वह प्राण-शक्ति जिसे कभी मिटाया नहीं जा सकता

12 जून, 2018

दांग मेई, हेनान प्रांत

मैं एक साधारण व्यक्ति हूँ। मैं एक नीरस जीवन जीती थी। प्रकाश की लालसा रखने वाले कई लोगों की तरह, मैंने मानव-अस्तित्व के वास्तविक आशय की ख़ोज करने के कई तरीक़ों को आज़माया, ताकि मैं अपने जीवन को अधिक अर्थ दे सकूँ। अंत में, मेरे सभी प्रयास व्यर्थ रहे थे। लेकिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंतिम दिनों के कार्य को स्वीकार करने के मेरे सौभाग्य के बाद, मेरे जीवन में चमत्कारी परिवर्तन हुए। इससे मेरे जीवन में अधिक रंगतआई, और मुझे समझ में आ गया कि केवल परमेश्वर ही लोगों के उत्साह और उनके जीवन का सच्चा प्रदाता है, और केवल परमेश्वर कावचन ही मानव जीवन का असली अर्थ है। मैं खुश थी कि अंततः मुझे जीवन का सही मार्ग मिल गया था। बहरहाल, अपने कर्तव्य को पूरा करने के दौरान मुझे एक बार गैरक़ानूनी रूप से गिरफ्तार किया गया और सीसीपी सरकार द्वारा मुझे क्रूरतापूर्वक यातना दी गई। इससे, मेरे जीवन की यात्रा ने एक अनुभव प्राप्त किया जिसे मैं कभी नहीं भूलूंगी ...

दिसम्बर 2011 में एक दिन सुबह लगभग 7 बजे, कलीसिया के एक और नेता और मैं कलीसिया की संपत्तियों की एक सूची तैयार कर रहे थे, जब दस से अधिक पुलिस अधिकारी अचानक दरवाज़े से घुस आए। इनमें से एक दुष्ट पुलिस कर्मचारी हमारे पास झपट कर पहुंचा और वह चीखा: "हिलना मत"! जो हो रहा था उसे देखकर मेरा सिर चकरा गया। मन ही मन मैंने सोचा, यह तो बुरा है—कलीसिया बहुत सारी संपत्ति खोने जा रही है। इसके बाद, उस दुष्ट पुलिस ने हमारी ऐसे तलाशी ली जैसे कोई डाकू डकैती कर रहे हों । उन्होंने प्रत्येक कमरे को भी छान मारा, उन्हें बसउलट-पुलट ही कर दिया। अंत में, उन्हें कलीसिया की कुछ जायदाद मिली जिनमें तीन बैंक कार्ड, जमा राशि की रसीदें, कुछ कंप्यूटर, मोबाइल फोन आदि शामिल थे। उन्होंने सब कुछ ज़ब्त कर लिया, फिर वे हम चारों को पुलिस स्टेशन ले गए।

दोपहर में, दुष्ट पुलिस तीन और बहनों को ले आईजिन्हें उन्होंने गिरफ्तार किया था। उन्होंने हम सातोंको एक कमरे में बंद कर दिया एवं हमें बोलने नहीं दिया, और न ही रात होने पर, उन्होंने हमें सोने दिया। बहनों को मेरे साथ बंद देखकर और कलीसिया का कितना धन खो गया होगा इसकी सोच-सोचकर, मैं चिंता मेंआपे से बाहर थी। मैं बस इतना कर सकती थी कि परमेश्वर से अविलम्ब प्रार्थना करूँ: हे परमेश्वर! इस माहौल का सामना करते हुए, मैं नहीं जानती हूँ कि मुझे क्या करना चाहिए। कृपया मेरे दिल की रक्षा करो और इसे शांत रखो। प्रार्थना करने के बाद, मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा: "डरो मत, जब इस तरह की चीज़ें कलीसिया में होती हैं, तो यह सब मेरी अनुमति से होती हैं। खड़े हो जाओ और मेरी ओर से बोलो। विश्वास रखो कि सभी चीज़ों और सभी मामलों की अनुमति मेरे सिंहासन द्वारा है और सभी में मेरे इरादे हैं" ("आरंभ में मसीह के कथन और गवाहियाँ")। "तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम्हारे परिवेश में सभी चीज़ें मेरी अनुमति से हैं, मैं इन सभी की व्यवस्था करता हूँ। स्पष्ट रूप से देखो और तुम्हें दिए गए वातावरण में मेरे दिल को संतुष्ट करो" ("आरंभ में मसीह के कथन और गवाहियाँ")। परमेश्वर के वचनों ने मेरे दिल की खलबली को शांत कर दिया। मुझे एहसास हुआ कि, आज का यह माहौल परमेश्वर की अनुमति से मुझे मिला था, और वह समय आ गया था जब परमेश्वर मुझसे उसकी गवाही देने के लिए कहे। परमेश्वर की इच्छा को समझने के बाद, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की और मैंने कहा: "हे परमेश्वर! मैं तुम्हारेआयोजन और तुम्हारी व्यवस्थाओं का पालन करना चाहतीहूँ, और मेरी गवाही में दृढ़ता से खड़ी रहना चाहतीहूँ—लेकिन मैं छोटे कद की हूँ, और मैं चाहती हूँ कि तुम मुझे विश्वास और ताकत दो, और दृढ़ता से खड़े रहने में मेरी रक्षा करो।"

अगली सुबह, उन्होंने हमें विभाजित कर दिया और हमसे पूछताछ की। दुष्ट पुलिस में से एक ने गर्व से कहा, "मुझे पता है कि तुम कलीसिया की एक अगुवा हो। हम पांच महीने से तुम लोगों की निगरानी कर रहे हैं।" जब मैंने मेरी निगरानी करने के लिए उन्होंने जो कुछ भी किया था उसकाविस्तृत वर्णन करते हुए उसे सुना, तो एक सिहरन मेरी रीढ़ की हड्डी से नीचे दौड़ गई। मैंने मन ही मन सोचा, सीसीपी सरकार ने हमें गिरफ्तार करने के लिए वास्तव में अच्छा खासा आधार-कार्य किया थ। चूंकि वे पहले से ही जान चुके हैं कि मैं कलीसिया की एक अगुवा हूँ, ऐसा कोई रास्ता नहीं है कि वे मुझे जाने दें। मैंने तुरंत परमेश्वर के सामने अपना संकल्प तय किया: मैं परमेश्वर को धोखा देने और एक यहूदा बनने के बजाय मर जाना पसंद करूँगी। यह देखकर कि उनकी पूछताछ से कोई परिणाम नहीं मिल रहा था, उन्होंने किसी एक को मेरी निगरानी करने और मुझे सोने नहीं देने का काम सौंप दिया।

