जब मैं अट्ठारह बरस की थी

12 अगस्त, 2020

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "तुम सब लोगों को शायद ये वचन स्मरण हों : 'क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है।' तुम सब लोगों ने पहले भी ये वचन सुने हैं, किंतु तुममें से कोई भी इनका सच्चा अर्थ नहीं समझा। आज, तुम उनकी सच्ची महत्ता से गहराई से अवगत हो। ये वचन परमेश्वर द्वारा अंत के दिनों के दौरान पूरे किए जाएँगे, और वे उन लोगों में पूरे किए जाएँगे जिन्हें बड़े लाल अजगर द्वारा निर्दयतापूर्वक उत्पीड़ित किया गया है, उस देश में जहाँ वह कुण्डली मारकर बैठा है। बड़ा लाल अजगर परमेश्वर को सताता है और परमेश्वर का शत्रु है, और इसीलिए, इस देश में, परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों को इस प्रकार अपमान और अत्याचार का शिकार बनाया जाता है, और परिणामस्वरूप, ये वचन तुम लोगों में, लोगों के इस समूह में, पूरे किए जाते हैं। ... परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना अत्यंत कठिन है—परंतु इसी कठिनाई के माध्यम से परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा करता है, अपनी बुद्धि और अपने अद्भुत कर्म प्रत्यक्ष करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। परमेश्वर के वचनों का यह अंश मुझे कुछ साल पहले की याद दिलाता है जब सीसीपी ने मुझे उत्पीड़ित किया था।

अप्रैल 2017 में एक दिन सूरज ढलते वक्त, मैं दो और बहनों के साथ एक सभा में थी जब सादे कपड़ों में एक दर्जन से भी ज़्यादा पुलिस अफसर अचानक घुस आये। मैं कुछ पूछ सकूं इससे पहले ही उनमें से कइयों ने हमें नीचे दबा कर न हिलने की हिदायत दी, और बाकी लोगों ने ऊपर से नीचे तक सारा घर छान मारा। घर को उलट-पलट देने में उन्हें ज़रा भी वक्त नहीं लगा। मेरे सामने डरावना दृश्य था। मेरा दिल तेज़ी से धड़क रहा था, और मैं बार-बार परमेश्वर को पुकार रही थी, "हे परमेश्वर! मुझे बहुत डर लग रहा है, पता नहीं ये लोग आगे हमारे साथ क्या करने वाले हैं। हमें आस्था और शक्ति दो ताकि हम गवाह बन सकें।" अपनी प्रार्थना के बाद मैंने परमेश्वर के इन वचनों को याद किया : "तुम जानते हो कि तुम्हारे आसपास के परिवेश में सभी चीजें मेरी अनुमति से हैं, सब मेरे द्वारा आयोजित हैं। स्पष्ट रूप से देखो और अपने को मेरे द्वारा दिए गए परिवेश में मेरे दिल को संतुष्ट करो। डरो मत, समुदायों का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे खड़ा है और तुम्हारी ढाल है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 26)। परमेश्वर के वचनों से मेरी आस्था और साहस को बल मिला। मैं जानती थी कि परमेश्वर मेरे साथ है, और चाहे कुछ भी हो, अगर मैं परमेश्वर के सहारे हूँ और उससे मदद मांगूं, तो वह मेरे साथ होगा। इस सोच के चलते, न मैं ज़्यादा बेचैन हुई न ही डरी।

