मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना
प्रस्तावना
- 1राज्य गान (I) दुनिया में राज्य का अवतरण हुआ है
- 2राज्य-गान (II) आगमन हुआ है परमेश्वर का, राजा है परमेश्वर
- 3राज्य-गान (III) सभी जन आनंद के लिये जयकार करते हैं
- 4मनुष्य का पुत्र महिमा के साथ प्रकट हुआ है
- 5सर्वशक्तिमान परमेश्वर का पवित्र आध्यात्मिक देह प्रकट हो चुका है
- 6सर्वशक्तिमान परमेश्वर धार्मिकता के सूर्य के समान प्रकट होता है
- 7सम्राट की तरह शासन करता है सर्वशक्तिमान परमेश्वर
- 8गौरवशाली सिंहासन पर विराजमान है सर्वशक्तिमान परमेश्वर
- 9आओ सिय्योन में लेकर यशगान
- 10पूरब की ओर लाया है परमेश्वर अपनी महिमा
- 11परमेश्वर का खुला प्रशासन अखिल ब्रह्माण्ड में
- 12परमेश्वर की महिमा पूर्व से चमकती है
- 13परमेश्वर का राज्य प्रकट हुआ है धरती पर
- 14परमेश्वर का न्याय आ चुका है पूरी तरह
- 15जब राज्य की सलामी गूँजती है
- 16परमेश्वर का डेरा विश्व में प्रकट हुआ है
- 17प्रकट हुए परमेश्वर जग के पूरब में महिमा लेकर
- 18परमेश्वर है लौटा जीत के साथ
- 19सबकुछ परमेश्वर के हाथ में है
- 20बेपर्दा हो चुके हैं रहस्य सारे
- 21परमेश्वर लाया है इंसान को नए युग में
- 22परमेश्वर न्याय संग उतरता है
- 23तुलना से परे है राज्य के राजा की महिमामय मुखाकृति
- 24पूरी कायनात है नई परमेश्वर की महिमा में
- 25पूरी धरती ख़ुश होकर परमेश्वर की स्तुति करती है
- 26परमेश्वर का धार्मिक न्याय संपूर्ण ब्रह्मांड में पहुंच रहा है
- 27सर्वशक्तिमान परमेश्वर का वचन सम्पन्न करता है सब कुछ
- 28परमेश्वर के कार्य फैले हैं ब्रह्मांड के विशाल विस्तार में
- 29विश्व का पतन हो रहा है, राज्य आकार ले रहा है
- 30स्तुति करो परमेश्वर की वह विजेता बनकर लौटा है
- 31परमेश्वर के प्रकटन की महत्ता
- 32परमेश्वर बहाल कर देगा सृजन की पूर्व स्थिति
- 33पूरी कायनात में गढ़ा है परमेश्वर ने नया कार्य
- 34भ्रष्ट मानवता को आवश्यकता है देहधारी परमेश्वर द्वारा उद्धार की
- 35मसीह का सार तय होता है उसके काम और अभिव्यक्तियों से
- 36क्या तुम्हें पता है स्रोत अंनत जीवन का?
- 37परमेश्वर के वचन हैं, कभी न बदलने वाले सत्य
- 38देह में प्रकट हुआ परमेश्वर का अधिकार और सामर्थ्य
- 39देहधारी परमेश्वर ही बचा सकता है इंसान को पूरी तरह
- 40देह-धारण किया परमेश्वर ने, शैतान को हराने और इंसान को बचाने
- 41केवल परमेश्वर के पास है जीवन का मार्ग
- 42देह में काम करके ही परमेश्वर इंसान को हासिल कर सकता है
- 43दो हज़ार सालों की अभिलाषा
- 44अंतिम दिनों का मसीह लाता है राज्य का युग
- 45देहधारी परमेश्वर मानव जाति को नये युग में ले जाते हैं
- 46अंत के दिनों में हासिल करता है सब परमेश्वर मुख्यत: वचनों से
- 47अंत के दिनों में देहधारी परमेश्वर मुख्यत: वचन का कार्य करता है
- 48ब्रह्माण्ड में परमेश्वर के कार्य की लय
- 49परमेश्वर के प्रबंधन कार्य का उद्देश्य
- 50अंत के दिनों में न्याय का कार्य है युग को समाप्त करना
- 51परमेश्वर को बेहतर जान सकते हैं लोग वचनों के कार्य के ज़रिये
- 52क्या तुम परमेश्वर के कार्य को जानते हो?
- 53काम परमेश्वर का, आगे बढ़ता रहता है
- 54इंसान के लिए परमेश्वर के प्रबंध के मायने
- 55राज्य के युग में परमेश्वर मनुष्य को वचनों के द्वारा पूर्ण करता है
- 56वचनों से हासिल होता है परमेश्वर का कार्य
- 57एक दूसरा युग, दूसरा दिव्य कार्य
- 58परमेश्वर छ: हज़ार साल की प्रबंधन योजना का शासक है
- 59पवित्र आत्मा के नए काम का अनुसरण करो और परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करो
- 60परमेश्वर स्वर्ग में है और धरती पर भी
- 61सच्चे मार्ग की तलाश के सिद्धांत
- 62अंत के दिनों के मसीह के प्रकटन और कार्य को कैसे जानें
- 63सत्य को स्वीकारने वाले ही परमेश्वर की वाणी सुन सकते हैं
- 64यीशु के प्रति फ़रीसियों के विरोध का मूल कारण
- 65मानव के भविष्य पर परमेश्वर विलाप करता है
- 66भ्रष्ट मानवता की त्रासदी
- 67परमेश्वर तुम्हारे हृदय और रूह को खोज रहा
- 68परमेश्वर इंसान को अधिकतम सीमा तक बचाना चाहता है
- 69तुम लोगों को सत्य स्वीकार करने वाला बनना चाहिए
- 70अंत के दिनों के मसीह को त्यागना पवित्र आत्मा की ईश-निंदा है
- 71कोई भी परमेश्वर के आगमन को नहीं जानता है
- 72परमेश्वर चाहता है इंसानियत जीती रहे
- 73इंसान को सौभाग्य के लिये करनी चाहिये परमेश्वर की आराधना
- 74मनुष्य को बचाने के लिए परमेश्वर के नेक इरादे को कोई भी नहीं समझता
- 75मानव जाति के भाग्य की ओर ध्यान दो
- 76धन्य है अंत के दिनों की पीढ़ी
- 77जीवन को परमेश्वर के वचनों से भरो
- 78परमेश्वर पर भरोसे का सच्चा अर्थ
- 79लक्ष्य जिसका अनुसरण करना चाहिये विश्वासियों को
- 80परमेश्वर मूल्यवान मानता है उनको जो उसकी सुनते और उसका आदेश मानते हैं
- 81मनुष्य की पुकार पर परमेश्वर देता है वो जिसकी उसे ज़रूरत है
- 82सच्ची प्रार्थना
- 83सच्ची प्रार्थना का प्रभाव
- 84प्रार्थना के मायने
- 85परमेश्वर को हमारे सर्वस्व पर अधिकार करने दो
- 86सत्य के लिए तुम्हें सब कुछ त्याग देना चाहिए
- 87परमेश्वर के वचनों को जो संजोते हैं वे धन्य हैं
- 88परमेश्वर के साथ सामान्य रिश्ता कैसे स्थापित करें
- 89चाहे बड़ा हो या छोटा, सबकुछ मायने रखता है जब परमेश्वर की राह का पालन कर रहे हो
- 90इंसान का फ़र्ज़ सृजित प्राणी का उद्यम है
- 91शरीर त्यागने का अभ्यास
- 92विश्वास के लिए मुख्य है परमेश्वर के वचनों को जीवन की वास्तविकता के रूप में स्वीकार करना
- 93परमेश्वर के वचनों की महत्ता
- 94परमेश्वर चाहता है सच्चा दिल मनुष्य का
- 95क्या अपने लिये परमेश्वर की आशाओं को महसूस किया है तुम लोगों ने?
- 96पतरस जानता था परमेश्वर को सबसे अच्छी तरह
- 97परमेश्वर इंसान के सच्चे विश्वास की आशा करता है
- 98सत्य जीवन का सबसे ऊंचा सूत्र है
- 99परमेश्वर विश्वास को पूर्ण बनाता है
- 100परमेश्वर की एकमात्र इच्छा
- 101परमेश्वर के लिए तुम्हारा विश्वास हो सबसे ऊँचा
- 102प्रभु यीशु का अनुकरण करो
- 103क्या तुम हो अपने लक्ष्य के प्रति आगाह?
- 104उन्हें किसका अनुसरण करना चाहिये जिन्हें सत्य से प्रेम है
- 105परमेश्वर के कर्मों को जानने से ही आती है सच्ची आस्था
- 106स्वभाव में बदलाव पवित्र आत्मा के काम से अलग नहीं हो सकता
- 107परमेश्वर के आदेश की पूर्ति के लिये कर दो अपना तन-मन समर्पित
- 108परमेश्वर द्वारा प्राप्त लोगों ने वास्तविकता प्राप्त की है
- 109सत्य को जितना अधिक अमल में लाओगे उतनी तेज़ी से प्रगति करोगे
- 110असल कीमत चाहिये सत्य के अमल के लिये
- 111स्वभाव में बदलाव वास्तविक जीवन से अलग नहीं हो सकता
- 112परमेश्वर के लिए गवाही देना मानव का कर्तव्य है
- 113परमेश्वर के कार्य के लिए पूरी तरह समर्पित हो जाओ
- 114इंसान का शोधन बेहद सार्थक है परमेश्वर के द्वारा
- 115अंतिम परिणाम जिसे हासिल करना परमेश्वर के कार्य का लक्ष्य है
- 116परमेश्वर की ताड़ना और न्याय प्रेम हैं ये जान लो
- 117परमेश्वर को जान लेने का परिणाम
- 118वही पात्र हैं सेवा के जो अंतरंग हैं परमेश्वर के
- 119आशीषित हैं वो जो करते हैं परमेश्वर से प्रेम
- 120इंसान को परमेश्वर की राह पर कैसे चलना चाहिए
- 121परमेश्वर को जानकर ही कोई उसका भय मान सकता है और बुराई से दूर रह सकता है
- 122परीक्षण माँग करते हैं आस्था की
- 123यातनाओं के दौरान सिर्फ़ विजयी लोग अडिग रहते हैं
- 124विजेताओं का गीत
- 125सृजित जीव को होना चाहिये परमेश्वर की दया पर
- 126परमेश्वर के लोगों के बढ़ने के साथ बड़ा लाल अजगर होता है धराशायी
- 127परमेश्वर की इच्छा खुली रही है सबके लिए
- 128परमेश्वर अपनी उम्मीद रखता है पूरी तरह इंसान पर
- 129परमेश्वर की विनम्रता बहुत प्यारी है
- 130परमेश्वर सबकी पूर्ण देखभाल करता है
- 131परमेश्वर के देहधारण से ही इंसान उसका विश्वासपात्र बन सकता है
- 132परमेश्वर के प्रबंधन का उद्देश्य मानव जाति को बचाना है
- 133परमेश्वर स्वयं के लिए इंसान की सच्ची आस्था और प्रेम पाने की करता है आशा
- 134बचाएगा जिन्हें परमेश्वर, विशिष्ट हैं वे उसके दिल में
- 135इंसान शायद समझ ले उसे, उम्मीद है परमेश्वर को
- 136कितना अहम है प्यार परमेश्वर का इंसान के लिये
- 137इंसान को बचाने के लिये ख़ामोशी से कार्य करता है देहधारी परमेश्वर
- 138देहधारी परमेश्वर को बेहद चिंता है अपने अनुयायियों की
- 139परमेश्वर का प्रेम और सार है निस्वार्थ
- 140सबसे असल है परमेश्वर का प्रेम
- 141परमेश्वर के हृदय को कौन समझ सकता है?