तीसरे दिन की पूछताछ के दौरान, दुष्ट पुलिस के मुखिये नेएक कंप्यूटर चलाया और उसने मुझे परमेश्वर का तिरस्कार करने वाली सामग्री को पढ़ने के लिए कहा। यह देखकर कि मैं अविचलित थी, उसने मुझे कलीसिया के वित्त के बारे में बारीकी से सवाल किये। मैंने अपना सिर एक तरफ घुमा लिया और उसे नज़रअंदाज़ कर दिया। इस बात ने उसे इतने गुस्से में डाल दिया कि उसने गाली देना शुरू कर दिया। "कोई बात नहीं यदि तुम कुछ भी बताना नहीं चाहतीहो—हम तुम्हें अनिश्चित काल तक रोक सकते हैं, और जब चाहें तुम्हें यातना दे सकते हैं", उसने यह ज़ोरदार धमकी दी। उस दिन मध्य-रात्रि में, पुलिस ने अपनी यातनाओं को देना शुरू किया। उन्होंने मेरे कंधे के पीछे से मेरी एकबांह को खींच लिया और दूसरी बांह को मेरी पीठ पर से ऊपर खींच लिया। अपने पैरों से मेरी पीठ को दबाकर, उन्होंने बलपूर्वक दोनों कलाइयों को हथकड़ी से बाँध दिया। इससे मुझे इतना दर्द हुआ कि मैं पीड़ा से चिल्लाने लगी—ऐसा लगा कि मेरे कंधों की हड्डियां और मांस सब अलग हो जाएंगे। मैं केवल घुटने टेक जमीन पर अपना सिर रखकर गतिहीन पड़ी रह कर सकती थी। मैंने सोचा कि मेरी चीखों के कारण वे मुझसे रियायत करेंगे, लेकिन इसके बजाय उन्होंने मेरी पीठ और हथकड़ी के बीच एक प्याला डाल दिया, जिससे दर्द दुगुना हो गया। ऐसा लगा कि मेरे ऊपरी शरीर की हड्डियों केदो टुकड़े कर दिए गए थे। यह इतना पीड़ाजनक था कि मैंने सांस छोड़ने तक की हिम्मत नहीं की और ठंडा पसीना मेरे चेहरेसे टपकने लगा। जैसे ही मैंने महसूस किया कि मैं अब इस दर्द को और सहन नहीं कर सकती थी, दुष्ट पुलिस में से एक ने मौका देखकर मुझसेयह कहा: "बस हमें एक नाम बता दो, और हम फ़ौरन ही तुम्हें जाने देंगे।" उसी पल में, मैंने परमेश्वर को मेरे दिल की रक्षा करने के लिए पुकारा। मैंने तुरंत एक स्तुति-गान के बारे में सोचा: " देहधारी परमेश्वर सहता है यातना, और कितना चाहिये सहना मुझे? गर अंधेरों में मैं जा गिरा, तो कैसे देखूँगा परमेश्वर को? ... बल्कि तुम्हारे दुखी दिल का समाधान करने, यातना सह लूँगा मैं" ("मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना" में "परमेश्वर के शुभ समाचार की प्रतीक्षा में")। मैंने सोचा, "ये सच है, मसीह ही पवित्र और धर्मी परमेश्वर है। उसने देहधारण किया और पूरी तरह से भ्रष्ट मानवजाति का उद्धार करने के लिए धरती पर आया। पिछले कुछ समय से, सीसीपी उसका पीछा और उत्पीडन कर रही है, लोग भी उसका विरोध और निंदा कर रहे हैं। परमेश्वर को कभी इस तरह दुःख नहीं सहना चाहिए था, फिर भी वह सब कुछ चुपचाप सहता है ताकि हमें बचा सके।" विचार करने पर, मुझे समझ आया कि मैं इस तरह कष्ट इसलिए सह रही थी क्योंकि मैं उद्धार पाना चाहती थी, मुझे यह कष्ट मिलना ही चाहिए। अगर मैं शैतान के सामने इसलिए झुक जाती हूँ कि मैं दर्द सहन नहीं कर सकती, तो फिर मैं परमेश्वर का फिर कभी सामना कैसे कर सकूँगी? यह सोचकर मुझे शक्ति मिली, और मैं एक बार फिर से दृढ़ हो गई। दुष्ट पुलिस ने मुझे लगभग एक घंटे तक यातना दी। जब उन्होंने हथकड़ियों को खोला, तो मेरा पूरा शरीर जमीन पर ढीला होकर गिर पड़ा। "यदि तुम बात नहीं करतीहो तो हम इसे फिर से करेंगे!", उन्होंने मुझ से चिल्लाकर कहा। मैंने उनको देखा और कुछ भी नहीं कहा। दुष्ट पुलिस के इन लोगों के प्रति मेरा दिल नफरत से भर गया था। दुष्ट पुलिस में से एक फिर से हथकड़ी लगाने के लिए आगे आया। मुझे जो भयंकर पीड़ा हुई थी, उसके बारे में सोचकरमैं अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना करते रही। मुझे आश्चर्य हुआ किजब उसने मेरी बाहों को मेरी पीठ के पीछे खींचने की कोशिश की, तो वह उन्हें मोड़ही नहीं सका। इससे बहुत ज्यादा पीड़ा भी नहीं पहुंची। वह इतनेज़ोर से कोशिश कररहा था कि उसका पूरा सिर पसीने से ढकगया—लेकिन वह अभी भी मुझे हथकड़ियाँ नहीं पहना सका। "तुम काफी मजबूत हो!" उसने गुस्से से झुंझलाकर कहा। मुझे पता था कि यह सब में परमेश्वर द्वारा मेरी देखभाल की जा रही थी, और यह कि परमेश्वर मुझे शक्ति दे रहा था। परमेश्वर का धन्यवाद हो!

