अपने ही पिता की "कैदी"
साल 2020 की गर्मियों में। जब मैंने और मेरी बहन अल्बीना ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का एक वीडियो देखा जिसका नाम था स्वप्न से जागृति। इस वीडियो में कहा गया था कि प्रभु यीशु लौट आया है। हमारी उत्सुकता बढ़ी, तो हमने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का ऐप डाउनलोड किया और कलीसिया के भाई-बहनों से संपर्क किया। उन्होंने हमें गवाही दी कि कैसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने बहुत-से सत्य व्यक्त किये हैं, न्याय का कार्य किया है और विजेताओं का एक समूह बना लिया है। मैं इतनी उत्साहित थी कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ती चली गई। मैंने देखा कि उसके वचन अधिकार और सामर्थ्य से भरपूर थे, वे सभी सत्य थे, और यह भी जाना कि कोई इंसान ऐसे वचन व्यक्त नहीं कर सकता—यह परमेश्वर की वाणी है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है! मुझे और मेरी बहन को काफी प्रेरणा मिली, हमने खुशी-खुशी सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य स्वीकार लिया। हम अक्सर भाई-बहनों के साथ ऑनलाइन सभा और परमेश्वर के वचनों पर संगति करते।
हमें हैरानी हुई, जब हमारे पिता ने हमें रूढ़िवादी चित्रों के आगे प्रार्थना करने के बजाय सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की सभाओं में ऑनलाइन हिस्सा लेते देखकर कहा कि हम दूसरे परमेश्वर की आराधना कर प्रभु यीशु को धोखा दे रहे हैं। उनका ऐसा कहना गलत था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़कर, मैंने जाना कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर और प्रभु यीशु एक ही परमेश्वर, एक ही आत्मा हैं। वे अलग युगों में अलग कार्य करते परमेश्वर के प्रतिनिधि हैं। अनुग्रह के युग में, परमेश्वर ने छुटकारे का कार्य करने के लिए यीशु नाम अपनाया। अब, अंत के दिनों में परमेश्वर ने देहधारण कर न्याय और स्वच्छ बनाने का कार्य करने के लिए एक नया नाम अपनाया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर नया नाम है जो लौटे प्रभु यीशु ने लिया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास प्रभु यीशु से धोखा नहीं है, बल्कि मैं तो प्रभु यीशु की वापसी का स्वागत कर परमेश्वर के पदचिह्नों पर ही चल रही हूँ। मगर मेरे पिता ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन नहीं पढ़े थे, वे परमेश्वर के कार्य को नहीं पहचानते थे, न जानते थे कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आया प्रभु यीशु है। मैंने समझाने की कोशिश की, मगर उन्होंने मुझे बोलने का मौका ही नहीं दिया और अपने विचारों पर ही अड़े रहे, मुझे फटकार भी लगाई। उन्होंने कहा कि अगर हमें दोबारा सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ते देख लिया तो वह हमें पीटेंगे, सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने से रोकने के लिए हमें मारकर जेल जाने को भी तैयार हैं। अपने पिता से ऐसी बातें सुनकर मैं तो दंग रह गई। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि हमें परमेश्वर में विश्वास रखने से रोकने की खातिर वह ऐसा जहर उगलेंगे। उस दिन, उन्होंने हमें घर से निकाल दिया और हम पैजामों में कई घंटों तक बाहर बैठे रहने पर मजबूर थे। उस वक्त मैं बहुत परेशान थी, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : “प्रिय परमेश्वर, मैं थोड़ी कमजोर महसूस कर रही हूँ, पर जानती हूँ कि मुझे मजबूत रहकर यह सब सहना होगा। मेरे पिता चाहे मुझे कितना भी रोकें, मैं तुम पर विश्वास करती रहूँगी। कृपा करके मुझे आस्था और शक्ति दो।” तभी मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश याद आया : “तुम में मेरी हिम्मत होनी चाहिए, जब उन रिश्तेदारों का सामना करने की बात आए जो विश्वास नहीं करते, तो तुम्हारे पास सिद्धांत होने चाहिए। लेकिन तुम्हें मेरी खातिर किसी भी अन्धकार की शक्ति से हार नहीं माननी चाहिए। पूर्ण मार्ग पर चलने के लिए मेरी बुद्धि पर भरोसा रखो; शैतान के किसी भी षडयंत्र को काबिज़ न होने दो। अपने हृदय को मेरे सम्मुख रखने हेतु पूरा प्रयास करो, मैं तुम्हें आराम दूँगा, तुम्हें शान्ति और आनंद प्रदान करूँगा” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। परमेश्वर के वचनों ने मेरे दिल में जोश भर दिया और मुझे काफी हिम्मत दी। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि मेरे पिता चाहे मुझे कितना भी रोकें, उनकी बागडोर परमेश्वर के हाथों में है, मुझे उनसे डरना नहीं चाहिए। मुझे परमेश्वर से प्रार्थना कर हिम्मत और बुद्धिमानी माँगनी चाहिए ताकि इस अग्निपरीक्षा में सफल हो सकूं। इसके बाद, भले ही मेरे पिता अक्सर मुझ पर बिफर पड़ते, मुझे भाई-बहनों से संपर्क करने से रोकते, और अक्सर मेरे फोन की जांच भी करते, मगर मैं उनकी निगरानी से बचने की भरसक कोशिश करती, अक्सर बाथरूम, शॉवर, बेसमेंट या गार्डन में जाकर छिप जाती, ताकि भाई-बहनों से बातचीत कर सकूं।
जल्दी ही, नए सदस्यों का सिंचन करने वालों के तौर पर हमारी ट्रेनिंग शुरू हुई और हम छिपकर इसे करने लगे, मगर सिंचन की जरूरत वाले नए सदस्यों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ने लगी तो मैं हर दिन अपने कमरे में ही उनके साथ संगति और सभाएं करने लगी। मेरे पिता को संदेह हुआ कि मैं फिर से सभाएं कर रही हूँ तो उन्होंने मेरी निगरानी बढ़ा दी। वे न सिर्फ मेरे फोन की जांच करते, बल्कि जब मैं कमरे में अकेली होती, तो चुपके से यह देखने चले आते कि मैं क्या कर रही हूँ। उन्होंने घर में सुरक्षा कैमरे भी लगा दिये मेरे छोटे भाई को तोहफों का लालच देकर मेरी निगरानी करने को कहा। कभी-कभी तो अपने काम और कलीसिया से जुड़ी हर चीज फोन से मिटाने के सिवाय कोई चारा नहीं बचता था, कुछ समय के लिए ग्रुप चैट भी छोड़ देती, पर आखिर में, मेरे पिता ने मुझे आस्था का अभ्यास करते पकड़ लिया। उस दिन, वे फिर से शराब पीकर मुझे डाँटने-फटकारने लगे और परमेश्वर का तिरस्कार करने वाली बातें भी कहीं। मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर पाई, मैंने कहा : “मैं सच्चे परमेश्वर में विश्वास रखती हूँ जो लौटकर आया प्रभु यीशु है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मानवजाति को बचाने और हमें पाप और आपदाओं से मुक्त करने के लिए बहुत-से वचन व्यक्त किये हैं। यह उद्धार पाने का एकमात्र अवसर है, मुझे आस्था का अभ्यास करना ही होगा। अगर आप मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने से रोकने की कोशिश करते रहेंगे, तो मेरे यहाँ से जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं होगा।” उन्होंने कुछ नहीं कहा, फिर कुछ दिनों तक न तो मेरी आस्था के बारे में कुछ कहा, न ही मुझे दबाने की कोशिश की। मैंने सोचा कि सारी मुसीबत टल गई, पर कभी सोचा नहीं था कि यह तूफान से पहले की खामोशी थी। एक दिन, मैं एक सभा शुरू करने ही जा रही थी, कि मेरी बहन भागती हुई आई और कहा कि पिताजी ने मेरा फोन मंगाया है, मगर मैंने यह सोचकर फोन नहीं दिया कि वह इसे तोड़ भी सकते हैं। मेरा फोन कलीसिया से संपर्क करने का एकमात्र जरिया था, सिर्फ इसी पर मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ सकती थी। मैंने फौरन कलीसिया की एक बहन से संपर्क कर अपने परिवार की हालत बताई और जिन नए सदस्यों का सिंचन मेरे जिम्मे था, उसे सौंप दिया। उसके बाद, मैंने अपना फोन छिपा दिया।
उसी दिन, मेरे पिता ने मेरे अंकल को बुलाकर मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने से रोकने को कहा। पता नहीं था वे हमें दबाने के लिए कौन-से हथकंडे आजमाएंगे। तब परमेश्वर के वचनों के कुछ अंश मुझे याद आये : “परमेश्वर द्वारा मनुष्य के भीतर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय हस्तक्षेप से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज़, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाज़ी है, और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें। उदाहरण के लिए, जब अय्यूब को आजमाया गया था : पर्दे के पीछे शैतान परमेश्वर के साथ दाँव लगा रहा था, और अय्यूब के साथ जो हुआ वह मनुष्यों के कर्म थे, और मनुष्यों का हस्तक्षेप था। परमेश्वर द्वारा तुम लोगों में किए गए कार्य के हर कदम के पीछे शैतान की परमेश्वर के साथ बाज़ी होती है—इस सब