मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों का सौदा तक कर देते हैं (भाग आठ)

II. मसीह-विरोधियों के हित

घ. उनकी संभावनाएँ और नियति

आओ सबसे पहले यह देखें कि हमने पिछली सभा में किस विषय पर संगति की थी। (पिछली बार परमेश्वर ने इस बात की दूसरी मद पर संगति की थी कि मसीह-विरोधी अपनी संभावनाओं और नियति को कैसे लेते हैं—मसीह-विरोधी अपने कर्तव्य को कैसे लेते हैं। अपने कर्तव्य के प्रति मसीह-विरोधी तीन तरह का रवैया रखते हैं। पहली बात, परमेश्वर मानवजाति का पोषण और अगुआई करता रहा है, इसलिए परमेश्वर के सामने एक सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाना पूरी तरह से उचित, स्वाभाविक और न्यायोचित है, और मानवजाति के बीच सबसे सही और सुंदर बात भी है, मगर मसीह-विरोधी इसे एक तरह का लेन-देन मानते हुए अपने कर्तव्य के बदले अच्छी संभावनाओं और अच्छी मंजिल का सौदा करना चाहते हैं। दूसरी बात, परमेश्वर अपना कार्य करते समय बहुत-से सत्य व्यक्त करता है; मगर मसीह-विरोधी न केवल परमेश्वर के वचनों को सत्य नहीं मानते, वे इन्हें कुछ ऐसा नहीं मानते जो मानवजाति के पास होने चाहिए, जिनका उन्हें अनुसरण करना चाहिए, स्वीकारना चाहिए और बचाए जाने के लिए उनमें प्रवेश करना चाहिए, बल्कि इसके उलट वे संभावनाओं, मंजिल, प्रतिष्ठा और रुतबे को सत्य मानते हैं, और ऐसी चीजें मानते हैं जो उन्हें हासिल करके कायम रखनी चाहिए। तीसरी बात, परमेश्वर मानवजाति को प्रबंधित करने और बचाने के लिए कार्य करता है, लेकिन मसीह-विरोधियों के परिप्रेक्ष्य से यह बस एक लेन-देन और खेल है; उनका मानना है कि लोग केवल कड़ी मेहनत और लेन-देन के जरिए ही स्वर्ग के राज्य के आशीष पा सकते हैं। परमेश्वर द्वारा लोगों से अपना कर्तव्य निभाने की अपेक्षा करने के सत्य के प्रति मसीह-विरोधियों के रवैये को देखें, तो उनका स्वभाव दुष्ट है।) कोई इसमें कुछ और जोड़ना चाहेगा? (मसीह-विरोधी अपना कर्तव्य निभाने को आशीष पाने का एकमात्र तरीका मानते हैं। एक बार जब आशीष पाने की उनकी इच्छा धराशायी हो जाती है तो वे तुरंत अपने कर्तव्य को छोड़ सकते हैं या यहाँ तक कि परमेश्वर को भी छोड़ सकते हैं। आशीष पाने की इच्छा धराशायी होने परमसीह-विरोधियों का यही रवैया होता है।) (मसीह-विरोधी वास्तव में पश्चात्ताप नहीं करते हैं। जब उन्हें विघ्न-बाधा और गड़बड़ी पैदा करने या बुरे कर्म करने के कारण बर्खास्त या निष्कासित कर दिया जाता है और परमेश्वर का घर उन्हें अपना कर्तव्य निभाने का एक और मौका देता है तो वे आभार नहीं जताते। इसके बजाय, वे यह कहते हुए शिकायत और आलोचना करते हैं, “जब तुम्हें मेरी जरूरत होती है तो तुम मुझे वापस बुला लेते हो, मगर जब तुम्हें मेरी जरूरत नहीं होती तो मुझे सीधे धक्के मारकर निकाल देते हो।” इससे पता चलता है कि मसीह-विरोधी कभी पश्चात्ताप नहीं करेंगे।) संक्षेप में कहें तो मसीह-विरोधी अपने कर्तव्यों के प्रति और परमेश्वर के वचनों के प्रति अपने व्यवहार में जो सार प्रकट करते हैं, वे मूल रूप से एक जैसे हैं; वे इन विभिन्न चीजों के साथ अपने व्यवहार में एक जैसे ही स्वभाव और सार प्रकट करते हैं। पिछली बार हमने मूल रूप से उन सभी सारों पर संगति की थी जो मसीह-विरोधी अपने कर्तव्य के प्रति व्यवहार में प्रकट करते हैं। पहली मद, वे विश्वास नहीं करते और यह मानने से इनकार करते हैं कि परमेश्वर का वचन सत्य है; दूसरी मद, भले ही तुम उनके साथ परमेश्वर के वचन पर संगति करो, और वे सत्य को समझ सकें, वे इसे स्वीकार नहीं करते; तीसरी मद, वे परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने से इनकार करते हैं; चौथी मद, वे कभी भी सच्चा पश्चात्ताप नहीं करते। क्या ये उनकी अभिव्यक्तियों के सार नहीं हैं? (हाँ।) क्या तुम लोगों ने इन चार मदों का सारांश तैयार किया? (नहीं।) तुम लोगों ने जिन चीजों के बारे में बात की, उनमें से ज्यादातर वे अभिव्यक्तियाँ थीं जिन पर हमने पिछली बार संगति की थी, मगर तुम अभी भी यह नहीं समझ पाए हो कि इन अभिव्यक्तियों के पीछे कौन-से सार छिपे हैं। मसीह-विरोधी सत्य और परमेश्वर के सामने जो सार प्रकट करते हैं, वे हमेशा उन्हें मानने, स्वीकारने, उनके प्रति समर्पण या पश्चात्ताप करने से इनकार करने के होते हैं। चूँकि मसीह-विरोधी परमेश्वर के वचन और अपने कर्तव्य को इसी तरह लेते हैं तो वे अपनी काट-छाँट को कैसे लेते हैं? ऐसी और कौन-सी अभिव्यक्तियाँ हैं जो लोगों को यह देखने में सक्षम बनाती हैं कि उनमें ऊपर बताए गए सार मौजूद हैं और यह पुष्टि करती हैं कि वे मसीह-विरोधी हैं, परमेश्वर के दुश्मन और सत्य के शत्रु हैं? इसी तीसरी मद पर हम आज संगति करेंगे : मसीह-विरोधी अपनी काट-छाँट को कैसे लेते हैं। यह मद इस विषय का तीसरा उप-विषय है कि मसीह-विरोधी अपनी संभावनाओं और नियति को कैसे लेते हैं। देखो, हरेक सत्य पर संगति करने के लिए ऐसी विशिष्ट संगति और विशिष्ट खोज और चिंतन-मनन की आवश्यकता होती है। अगर मैं सिर्फ मोटे तौर पर बात करूँगा तो तुम हरेक सत्य की वास्तविकताओं को अधिक विशिष्ट तरीके से समझने में असमर्थ रहोगे। अच्छा तो हम उस विषय-वस्तु की और समीक्षा नहीं करेंगे जिस पर हमने पिछली बार संगति की थी। इस बार हम तीसरी मद पर औपचारिक रूप से संगति करेंगे।

3. मसीह-विरोधी अपनी काट-छाँट को कैसे लेते हैं

काट-छाँट ऐसी चीज है जिसका अनुभव परमेश्वर में विश्वास रखने वाले हर व्यक्ति को करना पड़ सकता है। खासकर कोई कर्तव्य निभाने के दौरान जैसे-जैसे अपनी काट-छाँट होने का अनुभव बढ़ता है, ज्यादातर लोग काट-छाँट किए जाने का अर्थ ज्यादा से ज्यादा जानने लगते हैं। उन्हें लगता है कि अपनी काट-छाँट होने के बहुत सारे फायदे हैं और वे अपनी काट-छाँट को सही तरीके से लेने में अधिक से अधिक सक्षम होते जाते हैं। बेशक, अगर लोग कोई कर्तव्य निभा सकते हैं और वे चाहे जो भी कर्तव्य निभाएँ, हर व्यक्ति को अपनी काट-छाँट किए जाने का मौका मिलेगा। सामान्य लोग अपनी काट-छाँट किए जाने को सही तरीके से ले सकते हैं। एक ओर, वे अपनी काट-छाँट किए जाने को परमेश्वर के प्रति समर्पण वाले दिल से स्वीकार सकते हैं तो वहीं दूसरी ओर, वे यह भी विचार कर सकते हैं और जान सकते हैं कि उन्हें क्या समस्याएँ हैं। यह एक आम रवैया और परिप्रेक्ष्य है कि सत्य का अनुसरण करने वाले लोग अपनी काट-छाँट किए जाने को कैसे लेते हैं। तो क्या मसीह-विरोधी भी अपनी काट-छाँट किए जाने को इसी तरह से लेते हैं? बिल्कुल नहीं। जब अपनी काट-छाँट किए जाने के प्रति अपने दृष्टिकोण की बात आती है तो मसीह-विरोधियों और सत्य का अनुसरण करने वाले लोगों का रवैया निश्चित रूप से अलग-अलग होगा। पहली बात तो यह है कि जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट का मसला आता है तो वे इसे स्वीकार नहीं कर पाते। और इसे स्वीकार न कर पाने के अपने कारण हैं। मुख्य कारण यह है कि जब उनकी काट-छाँट की जाती है तो उन्हें लगता है कि उनकी इज्जत कम हो गई है, उनकी प्रतिष्ठा, रुतबा और उनकी गरिमा छिन गई है, और अब वे सबके सामने अपने सिर उठाकर नहीं चल सकेंगे। इन बातों का उनके दिलों पर असर पड़ता है, इसलिए उन्हें अपनी काट-छाँट स्वीकारना मुश्किल लगता है, और उन्हें लगता है कि जो भी उनकी काट-छाँट करता है वह उनसे द्वेष रखता है और उनका शत्रु है। काट-छाँट होने पर मसीह-विरोधियों की यही मानसिकता रहती है। यह बिल्कुल पक्की बात है। दरअसल, काट-छाँट किए जाने के वक्त ही यह बात खुलकर उजागर होती है कि कोई व्यक्ति सत्य को स्वीकार सकता है कि नहीं और कोई व्यक्ति सचमुच समर्पण कर सकता है या नहीं। मसीह-विरोधियों का काट-छाँट के प्रति इतना अधिक प्रतिरोध करना यह दर्शाने के लिए पर्याप्त है कि वे सत्य से विमुख होते हैं और वे इसे रत्तीभर भी स्वीकार नहीं करते। तो सारी समस्या की जड़ यही है। उनका गर्व इस मसले की जड़ नहीं है; सत्य को स्वीकार न करना ही इस समस्या का सार है। जब उनकी काट-छाँट की जाती है तो मसीह-विरोधी चाहते हैं कि यह सब मीठे स्वर और नर्म रवैये के साथ किया जाए। अगर ऐसा करने वाले का स्वर गंभीर है और रवैया सख्त है, तो मसीह-विरोधी इसका प्रतिरोध और अवहेलना करेगा, और शर्म से लाल हो जाएगा। मसीह-विरोधी इस बात पर बिल्कुल ध्यान नहीं देते कि उनमें जो उजागर हुआ है क्या वह सही है या क्या वह एक तथ्य है, न ही वे अपनी गलती या सत्य को स्वीकारने के प्रश्न पर चिंतन करते हैं। वे सिर्फ यह सोचते हैं कि क्या उनके दंभ और गर्व पर वार हुआ है। मसीह-विरोधी यह एहसास करने में पूरी तरह अक्षम होते हैं कि काट-छाँट लोगों के लिए मददगार होती है, लोगों को प्रेम और सुरक्षा देने वाले और उन्हें लाभ पहुँचाने वाली होती है। वे इतना भी नहीं समझ पाते। क्या उनमें भले-बुरे की पहचान और तर्कसंगतता का अभाव नहीं है? तो काट-छाँट किए जाने का सामना करते हुए मसीह-विरोधी कैसा स्वभाव प्रकट करते हैं? निस्संदेह, यह सत्य से विमुख होने और साथ ही अहंकार और अड़ियलपन वाला स्वभाव है। इससे पता चलता है कि मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार सत्य से विमुख होना और उससे घृणा करना है। इसलिए, मसीह-विरोधी सबसे ज्यादा अपनी काट-छाँट से डरते हैं; जैसे ही उनकी काट-छाँट की जाती है, उनकी बदसूरत दशा पूरी तरह उजागर हो जाती है। जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है तो वे ऐसी कौन-सी अभिव्यक्तियाँ प्रदर्शित करते हैं और ऐसी कौन-सी बातें कह या कर सकते हैं जिससे दूसरे लोग स्पष्ट रूप से यह देख सकें कि मसीह-विरोधी तो मसीह-विरोधी ही हैं, वे एक औसत भ्रष्ट व्यक्ति से अलग हैं और उनका प्रकृति सार उन लोगों से अलग है जो सत्य का अनुसरण करते हैं? मैं कुछ उदाहरण दूँगा और तुम लोग इनके बारे में सोचकर इनमें कुछ जोड़ सकते हो। जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है तो वे सबसे पहले हिसाब लगाते हैं और सोचते हैं : “किस तरह का व्यक्ति मेरी काट-छाँट कर रहा है? इसमें उसका क्या लाभ है? उसे इस बारे में कैसे पता है? उसने मेरी काट-छाँट क्यों की? क्या वह मुझसे नफरत करता है? क्या वह मेरी किसी बात से नाराज है? क्या वह मुझसे इसलिए बदला ले रहा है कि मेरे पास कुछ अच्छा है जो मैंने उसे नहीं दिया और वह इस मौके का फायदा उठाकर मुझे धमका रहा है?” अपने अपराधों, पिछले कुकर्मों और अपने द्वारा प्रकट किए गए भ्रष्ट स्वभावों पर विचार करने और उन्हें जानने के बजाय वे अपनी काट-छाँट के मामले में कोई सुराग ढूँढ़ना चाहते हैं। उन्हें दाल में कुछ काला नजर आता है। अपनी काट-छाँट को वे इसी तरह लेते हैं। क्या यहाँ कोई सच्ची स्वीकृति है? क्या कोई सच्चा ज्ञान या चिंतन है? (नहीं।) अधिकांश लोगों की काट-छाँट होने का कारण उनका भ्रष्ट स्वभाव प्रकट करना हो सकता है। अज्ञानता के कारण कुछ गलत कर परमेश्वर के घर के हितों के साथ धोखा कर बैठना भी इसका कारण हो सकता है। एक अन्य कारण यह भी हो सकता है कि उनके कर्तव्य में अनमने होने से परमेश्वर के घर के कार्य को नुकसान हो गया हो। सबसे घृणित तो यह है कि लोग बिना किसी रोक-टोक के अपनी इच्छानुसार कार्य करते हैं, सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं और परमेश्वर के घर के काम को अस्त-व्यस्त और बाधित करते हैं। लोगों की काट-छाँट किए जाने के ये प्राथमिक कारण हैं। चाहे जिस किसी परिस्थिति के कारण किसी व्यक्ति की काट-छाँट की जाए, इसके प्रति सबसे महत्वपूर्ण रवैया क्या होना चाहिए? पहले तो तुम्हें काट-छाँट को स्वीकार करना चाहिए। इससे फर्क नहीं पड़ता कि तुम्हारी काट-छाँट कौन कर रहा है, इसका कारण क्या है, चाहे वह कठोर लगे, लहजा और शब्द कैसे भी हों, तुम्हें इसे स्वीकार कर लेना चाहिए। फिर तुम्हें यह पहचानना चाहिए कि तुमने क्या गलत किया है, तुमने कौन-सा भ्रष्ट स्वभाव प्रकट किया है और क्या तुमने सत्य सिद्धांतों के अनुसार कार्य किया है। सबसे पहले तुम्हारा रवैया यही होना चाहिए। क्या मसीह-विरोधियों का रवैया ऐसा होता है? नहीं; शुरू से अंत तक, उनका रवैया प्रतिरोध और नफरत का होता है। क्या ऐसे रवैये के साथ, वे परमेश्वर के सामने शांत हो सकते हैं और नम्रता से काट-छाँट स्वीकार कर सकते हैं? नहीं, वे ऐसा नहीं कर सकते। तो फिर वे क्या करेंगे? सबसे पहले तो वे लोगों से सहानुभूति और माफी पाने की आशा में जोरदार बहस करेंगे और बहाने बनाएँगे, अपनी गलतियों और उजागर किए गए भ्रष्ट स्वभावों का बचाव करेंगे, उसके पक्ष में बहस करेंगे ताकि उन्हें कोई जिम्मेदारी न लेनी पड़े या उन वचनों को स्वीकार न करना पड़े जो उनकी काट-छाँट करते हैं। जब उनकी काट-छाँट की जाती है तो उनका क्या रवैया होता है? “मैंने पाप नहीं किया है। मैंने कुछ गलत नहीं किया है। अगर मुझसे कोई भूल हुई है, तो उसका कारण था; अगर मैंने कोई गलती की है, तो मैंने जानबूझकर ऐसा नहीं किया, तो मुझे इसकी जिम्मेदारी लेने की जरूरत नहीं है। थोड़ी-बहुत गलतियाँ कौन नहीं करता?” वे इन कथनों और वाक्यांशों को पकड़ लेते हैं, लेकिन वे सत्य नहीं खोजते, न तो वे अपनी गलतियों को स्वीकारते हैं और न ही अपने प्रकट किए हुए भ्रष्ट स्वभावों को स्वीकारते हैं—और बुराई करने में उनका जो इरादा और मकसद होता है, उसे तो निश्चित रूप से नहीं स्वीकारते। उनकी गलतियाँ चाहे कितनी ही स्पष्ट क्यों न हों या चाहे उन्होंने कितना ही बड़ा नुकसान क्यों न किया हो, वे इन चीजों को पूरी तरह से अनदेखा कर देते हैं। उन्हें न तो जरा-सा भी दुख होता है और न ही ग्लानि होती है, और उनकी अंतरात्मा उन्हें बिल्कुल भी नहीं धिक्कारती है। बल्कि, वे पूरी ताकत से खुद को सही ठहराते हैं और यह सोचकर शब्दों की जंग छेड़ देते हैं, “सभी के पास खुद को सही ठहराने वाला दृष्टिकोण होता है। सबके अपने कारण होते हैं; मुख्य यह है कि कौन ज्यादा अच्छी बातें करता है। यदि मैं अधिकतर लोगों तक अपना औचित्य और स्पष्टीकरण पहुँचा सकूँ, तो जीत मेरी होगी और तुम जिन सत्यों की बात करते हो, वे सत्य नहीं हैं और तुम्हारे तथ्य भी मान्य नहीं हैं। तुम मेरी निंदा करना चाहते हो? बिल्कुल नहीं कर सकते!” जब किसी मसीह-विरोधी की काट-छाँट की जाती है, तो वह पूरे मन और आत्मा की गहराई और दृढ़ता से प्रतिरोध करता है, उससे नफरत करता है और उसे नकार देता है। उसका रवैया कुछ ऐसा होता है, “तुम जो चाहे कहना चाहो, चाहे तुम कितने भी सही हो, मैं इस बात को न तो मानूँगा और न ही स्वीकार करूँगा। मेरी कोई गलती नहीं है।” तथ्य किसी भी प्रकार से उनके भ्रष्ट स्वभाव को बाहर ले आएँ, वे उसे स्वीकार नहीं करते, बल्कि अपना बचाव और प्रतिरोध करते रहते हैं। दूसरे लोग कुछ भी कहें, वे उसे स्वीकारते या मानते नहीं, बल्कि सोचते हैं, “देखते हैं कौन किसको बातों में हरा सकता है; देखते हैं कौन बेहतर वक्ता है।” एक प्रकार का यह रवैया जिस तरह से मसीह-विरोधी अपनी काट-छाँट को लेते हैं।

कोई व्यक्ति सत्य स्वीकार सकता है या नहीं, यह तब पता चलता है जब उसकी काट-छाँट की जाती है। मसीह-विरोधी शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलते समय बहुत स्पष्ट होते हैं, मगर जब उनकी काट-छाँट की जाती है तो वे अवहेलना, कुतर्क और प्रतिरोध करते रहते हैं और सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते। वे उन शब्दों और धर्म-सिद्धांतों में से एक को भी अभ्यास में नहीं ला पाते जिनके बारे में वे अक्सर बोलते हैं। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि मसीह-विरोधियों का सार सत्य से विमुख होने का है। मसीह-विरोधियों का स्वभाव शातिर और अहंकारी होता है। सत्य और तथ्यों के सामने उनका रवैया हमेशा अड़ियल, प्रतिरोधी और वैर-भाव वाला होता है। जब उनकी काट-छाँट की जाती है तो अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए जितना हो सके खुद को सही ठहराने और स्पष्टीकरण देने के अलावा मसीह-विरोधियों का यह दृढ़ विश्वास होता है : “मैं परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ, किसी व्यक्ति में नहीं। परमेश्वर धार्मिक है, और चाहे वह व्यक्ति कैसे भी मेरी काट-छाँट करे, वह मेरी नियति तय नहीं कर सकता। मैं सत्य स्वीकार नहीं करता, पर इसमें वो क्या कर लेगा?” वे दिल से अवज्ञाकारी हैं, “धरती पर कोई व्यक्ति जो कुछ कहता है चाहे वह कितना भी सही या सत्य के अनुरूप क्यों न हो, वह सत्य नहीं है, केवल स्वर्ग के परमेश्वर द्वारा सीधे तौर पर बोले गए कथन ही सत्य हैं; धरती पर कोई व्यक्ति चाहे कैसे भी लोगों का न्याय करे, उन्हें ताड़ना दे, और उनकी काट-छाँट करे, वह धार्मिक नहीं है, केवल स्वर्ग का परमेश्वर ही धार्मिक है।” वे क्या जताना चाहते हैं? “धरती के परमेश्वर की बातें चाहे कितनी भी सही या सत्य के अनुरूप क्यों न हो, वे सत्य नहीं है। केवल स्वर्ग का परमेश्वर ही सत्य है, स्वर्ग का परमेश्वर ही सबसे महान है। भले ही धरती का परमेश्वर भी सत्य व्यक्त कर सकता है, मगर उसकी तुलना स्वर्ग के परमेश्वर से नहीं की जा सकती।” क्या उनका यही मतलब नहीं है? (यही मतलब है।) “मैं स्वर्ग के परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ, धरती के परमेश्वर पर नहीं। तुम्हारी यानी इस साधारण व्यक्ति की बातें चाहे कितनी भी सही या सत्य के अनुरूप क्यों न हों, तुम फिर भी स्वर्ग के परमेश्वर नहीं हो। स्वर्ग का परमेश्वर हर चीज पर संप्रभुता रखता है। स्वर्ग का परमेश्वर मेरी नियति निर्धारित करता है। धरती का परमेश्वर मेरी नियति निर्धारित नहीं कर सकता। धरती के परमेश्वर की कही बातें चाहे कितनी भी सत्य के अनुरूप क्यों न हों, मैं उन्हें स्वीकार नहीं करूँगा। मैं केवल स्वर्ग के परमेश्वर को स्वीकारता हूँ और उसके प्रति समर्पण करता हूँ। स्वर्ग का परमेश्वर मेरे साथ जैसा भी व्यवहार करे, मैं उसके प्रति समर्पण करूँगा।” अपनी काट-छाँट के समय मसीह-विरोधी यही शब्द प्रकट करते हैं। ये सभी शब्द उनके दिल से निकलते हैं। उनके ये दिल से निकले शब्द पूरी तरह से उनके स्वभाव का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनके प्रकृति सार को प्रकट करते हैं जो सत्य से विमुख है और सत्य से नफरत करता है। जब मसीह-विरोधी ये शब्द प्रकट करते हैं, तो उनका असली चेहरा पूरी तरह सामने आ जाता है। यह कहा जा सकता है कि जो कोई भी इन शब्दों को कह सकता है वह एक पक्का मसीह-विरोधी और एक असली राक्षस और शैतान है। कुछ मसीह-विरोधी काट-छाँट किए जाते समय नहीं झुकने वाला रवैया प्रदर्शित करते हैं, जो न तो खुशामदी होता है और न ही अहंकारी। वे सत्य को या फिर अपनी काट-छाँट को स्वीकार नहीं करते हैं, न ही वे वास्तव में खुद को जानते हैं। इसके बजाय, वे अपने छद्म-विश्वासी सार को पूरी तरह से उजागर करते हुए अपने उस दृढ़-विश्वास में पीछे हट जाते हैं और इसका उपयोग अपनी प्रतिष्ठा, रुतबे और उपस्थिति बोध का बचाव करने के लिए करते हैं। वे सभी को नकारने और हराने के लिए और साथ ही सत्य को और धरती के परमेश्वर को नकराने के लिए “मैं परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ, किसी व्यक्ति में नहीं, और परमेश्वर धार्मिक है” जैसे शब्दों का उपयोग करते हैं। साथ ही, वे इन शब्दों का उपयोग अपने पापों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को छिपाने और टालने के लिए और अपने भ्रष्ट स्वभावों और अपने प्रकृति सार को छिपाने के लिए करते हैं। मसीह-विरोधी अपने कुकर्मों को छिपाने के लिए और खुद को सांत्वना देने और बचाने के लिए भी अपने दृढ़-विश्वास और अपने सिद्धांतों का उपयोग करते हैं। वे खुद को कैसे सांत्वना देते हैं? वे सोचते हैं, “कोई बात नहीं, धरती का यह व्यक्ति जो कहता है उसका कोई महत्व नहीं है। उसकी कही बातें चाहे कितनी भी उचित क्यों न हों, मैं उन्हें स्वीकार नहीं करूँगा। अगर मैं उन्हें स्वीकार नहीं करता तो वह जो कुछ भी कहता है वह तथ्य नहीं होगा और सत्य के अनुरूप नहीं होगा। इसलिए मुझे अपनी गलतियों, कुकर्मों या अपराधों के लिए जिम्मेदारी लेने की जरूरत नहीं है, मैं बस अपनी मनमर्जी कर सकता हूँ, छाती चौड़ी करके घूम सकता हूँ, और अपने तरीके से काम कर सकता हूँ, जैसा कि मैं पहले भी करता था।” तो, मसीह-विरोधी बिना किसी आशंका के और बेशर्मों की तरह अपने मार्ग पर चलते रहते हैं, और अंत तक आशीष पाने की अपनी इच्छा और इरादे पर कायम रहते हैं। यही मसीह-विरोधियों का असली चेहरा है।

जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है तब वे बेनकाब होते हैं। यही वह समय है जब उनका प्रकृति सार उजागर होने की पूरी संभावना रहती है। पहली बात : क्या वे अपने बुरे कर्मों को स्वीकार सकते हैं? दूसरी बात : क्या वे आत्मचिंतन कर स्वयं को जान सकते हैं? तीसरी बात : जब उनकी काट-छाँट होती है तो क्या वे इसे परमेश्वर से आया मानकर स्वीकार सकते हैं? इन तीन बातों से मसीह-विरोधी का प्रकृति सार देखा जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति काट-छाँट किए जाते समय समर्पण और आत्मचिंतन कर अपनी भ्रष्टता के खुलासों और भ्रष्ट सार को जान सकता है, तो ऐसा व्यक्ति सत्य स्वीकार कर सकता है। वह मसीह-विरोधी नहीं होता। मसीह-विरोधी में ये तीन चीजें नहीं होती हैं। मसीह-विरोधी इसके बजाय कुछ और ही करने लगता है जिसकी किसी को उम्मीद नहीं होती—यानी जब उसकी काट-छाँट की जाती है, तो वह निराधार आरोप लगाने लगता है। वह अपने गलत कामों और भ्रष्ट स्वभाव को स्वीकारने के बजाय उसी व्यक्ति की निंदा करने लगता है जो उसकी काट-छाँट करता है। वह ऐसा कैसे करता है? वह कहता है, “जरूरी नहीं कि सारी काट-छाँट सही हो। काट-छाँट का मतलब मनुष्य की निंदा और मनुष्य की आलोचना है; यह परमेश्वर की ओर से नहीं किया जाता। मात्र परमेश्वर धार्मिक है। जो कोई दूसरों की निंदा करे, उसकी निंदा की जानी चाहिए।” क्या यह निराधार आरोप नहीं है? जो इस तरह के निराधार आरोप लगाता है, वह किस तरह का व्यक्ति होता है? ऐसा तो कोई विवेकशून्य, नासमझ, तंग करने वाला व्यक्ति ही कर सकता है, राक्षस और शैतान की किस्म का इंसान ही कर सकता है। अंतरात्मा और विवेक वाला व्यक्ति ऐसा कभी नहीं करेगा। जो लोग अपनी काट-छाँट के समय निराधार आरोप लगाते हैं वे बुरे लोग ही होंगे। वे सभी शैतान हैं। जब मसीह-विरोधी निराधार आरोप लगाते हैं तो वे अक्सर क्या कहते हैं? “मैं परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ और परमेश्वर धार्मिक है! मैं परमेश्वर के प्रति समर्पण करता हूँ, किसी व्यक्ति के प्रति नहीं! यह जरूरी नहीं कि सभी प्रकार की काट-छाँट सही हो। अगर परमेश्वर मेरी काट-छाँट करता है तो मैं इसे स्वीकारूँगा, लेकिन अगर लोग मेरी काट-छाँट करेंगे तो मैं उसे स्वीकार नहीं करूँगा!” मसीह-विरोधी सबसे पहले यही कहेंगे, “परमेश्वर धार्मिक है!” तुम सुन सकते हो कि उनके लहजे में दुर्भावनापूर्ण मानसिकता होती है। दूसरी बात जो वे कहते हैं, वह है “मैं परमेश्वर के प्रति समर्पण करता हूँ, किसी व्यक्ति के प्रति नहीं!” क्या तुम लोगों ने ये दोनों कथन कहीं सुने हैं? (हाँ।) क्या तुम लोगों ने कभी ऐसा कहा है? (नहीं।) ज्यादातर लोग ये दोनों कथन कहने की हिम्मत नहीं करते। ऐसा सिर्फ तभी होता है जब उनके साथ कुछ ऐसा होता है जो उन्हें सकारात्मक लगता है और जिसे उन्हें स्वीकारना चाहिए, वे कहते हैं : “परमेश्वर वास्तव में धार्मिक है, मेरी काट-छाँट और मुझे अनुशासित किया जाना सही था।” वे इसे सकारात्मक तरीके से स्वीकारते हैं और तब इन शब्दों का इस्तेमाल अपने हितों की रक्षा करने या खुद को सही ठहराने और स्पष्टीकरण देने के लिए बिल्कुल भी नहीं करते। वे सच में अपने दिल की गहराइयों से इन शब्दों और इस तथ्य को स्वीकारते हैं। मसीह-विरोधियों का रवैया अलग होता है। अपनी काट-छाँट किए जाने के संदर्भ में, वे इस तरह के लहजे या इस तरह के इरादे का इस्तेमाल करके कह सकते हैं, “मैं परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ और परमेश्वर धार्मिक है! मैं परमेश्वर के प्रति समर्पण करता हूँ, किसी व्यक्ति के प्रति नहीं!” इसका क्या मतलब है? क्या वे सत्य को स्वीकारने वाले लोग हैं? निश्चित रूप से नहीं। वे इस बात से इनकार करते हैं कि काट-छाँट किया जाना परमेश्वर से आता है और इसमें परमेश्वर की स्वीकृति है। इसे परमेश्वर से आया मानकर स्वीकार न कर पाना पूरी तरह से यह साबित करता है कि मसीह-विरोधी हर चीज पर परमेश्वर की संप्रभुता को स्वीकार नहीं करते और न ही यह मानते हैं कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं। तो फिर वे कैसे स्वीकार सकते हैं कि परमेश्वर धार्मिक है? वे स्पष्ट रूप से इन शब्दों का उपयोग, जो पहली नजर में सही मालूम पड़ते हैं, दूसरों की निंदा करने के लिए, उन लोगों की निंदा करने के लिए करते हैं जो उनके अनुकूल नहीं हैं, जो उनकी काट-छाँट करते हैं और जो उनके भ्रष्ट स्वभावों को उजागर करते हैं। क्या ये बुरे लोगों के क्रियाकलाप नहीं हैं? ये बुरे लोग हैं। बुरे लोग अहम क्षणों में परमेश्वर का विरोध और सत्य का विरोध करने के लिए सही शब्दों का उपयोग कर सकते हैं, और साथ ही वे अपने हितों, अपनी खुद की छवि और अपनी इज्जत-प्रतिष्ठा की रक्षा करने के लिए सही शब्दों का उपयोग कर सकते हैं। क्या यह बेशर्मी नहीं है? “दुष्‍ट मनुष्य कठोर मुख का होता है” (नीतिवचन 21:29)। यह वाक्य बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों पर सही बैठता है। मसीह-विरोधी इसी तरह के लोग हैं।

मसीह-विरोधी एक और बात कहते हैं : “मैं परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ, किसी व्यक्ति में नहीं!” क्या यह वाक्य पहली नजर में गलत लगता है? (नहीं।) परमेश्वर में विश्वास रखना बेशक सही है—कोई किसी व्यक्ति में विश्वास नहीं रख सकता। ये शब्द इतने अच्छे और सही हैं, इनमें कुछ भी गलत नहीं है। दुर्भाग्य से, इस वाक्य का अर्थ तब बदल जाता है जब यह एक मसीह-विरोधी के मुँह से निकलता है। अर्थ में यह बदलाव क्या दर्शाता है? यह कि मसीह-विरोधी खुद को मुसीबत से बाहर निकालने और अपना स्पष्टीकरण देने के लिए सही शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। इन शब्दों को बोलने के पीछे उनका इरादा क्या है? ये शब्द बोलने के पीछे उनका क्या कारण है? यह उनके सार के किन पहलुओं को साबित करता है? (सत्य को स्वीकार न करना, सत्य से नफरत करना।) सही कहा, वे सत्य को स्वीकार नहीं करते। तो वे सत्य को स्वीकार नहीं करते, मगर क्या वे सबके सामने ऐसा कहेंगे, “मैं इसे स्वीकार नहीं करता; भले ही तुमने जो कहा वह सही हो, मैं इसे स्वीकार नहीं करता”? अगर वे ऐसा कहेंगे तो लोग उनका भेद पहचानने में सक्षम हो जाएँगे और हर कोई उन्हें ठुकरा देगा और वे अपने पाँव जमाए रखने में असमर्थ होंगे, इसलिए वे ऐसा नहीं कह सकते। वे अपने दिलों में इन बातों को स्पष्ट रूप से समझते हैं। यहीं पर मसीह-विरोधियों की धोखेबाजी और दुष्टता निहित है। वे सोचते हैं, “अगर मैं खुलेआम तुम्हारा खंडन करता हूँ, खुलेआम तुम्हारे खिलाफ आवाज उठाता हूँ और तुम्हारा विरोध करता हूँ तो तुम कहोगे कि मैं सत्य को स्वीकार नहीं करता। मैं तुम्हें यह नहीं देखने दूँगा कि मैं सत्य को स्वीकार नहीं करता। मैं इस मामले को सुलझाने और खुद को बचाने के दूसरे तरीके अपनाऊँगा।” इसलिए, वे कहते हैं : “मैं परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ, किसी व्यक्ति में नहीं।” चाहे वे परमेश्वर में विश्वास रखें या किसी व्यक्ति में, हम यहाँ इस बात का गहन-विश्लेषण कर रहे हैं कि क्या मसीह-विरोधी सत्य को स्वीकार करते हैं। क्या वे ऐसा कहकर अवधारणाओं में घालमेल नहीं रहे हैं? वे अवधारणाओं में घालमेल कर रहे हैं और लोगों की आँखों में धूल झोंकने की कोशिश कर रहे हैं। लोगों को यह देखने से रोकने के लिए कि वे सत्य को स्वीकार नहीं करते, वे कहते हैं कि वे परमेश्वर को और सत्य को स्वीकारते हैं, परमेश्वर में विश्वास रखते हैं और यह मानते हैं कि परमेश्वर सत्य है, और चूँकि परमेश्वर सत्य है, इसलिए परमेश्वर कोई व्यक्ति नहीं बन सकता, और अगर वह व्यक्ति बन जाता है तो उसके पास सत्य नहीं है और वह व्यक्ति परमेश्वर नहीं है। इस आधार पर देखें तो क्या वे पहले ही मसीह-विरोधी के रूप में बेनकाब नहीं हो चुके हैं? वे यह स्वीकार ही नहीं करते कि परमेश्वर मसीह और एक साधारण व्यक्ति बन सकता है। वे सोचते हैं कि केवल स्वर्ग का परमेश्वर, केवल वह परमेश्वर जो अदृश्य और अमूर्त है, और जिसकी मनुष्य अपने मन से कल्पना और उपयोग करता है, असली परमेश्वर है। क्या इस दृष्टिकोण और पौलुस के दृष्टिकोण के बीच समानताएँ हैं? (हाँ।) धरती के मसीह के प्रति पौलुस का कैसा रवैया था? क्या उसने उसे मसीह माना? क्या उसने उसे स्वीकार किया? (नहीं।) पौलुस ने कहा : “मसीह जीवित परमेश्वर का पुत्र है और हम भी जीवित परमेश्वर के पुत्र हैं। इसका मतलब हम सभी मसीह के भाई-बहन हैं और वरिष्ठता के मामले में हम सभी बराबर हैं। हम जिस परमेश्वर में विश्वास रखते हैं वह स्वर्ग में है। धरती पर कोई परमेश्वर नहीं है। इसलिए यह गलतफहमी मत पालो कि धरती पर मौजूद यह व्यक्ति मसीह है, वह परमेश्वर का पुत्र है। वह परमेश्वर के समान नहीं है। वह स्वर्ग के परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता, मनुष्य उसे सत्य नहीं मान सकता और न ही मनुष्य को उसका अनुसरण करने की जरूरत है।” हम मसीह-विरोधियों के इन शब्दों से क्या गहन-विश्लेषण कर सकते हैं कि “मैं परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ, किसी व्यक्ति में नहीं”? पौलुस की तरह वे भी केवल स्वर्ग के अज्ञात परमेश्वर को मानते हैं और यह नहीं मानते कि मसीह ही परमेश्वर है। दूसरे शब्दों में, वे इस तथ्य को नहीं मानते हैं कि परमेश्वर देहधारण करके एक साधारण व्यक्ति बन गया है—इस बिंदु पर मसीह-विरोधी बिल्कुल पौलुस जैसे ही हैं। उनके कहने का मतलब है : “अगर तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो, तो परमेश्वर में विश्वास रखो, किसी व्यक्ति में नहीं। किसी व्यक्ति में विश्वास रखना बेकार है, तुम किसी व्यक्ति में विश्वास रखकर आशीष नहीं पा सकते। परमेश्वर में विश्वास रखने के लिए तुम्हें स्वर्ग के परमेश्वर, अदृश्य परमेश्वर में विश्वास रखना होगा। स्वर्ग का परमेश्वर इतना महान और इतना सर्वशक्तिमान है, पृथ्वी का परमेश्वर भला क्या कर सकता है? यह तो बस कुछ सत्य व्यक्त कर सकता है और कुछ सही शब्द बोल सकता है।” अगर हम इन शब्दों के आधार पर उनके सार का गहन-विश्लेषण करें और उन्हें परखें तो वे मसीह का विरोध कर रहे हैं, मसीह को स्वीकार नहीं कर रहे हैं और इस तथ्य को नकार रहे हैं कि परमेश्वर देह बन गया है। वे पूरी तरह से मसीह-विरोधी हैं।

जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है, जब वे असफलताओं का सामना करते हैं और जब कोई उन्हें उजागर करता है तो वे अपना बचाव करने, दूसरे व्यक्ति द्वारा उजागर किए जाने से बचने के लिए और दूसरे व्यक्ति द्वारा अपनी काट-छाँट से इनकार करने के लिए “परमेश्वर धार्मिक है” वाक्यांश का उपयोग करते हैं। चाहे कुछ भी हो, जब उनकी काट-छाँट की जाती है तो उनका प्राथमिक रवैया अवज्ञा, प्रतिरोध और अस्वीकृति का होता है, वे अपने लिए स्पष्टीकरण देने और अपना बचाव करने की भरसक कोशिश करते हैं। कुछ लोग तो यहाँ तक कहते हैं : “समय सब कुछ प्रकट कर देगा। परमेश्वर धार्मिक है। एक दिन परमेश्वर इसे मेरे लिए प्रकट करेगा!” भ्रष्ट लोग होने के कारण वे अपना कर्तव्य निभाने के दौरान परमेश्वर के घर के कार्य को चाहे कितना भी बड़ा नुकसान क्यों न पहुँचाएँ, वे इसकी परवाह नहीं करते या इस पर कोई ध्यान नहीं देते हैं। अगर यह तथ्य उजागर होता है, तब भी वे यह स्वीकार नहीं करते कि ये नुकसान उनके कारण हुए हैं और वे जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं होते। अंत में वे अभी भी यही चाहते हैं कि परमेश्वर उनके लिए इसे प्रकट करे, मानो परमेश्वर उनकी सेवा करने के लिए है, और जब वे गलतियाँ करें तो परमेश्वर को उनका बचाव करना चाहिए, मानो वह उस तरह का परमेश्वर है। वे सत्य को स्वीकार नहीं करते, वे अपनी काट-छाँट को स्वीकार नहीं सकते और न ही वे खुद को जानने में सक्षम हैं, मगर इतना ही नहीं—वे परमेश्वर से कहते हैं कि वह उनके पक्ष में स्पष्टीकरण और औचित्य दे। क्या यह शर्मनाक नहीं है? यह बहुत शर्मनाक है! मसीह-विरोधी बेहद शर्मनाक हैं और वे बेहद दुष्ट भी हैं। यह एक पहलू है। जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है तो वे अक्सर कौन से दो कथन बोलते हैं? (“मैं परमेश्वर में विश्वास रखता हूँ, किसी व्यक्ति में नहीं!” “परमेश्वर धार्मिक है!”) ये दो कथन इस्तेमाल करना उनकी आदत है। वे किसी अन्य प्रकार का झूठा तर्क नहीं दे सकते, वे ऐसा करने की हिम्मत नहीं करते। वे इन दो सही कथनों का उपयोग लोगों को गुमराह करने के लिए, अपनी ओर से अनुचित तर्क देने के लिए, किसी गलत बात को सही ठहराने की कोशिश करने के लिए, किसी दुष्ट चीज को उचित बताने के लिए, अपनी गलतियों और अपने द्वारा किए गए नुकसानों को सही ठहराने के लिए करते हैं। वे इन दो कथनों का उपयोग सभी चीजों को एक झटके में खारिज करने के लिए, उन्हें पूरी तरह से मिटा देने के लिए और यह दिखावा करने के लिए करना चाहते हैं कि उनका कोई अस्तित्व ही नहीं है और वे हमेशा की तरह विश्वास रखना जारी रखते हैं। क्या मसीह-विरोधियों की इस अभिव्यक्ति में पश्चात्ताप का भाव है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) न केवल वे पश्चात्ताप नहीं करते, बल्कि वे मसीह-विरोधियों का एक और पहलू भी प्रकट करते हैं—सत्य से विमुख होना, अहंकार, दुष्टता और शातिरपन। उनका अहंकार इस तथ्य में प्रकट होता है कि वे उन लोगों से घृणा करते हैं जो भी उनकी काट-छाँट रहे होते हैं, यह सोचकर कि, “तुम बस एक इंसान हो, मैं तुमसे नहीं डरता!” क्या यह अहंकार नहीं है? (है।) उनकी दुष्टता किस तरह से प्रकट होती है? (निराधार आरोप लगाने से।) निराधार आरोप लगाना एक पहलू है और दूसरा पहलू अपने लिए स्पष्टीकरण देने, खुद को सही ठहराने और अपना बचाव करने के लिए सही शब्दों का उपयोग करना है। इसके भीतर और कौन सा स्वभाव निहित है? निराधार आरोप लगाना भी शातिरपन है। मसीह-विरोधी यह नहीं मानते कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं। अगर कोई उनके इस सार को उजागर करता है, तब भी वे इस तथ्य को स्वीकार नहीं करते कि वे सत्य को नहीं स्वीकारते हैं। वे आत्मचिंतन कर खुद को पहचानने की कोशिश नहीं करते; इसके बजाय, वे निराधार आरोप लगाते हैं और दूसरों की निंदा करने के लिए सही और अच्छे लगने वाले शब्दों का उपयोग करते हैं। दूसरों की निंदा करने के लिए वे जिन तरीकों और कहावतों का उपयोग करते हैं, वे कपटी और दुष्ट दोनों होते हैं। वे जानते हैं कि दूसरों की निंदा करने और उन्हें चुप कराने के लिए किन शब्दों का उपयोग करना है, ताकि दूसरे लोग यह न जान सकें कि आगे क्या कहना है और उनके साथ कुछ न कर सकें। यह दुष्टता है। उनका यह तरीका और अभ्यास पूरी तरह से शातिर स्वभाव है। ये मसीह-विरोधियों के कुछ स्वभाव हैं जिनका हम मसीह-विरोधियों की काट-छाँट के विषय से गहन-विश्लेषण कर सकते हैं। क्या मसीह-विरोधियों के ये स्वभाव और प्रकाशन उन चार मदों से मेल नहीं खाते हैं जिनके बारे में हमने पहले बात की थी? (मेल खाते हैं।) वे चार मद कौन सी हैं? (पहली मद, विश्वास नहीं करना और यह स्वीकारने से इनकार करना है कि परमेश्वर का वचन सत्य है; दूसरी मद यह है कि भले ही तुम उनके साथ परमेश्वर के वचन पर संगति करो, और वे सत्य को समझ सकें, वे इसे स्वीकार नहीं करते हैं; तीसरी मद परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने से इनकार करना है; चौथी मद कभी भी सच्चा पश्चात्ताप नहीं करना है।) विश्वास नहीं करना, स्वीकारने से इनकार करना, समर्पण नहीं करना और पश्चात्ताप नहीं करना, ये “चार नकार” मसीह-विरोधियों के सार का प्रतिनिधित्व करते हैं। मसीह-विरोधी कभी भी सत्य को स्वीकार नहीं करेंगे, और वे कभी भी तथ्यों के सामने अपने सिर नहीं झुकाएँगे। यह अड़ियल बनकर पश्चात्ताप नहीं करना और कुछ ऐसा है जो मसीह-विरोधियों की प्रकृति से निकलता है। यह इस बात की पहली अभिव्यक्ति है कि मसीह-विरोधी अपनी काट-छाँट को कैसे लेते हैं। भले ही मसीह-विरोधियों का स्वभाव सार एक जैसा होता है, मगर उनके मुँह से निकलने वाली मशहूर कहावतें और महान आदर्श वाक्य निश्चित रूप से एक जैसे नहीं होते हैं। कभी-कभी मसीह-विरोधी ऐसा कह सकते हैं और कभी-कभी मसीह-विरोधी वैसा कह सकते हैं, मगर उनके मुँह से चाहे जो भी बात निकले, उनकी विशेषताएँ और सार एक जैसे होंगे—उनके शब्दों का सार सत्य को स्वीकार न करने का है। अगर वे सत्य को स्वीकार नहीं करते, तो फिर उनके ये शब्द क्या हैं? क्या ये सत्य के अनुरूप शब्द हैं? क्या ये इंसानी शब्द हैं या नैतिकता के अनुरूप शब्द हैं? क्या वे अंतरात्मा और विवेक के अनुरूप शब्द हैं? (वे शैतानी शब्द हैं।) सही कहा। उन्हें खोखले शब्द या भ्रमित शब्द कहना सही रूप से परिभाषित नहीं करता, मगर यह कहना कि वे शैतानी शब्द हैं, इस समस्या को स्पष्ट कर देता है।

जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है, जब भाई-बहन उनकी आलोचना करके उन्हें उजागर करते हैं, तो वे और कौन-से शब्द बोलते हैं? कुछ मसीह-विरोधी लोगों को गुमराह करने के लिए कोई गलती करते हैं या कुछ शैतानी शब्द बोलते हैं। यह देखकर भाई-बहन मसीह-विरोधियों को धूर्त और धोखेबाज लोगों के रूप में उजागर करते हुए उनकी आलोचना और काट-छाँट करते हैं। भले ही वे बाहरी तौर पर विद्रोही नहीं हैं, मगर वे अंदर से प्रतिरोधी होते हैं, मानो यह कहना चाह रहे हों, “तुम्हें क्या पता? क्या तुम मेरे जितने जानकार हो? क्या तुमने उतने वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास किया है जितना कि मैंने किया है? तुमने कितने वर्ष परमेश्वर में विश्वास किया है? मैं तुम्हारे स्तर तक नहीं गिरूँगा!” जब अगुआ और कार्यकर्ता उनकी काट-छाँट कर रहे होते हैं तो वे शायद एक धूर्त रवैया अपना सकते हैं, बाहरी तौर पर झूठा बहाना बनाते हुए कुछ अच्छे लगने वाले शब्द कहते हैं, मगर मन-ही-मन वे असंतुष्ट और विद्रोही होते हैं और बदला लेने का मौका ढूँढ़ते रहते हैं। अगर कोई साधारण भाई या बहन उनकी काट-छाँट करता है तो मसीह-विरोधी अच्छा व्यवहार नहीं करते—वे नाराज होकर भड़क जाएँगे और पलटवार करके बदला लेंगे। जब वे पलटवार करके बदला लेते हैं तो अक्सर कुछ ऐसा कहते हैं : “तुम मेरी काट-छाँट करने के लिए बहुत कच्चे हो! अगर मैं परमेश्वर में विश्वास न करता तो मुझे किसी का डर नहीं होता!” क्या इन शब्दों में कुछ भी गलत है? अविश्वासी और अत्यंत घिनौने लोग आम तौर पर इस तरह के शब्द बोलते हैं। यह कलीसिया में कैसे सुनने को मिल सकता है? जो लोग इस तरह बोल सकते हैं वे एक विशेष समूह के लोग हैं और इस विशेष समूह की एक विशेष मनोदशा होती है। उनकी मनोदशा विशेष कैसे है? ऐसे लोग अक्सर कलीसिया में वरिष्ठता को महत्व देते हैं। वे सबको अपने से कमतर समझते हैं, सबको नापसंद करते हैं और सबको उपदेश देना, दंडित करना और अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं। वे सोचते हैं कि भले ही लोग परमेश्वर में विश्वास करते हों, मगर कोई भी उनका साथी बनने के लायक नहीं है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि जब लोग उन्हें भाई-बहन मानकर उनके साथ दिल की बात करते हैं, उनके भ्रष्ट स्वभाव उजागर करते हैं और उनकी सत्य के अनुरूप न होने वाली कथनी-करनी की काट-छाँट करते हैं तो वे इस तरह के अहंकारी शब्द बोलते हैं। वे परमेश्वर के घर को समाज और अपना कार्यक्षेत्र मानते हैं और कलीसिया के भाई-बहनों को अपने मातहत मानते हैं। उन्हें लगता है कि भाई-बहनों को समाज के मामलों की बहुत कम जानकारी है और केवल सतही समझ है, वे समाज में सबसे निचले स्तर पर हैं जहाँ दूसरे उन्हें नीची नजरों से देखते हैं, उनके साथ खिलवाड़ करते हैं और उन्हें कुचलते हैं। उन्हें लगता है कि भाई-बहनों को धमकाकर उनसे खिलवाड़ करना बहुत आसान है, और वे उस तरह के व्यक्ति नहीं होंगे। इसलिए वे सोचते हैं कि जो कोई भी उनकी काट-छाँट कर रहा और उन्हें उजागर कर रहा है, वह उन्हें धमका रहा है, नीचा दिखा रहा है और उनसे पक्षपात कर रहा है। उन्होंने पहले से ही अपने दिलों में इसके खिलाफ सतर्कता बरती है, “यह मत सोचो कि तुम मुझे दंडित कर सकते हो और मुझे धौंस दे सकते हो! तुम अभी भी बहुत कच्चे हो!” क्या यह कुछ ऐसा नहीं है जो कोई “नायक के जोश” वाला व्यक्ति कहेगा? दुर्भाग्य से ये शब्द सत्य नहीं हैं। चाहे तुममें कितना भी जोश या नैतिक सत्यनिष्ठा क्यों न हो, परमेश्वर तुम्हारे बारे में अच्छी राय नहीं रखेगा। परमेश्वर ऐसे स्वभावों और ऐसे लोगों से घृणा करता है जो ये बातें कहते हैं। जो लोग परमेश्वर के सामने ऐसी बातें कहते हैं, परमेश्वर उनकी निंदा और तिरस्कार करता है। जो लोग इन शब्दों को सत्य मानते हैं, उन्हें परमेश्वर कभी नहीं बचा सकता। तो, आओ एक बार फिर देखें, इन शब्दों में क्या गलत है? सत्य के सामने हर कोई बराबर है और परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य निभाने वालों के लिए उम्र या नीचता और कुलीनता का कोई भेद नहीं है। अपने कर्तव्य के सामने हर कोई बराबर है, वे बस अलग-अलग काम करते हैं। वरिष्ठता के आधार पर उनके बीच कोई भेद नहीं है। सत्य के सामने सबको विनम्र, आज्ञाकारी और स्वीकारने वाला दिल रखना चाहिए। लोगों में यही सूझ-बूझ और रवैया होना चाहिए। तो, क्या वे लोग जो कहते हैं, “तुम मेरी काट-छाँट करने के लिए बहुत कच्चे हो!” समाज के परिवेश, विचारधारा और घिनौनेपन से भरे नहीं हैं? वे परमेश्वर के घर को समाज मानते हैं, वे परमेश्वर के घर के भाई-बहनों को समाज के सबसे निचले स्तर के असुरक्षित समूह के लोग मानते हैं और साथ ही वे खुद को हर चीज का मालिक मानते हैं, ऐसा व्यक्ति जिसे कोई छू नहीं सकता या उकसा नहीं सकता है और जो यह ठान लेता है कि उन्हें उजागर और उनकी काट-छाँट करने वालों के लिए चीजें अच्छी न हों। वे सोचते हैं कि परमेश्वर का घर समाज की ही तरह है, जो कोई भी अडिग और दबंग है वह दृढ़ रहने में सक्षम होगा, कोई भी उन लोगों को छूने की हिम्मत नहीं करेगा जो निर्दयी, उग्र और बुरे हैं; वे यह भी मानते हैं कि जो लोग काट-छाँट को स्वीकारते हैं वे सभी अक्षम और असमर्थ हैं। उन्हें लगता है कि कोई भी उन लोगों को छूने की हिम्मत नहीं करेगा जिनके पास कुछ योग्यता है, अगर वे गलतियाँ करें तो भी कोई उन्हें उजागर करने की हिम्मत नहीं करेगा, और वे बेहद सख्त लोग हैं! मसीह-विरोधी सोचते हैं कि चाहे वे किसी भी समूह में हों, उन्हें शक्तिशाली, निर्दयी और इतना बुरा होना चाहिए कि दूसरे लोग उन्हें धौंस न दे सकें या लापरवाही से इधर-उधर न धकेल सकें। उन्हें लगता है कि यह योग्यता और क्षमता है, और वे इस योग्यता का उपयोग रुतबा, शोहरत और लाभ पाने, और आखिरकार एक अच्छी मंजिल सुरक्षित करने के लिए करना चाहते हैं। यह कैसा स्वभाव है? यह शातिर और दुष्ट दोनों तरह का स्वभाव है। मसीह-विरोधी चाहे कितने भी धर्मोपदेश सुन लें, वे सत्य को नहीं समझ सकते। वे यह नहीं देख सकते कि परमेश्वर के घर में सत्य का शासन है। वे उन सभी बदलावों को नहीं देख सकते जो सत्य स्वीकारने वाले लोगों में होते हैं और अगर वे उन्हें देख भी लें, तो भी वे उन्हें बदलावों के रूप में स्वीकार नहीं करते। उन्हें लगता है कि वे सभी बदलाव दिखावे और आत्म-संयम का नतीजा हैं, और वे खुद को संयमित नहीं करेंगे और इसकी खातिर बुरा व्यवहार स्वीकार नहीं करेंगे। इस तरह का तर्क होने के कारण वे ऐसी बातें कह सकते हैं : “यह मत सोचो कि तुम मुझे दंडित कर सकते हो और धौंस दे सकते हो!” क्या यह मसीह-विरोधियों की दुष्टता नहीं है? ऐसे विचार और दृष्टिकोण दुष्ट हैं। वे ये शब्द बोल सकते हैं और इस तरह से काम कर सकते हैं, इससे उनके शातिर स्वभाव का खुलासा होता है। क्या कलीसिया में इस तरह के लोग हैं? जब भाई-बहन उनसे दिल की बात करते हैं, उन्हें उजागर करते हैं, उनकी समस्याओं, कमियों और भ्रष्टता के खुलासे के बारे में बात करते हैं तो उन्हें लगता है कि उन्हें धमकाया और अपमानित किया जा रहा है और उन्हें गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। फिर वे कहते हैं, “तुम मेरी काट-छाँट करने के लिए बहुत कच्चे हो!” चाहे वे किसी को भी अपनी काट-छाँट स्वीकारते हुए देखें, वे हमेशा सोचेंगे : “क्या तुम अपनी काट-छाँट स्वीकार कर सत्य प्राप्त कर सकते हो? यह नामुमकिन है!” वे इसे स्वीकार नहीं करते हैं। वे लगता है कि लोगों की काट-छाँट करना उन पर धौंस जमाना और कोई बहाना ढूँढ़कर उन्हें दंडित करना है और उन्हें यह भी लगता है कि कोई छोटी-मोटी गलती होने पर लोगों को इसलिए धमकाया जाता है कि वे बहुत भोले होते हैं। वे यह स्वीकार नहीं करते कि लोगों की काट-छाँट करना उनसे प्रेम और उनकी मदद करना है। वे यह नहीं मानते कि लोग केवल तभी सच्चा पश्चात्ताप कर सकते हैं और बदल सकते हैं जब वे अपनी काट-छाँट को स्वीकारें और वे इस तथ्य को और भी कम स्वीकारते हैं कि परमेश्वर के घर में सत्य का शासन है। इसलिए मसीह-विरोधी अक्सर खुद से कहते हैं : “जो कोई भी मेरी काट-छाँट करेगा, मैं उसे नहीं छोड़ूँगा। मैं किसी को अपने पर धौंस नहीं जमाने दूँगा!” किस तरह के लोग ऐसे शब्द बोल सकते हैं? जो सत्य नहीं स्वीकारते और सत्य से घृणा करते हैं, केवल वही लोग ऐसे शब्द बोल सकते हैं। जो भी इस तरह के शातिर स्वभाव का है और जो ऐसे शब्द बोल सकता है, उसके पास मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार है और वह शैतान की किस्म का है।

अपनी काट-छाँट किए जाते समय मसीह-विरोधी एक और वाक्यांश बोलते हैं : “अगर मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं रखता, तो मुझे किसी की परवाह नहीं होती!” इस वाक्यांश का क्या मतलब है? यह एक खास तरह के मसीह-विरोधी का एक आम बयान है। चूँकि वे ऐसा कहते हैं तो आओ इसका गहन-विश्लेषण करें। चूँकि वे ये शब्द बोल सकते हैं, तो इनका एक खास अर्थ होना चाहिए। सतही तौर पर ये शब्द यह कहते प्रतीत होते हैं कि जब से इन लोगों ने परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू किया है, तब से उनमें बहुत बड़ा बदलाव आया है। इन शब्दों में आभार की भावना प्रतीत होती है, जैसे कि : “परमेश्वर ने मुझे बदल दिया है, परमेश्वर ने मुझे जीत लिया है। अगर परमेश्वर ने मुझे बदला न होता तो मैं बेहद अहंकारी व्यक्ति होता।” सतही तौर पर ऐसा लगता है कि इन शब्दों में आभार की मानसिकता है, मगर दूसरे परिप्रेक्ष्य से गहन-विश्लेषण करें तो इनमें एक बड़ी समस्या है। मसीह-विरोधी कहते हैं कि परमेश्वर में विश्वास रखने से पहले, वे किसी की परवाह नहीं करते थे। इन लोगों का स्वभाव कैसा है? (अहंकारी और शातिर।) ये लोग बेहद अहंकारी और शातिर हैं, और अगर वे परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते तो वे बहुत बुरे लोग होते। किसी की परवाह न करने का मतलब है किसी के लिए कोई सम्मान न होना, इसका मतलब है कि हर कोई उनके पैरों तले कुचला जाता है, और चाहे दूसरे लोग कितने भी महान या अच्छे क्यों न हों, वे उनकी नजर में कुछ भी नहीं हैं। वे किसी के आगे नहीं झुकते, वे सभी का तिरस्कार करते हैं और वे किसी की सेवा नहीं करते। अगर उनसे किसी व्यक्ति की सेवा करने के लिए कहा जाए तो इससे उनकी गरिमा को ठेस पहुँचेगी। केवल स्वर्ग का परमेश्वर ही उनकी सेवा के योग्य है। अब जबकि वे परमेश्वर में विश्वास रखते हैं तो उन्होंने किसी की परवाह न करने की इस अभिव्यक्ति और खुलासे पर अंकुश लगा दिया है और परमेश्वर के घर में आने के बाद वे समूह में दूसरों के साथ काम करने, मामलों को संभालने और सामान्य लोगों की तरह दूसरों के साथ बातचीत करने के लिए अनिच्छा से तैयार हो गए हैं। मगर जब वे मामलों को संभालते हैं और दूसरों के साथ बातचीत करते हैं, तो कुछ चीजें उनके मनमाफिक नहीं होती हैं और इससे उनका वह स्वभाव फिर से भड़क उठता है और इस कारण ये शब्द निकलते हैं। मूल रूप से जब वे संसार में थे और परमेश्वर में विश्वास नहीं करते थे तो वे किसी के आगे नहीं झुकते थे और सोचते थे कि कोई भी उनके साथ बातचीत करने के योग्य नहीं है। तो जब से उन्होंने परमेश्वर में विश्वास रखना शुरू किया है, क्या वे परमेश्वर के घर में किसी भाई या बहन के आगे झुके हैं? (नहीं।) चाहे वे किसी भी समूह में हों, क्या सामान्य मानवता और सामान्य तार्किकता वाला व्यक्ति इस तरह से आचरण करेगा? (नहीं।) यहाँ तक कि अविश्वासी भी कहते हैं, “साथ-साथ चल रहे किन्हीं भी तीन लोगों में कम-से-कम एक ऐसा होता है जो मेरा शिक्षक बन सकता है।” यानी किन्हीं तीन लोगों में से एक व्यक्ति निश्चित रूप से ऐसा होगा जो तुमसे ज्यादा मजबूत और बेहतर होगा, जो तुम्हारा शिक्षक बन सकता है और तुम्हारी मदद कर सकता है। अविश्वासी ऐसे शब्द कहते हैं तो क्या तब ये अहंकारी लोग इन शब्दों की सत्यता को स्वीकारते हैं? क्या वे किसी समूह में दूसरों के साथ बराबरी के स्तर पर बातचीत कर सकते हैं? क्या वे विवेकशील हो सकते हैं? (नहीं।) जब वे उन अविश्वासियों के बीच होते हैं जो परमेश्वर में आस्था नहीं रखते, तो ये मसीह-विरोधी किस तरह के लोग होते हैं? (वे टेढ़े लोग होते हैं।) सही कहा, वे कमीने होते हैं, वे टेढ़े लोग होते हैं। उनके बारे में कोई कुछ नहीं कर सकता। कोई भी उन्हें भड़काने, गुस्सा दिलाने या छूने की हिम्मत नहीं करता। वे कमीने हैं! अगर तुम उन्हें गुस्सा दिलाते हो तो दुष्परिणाम भुगतने होंगे, यह एक शातिर राक्षस को गुस्सा दिलाने जैसा है। आम तौर पर समाज में कोई भी ऐसे लोगों से उलझने की हिमाकत नहीं करता। चीजों से निपटने में उनका स्वभाव और उनके सिद्धांत असभ्य और अनुचित होते हैं और हर मोड़ पर परेशानी खड़ी करते हैं। कोई भी उन्हें गुस्सा दिलाने, हाथ लगाने और धौंस देने की जुर्रत नहीं करता है; केवल वे ही दूसरों को धौंस देते हैं। इससे उनका लक्ष्य पूरा होता है। तो क्या वे परमेश्वर के घर में आने के बाद बदल पाते हैं? क्या वे बदल गए हैं? (नहीं, वे नहीं बदले हैं।) हमें कैसे पता कि वे नहीं बदले हैं या वे नहीं बदल सकते हैं? (उनका यह कथन इस तथ्य को दर्शाता है, “अगर मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं रखता, तो मुझे किसी की परवाह नहीं होती!”) वे आम तौर पर ये शब्द नहीं बोलते हैं—वे किस संदर्भ में ये शब्द बोलते हैं? जब कोई उनकी खामियाँ बताता है, ऐसी बातें कहता है जिनसे उनकी गरिमा को ठेस पहुँचती है या जो उन्हें गुस्सा दिलाती हैं, तो वे यह वाक्यांश बोल देते हैं, “अगर मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं रखता, तो मुझे किसी की परवाह नहीं होती! तुम मुझसे लड़ने की हिम्मत करते हो, आखिर खुद को समझते क्या हो?” यह कैसा स्वभाव है? वे यह कहते हुए इस कथन से पहले एक संशोधक भी जोड़ देते हैं, “परमेश्वर में विश्वास रखने से पहले मुझे किसी की परवाह नहीं होती थी।” तुम तो अब परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद भी किसी के सामने नहीं झुकते या किसी की नहीं सुनते? क्या तुम अभी भी वही निरे राक्षस और शैतान नहीं हो? उन्हें लगता है कि परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद वे बदलकर सुधर गए हैं। अगर वे वाकई बदलकर सुधर गए हैं तो ये शब्द कैसे बोल सकते हैं? उनके पास कोई अंतरात्मा या विवेक नहीं है और वे खुलेआम शोर मचाने और दूसरों को यह बताने की हिम्मत करते हैं : “मैं एक ठग हूँ और मैं किसी से नहीं डरता!” एक निरंकुश, कमीने व्यक्ति और ठग के पास दिखाने के लिए है ही क्या? उसके पास डींगें हाँकने के लिए क्या है? फिर भी मसीह-विरोधी इस तरह से डींगें हाँकते हैं। वे इस तथ्य को अपना गौरवशाली अतीत मानते हैं कि वे कभी निरंकुश हुआ करते थे और वे परमेश्वर के घर में इसका दिखावा करते हैं। परमेश्वर का घर किस तरह की जगह है? यह ऐसी जगह है जहाँ सत्य का शासन चलता है। यह एक पवित्र जगह है जहाँ परमेश्वर लोगों को बचाता है। यह तुम्हें ये शैतानी शब्द बोलते हुए कैसे बर्दाश्त कर सकता है? मसीह-विरोधियों को कोई शर्म नहीं होती है, वे नहीं जानते कि ये शैतानी शब्द हैं और वे इनका इस तरह दिखावा तक करते हैं मानो ये अच्छे शब्द और सत्य हों। वे वाकई बेशर्म लोग हैं, वे बेहद शर्मनाक और घृणित हैं! जब इस तरह का व्यक्ति तुमसे शैतानी शब्द बोलता है तो क्या तुम लोगों के पास कोई उपयुक्त जवाब होता है? (मैं एक बार ऐसे व्यक्ति से मिला था; वह कलीसिया में किसी के आगे नहीं झुकता था। उस समय उसने मेरी आलोचना करने के लिए इस तरह के शब्द बोले थे। मुझमें कोई नीर-क्षीर विवेक नहीं था और मैंने कह दिया कि मैं इसे स्वीकारता हूँ।) तुमने इस तरह से जवाब दिया। इस तरह जवाब देना गलत था; तुमने गवाही नहीं दी। तुम्हें उसकी समस्याएँ बताकर उसे शर्मिंदा करना चाहिए। जब वह शैतानी शब्द बोलता है तो तुम्हें झुकना नहीं चाहिए और न ही तुम्हें उन शैतानी शब्दों का पालन करना चाहिए। तुम्हें उसे उजागर करना चाहिए। परमेश्वर के विजेताओं में से एक बनने और परमेश्वर के लिए गवाही देने के लिए तुम्हें राक्षस और शैतान को शर्मिंदा करने में सक्षम होना चाहिए और ऐसे शब्द कहने चाहिए जो शैतान को शर्मिंदा कर सकें और जो सत्य के अनुरूप हों। भले ही वह इसे न स्वीकारे, उसके पास कहने को कुछ नहीं होगा और वह अपनी औकात में रहेगा और समर्पण कर देगा। क्या इस तरह के व्यक्ति को डराना कारगर रहेगा? उसकी निंदा की जाए तो कैसा रहेगा? उसके साथ चर्चा करने और उसे मनाने के बारे में क्या ख्याल है? (नहीं।) फिर कौन-सा तरीका काम करेगा? (अगर कोई कलीसिया में ऐसे शब्द बोलता है तो मैं कहूँगा : “क्या तुम उद्दंड व्यवहार करने की कोशिश कर रहे हो? अगर तुम भाई-बहनों को सत्य पर संगति करते हुए सामान्य रूप से सुन सकते को और सत्य स्वीकार सकते हो तो यह ठीक है, लेकिन अगर तुम यहाँ उद्दंड व्यवहार करना चाहते हो, तो दफा हो जाओ। परमेश्वर का घर तुम्हें यहाँ उद्दंड व्यवहार करने की अनुमति नहीं देता है। तुम्हारे ये शब्द सत्य के अनुरूप नहीं हैं। यहाँ तमाशा मत करो!”) ये शब्द बहुत शक्तिशाली हैं, मगर इस तरह के लोग निरंकुश और डाकू होते हैं। क्या वे ऐसे शब्दों से डरते हैं? (नहीं, वे नहीं डरते।)