उसी वक्त एक महिला अफसर ने मुझे दो-चार बार कस के चांटा मारा, मेरी ठुड्डी में चिकोटी काटी और मेरी फोटो ली। उन लोगों ने हमारी तलाशी भी ली और हमारा सारा पैसा और कीमती चीज़ें ले लीं। इसके बाद, वे हम तीनों को अलग-अलग पूछताछ के लिए म्युनिसिपल पब्लिक सिक्यूरिटी ब्यूरो ले गये। जिस अफसर ने मेरी फोटो खींची थी, वह मुझ पर चिल्लायी, "तू कलीसिया में क्या करती है? कलीसिया की अगुआ कौन है? जल्दी उगल!" जब मैंने जवाब नहीं दिया, तो उसने हताश हो कर अपने बायें हाथ से मेरी ठुड्डी में चिकोटी काट कर उसे झटक दिया। जिस तरह उसने चिकोटी काटी उससे मुझे बहुत दर्द हुआ, और मुझे पाँव की उँगलियों के बल खड़े होना पड़ा। फिर उसने अपना दायाँ हाथ इस तरह उठाया जैसे वह मुझे मारने वाली हो और फिर वह डरावने ढंग से बोली, "शराफत से बोल दे, वरना हमें तुझसे निपटना आता है!" उसे इतना खूंख्वार देख कर मैं थोड़ा डर गयी। मैं नहीं जानती थी कि वो आगे मुझे कैसी यातना देगी, इसलिए मैंने तुरंत परमेश्वर को पुकारा। उस पल मेरे दिमाग़ में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के ये वचन कौंधे: "विश्वास एक ही लट्ठे से बने पुल की तरह है: जो लोग घृणास्पद ढंग से जीवन से चिपके रहते हैं उन्हें इसे पार करने में परेशानी होगी, परन्तु जो आत्म बलिदान करने को तैयार रहते हैं, वे बिना किसी फ़िक्र के, मज़बूती से कदम रखते हुए उसे पार कर सकते हैं। अगर मनुष्य कायरता और भय के विचार रखते हैं तो ऐसा इसलिए है कि शैतान ने उन्हें मूर्ख बनाया है क्योंकि उसे इस बात का डर है कि हम विश्वास का पुल पार कर परमेश्वर में प्रवेश कर जायेंगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। मैं जान गयी कि मेरे दब्बू, भयभीत ख़याल शैतान की चालबाजी से आये थे, पुलिस वाले मेरे शरीर को तकलीफ़ देना चाहते थे ताकि मैं दर्द न सह पाने के कारण परमेश्वर को धोखा दूं और भाई-बहनों से गद्दारी करूं। मैं शैतान की चालबाजियों में नहीं फंस सकती थी। मैंने संकल्प किया कि पुलिस चाहे मुझे जैसी भी यातना दे, मैं कभी भी यहूदा नहीं बनूंगी। मैं जानती थी कि मेरी ज़िंदगी और मौत दोनों परमेश्वर के हाथ में हैं, और परमेश्वर की इजाज़त के बिना वे मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। इन बातों को समझ लेने के बाद मुझे काफी सुकून मिला। उसके बाद, मुझ पर सवाल-पर-सवाल दागते हुए उसने जितने भी ज़ोर से मेरी ठुड्डी में चिकोटी काटी हो, मैं एक भी शब्द नहीं बोली। उसी वक्त एक दूसरे अफसर ने उसे बुला लिया और आखिरकार मुझे थोड़ी-सी राहत मिली।

अगले दिन सुबह तीन बजे, मुझे म्युनिसिपल बंदीगृह ले जाया गया। जैसे ही उन लोगों ने मुझे एक कोठरी में डाला, एक महिला अफसर ने दूसरे कैदियों को मेरे सारे कपड़े फाड़ डालने को कहा, तब उसने मुझसे मेरे दोनों हाथ सिर पर रखवाये, गोल घुमवाया और सबके सामने उठक-बैठक करवाये। उन लोगों के संतुष्ट होने तक मुझे ये करना पड़ा, जबकि कैदी एक तरफ खड़े हो कर ताने मार रहे थे। उस वक्त मैं वाकई बेचैन और क्रोधित थी, और मैं मन-ही-मन बारम्बार चिल्ला रही थी, "तुम मुझे इस तरह क्यों बेइज़्ज़त कर रही हो?" अगर मैंने यह खुद अनुभव नहीं किया होता तो मैं यकीन ही न कर पाती कि ये तथाकथित "जनता पुलिस वाले" इतना घिनौना काम कर सकते हैं! तब अफसर ने कैदियों से कहा, "ये सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखती है, इसलिए यह सरकार की गंभीर कार्रवाई की शिकार हुई है। इसे नियम-क़ानून अच्छे-से सिखा दो।" उसके बाद से, कैदी मुझे हर वक्त धमकाते और हर चीज़ के लिए मुझे दुत्कारते रहते। उन लोगों ने मुझसे बर्तन धोना, झाडू लगाना, फर्श को रगड़ कर साफ़ करना जैसे तमाम गंदे और बेहद थकाऊ काम करवाये। कुछ देर बाद मेरे पैरों में दर्द होता और मैं थक जाती, लेकिन अगर मैं पल भर के लिए भी सुस्ताती या धीमी हो जाती, तो वे मुझ पर चीखते-चिल्लाते। इससे भी बुरा, जब भी जेल का कोई नियम टूटता उसका दोष वे मुझ पर मढ़ देते। मेरे पास न्याय की अपील का कोई रास्ता नहीं था।