के पीछे एक संघर्ष होता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। “जब परमेश्वर कार्य करता है, किसी की देखभाल करता है, उस पर नजर रखता है, और जब वह उस व्यक्ति पर अनुग्रह करता और उसे स्वीकृति देता है, तब शैतान करीब से उसका पीछा करता है, उस व्यक्ति को धोखा देने और नुकसान पहुँचाने की कोशिश करता है। अगर परमेश्वर इस व्यक्ति को पाना चाहता है, तो शैतान परमेश्वर को रोकने के लिए अपने सामर्थ्य में सब-कुछ करता है, वह परमेश्वर के कार्य को भ्रमित, बाधित और खराब करने के लिए विभिन्न बुरे हथकंडों का इस्तेमाल करता है, ताकि वह अपना छिपा हुआ उद्देश्य हासिल कर सके। क्या है वह उद्देश्य? वह नहीं चाहता कि परमेश्वर किसी भी मनुष्य को प्राप्त कर सके; परमेश्वर जिन्हें पाना चाहता है, वह उनकी संपत्ति छीन लेना चाहता है, वह उन पर नियंत्रण करना, उनको अपने अधिकार में लेना चाहता है, ताकि वे उसकी आराधना करें, ताकि वे बुरे कार्य करने और परमेश्वर का प्रतिरोध करने में उसका साथ दें। क्या यह शैतान का भयानक उद्देश्य नहीं है? ... परमेश्वर के साथ युद्ध करने और उसके पीछे-पीछे चलने में शैतान का उद्देश्य उस समस्त कार्य को नष्ट करना है, जिसे परमेश्वर करना चाहता है; उन लोगों पर कब्ज़ा और नियंत्रण करना है, जिन्हें परमेश्वर प्राप्त करना चाहता है; उन लोगों को पूरी तरह से मिटा देना है, जिन्हें परमेश्वर प्राप्त करना चाहता है। यदि वे मिटाए नहीं जाते, तो वे शैतान द्वारा इस्तेमाल किए जाने के लिए उसके कब्ज़े में आ जाते हैं—यह उसका उद्देश्य है” (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IV)। परमेश्वर के वचनों से एहसास हुआ कि मेरी आस्था को दबाने की मेरे परिवार की कोशिश शैतान की परीक्षा और रुकावट ही थी। शैतान नहीं चाहता था कि मैं परमेश्वर का अनुसरण करूं और बचाई जाऊं, उसने मेरे परिवार से मुझ पर हमले कराए, मुझे परमेश्वर को धोखा देने और ठुकराने को मजबूर किया। यह शैतान की धूर्त साजिश थी। मैंने याद किया कि कैसे अय्यूब की परीक्षा के समय शैतान ने उस पर हमले किये थे। उसकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई, उसके बच्चे मारे गये और उसके पूरे शरीर में फोड़े निकल आये। ऐसी भयंकर पीड़ा के बावजूद अय्यूब परमेश्वर की गवाही देकर शैतान को नीचा दिखाने में कामयाब रहा। मैं जानती थी मुझे अय्यूब का अनुकरण करना चाहिए : मेरे पिता और अंकल मुझे चाहे कितना भी दबाएँ और रोकें, मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर में अपनी आस्था पर अडिग रहकर शैतान को नीचा दिखाना ही होगा।
हमारे कमरे में आते ही वह हमें हमारी आस्था त्यागने का उपदेश देने लगे। उन्होंने कहा : “तुमने प्रभु यीशु को पीछे छोड़ कर कलीसिया जाना बंद कर दिया है—यह प्रभु से विश्वासघात है!” मैंने जवाब दिया : “सर्वशक्तिमान परमेश्वर और प्रभु यीशु एक ही परमेश्वर हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने लाखों वचन व्यक्त किये हैं, अनगिनत सत्य और रहस्यों का खुलासा किया है, जैसे परमेश्वर की 6,000 वर्षीय प्रबंधन योजना का रहस्य, उसके कार्य के तीन चरणों की अंदरूनी कहानी और परमेश्वर के नामों के रहस्य। उसने मानवजाति की पापी प्रकृति की जड़ और शैतान द्वारा हमारी भ्रष्टता की असलियत का भी खुलासा कर हमें उद्धार का मार्ग दिखाया है। दुनिया भर के बहुत-से लोगों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को सत्य और परमेश्वर की वाणी माना है, और प्रभु की वापसी का स्वागत किया है। तो बताइए, सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास कर हम कैसे प्रभु से विश्वासघात कर रहे हैं? जब प्रभु यीशु अपना कार्य करने आया था, तब बहुत-से लोगों ने मंदिर छोड़कर उसका अनुसरण किया था, क्या आप कहेंगे कि उन्होंने यहोवा परमेश्वर से विश्वासघात किया था? जब लोग प्रभु की वापसी की गवाही देते हैं, तब जो परमेश्वर की वाणी सुनने और प्रभु का अनुसरण करने में विफल रहते हैं, असल में वे ही प्रभु से विश्वासघात करते हैं।” यह सुनकर मेरे अंकल भड़क गए। उन्होंने कहा : “देखो इसे! मैंने जो कहा उस पर तो इसने ज़रा भी ध्यान नहीं दिया, उलटा मुझे ही भाषण झाड़ने लगी। यह मुझे बहकाकर