परमेश्वर अब्राहम को एक पुत्र देने की प्रतिज्ञा करता है

28 मई, 2018

1. परमेश्वर अब्राहम को एक पुत्र देने की प्रतिज्ञा करता है

उत्पत्ति 17:15-17 फिर परमेश्वर ने अब्राहम से कहा, "तेरी जो पत्नी सारै है, उसको तू अब सारै न कहना, उसका नाम सारा होगा। मैं उसको आशीष दूँगा, और तुझ को उसके द्वारा एक पुत्र दूँगा; और मैं उसको ऐसी आशीष दूँगा कि वह जाति जाति की मूलमाता हो जाएगी; और उसके वंश में राज्य-राज्य के राजा उत्पन्न होंगे।" तब अब्राहम मुँह के बल गिर पड़ा और हँसा, और मन ही मन कहने लगा, "क्या सौ वर्ष के पुरुष के भी सन्तान होगी और क्या सारा जो नब्बे वर्ष की है पुत्र जनेगी?"

उत्पत्ति 17:21-22 परन्तु मैं अपनी वाचा इसहाक ही के साथ बाँधूँगा जो सारा से अगले वर्ष के इसी नियुक्त समय में उत्पन्न होगा। तब परमेश्वर ने अब्राहम से बातें करनी बन्द की और उसके पास से ऊपर चढ़ गया।

2. अब्राहम इसहाक की बलि देता है

उत्पत्ति 22:2-3 उसने कहा, "अपने पुत्र को अर्थात् अपने एकलौते पुत्र इसहाक को, जिस से तू प्रेम रखता है, संग लेकर मोरिय्याह देश में चला जा; और वहाँ उसको एक पहाड़ के ऊपर जो मैं तुझे बताऊँगा होमबलि करके चढ़ा।" अत: अब्राहम सबेरे तड़के उठा और अपने गदहे पर काठी कसकर अपने दो सेवक, और अपने पुत्र इसहाक को संग लिया, और होमबलि के लिये लकड़ी चीर ली; तब निकल कर उस स्थान की ओर चला, जिसकी चर्चा परमेश्वर ने उससे की थी।

उत्पत्ति 22:9-10 जब वे उस स्थान को जिसे परमेश्वर ने उसको बताया था पहुँचे; तब अब्राहम ने वहाँ वेदी बनाकर लकड़ी को चुन चुनकर रखा, और अपने पुत्र इसहाक को बाँध कर वेदी पर की लकड़ी के ऊपर रख दिया। फिर अब्राहम ने हाथ बढ़ाकर छुरी को ले लिया कि अपने पुत्र को बलि करे।

