जमाती थी। कई चर्चाओं में दूसरों को बस उसकी सुननी पड़ती थी, जिससे वीडियो पर बार-बार काम करना पड़ता था। मैंने सोचा, "बहन शान में अच्छी काबिलियत है। हालांकि उसके स्वभाव में थोड़ा अहंकार है, पर उसमें अच्छे पेशेवर हुनर है। थोड़ी खूबियाँ होने पर लोगों में कुछ अहंकार आ ही जाता है। मुझे बस उसके साथ संगति करने की जरूरत है।" इसलिए, परमेश्वर के वचनों को इस्तेमाल करते हुए, मैंने उसके साथ संगति की कि कैसे दूसरों के साथ सहयोग करना चाहिए और उसे क्या सबक सीखने चाहिए। उस समय, बहन शान ने मेरी बात मानकर सत्य का अभ्यास करने की इच्छा जताई। जल्दी ही, बहन यांग ने मुझसे कहा, कि उसने बड़ी मेहनत से और समय लगाकर एक वीडियो तैयार किया है, पर बहन शान ने इसे देखते ही उसके कंसेप्ट को पूरी तरह ठुकरा दिया, और चर्चा की कोई संभावना नहीं छोड़ी। बहन यांग बहुत उदास थी, और मुझसे पूछने लगी कि इस अनुभव को कैसे देखे। मैंने सोचा, "वीडियो के इसके कंसेप्ट को ठुकरा दिया गया, तो क्या इसका मतलब है इसका आइडिया सही नहीं था, या बहन शान कुछ ज्यादा ही अहंकारी है?" मैं चाहती थी कि बहन यांग मुझे अपना कंसेप्ट बताए, ताकि मैं समस्या को ठीक-से समझ सकूँ। पर क्योंकि मुझे इस पेशे की समझ नहीं थी, अगर इसने कंसेप्ट बताया और मैं फिर भी समस्या को समझ न सकी, तो यह मेरे बारे में क्या सोचेगी? मैंने सोचा, "छोड़ो। इन लोगों को खुद ही पेशेवर मसले सुलझाने दो। मैं बस बहन यांग के साथ उसकी हालत के बारे में संगति करूंगी, और इस अनुभव को काट-छांट और निपटान के रूप में देखने के लिए कहूँगी। अगर वह इस मामले को सही तरह संभाल सकी, तो बहन शान के साथ सहयोग की इसकी समस्या हल हो जाएगी।" इसलिए, मैंने बहन यांग के साथ संगति करके उसे दूसरे लोगों की सलाह को स्वीकारने, तत्परता से सत्य का अभ्यास करने, दूसरों के साथ सहयोग करने और अपनी छवि के काबू में न होने के लिए कहा ...। यह सब सुनकर भी बहन यांग कुछ परेशान थी और आखिर निराश होकर चली गई। उसके जाने के बाद मैं भी उदास हो गई, क्योंकि मैं जानती थी उसकी समस्या सुलझी नहीं थी। मैं देखना चाहती थी कि बहन यांग के वीडियो के साथ क्या समस्या थी, पर मुझे डर था कि अगर मैं समस्या को न समझ पाई तो अयोग्य लगूँगी। मैंने सोचा, "छोड़ो, उन्हें संगति करके पेशेवर समस्याएँ खुद ही सुलझाने दो।" इसके बाद, मैंने बहन शान की हालत के बारे मेंउसके साथ संगति की। मैंने यह बात उठाई कि वह अहंकारी थी, और उसे दूसरों के साथ मिल-जुलकर काम करने और उनकी खूबियों से सीखने के लिए कहा, और यह भी कहा कि अगर उसके कुछ अच्छे सुझाव भी हों, तो उसे दूसरों के साथ उनकी चर्चा करनी चाहिए। बहन शान ने खुद में बदलाव लाने का वादा किया था, पर इसके बाद भी वह अहंकारी बनी रही, और अपनी राय को दूसरों से बेहतर समझती रही। उसे लगता था कि उसके पास बेहतर अनुभव और हुनर था, और दूसरे उससे कमतर थे, इसलिए वह हमेशा अपनी बात मनवाना चाहती थी। कई बार जब भाई-बहन वीडियो बनाने की किसी योजना से सहमत होते, और यह उसकी इच्छा से मेल न खाता तो वह इसे सीधे-सीधे ठुकरा देती, और इसे अपनी अपेक्षाओं के अनुसार दोबारा बनाने के लिए कहती। अगर दूसरों को लगता कि उसकी योजना सही नहीं है, तो वह कोई भी सुझाव स्वीकार न करती, और दूसरों के सुझाव बेकार कहकर खारिज कर देती। भाई-बहन उससे कुछ कह न पाते, और अक्सर उन्हें दोबारा काम करना पड़ता। हरेक की हालत दिनोदिन खराब हो रही थी, और वे निराशा में जी रहे थे। यह देखकर कि बहन शान के अहंकारी और मनमाने व्यवहार से काम की प्रगति पर बुरा असर पड़ रहा था, मैं त्रस्त महसूस कर रही थी, क्योंकि मैं पेशेवर समस्याओं से नहीं निपट सकती थी। मुझे धुंधला-सा एहसास था कि बहन शान सत्य नहीं स्वीकारती, वह प्रायश्चित और बदलाव के लिए तैयार नहीं थी, इसलिए वह समूह-अगुआ बने रहने के योग्य नहीं थी। पर मैं जानती थी कि पेशेवर हुनर में वह दूसरों से बेहतर थी, इसलिए अगर उसे हटा दिया गया तो इस कर्तव्य को और कौन निभा पाएगा? मुझे इसका भरोसा नहीं था, इसलिए मैं अपने ऊपर के अगुआओं तक