मैं तुम लोगों को एक बात बताता हूँ। एक बार, मैं ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आया जो परमेश्वर में विश्वास रखने से पहले एक बावर्ची हुआ करता था। उसने एक बार मुझसे कहा : “जब मैं बाहरी संसार में बावर्ची था और बड़े-बड़े लोग और अधिकारी शराब पीने के लिए आते थे तो मैं उनसे कोई वास्ता नहीं रखना चाहता था। जब मैं उनके लिए खाना बनाता था, तो मेरा एक हाथ मेरी कमर पर होता, एक पैर पंजों पर होता और मैं एक हाथ से उनके लिए खाना बनाता था।” वह अपने हाव-भाव दिखाकर यह बता रहा था और उसका व्यवहार जितना घृणापूर्ण था, उतना ही अवज्ञापूर्ण भी था। उसका मतलब था : “कोई भी अविश्वासी मेरी बराबरी नहीं कर सकता और मैं उनमें से किसी के सामने नहीं झुकूँगा। मैं बहुत सक्षम हूँ और बाहरी संसार में मेरे जैसे लोग सच्चे होते हैं। मैं आम तौर पर अधिकारियों की परवाह नहीं करता!” बोलते समय उसने हाव-भाव दिखाए, खुद से प्रसन्न लग रहा था और उन हरकतों को सहजता से प्रदर्शित कर रहा था। मैं देख सकता था कि वह उन हरकतों, उस व्यवहार और उस मुद्रा को प्रदर्शित करने में बहुत कुशल था—मानो वह अक्सर उन्हें प्रदर्शित करता था। मैं बता सकता था कि वह दूसरों से अपनी प्रशंसा करवाने की कोशिश में अपने “शानदार अतीत” का दिखावा करने और उस पर इतराने के इरादे से ऐसे भाव प्रदर्शित कर रहा था। जब मैंने उसे इस तरह व्यवहार करते देखा, तो मैंने मुस्कुराकर उससे कहा : “तो, तुम्हारा स्वभाव खराब है।” मैंने मुस्कुराते हुए बस यही कहा और कुछ नहीं कहा। उसका चेहरा तुरंत लटक गया और उसने तुरंत अपनी हरकतें बंद कर दीं और चुप हो गया। तब से उसने अपने “शानदार अतीत” के बारे में दोबारा कभी बात नहीं की। मैंने उससे क्या कहा? (तुम्हारा स्वभाव खराब है।) इसका क्या मतलब था? (इससे उसका प्रकृति सार पता चल गया और वह शर्मसार हो गया।) सही कहा। क्या मैंने उसे गुस्सा दिलाया? क्या मैंने उससे बहस की? क्या मैंने उसकी गरिमा को ठेस पहुँचाई? (नहीं।) क्या मैंने उसके साथ आवेगपूर्ण व्यवहार कर यह कहा : “दफा हो जाओ! तुम परमेश्वर में विश्वास रखकर क्या कर रहे हो?” या “तुम अभी भी मुझसे अपने ‘शानदार अतीत’ के बारे में बात करने के लिए बड़े कच्चे हो!”? क्या मैंने इन तरीकों का इस्तेमाल किया? (नहीं।) इनमें से किसी भी बात की ओर इशारा किए बिना मैंने बस एक वाक्य कहा, “तो, तुम्हारा स्वभाव खराब है,” और वह शर्मिंदगी के कारण चुप हो गया। मैंने विस्तार में जाए बिना अपनी बात कह दी। अगर कोई समझदार व्यक्ति यह सुनता तो वह तुरंत समझ जाता कि इसका क्या मतलब है और भविष्य में और अधिक संयमित हो जाता। इस रवैये के बारे में तुम लोग का सोचते हो? (यह अच्छा है।) क्या उसे घूरना और उससे बहस करना उचित होता? (नहीं, यह उचित नहीं होता।) अगर कोई कहता है, “अगर मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं रखता, तो मुझे किसी की परवाह नहीं होती!” तो तुम्हें उससे कहना चाहिए, “अगर परमेश्वर में विश्वास रखने से पहले तुम्हें किसी की परवाह नहीं थी, तो इसका मतलब है कि तुम्हारा स्वभाव खराब था। अगर तुम अब परमेश्वर में विश्वास करते हो, तब भी तुम्हें किसी की परवाह नहीं है, तो इसका मतलब है कि तुम्हारा स्वभाव और भी ज्यादा खराब है और तुम्हारे सार में कुछ तो गड़बड़ है।” बस इतना कहकर उसकी प्रतिक्रिया और उसका व्यवहार देखो। इसे जख्म पर नमक लगाना कहते हैं। क्या बुरे लोग इन शब्दों को सुनकर दुखी होंगे? वे परेशान महसूस करेंगे। वे सोचेंगे, “मैंने सोचा था कि मैंने परमेश्वर में अपने विश्वास में बदलाव हासिल कर लिया है, मगर मैंने इन शब्दों का इस्तेमाल अपनी योग्यता दिखाने और परमेश्वर में विश्वास रखने से पहले के अपने शानदार अतीत पर इतराने के लिए किया। मुझे उम्मीद नहीं थी कि कोई समझदार व्यक्ति इस मामले के पीछे के शर्मनाक रहस्य को उजागर करके यह बता देगा कि मेरा स्वभाव खराब है।” खराब स्वभाव का क्या मतलब है? भले शब्दों में कहें तो इसका मतलब है कि उनकी मानवता अच्छी नहीं है; इसे और रुखाई से कहें तो इसका मतलब है कि वे अच्छे लोग नहीं हैं। समाज में कौन-से लोग अच्छे नहीं हैं? (गुंडे, ठग, अत्याचारी और बदमाश लोग।) सही कहा, ये ऐसे लोग हैं। जैसे ही तुम उन्हें यह कहोगे कि वे अच्छे नहीं हैं और उनका स्वभाव खराब है तो वे समझ जाएँगे। वे समझ जाएँगे कि तुम गुंडे, बदमाश, अत्याचारी और बुरे लोगों की बात कर रहे हो—ये इस प्रकार के लोग हैं। क्या उन्हें यह सुनकर अच्छा लगेगा कि वे इस श्रेणी में आते हैं? (नहीं।) उन्हें बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगेगा। और क्या तुम्हें कुछ और कहने की जरूरत पड़ेगी? (नहीं।) उस एक वाक्य से उनके शर्मनाक रहस्य से परदा उठ जाएगा। “तो तुम उस किस्म के व्यक्ति हो। तुम अभी भी यहाँ खुद पर इतरा रहे हो, नकारात्मक चीजों के बारे में शेखी बघार रहे हो जैसे कि वे सकारात्मक चीजें हों। तुम क्या करने की कोशिश कर रहे हो? यह परमेश्वर का घर है, यहाँ दिखावा मत करो। यह तुम्हारे लिए दिखावा करने की जगह नहीं है। अगर तुम्हें दिखावा करना ही है तो यहाँ से चले जाओ। परमेश्वर का घर एक ऐसी जगह है जहाँ सत्य का शासन चलता है, यह कोई ऐसी जगह नहीं है जहाँ तुम अपने बुरे कर्मों का बखान करो। परमेश्वर के घर में दुष्ट और नकारात्मक चीजों पर इतराने से तुम्हारा क्या मतलब है? तुम्हारा मतलब है कि परमेश्वर का कार्य तुममें परिणाम हासिल कर चुका है। क्या परमेश्वर ने ऐसा कहा? तुम परमेश्वर का धन्यवाद नहीं कर रहे हो; तुम अपने बुरे कर्मों पर घमंड कर रहे हो। तुम इन शब्दों से किसे धोखा देने की कोशिश कर रहे हो? तुम तीन साल के बच्चे को बेवकूफ बना सकते हो, मगर भाई-बहनों को बेवकूफ नहीं बना सकते। तुम ऐसा करके बच नहीं सकते!” इस तरह से उनकी पोल खुल जाती है। जैसे ही मसीह-विरोधी यह सुनेंगे, सबसे पहले उन्हें लगेगा कि तुम्हारे मन में उनके प्रति कोई दुर्भावना नहीं है; दूसरा, तुम्हारे शब्द निशाने पर लगेंगे; तीसरा, तुमने उन्हें निशाना नहीं बनाया होगा; और चौथा, ये शब्द तथ्य हैं, और तुमने यह कहकर कोई अतिशयोक्ति नहीं की होगी। एक बार जब वे ये शब्द सुन लेंगे, तो वे तुरंत खुद को रोक लेंगे। वे खुद को क्यों रोकेंगे? तुम्हारे शब्द उन्हें शर्मिंदा करेंगे और उन्हें शर्मिंदगी महसूस कराएँगे। जब वे दोबारा तुम्हारे सामने होंगे तो उन्हें ऐसे शब्द दोहराने में शर्म आएगी। और अगर वे फिर से ऐसी बातें कहते भी हैं तो उन्हें सही अवसर ढूँढ़ना होगा और ध्यान देना होगा कि कौन सुन रहा है। चाहे जो भी हो, वे तुम्हारी मौजूदगी में दोबारा कभी उन शब्दों को नहीं दोहराएंगे? क्या इसने उन्हें नियंत्रित नहीं कर दिया है? अगर इस तरह के व्यक्ति से तुम लोगों का सामना होता है तो क्या तुम उनसे इस तरह बात करने की हिम्मत करोगे? (हाँ।) इस तरह के व्यक्ति से निपटने का एक तरीका है। तुम्हें गुस्सैल या असभ्य होने की जरूरत नहीं है, बस मुस्कुराकर उन्हें काबू में करो। इसे शैतान को उजागर और शर्मिंदा करना कहते हैं। इसे अपनी गवाही में दृढ़ रहना कहते हैं। उन्हें उजागर करने की तुम्हारी क्षमता यह साबित करती है कि तुम उनकी असलियत देख चुके हो, तुम उन जैसे लोगों को नापसंद करते हो, तुम उन जैसे लोगों से नफरत करते हो और उन्हें हेय दृष्टि से देखते हो। ये लोग नकारात्मक चरित्र वालों की श्रेणी में आते हैं और तुम उनके बिल्कुल विपरीत हो। तुम्हारे सामने वे खुद को कमतर समझते हैं; तुम उनसे कहीं ज्यादा मजबूत और सच्चे हो।

जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है, जब कभी-कभी भाई-बहन उन्हें उजागर करते हैं तो वे कौन-से दो बेशर्म वाक्य बोलते हैं? (“तुम मेरी काट-छाँट करने के लिए बहुत कच्चे हो!” “अगर मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं रखता, तो मुझे किसी की परवाह नहीं होती!”) ज्यादातर लोग ये दो वाक्य नहीं बोल सकते हैं, है न? इन शब्दों की क्या विशेषताएँ हैं? वे ठगने वाले और घिनौने शब्द हैं, शैतान के अहंकार और शैतान के दुष्ट स्वभाव के तरीके दिखाने वाले शब्द हैं। जाहिर है कि ये शब्द किसी सामान्य व्यक्ति के मुँह से नहीं निकलेंगे, खासकर किसी ऐसे व्यक्ति के मुँह से नहीं निकलेंगे जो सत्य का अनुसरण करता हो। यह कहने की जरूरत नहीं है कि जो लोग ये शब्द बोलते हैं उनमें शैतान का क्रूर स्वभाव होता है। वे बुरे लोग हैं और वे मसीह-विरोधी हैं। वे सत्य से प्रेम नहीं करते और वे बुरी ताकतों, हिंसा और शैतान की शातिर शक्तियों और स्वभाव का आदर करते हैं। उनके कहे इन दो वाक्यों से ही उनका सार पहचाना जा सकता है। जब वे ये शब्द बोलते हैं तो उनके स्वभाव और सार प्रकट हो जाते हैं। साधारण, सामान्य, भ्रष्ट मानवजाति के बीच जो कोई भी अक्सर ये शब्द बोलता है, वह अच्छा नहीं है, और जो इन शब्दों को सुनने के बाद भी इन्हें नहीं बोलते, जो सोचते हैं कि ऐसे शब्द बोलने वाले लोग शर्मनाक और शातिर हैं, जो खुद इस तरह से नहीं बोल सकते, जो चाहे किसी से कितनी भी नफरत करें, कितनी भी नाराजगी रखें और उसे कितनी भी हेय दृष्टि से देखें, इन शब्दों को शायद नहीं बोल सकते, और जो ये शब्दों कहने वाले लोगों से घृणा करते हैं—ऐसे लोगों में अभी भी शर्म-हया बची है और उनकी मानवता का एक सच्चा पक्ष है। मगर जो लोग अक्सर ये शब्द बोलते हैं, जो अक्सर अपने मामलों को संभालने और अपने आचरण के लिए इन शब्दों को सर्वोच्च सिद्धांत मानते हैं, वे निस्संदेह ऐसे मसीह-विरोधी हैं जो शैतान के गिरोह का हिस्सा हैं। कुछ लोग कहते हैं : “परमेश्वर में विश्वास रखने से पहले मुझे नहीं पता था कि ये शब्द अच्छे हैं या बुरे। जब मैं छोटा था, तब मैंने इनका इस्तेमाल किया था, मगर बाद में जब मैं थोड़ा बड़ा और थोड़ा परिपक्व हुआ तो मैंने इन्हें बोलना बंद कर दिया।” क्या ये मसीह-विरोधी हैं? वे मसीह-विरोधी नहीं हैं। जब लोग छोटे और नासमझ होते हैं, जब वे पहली बार समाज और आम जनता का सामना करते हैं, तो वे इन शब्दों को अच्छे शब्द, चरित्रवान शब्द मानते हैं। वे बहुत ही छोटे और अपरिपक्व होते हैं। जब वे थोड़े बड़े होते हैं और अच्छे-बुरे में भेद करने में सक्षम हो जाते हैं, अच्छे और बुरे लोगों में फर्क कर पाते हैं, तब वे ये शब्द नहीं बोलते। ऐसे लोगों में अभी भी थोड़ी अंतरात्मा और तार्किकता होती है। यह थोड़ी-सी अंतरात्मा और तार्किकता कहाँ से आती है? यह उनके अच्छे और बुरे में फर्क करने की क्षमता से आती है, यह जानने से आती है कि क्या सच है और क्या झूठ, क्या सही है और क्या गलत, यह उनके अपने काम करने, बोलने, मामलों को संभालने और आचरण करने के तरीकों में विकल्प और सीमाएँ होने से आती है। यह उनके शैतान न होने, बुरे लोग न होने, जानवर न होने, मानकों और सिद्धांतों के अनुसार आचरण करने और ईमानदार होने से आती है।

मसीह-विरोधियों को उजागर करने से, उनके “बुद्धिमान शब्द,” उनके जीवन के आदर्श वाक्य और उनकी अक्सर कही जाने वाली बातें, सभी प्रकट हो जाती हैं। जैसे-जैसे ये प्रकट होती हैं, उनका प्रकृति सार भी सामने आता है, जिससे दूसरे लोग इसे और अधिक स्पष्टता से देख पाते हैं। अगर ये चीजें उजागर नहीं होतीं, और लोग कभी-कभार या अक्सर सुनी जाने वाली इन बातों को सामान्य शब्द मान लेते हैं, और उनके बारे में कोई समझ नहीं रखते, तो वे उन्हें पहचान नहीं पाएँगे। अगर तुम उन्हें पहचान नहीं सकते, तो सत्य के बारे में तुम्हारी समझ या सही-गलत के बारे में तुम्हारे ज्ञान का क्या फायदा? क्या ये तुम्हारे रुख को प्रभावित कर सकते हैं? क्या ये तुम्हारे दृष्टिकोण को प्रभावित कर सकते हैं? (नहीं, वे नहीं कर सकते।) तब तुम यह पहचानने में असमर्थ हो जाते हो कि भ्रष्टता का सामान्य प्रकाशन क्या है और मसीह-विरोधी के सार की अभिव्यक्ति क्या है। जब तुम इन सभी सारों को स्पष्ट रूप से पहचान सकोगे, उन्हें सटीक रूप से वर्गीकृत और चित्रित कर सकोगे, और सकारात्मक और नकारात्मक, सामान्य और असामान्य की विभिन्न अभिव्यक्तियों, प्रकाशनों, स्वभावों और सार को स्पष्ट रूप से पहचान सकोगे, तभी तुम लोगों और चीजों को अधिक सटीक रूप से पहचान पाओगे। वरना तुम एक मसीह-विरोधी की अभिव्यक्ति को गलती से साधारण भ्रष्टता या सामान्य प्रकाशन समझ लोगे और कभी-कभी भ्रष्टता के कुछ साधारण प्रकाशनों को गलती से मसीह-विरोधी के सार की अभिव्यक्तियाँ समझ लोगे। क्या यह भ्रमित करने वाली बात नहीं है? मान लो कि तुम एक अगुआ हो और तुम्हारी जिम्मेदारी के दायरे में मसीह-विरोधी आते हैं। अगर तुम उन्हें रहने देते हो और उन साधारण भाई-बहनों को निकाल देते हो जिन्होंने भ्रष्टता प्रकट की है तो क्या यह गलती नहीं है? (बिल्कुल है।) इसीलिए इन विस्तृत और विशिष्ट अंतरों को समझना बहुत महत्वपूर्ण है।

जब मसीह-विरोधी अपनी काट-छाँट का सामना करते हैं तो उनकी अभिव्यक्तियाँ उससे कहीं ज्यादा आगे तक जाती हैं जिनके बारे में हमने अभी चर्चा की। वे बस कुछ अप्रिय बातें नहीं बोलेंगे या थोड़े नाराज ही नहीं होंगे। वे और भी चीजें करेंगे और उससे भी ज्यादा अप्रिय शब्द कहेंगे। इसके अलावा, वे कुछ और भी बुरी चीजें करेंगे, ऐसी चीजें जो परमेश्वर के घर के कार्य को गंभीर रूप से बाधित करती हैं और सामान्य कलीसियाई जीवन को अस्त-व्यस्त करती हैं। अब इस बात पर संगति करने की कोशिश करो कि मसीह-विरोधी उन कुछ वाक्यों को बोलने के अलावा और क्या कर सकते हैं, जिससे लोगों को स्पष्ट रूप से यह देखने और पहचानने में मदद मिले कि वे मसीह-विरोधी हैं, उनके कर्म और आचरण मसीह-विरोधी वाले हैं और उनका स्वभाव मसीह-विरोधी जैसा है। इस तरह, इससे पहले कि वे और बड़ी बाधा डालें, इन मसीह-विरोधियों को भाई-बहन मसीह-विरोधी के रूप में परख और पहचान सकते हैं। इस तरह, एक ओर भाई-बहन अपने जीवन प्रवेश को और ज्यादा नुकसान पहुँचाने से बच सकते हैं, तो दूसरी ओर ये मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर के कार्य में जो बाधाएँ डालते हैं और गड़बड़ी पैदा करते हैं उसे रोका जा सकता है। क्या इस समस्या को बाद में पता लगाने, हल करने, रोकने और सुधारने के बजाय पहले ही यह सब कर लेना बेहतर नहीं है? (हाँ, यह बेहतर है।) तो फिर आगे बढ़ो और संगति करो। (जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है तो वे सत्य नहीं स्वीकारते और लोगों की कटु आलोचना करने के लिए कुछ शब्द कहते हैं। उन्हें चाहे कोई भी सलाह दे, अगर यह उनके रुतबे या गौरव को प्रभावित करती है तो मसीह-विरोधी कलीसिया में उस व्यक्ति की आलोचना करेंगे और अपने रुतबे और गौरव की रक्षा करने के लिए सत्य को तोड़-मरोड़ भी देंगे।) क्या कोई और कुछ कहना चाहेगा? (मैं एक बार एक बुरे व्यक्ति से मिला था जिसने यह धमकी दी कि जो भी उसे नुकसान पहुँचाएगा, वह उसे जान से मार देगा। उस समय हम सत्य को नहीं समझते थे और हममें विवेक की कमी थी। हम उससे डरते थे। वह अपना कर्तव्य निभाते समय मनमाने ढंग से और लापरवाही से काम करता था, और जब हमने उसके काम में कुछ समस्याएँ देखीं और उसकी रिपोर्ट करनी चाही तो उसने रोड़े अटकाकर हमें उसकी रिपोर्ट नहीं करने दी। हमारे पास सत्य नहीं था, इसलिए उस समय हमने बहस करने की हिम्मत नहीं की, न ही हमने तुरंत उसकी रिपोर्ट की, जिससे आखिरकार कलीसिया के कार्य को बहुत नुकसान हुआ। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हममें मसीह-विरोधियों का भेद पहचानने की क्षमता नहीं थी। जब उसने बाद में कई और कुकर्म किए तो उसे निष्कासित कर दिया गया।) इस मामले में तुम लोग अपनी गवाही में दृढ़ रहने या परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने में असफल रहे, और तुमने परमेश्वर के घर के कार्य का नुकसान होने दिया। इसके लिए तुम लोग ही जिम्मेदार हो। अब ऐसा लगता है कि इस व्यक्ति को निष्कासित किया जाना सही था और उसके साथ कोई अन्याय नहीं हुआ था। अगर भविष्य में इस तरह के व्यक्ति से तुम्हारा दोबारा सामना हो, तो क्या तुम लोग उसका भेद पहचान पाओगे? (परमेश्वर की संगति से मैं मसीह-विरोधियों का भेद पहचानने के बारे में सत्य के इस पहलू को लेकर थोड़ा स्पष्ट महसूस करता हूँ।)

परमेश्वर का घर मसीह-विरोधियों को निष्कासित क्यों करना चाहता है? क्या उन्हें यहीं रहने देने और सेवा करने की अनुमति देना सही होगा? क्या उन्हें पश्चात्ताप का मौका देना सही होगा? (नहीं, यह सही नहीं होगा।) क्या उनके सत्य का अनुसरण करने की कोई संभावना है? (मसीह-विरोधी सत्य का अनुसरण नहीं कर सकते।) अब तुम्हें पता चल गया है कि मसीह-विरोधी बुरे लोग हैं, जो शैतान के हैं और पश्चात्ताप नहीं कर सकते, इसीलिए उन्हें निष्कासित किया जाता है। किसी को भी गंभीर वजह के बिना निष्कासित नहीं किया जाता। परमेश्वर का घर बार-बार धैर्य से काम लेता है, बार-बार उन्हें पश्चात्ताप करने के मौके देता है और उन्हें थोड़ी छूट भी देता है, ताकि अच्छे लोगों पर गलत इल्जाम न लगे और किसी को भी बिना गंभीर वजह से निष्कासित या तबाह न किया जाए। परमेश्वर में इतने सालों से विश्वास करना उनके लिए कोई आसान बात नहीं है; परमेश्वर का घर सभी के प्रति तब तक सहनशीलता दिखता है जब तक उनकी असलियत पूरी तरह से सामने नहीं आती, जब तक वे पूरी तरह से बेनकाब नहीं हो जाते। मगर क्या मसीह-विरोधी पश्चात्ताप कर सकते हैं? वे पश्चात्ताप नहीं कर सकते। परमेश्वर के घर में वे शैतान के चाकरों की भूमिका निभाते हैं, जो परमेश्वर के घर के काम को नष्ट, बाधित और अस्त-व्यस्त करते हैं। भले ही उनके पास कुछ गुण और प्रतिभा हों, मगर वे अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाने के लिए कड़ी मेहनत नहीं कर सकते या सही मार्ग पर नहीं चल सकते। भले ही मसीह-विरोधियों के पास कुछ उपयोगी पहलू हों, मगर वे परमेश्वर के घर में परमेश्वर के कार्य में बिल्कुल भी सकारात्मक योगदान नहीं देंगे। वे परमेश्वर के कार्य को बाधित, अस्त-व्यस्त और कमजोर करने के अलावा कुछ नहीं करते, और वे अच्छे काम नहीं करते। तुमने उन्हें परखने के लिए रुके रहने दिया और पश्चात्ताप करने का मौका दिया, मगर वे पश्चात्ताप करने में असमर्थ रहे। अंत में जो समाधान अपनाया गया वह उन्हें निष्कासित करने का ही था। उन्हें निष्कासित करने से पहले ही तुम यह असलियत जान चुके थे कि इस तरह का व्यक्ति मसीह-विरोधी है जो पश्चात्ताप करने के बजाय मरना पसंद करेगा, और वह परमेश्वर और सत्य का विरोधी है। नतीजतन, उसे निष्कासित कर दिया गया। अगर वह अच्छा व्यक्ति होता तो क्या उसे निष्कासित किया जाता? अगर वह सत्य स्वीकार कर पश्चात्ताप कर पाता तो क्या उसे निष्कासित किया जाता? ज्यादा से ज्यादा उसे उसके कर्तव्य से बर्खास्त कर आध्यात्मिक भक्ति और चिंतन में लगने के लिए भेज दिया जाता, मगर उसे निष्कासित नहीं किया जाता। एक बार जब परमेश्वर का घर किसी को निष्कासित करने का फैसला कर लेता है तो इसका मतलब है कि अगर उसे परमेश्वर के घर में रहने दिया जाए तो वह एक अभिशाप बन जाएगा। ऐसे लोग अच्छे काम नहीं करेंगे, वे सिर्फ विघ्न और गड़बड़ी पैदा करेंगे और तमाम तरह की बुरी चीजें करेंगे। वे जिस भी कलीसिया में होंगे उसमें इतनी बाधाएँ आएँगी कि वह रेत की तरह बिखर जाएगी, उसका काम रुक जाएगा, ज्यादातर लोग बहुत निराश महसूस करेंगे और परमेश्वर में अपनी आस्था खो देंगे और कुछ लोग तो अपनी आस्था छोड़ना भी चाहेंगे और अपने कर्तव्य निभाना जारी नहीं रख पाएँगे। इसका क्या कारण है? यह मसीह-विरोधी की विघ्न-बाधाओं के कारण होता है। मसीह-विरोधी से निपटा जाना चाहिए, उसे हटाया जाना चाहिए और निष्कासित किया जाना चाहिए ताकि इस कलीसिया के लिए कोई उम्मीद बाकी रहे, कलीसिया का जीवन सामान्य हो सके और परमेश्वर के चुने हुए लोग परमेश्वर में विश्वास रखने के सही मार्ग पर प्रवेश कर सकें। कुछ लोग कहते हैं : “परमेश्वर प्रेम है, इसलिए हमें मसीह-विरोधी को भी पश्चात्ताप करने का मौका देना चाहिए।” ये शब्द सुनने में बड़े अच्छे लगते हैं, मगर क्या सच में चीजें ऐसी ही हैं? ध्यान से देखो : जिन मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों को निष्कासित किया गया था, उनमें से कौन बाद में खुद को जान पाया और सत्य का अनुसरण कर उससे प्रेम कर पाया? किन लोगों ने पश्चात्ताप किया? उनमें से किसी ने भी पश्चात्ताप नहीं किया और उन सबने अड़ियल बनकर अपने पाप कबूलने से इनकार कर दिया, और तुम चाहे उन्हें कितने भी साल बाद फिर से देखो, वे अभी भी ऐसे ही होंगे, अभी भी उन चीजों से चिपके होंगे जो पहले हुई थीं और उन्हें नहीं भूल पाएँगे, वे बस खुद को सही ठहराने और अपनी बात समझाने की कोशिश में लगे रहेंगे। उनका स्वभाव बिल्कुल नहीं बदला है। अगर तुम उन्हें वापस अपनाकर फिर से कलीसियाई जीवन शुरू करने देते हो और कोई कर्तव्य निभाने देते हो तो वे अभी भी कलीसिया के काम में विघ्न-बाधा और गड़बड़ी पैदा करेंगे। ठीक पौलुस की तरह, वे अपनी बड़ाई करते और खुद की गवाही देते हुए वही पुरानी गलतियाँ दोहराएँगे। वे सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर बिल्कुल भी नहीं चल सकते और वे अपने पुराने मार्ग, मसीह-विरोधी के मार्ग और पौलुस के मार्ग पर चलेंगे। मसीह-विरोधियों को निष्कासित करने का यही आधार है।