- 142परमेश्वर मानता है इंसान को अपना सबसे प्रिय
- 143परमेश्वर का स्वभाव है उत्कृष्ट और भव्य
- 144गरिमामय है सार परमेश्वर का
- 145परमेश्वर के स्वभाव का प्रतीक
- 146परमेश्वर के क्रोध का प्रतीकात्मक अर्थ
- 147परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव है अनूठा
- 148रोक नहीं सकता कोई परमेश्वर के काम को
- 149स्वयं परमेश्वर की पहचान और पदवी
- 150कैसे शासन करता है हर चीज़ पर परमेश्वर
- 151कोई थाह लगा नहीं सकता परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्य
- 152परमेश्वर की सत्ता अनुपम है
- 153परमेश्वर का अधिकार प्रतीक है उसकी पहचान का
- 154परमेश्वर के अधिकार के तहत शैतान कुछ नहीं बदल सकता
- 155परमेश्वर के अधिकार को जानने का मार्ग
- 156सृष्टिकर्ता के अधिकार का सच्चा मूर्तरूप
- 157ख़्यालों से और कल्पनाओं से परमेश्वर को कभी न जान पाओगे
- 158परमेश्वर की सृष्टि को उसके अधिकार का पालन करना चाहिये
- 159परमेश्वर की सारी सृष्टि उसकी प्रभुता के अधीन होनी चाहिए
- 160इंसान के प्रति परमेश्वर का रवैया
- 161विश्राम में प्रवेश करने की मानवता के लिए एकमात्र राह
- 162परमेश्वर मानव के सृजन के अर्थ को पुर्स्थापित करेगा
- 163इंसान का सच्चा जीवन
- 164परमेश्वर का राज्य मनुष्यों के बीच स्थापित है
- 165सबसे बड़ी आशीष जो ईश्वर मानव को प्रदान करता है
- 166परमेश्वर को अर्पित करना सबसे मूल्यवान बलिदान
- 167आत्मायुक्त प्राणी थे मूल इंसान
- 168परमेश्वर की विजय के प्रतीक
- 169परमेश्वर मानव जाति के लिए एक ज़्यादा सुंदर कल बनाता है
- 170परमेश्वर के सभी लोग अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं
- 171परमेश्वर राज्य में शासन करता है
- 172विजेता है राज्य का सम्राट
- 173सात गर्जनाएं सिंहासन से निकलती हैं
- 174वह जो सात गर्जनाओं को खोलता है
- 175परमेश्वर की सात तुरहियाँ फिर से बज रही हैं
- 176परमेश्वर का न्याय पूरी तरह से प्रकट होता है
- 177हमें सिंहासन के सामने उठाया गया है
- 178सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम की गवाही दुनिया के सभी राष्ट्रों में दी गई है
- 179नये युग की आज्ञाएं
- 180इंसान और परमेश्वर हैं सहभागी आनंद-मिलन में
- 181हर राष्ट्र सर्वशक्तिमान परमेश्वर की आराधना करता है
- 182हो गया है पतन बेबीलोन महान का
- 183केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर इंसान को बचा सकता है
- 184मानवता के लिये बहुत महत्वपूर्ण देहधारी परमेश्वर
- 185मसीह जो अभिव्यक्त करता है वो आत्मा है
- 186अंत के दिनों का मसीह राज्य का प्रवेश द्वार है
- 187केवल सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही शाश्वत पुनर्जीवित जीवन है
- 188परमेश्वर स्वयं ही सत्य और जीवन है
- 189देहधारण के मायने
- 190देहधारी परमेश्वर में दिव्यता का सार होना चाहिए
- 191परमेश्वर के वचन और कार्य सभी मनुष्यों की ओर दिष्ट हैं
- 192मसीह का सारतत्व है परमेश्वर
- 193है मसीह अंतिम दिनों का अनंत जीवन लेके आया
- 194मसीह की पहचान परमेश्वर स्वयं है
- 195राज्य के युग में, वचन सब पूर्ण करते हैं
- 196परमेश्वर के कार्य की थाह कोई नहीं पा सकता
- 197"वचन देह में प्रकट होता है" के असल मायने
- 198अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य के मायने
- 199अन्यजाति के देशों में परमेश्वर का नाम फैलेगा
- 200कोई भी इंसान परमेश्वर की जगह उसके कार्य को नहीं कर सकता
- 201परमेश्वर के नाम का अर्थ
- 202अंत के दिनों में परमेश्वर अपने वचनों से इंसान का न्याय करता है, उसे पूर्ण करता है
- 203परमेश्वर आरम्भ है और अंत भी
- 204परमेश्वर का वचन है अधिकार और न्याय
- 205परमेश्वर के वचन से सब-कुछ पूरा होता है
- 206वह सत्ता जो हर चीज़ पर अपनी संप्रभुता रखती है
- 207अंत के दिनों के मसीह को त्यागने वाले सदा के लिए सज़ा पाएँगे
- 208ख़ामोशी से आता है हमारे मध्य परमेश्वर
- 209क्या तुम परमेश्वर के वर्तमान कार्य का अनुसरण करते हो
- 210इंसान वो नहीं रहा जैसा परमेश्वर चाहता है
- 211शैतान के हाथों इंसान के दूषण के परिणाम का सत्य
- 212क्या तुमने सर्वशक्तिमान को आहें भरते सुना है?
- 213त्याग दो धार्मिक अवधारणाएं परमेश्वर द्वारा पूर्ण किये जाने के लिए
- 214जो नये काम को स्वीकारते हैं वो धन्य हैं
- 215हमें बचाया गया है, क्योंकि परमेश्वर ने हमें चुना है
- 216मनुष्य के पुत्र का आना सभी लोगों को उजागर करता है
- 217देहधारी परमेश्वर की आज्ञा का पालन करो और पूर्ण हो जाओ
- 218परमेश्वर विजेताओं के एक समूह के बीच उतरा है
- 219वह सत्य, मार्ग और जीवन है
- 220कैसे ढूंढें परमेश्वर के नक़्शे-कदम
- 221कोई ताकत आड़े आ नहीं सकती उस लक्ष्य के जो हासिल करना चाहता है परमेश्वर
- 222क्या मनुष्य अपने भाग्य को खुद नियंत्रित करता है?
- 223परमेश्वर मानव जगत के अन्यायों को ठीक करेगा
- 224अंत तक अनुसरण करने के लिये आत्मा के कार्य का पालन करो
- 225परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध रखना महत्वपूर्ण है
- 226जो परमेश्वर के सामने शांत रहते हैं, केवल वही जीवन पर ध्यान केंद्रित करते हैं
- 227सच्ची प्रार्थना में प्रवेश कैसे किया जाता है
- 228परमेश्वर के वचनों का अभ्यास और परमेश्वर को संतुष्ट करना सबसे पहले आता है
- 229उठो, सहयोग करो परमेश्वर से
- 230समय जो गँवा दिया कभी वापस न आएगा
- 231परमेश्वर के लिए जीने का है सबसे ज्यादा मोल
- 232किसका अनुसरण करें नौजवान
- 233अधिक बोझ उठाओ ताकि परमेश्वर द्वारा अधिक आसानी से पूर्ण किये जा सको
- 234इन्सान के लिए परमेश्वर की सलाह
- 235परमेश्वर की जाँच को तुझे हर चीज़ में स्वीकर करना चाहिए
- 236परमेश्वर उन्हें आशीष देता है जो ईमानदार हैं
- 237परमेश्वर ने बहुत पहले तैयार कर दी हर चीज़ इंसान के लिये
- 238परमेश्वर का ध्यान मनुष्य के हृदय पर है
- 239परमेश्वर के गवाहों के लिए स्वभाव में बदलाव आवश्यक है
- 240सच्चाई से जी कर ही तू दे सकता है गवाही
- 241परमेश्वर के भवन में अपनी निष्ठा अर्पित करो
- 242बदले में क्या दिया है तुमने परमेश्वर को
- 243इंसान परमेश्वर के वचनों को दिल से ग्रहण नहीं करता
- 244एक हृदय-विदारक बात
- 245किसी को भी सक्रिय रूप से परमेश्वर को समझने की परवाह नहीं
- 246कोई नहीं समझता परमेश्वर की इच्छा
- 247परमेश्वर के वचनों का सच्चा अर्थ कभी समझा नहीं गया है
- 248तुम किसके प्रति कर्तव्यनिष्ठ हो?
- 249क्या यही है आस्था तुम सबकी?
