बड़ा अनमोल है यह कष्ट

24 जनवरी, 2022

पहली बार 1 जुलाई 1997 में ऐसा हुआ। मैं परमेश्वर के वचनों की क़िताबों के दो बक्से लिये सड़क के किनारे किसी का इंतज़ार कर रहा था। एक पुलिस अफसर ने पास आकर मुझे बक्सों को जांच के लिए पुलिस बूथ में ले जाने का आदेश दिया। मैं सच में घबरा गया, सोचा, "अगर पुलिस जान गयी कि मेरे पास परमेश्वर के वचनों की ये सारी क़िताबें हैं, तो वे मुझे कैसी यातना देंगे?" मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की, मेरे दिल को मजबूत करने की विनती की, ताकि मुझमें हालात का सामना करने की आस्था हो। हम बूथ पहुँचे, तो अफसर ने बक्से को खोलकर परमेश्वर के वचनों की एक क़िताब उठायी और पन्ने पलटते हुए वह त्यौरियां चढ़ाकर मुझ पर चीख पडा, "तू ठीक मेरी आँखों के सामने ये धार्मिक क़िताबें ले जाने की कोशश कर रहा है? मैं तुझे दिखाता हूँ तेरी औकात।" फिर उसने हथकड़ियाँ निकालकर मेरे हाथों में लगा दीं, फिर रबड़ का एक मीटर लंबा सोंटा उठाकर मेरी दाहिनी जांघ पर अंधाधुंध मारने लगा। मुझे लगा मेरी जांघ की हड्डी दो टुकड़े हो जाएगी, मैं दर्द से चिल्ला उठा। मुझे चिल्लाता देख, वह मुझे घसीटकर बाहर ले गया और उसने चिलचिलाती धूप में एक कंक्रीट के बाड़े के साथ मेरी हथकड़ी बाँध दी। करीब एक घंटे तक मेरे इस तरह धूप सहने के बाद, तीन और पुलिसवाले आये, और मुझे काउंटी जन सुरक्षा सब-ब्यूरो में ले गये। हमारे वहाँ पहुँचने पर, अफसरों में से एक ने मुझसे सख्ती से पूछा, "तू कहाँ से है? तेरा नाम क्या है? ये क़िताबें कहाँ से आयीं?" मैंने कहा कि मैं किसी और के लिए ले जा रहा था, मुझे पता नहीं वे कहाँ की हैं? वह गुस्से से उठ खड़ा हुआ, उसने मेज़ पर ज़ोर से हाथ दे मारा, फिर मेरी तरफ बढ़कर मुझे ज़बरदस्त थप्पड़ जड़ दिया, और एक ही लात से मुझे ज़मीन पर ढेर कर दिया, फिर क्रूरता भरी आवाज़ में बोला, "बता ये क़िताबें कहाँ से आयीं, वरना मैं खुद ही पीट-पीटकर तेरी जान ले लूंगा!" एक दूसरे अफसर ने मुझे बाल पकड़कर घसीटा और डरावने ढंग से बोला, "ढंग से पेश आ। अगर तूने हमारी पूछी बातें नहीं बतायीं, तो तेरे साथ बहुत बुरा होगा।" जब मैंने मुंह नहीं खोला, तो वह मेज़ पर अपना हाथ ज़ोर से मारकर चिल्लाया, "तू चुप रहे तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, हम तुझे बस जेल भेज देंगे, बस यही तेरा अंत होगा।" फिर उसने दूसरों को देखकर आँख मारी, उन सबने आकर लात मार-मारकर मुझे ज़मीन पर गिरा दिया, फिर एक साथ मिलकर ढेरों लात-मुक्के जमाये। बहुत दर्द हुआ, लगा मेरी हड्डियाँ चूर हो जाएँगी, मेरे पूरे शरीर को चीर डालने वाला दर्द हो रहा था। फिर एक अफसर ने मुझे कॉलर पकड़कर घसीटा, जबकि दूसरे ने रबड़ के सोंटे को मेरे सिर के पीछे लगाकर, लालच देते हुए बोला, "बता दे न, ये क़िताबें तेरी नहीं हैं, इनका दोष खुद पर लेने की क्या ज़रूरत है? नहीं बताया, तो आखिर तुझे जेल जाना ही पड़ेगा। तू अपनी पत्नी और बच्चे के साथ नहीं रहना चाहता क्या? बस तू हमें बता दे, हम तुझे इसी दोपहर तेरे घर छोड़ देंगे।" मैं एक भी शब्द नहीं बोला, तो उसने आगे कहा, "बेवकूफ मत बन। तू नहीं बोलेगा, तो भी हम कहेंगे कि तूने हर बात मान ली है, फिर तेरे बाहर जाने के बाद तेरी कलीसिया तुझे लेना ही नहीं चाहेगी।" मैंने सोचा, "परमेश्वर सब देखता है, उसे पता चल जाएगा मैं यहूदा था या नहीं। लेकिन अगर मैं नहीं बोला, तो यकीनन मुझे जेल की सज़ा मिलेगी। मेरी बेटी सिर्फ तीन साल की है, अगर मैं कुछ साल अंदर बंद रहा, तो मेरी पत्नी को अकेले ही उसकी देखभाल करनी होगी। उसके लिए यह बहुत मुश्किल होगा। लेकिन इन लोगों से बात करना यहूदा बनना होगा, परमेश्वर को धोखा देना होगा।" अपनी इस दुविधा में मैंने परमेश्वर को लगातार पुकारा, उससे रास्ता दिखाने की विनती की। फिर मैंने परमेश्वर के वचनों के इस भजन को याद किया : "तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें अपने जीवन की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है" ("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में 'सत्य के लिए तुम्हें सब कुछ त्याग देना चाहिए')। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आगाह किया कि पुलिस मुझे ललचाकर मुझसे परमेश्वर को धोखा दिलवाने के लिए मेरी भावनाओं का इस्तेमाल करना चाहती थी, मुझे इस चाल में नहीं फंसना चाहिए। मुझे अपने परिवार के थोड़े-से देह-सुख के लिए कमीना यहूदा नहीं बनना चाहिए, बल्कि मुझे परमेश्वर की गवाही देकर उसे संतुष्ट करना होगा। मैंने सोचा कि कैसे परेश्वर ही सृजनकर्ता है, और सबका भविष्य और भाग्य उसी के हाथ में होता है। मुझे सज़ा होगी या नहीं, मेरी पत्नी और बेटी को कितना कष्ट होगा, यह सब परमेश्वर ने तय किया है। उनको लेकर मेरे इस तरह चिंता करने और तड़पने का कोई फायदा नहीं। इस बात का एहसास होने पर मुझे सुकून मिला।

जब मैं चुप रहा, तो उनमें से कुछ ने मेरे माथे की ओर इशारा करते हुए नीचता से कहा, "तू बस एक धार्मिक पागल है, उन्हीं की तरह जिद्दी। लगता है तुझे जेल भेजे बिना काम नहीं चलेगा। मैं तुझसे फिर एक बार पूछता हूँ—बतायेगा या नहीं?" मैंने कहा, "जो कुछ बताना था वो मैंने बता दिया। आप मुझसे सौ बार और पूछें, तो भी मेरा जवाब यही होगा।" आगबबूला होकर उसने दूसरे दो अफसरों से कहा, "इसे आँगन में ले जाओ, और इसे मौत आते तक धूप में झुलसने दो।" फिर उन्होंने आँगन में मुझे खड़ी धूप में हथकड़ी से बाँध दिया। जुलाई का महीना था, बहुत तेज़ गर्मी थी, सूरज मुझे इतना झुलसा रहा था कि लगातार पसीना बह रहा था। जब पसीना मेरे शरीर के घावों में रिसने लगा तो खासा दर्दनाक हो गया, इसके अलावा, ढेरों मच्छर मेरे चेहरे और पैरों को काट रहे थे। बहुत बुरा हाल था। मुझसे अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था, इसलिए मैंने परमेश्वर को लगातार पुकारा, उससे कष्ट सहने का संकल्प देने की विनती की ताकि मैं गवाही दे सकूं। प्रार्थना के बाद मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश याद आया : "निराश न हो, कमज़ोर न बनो, मैं तुम्हारे लिए चीज़ें स्पष्ट कर दूँगा। राज्य की राह इतनी आसान नहीं है; कुछ भी इतना सरल नहीं है! तुम चाहते हो कि आशीष आसानी से मिल जाएँ, है न? आज हर किसी को कठोर परीक्षणों का सामना करना होगा। बिना इन परीक्षणों के मुझे प्यार करने वाला तुम लोगों का दिल मजबूत नहीं होगा और तुम्हें मुझसे सच्चा प्यार नहीं होगा। यदि ये परीक्षण केवल मामूली परिस्थितियों से युक्त भी हों, तो भी सभी को इनसे गुज़रना होगा; अंतर केवल इतना है कि परीक्षणों की कठिनाई हर एक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होगी" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 41)। इससे मुझे सचमुच सुकून मिला, मैं समझ गया कि परमेश्वर हमारी आस्था और कष्ट सहने के हमारे संकल्प को पूर्ण करने के लिए ऐसे मुश्किल हालात का प्रयोग करता है, यह परमेश्वर का वरदान था। उस दिन सुबह 8 से 12 बजे तक, पूरे 4 घंटे, वे मुझे पीटकर, पूछताछ करते हुए, धमकी और प्रलोभन देकर यातना देते रहे, और परमेश्वर ने इस यातना से गुज़रने में मेरी अगुआई की। ऐसे वक्त में, मुझमें परमेश्वर के प्रति और अधिक आस्था होनी चाहिए थी, मैं जानता था कि वे कैसी भी यातना दें, मुझे परमेश्वर की गवाही देकर उसे संतुष्ट करना होगा। उस दोपहर मैं 4 घंटे वहां रहा। मैं भूखा-प्यासा था, मुझे चक्कर आ रहा था, लगा जैसे मुझे लू लग गयी है।

इसके बाद वे मुझे एक डिटेंशन हाउस में ले गये, जहां निदेशक ने मेरी और भी ज्यादा "ख़ास खातिरदारी" की। उसने काल-कोठरी के प्रभारी को ज़रूर बताया होगा, "तुम इसकी 'बहुत अच्छी' खातिरदारी करो।" फिर दर्जन भर कैदियों ने, अपने मुक्के हवा में उठाकर, मुझे घेर लिया, फिर प्रभारी ने मुझे अपने कपड़े उतार देने का आदेश दिया। मेरे पूरे शरीर पर पिटाई के घाव थे, मेरे पाँव के एक घाव से तो अभी भी खून रिस रहा था। उनमें से कुछ ने ठंडे पानी के पतीले लाकर मुझ पर पानी उड़ेलना शुरू कर दिया, फिर कपड़े धोने का डिटर्जेंट पाउडर लेकर मेरी पीठ पर रगड़ दिया, मेरे घाव यूं जलने लगे मानो छुरियाँ घोंपी जा रही हों। अब उन्होंने मेरे दोनों हाथ सीधे ऊपर करके और आँखें और मुँह खुला छोड़कर, मुझे दीवार के सहारे