कलीसिया से जोड़ने की कोशिश कर रही है!” फिर मेरी आंटी ने मुझे मनाने की कोशिश की। उपहास और व्यंग्य भरे अंदाज में उन्होंने सुझाव दिया कि अपना सारा समय आस्था रखने और दूसरों को बहकाने में बिताने के बजाय दूसरी महिलाओं की तरह मुझे भी शादी कर घर बसाना और कामकाजी जीवन जीना चाहिए। मैंने झट से जवाब दिया : “जब से विश्वासी बनी हूँ, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बहुत-से वचन पढ़े हैं, बहुत-सी बातों की गहरी समझ हासिल की है, जीवन का अर्थ जाना है और यह समझा है कि जीवन में सबसे सार्थक क्या है। इन दिनों, आपदा, युद्ध और अकाल की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, क्या शारीरिक भोग-विलास हमारी सुरक्षा की गारंटी बन सकता है, हमें आपदाओं से बचा सकता है? सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य स्वीकार कर, सत्य हासिल कर और पाप को त्याग कर ही हम आपदाओं में परमेश्वर की सुरक्षा पा सकते हैं और उसके राज्य में प्रवेश कर सकते हैं। यह उद्धार का एकमात्र रास्ता है।” उन्होंने कुछ नहीं कहा। मेरा अडिग रवैया देखकर, उन्होंने मुझे समझाने के लिए दादाजी और दूसरे अंकल को बुलाया। मैंने याद किया कि कैसे चीनी भाई-बहन उत्पीड़न और खतरा झेलते हुए मजबूती से डटे रह पाते हैं। मैं भी उन्हीं की तरह परमेश्वर की गवाही देकर शैतान को झुकाना चाहती थी, इसलिए मैंने प्रार्थना की : “हे परमेश्वर! मैं नहीं जानती कि मेरे दादाजी और बाकी लोग मुझसे क्या कहेंगे या मेरे साथ क्या करेंगे, कृपा करके मुझे आस्था और शक्ति दो।” मेरे दादाजी आते ही मुझे और मेरी बहन को फटकारने लगे, और अपनी बेल्ट निकालकर धमकाते हुए कहा : “अगर तुम दोनों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखना नहीं छोड़ा, तो अब से तुम मेरी पोतियां नहीं रहोगी!” यह सुनकर मैंने मन-ही-मन सोचा : भले ही पूरा परिवार मुझे त्याग दे, मैं कभी सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखना नहीं छोडूंगी। प्रभु यीशु ने कहा था, “जो कोई मनुष्यों के सामने मेरा इन्कार करेगा, उस से मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के सामने इन्कार करूँगा” (मत्ती 10:33)। लोगों का हमें त्यागना उतना डरावना नहीं है क्योंकि साथी इंसानों के बिना जिया जा सकता है, लेकिन अगर परमेश्वर ने हमें त्याग दिया, तो समझो किस्सा ही खत्म। इसलिए, वे चाहे जितना भी मुझे रोकें, मैं परमेश्वर को नहीं ठुकराऊंगी। मैंने दृढ़ता से कहा : “मैंने पहचान लिया है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही सच्चा परमेश्वर है। आप चाहे जो भी कहें, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में अपनी आस्था नहीं छोडूंगी।” मेरी बहन ने भी कहा कि वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था नहीं छोड़ेगी। हमारी बातों से हर कोई हैरान था। मेरे अंकल ने गुस्से में मेरा फोन उठाकर सख्ती से पूछा : “इससे तुम हर दिन किससे बात करती हो? कौन हैं वे लोग? उनके नाम क्या हैं? उनके फ़ोन नंबर दो! मैं पुलिस में उनकी रिपोर्ट कर दूंगा!” फिर उन्होंने मुझे फोन अनलॉक करने को कहा। मैंने जवाब नहीं दिया, तो वह और भड़क गए : “लगता है तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता, तुम मानोगी नहीं। तुम्हें मनोरोगियों के डॉक्टर के पास ले जाना पड़ेगा।” उनकी नजरों में, आस्था रखने का अर्थ कोई धार्मिक अपराध करना था, और जो लोग त्याग करते हैं और परमेश्वर के लिए खुद को खपाते हैं, वे असामान्य हैं। उसके बाद, परिवार के अन्य सदस्य भी बारी-बारी से डाँटने-फटकारने लगे, पर हम दोनों बहनें न तो डगमगाईं और न जवाब दिए। आखिर वे हमसे तंग आकर अपने घर चले गये।
