मद पाँच : वे लोगों को गुमराह करने, फुसलाने, धमकाने और नियंत्रित करने का काम करते हैं

परिशिष्ट : दाबाओ और शाओबाओ की कहानी

इससे पहले कि हम औपचारिक रूप से आज की संगति शुरू करें, चलो मैं तुम लोगों को एक कहानी सुनाता हूँ। क्या तुम्हें कहानियाँ सुनने में मजा आता है? (हाँ)। अच्छा, तो क्या कहानियाँ सुनने में कोई सिद्धांत है? तुम्हें जो कहानियाँ सुनाई जाती हैं, उनमें तुम्हें सत्य के एक पहलू और परमेश्वर के इरादों के एक पहलू को समझने में, मानव प्रकृति सार को पहचानने में या कहानी में उस सत्य वास्तविकता को खोजने में सक्षम होना चाहिए जिनका अभ्यास लोगों को करना चाहिए और जिनमें उन्हें प्रवेश करना चाहिए। कहानियाँ सुनाने का यही मतलब है; यह बेकार की बकवास नहीं है और गपशप तो बिल्कुल नहीं है। कुछ लोग कहानियाँ सुनने के दौरान सिर्फ घटनाओं की समझ हासिल करते हैं—वे किस तरह के लोग हैं? (वे ऐसे लोग हैं जिनकी काबिलियत खराब है।) खराब काबिलियत होने का मतलब है कि वे विचारहीन हैं; मुख्य तौर पर, उनमें आध्यात्मिक समझ नहीं है। चाहे वे कोई भी कहानी सुन लें, उन्हें उसकी सिर्फ घटनाएँ याद रह पाती हैं या फिर वे कहानी से बस कुछ विनियम ही सीख पाते हैं। लेकिन जब उन अलग-अलग सत्य की बात आती है जिन्हें लोगों को कहानी में से समझना चाहिए, तो वे उन्हें पकड़ने या समझने-बूझने से चूक जाते हैं। क्या यह व्यवहार सबसे कम आध्यात्मिक समझ की निशानी नहीं है? (हाँ।) क्या तुम लोगों में से किसी ने कोई कहानी सुनने के बाद इस तरह का व्यवहार किया है? उसे सुनने के बाद वे उसमें कुछ खास समझ नहीं पाए, उन्हें वह कहानी बेमतलब लगी और उन्हें उसे सुनाना नहीं सुनाने के बराबर ही था। क्या ऐसे लोगों में समझने की क्षमता होती है? जब तुम कोई कहानी सुनते हो, तो क्या उसमें होने वाली घटनाओं से कुछ फायदा हासिल कर सकते हो? चाहे तुम उससे सत्य को समझ पाओ या ना समझ पाओ, तुम्हें कहानियाँ सुनने को लेकर जिस सिद्धांत का मैंने अभी-अभी जिक्र किया, उसे जरूर समझना चाहिए। तो चलो अब हम कहानी शुरू करें।

शाओबाओ नाम का एक छोटा लड़का था। हाल ही में, एक आदमी उसके घर रहने आया, वह आदमी अक्सर शाओबाओ के माता-पिता के साथ सुसमाचार फैलाने के लिए बाहर जाता था। एक दिन शाओबाओ के माता-पिता को किसी काम से बाहर जाना पड़ा, और वह आदमी और शाओबाओ ही घर पर रह गए। आगे जो कुछ हुआ वह एक दिलचस्प कहानी है। शाओबाओ उस आदमी को ज्यादा जानता नहीं था, इसलिए जब शाओबाओ खेल रहा था, तो उस आदमी ने उसके पास जाकर उससे दोस्ती करने की सोची। उसने शाओबाओ से कहा कि वह उसे जानता है और उसे शाओबाओ का नाम भी मालूम है। यह सुनकर शाओबाओ खुश हो गया और उसने सोचा कि यह आदमी बुरा नहीं हो सकता। फिर उस आदमी ने शाओबाओ से पूछा, “शाओबाओ, क्या तुम्हारे माता-पिता ने अपनी बातचीत के दौरान कभी मेरा जिक्र किया है?” शाओबाओ ने एक पल सोचा और फिर कहा, “मुझे नहीं पता।” वह आदमी बोला, “तुम एक ईमानदार बच्चे हो। अच्छे बच्चों को जो बात पता होती है, वे बता देते हैं।” उसने शाओबाओ से फिर से पूछा, “क्या तुम्हारे माता-पिता ने कभी मेरा जिक्र किया?” अब भी शाओबाओ ने कहा कि उसे नहीं पता। फिर वह आदमी बोला, “शाओबाओ, अच्छे बच्चे बनो, अगर तुम मुझे सच बता दोगे, तो मैं तुम्हें मिठाई दूँगा।” शाओबाओ ने एक पल सोचा और फिर से यही कहा कि उसे नहीं पता। अब वह आदमी सोचने लगा, “मैं इससे सच कैसे बुलवाऊँ?” थोड़ी देर सोचने के बाद उसने शाओबाओ से कहा, “शाओबाओ, तुम्हारे माता-पिता परमेश्वर में विश्वास करते हैं, और मैं भी करता हूँ। मैं तुम्हारे माता-पिता का सबसे अच्छा दोस्त हूँ। हम तीनों ही परमेश्वर में विश्वास करते हैं और तुम भी परमेश्वर में विश्वास करते हो। क्या तुम्हें पता है कि परमेश्वर को किस तरह के बच्चे पसंद हैं?” शाओबाओ ने इस पर गौर किया और फिर कहा, “मुझे नहीं पता।” उस आदमी ने कहा, “परमेश्वर को ईमानदार बच्चे पसंद हैं, ऐसे बच्चे जो झूठ नहीं बोलते। जब उन्हें कुछ पता होता है, तो वे कहते हैं कि उन्हें मालूम है, और जब उन्हें नहीं पता होता है, तो वे कहते हैं कि उन्हें नहीं मालूम। ऐसे बच्चे को ही ईमानदार बच्चा कह सकते हैं और परमेश्वर को ऐसे बच्चे ही पसंद हैं।” शाओबाओ ने इस बार में सोचा और फिर कहा, “ठीक है।” फिर उसने यह कहना बंद कर दिया कि उसे नहीं पता। उस आदमी ने आगे कहा, “अगर तुम मुझे सच बता दोगे, तो तुम एक ईमानदार बच्चा बन जाओगे, एक ऐसा बच्चा जिससे परमेश्वर प्रेम करता है।” शाओबाओ ने इस पर सोचा और फिर कहा, “फिर ठीक है।” उस आदमी ने कहा, “‘फिर ठीक है’ का क्या मतलब है?” शाओबाओ ने कहा, “इसका मतलब है कि मेरे माता-पिता ने आपके बारे में पहले कोई बात कही है।” इसके बाद वह आदमी लगातार यह पूछता रहा कि उन्होंने क्या कहा है और बार-बार शाओबाओ से ईमानदार बच्चा बनने और झूठ नहीं बोलने की बात दोहराता रहा। शाओबाओ ने कहा, “मेरे माता-पिता ने कहा कि आप अच्छे व्यक्ति नहीं हैं। उन्होंने कहा कि आप ज्यादा ईमानदार नहीं हैं और आपसे बात करते समय उन्हें सावधान रहना चाहिए।” उस आदमी ने दोबारा पूछा, “तुम्हारे माता-पिता ने इसके अलावा और क्या कहा?” शाओबाओ ने जवाब दिया, “मुझे याद नहीं है।” “अच्छे बच्चे बनो!” उस आदमी ने कहा। जवाब में शाओबाओ ने कहा, “मेरे माता-पिता ने कहा कि उन्हें आपको सारी बातें नहीं बतानी चाहिए।” फिर वह आदमी उससे सवाल करता रहा और शाओबाओ ने उसे बहुत कुछ बता दिया। वह आदमी और भी परेशान हो गया और उसने शाओबाओ से कहा, “शाओबाओ, तुम बहुत अच्छे बच्चे हो, एक ऐसा बच्चा जिससे परमेश्वर प्रेम करता है क्योंकि तुम एक ईमानदार व्यक्ति हो और तुम्हें जो भी मालूम है वह सबकुछ मुझे बता देते हो।” अब तक शाओबाओ उस आदमी से काफी हिलमिल गया था और उतना संभलकर बात नहीं कर रहा था जितना कि शुरू में कर रहा था और उसके हर सवाल का जवाब “मुझे नहीं पता” से नहीं दे रहा था। वह उस आदमी को सबकुछ बता देना चाहता था, उसे वह सारी जानकारी देना चाहता था जो इस आदमी के पास नहीं थी—उस आदमी के बस शाओबाओ से पूछने की देर थी। उस आदमी ने शाओबाओ को यह भी बताया, “मुझे लोग दाबाओ बुलाते हैं, तो देखो, तुम्हारा नाम शाओबाओ है और मेरा नाम दाबाओ है। तो क्या हमें पक्के दोस्त नहीं बन जाना चाहिए?” शाओबाओ ने कहा, “हाँ।” और इस तरह बातचीत करते हुए उन्होंने बहुत सारी चीजों के बारे में बात की और जितना ज्यादा उन्होंने आपस में बात की, वे उतना ही ज्यादा खुश होते गए। शाओबाओ को खाने के लिए मिठाई भी मिली और उसने इस आदमी से संभलकर बात करना बंद कर दिया। फिर उस आदमी ने शाओबाओ से यह माँग की : “भविष्य में अगर कभी तुम्हारे माता-पिता ने मेरे बारे में फिर से कुछ कहा, तो क्या तुम मुझे बताओगे?” शाओबाओ बोला, “हाँ बिल्कुल, क्योंकि अब हम दोनों अच्छे दोस्त हैं।” शाओबाओ अब इस आदमी से पूरी तरह सहज हो गया था और उस आदमी को उससे वह सारी जानकारी मिल गई जो वह चाहता था। उस दिन से वे दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए। जब भी शाओबाओ के माता-पिता इस आदमी के बारे में कुछ कहते, तो शाओबाओ फौरन जाकर उसे वह बात बता देता। उस आदमी ने शाओबाओ से यह वादा भी किया, “मैं हम दोनों के बीच की बात हरगिज तुम्हारे माता-पिता को नहीं बताऊँगा—यह हमारा राज़ है। भविष्य में अगर कभी तुम्हें खाने के लिए किसी स्वादिष्ट चीज या खेलने के लिए किसी मजेदार चीज की जरूरत पड़े, तो मैं बेशक तुम्हें वे चीजें खरीदकर दूँगा। और अगर कुछ ऐसा हो जो तुम नहीं चाहते कि तुम्हारे माता-पिता को पता चले, तो मैं उस बात को तुम्हारे लिए राज़ बनाकर रखूँगा।” इसलिए, शाओबाओ और भी सहज हो गया और इस आदमी पर पूरे दिल से यकीन करने लगा। उसने उस आदमी के साथ पूरी ईमानदारी से संपर्क बनाए रखा और वे दोनों “सच में अच्छे दोस्त” बन गए।

यही है पूरी कहानी। इसमें ज्यादा किरदार नहीं हैं; मुख्य किरदार दाबाओ और शाओबाओ हैं। इसकी खास विषयवस्तु इस पर केंद्रित है कि दाबाओ किस तरह से बच्चे को गुमराह करने, मनाने और फुसलाने की कोशिश करता है और इस बच्चे से अपनी जरूरत की सारी खास जानकारी उगलवा लेता है। यह इसी तरह की कहानी और बातचीत है। हम इस सरल कथानक और बातचीत से क्या समझ सकते हैं? यहाँ मुख्य रूप से किसकी विशेषताओं पर चर्चा की गई है? बच्चे की या वयस्क व्यक्ति की? (वयस्क व्यक्ति की।) तो, यहाँ उदाहरण की मदद से क्या समझाया जा रहा है? इस कहानी की मुख्य विषयवस्तु क्या है? इसकी मुख्य विषयवस्तु इस पर केंद्रित है कि यह वयस्क व्यक्ति किस तरह से अलग-अलग साधनों का उपयोग करके अपना लक्ष्य हासिल करता है। क्या तुम्हें समझ आया कि उसने किन साधनों का उपयोग किया? (फुसलाना और गुमराह करना।) उसने बच्चे को फुसलाने के लिए प्रलोभनों का और उसे गुमराह करने के लिए सही शब्दों का उपयोग किया, और उसने उसे लुभाया भी। उसने बच्चे को लुभाने के लिए किस चीज का उपयोग किया? फायदों का—उसने फायदों का उपयोग करके बच्चे को लुभाया। फुसलाना, लुभाना और गुमराह करना—इसमें लुभाना और गुमराह करना दोनों शामिल है और लुभाने के लिए सही शब्दों का उपयोग किया गया है जो थोड़ा सा डराने-धमकाने वाली प्रकृति का भी है। हो सकता है कि उसके शब्द सुनने में सही लगे हों, लेकिन उसने इन शब्दों का उपयोग किस मकसद के लिए किया? (अपना मतलब पूरा करने के लिए।) उसने उनका उपयोग अपने गलत उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया। उसने जिन साधनों का उपयोग किया वे मूलरूप से स्पष्ट हैं। क्या सामान्य मानवता में ऐसा व्यवहार होता है? (नहीं।) तो फिर यह व्यवहार शैतान के भ्रष्ट स्वभाव के किस पहलू का हिस्सा है? (दुष्टता का।) हम इसे धोखेबाजी की बजाय दुष्टता क्यों कह रहे हैं? दुष्टता की जड़ें धोखेबाजी से ज्यादा गहरी होती हैं; यह ज्यादा कपटी, ज्यादा गुप्त, ज्यादा गुमराह करने वाला और समझने में ज्यादा मुश्किल होता है और दुष्टता में लुभाना, मनाना, फुसलाना, दिल जीतना, रिश्वत देना और ललचाना निहित होता है। ये क्रियाकलाप और व्यवहार धोखेबाजी से भी बहुत दूर तक जाते हैं; इसमें जरा भी शक नहीं कि वे दुष्ट हैं। उस आदमी ने यह नहीं कहा, “अगर तुम मुझे नहीं बताओगे, तो मैं तुम्हारी पिटाई करूँगा, तुम्हें लात मारूँगा या मार डालूँगा!” उसने ऐसे तरीकों का उपयोग नहीं किया और बाहर से वह द्वेषपूर्ण नहीं लगा। लेकिन, यह द्वेष से भी ज्यादा भयंकर है—यह दुष्टता है। मैं इसे दुष्टता क्यों कहता हूँ? आम तौर पर, ज्यादातर लोग धोखेबाजी की पहचान कर सकते हैं, लेकिन उसका तरीका ज्यादा धूर्त था। ऊपर-ऊपर से वह विनम्र भाषा का उपयोग करता है जो मानव स्नेह के अनुरूप है, लेकिन वास्तव में, उसके दिल की गहराइयों में बहुत-सी चीजें छिपी हुई हैं। उसके क्रियाकलाप और तरीके उस धोखेबाजी से ज्यादा गुप्त, ज्यादा कपटी हैं जिनका लोग आम तौर पर सामना करते हैं। उसके कौशल ज्यादा परिष्कृत, ज्यादा दोगले और ज्यादा गुमराह करने वाले हैं। यह दुष्टता है।

क्या रोजमर्रा के जीवन में तुम दूसरे लोगों के दुष्ट स्वभाव और उनके दुष्ट व्यवहार के प्रकाशन को पहचान सकते हो और उनमें भेद कर सकते हो? वैसे तो धोखेबाज व्यक्ति काफी व्यवहार कुशल हो सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद ज्यादातर लोग उनसे थोड़ी देर बातचीत करने के बाद उनके असली इरादे समझ जाते हैं। लेकिन, दुष्ट स्वभाव वाले लोगों की असलियत समझना इतना आसान नहीं है। अगर तुम सार या परिणाम नहीं देख पाते हो, तो तुम्हारे पास उनके असली इरादों को समझने का कोई तरीका नहीं है। दुष्ट व्यक्ति धोखेबाजों से भी ज्यादा कपटी होते हैं। तुम्हारे पास ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे तुम सिर्फ एक-दो वाक्यों से उनकी असलियत समझ सको। जब दुष्ट स्वभाव वाले लोगों की बात आती है, तो हो सकता है कि कुछ समय के दौरान या कम अवधि में तुम उनकी असलियत न समझ सको या इसका पता न लगा सको कि वे उस खास चीज को क्यों कर रहे हैं, और वे इस तरीके से बात या क्रियाकलाप क्यों कर रहे हैं। एक दिन जब उनका असली चेहरा पूरी तरह से प्रकट हो जाएगा और पूरी तरह उजागर हो जाएगा, तो फिर आखिर में सबको इसका पता चल जाएगा कि यह सिर्फ धोखेबाजी नहीं, उससे ज्यादा कुछ है—यह दुष्टता है। इसलिए, दुष्ट स्वभाव को पहचानने में समय लगता है और कभी-कभी परिणाम सामने आने के बाद ही व्यक्ति उसे पहचान पाता है—यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसकी जल्द पहचान की जा सके। मिसाल के तौर पर, बड़ा लाल अजगर कई दशकों से लोगों को गुमराह कर रहा है और अब जाकर कुछ लोगों में सही-गलत पहचानने की योग्यता आ पाई है। बड़ा लाल अजगर अक्सर ऐसी चीजें कहता है जो सुनने में सबसे बढ़िया लगती हैं और मानवीय धारणाओं के सबसे ज्यादा अनुकूल होती हैं। वह लोगों को गुमराह करने के लिए लोगों की सेवा का ध्वज उठाए हुए है और विरोधियों को दूर भगाने के लिए न्याय का ध्वज उठाए हुए है और अनगिनत भले लोगों की हत्या कर रहा है। लेकिन कुछ ही लोग इसे पहचान पाते हैं क्योंकि वह जो भी कहता है और जो भी करता है, वह लोगों को सही लगता है। सभी लोगों को लगता है कि वह जो भी करता है वह सही और उपयुक्त है, कानूनी और यथोचित है और मानवतावाद के अनुरूप है। फलस्वरूप, उसने कई दशकों से लोगों को गुमराह किया हुआ है। आखिर में जब उसे उजागर किया जाएगा और उसका विनाश हो जाएगा, तो लोग देखेंगे कि उसका असली चेहरा शैतान का था और उसका प्रकृति सार दुष्ट था। बड़े लाल अजगर ने इतने वर्षों से लोगों को गुमराह किया हुआ है और उसका जहर सबके भीतर है—वे उसके वंशज बन गए हैं। क्या तुम लोगों में से कोई भी उस तरह की चीजें कर सकता है जो बड़े लाल अजगर ने की हैं? कुछ लोग बड़े लाल अजगर की तरह बोलते हैं और खुशनुमा शब्दों का उपयोग करते हैं, लेकिन कोई असली कार्य नहीं करते हैं। उनके सारे शब्द मधुर होते हैं, लेकिन वे कोई असली कार्य नहीं करते हैं। साथ ही, वे खास तौर पर कपटी और दुष्ट होते हैं। अगर कोई व्यक्ति ऐसे लोगों का अपमान करता है, तो वे बात को पकड़े रहते हैं। आज नहीं तो कल, उन्हें अपने बदला लेने का उद्देश्य पूरा करने का सही मौका मिल ही जाएगा, लेकिन उन्हें कोई फायदा नहीं मिलेगा। वे सामने आए और अपना चेहरा दिखाए बगैर भी इस मामले को संभाल सकते हैं। क्या यह दुष्टता नहीं है? दुष्ट लोग ऐसे सिद्धांतों, तरीकों, इरादों, कारणों और उद्देश्यों से कार्य करते हैं जो खास तौर पर गुप्त और छिपे हुए होते हैं। दुष्ट व्यक्ति योजनाओं का इस्तेमाल करके दूसरों को नुकसान पहुँचाते हैं, कभी-कभी उनकी ओर से हत्या करने के लिए किसी और का उपयोग करते हैं, कभी-कभी दूसरों को पाप करने के लिए फुसलाकर उन्हें तड़पाते हैं और कभी-कभी दूसरों को तड़पाने के लिए नियमों का उपयोग करते हैं या हर तरह के घिनौने साधनों का सहारा लेते हैं। ये सभी दुष्टता की अभिव्यक्तियाँ हैं और इनमें से कोई भी उचित या ईमानदार तरीके नहीं हैं। क्या तुम लोगों में से कोई भी ऐसे व्यवहार या खुलासे प्रदर्शित करता है? क्या तुम उन्हें पहचान सकते हो? क्या तुम्हें मालूम है कि वे दुष्ट स्वभाव वाले लोग हैं? आम तौर पर, धोखेबाजी बाहर ही दिखाई पड़ जाती है : कोई व्यक्ति घुमा-फिराकर बात करता है या बड़े-बड़े शब्दों वाली भाषा का उपयोग करता है और किसी को भनक तक नहीं लग पाती कि वह क्या सोच रहा है। यह धोखेबाजी है। दुष्टता की मुख्य विशेषता क्या है? यह कि सुनने में उनके शब्द खास तौर पर मीठे लगते हैं और ऊपर-ऊपर से सबकुछ सही प्रतीत होता है। ऐसा नहीं लगता कि कहीं कोई समस्या है और हर कोण से चीजें काफी अच्छी नजर आती हैं। जब वे कुछ करते हैं, तो तुम्हें वे किसी खास साधन का उपयोग करते हुए नजर नहीं आते और बाहर से कमजोरियों या गलतियों का कोई चिन्ह दिखाई नहीं देता है, लेकिन फिर भी वे अपना लक्ष्य हासिल कर लेते हैं। वे चीजों को अत्यंत गुप्त तरीके से करते हैं। मसीह-विरोधी ठीक इसी तरीके से लोगों को गुमराह करते हैं। इस तरह के लोगों और मामलों को पहचानना सबसे मुश्किल है। कुछ लोग अक्सर सही चीजें कहते हैं, सुनने में अच्छे लगने वाले बहानों का उपयोग करते हैं और कुछ लोग लोगों की आँखों में धूल झोंकने के लिए ऐसे धर्म-सिद्धांतों, कहावतों या क्रियाकलापों का उपयोग करते हैं जो मानवीय स्नेह के अनुरूप है। वे अपना अप्रत्यक्ष उद्देश्य हासिल करने के लिए करते कुछ हैं लेकिन दिखावा किसी और चीज का करते हैं। यह दुष्टता है, लेकिन ज्यादातर लोग इन व्यवहारों को धोखेबाजी के व्यवहार मानते हैं। लोगों में दुष्टता की समझ और उसके गहन-विश्लेषण की क्षमता सीमित होती है। दरअसल, धोखेबाजी की तुलना में दुष्टता को पहचानना ज्यादा मुश्किल है क्योंकि यह ज्यादा गुप्त होता है और इसके तरीके और क्रियाकलाप ज्यादा जटिल होते हैं। अगर कोई व्यक्ति धोखेबाज स्वभाव का है, तो आम तौर पर, दूसरे लोगों को उससे दो-तीन दिन बात करने के बाद उसकी धोखेबाजी का पता चल जाता है, या वे उस व्यक्ति के क्रियाकलापों और शब्दों में उसके धोखेबाज स्वभाव को देख लेते हैं। लेकिन, मान लो कि वह व्यक्ति दुष्ट है : यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे कुछ दिनों में पहचाना जा सके, क्योंकि छोटी अवधि में कोई महत्वपूर्ण घटना घटे या खास परिस्थिति उत्पन्न हुए बिना, सिर्फ उसकी बातें सुनकर कुछ भी पहचानना आसान नहीं है। वह हमेशा सही चीजें कहता और करता है और एक के बाद एक सही धर्म-सिद्धांत पेश करता रहता है। कुछ दिन उससे बातचीत करने के बाद, तुम्हें लग सकता है कि वह व्यक्ति बहुत अच्छा है, वह चीजों को छोड़ सकता है और खुद को खपा सकता है, उसमें आध्यात्मिक समझ है, उसके पास एक परमेश्वर-प्रेमी दिल है और उसके कार्य करने के तरीके में अंतरात्मा और विवेक दोनों हैं। लेकिन जब वह कुछ मामले संभाल लेता है, तो तुम्हें दिखाई देता है कि उसकी बातों और क्रियाकलापों में बहुत-सी चीजें और बहुत-से शैतानी इरादे मिले हुए हैं। तब तुम्हें एहसास होता है कि यह व्यक्ति ईमानदार नहीं बल्कि धोखेबाज है—यह एक दुष्ट चीज है। वह बार-बार सही शब्दों और ऐसे मधुर वाक्यांशों का उपयोग करता है जो सत्य के अनुरूप होते हैं और उनमें लोगों से बातचीत करने के लिए मानवीय स्नेह होता है। एक लिहाज से, वह खुद को स्थापित करता है और दूसरे लिहाज से, वह दूसरों को गुमराह करता है और इस तरह लोगों के बीच प्रतिष्ठा और रुतबा हासिल करता है। ऐसे लोग बहुत ही ज्यादा गुमराह करने वाले लोग होते हैं और एक बार ताकत और रुतबा हासिल कर लेने के बाद, वे कई लोगों को गुमराह कर सकते हैं और उनका नुकसान कर सकते हैं। दुष्ट स्वभाव वाले लोग बहुत ही खतरनाक होते हैं। क्या तुम्हारे आस-पास इस तरह के लोग हैं? क्या तुम खुद इस तरह के हो? (हाँ।) तो यह कितना गंभीर है? किसी भी सत्य सिद्धांत के बिना बात या कार्य करना, कार्य करने के लिए पूरी तरह से अपनी दुष्ट प्रकृति पर भरोसा करना, हमेशा दूसरों को गुमराह करने और एक मुखौटे के पीछे छिपकर रहने की इच्छा रखना ताकि दूसरों को तुम्हारी असलियत का पता नहीं चल सके या वे तुम्हें पहचान न सकें और तुम्हारी मानवता और रुतबे को आदर और प्रशंसा की नजर से देखें—यह दुष्टता है। क्या तुम ये दुष्ट व्यवहार सिर्फ कभी-कभार दिखाते हो या ज्यादातर समय तुम इसी तरह का व्यवहार करते हो? क्या तुम स्वाभाविक रूप से ऐसे ही हो और क्या तुम्हारे लिए इससे आजाद होना चुनौतीपूर्ण है? अगर तुम सिर्फ कभी-कभार ऐसे तरीकों का उपयोग करते हो, तो इसे अब भी बदला जा सकता है। लेकिन, अगर यही तुम्हारा स्वाभाविक रूप है, और तुम लगातार व्यवहार कुशलता और धोखेबाजी से कार्य करते हो और लगातार योजनाओं पर भरोसा करते हो, तो फिर तुम दानवों में सबसे मक्कार हो। मैं तुम्हें सत्य बताऊँगा : इस तरह के लोग कभी नहीं बदलेंगे।

इस कहानी में, दाबाओ इन तरीकों का उपयोग शाओबाओ को गुमराह करने और इस लड़के से सत्य बुलवाने के लिए करता है। मुझे बताओ, उसे इस तरह से कार्य करना किसने सिखाया? किसी ने नहीं सिखाया। तो फिर इन तरकीबों की शुरुआत कहाँ से हुई? (उसकी प्रकृति से।) इनकी शुरुआत उसकी प्रकृति से, उसके भ्रष्ट सार से हुई। वह बस इसी किस्म का व्यक्ति है। वह एक बच्चे तक को नहीं बख्शता—कितनी घिनौनी बात है! अगर वह सच जानना ही चाहता है, तो वह सीधे बच्चे के माता-पिता से पूछ सकता है, या वह खुद मेहनत करके इसे जान सकता है और अपना दिल खोलकर उनके सामने रख सकता है; तब हो सकता है कि वे उसे सत्य बता दें। दूसरों की पीठ पीछे ये शर्मनाक और भद्दी चीजें करने के लिए ऐसे तरीकों का उपयोग करने की कोई जरूरत नहीं है। दुष्ट स्वभाव वाले लोग ऐसा ही करते हैं। मुझे बताओ, क्या यह घिनौना नहीं है? (यह घिनौना है।) वह एक बच्चे तक को नहीं बख्शता; उसे इस बच्चे को डराना-धमकाना, बहकाना और धोखा देना आसान लगता है, इसलिए वह उसके खिलाफ साजिश रचता है। अब, अगर उसे कोई ईमानदार और रहमदिल वयस्क दिखाई दे जाए, तो वह उसके साथ कैसा व्यवहार करेगा? क्या वह उसे अकेला छोड़ देगा? बिल्कुल नहीं। अगर उसे अपने जैसा कोई व्यक्ति दिखाई दे जाए, जिसे अपने शब्दों और क्रियाकलापों में चालबाजियों का उपयोग करना अच्छा लगता है, तो वह क्या करेगा? (उसे पता है कि वह व्यक्ति भी उसके जितना ही दुष्ट है और इसलिए वह कुछ भी आसानी से प्रकट किए बिना उससे होशियार रह सकता है।) होशियार रहने के अलावा, वह और क्या कर सकता है? (वह प्रतिस्पर्धा करेगा।) वह खुलेआम और चोरी-छिपे प्रतिस्पर्धा करेगा—बस। दुष्ट स्वभाव वाले लोगों का व्यवहार ऐसा ही होता है। इस तरह के लोगों को दूसरों से खुलेआम और चोरी-छिपे प्रतिस्पर्धा करना अच्छा लगता है, और वे हर अवसर का फायदा उठाते हैं। उनके पास एक मशहूर सूक्ति होती है, और अगर तुम्हें ऐसे लोग मिलते हैं और तुम उन्हें यह कहते हुए सुनते हो, तो तुम यकीन कर सकते हो कि वे दुष्ट स्वभाव वाले व्यक्ति हैं। वे क्या कहते हैं? मिसाल के तौर पर, जब तुम उन्हें किसी दूसरे व्यक्ति को उसका कर्तव्य करने में सहयोग करने का सुझाव देते हो, तो वे कहते हैं, “ओह, मैं उससे प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता!” उनके दिमाग में आने वाला पहला विचार हमेशा “प्रतिस्पर्धा” के बारे में होता है। उनका पहला विचार कार्य को अच्छी तरह से करने के लिए दूसरों का सहयोग करने के बारे में नहीं होता है, बल्कि उनसे प्रतिस्पर्धा करने के बारे में होता है। यही उनकी मशहूर सूक्ति है। चाहे वे किसी भी सामाजिक समूह का हिस्सा हों, चाहे वे अविश्वासी व्यक्तियों, भाई-बहनों या परिवार के सदस्यों के बीच हों, उनका इकलौता नियम क्या है? यह प्रतिस्पर्धा है, और अगर वे खुलेआम दूसरों से बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाए, तो वे इसे चोरी-छिपे करेंगे। इस तरह का स्वभाव दुष्ट होता है। कुछ लोगों को ऊपर से देखकर लग सकता है कि वे दूसरों से यूँ ही इधर-उधर की बातें कर रहे हैं, लेकिन दरअसल वे अपने दिलों में दूसरे व्यक्ति से चोरी-छिपे प्रतिस्पर्धा कर रहे होते हैं और घुमा-फिराकर उस पर हमला करने और उसे नीचा दिखाने के लिए अलग-अलग साधनों और तकनीकों का उपयोग कर रहे होते हैं। जो लोग इस चीज को नहीं पहचान पाते हैं, वे उनकी चालबाजियों को नहीं समझते हैं, और जितनी देर में उन्हें समझ आता है, तब तक उनकी प्रतिस्पर्धा पहले ही अपने परिणाम पर पहुँच चुकी होती है। यह दुष्टता है। जब दुष्ट लोग दूसरों से बात करते हैं, तो यह सब खुलेआम और चोरी-छिपे प्रतिस्पर्धा करने, दूसरों को हराने, उन्हें आत्मसमर्पण करने और आखिर में सभी को अपने आगे झुकाने के लिए अलग-अलग कुचक्रों, साजिशों या कुछ तरीकों को अपनाने के बारे में होता है। मानवता के अस्तित्व से लेकर अब तक, मानवता का संपूर्ण इतिहास “प्रतिस्पर्धा” से भरा हुआ है। चाहे देशों के बीच बड़े पैमाने पर हो, परिवारों के बीच छोटे पैमाने पर हो, या लोगों के बीच व्यक्तिगत स्तर पर हो, ऐसा कोई समूह नहीं है जो टकराव से भरा ना हो; अगर यह प्रतिस्पर्धा खुलेआम नहीं हो रही हो, तो फिर चोरी-छिपे होती है, अगर यह मौखिक आमना-सामना नहीं है, तो फिर यह शारीरिक तौर पर होता है। चीनी इतिहास में अलग-अलग जातीय समूहों के बीच जिस-जिस काल में सबसे ज्यादा बार लड़ाइयाँ हुईं, वह वसंत और शरद काल और युद्धरत राज्य काल था। सैन्य रणनीति पर ज्यादातर मशहूर किताबें इन दो काल में लिखी गई थीं, जैसे कि सन त्ज़ु द्वारा लिखी युद्ध कला में जो रणनीतियाँ उल्लिखित हैं—ये सभी उसी समय के दौरान लिखी गई थीं। एक और किताब भी है जिसका नाम है छत्तीस रणनीतियाँ (द थर्टी-सिक्स स्ट्रेटेजेम), जिसमें युद्ध में उपयोग की जाने वाली अलग-अलग चालबाजियों का उल्लेख है। इनमें से कुछ सैन्य रणनीतियों और चालबाजियों का उपयोग आज भी किया जाता है। मुझे बताओ, इसकी कुछ रणनीतियाँ क्या हैं? (“चारा और छड़ी” रणनीति।) (“ध्यान भटकाने वाली” रणनीति।) (“दोहरा गुप्तचर” रणनीति, “खाली शहर” रणनीति और “मीठा जाल” रणनीति।) ये सभी मशहूर रणनीतियाँ, चाहे वे “मीठा जाल”, “खाली शहर” से शुरू होती हों या “ध्यान भटकाने वाली” से, “रणनीति” से ही समाप्त होती हैं। “रणनीति” का क्या मतलब है? (“चालबाजी” या “षड्यंत्र।”) इसका मतलब कुछ धोखेबाज, विश्वासघाती, छिपी हुई या गुप्त चालबाजियों से है। इन “चालबाजियों” का योजना बनाने से कोई लेना-देना नहीं है—ये षड्यंत्र रचने के बारे में हैं। हमें इन चालबाजियों के पीछे क्या दिखाई देता है? क्या उनके क्रियाकलाप, उनका व्यवहार और युद्ध में वे जिन चालबाजियों और अभ्यासों का उपयोग करते हैं, वे मानवता और सत्य के अनुरूप हैं? (नहीं।) क्या परमेश्वर इस तरीके से कार्य करता है? (नहीं।) बिल्कुल नहीं। तो, ये अभ्यास किन्हें दर्शाते हैं? वे शैतान और उसकी दुष्ट मानवता को दर्शाते हैं। दुष्ट मानवता की ये रणनीतियाँ कहाँ से आती हैं? (शैतान से।) ये शैतान से प्राप्त होती हैं। कुछ लोगों को इस बात को समझने में परेशानी हो सकती है, इसलिए मुझे कहना चाहिए कि ये शैतान राजाओं से प्राप्त होती हैं—तब लोगों को यह समझ आ जाएगा। शैतान राजा कौन हैं? वे दानव और शैतान हैं जिनका मानवता के बीच फूट डालने और कहर बरपाने के लिए दुनिया में पुनर्जन्म होता है—उन्होंने ये रणनीतियाँ बनाईं। परमेश्वर के कार्य के अभिलेखों में, क्या तुमने कभी उसे खाली शहर की रणनीति या ध्यान भटकाने वाली रणनीति का उपयोग करते देखा है? क्या ये रणनीतियाँ परमेश्वर की प्रबंधन योजना में शामिल हैं? परमेश्वर ने अपने कार्य का प्रबंध करने के लिए कभी ऐसी रणनीतियों का उपयोग नहीं किया है। ये रणनीतियाँ संपूर्ण दुष्ट मानवता द्वारा उपयोग की जाती हैं। बड़े पैमाने पर एक देश या राजवंश से लेकर, छोटे पैमाने पर एक जनजाति या परिवार और यहाँ तक कि व्यक्तियों के बीच रिश्तों तक, जहाँ भी तुम्हें भ्रष्ट मानवता मिलेगी, वहीं तुम्हें टकराव मिलेगा। वे किस चीज को लेकर लड़ रहे हैं? वे किस चीज के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं? उनका क्या लक्ष्य है? यह सब कुछ ताकत, रुतबे और मुनाफे के लिए है—इन चीजों को हासिल करने के लिए है। एक देश ज्यादा लोगों पर नियंत्रण के लिए दूसरे देश से लड़ता है। जनजातियाँ इलाके, लोगों और संप्रभुता के लिए आपस में लड़ती हैं। व्यक्ति श्रेष्ठता और मुनाफे के लिए लड़ते हैं। जहाँ कहीं भी मानवता है, वहाँ टकराव है, क्योंकि जहाँ कहीं भी मानवता है, वहाँ शैतान की भ्रष्टता है। शैतान ने पूरी मानवता को भ्रष्ट कर दिया है, इसलिए दुनिया टकराव और खून-खराबे से भरी हुई है। भ्रष्ट मानवता जो भी करती है, उसमें वह शैतान के स्वभाव की बेड़ियों से बच नहीं सकती है। इसलिए, मानवता का संपूर्ण इतिहास, चाहे पूर्व का हो या पश्चिम का, मानवता के इतिहास का हर हिस्सा इसके दुष्ट संघर्ष का एक दर्दनाक वृत्तांत है। मानवता तो इन चीजों को महान भी मानती है। कुछ लोग आज भी चीन की छत्तीस रणनीतियों को पढ़ रहे हैं। क्या तुम लोग उन्हें पढ़ रहे हो? (नहीं।) अगर तुम जानबूझकर इन चीजों को पढ़ते हो, उनमें निहित अनुभवों, शिक्षाओं, साधनों, तरीकों और तकनीकों को अपने दिमाग में बिठाते हो, और जीवित रहने के लिए उन्हें अपने कौशलों का हिस्सा बनाते हो, तो यह निश्चित रूप से गलत है। तुम निस्संदेह शैतान के पास पहुँच जाओगे, और ज्यादा से ज्यादा दुष्ट, ज्यादा से ज्यादा बुरे बनते जाओगे। लेकिन, अगर तुम अपना नजरिया बदल सकते हो और परमेश्वर के वचनों के अनुसार उनका गहन विश्लेषण कर सकते हो, उन्हें पहचान सकते हो और उन्हें उजागर कर सकते हो, तो तुम किस तरह का परिणाम हासिल करोगे? तुम शैतान से और ज्यादा नफरत करने लगोगे, और खुद को और ज्यादा समझने लगोगे और खुद से और घृणा करने लगोगे। इससे भी बेहतर परिणाम क्या हो सकता है? वह है शैतान को त्याग देना और परमेश्वर का अनुसरण करने का दृढ़ संकल्प लेना। शैतान लोगों को निर्देश देने और उन्हें ये चीजें सिखाने के लिए इन तथाकथित पारंपरिक संस्कृतियों और मानवता द्वारा पिछले हजारों वर्षों में इकट्ठा किए गए सभी तरह के ज्ञान और सिद्धांतों का उपयोग करता है, जो उन्हें और गहरे स्तर पर भ्रष्ट और नियंत्रित करने के लिए है। अगर तुम इन चीजों में माहिर हो जाते हो और उनका उपयोग करने का तरीका जान लेते हो, तो तुम एक जीता-जागता शैतान बन जाओगे, और परमेश्वर तुम्हें पूरी तरह से हटा देगा।