- 250जो कुछ भी लोग कहते और करते हैं, वह बच नहीं सकता परमेश्वर की नज़र से
- 251परमेश्वर की इंसान को चेतावनी
- 252पश्चाताप-रहित लोग जो पाप में फँसे हैं उद्धार से परे हैं
- 253परमेश्वर के लिए मनुष्य का हठ और बार-बार वही अपराध करना सबसे घृणित है
- 254हटा दिया जाएगा उन्हें जो नहीं करते परमेश्वर के वचनों का अभ्यास
- 255न्याय से बचने के परिणाम
- 256जिनमें है कार्य पवित्रात्मा का वही किये जा सकते हैं पूर्ण
- 257अपने वचनों और कार्यों को कैसे समझना चाहिये तुम्हें
- 258परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने का ज़रूरी रास्ता
- 259पूर्ण कैसे किए जाएँ
- 260परमेश्वर मनुष्य को पूर्ण बनाने और प्रेम करने के लिए सब कुछ करता है
- 261परमेश्वर के लिए, इन्सान को पूर्ण करने का सर्वोत्तम उपाय शुद्धिकरण है
- 262शुद्धिकरण की पीड़ा के मध्य ही शुद्ध बनता है इंसान का प्रेम
- 263परमेश्वर के परीक्षण और शुद्धिकरण मानव की पूर्णता के लिए हैं
- 264व्यवहारिक परमेश्वर में आस्था से बहुत लाभ हैं
- 265परमेश्वर का न्याय है प्यार
- 266आज की आशीषों को तुम्हें संजोना चाहिए
- 267विश्वास की वजह से ही तुमने पाया इतना कुछ
- 268सफ़लता या विफ़लता मनुष्य की कोशिश पर निर्भर है
- 269हमारे लिए परमेश्वर का प्रोत्साहन
- 270इंसान को जो करना है उस पर उसे अटल रहना चाहिये
- 271परमेश्वर आशावान है कि मनुष्य उसे पूरे दिलो-दिमाग और क्षमता से प्रेम करे
- 272तुम्हारी पीड़ा जितनी भी हो ज़्यादा, परमेश्वर को प्रेम करने का करो प्रयास
- 273शुद्ध प्रेम बिना दोष के
- 274परमेश्वर का सच्चा प्रेम पाने की खोज करनी चाहिए तुम्हें
- 275परमेश्वर द्वारा इन लोगों के चुने जाने का महान अर्थ
- 276परमेश्वर ने बनाया चीन में एक विजयी समूह
- 277परमेश्वर को इंतज़ार है उनकी मण्डली को पाने का जो उसके साक्षी हैं
- 278क्या तुम ऐसा इंसान बनने को तैयार हो जो देता है परमेश्वर की गवाही
- 279परमेश्वर के आशीषों के प्रति अय्यूब का मनोभाव
- 280परमेश्वर के लिए पतरस के प्रेम की अभिव्यक्ति
- 281सबसे सार्थक जीवन
- 282पतरस के अनुभव का अनुकरण करो
- 283परमेश्वर को अपने हृदय में आने दो
- 284क्या तुम वो इंसान हो जो परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाये जाने की खोज करता है?
- 285परमेश्वर के प्रेम का असली जीवन में आनंद लेना चाहिये
- 286मनुष्यों के लिए परमेश्वर का अनुस्मारक
- 287जब मनुष्य शैतान के प्रभाव को ख़त्म कर देता है, तब उसे बचाया जाता है
- 288इंसान के इरादे किस लिए होते हैं
- 289उन लोगों का परिणाम जो परमेश्वर की सेवा तो करते हैं, मगर उसकी अवज्ञा करते हैं
- 290क्या युगों की घृणा को भुला दिया गया है?
- 291परमेश्वर द्वारा मोआब के वंशजों का उत्कर्ष
- 292कौन परमेश्वर की इच्छा की परवाह कर सकता है?
- 293अंधेरे में हैं जो उन्हें ऊपर उठना चाहिये
- 294इंसान के लिये परमेश्वर की इच्छा कभी नहीं बदलेगी
- 295मनुष्य को बचाने को परमेश्वर बड़े कष्ट सहता है
- 296बदली नहीं हैं परमेश्वर की उम्मीदें इंसान के लिये
- 297परमेश्वर का कार्य कितना कठिन है
- 298परमेश्वर उदास कैसे न हो?
- 299मनुष्य को बचाने का परमेश्वर का इरादा बदलेगा नहीं
- 300चूँकि परमेश्वर मनुष्यों को बचाता है, वह उन्हें पूर्ण रूप से बचायेगा
- 301परमेश्वर के सारे कार्य इंसानों के लिए हैं
- 302मानवजाति पर परमेश्वर की दया
- 303परमेश्वर की वास्तविकता और सुंदरता
- 304परमेश्वर का संदेश
- 305केवल सृष्टिकर्ता मानवता पर दया करता है
- 306परमेश्वर का सार सचमुच अस्तित्व में है
- 307मनुष्य को बचाने के लिए परमेश्वर का अथक परिश्रम भरा कार्य
- 308किसी सृजित प्राणी में नहीं होता परमेश्वर का प्रेम
- 309बेहद दयालु और अत्यंत क्रोधी है परमेश्वर
- 310परमेश्वर का स्वभाव पवित्र और निष्कलंक है
- 311सभी लोगों के परिणाम के लिये परमेश्वर की व्यवस्था
- 312इंसान का अंत तय करता है परमेश्वर, उनके सार के अनुसार
- 313मापा नहीं जा सकता परमेश्वर के अधिकार को
- 314सब ओर है परमेश्वर का अधिकार
- 315सर्वशक्तिमान की उत्कृष्टता और महानता
- 316परमेश्वर के कोप का दृश्य
- 317सृष्टिकर्ता का अधिकार अजेय है
- 318सभी चीज़ों को प्रबंधित करने में परमेश्वर के चमत्कारी कार्य
- 319मानवजाति उस पवित्रता को पुनः प्राप्त करती है जिससे वह कभी संपन्न थी
- 320परमेश्वर और मनुष्य के लिए अलग-अलग विश्राम स्थल
- 321जब राज्य पूरी तरह उतरेगा
- 322शुद्ध हो चुके हैं जो वही विश्राम में प्रवेश करेंगे
- 323परमेश्वर जिनसे प्रेम करता है वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करेगा
- 324जब पूरब से बिजली चमकती है
- 325जब परमेश्वर स्वयं इस संसार में आता है
- 326परमेश्वर के वचनों से हर चीज़ नई बनाई जाती है
- 327जब परमेश्वर सिय्योन लौटेगा
- 328नए युग की आज्ञाएं बहुत ही महत्वपूर्ण हैं
- 329परमेश्वर ने किया है अपने पूर्ण स्वभाव को मनुष्य के सामने प्रकट
- 330सभी राष्ट्रों और लोगों पर परमेश्वर का न्याय
- 331जब परमेश्वर की लाठी पड़ती है
- 332सभी देशों के लोगों को जीत लेगा परमेश्वर
- 333तीन राजाज्ञाओं का पालन करके परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप चलो
- 334सभी लोग जाग उठने की प्रक्रिया में हैं
- 335परमेश्वर इस संसार में मनुष्यों का अंत लाता है
- 336पुराने, गंदे युग को परमेश्वर अवश्य नष्ट कर देगा
- 337परमेश्वर के न्याय से कोई नहीं बच सकता
- 338परमेश्वर ने पाई है महिमा अपनी सभी रचनाओं के बीच
- 339अपना काम करने के लिए परमेश्वर को देहधारण करना होगा
- 340उद्धार-कार्य के अधिक उपयुक्त है देहधारी परमेश्वर
- 341केवल देहधारी परमेश्वर ही मानवजाति को बचा सकता है
- 342देहधारी परमेश्वर के कार्य के बारे में सबसे अच्छी बात
- 343परमेश्वर के दोनों देहधारणों की ज़रूरत है मानवजाति को
- 344ज़िंदगी का जीवित झरना है देहधारी परमेश्वर
- 345परमेश्वर का देहधारण विशेष रूप से उसके वचन को व्यक्त करने के लिए है
- 346मसीह की मानवता उसकी दिव्यता से संचालित होती है
- 347परमेश्वर के कार्य का प्रत्येक चरण उसकी बुद्धि का नतीजा है
- 348इंसान के उद्धार के लिये हैं परमेश्वर के दो देहधारण
- 349परमेश्वर के दोनों देहधारण उसका प्रतिनिधित्व कर सकते हैं
- 350परमेश्वर के दो देहधारणों के मायने
- 351देह और आत्मा का कार्य एक ही सार का है
- 352परमेश्वर के देहधारण का अधिकार और मायने
- 353देहधारी परमेश्वर के माध्यम से मनुष्य परमेश्वर को बेहतर समझ सकता है
- 354देहधारी परमेश्वर तुम्हारे लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है
- 355परमेश्वर के देहधारण का अधिकार
- 356परमेश्वर के दो देहधारण एक ही स्रोत से आये हैं
- 357सार में मसीह स्वर्गिक पिता की इच्छा का पालन करता है
- 358देहधारी मानव पुत्र स्वयं परमेश्वर है
- 359परमेश्वर सभी को अपना धार्मिक स्वभाव दिखाता है
- 360देहधारण का आशय अंत के दिनों के देहधारण से पूरा हो गया है
- 361परमेश्वर अंत के दिनों में अपने वचनों से पूरी कायनात को जीतता है
- 362मसीह के प्रति मनुष्य के विरोध और अवज्ञा का मूल
- 363अंत के दिनों का मसीह परमेश्वर की प्रबंधन योजना के रहस्य को प्रकट करता है
- 364इंसान को संभालने का काम है शैतान को हराने का काम
- 365परमेश्वर भिन्न-भिन्न युगों का प्रतिनिधित्व करने के लिए अलग-अलग नाम धरता है
- 366हर युग में नया कार्य करता है परमेश्वर
- 367परमेश्वर नए युग में नया कार्य लेकर आता है
- 368अंत के दिनों में परमेश्वर ने अन्यजातियों के बीच महान और नए कार्य किए हैं
- 369परमेश्वर का कार्य सदा नया होता है कभी पुराना नहीं होता
- 370परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों की अंदरूनी कहानी
- 371कार्य के तीन चरण मनुष्य के परमेश्वर के प्रबंधन के बारे में सब बताते हैं
- 372परमेश्वर के कार्य के तीन चरणों ने मनुष्य को पूरी तरह से बचाया है
- 373परमेश्वर के अंतिम दिनों के काम के परिणाम वचन से मिलते हैं
- 374इन्सान को बचाने का सबसे अहम काम करता है देहधारी परमेश्वर
- 375कार्य के तीनों चरणों को करता है एक ही परमेश्वर
- 376राज्य के युग में परमेश्वर का स्वभाव धीरे-धीरे मनुष्य पर प्रकट किया जाता है
- 377अंत के दिनों में देहधारी परमेश्वर करता है परमेश्वर के प्रबन्धन का अंत
- 378न्याय, मनुष्य को पूर्ण करने के लिए परमेश्वर का मुख्य तरीका है
- 379अंत के दिनों में जीतने के कार्य का सत्य
- 380देहधारी परमेश्वर संपूर्ण ब्रह्मांड का कार्य करता है
- 381अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य की अंदरूनी कहानी
- 382अंत के दिनों का देहधारी परमेश्वर वचनों से मनुष्यों को पूर्ण करता है
- 383अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य का उद्देश्य
- 384अंत के समय का परमेश्वर का धार्मिक न्याय मनुष्य को वर्गीकृत करता है
- 385वचन द्वारा न्याय बेहतर दर्शाये परमेश्वर का अधिकार
- 386परमेश्वर के न्याय के कार्य का उद्देश्य
- 387विजय का कार्य क्या हासिल करेगा
- 388चीन में परमेश्वर के विजय के कार्य का अर्थ
- 389विजय के कार्य का आतंरिक अर्थ
- 390अंत के दिनों के वचनों से परमेश्वर मनुष्य का न्याय और शुद्धिकरण करता है
- 391जीत के काम के मायने
- 392बड़े लाल अजगर के देश में परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य का महत्व
- 393विजय कार्य का सार
- 394मोआब के वंशजों पर परमेश्वर के कार्य का अर्थ
- 395परमेश्वर के विजय-कार्य का प्रधान लक्ष्य
- 396विजय का कार्य गहनतम महत्व का है
- 397परमेश्वर का प्रबंधन हमेशा आगे बढ़ता रहता है
- 398परमेश्वर की बुद्धि, शैतान की साजिशों के अनुसार सामने आती है
- 399जब परमेश्वर मनुष्यों को प्रकाश प्रदान करता है
- 400वही देख पाएँगे परमेश्वर को जिनमें सत्य को खोजने की तड़प है
- 401परमेश्वर के हाथों से बचकर कोई नहीं निकल सकता
- 402परमेश्वर सभी देशों और लोगों का भाग्य नियंत्रित करता है
- 403लोगों का वर्गीकरण विजय के कार्य से किया जाता है
- 404मानवजाति द्वारा परमेश्वर के मार्गदर्शन को खो देने के परिणाम
- 405शैतान मनुष्य को भ्रष्ट करने के लिए कैसे सामाजिक प्रवृत्तियों का उपयोग करता है
- 406किस प्रकार शैतान मनुष्य को भ्रष्ट करने के लिए भौतिक जानकारी का उपयोग करता है
- 407मानवजाति को परमेश्वर द्वारा प्रदत्त जीवन के प्रावधान की आवश्यकता है
- 408तुम्हारे दिल का रहस्य
- 409परमेश्वर जब आता है तब उसे जानने में कौन समर्थ है?