अपनी दुर्भावनापूर्ण प्रकृति के कारण मसीह-विरोधी सत्य का अनुसरण करने वाले किसी भी व्यक्ति के आगे झुकते नहीं हैं। वे हर ऐसे अगुआ और कर्मी को नीची नजरों से देखते हैं जो कुछ वास्तविक कार्य कर सकता है, और यहाँ तक कि सभी अगुआओं और कर्मियों को झूठा करार देते हैं, मानो केवल वे खुद सही हैं और बाकी सब गलत हैं। उनके साथ सत्य के बारे में चाहे किसी भी तरह से संगति की जाए, वे अपनी काट-छाँट को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करेंगे और अपने दृष्टिकोण पर कायम रहेंगे। अगर कोई उनकी काट-छाँट करते समय उन्हें पूरी तरह से आश्वस्त करने में विफल रहता है तो वे इसे स्वीकार नहीं करेंगे। उन्हें लगता है कि काट-छाँट करना बेकार है और इसका सत्य से कोई लेना-देना नहीं है। यह उनका दृष्टिकोण है। वे हमेशा अपने दृष्टिकोण पर कायम रहते हैं, इसलिए उनके लिए सत्य स्वीकारना बहुत मुश्किल होता है, और साथ ही वे अपनी काट-छाँट करने वालों की आलोचना और निंदा भी करते हैं। मसीह-विरोधी अपनी काट-छाँट को कैसे लेते हैं, इसके संदर्भ में वे क्या स्वभाव प्रकट करते हैं? क्या तुम मसीह-विरोधी का प्रकृति सार देख सकते हो? मसीह-विरोधियों की प्रकृति की मुख्य विकृतियों में से एक है शातिरपन। “शातिरपन” का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि सत्य के बारे में उनका एक विशेष रूप से नीच रवैया होता है—न केवल उसके प्रति समर्पण करने में विफल होना, और न केवल उसे स्वीकार करने से मना करना, बल्कि उन लोगों की निंदा तक करना, जो उनकी काट-छाँट करते हैं। यह मसीह-विरोधियों का शातिर स्वभाव है। मसीह-विरोधियों को लगता है कि जो भी व्यक्ति अपनी काट-छाँट स्वीकार करता है, वह इतना असुरक्षित होता है कि उसके साथ दबंगई हो सकती है और हमेशा दूसरों की काट-छाँट करने वाले लोग हमेशा लोगों को तंग करना और धौंस देना चाहते हैं। इसलिए मसीह-विरोधी हर उस व्यक्ति का विरोध करते हैं और उसके लिए समस्या खड़ी करते हैं जो उनकी काट-छाँट करता है। और जो कोई मसीह-विरोधी की कमियाँ या भ्रष्टता सामने लाता है, या सत्य और परमेश्वर के इरादों के बारे में उनके साथ सहभागिता करता है, या उन्हें स्वयं को जानने के लिए बाध्य करता है, वे सोचते हैं कि वह व्यक्ति उनके लिए समस्या खड़ी कर रहा है और उन्हें अप्रिय लगता है। वे उस व्यक्ति से अपने दिल की गहराई से नफरत करते हैं, उससे बदला लेते हैं और उसके लिए मुश्किलें खड़ी करते हैं। मसीह-विरोधी अपनी काट-छाँट को कैसे लेते हैं, इसकी एक और अभिव्यक्ति है जिसके बारे में हम संगति करेंगे। जो कोई भी उनकी काट-छाँट करता है और उन्हें उजागर करता है वे उससे नफरत करते हैं। यह मसीह-विरोधियों की बहुत स्पष्ट अभिव्यक्ति है। किस तरह के लोग ऐसे शातिर स्वभाव के होते हैं? बुरे लोग। सच तो यह है कि मसीह-विरोधी बुरे लोग होते हैं। इसलिए, केवल बुरे लोग और मसीह-विरोधी ही ऐसे शातिर स्वभाव के होते हैं। जब एक शातिर व्यक्ति को किसी भी प्रकार के सुविचारित उपदेश, आरोप, सीख या सहायता का सामना करना पड़ता है, तो उसका रवैया आभार जताने या विनम्रतापूर्वक इसे स्वीकारने का नहीं होता है, बल्कि वह शर्म से लाल हो जाता है, और अत्यंत शत्रुता, नफरत, और यहाँ तक कि प्रतिशोध का भाव महसूस करता है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो यह कहते हुए मसीह-विरोधी की काट-छाँट और उसे उजागर करते हैं, “तुम लोग इन दिनों बेलगाम हो गए हो, तुमने सिद्धांत के अनुसार काम नहीं किया है और तुम अपने कर्तव्य निभाते हुए लगातार खुद पर इतराते रहे हो। तुमने रुतबे की खातिर काम करते हुए अपने कर्तव्य को पूरी तरह से अस्त-व्यस्त कर दिया है। क्या तुमने परमेश्वर के अनुसार सही किया है? तुमने अपना कर्तव्य निभाते हुए सत्य क्यों नहीं खोजा? तुम सिद्धांत के अनुसार कार्य क्यों नहीं कर रहे हो? जब भाई-बहनों ने तुम्हारे साथ सत्य के बारे में संगति की तो तुमने इसे स्वीकार क्यों नहीं किया? तुमने उन्हें अनदेखा क्यों किया? तुम अपनी मर्जी से काम क्यों कर रहे हो?” ये कई सवाल, ये शब्द जो उनकी भ्रष्टता के प्रकाशन को उजागर करते हैं—उन्हें अंदर तक झकझोर देते हैं : “क्यों? ऐसा कोई ‘क्यों’ नहीं है—मैं जो चाहता हूँ वही करता हूँ! तुम्हें मेरी काट-छाँट करने का अधिकार किसने दिया? ऐसा करने वाले तुम होते कौन हो? मैं अपनी मनमानी करूँगा; तुम मेरा क्या बिगाड़ लोगे? अब जब मैं इस उम्र में पहुँच गया हूँ, तो कोई भी मुझसे इस तरह बात करने की हिम्मत नहीं करता। केवल मैं ही दूसरों से इस तरह बात कर सकता हूँ; कोई और मुझसे इस तरह बात नहीं कर सकता। मुझ पर भाषण झाड़ने की हिम्मत कौन कर सकता है? मुझे भाषण देने वाला व्यक्ति अभी तक पैदा ही नहीं हुआ! क्या तुम्हें वाकई लगता है कि तुम मुझे भाषण दे सकते हो?” उनके दिलों की गहराई में नफरत बढ़ती जाती है और वे बदला लेने का मौका तलाशते हैं। अपने मन में वे हिसाब लगा रहे होते हैं : “क्या मेरे साथ काट-छाँट करने वाले इस व्यक्ति के पास कलीसिया में शक्ति है? अगर मैं उसके खिलाफ जवाबी कार्रवाई करता हूँ तो क्या कोई उसके लिए आवाज उठाएगा? अगर मैं उसे तकलीफ पहुँचाता हूँ तो क्या कलीसिया मुझसे निपटेगी? मेरे पास एक उपाय है। मैं उसके खिलाफ व्यक्तिगत रूप से जवाबी कार्रवाई नहीं करूँगा; मैं एकदम गुप्त रूप से कुछ करूँगा। मैं उसके परिवार के साथ कुछ ऐसा करूँगा जिससे उसे तकलीफ और शर्मिंदगी हो, इस तरह मैं इस नाराजगी से बच जाऊँगा। मुझे बदला लेना ही होगा। अब मैं इस मामले को छोड़ नहीं सकता। मैंने परमेश्वर में विश्वास रखना इसलिए शुरू नहीं किया कि मुझ पर धौंस जमाई जाए और मैं यहाँ इसलिए नहीं आया कि लोग मनमर्जी से मेरे साथ दादागीरी करें; मैं आशीष पाने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए आया हूँ! जैसे पेड़ को उसकी छाल की जरूरत है वैसे ही लोगों को आत्मसम्मान की जरूरत है। लोगों में अपनी गरिमा के लिए लड़ने की हिम्मत होनी चाहिए। मुझे उजागर करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई। यह तो सरासर धौंस जमाना है! चूँकि तुम मेरे साथ एक महत्वपूर्ण व्यक्ति की तरह पेश नहीं आते, तो मैं तुम्हारा जीना हराम कर दूँगा, और तुम नतीजे भुगतने के लिए मजबूर होगे। चलो लड़कर देखते हैं कि कौन ज्यादा भारी है!” उजागर करने के कुछ सरल शब्द ही मसीह-विरोधियों को भड़का देते हैं और उनमें इतनी ज्यादा घृणा पैदा करते हैं कि वे बदला लेने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। उनका शातिर स्वभाव पूरी तरह से उजागर हो जाता है। बेशक, जब वे घृणा के कारण किसी के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करते हैं, तो ऐसा इसलिए नहीं होता है कि उन्हें उस व्यक्ति से नफरत है या उसके खिलाफ कोई पुरानी दुश्मनी है, बल्कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उस व्यक्ति ने उनकी गलतियों को उजागर किया है। इससे पता चलता है कि किसी मसीह-विरोधी को उजागर करने का कार्य मात्र, चाहे यह कोई भी करे, और चाहे मसीह-विरोधी के साथ उसका संबंध जो भी हो, उसकी नफरत और बदले की आग को भड़का सकती है। चाहे वह कोई भी हो, चाहे वह सत्य को समझता हो या नहीं, चाहे वह अगुआ हो या कार्यकर्ता या परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से कोई मामूली व्यक्ति, अगर कोई मसीह-विरोधियों को उजागर कर उनकी काट-छाँट करता है तो वे उस व्यक्ति को अपना शत्रु मानेंगे। वे खुलेआम यह भी कहेंगे, “जो कोई भी मेरी काट-छाँट करेगा, मैं उसके साथ सख्ती से पेश आऊँगा। जो कोई भी मेरी काट-छाँट करेगा, मेरे रहस्य उजागर करेगा, मुझे परमेश्वर के घर से निष्कासित करवाएगा या मेरे हिस्से के आशीष मुझसे छीन लेगा, मैं उसे कभी नहीं छोड़ूँगा। लौकिक संसार में भी मैं ऐसा ही हूँ : कोई भी मुझे तकलीफ देने की हिमाकत नहीं करता। मुझे परेशान करने की हिम्मत करने वाला व्यक्ति अभी तक पैदा नहीं हुआ!” मसीह-विरोधी अपनी काट-छाँट का सामना करने पर ऐसे ही रूखे शब्द बोलते हैं। जब वे ये रूखे शब्द बोलते हैं तो इसका उद्देश्य दूसरों को डराना नहीं होता है, न ही वे खुद को बचाने के लिए ऐसा कहते हैं। वे वास्तव में बुरा करने में सक्षम हैं और वे अपने पास उपलब्ध किसी भी साधन का इस्तेमाल करने को तैयार हैं। यह मसीह-विरोधियों का शातिर स्वभाव है। जब कुछ अगुआ और कार्यकर्ता ऐसे मसीह-विरोधियों का सामना करते हैं, तो उनके पास उन्हें उजागर करने या उनके खिलाफ कार्रवाई करने का साहस नहीं होता है, और तब मसीह-विरोधी और भी बुरे हो जाते हैं। उनके कुकर्म और भी खुलकर सामने आ जाते हैं, वे लोगों को गुमराह और परेशान करने की कोशिश करते रहते हैं, और वे उनमें से ज्यादातर लोगों को गुमराह करने और काबू में करने में सक्षम होते हैं। यही तबाही का कारण बनता है। जब कुछ मसीह-विरोधियों को पता चलता है कि उनके बुरे कर्म उजागर हो गए हैं या भाई-बहनों ने उच्च अधिकारियों को इसकी रिपोर्ट कर दी है, तो वे उनसे बदला लेते हैं और उन्हें बड़े लाल अजगर को सौंप देते हैं—वे उन्हें शैतान की सत्ता के हवाले कर देते हैं। यह एक शातिर स्वभाव है, है न? और यह देखते हुए कि मसीह-विरोधी इतने शातिर होते हैं, क्या वे सचमुच परमेश्वर में विश्वास रखते हैं? बिल्कुल नहीं। वे शैतान के अनुचर हैं और वे कलीसिया में बाधा डालने आए हैं; वे राक्षस हैं जो परमेश्वर के घर में घुस आए हैं और वे परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी पैदा करने और उसे कमजोर करने के अलावा कुछ नहीं करते और वे परमेश्वर का विरोध करते हैं। इसलिए मसीह-विरोधी परमेश्वर और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के शत्रु होते हैं। मसीह-विरोधी राक्षसों के साथ भाई-बहनों की तरह पेश आना एक भयंकर गलती होगी; अगर तुम ऐसा करते हो तो तुम अंधे हो। अगर किसी मसीह-विरोधी का इस तरह से सिंचन, पोषण और समर्थन किया जाता है मानो वह कोई भाई या बहन हो या अगर उसे सत्य का अनुसरण करने वाला मानकर तरक्की और एक महत्वपूर्ण भूमिका दी जाती है तो अगुआ बहुत बड़ी बुराई कर रहा है। वह मसीह-विरोधी की बुराई में अपनी भूमिका निभा रहा है और उसे हटा दिया जाना चाहिए। ऐसे झूठे अगुआ मसीह-विरोधी के साथी हैं और यह कहना सही होगा कि वे खुद भी मसीह-विरोधी हैं, जिन्हें बहिष्कृत और निष्कासित कर दिया जाना चाहिए।

जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है, तो उनका रवैया स्वीकारने और आज्ञापालन करने का नहीं होता। बल्कि वे इसके प्रतिरोधी और इससे विमुख होते हैं, जिससे नफरत पैदा होती है। वे अपने दिल की गहराई से उन सबसे नफरत करते हैं जो उनकी काट-छाँट करते हैं, जो उनके रहस्यों को प्रकट करते हैं और उनकी वास्तविक परिस्थितियों को उजागर करते हैं। वे किस हद तक तुमसे नफरत करते हैं? वे नफरत से अपने दाँत पीसते हैं, चाहते हैं कि तुम उनकी नजरों से ओझल हो जाओ और ऐसा महसूस करते हैं कि तुम दोनों एक साथ नहीं रह सकते। अगर मसीह-विरोधी लोगों के साथ ऐसा करते हैं, तो क्या वे परमेश्वर के उन वचनों को स्वीकार सकते हैं जो उन्हें उजागर करते हैं और उनकी निंदा करते हैं? नहीं, वे ऐसा नहीं कर सकते। जो कोई भी उन्हें उजागर करता है, वे सिर्फ उन्हें उजागर करने और उनके अनुकूल नहीं होने के कारण उनसे नफरत करेंगे और प्रतिशोध लेंगे। वे चाहते हैं कि काश उस व्यक्ति को अपनी नजरों से दूर कर सकें जिसने उनकी काट-छाँट की। वे इस व्यक्ति को कुछ भी अच्छा करते हुए नहीं देख सकते। अगर यह व्यक्ति मर जाए या आपदा में फँस जाए तो वे खुश होंगे; अगर यह व्यक्ति जिंदा है और अभी भी परमेश्वर के घर में अपना कर्तव्य निभा रहा है और सब कुछ सामान्य रूप से चलता रहता है तो उनके दिलों में पीड़ा, बेचैनी और झुँझलाहट होती है। जब उनके पास किसी व्यक्ति के विरुद्ध प्रतिशोध लेने का कोई रास्ता नहीं होता है तो वे मन-ही-मन उसे कोसते हैं या परमेश्वर से उस व्यक्ति को दंड और प्रतिफल देने और साथ ही अपनी शिकायतों का निवारण करने की प्रार्थना तक करते हैं। एक बार जब मसीह-विरोधियों में ऐसी नफरत पैदा हो जाती है तो वे कई तरह के क्रियाकलाप करने लगते हैं। इनमें प्रतिशोध लेना, शाप देना और बेशक कुछ अन्य क्रियाकलाप करना भी शामिल हैं, जैसे कि दूसरों को फँसाना, बदनाम करना और निंदा करना, जो नफरत से जन्म लेते हैं। अगर कोई उनकी काट-छाँट करता है तो वे उस व्यक्ति की पीठ पीछे उसे हानि पहुँचाएँगे। जब वह व्यक्ति कुछ सही कहेगा तो वे उसे गलत कहेंगे। वे उस व्यक्ति द्वारा की गई सभी सकारात्मक चीजों को बिगाड़ देंगे और उन्हें नकारात्मक बना देंगे, इन झूठों को फैलाएँगे और उनकी पीठ पीछे गड़बड़ी पैदा करेंगे। वे उन लोगों को भड़काकर अपनी ओर आकर्षित करते हैं जो अनजान हैं और चीजों की असलियत नहीं समझ सकते या इनका भेद नहीं पहचान सकते, ताकि ये लोग उनके पक्ष में शामिल होकर उनका समर्थन करें। जाहिर है कि उनकी काट-छाँट करने वाले व्यक्ति ने कुछ भी खराब नहीं किया है, फिर भी वे इस व्यक्ति पर कुछ गलत कामों का आरोप लगाना चाहते हैं, ताकि हर कोई गलती से यह मान ले कि वे इस तरह के काम करते हैं और फिर सभी को इस व्यक्ति को ठुकराने के लिए एक साथ आने को मजबूर कर दें। मसीह-विरोधी इस तरह से कलीसियाई जीवन में बाधा डालते हैं और लोगों के लिए उनके कर्तव्य निभाने में बाधक बनते हैं। उनका लक्ष्य क्या है? यह उनकी काट-छाँट करने वाले व्यक्ति के लिए चीजें मुश्किल बनाना और सभी को इस व्यक्ति को त्यागने के लिए मजबूर करना है। कुछ मसीह-विरोधी ऐसे भी हैं जो कहते हैं : “तुमने मेरी काट-छाँट कर मेरे लिए चीजें मुश्किल बनाई हैं, इसलिए मैं तुम्हें चैन से जीने नहीं दूँगा। मैं तुम्हें इसका स्वाद चखाऊँगा कि काट-छाँट किए जाने और त्यागे जाने का क्या मतलब होता है। तुम मेरे साथ जैसा सलूक करोगे, मैं भी तुम्हारे साथ वैसा ही करूँगा। अगर तुम मुझे चैन से जीने नहीं दोगे, तो यह मत सोचो कि तुम चैन से जी सकोगे!” जब मसीह-विरोधी बुरे काम करते हैं, तो कुछ अगुआ और कार्यकर्ता उन्हें बातचीत के लिए बुलाते हैं, उनसे कहते हैं कि उन्हें पश्चात्ताप करना चाहिए और वे उन्हें मदद और सहारा देने के लिए परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाते हैं। लेकिन न केवल वे इसे स्वीकार नहीं करते, बल्कि अफवाहें भी फैलाते हैं कि अगुआ कोई वास्तविक कार्य नहीं करता और समस्याएँ हल करने के लिए कभी भी परमेश्वर के वचन का उपयोग नहीं करता। वास्तव में, अगुआ ने ऐसा काम किया है, मगर वे तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं और उनकी मदद करने वाले व्यक्ति को बदनाम करते हैं। क्या यह शातिरपन नहीं है? ये बुरे लोग और मसीह-विरोधी जानबूझकर यह दावा करते हैं कि सकारात्मक चीजें नकारात्मक हैं, और यह कि उनके गलत काम, गलतियाँ, दुष्ट कर्म और दुर्भावनापूर्ण कृत्य ऐसी सकारात्मक चीजें हैं जो सत्य के अनुरूप हैं। अपने कर्तव्य निभाते समय वे चाहे कितनी भी बड़ी गलती कर दें, कलीसिया के कार्य को चाहे जितना भी नुकसान पहुँचाएँ, वे इसे स्वीकार नहीं करते या इसे बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लेते हैं। जब वे इसके बारे में बात करते हैं, तो वे इसे कम करके दिखाते हैं और लीपा-पोती कर देते हैं। इस मामले के कारण जो व्यक्ति उनकी काट-छाँट करता है वह उनकी नजरों में पापी बनकर आलोचना का निशाना बन जाता है। क्या यह सच को झूठ कहना नहीं है? जब अगुआ या कार्यकर्ता मसीह-विरोधियों की काट-छाँट करते हैं तो उनमें से कुछ यह कहते हुए उन पर झूठे आरोप भी लगाते हैं : “हम भाई-बहन जो भी गलतियाँ करते हैं, वे सभी अज्ञानता के कारण और अगुआओं और कार्यकर्ताओं के अच्छे काम न कर पाने के कारण होती हैं। अगर अगुआ और कार्यकर्ता अपना काम करना जानें, हमें तुरंत चीजें याद दिलाते रहें, और चीजों का प्रबंध अच्छी तरह से करें, तो क्या परमेश्वर के घर को होने वाले नुकसान कम नहीं होंगे? इसलिए हम चाहे कोई भी गलती करें, अगुआ और कार्यकर्ता ही पूरी तरह से दोषी हैं और उन्हें सबसे बड़ी जिम्मेदारी लेनी चाहिए।” क्या ये झूठे जवाबी दावे नहीं हैं? ये झूठे जवाबी दावे सच को झूठ कहना और एक प्रकार का प्रतिशोध हैं।