यह बात पहुंचाना चाहती थी। पर मुझे यह चिंता थी कि जब वे हमारे काम की खराब हालत देखेंगे, तो शायद मेरा निपटान करके मुझे बर्खास्त कर दें। कुछ समय तक कश्मकश से गुजरने के बाद मैंने उसके साथ फिर से संगति करने का फैसला किया, और मैं फिर से बहन शान के पास गई। मैंने उसके अहंकार की बात की, उसके मनमानेपन और हमेशा अपनी बात मनवाने को लेकर उसे उजागर किया, और कहा कि यह एक मसीह-विरोधी का तरीका है। मेरी बात सुनकर वह एक शब्द भी नहीं बोली। यह साफ था कि वह मुझसे सहमत नहीं थी। इसके बाद भी वह अपनी मनमानी करती रही, अक्सर दिखावा करती और दूसरों को नीचा दिखाती रही। ज़्यादातर भाई-बहन उसके आगे बेबस महसूस करते थे और उसके साथ काम करना नहीं चाहते थे। उसकी अड़चनों और अड़ंगों की वजह से वीडियो के काम में रुकावट आ रही थी। आखिर में, अपने ऊपर के अगुआओं को समस्या की रिपोर्ट करने के अलावा मेरे पास कोई चारा न रहा। उन्होंने छानबीन करने के बाद बहन शान को समूह अगुआ के ओहदे से हटा दिया, और मुझे व्यावहारिक काम न करने या व्यावहारिक समस्याओं को हल न करने के कारण बर्खास्त कर दिया।

बर्खास्त होने के बाद, मैंने यह स्वीकार किया कि मुझमें कम काबिलियत थी, पेशेवर समझ नहीं थी, और मैं व्यावहारिक काम नहीं कर सकती थी। पर मुझे अपनी समस्याओं की कोई सच्ची समझ नहीं थी। बाद में, जब मैंने झूठे अगुआओं के लक्षणों को पहचानने के बारे में परमेश्वर की संगति पढ़ी, तो आत्मचिंतन करके यह समझने की कोशिश करने लगी कि मैंने दरअसल क्या किया था। "नकली अगुआ सतही काम में अच्छे होते हैं, लेकिन वे कभी असली काम नहीं करते। वे न तो कभी जाकर विभिन्न कार्य-विशेषज्ञताओं का निरीक्षण, निरीक्षण या निर्देशन करते हैं, न ही यह पता लगाने के लिए कि क्या हो रहा है, समय पर विभिन्न समूहों का दौरा करते हैं, न निरीक्षण करते हैं कि कार्य कैसे आगे बढ़ रहा है, अभी भी कौन-सी समस्याएँ हैं, समूह-निरीक्षक कार्यक्षम है या नहीं; भाई-बहन निरीक्षक के बारे में कैसी रिपोर्ट देते हैं या कैसे उसका मूल्यांकन करते हैं, समूह के अगुआ या निरीक्षक द्वारा किसी की प्रगति को रोका तो नहीं जा रहा; किसी प्रतिभाशाली या सत्य का अनुसरण कर रहे व्यक्ति को दूसरों द्वारा नीचा तो नहीं दिखाया जा रहा या अलग-थलग तो नहीं किया जा रहा, किसी निष्कपट व्यक्ति को धमकाया तो नहीं जा रहा; जिन लोगों ने नकली अगुआओं को उजागर कर उनकी रिपोर्ट की है, उन्हें कमजोर ये अलग-थलग तो नहीं किया जा रहा, या जब लोग सही सुझाव देते हैं, तो उन सुझावों को अपनाया जाता है या नहीं; और कोई समूह-अगुआ या निरीक्षक दुष्ट व्यक्ति तो नहीं है या वह लोगों को परेशान तो नहीं करता। अगर नकली अगुआ इनमें से कोई भी काम नहीं करते, तो उन्हें बदल देना चाहिए। उदाहरण के लिए मान लो, कोई व्यक्ति नकली अगुआ को रिपोर्ट करता है कि एक निरीक्षक अकसर लोगों को नीचा दिखाता है और उनकी प्रगति रोकता है। निरीक्षक ने गलती की है, लेकिन वह भाई-बहनों को कोई सुझाव नहीं देने देता, बल्कि खुद को निर्दोष साबित करने और बचाने के लिए तरह-तरह की बहानेबाजी करता है और अपनी गलती नहीं मानता। क्या ऐसे निरीक्षक को तुरंत नहीं हटा देना चाहिए? अगुआओं को इन समस्याओं का समाधान तुरंत करना चाहिए। कुछ नकली अगुआ अलग-अलग समूहों के ऐसे निरीक्षकों को उजागर नहीं होने देते जिन्हें खुद उन्होंने नियुक्त किया होता है, फिर चाहे उन निरीक्षकों के काम में कैसी भी समस्या हो। अगर कोई व्यक्ति समस्या को निरीक्षक के सामने उजागर कर भी देता है, तो नकली अगुआ यह कहकर सच्चाई को छिपाने की कोशिश करता है, 'यह लोगों के जीवन में प्रवेश की समस्या है। उसका अहंकारी स्वभाव होना सामान्य बात है—थोड़ी क्षमता से युक्त हर व्यक्ति अहंकारी होता है। यह कोई बड़ी बात नहीं है, मुझे बस उसके साथ थोड़ी संगति करनी पड़ेगी।' संगति के दौरान निरीक्षक कहता है, 'मैं मानता हूँ कि मैं अहंकारी हूँ, मैं स्वीकार करता हूँ कि कई बार मैं अपने दंभ और रुतबे की चिंता करने लगता हूँ, और दूसरों के सुझाव नहीं मानता, लेकिन बाकी