- 410पूरा राज्य उल्लास मनाता है
- 411परमेश्वर बड़े लाल अजगर के देश का एक नमूने के रूप में उपयोग करता है
- 412परमेश्वर उनकी तलाश कर रहा है जो उसके प्रकटन के प्यासे हैं
- 413विश्वासियों को परमेश्वर के पद-चिन्हों का ध्यान से अनुसरण करना चाहिए
- 414परमेश्वर के प्रकटन की तलाश के लिए राष्ट्रीयता और जातीयता की धारणाएं तोड़ डालो
- 415क्या तुमने पवित्र आत्मा को बोलते सुना है?
- 416परमेश्वर की भेड़ें उसकी आवाज़ को सुन सकती हैं
- 417आज का सत्य उन्हें दिया जाता है जो उसके लिए लालसा और उसकी खोज करते हैं
- 418परमेश्वर के पदचिह्नों का अनुसरण करने के लिए धार्मिक अवधारणाओं को त्याग दो
- 419वे सभी जो बाइबल का उपयोग परमेश्वर की निंदा के लिए करते हैं, फरीसी हैं
- 420मनुष्य द्वारा परमेश्वर के नए कार्य की स्वीकृति में बाइबल एक बाधा बन गई है
- 421मनुष्य बाइबल को परमेश्वर से बढ़कर मानता है
- 422बड़ा कौन है परमेश्वर या बाइबल?
- 423बाइबल के प्रति क्या रवैया रखा जाए
- 424क्या त्रित्व का अस्तित्व है?
- 425त्रित्व की धारणा सबसे बड़ी भ्रान्ति है
- 426मनुष्य के शब्दों को परमेश्वर के वचन मान लेना परमेश्वर की निंदा है
- 427जो सत्य नहीं स्वीकारते वे उद्धार के लायक नहीं हैं
- 428तुम्हें बाइबल को सही नज़रिए से देखना चाहिए
- 429क्या परमेश्वर का देहधारण एक सरल बात है?
- 430क्या सर्जित प्राणी परमेश्वर के नाम का निर्धारण कर सकते हैं?
- 431मसीह की वापसी का स्वागत तुम कैसे करोगे?
- 432क्या परमेश्वर उतना सरल है जितना कि तुम कहते हो?
- 433परमेश्वर का देहधारण सभी लोगों को उजागर कर देता है
- 434लोग मसीह को एक साधारण मनुष्य मानते हैं
- 435व्यावहारिक परमेश्वर को कैसे जानें
- 436मानवता में परमेश्वर के कार्य का तरीक़ा और सिद्धांत
- 437क्या अपना कार्य शुरू करने के पहले परमेश्वर को मनुष्य को बताना होगा?
- 438क्या सम्पूर्ण बाइबल परमेश्वर की प्रेरणा से लिखी गई है?
- 439जो संकेतों की वजह से परमेश्वर में विश्वास करते हैं, वे नष्ट होंगे
- 440परमेश्वर आशा करता है कि लोग फरीसी नहीं बनेंगे
- 441परमेश्वर आशावान है कि सभी मनुष्य उसका उद्धार प्राप्त करेंगे
- 442परमेश्वर की एकमात्र ख़्वाहिश धरती पर
- 443जो परमेश्वर को नहीं जानते, वे उसका विरोध करते हैं
- 444क्या तुम यह दावा करने की हिम्मत करोगे कि परमेश्वर का नाम कभी नहीं बदल सकता?
- 445लोगों को दंडित करने में परमेश्वर का आधार
- 446कल्पना पर भरोसा करके परमेश्वर के प्रकटन को सीमांकित मत करो
- 447मसीह के बारे में अवधारणाएँ रखना परमेश्वर का विरोध करना है
- 448अंतिम दिनों के मसीह को नकारने के परिणाम
- 449जो अंतिम दिनों के न्याय को नकारते हैं, परमेश्वर उन्हें हटा देगा
- 450अंतिम दिनों के मसीह को नकारना पवित्र आत्मा की निंदा है
- 451परमेश्वर का कार्य और उसके वचन मनुष्य के लिए पूरा जीवन लाते है
- 452परमेश्वर के देहधारण को अस्वीकार करना परमेश्वर का शत्रु बनना है
- 453परमेश्वर यह उम्मीद करता है कि मनुष्य सचमुच पश्चाताप करेगा
- 454परमेश्वर के वचनों से दूर नहीं जा सकता कोई
- 455पवित्र आत्मा के कार्य को हासिल करने के लिए परमेश्वर के वर्तमान वचनों को मानो
- 456तुमने महान आशीषों का आनंद लिया है
- 457परमेश्वर के कथन मनुष्य के लिए सर्वोत्तम निर्देश हैं
- 458शुद्ध होने के लिए अंतिम दिनों के मसीह के न्याय को स्वीकार करो
- 459परमेश्वर ने यह पूर्व-निर्धारित किया था कि हम इस मार्ग का अनुसरण करें
- 460जीवन के सही मार्ग में प्रवेश कर लिया है हमने
- 461इंसान की राहें तय कर दी हैं परमेश्वर ने
- 462क्या तुमने परमेश्वर में विश्वास करने के सही रास्ते में प्रवेश किया है?
- 463परमेश्वर ने तुम्हें पूर्ण बनाने का निश्चय किया है
- 464राज्य में जीवन अधिक सुन्दर है
- 465परमेश्वर लोगों की अगुवाई जीवन के सही मार्ग की ओर कर रहा है
- 466क्या परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध सामान्य है?
- 467पूर्ण किये जाने के लिये परमेश्वर से सामान्य संबंध बनाओ
- 468पवित्र आत्मा का कार्य सामान्य और व्यावहारिक है
- 469परमेश्वर के समक्ष अपने हृदय को शांत रखने पर तुम्हें ध्यान देना चाहिए
- 470अपने स्वभाव को बदलने के लिए परमेश्वर के वचनों के अनुसार जियो
- 471पवित्र आत्मा का कार्य पाने के लिए प्रार्थना में दिल से बात करो
- 472परमेश्वर के समक्ष शांत रहने का अभ्यास
- 473परमेश्वर के समक्ष अपने हृदय को शांत रखने के फ़ायदे
- 474जब तुम देते हो अपना हृदय परमेश्वर को
- 475परमेश्वर अपने संग सहयोग करने वालों को दुगुना प्रतिफल देता है
- 476अपने हृदय को परमेश्वर के आगे शांत करने के तरीके
- 477परमेश्वर के वचनों के प्रति कैसा दृष्टिकोण अपनायें
- 478परमेश्वर के सामने शांत कैसे रहें
- 479उन लोगों के गुण जिनका परमेश्वर उपयोग करता है
- 480जब तुम खोलते हो अपना हृदय परमेश्वर के लिए
- 481अपने हृदय को परमेश्वर की ओर मोड़ दो ताकि तुम परमेश्वर से प्रेम कर सको
- 482परमेश्वर के वचनों से खुद को लैस करना तुम्हारी सर्वोच्च प्राथमिकता है
- 483परमेश्वर में आस्था की सर्वोच्च प्राथमिकता
- 484परमेश्वर के वचनों को अपनी स्थितियों के सन्दर्भ में पढ़ो
- 485पवित्र आत्मा के कार्य को हासिल करने के लिए परमेश्वर के वचनों में जीओ
- 486परमेश्वर के वचनों के प्रति यह दृष्टिकोण रखना चाहिए
- 487एक सही आध्यात्मिक जीवन हमेशा बनाये रखना चाहिए
- 488परमेश्वर के वचनों को ध्यान से सुनो
- 489परमेश्वर के वचनों को अपने व्यवहार का आधार मानो
- 490शैतान को हराने के लिए सदैव परमेश्वर पर निर्भर रहो
- 491सत्य के लिए अच्छी लड़ाई लड़ो
- 492जो न रहो परमेश्वर पर निर्भर, तो कुछ हासिल न होगा
- 493दूसरों के साथ अच्छे संबंधों के लिए परमेश्वर के वचनों के अनुसार चलो
- 494पवित्र आत्मा के कार्य का पालन करो और तुम पूर्णता के मार्ग पर होगे
- 495अपनी आत्मा की गहराइयों में हर कोई परमेश्वर से लिपटा रहता है
- 496परमेश्वर द्वारा हासिल होने के लिए अन्धकार के प्रभाव को त्याग दो
- 497अंधकार के प्रभावों को खत्म करने के लिए परमेश्वर के वचनों का पालन करें
- 498पवित्र आत्मा के कार्य के सिद्धांत
- 499पवित्र आत्मा ज़्यादा कार्य करता है उनमें, पूर्ण किये जाने की तड़प है जिनमें
- 500अपने प्रवेश में पवित्र आत्मा के कार्य को साथ रखो
- 501जब पवित्र आत्मा मनुष्य पर कार्य करता है
- 502पवित्र आत्मा के कार्य से मनुष्य सक्रिय रूप से आगे बढ़ता है
- 503नवीनतम प्रकाश को स्वीकारना परमेश्वर की आज्ञा मानने की कुंजी है
- 504परमेश्वर में सफल विश्वास का मार्ग
- 505तुम्हारी खोज का उद्देश्य क्या है?
