प्रभु की वापसी के बारे में, बाइबल स्पष्ट रूप से कहती है, "उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत और न पुत्र, परन्तु केवल पिता" (मत्ती 24:36)। कोई नहीं जानता कि प्रभु कब आएगा, फिर भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया इस बात की गवाही दे रही है कि प्रभु यीशु पहले ही लौट चुका है। आप यह कैसे जानते हैं?
संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"आधी रात को धूम मची: 'देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो'" (मत्ती 25:6)।
"देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)।
"मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं" (यूहन्ना 10:27)।
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
चूँकि हम परमेश्वर के पदचिह्नों की खोज कर रहे हैं, इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है कि हम परमेश्वर की इच्छा, उसके वचन और कथनों की खोज करें—क्योंकि जहाँ कहीं भी परमेश्वर द्वारा बोले गए नए वचन हैं, वहाँ परमेश्वर की वाणी है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर के पदचिह्न हैं, वहाँ परमेश्वर के कर्म हैं। जहाँ कहीं भी परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वहाँ परमेश्वर प्रकट होता है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर प्रकट होता है, वहाँ सत्य, मार्ग और जीवन विद्यमान होता है। परमेश्वर के पदचिह्नों की तलाश में तुम लोगों ने इन वचनों की उपेक्षा कर दी है कि "परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है।" और इसलिए, बहुत-से लोग सत्य को प्राप्त करके भी यह नहीं मानते कि उन्हें परमेश्वर के पदचिह्न मिल गए हैं, और वे परमेश्वर के प्रकटन को तो बिलकुल भी स्वीकार नहीं करते। कितनी गंभीर ग़लती है! परमेश्वर के प्रकटन का समाधान मनुष्य की धारणाओं से नहीं किया जा सकता, और परमेश्वर मनुष्य के आदेश पर तो बिलकुल भी प्रकट नहीं हो सकता। परमेश्वर जब अपना कार्य करता है, तो वह अपनी पसंद और अपनी योजनाएँ बनाता है; इसके अलावा, उसके अपने उद्देश्य और अपने तरीके हैं। वह जो भी कार्य करता है, उसके बारे में उसे मनुष्य से चर्चा करने या उसकी सलाह लेने की आवश्यकता नहीं है, और अपने कार्य के बारे में हर-एक व्यक्ति को सूचित करने की आवश्यकता तो उसे बिलकुल भी नहीं है। यह परमेश्वर का स्वभाव है, जिसे हर व्यक्ति को पहचानना चाहिए। यदि तुम लोग परमेश्वर के प्रकटन को देखने और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करने की इच्छा रखते हो, तो तुम लोगों को पहले अपनी धारणाओं को त्याग देना चाहिए। तुम लोगों को यह माँग नहीं करनी चाहिए कि परमेश्वर ऐसा करे या वैसा करे, तुम्हें उसे अपनी सीमाओं और अपनी धारणाओं तक सीमित तो बिलकुल भी नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, तुम लोगों को यह पूछना चाहिए कि तुम्हें परमेश्वर के पदचिह्नों की तलाश कैसे करनी है, तुम्हें परमेश्वर के प्रकटन को कैसे स्वीकार करना है, और तुम्हें परमेश्वर के नए कार्य के प्रति कैसे समर्पण करना है। मनुष्य को ऐसा ही करना चाहिए। चूँकि मनुष्य सत्य नहीं है, और उसके पास भी सत्य नहीं है, इसलिए उसे खोजना, स्वीकार करना और आज्ञापालन करना चाहिए।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 1: परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है