लोग इस कार्य-क्षेत्र में उतने अच्छे नहीं हैं, वे अकसर बेकार के सुझाव देते हैं, इसलिए इस बात की वजह है कि मैं उनकी बात नहीं सुनता।' नकली अगुआ पूरी स्थिति समझने का प्रयास नहीं करता, वह यह नहीं देखता कि निरीक्षक अपना काम कितनी अच्छी तरह करता है, उसकी मानवता, स्वभाव और लक्ष्य को समझने की तो बात ही अलग है। वह बस खुश होकर यह कहता है, 'मुझे इसकी रिपोर्ट की गई थी, इसलिए मैं तुम पर नजर रख रहा हूँ। मैं तुम्हें एक मौका दे रहा हूँ।' बातचीत के बाद निरीक्षक कहता है कि वह पश्चात्ताप करना चाहता है, लेकिन क्या वह बाद में सच में पश्चात्ताप करता है या सिर्फ झूठ बोलकर धोखा देता है, नकली अगुआ इन बातों पर ध्यान नहीं देता" (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ)। "नकली अगुआओं के काम करने का तरीका बहुत सरल और सतही होता है : वे लोगों को बातचीत के लिए बुलाते हैं, थोड़ा वैचारिक काम करते हैं, लोगों को थोड़ी सलाह देते हैं, और सोचते हैं कि यही असली काम करना है। यह सतही तरीका है, है न? और इस सतहीपन के पीछे कौन-सा मुद्दा छिपा होता है? क्या वह भोलापन है? नकली अगुआ बेहद भोले होते हैं, लोगों और चीजों के प्रति अपने दृष्टिकोण में बहुत ही भोले। लोगों का भ्रष्ट स्वभाव दूर करने से मुश्किल काम और कोई नहीं है। कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं होती। नकली अगुआओं को इस समस्या का कोई बोध नहीं होता। इसलिए, जब कलीसिया में उस तरह के निरीक्षकों की बात आती है, जो निरंतर बाधा खड़ी करते हैं, जो लोगों की प्रगति रोकते हैं, जो संभवतः लोगों के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं, तो नकली अगुआ बातें बनाने के अलावा कुछ नहीं करते; निपटारे और काट-छाँट के कुछ शब्द कहे और बस। वे न तो तुरंत काम किसी और को सौंपते हैं और न ही लोगों को बदलते हैं। नकली अगुआओं के काम करने का तरीका कलीसिया के काम को भारी नुकसान पहुँचाता है, और अकसर कलीसिया के काम को सामान्य रूप से, सहजता और कुशलता से से आगे बढ़ने से रोकता है, क्योंकि कुछ दुष्ट लोगों के हस्तक्षेप के कारण वह अटक जाता है, उसमें विलंब हो जाता है और उसे नुकसान होता है—यह सब नकली अगुआओं के भावुकता से पेश आने, सत्य के सिद्धांतों का उल्लंघन करने और गलत लोगों की नियुक्ति के गंभीर परिणाम होते हैं। देखने में तो ये नकली अगुआ मसीह-विरोधियों की तरह जानबूझकर बुराई नहीं करते, या जानबूझकर अपनी जागीर स्थापित नहीं करते और अपनी मनमर्जी नहीं चलाते। लेकिन अपने कार्य के दायरे में नकली अगुआ निरीक्षकों के कारण होने वाली विभिन्न समस्याओं का शीघ्रता से समाधान नहीं कर पाते, वे घटिया समूह-निरीक्षकों का काम तुरंत किसी और को सौंपने और उन्हें बदलने में सक्षम नहीं होते, जिससे कलीसिया के काम को गंभीर रूप से हानि पहुँचती है, और यह सब नकली अगुआओं की लापरवाही के कारण होता है" (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ)। परमेश्वर के ये वचन पढ़कर मैं बहुत उदास और दुखी हो गई। मुझे लगा कि परमेश्वर जिस झूठे अगुआ की बात कर रहा था वह मैं ही थी। परमेश्वर ने खुलासा किया है कि झूठे अगुआ व्यावहारिक काम नहीं करते, निरीक्षण, निगरानी या खुद कोई काम नहीं करते, और असली समस्याओं को समझने के लिए कभी भी काम की छानबीन नहीं करते, न ही किसी खास काम की खोज-खबर लेते हैं। जब कोई सुपरवाइजर के साथ समस्याओं की शिकायत करता है, तो वे कभी भी विस्तार से छानबीन नहीं करते, वे उनके सार और उनके काम के असर को भाँपने की कोशिश नहीं करते, वे ऐसे सुपरवाइजरों के साथ सिर्फ संगति करते हैं और सिर्फ वैचारिक काम करते हैं। वे सोचते हैं इससे समस्या हल हो जाएगी, वे समय रहते अयोग्य सुपरवाइजरों का तबादला नहीं करते, जिससे काम का गंभीर नुकसान होता है। उस समय मेरा व्यवहार वैसा ही था जैसा परमेश्वर ने खुलासा किया था। मैं काम में ज्यादा रुचि नहीं लेती थी, और शायद ही कभी काम की प्रगति की खबर लेने या अपना मार्गदर्शन देने जाती थी। मैं जानती थी कि वीडियो बनाने का काम धीमा था, और