सुबह मुश्किल से हुई। दुष्ट पुलिस ने मुझे कैसे सताया था इसके बारे में सोच-सोच कर मैं अभी भी सदमे में थी। उन्होंने मुझे धमकी भी दी, मुझसे कहा कि अगर मैंने कुछ भी नहीं बताया, तो वे मुझे पहाड़ों के बीच ले जाकर मार डालेंगे। इसके बाद, जब वे अन्य विश्वासियों को गिरफ्तार करेंगे, तो वे उनसे कहेंगे कि मैंने कलीसिया को धोखा दे दिया था—तबमैं उनके सामने बदनाम हो जाऊँगी, और वे मुझे कलीसिया के अन्य भाइयों और बहनों से नफरत करवाएंगे और मेरा त्याग करवा देंगे। इसकी कल्पना करमेरा दिल सूनेपन और विवशता की लहरों से घिर गया था। मैंने खुद को डरपोक और कमज़ोर महसूस करते हुए पाया। मैंने मन ही मन सोचा: मेरे लिए मर जाना बेहतर होगा। इस तरह मैं यहूदा तो नहीं बनूंगी और परमेश्वर को धोखा न दूंगी, न ही मुझे अपने भाइयों और बहनों द्वारा त्याग दिया जाएगा। मैं देहकी यातना और पीड़ा से भी बच जाऊँगी। तो मैंने उस पल का इंतजार किया जब दुष्ट पुलिस का ध्यान मेरी ओर नहीं था और मैंने दीवार पर मेरे सिर को कसकर मार दिया—लेकिन उससे बस इतना ही हुआ कि मेरा सिर चकरा गया; मैं मरी नहीं। उस पल में, परमेश्वर के इन वचनों ने मुझे भीतर से प्रबुद्ध किया: "इन अंतिम दिनों में, तुम्हें परमेश्वर के प्रति गवाही देनी है। इस बात की परवाह किए बिना कि तुम्हारे कष्ट कितने बड़े हैं, तुम्हें अपने अंत की ओर बढ़ना है, अपनी अंतिम सांस तक भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य बने रहना आवश्यक है, और परमेश्वर की कृपा पर रहना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है और केवल यही मजबूत और सामर्थी गवाही है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। "जब दूसरे तुम्हारा गलत अर्थ निकालते हैं, तो तुम परमेश्वर से प्रार्थना करने और कहने के योग्य होते हो: 'हे परमेश्वर! मैं यह नहीं मांगता कि दूसरे मुझे सहें या मुझसे अच्छा व्यवहार करें, न ही ये कि मुझे समझें और स्वीकार करें। मैं केवल यह मांगता हूँ कि मैं अपने हृदय से तुझसे प्रेम कर सकूँ, कि मैं अपने हृदय में शांत हो सकूँ, और कि मेरा विवेक शुद्ध हो। मैं यह नहीं मांगता कि दूसरे मेरी प्रशंसा करें, या मेरा बहुत आदर करें; मैं केवल अपने हृदय से तुझे संतुष्ट करने का प्रयास करूँ'" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "केवल शोधन का अनुभव करने के द्वारा ही मनुष्य सच्चाई के साथ परमेश्वर से प्रेम कर सकता है")। परमेश्वर के वचनों ने मेरे दिल से उदासी को भगा दिया। हाँ। परमेश्वर लोगों के दिल के भीतर देखता है। अगर पुलिस मुझ पर झूठा इल्जाम भी लगाती है, भले ही अन्य भाई-बहन मुझे वास्तव में ही गलत समझें और मुझे छोड़ दें क्योंकि उन्हें नहीं पता कि वास्तव में क्या हुआ था, तो भी मुझे विश्वास है कि परमेश्वर के इरादे अच्छे हैं; परमेश्वर मेरे विश्वास और उसके प्रति मेरे प्यार की परीक्षा ले रहा है, और मुझे परमेश्वर को संतुष्ट करने का अनुसरण करना चाहिए। शैतान की चालाक योजनाओं के आरपार देखकर, मैंने अचानक लज्जित और शर्मिंदा महसूस किया। मैंने देखा कि परमेश्वर में मेरा विश्वास बहुत छोटा था। थोड़ी पीड़ा सहन करने के बाद, मैं दृढ़ता से खड़े होने में असमर्थ हो रही थी, और मैं पलायन की, और मौत के माध्यम से परमेश्वर के आयोजन से भाग निकलने की, सोच रही थी। धमकी के शब्द बोलने के पीछे दुष्ट पुलिस का उद्देश्य यह था कि मैं परमेश्वरको अपनी पीठ दिखा दूँ। और यदि परमेश्वर की सुरक्षा न होती, तो मैं उनकी चालाक योजना में फंस गई होती। जैसे ही मैंने परमेश्वर के वचनों पर विचार किया, मेरा दिल प्रकाश से भर गया। मैं अब मरना नहीं चाहती थी, बल्कि एक अच्छा जीवन जीना चाहती थी और अपने जीवन में जो कुछ भी मैं वास्तव में कर रही थी उसे परमेश्वर के प्रति गवाही देने और शैतान को शर्मिंदा करने के लिए उपयोग में लाना चाहती थी।