जब पिछली सभाओं में खुद को समझने पर संगति की जा रही थी, तो ज्यादातर लोग अक्सर घमंडी स्वभाव का मुद्दा उठाते थे, जो सबसे आम भ्रष्ट स्वभाव है, और इसका अस्तित्व दूर-दूर तक फैला हुआ है। कौन से दूसरे भ्रष्ट स्वभाव तुलनात्मक रूप से आम हैं? (धोखेबाजी और हठ।) धोखेबाजी, हठ, सत्य से विमुखता और क्रूरता—लोग इन्हीं चीजों का बार-बार सामना करते हैं। दुष्टता अक्सर कम दिखाई पड़ती है, और इसकी उतनी पहचान नहीं की जाती है। यह कहा जा सकता है कि दुष्ट स्वभाव को पहचानना सबसे मुश्किल है, और यह गहराई तक छिपा हुआ और तुलनात्मक रूप से गुप्त किस्म का भ्रष्ट स्वभाव है, है ना? मिसाल के तौर पर, मान लो कि दो लोग इकट्ठे रहते हैं, और उनमें से कोई भी सत्य से प्रेम नहीं करता है या उसकी खोज नहीं करता है, और ना ही वह वफादारी से अपने कर्तव्य करता है। बाहर से देखने पर लगता है कि दोनों में बढ़िया तालमेल है और उनके बीच कोई मुद्दा नहीं है। लेकिन, दिल की गहराई में, उनमें से कोई भी सत्य का अनुसरण नहीं करता है और बहुत से अलग-अलग भ्रष्ट स्वभाव अब भी मौजूद हैं, हालाँकि वे तुम्हें दिखाई नहीं देंगे। वे तुम्हें क्यों दिखाई नहीं देंगे? वह इसलिए क्योंकि ये दोनों व्यक्ति खास तौर पर धोखेबाज और शातिर हैं। चूँकि तुम सत्य को नहीं समझते हो और तुम्हारे पास सूझ-बूझ का पूरा अभाव है, इसलिए तुम उनकी समस्याओं का सार नहीं समझ सकते हो। तुम्हें जो सत्य समझ आते हैं, उनकी संख्या कम हैं, तुम्हारा आध्यात्मिक कद बहुत ही छोटा है, इसलिए ऐसे बहुत-से पेचीदा मुद्दे हैं जिन्हें समझने का तुम्हारे पास कोई तरीका नहीं है, और इन लोगों के मुद्दों को हल करने में तुम उनकी कोई मदद नहीं कर सकते हो। अगुआ होने के नाते, इस तरह के लोगों से सामना होने पर तुम्हें क्या करना चाहिए? अगर तुम उन्हें उजागर करते हो और पहचान लेते हो, तो क्या वे इसे आसानी से मान लेते हैं? नहीं, वे नहीं मानते। तो, तुम्हें ऐसे लोगों से कैसे निपटना चाहिए? क्या इसे करने का कोई तरीका है? ऐसे लोगों से निपटने के लिए क्या सिद्धांत है? अगर उनके पास परमेश्वर के घर की खातिर मेहनत करने के लिए कुछ तकनीकी या पेशेवर कौशल हैं, तो तुम्हें उनके साथ भाई-बहनों जैसा व्यवहार करना चाहिए और उनसे उसी हैसियत से माँगें करनी चाहिए। लेकिन, यह देखते हुए कि ऐसे लोग सत्य की खोज नहीं करते हैं, क्या वे अपने कर्तव्यों में वफादार हो सकते हैं? (नहीं।) कौन-सा व्यवहार बताता है कि उनमें वफादारी का अभाव है? क्या इस तरह के लोग सिर्फ दिखावे के लिए कार्य करने में माहिर नहीं होते हैं? जब आसपास कोई नहीं होता है, तो वे मस्ती करते रहते हैं और अपना पूरा समय लेते हैं। जैसे ही वे किसी को आते देखते हैं, तो अपनी रफ्तार बढ़ा देते हैं। यहाँ तक कि वे कई सवाल भी उठा सकते हैं और पूछ सकते हैं कि अमुक या अमुक चीज स्वीकार्य है या नहीं। जैसे ही वह व्यक्ति चला जाता है, वे कार्य करना बंद कर देते हैं, खाली बैठे रहते हैं, उनके पास उठाने के लिए कोई मुद्दा नहीं होता है, और अपने दिलों में यह तक कहते हैं, “मैं तो बस तुम्हारे साथ मस्ती कर रहा था; मैं इतना बेवकूफ नहीं हूँ!” इस तरह के लोग सब कुछ दिखावे के लिए करते हैं; वे मुखौटा लगाने में खास तौर से हुनरमंद होते हैं और दिखावा करने में माहिर होते हैं, जिससे लोगों के मन में एक झूठी छवि बनती है। कई लोग जो उनसे वर्षों से बातचीत कर रहे होते हैं, अब भी उनके शातिर और धोखेबाज सार को समझ नहीं पाते हैं। जब दूसरे लोग उनके बारे में पूछते हैं, तो वे यहाँ तक कह देते हैं, “यह व्यक्ति बहुत अच्छा है, सबके साथ अच्छा व्यवहार करता है, कभी किसी को नुकसान नहीं पहुँचाता है, वह बस लोगों को खुश करने वाला व्यक्ति है। यहाँ तक कि जब कोई गलत कार्य करता है, तो वे उसकी काट-छाँट नहीं करते हैं; वे दूसरों को लगातार प्रोत्साहित करते हैं और आश्वासन देते रहते हैं।” ये लोग दूसरों के साथ अपनी बातचीतों में किस तरह के साधनों और तरीकों का उपयोग करते हैं? वे मौके के मुताबिक उपयुक्त भूमिका निभाते हैं, वे चापलूस और चालाक होते हैं और ज्यादातर लोग कहते हैं कि वे अच्छे व्यक्ति हैं। क्या तुम्हारे आसपास ऐसे लोग हैं? (हाँ।) हर व्यक्ति अपने भ्रष्ट स्वभाव को प्रकट कर ही देता है, लेकिन ये लोग खुद को बहुत समेटकर रखते हैं, जिससे कोई भी उनकी समस्याओं का पता नहीं लगा पाता है। क्या यह कोई समस्या नहीं है? इतिहास में, ऐसे कुछ सम्राट हुए हैं जिन्होंने कई कुकर्म किए, लेकिन फिर भी उनकी बाद की पीढ़ियाँ उन्हें बुद्धिमान शासक बुलाती हैं। लोग उनके बारे में ऐसे विचार क्यों रखते हैं? क्या उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए मेहनत से काम नहीं किया? एक तरफ जहाँ उन्होंने अपनी खुद की राजनीतिक उपलब्धियों की खातिर कुछ अच्छे काम किए, वहीं दूसरी तरफ, उन्होंने अपने गलत कार्यों को छिपाने के लिए इतिहास को बिगाड़ दिया और उन लोगों की हत्या कर दी जिन्होंने उनके बारे में सत्य और तथ्य लिखे। लेकिन, चाहे उन्होंने उन्हें किसी भी तरह से छिपाने का प्रयास किया हो, उनके कर्मों के अभिलेख बेशक मौजूद हैं। वे उस हर व्यक्ति को हटा नहीं पाए जिसे सत्य मालूम था। आखिर में, बाद की पीढ़ियों ने उन मामलों को थोड़ा-थोड़ा करके उजागर कर दिया। जब लोगों को इन बातों का पता चला, तो उन्हें महसूस हुआ कि उनके साथ धोखा हुआ है। इन ऐतिहासिक तथ्यों को उजागर करके लोगों के मन में संपूर्ण मानवता के बारे में सत्य की एक नई समझ होनी चाहिए। किस तरह की समझ? राजाओं से लेकर आम लोगों तक, संपूर्ण मानवता दुष्टों की मुट्ठी में कैद है और शैतान द्वारा भ्रष्ट की जा चुकी है ताकि हर व्यक्ति अगले व्यक्ति से ज्यादा दुष्ट हो। ऐसा कोई नहीं है जो बुरा नहीं है, ऐसा कोई नहीं है जो खराब नहीं है। सभी ने बहुत से गलत काम किए हैं; वे सभी बहुत दुष्ट हैं, उनमें ऐसा कोई नहीं है जो अच्छा है। कुछ लोग कहते हैं, “हर राजवंश में कुछ ईमानदार अधिकारी होते हैं। क्या इन ईमानदार अधिकारियों को दुष्ट माना जाएगा?” अगर तुम इन ईमानदार अधिकारियों के अधिकार के अंतर्गत परमेश्वर में विश्वास करते हो, तो देखो कि वे तुम्हें गिरफ्तार करते हैं या नहीं। अगर तुम उनके सामने परमेश्वर के बारे में गवाही देते हो, तो उनके रवैये को देखो। तुम्हें फौरन पता चल जाएगा कि वे दुष्ट हैं या नहीं। परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, और साथ ही, उसके द्वारा अभिव्यक्त किया गया सत्य, लोगों के वास्तविक रूप को किसी भी दूसरी चीज से ज्यादा प्रकट कर देता है। कुछ शासकों और अधिकारियों ने कुछ राजनीतिक उपलब्धियाँ हासिल की होंगी और कुछ अच्छे कर्म किए होंगे, लेकिन इन अच्छे कर्मों की प्रकृति क्या है? इनसे किसे फायदा होता है? ये अच्छे कर्म हैं जिनकी माँग शासक वर्ग करता है। क्या वे जो अच्छे कर्म करते हैं वे परमेश्वर द्वारा स्वीकृत अच्छे कर्मों के अनुरूप हैं? क्या ये “राजनीतिक उपलब्धियाँ” सत्य का अभ्यास करना और परमेश्वर के प्रति समर्पण करना है? बिल्कुल नहीं। उनकी राजनीतिक उपलब्धियों और अच्छे कर्मों का सत्य या परमेश्वर के प्रति समर्पण से बिल्कुल कोई संबंध नहीं है। उन्होंने जो भी अच्छे कर्म किए हैं और उनके पास जो भी राजनीतिक उपलब्धियाँ हैं, वे सभी उनके इरादों और उद्देश्यों से प्रेरित रहे हैं; यह सब खुद को अमर बनाने और दूसरों से तारीफ हासिल करने के लिए किया गया है। इसलिए, वे चाहे कितने भी संख्या में अच्छे कर्म क्यों ना कर लें या कितनी भी राजनीतिक उपलब्धियाँ क्यों ना जमा कर लें, इससे यह साबित नहीं हो सकता है कि वे दयालु दिलों वाले अच्छे लोग हैं, यह साबित होना तो दूर की बात है कि उन्होंने कभी कोई बुरा नहीं किया है या वे दुष्ट प्रकृति के व्यक्ति नहीं हैं। क्या तुम यह अच्छी तरह समझते हो कि परमेश्वर की नजर में ये लोग किस तरह के व्यक्ति हैं? क्या तुम खुद को समझने के लिए इन बातों का उपयोग कर सकते हो? क्या तुम ऐसे अभ्यासों में शामिल होते हो, जहाँ तुम कुछ अच्छा करते ही दिखावा करना चाहते हो और यह सुनिश्चित करते हो कि हर कोई इसे जान जाए, फिर बाहरी तौर पर कहते हो कि किसी को डींगें मारने वाला या घमंडी नहीं होना चाहिए, कि व्यक्ति को विनम्रता से व्यवहार करना चाहिए? मिसाल के तौर पर, तुम कार्य करने के लिए किसी नई कलीसिया में जाते हो, और वहाँ लोगों को यह नहीं मालूम होता है कि तुम अगुआ के पद पर हो, इसलिए तुम्हें लोगों को यह बताने के लिए हर साधन आजमाना पड़ता है कि तुम एक अगुआ हो, और तुम सारी रात अपना दिमाग खपाकर आखिरकार एक अच्छा हल निकाल लेते हो। वह हल क्या है? तुम एक बैठक के लिए सभी को जमा करते हो और कहते हो, “आज की सभा में आओ हम सब इस बारे में संगति करें कि मैं एक अगुआ के रूप में योग्य हूँ या नहीं। अगर मैं योग्य नहीं हूँ, तो तुम मुझे उजागर कर सकते हो और हटा सकते हो। और अगर मैं योग्य हूँ, तो मैं इस भूमिका में बना रहूँगा।” जब सभी लोग यह सुनते हैं, तो उन्हें फौरन पता चल जाता है कि तुम एक अगुआ हो। क्या इससे तुमने अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर लिया है? यह लक्ष्य कहाँ से आया? यह तुम्हारी दुष्ट प्रकृति से उत्पन्न हुआ है। महत्वाकांक्षाओं का होना एक सामान्य मानवीय गुण है, लेकिन इन महत्वाकांक्षाओं के रहते हुए भी, कुछ लोग अपने वांछित लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अलग-अलग समय और अलग-अलग जगहों पर भिन्न-भिन्न भाषाओं, तरीकों और रणनीतियों का उपयोग करते हैं। यह दुष्टता है।

दुष्ट प्रकृति के इस विषय के संबंध में, हम इस पर बार-बार चर्चा करते रहेंगे। इस तरह, तुम्हें सत्य और भ्रष्ट स्वभावों के इस पहलू की एक ज्यादा गहन समझ हासिल होगी। एक लिहाज से, तुम खुद को समझ पाओगे और दूसरे लिहाज से, तुम अलग-अलग किस्म के लोगों को पहचान पाओगे। तुम सत्य में और भी गहरा प्रवेश प्राप्त करोगे। अगर मैं सिर्फ एक आम अवधारणा या परिभाषा के एक पहलू पर संगति करता हूँ, तो तुम्हारी समझ काफी हद तक सतही होगी। लेकिन, कुछ तथ्यों का उपयोग करके और हमारी संगति के लिए मिसालें देकर तुम्हारी समझ और भी गहरी हो सकती है। मिसाल के तौर पर, मान लो दो बच्चे आपस में बात कर रहे हैं। उनमें से एक पूछता है, “क्या आज तुमने अपना गृहकार्य किया?” दूसरा बच्चा जवाब देता है, “नहीं, मैंने नहीं किया।” इस पर पहला बच्चा कहता है, “मैंने भी नहीं किया।” क्या वे दोनों सत्य बोल रहे हैं? (हाँ।) तुमने गलत समझा है; इनमें से एक बच्चा झूठ बोल रहा है। वह अपने दिल में क्या सोच रहा है? “बेवकूफ, क्या तुम सोच रहे हो कि मैंने वाकई इसे नहीं किया है? मैं इतना बेवकूफ नहीं हूँ! अगर मैंने अपना गृहकार्य नहीं किया, तो मुझे सजा मिलेगी। तो फिर मैं उसे करने से कैसे चूक सकता हूँ? मैंने जानबूझकर तुम्हें यह विश्वास दिलाया कि मैंने उसे नहीं किया है ताकि तुम भी उसे ना करो। और आखिर में, जब तुम्हें सजा मिलेगी, तो मैं खूब हँसूंगा।” क्या यह बच्चा बुरा है? (हाँ, वह बुरा है।) क्या तुम लोगों में से किसी ने कभी ऐसा कुछ किया है? चलो एक और मिसाल लेते हैं : सोमवार को कक्षा में एक छात्रा कहती है कि वह रविवार को खरीदारी करने गई थी, जबकि दूसरी छात्त्रा यह दावा करती है कि वह दोस्तों से मिलने गई थी। दरअसल, दोनों ही घर पर रहकर पढ़ाई कर रही थीं। खासकर चीन जैसे बेहद प्रतिस्पर्धी माहौल में, ये बातें अपने प्रतिद्वंद्वी से उसकी चौकसी कम करवाने के लिए कही जाती हैं ताकि तुम उससे आगे निकल सको। इसी को रणनीति कहते हैं। रोजमर्रा के जीवन में ऐसी चीजें आम हैं। कभी-कभी माता-पिता और बच्चे इसी तरह की बातचीत करते हैं और इसी तरह के स्वभाव प्रकट करते हैं, जिन्हें दोस्त भी आपस में प्रकट कर सकते हैं। इस स्वभाव के प्रकाशन हर जगह दिखाई दे जाते हैं, तुम्हें दिखना इस बात पर निर्भर करता है कि तुम उन्हें खोजने वाली नजर रखते हो या नहीं। इस पर नजर क्यों रखनी है? यह सभा के लिए विषयवस्तु इकट्ठा करने, हल्की-फुल्की बातें करने, गपशप करने या कहानियाँ बनाने के लिए नहीं है। बल्कि यह तुम्हारी सूझ-बूझ को सुधारने के लिए है, ताकि दूसरे क्या करते हैं और वे क्या प्रकट और प्रदर्शित करते हैं इससे तुम अपनी तुलना कर सको, जिससे तुम देख सको कि क्या तुम भी इसी तरह के व्यवहार करते हो। जब तुम किसी को इस तरह का व्यवहार करते हुए देखते हो, तो तुम समझ जाओगे कि उनका यह स्वभाव है। लेकिन, जब तुम भी ऐसे व्यवहार करते हो, तो क्या तुम यह पहचान पाओगे कि तुम्हारा स्वभाव भी ऐसा ही है? अगर तुम इसे नहीं पहचान पाते हो, तो इसका मतलब है कि उनके स्वभाव के बारे में तुम्हारी समझ झूठी है : तुमने इसे सही मायने में नहीं समझा है, या दूसरे शब्दों में कहें तो तुम्हारे पास आध्यात्मिक समझ नहीं है, और तुमने इसे सटीकता से नहीं समझा है। इन विषयों पर चंद दिनों में पूरी चर्चा नहीं की जा सकती है। इस पर थोड़ी चर्चा करने से तुम्हें कुछ समझ हासिल करने में मदद मिलेगी, और सत्य के बारे में तुम्हारी समझ कुछ हद तक गहरी होगी। अगर तुम सही मायने में सत्य से प्रेम करते हो, तो तुम्हारे पास प्रवेश का ज्यादा गहरा स्तर होगा। तुम्हारे अनुभव और प्रवेश की गहराई को तुम्हारी समझ से कभी अलग नहीं किया जा सकता है। तुम जितनी ज्यादा गहराई से अनुभव और भीतर प्रवेश कर पाओगे, तुम्हारी समझ निश्चित रूप से उतनी ही ज्यादा गहरी होगी। इसी तरह, तुम्हारी समझ की गहराई यह भी प्रदर्शित कर सकती है कि तुमने कितनी गहराई से अनुभव किया है और भीतर प्रवेश किया है। ये दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। यही सत्य में प्रवेश करने का मार्ग है, और सिर्फ सत्य में प्रवेश करके ही तुम वास्तविकता हासिल कर सकते हो। अब इस विषय को हम यहीं समाप्त करेंगे और आज की संगति के मुख्य विषय की तरफ बढ़ेंगे।

मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को गुमराह करने, फुसलाने, धमकाने और नियंत्रित करने का गहन विश्लेषण

I. मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को गुमराह करने का गहन विश्लेषण

पिछली सभा में, हमने मसीह-विरोधियों की विभिन्न अभिव्यक्तियों की चौथी मद पर अपनी संगति पूरी की थी। आज, हम पाँचवी मद पर संगति शुरू करेंगे : मसीह-विरोधी कैसे लोगों को गुमराह करते हैं, फुसलाते हैं, धमकाते हैं और नियंत्रित करते हैं। मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों के इस पहलू में चार क्रियाएँ शामिल हैं, और इन चार क्रियाओं और मसीह-विरोधियों के व्यवहार से हम उनके स्वभाव को देख सकते हैं। पहली क्रिया है “गुमराह करना।” इसमें किस तरह का स्वभाव निहित है? यह दुष्टता है। अब, “फुसलाने” के बारे में क्या विचार है? फुसलाने में आमतौर पर प्रिय शब्दों का उपयोग किया जाता है या अप्रिय शब्दों का? (प्रिय शब्दों का।) तो, किस तरह का स्वभाव इस व्यवहार को नियंत्रित करता है? दुष्टता। “धमकाने” और “नियंत्रित करने” के बारे में क्या विचार है—कौन-सा स्वभाव इन्हें नियंत्रित करता है? (क्रूरता।) सही कहा, क्रूरता। पाँचवी मद से हम मसीह-विरोधियों के स्वभाव को देख सकते हैं। इस मद में मसीह-विरोधियों की प्राथमिक अभिव्यक्तियाँ क्या हैं? (दुष्टता और क्रूरता।) दुष्टता और क्रूरता के ये दो स्वभाव बहुत ही प्रमुख और स्पष्ट होते हैं। आओ इन व्यवहारों पर एक-एक करके चर्चा करें, “गुमराह करने” से शुरू करते हैं। “गुमराह करने” का आम तौर पर क्या मतलब होता है? क्या इसमें ईमानदारी की कोई अभिव्यक्ति शामिल है? क्या इसमें कोई ईमानदार शब्द हैं? (नहीं हैं।) इसमें कोई ईमानदार शब्द नहीं हैं—इसमें सब झूठ है, इसमें एक व्यक्ति गलत प्रभावों, झूठे कथनों और भ्रामक शब्दों का उपयोग कर दूसरों को यह विश्वास दिलाता है कि जो कुछ वह कहता है वह सही है जिससे दूसरे लोग उसे स्वीकार कर उस पर भरोसा कर लें। “गुमराह करने” का यही अर्थ है। क्या गुमराह किए गए लोग सत्य प्राप्त करते हैं या सही रास्ते पर चलते हैं? वे इनमें से कुछ भी हासिल नहीं करते हैं। लोगों को गुमराह करने का व्यवहार और अभ्यास निश्चित रूप से सकारात्मक के बजाय नकारात्मक है। जो लोग गुमराह किए गए हैं वे मूल रूप से ठगे गए हैं; वे वास्तविक तथ्यों, वास्तविक स्थिति या सही संदर्भ को नहीं समझते हैं, और फिर वे गलत मार्ग और दिशा, और गलत व्यक्ति का अनुसरण करना चुनते हैं। गुमराह करने का यह प्रभाव उन लोगों पर पड़ता है जो इसके झाँसे में आ जाते हैं। यह शॉपिंग मॉल में विज्ञापनों की तरह है : वे बहुत अच्छे से लिखे गए होते हैं, और जब लोग उन्हें देखते हैं तो वे उन्हें सच मान लेते हैं, लेकिन खरीदारी करने के बाद उन्हें पता चलता है कि वे उत्पाद बेकार हैं। इसे धोखा खाना कहते हैं। तो, मसीह-विरोधियों के इस तरह से लोगों को गुमराह करने वाला व्यवहार करने के पीछे क्या उद्देश्य है? वे कौन-से तरीके अपनाते हैं, वे कौन-से शब्द कहते हैं, और लोगों को गुमराह करने के लिए वे क्या-क्या करते हैं? आओ, सबसे पहले उनके उद्देश्य के बारे में बात करते हैं। अगर उनका कोई उद्देश्य ही नहीं होता तो क्या उन्हें लोगों को फुसलाने और गुमराह करने के लिए प्रयास करने या सुखद बातें कहने की आवश्यकता होती? अविश्वासियों के बीच एक कहावत है, “मुफ्त भोजन जैसी कोई चीज नहीं होती।” अगर तुम इसे नहीं समझ सकते, तो तुम धोखा खाओगे। दुनिया इतनी दुष्ट है, लोग एक-दूसरे के खिलाफ साजिश करते हैं और एक-दूसरे को गाली देते हैं। भ्रष्ट मानवता का जीवन यही है। मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करने के लिए गोल-गोल बातें करने में क्यों मेहनत करते हैं? वे एक स्पष्ट उद्देश्य से बोलते और कार्य करते हैं, जो सत्ता और लोगों पर नियंत्रण के लिए होड़ करना है—इसमें कोई संदेह नहीं है। उनके उद्देश्य राजनेताओं के उद्देश्यों से अलग नहीं हैं। तो, मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करने के लिए कौन-सी रणनीति अपनाते हैं? वे ऐसा कैसे करते हैं? सबसे पहले, वे तुम्हें अपने जैसा बनाते हैं। एक बार जब तुम उनके बारे में अच्छी धारणा बना लेते हो, तो तुम उनसे सावधान नहीं रहोगे : तुम उन पर भरोसा करोगे, और फिर तुम उनकी अगुआई को स्वीकार कर स्वेच्छा से उनके प्रति समर्पण कर दोगे। तुम उनकी कही हुई हर बात को और उनके कहे हुए हर काम को सुनने के इच्छुक होगे। सुनने की इस इच्छुकता का क्या मतलब है? इसका मतलब है विवेक का अभ्यास न करना, और सिद्धांतों के बिना आज्ञा पालन करना और समर्पण करना। क्या मसीह-विरोधी निंदा के शब्दों या तरीकों का उपयोग करके लोगों को गुमराह करने का प्रभाव प्राप्त कर सकते हैं? बिल्कुल नहीं। तो, इस प्रभाव को प्राप्त करने के लिए वे आमतौर पर कौन-से तरीके अपनाते हैं? अधिकतर वे ऐसे शब्दों का उपयोग करते हैं जो मानवीय धारणाओं के साथ-साथ मानवीय भावनाओं के सिद्धांतों से भी मेल खाते हैं। कभी-कभी वे कुछ ऐसे शब्द और धर्म-सिद्धांत भी बोलते हैं जो सत्य से मेल खाते हैं। इससे उनके लिए लोगों को गुमराह करने का अपना लक्ष्य हासिल करना आसान हो जाता है, और लोगों द्वारा उन्हें स्वीकारने की संभावना भी होती है। उदाहरण के लिए, जब भाई-बहन कुछ गलत करते हैं, जिससे कलीसिया के काम को नुकसान होता है, और वे निराश और कमजोर महसूस करते हैं तो मसीह-विरोधी उनका समर्थन करने और उनकी मदद करने के लिए सत्य की संगति नहीं करते हैं। इसके बजाय वे कहते हैं, “लोगों का कमजोर होना एक सामान्य घटना है—यह सामान्य है। मैं भी अक्सर कमजोर हो जाता हूँ। परमेश्वर इन चीजों को याद नहीं रखता।” वास्तव में, क्या वे जानते हैं कि परमेश्वर इन चीजों को याद रखता है या नहीं? नहीं, वे नहीं जानते। वे कहते हैं, “इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इस मामले को ठीक से संभाला नहीं गया। बस अगली बार इसे ठीक कर लेना। परमेश्वर के घर को नहीं पता है, और कोई भी इसकी जाँच नहीं कर रहा है। जब तक मैं इसके बारे में ऊपर नहीं बताता, तब तक ऊपरी अगुआओं को इसके बारे में पता नहीं चलेगा, और ऊपरवाले को तो निश्चित रूप से पता नहीं चलेगा, और फिर परमेश्वर को भी नहीं पता चलेगा—इसलिए, परमेश्वर इस मामले पर ध्यान नहीं देगा। हम सभी भ्रष्ट लोग हैं; भ्रष्टता तुममें है, और मुझमें भी। एक अगुआ के रूप में, मैं एक अभिभावक की तरह हूँ : तुम लोग जो भी गलतियाँ करते हो, वे मेरी जिम्मेदारी हैं। यह मेरी गलती है कि मेरा आध्यात्मिक कद छोटा है और मैं तुम लोगों को सहारा और सहायता नहीं दे पाया, जिसके कारण तुम लोग गलत ढंग से काम कर बैठे। अगर मेरा आध्यात्मिक कद बड़ा होता, तो मैं तुम लोगों की मदद कर सकता था और तुम लोगों ने कोई गलती नहीं की होती। इस मामले की जिम्मेदारी मेरी है। हालांकि इससे कलीसिया के काम को कुछ नुकसान हुआ होगा, लेकिन हम इसे खुद ही सुलझा सकते हैं और मामला यहीं खत्म हो जाएगा। किसी को भी इस मामले में पूछताछ नहीं करनी चाहिए और इसकी सूचना उच्च अधिकारियों को नहीं देनी चाहिए; इसे तुम्हारे और मेरे बीच ही रहने दो। अगर मैं दूसरे भाई-बहनों को इस बारे में नहीं बताता, तो कोई भी इसकी सूचना उच्च अधिकारियों को नहीं देगा और मामला खत्म हो जाएगा। हमें बस प्रार्थना करनी है और परमेश्वर के सामने शपथ लेनी है कि हम फिर कभी ऐसा कुछ नहीं करेंगे या ऐसी गलती नहीं करेंगे। एक अगुआ के तौर पर मेरी जिम्मेदारी है कि मैं तुम लोगों की सुरक्षा करूँ। परमेश्वर इतना ऊँचा है—क्या उससे सुरक्षा माँगना हमारे लिए यथार्थवादी है? इसके अलावा, परमेश्वर लोगों के जीवन में इन तुच्छ मामलों की परवाह नहीं करता है, इसलिए तुम लोगों की रक्षा करने की जिम्मेदारी स्पष्ट रूप से एक अगुआ के तौर पर मेरे कंधों पर आती है। तुम लोगों का आध्यात्मिक कद छोटा है, इसलिए यदि तुम कोई गलती करते हो तो दोष मैं लूँगा। चिंता मत करो, यदि ऐसा समय आता है कि कुछ वास्तव में गलत हो जाता है और ऊपरवाले को इसका पता चल जाता है या ऊपरवाला यह जान जाता है तो मैं तुम लोगों के लिए खड़ा रहूँगा।” जब लोग यह सुनते हैं, तो वे सोचते हैं, “कितनी अच्छी बात है! मैं जिम्मेदारी लेने को लेकर बहुत चिंतित था—यह अगुआ बहुत बढ़िया है!” क्या उन्हें गुमराह नहीं किया गया है? क्या मसीह-विरोधियों ने जो कुछ कहा है उसमें कुछ ऐसा है जो सत्य के अनुरूप है? क्या ऐसा कुछ है जो लोगों के लिए फायदेमंद या शिक्षाप्रद है? क्या ऐसा कुछ है जो सिद्धांतों के आधार पर मामलों को संभालता है? (नहीं।) तो, ये किस तरह के शब्द हैं? ये ऐसे शब्द हैं जो संबंध बनाने के लिए मानवीय भावुकताओं, सहानुभूति और क्षमा का उपयोग करते हैं, रिश्ते को एक निश्चित स्तर तक ले जाने के लिए भावनाओं और मित्रता पर जोर देते हैं, जिससे लोगों को लगता है कि मसीह-विरोधी विशेष रूप से समझदार हैं, विशेष रूप से लोगों को क्षमा करने वाले और सहनशील हैं। लेकिन इसमें कोई सिद्धांत या सत्य नहीं हैं। यह सतही समझ क्या है? यह सिर्फ चीजों को छुपाना है, यह एक बच्चे को बहलाने जैसा है। यहाँ कौन-सी रणनीति अपनाई जा रही है? भाई-बहनों के हितों की कीमत पर और परमेश्वर के घर के हितों के साथ विश्वासघात करके लोगों को मूर्ख बनाने और गुमराह करने के अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए उन्हें बहलाना, बरगलाना, संबंध बनाना, चीजों को छुपाना और एक अच्छा इंसान होने का दिखावा करना है। इसका अंतिम परिणाम क्या है? यह लोगों को परमेश्वर से दूर करता है, परमेश्वर के खिलाफ सावधान रहने के लिए बाध्य करता है, और मसीह-विरोधियों के करीब ले जाता है। गुमराह होने के बाद भी, ये लोग कहते हैं, “जब मैंने वह गलती की, तो मैं बहुत चिंतित था। मैंने परमेश्वर से कई बार प्रार्थना की, लेकिन उसने मुझे सांत्वना नहीं दी। मैं अपने दिल में अस्थिरता और बेचैनी महसूस कर रहा था, और मुझे परमेश्वर से कोई समाधान नहीं मिल पाया। लेकिन अब सब ठीक है; जब तक मैं अगुआ के पास जाता रहूँगा, मेरी सारी समस्याएँ हल हो जाएँगी। मैं वाकई बहुत भाग्यशाली हूँ कि मुझे ऐसा अगुआ मिला है। हमारा अगुआ सभी से बेहतर है!” इस समय, उनके दिल और दृष्टिकोण पहले से ही मसीह-विरोधियों की ओर मुड़ चुके हैं, और वे उनके द्वारा नियंत्रित हो चुके हैं। वे मसीह-विरोधियों द्वारा कैसे नियंत्रित हो सकते हैं? क्योंकि उन्हें इन मसीह-विरोधियों में सुरक्षा की भावना मिलती है। उन्हें सहानुभूति मिलती है, और उनके दिल की गहराई में उन्हें संतुष्टि और आराम मिलता है। यह दर्शाता है कि उन्हें गुमराह किया गया है।

अतीत में, ऊपरवाले को पता चला कि किसी कलीसिया में खराब मानवता वाला कोई व्यक्ति है, जो बिना किसी पश्चात्ताप के लगातार बाधा और गड़बड़ी पैदा करने वाले काम कर रहा है, इसलिए उसने स्थानीय कलीसिया के अगुआ से कहा कि इस व्यक्ति को दूर करो। जब स्थानीय कलीसिया अगुआ ने यह सुना, तो उसने सोचा, “उसे दूर करो? मुझे इस बारे में सोचना होगा। वह मेरे ही लोगों में से एक है—तुम लोग उसे ऐसे ही दूर नहीं कर सकते। मुझे उसके बचाव के लिए खड़ा होना होगा। ऊपरवाले को मामले की वास्तविक स्थिति समझ में नहीं आती। उसे ऐसे ही दूर करने की कोशिश करना वाकई हदें पार करना है। उसका दिल टूट जाएगा!” वह मौखिक रूप से उस व्यक्ति को दूर करने के लिए सहमत हो गया, लेकिन उसके दिल में ऐसा करने का कोई इरादा नहीं था। क्या तुम अनुमान लगा सकते हो कि वह इससे कैसे निपटा होगा? उसने इस पर विचार किया, “मैं इस स्थिति का इस तरह से जवाब कैसे दूँ कि नीचे के लोग मेरे उनके अगुआ होने से संतुष्ट हों और ऊपरवाला मुझसे घृणा न करे?” इस पर विचार करने के बाद, उसने एक योजना बनाई। उसने सभी को एक साथ सभा में बुलाया और कहा, “आज, हमारे पास निपटने के लिए एक विशेष मामला है। यह क्या है? कोई ऐसा व्यक्ति है जिससे ऊपरवाला बहुत संतुष्ट नहीं है, और वह उसे दूर करना चाहता है। तो, हमें इसके बारे में क्या करना चाहिए? आओ, हम सभी मतदान करके तय करें कि उसे दूर करना है या नहीं।” मतों की गणना की गई, और लगभग 80-90% लोगों ने उस व्यक्ति को दूर करने के लिए सहमति व्यक्त की, लेकिन कुछ व्यक्ति इससे असहमत भी थे। हम इस बारे में बात नहीं करेंगे कि ये असहमत लोग दुष्ट व्यक्ति के कट्टर अनुयायी थे या उन्होंने अन्य कारणों से ऐसा किया, बात जो भी हो, कुछ लोग असहमत थे, और सभी की राय एक नहीं थी। फिर अगुआ ने कहा, “मतदान के माध्यम से मैंने देखा है कि अलग-अलग मत हैं। यह एक महत्वपूर्ण मामला है और हमें इन मतों का सम्मान करना चाहिए। हमें लोकतंत्र का पालन करने की आवश्यकता है। देखो, पश्चिमी लोकतांत्रिक प्रणाली कितनी महान है : हमें कलीसिया में भी उसी तरह का अभ्यास करना चाहिए, हमें लोकतंत्र और मानवाधिकारों को प्राप्त करने के लिए अपनी पूरी क्षमता से प्रयास करना चाहिए। अब, चूँकि कुछ विरोधी मत हैं, इसलिए हम इस व्यक्ति को दूर नहीं कर सकते। हमें अपने भाई-बहनों की राय का सम्मान करना चाहिए। भाई-बहन कौन हैं? वे परमेश्वर के चुने हुए लोग हैं! हम उनकी राय को अनदेखा नहीं कर सकते। परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से अगर कोई एक भी असहमत हो तो हम दूर करने की इस कार्रवाई को आगे नहीं बढ़ा सकते।” वास्तव में, उसने जो कहा उसका कोई आधार नहीं था, परमेश्वर ने कभी ऐसी बातें नहीं कही हैं। वह बस बकवास कर रहा था। बाद में, जब ऊपरवाले ने पाया कि दुष्ट व्यक्ति अभी भी दूर नहीं हुआ है, तो उसने स्थानीय अगुआ से इस काम को जल्दी करने के लिए कहा। उसने वादा करते हुए कहा, “ठीक है, यह जल्द ही हो जाएगा।” उसके वादे का क्या मतलब था? इसका मतलब था कि वह टाल-मटोल करेगा। उसने सोचा, “तुम मुझसे उसे दूर करने के लिए कह रहे हो, लेकिन मैं यह तुरंत नहीं कर सकता। कौन जाने, अगर पर्याप्त समय बीत जाता है तो शायद तुम लोग इसे भूल जाओ और मुझे उसे दूर करने की जरूरत ही नहीं पड़े।” बाद में, उसने सभी को एक और सभा के लिए बुलाया और फिर से मतदान के लिए कहा। संगति और पहचान लेने से, यह सभी को स्पष्ट हो गया कि उस व्यक्ति को वास्तव में दूर करने की आवश्यकता है। विरोधी मत कम हो गए, लेकिन उसे दूर करने के खिलाफ अभी भी एक मत था। फिर से अगुआ ने उसे यह कहते हुए दूर नहीं किया, “जब तक उसे दूर करने के खिलाफ एक भी मत है, हम उसे दूर नहीं कर सकते।” अधिकांश लोगों ने सोचा, “यदि ऊपरवाले ने दूर करने का आदेश दिया है तो उसे हटा दो। निश्चित रूप से ऊपरवाला इस मामले को स्पष्टता से देख सकता है? यकीनन उसने कोई गलती नहीं की?” क्या ऊपरवाले की व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करना एक सिद्धांत है? क्या यह सत्य है? (हाँ।) इस अगुआ को नहीं पता था कि यह सत्य है। उसने क्या किया? उसने कहा, “अभी भी एक मत उसे दूर करने के खिलाफ है, इसलिए हम ऐसा नहीं कर सकते। हमें अपने भाई-बहनों की राय का पूरी तरह से सम्मान करना चाहिए। इसे ही सर्वोच्च मानवाधिकार कहा जाता है।” बाद में, जब ऊपरवाले ने फिर से मामले के बारे में पूछताछ की, तो अगुआ उनके साथ लापरवाही से पेश आता रहा और टाल-मटोल करता रहा। आखिरकार, जब ऊपरवाले ने देखा कि वह दुष्ट व्यक्ति को दूर नहीं कर रहा है, तो उसने उस अगुआ को भी बर्खास्त करके दूर कर दिया। ऊपरवाले ने उसे अगुआ बनाया, और उसने उसकी बात नहीं सुनी; ऊपरवाले के पास उसे इस्तेमाल करने और बर्खास्त करने का अधिकार है—यह एक प्रशासनिक आदेश है। इसके बाद, उसके सहयोगियों को भी दूर कर दिया गया। क्या ऊपरवाले की व्यवस्थाओं पर सभी को मतदान करने की आवश्यकता है? (नहीं।) क्यों नहीं? तुम इसका कारण नहीं बता सकते; ऐसा लगता है कि तुम उस गुमराह अगुआ से काफी मिलते-जुलते हो, है ना? मुझे बताओ, क्या ये शब्द जिन पर मैं तुम लोगों के साथ संगति कर रहा हूँ, धर्म-सिद्धांत हैं या वास्तविकताएँ? (वास्तविकताएँ।) अगर लोग इनका अभ्यास करें और इन्हें लागू करें, तो क्या यह सटीक होगा? (हाँ।) अगर यह सटीक है, तो क्या सभी के लिए इस पर मत डालकर अपनी राय देना आवश्यक है? (नहीं।) क्या ऊपरवाला किसी को दूर करने का आदेश देकर उसके साथ गलत कर सकता है? बिल्कुल नहीं। तो, जब ऊपरवाले ने इस दुष्ट व्यक्ति को दूर करने का आदेश दिया, और इस अगुआ ने इसे लागू करने से इनकार कर दिया, तो यहाँ समस्या क्या थी? (खुली अवज्ञा।) यह सिर्फ खुली अवज्ञा से कहीं ज्यादा है, यह एक स्वतंत्र राज्य का निर्माण करना है। जब ऊपरवाले ने दुष्ट व्यक्ति को दूर करने का आदेश दिया, तो इस झूठे अगुआ ने उसे टाल दिया और इसे लागू नहीं किया, और यहाँ तक कि उसने मतदान भी कराया और जनमत सर्वेक्षण किया। वह किस जनमत का सर्वेक्षण कर रहा था? जनमत क्या है? बहुमत क्या है? क्या बहुसंख्यक लोग सत्य समझते हैं या उनके पास सत्य है? (नहीं।) यदि बहुसंख्यक लोगों में विवेक ही नहीं है, तो क्या वे सत्य समझने वाले लोग हो सकते हैं? इस अगुआ ने जनमत सर्वेक्षण भी किया—क्या इससे वास्तव में कोई समस्या हल हो सकती है? क्या यह आवश्यक है? बहुसंख्यक लोगों में विवेक की कमी है, और ऊपरवाले ने व्यक्तिगत रूप से दुष्ट व्यक्ति की निगरानी की और उसे दूर करने का आदेश दिया, लेकिन इस मसीह-विरोधी ने टाल-मटोल की और उस दुष्ट व्यक्ति को दूर नहीं किया, बल्कि एक दुष्ट व्यक्ति को आश्रय और सुरक्षा प्रदान की, उसे कलीसिया में रहने दिया और बाधा डालने दी। जहाँ भी दुष्ट लोग मौजूद हैं, वहाँ अराजकता है और व्यवस्था की कमी होती है। परमेश्वर के चुने हुए लोग अपने कर्तव्यों को सामान्य रूप से नहीं कर सकते हैं, और कलीसिया का कार्य सामान्य रूप से नहीं चल सकता है। केवल दुष्ट लोगों को तुरंत दूर करने से ही यह सुनिश्चित हो सकता है कि कलीसिया का कार्य सामान्य रूप से चले। हालाँकि, जहाँ मसीह-विरोधी सत्ता में हैं वहाँ जो लोग परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाते हैं, बाधा डालते हैं, गैर-वाजिब तरीके से काम करते हैं, और अपने कर्तव्यों का पालन बिना किसी ईमानदारी के करते हैं, उन्हें दूर नहीं किया जा सकता है। मसीह-विरोधी बेकाबू होकर कलीसिया में बुराई करते हुए उन बुरे लोगों और छद्म-विश्वासियों को आश्रय और सुरक्षा देते हैं। वे किस बहाने से ऐसा करते हैं? इस बहाने से कि वे अधिकारी हैं, इसलिए उन्हें अन्य लोगों का मालिक होना चाहिए। वे परमेश्वर के घर में खुद को बतौर अधिकारी पेश करते हैं, और वे अन्य लोगों के मालिक बनना चाहते हैं। मुझे बताओ, मनुष्य का मालिक कौन है? (परमेश्वर।) परमेश्वर और सत्य मनुष्य के मालिक हैं। वे मसीह-विरोधी कुछ भी नहीं हैं! वे इन लोगों के मालिक बनना चाहते हैं, लेकिन वे यह भी नहीं जानते कि उनका मालिक कौन है! क्या वे बदमाश नहीं हैं? मसीह-विरोधी इस तरीके का उपयोग लोगों को यह बताने के लिए करते हैं : “मैं तुम लोगों का मालिक हो सकता हूँ। यदि तुम लोगों को कोई शिकायत है, कोई असंतोष है, या यदि तुमने कोई अन्याय या कठिनाई झेली है, तो मैं, तुम्हारे अगुआ के रूप में, तुम लोगों के लिए इसे ठीक कर सकता हूँ।” जो लोग सत्य या वास्तविक तथ्य नहीं समझते हैं, वे फिर उन मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह कर दिए जाते हैं। वे उन्हें मालिक और परमेश्वर मानते हैं, उनका अनुसरण तथा उनकी आराधना करते हैं। जो लोग सत्य समझते हैं, वे ऐसे मसीह-विरोधियों का सामना करने पर कैसा महसूस करते हैं? वे उनसे घृणा करते और चिढ़ते हैं, कहते हैं, “तो तुम हमारे मालिक बनना चाहते हो और हमें नियंत्रित करना चाहते हो? यह कतई नहीं हो सकता! हमने तुम्हें अपना अगुआ इसलिए चुना है ताकि तुम हमें अपने सामने नहीं, बल्कि परमेश्वर के सामने ले जाओ।” इसका मतलब है कि वे मसीह-विरोधियों की चालों को समझ गए हैं। मसीह-विरोधी मालिक होने के बहाने लोगों को गुमराह करते हैं, उन्हें यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि यह उनकी जरूरतों के अनुरूप है, चाहे वे जरूरतें भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक, आध्यात्मिक या अन्य जरूरतें हों। जो लोग सत्य या वास्तविक तथ्य नहीं समझते, वे अक्सर मसीह-विरोधियों के भ्रम के झाँसे में आ जाते हैं, वे इस हद तक गुमराह हो जाते हैं कि इसके बाद, वे न केवल पलटकर सोचने में असमर्थ होते हैं, बल्कि उन मसीह-विरोधियों के पक्ष में बोल भी सकते हैं और उनका बचाव भी कर सकते हैं। यह तथ्य कि वे मसीह-विरोधियों के पक्ष में बोल सकते हैं और उनका बचाव कर सकते हैं, पर्याप्त रूप से दर्शाता है कि उन्हें वास्तव में गुमराह किया गया है—क्या यही मामला नहीं है? (यही मामला है।) लोग परमेश्वर में विश्वास क्यों करते हैं? क्या यह उद्धार पाने के लिए नहीं है? यदि तुम मसीह-विरोधियों का अनुसरण करते हो तो क्या तुम परमेश्वर का विरोध और उसके साथ विश्वासघात नहीं कर रहे हो? क्या तुम उन ताकतों के पक्ष में नहीं खड़े हो रहे हो जो परमेश्वर के प्रति शत्रुता का भाव रखती हैं? उस स्थिति में, क्या परमेश्वर तब भी तुम्हें चाहेगा? यदि तुम नाम के लिए परमेश्वर का अनुसरण करते हो, अब भी किसी व्यक्ति का अनुसरण करते हो, तो परमेश्वर तुम्हें कैसे देखेगा और तुम्हारे प्रति उसका क्या दृष्टिकोण होगा? यदि तुम परमेश्वर को नकारते हो, तो क्या वह तुम्हें ठुकरा नहीं देगा? यदि लोग इतना जरा-सा धर्म-सिद्धांत भी नहीं समझते हैं, तो क्या वे सत्य समझ सकते हैं? क्या ये लोग भ्रमित नहीं हैं?