आज परमेश्वर ने नया कार्य किया है। हो सकता है, तुम इन वचनों को स्वीकार न कर पाओ और वे तुम्हें अजीब लगें, पर मैं तुम्हें सलाह दूँगा कि तुम अपनी स्वाभाविकता प्रकट मत करो, क्योंकि केवल वे ही सत्य को पा सकते हैं, जो परमेश्वर के समक्ष धार्मिकता के लिए सच्ची भूख-प्यास रखते हैं, और केवल वे ही परमेश्वर द्वारा प्रबुद्ध किए जा सकते हैं और उसका मार्गदर्शन पा सकते हैं जो वास्तव में धर्मनिष्ठ हैं। परिणाम संयम और शांति के साथ सत्य की खोज करने से मिलते हैं, झगड़े और विवाद से नहीं। जब मैं यह कहता हूँ कि "आज परमेश्वर ने नया कार्य किया है," तो मैं परमेश्वर के देह में लौटने की बात कर रहा हूँ। शायद ये वचन तुम्हें व्याकुल न करते हों; शायद तुम इनसे घृणा करते हो; या शायद ये तुम्हारे लिए बड़े रुचिकर हों। चाहे जो भी मामला हो, मुझे आशा है कि वे सब, जो परमेश्वर के प्रकट होने के लिए वास्तव में लालायित हैं, इस तथ्य का सामना कर सकते हैं और इसके बारे में झटपट निष्कर्षों पर पहुँचने के बजाय इसकी सावधानीपूर्वक जाँच कर सकते हैं; जैसा कि बुद्धिमान व्यक्ति को करना चाहिए।
ऐसी चीज़ की जाँच-पड़ताल करना कठिन नहीं है, परंतु इसके लिए हममें से प्रत्येक को इस सत्य को जानने की ज़रूरत है: जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर का सार होगा और जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर की अभिव्यक्ति होगी। चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उस कार्य को सामने लाएगा, जो वह करना चाहता है, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है और वह मनुष्य के लिए सत्य को लाने, उसे जीवन प्रदान करने और उसे मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस देह में परमेश्वर का सार नहीं है, वह निश्चित रूप से देहधारी परमेश्वर नहीं है; इसमें कोई संदेह नहीं। अगर मनुष्य यह पता करना चाहता है कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, तो इसकी पुष्टि उसे उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव और उसके द्वारा बोले गए वचनों से करनी चाहिए। इसे ऐसे कहें, व्यक्ति को इस बात का निश्चय कि यह देहधारी परमेश्वर है या नहीं और कि यह सही मार्ग है या नहीं, उसके सार से करना चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने की कुंजी कि यह देहधारी परमेश्वर की देह है या नहीं, उसके बाहरी स्वरूप के बजाय उसके सार (उसका कार्य, उसके कथन, उसका स्वभाव और कई अन्य पहलू) में निहित है। यदि मनुष्य केवल उसके बाहरी स्वरूप की ही जाँच करता है, और परिणामस्वरूप उसके सार की अनदेखी करता है, तो इससे उसके अनाड़ी और अज्ञानी होने का पता चलता है।
— "वचन देह में प्रकट होता है" की 'प्रस्तावना' से उद्धृत