लोगों ने शिकायत की थी कि बहन शान अहंकारी थी और सिर्फ अपनी मर्जी चलाती थी, जिससे काम पर असर होता था, फिर भी मैंने सिर्फ उसकी हालत के बारे में संगति करके मामला निबटा दिया। वीडियों बनाने की प्रक्रिया में विवाद उठने पर मैंने छानबीन करके समस्याओं का पता नहीं लगाया था, और सिर्फ संगति करके यह कहती रही थी कि उन्हें अपने भ्रष्ट स्वभावों को जानना चाहिए और सबक सीखने चाहिए। मैं संगति और वैचारिक काम को समस्याएँ सुलझाना और व्यावहारिक काम करना समझ रही थी, पर मैंने काम में रुकावट पैदा करने वाली असली समस्याओं का पता लगाकर उन्हें हल नहीं किया था। परेशानियाँ पैदा करने वाली समूह अगुआ का तबादला या निपटान नहीं किया था, और उसे वीडियो के काम में परेशानियाँ और रुकावटें खड़ी करने के लिए वहीं छोड़ दिया था। क्या मैं परमेश्वर के वचनों से उजागर हुई झूठी अगुआ नहीं थी? इस दौरान, अनेक भाई-बहनों ने मुझे बताया था कि वे बहन शान के आगे विवश महसूस करते हैं। वीडियो बनाने के सभी कंसेप्ट और प्लान उससे स्वीकार करवाने पड़ते थे, अगर वह फैसला लेने में शामिल नहीं रहती थी, तो वह दूसरों के फैसलों को पलट देती थी, और भाई-बहनों को हर मामले में उसका मुंह देखना पड़ता था, जिससे काम में बहुत ज्यादा देर हो जाती थी। उस समय वह समूह में बहुत शक्तिशाली थी और उसी की चलती थी। भाई-बहन लगातार उसकी समस्याओं की शिकायत कर रहे थे, पर मैं अंधी और अज्ञानी थी, मुझे शायद ही कभी इस काम की गहरी समझ होती थी, मैं समस्याओं को सिर्फ सतही तौर पर देखती थी, इसलिए बहन शान की गंभीर समस्याओं को भाँप नहीं सकी। मैं सोचती थी उसके पेशेवर हुनर अच्छे थे, बस उसके स्वभाव में थोड़ा अहंकार था, तो थोड़ी संगति से ही वह आत्मचिंतन करके खुद की थोड़ी समझ हासिल कर लेगी। पर क्योंकि मैं उसके व्यवहार की प्रकृति को भाँप नहीं सकी, मेरी सारी संगति खोखले शब्द भर थी, और इसने असली समस्या को बिल्कुल भी नहीं सुलझाया। नतीजा यह हुआ कि छह महीने तक बहुत-से लोग उसके आगे बेबस महसूस करते रहे, निराश और कमजोर हो गए, वीडियो बनाने का काम बेअसर हो गया, इसमें भारी अड़चनें और परेशानियाँ खड़ी हो गईं। तब जाकर मैं साफ-साफ देख पाई, क्योंकि मैंने व्यावहारिक काम नहीं किया, समय रहते गलत समूह अगुआ का तबादला नहीं किया, इसलिए काम को कितना भारी नुकसान पहुंचा। मैं प्रामाणिक तौर पर एक झूठी अगुआ थी। पहले मुझे लगा था अपने कर्तव्य में नाकाम होने का कारण मेरी कम काबिलियत और पेशे की समझ न होना था। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद ही मेरी समझ में आया कि मसलों को समझने और असली समस्याओं को सुलझाने की कोशिश तक न करना सिर्फ कम काबिलियत का मामला नहीं था, यह असल में व्यावहारिक काम न करना था।

मैं आत्मचिंतन करती रही, "मैं काम के बारे में ज्यादा जानने से हिचकिचाती क्यों हूँ?" उस समय के अपने कुछ विचारों और व्यवहार को याद करने पर, मुझे एहसास हुआ कि मेरी हमेशा से ही एक गलत धारणा रही थी। मुझे लगता था मैं इस पेशे को नहीं समझती, इसलिए मैं इससे जुड़े मसलों से बचना चाहती थी, और मैं इसे जानना या सीखना भी नहीं चाहती थी। मैं घबराती थी कि पेशे की समझ रखने वाले लोगों से समस्याओं की चर्चा करने से मैं अनाड़ी दिखने लगूंगी, इसलिए मैं काम की ज़िम्मेदारी तक नहीं लेना चाहती थी, जबकि मुझे ऐसा करना चाहिए था। बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों में पढ़ा, "नकली अगुआओं के काम की मुख्य विशेषता है सिद्धांतों के बारे में बकवास करना और नारे लगाना। अपने आदेश जारी करने के बाद वे बस मामले से पल्ला झाड़ लेते हैं। वे परियोजना के आगे के विकास के बारे में कोई सवाल नहीं पूछते; वे यह नहीं पूछते कि कोई समस्या, असामान्यता या कठिनाई तो उत्पन्न नहीं हुई। वे उसे सौंपते ही समाप्त मान लेते हैं। वास्तव में, एक अगुआ के नाते, कार्य व्यवस्था पूरी कर लेने के बाद, तुम्हें परियोजना की प्रगति पर नजर रखनी चाहिए। अगर तुम इन मामलों में नौसिखिया भी हो—अगर तुम्हें इसके बारे में कोई भी