लोगों को गुमराह करना मसीह-विरोधियों के लिए कभी-कभार की अभिव्यक्ति नहीं है; वे अक्सर ऐसा करते हैं, यह उनका काम करने का सतत सिद्धांत है, या कहा जा सकता है कि यह उनका आधार, तरीका और काम करने की शैली है—यह उनके काम करने की सतत शैली है। अन्यथा, कौन उनका सम्मान करेगा? पहले तो, वे सत्य नहीं समझते। दूसरे, उनमें खराब मानवता होती है। तीसरे, उनमें परमेश्वर का भय मानने वाला दिल भी नहीं होता है। तो वे लोगों को पूरी तरह से उनकी अधीनता स्वीकार करने, उनका सम्मान करने और उनकी प्रशंसा करने के लिए मजबूर कर पाने में सक्षम कैसे हैं? वे दिखावा करने के लिए विभिन्न साधनों और तरीकों पर भरोसा करते हैं, लोगों को उनका सम्मान करने और उनकी पूजा करने के लिए मजबूर करते हैं। वे लोगों को गुमराह करने के लिए इन तरीकों का इस्तेमाल करते हैं, उन पर झूठी छाप छोड़ते हैं, उन्हें दिखाते हैं कि वे आध्यात्मिक हैं, वे परमेश्वर से प्रेम करते हैं, वे कीमत चुकाते हैं, वे अक्सर सही शब्द कहते हैं और सही सिद्धांत पेश करते हैं, और वे भाई-बहनों के हितों की रक्षा करते हैं। फिर, वे लोगों में सम्मान और प्रशंसा की भावना पैदा करने के लिए इस झूठी छाप का इस्तेमाल करते हैं, लोगों को गुमराह करने और उनसे अपना अनुसरण करवाने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं। जब वे इस तरह लोगों को गुमराह करते हैं, तो क्या वे जो कुछ भी करते हैं वह सत्य के अनुरूप होता है? हालाँकि वे सब कुछ सही कहते हैं, लेकिन यह निश्चित रूप से सत्य के अनुरूप नहीं होता। विवेकहीन लोग समस्या को नहीं देख सकते। लोगों को गुमराह करने के सार को लेकर उनके कार्य ऐसे होते है कि लोगों के लिए यह देखना मुश्किल हो जाता है कि वे सत्य के अनुरूप नहीं हैं। अगर यह देखा जा सकता, तो क्या लोग उनकी धोखाधड़ी को नहीं पहचान जाते? वास्तव में, वे जो करते हैं और जो प्रकट करते हैं वह एक झूठी आध्यात्मिकता होती है। तो, झूठी आध्यात्मिकता की अभिव्यक्ति क्या है? झूठी आध्यात्मिकता से संबंधित कई व्यवहार, कार्यकलाप और कथन सही लगते हैं, लेकिन वे वास्तव में केवल बाहरी कार्य हैं, और उनका सत्य का अभ्यास करने से कोई लेना-देना नहीं है। ठीक फरीसियों की तरह जिन्होंने प्रभु यीशु का विरोध किया था : वे अपने हाथों में शास्त्रों को पकड़े गलियों के कोनों पर जोर से प्रार्थना करते थे, “हे मेरे प्रभु...” कहते हुए लोगों को अपनी धर्मपरायणता दिखाते थे। नतीजतन, आजकल “फरीसी” उन लोगों के लिए एक वैकल्पिक शब्द बन गया है जो पाखंडी हैं। फरीसी से पहले कौन-सा विशेषण आता है? पाखंडी। वास्तव में, आजकल “पाखंडी” कहे बिना, तुम्हें केवल “फरीसी” शब्द कहने की आवश्यकता है जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह एक सकारात्मक शब्द नहीं है—यह “बदमाश” या “शैतान” के समान है और इसका वही अर्थ है। झूठी आध्यात्मिकता की बात करें तो, आजकल बहुत से लोग आध्यात्मिकता के बारे में बात नहीं करते हैं और जब भी कोई आध्यात्मिकता का उल्लेख करता है तो वे इसके पहले कौन-सा शब्द जोड़ते हैं? (झूठी।) सही कहा, झूठी। कई बार लोगों को गुमराह करने वाले मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्ति वास्तव में झूठी आध्यात्मिकता की अभिव्यक्ति है। झूठी आध्यात्मिकता से जुड़े शब्द, कार्यकलाप और व्यवहार अक्सर काफी अच्छे, काफी धर्मनिष्ठ और सत्य के अनुरूप लगते हैं। जब वे देखते हैं कि कोई कमजोर है तो वे अपना खाना भूल जाते हैं और उनकी सहायता करने के लिए दौड़ पड़ते हैं। जब वे देखते हैं कि किसी के घर में कोई समस्या है तो वे अपने स्वयं के मामलों की उपेक्षा कर उनकी मदद करने के लिए दौड़ पड़ते हैं। हालाँकि, उनकी मदद में कुछ सही शब्द या सुखद लगने वाले और सहानुभूतिपूर्ण शब्द कहना शामिल है, लेकिन इतनी सारी बातचीत के बाद भी, दूसरे व्यक्ति की वास्तविक समस्याएँ हल नहीं होती हैं। फिर उनके इस तरह से कार्य करने का उद्देश्य क्या है? लोग उनके व्यवहार से विशेष रूप से प्रभावित होते हैं और उन्हें लगता है कि जरूरत के समय में भरोसा करने के लिए इस तरह के अगुआ का होना अद्भुत है—वे वास्तव में खुश होते हैं। इसलिए, यह कहा जा सकता है कि मसीह-विरोधी न केवल लोगों को गुमराह करने के लिए शब्दों का उपयोग करते हैं, बल्कि साथ ही वे लोगों को गुमराह करने के लिए विभिन्न व्यवहारों का भी उपयोग करते हैं ताकि उन्हें यह विश्वास हो सके कि वे अत्यधिक आध्यात्मिक, उल्लेखनीय और उनके विश्वास और भरोसे के योग्य हैं। कुछ लोग यह भी सोच सकते हैं, “परमेश्वर में विश्वास करना कुछ ज्यादा ही अमूर्त लगता है, लेकिन हमारे अगुआ में विश्वास करना व्यावहारिक है। यह बहुत वास्तविक और सच्चा है : तुम उसे छू सकते हो और देख सकते हो, और जब तुम चीजों से निपट रहे होते हो तो तुम उससे पूछ सकते हो और उससे सीधे बात कर सकते हो। यह कितना अद्भुत है!” ऐसे नतीजे प्राप्त करके मसीह-विरोधी अपने उद्देश्यों तक पहुँच चुके होते हैं, लेकिन जिन लोगों को उन्होंने गुमराह किया है वे दुखी हो जाते हैं। कुछ समय तक मसीह-विरोधी द्वारा गुमराह किए जाने के बाद, जब ये लोग फिर से परमेश्वर के सामने आते हैं तो वे अब प्रार्थना करना या अपने दिलों को उसके सामने खोलना नहीं जानते हैं। इसके अलावा, जब ये लोग मिलते हैं तो वे एक-दूसरे की चापलूसी करते हैं, आध्यात्मिक होने का दिखावा करते हैं, और एक-दूसरे को गुमराह करते हैं और धोखा देते हैं। अंत में, मसीह-विरोधी यहाँ तक दावा करते हैं, “हमारी कलीसिया में हर एक भाई-बहन परमेश्वर से प्रेम करता है। जब समस्याएँ आती हैं तो इनमें से हर एक मौके पर खड़ा रहता है—उन्हें बड़ा लाल अजगर गिरफ्तार कर ले तो भी वे सभी अपनी गवाही पर दृढ़ रहेंगे। हमारे बीच एक भी यहूदा नहीं है—मैं इसकी गारंटी देता हूँ!” बाद में पता चलता है कि, जब वे गिरफ्तार हुए तो उनमें से अधिकांश यहूदा बन गए। क्या वे बदमाशों का गिरोह नहीं हैं? मसीह-विरोधी इन खोखले शब्दों और नारों का उपयोग भाई-बहनों को मूर्ख बनाने, गुमराह करने और धोखा देने के लिए करते हैं। अधिकांश लोग मूर्ख और अज्ञानी हैं, वे पहचान नहीं कर पाते, और वे मसीह-विरोधी को मनमाने ढंग से व्यवहार करने देते हैं। ऊपरवाले की कार्य व्यवस्थाओं में लंबे समय से इस बात पर जोर दिया गया है कि जब परिस्थितियाँ आती हैं, तो उन्हें कैसे संभालना है और क्या काम करना है, जिसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना होता है कि परमेश्वर के सभी चुने हुए लोग सुरक्षित वातावरण में अपने कर्तव्य कर सकें। गिरफ्तारी और उत्पीड़न की स्थिति में, नुकसान को यथासंभव कम किया जाना चाहिए। यदि परमेश्वर के सभी चुने हुए लोग गिरफ्तार हो जाते हैं और जेल चले जाते हैं, और उनका कलीसियाई जीवन पूरी तरह से समाप्त हो जाता है, तो क्या इससे उनके जीवन प्रवेश में कमी नहीं आती? जेल में परमेश्वर के वचनों को खाए-पिए बिना, क्या किसी व्यक्ति का जीवन परिपक्व हो सकता है? वे केवल भजनों के कुछ शब्द याद रख सकते हैं, और हर दिन उनका जीवन उन कुछ शब्दों पर निर्भर करता है। जब वे रात में प्रार्थना करते हैं, तो वे इसे केवल अपने दिल में चुपचाप कर सकते हैं, और वे अपने होठों को हिलाने की हिम्मत नहीं कर सकते। उनके दिलों में केवल यही विचार रह जाते हैं, “धोखा मत दो, यहूदा मत बनो, परमेश्वर की गवाही पर दृढ़ रहो और उसकी महिमा करो, उसका अपमान मत करो,” इसके अलावा और कुछ नहीं—लोगों के पास बस इतना ही आध्यात्मिक कद है। मसीह-विरोधी इन बातों पर विचार नहीं करते। उन्हें मसीह-विरोधी क्यों कहा जाता है? वे बिना हिचकिचाए दूसरों को गाली देते हैं और भाई-बहनों को नुकसान पहुँचाते हैं! ऊपरवाले की कार्य व्यवस्था के तहत लोगों को अपने कर्तव्यों को सुरक्षित वातावरण में पूरा करने और यथासंभव दुर्घटनाओं से बचने की जरूरत है, लेकिन मसीह-विरोधी लोग अपने काम करते समय इन कार्य व्यवस्थाओं का पालन नहीं करते हैं। वे सुरक्षा की अनदेखी करते हुए अपनी मर्जी के अनुसार चिल्लाते और काम करते हैं। कुछ मूर्ख व्यक्ति पहचान नहीं कर पाते और सोचते हैं, “ऊपरवाला हमेशा सुरक्षा की बात क्यों करता है? वे दुर्घटनाओं से इतना क्यों डरते हैं? डरने की क्या बात है? सब कुछ परमेश्वर के हाथ में है!” क्या ऐसी बातें करना मूर्खता नहीं है? शायद तुम्हारा आध्यात्मिक कद छोटा हो, शायद तुममें समझ की कमी हो, और शायद तुम मामलों को ठीक से न समझ पाओ, लेकिन तुम मूर्खतापूर्ण कार्य नहीं कर सकते! ऊपरवाले ने व्यवस्था की है कि लोगों को निश्चित परिस्थितियों में कैसे इकट्ठा होना चाहिए, और उन्हें किन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए—ये सभी विस्तृत व्यवस्थाएँ किस लिए हैं? वे ठीक परमेश्वर के चुने हुए लोगों की सुरक्षा के लिए हैं, ताकि वे सामान्य और सुरक्षित तरीके से सभा कर सकें और अपने कर्तव्य कर सकें। सुरक्षा रहने से तुम परमेश्वर में विश्वास करना जारी रखते हो, अपना कलीसियाई जीवन जीते हो और परमेश्वर के वचनों को सामान्य रूप से खाते-पीते हो। यदि तुम्हारी सुरक्षा ही चली जाए, यदि तुम्हें बड़े लाल अजगर द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाए, और जेल में तुम परमेश्वर के वचनों को सुन या पढ़ नहीं सकते, तुम भजन नहीं गा सकते, और तुम किसी सभा में न जा सको—तब भी तुम परमेश्वर में कैसे विश्वास कर सकते हो? शायद तुम केवल नाम के विश्वासी बनकर रह जाओ। मसीह-विरोधी इन मामलों की परवाह नहीं करते; उन्हें लोगों के जीवन और मृत्यु की परवाह नहीं है। अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं को संतुष्ट करने के लिए, वे सभी को खड़े होकर आँख मूंदकर यह चिल्लाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, “हमें परिस्थितियों से डर नहीं लगता—हमारे पास परमेश्वर है!” जो मूर्ख हैं वे कुछ भी नहीं समझते हैं और इन शब्दों से गुमराह हो जाते हैं। हर किसी के पास अस्पष्ट और खोखले विचार होते हैं, वे सोचते हैं, “हम परमेश्वर में विश्वास करते हैं, और परमेश्वर हमारी रक्षा करता है; अगर हमारे साथ कुछ होता है तो यह परमेश्वर की अनुमति से होता है।” क्या ये खोखले शब्द नहीं हैं? मसीह-विरोधी और जो लोग सत्य नहीं समझते हैं, वे इसी तरह कार्य करते हैं। हो सकता है भाई-बहन ये न समझ सकें, लेकिन एक ऐसा अगुआ होने के नाते जो अक्सर कार्य व्यवस्थाओं पर संगति करता है, तुम्हें इन मामलों से अनभिज्ञ नहीं होना चाहिए। तुम्हें कार्य व्यवस्था के अनुसार कार्य करना चाहिए और अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं को संतुष्ट करने के लिए हमेशा बहुत अधिक बोलने की इच्छा नहीं रखनी चाहिए, यह भी नहीं सोचना चाहिए कि जितने अधिक लोग तुम्हारी बात सुनें उतना ही बेहतर है, और जितने अधिक लोग होंगे उतना ही अधिक जोशीला तुम्हारा भाषण होगा। इस बात की परवाह किए बिना कि माहौल कितना सुरक्षित है, मसीह-विरोधी अपने से नीचे के लोगों को जीतने और उन्हें अपनी बात सुनाने के लिए अपने खाली समय में एक साथ इकट्ठा करते हैं जो अंततः इन लोगों को उनके पतन की ओर ले जाता है।

मसीह-विरोधी लोग बड़ी-बड़ी बातें कहने और लोगों को गुमराह करने के लिए कुछ खोखले, झूठे आध्यात्मिक और सैद्धांतिक आधारों का इस्तेमाल करने में माहिर होते हैं। बहुत से लोग जो पहचान नहीं कर पाते, वे बस उनकी बात सुनते हैं और मसीह-विरोधी चाहे जैसे उनके साथ हेरफेर करें, वे उनकी बात मानते हैं, परिणामस्वरूप उन्हें परेशानी और गिरफ्तारी का सामना करना पड़ता है। ये परेशानियाँ कैसे पैदा हो सकती हैं? कुछ लोग कह सकते हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर ने उनकी रक्षा नहीं की। लेकिन क्या यह परमेश्वर के बारे में शिकायत करना नहीं है? इस मामले का दोष परमेश्वर पर नहीं डाला जा सकता। परमेश्वर लोगों को विभिन्न परिस्थितियों में अपने कार्य का अनुभव करने देता है। यदि तुम कार्य व्यवस्थाओं पर आधारित सिद्धांतों के अनुसार अपना अभ्यास करते हो, और जब माहौल अनुकूल हो तो चाहे कितने भी लोग एक साथ इकट्ठा हों, तुम सामान्य रूप से परमेश्वर के वचन खा-पी सकते हो, परमेश्वर के कार्य का अनुभव कर सकते हो, और वे कर्तव्य कर सकते हो जो तुम्हें करने चाहिए, तो परमेश्वर तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा और तुम पर अपना कार्य करेगा। यदि तुम ऊपरवाले की अपेक्षाओं के विरुद्ध जाते हो और अपनी इच्छा के अनुसार आँख मूंदकर कार्य करते हो, और कुछ होता है तो यह केवल मूर्खता और अज्ञानता है। परमेश्वर शोधन करने के लिए सभी को जेल में डालने का इरादा नहीं रखता है। उसका इरादा है कि प्रत्येक व्यक्ति उसके वचनों को ठीक से खाए-पीए और उसके कार्य का अनुभव करे। हालाँकि, मसीह-विरोधी इसे नहीं समझते। वे अपने तर्क में विश्वास करते हैं और सोचते हैं कि परमेश्वर की सुरक्षा के रहते डरने की कोई बात नहीं है। उन्हें परमेश्वर की सुरक्षा के सिद्धांतों की कोई समझ नहीं है और वे आँख मूंदकर विनियमों का पालन करते हैं, हमेशा परमेश्वर को परिभाषित करते हैं। बहुत से लोग उनसे गुमराह हो जाते हैं और उनके साथ आँख मूंदकर काम करते हैं, ऊपरवाले से आने वाली व्यवस्थाओं को अनदेखा करते हैं, और परिणामस्वरूप, कुछ होता है और वे गिरफ्तार हो जाते हैं और जेल में यातनाएँ सहते हैं। जब मुसीबत आती है तो इन लोगों का आध्यात्मिक कद कैसा होता है? उनमें बस थोड़ा-सा उत्साह होता है, वे थोड़ा-सा धर्म-सिद्धांत समझते हैं, और कुछ नारे लगा सकते हैं, लेकिन उन्हें परमेश्वर का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं होता, उन्हें सत्य की कोई वास्तविक समझ, ज्ञान या अनुभव नहीं होता, और लोगों को बचाने के लिए परमेश्वर कैसे काम करता है, इसकी कोई समझ नहीं होती। वे परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए बस उत्साह पर भरोसा करते हैं और उनमें थोड़ा-सा दृढ़ संकल्प होता है। क्या इस तरह के आध्यात्मिक कद वाले लोग गिरफ्तार होने और जेल में डाले जाने पर गवाही दे सकते हैं? बिल्कुल नहीं। जैसे ही वे विश्वासघात करते हैं, परिणाम क्या होते हैं? वे सोचने लगते हैं, “क्या परमेश्वर सर्वशक्तिमान नहीं है? सब कुछ उसके हाथ में है तो वह मुझे क्यों नहीं बचाता? वह मुझे इस तरह से पीड़ित क्यों होने देता है? क्या परमेश्वर है भी? क्या यह संभव है कि इतने उत्साही बनकर हमने गलती की? यदि हमारे अगुआओं ने हमें गुमराह किया है तो परमेश्वर उन्हें अनुशासित क्यों नहीं करता? परमेश्वर हमें यहाँ क्यों लाया? उसने हमें ऐसी परिस्थिति का सामना क्यों करने दिया?” वे दोषारोपण करने लगते हैं, तुरंत बाद परमेश्वर को नकारा जाना शुरू हो जाता है : “परमेश्वर के कार्य मनुष्य की इच्छा के अनुरूप नहीं होते। हो सकता है कि उसके कार्य हमेशा सही न हों, और जरूरी नहीं कि वह सत्य ही हो।” अंत में, बहुत पीड़ा झेलने और कुछ समय तक इसे सहने के बाद, वे जो थोड़ा बहुत धर्म-सिद्धांत जानते थे और जो थोड़ा बहुत उत्साह उनमें था, वह भी रफूचक्कर हो जाता है। वे परमेश्वर को नकारते हैं और अपनी आस्था खो देते हैं, यहाँ तक कि यहूदा बन जाते हैं। जेल से रिहा होने के बाद, वे यहाँ तक सोचते हैं कि, “अब मुझे परिस्थितियों के बारे में फिर कभी चिंता करने की जरूरत नहीं है। देखो, जो लोग परमेश्वर में विश्वास नहीं करते, वे कितने अच्छे से जी रहे हैं : बाहर उनके पास बहुत स्वतंत्रता है। हम गुप्त रूप से विश्वास करके क्या कर रहे हैं? अगर देश विश्वास करने से मना करता है, तो बस विश्वास करना बंद कर दो।” क्या ऐसे लोग बाद में भी परमेश्वर में विश्वास कर सकते हैं? (नहीं, वे नहीं कर सकते।) वे क्यों नहीं कर सकते? परमेश्वर अब उन्हें नहीं चाहता। परमेश्वर तुम्हें सिर्फ एक बार चुनता है, और तुम पहले ही अपना मौका खो चुके हो, इसलिए परमेश्वर तुम्हें दूसरी बार नहीं चाहेगा। ऐसे लोगों के लिए उद्धार पाने की कितनी उम्मीद है? शून्य, कोई उम्मीद नहीं बची है। यह वह परिणाम है जो मसीह-विरोधियों के मनमाने ढंग से व्यवहार करने और लोगों को गुमराह करने के लिए कुछ झूठे आध्यात्मिक सिद्धांतों का उपयोग करने का होता है, जिसके कारण लोग बाहरी आध्यात्मिकता और उत्साह का अनुसरण करने लगते हैं। परिणाम क्या है? (वे बर्बाद हो जाते हैं।) परमेश्वर उन्हें बचाता है या नहीं, यह परमेश्वर का काम है, लेकिन कम से कम अभी के लिए, ऐसा लगता है कि जब लोगों का परमेश्वर में आस्था का मार्ग इस बिंदु पर पहुँचता है, तो उनकी संभावनाएँ और गंतव्य मूल रूप से बर्बाद हो जाते हैं। अब सब कुछ इस पर आकर टिक जाता है कि इसका कारण कौन हैं? ये मसीह-विरोधी ही हैं जो इसका कारण हैं। यदि वे इस तरह आँख मूंदकर काम न करते, बल्कि कार्य व्यवस्थाओं के अनुसार काम करते, ऊपरवाले की अपेक्षाओं के अनुसार भाई-बहनों की अगुआई करते, और सभी को परमेश्वर के सामने लाते, तो ये चीजें नहीं होतीं। क्या तब भी इन लोगों के बचने की उम्मीद होती? (बिल्कुल।) इन लोगों के पास अभी भी उद्धार की उम्मीद होती। चूँकि मसीह-विरोधियों की महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ बहुत बढ़ गई हैं, अगर कोई उनकी रक्षा करने और उनकी बात सुनने वाला न हो, तो उन्हें लगता है कि जीवन उबाऊ और नीरस है। वे उन भ्रमित लोगों के साथ जो उनका अनुसरण करते हैं, युद्धबलि और खिलौनों की तरह व्यवहार करते हैं, और उन सभी को अपनी अगुआई का पालन करने के लिए मजबूर करते हैं। उन्हें लगता है कि वे सक्षम हैं और उनके पास सुख हैं, और यह जीवन जीने लायक है। अपनी महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं को पूरा करने के लिए वे इन तथाकथित आध्यात्मिक और सुखद लगने वाले शब्दों का उपयोग उन लोगों को गुमराह करने के लिए करते हैं जो उनका अनुसरण करते हैं, और उन्हें गुमराह करने के बाद, उन्हें सच्चे मार्ग और परमेश्वर के वचनों से भटका देते हैं, अपना अनुसरण करवाने के लिए उन्हें परमेश्वर से दूर ले जाते हैं, और मसीह-विरोधियों का मार्ग अपनाने के लिए बाध्य कर देते हैं। इसका अंतिम परिणाम क्या होता है? इन लोगों की संभावनाएँ और गंतव्य बर्बाद हो जाते हैं, और वे अपने उद्धार का मौका खो देते हैं। जब लोग परमेश्वर में सही तरीके से विश्वास नहीं करते हैं और दूसरे लोगों का अनुसरण करते हैं तो इसके क्या परिणाम होते हैं? क्या तुम लोग अभी भी किसी ऐसे व्यक्ति से ईर्ष्या करते हो जो आध्यात्मिक लगता है? (नहीं, हम नहीं करते।) “आध्यात्मिक” शब्द के बारे में क्या विचार है? यह खोखला है। लोग दैहिक हैं—वे सृजित प्राणी हैं। यदि तुम वास्तव में आध्यात्मिक होते, तो तुम्हारा देह अब अस्तित्व में नहीं होता, और तब तुम कितने आध्यात्मिक होते? क्या यह सिर्फ खोखली बात नहीं है? तो, तुम देखते हो कि “आध्यात्मिक” शब्द अपने आप में टिकता नहीं है; यह सिर्फ खोखली बात है। भविष्य में, यदि तुम किसी को यह कहते हुए सुनो कि वह आध्यात्मिकता का अनुसरण कर रहा है तो उसे बताओ, “तुम्हें एक ईमानदार व्यक्ति बनने और परमेश्वर के सामने रहने का प्रयास करना चाहिए—यह अधिक यथार्थवादी है। यदि तुम आध्यात्मिकता का अनुसरण करते हो तो यह एक बंद रास्ता है! आध्यात्मिकता का कभी भी अनुसरण मत करो; यह ऐसी चीज नहीं है जिसका लोग अनुसरण करते हैं—यह टिकता ही नहीं है।” मुझे बताओ, कौन कई वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास करने के बाद आध्यात्मिक व्यक्ति बन गया है? धर्म की वे प्रसिद्ध हस्तियाँ और बाइबल के टिप्पणीकार, क्या वे आध्यात्मिक हैं? वे सभी पाखंडी हैं, उनमें से कोई भी आध्यात्मिक नहीं है। जिन लोगों ने “आध्यात्मिक” शब्द का आविष्कार किया है, वे इस खोखले शब्द का उपयोग दूसरों को गुमराह करने के लिए कर रहे हैं। वे बदमाश और शैतान हैं। किस तरह का व्यक्ति ऐसी खोखली बातें कह सकता है? क्या उन्हें आध्यात्मिक समझ है? (नहीं, उन्हें नहीं है।) यदि तुम यह भी नहीं समझ सकते कि लोगों को परमेश्वर में विश्वास करते समय क्या करना चाहिए या उन्हें किससे संबंधित होना चाहिए, तो क्या तुम सत्य समझ सकते हो? तुम स्वाभाविक रूप से एक सृजित प्राणी हो, मानवता के एक सदस्य हो जिसे शैतान ने भ्रष्ट कर दिया है। यदि तुम किसी चीज से संबंधित होने के बारे में बात करना चाहते हो, तो तुम देह से संबंधित हो—यह मनुष्यों का गुण है। बेशक, अगर तुम दैहिक होना चाहते हो, तो तुम शैतान से संबंधित हो : यह दुनिया के रास्ते पर चलना है। जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, उन्हें सत्य का अनुसरण करना चाहिए—यह सही है। अगर लोग आध्यात्मिक या परमेश्वर का होने की चाहत रखते हैं, तो क्या वे इसके योग्य हैं? चाहे वे कैसे भी इसका अनुसरण करें, यह बेकार है। परमेश्वर में विश्वास करने के लिए यह सही मार्ग नहीं है। इसलिए, आध्यात्मिक या परमेश्वर का होने की चाहत सिर्फ एक नारा है, एक झूठा आध्यात्मिक सिद्धांत है, जो सत्य से संबंधित नहीं है। अगर तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो और परमेश्वर का अनुसरण करते हो, तो तुम्हें एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य ठीक से निभाना चाहिए, और परमेश्वर के प्रति समर्पित होने और उसे संतुष्ट करने में सक्षम होना चाहिए। यही सत्य वास्तविकता है।

चाहे मसीह-विरोधी कितने भी उपदेश सुनें, वे सत्य नहीं समझ सकते। वे जो समझते हैं और जो व्यक्त कर सकते हैं वह सब धर्म-सिद्धांत है। वे उन शब्दों को लेते हैं जिन्हें वे समझ सकते हैं और याद रख सकते हैं और उन्हें अपने विचारों में संसाधित करके मानवीय धारणाओं और कल्पनाओं के अनुरूप आध्यात्मिक सिद्धांतों में बदल देते हैं और फिर उन्हें दूसरों को समझाते हुए मनमाने ढंग से प्रचारित करते हैं। जब आध्यात्मिक समझ की कमी वाले और सत्य को न समझने वाले लोग इन्हें सुनते हैं तो उन्हें लगता है कि वे बिल्कुल सही हैं और वे इन्हें स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। नतीजतन, वे गुमराह हो जाते हैं और मसीह-विरोधी की आराधना करने लगते हैं। यहीं से मुसीबत शुरू होती है। वास्तव में, मसीह-विरोधी सत्य बिल्कुल नहीं समझते। यदि तुम ध्यान से सुनो और उनके तथाकथित सही शब्दों को समझो तो तुम पाओगे कि वे मानवीय धारणाओं और कल्पनाओं के अनुरूप खोखले सिद्धांत हैं। बेशक, जो लोग सत्य नहीं समझते हैं उन्हें लगता है कि ये शब्द सही हैं और वे आसानी से उनके झाँसे में आ जाते हैं। क्या तुम लोगों ने ऐसी स्थितियों का अनुभव किया है? क्या तुम उदाहरण दे सकते हो? अगर तुम उदाहरण दे सकते हो और साफ तौर पर देख सकते हो कि शब्दों और धर्म-सिद्धांतों को बोलने में कुशल लोग दूसरों को कैसे गुमराह करते हैं तो यह साबित होता है कि तुम लोग उन्हें समझते हो और उन्हें लागू कर सकते हो। अगर तुम लोग उदाहरण नहीं दे सकते तो इसका मतलब है कि तुम लोगों ने उन्हें अभी तक नहीं समझा है और तुम उन्हें लागू नहीं कर सकते। जब तुम शब्दों और धर्म-सिद्धांतों को बोलने में कुशल लोगों से मिलते हो तो तुम निश्चित रूप से उन्हें पहचान नहीं पाओगे। (मैं ऐसी स्थिति में रह चुका हूँ। जब भाई-बहन काट-छाँट, ताड़ना और अनुशासन का सामना करते हैं और वे परमेश्वर का इरादा नहीं समझते हैं तो वे मेरे पास तलाश करने आते हैं। वास्तव में, परमेश्वर का इरादा या इन समस्याओं का सार मैं भी नहीं समझता हूँ। लेकिन मैं उन्हें कुछ खोखले शब्द बताता हूँ, उदाहरण के लिए, “काट-छाँट, ताड़ना और अनुशासन, ये सभी परमेश्वर का प्रेम और परमेश्वर का उद्धार हैं। परमेश्वर हमारे भ्रष्ट स्वभावों पर ऐसे ही कार्य करता है।” यह कहते समय भी मैं महसूस कर सकता हूँ कि मैंने उन्हें उनकी समस्या का सार पूरी तरह से नहीं समझाया है, जैसे कि वे इस परिस्थिति का सामना क्यों कर रहे हैं, उनके कार्य और प्रकटन किस प्रकार के भ्रष्ट स्वभाव से संबंधित हैं या उनकी प्रकृति क्या हो सकती है, और परमेश्वर का इरादा क्या है—ये बातें तथा और भी बहुत कुछ पर मैं उनके साथ संगति नहीं कर पाया हूँ। मैंने केवल कुछ सही धर्म-सिद्धांत और अच्छे लगने वाले नारे बोले हैं जो वास्तव में किसी की मदद नहीं करते हैं।) ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम्हें स्वयं सत्य की स्पष्ट समझ नहीं है, इसलिए तुम अपने भाई-बहनों की वास्तविक समस्याओं को हल नहीं कर सकते हो। तो, क्या मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को गुमराह करने और इसमें कोई अंतर है? मसीह-विरोधी लोगों की मदद सद्भावना से नहीं करते; उनकी अभिप्रेरणा और उद्देश्य उन्हें गुमराह करना और नियंत्रित करना होता है। जब मसीह-विरोधी इस तरह की चीजें करते हैं और जब वे नारे लगाते हैं तो उनके व्यवहार को देखो, और देखो कि वे किस तरह का स्वभाव प्रकट करते हैं—यह मसीह-विरोधियों को पहचानने की कुंजी है। कुछ लोगों का आध्यात्मिक कद छोटा होता है और उन्हें सत्य की स्पष्ट समझ नहीं होती है। उनके काम की गहनता से शायद आवश्यक नतीजे प्राप्त न हों, लेकिन उनके पास लोगों को गुमराह करने या नियंत्रित करने की अभिप्रेरणा या उद्देश्य नहीं होता। वे लोगों को परमेश्वर के सामने ले जाना भी चाहते हैं—बस उनकी इच्छा के आगे उनकी क्षमता कम पड़ जाती है। हालाँकि उन्होंने स्पष्ट नतीजे प्राप्त नहीं किए हैं, लेकिन लोग देख सकते हैं कि उनके पास सही इरादे हैं, कि वे लोगों को परमेश्वर के सामने ले जाना चाहते हैं। लेकिन, मसीह-विरोधियों का उद्देश्य क्या होता है? (लोगों की स्वीकृति प्राप्त करना, उनसे अपनी बात मनवाना और अपना अनुसरण करवाना।) तो, वे जो कहते हैं उसमें और उस व्यक्ति के बीच क्या अंतर है जिसकी क्षमता उसकी इच्छा से कम पड़ जाती है? अपर्याप्त क्षमता वाला व्यक्ति अपने दिल से बोलता है, लेकिन वह समस्या के सार और मूल को नहीं देख पाता है; वह इस पर स्पष्ट रूप से संगति नहीं कर सकता है, और अंततः, वह समस्या को हल नहीं कर सकता है या दूसरों का पोषण नहीं कर सकता है। और मसीह-विरोधी के शब्द क्या हैं? क्या वे उसके दिल से आते हैं? (नहीं, वे उसके दिल से नहीं आते हैं।) स्पष्ट रूप से वे उसके दिल से नहीं आते हैं : वह जो कहता है वह सब झूठ है। उसे झूठ क्यों बोलना पड़ता है? वह तुम्हें धोखा देना और गुमराह करना चाहता है। उसका मतलब है, “मैंने पहले ही वह काम कर लिया है जो मुझे एक अगुआ के रूप में करना चाहिए, मैंने वह संगति कर ली है जो मुझे करनी चाहिए, और मैंने जो कुछ भी कहा है वह सही है। यदि तुम उसे स्वीकार नहीं करते हो और समस्या अनसुलझी रहती है तो यह तुम्हारी गलती है—मुझे दोष मत दो।” वह वास्तव में तुम्हारी समस्याओं को हल नहीं करना चाहता है, बस बेमन से काम कर रहा है, उसके पास अपना रुतबा बनाए रखने के लिए ये बातें कहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। वह अपनी इच्छा के विरुद्ध ये बातें कहता है, और अगर वह ऐसा कहता भी है तो भी अपनी इच्छा से वह ऐसा नहीं कर रहा होता है—यह वह नहीं है जो वह वास्तव में अपने दिल में सोच रहा होता है। इसलिए, कुछ मसीह-विरोधी आमतौर पर कुछ सही शब्द बोलना सीख सकते हैं जो दूसरों को उनकी नकारात्मकता पर काबू पाने में मदद करते हैं, लेकिन जब वे खुद काट-छाँट का सामना करते हैं या उन्हें बदल दिया जाता है तो वे बेहद नकारात्मक हो जाते हैं, वे खुद को पूरी तरह से जानने में असमर्थ होते हैं, और उन्हें मदद के लिए भाई-बहनों पर निर्भर रहना पड़ता है। क्या ऐसा हुआ है? (हाँ।) इस तरह की बात अक्सर होती है। जिन शब्दों और धर्म-सिद्धांतों का उपदेश एक मसीह-विरोधी लगातार दूसरों को देता है, वे स्वयं उसकी मदद भी नहीं कर पाते। तो, क्या ये शब्द उसके भीतर से आते हैं? क्या ये उसके वास्तविक अनुभवों का परिणाम हैं? (नहीं।) तो, वह जो कहता है वे केवल शब्द और धर्म-सिद्धांत हैं, उसके वास्तविक आध्यात्मिक कद का प्रतिबिंब नहीं हैं। दूसरों की मदद करने के लिए वह जो काम करता है उसमें केवल बेमन से काम करने के लिए झूठे प्रभावों, क्रियाकलापों और अच्छे व्यवहार का उपयोग करना शामिल है, ताकि लोग उसे अगुआ मानें, उसे अगुआ के रूप में स्वीकार करें और अनुमोदित करें। एक बार जब लोग उसे अपना अगुआ मान लेते हैं तो क्या वे उसे स्वीकार नहीं करते? अगर वे उसे स्वीकार कर लेते हैं तो क्या मसीह-विरोधी को कोई रुतबा नहीं मिलता? क्या तब उसका रुतबा सुरक्षित नहीं हो जाता? वास्तव में उसका उद्देश्य यही है। कुछ अगुआओं और कार्यकर्ताओं में सत्य की समझ कम होती है और अपना काम संभालते समय उनकी इच्छा के आगे उनकी क्षमताएँ कम पड़ जाती हैं। यह अधिक से अधिक उनके छोटे आध्यात्मिक कद का संकेत है और इस बात का संकेत है कि वे योग्य अगुआ नहीं हैं। लेकिन जब कोई मसीह-विरोधी काम करता है तो वह इस बात पर विचार नहीं करता कि वह भाई-बहनों को सहायता या सहारा दे सकते हैं या नहीं। वह केवल अपने रुतबे और हितों के बारे में सोचता है। दोनों के बीच यही अंतर है : उनके स्वभाव अलग-अलग हैं। इसलिए, भले ही मसीह-विरोधी कई सुखद लगने वाले शब्द बोलते हों, लेकिन वे उनकी वास्तविकता नहीं दर्शाते हैं। वे उन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध कहते हैं; वे लोगों को सलाह देने और औपचारिकता निभाने के लिए बस बाहर से सही कुछ धर्म-सिद्धांतों और नारों, या मानवीय भावुकताओं के अनुरूप शब्दों का उपयोग कर रहे होते हैं। उन्हें औपचारिकता क्यों निभानी पड़ती है? ऐसा इसलिए है क्योंकि अगर वे किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो निराश या कमजोर है और वे उसकी मदद नहीं करते तो दूसरे कहेंगे कि वे वास्तविक काम नहीं कर रहे हैं और एक अगुआ के रूप में अपनी जिम्मेदारियाँ पूरी नहीं कर रहे हैं। ऐसे आरोपों से डरकर उनके पास काम करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। इसलिए, उनका उद्देश्य केवल अपने कर्तव्यों को पूरा करना नहीं है; वे डरते हैं कि अगर वे भाई-बहनों के मुश्किलों का सामना करने पर तुरंत पहुँचकर उनकी मदद नहीं करते हैं और उनकी जरूरतें पूरी कर अपनी जिम्मेदारियाँ नहीं निभाते हैं तो वे अब उनका और समर्थन नहीं करेंगे। अगले चुनाव में शायद वे उन्हें न चुनें, और वे सच में एक अगुआ नहीं होंगे, बल्कि उनके पास केवल एक खोखली उपाधि होगी। क्या उनके दिल में सिर्फ एक खोखली उपाधि पाने की ही चाहत है? (नहीं।) तो, वे क्या चाहते हैं? वे असली ताकत और रुतबा चाहते हैं, वे चाहते हैं कि भाई-बहन उनकी आराधना करें, उनका समर्थन करें और उनका अनुसरण करें। इसलिए, वे हर चुनाव में अगुआ के रूप में चुने जाने का प्रयास करते हैं—यही उनका उद्देश्य है।

चुनाव नजदीक आते ही कुछ तथाकथित अगुआ और कार्यकर्ता विशेष रूप से उत्साही हो जाते हैं, हर जगह खुद को प्रदर्शित करते हैं और असामान्य व्यवहार करते हैं। इस तरह के लोग मसीह-विरोधी किस्म के हो सकते हैं। अगर वे वास्तव में इस तरह से काम कर सकते हैं, तो यह घृणित है! जिस व्यक्ति में वास्तव में जमीर और विवेक है, वह अभिप्रेरणा और उद्देश्यों के साथ काम करते समय स्वाभाविक रूप से अपने दिल में दोषी महसूस करेगा। अपने जमीर और विवेक से संयमित होने पर उसे एहसास होगा कि वह पहले इतना उत्साही नहीं था और लोग उसके अचानक उत्साहित होने को भाँप लेंगे। वह भी खुद अपने प्रति घृणा महसूस करता है और वह इस तरह से काम करने के बजाय चुनाव नहीं लड़ना पसंद करेगा। क्योंकि उसने इतने सालों से परमेश्वर पर विश्वास किया है और थोड़ा आध्यात्मिक कद और शर्म की भावना विकसित की है, अंत में, वह खुद को संयमित करने में सक्षम होता है। लेकिन मसीह-विरोधी खुद को संयमित नहीं करते हैं; वे अपनी मर्जी से जो चाहते हैं वही करते हैं, जैसा चाहते हैं वैसा ही करते हैं। उनकी महत्वाकांक्षाएँ, विभिन्न अभिप्रेरणाएँ, उद्देश्य और योजनाएँ होती हैं। वे अपने दिल में यह सब जानते हैं, लेकिन वे हमेशा अपनी प्रतिष्ठा और रुतबे के बारे में सोचते हुए इस तरह से काम करने पर जोर देते हैं। उन्हें लगता है कि कलीसिया और अपने भाई-बहनों के लिए काम करना बहुत बड़ा नुकसान है और सार्थक नहीं है। इसलिए, वे हर काम में खुद को सबसे आगे रखते हैं और हमेशा पहले स्थान पर रहने की कोशिश करते हैं। जब चुनाव आते हैं तो वे हर जगह अपने पक्ष में गुट बनाने की पूरी कोशिश करते हैं, लोगों को गुमराह करते हैं और फुसलाते हैं ताकि वे उन्हें चुनें और मतदान के दौरान चुपके से अपने पक्ष में कुछ मत भी जुगाड़ लेते हैं। क्या मसीह-विरोधियों का इस तरह से काम करना घृणित नहीं है? अगर उनकी महत्वाकांक्षाएँ नहीं होतीं तो वे इतना सब क्यों करते? क्या यह स्पष्ट रूप से महत्वाकांक्षा के कारण नहीं है? जैसे ही कोई उल्लेख करता है कि कोई महत्वाकांक्षी है, तो इसमें कुछ भी सकारात्मक नहीं है; ऐसे लोग जो कुछ भी करते हैं वह निस्संदेह घृणित और अवर्णनीय है। मसीह-विरोधी जो कुछ भी करते हैं वह झूठ और धोखा देने वाला होता है; वे लोगों को गुमराह करने के लिए हमेशा झूठे मुखौटों का उपयोग करते हैं। जो लोग मामले की सच्चाई नहीं जानते वे इसे देखते हैं और सोचते हैं, “अगुआ ने इन कुछ दिनों में बहुत मेहनत की है, नींद और भोजन का त्याग किया है, दिन-रात काम किया है, हर चीज में अगुआई की है। उसने बहुत कुछ सहा है और इतना थक गया है कि उसका वजन बहुत कम हो गया है—उसके बाल और भी सफेद हो गए हैं।” कुछ भाई-बहन यह देखते हैं और मसीह-विरोधी के लिए खेद महसूस करते हैं और अंत में, चुनाव के दौरान, वे उसके पक्ष में वोट डालते हैं। क्या मसीह-विरोधी ने अपना लक्ष्य हासिल नहीं किया है? (बिल्कुल किया है।) योजना बनाने और रणनीति का उपयोग करने का यही मतलब है, दुष्ट होने का यही मतलब है। इसलिए, मसीह-विरोधी केवल शब्दों से ही नहीं बल्कि कई बार क्रियाकलापों और व्यवहारों से भी लोगों को गुमराह करते हैं जो चुपचाप लोगों को बताते हैं कि वे कितने उत्साही, कितने विनम्र और भाई-बहनों के प्रति कितने विचारशील हैं। वे इन अच्छी और सही प्रतीत होने वाली अभिव्यक्तियों और बाहरी रूप से झूठे दिखावों का उपयोग लोगों को बार-बार यह बताने, बार-बार इस बात पर जोर देने और लोगों को यह जानकारी देने के लिए करते हैं वे योग्य अगुआ हैं, अच्छे अगुआ हैं जिन्हें लोगों को स्वीकार करना चाहिए। यह लोकतांत्रिक देशों के चुनावों की तरह ही है, जहाँ उम्मीदवार भाषण देते हैं, अपने पक्ष में गुट बनाते हैं और हर जगह प्रचार करते हैं। वे मतदान प्रक्रिया में भी धाँधली करते हैं। लेकिन इन लोगों को शर्म नहीं आती; वे इस धारणा का पालन करते हैं कि “वास्तविक मनुष्य को क्रूर होना चाहिए।” वे चुनाव जीतने के लिए हर जरूरी साधन का उपयोग करते हैं—यह अविश्वासियों का विचार और दृष्टिकोण है। क्या ये मसीह-विरोधी भी ऐसा ही करते हैं? बिल्कुल! सत्ता और रुतबे की खातिर ये लोग हर काम को जोश और उत्साह से करते हैं और उसे पूरा करने के लिए अपना दिमाग खपाते हैं। वे अपने भाग्य से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हैं। इसलिए, अगर सत्ता और रुतबे के लिए अति उत्साही लोग, यानी वे लोग जो अपनी महत्वाकांक्षाओं को नियंत्रित करने में असमर्थ हैं, अंततः अगुआ के रूप में चुने जाते हैं तो वे न केवल मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चल रहे होते हैं; बल्कि वे स्वयं भी मसीह-विरोधी बन सकते हैं। क्या तुम लोगों की भी महत्वाकांक्षाएँ हैं? क्या तुम लोग अपनी महत्वाकांक्षाओं को मानवता और विवेक की सीमाओं के भीतर नियंत्रित कर सकते हो? यदि तुम उन्हें नियंत्रित कर सकते हो तो तुम मसीह-विरोधियों के मार्ग पर चलने के खतरे से बच सकते हो, और तुम मसीह-विरोधी नहीं बनोगे और हटाए नहीं जाओगे। अगर तुम्हें लगता है कि तुम्हारी महत्वाकांक्षाएं बहुत बड़ी हैं, तुम अक्सर रुतबे के लिए कुछ भी करने को तैयार हो, और यहाँ तक कि खाना-पीना भी छोड़ देते हो, किसी भी तरह की पीड़ा सहने को तैयार हो, और यहाँ तक कि किसी भी तरह के घृणित तरीके को अपनाने के लिए तैयार हो, अगर तुम पहले से ही उस बिंदु पर पहुँच चुके हो जहाँ तुम बेशर्म हो और तुम्हारी महत्वाकांक्षाओं को नियंत्रित करना मुश्किल है, तो यह परेशानी की बात है—तुम निस्संदेह एक मसीह-विरोधी हो। यदि तुम केवल मसीह-विरोधी की अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हो तो भी उद्धार की आशा है। लेकिन क्या तुम खतरे से बाहर हो? अभी नहीं। यदि तुम मसीह-विरोधी की ये अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हो तो इसका मतलब है कि तुम अभी भी परमेश्वर के विरोधी हो, किसी भी समय उसका प्रतिरोध करने और उसे नकारने के लिए तैयार हो। या शायद, क्योंकि परमेश्वर ने कुछ ऐसा किया है जो तुम्हारी धारणाओं के अनुरूप नहीं है, तुम परमेश्वर का अध्ययन कर सकते हो, उसे गलत समझ सकते हो, उसके बारे में निर्णय दे सकते हो, और यहाँ तक कि उसके बारे में धारणाएँ भी फैला सकते हो। फिर तुम परमेश्वर को नकारते हो और अपने ही रास्ते पर चलते हो, और अंततः परमेश्वर द्वारा हटा दिए जाते हो। तुम जो भी चीजें, जब भी और जहाँ भी प्रकट करते हो, वे तुम्हारे स्वभाव का प्रतिनिधित्व कर सकती हैं। इसलिए, तुम जो भी चीजें हर समय और हर स्थान पर प्रकट करते हो, वे तुम्हारे स्वभाव का प्रकाशन हैं। हम हमेशा स्वभाव में बदलाव पर चर्चा क्यों कर रहे हैं? क्योंकि जिस व्यक्ति का स्वभाव नहीं बदलता, वह परमेश्वर का दुश्मन है। सभी मसीह-विरोधी भयंकर रूप से पश्चात्ताप नहीं करते हैं, वे परमेश्वर का विरोध करने और अंत तक उसके विरुद्ध खड़े रहने में अपना जीवन लगा देने की कसम खाते हैं। भले ही वे भीतर से परमेश्वर के अस्तित्व को स्वीकारते हों, भले ही वे स्वीकारते हों कि परमेश्वर ने मानवता का सृजन किया है और परमेश्वर मानवता को बचा सकता है, लेकिन अपने स्वभाव के कारण वे जिस मार्ग पर चलते हैं उसे बदल नहीं सकते, न ही वे परमेश्वर का प्रतिरोध करने और उसके प्रति शत्रुता का भाव रखने के सार को बदल सकते हैं।