परमेश्वर मौन है, और हमारे सामने कभी प्रकट नहीं हुआ, फिर भी उसका कार्य कभी नहीं रुका है। वह पूरी पृथ्वी का सर्वेक्षण करता है, हर चीज़ पर नियंत्रण रखता है, और मनुष्य के सभी वचनों और कर्मों को देखता है। वह अपना प्रबंधन नपे-तुले कदमों के साथ और अपनी योजना के अनुसार, चुपचाप और नाटकीय प्रभाव के बिना करता है, फिर भी उसके कदम, एक-एक करके, हमेशा मनुष्यों के निकट बढ़ते जाते हैं, और उसका न्याय का आसन बिजली की रफ्तार से ब्रह्मांड में स्थापित होता है, जिसके बाद हमारे बीच उसके सिंहासन का तुरंत अवरोहण होता है। वह कैसा आलीशान दृश्य है, कितनी भव्य और गंभीर झाँकी! एक कपोत के समान, और एक गरजते हुए सिंह के समान, पवित्र आत्मा हम सबके बीच आता है। वह बुद्धि है, वह धार्मिकता और प्रताप है, और अधिकार से संपन्न और प्रेम और करुणा से भरा हुआ वह चुपके से हमारे बीच आता है। कोई उसके आगमन के बारे में नही जानता, कोई उसके आगमन का स्वागत नहीं करता, और इतना ही नहीं, कोई नहीं जानता है कि वह क्या करने वाला है। मनुष्य का जीवन पहले जैसा चलता रहता है; उसका हृदय नहीं बदलता, और दिन हमेशा की तरह बीतते जाते हैं। परमेश्वर अन्य मनुष्यों की तरह एक मनुष्य के रूप में, एक सबसे महत्वहीन अनुयायी की तरह और एक साधारण विश्वासी के समान रहता है। उसके पास अपने काम-काज हैं, अपने लक्ष्य हैं, और इससे भी बढ़कर, उसमें दिव्यता है, जो साधारण मनुष्यों में नहीं है। किसी ने भी उसकी दिव्यता की मौजूदगी पर ध्यान नहीं दिया है, और किसी ने भी उसके सार और मनुष्य के सार के बीच का अंतर नहीं समझा है। हम उसके साथ, बिना किसी बंधन और भय के, मिलकर रहते हैं, क्योंकि हमारी दृष्टि में वह एक महत्वहीन विश्वासी से अधिक कुछ नही है। वह हमारी हर चाल देखता है, और हमारे सभी विचार और अवधारणाएँ उसके सामने बेपर्दा हैं। कोई भी उसके अस्तित्व में रुचि नहीं लेता, कोई भी उसके कार्य के बारे में कोई कल्पना नहीं करता, और इससे भी बढ़कर, किसी को उसकी पहचान के बारे में रत्ती भर भी संदेह नहीं है। हम बस अपने-अपने काम में लगे रहते हैं, मानो उसका हमसे कुछ लेना-देना न हो ...
संयोगवश, पवित्र आत्मा उसके "माध्यम से" वचनों का एक अंश व्यक्त करता है, और भले ही यह बहुत अनपेक्षित महसूस होता हो, फिर भी हम इसे परमेश्वर से आने वाला कथन समझते हैं, और परमेश्वर की ओर से आया मानकर तुरंत उसे स्वीकार कर लेते हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि चाहे इन वचनों को कोई भी व्यक्त करता हो, यदि ये पवित्र आत्मा से आते हैं, तो हमें उन्हें स्वीकार करना चाहिए, नकारना नहीं चाहिए। अगला कथन मेरे माध्यम से आ सकता है, या तुम्हारे माध्यम से, या किसी अन्य के माध्यम से। वह कोई भी हो, सब परमेश्वर का अनुग्रह है। परंतु यह व्यक्ति चाहे जो भी हो, हमें इसकी आराधना नहीं करनी चाहिए, क्योंकि चाहे कुछ भी हो, यह संभवतः परमेश्वर नहीं हो सकता; न ही हम किसी भी तरह से ऐसे किसी साधारण व्यक्ति को अपने परमेश्वर के रूप में चुन सकते हैं। हमारा परमेश्वर बहुत महान और सम्माननीय है; ऐसा कोई महत्वहीन व्यक्ति उसकी जगह कैसे ले सकता है? और तो और, हम सब परमेश्वर के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं, ताकि वह आकर हमें वापस स्वर्ग के राज्य में ले जाए, इसलिए कोई इतना महत्वहीन व्यक्ति कैसे इतना महत्वपूर्ण और कठिन कार्य करने में सक्षम हो सकता है? यदि प्रभु दोबारा आता है, तो उसे सफ़ेद बादल पर आना चाहिए, ताकि सभी लोग उसे देख सकें। वह कितना महिमामय होगा! यह कैसे संभव है कि वह चुपके से साधारण मनुष्यों के एक समूह में छिप जाए?