कोई भी उस कार्य को बाधित नहीं कर सकता जिसे करने का परमेश्वर संकल्प लेता है

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तो, तुम सब लोगों ने अभी-अभी अब्राहम की कहानी सुनी। बाढ़ से संसार के नष्ट हो जाने के बाद उसे परमेश्वर द्वारा चुना गया था, उसका नाम अब्राहम था, और जब वह सौ वर्ष का था और उसकी पत्नी सारा नब्बे वर्ष की थी, तब परमेश्वर की प्रतिज्ञा उस तक आई। परमेश्वर ने उससे क्या प्रतिज्ञा की? परमेश्वर ने वह प्रतिज्ञा की जिसका संकेत हमें पवित्र शास्त्र में मिलता है : "मैं उसको आशीष दूँगा, और तुझ को उसके द्वारा एक पुत्र दूँगा।" परमेश्वर द्वारा उसे पुत्र देने की प्रतिज्ञा के पीछे क्या पृष्ठभूमि थी? पवित्र शास्त्र यहाँ यह विवरण प्रदान करते हैं : "तब अब्राहम मुँह के बल गिर पड़ा और हँसा, और मन ही मन कहने लगा, 'क्या सौ वर्ष के पुरुष के भी सन्तान होगी और क्या सारा जो नब्बे वर्ष की है पुत्र जनेगी?'" दूसरे शब्दों में, यह बुज़ुर्ग दंपति इतने वृद्ध थे कि संतान उत्पन्न नहीं कर सकते थे। जब परमेश्वर ने उससे अपनी प्रतिज्ञा की तो उसके बाद अब्राहम ने क्या किया? वह हँसता हुआ मुँह के बल गिर पड़ा, और उसने मन ही मन कहा, "क्या सौ वर्ष के पुरुष के भी सन्तान होगी?" अब्राहम मानता था कि यह असंभव था—जिसका अर्थ था कि वह मानता था कि उससे की गई परमेश्वर की प्रतिज्ञा मज़ाक से ज्यादा कुछ नहीं थी। मनुष्य की दृष्टि से, यह मनुष्य के द्वारा अप्राप्य है, और इसी तरह परमेश्वर के द्वारा अप्राप्य और उसके लिए असंभाव्य है। कदाचित्, अब्राहम के लिए, यह हँसी की बात थी : परमेश्वर ने मनुष्य को बनाया, फिर भी कि वह इस बात से थोड़ा अनभिज्ञ प्रतीत होता है कि इतना वृद्ध व्यक्ति संतान उत्पन्न करने में अक्षम होता है; उसे लगता है कि वह मुझे संतान उत्पन्न करने दे सकता है, वह कहता है कि वह मुझे एक पुत्र देगा—निश्चित रूप से यह असंभव है! इसलिए, अब्राहम मुँह के बल गिर पड़ा और हँसा, यह सोचते हुए: असंभव—परमेश्वर मेरे साथ मज़ाक कर रहा है, यह सत्य नहीं हो सकता! उसने परमेश्वर के वचनों को गंभीरता से नहीं लिया। इसलिए, परमेश्वर की नज़रों में, अब्राहम किस प्रकार का व्यक्ति था? (धार्मिक।) यह कहाँ कहा गया था कि वह एक धार्मिक मनुष्य था? तुम लोगों को लगता है कि परमेश्वर जिन्हें बुलाता है वे सब धार्मिक, और पूर्ण होते हैं, कि वे सब ऐसे लोग होते हैं जो परमेश्वर के साथ चलते हैं। तुम सिद्धान्त का पालन करते हो! तुम लोगों को स्पष्ट रूप से देखना ही चाहिए कि जब परमेश्वर किसी को परिभाषित करता है, तो वह ऐसा मनमाने ढंग से नहीं करता है। यहाँ, परमेश्वर ने यह नहीं कहा कि अब्राहम धार्मिक था। अपने हृदय में, परमेश्वर के पास प्रत्येक व्यक्ति को मापने के लिए मानक हैं। यद्यपि परमेश्वर ने यह नहीं कहा कि अब्राहम किस प्रकार का व्यक्ति था, फिर भी उसके आचरण की दृष्टि से, अब्राहम को परमेश्वर में किस प्रकार का विश्वास था? क्या यह थोड़ा अमूर्त था? या उसे अत्यधिक विश्वास था? नहीं, उसे नहीं था! उसकी हँसी और विचार दर्शाते हैं कि वह कौन था, इसलिए तुम लोगों का यह विश्वास कि वह धार्मिक था, तुम्हारी कल्पना की उपज मात्र है, यह सिद्धान्त को आँख मूँदकर लागू करना है, यह गैरज़िम्मेदार मूल्यांकन है। क्या परमेश्वर ने अब्राहम की हँसी और उसके हाव-भाव देखे थे? क्या वह उनके बारे में जानता था? परमेश्वर जानता था। परंतु परमेश्वर ने जो करने का उसने संकल्प लिया था, क्या वह उसे बदल देता? नहीं! जब परमेश्वर ने योजना बनाई और संकल्प लिया कि वह इस मनुष्य को चुनेगा, तो यह संपन्न हो गया। मनुष्य के विचार और उसका आचरण