जानकारी न हो—तो भी तुम यह काम करने का तरीका खोज सकते हो। स्थिति की जाँच करने और सुझाव देने के लिए किसी ऐसे व्यक्ति को खोज सकते हो, जो जानकार हो, जो विचाराधीन कार्य को समझता हो। उनके सुझावों से तुम उपयुक्त सिद्धांतों की पहचान कर सकते हो, और इस तरह तुम काम पर नजर रखने में सक्षम हो सकते हो। चाहे तुम्हें विचाराधीन कार्य के प्रकार के बारे में कोई जानकारी या उसकी कोई समझ हो या नहीं, खुद को उसकी प्रगति से अवगत रखने के लिए तुम्हें कम से कम उसकी देखरेख अवश्य करनी चाहिए, उस पर नजर रखनी चाहिए, उसके बारे में पूछताछ करनी चाहिए और प्रश्न पूछने चाहिए। तुम्हें ऐसे मामलों पर पकड़ बनाए रखनी चाहिए; यह तुम्हारी जिम्मेदारी है, यह एक ऐसी भूमिका है, जो तुम्हें निभानी चाहिए। काम पर नजर न रखना, काम दूसरे को सौंपने के बाद और कुछ न करना—उससे पल्ला झाड़ लेना—नकली अगुआओं के कार्य करने का तरीका है। कार्य पर नजर रखने के लिए विशिष्ट कार्रवाई न करना—उसकी प्रगति की कोई समझ या उन पर कोई पकड़ न होना—भी नकली अगुआ की अभिव्यक्ति है" (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ)। परमेश्वर के वचनों से मैंने समझा, पेशे को न समझने के आधार पर किसी खास काम की खोज-खबर न लेना, और काम में मौजूद व्यावहारिक समस्याओं को न सुलझाना एक झूठे अगुआ के लक्षण थे, जो गैर-जिम्मेदार था और जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहा था। एक अगुआ होने के नाते कम-से-कम इतना तो तुम्हें करना चाहिए कि काम पर नजर रखो और खोज-खबर लेते रहो, काम की प्रगति के बारे में पूछते रहो, और काम से जुड़ी समस्याओं को ढूंढो और उन्हें हल करो। अगर तुम्हें पेशे की जानकारी नहीं है, तो तुम उनसे पूछ सकते हो जिन्हें जानकारी है, कि जरा जांच करके अपनी सलाह दो, और तुम दूसरों के साथ सहयोग करके अपनी कमियों की भरपाई कर सकते हो। इस तरह तुम एक अच्छा काम कर सकते हो। जहां तक मेरा संबंध है, पेशेवर काम के मामले में, मैं घबराती रही कि अगर मैं खुद कमान नहीं संभाल सकी तो भाई-बहन मुझे छोटा समझेंगे। इसलिए अपनी कमियों को छिपाने के साथ-साथ अपनी छवि और रुतबे को बरकरार रखने के लिए, मैं पेशे को न जानने के आधार पर इससे कतराती रही और काम में हिस्सा लेने से बचती रही। जब वीडियो बनाने में समस्याएँ सामने आईं, और भाई-बहनों में विवाद पैदा होने से आपसी सहयोग मुश्किल हो गया, नतीजतन काम ठप्प पड़ने लगा, तो समस्याओं को सच में सुलझाने के बजाय मैंने इनसे पल्ला झाड़ने वाला रवैया अपनाया। क्या मैं परमेश्वर के वचनों में उजागर होने वाली वही झूठी अगुआ नहीं थी? दरअसल, परमेश्वर के घर का समूचा काम सत्य के सिद्धांतों से जुड़ा हुआ है। सिर्फ पेशेवर जानकारी में महारत हासिल करके इसे अच्छी तरह नहीं किया जा सकता। अगर एक अगुआ होने के नाते तुम्हें पेशे की जानकारी नहीं भी है, तो भी तुम्हें सत्य के संबंधित सिद्धांतों का पता होना चाहिए, ताकि तुम मार्गदर्शन और काम की जाँच कर सको। कुछ अगुआ शुरू में पेशे को नहीं समझ पाते, पर वे बारीकी से अध्ययन करके सत्य के संबंधित सिद्धांतों में महारत हासिल कर लेते हैं, जिसके बाद वे व्यावहारिक तौर पर मार्गदर्शन दे सकते हैं और जांच कर सकते हैं, इससे काम निखरता चला जाता है। सचमुच। उसी घड़ी, मैंने खुद से पूछा, "मैं हमेशा कहती थी मुझे पेशेवर पहलुओं की समझ नहीं है, पर क्या मैंने इसका अध्ययन किया? क्या मैंने मेहनत करके कोई कीमत चुकाई? जब मुझे चीजों की जांच करना नहीं आता था, तो क्या मैंने सत्य के सिद्धांतों की खोज की?" मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया। मैं ढीलेपन से अपना कर्तव्य निभाती रही, कोई प्रगति नहीं की। चीजों की समझ न होने पर मैंने दूसरों से सीखने या सत्य के सिद्धांतों को जानने की कोशिश नहीं की, और पेशे को न समझने की आड़ में अपने नाम और रुतबे को बचाती रही। इसका मतलब था कि भाई-बहनों के कर्तव्यों में बहुत-सी व्यावहारिक समस्याएँ और मुश्किलें जल्दी से हल नहीं हो पाईं, और इसका वीडियो के काम पर गंभीर असर पड़ा। ये मेरे खोखले आदर्श वाक्यों, व्यावहारिक काम न करने और व्यावहारिक समस्याएँ न सुलझाने के परिणाम थे।