बार-बार दूसरे कैदियों से धमकियां और गालियाँ खाने से मैं बेहद दुखी और कमज़ोर हो गयी। मुझे कोई अंदाज़ा नहीं था यह सब कब ख़त्म होगा, कई रातें मैंने कंबल में सिकुड़ कर चुपचाप रोते हुए गुज़ारीं। उन दिनों मैंने परमेश्वर से बहुत प्रार्थना की। जब मैं लगभग टूट जाने के कगार पर थी, तो मैंने परमेश्वर के इन वचनों को याद किया: "निराश न हो, कमज़ोर न बनो, मैं तुम्हारे लिए चीज़ें स्पष्ट कर दूँगा। राज्य की राह इतनी आसान नहीं है; कुछ भी इतना सरल नहीं है! तुम चाहते हो कि आशीष आसानी से मिल जाएँ, है न? आज हर किसी को कठोर परीक्षणों का सामना करना होगा। बिना इन परीक्षणों के मुझे प्यार करने वाला तुम लोगों का दिल मजबूत नहीं होगा और तुम्हें मुझसे सच्चा प्यार नहीं होगा। यदि ये परीक्षण केवल मामूली परिस्थितियों से युक्त भी हों, तो भी सभी को इनसे गुज़रना होगा; अंतर केवल इतना है कि परीक्षणों की कठिनाई हर एक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होगी" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 41)। मैं समझ गयी कि परमेश्वर ने मुझे इन हालात में रखे जाने की इजाज़त दी थी और यह परमेश्वर के लिए मेरी आस्था और प्रेम को पूर्ण करने के लिए था ताकि मैं ऐसे मुश्किल माहौल में उसे धोखा न दूं, मैं उसकी गवाह बन सकूं और शैतान को नीचा दिखा सकूं। मैंने उन दिनों को याद किया जब सब-कुछ शांत था, मैं आस्था से भरी हुई थी, लेकिन अब जबकि मैं दर्द और अपमान सह रही हूँ, तो कमज़ोर और नकारात्मक हो गयी हूँ। मैंने देखा कि परमेश्वर में मेरी आस्था वाकई कितनी नाकाफ़ी है। मैं बहुत नाज़ुक थी, उस नन्हे पौधे की तरह जो थोड़ी-सी हवा और बारिश को भी नहीं झेल पाता। मुझे उन मुश्किलों से गुज़ार कर परमेश्वर मेरी आस्था को पूर्ण कर रहे थे और यह मेरे जीवन के लिए फायदेमंद था। मुझे परमेश्वर की गवाह बन कर उसे संतुष्ट करना था।

एक हफ्ते बाद, पुलिस फिर मुझे पूछताछ के लिए ले गयी, और एक अफसर ने खुशामदी ढंग से कहा, "अगर तू नेक है और अपनी कलीसिया के बारे में सब बता दे, तो हम कोशिश करेंगे कि तू आसानी से छूट जाए। तू इतनी कमउम्र है, तुझे अपने यौवन का आनंद लेने के लिए आज़ाद होना चाहिए। यहाँ दुख झेलते हुए पड़े रहने का वाकई कोई फ़ायदा नहीं है।" एक दूसरे अफसर ने कहा, "तेरे सहपाठी और दोस्त सभी अपने सपने पूरे करने में लगे हुए हैं, और तू परमेश्वर में विश्वास करने के कारण यहाँ बंद है। उन्हें पता चला तो वे तेरे बारे में क्या सोचेंगे?" यह सुन कर मैंने सोचा कि जेल में रहने के लिए मैं कितनी छोटी हूँ, और सोचा कि क्या मेरे दोस्त और परिवार वाले इस बारे में जान कर मुझ पर हँसेंगे। इस बारे में मैंने जितना सोचा, उतनी ही उलझन महसूस की, और तब मैंने जाना कि मैं सही हालत में नहीं हूँ, इसलिए मैंने जल्दी से परमेश्वर को पुकारा: "हे परमेश्वर, पुलिस