- 506अपने विश्वास में उस मार्ग का अनुसरण करो जिस पर पवित्र आत्मा अगुआई करता है
- 507परमेश्वर मनुष्य की सच्ची आज्ञाकारिता चाहता है
- 508इंसान को परमेश्वर के वचनों के अनुसार चलना चाहिये
- 509विश्वासियों के लिए क्रियाओं के सिद्धांत
- 510परमेश्वर में तुम्हारी आस्था का क्या लक्ष्य होना चाहिये
- 511परमेश्वर के वचन की सच्चाई में कैसे करें प्रवेश
- 512सत्य की खोज का मार्ग
- 513यदि तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो, तो उसके सामने अपने हृदय को अर्पित कर दो
- 514क्या तुम सच में समझ पाते हो ईश्वर की चाह को?
- 515परमेश्वर उन्हें प्रबुद्ध और रोशन करेगा जो सत्य की खोज करते हैं
- 516परमेश्वर के वचन के अपने अभ्यास में प्रयास करो
- 517परमेश्वर में विश्वास परमेश्वर को जानने की खोज है
- 518जो लोग परमेश्वर के लिए खुद को सचमुच खपाते हैं, धन्य हैं
- 519अपने विश्वास में तुम्हें परमेश्वर से प्रेम करने की तलाश करनी चाहिए
- 520परमेश्वर उनकी रक्षा करता है जो उससे प्रेम करते हैं
- 521परमेश्वर उन्हें आशीषें देगा जो निष्ठापूर्वक सत्य की तलाश करते हैं
- 522परमेश्वर केवल सत्य की तलाश करने वालों को ही पूर्ण बना सकता है
- 523सत्य पर अमल के लिये सबसे सार्थक है दुख सहना
- 524क्या परमेश्वर का वचन सचमुच तुम्हारा जीवन बन गया है?
- 525केवल परमेश्वर के कार्य को जानकर ही तुम अंत तक अनुसरण कर सकोगे
- 526तुम्हें सभी चीज़ों में परमेश्वर की गवाही देनी होगी
- 527परीक्षणों की पीड़ा एक आशीष है
- 528अपने कर्तव्य को करने का अर्थ है अपना भरसक प्रयास करना
- 529सत्य का अभ्यास परमेश्वर में विश्वास की कुंजी है
- 530परमेश्वर की इच्छा को कौन समझेगा?
- 531सत्य का अभ्यास करना सबसे महत्वपूर्ण है
- 532तुम जो सयाने हो, जल्दी से जाग उठो
- 533सच्चे विश्वासी की ज़िम्मेदारियाँ
- 534केवल अपना फ़र्ज़ निभाना संतुष्ट कर सकता है परमेश्वर को
- 535परमेश्वर के विश्वासी को जिसकी तलाश करनी चाहिए
- 536केवल परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करने से ही वास्तविकता आती है
- 537इस मौके को खो दोगे तो तुम हमेशा पछताओगे
- 538सच्चे बदलाव के लिए सत्य का अभ्यास करो
- 539परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए अपना दिल समर्पित करो
- 540परमेश्वर की इच्छा के मुताबिक कार्य करने के प्रति अपना सर्वस्व समर्पित करो
- 541परमेश्वर यह आशा करता है कि अधिक लोग उठें और उसके साथ सहयोग करें
- 542सत्य के अभ्यास में कष्ट उठाना परमेश्वर की सराहना हासिल करता है
- 543ऐसा व्यक्ति बनो जो परमेश्वर को संतुष्ट करे और उसके मन को चैन दे
- 544तुम्हारा विश्वास अभी भी भ्रमित है
- 545जितना अधिक तुम परमेश्वर को संतुष्ट करोगे, तुम उतने ही अधिक धन्य होगे
- 546तुम्हें अपना कर्तव्य कैसे करना चाहिए
- 547देहासक्ति का त्याग सत्य का अभ्यास है
- 548परमेश्वर उनका तिरस्कार करेगा जो अपने कर्तव्यों में चूक जाते हैं
- 549तुम्हें अपना कर्तव्य निभाना चाहिए
- 550परमेश्वर में मनुष्य का विश्वास असहनीय रूप से बुरा है
- 551तुम परमेश्वर के साथ कैसा व्यवहार करते हो?
- 552क्या मनुष्य इतने कम समय के लिए अपनी देहासक्ति को छोड़ नहीं सकता?
- 553अपने कर्तव्य में सत्य का अभ्यास करना कुंजी है
- 554क्या तुम सचमुच परमेश्वर के वचनों में जीते हो?
- 555लोगों ने अपने हृदय परमेश्वर को अर्पित ही नहीं किये हैं
- 556मनुष्य के कामों में परमेश्वर के प्रति उसकी धोखाधड़ी व्याप्त है
- 557अपने गंतव्य की खातिर मनुष्य द्वारा परमेश्वर को प्रसन्न करने की कुरूपता
- 558ऐसी तर्कशीलता के साथ तुम परमेश्वर से संपर्क करने में अयोग्य हो
- 559लोग परमेश्वर में विश्वास तो करते हैं पर उसे जानते नहीं
- 560क्या ये दुनिया तुम्हारी आरामगाह है?
- 561तुम्हारा देहासक्ति में बने रहना क्या परमेश्वर की इच्छा है?
- 562क्या मसीह में तुम्हें सच्चा विश्वास है?
- 563लोग परमेश्वर के असली चेहरे को नहीं जानते हैं
- 564क्या मसीह के लिए तुम्हें सच्चा विश्वास और प्रेम है?
- 565लोग परमेश्वर में सचमुच विश्वास नहीं करते हैं
- 566कहाँ है तुम्हारा सच्चा विश्वास?
- 567तुम्हारा विश्वास वास्तव में कैसा है?
- 568तुममें मसीह के प्रति अविश्वास के कई तत्व हैं
- 569आदमी का सच्चा यक़ीन मसीह में नहीं है
- 570लोग परमेश्वर से परमेश्वर जैसा बर्ताव नहीं करते
- 571क्या यह परमेश्वर में सच्चा विश्वास है?
- 572परमेश्वर के प्रति तुम्हारी वफ़ादारी की अभिव्यक्तियाँ कहाँ हैं?
- 573परमेश्वर की मनोरमता को देखने के लिए देहासक्ति को त्याग दो
- 574परमेश्वर के वचनों के मूल की थाह पा नहीं सकता कोई
- 575तुम्हें तो अपने क़द का ही पता नहीं है
- 576क्या तुम सच में परमेश्वर की प्रजा में शामिल होने के योग्य हो?
- 577बहुत कम लोग हैं परमेश्वर के अनुरूप
- 578परमेश्वर के प्रति कौन सचमुच निष्ठावान है?
- 579भ्रष्ट व्यक्ति परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता
- 580परमेश्वर में विश्वास करने के पीछे मनुष्य के घृणास्पद इरादे
- 581इतनी मलिन धरती पर रहते हैं लोग
- 582मनुष्य के दिल में परमेश्वर के लिए कोई जगह ही नहीं है
- 583मनुष्य ने पूरी तरह से अपना दिल परमेश्वर को अर्पित नहीं किया है
- 584तुम्हारे पास वो सच्चा दिल नहीं है जो परमेश्वर से प्रेम करता हो
- 585तुम्हारी बेरूख़ी तुम्हें नष्ट कर देगी
- 586परमेश्वर के साथ तुम्हारी अनुकूलता का सबूत कहाँ है?
- 587जब परमेश्वर का दिन आएगा
- 588एक ऐसा विश्वास जिसकी परमेश्वर सराहना नहीं करता
- 589देहासक्ति तुम्हारे गंतव्य को बर्बाद कर सकती है
- 590विश्वासी और अविश्वासी तो संगत हो ही नहीं सकते
- 591तुम इतने मग़रूर क्यों हो?
- 592अपने क़द को संजोये रखने का क्या मोल है?
- 593लोग परमेश्वर के वचनों का अभ्यास ही नहीं करते
- 594परमेश्वर सदा प्रतीक्षा करता है कि मनुष्य उसके पास लौट आए
- 595किस तरह का व्यक्ति बचाए जाने से परे है?
- 596तुम्हारा अंत क्या होगा?
- 597तुम्हारी प्रकृति बहुत भ्रष्ट है
- 598परमेश्वर के अस्तित्व की ओर लोग कोई ध्यान नहीं देते
- 599बुद्धिमान बनो और परमेश्वर की सभी व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करो
- 600उम्मीद करता है परमेश्वर कि इंसान उसके वचनों के प्रति निष्ठावान बन सके
- 601लोग परमेश्वर को अपने हृदय अर्पित नहीं करते
- 602परमेश्वर के प्रकाश के आगमन से कौन बच सकता है?
- 603परमेश्वर की नज़रों में तुम्हारी बातें और तुम्हारे कर्म मैले हैं
- 604देहासक्ति के त्याग का अर्थ
- 605परमेश्वर किसी भी सर्जित प्राणी को उसे धोखा देने नहीं देता
- 606मनुष्य का स्वभाव अत्यंत दुष्ट हो गया है
- 607परमेश्वर के क्रोध के दिन से कोई भी नहीं बच सकता
- 608वह तर्क-संगतता जो लोगों में होनी चाहिए
- 609परमेश्वर द्वारा मनुष्य की दी गयी तीन चेतावनियाँ
- 610तुम्हारा देह बहुत मलिन है
- 611कौन परमेश्वर के अनुकूल है
- 612परमेश्वर चुपचाप मनुष्य के शब्दों और कर्मों को देखता है
- 613अपने विश्वास को गंभीरता से न लेने का परिणाम
- 614जो परमेश्वर के बारे में संदेह करते और अनुमान लगाते हैं, वे सबसे अधिक धोखेबाज़ हैं
- 615मनुष्य के शब्द और कर्म परमेश्वर के दहन से नहीं बच सकते
- 616परमेश्वर में विश्वास तो करना लेकिन सत्य को नहीं मानना एक अविश्वासी होना है
- 617परमेश्वर के चढ़ावे चुराने के परिणाम
- 618जो सत्य की तलाश नहीं करते वो अफ़सोस करेंगे
- 619परमेश्वर पर विश्वास करने में लोगों की असफलता के कारण
- 620जो परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानते, वे उसका विरोध करते हैं
- 621मनुष्य को प्रतिफल देते समय परमेश्वर के रवैये को क्या तुम समझ सकते हो?