बाद में, मैंने परमेश्वर के वचनों में यह भी पढ़ा, "जब परमेश्वर कहता है कि लोग अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा को अलग रखें, तो ऐसा नहीं है कि वह लोगों को चुनने के अधिकार से वंचित कर रहा है; बल्कि यह इस कारण से है कि प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागते हुए लोग कलीसिया के कार्य और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन-प्रवेश को अव्यवस्थित और बाधित कर देते हैं, यहाँ तक कि उनका दूसरों के द्वारा परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने, सत्य को समझने और इस प्रकार परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करने पर भी प्रभाव पड़ सकता है। यह एक निर्विवाद तथ्य है। जब लोग अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागते हैं, तो यह निश्चित है कि वे सत्य का अनुसरण नहीं करेंगे और ईमानदारी से अपना कर्तव्य नहीं निभाएँगे। वे सिर्फ प्रतिष्ठा और रुतबे की खातिर ही बोलेंगे और कार्य करेंगे, और वे जो भी काम करते हैं, वह बिना किसी अपवाद के इन्हीं चीजों के लिए होता है। इस तरह से व्यवहार और कार्य करना, बिना किसी संदेह के, मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलना है; यह परमेश्वर के कार्य में व्यवधान और गड़बड़ी है, और इसके सभी विभिन्न परिणाम राज्य के सुसमाचार के प्रसार और कलीसिया के भीतर परमेश्वर की इच्छा के मुक्त प्रवाह में बाधा डालना है। इसलिए, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि प्रतिष्ठा और रुतबे के पीछे भागने वालों द्वारा अपनाया जाने वाला मार्ग परमेश्वर के प्रतिरोध का मार्ग है। यह उसका जानबूझकर किया जाने वाला प्रतिरोध है, उसे नकारना है—यह परमेश्वर का प्रतिरोध करने और उसके विरोध में खड़े होने में शैतान के साथ सहयोग करना है। यह लोगों की हैसियत और प्रतिष्ठा के पीछे भागने की प्रकृति है। अपने हितों के पीछे भागने वाले लोगों के साथ समस्या यह है कि वे जिन लक्ष्यों का अनुसरण करते हैं, वे शैतान के लक्ष्य हैं—वे ऐसे लक्ष्य हैं, जो दुष्टतापूर्ण और अन्यायपूर्ण हैं। जब लोग प्रतिष्ठा और हैसियत जैसे व्यक्तिगत हितों के पीछे भागते हैं, तो वे अनजाने ही शैतान का औजार बन जाते हैं, वे शैतान के लिए एक वाहक बन जाते हैं, और तो और, वे शैतान का मूर्त रूप बन जाते हैं। वे कलीसिया में एक नकारात्मक भूमिका निभाते हैं; कलीसिया के कार्य के प्रति, और सामान्य कलीसियाई जीवन और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामान्य लक्ष्य पर उनका प्रभाव परेशान करने और बिगाड़ने वाला होता है; उनका प्रतिकूल और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है" (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग एक))। परमेश्वर के वचनों पर चिंतन करते हुए, मैंने देखा कि मैं अपना कर्तव्य निभाने के नाम पर सिर्फ अपनी छवि और रुतबे को बचा रही थी, और कलीसिया के काम की रक्षा नहीं कर रही थी, जिससे काम को नुकसान पहुंचा था। मैं डरती थी कि पेशे की समझ न होने के कारण दूसरे मुझे मुझे नीची नजर से देखेंगे, तो अपनी कमियाँ छिपाने के लिए, मैंने कामकाज की चर्चाओं में हिस्सा नहीं लिया, न ही किसी खास काम की कोई खोज-खबर ली। समूह अगुआ को मनमाने ढंग से चलते और काम में अड़ंगे पैदा करते देखकर भी मैं इसका समाधान नहीं कर पाई। मुझे यह भी डर था कि ऊपर के अगुआओं को मेरे व्यावहारिक काम न करने का पता चल जाएगा और मुझे बर्खास्त कर दिया जाएगा, इसलिए मैंने उनसे शिकायत करके हल ढूँढने की तत्परता नहीं दिखाई, और कलीसिया के काम को नुकसान पहुँचते देखती रही। मैं धड़ल्ले से तथ्यों को छिपा रही थी, अपने से ऊपर और नीचे वालों को धोखा दे रही थी, और लोगों को इस भ्रम में रखे हुए थी कि मेरी देखरेख वाला काम ठीक-ठाक और सामान्य था, ताकि मैं अपना अगुआ का ओहदा बचाए रख सकूँ। पर जहां मैं अपनी छवि और रुतबे