परमेश्वर को रत्ती भर भी न तो प्रभावित करेगा, न ही कोई विघ्न डाल पायेगा; परमेश्वर अपनी योजना मनमाने ढंग से नहीं बदलेगा, वह मनुष्य के आचरण के कारण, यहाँ तक कि उस आचरण के कारण भी जो अज्ञानी हो सकता है, अपनी योजना को न ही बदलेगा न तो उलट-पलट करेगा। तो, उत्पत्ति 17:21-22 में क्या लिखा है? "परन्तु मैं अपनी वाचा इसहाक ही के साथ बाँधूँगा जो सारा से अगले वर्ष के इसी नियुक्त समय में उत्पन्न होगा। तब परमेश्वर ने अब्राहम से बातें करनी बन्द की और उसके पास से ऊपर चढ़ गया।" अब्राहम जो सोचता और कहता था, परमेश्वर ने उस पर रत्ती भर ध्यान नहीं दिया। उसके द्वारा अवहेलना करने का क्या कारण था? कारण यह था कि उस समय परमेश्वर ने यह नहीं चाहा था कि मनुष्य को अत्यधिक विश्वास हो, या वह परमेश्वर के बारे में अत्यधिक ज्ञान अर्जित करने में समर्थ हो, या, इतना ही नहीं, वह परमेश्वर द्वारा जो किया और कहा गया था, उसे समझ पाए। इस प्रकार, उसने यह नहीं माँगा कि उसने जो करने का संकल्प लिया था, या उसने जिन लोगों को चुनना निर्धारित किया था, या उसके कार्यों के सिद्धांतों को मनुष्य पूरी तरह समझे, क्योंकि मनुष्य की आध्यात्मिक कद-काठी निरी अपर्याप्त थी। उस समय, अब्राहम ने जो कुछ भी किया और जैसा भी उसका चाल-चलन था, उसे परमेश्वर ने सामान्य माना। उसने न निंदा की या न ही फटकार लगाई, बल्कि बस इतना कहा : "इसहाक सारा से अगले वर्ष के इसी नियुक्त समय में उत्पन्न होगा।" इन वचनों की उसकी घोषणा के बाद, परमेश्वर के लिए, यह विषय कदम-दर-कदम सत्य होता गया; परमेश्वर की नज़रों में, वह जिसे उसकी योजना के अनुसार संपन्न किया जाना था, वह पहले ही प्राप्त कर लिया गया था। इसकी व्यवस्थाएँ पूरी करने के बाद, परमेश्वर चला गया। मनुष्य जो करता या सोचता है, मनुष्य जो समझता है, मनुष्य की योजनाएँ—इनमें से किसी का भी परमेश्वर से कोई संबंध नहीं है। सब कुछ परमेश्वर की योजना के अनुसार, परमेश्वर द्वारा नियत समयों और चरणों के अनुरूप आगे बढ़ता है। परमेश्वर के कार्य का सिद्धांत ऐसा ही है। मनुष्य जो कुछ भी सोचता या जानता है, परमेश्वर उसमें हस्तक्षेप नहीं करता है, तो भी महज़ इसलिए कि मनुष्य मानता या समझता नहीं है, वह न तो अपनी योजना को त्यागता या न ही अपने कार्य को तजता है। इस प्रकार तथ्यों को परमेश्वर की योजना और विचारों के अनुसार संपन्न किया जाता है। यह वही है जो हम बाइबल में देखते हैं : परमेश्वर ने इसहाक को उस समय जन्म लेने दिया जो उसने नियत किया था। क्या तथ्यों से यह सिद्ध होता है कि मनुष्य के व्यवहार और आचरण ने परमेश्वर के कार्य में रुकावट डाली? उन्होंने परमेश्वर के कार्य में रुकावट नहीं डाली! क्या परमेश्वर में मनुष्य के थोड़े-से विश्वास ने, और परमेश्वर के बारे में उसकी धारणाओं और कल्पनाओं ने परमेश्वर के कार्य को प्रभावित किया? नहीं, उन्होंने नहीं किया! ज़रा-सा भी नहीं! परमेश्वर की प्रबंधन योजना किसी भी मनुष्य, विषय, या परिवेश से अप्रभावित रहती है। वह जो भी करने का संकल्प लेता है, वह सब समय पर तथा उसकी योजना के अनुसार पूर्ण और संपन्न किया जाएगा, और उसके कार्य में कोई भी मनुष्य दख़ल नहीं दे सकता है। परमेश्वर मनुष्य की नासमझी और अज्ञानता के कुछ निश्चित पहलुओं को, और यहाँ तक अपने प्रति मनुष्य के प्रतिरोध और धारणाओं के कुछ निश्चित पहलुओं को भी अनदेखा कर देता है; और चाहे कुछ भी हो वह कार्य करता है जो उसे करना ही है। यह परमेश्वर का स्वभाव है, और उसकी सर्वशक्तिमत्ता का प्रतिबिंब है।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II

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