मसीह-विरोधियों के व्यवहार का सार अपनी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ पूरी करने, लोगों को गुमराह करके फँसाने और उच्च हैसियत प्राप्त करने के लिए लगातार विभिन्न साधनों और तरीकों का इस्तेमाल करना है, ताकि लोग उनका अनुसरण और आराधना करें। संभव है कि अपने दिल की गहराइयों में वे जानबूझकर मानवजाति को लेकर परमेश्वर से होड़ न कर रहे हों, पर एक बात तो पक्की है : जब वे मनुष्यों को लेकर परमेश्वर के साथ होड़ नहीं भी कर रहे होते, तब भी वे उनके बीच रुतबा और सत्ता पाना चाहते हैं। अगर वह दिन आ भी जाए, जब उन्हें यह एहसास हो जाए कि वे रुतबे के लिए परमेश्वर के साथ होड़ कर रहे हैं और वे अपने-आप पर थोड़ी-बहुत लगाम लगा लें, तो भी वे रुतबे और प्रतिष्ठा के लिए विभिन्न हथकंडे अपनाते हैं; उन्हें अपने दिल में स्पष्ट होता है कि वे कुछ लोगों की स्वीकृति और सराहना प्राप्त करके वैध रुतबा प्राप्त कर लेंगे। संक्षेप में, हालाँकि मसीह-विरोधी जो कुछ भी करते हैं, उससे वे अपने कर्तव्य निभाते प्रतीत होते हैं, लेकिन उसका परिणाम लोगों को गुमराह करना होता है, उनसे अपनी आराधना और अनुसरण करवाना होता है—ऐसे में, इस तरह अपना कर्तव्य निभाना उनके लिए अपना उत्कर्ष करना और अपनी गवाही देना होता है। लोगों को नियंत्रित करने और कलीसिया में रुतबा और सत्ता हासिल करने की उनकी महत्वाकांक्षा कभी नहीं बदलती। ऐसे लोग पूरे मसीह-विरोधी होते हैं। परमेश्वर चाहे कुछ भी कहे या करे, और चाहे वह लोगों से कुछ भी चाहे, मसीह-विरोधी वह नहीं करते जो उन्हें करना चाहिए या अपने कर्तव्य उस तरह से नहीं निभाते जो परमेश्वर के वचनों और अपेक्षाओं के अनुरूप हो, न ही वे किसी सत्य को समझने के नतीजे के तौर पर सत्ता और रुतबे का अपना अनुसरण ही त्यागते हैं। हर समय, उनकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छएँ फिर भी बनी रहती हैं, वे फिर भी उनके दिल पर कब्जा किए रहती हैं और उनके पूरे अस्तित्व को नियंत्रित करती हैं, उनके व्यवहार और विचारों को निर्देशित करती हैं, और उस मार्ग को निर्धारित करती है, जिस पर वे चलते हैं। वे प्रमाणिक मसीह-विरोधी हैं। मसीह-विरोधियों में सबसे ज्यादा क्या दिखाई देता है? कुछ लोग कहते हैं, “मसीह-विरोधी लोगों को प्राप्त करने के लिए परमेश्वर से होड़ करते हैं, वे परमेश्वर को नहीं स्वीकारते।” ऐसा नहीं है कि वे परमेश्वर को नहीं स्वीकारते; अपने दिल में वे वास्तव में उसके अस्तित्व को स्वीकारते और उस पर विश्वास करते हैं। वे उसका अनुसरण करने के इच्छुक होते हैं और सत्य का अनुसरण करना चाहते हैं, लेकिन उनका खुद पर बस नहीं चलता, इसलिए वे बुराई कर सकते हैं। हालाँकि वे कई अच्छी लगने वाली बातें कह सकते हैं, लेकिन एक चीज कभी नहीं बदलेगी : सत्ता और हैसियत के लिए उनकी आकांक्षा और इच्छा कभी नहीं बदलेगी, न ही वे कभी असफलता या बाधा के कारण, या परमेश्वर द्वारा उन्हें दरकिनार कर त्याग दिए जाने के कारण सत्ता और रुतबे का अपना अनुसरण छोड़ेंगे। ऐसी होती है मसीह-विरोधियों की प्रकृति। तो तुम क्या कहते हो, क्या कभी कोई ऐसा मसीह-विरोधी हुआ है जिसने इसलिए अपने तरीके बदले हों और सत्य का अनुसरण करना शुरू कर दिया हो क्योंकि उसने कठिनाई झेली, या सत्य को थोड़ा-बहुत समझा और परमेश्वर का थोड़ा-बहुत ज्ञान प्राप्त किया—क्या ऐसे लोग मौजूद हैं? हमने ऐसा कभी नहीं देखा। रुतबे और सत्ता के लिए मसीह-विरोधियों की महत्वाकांक्षा और उनका अनुसरण कभी नहीं बदलेगा, और एक बार जब वे सत्ता पर कब्जा कर लेते हैं, तो वे इसे कभी नहीं छोड़ेंगे; और इससे उनका प्रकृति सार स्पष्ट रूप से निर्धारित हो जाता है। ऐसे लोगों को मसीह-विरोधियों के रूप में परिभाषित करने में परमेश्वर ने जरा-सी भी गलती नहीं की है, इसे उनके प्रकृति सार ने ही निर्धारित कर दिया है। शायद कुछ लोग मानते हैं कि मसीह-विरोधी मानवजाति के लिए परमेश्वर के साथ प्रतिस्पर्धा करने की कोशिश करते हैं। हालांकि, कई बार यह जरूरी नहीं होता कि मसीह-विरोधी परमेश्वर के साथ प्रतिस्पर्धा ही करें; उनका ज्ञान, समझ और प्रतिष्ठा व सामर्थ्य की आवश्यकता सामान्य लोगों जैसी नहीं होती। सामान्य लोग दंभी हो सकते हैं; वे दूसरों की प्रशंसा जीतने का प्रयास कर सकते हैं, उन पर धाक जमाने का प्रयास कर सकते हैं, और एक अच्छी श्रेणी पाने की होड़ लगाने का प्रयास कर सकते हैं। यह सामान्य लोगों की महत्वाकांक्षा है। यदि उन्हें नेताओं के रूप में बदल दिया जाता है, वे उपना रुतबा खो देते हैं, तो यह उनके लिए कठिन होगा, लेकिन परिवेश में परिवर्तन से, थोड़े आध्यात्मिक कद के विकास से, सत्य प्रवेश की थोड़ी-बहुत प्राप्ति या सत्य की गहरी समझ आने पर उनकी महत्वाकांक्षा धीरे-धीरे शांत हो जाती है। उनके द्वारा अपनाए गए मार्ग और आगे बढ़ने की दिशा में परिवर्तन आता है, और प्रतिष्ठा व सामर्थ्य की उनकी खोज धूमिल होने लगती है। उनकी इच्छाएँ भी धीरे-धीरे कम होती जाती हैं। हालाँकि मसीह-विरोधी अलग होते हैं : वे प्रतिष्ठा व सामर्थ्य की अपनी खोज कभी नहीं छोड़ सकते। किसी भी समय पर, किसी भी माहौल में, और चाहे उनके आस-पास कोई भी लोग हों और चाहे वे किसी भी उम्र के हों, उनकी महत्वाकांक्षा और इच्छा कभी नहीं बदलेगी। किससे पता चलता है कि उनकी महत्वाकांक्षा कभी नहीं बदलेगी? उदाहरण के लिए, मान लो कि वे किसी कलीसिया में अगुआ हैं। वे अपने दिल में हमेशा यह सोचते रहते हैं कि वे कलीसिया में सभी को कैसे नियंत्रित कर सकते हैं। अगर उन्हें किसी दूसरे कलीसिया में स्थानांतरित कर दिया जाता है जहाँ वे अगुआ नहीं हैं, तो क्या वे खुशी-खुशी एक सामान्य अनुयायी बन जाएँगे? बिल्कुल नहीं। वे अभी भी इस बारे में सोचते रहेंगे कि कैसे पद प्राप्त करें और कैसे सभी को नियंत्रित करें। चाहे वे कहीं भी जाएँ, वे राजा की तरह शासन करना चाहते हैं। भले ही उन्हें बिना लोगों वाली जगह पर, भेड़ों के रेवड़ में रखा जाए तो वे तब भी रेवड़ का नेतृत्व करना चाहेंगे। अगर उन्हें बिल्लियों और कुत्तों के साथ रखा जाए तो वे बिल्लियों और कुत्तों के राजा बनना चाहेंगे और जानवरों पर शासन करना चाहेंगे। वे महत्वाकांक्षा से भरे हुए हैं, है ना? क्या ऐसे लोगों का स्वभाव दानवी नहीं है? क्या ये शैतान के स्वभाव नहीं हैं? शैतान ऐसी ही चीज है। स्वर्ग में शैतान परमेश्वर के बराबर खड़ा होना चाहता था और पृथ्वी पर फेंके जाने के बाद उसने हमेशा मनुष्य को नियंत्रित करने, मनुष्य से अपनी आराधना करवाने और अपने को परमेश्वर मानने के लिए मनुष्य को विवश करने का प्रयास किया। मसीह-विरोधी हमेशा लोगों को नियंत्रित करना चाहते हैं क्योंकि उनके पास शैतानी प्रकृति होती है; वे अपने शैतानी स्वभाव के अनुसार जीते हैं जो पहले से ही सामान्य लोगों की समझ की सीमाओं से परे जा चुका है। क्या यह थोड़ा असामान्य नहीं है? यह असामान्यता किस बात को संदर्भित करती है? इसका अर्थ है कि उनका व्यवहार सामान्य मानवता में नहीं पाया जाना चाहिए। तो, यह व्यवहार क्या है? इसे क्या नियंत्रित करता है? यह उनकी प्रकृति द्वारा नियंत्रित होता है। उनके पास एक दुष्टात्मा का सार है और वे सामान्य भ्रष्ट मानव जाति से भिन्न हैं। यही अंतर है। मसीह-विरोधी सत्ता और रुतबे की खोज में किसी भी हद तक जा सकते हैं, यह न केवल उनकी प्रकृति सार को उजागर करता है, बल्कि लोगों को यह भी दिखाता है कि उनका घिनौना चेहरा बिल्कुल शैतान और दानवों का चेहरा है। वे न केवल रुतबे के लिए लोगों से होड़ करते हैं बल्कि परमेश्वर से भी होड़ करने और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को अपना मानने का दुस्साहस भी करते हैं। वे तभी संतुष्ट होंगे जब परमेश्वर के चुने हुए लोग पूरी तरह से उनके नियंत्रण में होंगे। चाहे मसीह-विरोधी किसी भी कलीसिया या समूह में हों, वे पद प्राप्त करना चाहते हैं, सत्ता हासिल करना चाहते हैं और लोगों से अपनी बात मनवाना चाहते हैं। चाहे लोग इच्छुक और सहमत हों या नहीं, मसीह-विरोधी अंतिम निर्णय लेना चाहते हैं और चाहते हैं कि लोग उनकी बात मानें और उन्हें स्वीकार करें। क्या यह मसीह-विरोधियों की प्रकृति नहीं है? क्या लोग उनकी बात सुनने के लिए तैयार हैं? क्या वे उन्हें चुनते हैं और उनकी संस्तुति करते हैं? नहीं। लेकिन मसीह-विरोधी अभी भी अंतिम निर्णय लेना चाहते हैं। चाहे लोग सहमत हों या नहीं, मसीह-विरोधी उनकी ओर से बोलना और कार्य करना चाहते हैं, वे ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। वे अपने विचारों को अन्य लोगों पर थोपने की भी कोशिश करते हैं और यदि लोग इसे स्वीकार नहीं करते हैं तो मसीह-विरोधी उन्हें इसे स्वीकार करवाने के लिए अपना दिमाग खपाते हैं। यह क्या समस्या है? यह बेशर्मी और ढीठता है। इस तरह के लोग सच्चे मसीह-विरोधी होते हैं और चाहे वे अगुआ हों या नहीं, वे मसीह-विरोधी तो होते ही हैं। उनमें मसीह-विरोधी का प्रकृति सार होता है।

कुछ लोग हमेशा यह जानने को बहुत महत्व देते हैं कि कलीसिया के अगुआ कौन हैं, सुसमाचार फैलाने में कौन शामिल है, वे सभी कहाँ रहते हैं, उनके किसके साथ घनिष्ठ संबंध हैं, इत्यादि। शैतान के जासूसों की तरह, वे हमेशा इन मामलों में ताक-झाँक करते रहते हैं। वे हमेशा इन मामलों के बारे में क्यों चिंतित रहते हैं? बहुत से लोग उनके उद्देश्य समझ नहीं पाते हैं; उन्हें सिर्फ यह लगता है कि ये व्यक्ति थोड़े असामान्य हैं। ज्यादातर लोगों को इन चीजों में कोई दिलचस्पी नहीं होती; वे अपने कर्तव्यों में ही इतने व्यस्त रहते हैं कि उनके पास दखल देने का समय नहीं होता। वे अपने कर्तव्यों को करने और सत्य का अभ्यास करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, और उन्हें महसूस ही नहीं होता और उनका स्वभाव बदल जाता है—यह परमेश्वर का अनुग्रह है। हालाँकि, एक खास किस्म का व्यक्ति होता है जो कलीसिया से संबंधित सभी प्रकार के मामलों में ताक-झाँक करने और उनका पता लगाने के लिए विशेष रूप से उत्साही रहता है। जब वह किसी अगुआ से मिलता है तो पूछता है, “तुम लोग कलीसिया में उस फलां दुष्ट व्यक्ति से कैसे निपटे?” अगुआ जवाब देता है, “तुम्हें इससे क्या कि हम उससे कैसे निपटे? तुम इसमें ताक-झाँक क्यों कर रहे हो? क्या तुम उस व्यक्ति को जानते हो?” वह व्यक्ति कहता है, “मुझे परवाह है तभी पूछा। यह परमेश्वर के घर का मामला है। परमेश्वर के घर के सदस्यों के रूप में, हमें उत्साही होना चाहिए और उसके घर के मामलों पर पूरा ध्यान देना चाहिए। हम उनके प्रति उदासीन कैसे हो सकते हैं?” अगुआ उससे कहता है, “तुम्हें इस मामले में ताक-झाँक नहीं करनी चाहिए। धर्मोपदेश सुनने और सभाओं में भाग लेने पर ध्यान केंद्रित करो। तुम्हारा काम परमेश्वर के वचनों को खाना-पीना है। परमेश्वर में उचित रूप से विश्वास करना ही तुम्हारे लिए काफी है।” वह व्यक्ति जोर देता है, “यह ठीक नहीं है, मुझे चिंता करनी ही है।” चूँकि उसे कोई कुछ नहीं बताता, तो वह सोचने लगता है कि कहाँ जाकर ताक-झाँक करूँ। जब उच्च अगुआ उसके घर पर सहकर्मियों की बैठक आयोजित करते हैं, तो उसे लगता है कि अंदर जाना और शामिल होना थोड़ा अनुचित लगेगा, इसलिए वह पानी लाने के बहाने अंदर आकर पूछता है कि क्या उस दुष्ट व्यक्ति को निकाल दिया गया या रहने दिया गया। जब उसे कोई नहीं बताता तो वह बाहर जाकर दरवाजा थोड़ा-सा खोलता है और वहाँ खड़े होकर चुपके से सुनता है। क्या यह व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार नहीं है? हाँ, वह मानसिक रूप से बीमार है; बोलचाल की भाषा में, हम उसे “टाँग अड़ाने वाला” कहते हैं। ऐसे व्यक्ति की निश्चित रूप से महत्वाकांक्षाएँ होती हैं। वह अगुआ बनना चाहता है, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकता, इसलिए वह खुद को सांत्वना देने के लिए दूसरों के मामलों में दखल देता है, और साथ ही, यह सुनिश्चित करता है कि लोग देखें कि वह बहुत कुछ जानता है और उसके पास असाधारण अंतर्दृष्टि है। इस तरह, उसे भविष्य में अगुआ के रूप में चुना जा सकता है। अगुआ बनने के लिए वह हर चीज में भाग लेना चाहता है, हर चीज के बारे में पूछताछ करना चाहता है और हर चीज जानना चाहता है। उसका मानना है कि दिन-प्रतिदिन इन मामलों में शामिल होने से, भले ही वह अगुआ न बने, फिर भी वह चीजों का प्रभारी होगा और वह ऐसा कर सकता है कि लोग उसका सम्मान करें। उसे सत्य में जरा भी रुचि नहीं है; वह केवल दूसरों के मामलों में दखल देने की परवाह करता है—वह उन मामलों में ताक-झाँक करने में माहिर है जो वह जानना चाहता है। जहाँ कही भी समस्या होगी, वह वहाँ एक मक्खी की तरह भिनभिना रहा होगा। क्या ऐसे लोग घृणित नहीं हैं? वे इस हद तक उलझन में हैं, फिर भी वे काफी जीवंत हैं—वे बस कोई ढंग का काम करने के बारे में नहीं सोचते। वे अपने घर पर लोगों की मेजबानी करने का कर्तव्य निभाते हैं, फिर भी वे रसोई के फर्श को साफ करने के लिए तैयार नहीं हैं, भले ही वह गंदा हो। वे खुद को महत्वपूर्ण मामलों के प्रभारी मानते हैं और फर्श को साफ करना तो आम लोगों का काम है। वे ऐसी काबिलियत के होते हुए इस तरह के तुच्छ काम नहीं कर सकते। वे कोई वास्तविक काम बिल्कुल नहीं करते, वे वह काम नहीं कर सकते जो उनके अपने कर्तव्य का हिस्सा है, कोई भी कर्तव्य अच्छी तरह से नहीं निभा सकते, और ईमानदारी से या जमीनी स्तर पर काम नहीं करते; इसके बजाय, वे कलीसिया के काम में, साथ ही कलीसिया के अगुआओं, कार्यकर्ताओं और भाई-बहनों से जुड़े महत्वपूर्ण मामलों में ताक-झाँक करने के लिए उत्सुक रहते हैं। वे हर चीज पर अपनी राय देना चाहते हैं और अगर लोग उनकी बात सुनने को तैयार नहीं होते तो वे कहते हैं, “अगर तुम मेरी बात नहीं मानोगे, तो यह तुम्हारा ही नुकसान है!” क्या यह अनुचित नहीं है? (हाँ, है।) इसलिए, कुछ मसीह-विरोधी छिपे हुए हैं; यह जरूरी नहीं है कि उनका कोई रुतबा हो ही। इसके बिना भी वे अभी भी ऊर्जा से उछल-कूद कर रहे होते हैं। यदि उन्हें पद मिल जाता तो यह कितना बुरा होता? वे कितने ऊँचे उछल रहे होते? यहाँ तक कि यदि उछल-कूद करते हुए वे मर भी जाएँ तो उन्हें कोई शिकवा न होगा। मुझे बताओ, यदि ऐसे लोगों को अगुआ के रूप में चुना जाए तो क्या परमेश्वर के चुने हुए लोग सुख से जीवन जी सकते हैं? कुछ मसीह-विरोधी छिपे हुए होते हैं—इसका क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि मसीह-विरोधी, पद प्राप्त करने पर मसीह-विरोधी नहीं बनते; वे शुरू से ही मसीह-विरोधी थे। यह सिर्फ इसलिए है क्योंकि लोगों का आध्यात्मिक कद छोटा था और वे उन्हें पहचान नहीं पाए, या शायद कुछ कलीसियाएँ सत्य का अनुसरण करने वालों को नहीं ढूँढ़ पाईं, इसलिए उन्होंने इन उत्साही लोगों को अपने अगुआ के रूप में चुना जो चीजों की योजना बना सकते थे और काम कर सकते थे। अभी के लिए, इस बात पर चर्चा न करके कि उन्हें अगुआ के रूप में चुनना सही था या गलत, आओ, इस बात पर ध्यान केंद्रित करें कि जब यह पता चल जाता है कि वे मसीह-विरोधी हैं तब क्या किया जाना चाहिए। उन्हें उजागर किया जाना चाहिए और नकार देना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति को मसीह-विरोधी के रूप में पहचान लिया गया है और उसे उसके पद से हटा दिया गया है तो क्या ऐसे लोगों को भविष्य में फिर से अगुआ के रूप में चुना जाना चाहिए? (नहीं, उन्हें नहीं चुना जाना चाहिए।) क्यों? (उनकी प्रकृति नहीं बदलेगी।) किसी भी ऐसे व्यक्ति को जो मसीह-विरोधी के रूप में पहचान लिया जाता है, उसे फिर से अगुआ के रूप में नहीं चुना जाना चाहिए क्योंकि उसका प्रकृति सार नहीं बदल सकता। मसीह-विरोधी केवल शैतान के लिए काम करते हैं; वे केवल शैतान के गुलाम हैं। वे सत्य के लिए न कभी कुछ करेंगे, न कभी कुछ कहेंगे। मसीह-विरोधियों का सार परमेश्वर के प्रति शत्रुता का भाव रखना, सत्य से विमुख होना, और सत्य नकारना और सत्य के साथ अवमाननापूर्ण व्यवहार करना है। उनकी प्रकृति नहीं बदलेगी। यदि इस तरह के लोग पहले अगुआ नहीं रहे हैं, तो उन्हें नहीं चुना जाना चाहिए, और यदि वे पहले अगुआ थे लेकिन हटा दिए गए थे तो क्या वे भविष्य में फिर से अगुआ बनने पर बदल जाएँगे? (नहीं, वे नहीं बदलेंगे।) वे अभी भी मसीह-विरोधी हैं। उनका प्रकृति सार इसे निर्धारित करता है।

II. मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को फुसलाने का विश्लेषण

अभी-अभी हमने लोगों को गुमराह करने वाले मसीह-विरोधियों की अभिव्यक्तियों पर चर्चा की। गुमराह करने और फुसलाने का मतलब लगभग एक ही है, लेकिन वे प्रकृति और तरीके दोनों में अलग हैं। गुमराह करने का मतलब है लोगों को बहकाने के लिए झूठे दिखावों का उपयोग करना और उन्हें यह विश्वास दिलाना कि वे सच्चे हैं। फुसलाने का मतलब है समझते-बूझते हुए कुछ तरीकों का उपयोग करके लोगों को किसी खास व्यक्ति की बात सुनने और उसके मार्ग का अनुसरण करने के लिए मजबूर करना—उनका इरादा बिल्कुल स्पष्ट होता है। गुमराह करने और फुसलाने में लोगों को गुमराह करने के लिए सही प्रतीत होने वाले शब्दों का उपयोग करना, ऐसी बातें कहना जो मानवीय धारणाओं के अनुरूप हैं और लोगों द्वारा खुशी-खुशी स्वीकार की जाती हैं, शामिल हैं ताकि लोगों को गुमराह किया जा सके। लोग अनजाने में उनमें विश्वास करना और उनका अनुसरण करना, उनके साथ खड़े होना और उनके गिरोह में शामिल होना शुरू कर देते हैं। इस तरह से, मसीह-विरोधी लोगों को लोगों के एक सही समूह से दूर ले जाकर अपने खेमे में खींच लेते हैं। संक्षेप में, अगर लोग मसीह-विरोधियों द्वारा किए गए ऐसे कार्यों को स्वीकार कर लेते हैं, तो वे उन पर विश्वास कर सकते हैं और उनकी आराधना कर सकते हैं, और फिर मसीह-विरोधियों की कही गई हर बात को स्वीकार कर सकते हैं और मान सकते हैं, जिससे वे बिना सोचे-समझे उनका अनुसरण करना शुरू कर सकते हैं। क्या उन्हें बहकाया और धोखा नहीं दिया गया है? कुछ मसीह-विरोधी लोगों से मेलजोल और बात करते समय उन्हें गुमराह करने और फुसलाने के अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए अक्सर कुछ चालों का उपयोग करते हैं, जिसके फलस्वरूप कलीसिया में विभाजन हो जाता है, गुट और गिरोह बन जाते हैं। मिसाल के तौर पर, अगर कोई मसीह-विरोधी दक्षिण से है और वह किसी दूसरे दक्षिणवासी से मिलता है, तो मसीह-विरोधी कह सकता है, “हम दोनों दक्षिणवासी हैं : हम एक ही नदी का पानी पीकर बड़े हुए हैं, और हम एक ही भाषा बोलते हैं। उत्तरवासी हमारी भाषा नहीं बोलते हैं—उनके करीब हो पाना नामुमकिन है! वैसे तो हम सभी एक ही परमेश्वर में विश्वास करते हैं, लेकिन उत्तरवासियों के जीवन की आदतें हमारी आदतों से अलग हैं, और हमारे व्यक्तित्व बेमेल हैं। हमारे पास बात करने के लिए कुछ भी नहीं है। इसलिए, तुम और मैं एक परिवार जैसे हैं और हमें एकजुट रहना होगा।” सुनने में यह उचित लग सकता है, मानो वे सिर्फ एक खास नजरिया व्यक्त कर रहे हों, लेकिन वे इसे एक कारण और उद्देश्य से कहते हैं, और लोगों में सूझ-बूझ होनी चाहिए। दरअसल, मसीह-विरोधी जो कहता है वह उसके दिल की बात नहीं होती है; वह गिरगिट है, वह जिस व्यक्ति से बात कर रहा होता है उसी के मुताबिक अपने शब्दों को समायोजित कर लेता है। जब मसीह-विरोधी उत्तरवासियों से मिलता है, तो वह कह सकता है, “उत्तर शानदार है; वहाँ की हवा ताजी है। वैसे तो मेरा जन्म दक्षिण में हुआ, लेकिन मैं उत्तरी पानी पीकर बड़ा हुआ हूँ। यह और कुछ नहीं तो कम से कम हमें पास तो लाता ही है!” जब उत्तरवासी यह सुनते हैं, तो उन्हें लग सकता है कि मसीह-विरोधी एक बहुत अच्छा व्यक्ति है और वे उससे जुड़ना शुरू कर देते हैं। मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करने और उन्हें फुसलाने में अत्यंत निपुण होता है और वह कलीसिया को विभाजित करने के लिए तरह-तरह की चालों का उपयोग करता है जिससे दक्षिणवासी और उत्तरवासी अलग-अलग समूह बना लेते हैं, और ये सबकुछ मसीह-विरोधी के अपने फायदे के लिए होता है ताकि वह एकजुट होने और अपनी एक फसादी शक्ति बनाने का अपना लक्ष्य हासिल कर सके। खास तौर पर, कलीसिया के चुनावों के दौरान, अगर मसीह-विरोधी देखता है कि किसी उत्तरी भाई या बहन के निर्वाचित होने की संभावना है, तो वह गुप्त कार्यों में व्यस्त हो जाता है, चोरी-चुपके वोटों को बदल देता है, और आखिर में, सभी निर्वाचित कलीसियाई अगुआ और उपयाजक दक्षिण के होते हैं। मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करने और फुसलाने के लिए सारी हदें पार कर जाते हैं, जिससे विभाजन होते हैं और गुट बनते हैं और वे कलीसिया को विभाजित करने और नियंत्रित करने के लिए इन तरीकों का उपयोग करते हैं। ऐसा करने में उनका क्या उद्देश्य है? (अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करना।) स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की प्रकृति क्या है? इसका मतलब है मसीह का कट्टर विरोधी होना, परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर अपना होने का दावा करना, और परमेश्वर के समकक्ष के रूप में उसके विरुद्ध खड़ा होना। क्या यह परमेश्वर के विरुद्ध प्रतिद्वन्द्वी प्रदर्शन का मंचन करने जैसा नहीं है? (हाँ।) यह बिल्कुल वही है। तो, मसीह-विरोधियों के इस तरह से कार्य करने के क्या परिणाम होते हैं? उनके क्रियाकलाप कलीसिया के कार्य को गंभीर रूप से अस्त-व्यस्त कर देते हैं, और वे ऐसे कुछ हैं जो सीधे परमेश्वर के स्वभाव को अपमानित करते हैं। परमेश्वर क्रोध से उनका जवाब देगा, और ऐसे सभी मसीह-विरोधियों को निश्चित रूप से सजा और विनाश का सामना करना पड़ेगा—इसमें कोई शक नहीं है। व्यवस्था के युग में, मूसा का न्याय करने वाले 250 अगुआओं को प्रत्यक्ष सजा मिली। अनुग्रह के युग में, जिन लोगों ने प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ाया, उन्हें भी प्रत्यक्ष सजा का सामना करना पड़ा था; उन्हें अभिशाप दिया गया और उनका बुरा अंत हुआ। यह परमेश्वर का विरोध करने वाले मसीह-विरोधियों का परिणाम है और उन लोगों का अनिवार्य अंत है जो परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं।

कलीसिया को विभाजित करने की खातिर लोगों को फुसलाने के लिए मसीह-विरोधी अलग-अलग तरीकों का उपयोग कैसे करते हैं? सबसे पहले, मसीह-विरोधी उन लोगों को फुसलाएगा जिनके पास गुण हैं और जो वाक्पटुता से बोल सकते हैं, और वह पहले इन लोगों के सामने अपनी अच्छी छवि पेश करेगा और दोस्त बनाकर अपनी खुद की शक्ति की सीमा को प्रसारित करेगा। वह गरीब लोगों या कम काबिलियत वालों या अपेक्षाकृत निष्कपट लोगों पर ध्यान नहीं देगा या यहाँ तक कि उन्हें अलग-थलग भी कर सकता है। वह समाज में रुतबे और धन-दौलत वाले सभी लोगों को जीतने का एक तरीका सोच लेगा, जबकि वे भाई-बहन जो ईमानदारी से खुद को खपाते हैं, लेकिन कम पैसे वाले हैं, या वे जो निचले सामाजिक रुतबे के हैं, जिनके पास कहने के लिए कोई शक्ति नहीं है, और वे दूसरों द्वारा आसानी से डराए-धमकाए जाते हैं, उन्हें कलीसिया में दूसरी-श्रेणी का नागरिक निर्दिष्ट किया जाएगा। इस तरह, कुछ दर्जन सदस्यों वाली कलीसिया अलक्षित रूप से दो श्रेणी के लोगों में विभाजित हो जाएगी। इसके लिए कौन जिम्मेदार है? (मसीह-विरोधी।) मसीह-विरोधी ऐसी चीजें करेंगे। अगर किसी अच्छे अगुआ को, जो सही मायने में सत्य समझता है, कलीसिया में इस तरह की स्थिति का पता चलता है, तो वह उसे सुलझाने के लिए सत्य का उपयोग करेगा। वह कलीसिया में लोगों को श्रेणी के अनुसार अलग करने या उनके सामाजिक रुतबे के आधार पर वर्गीकृत करने की अनुमति नहीं देगा, और ना ही वह कलीसिया को विभाजित करेगा। वह यह सुनिश्चित करेगा कि सभी भाई-बहन, चाहे वे कहीं से भी आते हों या उनका कोई सामाजिक रुतबा हो या ना हो, परमेश्वर के वचनों में और परमेश्वर के सामने एकजुट रहें। दूसरी तरफ, मसीह-विरोधी ना सिर्फ ऐसी समस्याओं को नहीं सुलझाते हैं, बल्कि इसके बजाय अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए लोगों के भ्रष्ट स्वभावों का उपयोग करते हैं। वे सामाजिक रुतबे और धन-दौलत वाले लोगों की तलाश करते हैं और उन्हें फुसलाते हैं। वे उन्हें कैसे फुसलाते हैं? वे कह सकते हैं, “तुम्हारा सामाजिक रुतबा परमेश्वर से मिला आशीर्वाद है जिसे परमेश्वर ने नियत किया है। तुम्हें परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य पूरा करने के लिए अपनी परिस्थिति का उपयोग करना चाहिए। अब मैं एक अगुआ हूँ, और अपने विश्वास के लिए इस इलाके में काफी मशहूर हूँ। मेरा परिवार मुझे बहुत सताता है, और मेरी अगुवाई की भूमिका से कुछ जोखिम जुड़े हुए हैं। मुझे खुद को सुरक्षित रखने के लिए तुम जैसे लोगों की जरूरत है। अगर तुम मेरे लिए यह कर सकते हो, तो तुम्हें भविष्य में बहुत आशीर्वाद मिलेगा, और तुम जीवन में तेजी से प्रगति करोगे!” इस तरह से मसीह-विरोधी लोगों को फुसलाते हैं और उन्हें उनका अनुसरण करने के लिए लुभाते हैं। अगर कोई मसीह-विरोधी किसी को पसंद करने लगता है या उपयोगी समझता है, तो वह उसके लिए आसान कर्तव्य या ऐसे कर्तव्यों की व्यवस्था करता है, जहाँ वह सुर्खियों में रह सके और मसीह-विरोधी उसे बढ़ावा देने का पूरा प्रयास करता है। वह इस बात की परवाह नहीं करता है कि वह व्यक्ति परमेश्वर के घर में लोगों का उपयोग करने के सिद्धांतों को पूरा करता है या नहीं। जब तक इस व्यक्ति के पास सामाजिक रुतबा रहता है और वह उसके लिए उपयोगी हो सकता है, तब तक वह उसे फुसलाता रहता है। अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए, मसीह-विरोधी समाज में धन-दौलत और रुतबे वाले लोगों के पास आते हैं, उनकी खुशामद करते हैं और उन्हें फुसलाते हैं, और साथ ही साथ, वे अपने लिए बेईमानी से फायदे बटोरते रहते हैं। उनके पास पैसे, शक्ति और रुतबे वाले लोगों को फुसलाने का एक दूसरा तरीका भी है, और वह है उन्हें तुष्ट करना। ऐसे लोग अक्सर कलीसिया में गलत कार्यों में शामिल रहते हैं, और भाई-बहनों को निरुत्साहित करते हैं और कलीसियाई जीवन में बाधा डालते हैं। मसीह-विरोधी खुशी-खुशी यह सब देखते रहते हैं और उन्हें जो भी गलत कार्य करना पसंद हो, उसे करने देते हैं। मसीह-विरोधी के तुष्ट करने का क्या उद्देश्य है? यह अब भी उन्हें फुसलाना और इसके बाद उनसे मुनाफा कमाना है। यहाँ तक कि मसीह-विरोधी यह कहने का दिखावा भी करते हैं, “हालाँकि तुमने मुझे अगुआ के रूप में चुना है, और तुम्हारी अगुवाई करना मेरी जिम्मेदारी है, लेकिन यह कलीसिया अकेली मेरी नहीं है। मैं इस कलीसिया में अकेले फैसले नहीं ले सकता। तुम्हें भी इसमें मदद करनी होगी; अगर कुछ भी होता है, तो तुम भी अपनी राय दे सकते हो—सहयोग करने का यही मतलब होता है।” वे यह बात उन लोगों से कहते हैं जो दौलतमंद, प्रभावशाली और उनके लिए फायदेमंद हैं, और वे इन व्यक्तियों को फुसलाने का पूरा प्रयास करते हैं, जब तक कि वे उस हद तक नहीं पहुँच जाते जहाँ वे उन्हें नियंत्रित कर सकें। हालाँकि, जो लोग ईमानदारी से परमेश्वर में विश्वास करते हैं, लेकिन उनके पास पैसा, सामाजिक रुतबा या किसी स्पष्ट उपयोगिता का अभाव होता है, वे उन्हें अलग-थलग करने, उन पर आक्रमण करने या उन्हें बस अनदेखा करने के लिए अत्यधिक प्रयास करते हैं। उनकी अवहेलना का क्या मतलब है? “अगर हम कुछ लोग एकजुट रहते हैं और लोहे का गढ़ बन जाते हैं, तो मेरा अंदाजा है कि तुम आम लोग कोई उल्लेखनीय प्रभाव नहीं डाल पाओगे। अगर तुम लोग निष्कपट व्यवहार करते हो और मेरे शब्दों को सुनते हो, तो मैं तुम्हें विश्वास करते रहने की अनुमति दूँगा। लेकिन अगर तुम लोगों ने हर बात में गलतियाँ ढूँढना, मेरे बारे में अपनी राय व्यक्त करना, या मेरे बारे में उच्च अधिकारियों को रिपोर्ट करना जारी रखा, तो मैं तुम लोगों को सजा दूँगा और निष्कासित कर दूँगा!” यही उनकी योजना है। कुछ लोगों में सूझ-बूझ का अभाव होता है और वे डर जाते हैं और कहते हैं, “हमें उसे नाराज नहीं करना चाहिए। उसने अपना खुद का गुट बना लिया है, और हम ऐसा नहीं कर सकते हैं। हमारे शब्दों का कोई खास महत्व नहीं है, और अगर हम गलती से ऐसा कुछ कह देते हैं जिससे वह परेशान हो जाता है, और अगुआ वाकई हमें निष्कासित कर देता है, तो हम परमेश्वर में विश्वास करने का अपना अवसर खो देंगे।” ये लोग बुरी तरह से डर गए हैं। जैसे-जैसे मसीह-विरोधी लोगों को फुसलाते हैं, उनके इस व्यवहार में एक दुष्ट, शातिर और दुर्भावनापूर्ण स्वभाव निहित होता है। लोगों को फुसलाने के पीछे उनका क्या उद्देश्य है? यह उनकी स्थिति को मजबूत करना भी है। गुट और गिरोह बनाने के पीछे उनका क्या उद्देश्य है? यह उनकी शक्ति की सीमा को विस्तारित करने, लोगों को उनका समर्थन करने के लिए मजबूर करने, अपनी शक्ति और रुतबे को और भी ज्यादा सुरक्षित करने के लिए है। क्या तुममें से किसी ने ऐसे मामलों का सामना किया है? जब कोई मसीह-विरोधी किसी कलीसिया को नियंत्रित करता है, तो कोई भी व्यक्ति जिसके पास पैसा या रुतबा है या जो रोबदार है, और उसके इर्द-गिर्द घूमता है, तो दोनों मिलकर नियंत्रण अपने हाथों में ले लेते हैं और एक गुट, चार, पाँच या छः लोगों का एक गिरोह बन जाते हैं। किसी को भी उनके मुद्दों को उजागर करने की अनुमति नहीं होती। मसीह-विरोधी इन लोगों को फुसलाता है क्योंकि उन्हें नियंत्रित करना उसके लिए चुनौतीपूर्ण होता है। उसे उन्हें फुसलाकर अपने पास लाना होगा, ताकि वे उसके सहायक बन जाएँ और इस तरह से उसकी स्थिति सुरक्षित हो जाएगी। इसके अलावा, इन लोगों का मूल्य होता है जिसका मसीह-विरोधी फायदा उठा सकता है। उन्हें फुसलाने का उसका तरीका, एक तरह से, उन्हें शांत करने और उन्हें उसके पद के लिए खतरा बनने से रोकने का एक साधन है।