मुझे परेशान करती रहती है। मैं तुम्हें धोखा नहीं देना चाहती और यहूदा नहीं बनना चाहती। मेरे दिल की रक्षा करो, मुझे रास्ता दिखाओ...।" तब मैंने परमेश्वर के वचनों के इस अंश को याद किया: "हर समय, मेरे लोगों को शैतान की चालाक योजनाओं से सतर्क होना होगा, ... जो तुम लोगों को शैतान के जाल में फंसने से रोकेगा, उस समय इस पछतावे के लिए बहुत देर हो जाएगी" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 3)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे सही वक्त पर याद दिलाया कि पुलिस वाले मेरे भविष्य की बात करते वक्त ईमानदारी से पेश नहीं आ रहे थे। दरअसल, वे सिर्फ मुझे गुमराह करना चाहते थे, वे चाहते थे कि मैं परमेश्वर को धोखा दूं और भाई-बहनों के साथ गद्दारी करूं। उनके इरादे वाकई डरावने थे। इस सोच पर, मैंने दृढ़ता के साथ कहा, "मैं जीवन के सही मार्ग में आस्था रखने वाली इंसान हूँ। तुम जो भी कहो, मैं परमेश्वर को धोखा नहीं दूंगी।" इससे अफसर स्तब्ध हो गये। उनकी चाल नहीं चली, तो उनका दुष्ट चेहरा तुरंत सामने आ गया। एक ने मुझे धमकी देते हुए कहा, "लगता है तेरी उम्र छोटी है, पर ज़बान बहुत लंबी है। मेरी बात सुन, तुझे 8-10 साल या 15 साल की सज़ा दिलवाने के लिए हमें कोई भी पुराना बहाना मिल जाएगा। तू अभी 18 की है, अपना पूरा यौवन जेल में काटेगी!" मैंने सोचा, "मुझे जितने साल की भी सज़ा हो, मैं परमेश्वर पर भरोसा करूंगी और गवाही दूंगी। मैं शैतान के आगे नहीं झुकूंगी।"

मैंने सोचा कि इन लोगों ने साम-दाम-दंड-भेद सब तरीके इस्तेमाल कर लिये हैं, अब वे मुझसे पूछताछ नहीं करेंगे। पर मैंने कभी कल्पना नहीं की थी कि वे इससे भी ज़्यादा भयावह तरीका आजमायेंगे। मई के आखिर में एक दिन, पुलिस वाले मुझे एक पूछताछ कक्ष में ले गये और बोले, "हमने तेरे छोटे भाई के स्कूल में पता किया और देखा कि वो ठीक-ठाक है। तू जो कुछ जानती है बता दे, फिर तू जल्दी घर जा सकेगी, अपने परिवार के पास। तुझे अपने भाई की याद नहीं आती?" यह सुन कर मुझे तक़लीफ़ हुई। बचपन से ही मेरा भाई और मैं बहुत करीब थे, लेकिन मैं सीसीपी की गिरफ़्तारी से बचने के लिए कई सालों से भाग रही थी, और उसे देख नहीं पायी थी। मुझे मालूम नहीं था कि वो कैसा है। उन लोगों ने यह भी कहा कि कुछ दिन पहले ही मेरे डैड ने एक वीडियो तैयार किया था, फिर उन्होंने मेरे सामने मोबाइल फोन रख कर वीडियो चला दिया। मैंने अपने डैड को निर्जीव-से बैठे देखा, उनके कपड़े मुड़े-कुचले थे और वे उम्र में काफ़ी बड़े दिख रहे थे। उन्होंने कैमरे में कहा, "शाओई, घर आ जाओ। हम सब तुम्हें याद करते हैं।" पुलिस ने इस वीडियो को कई बार चलाया। मैं वीडियो में डैड को देख रही थी, और मेरे आंसू रुक नहीं रहे थे। एक अफसर ने खुशामद से कहा, "खुद के बारे में भले न सोच, अपने परिवार के बारे में तो सोच! अगर तू परमेश्वर में आस्था रखने पर उतारू रहेगी, तो जेल में न सिर्फ तू सड़ेगी, तेरे परिवार को भी घसीटा जाएगा। तेरा भाई प्रवेश परीक्षा पास कर भी ले, तो भी कोई स्कूल उसे दाखिला नहीं देगा, उसे अच्छी नौकरी भी नहीं मिलेगी। उसके बच्चों को भी इसमें फंसा दिया जाएगा। तू इस बारे में ठीक से सोच ले।" यह सब सुनकर मैं बेचैन हो गयी। मैं परमेश्वर