67 जीत का अंतिम चरण है इंसान को बचाने के लिए

1

है आख़िरी चरण जीत का, इंसान को बचाने के लिये,

उसके अंत को ज़ाहिर करने के लिये,

न्याय के ज़रिये उसके पतन का खुलासा करने के लिये।

इस तरह पश्चाताप करने और ऊपर उठने में मदद के लिये,

जीवन और इंसानी ज़िंदगी की सही राह पर चलने के लिये।

है आख़िरी चरण की जीत, बेसुध लोगों के दिलों को जगाने के लिये,

न्याय के ज़रिये उनके विद्रोहीपन को दिखाने के लिये।

अगर नहीं कर पाते पश्चाताप, भ्रष्टता को दर-किनार अब भी,

और नहीं कर पाते हैं इंसानी ज़िंदगी की सही राह का अनुसरण अब भी,

तो बन जाएँगे वो लोग ऐसे, बचाया न जा सकेगा जिन्हें,

शैतान निगल जाएगा जिन्हें।

जीत के मायने हैं इंसान को बचाना, और उसे उसका अंत दिखाना,

अच्छा हो, बुरा हो, बचाया गया हो या अभिशप्त हो,

व्यक्त होता है सबकुछ जीत के काम से।


2

अंत के दिन होते हैं जब जीत के ज़रिये,

वर्गीकरण किया जाता है उनके स्वभाव के अनुसार चीज़ों का।

इंसान को जीतना और उसके पापों का न्याय करना,

काम है ये अंत के दिनों का।

पूरी कायनात में ये वर्गीकृत करता है इंसान को।

पूरी दुनिया के लोगों को जीत के काम से गुज़रना होगा,

न्याय-पीठ के सामने आना होगा।

जीत के मायने हैं इंसान को बचाना, और उसे उसका अंत दिखाना,

अच्छा हो, बुरा हो, बचाया गया हो या अभिशप्त हो,

व्यक्त होता है सबकुछ जीत के काम से।


3

सृजित जीवों का उनके स्वभाव के अनुसार वर्गीकरण होगा।

न्याय-पीठ के सामने उनका न्याय होगा।

न्याय से कोई चीज़, कोई इंसान बच नहीं सकता।

स्वभाव के अनुसार इस वर्गीकरण से कोई चीज़,

कोई इंसान बच नहीं सकता।

सभी छाँटे जाएँगे चूँकि अंत निकट है हर चीज़ का।

तमाम स्वर्ग, धरती तमाम, अपने परिणाम पर पहुँचेंगे।

जीत के मायने हैं इंसान को बचाना, और उसे उसका अंत दिखाना,

अच्छा हो, बुरा हो, बचाया गया हो या अभिशप्त हो,

व्यक्त होता है सबकुछ जीत के काम से।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, विजय के कार्य की आंतरिक सच्चाई (1) से रूपांतरित

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