वे उतने पर ही नहीं रुके। दो दिन बाद, मेरे पिता ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को बदनाम करने वाले कई वीडियो हमें दिखाये। वे बेहद अपमानजनक थे, क्योंकि मैं जानती थी वे झूठे और कलीसिया को बदनाम करने वाले हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करते मुझे भले ही ज्यादा समय न हुआ हो, पर मैंने उसके वचनों को पढ़कर कुछ सत्य तो समझे ही थे। मैं जानती थी पाप से मुक्त और शुद्ध होने के लिए कौन सा मार्ग सही है, और जीवन में किन चीजों का अनुसरण सबसे सार्थक है। मैंने परमेश्वर के वचनों के आधार पर चीजों को देखने का अभ्यास शुरू कर दिया था और अच्छे-बुरे की कुछ समझ हासिल कर ली थी। मैंने कुछ क्षेत्रों में सुधार कर लिया था और सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था से मुझे काफी मदद मिली थी। मुझे आंतरिक शांति और संतुष्टि का अनुभव होता था, मैं जान चुकी थी कि यही सच्चा मार्ग है, जिस पर परमेश्वर हमारा मार्गदर्शन करता है। मैंने अपने पिता से कहा : “आपने अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य की जांच-पड़ताल करने के बजाय ऑनलाइन फैलाई गई अफवाहों और भ्रांतियों पर विश्वास किया है। ये शैतान के फैलाये झूठ हैं। मैं सच्चे परमेश्वर में विश्वास रखती हूँ...” मगर मेरी बात काटकर मेरे पिता फिर से मुझे फटकारने लगे। बाद में, मेरे अंकल भी आ गये और मुझ पर दबाव डालने लगे : “केयाना, तुम हमारी अपनी हो, हम सब तुमसे बहुत प्यार करते हैं। तुम्हारे भले के लिए ही कह रहे हैं। तुम बाद में समझोगी। बस जल्द से जल्द इस कलीसिया को छोड़ दो।” उनकी बातों से मुझे याद आया कि कैसे शैतान ने अय्यूब पर हमले करने के लिये उसकी पत्नी का इस्तेमाल किया था। अय्यूब की पत्नी ने कहा था : “क्या तू अब भी अपनी खराई पर बना है? परमेश्वर की निन्दा कर, और चाहे मर जाए तो मर जा” (अय्यूब 2:9)। मगर अय्यूब ने उसकी बात मानने के बजाय यह कहकर उसे डांटा, “बेवकूफ औरत की तरह बात मत करो।” अब मेरा परिवार भी मुझे दबाने और रोकने की कोशिश कर रहा था। कहने को वे मेरी भलाई चाहते थे पर असल में मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर को त्यागने के लिए मजबूर कर रहे थे। मैं उनके झूठ-कपट से तंग आ चुकी थी, इसलिए चुप बैठकर सबको अनदेखा कर दिया। मैं उनसे बहुत कुछ कहना चाहती थी, पर जानती थी कि वे मेरी एक न सुनेंगे। मुझे झुकते न देखकर, मेरे पिता ने बेल्ट निकाला और कई बार मेरे चेहरे और हाथों पर मारा, मैं दर्द से कलपने लगी, आँसू बहने लगे। आखिर में, उन्होंने हम दोनों के फोन जब्त कर लिए, कलीसिया से हमारा संपर्क टूट गया। उसके बाद, पिता लगातार हमारी निगरानी करते रहे और हमें परमेश्वर के वचन पढ़ने से रोक दिया। वह हर जगह मेरा पीछा करते, मुझे अकेला नहीं छोड़ते थे, यहाँ तक कि वे मेरे हाव-भाव पर भी नजर रखने लगे—मुझे कुछ सोचते देखकर भी चिल्ला उठते : “उस परमेश्वर में विश्वास रखने के बारे में तो सोचना भी मत!” मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कुछ वचनों को याद किया : “विश्वासी और अविश्वासी संगत नहीं हैं, बल्कि वे एक दूसरे के विरोधी हैं” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। “जो भी देहधारी परमेश्वर को नहीं मानता, दुष्ट है और इसके अलावा, वे नष्ट किए जाएँगे। ... शैतान कौन है, दुष्टात्माएँ कौन हैं और परमेश्वर के शत्रु कौन हैं, क्या ये वे परमेश्वर के प्रतिरोधी नहीं जो परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते?” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। परमेश्वर ने अविश्वासियों के सार को उजागर किया है। मैं सोचती थी कि परिवार से ज्यादा करीब कोई नहीं होता, पर बार-बार रोके-दबाये जाने के बाद और परमेश्वर के वचनों से इसकी तुलना करके आखिर मुझे उनके असली रंग दिख गये। वे प्रभु में विश्वास रखते थे, फिर भी प्रभु की वापसी जैसी असाधारण बात सुनकर उनमें सत्य खोजने की ज़रा-सी भी इच्छा नहीं थी। उन्होंने परमेश्वर की वाणी नहीं सुनी और प्रभु का स्वागत नहीं किया, यहाँ तक कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकारने से रोकने के लिए हर हथकंडे आजमाए, हर तरह से उसकी आलोचना और निंदा करने वाली बातें कीं। वे परमेश्वर से नफरत और उसका विरोध करने वाले लोग थे। चूंकि वे परमेश्वर के शत्रु थे, तो मेरे भी शत्रु थे। मैं उनके जैसी नहीं थी।