और फिर भी, लोगों के बीच छिपा हुआ यही वह साधारण मनुष्य है, जो हमें बचाने का नया काम कर रहा है। वह हमें कोई सफाई नहीं देता, न ही वह हमें यह बताता है कि वह क्यों आया है, वह केवल नपे-तुले कदमों से और अपनी योजना के अनुसार उस कार्य को करता है, जिसे करने का वह इरादा रखता है। उसके वचन और कथन अब ज्यादा बार सुनाई देते हैं। सांत्वना देने, उत्साह बढ़ाने, स्मरण कराने और चेतावनी देने से लेकर डाँटने-फटकारने और अनुशासित करने तक; दयालु और नरम स्वर से लेकर प्रचंड और प्रतापी वचनों तक—यह सब मनुष्य पर दया करता है और उसमें कँपकँपी भरता है। जो कुछ भी वह कहता है, वह हमारे अंदर गहरे छिपे रहस्यों पर सीधे चोट करता है; उसके वचन हमारे हृदयों में डंक मारते हैं, हमारी आत्माओं में डंक मारते हैं, और हमें असहनीय शर्म से भर देते हैं, हम समझ नहीं पाते कि कहाँ मुँह छिपाएँ। हम सोचने लगते हैं कि इस व्यक्ति के हृदय का परमेश्वर हमसे वास्तव में प्रेम करता भी है या नहीं, और वास्तव में उसका इरादा क्या है। शायद ये पीड़ाएँ सहने के बाद ही हमें स्वर्गारोहण कराया जा सकता हो? अपने मस्तिष्क में हम गणना कर रहे हैं ... आने वाली मंजिल के बारे में और अपनी भावी नियति के बारे में। फिर भी, पहले की तरह, हममें से कोई विश्वास नहीं करता कि हमारे बीच कार्य करने के लिए परमेश्वर पहले ही देहधारण कर चुका है। भले ही वह इतने लंबे समय तक हमारे साथ रहा हो, भले ही वह हमसे आमने-सामने पहले ही इतने सारे वचन बोल चुका हो, फिर भी हम इतने साधारण व्यक्ति को अपने भविष्य का परमेश्वर स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं, और इस मामूली व्यक्ति को अपने भविष्य और नियति का नियंत्रण सौंपने को तो हम बिलकुल भी तैयार नहीं हैं। उससे हम जीवन के जल की अंतहीन आपूर्ति का आनंद लेते हैं, और उसके माध्यम से हम परमेश्वर के आमने-सामने रहते हैं। फिर भी हम केवल स्वर्ग में मौजूद प्रभु यीशु के अनुग्रह के लिए धन्यवाद देते हैं, और हमने कभी इस साधारण व्यक्ति की भावनाओं पर ध्यान नहीं दिया, जो दिव्यता से युक्त है। फिर भी वह पहले की तरह विनम्रता से देह में छिपे रहकर अपना कार्य करता है, अपने अंतर्मन की वाणी व्यक्त करता है, मानो वह इंसान की अस्वीकृति से बेख़बर हो, मानो वह इंसान के बचकानेपन और अज्ञानता को हमेशा के लिए क्षमा कर रहा हो, और अपने प्रति इंसान के अपमानजनक रवैये के प्रति हमेशा के लिए सहिष्णु हो।
हमारे बिना जाने ही यह मामूली व्यक्ति हमें परमेश्वर के कार्य के एक कदम के बाद दूसरे कदम में ले गया है। हम अनगिनत परीक्षणों से गुजरते हैं, अनगिनत ताड़नाएँ सहते हैं और मृत्यु द्वारा परखे जाते हैं। हम परमेश्वर के धार्मिक और प्रतापी स्वभाव के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं, उसके प्रेम और करुणा का आनंद भी लेते हैं; परमेश्वर के महान सामर्थ्य और बुद्धि की समझ हासिल करते हैं, परमेश्वर की सुंदरता निहारते हैं, और मनुष्य को बचाने की परमेश्वर की उत्कट इच्छा देखते हैं। इस साधारण मनुष्य के वचनों में हम परमेश्वर के स्वभाव और सार को जान जाते है; परमेश्वर की इच्छा समझ जाते हैं, मनुष्य की प्रकृति और उसका सार जान जाते हैं, और हम उद्धार और पूर्णता का मार्ग देख लेते