- 622तुम्हारे दिलों में केवल नाइंसाफ़ी है
- 623परमेश्वर को सबसे अधिक क्या दुखी करता है
- 624परमेश्वर द्वारा पूर्ण किये जाने का मौक़ा गंवाकर तुम हमेशा पछताओगे
- 625मृत्यु-शैय्या पर सत्य के प्रति जागना बड़ी देर से जागना है
- 626जो सत्य की तलाश नहीं करते, वे अंत तक अनुसरण नहीं कर पाते
- 627चार सूक्तियाँ
- 628लोग परमेश्वर के उद्धार को नहीं जानते हैं
- 629लोग परमेश्वर से निष्ठापूर्वक प्रेम क्यों नहीं करते?
- 630लोग परमेश्वर में बहुत ही कम विश्वास रखते हैं
- 631परमेश्वर उन्हें कैसे माफ़ कर सकता है जो उसके वचनों को त्याग देते हैं?
- 632परमेश्वर में मनुष्यजाति के विश्वास का सबसे दुखद पहलू
- 633मनुष्य परमेश्वर की उदारता का आनंद उठाना नहीं जानता
- 634क्या तुमने अभी तक परमेश्वर से कुछ ख़ास हासिल नहीं किया है?
- 635तुम बहुत ही विद्रोही हो
- 636किसने कभी परमेश्वर के हृदय को समझा है?
- 637भ्रष्ट मानवजाति परमेश्वर से कैसा व्यवहार करती है
- 638वे दुष्ट कौन हैं जो परमेश्वर की अवहेलना करते हैं?
- 639परमेश्वर की एकमात्र इच्छा है कि इंसान उसकी बात सुने और माने
- 640भ्रष्ट मानवजाति मसीह को देखने के अयोग्य है
- 641व्यावहारिक परमेश्वर को जानना बहुत ही महत्वपूर्ण है
- 642क्या तुम परमेश्वर के कार्य को वाकई जानते हो?
- 643यह विश्वास रखो कि परमेश्वर निश्चित रूप से मनुष्य को पूर्ण बनाएगा
- 644वे अपेक्षाएँ जो किसी व्यक्ति को पूर्ण बनाए जाने के लिए पूरी करनी होंगी
- 645वे अभिव्यक्तियाँ जो पूर्ण बनाए जाने वाले लोगों के पास होती हैं
- 646तुम्हें सकारात्मक प्रगति की कोशिश करनी चाहिए
- 647परमेश्वर उन्हीं को पूर्ण बनाता है जो प्रेम करते हैं उसे
- 648क्या वर्षों के विश्वास से तुमने कुछ भी हासिल किया है?
- 649परमेश्वर से प्रेम करने के लिए, तुम्हें उसकी मनोरमता का अनुभव करना होगा
- 650लोगों के इस समूह को पूरा करने का संकल्प लिया है परमेश्वर ने
- 651तुम परमेश्वर की इच्छा को निराश नहीं कर सकते
- 652जो परमेश्वर के कार्य का निष्ठापूर्वक पालन करते हैं, वे उसके द्वारा ग्रहण किये जा सकते हैं
- 653परमेश्वर मनुष्य को नर्क के जीवन से बचाना चाहता है
- 654तुम्हारा स्वभाव परमेश्वर के कार्य के प्रति आज्ञापालन करने से ही बदल सकता है
- 655गहनतर अनुभव हासिल करने के लिए परमेश्वर का वचन स्वीकार करो
- 656जिसके पास है सच्चा विश्वास, उसे मिलता है परमेश्वर का आशीष
- 657तुम्हे पता होना चाहिए कि परमेश्वर के कार्य का अनुभव कैसे करें
- 658क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो जिसने ताड़ना और न्याय को हासिल किया है?
- 659परमेश्वर मनुष्य को कई तरह से पूर्ण बनाता है
- 660परमेश्वर लोगों को बदलने के लिए वास्तविक परिवेशों का उपयोग करता है
- 661केवल वे जिन्हें परमेश्वर ने पूर्ण किया हो, उससे सचमुच प्रेम कर सकते हैं
- 662सत्य का अधिक अभ्यास करो, परमेश्वर से अधिक आशीषें पाओ
- 663मनुष्य अभी भी परमेश्वर के कार्य को नहीं जानता
- 664देहधारी परमेश्वर को किसने जाना है
- 665परमेश्वर के शुद्धिकरण के कार्य का उद्देश्य
- 666परीक्षणों के दरम्यान मनुष्य को किसे थामे रहना चाहिए
- 667शुद्धिकरण के साथ विश्वास आता है
- 668देहधारी परमेश्वर को कोई नहीं जानता
- 669परीक्षणों के प्रति अय्यूब का रवैया
- 670परमेश्वर द्वारा मनुष्य के परीक्षणों और शुद्धिकरण का अर्थ
- 671परीक्षाओं के प्रति पतरस का रवैया
- 672जब परीक्षण आ पड़ें तो तुम्हें परमेश्वर की ओर खड़े होना चाहिए
- 673परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए हर बात में परमेश्वर की गवाही दो
- 674इम्तहान में परमेश्वर को इंसान का सच्चा दिल चाहिए
- 675यदि तुम परीक्षणों में गवाही देते हो, तो परमेश्वर तुम्हारे सामने प्रकट होगा
- 676केवल परमेश्वर का मौजूदा वचन मनुष्य को पूर्ण बना सकता है
- 677परमेश्वर के वचनों के द्वारा परखा जाना आशीष पाना है
- 678केवल पीड़ादायक परीक्षणों के माध्यम से तुम परमेश्वर की सुंदरता को जान सकते हो
- 679परमेश्वर में आस्था की राह, है राह उससे प्यार करने की
- 680शुद्धिकरण के दरम्यान परमेश्वर से प्रेम कैसे करें
- 681केवल कठिनाइयों और शुद्धिकरण के माध्यम से तुम परमेश्वर द्वारा पूर्ण किये जा सकते हो
- 682जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं, उनके पास पूर्ण किये जाने की सम्भावना है
- 683केवल परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद उठाकर तुम उसे नहीं जान सकते
- 684परमेश्वर में विश्वास करना लेकिन उसे प्रेम नहीं करना एक व्यर्थ जीवन है
- 685क्या तुम अपने दिल का प्रेम दोगे परमेश्वर को?
- 686सच्चा विश्वास क्या है
- 687तुम्हें पतरस का अनुकरण करना चाहिए
- 688परमेश्वर की इच्छा है कि हर किसी को पूर्ण किया जा सके
- 689पतरस ने सच्चे विश्वास और प्रेम को बनाए रखा
- 690परमेश्वर तुम्हें तभी पूर्ण करेगा जब तुम पतरस के मार्ग पर चलो
- 691पतरस ने हमेशा परमेश्वर को जानने का प्रयास किया
- 692पूर्ण किए जाने के लिए तुम्हारे पास संकल्प और साहस होने चाहिए
- 693परमेश्वर द्वारा पूर्ण किये जाने का मार्ग
- 694सभी चीज़ों में परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए जाने की कोशिश करनी चाहिए
- 695वे सभी जो निष्ठापूर्वक परमेश्वर की तलाश करते हैं, उसकी आशीषों को हासिल कर सकते हैं
- 696शैतान के प्रभाव को दूर करने के लिए परमेश्वर के न्याय का अनुभव करो
- 697तुम संरक्षित हो, क्योंकि तुमने ताड़ना और न्याय का सामना किया है
- 698परमेश्वर का न्याय उसके धर्मी स्वभाव और पवित्रता को प्रकट करता है
- 699परमेश्वर के लोगों के प्रबंधन के कार्य के बारे में सच्चाई
- 700परमेश्वर के वचन का न्याय इंसान को बचाने के लिये है
- 701मनुष्य के पुत्र की छवि को उसके न्याय और उसकी ताड़ना में देखना
- 702ताड़ना और न्याय के बारे में पतरस की समझ
- 703केवल स्वभाव के परिवर्तन ही सच्चे परिवर्तन हैं
- 704जो परमेश्वर के कार्य के साथ क़दम मिलाकर नहीं चल सकते, उन्हें हटा दिया जाएगा
- 705क्या तुम सचमुच परमेश्वर के आयोजनों के प्रति समर्पण कर सकते हो?
- 706हर किसी के पास पूर्ण किये जाने का अवसर है
- 707परमेश्वर यह उम्मीद करता है कि लोग उज्जवल मार्ग को हासिल करेंगे
- 708परमेश्वर उनका त्याग नहीं करेगा जो निष्ठापूर्वक उसके लिए लालसा रखते हैं
- 709परमेश्वर तुम पर जो कार्य करता है, वह अत्यंत मूल्यवान है
- 710केवल कठिनाइयों और परीक्षणों के माध्यम से तुम परमेश्वर से सचमुच प्रेम कर सकते हो
- 711जब परमेश्वर मानवजाति के विश्वास की परीक्षा लेता है
- 712परमेश्वर की ताड़ना और न्याय है मनुष्य की मुक्ति का प्रकाश
- 713मार्ग के अंतिम चरण पर अच्छी तरह चलो
- 714एक विषमता के रूप में सेवा करना जीवन भर का आशीष है
- 715हमें बचाने के लिए परमेश्वर को धन्यवाद दो
- 716परमेश्वर मानवजाति की कठिनाइयों का अनुभव करता है
- 717परमेश्वर का न्याय और ताड़ना इंसान को बचाने के लिये है
- 718परमेश्वर की सुंदरता को जानने के लिए परमेश्वर के कार्य को जानो
- 719परमेश्वर का कार्य अथाह है
- 720परमेश्वर का न्याय हमें जीवन देता है
- 721सर्वशक्तिमान परमेश्वर चीन में लोगों के एक समूह को तैयार कर लेता है
- 722यदि तुम परमेश्वर के न्याय से भाग निकलते हो, तो क्या होगा?
- 723मार्ग के अंतिम चरण पर अच्छी तरह कैसे चलें?
- 724जब परमेश्वर चरवाहे पर प्रहार करता है
- 725जो परमेश्वर के उद्धार को हासिल करते हैं, केवल वे ही जीवित हैं
- 726लोगों ने परमेश्वर के अनुग्रह को दफना दिया है
- 727मनुष्य के उल्लंघनों के परिणाम
- 728तुम्हें परमेश्वर द्वारा अनुमोदित होने का प्रयास करना चाहिए
- 729परमेश्वर की जोश में की गयी सेवा के परिणाम
- 730क्या तुमने अपनी धार्मिक अवधारणाओं को त्यागा है?
- 731पौलुस की असफलता
- 732परमेश्वर उनकी सराहना नहीं करता जो पौलुस की तरह सेवा करते हैं
- 733परमेश्वर द्वारा इस्तेमाल के योग्य कैसे हों
- 734उस तरह सेवा करो जैसे इस्राएलियों ने की
- 735परमेश्वर की सेवा करने के लिए तुम्हें उसे अपना हृदय अर्पित करना चाहिए
- 736परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण न करने वाले दंडित किये जाएंगे
- 737परमेश्वर की इच्छा के अनुसार सेवा कैसे करें
- 738क्या इस तरह का स्वभाव परमेश्वर की सेवा के योग्य है?