को बचाने की भरसक कोशिश कर रही थी, वहीं मेरे भाई-बहन बेबस महसूस कर रहे थे, और अपने काम में आगे नहीं बढ़ पा रहे थे। वे दुखी थे और अपने जीवन में तकलीफ़ों का सामना कर रहे थे, जिससे काम में अड़चनें आ रही थीं। पर मुझे इसकी जरा भी परवाह नहीं थी। क्या ये सभी एक झूठी अगुआ होने के लक्षण नहीं थे? इन बातों पर चिंतन करते हुए, मुझे थोड़ा डर लगा, साथ ही पछतावा और अफसोस भी होने लगा। मुझे इतनी स्वार्थी और धोखेबाज होने को लेकर खुद पर कोफ्त हो रही थी। मेरी चेतना मानो इस सबसे अनजान और सुन्न थी! वीडियो का काम कलीसिया के काम का एक प्रमुख अंग है। मैं कितना महत्वपूर्ण कर्तव्य निभा रही थी, फिर भी मैं परमेश्वर की इच्छा का ध्यान नहीं रख रही थी। मैं हर बात में अपनी छवि और रुतबे का ध्यान रख रही थी, और कलीसिया के काम में अड़चनें और परेशानियाँ पैदा कर रही थी। अपने कर्तव्य में अपने व्यवहार और कलीसिया के काम को पहुंचे नुकसान को याद करना इतना पीड़ाजनक था मानो मेरे दिल पर छुरियाँ चल रही हों। मुझे परमेश्वर के सामने आते शर्म आ रही थी। मैंने आंसुओं और पछतावे की भावना के साथ परमेश्वर से प्रार्थना की, "परमेश्वर, मैं धूर्त थी और अपने कर्तव्य में चालबाजी कर रही थी, मैंने कोई व्यावहारिक काम भी नहीं किया। मैंने कलीसिया को जो नुकसान पहुंचाया है, उसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती। मैं आगे से अपने कर्तव्य को लेकर तुम्हारे सामने प्रायश्चित करना चाहती हूँ, और चाहती हूँ कि तुम मेरी जांच करो!"

बाद में, मुझे परमेश्वर के वचनों में अभ्यास और जीवन प्रवेश के कुछ तरीके मिले। "साधारण और सामान्य इंसान कैसे बनें? जैसा कि परमेश्वर कहता है, उस तरह लोग एक सृजित प्राणी का उचित स्थान कैसे ग्रहण कर सकते हैं—कैसे वे महामानव या कोई महान हस्ती बनने की कोशिश नहीं कर सकते? एक साधारण और सामान्य इंसान बनने के लिए तुम्हें कैसे अभ्यास करना चाहिए? यह कैसे किया जा सकता है? ... पहली बात, अपनी उपाधि के फेर में मत पड़ो। मत कहो, 'मैं अगुआ हूँ, मैं टीम का मुखिया हूँ, मैं निरीक्षक हूँ, इस काम को मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता, मुझसे ज्यादा इन कौशलों को कोई नहीं समझता।' अपनी स्व-प्रदत्त उपाधि के फेर में मत पड़ो। जैसे ही तुम ऐसा करते हो, वह तुम्हारे हाथ-पैर बाँध देगी, और तुम जो कहते और करते हो, वह प्रभावित होगा; तुम्हारी सामान्य सोच और निर्णय भी प्रभावित होंगे। तुम्हें इस हैसियत की बेड़ियों से खुद को आजाद करना होगा; पहले खुद को इस आधिकारिक पद से नीचे ले आओ, जो तुम्हें लगता है कि तुम्हारे पास है, और एक आम इंसान की जगह खड़े हो जाओ; अगर तुम ऐसा करते हो, तो तुम्हारा रवैया सामान्य हो जाएगा। तुम्हें यह भी स्वीकार करना और कहना चाहिए, 'मुझे नहीं पता कि यह कैसे करना है, और मुझे वह भी समझ नहीं आया—मुझे कुछ शोध और अध्ययन करना होगा,' या 'मैंने कभी इसका अनुभव नहीं किया है, इसलिए मुझे नहीं पता कि क्या करना है।' जब तुम वास्तव में जो सोचते हो, उसे कहने और ईमानदारी से बोलने में सक्षम होते हो, तो तुम सामान्य समझ से युक्त हो जाओगे। दूसरों को तुम्हारा वास्तविक स्वरूप पता चल जाएगा, और इस प्रकार वे तुम्हारे बारे में एक सामान्य दृष्टिकोण रखेंगे, और तुम्हें कोई दिखावा नहीं करना पड़ेगा, न ही तुम पर कोई बड़ा दबाव होगा, इसलिए तुम लोगों के साथ सामान्य रूप से संवाद कर पाओगे। इस तरह जीना निर्बाध और आसान है; जिसे भी जीवन थका देने वाला लगता है, उसने उसे ऐसा खुद बनाया है। ढोंग या दिखावा मत करो; पहले वह खुलकर बताओ, जो तुम अपने दिल में सोच रहे हो, अपने सच्चे विचारों के बारे में खुलकर बात करो, ताकि हर कोई उन्हें जान और उन्हें समझ ले। नतीजतन, तुम्हारी चिंताएँ और तुम्हारे और दूसरों के बीच की बाधाएँ और संदेह समाप्त हो जाएँगे। तुम किसी और चीज से भी बाधित हो। तुम हमेशा खुद को टीम का मुखिया, अगुआ, कार्यकर्ता, या किसी पदवी और हैसियत वाला इंसान मानते हो : अगर तुम कहते हो कि तुम कोई चीज नहीं समझते, या