हैं। उसके वचन हमारी "मृत्यु" का कारण बनते हैं, और वे हमारे "पुनर्जन्म" का कारण भी बनते हैं; उसके वचन हमें दिलासा देते हैं, लेकिन हमें ग्लानि और कृतज्ञता की भावना के साथ मिटा भी देते हैं; उसके वचन हमें आनंद और शांति देते हैं, परंतु अपार पीड़ा भी देते हैं। कभी-कभी हम उसके हाथों में वध हेतु मेमनों के समान होते हैं; कभी-कभी हम उसकी आँख के तारे के समान होते हैं और उसके कोमल प्रेम का आनंद उठाते हैं; कभी-कभी हम उसके शत्रु के समान होते हैं और उसकी आँखों के सामने उसके कोप द्वारा भस्म कर दिए जाते हैं। हम उसके द्वारा बचाई गई मानवजाति हैं, हम उसकी दृष्टि में भुनगे हैं, और हम वे खोए हुए मेमने हैं, जिन्हें ढूँढ़ने में वह दिन-रात लगा रहता है। वह हम पर दया करता है, वह हमसे नफ़रत करता है, वह हमें ऊपर उठाता है, वह हमें दिलासा देता है और प्रोत्साहित करता है, वह हमारा मार्गदर्शन करता है, वह हमें प्रबुद्ध करता है, वह हमें ताड़ना देता है और हमें अनुशासित करता है, यहाँ तक कि वह हमें शाप भी देता है। रात हो या दिन, वह कभी हमारी चिंता करना बंद नहीं करता, वह रात-दिन हमारी सुरक्षा और परवाह करता है, कभी हमारा साथ नहीं छोड़ता, बल्कि हमारे लिए अपने हृदय का रक्त बहाता है और हमारे लिए हर कीमत चुकाता है। इस छोटी और साधारण-सी देह के वचनों में हमने परमेश्वर की संपूर्णता का आनंद लिया है और उस मंजिल को देखा है, जो परमेश्वर ने हमें प्रदान की है। इसके बावजूद, थोथा घमंड अभी भी हमारे हृदय को परेशान करता है, और हम अभी भी ऐसे किसी व्यक्ति को अपने परमेश्वर के रूप में स्वीकार करने के लिए सक्रिय रूप से तैयार नहीं हैं। यद्यपि उसने हमें बहुत अधिक मन्ना, बहुत अधिक आनंद दिया है, किंतु इनमें से कुछ भी हमारे हृदय में प्रभु का स्थान नहीं ले सकता। हम इस व्यक्ति की विशिष्ट पहचान और हैसियत को बड़ी अनिच्छा से ही स्वीकार करते हैं। जब तक वह हमसे यह स्वीकार करने के लिए कहने हेतु अपना मुँह नहीं खोलता कि वह परमेश्वर है, तब तक हम स्वयं उसे शीघ्र आने वाले परमेश्वर के रूप में कभी स्वीकार नहीं करेंगे, जबकि वह हमारे बीच बहुत लंबे समय से काम करता आ रहा है।
विभिन्न तरीकों और परिप्रेक्ष्यों के उपयोग द्वारा हमें इस बारे में सचेत करते हुए कि हमें क्या करना चाहिए, और साथ ही अपने हृदय को वाणी प्रदान करते हुए, परमेश्वर अपने कथन लगातार रखता है। उसके वचनों में जीवन-सामर्थ्य है, वे हमें वह मार्ग दिखाते हैं जिस पर हमें चलना चाहिए, और हमें यह समझने में सक्षम बनाते हैं कि सत्य क्या है। हम उसके वचनों से आकर्षित होने लगते हैं, हम उसके बोलने के लहजे और तरीके पर ध्यान केंद्रित करने लगते हैं, और अवचेतन रूप में इस साधारण व्यक्ति की अंतरतम भावनाओं में रुचि लेना आरंभ कर देते हैं। वह हमारी ओर से काम करने में अपने हृदय का रक्त बहाता है, हमारे लिए नींद और भूख त्याग देता है, हमारे लिए रोता है, हमारे लिए आहें भरता है, हमारे लिए बीमारी में कराहता है, हमारी मंज़िल और उद्धार के लिए अपमान सहता है, और हमारी संवेदनहीनता और विद्रोहशीलता के कारण उसका हृदय आँसू बहाता है औ लहूलुहान हो जाता है। ऐसा स्वरूप किसी साधारण व्यक्ति का नहीं हो सकता, न ही यह किसी भ्रष्ट मनुष्य में