से लगातार प्रार्थना करती रही: "हे परमेश्वर! मेरे जज़्बात हर कहीं हैं, और मैं कमज़ोर महसूस कर रही हूँ। मेरे दिल की रक्षा करो ताकि मैं देह-सुख का अनुसरण न करूं और गवाही दे सकूं।" अपनी प्रार्थना के बाद मैंने परमेश्वर के इन वचनों को याद किया: "तुम में मेरी हिम्मत होनी चाहिए, जब उन रिश्तेदारों का सामना करने की बात आए जो विश्वास नहीं करते, तो तुम्हारे पास सिद्धांत होने चाहिए। लेकिन तुम्हें मेरी खातिर किसी भी अन्धकार की शक्ति से हार नहीं माननी चाहिए। पूर्ण मार्ग पर चलने के लिए मेरी बुद्धि पर भरोसा रखो; शैतान के किसी भी षडयंत्र को काबिज़ न होने दो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। परमेश्वर के वचनों से मैं धीरे-धीरे शांत हो पायी। शैतान जानता था कि मेरे जज़्बात मज़बूत थे और मैं अपने डैड और भाई को छोड़ नहीं सकती थी, इसलिए उसने मुझे धमकाने के लिए मेरी भावनाओं और मेरे परिवार के भविष्य का इस्तेमाल किया, जिससे मैं परमेश्वर को धोखा दूं और यहूदा बन जाऊं। पुलिस वाले बड़ा छल कर रहे थे! अगर मैं शैतान का अनुसरण कर परमेश्वर को धोखा देती, तो भले ही मैं छूट जाती और अपने परिवार के साथ होती, पर मुझे पूरी ज़िंदगी पछतावा होता। तब मैंने सोचा कि तमाम चीज़ें परमेश्वर के हाथ में ही तो हैं, इसलिए मेरे भाई का भविष्य परमेश्वर द्वारा नियत और व्यवस्थित होगा। शैतान का फैसला आख़िरी नहीं होगा। तब मैंने चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना की। मैंने अपने परिवार की देखभाल परमेश्वर को सौंप दी और उसकी व्यवस्थाओं के आगे समर्पण करने को तैयार हो गयी। मैंने जवाब दिया, "मुझे कुछ नहीं कहना!" यह सुन कर अफसर गुस्से में मेज़ को ठोक कर चिल्लाया, "अगर तू इतनी ज़िद करेगी तो फिर हम तमीज़ भूल जाएं तो दोष मत देना! ये मत सोच कि हमारे पास और कोई तरीका नहीं है। तुझे गिरफ़्तार करते वक्त हमें जो चीज़ें मिली थीं, उनके सहारे हम तेरे माँ-बाप को भी गिरफ़्तार कर तीन से पांच साल अंदर कर सकते हैं, और तब देखना तेरा भाई घर में बिल्कुल अकेला कैसे पड़ा रहेगा! इस बात ने मुझे आग बबूला कर दिया। सीसीपी ने मुझे यंत्रणा देने के लिए न सिर्फ अपनी चालों का इस्तेमाल किया ताकि मैं परमेश्वर को धोखा दूं, और भाई-बहनों के साथ गद्दारी करूं, बल्कि उन लोगों ने मेरे परिवार के भविष्य और खुशहाली को ख़त्म करने की धमकी दे कर मुझे विवश करने की कोशिश भी की। चीन में, जब कोई परमेश्वर में विश्वास रखता है, तो सीसीपी उसके पूरे परिवार को उत्पीड़ित करती है। मुझे दानवों के इस झुंड से नफ़रत हो गयी और मैंने पक्का कर लिया कि उनकी चाल को कामयाब नहीं होने दूंगी। तब मैंने ज़िद कर सख्ती से कहा, "मेरा विश्वास है की सब-कुछ परमेश्वर के हाथ में है। तुम कभी भी मुझसे परमेश्वर को धोखा नहीं दिला सकते!" अफसर ने फिर एक बार गुस्से से मेज़ को ठोका, और पीछे घूम कर बाहर चला गया।