कोई काम नहीं कर सकते, तो क्या तुम खुद को बदनाम नहीं कर रहे? जब तुम अपने दिल की ये बेड़ियाँ हटा देते हो, जब तुम खुद को एक अगुआ या कार्यकर्ता के रूप में सोचना बंद कर देते हो, और जब तुम यह सोचना बंद कर देते हो कि तुम अन्य लोगों से बेहतर हो, और महसूस करते हो कि तुम एक आम इंसान हो जो अन्य सभी के समान है, कि कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जिनमें तुम दूसरों से कमतर हो—जब तुम इस रवैये के साथ सत्य और काम से संबंधित मामलों में संगति करते हो, तो प्रभाव अलग होता है, और अनुभूति भी अलग होती है। अगर तुम्हारे दिल में हमेशा शंकाएँ रहती हैं, अगर तुम हमेशा तनावग्रस्त और बाधित महसूस करते हो, और अगर तुम इन चीजों से छुटकारा पाना चाहते हो लेकिन नहीं पा सकते, तो तुम परमेश्वर से गंभीरता से प्रार्थना करके, आत्मचिंतन करके, अपनी कमियाँ देखकर, सत्य की दिशा में प्रयास करके और सत्य को अमल में लाकर ऐसा करने में सफल हो सकते हो" (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, परमेश्वर के वचनों को सँजोना परमेश्वर में विश्वास की नींव है)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मेरा दिल खिल उठा। पहले मैं हमेशा खुद को एक अगुआ के रूप में देखती थी। हमेशा यह दिखाना चाहती थी कि मैं सब कुछ जानती हूँ, ताकि दूसरे मेरा मान करें। मैं नहीं चाहती थी कि दूसरे मेरी असलियत जानें। मेरा मानना था कि एक अगुआ होने के लिए दूसरों से ऊंचा और सर्वगुण संपन्न होना जरूरी है। ऐसा सोचना गलत था। दरअसल, मैं दूसरों से कोई खास बेहतर नहीं थी। मुझमें भी वही भ्रष्ट स्वभाव थे जो मेरे भाई-बहनों में थे। और बहुत-सी बातें ऐसी थीं जिन्हें मैं साफ-साफ देख और समझ नहीं पाती थी। एक अगुआ होना सिर्फ अभ्यास का एक अवसर था। मुझे अपने ओहदे को भूलकर ईमानदार होना चाहिए था, अपने भाई-बहनों के सामने अपनी असलियत रखनी चाहिए थी, और अपने-अपने कर्तव्य निभाने में दूसरों के साथ बराबरी से सहयोग करना चाहिए था। अगर मुझे किसी चीज की समझ नहीं है, तो इसे स्वीकारना चाहिए, और जानकारों को ज्यादा संगति करने देनी चाहिए। इस तरह, सही समय पर मैं काम की समस्याएँ सुलझा सकती थी और अपनी कमियों की भी भरपाई कर सकती थी। अगर किसी समस्या को मैं साफ-साफ समझ नहीं पाती या उसे हल नहीं कर पाती, तो मुझे समय पर ऊपर वालों को रिपोर्ट करनी चाहिए, ताकि बाद में कोई गंभीर समस्या पैदा न हो।

अब मुझे फिर से अगुआ चुन लिया गया है। मैं बहुत आभारी हूँ और जानती हूँ कि यह मेरे लिए प्रायश्चित करने का अवसर है। मैं अपने पिछले अपराधों की भरपाई नहीं कर सकती, पर मैं भविष्य में अच्छे-से-अच्छा करना चाहती हूँ। मैंने खुद से प्रतिज्ञ की : मैं जो कुछ भी कर सकती हूँ या मुझे करना चाहिए, मैं करूंगी, और अच्छी तरह कर्तव्य निभाऊँगी और अगर अपने भ्रष्ट स्वभाव के कारण मैं अपने कर्तव्य में फिर से गैर-जिम्मेदार बन जाती हूँ, तो परमेश्वर की ताड़ना और अनुशासन से गुजरना चाहूंगी। अब मेरे कर्तव्य में ऐसे बहुत-से काम हैं, जिनके बारे में मैं ज्यादा नहीं जानती। कई बार, जब भाई-बहन मेरे पास ऐसे काम की चर्चा करने आते हैं, जिसे मैं अच्छी तरह नहीं समझती, और मेरा मन होता है कि इसे टाल दूँ और इसमें हिस्सा न लूँ, तो मैं अपने पिछले सबक़ों को याद करके सहम जाती हूँ। मैं झट-से परमेश्वर से प्रार्थना करती हूँ, और मुझे शांत रखने और सब कुछ ध्यान से सुनने में सक्षम बनाने के लिए कहती हूँ, ताकि मैं भाई-बहनों के साथ सहयोग करके समस्याओं को हल करने के उपाय तलाश सकूँ। अपनी हालत में यह बदलाव लाने के बाद, जब मैं जिम्मेदारी लेते हुए इन कामों से सचमुच जुड़ती हूँ, तो मैं न सिर्फ समस्या को पहचान पाती हूँ, बल्कि कई बार ठीक-ठाक सुझाव भी दे देती हूँ। जब सिद्धांत के मसले होते हैं, जिन्हें मैं साफ-साफ देख या हल नहीं कर पाती, तो मैं वरिष्ठ अगुआओं से बात करके उनकी मदद लेती हूँ। इस तरह, काम में देर नहीं होती, और समस्या जल्दी से सुलझ जाती है।

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