मसीह-विरोधियों का स्वभाव बहुत ही शातिर होता है। अगर तुम उनकी काट-छाँट करने या उन्हें उजागर करने की कोशिश करोगे तो वे तुमसे नफरत करेंगे और जहरीले साँप की तरह तुम पर अपने दाँत गड़ा देंगे। तुम चाहे कितनी भी कोशिश करो, उन्हें बदल नहीं पाओगे या उनसे पीछा नहीं छुड़ा पाओगे। जब ऐसे मसीह-विरोधियों से तुम्हारा सामना होता है तो क्या तुम लोगों को डर लगता है? कुछ लोग डर जाते हैं और कहते हैं, “मुझमें उनकी काट-छाँट करने की हिम्मत नहीं है। वे जहरीले साँपों की तरह बहुत ही खौफनाक हैं और अगर वे अपनी कुंडली में मुझे लपेट लें तो मैं खत्म ही हो जाऊँगा।” ये किस तरह के लोग हैं? उनका आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है, वे किसी काम के नहीं हैं, वे मसीह के अच्छे सैनिक नहीं हैं और वे परमेश्वर की गवाही नहीं दे सकते। तो जब ऐसे मसीह-विरोधियों से तुम लोगों का सामना हो, तो तुम्हें क्या करना चाहिए? अगर वे तुम्हें धमकाते हैं या तुम्हारी जान लेने की कोशिश करते हैं तो क्या तुम्हें डर लगेगा? ऐसी परिस्थितियों में तुम्हें तुरंत अपने भाई-बहनों के साथ मिलकर खड़े होना चाहिए, उनकी छानबीन करनी चाहिए, सबूत इकट्ठा करके मसीह-विरोधी को तब तक उजागर करना चाहिए जब तक कि उसे कलीसिया से नहीं निकाल दिया जाता। यह समस्या को जड़ से हल करना है। जब तुम्हें किसी मसीह-विरोधी का पता चले और तुम स्पष्टता से पहचान लो कि उसमें एक बुरे व्यक्ति की विशेषताएं हैं और वह दूसरों को दंडित करने और उनके खिलाफ प्रतिशोध लेने में सक्षम है तो उससे निपटने के लिए उसके बुरे काम करने और सबूत जुटाने का इंतजार मत करो। यह तो निष्क्रिय होना है और इससे पहले ही कुछ न कुछ नुकसान हो चुका होगा। सबसे अच्छा तो यह है कि जब मसीह-विरोधी यह दिखा दें कि उनमें बुरे व्यक्ति की विशेषताएँ हैं और वे अपना धूर्त और दुर्भावनापूर्ण स्वभाव प्रकट कर दें और वे कुछ करने ही वाले हों तो उसी समय उनसे निपटकर उन्हें संबोधित, बहिष्कृत और निष्कासित कर लिया जाए। यह सबसे समझदारी भरा नजरिया है। कुछ लोग मसीह-विरोधियों के प्रतिशोध से डरकर उन्हें उजागर करने का साहस नहीं करते। क्या यह मूर्खता नहीं है? तुम परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने में असमर्थ हो, जो सहज रूप से दर्शाता है कि तुम परमेश्वर के प्रति निष्ठाहीन हो। तुम डरते हो कि मसीह-विरोधी तुमसे बदला लेने की शक्ति पा सकता है—समस्या क्या है? क्या यह हो सकता है कि तुम परमेश्वर की धार्मिकता पर भरोसा नहीं करते? क्या तुम नहीं जानते कि परमेश्वर के घर में सत्य राज करता है? अगर कोई मसीह-विरोधी तुममें भ्रष्टता की कुछ समस्याएँ पकड़ भी ले और उस पर हंगामा खड़ा कर दे, तो भी तुम्हें डरना नहीं चाहिए। परमेश्वर के घर में समस्याएँ सत्य सिद्धांतों के आधार पर हल की जाती हैं। अपराध करने का यह मतलब नहीं कि कोई व्यक्ति बुरा है। परमेश्वर का घर कभी किसी को भ्रष्टता के क्षणिक प्रकाशन या कभी-कभार होने वाले अपराध के कारण परेशान नहीं करता। परमेश्वर का घर उन मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों से निपटता है, जो लगातार गड़बड़ी पैदा करते और बुराई करते हैं, और जो चुटकी भर भी सत्य नहीं स्वीकारते। परमेश्वर का घर कभी किसी अच्छे व्यक्ति के साथ अन्याय नहीं करेगा। वह सबके साथ उचित व्यवहार करता है। अगर नकली अगुआ या मसीह-विरोधी किसी अच्छे व्यक्ति पर गलत आरोप लगा भी दें, तो भी परमेश्वर का घर उसे दोषमुक्त कर देगा। कलीसिया कभी ऐसे अच्छे व्यक्ति को नहीं निकालेगी या परेशान नहीं करेगी, जो मसीह-विरोधियों को उजागर कर सकता है और जिसमें न्याय की भावना है। लोगों को हमेशा यह डर रहता है कि मसीह-विरोधी किसी बात का फायदा उठाकर उनसे बदला ले लेंगे। लेकिन क्या तुम परमेश्वर को अपमानित करने और उसके द्वारा ठुकराए जाने से नहीं डरते? अगर तुम्हें डर है कि कोई मसीह-विरोधी तुम्हारे खिलाफ बदला लेने के मौके का फायदा उठा सकता है, तो उस मसीह-विरोधी के बुरे कर्मों के सबूत इकट्ठा करके उसकी रिपोर्ट करो और उसे उजागर करो? ऐसा करने से, तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों की स्वीकृति और समर्थन प्राप्त करोगे, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि परमेश्वर तुम्हारे अच्छे कर्मों और न्यायपूर्ण कार्यों को याद रखेगा। तो, क्यों न ऐसा करें? परमेश्वर के चुने हुए लोगों को हमेशा परमेश्वर के आदेश को ध्यान में रखना चाहिए। बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को स्वच्छ करना शैतान के खिलाफ युद्ध में सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई है। अगर यह लड़ाई जीत ली जाती है, तो यह एक विजेता की गवाही बन जाएगी। शैतानों और राक्षसों के खिलाफ लड़ाई एक अनुभवजन्य गवाही है जो परमेश्वर के चुने हुए लोगों के पास होनी चाहिए। यह एक सत्य वास्तविकता है जो विजेताओं के पास होनी चाहिए। परमेश्वर ने लोगों को बहुत सारा सत्य प्रदान किया है, इतने लंबे समय तक तुम्हारी अगुआई की है और तुम्हें इतना कुछ दिया है, ताकि तुम गवाही दे सको और कलीसिया के कार्य की रक्षा करो। ऐसा लगता है कि जब बुरे लोग और मसीह-विरोधी बुरे कर्म करते हैं और कलीसिया के कार्य में बाधा डालते हैं, तो तुम डरपोक बनकर पीछे हट जाते हो, हाथ खड़े कर भाग जाते हो—तुम किसी काम के नहीं हो। तुम शैतानों को नहीं हरा सकते, तुम गवाह नहीं बने हो और परमेश्वर तुमसे घृणा करता है। इस महत्वपूर्ण क्षण में तुम्हें मजबूती से खड़े होकर शैतानों के खिलाफ युद्ध छेड़ना चाहिए, मसीह-विरोधियों के बुरे कर्मों को उजागर करना चाहिए, उनकी निंदा कर उन्हें कोसना चाहिए, उन्हें छिपने की कोई जगह नहीं देनी चाहिए और उन्हें कलीसिया से निकाल बाहर करना चाहिए। केवल इसे ही शैतान पर विजय पाना और उनकी नियति को खत्म करना कहा जा सकता है। तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से एक हो, परमेश्वर के अनुयायी हो। तुम चुनौतियों से नहीं डर सकते; तुम्हें सत्य सिद्धांतों के अनुसार काम करना चाहिए। विजेता होने का यही अर्थ है। अगर तुम चुनौतियों से डरकर और बुरे लोगों या मसीह-विरोधियों के प्रतिशोध से डरकर उनसे समझौता कर लेते हो, तो तुम परमेश्वर के अनुयायी नहीं हो और तुम परमेश्वर के चुने हुए लोगों में से नहीं हो। तुम किसी काम के नहीं हो, तुम तो सेवाकर्मियों से भी कमतर हो। कुछ कायर लोग कह सकते हैं, “मसीह-विरोधी बहुत भयानक होते हैं; वे कुछ भी करने में सक्षम हैं। अगर वे मुझसे प्रतिशोध लेते हैं तो क्या होगा?” यह भ्रमित सोच है। अगर तुम मसीह-विरोधियों के प्रतिशोध से डरते हो, तो परमेश्वर में तुम्हारी आस्था कहाँ है? क्या परमेश्वर ने तुम्हारे जीवन के इतने वर्षों में तुम्हारी रक्षा नहीं की है? क्या मसीह-विरोधी भी परमेश्वर के हाथ में ही नहीं हैं? अगर परमेश्वर अनुमति न दे तो वे तुम्हारे साथ क्या कर लेंगे? इसके अलावा, चाहे मसीह-विरोधी कितने भी बुरे क्यों न हों, वे वास्तव में क्या करने में सक्षम हैं? क्या परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए एकजुट होकर उन्हें उजागर करना और उनसे निपटना बहुत आसान नहीं है? तो फिर मसीह-विरोधियों से डरना क्यों? ऐसे लोग किसी काम के नहीं हैं और परमेश्वर का अनुसरण करने के लायक नहीं हैं। अपने घर चले जाओ, बच्चे पालो और अपना जीवन जियो। कलीसिया के काम में बाधा डालने वाले और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को नुकसान पहुँचाने वाले मसीह-विरोधियों के सामने परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उनके बुरे कर्मों का जवाब कैसे देना चाहिए? परमेश्वर का अनुसरण करने वालों को अपनी गवाही में कैसे दृढ़ रहना चाहिए? उन्हें शैतान और मसीह-विरोधियों की ताकतों के खिलाफ कैसे लड़ना चाहिए? तुम परमेश्वर के प्रति समर्पण कर उसके प्रति निष्ठावान हो या फिर एक किनारे बैठकर परमेश्वर को धोखा दे रहे हो, यह पूरी तरह से तब प्रकट होगा जब मसीह-विरोधी परमेश्वर को परेशान करेंगे, बुराई करेंगे और उसका विरोध करेंगे। अगर तुम परमेश्वर के प्रति समर्पण करने वाले और निष्ठावान नहीं हो, तो तुम परमेश्वर को धोखा देने वाले व्यक्ति हो। कोई दूसरा विकल्प नहीं है। कुछ भ्रमित व्यक्ति और विवेकहीन लोग बीच का रास्ता अपनाते हैं और खड़े होकर तमाशा देखते हैं। परमेश्वर की नजरों में, इन लोगों में परमेश्वर के प्रति निष्ठा की कमी है और वे परमेश्वर को धोखा देते हैं। कुछ भ्रमित व्यक्ति अपनी कायरता के कारण मसीह-विरोधियों की सजा से डरते हैं और अपने दिलों में लगातार पूछते रहते हैं, “मैं क्या करूँगा?” तुम्हें यह सवाल नहीं पूछना चाहिए। तुम्हें क्या करना चाहिए? (अपने कर्तव्य अच्छे से निभाएँ, मसीह-विरोधियों के बुरे कर्मों को पूरी तरह से उजागर करें, अपने भाई-बहनों को चीजों में भेद करना सिखाएँ और मसीह-विरोधियों को नकार दें। हमें अपनी सुरक्षा के बारे में चिंता नहीं करनी चाहिए। हमारे लिए विचार करने वाली सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब बुरे लोग कलीसिया के कार्य में बाधा डालें तो हमें अपने कर्तव्य कैसे पूरे करने चाहिए।) अगर इसका असर तुम्हारे परिवार पर पड़ता हो, तो क्या? (हमें बिना किसी हिचकिचाहट के अपने कर्तव्य पूरे करने चाहिए। हमें अपने परिवार की सुरक्षा की चिंता के कारण अपने कर्तव्यों को त्यागना नहीं चाहिए या अपनी गवाही में दृढ़ रहने में विफल नहीं होना चाहिए।) सही कहा। सबसे पहले, तुम्हें अपनी गवाही में दृढ़ रहना चाहिए और मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों के खिलाफ अंत तक लड़ना चाहिए, ताकि उन्हें परमेश्वर के घर में पैर रखने की भी जगह न मिले। अगर वे श्रम करने के लिए तैयार हैं, तो उन्हें नियमों के अनुसार ऐसा करने दो और वे जो कर पाते हैं उन्हें वो करने दो। अगर वे श्रम करने के लिए तैयार नहीं हैं, तो सबको एकजुट होकर उन्हें बाहर निकालना चाहिए ताकि वे परमेश्वर के घर में कलीसिया के कार्य को गड़बड़, बाधित या बर्बाद न कर सकें। यह पहली चीज है जो तुम्हें करनी चाहिए और इस गवाही पर तुम्हें दृढ़ रहना चाहिए। इसके अलावा, तुम्हें यह समझना होगा कि तुम्हारा परिवार और तुम्हारा जीवन परमेश्वर के हाथ में है और शैतान जल्दबाजी में काम करने की हिम्मत नहीं करता। परमेश्वर ने कहा है : “परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए जमीन पर पानी की एक बूँद या रेत का एक कण छूना भी मुश्किल है; परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान धरती पर चींटियों का स्थान बदलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं है, परमेश्वर द्वारा सृजित मानव-जाति की तो बात ही छोड़ दो।” तुम इन वचनों पर किस हद तक विश्वास कर पाते हो? मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों के खिलाफ लड़ना तुम्हारी आस्था की सीमा को प्रकट करता है। अगर तुममें परमेश्वर के प्रति सच्चा विश्वास है, तो तुममें सच्ची आस्था है। अगर परमेश्वर में तुम्हारा केवल थोड़ा-सा विश्वास है और वह विश्वास अस्पष्ट और खोखला है तो तुममें सच्ची आस्था नहीं है। अगर तुम यह नहीं मानते कि परमेश्वर इन सभी चीजों पर संप्रभु हो सकता है और शैतान परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन है, और तुम अभी भी मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों से डरते हो, उन्हें कलीसिया में बुराई करते हुए, कलीसिया के काम को बाधित और बर्बाद करते हुए बर्दाश्त कर सकते हो और खुद को बचाने के लिए शैतान के साथ समझौता कर सकते हो या उससे दया की भीख माँग सकते हो, उसके खिलाफ खड़े होने और उससे लड़ने की हिम्मत नहीं कर सकते हो, और तुम भगोड़े, खुशामदी और तमाशबीन व्यक्ति बन गए हो, तो तुममें परमेश्वर में सच्चे विश्वास की कमी है। परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास बस एक प्रश्नचिह्न बनकर रह जाता है, जो तुम्हारे विश्वास को बहुत दयनीय बना देता है! जब तुम मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों को परमेश्वर के घर में बाधाएँ और गड़बड़ी पैदा करते हुए देखकर भी उदासीन बने रहते हो; जब तुम अपने जीवन, अपने परिवार और अपने सभी हितों की रक्षा करने के लिए परमेश्वर के घर और उसके चुने हुए लोगों के हितों से विश्वासघात करते हो, तो फिर तुम एक गद्दार, यहूदा बन जाते हो। यह साफ और स्पष्ट है। हम अक्सर मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों के बारे में संगति और उनका गहन-विश्लेषण करते हैं, इस बात पर चर्चा करते हैं कि उन्हें कैसे परखा और पहचाना जाए, यह सब सत्य के बारे में स्पष्ट रूप से संगति करने और लोगों को बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों के खिलाफ विवेकशील बनाने के उद्देश्य से किया जाता है, ताकि वे उन्हें उजागर कर सकें। इस तरह, परमेश्वर के चुने हुए लोग अब मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह या परेशान नहीं होंगे, और वे शैतान के प्रभाव और बंधन से मुक्त हो सकते हैं। हालाँकि, कुछ लोगों के दिलों में अभी भी सांसारिक आचरण के फलसफे मौजूद हैं। वे बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को पहचानने की कोशिश नहीं करते; बल्कि, वे खुशामदी लोगों की भूमिका निभाते हैं। वे मसीह-विरोधियों के खिलाफ नहीं लड़ते, उनके साथ स्पष्ट सीमाएँ तय नहीं करते, और अपने हितों की रक्षा करने के लिए एक कमजोर, बीच का रास्ता चुनते हैं। वे इन राक्षसों—इन बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों—को परमेश्वर के घर में बने रहने देते हैं, राक्षसों को पाल-पोसकर खतरे को न्योता देते हैं। वे इन राक्षसों को बेतहाशा कलीसिया का काम बिगाड़ने और भाई-बहनों को उनके कर्तव्य निभाने से बाधित करने देते हैं। ऐसे लोग क्या भूमिका निभाते हैं? वे मसीह-विरोधियों की ढाल और उनके साथी बन जाते हैं। भले ही तुम लोग मसीह-विरोधियों की तरह वे चीजें नहीं कर सकते या वही बुरे कर्म नहीं कर सकते, मगर तुम लोग उनके बुरे कर्मों में हिस्सेदार हो—और तुम्हारी निंदा की जाती है। तुम मसीह-विरोधियों को बर्दाश्त करते हो और उन्हें आश्रय देते हो, उनके खिलाफ बिना कोई कार्रवाई किए या कोई कदम उठाए उन्हें अपने आस-पास तबाही मचाने देते हो। क्या तुम लोग मसीह-विरोधियों के बुरे कर्मों में भागीदार नहीं हो? यही कारण है कि कुछ झूठे अगुआ और खुशामदी लोग मसीह-विरोधियों के साथी बन जाते हैं। जो कोई भी मसीह-विरोधियों को कलीसिया के काम में बाधा डालते हुए देखता है, मगर उन्हें उजागर नहीं करता या उनके साथ स्पष्ट सीमाएँ तय नहीं करता है, वह उनका अनुचर और साथी बन जाता है। उसमें परमेश्वर के प्रति समर्पण और निष्ठा की कमी होती है। परमेश्वर और शैतान के बीच लड़ाई के महत्वपूर्ण क्षणों में वह शैतान की तरफ खड़े होकर मसीह-विरोधियों की रक्षा करता है और परमेश्वर को धोखा देता है। ऐसे लोगों से परमेश्वर घृणा करता है।

जब मसीह-विरोधी काट-छाँट का सामना करते हैं, तो वे अक्सर बहुत प्रतिरोध दिखाते हैं, और फिर वे अपने बचाव में बहस करने की पूरी कोशिश करने लगते हैं, और लोगों को गुमराह करने के लिए कुतर्क और वाक्पटुता का उपयोग करते हैं। यह काफी आम है। मसीह-विरोधियों की सत्य को स्वीकारने से मना करने की अभिव्यक्ति सत्य से घृणा करने और उससे विमुख होने होने की उनकी शैतानी प्रकृति को पूरी तरह उजागर कर देती है। वे विशुद्ध रूप से शैतान की किस्म के होते हैं। मसीह-विरोधी चाहे कुछ भी करें, उनका स्वभाव और सार सामने आ जाता है। विशेष रूप से वे परमेश्वर के घर में जो कुछ भी करते हैं वह सत्य के खिलाफ जाता है, परमेश्वर द्वारा उसकी निंदा की जाती है, उसे परमेश्वर का प्रतिरोध करने वाला कुकर्म कहा जाता है, और उनके द्वारा की जाने वाली ये सभी चीजें इस बात की पूरी तरह से पुष्टि करती हैं कि मसीह-विरोधी शैतान और राक्षस हैं। इसलिए, जब काट-छाँट किए जाने को स्वीकारने की बात आती है, तो वे इसके लिए निश्चित रूप से खुश नहीं होते और निश्चित रूप से अनिच्छुक होते हैं, लेकिन प्रतिरोध और विरोध के अलावा, वे काट-छाँट किए जाने से नफरत भी करते हैं, वे उनसे भी नफरत करते हैं जो उनकी काट-छाँट करते हैं, और उनसे भी नफरत करते हैं जो उनके प्रकृति सार को और उनके कुकर्मों को उजागर करते हैं। मसीह-विरोधियों को लगता है कि जो कोई भी उन्हें उजागर करता है, वह उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है, इसलिए वे भी ऐसे किसी भी व्यक्ति से प्रतिस्पर्धा और लड़ाई करते हैं जो उन्हें उजागर करता है। अपनी इसी प्रकार की प्रकृति के कारण मसीह-विरोधी ऐसे किसी व्यक्ति के प्रति कभी दयालु नहीं होते जो उनकी काट-छाँट करता है, न ही वे ऐसा करने वाले किसी भी व्यक्ति को सहन या स्वीकार करते हैं, उसके प्रति कृतज्ञता या सराहना तो वे बिल्कुल भी अनुभव नहीं करते। इसके विपरीत, अगर कोई उनकी काट-छाँट करता है, और उन्हें अपनी गरिमा और इज्जत से हाथ धोने पर विवश कर देता है, तो वे उस व्यक्ति के प्रति अपने दिलों में घृणा पाल लेते हैं और उससे बदला लेने के मौके की ताक में रहते हैं। उन्हें दूसरों से कैसी नफरत होती है! वे ऐसा सोचते हैं और दूसरों के सामने खुलकर कहते हैं, “आज तुमने मेरी काट-छाँट की है, ठीक है, अब हमारा झगड़ा पत्थर की लकीर हो गया है। तुम अपने रास्ते जाओ, मैं अपने रास्ते जाता हूँ, लेकिन मैं कसम खाता हूँ कि तुमसे बदला लेकर रहूँगा! अगर तुम मेरे सामने अपनी गलती स्वीकार करो, मेरे सामने अपना सिर झुकाओ या घुटने टेको और मुझसे भीख माँगो तो मैं तुम्हें क्षमा कर दूँगा, वरना मैं इसे कभी नहीं भूलूँगा!” मसीह-विरोधी चाहे कुछ भी कहें या करें, वे किसी के हाथों अपनी दयालुतापूर्ण काट-छाँट को या किसी की ईमानदार मदद को कभी भी परमेश्वर के प्रेम और उद्धार के आगमन के रूप में नहीं देखते। इसके बजाय, वे इसे अपने अपमान के संकेत के रूप में और उस क्षण के रूप में देखते हैं जब वे सबसे अधिक शर्मिंदा हुए थे। यह दर्शाता है कि मसीह-विरोधी सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते, कि उनका स्वभाव सत्य से विमुख होने और नफरत करने वाला होता है। क्या तुम लोग कभी ऐसे किसी बुरे व्यक्ति या मसीह-विरोधी से मिले हो जिसने अपनी काट-छाँट किए जाने के कारण दूसरों से प्रतिशोध लिया हो? (हाँ।) उसने कैसे प्रतिशोध लिया? क्या उसका प्रतिशोध लेने का तरीका भयानक था? (हाँ, यह भयानक था। मैं एक बार एक मसीह-विरोधी से मिला जिसने कलीसिया में कुछ बुरे कर्म किए थे और फिर जब कलीसिया अगुआ ने उसके व्यवहार को उजागर किया तो उसने यह कहते हुए कलीसिया में अफवाहें फैलाना शुरू कर दिया कि कैसे यह अगुआ कोई वास्तविक कार्य नहीं करता और लोगों को अपने सामने लाने के लिए शब्द और धर्म-सिद्धांत बोलता है। बाद में जब हम इस मसीह-विरोधी को उजागर करने गए, तो पहले वह खुद को छिपाने में सक्षम हो गया, लेकिन जब हमने उसे उजागर करना जारी रखा, तो उसने हमें धमकाते हुए कहा, “मेरे घर के पीछे एक पुलिस थाना है, वे अक्सर मेरे घर आते हैं।” उसका मतलब था कि अगर हमने उसे फिर से उजागर किया, तो वह हमारे बारे में पुलिस को सूचित कर देगा। उसका शातिरपन उजागर हो गया।) (मैं एक बार एक मसीह-विरोधी से मिला। एक बहन ने उसकी रिपोर्ट करते हुए पत्र लिखा था और जब उसने यह पत्र देखा तो ऐसा हुआ कि जिस स्थान पर यह बहन रहती थी वहाँ एक खतरनाक स्थिति उत्पन्न हो गई, इसलिए उसने कलीसिया के सभी मुख्य सहकर्मियों को इकट्ठा कर कहा, “मेरे बारे में रिपोर्ट करने वाला पत्र लिखने के बाद इस बहन के निवास पर अचानक खतरनाक स्थिति क्यों उत्पन्न हो गई? परमेश्वर निश्चित रूप से निरर्थक काम नहीं करता; शायद वह किसी को बेनकाब करने जा रहा है!” फिर उसने कुछ भड़काऊ बातें कहीं, जिससे सभी ने यह मानते हुए उस बहन पर उँगली उठाई कि उसके साथ कोई समस्या है। अंत में इस बहन को बरखास्त कर दूर भेज दिया गया और उसके पत्र को अलग रख दिया गया और उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। उसके बाद मसीह-विरोधी ने शुरू से अंत तक जो भी कहा था, हमने उसकी तुलना की और पाया कि उसने हममें से हरेक से अलग-अलग बातें कही थीं। हमने देखा कि वह बहुत ही धूर्त और कपटी था। अंत में संगति के जरिए हमने उसे पहचाना और मामले को उचित तरीके से निपटाया।) अब इस बात की पुष्टि हो गई कि सभी मसीह-विरोधी बुरे लोग हैं और जब तक बुरे लोग सत्ता पर काबिज रहते हैं, वे सभी मसीह-विरोधी हैं।