खड़ा करवा दिया, फिर वे तीन पतीले ठंडा पानी और लेकर मुझ पर उड़ेलते रहे। मेरे मुँह और नाक में पानी भरता जा रहा था, मेरा दम इस कदर घुट रहा था कि दुनिया घूमती लग रही थी। मैं बेहोश-सा हो गया। उन्होंने मुझे फिर से सीधा खड़ा कर दिया, और यह चिल्लाते हुए तीन बार मेरे सीने में मुक्का लगाया, "तोड़ डालो!" मैं दर्द से उबर सकूँ, इससे पहले ही उन्होंने मेरी पीठ पर दो-चार मुक्के और मार दिये। मैं फर्श पर गिरे बिना नहीं रह सका, मेरी पीठ और सीने का दर्द मेरी हड्डियों तक को चीर रहा था। प्रभारी ने मुझे अब भी जाने नहीं दिया, मुझसे एक हाथ फर्श पर रखवाकर, मेरी पीठ पर बैठ गया और मुझे एक हवाई जहाज की तरह गोल-गोल चक्कर लगाने को कहा। मैं बस एक ही चक्कर लगा सका, फिर गिर पड़ा। फिर एक दूसरे कैदी ने मुझे पीछे खींचकर हँसते हुए कहा, "अपनी शक्ल देख, तू हमारे बस तीन ही दांव झेल सकता है। अगर हम तुझ पर सारे 108 दांव आजमायें, तो यकीनन तू ख़त्म हो जाएगा।" यह सुनकर मैं बहुत डर लगा, मैंने सोचा, "बस उन तीन दांवों ने ही मुझे अधमरा कर दिया। अगर उनके पास 108 हैं, तो सब पूरे होते तक मेरे ज़िंदा बचे रहने का सवाल ही नहीं। शायद ये लोग मुझे वाकई यहाँ पीट-पीट कर मार डालेंगे?" यह सोचकर मैं अपने आंसू नहीं रोक पाया। अपने दुख में मैंने परमेश्वर के वचनों के एक अंश को याद किया : "विश्वास एक ही लट्ठे से बने पुल की तरह है: जो लोग घृणास्पद ढंग से जीवन से चिपके रहते हैं उन्हें इसे पार करने में परेशानी होगी, परन्तु जो आत्म बलिदान करने को तैयार रहते हैं, वे बिना किसी फ़िक्र के, मज़बूती से कदम रखते हुए उसे पार कर सकते हैं। अगर मनुष्य कायरता और भय के विचार रखते हैं तो ऐसा इसलिए है कि शैतान ने उन्हें मूर्ख बनाया है क्योंकि उसे इस बात का डर है कि हम विश्वास का पुल पार कर परमेश्वर में प्रवेश कर जायेंगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। परमेश्वर के वचनों पर सोच-विचार करके, मैंने शर्मिंदगी महसूस की। सच्चाई से सामना होते ही, मैंने वह भद्दा सच समझ लिया कि मैं कायर हूँ, मुझमें आस्था नहीं है। परमेश्वर तमाम चीज़ों के साथ ही हमारी जिंदगी और मौत पर भी राज करता है। पीट-पीट कर मुझे मार डालना उनके हाथ में नहीं, बल्कि परमेश्वर के हाथ में है। मैं जानता था कि मुझे यह यकीन कर कि सब कुछ परमेश्वर के हाथ में है, शैतान की चालों में नहीं फंसना चाहिए। यह देख अचरज हुआ कि जैसे ही अपनी सोच को दुरुस्त किया, प्रभारी ने बेरुखी से कहा, "रहने दो, क्यों फ़िक्र करना?" यह सुनकर मैंने राहत की साँस ली और परमेश्वर का धन्यवाद किया।

कुछ दिन बाद दोपहर में जब मैं सो रहा था, मैंने अचानक अपनी पीठ में भयंकर दर्द महसूस किया। मैंने आँखें खोली तो देखा, चार कैदियों ने सिगरेट के डिब्बे की प्लास्टिक झिल्ली जलाकर मेरी पीठ के नीचे रख दी थी। मैं दर्द के मारे आगे-पीछे लुढ़क रहा था, मैंने सोचा, "पुलिस मुझे सताने, मुझसे परमेश्वर को धोखा दिलाने के लिए कैदियों का इस्तेमाल कर रही है! कितने दुष्ट हैं! यूं ही चलता रहा, तो जान नहीं भी गयी, तो मैं लूला-लंगड़ा ज़रूर हो जाऊंगा।" इस बारे में मैंने जितना सोचा, उतना ही बुरा और बेबस महसूस किया। मैंने परमेश्वर से बार-बार प्रार्थना की, इन सबसे पार पाने के लिए ठोस संकल्प रखने का रास्ता दिखाने की विनती की। फिर मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद किया : "जब लोग अपने जीवन का त्याग करने के लिए तैयार होते हैं, तो हर चीज तुच्छ हो जाती है, और कोई उन्हें हरा नहीं सकता। जीवन से अधिक महत्वपूर्ण क्या हो सकता है? इस प्रकार, शैतान लोगों में आगे कुछ करने में असमर्थ हो जाता है, वह मनुष्य के साथ कुछ भी नहीं कर सकता" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 36)। कम्युनिस्ट पार्टी मुझे शारीरिक यातना देने की हर संभव चाल चल रही थी ताकि मैं परमेश्वर को धोखा दूँ, और मैं उन्हें कामयाब नहीं होने दे सकता था। अगर मैं अपना जीवन दांव पर लगाने को तैयार था, तो क्या ऐसा कुछ था जो मैं नहीं सह सकता था? परमेश्वर सभी पर शासन करता है, इसलिए मेरा जीना या मरना उसी के हाथ में था। मैंने वह समय याद किया जब प्रभु यीशु कार्य कर रहा था, लाज़र को मरे चार दिन हो चुके थे—उसकी लाश सड़ने लगी थी, मगर प्रभु यीशु ने कुछ ही वचनों से उसे फिर जीवित कर दिया। यह है परमेश्वर के अधिकार का प्रदर्शन। मैंने खुद को परमेश्वर के हाथों सौंपने को तैयार महसूस किया, अगर मैं इसका पालन करता रहा, तो परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए उसका सुसमाचार साझा कर सकूंगा। जब मैंने अपने प्राण देने को तैयार होने की ठान ली, तो परमेश्वर ने मेरे लिए रास्ता खोल देने की तमाम व्यवस्थाएं कर दीं। 