शादी और कर्तव्य के बीच मेरा संघर्ष और फैसला

16 दिसम्बर, 2025

यी आन, चीन

बचपन से ही, मुझे हमेशा एक सामंजस्यपूर्ण और भरे-पूरे परिवार का विचार पसंद था, लेकिन जब मैं प्राथमिक स्कूल में थी, तो मेरे पिता अचानक एक बीमारी की वजह से गुजर गए और इसलिए एक भरा-पूरा परिवार होना मेरा सपना बन गया। उस समय, मेरी माँ और दादी दोनों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का कार्य स्वीकार लिया था और मैंने उन्हें परमेश्वर के वचन पढ़ते, सभा करते और अपने कर्तव्य निभाते देखा और धीरे-धीरे वे किसी अपने को खोने के दर्द से उबर गईं। मैं जानती थी कि यह सब परमेश्वर का मार्गदर्शन है और मैंने सोचा कि जब मैं बड़ी हो जाऊँगी, तो मैं भी परमेश्वर में ठीक से विश्वास करूँगी और मुझे उम्मीद थी कि मेरा भावी जीवन-साथी भी मेरे साथ परमेश्वर में विश्वास करेगा। मुझे लगा कि एक-दूसरे के प्रति समर्पित एक सामंजस्यपूर्ण परिवार होने से मुझे संतुष्टि मिलेगी।

हाई स्कूल में, मेरी एक लड़के से मुलाकात हुई। वह बहुत सच्चा, परिपक्व और स्थिर लग रहा था। हमारे व्यक्तित्व भी अच्छी तरह मेल खाते थे, सबसे अहम बात थी कि वह भी मानता था कि एक परमेश्वर है और वह मेरा बहुत ख्याल रखता था, इसलिए हमने मिलना-जुलना शुरू कर दिया। वह जानता था कि मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता और मुझे ठंड बहुत जल्दी लगती है, इसलिए वह हर दिन मेरे लिए गर्म पानी तैयार करता था, वह अक्सर मुझे और ज्यादा व्यायाम करने के लिए प्रोत्साहित करता था। एक बार बहुत भारी बर्फबारी हो रही थी और हम साथ में बाहर गए, लेकिन जब हम वापस आए, तो मुझे एहसास हुआ कि मेरे दस्ताने खो गए हैं। तब तक बहुत अँधेरा हो चुका था, लेकिन जब उसे पता चला, तो वह बिना कुछ कहे तुरंत बाहर भागा और थोड़ी देर बाद, वह मेरे खोए हुए दस्ताने लेकर वापस आया। मैं सचमुच बहुत प्रभावित हुई और मुझे लगा कि वह मेरे लिए ही बना है। हालाँकि वह परमेश्वर में विश्वास नहीं करता था, लेकिन वह मानता था कि एक परमेश्वर है और उसने मेरे विश्वास का विरोध नहीं किया। मैंने सोचा कि अगर भविष्य में हमारी शादी हो गई, तो मैं अपना पारिवारिक जीवन जीते हुए परमेश्वर में विश्वास कर सकती हूँ। मुझे तो दोनों जहान की खुशियाँ मिल जाएँगी!

2013 की पतझड़ में, विश्वविद्यालय की पढ़ाई शुरू करने के बाद, मैंने नियमित रूप से सभाओं में जाना शुरू कर दिया। सभाओं में जाने और परमेश्वर के वचन पढ़ने के माध्यम से, मुझे कुछ सत्य समझ में आए और मैंने कुछ चीजों के बारे में कुछ भेद पहचाना। मैंने देखा कि स्कूल में बुरी प्रवृत्तियों का बोलबाला था, परीक्षाओं में नकल होती थी, किसी भी व्यवस्था में कोई निष्पक्षता या न्याय नहीं था। छात्र केवल खाने-पीने और मौज-मस्ती की बातें करते थे और वे भोग-विलास और पतन का जीवन जी रहे थे। लेकिन कलीसिया में, भाई-बहन इस बारे में बात नहीं करते थे कि उन्होंने कौन-सा घर खरीदा है या वे कौन-सी कार चलाते हैं, न ही वे एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते थे। जब हम इकट्ठा होते, तो परमेश्वर के वचन पढ़ते और सत्य पर संगति करते, हम अपने प्रकट किए गए भ्रष्ट स्वभावों के बारे में बात करते और यह भी कि हमने उन्हें कैसे समझा और कैसे सुलझाया; साथ ही हम इन बातों पर भी चर्चा करते कि दुनिया की बुरी प्रवृत्तियों को कैसे पहचानें, सुसमाचार का प्रचार कैसे करें और अपने कर्तव्य कैसे निभाएँ। जब मुश्किलें आतीं, तो सब एक-दूसरे का सहारा बनते और कोई किसी को नीची नजर से नहीं देखता था। जब मैं भाई-बहनों के साथ होती तो मुझे कोई बाधा महसूस नहीं होती थी और ऐसा लगता था जैसे परमेश्वर का घर एक शुद्ध भूमि है। मैं यह भी समझ गई कि शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जाने के बाद, लोग बहुत कष्ट में जीते हैं और केवल परमेश्वर के सामने आने, सत्य को समझने और उसकी देखभाल और सुरक्षा पाने से ही, कोई व्यक्ति कष्ट से बच सकता है और सच्ची शांति और सुकून पा सकता है। बाद में, मैंने अपने कर्तव्य निभाने की पूरी कोशिश की। स्कूल में, मैं उन सहपाठियों का सक्रिय रूप से समर्थन करती जो नियमित रूप से सभाओं में नहीं आते थे, अपनी पूरी क्षमता से उनके साथ संगति और उनकी मदद करती। बहनों को परमेश्वर के इरादे समझते और नियमित रूप से इकट्ठा होते देखकर, मुझे बहुत खुशी हुई और मैंने सोचा कि यह एक सार्थक बात है।

मैंने सोचा कि कैसे मेरा प्रेमी अभी तक परमेश्वर के सामने नहीं आया है, इसलिए मैं जल्द से जल्द उसके साथ सुसमाचार साझा करना चाहती थी ताकि वह भी परमेश्वर का अंत के दिनों का उद्धार पा सके। अगर वह भी परमेश्वर में विश्वास करता, तो हम स्नातक होने के बाद एक साथ परमेश्वर का अनुसरण कर सकते और अपने कर्तव्य निभा सकते थे। एक साझा लक्ष्य और अनुसरण होने से हम निश्चित रूप से बहुत खुश होते। लेकिन जब भी मैं उससे परमेश्वर में विश्वास करने के बारे में बात करती, वह हमेशा बस मुझे देखकर हल्की-सी मुस्कान दे देता और कभी-कभी बस इतना कह देता, “हाँ, जरूर।” परमेश्वर में विश्वास के प्रति उसका उदासीन रवैया देखकर, मुझे थोड़ी निराशा हुई, लेकिन चूँकि उसने मेरी आस्था का विरोध नहीं किया, इसलिए मैंने इस बारे में ज्यादा नहीं सोचा।