जब मसीह-विरोधी कलीसिया में बाधाएँ पैदा करते हैं तो यह अच्छी बात है या बुरी बात? (बुरी बात है।) यह किस तरह से बुरी बात है? क्या परमेश्वर ने कोई गलती कर दी है? क्या परमेश्वर ने ध्यान से नहीं देखा और मसीह-विरोधियों को अपने घर में घुसपैठ करने दी? (नहीं।) तो फिर बात क्या है? (परमेश्वर मसीह-विरोधियों को कलीसिया में घुसपैठ करने देता है, ताकि हमारी समझ बढ़े, हम उनके प्रकृति सार की असलियत देखना सीखें, शैतान हमें फिर कभी मूर्ख न बना पाए और हम परमेश्वर के प्रति अपनी गवाही में दृढ़ रह पाएँ। यह हमारे लिए परमेश्वर का उद्धार है।) हम हमेशा यह बोलते हैं कि शैतान कितना दुष्ट, शातिर और दुर्भावनापूर्ण है, कि शैतान सत्य से विमुख है और उससे घृणा करता है, लेकिन क्या तुम इसे देख सकते हो? क्या तुम देख सकते हो कि शैतान आध्यात्मिक क्षेत्र में क्या करता है? वह कैसे बोलता और कार्य करता है, सत्य और परमेश्वर के प्रति उसका क्या रवैया है, उसकी दुष्टता कहाँ निहित है—तुम इनमें से कुछ भी नहीं देख सकते। इसलिए, चाहे हम कितना भी कहें कि शैतान दुष्ट है, वह परमेश्वर का प्रतिरोध करता है और सत्य से विमुख है, लेकिन तुम्हारे मन में यह केवल एक वक्तव्य होता है। इसकी कोई सच्ची छवि नहीं होती। यह बहुत खोखला और अव्यावहारिक होता है; यह एक व्यावहारिक संदर्भ नहीं हो सकता। लेकिन जब कोई किसी मसीह-विरोधी के संपर्क में आता है, तो वह शैतान का दुष्ट, शातिर स्वभाव और सत्य से विमुख होने का उसका सार थोड़ा अधिक स्पष्ट रूप से देख लेता है, और शैतान के बारे में उसकी समझ थोड़ी अधिक तीक्ष्ण और व्यावहारिक हो जाती है। इन वास्तविक आंकड़ों और उदाहरणों के संपर्क में आए बिना और इन्हें देखे बिना सत्य की उनकी तथाकथित समझ अस्पष्ट, खोखली और अव्यावहारिक ही होगी। लेकिन जब लोग इन मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों के वास्तविक संपर्क में आते हैं, तो वे देख सकते हैं कि वे किस प्रकार बुराई और परमेश्वर का प्रतिरोध करते हैं, और वे शैतान के प्रकृति सार को पहचान सकते हैं। वे देखते हैं कि ये बुरे लोग और मसीह-विरोधी देहधारी शैतान हैं—कि वे जीते-जागते शैतान, जीते-जागते दानव हैं। मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों के संपर्क का ऐसा प्रभाव हो सकता है। जब शैतान एक बुरे व्यक्ति या मसीह-विरोधी के रूप में देहधारण करता है, तो उसके दैहिक शरीर की क्षमताएँ केवल इतनी ही होती हैं, फिर भी वह बहुत सारे बुरे काम कर सकता है, बहुत अधिक समस्या खड़ी कर सकता है और अपने आचरण और कर्म में बहुत दुष्ट और कपटी हो सकता है। इसलिए, आध्यात्मिक क्षेत्र में शैतान जो बुराई करता है वह देह में रहने वाले सभी बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों द्वारा की जाने वाली बुराई के कुल योग से सौ या हजार गुना अधिक होती है। तो, बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों के संपर्क में आने से लोग जो सबक सीखते हैं, वे उनके लिए विवेक विकसित करने और शैतान का चेहरा स्पष्ट रूप से देखने में बहुत मददगार होते हैं। वे लोगों को यह पहचानने में सक्षम बनाते हैं कि कौन-सी चीजें सकारात्मक हैं और कौन-सी चीजें नकारात्मक, परमेश्वर किससे घृणा करता है और किससे प्रसन्न होता है, सत्य क्या है और भ्रांति क्या है, न्याय क्या है और दुष्टता क्या है, परमेश्वर वास्तव में किस चीज से नफरत करता है और किससे प्रेम करता है और परमेश्वर किन लोगों को ठुकराता और हटाता है और किन्हें स्वीकृति देता है और किन्हें प्राप्त करता है। इन प्रश्नों को केवल धर्म-सिद्धांत के संदर्भ में समझने का प्रयास करना व्यर्थ है। व्यक्ति को बहुत-सी चीजों का अनुभव करना चाहिए, इसमें विशेष रूप से बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों द्वारा गुमराह होने और बाधाएँ पैदा करना शामिल है। जब तक व्यक्ति को सच्ची समझ नहीं होती है तब तक वह ये अनेक सत्य नहीं समझ सकता और इस बात की गहरी और अधिक व्यावहारिक समझ प्राप्त नहीं कर सकता कि परमेश्वर की अपेक्षा क्या है और वह क्या हासिल करना चाहता है। क्या इससे परमेश्वर के इरादों की अधिक समझ पैदा नहीं होती है? क्या यह तुम्हें अधिक आश्वस्त नहीं कर सकता है कि परमेश्वर सत्य है और वह सबसे प्यारा है? (हाँ।) परमेश्वर ने लोगों को चीजों का अनुभव करने के दौरान सबक सिखाए हैं और उनका विवेक विकसित किया है, और वह निश्चित रूप से लोगों को प्रशिक्षण भी दे रहा है, साथ ही प्रत्येक प्रकार के लोगों को प्रकट भी कर रहा है। जब कुछ लोगों का सामना किसी बुरे व्यक्ति या मसीह-विरोधी से होता है, तो वे उसे बेनकाब करने या पहचानने की हिम्मत नहीं करते, और उसके संपर्क में आने का साहस नहीं करते। वे डरते हैं, और बस उससे बचने की कोशिश करते हैं, मानो उन्होंने कोई जहरीला साँप देख लिया हो। ऐसे लोग सबक सीखने के मामले में बहुत कमजोर होते हैं, और उनमें विवेक विकसित नहीं हो पाता। कुछ लोग किसी बुरे व्यक्ति या मसीह-विरोधी से सामना होने पर सबक सीखने या समझ हासिल करने पर कोई ध्यान नहीं देते हैं; वे अपने गुस्से को अपने व्यवहार को निर्देशित करने देते हैं, और जब किसी मसीह-विरोधी को उजागर करने और पहचानने का समय आता है, तो वे किसी काम के नहीं हो सकते या कुछ व्यावहारिक नहीं कर सकते। कुछ लोग किसी मसीह-विरोधी को बहुत अधिक बुराई करते हुए देखते हैं और वे इसके प्रति दिल से विमुख महसूस करते हैं, लेकिन उन्हें लगता है कि वे इस बारे में कुछ भी नहीं कर सकते और उनके हाथ बँधे हुए हैं। नतीजतन उनके साथ मसीह-विरोधी मनमाने ढंग से खिलवाड़ करते हैं और वे इसे सहते रहते हैं और वे इससे समझौता कर लेते हैं। वे मसीह-विरोधी को लापरवाही से काम करने और कलीसिया के काम में बाधा डालने देते हैं और वे उनकी रिपोर्ट नहीं करते या उन्हें उजागर नहीं करते। वे मनुष्य होने के नाते अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य निभाने में विफल रहते हैं। संक्षेप में कहें तो जब बुरे लोग और मसीह-विरोधी कहर बरपाते हैं और मनमानी करते हैं, तो यह सभी प्रकार के लोगों को प्रकट करता है, और बेशक, यह उन लोगों को प्रशिक्षित करने का काम भी करता है, जो सत्य का अनुसरण करते हैं और जिनमें न्याय की भावना होती है, जिससे उनका विवेक और अंतर्दृष्टि बढ़ती है, वे कुछ सीख पाते हैं और वे इससे परमेश्वर के इरादों को समझ पाते हैं। वे परमेश्वर के किन इरादों को समझ पाते हैं? उन्हें यह समझाया जाता है कि परमेश्वर मसीह-विरोधियों को नहीं बचाता, बल्कि सेवा प्रदान करने के लिए बस उनका उपयोग करता है और जब मसीह-विरोधियों द्वारा सेवा प्रदान करने का काम पूरा हो जाता है, तब परमेश्वर उन्हें बेनकाब करके हटा देता है और अंततः उन्हें दंडित करता है, क्योंकि वे बुरे लोग हैं और शैतान के हैं। जिन्हें परमेश्वर बचाता है, वे ऐसे लोगों का एक समूह है जो अपने भ्रष्ट स्वभावों के बावजूद सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हैं और यह पहचानते हैं कि परमेश्वर सत्य है, वे उसकी संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होते हैं और कोई अपराध करने के बावजूद सच्चा पश्चात्ताप करने में सक्षम होते हैं। ये लोग काट-छाँट, न्याय और ताड़ना स्वीकार सकते हैं, और इससे भी बढ़कर, जब दूसरे लोग उन्हें उजागर करते हैं या उनकी समस्याएँ बताते हैं तो वे इसे सही नजरिये से ले सकते हैं। परमेश्वर चाहे जैसे भी कार्य करे, जो लोग उस कार्य को स्वीकार कर उसके प्रति समर्पण कर सकते हैं और उससे कुछ सीख सकते हैं—ऐसे लोगों का समूह ही वास्तव में परमेश्वर का अनुसरण करता है, उसके कार्य का अनुभव करता है और उसके द्वारा प्राप्त किया जाता है।

मसीह-विरोधी अपनी काट-छाँट को कैसे लेते हैं, इसकी अभिव्यक्तियों पर हमारी संगति अब पूरी होती है। बाद में तुम लोग कुछ ऐसे उदाहरण ढूँढ़ सकते हो जिन्हें तुम लोगों ने व्यक्तिगत तौर पर देखा या अनुभव किया है और फिर उनके सार के आधार पर उनका गहन-विश्लेषण कर उनके बारे में संगति कर सकते हो, ताकि भाई-बहन नीर-क्षीर विवेक हासिल कर सकें। उनके नीर-क्षीर विवेक हासिल करने का क्या लक्ष्य है? इसका लक्ष्य अधिक से अधिक लोगों को मसीह-विरोधियों को नकारने में सक्षम बनाना, कलीसिया में उनके बुरे कर्मों को रोकना और इन पर अंकुश लगाना और उन्हें कलीसिया में और जहाँ लोग कर्तव्य करते हैं उन महत्वपूर्ण स्थानों में बाधाएँ और गड़बड़ियाँ पैदा करने या कलीसिया के कार्य को कोई नुकसान पहुँचाने से रोकना है। इसे मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों को बेड़ियों में जकड़ना कहते हैं। भले ही अधिकतर मसीह-विरोधियों ने कलीसिया में सार्वजनिक रूप से परमेश्वर की आलोचना नहीं की है या परमेश्वर का प्रतिरोध नहीं किया है, फिर भी वे चोरी-छिपे बहुत सारी बुराइयाँ करते हैं। वे कलीसियाई जीवन को बाधित कर अगुआओं और कार्यकर्ताओं को सत्य की संगति करने और सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने से रोकते और परेशान करते हैं। वे परमेश्वर के घर के कार्य के बारे में बिना सोचे-समझे टिप्पणियाँ करते हैं और मनमाने फैसले लेते हैं। यहाँ तक कि वे अगुआओं और कार्यकर्ताओं की निंदा करते हैं, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह करते हैं और कलीसिया के काम में बाधाएँ डालते हैं, जिससे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के कर्तव्य निभाने के नतीजों पर असर पड़ता है। यह परमेश्वर के कार्य में बाधा डालने की बहुत बड़ी बुराई है। परमेश्वर के चुने हुए सभी लोगों को यह जानना चाहिए कि मसीह-विरोधी जो बुराई करते हैं वह बहुत बड़ी बुराई है, एक ऐसी निंदनीय बुराई है जो सुधार से परे है। इसलिए मसीह-विरोधी हमेशा परमेश्वर के घर में बेड़ियों में बाँधे जाने और अंकुश लगाने की वस्तुएँ होते हैं। मसीह-विरोधियों को कलीसिया से निष्कासित कर दिया जाना चाहिए—यह परमेश्वर के इरादे के अनुरूप है। अगर किसी कलीसिया में मसीह-विरोधियों को दुराग्रही और मनमाना होने दिया जाता है तो वे भाई-बहनों को नियंत्रित करने और धमकाने के लिए या उन्हें गुमराह और भ्रमित करने के लिए कोई भी नारा लगा सकते हैं और कोई भी तर्क दे सकते हैं, और अगुआ और कार्यकर्ता इसे अनदेखा कर कोई कार्रवाई नहीं करते और मसीह-विरोधियों को नाराज करने के डर से उन्हें उजागर करने या प्रतिबंधित करने की हिम्मत नहीं करते, और इसी कारण उस कलीसिया के भाई-बहन मसीह-विरोधियों के हाथों मनमाने ढंग से खिलौने बनकर परेशान होते हैं तो फिर उस कलीसिया के अगुआ खुशामदी लोग हैं, वे ऐसा कचरा हैं जिन्हें हटा दिया जाना चाहिए। अगर किसी कलीसिया के अगुआओं में मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों का भेद पहचान सकते हैं और वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों को मजबूती से खड़े होकर मसीह-विरोधियों को उजागर करने और परमेश्वर के घर के कार्य की रक्षा करने के लिए शैतानों को बाहर करने में सक्षम बनाते हैं तो इससे राक्षस और शैतान शर्मिंदा होंगे और यह परमेश्वर के इरादे को भी पूरा करेगा। इस कलीसिया के अगुआ सुयोग्य अगुआ हैं जिनमें सत्य वास्तविकता है। अगर कोई कलीसिया किसी मसीह-विरोधी के विघ्नों से पीड़ित है और भाई-बहनों द्वारा पहचाने और अस्वीकार किए जाने के बाद मसीह-विरोधी पागलों की तरह उन भाई-बहनों से प्रतिशोध लेता है, उन पर अत्याचार करता है और उनकी निंदा करता है, ऐसे में अगर कलीसिया के अगुआ कुछ नहीं करते हैं, वे आँखें मूंद लेते हैं और किसी को भी नाराज न करने का प्रयास करते हैं तो वे झूठे अगुआ हैं। वे कचरा हैं और उन्हें हटा दिया जाना चाहिए। कलीसिया अगुआ होने के नाते अगर कोई समस्याएँ हल करने के लिए सत्य का उपयोग करने में सक्षम नहीं है, अगर वह मसीह-विरोधियों की पहचान करने, उन्हें सीमित करने और उनकी छँटाई करने में सक्षम नहीं है, अगर वह मसीह-विरोधियों को कलीसिया में अपनी मनमर्जी से काम करने, बेलगाम होने की खुली छूट देता है और अगर वह परमेश्वर के चुने हुए लोगों को गुमराह होने से बचाने में असमर्थ है, परमेश्वर के चुने हुए लोगों की रक्षा करने में असमर्थ है ताकि वे सामान्य रूप से अपना कर्तव्य कर सकें—और इसके अलावा वह कलीसिया के कार्य की सामान्य प्रगति बनाए रखने में असमर्थ है—तो वह अगुआ कचरा है और उसे हटा दिया जाना चाहिए। अगर किसी कलीसिया के अगुआ किसी मसीह-विरोधी को उजागर करने, उसकी काट-छाँट करने, उसे सीमित करने और उसके खिलाफ कार्रवाई करने से इसलिए डरते हैं कि मसीह-विरोधी खौफनाक और निर्दयी है और इस प्रकार उसे कलीसिया में बेलगाम और निरंकुश होने देते हैं, उसे जो जी में आए वह करने देते हैं और कलीसिया के अधिकांश कार्य को पंगु बनाकर उसे ठप करने देते हैं तो इस कलीसिया के अगुआ भी कचरा हैं और उन्हें हटा दिया जाना चाहिए। अगर किसी कलीसिया के अगुआ प्रतिशोध के डर से कभी मसीह-विरोधी को उजागर करने का साहस नहीं करते और वे कभी भी मसीह-विरोधी के बुरे कर्मों पर अंकुश लगाने की कोशिश नहीं करते हैं, जिससे कलीसियाई जीवन में और भाई-बहनों के जीवन प्रवेश में बड़ी बाधा, परेशानी और क्षति होती है तो इस कलीसिया के अगुआ भी कचरा हैं और उन्हें हटा दिया जाना चाहिए। क्या तुम लोग ऐसे लोगों की निरंतर अगुआई का समर्थन करोगे? (नहीं।) तो फिर इस तरह के अगुआओं का सामना करने पर तुम लोगों को क्या करना चाहिए? तुम्हें उनसे पूछना चाहिए, “मसीह-विरोधी इतनी बड़ी बुराई करते हैं, वे कलीसिया में बेलगाम हो जाते हैं, उस पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं—क्या तुम उन्हें रोक पाते हो? क्या तुममें उन्हें उजागर करने का साहस है? अगर तुममें उनके खिलाफ कार्रवाई करने का साहस नहीं है तो तुम्हें इस्तीफा दे देना चाहिए। तुम्हें अपना पद छोड़ने में कतई समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। अगर तुम अपने दैहिक हितों की रक्षा करते हो और मसीह-विरोधियों के डर से भाई-बहनों को मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों के हवाले कर देते हो तो तुम्हें धिक्कारा जाना चाहिए। तुम अगुआ बनने के लायक नहीं हो—तुम कचरा हो, तुम मुर्दा इंसान हो!” ऐसे झूठे अगुआओं को उजागर करके बरखास्त कर दिया जाना चाहिए। वे वास्तविक कार्य नहीं करते; बुरे लोगों का सामना करने पर वे भाई-बहनों की रक्षा नहीं करते, बल्कि बुरे लोगों के सामने घुटने टेक देते हैं, उन्हें छूट देते हैं और उनसे दया की भीख माँगते हैं और अपने अधम अस्तित्व को घिसटते रहते हैं। ऐसे अगुआ कचरा हैं। वे गद्दार हैं और उन्हें नकार दिया जाना चाहिए।