मई के आखिर में एक सुबह एक महिला अफसर आयी और मुझे जेल से रिहा कर दिया। मुझे यह थोड़ा अजीब लगा। पुलिस वाले तब मुझे स्थानीय पुलिस थाने ले गये। मैं अभी पशोपेश में ही थी कि मैंने अपने डैड और दादाजी को उम्मीद-भरी नज़रों से देखता पाया, जबकि पुलिस वाले बगल में खड़े हो कर मुझ पर नज़रें गड़ाये हुए थे। मैं समझ गयी कि ये मुझे इतनी आसानी से नहीं जाने देंगे, लेकिन मैं नहीं समझ पायी कि वे कौन-सी चाल आजमा रहे हैं। थाने के प्रमुख ने तब मुझसे कहा, "इस गारंटी पत्र पर दस्तख़त कर दो, हम तुम्हें घर जा कर अपने परिवार के साथ रहने देंगे।" दस्तावेज़ को पढ़कर देखा तो उसमें लिखा था: "मैं अब परमेश्वर में विश्वास न रखने और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के सदस्यों से संपर्क न रखने का वचन देती हूँ। मैं कलीसिया का कोई काम नहीं करूंगी, और अगले तीन साल तक विदेश जाने के लिए कोई भी दस्तावेज़ पेश नहीं करूंगी। मुझे एक साल की बेल की अवधि में पुलिस के पास बुलाते ही हाज़िर होना होगा।" सीसीपी मुझे मजबूर करने की कोशिश कर रही थी कि परमेश्वर को धोखा दूं और कलीसिया से तमाम रिश्ते तोड़ दूं। मैं बेहद नाराज़ थी और उस पर दस्तख़त करने से साफ़ इनकार कर दिया। मेरा पक्का इरादा देख एक अफसर ने मुझे यह कह कर धमकी दी, "अगर तूने इस पर दस्तख़त नहीं किया, तो तुझे कुछ साल की जेल की सज़ा दे दी जाएगी!" मेरे डैड और दादाजी यह देख कर घबरा गये और उन्होंने मुझे जल्दी से दस्तख़त कर देने को कहा। वे बोले कि उन्होंने मुकदमे से पहले ज़मानत दिलवाने की सही पहुँच के लिए बहुत मेहनत की है और पैसा खर्च किया है, बस उस पत्र पर अपना नाम लिख कर मैं घर जा सकूंगी। वे इस बात से अनजान थे कि इस पर दस्तख़त करने का मतलब मेरा शैतान के आगे परमेश्वर को नकारना और धोखा देना है और अपनी गवाही को गँवा देना है। पुलिस और अपने परिवार के बहुत अधिक दबाव के चलते मैंने रोना शुरू कर दिया। मेरे अंदर एक बवंडर चल रहा था। मैंने सोचा, "मैंने दस्तखत नहीं किये, तो कौन जाने कितने लंबे वक्त तक जेल में पड़ी रहूँ। लेकिन अगर दस्तख़त कर दिये तो यह मेरा परमेश्वर को धोखा देना होगा!" मैंने जल्दी से मन-ही-मन प्रार्थना की तब परमेश्वर के ये वचन मेरे मन में कौंधे: "मुझे आशा है कि सभी लोग बड़े लाल अजगर के सामने मेरे लिए सशक्त और शानदार ज़बर्दस्त गवाही दे सकते हैं, कि वे मेरे लिए अंतिम बार स्वयं को समर्पित कर सकते हैं और एक आखिरी बार मेरी अपेक्षाओं को पूरा कर सकते हैं। क्या तुम लोग वाकई ऐसा कर सकते हो?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 34)। परमेश्वर की अपेक्षा के सामने मैं शर्मिंदा थी। परमेश्वर को संतुष्ट करने के बजाय मैं अभी भी खुद के देह-सुख और भविष्य के बारे में सोच रही थी। मैंने यह भी समझ लिया कि मेरी आस्था को नकार कर मेरे परिवार का मुझसे पत्र पर दस्तख़त करने को कहना भी सीसीपी की एक चाल थी। मेरी आस्था सही और उचित थी, और मैं जीवन के सही मार्ग पर थी। सीसीपी की धमकी और अपने परिवार के दबाव के चलते मैं सच्चे मार्ग को छोड़कर, परमेश्वर को धोखा नहीं दे सकती थी। मैं उस पत्र पर कभी भी दस्तख़त नहीं करूंगी। उस वक्त, मैंने दृढ़ता से कहा, "तुम मुझसे कभी भी मेरी आस्था नहीं छुड़वा सकते। यह ख़याल अपने दिल से निकाल दो।" पुलिस वाले आग बबूला थे, लेकिन उनके हाथ बंधे हुए थे। अंत में, उन्होंने कहा कि मुझे एक साल की ज़मानत दी जा रही है, और अगर उन्हें पता चला कि मैं अभी भी अपनी आस्था पर अमल कर रही हूँ, तो वे मुझे गिरफ़्तार करके कठोर सज़ा देंगे।