जिन दो दुष्ट पुलिसकर्मियों को मेरी निगरानी करने का काम दिया गया था, उन्होंने मुझसे पूछा कि मैंने दीवार से अपना सिर क्यों मारा था। मैंने कहा कि अन्य पुलिसकर्मियों ने मुझे पीटा था इसलिए। "हम मूल रूप से शिक्षा के माध्यम से काम करते हैं। तुम चिंता मत करो—मैं उनको तुम्हें और चोट पहुँचाने नहीं दूँगा", उनमें से एक ने मुस्कान के साथ कहा। उसके आश्वासन के शब्दों को सुनकर, मैंने सोचा: ये दोनों तो बुरे नहीं हैं; जबसे मुझे गिरफ्तार किया गया था, वे मेरे लिए काफी अच्छे रहे हैं। इसके साथ ही, मैंने अपनीसावधानी को ढीला कर दिया। लेकिन उस पल में, परमेश्वर के वचन मेरे दिल में कोंध उठे: "हर समय, मेरे लोगों को शैतान की चालाक योजनाओं से सतर्क होना होगा, मेरे लिए मेरे घर के द्वार की रक्षा करनी होगी, ... जो तुम लोगों को शैतान के जाल में फंसने से रोकेगा, उस समय इस पछतावे के लिए बहुत देर हो जाएगी" ("वचन देह में प्रकट होता है" में संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन के "अध्याय 3")। परमेश्वर के वचनों ने मुझे समय पर याद दिला दिया, और मुझे यह दिखाया कि शैतान की चालाक योजनाएं कई होती हैं, और मुझे इन राक्षसों के खिलाफ हर समय सावधान रहना होगा। मुझे उम्मीद नहीं थी कि वे जल्द ही अपने असली रंग को प्रकट कर देंगे। एक दुष्ट पुलिसकर्मी ने परमेश्वर की निंदा करनी शुरू की, जबकि दूसरा मेरे पास बैठकरमेरे पैर को थपथपाते हुए, और मुझे बुरी नज़र से देखते हुए कलीसिया के वित्त के बारे में पूछने लगा। शाम को, यह देखकर कि मुझेझपकी आ रही थी, उसने मेरी छाती को टटोलना शुरू कर दिया। यह जानकर कि अब उन्होंने अपने असली चेहरों को प्रकट कर दिया था, मैं क्रोध से भर गई थी। केवल अब मैंने देखा कि जनता की पुलिस कहलाने वाले ये लोग गुंडों और दादाओं से ज्यादा कुछ नहीं थे। ये थीं वे घृणास्पद, गंदी चीजें जिन्हें करने में वे सक्षम थे। नतीजतन, मैं केवल परमेश्वर से प्रार्थना कर सकतीथीकि वह मुझे उनके अनिष्ट से बचा ले।