उस समय, जब भी मैं सभा से लौटती, तो मुझे सचमुच बहुत संतुष्टि महसूस होती थी, लेकिन इसकी तुलना में, जब भी मैं अपने प्रेमी के साथ खाने-पीने और मौज-मस्ती करने बाहर जाती, भले ही बाहर से मैं खुश दिखती थी, देह को संतुष्ट करने के बाद, मेरा दिल पूरी तरह से खोखला और खाली महसूस होता था। बाद में, मैंने सोचा, “ऐसा जीवन जीने का क्या अर्थ है?” एक दिन अपनी भक्ति के दौरान, मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “‘मनुष्य का पुत्र तो सब्त के दिन का भी प्रभु है’ वाक्य लोगों को बताता है कि परमेश्वर से संबंधित हर चीज़ भौतिक प्रकृति की नहीं है, और यद्यपि परमेश्वर तुम्हारी सारी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है, लेकिन जब तुम्हारी सारी भौतिक आवश्यकताएँ पूरी कर दी जाती हैं, तो क्या इन चीज़ों से मिलने वाली संतुष्टि तुम्हारी सत्य की खोज का स्थान ले सकती है? यह स्पष्टतः संभव नहीं है! परमेश्वर का स्वभाव और स्वरूप, जिसके बारे में हमने संगति की है, दोनों सत्य हैं। इनका मूल्य भौतिक वस्तुओं से नहीं मापा जा सकता, चाहे वे कितनी भी मूल्यवान हों, न ही इनके मूल्य की गणना पैसों में की जा सकती है, क्योंकि ये कोई भौतिक वस्तुएँ नहीं हैं, और ये हर एक व्यक्ति के हृदय की आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं। प्रत्येक व्यक्ति के लिए इन अमूर्त सत्यों का मूल्य ऐसी किसी भी भौतिक चीज़ से बढ़कर होना चाहिए, जिसे तुम मूल्यवान समझते हो, या नहीं? यह कथन ऐसा है, जिस पर तुम लोगों को सोच-विचार करने की आवश्यकता है। जो कुछ मैंने कहा है, उसका मुख्य बिंदु यह है कि परमेश्वर का स्वरूप और उससे संबंधित हर चीज़ प्रत्येक व्यक्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज़ें हैं और उन्हें किसी भौतिक चीज़ से बदला नहीं जा सकता। मैं तुम्हें एक उदाहरण दूँगा : जब तुम भूखे होते हो, तो तुम्हें भोजन की आवश्यकता होती है। यह भोजन कमोबेश अच्छा हो सकता है, या कमोबेश असंतोषजनक हो सकता है, किंतु यदि उससे तुम्हारा पेट भर जाता है, तो भूखे होने का वह अप्रिय एहसास अब नहीं रहेगा—वह मिट जाएगा। तुम चैन से बैठ सकते हो, और तुम्हारा शरीर आराम महसूस करेगा। लोगों की भूख का भोजन से समाधान किया जा सकता है, किंतु जब तुम परमेश्वर का अनुसरण करते हो, और तुम्हें यह एहसास होता है कि तुम्हें उसके बारे में कोई समझ नहीं है, तो तुम अपने हृदय के खालीपन का समाधान कैसे करोगे? क्या इसका समाधान भोजन से किया जा सकता है? या जब तुम परमेश्वर का अनुसरण कर रहे होते हो और उसके इरादों को नहीं समझते हो तो तुम अपने हृदय की उस भूख को मिटाने के लिए किस चीज़ का उपयोग कर सकते हो? परमेश्वर के माध्यम से उद्धार के अपने अनुभव की प्रक्रिया में, अपने स्वभाव में परिवर्तन की कोशिश करने के दौरान, यदि तुम उसके इरादों को नहीं समझते हो या यह नहीं जानते कि सत्य क्या है, यदि तुम परमेश्वर के स्वभाव को नहीं समझते, तो क्या तुम बहुत व्यग्र महसूस नहीं करोगे? क्या तुम अपने हृदय में ज़बरदस्त भूख और प्यास महसूस नहीं करोगे? क्या ये एहसास तुम्हें तुम्हारे हृदय में शांति महसूस करने से रोकेंगे नहीं? तो तुम अपने हृदय की उस भूख की भरपाई कैसे कर सकते हो—क्या इसके समाधान का कोई तरीका है? कुछ लोग खरीददारी करने चले जाते हैं, कुछ लोग मन की बात कहने के लिए मित्रों को खोजते हैं, कुछ लोग लंबी तानकर सो जाते हैं, अन्य लोग परमेश्वर के वचनों को और अधिक पढ़ते हैं, या वे अपने कर्तव्य निभाने के लिए और कड़ी मेहनत और प्रयास करते हैं। क्या ये चीज़ें तुम्हारी वास्तविक कठिनाइयों का समाधान कर सकती हैं? तुम सभी इस प्रकार के अभ्यासों को पूर्णतः समझते हो। जब तुम शक्तिहीन महसूस करते हो, जब तुम परमेश्वर से प्रबुद्धता पाने की दृढ़ इच्छा महसूस करते हो जो तुम्हें सत्य की वास्तविकता और उसके इरादों का ज्ञान करा सके, तो तुम्हें सबसे ज़्यादा किस चीज़ की आवश्यकता होती है? तुम्हें जिस चीज़ की आवश्यकता होती है, वह भरपेट भोजन नहीं है, और वह कुछ उदार वचन नहीं हैं, देह का क्षणिक आराम और संतुष्टि का तो कहना ही क्या—तुम्हें जिस चीज़ की आवश्यकता है, वह यह है कि परमेश्वर तुम्हें सीधे और स्पष्ट रूप से बताए कि तुम्हें क्या करना चाहिए और कैसे करना चाहिए, तुम्हें स्पष्ट रूप से बताए कि सत्य क्या है। जब तुम इसे समझ लेते हो, चाहे थोड़ा-सा ही क्यों न समझो, तो क्या तुम अपने हृदय में उससे अधिक संतुष्ट महसूस नहीं करोगे, जितना कि अच्छा भोजन करने पर महसूस करते हो? जब तुम्हारा हृदय संतुष्ट होता है, तो क्या तुम्हारा हृदय और तुम्हारा संपूर्ण अस्तित्व सच्ची शांति प्राप्त नहीं करता? इस उपमा और विश्लेषण के द्वारा, क्या तुम लोग अब समझे कि क्यों मैं तुम लोगों के साथ इस वाक्य को साझा करना चाहता था, ‘मनुष्य का पुत्र तो सब्त के दिन का भी प्रभु है’? इसका अर्थ है कि जो परमेश्वर से आता है, जो उसका स्वरूप है, और उसका सब-कुछ किसी भी अन्य चीज़ से बढ़कर है, जिसमें वह चीज़ या वह व्यक्ति भी शामिल है, जिस पर तुम किसी समय विश्वास करते थे कि उसे तुमने सबसे अधिक सँजोया है। अर्थात्, यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर के मुँह से वचन प्राप्त नहीं कर सकता या उसके इरादों को नहीं समझता तो उसे चैन नहीं मिल सकता(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर III)। परमेश्वर के वचनों से मैं समझ गई कि वास्तव में हमें जिन चीजों की जरूरत है, वह है हमारे दिलों का सुकून और संतुष्टि। जब हम मुश्किलों और उलझनों का सामना करते हैं, तो हम परमेश्वर के वचनों से प्रबोधन और मार्गदर्शन पा सकते हैं, सत्य समझ सकते हैं, अभ्यास का मार्ग पा सकते हैं, अपने दिलों में शांति और संतुष्टि महसूस कर सकते हैं। यह ऐसी चीज नहीं है जो भौतिक सुख-सुविधाओं से मिल सकती है। जैसे जब मैंने व्यक्तिगत लाभ के लिए साजिश रची और धोखा दिया, तो परमेश्वर के वचनों ने मेरे दिल में मुझे धिक्कारा और मुझे एहसास दिलाया कि मैं एक अविश्वासी की तरह भ्रष्ट स्वभावों के साथ नहीं जी सकती। जब मैंने परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास किया और एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में आचरण किया, तो मुझे अपने दिल में शांति और सुकून मिला। हर सप्ताहांत और छुट्टी पर, मेरी रूममेट्स सभी छात्रावास में रहतीं, अपना समय बर्बाद करतीं, जबकि मैं सभाओं में शामिल होने के लिए बाहर जाती थी। भले ही दैहिक सुखों में लिप्त होने का मेरा समय कम हो गया था, मुझे कुछ सत्य समझ में आए और मेरे दिल को शांति और सुकून महसूस हुआ। लेकिन जब मैं अपने प्रेमी के साथ बाहर जाती, चाहे हम कितनी भी मस्ती करते या खाना कितना भी अच्छा होता, वह केवल एक अस्थायी शारीरिक आनंद होता था, मुझे अपने दिल में खुशी या शांति नहीं मिलती थी, न ही मुझे कोई वास्तविक लाभ या फायदा होता था। इन बातों को समझने के बाद, मैं सभा करने और अपने कर्तव्य निभाने के अपने समय को और भी अधिक सँजोने लगी और मैं अपने प्रेमी के साथ बातचीत में कम समय बिताने लगी।