मसीह-विरोधी द्वारा लोगों को फुसलाने के इस पहलू के बारे में, अभी-अभी हमने दो अभिव्यक्तियों पर चर्चा की। क्या तुम लोगों की कलीसिया में ऐसी चीजें होती हैं? मुझे बताओ, क्या इस तरह की चीज मौजूद है? (हाँ।) यह निश्चित रूप से मौजूद है। तो, लोगों को फुसलाने से जुड़ी सारी चीजों में ऐसी कौन-सी दूसरी कुछ अभिव्यक्तियाँ हैं जिनमें मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को फुसलाने की प्रकृति निहित होती है? उन्हें फुसलाने के क्या परिणाम होते हैं? मसीह-विरोधी लोगों को क्यों फुसलाना चाहते हैं? अगर उन्होंने लोगों को नहीं फुसलाया, तो क्या वे लोगों को नियंत्रित करने का अपना लक्ष्य हासिल कर पाएँगे? (वे नहीं कर पाएँगे।) उन्हें अपने सामने ऐसे लोगों को लाना होगा जो उनकी बात सुनते हैं और उनकी इच्छा के अनुरूप होते हैं, ताकि वे एक पद हासिल कर सकें और उनके पास अधिकार का उपयोग करने के लिए वस्तुएँ हों। अगर उनके आसपास ऐसा कोई नहीं है जो उनकी बात सुने, तो क्या वे रुतबे और शक्ति की अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने में असमर्थ नहीं होंगे? इसलिए, जब वे ऐसे हर तरह के व्यक्ति को फुसला लेते हैं, जिन्हें फुसलाया जा सकता है, सिर्फ तभी वे पद और शक्ति जीत पाते हैं। वे उन लोगों से कैसे निपटते हैं जिन्हें फुसलाया नहीं जा सकता है? (वे उन्हें अलग-थलग कर देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं।) वे उन पर आक्रमण करना और उन्हें अलग-थलग करना शुरू कर देते हैं। क्या ऐसे मसीह-विरोधी नहीं हुए हैं जिन्होंने कलीसिया में उन लोगों को तथाकथित “लेखा-परीक्षकों” में बदल दिया जिन्हें फुसलाया नहीं जा सका? कलीसिया द्वारा जारी किए गए उपदेश, भजन और परमेश्वर के वचनों की किताबें इन लोगों को दी ही नहीं जाती हैं, या उन्हें लंबे समय तक सभाओं के बारे में बताया नहीं जाता है। ऐसी चीजें निश्चित रूप से मौजूद हैं, और ये सभी चीजें मसीह-विरोधी द्वारा की जाती हैं। मसीह-विरोधियों द्वारा जिन लोगों पर आक्रमण किया गया और जिन्हें अलग-थलग किया गया, उनके नाम कलीसिया द्वारा नहीं काटे गए हैं, वे अपनी इच्छा से छोड़कर नहीं गए हैं, और उन्होंने स्वेच्छा से सभाओं में शामिल होना बंद नहीं किया है। वे सभी परमेश्वर में ईमानदार विश्वासी हैं, लेकिन क्योंकि उनमें मसीह-विरोधियों के बारे में कुछ सूझ-बूझ है, इसलिए उन्हें अक्सर अलग-थलग कर दिया जाता है और उन्हें परमेश्वर के वचनों की किताबें या उपदेश, भजन और कलीसिया द्वारा जारी की गई तरह-तरह की कार्य व्यवस्थाएँ तुरंत नहीं मिल पातीं, और ना ही वे परमेश्वर के वचनों को खा और पी सकते हैं। दूसरी तरफ, जो लोग मसीह-विरोधियों के नीचे हैं, यानी जो उनकी बात सुन पाते हैं, जो उनके द्वारा फुसलाए जा चुके हैं और उनके आगे आत्मसमर्पण कर चुके हैं, उन्हें परमेश्वर के घर द्वारा बाँटी गई तरह-तरह की किताबें और वीडियो देने में प्राथमिकता दी जाती है, और वे इस लाभदायक व्यवहार का आनंद लेते हैं। इस प्रकार मसीह-विरोधियों के व्यवहार और क्रियाकलापों के कारण कलीसिया में अराजकता फैल जाती है और वह विभाजित हो जाती है, और लोगों के दिलों में बेचैनी होने लगती है।

क्या ऐसी कोई स्थिति है, जिसकी तलाश मसीह-विरोधी लोगों को फुसलाने के लिए करते हैं? क्या वे उन लोगों को फुसलाते हैं, जो सत्य से प्रेम करते हैं और ईमानदारी से परमेश्वर के प्रति समर्पण करते हैं? (नहीं।) जो लोग सत्य से प्रेम करते हैं और परमेश्वर के प्रति समर्पण करते हैं, उनमें कुछ सूझ-बूझ होती है, उन्हें फुसलाया नहीं जा सकता है, और वे मसीह-विरोधियों का अनुसरण नहीं करेंगे। तो, मसीह-विरोधी किसे फुसलाते हैं? अपने दिलों में, मसीह-विरोधी सबसे ज्यादा उन लोगों की तरफदारी करते हैं जो रुतबे वाले लोगों की खुशामद करने में अच्छे होते हैं, जो खुद को पसंद करवाने के लिए खुशामद करने और लोगों से चिकनी-चुपड़ी बातें करने में अच्छे होते हैं, और उन लोगों की तरफदारी करते हैं जिन्होंने बुरी चीजें की हैं और वे निष्कासित होने से डरते हैं और इसलिए मसीह-विरोधी को खुश करने का भरसक प्रयास करते हैं। मसीह-विरोधी लोगों को फुसलाने और उनके दिल जीतने के लिए उनकी रक्षा करने की स्थिति का उपयोग करते हैं और उन्हें अपने पास आने देते हैं। सत्य को नहीं समझने वाले नए विश्वासियों के अलावा मसीह-विरोधी जिन लोगों को फुसलाते हैं उनमें वे लोग वे होते जो सत्य से प्रेम नहीं करते। क्या सत्य से प्रेम नहीं करने वाले सभी लोगों के पास अंतरात्मा और विवेक होता है? उनमें से कोई भी अच्छा नहीं है, और परमेश्वर ऐसे लोगों को नहीं चुनता है। मसीह-विरोधी इन लोगों को फुसलाते हैं और एक भांड की तरह उनकी अगुवाई करते हैं। यहाँ तक कि वे यह भी सोचते हैं कि उन्होंने एक आधिकारिक पद हासिल कर लिया है और उनके पास रुतबा है, और वे अपने दिलों में खास तौर से संतुष्ट होते हैं। क्या यह बेशर्मी नहीं है? मसीह-विरोधी और किस तरह के लोगों को फुसलाते हैं? (अपेक्षाकृत दुष्ट मानवता वाले लोगों को।) बिल्कुल सही कहा, बुरे लोगों को। मसीह-विरोधी बुरे लोगों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं? वे उनकी रक्षा करते हैं। मिसाल के तौर पर, मान लो कि कलीसिया में कोई बुरा व्यक्ति है, और सभी भाई-बहन रिपोर्ट करते हैं कि यह व्यक्ति खास तौर पर बुरा है, जब भी वह आसपास होता है, तो कलीसिया में अशांति फैलाता है, सभी के कर्तव्य करने में बाधा डालता है, और कलीसिया के कार्य में बाधा डालता है। जब तक उसे कोई कर्तव्य करने के लिए दिया जाएगा, तब तक कलीसिया के कार्य को नुकसान होता रहेगा। लेकिन मसीह-विरोधी ऐसे बुरे लोगों को उपयोगी मानते हैं और अपनी सेवा करवाने के लिए उन्हें फुसलाकर अपनी तरफ कर लेते हैं। मसीह-विरोधी बुरे लोगों को निष्कासित नहीं करते हैं; बल्कि वे उनकी रक्षा करते हैं। अगर कुछ बुरे लोग मसीह-विरोधी का समर्थन नहीं करते या उन्हें पहचान लेते हैं—तो वह उनसे निपटेगा। जब तक बुरा व्यक्ति मसीह-विरोधी की खुशामद करता रहता है, उसका समर्थन करता रहता है, और उसका विरोध नहीं करता है, तब तक वह अपनी खुद की शक्ति को मजबूत करने के लिए उसे फुसलाता रहता है और उसे जीत लेता है। अब, मसीह-विरोधी ऐसे लोगों के साथ कैसे मिलजुलकर रह सकता है जो सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं? उनके बातचीत करने का तरीका वास्तव में एक दूसरे की खुशामद करना और चिकनी-चुपड़ी बातें करना है। मसीह-विरोधी जहाँ भी जाते हैं, ये बुरे लोग मक्खियों की तरह झुंड बनाकर उनके साथ रहते हैं। वे सत्य के बारे में संगति करने के लिए निश्चित रूप से इकट्ठा नहीं होते हैं, क्योंकि वे सभी इसके प्रति विमुख होते हैं, और इनमें से कोई भी सत्य के बारे में संगति करके मुद्दों को सुलझाने का प्रयास नहीं करता है। वे जो भी चीजें कहते हैं वे अविश्वासियों द्वारा कही गई चीजें होती हैं, ज्यादातर वे गपशप करके फूट डालने में, दूसरों को नीचा दिखाने और खुद को ऊपर उठाने में, और लोगों को सजा देने के तरीकों पर सलाह करने में लगे रहते हैं। इसके अलावा, वे इस बारे में अध्ययन करते हैं कि परमेश्वर के घर से कैसे चौकस रहना है, इस पर चर्चा करते हैं कि ऊपरवाले का सामना कैसे करना है, अगर कोई अपने मुद्दों की रिपोर्ट करना चाहता है, तो इस बात को पहले से कैसे जान लेना है और जान लेने के बाद प्रतिक्रिया कैसे देनी है। ये वे मुद्दे हैं जिन पर बुरे लोगों का यह गिरोह चर्चा करता है। जब वे एक साथ होते हैं, तो वे कभी भी अपने कर्तव्य करने जैसी चीजों के बारे में संगति नहीं करते हैं, और कभी भी मुद्दों को सुलझाने के लिए सत्य के बारे में संगति नहीं करते हैं। मिसाल के तौर पर, वे कभी भी जायज मामलों पर चर्चा नहीं करते हैं, जैसे कि उन भाई-बहनों को सहारा देना और उनकी मदद करना जो नकारात्मक और कमजोर हो गए हैं और जिनके पास अपने कर्तव्यों को करने की ऊर्जा नहीं है, न ही वे कलीसिया के कार्य के कुछ पहलुओं की प्रभावशीलता को सुधारने के लिए हल और मार्ग ढूँढने पर चर्चा करते हैं। वे इस बारे में बात करते हैं कि ऊपरवाले को कैसे धोखा दिया जाए और परमेश्वर के घर को कैसे धोखा दिया जाए, और यह सुनिश्चित करते हैं कि परमेश्वर के घर को उनके बारे में तथ्यों का पता ना चले। एक बार जब यह पता चल जाता है कि कोई व्यक्ति ऊपरवाले के संपर्क में है या उसने उनकी परिस्थिति के बारे में रिपोर्ट कर दी है, तो वे इसे अपनी स्थिति के लिए खतरा और अपने मामलों के लिए विनाशकारी मानने लगते हैं। वे इस बारे में लगातार छानबीन करते हैं कि कौन जिम्मेदार है, वे संदिग्धों को ढूँढते हैं, और उन्हें ढूँढ लेने पर वे उस व्यक्ति को सबसे अलग कर देते हैं, उसे कहीं और स्थानांतरित कर देते हैं, और फिर उनकी परिस्थिति के बारे में ऊपरवाले को रिपोर्ट करने से सभी को रोकने के आदेश जारी कर देते हैं। इससे सुनिश्चित हो जाता है कि कोई भी उनके बारे में रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं करे। इस तरह से मसीह-विरोधी कलीसिया पर पूरा नियंत्रण हासिल कर लेते हैं। ऊपरवाले के पास तब तक यह जानने का कोई तरीका नहीं होता है कि वे पर्दे के पीछे कौन-सा कुकर्म कर रहे हैं, जब तक कि ऊपरवाले को इस परिस्थिति का पता नहीं चल जाता है और वह उनकी कमजोरी को देख नहीं लेता है, और फिर वह उनकी छानबीन का आदेश देता है और आखिर में, उन्हें बदल देता है या निष्कासित कर देता है। मसीह-विरोधी और बुरे लोगों का यह समूह कुछ ही महीनों में कलीसिया के कार्य को तबाह कर सकता है, और भाई-बहनों को एक दूसरे पर शक करने, एक दूसरे को गुप्त रूप से कमजोर करने, एक दूसरे को उजागर करने और एक दूसरे पर आक्रमण करने के लिए उकसाने का कारण बन सकता है, जिससे कलीसिया विभाजित हो सकती है। यह मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को गुमराह करने और कलीसिया का नियंत्रण ले लेने का परिणाम है। इस तरह से मसीह-विरोधी उन सभी को गुमराह कर देते हैं जो सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं और यहाँ तक कि कलीसिया को नियंत्रित करने के लिए कुछ उपयोगी बुरे लोगों को भी फुसलाते हैं, जिससे उनकी अपनी स्थिति और अधिकार मजबूत हो जाता है। अगर बुरे लोग उनकी बात सुनते हैं, तो वे उनकी रक्षा करते हैं। अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो पहले वे बुरे लोगों से निपटते हैं। अगर बुरे लोग उनका अनुसरण करते हैं और उन्हें भर्ती किया और फुसलाया जा सकता है, तो वे उन्हें अपने अनुचर बनने देते हैं, बुरी चीजें करने के लिए अपने हाथ और आँखें बनने देते हैं, भाई-बहनों में घुसपैठ करते हैं और यह पता लगाते हैं कि उनके विरुद्ध किसे आपत्ति है, कौन उनके क्रियाकलापों को पहचानता है, उनके कौन-से बुरे कार्यों का पता चल चुका है, और कौन हमेशा अपने मुद्दों की रिपोर्ट करने के लिए ऊपरवाले से संपर्क करना चाहता है। मसीह-विरोधी और बुरे लोग उन मामलों की खास तौर से छानबीन करते हैं जिनके बारे में उन्हें सबसे ज्यादा चिंता रहती है। वे अक्सर मिलकर जवाबी उपायों पर चर्चा करते हैं और उन्हें पहचान सकने या उन पर शक कर सकने वाले लोगों को दुश्मन मान लेते हैं। वे आज एक व्यक्ति को दंडित करने के बहाने ढूँढ़ते हैं और कल उन्हें किसी दूसरे व्यक्ति को दंडित करने की शक्ति मिल जाती है; यहाँ तक कि वे इन व्यक्तियों को बहिष्कृत और निष्कासित करने के लिए परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उकसाने के लिए तरह-तरह के कारणों और बहानों का भी उपयोग करते हैं। एक बार जब मसीह-विरोधी अगुआ या कार्यकर्ता बन जाते हैं, तो वे इन क्रियाकलापों में व्यस्त हो जाते हैं। कुछ ही महीनों में, वे कलीसिया में अराजकता फैला सकते हैं, और यहाँ तक कि नए विश्वासियों की कलीसिया के प्रबल उत्साह को ऐसे बुझा भी सकते हैं जैसे आग को पानी डालकर बुझाया जाता है। इसलिए, मसीह-विरोधी सही मायने में परमेश्वर के दुश्मन हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के दुश्मन हैं। यह बिल्कुल भी बढ़ा-चढ़कर कही गई बात नहीं है—यह अत्यंत सटीक है! जिस कलीसिया में मसीह-विरोधियों या बुरे लोगों के पास शक्ति होती है, वहाँ का माहौल खराब हो जाता है। वहाँ कोई कलीसियाई जीवन नहीं होता है, परमेश्वर के वचनों को सामान्य रूप से खाया और पीया नहीं जाता है, और सत्य की संगति करने का माहौल बिल्कुल नहीं होता है। बल्कि, वह साजिश और निरंकुश दुराचार से भरी होती है। शैतान के पास नियंत्रण होने का यही मतलब है। जब शैतान के पास नियंत्रण हो, तो क्या कोई अच्छा परिणाम हो सकता है? इससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर सिर्फ संकट ही आ सकता है—यह बिना किसी शक के पूरी तरह निश्चित है।

कुछ मसीह-विरोधी, जब कलीसिया में अगुआ की भूमिका संभालते हैं, तो सबसे पहले यह छानबीन करते हैं कि कलीसिया में इससे पहले अक्सर किसने ऊपरवाले को मुद्दों की रिपोर्ट की है। वे ऐसे लोगों को अपने से दूर रखना चाहते हैं, और उनके घर पर नहीं ठहरते हैं, चाहे वे उनकी मेजबानी करने में समर्थ क्यों ना हों। अगर कोई व्यक्ति लोगों की खुशामद करने में अच्छा होता है, लगातार अगुआ के इर्द-गिर्द घूमता रहता है, और खुद को पसंद करवाने के लिए खुशामद करता है, तो वे उस व्यक्ति के घर में ठहरने की योजना बनाते हैं। कोई कहता है, “वे दो बहनों की मेजबानी कर रहे हैं।” मसीह-विरोधी जवाब देता है, “यह अच्छा नहीं है, उन्हें कहीं और भिजवा दो।” वह व्यक्ति कहता है, “तुम लोगों को अपनी मर्जी के मुताबिक इधर-उधर नहीं भेज सकते; वे दो बहनें उस जगह के लिए बहुत उपयुक्त हैं—उन्हें कहीं और भेजने से उनके कर्तव्यों का प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है।” वह जवाब देता है, “अगुआ होने के नाते, मैं जो कहूंगा, वही होगा, और तुम्हें मेरी आज्ञा माननी चाहिए!” फिर वह उन दोनों बहनों को वहाँ से चले जाने के लिए मजबूर करता है। वह इसी घर में ठहरने पर क्यों जोर देता है? वह इसलिए क्योंकि यह परिवार निष्कपट और कमजोर है, जो मसीह-विरोधी के लिए बिल्कुल खतरा नहीं बन सकता है। वह चाहे कोई भी गलत कार्य करे या लोगों की पीठ पीछे उसका व्यवहार कितना भी अनियंत्रित हो, यह परिवार उसकी रिपोर्ट नहीं करेगा। इसलिए, वह ठहरने के लिए इस तरह की जगह की तलाश करता है। कुछ समय बाद, वह अपने बुरे साथियों को लेकर आता है, और वहाँ वे अपने बुरे कार्य करते हैं, जवाबी उपायों पर चर्चा करते हैं और अमुक और अमुक व्यक्ति को सजा देने की साजिशें रचते हैं। जब मसीह-विरोधी या बुरे व्यक्ति कलीसिया में आते हैं, तो वे सबसे पहले उन लोगों की तलाश करते हैं जिन्हें वे पसंद करते हैं और जिनका फायदा उठा सकते हैं, ताकि सबसे पहले अपनी शक्ति को विस्तारित और सुरक्षित कर सकें। वे उन लोगों को अभी के लिए अकेला छोड़ देते हैं जो सत्य समझते हैं, ताकि उनकी अपनी स्थिति खतरे में नहीं पड़ जाए। वे अभी से ही मौजूदा व्यवस्था में गड़बड़ नहीं करते हैं। अपनी स्थिति को मजबूत करने और उपयुक्त साथी ढूँढ लेने के बाद, वे सत्य का अनुसरण करने वाले भाई-बहनों को सजा देने और उनसे निपटने के लिए जवाबी उपायों पर चर्चा करना शुरू कर देते हैं। वे उन्हें कैसे सजा देते हैं और उनसे कैसे निपटते हैं? सबसे पहले, वे उन लोगों को फुसलाते हैं जो उन्हें स्वीकृति दे ते हैं, जो उन्हें थोड़ा-भी नहीं पहचानते, और जिनका वे उपयोग कर सकते हैं। अगर ऐसे लोग हैं जिन्हें वे नहीं फुसला सकते हैं या जो उन्हें पहचान लेते हैं, तो वे उन्हें सबसे अलग कर देने या बहिष्कृत करने का बहाना या कारण ढूँढ लेते हैं। इन मसीह-विरोधियों के व्यवहार से किस तरह का स्वभाव प्रकट होता है? (क्रूरता का।) जहाँ कहीं भी वे अगुवा की भूमिकाएँ अपनाते हैं, वहाँ का माहौल खराब हो जाता है। कलीसियाई जीवन की व्यवस्था बाधित हो जाती है। अगर तुम लोग उनकी बात नहीं सुनते हो, तो तुम्हें दबा दिया जाता है, प्रतिबंधित कर दिया जाता है, या यहाँ तक कि बहिष्कृत या निष्कासित तक कर दिया जाता है। कुछ मसीह-विरोधी ठगों, बदमाशों या धूर्तों की तरह कार्य करते हैं। परमेश्वर में विश्वास करने के बाद भी, वे एक पद हासिल करना, परमेश्वर के घर में अधिकार का उपयोग करना, और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नियंत्रित करना चाहते हैं। इस तरह से, वे कलीसिया को अस्तव्यस्त कर देते हैं। अगर लोगों में सूझ-बूझ का अभाव है, तो वे उनके द्वारा गुमराह और नियंत्रित किए जाएँगे, जिससे आखिर में उनकी खुद की मृत्यु हो जाएगी।

हम इस बारे में अपनी चर्चा लगभग पूरी कर चुके हैं कि मसीह-विरोधी कैसे लोगों को फुसलाते हैं। जिन मामलों पर मैंने चर्चा की है उन्हें सुनते हुए, क्या तुम लोगों को लगता है कि ये कुछ हद तक विरले मामले हैं? क्या तुम यह सोचकर हैरान हो कि “क्या यह वाकई हो सकता है? यह असंभव है, है ना? विश्वासियों के बीच इस तरह के लोग कैसे मौजूद हो सकते हैं?” मैं तुम्हें बता दूँ, यह इससे भी बदतर हो सकता है। हर व्यक्ति जब दूसरों के सामने होता है, तो मनुष्य जैसी समानता का एक मुखौटा लगा लेता है, लेकिन पर्दे के पीछे वह कैसा व्यक्ति है, इसी से उसके असली चेहरे का खुलासा होता है। दूसरों के सामने रहते समय उसके शब्द और क्रियाकलाप सिर्फ एक स्वांग हैं, एक झूठी छाप हैं। वह पर्दे के पीछे जो कहता और करता है, वही उसके असली व्यक्तित्व को दर्शाता है। अगर कोई व्यक्ति लोगों के सामने एक तरह से और पर्दे के पीछे दूसरी तरह से पेश आता है, तो तुम्हें यह पहचानने में समर्थ होना चाहिए कि इनमें से कौन-सा असली है और कौन-सा नकली, है ना? मसीह-विरोधी लोगों के सामने बहुत विनम्र लग सकता है, लेकिन अगर लोगों को पता चले कि मसीह-विरोधी ने पर्दे के पीछे क्या किया, तो उन्हें वह बहुत घिनौना लगेगा। उन्हें लगेगा कि मसीह-विरोधी के साथ जुड़ना शर्मनाक है, कि वह ईमानदार व्यक्ति नहीं है, बल्कि कुत्सित और नीच है। ऐसे में, क्या मसीह-विरोधी सामान्य लोगों के साथ मिलजुलकर रह सकता है? नहीं, वह नहीं रह सकता। यह एक सामान्य व्यक्ति में कुछ बुरी आदतों के होने का मामला नहीं है, बल्कि उसके स्वभाव का मामला है। जैसे ही तुम उसका स्वभाव देखते हो, तुम्हें पता चल जाता है कि वह मनुष्य नहीं है, बल्कि एक जानवर, एक शैतान है। मुझे बताओ, जब मनुष्य जानवरों से मेलजोल करता है, तो कैसा महसूस होता है? यह घर में एक सुअर को लाने, उसे नहलाने-धुलाने, उसे छोटे कपड़े पहनाने और उसे पालतू जानवर मानने जैसा है। अगले दिन, तुम देखते हो कि तुम्हारा घर सुअरों का बाड़ा बन गया है। वह घर में सफाई की बिल्कुल परवाह किए बिना खाता-पीता और शौच करता है। तब तुम्हें समझ आता है कि तुम सुअरों को इस तरह से नहीं रख सकते हो—वे जानवर हैं! बाहर से देखने पर ऐसा लग सकता है कि मसीह-विरोधियों में कुछ काबिलियत और परवरिश है, या किसी दौर में वे समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति रहे होंगे, जिससे उन्हें कुछ सम्मान मिला होगा। लेकिन उनमें से ज्यादातर जानवरों की तरह ही होते हैं, जिनमें अंतरात्मा और विवेक तक का अभाव है। क्या उनमें सामान्य मानवता है? (नहीं।) क्या सामान्य मानवता के बिना अब भी उन्हें मनुष्य माना जा सकता है? क्या तुम लोग उनकी अगुवाई स्वीकार कर सकते हो? अगर भाई-बहन ऐसे लोगों के हाथों में पड़ गए, तो क्या होगा? वे गुमराह किए जाएँगे और उन्हें फुसलाया जाएगा, और वे निश्चित रूप से कष्ट सहेंगे। मसीह-विरोधी शैतान हैं, और उनके पास कोई अंतरात्मा या विवेक नहीं है। ऊपर से, वे कुछ लोगों की मुश्किलों, कमजोरियों और भावनात्मक जरूरतों के प्रति बहुत स्नेहमय, समझदार और सहानुभूतिपूर्ण लग सकते हैं। वास्तव में, ये वे लोग हैं जिनकी वे तरफदारी करते हैं और जो उनकी खुशामद करते हैं। लेकिन अगर ये लोग उनके रुतबे या प्रतिष्ठा के लिए खतरा बन जाते हैं, तो फिर उनके साथ भी दयालुता से व्यवहार नहीं किया जाएगा, बल्कि उनके साथ, थोड़ी-भी सहानुभूति या सहिष्णुता के बिना, और भी ज्यादा दुर्भावनापूर्ण तरीकों का उपयोग करके अनैतिक ढंग से निपटा जाएगा। मसीह-विरोधियों का प्रेम और सहिष्णुता सब एक मुखौटा है, और उनका लक्ष्य लोगों को परमेश्वर के सामने लाना बिल्कुल नहीं है, बल्कि उनसे अपनी आराधना और अनुसरण करवाना है। इस तरह से लोगों को फँसाने का उनका उद्देश्य अपनी स्थिति को सुरक्षित करना और लोगों की आराधना और अनुसरण हासिल करना है। मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करने और फुसलाने के लिए चाहे कोई भी तरीका क्यों ना अपनाएँ, एक बात तो तय है : वे अपनी शक्ति और रुतबे की खातिर अपना दिमाग खपाएँगे और हर जरूरी साधन का उपयोग करेंगे। एक और बात जो तय है वह यह है कि चाहे वे कुछ भी करें, इसे वे अपने कर्तव्यों को करने के लिए नहीं कर रहे हैं, और वे निश्चित रूप से अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से पूरा करने के लिए तो बिल्कुल नहीं कर रहे हैं; बल्कि, ऐसा वे कलीसिया में सत्ता हासिल करने का अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए करते हैं। इसके अलावा, चाहे वे कुछ भी करें, वे परमेश्वर के घर के हितों का कभी ध्यान नहीं रखते हैं, और वे निश्चित रूप से परमेश्वर के चुने हुए लोगों के हितों पर कभी विचार नहीं करते हैं। मसीह-विरोधियों के शब्दकोश में, इन दोनों बातों पर विचार करने का कोई अस्तित्व नहीं है; वे अंतर्निहित रूप से इनसे रहित हैं। उनकी अगुवाई का स्तर चाहे कोई भी हो, वे परमेश्वर के घर या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के हितों के लिए जरा भी परवाह नहीं दिखाते हैं। उनके विचारों और दृष्टिकोणों में, कलीसिया का कार्य और परमेश्वर के घर के हित उनके लिए अप्रासंगिक और उनके अयोग्य हैं। वे सिर्फ अपनी खुद की स्थिति और अपने खुद के हितों के बारे में सोचते हैं। इससे यह देखा जा सकता है कि मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार, दुष्ट होने के अलावा, खास तौर से स्वार्थी और घिनौना है। वे सिर्फ अपनी खुद की शोहरत, फायदे और रुतबे की खातिर कार्य करते हैं और दूसरों के जीवन और मृत्यु पर जरा भी ध्यान नहीं देते हैं। जो कोई भी उनके पद के लिए खतरा बनता है, उसे अनैतिक ढंग से दबाया और अलग-थलग कर दिया जाता है, और चरम सीमा तक दंडित किया जाता है। कई बार, जब बहुत ज्यादा बुरा करने के लिए मसीह-विरोधियों की रिपोर्ट की जाती है और ऊपरवाले को उनके बारे में पता चल जाता है, और उन्हें लगता है कि वे अपना पद खोने वाले हैं, तो वे फूट-फूट कर रोना शुरू कर देते हैं। बाहर से, वे पश्चात्तापी प्रतीत होते हैं और उन्हें देखकर लगता है जैसे वे परमेश्वर की तरफ लौट रहे हैं, लेकिन उनके आँसुओं के पीछे का सच्चा कारण क्या है? उन्हें वास्तव में किस चीज का पछतावा है? वे शोक मनाते हैं और दुखी होते हैं क्योंकि वे लोगों के दिल, अपना खुद का पद और अपनी प्रतिष्ठा खो चुके होते हैं। उनके आँसुओं में यही बात निहित है। साथ ही, वे अपनी स्थिति को मजबूत करने, अपनी असफलताओं से सीखने और वापस आने के लिए पहले से ही अपने अगले कदमों की साजिश रच रहे होते हैं। मसीह-विरोधियों के इस व्यवहार से पता चलता है कि वे अपने अपराधों और अपने द्वारा प्रकट किए गए भ्रष्ट स्वभावों के कारण कभी पश्चात्ताप या कष्ट महसूस नहीं करते हैं, और वे निश्चित रूप से खुद को सही मायने में नहीं जान पाएँगे या पश्चात्ताप नहीं करेंगे। हो सकता है कि वे परमेश्वर के सामने घुटने टेकें, फूट-फूट कर रोने लगें, खुद पर विचार करें और खुद को कोसें, लेकिन यह लोगों को गुमराह करने के लिए एक मुखौटा है, और यहाँ तक कि कुछ लोग इसे सच्चा भी मान सकते हैं। यह हो सकता है कि, उस क्षण में, उनकी भावनाएँ सच्ची हों। लेकिन, यह याद रखना जरूरी है कि मसीह-विरोधी कभी भी सच्चे पश्चात्ताप का अनुभव नहीं करेंगे। चाहे एक दिन उन्हें बेनकाब करके निकाल ही क्यों ना दिया जाए, उन्हें सही मायने में पश्चात्ताप महसूस नहीं होगा। वे सिर्फ अपनी खुद की असफलता को मान लेंगे, कि उन्होंने अपने प्रदर्शन में गड़बड़ी कर दी और अपने सभी बुरे कर्मों को उजागर कर दिया। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ? क्योंकि, सत्य और परमेश्वर से नफरत करने की मसीह-विरोधियों की प्रकृति के आधार पर, वे कभी सत्य को स्वीकार नहीं करेंगे। इसलिए, मसीह-विरोधियों का आत्म-ज्ञान हमेशा झूठा होता है। वे सिर्फ यह स्वीकार करेंगे कि उन्होंने लोगों के दिल खो दिए क्योंकि वे सत्ता पर कब्जा करने और स्थिति को मजबूत करने के अवसरों को छीनने में असफल हो गए। उनका पश्चात्ताप और दुख इन्हीं कारणों के लिए हैं। जब मसीह-विरोधी को दुःख होता है, तो वे भी आँसू बहा सकते हैं, लेकिन वे क्यों रोते हैं? उनके आँसुओं के पीछे क्या है? वे रोते हैं क्योंकि उनके बहुत सारे बुरे कर्मों को उजागर कर दिया गया है और उन्होंने अपना पद खो दिया है। अगर वे सही मायने में पश्चात्ताप कर सकते और गलत करने और परमेश्वर के प्रति ऋणी महसूस करने के कारण रो सकते, तो वे इतनी सारी बुराई नहीं करते। उनका अंतःकरण दोषी महसूस नहीं करता और वे अपने बुरे कर्मों को स्वीकार नहीं करते हैं—फिर सच्चा पश्चात्ताप कैसे उत्पन्न हो सकता है? बुरा करने के बाद, उन्हें पश्चात्ताप महसूस नहीं होता है; वे बेपरवाही से भरे होते हैं, सिर्फ यह महसूस करते हैं कि उनकी नाक कट गई है और उन्होंने अपना तमाशा बना दिया है। उनका मिजाज थोड़ा-सा खराब हो सकता है। बाहरी तौर पर ऐसा प्रतीत होने के बावजूद कि सबकुछ ठीक है, दरअसल, अपने दिल की गहराइयों में वे कड़वी जड़ी-बूटियाँ चखने वाले गूंगे व्यक्ति की तरह हैं—वे चुपचाप कष्ट सहते हैं। वे अपने दिलों में भावनाओं के बवंडर का अनुभव करते हैं और खून के आंसू बहाते हैं, फिर भी उन्हें कोई सच्चा पश्चात्ताप नहीं होता है। यही असली स्थिति होती है। कभी-कभी, मसीह-विरोधी कुछ मीठे शब्द कह सकते हैं, जैसे, “चूँकि मेरी काबिलियत खराब थी इस कारण से मैंने कार्य ठीक से नहीं किया और मैंने कुछ बाधा और गड़बड़ी उत्पन्न करने वाले कार्य किए; मैं अगुवाई करने में असफल रहा और मैं अगुवाई के योग्य नहीं हूँ। परमेश्वर मुझे अनुशासित करे और शाप दे। अगर तुम लोग भविष्य में मुझे अगुवाई के लिए नहीं चुनने का फैसला करते हो, तो मैं शिकायत नहीं करूँगा।” इसके फौरन बाद, वे जोर-जोर से आंसू बहाने लगते हैं। कुछ लोग, जो पहचान नहीं कर पाते, उनके लिए करुणा महसूस करने लगते हैं और कहते हैं, “मत रोओ, हम भविष्य में फिर से तुम्हें चुनेंगे।” यह सुनते ही वे फौरन रोना बंद कर देते हैं। अब क्या तुम्हें उनके असली रंग दिखाई दे रहे हैं? जब वे कुछ अच्छे शब्द बोलते हैं, तो यह लोगों के दिल जीतने, उन्हें गुमराह करने और उन्हें फँसाने के लिए होता है, और यहाँ तक कि कुछ लोग उनके झाँसे में भी आ जाते हैं। जब भी मसीह-विरोधी आँसू बहाते हैं, तो निस्संदेह इसके पीछे कोई उद्देश्य होता है। जब उनकी आराधना करने वाले उनसे सवाल करना शुरू कर देते हैं और उनका रुतबा डगमगाने लगता है, तो वे रोने लगते हैं। वे इतने परेशान हो जाते हैं कि वे ना खा पाते हैं और ना ही सो पाते हैं और बार-बार अपने परिवार से कहते हैं, “अगर मैं अगुवाई की भूमिका में नहीं रहा, तो मैं आगे जिंदा कैसे रहूँगा?” उसके परिवार के लोग जवाब देते हैं, “क्या तुम पहले बिना किसी रुतबे के आराम से नहीं जी रहे थे? तुम क्यों नहीं जी सकते?” वे जवाब देते हैं, “अगर मेरे पास रुतबा नहीं होता, तो क्या मुझे ये फायदे मिलते? क्या हम इतने अमीर होते? तुम लोग इतने बेवकूफ क्यों हो?” घर पर, कुछ लोग खुलेआम कहते हैं, “रुतबे के बिना जीने का क्या मतलब है? जीवन का क्या मतलब है? हमारे परिवार में सिर्फ कुछ ही लोग हैं, और घर पर मैं सिर्फ इन चंद लोगों के लिए जिम्मेदार हो सकता हूँ। मैं सिर्फ इस घर का मुखिया हूँ, और मेरा रुतबा ऊँचा नहीं है। मुझे कलीसिया में पद पर आसीन होना चाहिए; नहीं तो, मेरा जीवन बेकार है। इसके अलावा, कलीसिया में इस पद के बिना, क्या हमारा परिवार इतना अच्छा जीवन जी सकता था?” बंद दरवाजों के पीछे वे ईमानदारी से बोलते हैं, और उनकी महत्वाकांक्षाएँ उजागर हो जाती हैं। क्या यह एक बेशर्म व्यक्ति नहीं है? मसीह विरोधियों द्वारा गुमराह किया जाना कोई कभी-कभार होने वाला अपराध नहीं है—यह अनजाने में नहीं होता है। अगर ये कभी-कभार और अनजाने में किए गए बुरे क्रियाकलाप होते, तो उन्हें मसीह-विरोधी नहीं माना जाता। मसीह विरोधी लोगों को जानबूझकर गुमराह करते हैं; वे शैतान की प्रकृति द्वारा नियंत्रित होते हैं। यही कारण है कि वे लोगों को लगातार गुमराह करते हैं और उन्हें नियंत्रित करने और आखिर में सत्ता हासिल करने के लिए जानबूझकर इस तरीके का उपयोग करते हैं। दरअसल, लोगों को गुमराह करने और नियंत्रित करने में मसीह-विरोधियों का उद्देश्य लोगों को उनकी बात सुनने, उनकी अगुवाई का अनुसरण करने और उन्हें परमेश्वर से दूरी बनाने के लिए मजबूर करना है। मसीह-विरोधियों के इरादे बहुत साफ हैं; उनका लक्ष्य लोगों के लिए परमेश्वर से प्रतिस्पर्धा करना है। उनके क्रियाकलाप भ्रष्टता के क्षणिक प्रकाशन नहीं हैं, ना ही उन्हें ना चाहते हुए, आवेग के वश में आकर किया जाता है, और निश्चित रूप से वे खास परिस्थितियों द्वारा बाध्य नहीं किए जाते हैं। यह पूरी तरह से उनकी दुष्ट प्रकृति, उनकी विशाल महत्वाकांक्षाओं और इच्छाओं, उनके कपटी स्वभाव और उनके षड्यंत्रों की बड़ी तादाद के कारण है। अब इन चीजों को करने की उनकी क्षमता उनके प्रकृति सार से तय होती है : परमेश्वर में विश्वास करने के बाद, उन्होंने इन इरादों और षड्यंत्रों को मन में छिपाकर रखा, बस इन सपनों को साकार करने और अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए वे अगुआ बनने की प्रतीक्षा करने लगे। यह एक मसीह-विरोधी के दिल की सच्ची स्थिति है, और इसमें जरा-सा भी भटकाव नहीं होता है।