21 जुलाई की दोपहर को मुझे रिहा कर दिया गया। घर पहुँचने पर, मुझे पता चला कि मेरी पत्नी ने कोई जुगाड़ भिड़ाकर किसी को 1200 युआन दिये थे और मुझे छुड़वा लिया था। सिर्फ 20 दिन में, मुझे इतनी यातना दी गयी थी कि मैं हड्डियों का ढांचा बनकर रह गया था। चालीस साल की उम्र में मैं 60-70 साल का बूढ़ा लग रहा था। मैं जानता था कि परमेश्वर की रक्षा से ही मैं जीवित बचा था, मैंने उसे दिल से धन्यवाद दिया।

वह 27 मार्च 2003 की बात है। बाहर सुसमाचार साझा करने के बाद मैं अपने मेज़बान के घर लौटा ही था। थोड़ी ही देर में, छह अफसर दरवाज़ा खोलते हुए अंदर घुस आये। उनमें से एक ने मेरे कुछ कहने से पहले ही, मेरे हाथों को पीछे खींचकर हथकड़ी लगा दी। उसने मुझे लात मार कर ज़मीन पर गिरा दिया, फिर वे बिजली के डंडों से मुझे लगातार झटके देने लगे, और बिना रुके लात-घूँसे बरसाते रहे। जल्दी ही मेरे मुँह से झाग निकलने लगा, तभी एक अफसर की हल्की सी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी, "गधे कहीं के, तू मरे हुए होने का नाटक कर रहा है!" फिर उसने अपना बदबूदार जूता मेरे मुँह पर रखकर अपनी एड़ी को कई बार रगड़ा। मुझे खून की तेज़ गंध आयी, जल्दी ही मैं बेहोश हो गया। मुझे पता नहीं कितना समय बीत गया, जब भाई गुओ की चीख से मेरी नींद खुल गयी। मैंने सोचा, "इन लोगों ने हमें पहले ही इतनी बुरी तरह पीटा है, कौन जाने पुलिस थाने ले जाने के बाद ये क्या करेंगे। इसके अलावा, मेरा तो रिकॉर्ड भी पहले से दर्ज है। क्या ये इस बार पीट-पीट कर मेरी जान ले लेंगे?" इस ख़याल ने मुझे डरा दिया, इसलिए मैंने जल्दी से परमेश्वर से प्रार्थना की। मैंने उसके वचनों की एक पंक्ति को याद किया : "डरो मत, समुदायों का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे खड़ा है और तुम्हारी ढाल है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 26)। इस पंक्ति ने मुझे आस्था और शक्ति से सराबोर कर दिया। परमेश्वर के अपने साथ होने के बारे में सोचकर, मेरा डर कम हो गया। पुलिस ने पूरी जगह को उलट-पलट दिया, परमेश्वर के वचनों की 130 प्रतियाँ पुलिस के हाथ लग गयीं, उन्हें मेरा पेजर और 200 युआन नकद भी मिला, जो वे ले गये। वे हमें एक पुलिस कार में डालकर नगर के पुलिस थाने ले गये।

अगले दिन दोपहर करीब 4 बजे, क्रिमिनल पुलिस ब्रिगेड का एक अधिकारी मिस्टर शू मुझसे पूछताछ करने आया। उसने मुझसे पूछा, क्या मैं कलीसिया के मामलों के प्रभारी भाई गुओ और शाओझांग को जानता हूँ। मैंने कहा, मैं नहीं जानता। फिर उसने मेरे चेहरे पर एक थप्पड़ जड़ दिया, मुझे लात मार कर ज़मीन पर ढेर कर दिया, फिर क्रूरता भरी आवाज़ में बोला, "देखता हूँ यह मुँह कैसे नहीं खोलता है! कई महीनों से तुझ पर मेरी नज़र है। पिछली बार तुझे सज़ा नहीं हुई, लेकिन इस बार तो म्युनिसिपल पार्टी कमेटी भी जानती है कि क्या चल रहा है। अगर तूने सहयोग नहीं किया, तो तू कभी फिर अपने परिवार या दोस्तों को नहीं देख पायेगा।" तभी, एक दूसरे पुलिसवाले ने पुलिस के डंडे से मुझे कई बार पीटा। मिस्टर शू ने दांत पीसकर मुझसे पूछा, "ये क़िताबें कहाँ से आयीं? तू इन लोगों से कैसे मिला?" मेरा जवाब था, "मुझे नहीं पता ये कहाँ से आयीं, आप जिन लोगों के बारे में पूछ रहे हैं, मैं उन्हें नहीं जानता। मैं खुद ही सुसमाचार साझा करता हूँ।" इसके बाद, वे मुझे काउंटी जन सुरक्षा ब्यूरो ले गये। वहां पूछताछ के कमरे में मैंने यातना देने वाले तरह-तरह के औज़ार देखे : बिजली के डंडे, रबड़ के सोंटे, हथकड़ियां, एड़ियों में डालने वाली कड़ियाँ। एक टाइगर बेंच भी थी। ये सब देखकर मुझे बहुत ज़्यादा डर लगा। फिर मिस्टर शू ने क्रिमिनल पुलिस ब्रिगेड के प्रभारी मिस्टर झांग की ओर इशारा किया और पूछा, "जानता है, ये कौन हैं? ये जन सुरक्षा ब्यूरो के सबसे बड़े पूछताछकर्ता हैं, ये हर जगह जाकर मुश्किल और अजीबोगरीब मामले देखते हैं। उम्मीद है, तू हमारे साथ सहयोग करेगा, बतायेगा कि तू क्या कुछ जानता है और कहाँ-कहाँ गया है। वरना, तुझे यही सब मिलेगा!" मैं थोड़ा घबराये बिना नहीं रह सका, इसलिए मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की। फिर मिस्टर शू मुझ पर भौंका, "जानता है न, सुसमाचार साझा करने के लिए तुझे गिरफ़्तार कर लिया जाएगा, फिर तूने ऐसा क्यों किया?" मैंने कहा, "यह परमेश्वर की अपेक्षा है, और प्रभु यीशु कहते हैं, 'तुम सारे जगत में जाकर सारी सृष्‍टि के लोगों को सुसमाचार प्रचार करो' (मरकुस 16:15)। सुसमाचार साझा करके हम परमेश्वर की वाणी सुनने में दूसरों की मदद करते हैं, परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार करते हैं, और बचाये जाते हैं। यह लोगों को बचाता है, यह बहुत शानदार है। कम्युनिस्ट पार्टी हमें क्यों गिरफ़्तार करना चाहती है?" उसने गुस्से से कहा, "इस दुनिया में कोई भी उद्धारकर्ता नहीं है। कम्युनिस्ट पार्टी ही परमेश्वर है। पार्टी तेरा पेट भरती है, मगर तू परमेश्वर में विश्वास रखता है, प्रचार करता फिरता है। यह पार्टी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना है, हम तुझे सीधा कर देंगे!" उसे ये सब तिरस्कारपूर्ण बातें सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आ गया, मैंने पलटकर कहा, "परमेश्वर अनंत काल से अस्तित्व में है। प्रभु यीशु का सुसमाचार पृथ्वी के हर कोने तक पहुँच गया और यह बात सब जानते हैं। अगर हम सब विश्वासी बन जाएं तो कोई भी बुरे काम नहीं करेगा ..." फिर मिस्टर झांग ने अपने एक अफसर को आँख मारी, उसने आकर मेरे चेहरे पर थप्पड़ जड़ दिया और लात मारकर ज़मीन पर ढेर कर दिया, फिर वह क्रूरता से बोला, "बदतमीज़, तू हमें अपना सुसमाचार भी सुना रहा है!" फिर उसने रबड़ का एक सोंटा उठाया और पागलों की तरह मुझे सोंटने लगा। उसी वक्त मेज़ पर रखे मेरे पेजर से आवाज़ आने लगी, मैं तुरंत घबरा गया। ज़रूर कोई भाई या बहन होगी। मिस्टर शू ने तुरंत उस नंबर पर कॉल लगाया, मगर उन लोगों ने तुरंत फ़ोन काट दिया और धीरे-धीरे मेरी घबराहट कम हो गयी। जब कॉल नहीं लगा तो वह सच में बहुत गुस्सा हो गया, और चीखते हुए मेरे दोनों गालों पर थप्पड़ जड़ने लगा, "मेरे ख्याल से तू सिर्फ सुसमाचार ही साझा नहीं करता है। तू इस कलीसिया का कोई बड़ा अगुआ है। तेरे साथ आये उस गुओ ने कहा कि वो तुझे जानता है, मगर तू अड़ा हुआ है कि तू उसे नहीं जानता। तुझे बस और पिटाई की ज़रूरत है!" तीन अफसर मेरे पास आये और उन्होंने लात मारकर मुझे ज़मीन पर गिरा दिया, फिर लात मारते हुए मुझ पर कूदने लगे। उनमें से एक के जूते का सिरा मेरी छाती की पसलियों में चुभ गया, इतना दर्द होने लगा कि मेरी साँस फूल गयी। थोड़ी देर ऐसा करने के बाद, मिस्टर शू ने मुझसे क्रूरता भरी आवाज़ में पूछा, "तू सच में बात नहीं करना चाहता, मगर तू हीरे जितना सख्त भी क्यों न हो, मैं उस मुँह को जबरन खोलकर रहूँगा!" मुझे उसकी क्रूरता देखकर डर लगा, मैंने सोचा, "ये लोग यूं ही करते रहे तो ये मुझे मार डालेंगे या फिर मैं लूला-लंगड़ा हो जाऊंगा। मेरा परिवार मेरी ही कमाई के भरोसे चल रहा है। अगर मैं लूला-लंगड़ा हो गया तो हम किसके सहारे ज़िंदा रहेंगे?" मन में यह विचार आते ही मैं कमज़ोर पड़ने लगा, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे आस्था और इस कष्ट को सहने का संकल्प देने की विनती की। उसी पल परमेश्वर के वचनों का यह अंश मेरे मन में कौंधा : "जब मूसा ने चट्टान पर प्रहार किया, और यहोवा द्वारा प्रदान किया गया पानी उसमें से बहने लगा, तो यह उसके विश्वास के कारण ही था। जब दाऊद ने—आनंद से भरे अपने हृदय के साथ—मुझ यहोवा की स्तुति में वीणा बजायी तो यह उसके विश्वास की वजह से ही था। जब अय्यूब ने अपने पशुओं को जो पहाड़ों में भरे रहते थे और सम्पदा के गिने ना जा सकने वाले ढेरों को खो दिया, और उसका शरीर पीड़ादायक फोड़ों से भर गया, तो यह उसके विश्वास के कारण ही था। जब वह मुझ यहोवा की आवाज़ को सुन सका, और मुझ यहोवा की महिमा को देख सका, तो यह उसके विश्वास के कारण ही था। पतरस अपने विश्वास के कारण ही यीशु मसीह का अनुसरण कर सका था। उसे मेरे वास्ते सलीब पर चढ़ाया जा सका था और वह महिमामयी गवाही दे सका था, तो यह भी उसके विश्वास के कारण ही था" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'विजय के कार्य की आंतरिक सच्चाई(1)')। परमेश्वर के वचनों से मैं समझ पाया कि अय्यूब इन परीक्षणों का अनुभव कर परमेश्वर की वाणी सुन पाया था, क्योंकि उसे परमेश्वर में सच्ची आस्था थी। पतरस भी अपनी आस्था के कारण ही परमेश्वर की गवाही दे पाया था। परमेश्वर ने उनकी आस्था को स्वीकृति दी और उन्हें धन्य किया। लेकिन हर बार मैं जब ऐसी हालत में होता, मुझे पिटाई से मर जाने या लूला-लंगड़ा हो जाने का डर सताता था। मैंने सिर्फ अपने निजी हितों के बारे में सोचा। मुझमें परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था या कष्ट सहने का संकल्प नहीं था। इस तरह मैं परमेश्वर के कार्यों को कैसे समझ सकता था? मैं जानता था कि मुझे परमेश्वर में आस्था रखनी होगी, सब कुछ उसके हाथों में सौंपना होगा, ये लोग मुझे कैसी भी यातना दें, मैं कभी भी परमेश्वर या अपने भाई-बहनों को धोखा नहीं दे सकता। उन लोगों ने देखा कि मैं अब भी नहीं बता रहा हूँ, तो पुलिस मुझे एक डिटेंशन हाउस में ले गयी, वहाँ हर दो-चार दिन में वे मुझसे पूछताछ करने लगे। तीन महीने में 20 से भी ज़्यादा बार पूछताछ की गयी। उन्होंने मुझे प्रलोभन देने, धमकाने और क्रूरता से पीटने की कोशिश की, मुझे हर तरह से यातना दी। उन्होंने तब तक मेरी जम कर पिटाई की, जब तक मेरा एक-एक अंग अंदर-बाहर से ज़ख़्मी नहीं हो गया। कुछ भी छू गया तो लगता मुझे बिजली का झटका लग गया है। दर्द बर्दाश्त के बाहर हो गया था। रात में नीचे सोना बहुत दुखदाई था, मगर खड़े होना भी भयंकर था। और फिर मानसिक यातना भी थी—लगातार डरावने सपने मुझे जगा देते।

जून के मध्य की एक रात तो मेरी यादों में अमिट छाप छोड़ गयी है। तीन अफसर मुझे एक पुलिस कार में डालकर, अनगिनत घुमावों वाले रास्ते से किसी दूर की जगह ले गये। उन्होंने मुझे पांचवीं मंजिल के 70-80 वर्ग फीट के एक कमरे में ताला लगाकर बंद कर दिया, खिड़की से बाहर मैं बहुत-से पेड़ों वाली एक छोटी-सी पहाड़ी को देख सकता था। फिर मिस्टर शू करीब 5 इंच की छोटी-सी बिजली की छड़ी लेकर कमरे में आया, और उपहास करते हुए बोला, "अरे, धार्मिक पागल, आज रात तू कुछ बोलेगा नहीं, इसकी मुझे कोई फ़िक्र नहीं। तेरा मुँह भले ही स्टील का बना हो, मैं इसे जबरन खोल कर रहूँगा। तू कितना भी चिल्लाये, कोई भी नहीं सुनेगा। मैं तुझे पीट-पीट कर मार डालूँ, तो हम तेरी लाश पहाड़ियों में कहीं दफना देंगे, किसी को पता भी नहीं चलेगा।" उसकी बात सुनकर मुझे डर लगा, मैंने सोचा, "ये दानव जो कहते हैं, वही करते हैं। क्या ये लोग आज रात सच में मुझे पीट-पीटकर मार डालेंगे?" मैंने फौरन प्रार्थना की, और परमेश्वर के वचनों का एक अंश मन में कौंध गया : "अब मैं तुम्हारी निष्ठा और आज्ञाकारिता, तुम्हारा प्रेम और गवाही चाहता हूँ। यहाँ तक कि अगर तुम इस समय नहीं जानते कि गवाही क्या होती है या प्रेम क्या होता है, तो तुम्हें अपना सब-कुछ मेरे पास ले आना चाहिए और जो एकमात्र खजाना तुम्हारे पास है : तुम्हारी निष्ठा और आज्ञाकारिता, उसे मुझे सौंप देना चाहिए। तुम्हें जानना चाहिए कि मेरे द्वारा शैतान को हराए जाने की गवाही मनुष्य की निष्ठा और आज्ञाकारिता में निहित है, साथ ही मनुष्य के ऊपर मेरी संपूर्ण विजय की गवाही भी। मुझ पर तुम्हारे विश्वास का कर्तव्य है मेरी गवाही देना, मेरे प्रति वफादार होना, और किसी और के प्रति नहीं, और अंत तक आज्ञाकारी बने रहना" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम विश्वास के बारे में क्या जानते हो?)। इस बारे में सोचकर मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। जब मुझे कोई यातना नहीं दी जा रही थी, तब मैंने गवाही देने और परमेश्वर को संतुष्ट करने का दिखावा किया, लेकिन जब ज़िंदगी और मौत का सवाल आया, तो मैं अपनी निजी सुरक्षा के बारे में सोचने लगा। यह परमेश्वर के सामने समर्पित होना या सच्ची निष्ठा रखना नहीं था। मैंने इस बारे में जितना सोचा उतना ही ज़्यादा दोषी और पछतावा महसूस किया, मैं जान गया कि अब मैं परमेश्वर को आहत और निराश नहीं कर सकता, मगर इस बार मुझे उसे संतुष्ट करना होगा। इसलिए मैंने उन लोगों से कहा, "आप लोग इतने दिनों से मुझसे पूछताछ कर रहे हैं। जो भी बताना था, मैंने बता दिया। आप चाहे जितना पूछ लें, मैं बस इतना ही बता सकूंगा।" गुस्से में, पुलिसवाले ने मुझे हाथों को आगे फैलाकर उकडूँ बैठने को कहा, और मेरे फैले हुए हाथों पर रबड़ का सोंटा रखकर, उसके दोनों सिरों पर करीब एक-एक पौंड वज़न की कोई चीज़ लटका दी। मिस्टर शू अपने डंडे से मेरे मुँह में बिजली के झटके देते हुए हर बार मुझसे पूछता रहा, "तेरी क़िताबें कहाँ से आयीं? तेरी कलीसिया का अगुआ कौन है?" मुँह में ऐसे झटके खाने से मेरा पूरा शरीर सुन्न हो गया, मेरे मुँह के किनारे फड़कने लगे। मैं दर्द के मारे रोने लगा। पांच मिनट से भी कम में मेरे कपड़े पसीने से तर हो गये। मेरे पीछे खड़ा अफसर मेरे घुटनों के अंदर बीच-बीच में लात मारता रहा, इससे मैं ज़मीन पर गिर पड़ता, वे मुझे फिर से घसीटकर उकडूँ बिठा देते। वे बारी-बारी से यातना देते और पूछताछ करते रहे, कुछ न बोलने पर उन्होंने मेरे सिर में मुक्के मारे। मुझे फिर से लात मारकर गिरा दिया, और लात-घूंसे मारने लगे। मिस्टर झांग ने धमकी देते हुए कहा, "अगर तू हमें कुछ नहीं बतायेगा, तो हम तुझे पीट-पीट कर मार डालेंगे और पीछे दफना देंगे।" इस बार मैंने सोचा, "वे ऐसा कर भी दें, तो भी मैं एक शब्द नहीं बोलूँगा।" एक बार जब मैं अपनी जान देने को तैयार हो गया, तो उनके बिजली के झटके देने या लात मारने पर मुझे कोई दर्द महसूस नहीं हुआ। मैं जाना गया था कि परमेश्वर मेरी पीड़ा को दूर कर रहा है। फिर एक दूसरे अफसर ने कहा, "उसे दिखाओ, हवा में उड़ना कैसा होता है।" फिर उनमें से एक ने मेरे हाथों को दबोचा और दूसरे ने पैरों को, उन्होंने मुझे हवा में ऊपर उठा दिया और तीन तक गिनकर ज़मीन पर पटक दिया, उन्होंने ऐसा लगातार सात-आठ बार किया। लगा, मेरा सिर फटकर खुल जाएगा, मैं सच में अचेत हो गया। मेरी पीठ के नीचेवाला हिस्सा सूज गया था और मैं हिल भी नहीं सकता था। ऐसी हालत में भी वे मुझे अकेला नहीं छोड़ना चाहते थे। उन्होंने मुझे सोने नहीं दिया और दीवार के सहारे खड़ा कर दिया, आँखें मूंदते ही वे मुझे बिजली के डंडे से झटके देते या सिर पर क़िताब दे मारते। उनकी यातना के कारण मैं मौत के बिल्कुल करीब था, वे पूछते रहे कि कलीसिया का अगुआ कौन है। मैंने कभी कुछ नहीं बताया। उन्हें एहसास हो गया कि वे मुझसे कुछ भी नहीं निकलवा पा रहे हैं, इसलिए उन्होंने मुझे "सामाजिक व्यवस्था भंग करने" के ज़ुर्म में डेढ़ साल की कड़ी मज़दूरी वाली पुनर्शिक्षा की सज़ा दिलवा दी। जब मैं जबरन मज़दूरी वाले शिविर पहुँचा, तो वहाँ कैदियों के अधिकारी ने मुझे पेट के बल लेटने को कहा, फिर उसने करीब 30 बार मेरी पीठ पर झापड़ मारे, मेरे मुँह से आह तक नहीं निकलने दी। इसके बाद मैं बैठ भी नहीं सका।

इसके बाद मुझे महीने भर का शारीरिक प्रशिक्षण दिया गया, चूंकि पुलिस तीन महीने से मुझे यातना देते हुए पूछताछ कर रही थी, इसलिए मेरी प्रतिक्रिया और मेरी याददाश्त बदतर हो गयी थी। मैं व्यायाम नहीं सीख पा रहा था, इसलिए जेल के सुरक्षाकर्मी हमेशा मेरा मज़ाक बनाते, कैदियों का अधिकारी तो बहुत बुरा था। वह बाँस के एक खंभे से मेरे पैरों पर मारता, इससे वे लाल होकर सूज जाते, वह मुझे इस तरह मारते हुए खंभे को तोड़ भी देता। हमें सुबह 6 बजे दौड़ने के लिए अहाते में जाना पड़ता, सैनिकों की तरह खड़े होकर कड़ाके की धूप में लंबी छलांग लगाने का व्यायाम करना पड़ता। महीने भर के इस शारीरिक प्रशिक्षण के बाद उन्होंने मुझे रंगीन रोशनी के कैंडल बनाने वाली कार्यशाला में डाल दिया, जहां मुझे सुबह 8 बजे से रात 10 बजे तक काम करना पड़ता और हर दिन मेरा काम उन कैंडलों की 1000 फीट की लड़ी बनाने का होता। मेरी नज़र बहुत अच्छी नहीं थी, कैंडल बहुत छोटे थे, उनके तार बहुत बारीक थे, इसलिए मैं कभी काम पूरा नहीं कर पाता था। इसके लिए मुझे सज़ा दी जाती। मुझे गलियारे में कमर के बल 90 डिग्री के कोण पर झुककर खड़े होना पड़ता, इससे मेरी पीठ में बहुत दर्द होने लगता, मेरी नज़र धुंधली हो जाती, और रात में बड़ी मुश्किल से सो पाता। मैं कभी पेट भर नहीं खा सका, साल भर ठंडे पानी से नहाना पड़ता। मुझे बार-बार ज़ुकाम हो जाता, आखिरकार मुझे गठिया रोग हो गया। बाद में, उन्होंने हमें एक भूमिगत शॉपिंग मॉल बनाने के काम में लगा दिया, एक ही रात में तीन लोगों को 100 टोकरियाँ भरने की मिट्टी खोदनी थी। टोकरियाँ बहुत बड़ी भी थीं। एक-एक में करीब 100 पाउंड मिट्टी समा जाती। दिन के 12 घंटे हम इसी काम में बिताते। यह काम रोशनी के कैंडल बनाने के मुकाबले बहुत बुरा और थकानेवाला था। काम करते समय मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता और उसका सहारा लेकर मन-ही-मन भजन गुनगुनाता रहता। उस समय "पूर्ण कैसे किये जाएँ" नामक भजन मेरे लिए बहुत खास था : "जब तुम कष्टों का सामना करते हो तो तुम्हें देह पर विचार नहीं करने और परमेश्वर के विरुद्ध शिकायत नहीं करने में समर्थ अवश्य होना चाहिए। जब परमेश्वर अपने आप को तुमसे छिपाता है, तो तुम्हें उसका अनुसरण करने के लिए, अपने पिछले प्यार को लड़खड़ाने या मिटने न देते हुए उसे बनाए रखने के लिए, तुम्हें विश्वास रखने में समर्थ अवश्य होना चाहिए। इस बात की परवाह किए बिना कि परमेश्वर क्या करता है, तुम्हें उसके मंसूबे के प्रति समर्पण अवश्य करना चाहिए, और उसके विरूद्ध शिकायत करने की अपेक्षा अपनी स्वयं की देह को धिक्कारने के लिए तैयार रहना चाहिए। जब तुम्हारा परीक्षणों से सामना होता है तो तुम्हें अपनी किसी प्यारी चीज़ से अलग होने की अनिच्छा, या बुरी तरह रोने के बावजूद तुम्हें अवश्य परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहिए। केवल यही सच्चा प्यार और विश्वास है" (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ)। यह भजन गाने के बाद हर बार मुझे बड़ी प्रेरणा मिलती, मैं सोचता, इन मुश्किलों से गुज़रना कितना सार्थक है, परमेश्वर मेरी आस्था को पूर्ण करने के लिए इसका प्रयोग कर रहा था। मैं जानता था कि इसके बाद कितने भी कष्ट झेलूँ, भले ही मेरी जान चली जाए, मुझे परमेश्वर पर भरोसा कर उसकी गवाही देनी होगी। परमेश्वर के वचनों से प्रेरित होने के कारण ही, मुझमें कष्ट के इस दौर से कदम-दर-कदम गुज़रने की आस्था और शक्ति थी।

अगस्त 2004 में, मेरी सज़ा पूरी हो गयी और मुझे रिहा कर दिया गया। आखिरकार, मैं कम्युनिस्ट पार्टी के नरक यानी उस जेल से बाहर आ सका। कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा ऐसी गिरफ़्तारी और उत्पीड़न सहकर, मैं साफ़ तौर पर समझ सका कि कैसे यह एक दानवी शैतान का अवतार है। यह धार्मिक आज़ादी का सम्मान करने का दावा करती है, मगर ईसाइयों का अंधाधुंध दमन करती है, उन्हें गिरफ़्तार कर सताती है। अनगिनत भाई-बहन घर नहीं लौट सकते, उनके परिवार तोड़ दिये गये हैं, बहुत-से लोगों को पीट-पीटकर या तो मार डाला गया है या अपंग कर दिया गया है। यह मीठी-मीठी बातें करती है, मगर बुरे काम के सिवाय कुछ नहीं करती। झूठ बोल-बोलकर यह अच्छा नाम बना लेती है, मगर असल में बहुत ही दुष्ट है। इससे मुझे यह भी अनुभव हो सका कि परमेश्वर का प्रेम कितना वास्तविक है। परमेश्वर की देखभाल, सुरक्षा और उसके वचनों के मार्गदर्शन से ही मैं इस मुश्किल दौर के हर चरण से उबर कर बाहर आ सका। बड़े लाल अजगर ने मुझे जितना सताया, मेरी आस्था उतनी ही पक्की हो गयी। इसके बाद, अब मेरे साथ कुछ भी हो जाए, मैं अपना कर्तव्य निभाऊंगा, सुसमाचार को फैलाऊंगा, और परमेश्वर की गवाही दूंगा।

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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