2014 के अंत में, मैं सर्दियों की छुट्टियों के लिए घर गई। कलीसिया के अगुआ मेरे पास आए और कहा कि कलीसिया को कर्तव्य निभाने के लिए अंग्रेजी बोलने वाले लोगों की तत्काल आवश्यकता है, वे जानते थे कि मेरे पास यह कौशल है, इसलिए उन्होंने पूछा कि क्या मैं यह कर्तव्य निभाने को तैयार हो पाऊँगी। कर्तव्य निभाने का ऐसा अवसर पाकर मैं बहुत खुश हुई। मुझे बचपन से ही अंग्रेजी पसंद है और कॉलेज में, मैंने अंग्रेजी में विशेषज्ञता चुनी और मेरे अंक हमेशा अच्छे आते थे। मेरा कौशल परमेश्वर की दी हुई एक देन है और मैं यह कर्तव्य करना चाहती थी, लेकिन मैंने सोचा कि मैं अभी भी एक रिश्ते में हूँ और मैं स्नातक होने के बाद अपने प्रेमी से शादी करने और एक छोटा परिवार शुरू करने पर विचार कर रही थी, मैंने सोचा, “अगर मैं अपना कर्तव्य निभाने के लिए बाहर जाती हूँ, तो मेरे पास अपने प्रेमी से मिलने-जुलने का समय कैसे होगा? हम हर समय एक साथ नहीं रह पाएँगे, तो क्या मेरा प्रेमी इसके लिए राजी होगा? क्या हमें अलग नहीं होना पड़ेगा?” अपने प्रेमी को छोड़ने के विचार ने मुझे उसके द्वारा की गई सभी अच्छी बातों के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया और मैं सच में अलग नहीं होना चाहती थी। अगुआओं ने देखा कि मुझमें ऐसा करने का कोई संकल्प नहीं है, इसलिए उन्होंने और कुछ नहीं कहा। भले ही मुझे अपने प्रेमी से अलग नहीं होना पड़ा, फिर भी मुझे अंदर से थोड़ा दुख हुआ, क्योंकि मैं जानती थी कि एक विदेशी भाषा के लिए मेरी प्रतिभा परमेश्वर की दी हुई एक देन है और मैं भी परमेश्वर के घर में उसके लिए खुद को खपाने के लिए अपने कौशल का अधिकतम उपयोग करना चाहती थी। लेकिन में देह के मामले में बहुत कमजोर थी और जब चुनने की बारी आई, तो मैंने फिर भी देह को ही चुना। मुझे ऋणी होने का गहरा एहसास और अपराध-बोध हुआ। बाद में, मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “जागो, भाइयो! जागो, बहनो! मेरे दिन में देरी नहीं होगी; समय जीवन है और समय को वापस लेना जीवन बचाना है! समय बहुत दूर नहीं है! यदि तुम लोग महाविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में असफल होते हो तो तुम इसके लिए बार-बार पढ़ाई कर सकते हो। लेकिन मेरे दिन में अब और देरी नहीं होगी। याद रखो! याद रखो! मेरे ये प्रोत्साहन के दयालु वचन हैं। दुनिया का अंत खुद तुम्हारी आँखों के सामने प्रकट हो चुका है और महा प्रलय जल्द ही आएगी। अधिक महत्वपूर्ण क्या है : तुम लोगों का जीवन या तुम्हारा सोना, तुम्हारा खाना-पीना और पहनना-ओढ़ना? समय आ गया है कि तुम इन चीजों को तोलो। अब और संशय मत करो! तुम इतने अधिक डरे हुए हो कि इन चीजों को गंभीरता से नहीं ले सकते, है ना?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 30)। अंत के दिनों में, परमेश्वर का देह धारण कर कार्य करना और मानवजाति को बचाना एक बहुत ही दुर्लभ अवसर है। मैंने अभी-अभी अपने कर्तव्यों का प्रशिक्षण शुरू ही किया था और मैं अभी तक कई सत्य नहीं समझती थी। मैं अपनी आस्था के मार्ग की शुरुआत में ही थी और यह मेरे लिए सत्य का अनुसरण करने का एक महत्वपूर्ण क्षण था। मैं परमेश्वर में विश्वास रखना, अपने कर्तव्यों को ठीक से पूरा करना चाहती और अधिक सत्यों को समझना चाहती थी। इसके अलावा, परमेश्वर का उद्धार का कार्य जल्द ही समाप्त होने वाला है और महा-विनाश जल्द ही आने वाले हैं। अगर मैं अभी शादी कर लेती और एक परिवार शुरू कर देती और अपने दिन पारिवारिक जीवन की छोटी-छोटी बातों में उलझकर बिताती, तो मेरे पास ठीक से सभाओं में शामिल होने और अपने कर्तव्य निभाने का समय कैसे होता? मैं सत्य का अनुसरण करने का सबसे अच्छा समय बर्बाद कर रही होती और मैं बचाए जाने का अपना मौका गँवा देती। इसके परिणाम भयानक होते! लेकिन इस बारे में सोचती हूँ तो मैं अभी भी एक रिश्ते में थी और अगर मैं शादी नहीं करती, तो क्या मुझे इस रिश्ते को छोड़ना नहीं पड़ता जिसे मैंने सालों से बनाया था? बस यह सोचने भर से मैं अनिच्छा से भर गई। उस समय, मैं सच में शादी करना और एक परिवार शुरू करना चाहती थी, लेकिन मैं जानती थी कि यह फैसला महत्वपूर्ण होगा और मेरे पूरे जीवन को प्रभावित करेगा, इसलिए मैं जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं कर सकती थी। अगर मैंने अपनी दैहिक इच्छाओं के आधार पर शादी करने का फैसला किया और मैंने बचाए जाने का अपना मौका गँवा दिया, तो पछताने के लिए बहुत देर हो चुकी होगी। बाद में मैं व्याकुल हो गई, समझ नहीं पा रही थी कि क्या करूँ और ऐसा लगा जैसे मेरे दिल पर कोई भारी पत्थर रखा हो।