ऊपर जिस विषयवस्तु पर चर्चा की गई है उससे, तुम लोगों को वह सत्य समझ लेना चाहिए जिसमें तुम्हें प्रवेश करने की जरूरत है। एक तरफ, तुम्हें उन मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों को पहचान लेना चाहिए, जो ऐसा व्यवहार और प्रकृति सार प्रदर्शित करते हैं। दूसरी तरफ, तुम्हें यह देखने के लिए अपनी तुलना भी करनी चाहिए कि क्या तुम ये व्यवहार प्रदर्शित करते हो। अब, अगर तुम लोग अपनी बातों और मसीह-विरोधी के भाषण के बीच कोई मेल ढूँढ पाते हो, या अगर तुम दोनों समान परिस्थितियों में एक जैसा व्यवहार प्रदर्शित करते हो, तो क्या तुम अपने प्रकट किए गए स्वभाव या अभ्यास में अपने और मसीह-विरोधियों के बीच समानताओं को पहचान सकते हो? क्या तुम लोग मैंने जिन कुछ मिसालों की चर्चा की उनसे या उन मिसालों में बताए गए विवरणों, शब्दों और क्रियाकलापों के जरिए उस सत्य को समझ सकते हो जिसके बारे में यहाँ संगति की गई है, या क्या तुम लोगों के उन भ्रष्ट स्वभावों को समझ सकते हो जिन्हें यहाँ उजागर किया गया है? क्या तुम इस तरह से सुन सकते हो? तुम लोग किस दृष्टिकोण से सुन रहे हो? अगर तुम मसीह-विरोधियों के इन स्वभावों और सार को पूरी तरह से पहचान रहे हो और इन व्यवहारों और अभ्यासों को एक दर्शक के दृष्टिकोण से देख रहे हो, तो क्या तुम सत्य हासिल कर सकते हो? (नहीं।) तो तुम्हें किस दृष्टिकोण से सुनना चाहिए? (अपनी तुलना करने के दृष्टिकोण से।) अपनी तुलना करो—यह सबसे मूलभूत चीज है। और क्या? (स्वयं को सत्य से लैस करो।) सही कहा, तुम्हें मेरे द्वारा चर्चा किए गए हर मिसाल में उस सत्य को समझना चाहिए जिसे तुम्हें समझने की जरूरत है। जिनके पास आध्यात्मिक समझ नहीं है, वे सिर्फ तथ्यों को समझ सकते हैं, जबकि जिनके पास आध्यात्मिक समझ है और जिनमें अच्छी काबिलियत है, वे उनसे सत्य को समझ सकते हैं और उसे हासिल कर सकते हैं। क्या तुम लोग चर्चा की गई कहानियों और मिसालों में शामिल सत्य का सारांश प्रस्तुत कर सकते हो? कुछ कहानियों या मिसालों के बारे में संगति करने का उद्देश्य लोगों को उन्हें वास्तविकता से जोड़ने में मदद करना, वास्तविकता में दिखाई देने वाले अलग-अलग मुद्दों को बेहतर ढंग से समझना और सत्य के इस पहलू से जुड़ी अलग-अलग अभिव्यक्तियों और सार के बारे में उनकी धारणा को गहरा करना है। दूसरे शब्दों में, जब सत्य या प्रकृति सार के इस पहलू की बात आती है, तो तुम लोग एक खास मिसाल या परिदृश्य के बारे में सोचोगे। इस तरह, जब तुम खुद को समझते हो या दूसरों को पहचानते हो, तो तुम्हारे पास एक ऐसी दृष्टिगत की गई समझ होगी, जो समझने में आसान, ज्यादा व्यावहारिक और सिर्फ सिद्धांत या पाठ पढ़ने की तुलना में ज्यादा ठोस होगी। अगर यह सिर्फ पाठ है और तुम लोगों के पास इसका कोई अनुभव नहीं है, तो शायद पाठ के बारे में तुम्हारी समझ सिर्फ शब्दों तक ही सीमित होगी, और हमेशा तुम्हारे सीमित अनुभवों द्वारा बाधित होगी और सिर्फ उसी सीमा में बनी रहेगी। लेकिन, अगर मैं अपनी संगति में कुछ मिसालें जोड़ दूँ, उसमें कुछ कहानियाँ, कुछ झाँकियाँ, खास शब्द और क्रियाकलाप और व्यवहार मिला दूँ, तो इसका इस पहलू में सत्य की तुम्हारी समझ पर एक सहायक प्रभाव पड़ेगा। अगर यह प्रभाव हसिल हो जाता है, तो इसका मतलब है कि तुमने सत्य के इस पहलू को समझ लिया है। तुम्हें समझ की किस हद तक पहुँचना होगा जब इसे समझ के रूप में गिना जा सके? यह 100% होना जरूरी नहीं है, लेकिन सत्य के इस पहलू के बारे में तुम्हारी समझ, परिभाषा, अवधारणा और ज्ञान कम से कम ठोस हो चुका होना चाहिए। इस ठोस होने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि यह अपेक्षाकृत शुद्ध हो जाता है, मूल रूप से इसमें कोई मानवीय ज्ञान, धारणा, कल्पना या अंदाजा मिला नहीं होता है, या इसमें इनमें से कम चीजें मिली हुई होती हैं। ऐसी मिसालें यही प्रभाव डालती हैं। हो सकता है कि तुम लोग उन लोगों या घटनाओं को जानते हो जिनका मैंने इनमें से कुछ मिसालों में जिक्र किया है, या यहाँ तक कि तुम ऐसे लोगों के संपर्क में भी रहे हो और उन्हें अच्छी तरह से जानते हो, या हो सकता है कि तुम लोग ऐसी घटनाओं के संपर्क में आए हो और यहाँ तक कि तुमने इन लोगों द्वारा ऐसी चीजें करने की पूरी प्रक्रिया को भी देखा हो। लेकिन सत्य समझने और पहचानने के संबंध में इसके क्या फायदे हैं? हो सकता है कि तुम लोग ऐसे लोगों के साथ रहे हो, तुमने ऐसी कहानियाँ घटते हुए देखी हों और इन कहानियों में होने वाली सारी चीजों को खुद अनुभव किया हो, लेकिन जरूरी नहीं कि इसका यह मतलब हो कि तुम सत्य के इस पहलू को समझते हो। मेरा यह कहने का क्या मतलब है? यह मत मान लो कि क्योंकि तुम उस व्यक्ति या घटना को जानते हो या उससे परिचित हो जिसके बारे में मैं बात कर रहा हूँ, इसलिए तुम्हें यहाँ संगति किए गए विवरणों या सत्य और खास सामग्री को सुनने की जरूरत नहीं है। यह एक बड़ी गलती होगी। भले ही वह व्यक्ति कोई ऐसा है जिसे तुम बहुत करीब से जानते हो, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि तुम यहाँ पहले से ही सत्य समझ और पकड़ चुके हो। मैं तुम्हें यह क्यों याद दिला रहा हूँ? यह तुम लोगों को विवरणों पर अटक जाने से रोकने के लिए है। जब भी तुम किसी को ऐसा कुछ करते देखते हो और परमेश्वर उन्हें एक मिसाल के तौर पर पेश करता है, तो तुम उनका मजाक उड़ाते हो और ऐसे लोगों से नफरत करने लगते हो। क्या सत्य के प्रति यह सही रवैया है? (नहीं।) यह कैसा रवैया है? क्या यह मार्ग से भटक जाना नहीं है? यह एक पक्षपातपूर्ण समझ है। इन सुस्पष्ट मिसालों, कहानियों, और खास लोगों और घटनाओं के कारण ही हर कोई सही मायने में इस बात को समझ सकता है कि लोगों के भ्रष्ट स्वभाव का प्रकाशन कैसा होता है, सही मायने में इसका साक्षी बन सकता है कि लोगों के भ्रष्ट स्वभाव और प्रकृति सार का प्रकाशन कैसा होता है, लोगों का प्रकृति सार क्या है, भ्रष्ट स्वभाव क्या होता है, एक खास प्रकार के भ्रष्ट स्वभाव और प्रकृति सार वाले लोग किस तरह का मार्ग अपनाते हैं, उन्हें क्या अच्छा लगता है, उनकी भावनाओं की अवधि क्या होती है, वे दुनिया के साथ कैसे व्यवहार करते हैं और उससे कैसे निपटते हैं और जीवन के प्रति उनका नजरिया क्या है, दुनिया से निपटने के लिए उनके सिद्धांत क्या हैं, और परमेश्वर और सत्य के प्रति उनका रवैया क्या हो सकता है। ठीक इन मिसालों, इन खास व्यक्तियों और ठोस घटनाओं के कारण ही लोग सत्य वास्तविकता को परमेश्वर के मानवीय सार के प्रकाशन के साथ बेहतर ढंग से मिला सकते हैं, और उनके बारे में थोड़ा ज्यादा स्पष्ट और ज्यादा सटीक दृष्टिकोण हासिल कर सकते हैं। तो, इन शब्दों के पीछे मेरा क्या मतलब है? यह कि तुम्हें इन कहानियों के महत्व को कम नहीं समझना चाहिए। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं किस तरह की कहानी सुनाता हूँ, यह किसकी कहानी है, या यह किस तरह के व्यक्ति की कहानी है, यहाँ एक ही लक्ष्य है, और वह है तुम्हें सत्य को समझने में मदद करना। अगर तुम इससे सत्य हासिल करते हो, तो इसका मतलब है कि वांछित प्रभाव हासिल हो गया है। इसलिए, हो सकता है कि जब तुम इन कहानियों को पहली बार सुनो, तो इनसे तुम सिर्फ कुछ सतही सत्य, सतही अर्थ या शाब्दिक व्याख्या समझने सको। लेकिन, जैसे-जैसे तुम्हारा आध्यात्मिक कद बढ़ेगा, जैसे-जैसे तुम्हारी उम्र बढ़ेगी, जैसे-जैसे तुम अलग-अलग परिस्थितियों के जरिए जीवन में आगे बढ़ोगे, तुम्हारा जीवन भी धीरे-धीरे परिपक्व होता रहेगा, और तुम्हारे पास इन कहानियों में निहित घटनाओं और यहाँ दर्शाए गए अलग-अलग व्यक्तियों के प्रकृति सार, व्यवहार और अभिव्यक्ति की अलग-अलग समझ होगी। ये समझ कैसे प्राप्त होती हैं? ये इन कहानियों में शामिल सत्य से प्राप्त होती हैं, खुद इन कहानियों से नहीं। अगर सिर्फ एक कहानी सुनाई जा रही है, जैसे कि “भेड़िया आया-भेड़िया आया चिल्लाने वाले लड़के” की कहानी, तो इसे सुनने के बाद इससे कुछ नहीं मिलेगा; इसका सत्य से कोई लेना-देना नहीं है। यह कहानी सिर्फ लोगों को यह निर्देश देती है कि उन्हें कैसे कार्य करना है : यह बहुत सीधी और सतही है। लेकिन जब सत्य की बात आती है, तो ऐसी कहानी की गहराई उन सतही मतलबों से परे होती है जिन्हें व्यक्ति आसानी से समझ सकता है। यह लोगों के भ्रष्ट स्वभाव और प्रकृति सार का जिक्र करती है, जिसमें लोगों को कैसे पहचाना जाए, अपना मार्ग कैसे चुना जाए, सत्य के पास कैसे पहुँचा जाए, और परमेश्वर की अपेक्षाओं के जवाब में लोगों का रवैया कैसा होना चाहिए, शामिल है। इसमें यह शामिल है कि लोगों को क्या अस्वीकार करना चाहिए और उन्हें क्या अपनाना चाहिए। अगर तुम लोग इस तरह से सुन सकते हो, तो हर बार जब तुम उपदेश सुनोगे, तो तुम्हें कुछ ना कुछ मिलेगा, तुम ज्यादा प्रकाश हासिल करोगे और सत्य के अलग-अलग पहलुओं के बारे में ज्यादा सिद्धांतों को समझोगे, और कुछ जीवन प्रवेश का अनुभव करोगे। जैसे-जैसे लोगों की उम्र बढ़ती है, जैसे-जैसे समय बीतता है, जैसे-जैसे सामाजिक परिस्थितियाँ बदलती हैं, जैसे-जैसे रुझानों में बदलाव आता है, सत्य लोगों के दिलों में कार्य करता रहता है, और उन्हें पता होगा कि सत्य का अभ्यास कैसे करना है, और सत्य के आधार पर लोगों और चीजों को कैसे देखना है। जीवन हासिल करने का यही मतलब है—सत्य व्यक्ति का जीवन बन सकता है। इसलिए, कोई फर्क नहीं पड़ता कि कहानी कब सुनाई जा रही है, बस एक बार सुनकर इसे सुन लिया है मत मान लेना। सुनते रहो, और अगर तुम्हें समझ नहीं आता है, तो तुम इसके बारे में संगति कर सकते हो। अगर तुम्हें अपने मौजूदा चरण में इसे समझना मुश्किल लगता है, तो यह तुम्हारे आध्यात्मिक कद के अपर्याप्त होने के कारण हो सकता है। ऐसे में, तुम जो समझ पा रहे हो, उसे सुनो और वह चुनो जो तुम्हारे मौजूदा आध्यात्मिक कद के उपयुक्त है। अगर कोई कहानी सुनने पर उस समय वह तुम्हें स्पष्ट लगती है, लेकिन बाद में गहन लगती है, अगर वह तुम्हारी समझ से परे है, या इस चरण पर तुम्हारे अनुभवों और जीवन की परिस्थितियों से मेल नहीं खाती है, तो उसे अपने दिल में रखो और उसे अपने मन पर छप जाने दो। जब बाद में तुम इसी तरह की परिस्थितियों का सामना करोगे, तो तुमने अपने दिल में जो संजोकर रखा है, वह सतह पर दिखाई देने लग सकता है। यह उसी शब्दावली और शब्दों जैसा है जिन्हें तुमने पढ़ा है या यह तुम्हारे दिमाग द्वारा आत्मसात की गई जानकारी की तरह है। क्या तुम लोग हर रोज उनके बारे में सोचते हो? शायद नहीं। आमतौर पर, तुम लोग देर तक उनके बारे में सोच-विचार नहीं करते हो, लेकिन जब तुम खुद को ऐसे माहौल में पाते हो जहाँ ये शब्द, शब्दावली या जानकारी प्रासंगिक होती है, तो उनमें से कुछ बातें तुम्हारे दिमाग में आ जाती हैं। लोगों के पास यादें होती हैं, और वे स्वाभाविक रूप से अपने दिमाग में कुछ चीजें इकट्ठा करके रखते हैं। दैनिक जीवन में उपयोग करने के लिए, ये चीजें तुम्हारे लिए पर्याप्त हैं और कुछ हद तक फायदेमंद हो सकती हैं, लेकिन अगर तुम जानबूझकर उनका उपयोग करने की कोशिश करते हो और विनियमों को सख्ती से लागू करते हो, तो तुमसे गलतियाँ होने की ज्यादा संभावना है। तुम लोगों को अपने खुद के आध्यात्मिक कद और अपनी अनुभव की गई परिस्थितियों के आधार पर चुनाव करके सुनना चाहिए। इस तरह, तुम्हारी प्रगति ज्यादा तेजी से होगी। जो लोग सुनने का तरीका जानते हैं, वे ज्यादा हासिल करेंगे, जबकि जो नहीं जानते हैं, वे कम हासिल करेंगे, या शायद कुछ भी हासिल नहीं करेंगे। यहाँ तक कि उन्हें यह भी लग सकता है कि वे इनमें से कोई भी कहानी नहीं सुनना चाहते हैं, कि इनमें से किसी में भी सत्य शामिल नहीं है, और वे हैरान हो सकते हैं कि मैं हर समय फालतू बातें और गपशप करने के बजाय सत्य के बारे में बात क्यों नहीं करता। किस तरह के लोग इस तरह का व्यवहार प्रदर्शित करते हैं? (वे लोग जिनके पास आध्यात्मिक समझ नहीं है।) जिन लोगों के पास आध्यात्मिक समझ नहीं है, वे इस तरह से सोच सकते हैं। वे सोच सकते हैं कि जब मैं उपदेश देता हूँ, तो मैं सिर्फ इन रोजमर्रा की बातों के बारे में बात करता हूँ; ऐसा है तो वे भी ऐसा कर सकते हैं, इसलिए जब उनके पास करने के लिए कुछ नहीं होता है, तो वे दूसरों के साथ फालतू की गपशप में लगे रहते हैं। हो सकता है कि तुम लोग मेरी सुनाई कहानियों से ज्यादा गपशप जानते हो, लेकिन क्या तुम्हारी चर्चाओं में सत्य शामिल होता है? (नहीं, नहीं होता है।) अगर उनमें सत्य शामिल नहीं होता है, तो अंधाधुंध बात मत करो, नहीं तो, हो सकता है कि तुम आखिर में सत्य से संबंध नहीं रखने वाली चीजों पर चर्चा करने लगो। मैं लोगों को सत्य समझने में मदद करने के लिए कहानियाँ सुनाता हूँ। तुम्हें आँख मूंदकर मेरी नकल नहीं करनी चाहिए। तुम्हें सिर्फ सत्य की तलाश करने, सत्य को समझने और सिद्धांतों के अनुसार मामलों को संभालने का प्रयास करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। चाहे तुम्हारी बातें हों या तुम्हारे क्रियाकलाप, सत्य सिद्धांतों के अनुरूप उनमें प्राथमिकता तय करो। इस तरह, तुम धीरे-धीरे सत्य वास्तविकता में प्रवेश कर जाओगे।

III. मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को धमकाने का विश्लेषण

हमने मसीह विरोधियों द्वारा लोगों को गुमराह करने और उन्हें फुसलाने की दो अभिव्यक्तियों के बारे में संगति समाप्त कर ली है; अब, आओ इस बारे में संगति करें कि वे लोगों को कैसे धमकाते हैं। मसीह-विरोधियों के इन तरीकों में से हर तरीका उसके पिछले वाले से ज्यादा गंभीर है। गुमराह करने और फुसलाने से तुलना करने पर, क्या धमकी देने का यह तरीका ज्यादा परिष्कृत है या कम? (कम परिष्कृत है।) अगर गुमराह करने और फुसलाने से काम नहीं बनता है, तो वे धमकियों का सहारा लेते हैं। मसीह-विरोधी लोगों को कैसे धमकाता है? वह ऐसे तरीके का सहारा क्यों लेता है? (क्योंकि उसके उद्देश्य पूरे नहीं हुए।) उसके उद्देश्य पूरे नहीं हुए। धमकी देने में एक और मतलब निहित है—इसे व्यक्त करने के लिए किस वाक्यांश का उपयोग किया जा सकता है? (अपना असली रंग प्रकट करना।) यह पूरी तरह से सटीक नहीं है; कोई दूसरा वाक्यांश बताओ। (शर्मिंदगी से क्रोधित होना।) तुम सही जवाब के पास पहुँच रहे हो। क्या कोई और ज्यादा उपयुक्त वाक्यांश है? (हताश और आगबबूला महसूस करना।) बिल्कुल सही कहा, हताश और आगबबूला महसूस करना। यह स्थानीय कहावत “अचानक गुस्से से फट पड़ने” के जैसा है; इसका मतलब है, “मैंने करुणामय और कठोर दोनों तरह के शब्दों का उपयोग किया है। ज्यादातर समय मैंने तुम्हारे साथ कभी अनुचित व्यवहार नहीं किया। तो तुम मेरी बात क्यों नहीं सुनते? चूँकि तुम नहीं सुनते, तो तुम्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी : मैं तुम पर इस युक्ति का उपयोग करूँगा—धमकियाँ!” वे अपनी युक्ति बदल देते हैं। शैतान के पास कई तरह की युक्तियाँ होती हैं, और सभी घिनौनी हैं। आम तौर पर, धमकियों के साथ प्रलोभन भी मिला होता है। अगर वे सिर्फ धमकियों का उपयोग करते हैं, तो कुछ लोग डरते नहीं हैं और उनकी बात नहीं सुनते। फिर उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचता है और कभी-कभी वे प्रलोभन का सहारा ले सकते हैं। अगर एक से काम नहीं बनता है, तो वे दूसरे से काम निकालने का प्रयास करते हैं—वे नर्म और कठोर दोनों तरह की युक्तियों का उपयोग करते हैं। तो, मसीह-विरोधी लोगों को क्यों धमकाते हैं? वे किन परिस्थितियों में धमकियों का सहारा लेते हैं? अगर दो लोग शांति से साथ रह सकते हैं, हर एक अपने-अपने मार्ग पर चलता है, उनके बीच हितों का कोई टकराव नहीं है, तो क्या वे धमकियों का सहारा लेंगे? (नहीं, वे नहीं लेंगे।) तो फिर किन परिस्थितियों में धमकियाँ देने का यह व्यवहार और अभ्यास उत्पन्न होता है? बेशक, यह तब होता है जब बात उनके हित या प्रतिष्ठा पर आती है, जब उनके उद्देश्य पूरे नहीं किए जा रहे होते हैं। वे बड़े कदम उठाते हैं, और सोचते हैं, “तो तुम मेरी बात नहीं सुनोगे? तो फिर मैं तुम्हें इसके परिणाम दिखाऊँगा!” ये परिणाम क्या हैं? जिससे भी तुम्हें को डर लगता है। क्या तुम्हें कुछ धमकियों के उदाहरण याद हैं जिनसे तुम्हारा सामना हुआ है? (कुछ मसीह-विरोधी जब यह देखते हैं कि भाई-बहन उनके प्रति समर्पण नहीं कर रहे हैं, तो वे उनके बारे में राय बनाना और उनकी निंदा करना शुरू कर देते हैं, और कहते हैं, “अगुआ के प्रति समर्पण करने से चूकना परमेश्वर के प्रति समर्पण करने से चूकना है,” और वे इसका उपयोग लोगों को धमकाने के लिए करते हैं।) (मेरे मन में एक और मिसाल आ रहा है जहाँ अगर कोई अगुआ की बात नहीं सुनता है, तो अगुआ उसे बदल देने के लिए अपने अधिकार का उपयोग करता है।) कुछ भी हो, वे चाहते हैं कि लोग यह समझें कि उनकी बात नहीं सुनने के नतीजे उन्हें भुगतने होंगे। तो, लोगों को उनकी बात सुनने के लिए मजबूर करने का उनका आधार क्या है? वे अक्सर कहते हैं, “अगुवाई के प्रति समर्पण परमेश्वर के प्रति समर्पण है, क्योंकि अगुवाई परमेश्वर द्वारा विहित होती है। तुम्हें जरूर समर्पण करना चाहिए। अगर तुम अगुआओं के प्रति समर्पण नहीं करते हो या उनकी बात नहीं सुनते हो, तो यह घमंड, आत्मतुष्टता और परमेश्वर के प्रति प्रतिरोध है। परमेश्वर का प्रतिरोध करने का परिणाम निकाल दिया जाना है। मामूली मामलों में, तुम्हें आत्म-चिंतन के लिए सबसे अलग-थलग किया जा सकता है; गंभीर मामलों में, तुम्हें कलीसिया से बहिष्कृत भी किया जा सकता है!” वे लोगों को उनके प्रति समर्पण करने के लिए मजबूर करने के लिए इन विश्वासयोग्य भ्रांतियों का उपयोग करते हैं। इसके अलावा, कुछ अन्य मसीह-विरोधी लोगों को कैसे धमकाते हैं? वे दूसरों को उन लोगों का विरोध करने और उन्हें अस्वीकार करने के लिए उकसाते हैं, जो उनके प्रति समर्पण नहीं करते हैं। साथ ही, वे उन लोगों को बदल देते हैं, जो उनकी आज्ञा नहीं मानते हैं या उन्हें फिर कोई दूसरा कर्तव्य सौंप देते हैं। कुछ व्यक्ति सचमुच डरते हैं कि उनके पास करने के लिए कोई कर्तव्य नहीं होगा। वे मानते हैं कि अपने कर्तव्यों को करके उन्हें उद्धार का एक मौका मिल सकता है, और कर्तव्य करने से चूकने पर वह मौका उनसे छिन सकता है। मसीह-विरोधी अपने दिलों में सोचते हैं, “मुझे तुम्हारी कमजोरी मालूम है। अगर तुम मेरी बात नहीं सुनोगे, तो मैं तुम्हें तुम्हारे कर्तव्य करने के अधिकार से वंचित कर दूँगा। मैं तुम्हें तुम्हारा कर्तव्य नहीं करने दूँगा!” क्या वे लोगों को उनका कर्तव्य इसलिए नहीं करने देते हैं क्योंकि ये लोग अपना कर्तव्य करने के लिए योग्य नहीं हैं या क्योंकि उनका अपना कर्तव्य करना परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान पहुँचाता है? (नहीं।) तो फिर वे ऐसा क्यों करते हैं? यह अपने विरोधियों को बाहर निकाल देने और इस तरीके का उपयोग लोगों को धमकाने और उनकी बात सुनने के लिए मजबूर करने के लिए है। जब धमकियों की बात आती है, तो मसीह-विरोधी लोगों से निपटने या मामलों को संभालने में निश्चित रूप से सत्य सिद्धांतों का पालन नहीं करते हैं। इसके बजाय, वे डराने-धमकाने, बल और दबाव का उपयोग करते हैं ताकि लोगों को आज्ञाकारिता से समर्पण करने और उनकी बात सुनने और उन्हें परेशान न करने या उनके मामलों को खराब नहीं करने के लिए मजबूर कर सकें।

मसीह-विरोधी द्वारा धमकियों का उपयोग सिर्फ इसलिए नहीं किया जाता है क्योंकि लोग उनकी आज्ञा नहीं मानते हैं या उन्हें गंभीरता से नहीं लेते हैं और उनकी अवहेलना करते हैं—यह इसका सिर्फ एक पहलू है। एक और कारण है, जो यह है कि जब दूसरों को मसीह-विरोधी की समस्याओं का पता लगता है और वे उसे उजागर करना चाहते हैं या ऊपरवाले को उसकी रिपोर्ट करना चाहते हैं, तो वह इस बात से डरता है कि ऊपरवाले को पता चल सकता है या ज्यादा लोगों को इसके बारे में पता चल सकता है, इसलिए वह इन बातों को छिपाने और दबाने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा देता है, और उन्हें कभी भी उजागर नहीं होने देता है। अगर ज्यादा लोगों को पता चल गया, तो क्या होगा? वे मसीह-विरोधी को अस्वीकार कर देंगे और उसे कोसेंगे, उसके बाद से कोई भी उसकी आराधना नहीं करेगा, और वह अपना पद और अधिकार खो देगा। इसलिए, लोगों को धमकाने के इस तरीके का उपयोग करने में मसीह-विरोधी का उद्देश्य अपने पद और अधिकार की रक्षा करना भी है। वह मानता है कि अगर उसने ऐसा नहीं किया, तो भाई-बहन उसे पहचानना शुरू कर देंगे, और उसे अगले चुनाव में नहीं चुना जाएगा, जिससे वह एक आम विश्वासी बन जाएगा। उसके लिए एक आम विश्वासी होने का क्या मतलब है? इसका मतलब है कि उसके पास कोई अधिकार नहीं है, उसका अनुसरण करने वाला या उसका अनुयायी बनने वाला कोई नहीं है, और उसके पद और अधिकार छीन लिए गए हैं, जिससे उसकी महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ असंतुष्ट रह गई हैं। वह एक आम विश्वासी या अनुयायी नहीं बनना चाहता है, इसलिए वह लोगों को डराने और उन्हें उसकी बात सुनने के लिए मजबूर करने के लिए धमकाने के इस तरीके का उपयोग करता है, जिससे वह अपने अधिकार और पद पर बना रहता है, लोगों को नियंत्रित करता और कुछ लोगों का समर्थन प्राप्त करना जारी रखता है। मसीह-विरोधी जो कुछ भी करता है, वह उसके पद पर केंद्रित होता है। जब भी कोई उसके पद पर कोई बात आती है, तो वह जोरदार तरीके से उसका बचाव करने और उसकी रक्षा करने के लिए कुछ साधनों या तरीकों का उपयोग करता है; यहाँ तक कि जब ऊपरवाला उनमें से कुछ लोगों से कुछ मामलों के बारे में पूछता है, तो वे उसके सामने बेशर्मी से झूठ भी बोल पाते हैं। मिसाल के तौर पर, ऊपरवाले द्वारा यह पूछे जाने पर कि इस महीने सुसमाचार फैलाकर कलीसिया ने कितने लोग प्राप्त किए हैं, तो भले ही मसीह-विरोधी यह जानता हो कि कोई भी प्राप्त नहीं हुआ, तो भी वह झूठ बोल सकता है और कह सकता है कि पाँच लोग प्राप्त किए गए हैं। जब सत्य जानने वाले भाई-बहन मसीह-विरोधी का सामना करते हैं और कहते हैं, “वे पाँच लोग सिर्फ जाँच कर रहे थे। तुमने यह क्यों कहा कि हमें पाँच लोग प्राप्त हुए हैं? तुम्हें ऊपरवाले को सत्य बताना चाहिए,” तो मसीह विरोधी क्या कहता है? “हमें पाँच क्यों नहीं प्राप्त हो सकते हैं? मैंने पाँच लोग कहा, तो फिर पाँच ही हैं। तुम्हारी राय का कोई महत्व नहीं है। अगर हमने कहा कि हमें एक भी व्यक्ति प्राप्त नहीं हुआ, तो मैं ऊपरवाले को यह बात कैसे समझाऊँगा? अगर तुम लोग इसकी रिपोर्ट करना चाहते हो, तो जाओ करो, लेकिन अगर तुमने सच बता दिया, तो हो सकता है कि ऊपरवाला तुम्हारी काट-छाँट कर दे। वह तुम सभी लोगों को सेवा से हटा सकता है जो सुसमाचार फैलाने में शामिल हैं, यहाँ तक कि सुसमाचार दल को भी भंग कर सकता है। फिर तुम अपने कर्तव्य नहीं कर पाओगे, और इसके लिए मैं दोषी नहीं होऊँगा।” जब यह व्यक्ति यह बात सुनता है, तो वह भौंचक्का रह जाता है और इसकी रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं करता। क्या यह धमकी नहीं है? (हाँ है।) यह एक स्पष्ट धमकी है, इसलिए खुल्लम-खुल्ला दी गई है। जब कुछ लोग इसे सुनते हैं, तो वे सोचते हैं, “ईमानदार व्यक्ति होने के परिणाम भुगतने होते हैं। अगर मैं ईमानदार रहा, तो मैं अपना कर्तव्य नहीं कर पाऊँगा, इसलिए मैं इसकी रिपोर्ट नहीं करूँगा। हमें पाँच लोगों की ही रिपोर्ट करनी चाहिए।” कुछ लोगों के दिल बेचैन हो जाते हैं, और वे कहते हैं, “अगर हमने किसी को प्राप्त नहीं किया, तो यही सही। ऊपरवाला जिस भी तरीके से हमें संभालने का फैसला लेगा, हमें उसके प्रति समर्पण कर देना चाहिए।” यह सुनकर मसीह-विरोधी का क्या दृष्टिकोण होता है? “समर्पण? यह परिस्थिति पर निर्भर करता है। क्या ऊपरवाले उन मुश्किलों के बारे में जानता है जिनका सामना हम सुसमाचार फैलाने में अब करते हैं? क्या उसे इसकी परवाह है?” जब ऊपरवाले ने सुसमाचार फैलाने की स्थिति के बारे में पूछताछ की, तो वह इसमें शामिल चुनौतियों से अनजान नहीं था। उसे पता था कि हर महीने कम से कम कितने लोगों को प्राप्त किया जा सकता है, और उसने यह कभी नहीं कहा कि अगर सुसमाचार दल ने एक महीने में किसी को भी प्राप्त नहीं किया, तो उसे भंग कर दिया जाएगा। तो मसीह-विरोधी यह बयान कहाँ से लेकर आया? (उसने इसे खुद बनाया।) उसने अपने झूठों को छिपाने, इन लोगों को नियंत्रित करने, ऊपरवाले या भाई-बहनों को उनके झूठ को समझ लेने से रोकने और अपना पद सुरक्षित करने के लिए इसे खुद ही बनाया ताकि उन्हें बदल ना दिया जाए—इसके लिए उन्होंने ऐसे शैतानी शब्दों का आविष्कार करने की हिम्मत की। पहचान कर पाने वाले व्यक्ति उन्हें उजागर कर सकते हैं, लेकिन जो लोग पहचान नहीं कर पाते, वे गुमराह हो जाते हैं, और सोचते हैं, “सच में, यह कर्तव्य आसानी से नहीं मिलता है। हम ऊपरवाले के साथ ईमानदार नहीं हो सकते हैं। अगर तुम लोग कहते हो कि पाँच लोग थे, तो पाँच ही थे। वैसे तो इस महीने हमें पाँच नहीं मिले, लेकिन हम अगले महीने उन्हें प्राप्त करने का लक्ष्य रखेंगे। आखिरकार, अगर हम उन्हें अगले महीने प्राप्त कर लेते हैं, तो यह झूठ नहीं होगा।” मसीह-विरोधी फरेब करता है, और पहचान न कर पाने वाले लोग उसके साथ इसमें शामिल रहते हैं; वे फरेबियों का एक समूह हैं। लोगों को धमकाने में मसीह-विरोधी का क्या लक्ष्य है? यह उन्हें आज्ञा मानने और उसकी बात सुनने के लिए मजबूर करना है। वह झूठ बोलता है और बुराई करता है, कलीसिया को नियंत्रित करता है, लोगों को गुमराह करता है, सिद्धांतों या कार्य-व्यवस्थाओं का पालन किए बिना कार्य संचालित करता है, और वह चाहे कितने भी लापरवाह तरीके से व्यवहार क्यों ना करे, वह भाई-बहनों को ऊपरवाले के पास उसे उजागर करने या उसकी रिपोर्ट करने की अनुमति नहीं देता है। जब एक बार उसे यह पता चल जाता है कि कोई ऊपरवाले के पास उसकी रिपोर्ट करने की योजना बना रहा है, तब वह धमकियों का सहारा लेने लगता है। वह उस व्यक्ति को कैसे धमकाता है? वह कहता है, “हम नीचे कार्य कर रहे हैं, और यह कार्य मुश्किल है। यहाँ तक कि हम बड़े लाल अजगर द्वारा गिरफ्तार किए जाने के जोखिम का भी सामना करते हैं। ऊपरवाला हमेशा यह मांग करता है कि हमारा अभ्यास कार्य-व्यवस्था के अनुरूप हो। हम बहुत ज्यादा कष्ट सहन करते हैं और सुसमाचार को फैलाने में बहुत ज्यादा जोखिम उठाते हैं। जब परिणाम खराब होते हैं, तब भी तुम ऊपरवाले को उनकी रिपोर्ट करना चाहते हो; जब तुम अपनी रिपोर्ट कर दोगे, उसके बाद वह तुम्हारी काट-छाँट करेगा। तुम्हारी काट-छाँट के बाद मैं एक अगुआ के रूप में बदल दिए जाने से नहीं डरता, मुझे यह डर है कि उसके बाद तुम लोगों के पास करने के लिए कोई कर्तव्य नहीं होगा। अगर तुम लोगों के पास करने के लिए कोई और कर्तव्य ना हो, तो मुझे दोष मत देना!” सुनने में यह बहुत उचित लगता है! वह यह भी कहता है, “कौन वाकई इसकी रिपोर्ट करना चाहता है? अगर तुम लोग इसकी रिपोर्ट करना चाहते हो, तो मैं तुम्हें नहीं रोकूँगा; हर कोई इन चीजों के बारे में वैसे भी जानता है। अगर तुम ऊपरवाले के पास इसकी रिपोर्ट नहीं करते हो, तो वह हमें दोष नहीं देगा। अगर तुम इसकी रिपोर्ट करते हो, तो हमारी काट-छाँट की जाएगी। तुम लोग अपना चुनाव खुद कर सकते हो; अगर तुम लोग ऊपरवाले के पास इसकी रिपोर्ट करना चाहते हो, तो जाओ करो। अब, जो कोई भी इसकी रिपोर्ट करना चाहता है, वह अपना हाथ उठाए।” उसका यह लहजा सुनकर हर व्यक्ति यह सोच-विचार करना शुरू कर देता है, “क्या मुझे वाकई इसकी रिपोर्ट करने की अनुमति है या नहीं?” सोच-विचार करने के बाद, कुछ लोग अपने हाथ उठाते हैं। मसीह-विरोधी यह देखता है और सोचता है, “तुम अब भी इसकी रिपोर्ट करना चाहते हो? क्या तुम मुसीबत को दावत नहीं दे रहे हो? ठीक है, मैं तुम्हें नहीं भूलूँगा।” बाद में, वह इस व्यक्ति को सजा देने के अवसरों के बारे में सोच-विचार करना शुरू कर देता है। वह एक बहाना ढूँढ लेता है और कहता है, “तुमने हाल ही में अपने कर्तव्य करते समय कोई परिणाम पेश नहीं किए हैं। जिस किसी ने भी तीन महीने अपने कर्तव्य करते समय परिणाम पेश नहीं किए हैं, उसके कर्तव्य करने का अधिकार रद्द कर दिया जाएगा। अगर उसके प्रदर्शन में सुधार नहीं होता है, तो उसे सबसे अलग-थलग कर दिया जाएगा। अगर फिर भी उसने पश्चाताप नहीं किया, तो उसे बहिष्कृत या निष्कासित कर दिया जाएगा!” क्या वह बेवकूफ, वह कायर अब भी इसकी रिपोर्ट करने की हिम्मत करता है? यह सुनकर वह सोचता है, “मैं अपनी खातिर इसकी रिपोर्ट नहीं कर रहा हूँ। मेरे रिपोर्ट करने का क्या फायदा है? अगर मैं इसकी रिपोर्ट करूँ और फिर मुझे झुकाया जाए और मुझे अगुआ का प्रतिशोध झेलना पड़े, और अगर मेरे भाई-बहन मुझे अस्वीकार कर दें, तो मैं कलीसिया में सबसे अलग-थलग हो जाऊँगा। अगुआ को सुनना मेरे लिए ज्यादा जरूरी है; मुझे तो यह तक पता नहीं है कि परमेश्वर कहाँ है, तो क्या वह मेरे जीवन और मृत्यु की परवाह कर सकता है?” इसलिए, अब वह इसकी रिपोर्ट नहीं करता है। क्या वह मसीह-विरोधी द्वारा डराया नहीं गया है? (हाँ।) यह व्यक्ति मानता है, “परमेश्वर के विरुद्ध पाप करना कोई बड़ी बात नहीं है। परमेश्वर प्रेममय, दयालु, सहनशील और धैर्यवान है; वह आसानी से ना तो गुस्सा करता है और ना ही लोगों को शाप और सजा देता है। लेकिन अगर मैंने अगुआ को नाराज किया, तो मुझे कष्ट सहना पड़ेगा। समस्याओं की रिपोर्ट करने से मेरा कुछ भला नहीं होगा; मुझे सभी अस्वीकार कर देंगे। मैं ऐसी बेवकूफी वाली चीज नहीं कर सकता।” क्या यह बुजदिल होना नहीं है? (हाँ है।) ऐसे बुजदिल व्यक्ति से कैसे निपटा जाना चाहिए? क्या वह तरस खाने लायक है? ऐसे बुजदिल व्यक्ति को शैतान को, मसीह-विरोधी को सौंप दिया जाना चाहिए, ताकि मसीह-विरोधी उसे सजा दे सके—वह इसी के लायक है। उसमें सत्य का अभ्यास करने और परमेश्वर के प्रति समर्पण करने के लिए आस्था, दृढ़ निश्चय और ताकत का अभाव है, लेकिन जब मसीह-विरोधी के प्रति समर्पण करने की बात आती है, तो वह खास शक्ति हासिल कर लेता है, उससे जो भी कहा जाता है वह उसे करने के लिए तैयार रहता है और जोश से भरा होता है। जब मसीह-विरोधी उसे धमकाता और डराता है, तो उसके बाद से वह समस्याओं की रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं करता है। क्या यह कायरता नहीं है? बोलचाल की भाषा में इसके लिए क्या शब्द है? दब्बू होना और मसीह-विरोधी से सामना होने पर हार मान लेना। कलीसिया में ऐसे बहुत-से लोग हैं जो मसीह-विरोधियों की धमकियों के कारण दब्बू बन गए हैं! इन लोगों को नहीं पता है कि “परमेश्वर सभी पर संप्रभु है” वाक्यांश को कैसे समझा जाए। जब मसीह-विरोधी उन्हें धमकाता है, अस्वीकार करता है, या सबसे अलग-थलग कर देता है, तो उन्हें लगता है कि उनके पास अब कोई सहारा नहीं है, वे हर चीज पर परमेश्वर की संप्रभुता या परमेश्वर की धार्मिकता में विश्वास नहीं करते हैं, और वे यह भी नहीं मानते हैं कि लोगों का जीवन परमेश्वर के हाथों में है। मसीह-विरोधी की तरफ से कुछ डराने या धमकाने वाले शब्द आते ही वे डर जाते हैं, हार मान लेते हैं, और फिर उसकी रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं करते हैं।

जब मसीह-विरोधी अपने कार्य की रिपोर्ट ऊपरवाले को करता है, तो वह बेशर्मी से झूठ बोलता और उसे धोखा देता है। कुछ लोग जिन्हें सत्य पता होता है, वे इसे बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं और ऊपरवाले को स्थिति की रिपोर्ट करना चाहते हैं। मसीह-विरोधी लोगों पर कड़ा नियंत्रण रखता है और उन पर कड़ी नजर रखता है। वह ऐसे व्यक्ति को फौरन पहचान सकता है जो ऊपरवाले को किसी मुद्दे की रिपोर्ट करने के लिए इच्छुक हो सकता है। जब उसके पास करने के लिए कुछ नहीं होता है, तो वह लोगों को, उनके शब्दों और चेहरे के भावों को देखने पर अपना ध्यान केंद्रित करता है, उन लोगों की तलाश करता है जो उसके बारे में राय रखते हैं, जो विश्वासघाती हैं, जो उसकी आज्ञा नहीं मानते हैं, जो उसके पद के लिए खतरा हैं, जो उसके प्रति बेपरवाह हैं, जो उसके साथ गंभीरता से नहीं लेते हैं, जो उसे सम्मान का आसन नहीं देते हैं, और जो उसे भोजन करने के दौरान सबसे पहले भोजन नहीं करने देते हैं। यह इन लोगों के लिए मुसीबत का कारण बन जाता है। मसीह-विरोधी ऐसे व्यक्तियों के साथ क्या करता है? कुछ मसीह-विरोधी जो कपटी होते हैं, वे तुरंत अपने असली रंग प्रकट नहीं करते हैं। वे तुमसे निपटने के लिए अवसर का इंतजार करते हैं। अगर उससे काम नहीं बनता है, तो वे तुम्हें यह महसूस कराने के लिए जोरदार धमकियों का सहारा लेते हैं कि तुम्हारा जीवन उसकी मुट्ठी में है। एक विश्वासी के रूप में तुम्हें बचाया जा सकता है या नहीं, तुम अंत तक पहुँच पाते हो या नहीं, तुम कलीसिया में रह सकते हो या नहीं—यह सबकुछ उसकी मुट्ठी में है और इसके लिए उससे सिर्फ एक शब्द की जरूरत है। उसका फैसला ही अंतिम है। अगर तुम उसकी बात नहीं सुनते, उसके नियंत्रण को नहीं मानते, उसे गंभीरता से नहीं लेते हो, और उसके मुद्दों की रिपोर्ट करने का प्रयास करते रहते हो, तो तुम्हें कष्ट सहना पड़ेगा। वह तुम्हें सजा देने की योजना बनाना शुरू कर देगा। मसीह-विरोधी भाई-बहनों द्वारा उसकी समस्याओं की रिपोर्ट ऊपरवाले को करने के व्यवहार को कैसे देखता है? (चुगली करने की तरह।) बिल्कुल सही कहा, वह इसे स्थिति की रिपोर्ट करने के रूप में नहीं देखता है; वह इसे चुगली करने के रूप में देखता है। चुगली करने का क्या मतलब है? इसका मतलब है वह सत्य के विरुद्ध जाने वाली जो तरह-तरह की चीजें करता है उन सभी की और उसके सभी बुरे कर्मों की रिपोर्ट ऊपरवाले को करना, या ऊपरवाले को उसके बारे में उन चीजों का ब्यौरा देना जिनसे दूसरे लोग अनजान हैं। वह इसे चुगली करना मानता है। एक बार जब वह किसी को चुगली करते हुए पाता है, तो उस व्यक्ति को जरूर सजा दी जाना चाहिए। कुछ भ्रमित और बुजदिल लोग मसीह-विरोधी की धमकियों से, उसके रोबदार और बेईमान तरीकों से डर जाते हैं। जब मसीह-विरोधी पूछता है कि ऊपरवाले से किसका संपर्क है, तो उसके उन तक पहुँचने से पहले ही वे जल्दी से यह बात साफ कर देते हैं, “वो मैं नहीं हूँ।” मसीह-विरोधी पूछता है, “तो ऊपरवाला उस मामले के बारे में कैसे जानता है?” वे इस बारे में सोचते हैं और कहते हैं, “मुझे भी नहीं पता।” मसीह-विरोधी उन्हें इस हद तक सजा देता है कि वे लगातार डर के साये में जीते हैं, हमेशा घबराए रहते हैं और डरते हैं कि मसीह-विरोधी उन्हें कलीसिया से निष्कासित कर सकता है। वे इस हद तक परेशान और भयभीत रहते हैं कि उनके लिए दिन गुजारना भी मुश्किल होता है। अगर मसीह-विरोधी ने उन्हें इस तरह से धमकाया नहीं होता, तो क्या वे इतने डरे हुए होते? नहीं, वे नहीं होते। इसके अलावा, क्या वे परमेश्वर में सच्चा विश्वास रखते हैं? (नहीं, वे नहीं करते हैं।) वे बुजदिल और गड़बड़ी करने वाले व्यक्ति हैं। जब उनका सामना मसीह-विरोधी से होता है, तो वे दुबक जाते हैं। उनका परमेश्वर में सच्चा विश्वास नहीं है, लेकिन वे खुशी से मसीह-विरोधी के आगे झुक जाते हैं, उसकी हर आज्ञा को मानने के लिए तैयार रहते हैं। वे प्रकृति से ही शैतान के अनुचर होते हैं।