अगले कई दिनों में, दुष्ट पुलिस ने न केवल कलीसिया के बारे में मुझसे घनिष्ट सवाल किये, बल्कि बारी-बारी से उन्होंने यह निगरानी भी रखी कि मैं सो न सकूं। इसके बाद, यह देखकर कि मैंने किस तरह उन्हें कोई भी सहयोग नहीं दिया था, वे दो दुष्ट पुलिसकर्मी जो मुझसे पूछताछ कर रहे थे, अब उग्र हो गए। उनमें से एक मुझ पर सवार हो गया, उसने मेरे चेहरे पर थप्पड़ जड़ दिए, और न जाने कितनी बार मेरी पिटाई कर दी। मेरे चेहरे में टीसें हो उठीं, सूजन शुरू हो गई, और अंत में मेरे चेहरा इतना सुन्न हो गया कि मुझे अब कुछ भी महसूस नहीं हो रहा था। चूँकि उनकी पूछ-ताछ ने मुझसे कुछ भी हासिल नहीं किया था, एक शाम उस दुष्ट पुलिस के अगुआ ने मुझ से चिल्लाकर कहा, "तुम्हें अपना मुंह खोलना शुरू करने की ज़रूरत है। तुम मेरे कमबख्त धैर्य की परीक्षालेरही हो—मैं यह नहीं मानता कि हम तुम्हारे साथ लाचार हैं। मेरा तुमसे भी काफी अधिक मुश्किल लोगों से कई बार पाला पड़ा है। अगर हम तुम पर कठोर नहीं होंगे, तो कमबख्त तुम्हें काबू में लाने का कोई तरीका न होगा!" उसने आदेश दिया और कई दुष्ट पुलिसकर्मियों ने मुझे यातना देना शुरू कर दिया। शाम को, पूछताछ का कमरा मनहूस और खौफ़नाक हो गया—मुझे ऐसा लगा कि मानो मैं नरक में थी। उन्होंने मुझे फ़र्श पर बिठा दिया और मेरे हाथों को मेरे घुटने और मेरे निचले पैरों के बीच से निकालकर बेड़ियाँ लगा दीं। उसके बाद उन्होंने मेरी बाँहों के बीच की खाली जगहों से होकर और मेरे घुटनों के पीछे एक लकड़ी का डंडा डाला, जिससे मेरा पूरा शरीर मुड़ कर रह गया। फिर उन्होंने डंडे को उठा लिया और दो मेजों के सहारे बीच में झुला दिया, जिससे मेरा पूरा शरीर हवा में लटक गया और मेरा सिर नीचे की तरफ़ हो गया। जिस क्षण उन्होंने मुझे ऊपर उठाया, मेरा सिर चकरा गया और मेरे लिए सांस लेना मुश्किल हो गया। ऐसा लगा जैसे मैं घुट रही थी। क्योंकि मुझे हवा में उल्टा लटका दिया गया था, मेरा पूरा वजन मेरी कलाई के बल झूल रहा था। शुरुआत में, मेरे मांस को बेड़ियों से कट जाने से रोकने के लिए, मैंने अपने हाथों को कसकर एक साथ बांधे रखा, मेरे शरीर को घुमाया, और उसी स्थिति में रहने के लिए कठिनतम कोशिश की। लेकिन मेरी शक्ति धीरे-धीरे क्षीण होती गई। मेरे हाथ मेरे टखनों से फिसलकर मेरे घुटनों पर आ गए, बेड़ियों ने मेरे मांस को गहराई से काट लिया, जिससे मैं घोर पीड़ा में आ गई। इस तरह से आधे घंटे तक लटकने के बाद, मुझे ऐसा लगा कि मेरे शरीर का सारा खून मेरे सिर में इकठ्ठा हो गया था। मेरे सिर और आंखों में दर्दनाक फैलावसे ऐसा महसूस हुआ कि मानो वे फटने जा रहे थे। मेरीकलाइयाँ गहरीकट गईं थीं, और मेरे हाथ इतने सूज गए थे कि वे दो पाव-रोटी की तरह दिखते थे। मुझे लगा कि मैं मौत की कगार पर थी। "मैं और सहन नहीं कर सकती, मुझे नीचे उतारो", मैं निराशा में चिल्ला उठी। "खुद तुम्हारे सिवाय तुम्हें कोई भी नहीं बचा सकता है। बस हमें एक नाम बताओ और हम तुमको नीचे उतरने देंगे," दुष्ट पुलिस अधिकारियों में से एक ने क्रूरतापूर्वक कहा। अंत में, उन्होंने देखा कि मैं वास्तव में परेशानी में थी, और मुझे नीचे उतार दिया। उन्होंने मुझे कुछ ग्लूकोज़दिया और मुझे फिर से पूछना शुरू कर दिया। मैं जमीन पर मिट्टी की तरह पड़ी रही, मैंने आंखों को कसकर भींच लिया, और उनकी ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया। अप्रत्याशित रूप से, दुष्ट पुलिस ने मुझे एक बार फिर हवा में उठा दिया। मेरे हाथों से थामे रहने की ताकत न होने के कारण, बेड़ियों को मेरी कलाइयों में धँस जाने देने के अलावा मेरे पास कोई विकल्प नहीं था, मेरे शरीर को उसके दाँतेदार किनारेआरे की तरह चीरने लगे। उस पल में, यह इतनाकष्टदायक हो गया कि मैंने एक मर्मभेदी चीख निकाली। मेरे पास लड़ाई जारी रखने की ताकत नहीं थी और मेरी सांस बहुत छिछली हो गई थी। ऐसा लगा मानो वक्त ठहर गया था। मुझे लगा मानो मैं मौत के कगार पर डगमगा रही थी। यह सोचकर कि अब तो मैं वाकई मरने जा रही थी, मैंने परमेश्वर से मेरे जीवन के अंत से पहले अपने दिल की बात को कहना चाहा: "हे परमेश्वर! इस पल जब मैं सचमुच मौत के कगार पर हूँ, मैं डरी हुई हूँ—पर आज रात अगर मैं मर भी जाऊं, मैं तब भी तुम्हारी धार्मिकता की प्रशंसा करुँगी। हे परमेश्वर! मेरे लघु जीवन की यात्रा में, मैं तुम्हारा धन्यवाद करती हूँ कि तुमने मुझे इस पापी दुनिया से अपने घर लौटने के लिए चुना, ताकि मैं अब और न भटकूँ, खो न जाऊं और तुम्हारे स्नेहपूर्ण आलिंगन में सदा के लिए रह सकूं। हे परमेश्वर! मैंने तुम्हारे प्रेम का इतना अधिक आनंद पाया है—फिर भी इस वक़्त जब मेरा जीवन समाप्त होने को है, मुझे समझ आ रहा है कि मैंने तुम्हारे प्रेम को संजोया नहीं है। कई बार मैंने तुम्हें दुखी और निराश किया है; मैं एक अबोध शिशु की तरह हूँ जो केवल अपनी माता के प्रेम का आनंद भोगना जानता है, पर जिसने कभी इस प्रेम को लौटाने की नहीं सोची है। केवल अब जब मैं अपने जीवन को खोने जा रही हूँ, मैं यह समझ पा रही हूँ कि मुझे तुम्हारे प्रेम को संजोये रखना चाहिए, और केवल अब मुझे उन कई अच्छे मौकों को खो देने का अफ़सोस हो रहा है। जिसका मुझे अभी सबसे अधिक खेद है, वह यह है कि मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करने में असमर्थ रही हूँ और मैं तुम्हारी बहुत ऋणी हूँ, और यदि मैं अभी भी जीवित रहती हूँ, तो मैं निश्चित रूप से अपने कर्तव्य को करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करूंगी, ताकि मेरे ऋण का भुगतान कर सकूँ। इस पल में, मैं केवल इतना मांगती हूँ कि तुम मुझे शक्ति दो, जिससे मुझे कभी भी मृत्युसे डरना न पड़े, और जिसका भी मैं सामना करूँ, उसमें मैं दृढ़ बनी रहूँ...।" मेरे माथे से बूँद-बूँद आँसू टपक पड़े। रात खौफनाक ढंग से खामोश थी। घड़ी की टिक-टिक के अलावा और कोई आवाज़ नहीं थी, मानो मेरे जीवन के अंतिम पल गिने जा रहे हों। और तभी कुछ ऐसा हुआ जो चमत्कारिक था। मुझे ऐसा लगा मानो गर्म धूप मुझ पर झिलमिला रही थी और धीरे-धीरे, मैंने अपने शरीर में दर्द का अनुभव करना बंद कर दिया।परमेश्वर के वचन मेरे मन में गूंजने लगे: "जिस क्षण से तुम रोते हुए इस दुनिया में आए हो, तब से तुम अपना कर्तव्य करना शुरू करते हो। परमेश्वर की योजना और उसके विधान में अपनी भूमिका ग्रहण करके, तुम जीवन में अपनी यात्रा शुरू करते हो। तुम्हारी पृष्ठभूमि जो भी हो और तुम्हारी आगे की यात्रा जो भी हो, कोई भी उस योजना और व्यवस्था से बच कर भाग नहीं सकता है जो स्वर्ग ने बनायी हैं, और किसी का भी अपनी नियति पर नियंत्रण नहीं है, क्योंकि केवल वही जो सभी चीजों पर शासन करता है ऐसा कार्य करने में सक्षम है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)। हाँ—परमेश्वर मेरे जीवन का स्रोत है, परमेश्वर मेरे भाग्य पर शासन करता है, और मुझे अपने आप को परमेश्वर के हाथों में छोड़ देना चाहिए और खुद को उसके विधान में रखना चाहिए। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए मुझे अपने दिल में एक सुखद, शांतिपूर्ण भावना का अनुभव हुआ, मानो कि मैं परमेश्वर के स्नेहपूर्ण आलिंगन में विश्राम कर रही थी। मैंने खुद को सो जाते हुए पाया। इस डर से कि मैं कहीं मर न जाऊं, दुष्ट पुलिस ने मुझे नीचे ले लिया और जल्दी से मुझे कुछ ग्लूकोज़ और पानी दिया। मृत्यु को छू कर निकल जाने में, मैंने परमेश्वर के चमत्कारी कार्यों को देखा था।