अपने परिवार को थोड़ा समझ पाने के बावजूद, मैं लगातार में निगरानी रही, सभाओं में नहीं जा पाई और आध्यात्मिक मामलों में अपनी बहन के साथ अलग से बात तक नहीं कर पाती थी, तो समय के साथ मैं कमजोर पड़ने लगी। तब परमेश्वर के वचनों का यह अंश मुझे याद आया। “निराश न हो, कमज़ोर न बनो, मैं तुम्हारे लिए चीज़ें स्पष्ट कर दूँगा। राज्य की राह इतनी आसान नहीं है; कुछ भी इतना सरल नहीं है! तुम चाहते हो कि आशीष आसानी से मिल जाएँ, है न? आज हर किसी को कठोर परीक्षणों का सामना करना होगा। बिना इन परीक्षणों के मुझे प्यार करने वाला तुम लोगों का दिल मजबूत नहीं होगा और तुम्हें मुझसे सच्चा प्यार नहीं होगा। यदि ये परीक्षण केवल मामूली परिस्थितियों से युक्त भी हों, तो भी सभी को इनसे गुज़रना होगा; अंतर केवल इतना है कि परीक्षणों की कठिनाई हर एक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होगी। परीक्षण मेरे आशीष हैं, और तुममें से कितने मेरे सामने आकर घुटनों के बल गिड़गिड़ाकर मेरे आशीष माँगते हैं? बेवकूफ़ बच्चे! तुम्हें हमेशा लगता है कि कुछ मांगलिक वचन ही मेरा आशीष होते हैं, किंतु तुम्हें यह नहीं लगता कि कड़वाहट भी मेरे आशीषों में से एक है। जो लोग मेरी कड़वाहट में हिस्सा बँटाते हैं, वे निश्चित रूप से मेरी मिठास में भी हिस्सा बँटाएँगे। यह मेरा वादा है और तुम लोगों को मेरा आशीष है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 41)। परमेश्वर के वचनों ने मुझमें जोश भर दिया और लगा वह मेरे बेहद करीब है। परमेश्वर जानता था कि मैं क्या सोच रही हूँ, किन हालात से गुजर रही हूँ, उसने अपने वचनों से मुझे सहारा दिया और मेरा हौसला बढ़ाया। मैं जानती थी कि स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने का रास्ता दुष्कर था और सच्चे मार्ग पर चलने वाले को निरंतर सताया और ठुकराया जाता है, इसकी वजह यही है इस दुनिया पर शैतान का शासन है, वह परमेश्वर को यहाँ आकर सत्य व्यक्त करने और मानवजाति को बचाने नहीं देता है, लोगों को परमेश्वर का अनुसरण करने और उस पर विश्वास रखने देने की तो बात ही दूर है। नतीजतन, जो लोग ऐसा करते हैं उन्हें सताया जाता है। अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु में आस्था रखने के कारण बहुत-से लोगों को सताया गया, कई लोग शहीद भी हुए। अब, राज्य के युग में, परमेश्वर ने मानवजाति को बचाने के लिए फिर से देहधारण किया है। चीन में, काफी संख्या में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासियों को गिरफ्तार करके सताया गया है, उन्हें सीसीपी के हाथों मारपीट और यातनाएं झेलनी पड़ी हैं, मगर वे परमेश्वर में अपनी आस्था में अडिग रहे और उसके लिए गवाही दी। परमेश्वर में अपनी आस्था के कारण अपने परिवार से उत्पीड़न सहते हुए, शैतान के सामने परमेश्वर की गवाही देना मेरे लिए बड़े सम्मान की बात थी। मैंने कुछ मुश्किलों का सामना किया, पर इसमें परमेश्वर के नेक इरादे शामिल थे। मेरी आस्था में कमी थी और मैं शैतान की साजिश को समझ नहीं पाई, तो परमेश्वर ने मेरे परिवार के जरिए विघ्न-बाधा डालकर सिखाया कि मैं उस पर भरोसा रखकर, सही समझ हासिल करने के लिए सत्य खोजूं। इन हालात से मुझे सत्य समझने और अपना आध्यात्मिक कद बढ़ाने में मदद मिली। परमेश्वर के इरादों को समझने के बाद, मेरी चिंता कम हुई और ज्यादा सुकून मिला, इस अनुभव में मैंने परमेश्वर पर भरोसा रखने का फैसला किया। जब तक परमेश्वर मेरे साथ खड़ा है, मुझे किसी के रोकने-टोकने से फर्क नहीं पड़ता।
उस दौरान, मेरा परिवार लगातार हमारी निगरानी करता और हमें दबाता रहा। हम परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ पाते थे, मुझे इतना बुरा लगा कि मैंने यहाँ से भाग जाने की सोची। मेरी समझ से, भाग जाना ही एकमात्र रास्ता था। घर छोड़ दिया, तो सामान्य तरीके से आस्था का अभ्यास कर पाऊँगी, मगर भागने के सभी रास्ते बंद थे। मेरे पिता हमेशा घर पर ही रहते थे, मैं नहीं जानती थी कि उनकी नजरों से बचकर कैसे भागूं। परिवार के अन्य सदस्य भी मेरी निगरानी में लगे थे। सबसे बड़ी बात, मेरे पास पैसे नहीं थे, कहाँ जाऊं यह भी नहीं जानती थी। इस डर से कि अगर मैं भाग गई, तो मेरे पिताजी भाई-बहनों के बारे में पुलिस को बता देंगे। मैं हताश होकर हमेशा रोती रहती थी, नहीं चाहती थी कोई मुझे ऐसी हालत में देखे। उस दौरान, मैं लगातार डर के साये में जी रही थी। अपने कमरे में प्रार्थना करते हुए हमेशा चिंता रहती कि पिता अंदर आ जाएंगे, दरवाजा तोड़ डालेंगे