सर्दियों की छुट्टियों से पहले, मुझे अपने प्रेमी का एक संदेश मिला, जिसमें लिखा था कि वह नए साल के दौरान सगाई पर चर्चा करने के लिए मेरे माता-पिता से मिलना चाहता है। मैं अपने प्रेमी के साथ कई सालों से रह रही थी, हम शादी करने वाले थे और मैं यह कल्पना किए बिना नहीं रह सकी कि हमारा एक साथ रहना कैसा होगा, इसके विभिन्न परिदृश्यों के बारे में सोचने लगी। लेकिन प्रभु यीशु ने कहा : “उन दिनों में जो गर्भवती और दूध पिलाती होंगी, उन के लिये हाय, हाय।” यह पद मेरे मन में आता रहा। अब प्रभु लौट आया है, कई सत्यों को व्यक्त कर रहा है और मानवजाति को बचाने का कार्य कर रहा है। इस महत्वपूर्ण क्षण में, अगर मैं शादी कर लेती और पारिवारिक मामलों में उलझ जाती और मुझे अपने पति की देखभाल करनी पड़ती और बच्चे पालने पड़ते, तो मैं सत्य का अनुसरण करने और बचाए जाने का अपना मौका गँवा सकती थी। मैं यह अवसर खोना नहीं चाहती थी! शादी या आस्था? जीवन जीना या अपने कर्तव्य निभाना? ये शब्द मेरे मन में कौंधते रहे। मुझे क्या चुनना था? बस यह सोचकर कि जिस जीवन की मैंने बचपन से चाहत की थी, वह शायद पूरा न हो, मुझे बहुत दुख हुआ, जैसे मैं एक-एक करके उन चीजों को अपने दिल से निकालकर फेंक रही हूँ जिन्हें मैं सबसे ज्यादा सँजोती थी। मुझे बहुत पीड़ा और अनिच्छा महसूस हुई। जब मेरे प्रेमी ने सगाई का विषय छेड़ा, तो मैंने जल्दबाजी में जवाब देने की हिम्मत नहीं की, क्योंकि मुझे डर था कि एक बार जब मैं मान गई, तो पीछे हटने का कोई रास्ता नहीं होगा। मैंने खुद को इतनी पीड़ा में पाया कि मैं प्रार्थना में परमेश्वर से गुहार लगा उठी, “परमेश्वर, शादी की संभावना का सामना करते हुए, मुझे समझ नहीं आ रहा कि क्या करूँ! मैं तुम्हारा अनुसरण करना और अपने कर्तव्य निभाना चाहती हूँ, लेकिन मैं शादी करना और एक पारिवारिक जीवन जीना भी चाहती हूँ। परमेश्वर, मैं दुविधा में हूँ और मुझे समझ नहीं आ रहा कि क्या करूँ। कृपया मेरा मार्गदर्शन करो और मुझे अपना इरादा समझने दो।”

बाद में, मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “यदि तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो, तो तुम्हें उससे प्रेम अवश्य करना चाहिए। यदि तुम परमेश्वर पर केवल विश्वास करते हो परंतु उससे प्रेम नहीं करते, और तुमने परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त नहीं किया है, और कभी भी अपने हृदय के भीतर से आने वाले सच्चे भाव से परमेश्वर से प्रेम नहीं किया है, तो परमेश्वर पर तुम्हारा विश्वास करना व्यर्थ है; यदि परमेश्वर पर अपने विश्वास में तुम परमेश्वर से प्रेम नहीं करते, तो तुम व्यर्थ ही जी रहे हो, और तुम्हारा संपूर्ण जीवन सभी जीवों में सबसे अधम है। यदि अपने संपूर्ण जीवन में तुमने कभी परमेश्वर से प्रेम नहीं किया या उसे संतुष्ट नहीं किया, तो तुम्हारे जीने का क्या अर्थ है? और परमेश्वर पर तुम्हारे विश्वास का क्या अर्थ है? क्या यह प्रयासों की बरबादी नहीं है? कहने का अर्थ है कि, यदि लोगों को परमेश्वर पर विश्वास और उससे प्रेम करना है, तो उन्हें एक क़ीमत अवश्य चुकानी चाहिए। बाहरी तौर पर एक खास तरीके से कार्य करने की कोशिश करने के बजाय, उन्हें अपने हृदय की गहराइयों में असली अंतर्दृष्टि की खोज करनी चाहिए। यदि तुम गाने और नाचने के बारे में उत्साही हो, परंतु सत्य को व्यवहार में लाने में अक्षम हो, तो क्या तुम्हारे बारे में यह कहा जा सकता है कि तुम परमेश्वर से प्रेम करते हो? परमेश्वर से प्रेम करने के लिए आवश्यक है सभी चीजों में उसके इरादों को खोजना, और जब तुम्हारे साथ कुछ घटित हो जाए, तो तुम अपने भीतर गहराई में खोज करो, परमेश्वर के इरादों को समझने की कोशिश करो, और यह देखने की कोशिश करो कि इन मामलों में परमेश्वर के इरादे क्या हैं, वह तुमसे क्या हासिल करने के लिए कहता है, और कैसे तुम्हें उसके इरादों के प्रति विचारशील रहना चाहिए। उदाहरण के लिए : जब ऐसा कुछ होता है, जिसमें तुम्हें कठिनाई झेलने की आवश्यकता होती है, तो उस समय तुम्हें समझना चाहिए कि परमेश्वर के इरादे क्या हैं, और कैसे तुम्हें उसके इरादों के प्रति विचारशील रहना चाहिए। तुम्हें स्वयं को संतुष्ट नहीं करना चाहिए : पहले अपने आप को अस्वीकार करो। देह से अधिक अधम कोई और चीज नहीं है। तुम्हें परमेश्वर को संतुष्ट करने की कोशिश करनी चाहिए, और अपना कर्तव्य पूरा करना चाहिए। ऐसे विचारों के साथ परमेश्वर इस मामले में तुम पर अपनी विशेष प्रबुद्धता लाएगा और तुम्हारे हृदय को भी आराम मिलेगा(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए, मुझे सचमुच बहुत अपराध-बोध हुआ। भले ही मैं परमेश्वर में विश्वास रखती थी, शादी के चुनाव का सामना करते हुए, मैंने परमेश्वर का इरादा नहीं खोजा, बल्कि अपनी कल्पनाओं पर भरोसा किया, यह सोचते हुए कि अपने प्रेमी के साथ रहने से मुझे खुशी मिलेगी और अगर मैंने उसे छोड़ दिया, तो मैं कभी भी वह जीवन नहीं जी पाऊँगी जिसका मैंने सपना देखा था। मैं बस अपनी देह और भविष्य की योजनाओं पर विचार कर रही थी और मैंने कभी यह नहीं सोचा था कि परमेश्वर का इरादा क्या है या मैं उसे कैसे संतुष्ट कर सकती हूँ। मैं इस तरह से नहीं चल सकती थी! मुझे एहसास हुआ कि मेरा भविष्य पूरी तरह से परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के अधीन है और यह ऐसी चीज नहीं है जिसे मैं खुद चुन सकती हूँ। जैसे जब मैं बच्ची थी, तो मैंने एक सामंजस्यपूर्ण और भरे-पूरे परिवार की कामना की थी, लेकिन मेरे पिता अचानक एक बीमारी से गुजर गए और इसलिए ये उम्मीदें टूट गईं, फिर भी परमेश्वर के मार्गदर्शन और सुरक्षा के कारण, मैं फिर भी खुशी-खुशी बड़ी हुई। मेरा भविष्य का जीवन भी परमेश्वर के हाथों में है; बहुत ज्यादा चिंता करने से मैं केवल अपनी परेशानियाँ बढ़ाऊँगी। मेरा प्रेमी मुझे सच्ची खुशी नहीं दे सकता था, इसलिए मैं उससे शादी करने और एक परिवार शुरू करने के बारे में सोचती नहीं रह सकती थी। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि मैं पहले यह पता लगाऊँ कि मैं वास्तव में क्या चाहती हूँ और किस तरह का जीवन मेरे लिए सबसे अधिक लाभदायक होगा।