हो सकता है या उसके द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। वह जो सहनशीलता और धैर्य दिखाता है, वह किसी साधारण मनुष्य में नहीं पाया जाता, और उसके जैसा प्रेम भी किसी सृजित प्राणी में नहीं है। उसके अलावा कोई भी हमारे समस्त विचारों को नहीं जान सकता, या हमारी प्रकृति और सार को स्पष्ट और पूर्ण रूप से नहीं समझ सकता, या मानवजाति की विद्रोहशीलता और भ्रष्टता का न्याय नहीं कर सकता, या इस तरह से स्वर्ग के परमेश्वर की ओर से हमसे बातचीत या हमारे बीच कार्य नहीं कर सकता। उसके अलावा किसी में परमेश्वर का अधिकार, बुद्धि और गरिमा नहीं है; उसमें परमेश्वर का स्वभाव और स्वरूप अपनी संपूर्णता में प्रकट होते हैं। उसके अलावा कोई हमें मार्ग नहीं दिखा सकता या हमारे लिए प्रकाश नहीं ला सकता। उसके अलावा कोई भी परमेश्वर के उन रहस्यों को प्रकट नहीं कर सकता, जिन्हें परमेश्वर ने सृष्टि के आरंभ से अब तक प्रकट नहीं किया है। उसके अलावा कोई हमें शैतान के बंधन और हमारे भ्रष्ट स्वभाव से नहीं बचा सकता। वह परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करता है। वह संपूर्ण मानवजाति के प्रति परमेश्वर के अंतर्तम, परमेश्वर के प्रोत्साहनों और परमेश्वर के न्याय के सभी वचनों को व्यक्त करता है। उसने एक नया युग, एक नया काल आरंभ किया है, और एक नए स्वर्ग और पृथ्वी और नए कार्य में ले गया है, और हमारे द्वारा अस्पष्टता में बिताए जा रहे जीवन का अंत करते हुए और हमारे पूरे अस्तित्व को उद्धार के मार्ग को पूरी स्पष्टता से देखने में सक्षम बनाते हुए हमारे लिए आशा लेकर आया है। उसने हमारे संपूर्ण अस्तित्व को जीत लिया है और हमारे हृदय प्राप्त कर लिए हैं। उस क्षण से हमारे मन सचेत हो गए हैं, और हमारी आत्माएँ पुर्नजीवित होती लगती हैं : क्या यह साधारण, महत्वहीन व्यक्ति, जो हमारे बीच रहता है और जिसे हमने लंबे समय से तिरस्कृत किया है—ही प्रभु यीशु नहीं है; जो सोते-जागते हमेशा हमारे विचारों में रहता है और जिसके लिए हम रात-दिन लालायित रहते हैं? यह वही है! यह वास्तव में वही है! यह हमारा परमेश्वर है! यह सत्य, मार्ग और जीवन है! इसने हमें फिर से जीने और ज्योति देखने लायक बनाया है, और हमारे हृदयों को भटकने से रोका है। हम परमेश्वर के घर लौट आए हैं, हम उसके सिंहासन के सामने लौट आए हैं, हम उसके आमने-सामने हैं, हमने उसका मुखमंडल देखा है, और हमने आगे का मार्ग देखा है। इस समय हमारे हृदय परमेश्वर द्वारा पूरी तरह से जीत लिए गए हैं; अब हमें संदेह नहीं है कि वह कौन है, अब हम उसके कार्य और वचन का विरोध नहीं करते, और अब हम उसके सामने पूरी तरह से दंडवत हैं। हम अपने शेष जीवन में परमेश्वर के पदचिह्नों का अनुसरण करने, और उसके द्वारा पूर्ण किए जाने, और उसके अनुग्रह का बदला चुकाने, और हमारे प्रति उसके प्रेम का बदला चुकाने, और उसके आयोजनों और व्यवस्थाओं का पालन करने, और उसके कार्य में सहयोग करने, और उसके द्वारा सौंपे जाने वाला हर कार्य पूरा करने के लिए सब-कुछ करने से अधिक कुछ नहीं चाहते।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 4: परमेश्वर के प्रकटन को उसके न्याय और ताड़ना में देखना
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?