और मुझ पर चिल्लाएंगे। इससे भी बड़ी चिंता यह थी कि वे मुझे और मेरी बहन को डांटेंगे-पीटेंगे। उत्पीड़न का यह सिलसिला कब तक चलेगा, मुझे कोई अंदाजा नहीं था। यह सोचकर कि भाई-बहन कैसे नियमित रूप से सभा करते होंगे, कैसे अपना कर्तव्य निभाते होंगे, जबकि मेरे पास अवसर ही नहीं था, मुझे उनसे ईर्ष्या होने लगी, मैंने प्रार्थना की : “प्रिय परमेश्वर, घर में अपनी आस्था का अभ्यास करते हुए मैं बहुत मुश्किलों का सामना कर रही हूँ। मैं घर छोड़कर जाना चाहती हूँ, ताकि आजादी से सभा कर सकूं और अपना कर्तव्य निभा सकूं। कृपा करके मुझे कोई रास्ता दिखाओ।”
एक दिन, मैं परिवार के सभी सदस्यों को चकमा देने में कामयाब हो गई और फोन पर परमेश्वर के वचनों के दो अंश पढ़े। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “परीक्षणों से गुजरते समय लोगों का कमजोर होना, या उनके भीतर नकारात्मकता आना, या परमेश्वर की इच्छा या अपने अभ्यास के मार्ग के बारे में स्पष्टता का अभाव होना सामान्य है। परंतु हर हालत में, अय्यूब की ही तरह, तुम्हें परमेश्वर के कार्य पर भरोसा होना चाहिए, और तुम्हें परमेश्वर को नकारना नहीं चाहिए। यद्यपि अय्यूब कमजोर था और अपने जन्म के दिन को धिक्कारता था, फिर भी उसने इस बात से इनकार नहीं किया कि मनुष्य के जीवन में सभी चीजें यहोवा द्वारा प्रदान की गई हैं, और यहोवा ही उन्हें वापस लेने वाला है। चाहे उसकी कैसे भी परीक्षा ली गई, उसने यह विश्वास बनाए रखा। अपने अनुभव में, तुम चाहे परमेश्वर के वचनों के द्वारा जिस भी शोधन से गुजरो, परमेश्वर को मानवजाति से जिस चीज की अपेक्षा है, संक्षेप में, वह है परमेश्वर पर उनका विश्वास और प्रेम। इस तरह से कार्य करके जिस चीज को वह पूर्ण बनाता है, वह है लोगों का विश्वास, प्रेम और अभिलाषाएँ। परमेश्वर लोगों पर पूर्णता का कार्य करता है, और वे इसे देख नहीं सकते, महसूस नहीं कर सकते; इन परिस्थितियों में तुम्हारा विश्वास आवश्यक होता है। लोगों का विश्वास तब आवश्यक होता है, जब कोई चीज खुली आँखों से न देखी जा सकती हो, और तुम्हारा विश्वास तब आवश्यक होता है, जब तुम अपनी धारणाएँ नहीं छोड़ पाते। जब तुम परमेश्वर के कार्य के बारे में स्पष्ट नहीं होते, तो आवश्यक होता है कि तुम विश्वास बनाए रखो, रवैया दृढ़ रखो और गवाह बनो। जब अय्यूब इस मुकाम पर पहुँचा, तो परमेश्वर उसे दिखाई दिया और उससे बोला। अर्थात्, केवल अपने विश्वास के भीतर से ही तुम परमेश्वर को देखने में समर्थ हो पाओगे, और जब तुम्हारे पास विश्वास होगा तो परमेश्वर तुम्हें पूर्ण बनाएगा। विश्वास के बिना वह ऐसा नहीं कर सकता” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। “अगर तुम पर ऐसी कई चीजें आ पड़ती हैं, जो तुम्हारी धारणाओं के अनुरूप नहीं होतीं, परंतु फिर भी तुम उन्हें एक तरफ रखने और इन चीजों से परमेश्वर के क्रियाकलापों का ज्ञान प्राप्त करने में समर्थ होते हो, और अगर शोधनों के बीच तुम परमेश्वर के प्रति प्रेम से भरा अपना हृदय प्रकट करते हो, तो यह गवाही देना है। अगर तुम्हारे घर में शांति है, तुम देह-सुख का आनंद लेते हो, कोई तुम्हारा उत्पीड़न नहीं करता, और कलीसिया में तुम्हारे भाई-बहन तुम्हारा आज्ञापालन करते हैं, तो क्या तुम परमेश्वर के प्रति प्रेम से भरा अपना हृदय प्रदर्शित कर सकते हो? क्या यह स्थिति तुम्हारा शोधन कर सकती है? केवल शोधन के माध्यम से ही परमेश्वर के लिए तुम्हारा प्रेम दर्शाया जा सकता है, और केवल अपनी धारणाओं के विपरीत घटित होने वाली चीजों के माध्यम से ही तुम पूर्ण बनाए जा सकते हो। कई नकारात्मक और विपरीत चीजों की सेवा और शैतान की तमाम तरह की अभिव्यक्तियों—उसके कामों, उसके आरोपों, उसकी बाधाओं और धोखों के माध्यम से—परमेश्वर तुम्हें शैतान का भयानक चेहरा स्पष्ट रूप से दिखाता है और इस प्रकार शैतान को पहचानने की तुम्हारी क्षमता को पूर्ण बनाता है, ताकि तुम शैतान से नफरत करो और उसे त्याग दो” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा)। परमेश्वर के वचन पढ़कर मुझे उसका इरादा समझ आया, मैंने देखा कि आस्था में हमें परीक्षणों और शोधनों का सामना करना पड़ता है। इन शोधनों के जरिये ही हम परमेश्वर में सच्ची आस्था हासिल