स्कूल वापस आकर, मैंने अपनी दो रूममेट्स को हर दिन फोन पर अपने प्रेमियों से बात करते देखा। उनके चेहरों पर खुशी के भाव थे और मैं यह सोचते हुए दुख की एक टीस महसूस किए बिना नहीं रह सकी, “अब उन सबकी जोड़ियाँ बन गई हैं और जल्द ही वे पति-पत्नी बन जाएँगे, लेकिन मुझे एक ऐसे प्रेमी को छोड़ना पड़ेगा जिसके साथ मैं सालों से हूँ।” मुझे कड़वाहट महसूस हुई और यहाँ तक कि उनसे थोड़ी ईर्ष्या भी हुई। मैं सोचे बिना नहीं रह सकी, “ऐसा क्यों है कि जब मैं अपने सहपाठियों और दोस्तों को रिश्तों में देखती हूँ, तो मैं अभी भी दुखी और परेशान हो जाती हूँ? मेरे अपने प्रेमी से शादी करने की चाह की असली वजह क्या है? मैं इसे क्यों नहीं छोड़ सकती?” बाद में, मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “क्या तुम ताड़ना और न्याय के बाद जीत लिए जाने की कामना करते हो, या ताड़ना और न्याय के बाद शुद्ध किए जाने, रक्षा किए जाने और सँभाल लिए जाने की कामना करते हो? तुम इनमें से वास्तव में क्या पाना चाहते हो? क्या तुम्हारा जीवन अर्थपूर्ण है या अर्थहीन और मूल्यहीन है? तुम्हें देह चाहिए या तुम्हें सत्य चाहिए? तुम न्याय चाहते हो या सुख? परमेश्वर के कार्य का इतना अनुभव कर लेने और परमेश्वर की पवित्रता और धार्मिकता को देख लेने के बाद तुम्हें किस प्रकार खोज करनी चाहिए? तुम्हें इस पथ पर वास्तव में किस प्रकार चलना चाहिए? ... क्या ऐसा हो सकता है कि केवल शांति एवं आनंद, और केवल भौतिक आशीष एवं क्षणिक सुख ही मनुष्य के जीवन-विकास के लिए लाभदायक हैं? यदि मनुष्य सुकून और आराम के परिवेश में रहता है, बिना न्याय का जीवन जीता है तो क्या उसे शुद्ध किया जा सकता है? यदि मनुष्य बदलना और शुद्ध होना चाहता है, तो उसे पूर्ण किए जाने को कैसे स्वीकार करना चाहिए? आज तुम्हें कौनसा पथ चुनना चाहिए?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। परमेश्वर के वचनों से, मैं समझ गई कि असल में, मैं बस एक आरामदायक जीवन जीना चाहती थी। बचपन से ही, मैं एक स्नेहपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तरसती रही थी। मुझे लगा कि मेरा प्रेमी परिपक्व और स्थिर है, मेरा बहुत ख्याल रखता है और मैंने सोचा कि उसके साथ रहने से मेरी इच्छाएँ पूरी होंगी, इसलिए जब भी मैं उसे छोड़ने के बारे में सोचती, तो मुझे यह विचार बहुत मुश्किल लगता था। लेकिन क्या ऐसा जीवन सचमुच मेरे लिए फायदेमंद होगा? क्या यह सचमुच उतना ही सुखद होगा जितनी मैंने कल्पना की थी? अपने प्रेमी के साथ बिताए समय को याद करूँ तो आमतौर पर जब हम साथ होते थे, हम बस खाते-पीते, मौज-मस्ती करते और सतही बातें करते थे और इसके अलावा, हममें बहुत ज्यादा कुछ भी समान नहीं था। जब मुझे मुश्किलें आतीं, तो मैं उनका अनुभव करने के लिए प्रार्थना करती और परमेश्वर पर भरोसा करती और कभी-कभी, जब मुझे नहीं पता होता था कि इन चीजों का अनुभव कैसे किया जाए, तो मैं अपने भाई-बहनों के साथ खोजती और संगति करती थी। वास्तविक जीवन में मैं परमेश्वर के वचनों का अनुभव कैसे करती हूँ और खुद के और परमेश्वर के बारे में मेरी जो समझ है, ये सभी बातें मैं केवल अपने भाई-बहनों के साथ ही साझा कर सकती हूँ। जब मैं अपने प्रेमी के साथ थी, तो मेरी शारीरिक और भावनात्मक जरूरतें पूरी हो रही थीं, लेकिन मैं उसके साथ अपने मन की बात साझा नहीं कर सकती थी और हमारे पास बात करने के लिए कोई साझा विषय नहीं थे, तो ऐसा जीवन सच्ची खुशी कैसे ला सकता है? परमेश्वर ने यह भी कहा : “यदि मनुष्य सुकून और आराम के परिवेश में रहता है, बिना न्याय का जीवन जीता है तो क्या उसे शुद्ध किया जा सकता है?” भले ही मैं देह में एक आरामदायक जीवन जीती, परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना के बिना, मेरा भ्रष्ट स्वभाव कैसे शुद्ध होता और कैसे बदल सकता था और मैं मनुष्य जैसा सच्चा जीवन कैसे जी सकती थी? ठीक अतीत की तरह, मैं बस मौज-मस्ती करना चाहती थी और जब मैं छुट्टियों में घर जाती, तो मैं अक्सर घर पर ही रहती, अपनी देह की खुशी में लिप्त रहती, अपने फोन पर लगी रहती, पूरी रात जागती और दिन में उठ नहीं पाती थी, एक उद्देश्यहीन जीवन जी रही थी। जब मैं अपनी दादी के साथ होती, तो मैं अपना घमंडी स्वभाव प्रकट किए बिना और उनका तिरस्कार किए बिना नहीं रह पाती थी और कभी-कभी जब मेरी माँ मुझे डाँटती, तो मैं नखरे दिखाती थी। कभी-कभी मैं झूठ बोलती और धोखा भी देती थी, मुझमें सामान्य मनुष्य जैसा कुछ भी नहीं था। परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने से, मैं समझ गई कि सामान्य मानवता क्या है और एक सार्थक जीवन क्या है। मैंने एक सामान्य दिनचर्या अपनानी शुरू कर दी, अक्सर प्रार्थना करती और परमेश्वर के वचन खाती-पीती और जब मेरे सामने मसले आए, तो मैंने परमेश्वर के वचनों की रोशनी में आत्म-चिंतन करना और खुद को समझना सीखा। जब मैं घमंडी स्वभाव प्रकट करना, दूसरों को नीची नजर से देखना या धोखा देना और छल करना चाहती, तो मैं सचेत रूप से खुद के खिलाफ विद्रोह करती और परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करती थी। इस तरह, मैं थोड़ी-बहुत मनुष्य जैसी बन गई। लेकिन एक आरामदायक जीवन में, परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन के बिना, मैं सबसे बुनियादी सामान्य मानवता भी नहीं जी सकती थी और इससे भी बुरी बात यह थी कि मेरा प्रेमी मुझे बहलाता रहता था। मैं सचमुच नहीं जानती थी कि अगर यह चलता रहा तो मैं कितना नीचे गिरूँगी। इसके अलावा, शादी और पारिवारिक जीवन प्रेमियों के मेल-जोल जैसा नहीं हैं, जहाँ बस दो लोग एक साथ होते हैं; इसमें दोनों साथियों के परिवार भी होते हैं और पारिवारिक जीवन को भी बनाए रखना होता है। इसमें कई छोटे-मोटे मामले और बहुत-सी उलझनें भी होती हैं। अगर मैंने सचमुच शादी कर ली और एक परिवार शुरू कर दिया, तो मैं निश्चित रूप से बच्चों के पालन-पोषण और घर के छोटे-मोटे मामलों के बोझ तले दब जाऊँगी और तब मेरे पास सत्य का अनुसरण करने या अपने कर्तव्य निभाने का समय या ऊर्जा कैसे होगी? क्या मैं खुद को बर्बाद नहीं कर रही होऊँगी?