- 739परमेश्वर मनुष्य के कर्मों के बारे में क्या सोचता है
- 740परमेश्वर की अपेक्षाओं से तुम कितने कम हो?
- 741परमेश्वर केवल उनकी सराहना करता है जो ईमानदारी से मसीह की सेवा करते हैं
- 742पतरस ने परमेश्वर को व्यावहारिक रूप से जानने पर ध्यान दिया
- 743यीशु के बारे में पतरस का ज्ञान
- 744मनुष्य जिस मार्ग पर चलता है, उस पर उसकी सफलता या असफलता निर्भर करती है
- 745परमेश्वर द्वारा प्राप्त किया जाना तुम्हारी अपनी कोशिश पर निर्भर है
- 746परमेश्वर में विश्वास करना पर जीवन को हासिल न करना, दंड का कारण बनता है
- 747मनुष्य के अंत के लिए परमेश्वर की व्यवस्था
- 748परमेश्वर दुष्टों को नहीं बचाता है
- 749सत्य की तलाश करना पूर्ण किये जाने का एक मात्र मौका है
- 750इंसानों के पास परमेश्वर की इच्छा की कोई समझ नहीं है
- 751कैसे जियें आज्ञाकारी जीवन
- 752क्या तुम जानते हो तुम्हारी नियति क्या होगी?
- 753परमेश्वर बुराई करने वालों से प्रतिशोध लेगा
- 754हर दिन जो तुम अभी जीते हो, निर्णायक है
- 755परमेश्वर की महिमा के दिन को तुम्हें संजोना चाहिए
- 756मनुष्य की प्रकृति के विश्वासघाती होने का कारण
- 757जो परमेश्वर के प्रति अवज्ञाकारी हैं, वे उससे विश्वासघात करते हैं
- 758परमेश्वर से विश्वासघात करना मानवीय प्रकृति है
- 759परमेश्वर की सहिष्णुता के कारण अपने आप में लिप्त मत हो जाओ
- 760सत्य को स्वीकार करना उद्धार का एकमात्र मार्ग है
- 761क्या तुम परमेश्वर के कार्य के अर्थ और उद्देश्य को जानते हो?
- 762मनुष्य को एक सार्थक जीवन जीने की कोशिश करनी चाहिए
- 763क्या तुम परमेश्वर की खुशी का फल बनना चाहते हो?
- 764परमेश्वर की महिमा की अभिव्यक्ति बनने की कोशिश करो
- 765इन विश्वासघातों से तुम कैसे छुटकारा पा सकते हो?
- 766वह संकल्प जो मोआब की संतानों के पास होना चाहिए
- 767क्या तुम सचमुच परमेश्वर की गवाही देने का आत्मविश्वास रखते हो?
- 768परमेश्वर की दया ने मनुष्य को आज तक जीवित रखा है
- 769जब तक मनुष्य का स्वभाव नहीं बदल जाता वह परमेश्वर की सेवा नहीं कर सकता
- 770जिन लोगों में मानवता नहीं है वे परमेश्वर की सेवा के लायक नहीं हैं
- 771परमेश्वर इंसान का अंत तय करता है उसके अंदर मौजूद सत्य के आधार पर
- 772अपनी आस्था में परमेश्वर की गवाही कैसे दें
- 773तुम्हें परमेश्वर की इच्छा को समझना चाहिए
- 774गवाही जो मनुष्य को देनी चाहिए
- 775बड़े लाल अजगर के देश में परमेश्वर के कार्य का अर्थ
- 776अंत के दिनों में परमेश्वर के देहधारण के पीछे का उद्देश्य
- 777शैतान पर अय्यूब की जीत का प्रमाण
- 778परमेश्वर की इंसान से अंतिम अपेक्षा
- 779क्या तुम बड़े लाल अजगर के सामने परमेश्वर की गवाही दे सकते हो?
- 780वह अंतिम कार्य जो परमेश्वर मनुष्य पर करता है
- 781परमेश्वर सिर्फ़ गवाही देने के लिए मनुष्य को प्रोत्साहित करता है
- 782एक विश्वासी के रूप में तुम्हारा कर्तव्य परमेश्वर के लिए गवाही देना है
- 783परमेश्वर ने चीन में पूरा कर लिया है विजेताओं का एक समूह
- 784विजेता हैं वे जो परमेश्वर की शानदार गवाही दें
- 785शैतान का सार क्रूरता और दुष्टता वाला है
- 786अय्यूब की गवाही ने शैतान को हरा दिया
- 787मनुष्य परमेश्वर के अच्छे इरादों को नहीं समझ पाता है
- 788अय्यूब परमेश्वर का सम्मान कैसे कर पाया?
- 789केवल वही लोग परमेश्वर की गवाही दे सकते हैं जो उसे जानते हैं
- 790परमेश्वर के प्रति अय्यूब का सच्चा विश्वास और उसकी आज्ञाकारिता
- 791वे कारण जिनकी वजह से अय्यूब को परमेश्वर की प्रशंसा मिली
- 792अय्यूब ने अपना पूरा जीवन परमेश्वर को जानने की कोशिश में बिताया
- 793अय्यूब के जीवन का मूल्य
- 794क्या तुमने अपनी आस्था में सचमुच अपना जीवन समर्पित किया है?
- 795सत्य से शैतान को हराओ ताकि तुम परमेश्वर द्वारा प्राप्त किये जा सको
- 796मनुष्य के पास परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय होना चाहिए
- 797जो लोग परमेश्वर का सम्मान करते हैं वे सभी चीज़ों में उसका गुणगान करते हैं
- 798जो परमेश्वर का सम्मान करते हैं केवल वही परीक्षाओं में गवाह बन सकते हैं
- 799वही मनुष्य खुश है जो परमेश्वर का सम्मान करता है
- 800परमेश्वर को परमेश्वर के स्तर अनुसार संतुष्ट करना चाहिए
- 801अय्यूब और पतरस की तरह गवाह बनो
- 802परमेश्वर का भय मानने से ही बुराई दूर रह सकती है
- 803सत्य का अभ्यास करने वाले ही परीक्षणों में गवाही दे सकते हैं
- 804लोगों को परमेश्वर का भय मानने वाले हृदय के साथ उस पर विश्वास करना चाहिए
- 805परमेश्वर के सच्चे विश्वासी परीक्षाओं में मजबूती से खड़े रह सकते हैं
- 806मनुष्य केवल परमेश्वर को जानकर उससे प्रेम कर सकता है
- 807परमेश्वर उन लोगों को प्राप्त करता है जिनके पास उसका सच्चा ज्ञान है
- 808बाद की पीढ़ियों के लिए अय्यूब की गवाही की चेतावनी
- 809केवल उन लोगों को बचाया जाता है जो शैतान को हरा देते हैं
- 810परमेश्वर केवल उन लोगों को हासिल करेगा जो शैतान को पूरी तरह से हरा देते हैं
- 811इंसान से परमेश्वर की अंतिम अपेक्षा है कि इंसान उसे जाने
- 812परमेश्वर का हर कार्य मनुष्य को बचाने के लिए होता है
- 813परमेश्वर को जानने की कोशिश कैसे करें
- 814परमेश्वर को जानने के लिए तुम्हें उसके कार्य के तीनों चरणों को जानना होगा
- 815परमेश्वर जो भी कहता और करता है वह सत्य है
- 816परमेश्वर के कार्य के तीन चरण उसके उद्धार को पूरी तरह व्यक्त करते हैं
- 817परमेश्वर को जानना सृजित प्राणियों के लिए सबसे बड़े सम्मान की बात है
- 818परमेश्वर के वचनों को अनुभव करके ही मनुष्य परमेश्वर को जानता है
- 819तुम्हें जानना चाहिए परमेश्वर को उसके कार्य द्वारा
- 820सभी चीज़ों पर परमेश्वर के प्रभुत्व द्वारा परमेश्वर को जानो
- 821जो लोग परमेश्वर की सत्ता को जानते हैं वे उसके प्रभुत्व के प्रति समर्पित होंगे
- 822परमेश्वर की सत्ता को जानकर छुटकारा पाया जा सकता है
- 823परमेश्वर सदा से काम करता रहा है इंसान को राह दिखाने के लिए
- 824परमेश्वर मनुष्य को किस तरह देखता है
- 825परमेश्वर निरंतर मनुष्य के जीवन का मार्गदर्शन करता है
- 826परमेश्वर के कार्य का प्रत्येक चरण मनुष्य के जीवन के लिए है
- 827जिन्हें बचाएगा परमेश्वर उनकी वो सबसे अधिक परवाह करता है
- 828मनुष्य के लिए परमेश्वर का प्रेम
- 829परमेश्वर बहुत बड़े अपमान को सहन करता है
- 830परमेश्वर मनुष्यों को बचाने के लिए उनके बीच आता है
- 831देहधारी परमेश्वर काफ़ी समय तक मनुष्यों के बीच रहा है
- 832वह बड़ी पीड़ा क्या है जो परमेश्वर सहन करता है?
- 833आख़िरी मौका जो देता है परमेश्वर इंसान को
- 834परमेश्वर हमेशा मनुष्य के पश्चाताप की प्रतीक्षा करता है
- 835रास्ते अलग-अलग करने का समय
- 836परमेश्वर का सार निःस्वार्थ है
- 837परमेश्वर को मनुष्य से क्या प्राप्त होता है?
- 838परमेश्वर हमेशा इंसान की चुपचाप पोषित करता है और उसे सहारा देता है
- 839परमेश्वर का सार पवित्र है
- 840मानवजाति के प्रति परमेश्वर की करुणा निरंतर बहती है
- 841परमेश्वर के पवित्र सार को समझना बहुत ही महत्वपूर्ण है
- 842परमेश्वर का सार अपरिवर्तनीय है
- 843यीशु के पुनरुत्थान के बाद उसके प्रकटन का अर्थ
- 844परमेश्वर है मनुष्य का अनंत सहारा
- 845परमेश्वर कोई अपमान बर्दाश्त नहीं करता है
- 846थोमा की कहानी बाद की पीढ़ियों के लिए एक चेतावनी है
- 847परमेश्वर से विश्वासघात करने के खतरनाक परिणाम
- 848परमेश्वर के स्वभाव को न जानने के नतीजे
- 849जब आती है आपदा
- 850जो परमेश्वर के स्वभाव को भड़काता है उसे अवश्य दंडित किया जाना चाहिए
- 851परमेश्वर के स्वभाव को भड़काने के परिणाम
- 852परमेश्वर द्वारा सदोम के विनाश में मनुष्यों के लिए चेतावनी
- 853परमेश्वर अपने धार्मिक स्वभाव से इंसान का अस्तित्व बनाए रखता है
- 854परमेश्वर का क्रोध उसके धार्मिक स्वभाव का प्रदर्शन है
- 855अंत के दिनों के लोगों ने परमेश्वर के क्रोध को कभी नहीं देखा
- 856कैसे परमेश्वर के स्वभाव का अपमान न करें
- 857परमेश्वर ने नीनवे के राजा के पश्चाताप की प्रशंसा की
- 858परमेश्वर के कार्यों के उद्देश्य और सिद्धांत स्पष्ट हैं
- 859परमेश्वर का धर्मी स्वभाव सच्चा और सुस्पष्ट है
- 860परमेश्वर का स्वभाव दयालु, प्रेमपूर्ण, धर्मी और प्रतापी है
- 861परमेश्वर धर्मी है सभी के लिये
- 862कार्यों के लिए परमेश्वर के सिद्धांत नहीं बदलते
- 863परमेश्वर के स्वभाव को समझने का प्रभाव
- 864परमेश्वर का अधिकार सच्चा और वास्तविक है
- 865परमेश्वर का स्वभाव अपमान सहता नहीं
- 866इंसान का विद्रोह जगाता है परमेश्वर के क्रोध को
- 867परमेश्वर के क्रोध के कारण
- 868मानव का अस्तित्व परमेश्वर पर निर्भर है
- 869कोई भी मनुष्य या वस्तु परमेश्वर के अधिकार और सामर्थ्य से बढ़कर नहीं हो सकता
- 870परमेश्वर के क्रोध का प्रतीक
- 871परमेश्वर ने स्वर्ग, धरती और सभी चीज़ें इंसान के लिये बनाई हैं
- 872परमेश्वर ने सभी चीज़ों को बनाया ताकि मनुष्य जीवित रह सके
- 873मनुष्य को परमेश्वर की रचनाओं को संजोकर रखना चाहिए
- 874सभी चीज़ें हैं प्रकटीकरण सृष्टिकर्ता के अधिकार का
- 875मरे हुए को जीवित करने का परमेश्वर का अधिकार
- 876सृष्टिकर्ता के अधिकार के तहत हर चीज़ अत्युत्तम है
- 877परमेश्वर के अधिकार की जगह नहीं ले सकता कोई
- 878इन्सान का जीवन परमेश्वर की प्रभुता के बिना नहीं हो सकता
- 879यद्यपि मनुष्य को शैतान ने धोखा देकर भ्रष्ट कर दिया है
- 880सभी चीज़ें परमेश्वर के अधिकार-क्षेत्र के अधीन होंगी
- 881परमेश्वर के वचन के कारण ही सभी चीज़ों का अस्तित्व है
- 882सृष्टिकर्ता के अधिकार और सामर्थ्य असीमित हैं
- 883सृष्टिकर्ता के अधिकार और पहचान का अस्तित्व साथ-साथ है
- 884शैतान कभी भी परमेश्वर के अधिकार से आगे नहीं निकल सकता
- 885परमेश्वर का अधिकार स्वर्गिक कानून है जिसे शैतान कभी नहीं तोड़ सकता
- 886परमेश्वर बचाता है उन्हें जो उसकी आराधना करते और बुराई से दूर रहते हैं
- 887परमेश्वर शैतान को उन्हें नुकसान पहुंचाने नहीं देता जिन्हें वो बचाना चाहता है
- 888हर चीज़ परमेश्वर के अधिकार से अस्तित्व में रहती और नष्ट होती है
- 889ये वही इंसान है बनाया था परमेश्वर ने जिसे
- 890सृष्टिकर्त्ता की सच्ची भावनाएँ मानवता के लिये
- 891सभी प्राणियों का जीवन आता है परमेश्वर से
- 892परमेश्वर का अधिकार जो मानते हैं, उनका भाव ऐसा होना चाहिए
- 893बहुत पहले ही तय कर दिया इंसान की नियति को परमेश्वर ने
- 894इंसान अपनी किस्मत पर काबू नहीं कर सकता
- 895मनुष्य की पीड़ा कैसे उत्पन्न होती है?
- 896परमेश्वर मनुष्य के भाग्य पर प्रभुत्व रखता है और उसे व्यवस्थित करता है
- 897मनुष्य परमेश्वर के संरक्षण में विकसित होता है
- 898इन्सान का जीवन पूरी तरह है परमेश्वर की प्रभुता में
- 899परमेश्वर द्वारा निर्धारित नियमों और व्यवस्थाओं में रहती है हर चीज़
- 900दुख से भर जाते हैं दिन परमेश्वर के बिन
- 901ये वही इंसान है बनाया था परमेश्वर ने जिसे
- 902सिर्फ़ वही जो परमेश्वर को जानते हैं परमेश्वर को प्राप्त कर सकते हैं
- 903एकमात्र परमेश्वर का प्रभुत्व है इंसान की नियति पर
- 904जब परमेश्वर मनुष्य के हृदय के सिंहासन पर चढ़ेगा
- 905परमेश्वर के सिय्योन लौटने के बाद
- 906अंत के दिनों में मनुष्य से परमेश्वर का वादा
- 907जिनको परमेश्वर पा लेगा, वो अनंत आशीष का आनंद लेंगे
- 908परमेश्वर हर तरह के मनुष्य के लिए उपयुक्त व्यवस्थाएं करता है
- 909परमेश्वर है सभी चीज़ों का शासक
- 910जब मनुष्य शाश्वत मंजिल में प्रवेश करेगा
- 911जब मानवजाति विश्राम में प्रवेश कर लेती है
- 912विश्राम में जीवन
- 913मानवजाति के लिए परमेश्वर की तैयारी कल्पना से परे है
- 914राज्य की सुंदरता
- 915हर इंसान को परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए
- 916एक ईमानदार व्यक्ति बनने का अभ्यास कैसे करें
- 917परमेश्वर के वचनों के बिना जीवन का अनुसरण नहीं किया जा सकता
- 918जो लोग परमेश्वर के समक्ष अक्सर शांत रहते हैं वे धर्मपरायण होते हैं
- 919क्या आपका हृदय परमेश्वर की ओर मुड़ गया है?
- 920अपना हृदय परमेश्वर की ओर मोड़ कर ही तुम परमेश्वर की सुंदरता कर सकते हो महसूस
- 921बिना सच्ची प्रार्थना के, सच्ची सेवा नहीं होती
- 922परमेश्वर की सच्ची आराधना करने वाला बनने का प्रयास करो
- 923पवित्र आत्मा के कार्य पर ध्यान दो
- 924परमेश्वर की जाँच को तुझे हर चीज़ में स्वीकर करना चाहिए
- 925प्रगति करने के लिए हर चीज़ में सत्य की खोज करें
- 926परमेश्वर के आदेश को किस ढंग से लें
- 927गरिमा है उसमें जो करता है आदर परमेश्वर का
- 928हर चीज़ में सत्य की खोज करें
- 929स्वभाव में बदलाव है मुख्यत: प्रकृति में बदलाव
- 930स्वयं को समझने के लिए अपनी वास्तविक मनोदशा को समझें
- 931इंसानी प्रकृति को कैसे समझें
- 932स्वयं को परमेश्वर के वचनों के अनुसार समझें
- 933स्वयं को जान लेने के बाद ही कोई अपने आपसे घृणा कर सकता है
- 934इंसान के लिये परमेश्वर के प्रबंधनों का प्रयोजन
- 935परमेश्वर जो भी करता है, वह सब इंसान को बचाने के लिए होता है
- 936परमेश्वर के वचनों के न्याय को कैसे स्वीकार करें
- 937सत्य को कैसे स्वीकारें
- 938परमेश्वर के परीक्षण इंसान को शुद्ध करने के लिए होते हैं
- 939सत्य का अभ्यास करोगे तो बदल जाएगा स्वभाव तुम्हारा
- 940बचाये जा सकते हो, अगर सत्य को न त्यागो तुम
- 941परमेश्वर को पसंद हैं लोग जिनमें संकल्प है
- 942सुरक्षा पाने की ख़ातिर भय मानो परमेश्वर का
- 943पतरस का अनुसरण परमेश्वर की इच्छा के सर्वाधिक अनुरूप था
- 944जिन लोगों का स्वभाव बदल गया है उनकी अभिव्यक्तियाँ
- 945एक सच्चे व्यक्ति की सदृशता
- 946परमेश्वर को जानने के लिए उसके वचनों को जानना ही चाहिए
- 947पतरस के पथ पर कैसे चलें
- 948दो सिद्धांत जिन्हें अगुवाओं और कर्मियों कोअवश्य ग्रहण करना चाहिए
- 949परमेश्वर को जानकर ही आप उसकी सच्ची आराधना कर सकते हैं
- 950यह शैतान की विशिष्ट छवि है
- 951परमेश्वर चाहे ज़्यादा लोग उससे उद्धार पाएँ
- 952व्यवहारिक परिणाम हासिल करने के लिए परमेश्वर की गवाही कैसे दें
- 953सत्य के साथ शक्ति होती है
- 954सत्य का अनुसरण करते हैं जो, पसंद करता है उन्हें परमेश्वर
- 955अच्छा व्यवहार स्वभाव-संबंधी बदलाव के समान नहीं होता
- 956स्वभाव-संबंधी बदलाव हासिल कर चुके लोग इंसान के समान जी सकते हैं
- 957बहुत कष्ट उठाता है परमेश्वर इंसान को बचाने के लिये
- 958परमेश्वर का सार सर्वशक्तिमान और व्यवहारिक है
- 959परमेश्वर ही सबसे ज़्यादा प्यार करता है इंसान को
- 960परमेश्वर ने अपना सारा प्रेम दिया है मानवता को
- 961इंसान के लिए परमेश्वर के प्रेम की कोई सीमा नहीं होती
- 962घावों से मनुष्य को प्रेम करता है परमेश्वर
- 963मनुष्य के लिए परमेश्वर जो करता वो हर काम नेकनीयत है
- 964जीवन-जल की निर्मल नदिया
- 965तुम सत्य के लिए जी ही नहीं रहे हो
- 966मनुष्य की अन्तर्जात पहचान और उसका मोल
- 967लोगों की आपसी भावनाओं से परमेश्वर घृणा करता है
- 968तुमने परमेश्वर के प्रति क्या समर्पित किया है?
- 969लोग नहीं जानते कि वे कितने अधम हैं
- 970धार्मिक अवधारणाओं को थामे रखना तुम्हें केवल बर्बाद ही करेगा
- 971अय्यूब के धार्मिक कार्यों ने शैतान को हरा दिया
- 972परमेश्वर मनुष्य की दुष्टता और भ्रष्टता से दुखी है