कर सकते हैं। अय्यूब की ही कहानी देखें—जब उसने परीक्षण का सामना किया और अपनी गवाही में अडिग रहा, परमेश्वर में उसकी आस्था बड़ी और शैतान अपमानित होकर भाग गया। मैं जानती थी कि मुझे अय्यूब को अपना आदर्श बनाकर इस परीक्षा में मजबूती से डटे रहना होगा, मगर मैंने दिखाया था कि मेरी आस्था में ही कमी थी। जब मैं एक शांत और सुरक्षित माहौल में नियमित रूप से सभा कर सकती थी, तब मेरी आस्था मजबूत थी और मैं कहती थी : “चाहे जो भी हो जाये, मैं कभी परमेश्वर को दोष नहीं दूंगी।” मगर जब मेरे परिवार ने मुझे दबाया और मेरी आजादी छीनकर मुझे अपने घर में बंद कर दिया, तो मैं नकारात्मक और कमजोर हो गई। मैंने परमेश्वर में अपनी आस्था का त्याग नहीं किया, पर हमेशा शिकायत करती रही, हमेशा मुश्किलों से बचना चाहती थी, आराम भरी जिंदगी और आराधना का आरामदायक तरीका अपनाना चाहती थी। इससे साफ पता चलता था कि मेरी प्रकृति परमेश्वर को धोखा देने वाली थी। मैंने याद किया कि कैसे अय्यूब अडिग बना रहा। जब शैतान ने उसकी परीक्षा ली और उस पर हमले किये, उसने परमेश्वर से कोई शिकायत नहीं की, कभी परमेश्वर के सामने बेतुकी मांगें नहीं रखी, यहाँ तक कि अपने साथ ऐसी घटनाएं होने देने के लिए परमेश्वर से सवाल तक नहीं पूछा। अय्यूब ने परमेश्वर के सामने समर्पण कर उसमें श्रद्धा रखी, जबकि मैंने ऐसा नहीं किया। मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर ने परीक्षा लेकर मेरी आस्था को पूर्ण करने के लिए इन हालात का इस्तेमाल किया। अगर मैं हमेशा आराम में आस्था का अभ्यास करना चाहती, उसके बनाये हालात से बचकर उससे कुछ नहीं सीखती, तो आखिर में कुछ भी हासिल नहीं होता। मैंने जाना कि भले ही मैंने थोड़ी तकलीफ सही, पर परमेश्वर मुझे राह दिखाने के लिए हमेशा मेरे साथ खड़ा था। जब मैं कमजोर पड़ी, परमेश्वर के वचनों ने मुझे राहत दी, मेरा हौसला बढ़ाया। तो मैं परमेश्वर से शिकायत कैसे करती? मुझमें जमीर नाम की चीज नहीं थी। मैं उन भाई-बहनों से ईर्ष्या करती थी जिन्हें अपने परिवार के दमन का सामना नहीं करना पड़ा था, मगर अब इस बारे में सोचती हूँ : आखिर में किसे ज्यादा हासिल होता है? आराम और अनुग्रह में जीने वाले इंसान को या दमन और कष्ट झेलने वाले को? जवाब बिल्कुल साफ था। सब कुछ परमेश्वर के हाथों में और उसके आयोजन के अधीन है, परमेश्वर कोई निरर्थक काम नहीं करता। सिर्फ परमेश्वर जानता है कि कौन से हालात मेरे लिए नहीं बल्कि मेरे जीवन की प्रगति के लिए सबसे अच्छे होंगे, इसलिए मुझे समर्पित होकर सत्य खोजना चाहिए।
कुछ ही दिनों बाद, मेरे पिता को काम मिल गया और वे अक्सर बाहर जाने लगे। उस दौरान, मेरी बहन और मैं सुरक्षित तरीके से सभा कर परमेश्वर के वचन पर संगति कर पाती थी। जहाँ तक मेरे पिता के लगाये निगरानी कैमरों की बात थी, वे हमारे खिलाफ काम करने के बजाय असल में हमारी सुरक्षा में मदद ही करते थे, क्योंकि जब भी मेरे पिता घर लौटते, हम कैमरों से उन्हें आते देखकर अपनी सभा समेट लिया करते थे। फिर जब वे चले जाते, हम अपनी संगति जारी रखते। जब मेरे पिता घर में होते थे, तो हम सभाओं में हिस्सा नहीं ले पाते थे, तो हम उनसे किसी स्टोर में जाने की अनुमति मांगते, फिर इस मौके का फायदा उठाकर बाहर पार्क में बैठकर संगति करते। साल 2022 में, मेरी कलीसिया अगुआ ने मुझे नए सदस्यों के सिंचन का कार्य सौंपा, और बाद में मैं सुपरवाइजर बन गई। अपने पिता के दबाव और रुकावटों के बावजूद मैंने अपना कर्तव्य निभाना जारी रखा।
मैंने परमेश्वर के वचनों का अनुभव किया, उसकी सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धि को देखा, उसमें आस्था हासिल की। मैंने परमेश्वर में भरोसा रखना सीखा और अपनी समस्याएँ हल करने के लिए परमेश्वर के वचनों को ग्रहण करने का अभ्यास किया। मुझे परिवार के उन सदस्यों की समझ हासिल हुई जो विश्वास नहीं रखते थे और उनसे निपटने का तरीका भी सीखा। आराम की जिंदगी जीते हुए मैं इनमें से कुछ भी नहीं सीख पाती। परमेश्वर का कार्य कितना अद्भुत और व्यावहारिक है। मैंने दिल की गहराइयों से सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद किया।
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?