मैं घर तो चली गयी, लेकिन सीसीपी ने मुझे पूरी तरह से छोड़ा नहीं था। जून 2017 के आख़िरी दिनों में, पुलिस वाले मेरा ब्रेनवाश करने के लिए एक वकील को मेरे घर ले आये। उसने कहा कि चीन में धार्मिक आज़ादी सिर्फ विदेशियों को दिखाने के लिए है, और चीन में, हमें कम्युनिस्ट पार्टी की बात माननी होती है। उसने यह भी कहा, "जब पार्टी कहती है, 'कूदो', तो हम पूछते हैं 'कितना ऊंचा?'; अगर पार्टी कहती है, तुम आस्था नहीं रख सकते तो नहीं रख सकते। वरना, तुम्हें वही मिलेगा जिसके तुम लायक हो।" इससे मुझे बहुत गुस्सा आ गया। सीसीपी हमसे आस्था छुड़वाने के लिए हर तरह की चाल चलती है। चीन में ईसाइयों को कोई आज़ादी नहीं है! मैंने परमेश्वर के वचनों के एक अंश को याद किया। "धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं! ... परमेश्वर के कार्य में ऐसी अभेद्य बाधा क्यों खड़ी की जाए? परमेश्वर के लोगों को धोखा देने के लिए विभिन्न चालें क्यों चली जाएँ? वास्तविक स्वतंत्रता और वैध अधिकार एवं हित कहां हैं? निष्पक्षता कहां है? आराम कहां है? गर्मजोशी कहां है? परमेश्वर के लोगों को छलने के लिए धोखेभरी योजनाओं का उपयोग क्यों किया जाए? परमेश्वर के आगमन को दबाने के लिए बल का उपयोग क्यों किया जाए? क्यों नहीं परमेश्वर को उस धरती पर स्वतंत्रता से घूमने दिया जाए, जिसे उसने बनाया? क्यों परमेश्वर को इस हद तक खदेड़ा जाए कि उसके पास आराम से सिर रखने के लिए जगह भी न रहे? मनुष्यों की गर्मजोशी कहां है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। परमेश्वर के इन वचनों से मुझे सीसीपी के दुष्ट सार को साफ़-साफ़ समझने में मदद मिली। सीसीपी शैतान का एक दानव है जो सत्य से घृणा करता है और परमेश्वर का विरोध करता है। जितनी बर्बरता से यह मेरा उत्पीड़न करती, उतनी ही ज़्यादा मैं उसे पूरी तरह से त्याग कर अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करना चाहती! उसके बाद मेरा ब्रेनवाश करने के लिए पुलिस वाले कई दफा मेरे घर आये, उन्होंने गाँव के कर्ता-धर्ताओं से मुझे बार-बार अपनी आस्था छोड़ देने को कहलवाया। उन्होंने मेरे परिवार से भी मुझे कहलवाया कि मैं प्रायश्चित का बयान लिखूं और परमेश्वर को धोखा दूं। परमेश्वर के वचनों से मार्गदर्शन पा कर मैं सीसीपी द्वारा करवाये गये तमाम हमलों और दिये गये प्रलोभनों से पार निकल पायी और गवाह बन पायी।

हालांकि सीसीपी द्वारा गिरफ़्तारी और उत्पीड़न से मुझे थोड़ी शारीरिक तकलीफ़ हुई, पर मुझमें ऐसा विवेक पैदा हुआ कि मैं सीसीपी के दुष्ट सार और परमेश्वर के विरोध के उसके दानवी चेहरे को देख पायी। मैंने दिल की गहराई से उसका त्याग कर उसे ठुकरा दिया। उत्पीड़न और मुश्किलों से गुज़रने के बाद परमेश्वर के वचनों ने मुझे शैतान की चालों पर विजय पाने का रास्ता दिखाया, और उसके वचनों ने ही मुझे अपनी दैहिक कमज़ोरी पर विजय पाने और गवाह बनने की आस्था और शक्ति दी। मैंने परमेश्वर के वचनों के अधिकार और शक्ति का सच में खुद अनुभव किया है और अब मुझमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करने की आस्था पहले से कहीं अधिक है!

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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