मसीह-विरोधी लोगों को धमकाने के लिए और कौन से अभ्यासों का उपयोग करते हैं? कुछ मसीह-विरोधी तुम्हें रोकने और बेबस करने के लिए कुछ सही और आकर्षक सिद्धांत बोलने में माहिर होते हैं। वे कहते हैं, “क्या तुम सत्य से प्रेम नहीं करते हो? अगर तुम सत्य से प्रेम करते हो, तो तुम्हें मेरी बात जरूर सुननी चाहिए क्योंकि मैं अगुआ हूँ। मैं जो भी कहता हूँ, वह सत्य के अनुरूप होता है। मैं जो भी कहता हूँ, तुम्हें उसे मानना चाहिए; जब मैं कहता हूँ कि पूर्व की तरफ जाओ, तो तुम्हें पश्चिम की तरफ नहीं जाना चाहिए। जब मैं कुछ कहता हूँ, तो तुम्हें पुनर्विचार नहीं करना चाहिए; तुम्हें कोई राय नहीं बनानी चाहिए या आँख मूँदकर दखल नहीं देना चाहिए। मैं जो कहता हूँ, वही सत्य है।” अगर तुम उनकी बात नहीं सुनते हो, तो वे तुमसे नफरत कर सकते हैं या तुम्हारी निंदा कर सकते हैं। किस तरह की निंदा? वे कहेंगे, “तुम सच में ऐसे व्यक्ति नहीं हो जो सत्य से प्रेम करता है; अगर तुम सचमुच सत्य से प्रेम करते हो, तो अगुआ के रूप में, मेरे शब्द सही हैं—तुम लोग उन्हें क्यों नहीं सुनते?” मसीह-विरोधी तुम्हें नियंत्रित करने और रोकने के लिए इन सही प्रतीत होने वाले मतों और धर्म-सिद्धांतों का उपयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त, कुछ मसीह-विरोधी लोगों को उनके निजी मामलों को संभालने के लिए कहते हैं, “अब मैं एक अगुआ हूँ, और मेरे पास कुछ निजी मामलों के लिए समय नहीं है। इसके अलावा, मैं एक अगुआ हूँ, और मेरे मामले परमेश्वर के घर के मामले हैं। परमेश्वर के घर के मामले भी मेरे मामले हैं। अब हम उतनी स्पष्टता से उनमें अंतर नहीं कर सकते हैं। इसलिए, तुम लोगों को मेरे घर के मामलों में से कुछ बोझ मेरे साथ साझा करना पड़ेगा, जैसे कि बच्चों की देखभाल करना, खेती करना, सब्जियाँ बेचना, या घर बनाना, और घर में पर्याप्त पैसे नहीं होने जैसी चीजें। इससे पहले ये चीजें मेरा कर्तव्य हुआ करती थीं, लेकिन अब जब मैं एक अगुआ हूँ, तो ये तुम लोगों की जिम्मेदारी बन गई हैं—तुम लोगों को यह बोझ साझा करना पड़ेगा। नहीं तो, मैं लगातार अपने घर के मामलों की चिंता करता रहूँगा, ये मामले मेरा ध्यान खींचते रहेंगे, तो क्या तब भी मैं एक प्रभावी अगुआ बन सकूँगा?” वे जितना ज्यादा कहते हैं, उतने ही बेशर्म होते जाते हैं। कुछ लोग यह सुनते हैं और सोचते हैं, “हम तुम्हारे दिल के प्रति विचारशील होना नहीं जानते थे—हम सच में बेरहम थे! तुम्हें कुछ कहने की जरूरत नहीं है; अब से, हम तुम्हारे घर के सभी कामों को संभालेंगे।” ये मसीह-विरोधी अपने घर के मामलों और अपने दैनिक जीवन के मामलों को किस तरह के मीठे नाम देते हैं? वे उन्हें “लोगों का कर्तव्य” कहते हैं, यानी मसीह-विरोधी लोगों द्वारा उनके परिवार के लिए काम करने, उनके परिवार में छोटे-बड़े सदस्यों की सेवा करने और उनके निजी जीवन के मामलों को संभालने को लेते हैं और उन्हें परमेश्वर के घर के मामलों में बदल देते हैं। चूँकि अब ये परमेश्वर के घर के मामले हैं, इसलिए हर व्यक्ति को अपने हिस्से का योगदान करना चाहिए, और अगर अगुआ चाहता है कि तुम लोग कुछ करो, तो यह तुम्हारा कर्तव्य बन जाता है। क्या यह सुनने में सही नहीं लगता है? जो लोग पहचान नहीं पाते हैं, वे इसे सही मान सकते हैं। वे मानते है कि चूँकि अगुआ इतना व्यस्त रहता है कि उसके पास अपने घर के मामलों को संभालने का समय नहीं है, और खुद उनके पास कम काबिलियत है और वे कोई कर्तव्य नहीं कर सकते हैं, इसलिए वे सिर्फ अगुआ के घर के कुछ कामों को करने में ही उसकी मदद कर सकते हैं। इसलिए, जब भी वे व्यस्त नहीं होते हैं, तो वे अगुआ के घर पर काम करते हैं, और तरह-तरह के कामों में उसकी मदद करते हैं। क्या इसे उनका कर्तव्य करना माना जा सकता है? इसे सिर्फ जोश से लोगों की मदद करने के रूप में ही देखा जा सकता है। जो लोग सही मायने में परमेश्वर के लिए खुद को खपाते हैं, जो परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलते हैं, जब उनके परिवार मुश्किलों का सामना करते हैं, तो कलीसिया उनकी मदद करने और उनके घरेलू मामलों को संभालने के लिए लोगों की व्यवस्था करता है। ऐसे मामलों में, इसे कुछ हद तक कर्तव्य का प्रदर्शन माना जा सकता है। क्या अब इसका कोई मतलब बनता है? कलीसिया में लोगों को गुमराह करने और नियंत्रित करने में व्यस्त मसीह-विरोधी भाई-बहनों के लिए उसके घरेलू कामों की व्यवस्था करता है और दावा करता है कि यह भी उनका कर्तव्य करना है। कुछ भाई-बहन, सत्य की समझ का अभाव होने के कारण, गुमराह हो जाते हैं और अपनी मर्जी से इन कामों की जिम्मेदारी ले लेते हैं और ऐसा करके खुश होते हैं। आखिर में, उन्हें यह भी लगता है कि वे अगुआ के कर्जदार हैं और सोचते हैं, “अगुआ ने हमारे लिए अपना दिल तोड़ दिया है और अपने होंठ फाड़ दिए हैं। हम कितने नालायक हैं। हमने इतना सारा कार्य किया है, फिर भी ऐसा कैसे है कि हम अब भी कोई सत्य नहीं समझते हैं?” अगर तुम दिन भर अगुआ के लिए काम करने में व्यस्त रहते हो और सभाओं में हिस्सा लेने या धर्मोपदेश सुनने के प्रति लापरवाह होते हो, तो क्या तुम सत्य समझ सकोगे? यह पूरी तरह से असंभव है। यह मर-मिटने की हद तक खुशामद करना है! यह मसीह-विरोधी के पीछे भागना और भटककर कुटिल मार्ग पर आ जाना है। मसीह-विरोधी अक्सर सही प्रतीत होने वाले बयानों का उपयोग करता है, उन्हें ऐसा बनाकर तैयार करता है कि वे सही बातें लगें, जिससे लोग गलत ढंग से यह मान लेते हैं कि ये शब्द वाकई सत्य हैं, कुछ ऐसी चीजें हैं जिनका उन्हें अनुसरण और अभ्यास करना चाहिए, और यह कि उन्हें इन शब्दों को स्वीकार करना चाहिए। इस तरह, लोगों को यह समझने की जरूरत नहीं पड़ती है कि क्या अगुआ जो कर रहा है वह सही है या गलत है, या वह जिसका अनुसरण कर रहे हैं वह सही है या गलत है। क्या यही मामला नहीं है? इसे गुमराह करना कहते हैं, और यह लोगों को धमकाना भी है। मसीह-विरोधी इन लोगों को नियंत्रित करने के लिए इन सही प्रतीत होने वाले मतों और बयानों का उपयोग करता है। वह उन्हें किस हद तक नियंत्रित करता है? ये लोग अपनी मर्जी से उसके लिए कड़ी मेहनत करते हैं, उसके लिए जी-तोड़ मेहनत करते हैं, और उसके सभी निजी मामलों का प्रबंध करते हैं। वे पूरा समय बस मसीह-विरोधी को अपनी सेवाएँ देने और उसके लिए जी-जान से कार्य करने के लिए सभाओं को छोड़ना पसंद करते हैं, अपने खुद के कर्तव्यों के प्रति लापरवाह हो जाते हैं, अपने खुद के कार्यों को पीछे छोड़ देते हैं, और आध्यात्मिक भक्ति, सभा, और परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने के लिए अपने खुद के समय को कुर्बान कर देते हैं। वे इस तरह से जी-तोड़ मेहनत क्यों कर पाते हैं? इसका एक कारण है। क्या कारण है? वह यह है कि मसीह-विरोधी उनसे जानबूझकर कहता है, “अगर तुम लोग इन मामलों को भी उचित रूप से नहीं संभाल सकते, तो फिर तुम और क्या कर्तव्य कर सकते हो? अगर तुम अपना कर्तव्य नहीं कर सकते, क्या तब भी तुम परमेश्वर के घर के सदस्य हो? फिर ठीक है, मैं तुम्हारी अगुवाई नहीं करूँगा। अगर मैंने तुम्हारी अगुवाई नहीं की, तो तुम्हें परमेश्वर के घर के जन में नहीं गिना जाएगा। चूँकि मुझे अगुआ के रूप में चुना गया है, इसलिए मैं इस कलीसिया का प्रवेश द्वार हूँ। जो कोई भी इस कलीसिया में प्रवेश करने की इच्छा रखता है, उसे मुझसे अनुमति लेनी पड़ेगी। मेरी सहमति के बगैर कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता है। चाहे कलीसिया किसी को बाहर ही क्यों ना निकाल रहा हो, मुझसे अनुमति लेने के बाद ही वह यहाँ से जा सकता है। इसलिए, मैं तुम लोगों को जो कार्य सौंपता हूँ और तुम लोगों को जिन कार्यों की जिम्मेदारी देता हूँ, वे तुम्हारे कर्तव्य हैं। अगर तुम लोग अपना कर्तव्य उचित रूप से नहीं करते हो, तो तुम्हें उद्धार का अवसर नहीं मिलेगा। तुम्हें परमेश्वर के घर में नहीं गिना जाएगा!” क्या यह धमकी नहीं है? (हाँ है।) लोगों को धमकाने के लिए किस तरीके का उपयोग किया जाता है? (सही शब्दों का।) यह सही शब्दों का उपयोग करके लोगों को धमकाना है, ऐसे शब्द जो सुनने में सत्य के अनुरूप प्रतीत होते हैं—यह सेब और संतरे को मिलाना है। मसीह-विरोधी अपने निजी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए कर्तव्य करने को बहाने के रूप में उपयोग करते हैं। लेकिन क्या उसके लिए चीजें करना वाकई में कर्तव्य करना है? वह इसे तोड़ता-मरोड़ता है ताकि ऐसा प्रतीत हो कि यह एक ऐसा कर्तव्य है जिसे लोगों को करना चाहिए, और फिर कर्तव्य करने के सिद्धांत और मानकों का उपयोग करके यह माँग करता है कि भाई-बहन उनके लिए जी-तोड़ मेहनत करें। वह यह धमकी तक देता है कि अगर वे उसके लिए जी-तोड़ मेहनत नहीं करेंगे, तो उनके पास उद्धार का कोई अवसर नहीं होगा और उन्हें कलीसिया से बहिष्कृत कर दिया जाएगा और परमेश्वर के घर से अलग कर दिया जाएगा। जब ये बेवकूफ, पहचान न कर पाने वाले व्यक्ति सुनते हैं कि परिणाम कितने गंभीर होंगे, तो वे जल्दी से अगुआ के घर के सभी कामों और उसके दैनिक मामलों की जिम्मेदारी ले लेते हैं, और काम पूरे कर लेने के बाद राहत महसूस करते हैं। वे खुद से खुश होकर यह तक सोचते हैं, “अब मैंने अपना कर्तव्य उचित रूप से पूरा कर लिया है। मैं बिल्कुल भी आलसी नहीं रहा हूँ, और मैं अगुआ की इच्छा के प्रति विचारशील रहा हूँ। मैंने वह सबकुछ किया है जिसे अगुआ ने मुझे करने के लिए कहा, और मैंने अगुआ के घर के सारे कामों को संभाल लिया है। परमेश्वर के प्रति विचारशील होने का यही मतलब है! अगुआ संतुष्ट है, और परमेश्वर भी। अब मुझे उद्धार की उम्मीद है!” क्या इसे उम्मीद कहते हैं? क्या वे मसीह-विरोधी के गुलाम नहीं बन गए हैं? क्या मसीह-विरोधी उन्हें गलत दिशा में नहीं ले गया है? यहाँ मसीह-विरोधी क्या भूमिका निभा रहा है? क्या वह एक अपहरणकर्ता की तरह कार्य नहीं कर रहा है? वह दुष्ट स्वभाव का है, और दुष्टता निश्चित रूप से धोखेबाजी से कहीं ज्यादा गंभीर है। इसलिए वह पूरी तरह से जानता है कि लोगों को रोकने, अपनी गुप्त योजना को पूरा करने, लोगों के दिल जीतने और उनके व्यवहार और विचारों को नियंत्रित करने के लिए क्या कहना है और किन मतों का उपयोग करना है। वह इन सब बातों को बड़ी अच्छी तरह से जानता है। इसलिए, मसीह-विरोधी अपनी हर बात और अपने हर कार्य के जरिये जिन लक्ष्यों को हासिल करना चाहता है, वे ध्यान से सोचे-समझे और बहुत पहले से तय किए हुए होते हैं। यह निश्चित रूप से अनजाने में कुछ कहने या करने और फिर अनपेक्षित परिणाम हासिल करने का मामला नहीं है—यह ऐसा बिल्कुल नहीं है। इसलिए, जो लोग अपनी मर्जी से मसीह-विरोधी को अपनी सेवाएँ देते हैं और उसके लिए जी-तोड़ मेहनत करते हैं, वे उसके शब्दों से गुमराह होने के अलावा, मसीह-विरोधी की एक तरह की बयानबाजी से डरते और मजबूर भी होते हैं। शायद वे मसीह-विरोधी के लिए ये सारी चीजें अपनी मर्जी से करते हैं, लेकिन क्या इस “मर्जी” में कोई समस्या नहीं है? क्या इसे उद्धरण चिह्नों में नहीं रखा जाना चाहिए? (हाँ।) यह बिल्कुल भी कर्तव्य का सच्चा प्रदर्शन नहीं है, बल्कि लोगों को गुमराह करने वाले एक खास मत, एक खास सही और सुनने में मीठी लगने वाली दलील या बयानबाजी से गुमराह होने का परिणाम है। क्योंकि वे चिंतित हैं कि वे अपना कर्तव्य नहीं कर पाएँगे, कि उन्हें बहिष्कृत कर दिया जाएगा, और वे बचाए नहीं जाएँगे, इसलिए वे मसीह-विरोधी द्वारा उन्हें निर्दिष्ट किए गए कार्यों को अपनी मर्जी से स्वीकार कर लेते हैं, यहाँ तक कि यह भी सोचते हैं कि वे परमेश्वर के लिए अपना कर्तव्य कर रहे हैं। वे कितने भ्रमित हो गए हैं!

मसीह-विरोधियों की धमकियाँ लोगों को उनके असली चेहरों को स्पष्ट रूप से देखने देती हैं। क्या तुम लोग ऐसी धमकियाँ देते हो? क्या धमकियों और चेतावनियों या सलाह में कोई अंतर है? (हाँ।) तुम लोग इसे पहचान सकते हो या नहीं? यह अंतर कहाँ है? यह अंतर ढूँढ लो, और तुम लोग समझ जाओगे और पहचान पाओगे। (यहाँ इरादे अलग-अलग हैं।) इरादों और उद्देश्यों में निश्चित रूप से अंतर है। तो, यह अंतर ठीक-ठीक कहाँ है? धमकी क्या होती है? धमकी में ऐसे शब्द शामिल होते हैं जो अच्छे और सही लग सकते हैं, और लोग उन्हें सुनकर बहुत ज्यादा परेशान नहीं होते हैं, लेकिन उनका उद्देश्य निजी फायदा होता है। दूसरी तरफ, सलाह और चेतावनियों का क्या उद्देश्य होता है? लोगों की मदद करना, उन्हें गलतियाँ करने, मार्ग से भटकने या घूम कर जाने और गुमराह होने से रोकना और नुकसान को कम करने या रोकने में उनकी मदद करना। इसका लक्ष्य निजी फायदा नहीं है, बल्कि पूरी तरह से दूसरों की मदद करना है। क्या यही अंतर नहीं है? (हाँ।) इस बारे में, तुम्हें पहचान करना सीखना होगा। सिर्फ इसलिए कि मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को धमकाने की अभिव्यक्ति के बारे में संगति की जा चुकी है, इसका यह मतलब नहीं है कि तुम लोग दूसरों से बात करते समय जरूरत पड़ने पर चेतावनियाँ देने की हिम्मत ही न करो। जब चेतावनी की जरूरत हो, तो तुम्हें चेतावनी देनी चाहिए। चेतावनी और सलाह धमकियों के समान नहीं हैं। चेतावनियों का सही मायने में लक्ष्य लोगों की मदद करना होता है ताकि वे अपने कर्तव्य उचित रूप से कर सकें, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि परमेश्वर के घर के कार्य के साथ कोई समझौता नहीं किया जाए। उनका लक्ष्य जायज है। दूसरी तरफ, धमकाने में एक नाजायज और गुप्त योजना होती है—इसमें निजी महत्वाकांक्षा और मतलबी इच्छा शामिल रहती है। मिसाल के तौर पर, जब मसीह-विरोधी दूसरों से अपने घर के काम करवाता है, तो उसकी मतलबी इच्छा क्या होती है? वह सिर्फ रुतबे का फायदा उठाना चाहता है, दूसरों से गंदे और थकाने वाले काम करवाता है जबकि वह खुद कुछ नहीं करता है। फिर, किसी को उसे दिन में तीन बार खाना भी परोसना पड़ता है। उसका मानना है कि अब जब वह एक पद पर आसीन है, तो उसका आनंद लेना शुरू हो सकता है। हालाँकि, लोगों को सीधे उसके लिए कार्य करने के लिए कहना अनुचित है, इसलिए मसीह-विरोधी बहाने बनाता है और कहता है, “अब जब मैं एक अगुआ हूँ, तो मैं अपने कर्तव्यों में बहुत व्यस्त रहता हूँ। अगर तुम लोगों के पास बोझ और मानवता है, तो तुम्हें सहयोग करना सीखना चाहिए। तुम क्या कर सकते हो? तुम लोग बस अपना भरसक प्रयास कर सकते हो, है ना? मेरे घर पर सब्जी के बाग में कार्य करने वाला कोई नहीं है, और तुम लोग मदद नहीं कर रहे हो! अगर तुम लोग मदद करते हो, तो उससे यह साबित होता है कि तुम्हारा दिल दयालु है, और तुम लोग कार्य में मेरी मदद करके वाकई अपना कर्तव्य कर रहे हो। मैं तुम लोगों का अगुआ हूँ—क्या मेरे मामले तुम लोगों के भी मामले नहीं हैं? क्या तुम लोगों के मामले ऐसी चीजें नहीं हैं जिन्हें तुम लोगों को करना चाहिए, और जो तुम लोगों को करना चाहिए वह तुम लोगों का कर्तव्य है, है ना?” जब वह तुम्हारे कंधों पर इतनी बड़ी जिम्मेदारी डाल देता है, और तुम सोचते हो कि अगुआ जो कह रहा है उसका मतलब बनता है, तो तुम जाकर उसके लिए कार्य करते हो। क्या यह किसी घोटाले में फँसना नहीं है? मसीह-विरोधी के अपने लक्ष्य होते हैं, और इससे पहले कि वह उन लक्ष्यों को हासिल कर सके, उसे एक मिथ्या कारण स्थापित करने के लिए उचित बहाने और मत ढूँढने की जरूरत पड़ती है। फिर, जो लोग इन मतों को स्वीकार कर लेते हैं, वे उसके लिए काम करने चले जाते हैं, वह अपना उद्देश्य हासिल कर लेता है, और फिर वह रुतबे के फायदों का आनंद ले सकता है। क्या यह ऐसा व्यक्ति नहीं है जो कलीसिया के जरिये अपनी रोजी-रोटी कमा रहा है? (हाँ।) यह बिल्कुल वही है। वह आलसी है और कार्य करने के लिए अनिच्छुक है, वह शारीरिक आराम और रुतबे के फायदों का आनंद लेना चाहता है। वह राजनीति करता है और जब उसे उपयुक्त शब्द नहीं मिलते हैं, तो वह परमेश्वर के वचनों और जिन धर्म-सिद्धांतों को वह समझता है उनमें से मुनासिब और आसानी से स्वीकार्य वाक्यांशों को निकाल लेता है। वह इन शब्दों का उपयोग उन लोगों को गुमराह करने और रोकने के लिए करता है जो सत्य नहीं समझते हैं और बेवकूफ हैं। ऐसा करके वह अपने गुप्त उद्देश्यों को हासिल करता है, जिससे लोग खुशी से उसकी चालाकी को स्वीकार कर लेते हैं। यहाँ तक कि कुछ लोग यह भी सोचते हैं कि अगर उन्होंने अगुआ की बातों पर ध्यान नहीं दिया या वे अपने अगुआ द्वारा सौंपे गए कार्यों को अच्छी तरह करने से चूक गए, तो इसका मतलब है कि उन्होंने अपना कर्तव्य उचित रूप से नहीं किया। उन्हें लगता है कि वे परमेश्वर के कर्जदार हैं और यहाँ तक कि वे आँसू भी बहाते हैं। क्या यह बहुत गहरी भ्रामक स्थिति नहीं है? वे इतने भ्रमित हैं कि यह घिनौना है।

मसीह-विरोधी अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अक्सर धमकियों का उपयोग करके बोलते हैं, लेकिन कभी-कभी उनकी धमकियाँ सही शब्दों के रूप में और कोमल तरीके से दी जाती हैं, जैसे कोई साँप धीरे-धीरे खुद को तुम्हारे इर्द-गिर्द लपेट रहा हो—एक बार जब तुम उसकी लपेट में आ जाते हो, तो वह तुम्हारी जान माँगने के लिए तैयार हो जाता है। दूसरे मौकों पर, उसकी धमकियाँ कोमल नहीं, बल्कि कठोर और क्रूर होती हैं, जैसे कोई भेड़िया किसी भेड़ को घूर रहा हो और अपना क्रूर चेहरा प्रकट कर रहा हो। उसका इरादा लोगों को यह बताना है : “अगर तुम ने मेरी बात नहीं सुनी, तो तुम जिस चीज के लायक हो, वह तुम्हें मिलेगा, और अगर परिणाम सामने आए, तो तुम खुद उसकी जिम्मेदारी उठाओगे!” मसीह-विरोधी अपनी धमकियों में किस तरह के विशिष्ट सौदेबाजी के सिक्कों का उपयोग करते हैं? वे लोगों के गंतव्य, उनके कर्तव्य और यहाँ तक कि उनके पद और कलीसिया से जाने या रहने को भी निशाना बनाते हैं। मसीह-विरोधी लोगों को धमकाने के लिए इन युक्तियों का और यकीनन कई दूसरी चालों का उपयोग करते हैं। हालाँकि, आम तौर पर, उनकी रणनीतियाँ इन दो श्रेणियों में आती हैं : कभी-कभी, वे तुम्हें मीठे शब्दों से मनाएँगे, और दूसरे मौकों पर, वे तुमसे जबर्दस्ती और दुष्टतापूर्वक पेश आएँगे। तो, मसीह-विरोधियों की धमकियों का क्या उद्देश्य है? सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि वे चाहते हैं कि लोग उनकी बात सुनें। उनका लक्ष्य दूसरे लोगों से फायदे बटोरना, रुतबे के फायदों का आनंद लेना, और इसके साथ आने वाली तरह-तरह की सुविधाओं और सुखों में लिप्त होना है। दूसरा यह कि वे नहीं चाहते हैं कि कोई भी उनके मामलों की वास्तविक स्थिति का खुलासा करे या उनकी स्थिति को चुनौती दे। वे लोगों द्वारा ऐसा कुछ भी करना बर्दाश्त नहीं करेंगे जो उनकी स्थिति को खतरे में डालता हो। मिसाल के तौर पर, अगर कुछ लोग उनकी स्थिति के बारे में उच्च-अधिकारियों को रिपोर्ट करना चाहते हैं या अगर कुछ लोग उन्हें पहचान लेते हैं और उन्हें अस्वीकार करने और उनके पद से उन्हें हटाने के लिए भाई-बहनों को एकजुट करना चाहते हैं, तो मसीह-विरोधी धमकाने की युक्तियों का सहारा लेंगे। धमकियाँ देने के लक्ष्य का एक पहलू अपने पद के साथ आने वाले कई फायदों का आनंद लेना है, और दूसरा अपना पद सुरक्षित करना है। लोगों को धमकाने में मसीह-विरोधियों के सटीक रूप से यही दो उद्देश्य होते हैं—ये दोनों ही पद पर केंद्रित होते हैं। ये सभी तरह-तरह के फायदे कहाँ से आते हैं? वे भी उसके पद से आते हैं। कुछ मसीह-विरोधी कहते हैं, “अगर तुम लोग इस मामले में अनुपालन नहीं करोगे, तो तुम परिणाम भुगतोगे!” अगर कोई उन्हें पहचान लेता है और उनकी बात नहीं सुनता है, तो क्या वे इसे संभालने का कोई तरीका सोचते हैं? आगे चाहे कुछ भी आए, वे उसे आसानी से स्वीकार नहीं करेंगे। जब तक उन्हें अपने पद को बचाए रखने की जरा सी भी उम्मीद रहेगी, वे उसके लिए जी-जान से लड़ेंगे। पद के लिए उनकी उत्सुकता ज्यादातर लोगों से बहुत ज्यादा है। यह भेड़िये का भेड़ को एकटक देखने जैसा है—खाने से पहले ही उसके मुँह में पानी आने लगता है। उसकी आँखों में एक तेज चमक आ जाती है और वह उसे खाने के बारे में सोचने लगता है; उसमें इसी तरह की लालसा होती है। क्या यह उसकी प्रकृति नहीं है? (हाँ।) पद के लिए मसीह विरोधियों की लालसा भेड़िये की भेड़ के लिए लालसा के समान है, एक ऐसी जरूरत है जो उसकी दुर्भावनापूर्ण प्रकृति में निहित है। इसलिए, वे दूसरों को जो धमकियाँ देते हैं, वे अनिवार्य हैं।

IV. मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को नियंत्रित करने का विश्लेषण

लोगों को नियंत्रित करना मसीह-विरोधियों द्वारा उपयोग की जाने वाली युक्तियों में से एक है। वे लोगों को कैसे नियंत्रित करते हैं? मसीह-विरोधियों के पास लोगों को नियंत्रित करने के तरीके के एक से ज्यादा संग्रह होते हैं; उनके पास कई संग्रह होते हैं। क्या तुम लोगों ने कभी इसका अनुभव किया है? हो सकता है कि कुछ व्यक्तियों ने अगुआ के रूप में कभी कार्य नहीं किया हो, लेकिन वे दूसरों को नियंत्रित करने की इच्छा रखते हैं—यह मसीह-विरोधी का बनना है। उसकी आयु, स्थान या परिस्थितियाँ चाहे कुछ भी हों, वह लोगों पर अपना नियंत्रण रखना चाहता है। यहाँ तक कि भोजन करने, कार्य करने या विशेषज्ञता के अलग-अलग क्षेत्रों या पेशेवर मामलों में भी वह चाहता है कि लोग उसकी बात सुनें, और वह ऐसे किसी भी व्यक्ति को बर्दाश्त नहीं करता जो उसकी बात नहीं सुनता है। वह तो कलीसिया में सत्ता पर कब्जा करने की अपनी इच्छा को भी नियंत्रित नहीं कर पाता है। वह इसे अपनी जिम्मेदारी और बाध्यता को पूरा करने के रूप में देखता है, और सोचता है कि वह बस अपना भार उठा रहा है, बिना इस बात को समझे कि यह उसकी महत्वाकांक्षा और इच्छा है, कि यह उसका भ्रष्ट स्वभाव है। तो, मसीह-विरोधी लोगों को कैसे नियंत्रित करता है? मिसाल के तौर पर, जब उसे अगुआ के रूप में चुना जाता है, तो पहले ही दिन वह सोचने लगता है, “इन लोगों की खान-पान की आदतें और दैनिक दिनचर्या अनियमित हैं; यहाँ बहुत सारा कार्य करना होगा। अगुआ होने के नाते महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ संभालनी पड़ती हैं—यह एक भारी बोझ है!” मसीह-विरोधी पूरा दिन अपने कमरे में बंद रहकर दो या तीन पन्ने की सामग्री लिखने में बिता देता है। इस सामग्री में क्या है? सबसे पहला, इसका संबंध भोजन करने से है। भोजन विशिष्ट समय पर, विशिष्ट स्थानों पर करना चाहिए, और भोजन विशिष्ट मात्राओं में लिया जाना चाहिए। सुबह 6:30 बजे नाश्ता, दोपहर 12:30 बजे दोपहर का भोजन और शाम 6:30 बजे रात का भोजन—भोजन इन तीन समय पर किया जाएगा, ना एक मिनट पहले और ना एक मिनट बाद। परिस्थितियाँ चाहे कैसी भी हों, चाहे बारिश होने लगे या तूफान शुरू हो जाए, तुम्हें समय का पाबंद होना चाहिए, और अगर तुम इन नियमों का उल्लंघन करते हो, तो तुम्हें भोजन नहीं मिलेगा। फिर दैनिक दिनचर्या का मामला है, जो बहुत जरूरी है। तुम्हें हर सुबह 6:00 बजे बिस्तर से उठ जाना चाहिए, चाहे पिछली रात तुम कितनी भी देर से सोने क्यों ना गए हो। तुम्हें दोपहर 1:00 बजे भोजन करने के बाद आराम करना चाहिए, और हर रात 10:00 बजे तुरंत सोने चले जाना चाहिए। जब वह भोजन करने और दैनिक दिनचर्या के लिए नियम बनाना समाप्त कर लेता है, तो उसके बाद भी कई दूसरे खास नियम रहते हैं। मिसाल के तौर पर, तुम्हें निर्दिष्ट स्थानों पर ही भोजन करना चाहिए और भोजन करते समय बिल्कुल शोर नहीं करना चाहिए। हर व्यक्ति को खास पोशाक पहननी पड़ेगी, वगैरह-वगैरह। ये नियम बहुत ही ज्यादा ब्योरेवार हैं, परमेश्वर के घर में प्रशासनिक आदेशों से भी ज्यादा। इन रोजमर्रा की छोटी-छोटी बातों का सत्य से कोई लेना-देना नहीं है। जब तक व्यक्ति का दैनिक जीवन और उसके खान-पान की आदतें संरचित और उपयुक्त हैं, जो उसकी सेहत को कोई नुकसान नहीं पहुंचाती हैं, तब तक इस सिद्धांत का पालन करना पर्याप्त होना चाहिए। ऐसे ब्योरेवार नियमों की कोई जरूरत नहीं है। तो मसीह-विरोधी इतने ब्योरेवार नियम क्यों बनाता है? वह कहता है, “लोगों को बिना देखरेख के यूँ ही छोड़ देना अच्छा नहीं है। परमेश्वर के वचनों में इन मामलों का कभी जिक्र नहीं किया जाता है, और इन खास ब्योरों के बिना, हमारा जीवन अनुशासनहीन, संरचनाहीन और किसी भी मानवीय समानता के बिना होगा। अब जब मैं अगुआ हूँ, तो तुम सबको सुधारा जा सकता है। अब तुम लोग भटकती भेड़ें नहीं हो; तुम्हारी देखभाल करने के लिए कोई है।” दैनिक जीवन के महत्वपूर्ण और मामूली दोनों तरह के मामलों, जैसे कि कपड़े, भोजन, आश्रय और परिवहन, सभी को सतर्कतापूर्वक विनियमित किया गया है। फिर वह तुम्हें एक “राज़” बताता है, वह कहता है, “परमेश्वर के वचन रोजमर्रा के जीवन के इन खास ब्योरों का कभी जिक्र नहीं करते। बस इसलिए कि परमेश्वर ने इस बारे में कुछ नहीं बोला है, इसका यह मतलब नहीं है कि हमें यह नहीं पता होना चाहिए। हम मनुष्यों को उन सभी ब्योरेवार मामलों के कार्य की जिम्मेदारी लेनी होगी, जिनके बारे में परमेश्वर ने कभी बात नहीं की।” वह परमेश्वर के वचनों के बाहर नियमों और विनियमों का एक संग्रह तैयार करता है, जो स्पष्ट शब्दों के साथ ब्योरेवार और स्पष्ट रूप से परिभाषित प्रतीत होते हैं, ताकि इनसे सत्य को बदला जा सके और दूसरों की अगुवाई की जा सके। एक बार जब ये खास और स्पष्ट रूप से परिभाषित विनियम जारी कर दिए जाते हैं, तो लोगों से उसके तथाकथित नियमों का पालन करने की उम्मीद की जाती है। अगर कोई इन नियमों का पालन करने से चूक जाता है, उन्हें नहीं मानता है, अनदेखा करता है या उनका उल्लंघन करता है, तो मसीह-विरोधी उनकी काट-छाँट करता है। उनकी काट-छाँट करने के बाद, वह सुनिश्चित करता है कि वह व्यक्ति इन नियमों को स्वीकार कर ले और उन्हें परमेश्वर से स्वीकार कर ले। वह इन चीजों का उपयोग करके सत्य को प्रतिस्थापित और लोगों की अगुवाई करता है, तो वे लोग किस तरह का मार्ग चुनेंगे? वे सिर्फ विनियमों और अनुष्ठानों का पालन करेंगे, महज विधि का पालन करते रहेंगे। ऐसी अगुवाई के अंतर्गत, लोग अपनी धारणाओं के जरिये गलत ढंग से यह विश्वास कर सकते हैं कि “अगर मैं बाहरी विनियमों और औपचारिकताओं को बनाए रख सकता हूँ, अगर मैं जागने, सोने और भोजन करने के कार्यक्रम का पालन कर सकता हूँ, तो क्या इसका मतलब यह नहीं है कि मैं सत्य का अभ्यास कर रहा हूँ? फिर क्या मैं बचाया नहीं जाऊँगा?” क्या उद्धार वाकई इतना आसान है? क्या सत्य इतनी आसानी से प्राप्त हो जाता है? क्या सत्य सिर्फ मानवीय व्यवहार से संबंधित है? नहीं, ऐसा नहीं है। मसीह-विरोधी लोगों के स्वभाव, सत्य की उनकी समझ और सत्य के अभ्यास में बदलावों से कैसे पेश आता है? वह इनसे ऐसे पेश आता है मानो वे सार्वजनिक व्यवस्था का पालन करने या देश के कानूनों को मानने के समान हों। वह लोगों को गलत ढंग से यह विश्वास करने को भी मजबूर करता है कि ये नियम और विनियम परमेश्वर के वचनों से कहीं ज्यादा बड़े, ठोस और व्यावहारिक हैं। दरअसल, वह लोगों को गुमराह और नियंत्रित करने के लिए इन चीजों का उपयोग करता है, और उनके व्यवहार को मजबूती से नियंत्रित करता है। वह सत्य के उपयोग से समस्याओं को हल नहीं करता है, और ना ही वह लोगों को सत्य सिद्धांतों के अनुसार जीने, कार्य करने और अपने कर्तव्य करने के लिए प्रोत्साहित करता है। इसके बजाय, वह लोगों द्वारा अनुसरण करने के लिए बनावटी रूप से नियमों, विनियमों और प्रणालियों का एक समूह तैयार करता है। उसका क्या उद्देश्य है? वह चाहता है कि लोग उससे सहमत हों, वे उसे होशियार समझें और इन नियमों और विनियमों का अभ्यास और पालन करके उसकी अगुवाई को मानें। इस तरह से वह अपने लक्ष्य हासिल करता है। वह लोगों के व्यवहार को सीमित और मानकीकृत करके सभी के बारे में सबकुछ नियंत्रित करने का अपना ध्येय हासिल करने का लक्ष्य रखता है। और हो सकता है कि उसके कार्य करने के उद्देश्यों के संबंध में, उसमें रुतबे की स्पष्ट इच्छा ना हो, लेकिन अंतिम परिणाम यह होता है कि वह लोगों को नियंत्रित करता है, और लोग उसके द्वारा तय किए गए नियमों और विनियमों के अनुसार पूरी तरह से जीते और कार्य करते हैं। ऐसी परिस्थिति में, क्या अब भी लोगों के दिलों में सत्य की जगह होती है? नहीं होती है। मसीह-विरोधियों के पास आध्यात्मिक समझ नहीं होती है, और वे सत्य नहीं समझते हैं। अगर तुम उनके साथ मिलकर अपना कलीसियाई जीवन जीते हो, तो वे तुम्हें आज यह करने को तो कल वह करने के लिए कहेंगे, और मूल रूप से सत्य सिद्धांतों के बारे में संगति करने में असमर्थ होंगे। इसके बजाय, वे तुम्हें पालन करने के लिए सिर्फ विनियमों का एक ढेर दे देंगे। हो सकता है कि तुम उनका पालन करते-करते बुरी तरह थक जाओ, लेकिन तुम्हारे पास उनका पालन करने से मना करने का विकल्प नहीं है। वे तुम्हें मुक्त रूप से कार्य नहीं करने देंगे। यह एक तरीका है जिससे मसीह-विरोधी लोगों को नियंत्रित करते हैं।

मसीह-विरोधी लोगों में प्राथमिक तौर पर क्या नियंत्रित करता है? (उनके विचार।) सही कहा; वह मुख्य रूप से लोगों के विचारों को नियंत्रित करता है। यह सिर्फ लोग क्या कहते और करते हैं उसे नियंत्रित करने के बारे में नहीं है। वह सत्य के बारे में संगति करने के बहाने तुम्हें गुमराह करने के लिए खोखले सिद्धांतों और चालाक कुतर्कों का उपयोग करता है, जिसका लक्ष्य तुम्हारे विचारों को नियंत्रित करना है, ताकि वह तुम्हें उसकी आज्ञा मानने और उसकी अगुवाई का अनुसरण करने के लिए मजबूर कर सके। लोगों को गुमराह करने और नियंत्रित करने का यही मतलब होता है। अगर तुम उसके निर्देशों का पालन नहीं करते हो, तो तुम्हें ऐसा लग सकता है कि तुम सत्य के विरुद्ध जा रहे हो, और यहाँ तक कि तुम खुद को उसका ऋणी भी महसूस कर सकते हो या तुम्हें ऐसा लग सकता है कि जैसे तुम उसका सामना नहीं कर सकते हो। यह इस बात की निशानी है कि तुम पहले से ही उसके नियंत्रण में हो। लेकिन, अगर तुम सत्य का अभ्यास नहीं करते हो या परमेश्वर के प्रति समर्पण नहीं करते हो, तो क्या तुम अपने दिल में परमेश्वर के प्रति ऋणी महसूस करते हो? अगर तुम ऐसा नहीं महसूस करते हो, तो इसका मतलब है कि तुममें जमीर और मानवता का अभाव है। अगर तुम सत्य का अभ्यास करने के बजाय, अपने दिल में बेचैनी की कोई भावना या दोषी जमीर के बिना, मसीह-विरोधी की आज्ञा मान सकते हो, तो इसका मतलब यह है कि तुम उसके नियंत्रण में हो। मसीह-विरोधी के नियंत्रण की सबसे आम घटना यह है कि उसके अधिकार के दायरे में, अंतिम फैसला सिर्फ उसी का होता है। अगर वह मौजूद नहीं है, तो कोई भी व्यक्ति फैसला लेने या मामले को निपटाने की हिम्मत नहीं करता है। उसके बिना, दूसरे लोग खोए हुए बच्चों की तरह हो जाते हैं, जो प्रार्थना करने, तलाश करने या आपस में विचार-विमर्श करने से अनजान होते हैं, और कठपुतली या मुर्दों की तरह व्यवहार करते हैं। लोगों को गुमराह और नियंत्रित करने के लिए मसीह-विरोधी अक्सर जो कहते हैं, उस बारे में हम यहाँ विस्तार से बात नहीं करेंगे। यकीनन ऐसे कई बयान और युक्तियाँ हैं जिनका वे उपयोग करते हैं, और इसके फलस्वरूप जो परिणाम होते हैं वे उन लोगों पर होते हुए देखे जा सकते हैं जिन्हें गुमराह किया गया है। चलो मैं तुम्हें एक मिसाल देता हूँ। औसत काबिलियत वाले कुछ व्यक्ति हैं, जो बहुत बुरे नहीं हैं, जो अपना कर्तव्य निष्ठा से करते हैं और कभी-कभार ही नकारात्मक होते हैं। लेकिन, अपना कर्तव्य करने के लिए कुछ समय तक एक मसीह-विरोधी के साथ काम करने के बाद, वे उस मसीह-विरोधी पर निर्भर रहने लगते हैं। वे सभी चीजों में मसीह-विरोधी की अगुवाई का अनुसरण करना पसंद करते हैं, और मसीह-विरोधी उनका सबसे बड़ा सहारा बन जाता है। जैसे ही उन्हें इस मसीह-विरोधी से अलग कर दिया जाता है, तो वे जो भी करते हैं, उसमें निष्फल हो जाते हैं। मसीह-विरोधी की मौजूदगी के बिना, वे अपने कर्तव्य-प्रदर्शन में प्रगति करना बंद कर देते हैं, और यहाँ तक कि किसी समस्या का सामना करने पर भी, वे संगति के जरिये परिणाम प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं। वे सिर्फ मसीह-विरोधी के वापस लौटने और उनके लिए इसे हल करने का इंतजार कर सकते हैं। दरअसल, शुरू-शुरू में, मसीह-विरोधी के नियंत्रण से पहले इन व्यक्तियों में अपनी काबिलियत, अक्ल, अनुभव और पृष्ठभूमि के बल पर ऐसी चीजों को संभालने की क्षमता थी, लेकिन उसके द्वारा नियंत्रित होने के बाद, अब मसीह-विरोधी की मौजूदगी के बिना कोई भी व्यक्ति मामलों को संभालने के लिए फैसले लेने या स्पष्ट हल पेश करने की हिम्मत नहीं करता है। ऐसा लगता है जैसे उनके विचारों को कैद कर लिया गया है, जो कि अर्ध-लकवाग्रस्त लोगों के लक्षणों से मिलता-जुलता है। इन लोगों को नियंत्रित करने वाले मसीह-विरोधी ने ऐसी कौन-सी चीजें की हैं जिससे वे ऐसे व्यवहार प्रदर्शित करने लगे हैं? यकीनन, उन्हें दिल और दिमाग से आज्ञा मनवाने के लिए कुछ स्पष्ट कहावतें या बयान जरूर दिए गए होंगे। कुछ ऐसे बयान, दृष्टिकोण या क्रियाकलाप भी जरूर रहे होंगे जिनसे ये लोग सहमत थे। लेकिन, मसीह-विरोधियों में सत्य वास्तविकता का पूरा अभाव है। उनके बयान और दृष्टिकोण, चाहे सही ही क्यों ना हों, लोगों को गुमराह करने के लिए होते हैं और उनमें कोई सत्य वास्तविकता दिखाई नहीं देती है। कुछ लोग मसीह-विरोधियों की सराहना करते हैं क्योंकि उनके पास सचमुच कुछ खूबियाँ और प्रतिभाएँ होती हैं। लेकिन, ये गुण यह नहीं दर्शाते हैं कि उनके पास सत्य वास्तविकता है। जो लोग मसीह-विरोधियों की आराधना करते हैं, वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उनके पास सत्य का अभाव होता है और वे लोगों को नहीं पहचान सकते हैं, और यही कारण है कि वे मसीह-विरोधियों की और यहाँ तक कि कुछ विख्यात और महान आध्यात्मिक हस्तियों की भी आराधना कर पाते हैं। कुछ लोग मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह हो सकते हैं, लेकिन यह सिर्फ कुछ देर के लिए ही होता है, और एक बार जब वे समझ जाएँगे कि मसीह-विरोधी सिर्फ आध्यात्मिक सिद्धांतों के बारे में बात कर सकते हैं और सत्य का अभ्यास नहीं कर सकते हैं, कि उन्होंने कलीसिया के कार्य की रक्षा करने के लिए कुछ नहीं किया है और वे सच में पाखंडी फरीसी हैं, तो वे उन्हें अस्वीकार कर देंगे और उनसे नफरत करने लगेंगे। मसीह-विरोधियों द्वारा अपनी खूबियों और वाक्पटुता का उपयोग करके सत्य नहीं समझने वाले लोगों को गुमराह करने की बहुत सारी घटनाएँ हैं। मिसाल के तौर पर, अगर तुम कोई उचित सुझाव देते हो, तो सभी को इस सही प्रस्ताव पर चारों ओर से संगति करते रहना चाहिए, और यही सही मार्ग है और उनके कर्तव्य के प्रति निष्ठा और जिम्मेदारी को प्रदर्शित करता है, लेकिन मसीह-विरोधी अपने दिल में सोचता है, “मैं पहले इस प्रस्ताव के बारे में कैसे नहीं सोच पाया?” अपने दिल की गहराई में वह इस बात को मानता है कि यह प्रस्ताव सही है, लेकिन क्या वह इसे स्वीकार कर सकता है? अपनी प्रकृति के कारण, वह तुम्हारे सही सुझाव को बिल्कुल स्वीकार नहीं करेगा। वह तुम्हारे प्रस्ताव को अस्वीकार करने के लिए हर संभव प्रयास करेगा, फिर वह एक दूसरी योजना लेकर आएगा ताकि तुम्हें यह महसूस करा सके कि तुम्हारा प्रस्ताव पूरी तरह से अव्यवहार्य है, और उसकी योजना बेहतर है। वह चाहता है कि तुम यह महसूस करो कि उसके बिना तुम्हारा काम नहीं चल सकता है और उसके कार्य करने से ही हर कोई प्रभावशाली हो सकता है। उसके बिना, कोई भी कार्य सही तरीके से करना नामुमकिन है, और हर कोई नाकाबिल हो जाता है और कोई भी कार्य पूरा नहीं करवा सकता है। मसीह-विरोधी की रणनीति हमेशा नया और अनोखा दिखना और भव्य दावे करना है। भले ही किसी और के बयान कितने भी सही क्यों ना हों, वह उन्हें अस्वीकार कर देगा। चाहे दूसरे लोगों के सुझाव उसके अपने विचारों के अनुरूप क्यों ना हों, अगर वह उसके द्वारा पहले प्रस्तावित नहीं किए गए थे, तो वह उन्हें कभी स्वीकार नहीं करेगा और ना ही अपनाएगा। इसके बजाय, वह उनके महत्व को कम करने के लिए सबकुछ करेगा, फिर उन्हें नकारेगा और उनकी निंदा करेगा, लगातार उनमें कमियाँ निकलता रहेगा जब तक कि सुझाव देने वाले व्यक्ति को यह महसूस नहीं होने लगता है कि उसके विचार गलत थे और वह अपनी गलती स्वीकार नहीं कर लेता है। सिर्फ उसके बाद ही आखिर में मसीह-विरोधी इस बात को जाने देगा। मसीह-विरोधी दूसरों के महत्व को कम करके खुद को कायम करने का आनंद लेते हैं, और उनका लक्ष्य दूसरों से अपनी आराधना करवाना और खुद को केंद्र में रखवाना है। वे सिर्फ खुद को चमकने देते हैं, जबकि दूसरे सिर्फ पृष्ठभूमि में खड़े रह सकते हैं। वे जो भी कहते या करते हैं वह सही है, और दूसरे जो भी कहते या करते हैं वह गलत है। वे अक्सर दूसरों के दृष्टिकोणों और क्रियाकलापों को नकारने के लिए, दूसरों के सुझावों में कमियाँ ढूँढने के लिए और दूसरों के प्रस्तावों में गड़बड़ करने और उन्हें अस्वीकार करने के लिए नए दृष्टिकोण पेश करते हैं। इस तरह से दूसरे लोगों को उनकी बात सुननी पड़ती है और उनकी योजनाओं के अनुसार कार्य करना पड़ता है। वे इन तरीकों और रणनीतियों का उपयोग लगातार तुम्हें नकारने, तुम पर आक्रमण करने और तुम्हें यह महसूस कराने के लिए करते हैं कि तुम अयोग्य हो, जिससे तुम उनके प्रति ज्यादा-से-ज्यादा आज्ञाकारी बनते जाते हो, उनकी और ज्यादा सराहना करते हो और उनका और ज्यादा सम्मान करते हो। इस तरह से तुम उनके द्वारा पूरी तरह से नियंत्रित हो जाते हो। यह वह प्रक्रिया है जिसके जरिये मसीह-विरोधी लोगों को दबाते हैं और नियंत्रित करते हैं।

मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह और नियंत्रित करने के लिए तरह-तरह के तरीकों का उपयोग करता है; यह बस एक इशारा या कुछ शब्द नहीं हैं, जो लोगों को उसका अनुसरण करने के लिए मजबूर करते हैं—यह इतना आसान बिल्कुल नहीं है। चाहे यह लोगों को नियंत्रित करने की बात हो या अधिकार के एक पहलू, जैसे कि कार्यकर्ता-संबंधी फैसलों, वित्तीय मामलों, या अंतिम फैसलों, वगैरह को नियंत्रित करने की, वह अलग-अलग युक्तियों का उपयोग करेगा, और निस्संदेह, वह उन्हें सिर्फ कभी-कभी ही नहीं करेगा, बल्कि वह तब तक खुद का दिखावा करने और खुद की गवाही देने का लगातार प्रयास करता रहेगा जब तक लोग उसकी सराहना नहीं करते हैं और उसे नहीं चुनते हैं, और इसके बाद अधिकार उसका हो जाता है। इस लक्ष्य को हासिल करने में उसे कुछ समय लगा। लोगों को गुमराह और नियंत्रित करने के लिए मसीह-विरोधी जिस एक और तरीके का उपयोग करता है वह है लगातार अपना दिखावा करना और सभी को अपने बारे में अवगत कराना, और ज्यादा लोगों को परमेश्वर के घर में अपने योगदानों के बारे में बताना। मिसाल के तौर पर, वह कह सकता है, “इससे पहले मैंने सुसमाचार फैलाने के लिए कुछ तरीके पेश किए थे, और उससे सुसमाचार फैलाने की प्रभावशीलता में सुधार हुआ है। आजकल, कुछ दूसरी कलीसियाएँ भी इन तरीकों को अपना रही हैं।” दरअसल, अलग-अलग कलीसियाओं ने सुसमाचार फैलाने का काफी अनुभव इकट्ठा कर लिया है, लेकिन मसीह-विरोधी लगातार अपने सही फैसलों और उपलब्धियों के बारे में डींगें हाँकता रहता है, लोगों को उनके बारे में बताता रहता है, उन पर जोर देता रहता है, और जहाँ भी जाता है उन्हें तब तक दोहराता रहता है जब तक सभी को उनके बारे में पता नहीं चल जाता है। उसका क्या लक्ष्य है? अपनी खुद की छवि और प्रतिष्ठा का निर्माण करना, ज्यादा लोगों से तारीफ, समर्थन और आदर इकट्ठा करना, और लोगों को हर चीज के लिए उससे मदद माँगने के लिए मजबूर करना। क्या इससे मसीह-विरोधी का लोगों को गुमराह और नियंत्रित करने का लक्ष्य हासिल नहीं हो जाता है? ज्यादातर मसीह-विरोधी इसी तरह से कार्य करते हैं, और लोगों को गुमराह करने, फँसाने और नियंत्रित करने की भूमिकाओं को स्वीकार करते हैं। कलीसिया, सामाजिक समूह या कार्य-व्यवस्था चाहे कोई भी हो, जब भी कोई मसीह-विरोधी प्रकट होता है, तो ज्यादातर लोग अनजाने में ही उसकी आराधना करना और उसका आदर करना शुरू कर देते हैं। जब भी वे ऐसी मुश्किलों का सामना करते हैं, जहाँ वे भ्रमित महसूस करते हैं और उन्हें मार्गदर्शन देने के लिए किसी व्यक्ति की जरूरत पड़ती है, खास तौर पर, जब उन महत्वपूर्ण परिस्थितियों में कोई फैसला लेना होता है, तो वे प्रतिभाशाली मसीह-विरोधी को याद करते हैं। वे अपने दिलों में यह मानते हैं कि “काश अगर वह यहाँ होता, तो सब ठीक हो जाता। सिर्फ एक वही है जो इस मुश्किल को पार करने में हमारी मदद करने के लिए सलाह और सुझाव दे सकता है; उसके पास सबसे ज्यादा विचार और हल हैं, उसके अनुभव सबसे समृद्ध हैं, और उसका दिमाग सबसे फुर्तीला है।” क्या यह सच्चाई कि ये लोग मसीह-विरोधी की इस हद तक आराधना कर सकते हैं, सीधे उसके दिखावा करने, प्रदर्शन करने और घूम-घूमकर अपनी नुमाइश करने के आम तरीके से संबंधित नहीं है? अगर वह अपने शब्दों और कार्यों में गंभीरता दिखाता, अगर वह कोई ऐसा व्यक्ति होता जो अपना सिर झुकाए कड़ी मेहनत करता रहता, अगर वह संयम से बोलता और लगन से कार्य करता, कभी प्रचार या दिखावा नहीं करता, डींगें तो बिल्कुल नहीं हाँकता, तो वह लोगों को गुमराह नहीं कर पाता और उनसे अपनी कद्र और सराहना नहीं करवा पाता। तो फिर कुछ लोग जो अपेक्षाकृत ईमानदार होते हैं और सत्य का अभ्यास कर सकते हैं और लगन से कार्य कर सकते हैं, वे अगुआ और कार्यकर्ता के रूप में मुश्किल से कभी-कभार ही क्यों चुने जाते हैं? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ज्यादातर लोगों में सत्य वास्तविकता का अभाव होता है और वे सूझ-बूझ में कुशल नहीं होते हैं। लोगों में उन लोगों की तरफदारी करने की प्रवृत्ति होती है जिनमें खूबियाँ, वाक्पटुता और दिखावा करने की विशेष रुचि होती है। वे ऐसे लोगों से खासकर ईर्ष्या करते हैं और उन्हें स्वीकृति देते हैं, और वे उनके साथ बातचीत करना पसंद करते हैं। फलस्वरूप, मसीह-विरोधी स्वाभाविक रूप से ज्यादातर लोगों के लिए आराधना और सराहना की वस्तुएँ बन जाते हैं। चाहे कुछ भी हो जाए, मसीह-विरोधियों के पास लोगों को नियंत्रित करने के कई तरीके होते हैं, और वे लोगों के दिलों में अपने रुतबे और अपनी छवि को प्रबंधित करने में समय और ऊर्जा लगाने से नहीं हिचकिचाते हैं, और इस सबका अंतिम लक्ष्य उन पर नियंत्रण हासिल करना होता है। इस लक्ष्य को हासिल करने से पहले मसीह-विरोधी क्या करता है? रुतबे के प्रति उसका क्या रवैया होता है? यह कोई सामान्य लगाव या ईर्ष्या नहीं है; यह एक लंबे समय की योजना है, इसे हासिल करने का एक सोचा-समझा इरादा है। वह सत्ता और रुतबे को खास महत्व देता है और लोगों को गुमराह और नियंत्रित करने का लक्ष्य हासिल करने के लिए रुतबे को पहली आवश्यकता के रूप में देखता है। एक बार जब वह रुतबा हासिल कर लेता है, तो इसके सभी फायदों का आनंद लेना सामान्य बात है। इसलिए, लोगों को गुमराह और नियंत्रित करने की मसीह-विरोधी की क्षमता लगन से किए गए प्रबंधन का परिणाम है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि वह संयोग से यह मार्ग अपनाता है; वह जो भी करता है, वह उद्देश्यपूर्ण, पहले से सोचा-समझा गया और ध्यान से हिसाब लगाया हुआ होता है। मसीह-विरोधियों के लिए, सत्ता हासिल करना और लोगों को नियंत्रित करने का अपना लक्ष्य हासिल करना ही पुरस्कार है—यही वह परिणाम है जिसकी उन्हें सबसे ज्यादा लालसा रहती है। सत्ता और रुतबे की उनकी खोज प्रेरित, उद्देश्यपूर्ण, जानबूझकर की गई और बहुत मेहनत से प्रबंधित होती है; यानी, जब वे बोलते या कार्य करते हैं, तो उनमें उद्देश्य और इरादे की एक मजबूत भावना होती है, और उनका लक्ष्य खास तौर से परिभाषित होता है। मिसाल के तौर पर, वे यह डींग हाँकते हैं कि वे एक खास स्तर के अगुआ या कार्यकर्ता रह चुके हैं, सुसमाचार फैलाने के जरिये एक खास संख्या में लोग प्राप्त कर चुके हैं, या सुसमाचार फैलाने के लिए तरह-तरह के श्रेष्ठ तरीकों का विकास कर चुके हैं; वे अपने अनुभवों और योग्यताओं का दिखावा करते हैं। डींग हाँकते समय उनके विचार क्या होते हैं? उनका अंतर्निहित उद्देश्य क्या होता है? क्या वे इस बारे में सोच-विचार नहीं करते हैं कि उन्हें किन शब्दों का उपयोग करना चाहिए और उन्हें सत्य को झूठ के साथ कैसे मिलाना चाहिए? उनके शब्द बेतरतीब नहीं होते हैं; वे जो भी कहते हैं उसका एक उद्देश्य होता है, और यह सिर्फ अपनी तारीफ करने का मामला नहीं है। उनके शब्द खास तौर से सोचे-समझे और लक्षित लग सकते हैं, जो उपयुक्तता की तेज समझ को दर्शाते हैं। मिसाल के तौर पर, अगर उनका सामना ऐसे व्यक्तियों से होता है जो सत्य समझते हैं, तो उनके दिल सतर्क हो जाते हैं, वे उनकी मौजूदगी में असावधानी से कोई चीज ना तो कहेंगे और ना ही करेंगे, वे डरते हैं कि उन्हें पहचान लिया जाएगा। वे ज्यादा अनुशासित रहेंगे। लेकिन, अगर वे नए विश्वासियों या साधारण विश्वासियों से निपट रहे हैं, तो वे सावधानी से विचार करेंगे कि इन व्यक्तियों से क्या कहना है। अगर वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं से निपट रहे हैं, तो वे इस बारे में सोचेंगे कि इस समूह से क्या कहना है। अगर वे ऐसे लोगों से निपट रहे हैं जो पेशेवर ज्ञान समझते हैं, तो वे विचार करेंगे कि इन लोगों से क्या कहना है। वे बाहरी मामलों में खास तौर से चालाक होते हैं, और जानते हैं कि किसे किन शब्दों से संबोधित करना है और अपना संदेश कैसे प्रभावी रूप से देना है—वे इन सबके बारे में खास तौर से स्पष्ट होते हैं। दूसरे शब्दों में, मसीह-विरोधी कार्य करते समय हमेशा कुछ इरादे लेकर चलते हैं। उनके शब्द, क्रियाकलाप और आचरण, यहाँ तक कि बोलते समय वे जो खास शब्द चुनते हैं, वे आशय सहित होते हैं; वे भ्रष्टता के क्षण भर के प्रकाशन, छोटे आध्यात्मिक कद, बेवकूफी या अज्ञानता के कारण कार्य नहीं कर रहे हैं, और जहाँ भी जाते हैं वहाँ बकवास नहीं कर रहे हैं—यह ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। उनके तरीकों, चीजों को करने के उनके ढंग और शब्दों के उनके चयन की जाँच करने पर, मसीह-विरोधी काफी रहस्यमय और दुष्ट लगते हैं। अपने खुद के रुतबे की खातिर और लोगों को नियंत्रित करने का अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए, वे दिखावा करने का, हर छोटी चीज का उपयोग करने के हर अवसर का फायदा उठाते हैं, और वे एक भी मौका नहीं चूकेंगे। मुझे बताओ, क्या ऐसे लोग मेरे सामने इन लक्षणों को प्रकट करेंगे? (हाँ।) तुम क्यों कहते हो कि वे ऐसा करेंगे? (क्योंकि उनका प्रकृति सार दिखावा करना है।) क्या दिखावा करना ही मसीह-विरोधी का अंतिम लक्ष्य है? दिखावा करने में उनका क्या लक्ष्य है? वे रुतबा जीतना चाहते हैं, और उनका मतलब यह है : “क्या तुम नहीं जानते कि मैं कौन हूँ? मैंने जो चीजें की हैं, उन्हें देखो, ये अच्छी चीजें मैंने ही की हैं; मैंने परमेश्वर के घर में काफी योगदान दिया है। अब जब तुम्हें पता है, तो क्या तुम्हें मुझे ज्यादा महत्वपूर्ण कार्य नहीं देना चाहिए? क्या तुम्हें मेरा बहुत सम्मान नहीं करना चाहिए? क्या तुम्हें अपने हर कार्य में मुझ पर भरोसा नहीं करना चाहिए?” क्या यह सोच-समझकर नहीं किया जाता है? मसीह-विरोधी हर किसी को नियंत्रित करना चाहते हैं, चाहे वह कोई भी हो। नियंत्रण के लिए दूसरा शब्द क्या है? बहकाया जाना, खिलवाड़ करना—वे बस तुम पर राज करना चाहते हैं। मिसाल के तौर पर, जब भाई-बहन किसी चीज की सराहना करते हुए कहते हैं कि बहुत बढ़िया किया, तो मसीह-विरोधी फौरन कहता है कि यह उसने किया है, ताकि हर कोई उसका धन्यवाद करे। क्या कोई सही मायने में समझदार व्यक्ति इस तरह से व्यवहार करेगा? बिल्कुल नहीं। जब मसीह-विरोधी थोड़ा-सा अच्छा काम करते हैं, तो वे चाहते हैं कि हर कोई इसके बारे में जाने, उनका बहुत सम्मान करे और उनकी सराहना करे—इससे उन्हें संतुष्टि मिलती है। चाहे वे कुछ भी करें, वे लोगों की तारीफें और आराधना हासिल करना चाहते हैं, और इसे पाने के लिए वे कुछ भी सहने को तैयार रहते हैं। रुतबे और शक्ति के लिए, मसीह-विरोधी दिखावा करने का कोई भी अवसर छूटने नहीं देंगे, भले ही उनका दिखावा करना बेवकूफी लगे, या उनके तरीके फूहड़ हों और इससे वे दूसरों की निंदा पाएँ—फिर भी वे ऐसे मौके नहीं छोड़ेंगे। इसी तरह, वे लोगों को नियंत्रित करने का अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए सभी जरूरी साधनों का उपयोग करते हैं, और इसे पाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। वे अपनी योजनाएँ बनाने के लिए कड़ी मेहनत वाला प्रयास करते हैं और अपने दिमाग खपाते हैं। जब वे कुछ अच्छा करते हैं, तो लगातार हर जगह उसे दिखाते फिरते हैं और उसका प्रदर्शन करते हैं। अगर किसी और ने कोई अच्छी चीज की है, तो वे उससे ईर्ष्या करते हैं और खुद को इसका श्रेय देने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं या कहते हैं कि इसमें उनका एक हिस्सा रहा है ताकि वे खुद के लिए श्रेय का दावा कर सकें। संक्षेप में, मसीह-विरोधियों के पास लोगों को नियंत्रित करने के लिए युक्तियाँ होती हैं। यह बिल्कुल भी क्षणिक धोखेबाजी नहीं है, और ना ही यह कभी-कभार किए जाने वाले क्रियाकलाप हैं। बल्कि, वे कई चीजें करते और कहते हैं। उनके शब्द गुमराह करने वाले होते हैं, उनके क्रियाकलाप गुमराह करने वाले होते हैं, और इन चीजों को करने और कहने का उनका अंतिम लक्ष्य लोगों को नियंत्रित करना होता है।

लोगों को नियंत्रित करने में मसीह-विरोधी का उद्देश्य क्या होता है? इसका उद्देश्य लोगों के दिलों में रुतबा और अधिकार हासिल करना है। एक बार जब उनके पास अधिकार और रुतबा हो जाता है, तो वे रुतबे के फायदों और इससे मिलने वाले तरह-तरह के हितों का आनंद ले सकते हैं। मिसाल के तौर पर, गर्मी के मौसम में, जबकि दूसरे लोग वातानुकूलन रहित कमरों में रहते हैं, उन्हें वातानुकूलित कमरे में रहने का मौका मिलता है। भोजन के समय, जबकि दूसरे लोगों को एक ही बार सब्जियाँ और चावल परोसा जाता है, उन्हें इसके साथ थोड़ा मांस और सूप भी लेने का मौका मिलता है। जब वे किसी ऐसे कमरे में दाखिल होते हैं जहाँ बैठने की बिल्कुल जगह नहीं होती है, तो दूसरों को फर्श पर बैठना पड़ता है, और सिर्फ एक कुर्सी छोड़ दी जाती है जो उनके लिए आरक्षित रहती है। यह खास व्यवहार उनके रुतबे का परिणाम है, और वे इसके साथ मिलने वाले फायदों से खुद को तुष्ट करने का आनंद लेते हैं। बेशक, ये रुचियाँ और आनंद उनकी महत्वाकांक्षाओं को संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। उन्हें अपने रुतबे से मिलने वाले सिर्फ इन भौतिक फायदों की ही नहीं, बल्कि उस घमंड, संतुष्टि, और सुरक्षा की भावना की भी जरूरत है जो यह उनकी भीतरी दुनिया को प्रदान करता है। जो लोग मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किए गए, फुसलाए गए और नियंत्रित किए गए हैं, उनके व्यवहार कैसे होते हैं? वे एक-दूसरे के रुतबे, शक्ति, खूबियों और योग्यताओं के साथ-साथ पारिवारिक और वर्गीय पृष्ठभूमि की तुलना करते हैं, और वे इस बात पर प्रतिस्पर्धा करते हैं कि कौन ज्यादा दुष्ट विचार पेश कर पाता है और किसका दिमाग ज्यादा फुर्तीला है। धर्म के मसीह-विरोधी इस पर भी प्रतिस्पर्धा करते हैं कि कौन सबसे लंबे समय तक प्रार्थना करता है। अगर एक व्यक्ति दस मिनट तक प्रार्थना करता है, तो दूसरा बीस मिनट तक प्रार्थना करेगा, और सभा के दौरान वे चाहे कुछ और ना भी करें, लेकिन लगातार प्रार्थना जरूर करते हैं, उन लोगों की तरह जो बौद्ध मंदिर में लगातार बड़बड़ाते हुए धर्मग्रंथों का पाठ करते हैं। क्या परमेश्वर ऐसी प्रार्थना को सुनता है? उनके प्रार्थना करने के तरीके से यह पता चलता है कि पवित्रात्मा उन पर काम नहीं करेगा। वे देखते हैं कि कौन सबसे लंबे समय तक प्रार्थना कर सकता है, कौन उस सबसे ऊँची आवाज में प्रार्थना कर सकता है जो दूसरों को दबा सकती है। क्या यह सरासर पागलपन नहीं है? उनके क्रियाकलाप अविश्वसनीय और अनुचित हैं। ये अभिव्यक्तियाँ प्राथमिक रूप से उन लोगों में दिखाई देती हैं जो मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह और नियंत्रित हो चुके हैं; जब मसीह-विरोधी लोगों की अगुवाई करते हैं, तो इसका यही परिणाम होता है। इसलिए, अगर तुम लोग किसी मसीह-विरोधी द्वारा गुमराह और नियंत्रित हो जाते हो, तो तुम उसका आदर करोगे, उसका अनुसरण करोगे और सभी चीजों में उसकी आज्ञा मानोगे। तुम किसी और की बात नहीं सुनोगे, चाहे परमेश्वर ही क्यों ना बोल रहा हो। तुम यही व्यवहार प्रदर्शित करोगे। जब मसीह-विरोधी लोगों को नियंत्रित करते हैं, तो ऐसा लगता है मानो शैतान उन पर राज कर रहा हो। अगर तुम शैतान के नियंत्रण में हो, और अगर तुम्हारे दिल में मनुष्य के लिए एक जगह है और शैतान के लिए एक जगह है, तो फिर पवित्र आत्मा तुम पर कार्य नहीं करेगा—वह तुम्हें को छोड़ देगा। क्या तुम्हें मसीह-विरोधियों का अनुसरण करना पसंद नहीं है? क्या तुम्हें उनका सम्मान करना पसंद नहीं है? क्या तुम्हें उनका नियंत्रण करना और बहकाना स्वीकार करना पसंद नहीं है? फिर तुम्हें उनके हवाले कर दिया जाएगा। अगर तुम यह मानते हो कि मसीह-विरोधी जो भी कहते हैं, वही सत्य है, तो तुम उनकी बात सुन सकते हो और उनका अनुसरण कर सकते हो, और तुम्हें उनके हवाले कर दिया जाएगा। लेकिन, इसके जो परिणाम होंगे उसका जिम्मेदार तुम्हें खुद को ही ठहराना होगा। अगर एक दिन तुम उद्धार प्राप्त नहीं करते हो, तो परमेश्वर को जिम्मेदार मत ठहराना या उसके बारे में शिकायत मत करना; इसका परमेश्वर से कोई लेना-देना नहीं है। यह तुम्हारी अपनी पसंद है, और तुम्हें अपने चुनाव की कीमत चुकानी पड़ेगी।

हमने मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों को नियंत्रित करने की अभिव्यक्तियों पर अपनी संगति लगभग पूरी कर ली है। लोगों को समझना चाहिए कि नियंत्रित किए जाने का मतलब क्या है। बाहर से ऐसा लग सकता है कि कुछ लोग परमेश्वर का अनुसरण कर रहे हैं, उसके धर्मोपदेशों को सुन रहे हैं, उसके वचनों को खा-पी रहे हैं, कलीसियाई जीवन जी रहे हैं और अपने कर्तव्य कर रहे हैं, और उन्होंने परमेश्वर का घर नहीं छोड़ा है। तो वे मसीह-विरोधियों द्वारा नियंत्रित क्यों हैं? ऐसा प्राथमिक रूप से इसलिए है क्योंकि उनमें सत्य का अभाव है। सबसे पहले, ये लोग मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किए गए, और फिर वे खास तौर से उनकी सराहना करने लगे, जिससे वे उनके द्वारा नियंत्रित हो गए। नियंत्रित किए जाने का क्या मतलब है? इसका मतलब है उनके द्वारा प्रभावित होना और बाँधकर रखा जाना। भले ही तुम अपने कर्तव्य कर रहे हो, लेकिन कर्तव्य के प्रदर्शन में सत्य सिद्धांतों की तलाश करते समय तुम मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह किए जाते हो। उनके कथन और दृष्टिकोण तुम्हारी अपनी धारणाओं और कल्पनाओं से जितना ज्यादा मेल खाते हैं, उतना ही ज्यादा तुम उन्हें सही और सत्य के अनुरूप मानते हो, और तुम सत्य सिद्धांतों की तलाश करना बंद कर देते हो, अब स्वतंत्र रूप से सोचने के इच्छुक नहीं रहते हो, और अब अपने अभ्यास को परमेश्वर के वचनों पर आधारित नहीं करते हो। तुम मानते हो कि मसीह-विरोधियों के दृष्टिकोण बिल्कुल भी गलत नहीं हैं, और तुम पूरे दिल से उनकी पुष्टि करते हो। जब मामला ऐसा हो जाता है तब, अगर तुम सही मायने में परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करते हो, तो तुम बेचैन और अनिश्चित महसूस करते हो। तुम्हें लगता है कि तुमने मसीह-विरोधियों को निराश किया है, और कि तुम इस तरीके से कार्य बिल्कुल नहीं कर सकते। क्या तुम मसीह-विरोधियों के बयानों और दृष्टिकोणों से पूरी तरह से बाँधे नहीं जा रहे हो? जब तुम कुछ करते हो, तो तुम्हें नहीं पता होता है कि परमेश्वर के वचनों के आधार पर कैसे राय बनानी है, कैसे खोजना है या कैसे पालन करना है। तुम्हें यह नहीं पता होता है कि ऐसा कैसे करना है, और ना ही तुम ऐसा करने की हिम्मत करते हो। तुम्हें क्यों नहीं पता होता कि कैसे करना है और तुम हिम्मत क्यों नहीं करते हो? मसीह-विरोधी अभी तक नहीं बोले हैं; उन्होंने तुम्हें कोई फैसला नहीं दिया है और ना ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचें हैं, और उन्होंने तुम्हें परिणाम नहीं बताया है और ना ही तुम्हें कोई दिशा नहीं दिखाई है। इसलिए तुम अपनी समझ के अनुसार कार्य करने की हिम्मत नहीं करते हो और तुम गलत रास्ते पर जाने, कुछ गलत करने से डरते हो। क्या तुम्हें नियंत्रित नहीं किया जा रहा है? तुम हमेशा इतने डरे-डरे क्यों रहते हो? क्या परमेश्वर के वचन वाकई स्पष्ट नहीं थे? क्या परमेश्वर के वचन तुम्हें सिद्धांत बताने से या यह बताने में नाकाम हो गए कि क्या करना है? तुम परमेश्वर के वचनों को अनदेखा क्यों करते हो और मसीह-विरोधियों की बात सुनने की जिद क्यों करते हो? तुम मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह और नियंत्रित किए जा रहे हो। मिसाल के तौर पर, मैंने किसी व्यक्ति को एक दीवार बनाने के लिए कहा, और उसकी ऊँचाई, लंबाई और जगह स्पष्ट रूप से बता दी। फिर, एक मसीह विरोधी आया और बोला : “इस दीवार की ऊँचाई तो ठीक है, लेकिन यहाँ एक समस्या है। अगर तुम इसे इस तरह से बनाओगे, तो क्या हवा चलने पर यह ढह जाएगी?” यह सुनकर उस व्यक्ति ने कहा, “यह बात तो सही है, क्या यह गिर सकती है? परमेश्वर ने नहीं कहा, इसलिए मैं इसे अभी नहीं बनाऊँगा।” बाद में जब मैं उससे पता करने गया, तो मैंने पूछा : “तुमने दीवार क्यों नहीं बनाई? कई दिन बीत चुके हैं, फिर भी यह अभी तक नहीं बनी है—क्या तुम मामलों में देरी नहीं कर रहे हो?” उसने जवाब दिया कि किसी ने हवा से दीवार उड़ जाने के बारे में चिंता जताई थी। मैंने उससे कहा कि अगर वह हवा के कारण चिंतित है, तो सहारे के लिए एक खंभे का उपयोग करे, और उसने इस बात को अच्छी तरह याद कर लिया। बाद में, मसीह-विरोधी उसे परेशान करने के लिए वापस आया, और बोला, “क्या एक खंभा काफी है? क्या तुम्हें दो खंभों का उपयोग नहीं करना चाहिए?” इस व्यक्ति ने इस पर विचार किया, और सोचा कि परमेश्वर ने दो के बजाय सिर्फ एक खंभे का उपयोग करने के लिए कहा था, और अब फिर से उसे नहीं पता था कि क्या करना है। मसीह-विरोधी द्वारा इतना गुमराह और परेशान किए जाने के बाद, मैंने इससे पहले जो भी शब्द कहे थे, वे सब बेकार हो गए, और वह इस कार्य को जारी नहीं रख पाया। क्या यह मसीह-विरोधी द्वारा नियंत्रित होने के समान नहीं है? इस मामले में उसे किसकी बात सुननी चाहिए? (परमेश्वर की।) तो फिर उसने परमेश्वर के वचन क्यों नहीं सुने? क्या वह सुनना नहीं चाहता था? वह सुनना चाहता था, लेकिन वह मसीह-विरोधी की एक विधर्म और भ्रांति से गुमराह हो गया। गुमराह होने के बाद, वह मसीह-विरोधी की आज्ञा मानने लगा, जो उसके द्वारा अगवा किए जाने के समान है। अगर उसका व्यवहार और उसके विचार मसीह-विरोधी द्वारा बाँध लिए और बेड़ियों में जकड़ लिए जाते हैं, तो वह मसीह-विरोधी के नियंत्रण में आ जाता है। आखिरकार, इस व्यक्ति ने अपना कर्तव्य पूरा नहीं किया, और उसने परमेश्वर के प्रति समर्पण नहीं किया या उसके वचन नहीं सुने। यह परिणाम किसने उत्पन्न किया? यह उसकी अज्ञानता के कारण उत्पन्न हुआ और इसे मसीह-विरोधी के गुमराह करने, परेशान करने और नियंत्रण से अलग नहीं किया जा सकता है। तो, मसीह-विरोधी के इस तरह से दखल देने का क्या मतलब है? वह अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करना चाहता था, और वह दरअसल यह कह रहा था, “जब परमेश्वर ने तुमसे यह दीवार बनाने के लिए कहा था, तो तुमने आँख मूंदकर उसकी बात क्यों मानी? तुम्हारे सोचने की प्रक्रिया इतनी सरल क्यों है? अगर तुम यहाँ दीवार बनाते हो, तो क्या हवा चलना शुरू होते ही यह गिर नहीं जाएगी? परमेश्वर की बात सुनना मेरी बात सुनने जितना सटीक नहीं है; तुम्हें मेरी बात सुननी ही पड़ेगी। अगर तुम मेरी बात सुनते हो, तो मैं खुश हो जाऊँगा, लेकिन अगर तुम परमेश्वर की बात सुनते हो, तो यह मुझे अच्छा नहीं लगेगा और मैं खुश नहीं होऊँगा। परमेश्वर की बात सुनना तुम्हारे लिए ठीक नहीं है—यह मुझे कौन-सी स्थिति में डाल देगा?” उसने यह बात प्रत्यक्ष नहीं कही; उसने दखल दिया और जानबूझकर चीजों को भड़काया। उसके दखल देने के बाद कार्य पूरा नहीं किया जा सका, और वह अक्लमंद नजर आया, जिससे उसे खुशी मिली। जब परमेश्वर किसी को दीवार बनाने का निर्देश देता है, तो उस व्यक्ति को इसे फौरन बना देना चाहिए, लेकिन अब परिणाम यह है कि वह दीवार नहीं बनी। इस परिणाम का कारण कौन था? यह मसीह-विरोधी के कारण हुआ—यह व्यक्ति मसीह-विरोधी द्वारा गुमराह, बाधित और नियंत्रित किया गया। यह उसी तरह है जैसे साँप ने आदम और हव्वा को फुसलाया था। परमेश्वर ने आदम और हव्वा से कहा, “भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना : क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उसी दिन अवश्य मर जाएगा।” क्या परमेश्वर के ये वचन सत्य हैं? वे सत्य हैं, और तुम्हें उनका अर्थ समझने की जरूरत नहीं है; तुम्हें बस सुनने और समर्पण करने की जरूरत है। परिस्थिति चाहे जो भी हो, परमेश्वर का वचन नहीं बदल सकता है, और अगर परमेश्वर चाहता है कि तुम कुछ करो, तो उसे करो। इसका विश्लेषण मत करो। भले ही तुम्हें यह समझ नहीं आए, तुम्हें यह पता होना चाहिए कि परमेश्वर का वचन सही है; तुम्हें अपने दिल में यह परिभाषा समझनी चाहिए। दूसरे शब्दों में, तुम्हें सबसे पहले यह सत्य जानना चाहिए। चाहे परमेश्वर के वचन तुम्हारी धारणाओं से मेल खाएँ या ना खाएँ, चाहे तुम उन्हें समझो या ना समझो, और चाहे तुम कितने भी भ्रमित क्यों ना हो जाओ, तुम्हें उसके वचनों को थामे रहना चाहिए। यह तुम्हें जिम्मेदारी और कर्तव्य है। एक बार जब लोग इसके लिए अपना मन बना लेते हो, तो जब शैतान तुम्हें फंसाने के लिए फिर से आता है, तो तुम्हें क्या करना चाहिए? तुम्हें परमेश्वर के वचनों को मजबूती से थामे रहना चाहिए और उसके मार्ग का अनुसरण करना चाहिए—यह सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है। शैतान जो कहता है, उसे अनसुना कर दो। जब आदम और हव्वा ने साँप के शब्द सुने थे, तो उसका अंतिम परिणाम क्या हुआ था? वे शैतान द्वारा गुमराह और नियंत्रित कर लिए गए थे। दिखावटी, अस्पष्ट और शैतानी शब्दों के सिर्फ एक वाक्यांश से ही शैतान आदम और हव्वा के व्यवहार को प्रभावित और नियंत्रित करने में कामयाब हो गया था। यह एक ऐसा परिणाम था जिसे परमेश्वर नहीं देखना चाहता था। उन शब्दों को कहने में साँप का क्या उद्देश्य था? इन शब्दों के जरिए, वह लोगों के विचारों को उलझा देना, उनके व्यवहार को प्रभावित करना, और उन्हें परमेश्वर के वचनों को सुनना बंद करने और उन्हें त्यागने के लिए मजबूर करना चाहता था। एक बार जब लोगों के दिमाग में यह सक्रिय विचार बिठा दिया गया, तो फिर उन्होंने बताए गए मार्ग का अनुसरण किया। शैतान का क्या उद्देश्य था? वह यह कहना था, “परमेश्वर जो कहता है, उसे मत सुनो। तुम्हें मेरी बात सुननी पड़ेगी; तुम्हें यह फल खाना पड़ेगा।” परमेश्वर ने उन्हें इसे खाने से मना किया था, जबकि शैतान ने उन्हें इसे खाने के लिए कहा। आखिर में, क्या आदम और हव्वा ने वह फल खाया था? (उन्होंने खाया था।) इस तरह से शैतान ने लोगों को नियंत्रित किया। जब तुम लोग मसीह-विरोधी के शैतानी शब्द सुनते हो, तो तुम उलझन में पड़ सकते हो और अपनी सोचने-समझने की क्षमता खो सकते हो, और तुम परमेश्वर के वचनों पर ध्यान नहीं देने के लिए जिम्मेदार होते हो। क्या इसका मतलब यह नहीं है कि तुम्हारा व्यवहार और तुम्हारे विचार इस मसीह-विरोधी द्वारा प्रभावित और नियंत्रित हैं? नियंत्रण का यही मतलब होता है। क्या तुमने कभी ऐसी परिस्थितियों का सामना किया है? कुछ बुरे इरादों वाले लोग देखते हैं कि तुम बिना किसी अड़चन के कोई कार्य पूरा कर रहे हो और परिणाम हासिल करने वाले हो, खुद को दिखाने वाले हो, और उन्हें एहसास होता है कि इस मामले में उनकी ज्यादा भागीदारी नहीं होगी। अगर तुम दिखाई देते हो, तो वे नहीं दिखेंगे, इसलिए वे तुम्हें गुमराह करने, परेशान करने और नियंत्रित करने के लिए उचित प्रतीत होने वाले दृष्टिकोण या प्रश्न पेश करते हैं। फलस्वरूप, तुम भ्रमित हो जाते हो, और सोचते हो कि उनके शब्द भी सही हैं। तुम्हें अब नहीं पता होता कि क्या करना है और तुम अपने कर्तव्य के साथ आगे नहीं बढ़ सकते हो, इसलिए तुम उसे रोक देते हो। क्या यह बेवकूफी नहीं है? शुरू-शुरू में, जब तुम अब भी गुमराह नहीं हुए थे, तो तुम्हारी सोच काफी स्पष्ट थी और तुम्हें पता था कि क्या करना है, लेकिन जैसे ही मसीह-विरोधी ने तुम्हें परेशान किया, तुम उलझन में पड़ गए और तुम्हें यह नहीं पता था कि चीजों को उचित तरीके से कैसे संभालना है। तो यहाँ क्या समस्या है? (गुमराह होना।) जो लोग मसीह-विरोधियों या शैतान द्वारा आसानी से गुमराह और नियंत्रित हो जाते हैं, वे अज्ञानी और भ्रमित व्यक्ति होते हैं। मसीह-विरोधी द्वारा लोगों को गुमराह और नियंत्रित करने के तरीके की अभिव्यक्तियों के बारे में, क्या हमारी संगति पर्याप्त रूप से विशिष्ट रही है? तुम्हें यह समझ पाना चाहिए, और जब तुम्हारे साथ अनहोनी हो, तो तुम्हें अपने शब्दों, अपने क्रियाकलापों और अपने सार पर विचार करने के लिए उनकी तुलना अलग-अलग सत्यों के साथ करनी चाहिए। साथ ही, तुम्हें सत्य की स्पष्ट समझ और अलग-अलग लोगों के प्रकृति सारों की ज्यादा सटीक समझ हासिल करने के लिए अपने आसपास के लोगों, घटनाओं और चीजों को समझने और पहचानने का प्रयास करना चाहिए।

आजकल, तुम सब में से कई लोग अभी-अभी अलग-अलग सत्यों की खास अवस्थाओं और अभिव्यक्तियों के संपर्क में आए हैं। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ कि तुम अभी-अभी उनके संपर्क में आए हो? वह इसलिए क्योंकि तुम्हें अभी-अभी कुछ विवरण समझ में आए हैं, लेकिन सच्चे प्रवेश से पहले अभी भी कुछ दूरी तय करनी बाकी है। समझना प्रवेश के समान नहीं है। जब तुम समझते हो, तो इसका सिर्फ यह मतलब है कि तुम्हारे दिमाग में इन मामलों की अवधारणाओं और परिभाषाओं को लेकर तुम्हारी समझ अपेक्षाकृत सटीक और सत्य के साथ ज्यादा सुसंगत है, लेकिन तुम अब भी व्यक्तिगत प्रवेश से दूर हो। मामलों को समझना, पहचानना और इन्हें अपनी स्थिति और अपने आसपास के लोगों, घटनाओं और चीजों से जोड़ पाने का यह मतलब नहीं है कि तुम्हारे पास प्रवेश है। ये दो अलग चीजें हैं। कोई व्यक्ति बचाया जा सके और स्वभाव में बदलाव हासिल कर सके, इसकी शुरुआत सभी अलग-अलग सत्यों को समझने से होती है, और सत्य वास्तविकता में प्रवेश करने की शुरुआत इन सत्यों का अभ्यास करने से होती है। अगर तुम लोगों के पास अलग-अलग सत्यों से जुड़ी अपनी समझ और प्रवेश में एक नींव होती, तो जब मैंने तुम लोगों से मिसाल देने को कहा था, तो तुम लोग तुरंत अपनी अभिव्यक्तियों या ऐसी कुछ चीजों के बारे में सोच पाते जिन्हें तुमने देखा और अनुभव किया है। यह मेरी संगति को काफी आसान बना देता, और मुझे इतने विस्तार में बोलना नहीं पड़ता क्योंकि तुम लोगों को पहले से ही इतने अनुभव हासिल हो चुके होते कि तुम उस स्तर तक पहुँच पाते। लेकिन, अब जब मैं तुम लोगों से पूछता हूँ, तो तुम्हें फौरन सोचना पड़ेगा और अपनी याददाश्त में झाँककर उसमें टटोलने की जरूरत भी पड़ेगी। जब मैं देखता हूँ कि तुम लोग ये चीजें नहीं जानते हो और तुमने खुद इनका अनुभव नहीं किया है, तो मुझे उन्हें विस्तार से समझाना पड़ता है, इन मामलों के केंद्रीय और मूल पहलुओं और बेहद जरूरी मुद्दों को स्पष्ट करना पड़ता है और तुम लोगों को अलग-अलग सत्यों के विवरणों की मूलभूत समझ प्रदान करनी पड़ती है, ताकि तुम अभ्यास के दौरान वैचारिक पहलुओं या परिभाषा से संबंधित पहलुओं को लेकर भ्रमित नहीं हो जाओ और ताकि तुम सेबों और संतरों को मिला न दो और यह न सोचो कि ये चीजें बहुत ही ज्यादा पेचीदा हैं—तुम अलग-अलग पहलुओं के बीच स्पष्ट रूप से अंतर कर पाओगे। इस तरह से, अगली बार जब मैं इन चीजों के बारे में संगति करूँगा, तो यह आसान होगा। फिलहाल, तुम लोगों में अभी भी कमी है, इसलिए मुझे हमेशा उन्हें विस्तार से समझाना पड़ता है। हमारी सभाओं में संगतियों की कितनी सामग्री पर तुम लोग विचार कर सकते हो और आत्मसात कर सकते हो? अगर यह सिर्फ दस प्रतिशत है, तो तुम लोगों के पास मुश्किल से कोई उल्लेखनीय आध्यात्मिक कद है, और अगर यह तीस प्रतिशत है, तो तुमने सिर्फ थोड़ा-सा ही समझा है। अगर तुम पचास प्रतिशत तक पहुँच जाते हो, तो तुम लोगों के पास एक खास आध्यात्मिक कद और प्रवेश होगा, लेकिन अगर तुम वहाँ तक नहीं पहुँच पाते हो, तो तुम्हारे पास कोई प्रवेश नहीं है। तुम समझ रहे हो, है ना? जब मैं ऐसे संगति करता हूँ, अगर तब भी तुम नहीं समझ पाते हो, तो इसका मतलब है कि तुम्हारी काबिलियत बहुत ही कम है और तुम्हारे पास सत्य समझने का कोई तरीका नहीं है। ठीक है, तो हमारी आज की संगति यहीं समाप्त होती है। अगली बार फिर मिलते हैं!

17 अप्रैल, 2019

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परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में I सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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