फिर मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा : “मेरे बोले वचन लोगों से उनकी वास्तविक परिस्थितियों के आधार पर अपेक्षा रखते हैं, और मैं उनकी आवश्यकताओं और उनमें निहित चीज़ों के अनुसार कार्य करता हूँ। व्यवहारिक परमेश्वर धरती पर व्यवहारिक कार्य करने के लिए आया है, लोगों की वास्तविक परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुसार कार्य करने के लिए आया है। वह अतर्कसंगत नहीं है। जब परमेश्वर कार्य करता है, तो वह लोगों को बाध्य नहीं करता। मिसाल के तौर पर, तुम्हारा विवाह करना या न करना, तुम्हारी परिस्थितियों की वास्तविकता पर निर्भर करता है; तुम्हें सत्य पहले ही साफ तौर पर बता दिया गया है, और मैं तुम्हें बेबस नहीं करता हूँ। कुछ लोगों का परिवार उन्हें परमेश्वर में आस्था रखने से रोकता है जिससे कि वे जब तक शादी न करें, परमेश्वर में आस्था न रख पाएँ। इस तरह, विवाह विपरीत तौर पर उनके लिए मददगार है। दूसरों के लिए, विवाह फायदेमंद नहीं है, बल्कि उसके कारण उन्हें वह भी गँवाना पड़ता है जो पहले उनके पास था। तुम्हारा अपना मामला तुम्हारी वास्तविक परिस्थितियों और तुम्हारे अपने संकल्प से तय होना चाहिए। मैं यहाँ तुम्हारे लिए नए नियम-कानून बनाने के लिए नहीं हूँ जिनके अनुसार मैं तुम लोगों से अपेक्षाएँ करूँ(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (7))। परमेश्वर के वचनों ने मुझे अभ्यास करने के लिए एक मार्ग और दिशा प्रदान की। जहाँ तक शादी की बात है, परमेश्वर हर किसी को अपनी पसंद चुनने का अधिकार देता है और हर व्यक्ति अपनी वास्तविक परिस्थितियों, पृष्ठभूमि और आध्यात्मिक कद के आधार पर चुनाव कर सकता है। मैं बहुत स्पष्ट रूप से समझ गई कि मेरे परिवार की परिस्थितियाँ मेरे लिए परमेश्वर में विश्वास करने और अपने कर्तव्य निभाने के लिए अधिक अनुकूल हैं। मेरा पूरा परिवार परमेश्वर में विश्वास करता है और वे मुझसे यह उम्मीद नहीं कर रहे हैं कि मैं कोई अच्छी नौकरी ढूँढूँ या इस दुनिया में एक अच्छा जीवन जियूँ और जब तक मैं एक सामान्य जीवन बनाए रख सकती हूँ, उतना ही काफी है। अगर मैंने अपना जीवन पूरी तरह से अपनी आस्था और अपने कर्तव्यों के लिए समर्पित करने का फैसला किया, तो मेरा परिवार मेरा पूरा समर्थन करेगा। लेकिन अगर मेरी शादी हो गई तो बात अलग होगी; मेरे साथी का परिवार अविश्वासी था और उनके विचार सांसारिक थे और मुझे रोजमर्रा की जिंदगी पर भी विचार करना पड़ेगा। अगर मैंने केवल अपनी आस्था और कर्तव्यों पर ध्यान केंद्रित किया, तो वे शायद मुझे सताएँगे भी। इसके अलावा, मैं भावुक थी और दैहिक आनंद की भी लालसा रखती थी, इसलिए अगर मैंने सचमुच शादी कर ली, तो मैं निश्चित रूप से पारिवारिक स्नेह में उलझ जाऊँगी और मेरी आस्था और मेरे कर्तव्यों का निर्वहन भी प्रभावित होगा। पिछले दो वर्षों में, सभाओं में जाने और परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने से मुझे कुछ सत्य समझ में आए हैं और मैंने महसूस किया है कि हर कोई इस दुनिया में अपने मिशन के साथ आता है। मेरा जन्म अंत के दिनों में और परमेश्वर में विश्वास करने वाले परिवार में हुआ और मेरे पास कुछ खास खूबियाँ और क्षमताएँ भी हैं। परमेश्वर ने मेरे लिए सब कुछ इतनी अच्छी तरह से तैयार किया है, इसलिए मुझे एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य पूरा करना चाहिए। अगर मैंने देह में एक आरामदायक जीवन का आनंद लेने के लिए अपने कर्तव्य छोड़ दिए, तो चाहे मैं अपनी देह को कितना भी सुख दूँ या कितना भी आरामदायक जीवन जिऊँ, मैं एक सृजित प्राणी के रूप में अपने कर्तव्य पूरे नहीं कर पाऊँगी। तो मेरे जीवन का क्या अर्थ रह जाएगा? मैं अपने प्रेमी की खातिर अपने कर्तव्य ठुकरा सकी थी, तो अगर हम एक साथ रहने लगें, फिर या तो मैं अपना ज्यादातर समय और ऊर्जा उसी पर खर्च करूँगी या मैं फिर से दैहिक स्नेह के कारण अपने कर्तव्य ठुकरा दूँगी। दैहिक स्नेह सचमुच मुझे परमेश्वर से विश्वासघात करने और मेरे उद्धार का मौका गँवाने की ओर ले जा सकता था!