अगले दिन, दुष्ट पुलिस ने पूरी शाम मुझे बार-बार उसी तरह ऊपर लटकाने में व्यतीत कर दी। उन्होंने मुझसे उन रसीदों से सम्बंधित धनराशि के बारे में पूछताछ की, जिन्हें उन्होंने ज़ब्त कर लिया था। पूरे समय के दौरान, मैंने कुछ भी नहीं कहा—फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। कलीसिया के धन को हड़पने के लिए, उन्होंने मुझे यातना देने के हर घृणास्पद साधन का इस्तेमाल किया। उस पल में, परमेश्वर के वचन मेरे दिल में गूंज उठे थे: "दिल में हज़ारों वर्ष की घृणा भरी हुई है, पापमयता की सहस्राब्दियाँ दिल पर अंकित हैं—यह कैसे घृणा को प्रेरित नहीं करेगा? परमेश्वर का बदला लो, अपने शत्रु को पूरी तरह समाप्त कर दो, उसे अब अनियंत्रित ढंग से फैलने की अनुमति न दो, और उसे अपनी इच्छानुसार परेशानी पैदा मत करने दो! यही समय है: मनुष्य अपनी सभी शक्तियों को लंबे समय से इकट्ठा करता आ रहा है, उसने इसके लिए अपने सभी प्रयासों को समर्पित किया है, हर कीमत चुकाई है, ताकि वह इस दानव के घृणित चेहरे को तोड़ सके और जो लोग अंधे हो गए हैं, जिन्होंने हर प्रकार की पीड़ा और कठिनाई सही है, उन्हें अनुमति दे कि वे अपने दर्द से उठें और इस दुष्ट प्राचीन शैतान को अपनी पीठ दिखाएं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। परमेश्वर के वचनों ने मुझे बड़ी ताकत और निष्ठा दी। मैं शैतान के साथ मौत तक लड़ूंगी, और यदि मैं मर भी जाऊं, तो भी मैं परमेश्वर की गवाही देने में दृढ़ रहूंगी। परमेश्वर के वचनों से प्रेरित होकर, मैं अनजाने में दर्द को भूल गई। इस तरह, हर बार जब उन्होंने मुझे ऊपर लटकाया, परमेश्वर के वचनों ने मुझे प्रेरित और प्रोत्साहित किया, और जितनी अधिक बार उन्होंने मुझे ऊपर लटकाया, उतना ही मैं उनके सार को आर-पार देख सकीथी—जो कि दुष्ट राक्षसों का था—और मेरी गवाही देने में तथा परमेश्वर को संतुष्ट करने में मेरा संकल्प उतना ही अधिक दृढ़ होता गया। अंत में, वे सब एक-एक कर थक गए। "ज्यादातर लोग आधे घंटे तक इस तरह लटक नहीं सकते हैं, लेकिन वह इतने समय तक बनी रही है-वह वाकई सख्त है!", मैंने उन्हें टिप्पणी करते सुना। इन शब्दों को सुनकर, मैं ज़ोश से अभिभूत हो गई थी। मैंने मन ही मनसोचा: जब मेरे पीछे परमेश्वर हो, तुम मुझे हरा नहीं सकते। पुलिस स्टेशन में मेरे नौ दिन और रात के दौरान, शारीरिक यातना के अलावादुष्ट पुलिस ने मुझे नींद से भी वंचित रखा था। हर बार जब मैंने अपनी आंखें बंद की और ऊँघना शुरू ही किया, तो वे मेजपर अपने डंडे को मार देते थे, या फिर मुझे खड़े होकर दौड़ने के लिए कहते, या फिर बस मुझ पर चिल्लाते थे, इस तरह वे मेरे मनोबल को तोड़ कर मुझे परास्त करने की कोशिश कर रहे थे। नौ दिनों के बाद, यह देखकर भी कि वे अपने उद्देश्य तक नहीं पहुंच पाए थे, पुलिस ने हार नहीं मानी। वे मुझे एक होटल में ले गए, जहां उन्होंने मेरे पैरों के सामने मेरे हाथों को बेड़ियाँ पहनायी, फिर मेरी बाहों और पैरों के फ़ासलेमें एक लकड़ी का डंडाफँसा डाला, जिससे मुझे अपने शरीर को फर्श पर घूँघर बनाकर बैठना पड़ा। उन्होंने मुझे अगले कई दिनों तक फर्श पर इस स्थिति में बैठाएरखा, जिसके कारण हथकड़ियों से मेरा मांस कट गया। मेरे हाथ और मेरी कलाइयाँ सूजगईं और बैंगनी हो गईं, और मेरे कूल्हों पर इतनी चोट लगी कि मैंने सहलाने या छूने की हिम्मत तक नहीं की; ऐसा लगा जैसे मैं सुइयों पर बैठी हुई थी। एक दिन, दुष्ट पुलिस के नेताओं में से एक, यह देखकर कि मुझ से की गई पूछताछ निष्फल हो गई थी, मेरे पास क्रोध से भभकते हुए आया और उसने मेरे चेहरे पर ज़ोर से थप्पड़ मार दिया—इतने ज़ोर से कि यह मेरे दो दांतों को ढीला कर देने के लिए काफी था।