आगे हम एक और बिंदु पर संगति करेंगे जो यह है कि जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है तब अपनी संभावनाओं और नियति के प्रति उनका रवैया कैसे उजागर होता है। परमेश्वर के घर में काम करने वाले कुछ मसीह-विरोधी चुपचाप संकल्प लेते हैं कि वे अति सावधानी से काम करेंगे, गलतियाँ करने, काट-छाँट किए जाने, ऊपरवाले को नाराज करने या कुछ बुरा करते हुए अपने अगुआओं द्वारा पकड़े जाने से बचेंगे, और वे यह सुनिश्चित करते हैं कि जब वे अच्छे कर्म करें तो उनके सामने दर्शक हों। फिर भी वे चाहे कितने भी सावधान क्यों न रहें, चूँकि उनके मंसूबे और उनका अपनाया मार्ग गलत हैं और चूँकि वे सिर्फ शोहरत, लाभ और रुतबे के लिए ही बोलते और काम करते हैं और कभी सत्य नहीं खोजते, इसलिए वे अक्सर सिद्धांतों का उल्लंघन कर देते हैं, कलीसिया का कार्य अस्त-व्यस्त कर देते हैं, शैतान के अनुचरों के रूप में कार्य करते हैं, यहाँ तक कि अक्सर कई अपराध कर बैठते हैं। ऐसे लोगों के लिए अक्सर सिद्धांतों का उल्लंघन और अपराध करना बहुत आम और बहुत सामान्य बात है। इसलिए जाहिर है, उनके लिए काट-छाँट किए जाने से बचना बहुत मुश्किल होता है। उन्होंने देखा है कि कुछ मसीह-विरोधियों को बेनकाब करके हटा दिया गया है, क्योंकि उनकी सख्ती से काट-छाँट की गई है। ये चीजें उन्होंने अपनी आँखों से देखी हैं। मसीह-विरोधी इतनी सावधानी से कार्य क्यों करते हैं? एक कारण, निश्चित रूप से यह है कि वे बेनकाब करके हटाए जाने से डरते हैं। वे सोचते हैं, “मुझे सावधान रहना होगा—आखिरकार, ‘सावधानी ही सुरक्षा की जननी है’ और ‘अच्छे लोगों का जीवन शांतिपूर्ण होता है।’ मुझे इन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए और हर पल खुद को गलत काम करने या परेशानी में पड़ने से बचने की याद दिलानी चाहिए, और मुझे अपनी भ्रष्टता और इरादे दबा देने चाहिए और किसी को भी उन्हें देखने नहीं देना चाहिए। अगर मैं गलत न करूँ और अंत तक डटा रह सकूँ, तो मैं आशीष पाऊँगा, आपदाओं से बचूँगा और परमेश्वर में अपने विश्वास में कुछ हासिल करूँगा!” वे अक्सर खुद को इस तरह से राजी, प्रेरित और प्रोत्साहित करते हैं। अपने अंतरतम में, उनका मानना है कि अगर वे गलत करते हैं, तो आशीष प्राप्त करने की उनकी संभावनाएँ काफी कम हो जाएँगी। क्या यह गणना और विश्वास ही उनके दिल की गहराइयों में घर नहीं किए रहता? इसे एक तरफ रखते हुए कि मसीह-विरोधियों की यह गणना या विश्वास सही है या गलत, इसके आधार पर काट-छाँट किए जाने पर उन्हें सबसे ज्यादा चिंता किस बात की होगी? (अपनी संभावनाओं और नियति की।) वे काट-छाँट किए जाने को अपनी संभावनाओं और नियति के साथ जोड़ते हैं—इसका संबंध उनकी दुष्ट प्रकृति से है। वे मन ही मन सोचते हैं : “क्या मेरी इस तरह काट-छाँट इसलिए की जा रही है क्योंकि मुझे हटाया जाने वाला है? क्योंकि मैं वांछित नहीं हूँ? क्या परमेश्वर का घर मुझे यह कर्तव्य निभाने से रोकेगा? क्या मैं भरोसेमंद नहीं लगता? क्या मेरी जगह किसी बेहतर व्यक्ति को लाया जाएगा? अगर मुझे हटा दिया गया, क्या तब भी मुझे आशीष मिलेगा? क्या मैं तब भी स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकता हूँ? ऐसा लगता है कि मेरा प्रदर्शन बहुत संतोषजनक नहीं रहा है, इसलिए मुझे भविष्य में और अधिक सावधान रहना चाहिए, आज्ञाकारी बनकर अच्छा व्यवहार करना सीखना चाहिए और कोई परेशानी नहीं खड़ी करनी चाहिए। मुझे धैर्य रखना सीखना चाहिए और सिर झुकाकर जीना चाहिए। प्रतिदिन काम करते समय मुझे यह मानकर चलना चाहिए कि मैं तलवार की धार पर चल रहा हूँ। मैं जरा-सा भी असावधान नहीं हो सकता। हालाँकि इस बार मैंने लापरवाही बरती है और मेरी काट-छाँट की गई है, पर उनका लहजा बहुत सख्त नहीं लगा। लगता है कि समस्या बहुत गंभीर नहीं है। लगता है कि अभी भी मेरे पास एक मौका है—मैं अभी भी आपदाओं से बचकर आशीष पा सकता हूँ, इसलिए मुझे विनम्रतापूर्वक इसे स्वीकार लेना चाहिए। ऐसा नहीं है कि मुझे बरखास्त कर दिया जाएगा, हटाने या निष्कासित करने की बात तो दूर है, तो मैं इस तरह अपनी काट-छाँट को स्वीकार सकता हूँ।” क्या यह अपनी काट-छाँट को स्वीकारने का रवैया है? क्या यह वास्तव में अपने भ्रष्ट स्वभाव को जानना है? क्या यह पश्चात्ताप कर अपने में बदलाव लाने की इच्छा है? क्या यह सच में सिद्धांतों के अनुसार कार्य करने के लिए दृढ़संकल्पी होना है? नहीं, ऐसा नहीं है। फिर वे ऐसा बर्ताव क्यों करते हैं? क्योंकि उन्हें आशा होती है कि वे आपदाओं से बचकर आशीष पा सकते हैं। जब तक उन्हें यह उम्मीद होती है, वे अपने असली इरादे नहीं दिखा सकते, वे अपनी असलियत का खुलासा नहीं कर सकते, वे लोगों को नहीं बता सकते कि उनके दिल की गहराइयों में क्या छिपा है, लोगों को अपने अंदर छिपी नाराजगी के बारे में नहीं बता सकते। उन्हें इन चीजों को छिपाकर रखना होगा, विनम्रता का व्यवहार करना होगा और लोगों को पता नहीं लगने देना होगा कि असलियत में वे कौन हैं। इसलिए काट-छाँट के बाद भी उनमें कोई बदलाव नहीं आता और वे पहले की तरह ही कार्य करने में लगे रहते हैं। तो उनके कार्यों के पीछे क्या सिद्धांत है? सीधी-सी बात है, हर काम में अपने हितों की रक्षा करना। वे चाहे जो भी गलती करें, वे दूसरों को उसका पता नहीं चलने देते; उन्हें अपने आस-पास के लोगों में यह छवि बनाकर होगी कि वे दोषों या कमियों से मुक्त आदर्श इंसान हैं और कभी कोई गलती नहीं करते। इस तरह वे छद्मवेश में रहते हैं। लंबे समय तक छद्मवेश में रहकर वे आश्वस्त हो जाते हैं कि उनका आपदाओं से बचना, आशीष पाना और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना कमोबेश निश्चित है। लेकिन चूँकि वे अपने क्रियाकलापों में अक्सर सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं, इसलिए अपनी काट-छाँट होने पर उन्हें आश्चर्य होता है। काट-छाँट होने से उन्हें तकलीफ होती है : “मैंने इतना अधिक कष्ट सहा है; तुम मेरी काट-छाँट कैसे कर सकते हो? आशीष प्राप्त करने जैसी महान चीज मेरे साथ अभी तक क्यों नहीं हुई? यह अभी भी मुझसे इतनी दूर क्यों है? यह पीड़ा कब खत्म होगी?” और जब वे काट-छाँट के शब्द सुनते हैं तो सोचते हैं, “अगर मैं फिर से लापरवाह हो गया और सत्य का अनुसरण नहीं करता और जानबूझकर ऐसे बुरे काम करता हूँ जो परमेश्वर के घर के काम को बाधित करते हैं, तो मुझे हटाकर निष्कासित कर दिया जाएगा। क्या तब मैं अपनी संभावनाएँ और नियति नहीं खो दूँगा? परमेश्वर में विश्वास रखने के इन वर्षों में मैंने जो भी पीड़ा झेली है, वह सब बेकार हो जाएगी!” वे बार-बार धैर्य और आत्म-संयम से काम लेते हैं और अपने दिलों में कहते हैं, “मुझे यह सहना होगा! मुझे यह सहना ही होगा! अगर मैं इसे नहीं सहता, तो मैंने जो भी कष्ट और अन्याय सहा है, वह सब व्यर्थ हो जाएगा। मुझे आगे बढ़ते रहना होगा। अगर मैं अंत तक दृढ़ रहूँगा, तो बचाया जा सकूँगा! अगर कोई मुझसे कोई अप्रिय बात कहता है, तो मैं बस बहाना बनाऊँगा कि मैंने उसकी बात नहीं सुनी। मैं ऐसे पेश आऊँगा जैसे वह मेरे बारे में नहीं, बल्कि किसी और के बारे में बात कर रहा हो।” लेकिन चाहे वे कैसे भी सुनें, फिर भी उन्हें लगता है कि इसका यह मतलब है कि उनकी कोई मंजिल नहीं है। उन्हें अभी भी लगता है कि इस बार काट-छाँट करके उनकी निंदा की जा रही है; वे निराश महसूस करते हैं, दिन की रोशनी देखने में असमर्थ होते हैं, उनके पास कोई कल और कोई भविष्य नहीं है। इस समय, क्या ये बुरे लोग और मसीह-विरोधी धैर्य रख सकते हैं? (नहीं, वे नहीं रख सकते। वे आशीष पाने की अपनी उम्मीदों को बिखरते देखते हैं, इसलिए वे धैर्य नहीं रख सकते।) क्या वे केवल धैर्य रखने में असमर्थ हैं? क्या वे कार्रवाई नहीं करेंगे? (हाँ, वे जरूर करेंगे।) वे क्या कार्रवाई कर सकते हैं? (वे नकारात्मकता फैला सकते हैं और कुछ विवेकशून्य भाई-बहनों को अपना पक्ष लेने, उनके बचाव में आने और उनकी चिंताओं के बारे में शिकायत करने के लिए गुमराह कर सकते हैं।) सही कहा, एक बार जब वे निराश महसूस करेंगे, तो कार्रवाई करेंगे। वे सोचेंगे : “तुम अब मुझे प्रशिक्षित नहीं करोगे या महत्वपूर्ण पदों पर नहीं बैठा रहे हो और तुम मुझे खत्म भी करना चाहते हो। अगर मैं आशीष नहीं पा सकता तो खुद आशीष के बारे में सोचना भी मत! अगर यह जगह मुझे नहीं रखेगी तो मेरे लिए एक दूसरी जगह तैयार है, लेकिन अगर मैं छोड़ता हूँ तो अपने साथ दो और लोगों को नीचे खींच लूँगा। तुम मेरे प्रति निर्दयी रहे हो, इसलिए मैं भी तुम्हारे साथ गलत करूँगा! क्या तुम मुझे हटाना नहीं करना चाहते थे? तुम्हें ऐसा कहने की कीमत चुकानी पड़ेगी!” वे लड़ने के लिए तैयार हो जाएँगे और शोर मचाना शुरू कर देंगे, और सत्य से नफरत करने का उनका प्रकृति सार उजागर हो जाएगा। फिर उनका उत्साह, उनका त्याग, उनका खुद को खपाना, और उनकी पीड़ा और कीमत चुकाना, सब गायब हो जाएगा क्योंकि आशीष पाने की उनकी उम्मीदें बिखर जाती हैं। उस समय लोग यह देख पाएँगे कि परमेश्वर के लिए खुद को खपाने का उनका शुरुआती उत्साह और उनका पीड़ा सहना और कीमत चुकाना, सब झूठ और दिखावा था।

एक बार जब मसीह-विरोधियों को बदला या हटाया जाता है, तो वे लड़ने को तैयार हो जाते हैं और बिना रुके शिकायत करते हैं, और उनका राक्षसी पक्ष उजागर हो जाता है। कौन-सा राक्षसी पक्ष उजागर होता है? अतीत में उन्होंने अपने कर्तव्य सत्य का अनुसरण करने और उद्धार पाने के लिए बिल्कुल नहीं निभाए थे, बल्कि आशीष पाने के लिए निभाए थे और अब वे इस बारे में सत्य बताते हैं और वास्तविक स्थिति को प्रकट करते हैं। वे कहते हैं : “अगर मैं स्वर्ग के राज्य में जाने या बाद में आशीष और महान महिमा पाने की कोशिश नहीं कर रहा होता, तो क्या मैं गोबर से भी गए-गुजरे तुम लोगों के साथ घुलता-मिलता? क्या तुम लोग मेरी मौजूदगी के लायक भी हो? तुम लोग मुझे प्रशिक्षित नहीं करते या मुझे पदोन्नति नहीं देते और तुम मुझे हटा देना चाहते हो। एक दिन मैं तुम्हें दिखाऊँगा कि मुझे हटाने के लिए तुम्हें कीमत चुकानी होगी और इसके कारण तुम्हें दुष्परिणाम भुगतने होंगे!” मसीह-विरोधी इन विचारों का प्रसार करते हैं और ये शैतानी शब्द उनके मुँह से निकल जाते हैं। एक बार जब वे लड़ने को तैयार हो जाते हैं, तो उनकी दुर्भावनापूर्ण प्रकृति और शातिर स्वभाव उजागर हो जाता है, और वे धारणाएँ फैलाना शुरू कर देते हैं। वे उन लोगों को भी अपने साथ जोड़ना शुरू कर देते हैं जो नए विश्वासी हैं, जिनका आध्यात्मिक कद अपेक्षाकृत छोटा है और जिनमें विवेक की कमी है, जो सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं और जो अक्सर नकारात्मक और कमजोर होते हैं, और वे उन लोगों को भी अपने साथ जोड़ते हैं जो अपने कर्तव्यों में लगातार लापरवाह होते हैं और जो वास्तव में परमेश्वर में विश्वास नहीं करते हैं। जैसा कि उन्होंने खुद कहा, “अगर तुम मुझे हटा देते हो तो मुझे अपने साथ कई अन्य लोगों को भी नीचे खींचना होगा!” क्या उनकी शैतानी प्रकृति बेनकाब नहीं हुई है? क्या सामान्य लोग ऐसा करेंगे? आम तौर पर, भ्रष्ट स्वभाव वाले लोग बरखास्त होने पर दुखी और आहत महसूस करते हैं, वे खुद को नाउम्मीद मानते हैं, लेकिन उनका जमीर उन्हें सोचने पर मजबूर करता है : “यह मेरी गलती है, मैंने अपने कर्तव्य अच्छे से नहीं निभाए। भविष्य में मैं बेहतर करने का प्रयास करूँगा, और फिर परमेश्वर मेरे साथ कैसा व्यवहार करता है और मेरे बारे में क्या निर्धारित करता है, यह परमेश्वर का काम है। लोगों को परमेश्वर से माँग करने का कोई अधिकार नहीं है। क्या परमेश्वर के कार्य लोगों की अभिव्यक्तियों पर आधारित नहीं हैं? कहने की जरूरत नहीं है कि अगर कोई गलत रास्ते पर चलता है तो उसे अनुशासित और दंडित किया जाना चाहिए। अभी तो दुख की बात यह है कि मेरी काबिलियत कम है और मैं परमेश्वर के इरादे पूरे नहीं कर सकता, मैं सत्य सिद्धांत नहीं समझता और अपने भ्रष्ट स्वभावों के आधार पर मनमाने ढंग से और अपनी मर्जी से काम करता हूँ। मैं हटा दिए जाने के लायक हूँ, लेकिन मुझे उम्मीद है कि मुझे भविष्य में इसकी भरपाई करने का मौका मिलेगा!” थोड़े-से जमीर वाले लोग इस तरह के रास्ते पर चलेंगे। वे इस तरह से समस्या पर विचार करने का फैसला करते हैं और अंत में, वे इस तरह से समस्या हल करने का फैसला भी करते हैं। बेशक, इसके भीतर सत्य का अभ्यास करने के बहुत सारे तत्व नहीं हैं, लेकिन चूँकि इन लोगों में जमीर है, इसलिए वे परमेश्वर का प्रतिरोध करने, परमेश्वर का तिरस्कार करने या परमेश्वर का विरोध करने की हद तक नहीं जाएँगे। लेकिन मसीह-विरोधी उनके जैसे नहीं हैं। चूँकि उनकी शातिर प्रकृति है, इसलिए वे स्वाभाविक रूप से परमेश्वर के विरोधी हैं। जब उनकी संभावनाओं और नियति को खतरा होता है या उनसे छीन लिया जाता है, जब उन्हें जीने का कोई अवसर नहीं दिखता है, तो वे धारणाएँ फैलाना, परमेश्वर के कार्य की आलोचना करना और उन छद्म-विश्वासियों को अपने साथ जोड़ने का फैसला करते हैं जो उनके साथ मिलकर परमेश्वर के घर के कार्य को बाधित करते हैं। वे अपने पिछले किसी भी कुकर्म और अपराध के लिए और साथ ही परमेश्वर के घर के कार्य या संपत्ति को हुए किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी लेने तक से इनकार करते हैं। जब परमेश्वर का घर उनसे निपटता है और उन्हें हटा देता है, तो वे एक ऐसा वाक्य कहते हैं जो अक्सर मसीह-विरोधी बोलते हैं। यह क्या है? (अगर यह जगह मुझे नहीं रखेगी तो मेरे लिए एक दूसरी जगह तैयार है।) क्या यह एक और शैतानी वाक्य नहीं है? यह कुछ ऐसा है जो सामान्य मानवता, शर्म की भावना और जमीर वाला व्यक्ति नहीं कह सकता। हम उन्हें शैतानी शब्द कहते हैं। ये उन शातिर स्वभावों की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ हैं जो मसीह-विरोधी तब प्रकट करते हैं जब उनकी काट-छाँट की जाती है और उन्हें लगता है कि उनका रुतबा और प्रतिष्ठा खतरे में है, उनके रुतबे और प्रतिष्ठा को खतरा पहुँचाया जा रहा है और विशेष रूप से वे अपनी संभावनाओं और नियति से वंचित होने वाले हैं; इसी समय, उनका छद्म-विश्वासी सार उजागर होता है। हकीकत में, परमेश्वर का घर लोगों की काट-छाँट सिर्फ इसलिए करता है क्योंकि वे अपने कर्तव्यों के निर्वहन में मनमर्जी से और मनमाने ढंग से कार्य करते हैं, इस प्रकार वे परमेश्वर के घर के कार्य को बाधित और अस्त-व्यस्त करते हैं और आत्मचिंतन या पश्चात्ताप नहीं करते हैं—केवल तभी परमेश्वर का घर उनकी काट-छाँट करता है। इस स्थिति में क्या उनकी काट-छाँट किए जाने का अर्थ यह है कि उन्हें हटाया जा रहा है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) बिल्कुल नहीं, लोगों को इसे सकारात्मक तरीके से स्वीकारना चाहिए। इस संदर्भ में, कोई भी काट-छाँट, चाहे वह परमेश्वर करे या मनुष्य, चाहे वह अगुआओं और कार्यकर्ताओं से आए या भाई-बहनों से, यह दुर्भावनापूर्ण नहीं होती है और यह कलीसिया के कार्य के लिए लाभकारी है। जब कोई व्यक्ति अपनी मर्जी से और मनमाने ढंग से काम करता है और परमेश्वर के घर के काम में बाधा डालता है तो उसकी काट-छाँट करना एक न्यायोचित और सकारात्मक है। यह कुछ ऐसा है जो ईमानदार लोगों और सत्य से प्रेम करने वालों को करना चाहिए। लेकिन जब अपराध करने के कारण जिन लोगों की काट-छाँट की जाती है वे इसे स्वीकार नहीं करते, इसके बजाय इसका विरोध करते हैं, जिससे उनमें घृणा और प्रतिशोध की मानसिकता पैदा होती है तो यह अनुचित और दुष्टता है। इतने सारे लोग परमेश्वर के घर में कर्तव्य निभाते हैं—उनमें से भला किसने काट-छाँट का अनुभव नहीं किया है? भला कितने लोग काट-छाँट किए जाने पर नकारात्मक और विद्रोही हो गए या फिर उन्होंने यह महसूस कर आत्महत्या का प्रयास किया कि उन्हें आशीष नहीं मिलेगा और वे नाउम्मीद हो चुके हैं, और इसलिए उन्होंने अपना कर्तव्य छोड़ना चाहा, रूखा व्यवहार करना चाहा और नखरे दिखाने चाहे और दूसरों से घृणा करना शुरू कर दिया और यहाँ तक कि उनसे प्रतिशोध लेना चाहा है? वास्तव में ऐसे बहुत लोग नहीं हैं। केवल बुरे लोग ही ऐसी चीजें कर सकते हैं। केवल बुरे लोग ही काट-छाँट किए जाने को यह मान सकते हैं कि उनके साथ गुस्सैल लोगों ने गलत तरीके से व्यवहार किया है। बेशक, परमेश्वर के घर में जिस तरह की काट-छाँट की बात की जाती है, वह सब उचित है, यह सब कलीसिया के कार्य और व्यक्तियों के जीवन प्रवेश के लिए किया जाता है। यह एक सकारात्मक चीज है जो परमेश्वर के इरादे के अनुरूप है और पूरी तरह से परमेश्वर के वचन के अनुरूप है। जब मसीह-विरोधियों की काट-छाँट की जाती है, तो वे हमेशा अपनी प्रतिष्ठा, रुतबे और गरिमा की रक्षा करने की कोशिश करते हैं, इसे अपने हितों से जोड़ते हैं और विशेष रूप से इसे अपनी संभावनाओं और नियति से जोड़ते हैं। अगर काट-छाँट उनकी प्रतिष्ठा, रुतबे और गरिमा के प्रतिकूल है, तो वे इसे स्वीकार नहीं सकते। अगर उनकी गंभीर रूप से काट-छाँट की जाती है और इससे न केवल उनकी प्रतिष्ठा, रुतबा और गरिमा नष्ट होती है, बल्कि यह उनकी संभावनाओं और नियति को भी खतरे में डालता है, तो वे इसे स्वीकारने में और भी कम सक्षम होते हैं। संक्षेप में कहें तो चाहे कोई भी उनकी काट-छाँट करे, मसीह-विरोधी इसे परमेश्वर से आया मानकर स्वीकारने में असमर्थ होते हैं, आत्म-चिंतन करने और खुद को जानने में असमर्थ होते हैं, काट-छाँट किए जाने से सबक सीखने में असमर्थ होते हैं, सच्चा पश्चात्ताप करने में असमर्थ होते हैं या अपने कर्तव्यों का बेहतर निर्वहन करने में असमर्थ होते हैं। इसके बजाय, उनके दिलों में संघर्ष चलता रहता है और वे काट-छाँट के प्रति विद्रोही रवैया अपनाते हैं और इसे स्वीकारने से नकारते हैं। अपनी काट-छाँट के प्रति मसीह-विरोधियों का यही रवैया रहता है और यह सत्य के प्रति उनके रवैये को भी दर्शाता है।

जब काट-छाँट किए जाने की बात आती है, तो लोगों को कम से कम क्या जानना चाहिए? अपना कर्तव्य पर्याप्त रूप से निभाने के लिए काट-छाँट किए जाने का अनुभव जरूर करना चाहिए—यह अपरिहार्य है। ये ऐसी चीज है, जिसका लोगों को दिन-प्रतिदिन सामना करना चाहिए और जिसे परमेश्वर में अपने विश्वास में उद्धार प्राप्त करने के लिए अक्सर अनुभव करना चाहिए। कोई भी काट-छाँट किए जाने से अलग-थलग नहीं रह सकता। क्या किसी की काट-छाँट का संबंध उसकी संभावनाओं और नियति से होता है? (नहीं।) तो किसी व्यक्ति की काट-छाँट क्यों की जाती है? क्या यह उसकी निंदा करने के लिए की जाती है? (नहीं, यह लोगों को सत्य समझने और अपना कर्तव्य सिद्धांतों के अनुसार निभाने में मदद करने के लिए की जाती है।) सही कहा। यह इसकी एकदम सही समझ है। किसी की काट-छाँट करना एक तरह का अनुशासन है, एक प्रकार की ताड़ना है और यह स्वाभाविक रूप से एक प्रकार से लोगों की मदद करना और उनका उपचार करना भी है। काट-छाँट किए जाने से तुम समय रहते अपने गलत अनुसरण को बदल सकते हो। इससे तुम अपनी मौजूदा समस्याएँ तुरंत पहचान सकते हो और समय रहते अपने उन भ्रष्ट स्वभावों को पहचान सकते हो जो तुम प्रकट करते हो। चाहे कुछ भी हो, काट-छाँट किया जाना तुम्हें अपनी गलतियाँ पहचानने और सिद्धांतों के अनुसार अपने कर्तव्य निभाने में मदद करते हैं, ये तुम्हें चूक करने और भटकने से समय रहते बचाते हैं और तबाही मचाने से रोकते हैं। क्या यह लोगों की सबसे बड़ी सहायता, उनका सबसे बड़ा उपचार नहीं है? जमीर और विवेक रखने वालों को काट-छाँट किए जाने को सही ढंग से लेने में सक्षम होना चाहिए। मसीह-विरोधी काट-छाँट को क्यों नहीं स्वीकार सकते? क्योंकि उन्हें लगता है कि काट-छाँट किया जाना मनुष्य से आता है, परमेश्वर से नहीं। उन्हें लगता है कि जो कोई भी उनकी काट-छाँट करता है, वह उनके लिए जीवन जीना कठिन बना रहा है और उन्हें दंडित कर रहा है। मसीह-विरोधियों की मानसिकता को देखें तो वे अपनी काट-छाँट किया जाना स्वीकारने से मुख्य रूप से इस कारण इनकार करते हैं कि वे सत्य स्वीकार नहीं करते हैं। वे काट-छाँट किए जाने से सबक नहीं सीख सकते और वे खुद को जानने या सत्य की खोज करने में सक्षम नहीं हैं। यही कारण है कि वे काट-छाँट किया जाना स्वीकार नहीं करते हैं। उनके दिलों में इतनी बड़ी समस्या मौजूद है, जो यह पुष्टि करती है कि मसीह-विरोधियों का प्रकृति सार सत्य से विमुख होने और सत्य के प्रति शत्रुता का है।

2 मई 2020

पिछला: मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों का सौदा तक कर देते हैं (भाग सात)

अगला: मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और वे व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों का सौदा तक कर देते हैं (भाग नौ)

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में I सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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