फिर मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “अब चूँकि तुम मसीह का अनुसरण कर इस पीड़ा को अनुभव कर पा रहे हो तो यह एक आशीष है, क्योंकि इस दुख को भोगे बिना उद्धार पाना और जीवित रहना लोगों के लिए संभव नहीं है। यह परमेश्वर द्वारा पूर्वनियत है, इसलिए तुम पर यह कष्ट आना एक आशीष है। तुम्‍हें इसे एकांगी ढंग से नहीं देखना चाहिए; यह लोगों को कष्ट देने और उनके साथ खिलवाड़ करने का मामला नहीं है, बात बस इतनी ही है। इसका महत्व अत्यंत गहन और बड़ा है! किसी साथी की तलाश किए बिना या घर लौटे बिना स्‍वयं को परमेश्वर के लिए खपाने हेतु अपना पूरा जीवन लगा देना सार्थक है। यदि तुम सही रास्ता अपनाते हो और सही चीजों का अनुसरण करते हो तो फिर तुम अंततः सभी युगों के सभी संतों से भी अधिक पाओगे और इससे भी अधिक वादे प्राप्त करोगे(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सही मार्ग चुनना परमेश्वर में विश्‍वास का सबसे महत्‍वपूर्ण भाग है)। “युवा लोगों को आकांक्षाओं, प्रबल प्रेरणाओं और ऊपर की ओर बढ़ने की प्रचंड भावना से रहित नहीं होना चाहिए; उन्हें अपनी संभावनाओं को लेकर निराश नहीं होना चाहिए और न ही उन्हें जीवन में आशा और भविष्य में आस्था खोनी चाहिए; उनमें उस सत्य के मार्ग पर बने रहने की दृढ़ता होनी चाहिए, जिसे उन्होंने अब चुना है—ताकि वे मेरे लिए अपना पूरा जीवन खपाने की अपनी इच्छा साकार कर सकें। ... तुम लोगों को मेरे वचनों के अनुसार अभ्यास करना चाहिए। विशेष रूप से युवा लोगों को चीजों के तरीकों का भेद पहचानने और न्याय और सत्य खोजने के संकल्प से रहित नहीं होना चाहिए। तुम लोगों को सभी सुंदर और अच्छी चीजों का अनुसरण करना चाहिए और तुम्हें सभी सकारात्मक चीजों की वास्तविकता प्राप्त करनी चाहिए। यही नहीं, तुम्हें अपने जीवन के लिए उत्तरदायी होना चाहिए और तुम्हें इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। लोग पृथ्वी पर आते हैं और मेरे सामने आ पाना दुर्लभ है और सत्य को खोजने और प्राप्त करने का अवसर पाना भी दुर्लभ है। तुम लोग इस खूबसूरत समय को इस जीवन में अनुसरण करने का सही मार्ग मानकर महत्त्व क्यों नहीं दोगे?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, युवा और वृद्ध लोगों के लिए वचन)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे समझाया कि भले ही शादी न करने और परिवार न बसाने से कुछ कष्ट हो सकता है, हम जिन चीजों का अनुसरण कर रहे हैं वे हैं अपने कर्तव्यों की पूर्ति, सत्य की प्राप्ति, एक सार्थक जीवन और अंततः परमेश्वर द्वारा बचाया जाना और जीवित रहना। इसलिए, हम जो कष्ट सहते हैं वह सार्थक है। मैंने सोचा कि कैसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी अविश्वासी बस बच्चे पैदा करते हैं और अपने परिवारों का भरण-पोषण करते हैं, लेकिन वे सत्य या जीवन के मूल्य और अर्थ को नहीं समझते और उनके पास अनुसरण की कोई सही दिशा या लक्ष्य नहीं होता और उनका जीवन अर्थहीन होता है। परमेश्वर ने अब देहधारण किया है और मानवजाति को बचाने का कार्य करने के लिए पृथ्वी पर आया है, परमेश्वर का अनुसरण करना और एक सृजित प्राणी के कर्तव्य निभाना एक अत्यंत दुर्लभ अवसर है। ठीक पतरस की तरह—प्रभु यीशु द्वारा बुलाए जाने से पहले, वह सामान्य रूप से मछली पकड़ रहा था और एक सादा जीवन जी रहा था, लेकिन जब प्रभु यीशु ने प्रकट होकर कार्य किया और उसे बुलाया, तो वह सब कुछ त्याग कर सत्य का अनुसरण करने के लिए प्रभु यीशु के पीछे हो लिया और अंत में, उसने परमेश्वर के प्रति सर्वोच्च प्रेम प्राप्त किया, परमेश्वर द्वारा उसे पूर्ण बनाया गया और उसने एक सार्थक जीवन जिया। मेरा जन्म अंत के दिनों में हुआ है और मैंने लोगों को शुद्ध करने और बचाने के परमेश्वर के कार्य को स्वीकार किया है, यह परमेश्वर का विधान और अनुग्रह है। मुझे इस अत्यंत दुर्लभ अवसर को संजोना चाहिए, परमेश्वर का अनुसरण करना चाहिए और एक सृजित प्राणी के रूप में अपने कर्तव्य पूरे करने चाहिए। अगर मैं परिवार और दैहिक आनंद के पीछे भागती हूँ और अंततः सत्य पाने में असफल रहती हूँ, तो मैंने अपना समय बर्बाद किया होगा और एक अर्थहीन जीवन जिया होगा और जब महा विनाश आएँगे, पछताने में बहुत देर हो चुकी होगी। मैं अभी भी युवा हूँ और आगे का रास्ता लंबा है और मैं अपने जीवन के बेहतरीन साल तुच्छ पारिवारिक मामलों के साथ नहीं बिता सकती। उसके बाद, मैं अक्सर प्रार्थना में अपना संकल्प परमेश्वर के सामने रखती, उससे सही फैसला करने में मेरा मार्गदर्शन करने और मेरी मदद करने के लिए कहती, चाहे आगे कुछ भी हो।

छुट्टियों से पहले, मेरे प्रेमी ने सगाई पर चर्चा करने के लिए मिलने का सुझाव दिया, लेकिन मैंने कभी जवाब नहीं दिया। स्नातक की पढ़ाई पूरी होने के करीब आने पर, उसने संदेश भेजकर पूछा, “तो, अब हम आखिर हैं क्या?” उसके सवाल को देखकर, मैंने सोचा कि कैसे हम शादी करने की मंशा से इस रिश्ते में बने रहे, लेकिन अब जब शादी के बारे में बात करने का समय आया, तो मैं पीछे हट रही हूँ। मुझे अचानक लगा कि मैं उसे निराश कर रही हूँ। उसी पल, मुझे एहसास हुआ कि मैं फिर से कमजोर हो रही हूँ, इसलिए मैं जल्दी से प्रार्थना में परमेश्वर के सामने आई, “परमेश्वर, मैंने तुम्हारा अनुसरण करने और तुम्हारे लिए खुद को खपाने का मन बना लिया है, लेकिन जब शादी की बात आती है, तो मैं बस फैसला नहीं कर पाती। मुझे लगता है कि अभी उससे रिश्ता तोड़ना उसे निराश करना होगा। मुझे नहीं पता कि क्या करूँ। मेरा मार्गदर्शन करो।” प्रार्थना करने के बाद, मैंने सोचा कि कैसे मेरा प्रेमी एक परिवार शुरू करना चाहता है और मैं परमेश्वर का अनुसरण करना और अपने कर्तव्य निभाना चाहती हूँ। हम अलग-अलग रास्तों पर थे। मुझे याद आया कि बाइबल कहती है : “अविश्‍वासियों के साथ असमान जूए में न जुतो” (2 कुरिन्थियों 6:14)। इसे जारी रखने से हम दोनों में से किसी का भी भला नहीं होगा। साथ ही, मुझे सभाओं में अक्सर गाए जाने वाले भजन “परमेश्वर के लिए तुम्हारा विश्वास हो सबसे ऊँचा” की कुछ पंक्तियाँ याद आईं : “अगर तुम परमेश्वर में विश्वास करना चाहते हो और अगर तुम परमेश्वर को प्राप्त करना चाहते हो और उसकी संतुष्टि हासिल करना चाहते हो, तो जब तक तुम एक निश्चित मात्रा में कष्ट सहन नहीं करते और एक निश्चित मात्रा में प्रयास नहीं करते, तब तक तुम ये चीजें प्राप्त करने में समर्थ नहीं होगे।” “तुम्हें परमेश्वर में अपनी आस्था को भोजन, कपड़ों या किसी भी चीज से ज्यादा महत्व की चीज की तरह, जीवन के सबसे महत्वपूर्ण मामले के रूप में लेना चाहिए, इसी तरह से तुम्हें परिणाम मिलेंगे। अगर तुम केवल तभी विश्वास करते हो जब तुम्हारे पास समय होता है, और अपनी आस्था के प्रति अपना पूरा ध्यान समर्पित करने में असमर्थ रहते हो, और अगर तुम हमेशा अपनी आस्था में भ्रमित रहते हो, तो तुम्हें कुछ भी प्राप्त नहीं होगा(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है X)। अंत के दिनों में, देहधारी परमेश्वर लोगों को शुद्ध करने और बचाने के लिए सत्य व्यक्त करता है, लोगों को अपने भ्रष्ट शैतानी स्वभावों को त्यागने में सक्षम बनाता है, परमेश्वर के साथ एकमन और एकदिल लोगों का एक समूह प्राप्त करता है और अंततः इन लोगों को परमेश्वर के राज्य में लाता है। परमेश्वर आशा करता है कि हम उसमें विश्वास करने को जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चीज के रूप में देखें। अगर मुझे परमेश्वर में विश्वास करना है और सत्य प्राप्त करना है, तो मुझमें खुद को खपाने और परमेश्वर के लिए कष्ट सहने का संकल्प होना चाहिए। केवल तभी मैं कुछ हासिल कर सकती हूँ। अगर मैंने अपने प्रेमी को संतुष्ट करने और उसके प्रति ऋणी होने की भावना की भरपाई करने की कोशिश की, तो मुझे इसके लिए अपने भविष्य का सौदा करना पड़ेगा और क्या यह मुझे बर्बाद नहीं कर देगा? चूँकि मैंने परमेश्वर में विश्वास करने का मार्ग चुना था, इसलिए मुझे उस पर टिके रहना था और मैं इस महत्वपूर्ण क्षण में पीछे नहीं हट सकती थी। इसके अलावा, लोगों का भाग्य परमेश्वर के हाथों में है। मैं अपने भविष्य को भी नियंत्रित नहीं कर सकती थी, तो मैं अपने प्रेमी के भविष्य को कैसे सुनिश्चित कर सकती थी? जब मैंने यह सोचा, तो मुझे कोई और चिंता नहीं रही और मैंने अपने प्रेमी से रिश्ता तोड़ लिया। रिश्ता टूटने के बाद, मुझे बहुत राहत महसूस हुई, जैसे अचानक एक बड़ा बोझ उतर गया हो।

स्नातक होने के बाद, मैंने परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य निभाने शुरू कर दिए। वहाँ, मैं कुछ अविवाहित युवा भाई-बहनों से मिली और मैंने देखा कि उनकी कोई उलझनें नहीं थीं, उनमें से हर एक की अपनी क्षमताएँ थीं और हर कोई परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार का प्रसार करने में अपना योगदान दे रहा था। मैंने सोचा कि यह बहुत सार्थक है। मैं भी अपने कर्तव्यों को ठीक से पूरा करना और अपनी क्षमताओं का अच्छा उपयोग करना चाहती थी। उसके बाद, मैंने अपने दिल को शांत किया और अब शादी करने या परिवार शुरू करने के बारे में नहीं सोचा। मैं अपने पास सीमित समय में सत्य का अनुसरण करने के अवसर का लाभ उठाने को तैयार हो गई, अपने भ्रष्ट स्वभाव को ठीक करने के लिए सत्य खोजने, अपने कर्तव्यों को ठीक से पूरा करने और एक सार्थक जीवन जीने को तैयार हो गई।

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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