अंत में, प्रांतीय जन सुरक्षा विभाग के दो खंड-प्रमुख आए। जैसे ही वे पहुंचे, उन्होंने हथकड़ी खुलवा दी, सोफे पर बैठने में मेरी मदद की, और मुझे एक कप पानी पिलाया। उन्होंने कहा, "पिछले कुछ दिन तुम्हारे लिए बहुत मुश्किल रहे हैं—लेकिन इसे दिल पर न लेना, वे लोग तो केवल आदेशों का पालन कर रहे थे," उन्होंने मक्कारी के साथ कहा। उनके पाखंड ने उनके प्रति मुझसेइतनी घृणा करवा दी किमैंने अपने दांतों को भींच लिया। उन्होंने एक कंप्यूटर चालू कर दिया और मुझे झूठे सबूत दिखाए। उन्होंने कई शब्दों को कहा जो परमेश्वर के खिलाफ तिरस्कार और निंदा के थे। मेरे दिल में, मैं आक्रोश में थी। मैं उनके साथ बहस करना चाहतीथी, लेकिन मुझे पता था कि ऐसा करने से वे परमेश्वर के खिलाफ और अधिक निंदा ही करेंगे। इस समय, मुझे सचमुच लगा कि देहधारी परमेश्वर ने कितनी बड़ी कठिनाई सहन की थी, और मनुष्य को बचाने के लिए परमेश्वर ने कितना घोर अपमान सहन किया था। इसके अलावा, मैंने इन दुष्ट राक्षसों की तुच्छता और घृण्यता देखी। मेरे दिल में, मैंने गुप्त रूप से शपथ ली कि मैं शैतान के साथ पूर्णतःसम्बन्ध-विच्छेद कर दूँगी और हमेशा परमेश्वर के प्रति वफादार रहूंगी। इसके बाद, उन्होंने मुझे धोखा देने की चाहे जितनी भी कोशिश की, मैंने अपना मुंह बंद रखा और कुछ भी नहीं कहा। उनके शब्दों का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था, यह देखकर दोनों खंड-प्रमुख केवल झुंझलाहट में जा सके थे।

होटल में दस दिन और रात के दौरान, उन्होंने मेरे हाथों पर बेड़ियाँ लगाये रखीं, जिससे मुझे अपने पैरों को पकड़ेफर्श पर बैठे रहना पड़ा। पीछे मुड़कर देखती हूँ तो जब से मुझे गिरफ्तार किया गया था, तब से मैंने पुलिस स्टेशन और होटल में उन्नीस दिन-रात बिताए थे। परमेश्वर के प्रेम की सुरक्षा ने मुझे थोड़ी झपकी तो लेने दी थी, लेकिन दुष्ट पुलिस ने मुझे पूरे समय में बिलकुल सोने नहीं दिया था; यदि मैंने केवल एक पल के लिए भी अपनी आंखें बंद कीं तो वे मुझे जगाने के लिए कुछ भी करते थे—मेज कोपीटना, मुझे लातें मारना, मुझ पर चिल्लाना, मुझे दौड़ने के लिए आदेश देना, इत्यादि। हर बार जब मैं चौंकती थी, तो मेरा दिल मेरी छाती में ज़ोरों से धड़कता था और मैं डर जाती थी। यह बात दुष्ट पुलिस की लगातार यातना में जुड़ जाती, और अंततः मेरी शक्ति गंभीर रूप से घट गई, मेरा पूरा शरीर सूजाहुआ और बेचैन था, और मुझे सब कुछ दो-दो दिखने लगा था। मुझे यह तो पता चलता था कि मेरे सामने लोग बातें कर रहे थे, लेकिन उनकी बातों की आवाज़ ऐसी प्रतीत होती थीकि मानो वह दूर कहीं क्षितिज से आ रही हो। और तो और, मेरी प्रतिक्रियाएं बहुत धीमी होतीजा रही थीं। मेरे लिए किसी भी तरह से इन सब से गुजर सकना परमेश्वर की महान शक्ति के कारण ही था, जिसके लिए मैं आभारी थी! जैसा कि परमेश्वर ने कहा है: "वह मनुष्य को नया जन्म लेने देता है, और प्रत्येक भूमिका में दृढ़तापूर्वक जीने के लिये सक्षम बनाता है। उसकी सामर्थ्य के लिए और उसकी सदा जीवित रहने वाली जीवन की शक्ति के लिए धन्यवाद, मनुष्य पीढ़ी-दर-पीढ़ी जीवित रहता है, जिसके द्वारा परमेश्वर के जीवन की सामर्थ्य मनुष्य के अस्तित्व के लिए मुख्य आधार बनती है...। परमेश्वर की जीवन शक्ति किसी भी शक्ति पर प्रभुत्व कर सकती है; इसके अलावा, वह किसी भी शक्ति से अधिक है। उसका जीवन अनन्त काल का है, उसकी सामर्थ्य असाधारण है, और उसके जीवन की शक्ति आसानी से किसी भी प्राणी या शत्रु की शक्ति से पराजित नहीं हो सकती" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "केवल अंतिम दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनन्त जीवन का मार्ग दे सकता है")। मेरे दिल में, मैंने निष्ठा से परमेश्वर को धन्यवाद दिया और उसकी स्तुति की: हे परमेश्वर! तुम सभी चीजों पर शासन करते हो, तुम्हारे कार्य अनमोल हैं, केवल तुम सर्वशक्तिमान हो, तुम अखूटप्राण-शक्ति हो, तुम मेरे जीवन के लिए जीवित पानी के झरने हो। इस विशेष माहौल में, मैंने तुम्हारी अनूठी शक्ति और तुम्हारे प्रभुत्व को देखा है। अंत में, दुष्ट पुलिस को अपने प्रश्नों का मुझसे कोई जवाब नहीं मिला, और उन्होंने मुझे हिरासत केंद्र में भेज दिया।

हिरासत केंद्र जाने के रास्ते पर, दो पुलिसकर्मियों ने मुझसे कहा: "तुमने वास्तव में अच्छा किया है। तुम लोग हिरासत केंद्र में हो सकते हो, लेकिन तुम अच्छे लोग हो। वहां सभी प्रकार के लोग होते हैं: नशीले पदार्थों के व्यापारी, हत्यारे, वेश्याएं—जब तुम वहां पहुंचोगी, तो तुम देखोगी।" "जब तुम जानते हो कि हम अच्छे लोग हैं, तुम हमें गिरफ्तार क्यों करते हो? क्या सरकार धर्म-निरपेक्षता की बात नहीं करती है?", मैंने पूछा। "वह तो कम्युनिस्ट पार्टी का तुमसे बोला गया झूठ है। पार्टी हमें हमारी आजीविका देती है, इसलिए हमें वह करना पड़ता है जो वह कहती है। हम तुम्हारे लिए कोई नफरत नहीं रखते हैं या तुमसे हमारा कोई विरोध नहीं है। हमने तुम्हें सिर्फ इसलिए गिरफ्तार कर लिया क्योंकि तुम परमेश्वर में विश्वास करतीहो", पुलिसकर्मियों में से एक ने कहा। यह सुनकर, मैंने जो कुछ भी अनुभव किया था, उस पर मैं सोचने लगी। मैं परमेश्वर के इन वचनों को याद किये बिना न रह सकी: "धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने के तरीके हैं!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। परमेश्वर के वचनों ने इस मामले को उसकी तह तक उजागर कर दिया है, जिससे मैं वास्तव में सीसीपी सरकार का असली चेहरा देख सकीथी और यह जान सकी थी कि कैसे यह उस शाबासी को पाने की कोशिश करती है, जिसके लिए यह लायक नहीं है; सतह पर तोयह धार्मिक आजादी के झंडे फहराती है, लेकिन गुप्त रूप से यह देश भर में हर जगह उन लोगों को गिरफ्तार करती है, यह उन पर अत्याचार करती है और इस व्यर्थ आशा के साथ कि वह परमेश्वर के कार्यों को बंद करवा देगी, उनके साथ बर्बरतापूर्ण व्यवहार करती है जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं, और बेशर्मी से यह कलीसिया के धन को लूटती है—और ये सब तथ्य उसके राक्षसी सार को उजागर करते हैं जो परमेश्वर और सत्य से नफरत करता करता है।

जब मैं हिरासत केंद्र में थी, तब कई बार ऐसा हुआ कि मैं दुर्बलथी और दर्द में थी। परन्तु परमेश्वर के वचन मुझे प्रेरणा देते रहे, मुझे शक्ति और विश्वास देते रहे, जिससे मैं यह समझ पाई कि यद्यपि शैतान ने मुझ सेदेह की आजादी तो छीन ली थी, पर पीड़ा ने मुझे मजबूत बनाया था, इसने इन दुष्ट राक्षसों के उत्पीड़न के दौरान मुझे परमेश्वर पर भरोसा करना सिखाया था, मुझे कई सच्चाइयों के वास्तविक अर्थ को समझने की, सत्य की बहुमूल्यता को जानने की, और सच्चाई का अनुसरण करने के लिए मेरे संकल्प और प्रेरणा को बढ़ाने की, सीख दी थी। मैं परमेश्वर के प्रति आज्ञापालन करते रहने के लिए, और परमेश्वर ने जो कुछ भी व्यवस्था की थी उसका अनुभव करने के लिए, तैयार थी। नतीजतन, हिरासत केंद्र में काम करते समय, मैं स्तुति-गान किया करती थी और चुपचाप परमेश्वर के प्रेम के बारे में सोचती थी। मुझे लगा कि मेरा दिल परमेश्वर के अधिक करीब आ गया था, और अब वे दिन मुझे इतने दर्दनाक और निराशाजनक नहीं लगते थे।

इस समय के दौरान, दुष्ट पुलिस ने मुझसे कई बार पूछताछ की। उनके द्वारा मिली यातनाओं पर काबू रख पाने में मिले मार्गदर्शन के लिए मैंने परमेश्वर को बार-बार धन्यवाद दिया। इसके बाद दुष्ट पुलिस ने मेरे तीन बैंक कार्ड से सारे पैसे निकाल लिए। असहाय रूप से दुष्ट पुलिस को कलीसिया के धन को लेते देख कर मेरा दिल टूट गया। इन लालचीराक्षसों के बुरे दल के प्रति मेरा दिल नफरत से भरा हुआ था, और मैं उत्सुक थी कि मसीह का राज्य शीघ्र आ जाए। अंत में, कोई सबूत नहीं होने के बावजूद, उन्होंने मुझे "सार्वजनिक व्यवस्था में बाधा डालने" के आरोप में एक साल और तीन महीने के लिए श्रम के माध्यम से पुनर्शिक्षा की सजा सुनाई।

सीसीपी सरकार द्वारा क्रूरतापूर्वक सताए जाने के बाद, मैंने वास्तव में मेरे प्रति परमेश्वर के प्रेम और उद्धार का स्वाद चख लिया था, और परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता और उनके चमत्कारी कार्यों की मैं सराहना करने लगी थी, मैंने परमेश्वर के वचनोंकेप्रभुत्व को और उनकी ताक़त को देख लिया था। इसके अलावा मैंने सचमुच शैतान को तिरस्कृत किया था। यातना के उस समय के दौरान, परमेश्वर के वचनों ने मेरे दुखद दिनों और रातों में मेरा साथ निभाया था, परमेश्वर के वचनों ने मुझे शैतान के चालाक षड़यंत्रों के आर-पार देखने के योग्य बनाया था और मुझे समय पर सुरक्षा प्रदान की थी। परमेश्वर के वचनों ने मुझे मज़बूत और साहसी बना दिया था, जिससे मैं उनकी क्रूर यातना का समय-समय पर सामना कर सकी। परमेश्वर के वचनों ने मुझे बल और विश्वास दिया था, उन्होंने मुझे शैतान के साथ बिलकुल अंत तक लड़ने का साहस दिया था...। परमेश्वर का धन्यवाद हो! सर्वशक्तिमान परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है! मैं हमेशा के लिए, अंत तक, सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करूँगी!

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

संबंधित सामग्री

उत्पीड़न की कड़वाहट का अनुभव करने के बाद मैं प्यार और नफ़रत के बीच का अंतर जान गया हूँ

झाओ झी, हेबेई प्रांत मेरा नाम झाओ झी है और मैं इस साल 52 का हो गया हूँ। मैं 14 वर्षों से सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुयायी हूँ। परमेश्वर में...

बड़ा अनमोल है यह कष्ट

पहली बार 1 जुलाई 1997 में ऐसा हुआ। मैं परमेश्वर के वचनों की क़िताबों के दो बक्से लिये सड़क के किनारे किसी का इंतज़ार कर रहा था। एक पुलिस अफसर...

Leave a Reply

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें