सीसीपी और धार्मिक दुनिया सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा और विरोध करने में, कई अफवाहों और भ्रांतियों को फैलाते हुए, उन्मत्त रही है। परमेश्वर उन लोगों के साथ कैसा व्यवहार करेगा, जो इन अफवाहों और कुरीतियों को आँखें मूँद कर स्वीकार कर लेते हैं, और सही मार्ग की तलाश और जाँच करने का कोई प्रयास नहीं करते हैं? उनका अंत किस तरह का होगा?

14 मार्च, 2021

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:

"मेरे ज्ञान के न होने से मेरी प्रजा नष्‍ट हो गई" (होशे 4:6)

"परन्तु मूढ़ लोग निर्बुद्धि होने के कारण मर जाते हैं" (नीतिवचन 10:21)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:

जो लोग सत्य को सुनकर अपनी गर्दन ना में हिलाते हैं, जो मौत की बातें सुनकर अत्यधिक मुस्कराते हैं, वे शैतान की संतान हैं; और नष्ट कर दी जाने वाली वस्तुएँ हैं। ऐसे कई लोग कलीसिया में मौजूद हैं, जिनमें कोई विवेक नहीं है। और जब कुछ कपटपूर्ण घटित होता है, तो वे अप्रत्याशित रूप से शैतान के पक्ष में जा खड़े होते हैं। जब उन्हें शैतान का अनुचर कहा जाता है तो उन्हें लगता है कि उनके साथ अन्याय हुआ है। यद्यपि लोग कह सकते हैं कि उनमें विवेक नहीं है, वे हमेशा उस पक्ष में खड़े होते हैं जहाँ सत्य नहीं होता है, वे संकटपूर्ण समय में कभी भी सत्य के पक्ष में खड़े नहीं होते हैं, वे कभी भी सत्य के पक्ष में खड़े होकर दलील पेश नहीं करते हैं। क्या उनमें सच में विवेक का अभाव है? वे अनपेक्षित ढंग से शैतान का पक्ष क्यों लेते हैं? वे कभी भी एक भी शब्द ऐसा क्यों नहीं बोलते हैं जो निष्पक्ष हो या सत्य के समर्थन में तार्किक हो? क्या ऐसी स्थिति वाकई उनके क्षणिक भ्रम के परिणामस्वरूप पैदा हुई है? लोगों में विवेक की जितनी कमी होगी, वे सत्य के पक्ष में उतना ही कम खड़ा हो पाएँगे। इससे क्या ज़ाहिर होता है? क्या इससे यह ज़ाहिर नहीं होता कि विवेकशून्य लोग बुराई से प्रेम करते हैं? क्या इससे यह ज़ाहिर नहीं होता कि वे शैतान की निष्ठावान संतान हैं? ऐसा क्यों है कि वे हमेशा शैतान के पक्ष में खड़े होकर उसी की भाषा बोलते हैं? उनका हर शब्द और कर्म, और उनके चेहरे के हाव-भाव, यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं कि वे सत्य के किसी भी प्रकार के प्रेमी नहीं हैं; बल्कि, वे ऐसे लोग हैं जो सत्य से घृणा करते हैं। शैतान के साथ उनका खड़ा होना यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि शैतान इन तुच्छ इब्लीसों को वाकई में प्रेम करता है जो शैतान की खातिर लड़ते हुए अपना जीवन व्यतीत कर देते हैं। क्या ये सभी तथ्य पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी

कुछ लोगों की पहली प्रतिक्रिया क्या होती है जब वे परमेश्वर के बारे में कोई अफवाह या अपयश की बात सुनते हैं? उनकी पहली प्रतिक्रिया यह होती है कि ये अफवाहें सही हैं या नहीं, इनका कोई अस्तित्व है या नहीं, और तब वे प्रतीक्षा करके देखने वाला रवैया अपनाते हैं। और फिर वे सोचने लगते हैं : इसे सत्यापित करने का कोई तरीका नहीं है, क्या वाकई ऐसा हुआ है? यह अफवाह सच है या नहीं? हालाँकि ऐसे लोग ऊपरी तौर पर नहीं दिखाते, मन ही मन संदेह करने लगते हैं, वे पहले ही परमेश्वर पर संदेह करना और परमेश्वर को नकारना शुरू कर चुके होते हैं। ऐसी प्रवृत्ति और दृष्टिकोण का सार क्या है? क्या यह विश्वासघात नहीं है? जबतक उनका सामना किसी समस्या से नहीं होता, तुम ऐसे लोगों का दृष्टिकोण नहीं जान पाते; ऐसा प्रतीत होता है जैसे परमेश्वर से उनका कोई टकराव नहीं है, मानो वे परमेश्वर को शत्रु नहीं मानते। हालाँकि, जैसे ही उनके सामने कोई समस्या आती है, वे तुरंत शैतान के साथ खड़े होकर परमेश्वर का विरोध करने लगते हैं। यह क्या बताता है? यह बताता है कि मनुष्य और परमेश्वर विरोधी हैं! ऐसा नहीं है कि परमेश्वर मनुष्य को अपना शत्रु मानता है, बल्कि मनुष्य का सार ही अपने आप में परमेश्वर के प्रति शत्रुतापूर्ण है। चाहे कोई व्यक्ति कितने ही लम्बे समय से परमेश्वर का अनुसरण करता रहा हो, उसने कितनी ही कीमत चुकाई हो; वह कैसे भी परमेश्वर की स्तुति करता हो, कैसे भी परमेश्वर का प्रतिरोध करने से स्वयं को रोकता हो, यहाँ तक कि परमेश्वर से प्रेम करने के लिए वह अपने आपसे कितनी भी सख्ती करता हो, लेकिन वह कभी भी परमेश्वर के साथ परमेश्वर के रूप में व्यवहार नहीं कर सकता। क्या यह मनुष्य के सार से निर्धारित नहीं होता? यदि तुम उसके साथ परमेश्वर जैसा व्यवहार करते हो, सचमुच मानते हो कि वह परमेश्वर है, तो क्या तब भी तुम उसपर संदेह कर सकते हो? क्या तब भी तुम्हारा हृदय उसपर कोई प्रश्नचिह्न लगा सकता है? नहीं लगा सकता, है न? इस संसार के चलन बहुत ही दुष्टतापूर्ण हैं, यह मनुष्यजाति भी बहुत बुरी है; तो ऐसा कैसे है कि उसके बारे में तुम्हारी कोई अवधारणा न हो? तुम स्वयं ही बहुत दुष्ट हो, तो ऐसा कैसे हो सकता है कि उसके बारे में तुम्हारी कोई अवधारणा न हो? फिर भी थोड़ी-सी अफवाहें और कुछ निंदा, परमेश्वर के बारे में इतनी बड़ी अवधारणाएँ उत्पन्न कर सकती हैं, और तुम्हारी कल्पना इतने सारे विचारों को उत्पन्न कर सकती हैं, जो दर्शाता है कि तुम्हारा आध्यात्मिक कद कितना अपरिपक्व है! क्या थोड़े से मच्छरों और कुछ घिनौनी मक्खियों की बस "भिनभिनाहट" ही काफी है तुम्हें धोखा देने के लिए? यह किस प्रकार का व्यक्ति है? तुम जानते हो परमेश्वर इस प्रकार के इंसान के बारे में क्या सोचता है? परमेश्वर इन लोगों से किस प्रकार व्यवहार करता है इस बारे में उसका दृष्टिकोण वास्तव में बिल्कुल स्पष्ट है। ऐसे लोगों के प्रति परमेश्वर ठंडा रुख अपनाता है—उसकी प्रवृत्ति उन पर कोई ध्यान न देना है, और इन अज्ञानी लोगों को गंभीरता से न लेना है। ऐसा क्यों है? क्योंकि अपने हृदय में उसने ऐसे लोगों को प्राप्त करने की योजना कभी नहीं बनाई जिन्होंने अंत तक उसके प्रति शत्रुतापूर्ण होने की शपथ खाई है, और जिन्होंने कभी भी परमेश्वर के अनुरूप होने का मार्ग खोजने की योजना नहीं बनाई है।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का स्वभाव और उसका कार्य जो परिणाम हासिल करेगा, उसे कैसे जानें

जो शैतान से जुड़े हैं, उन्हें शैतान के पास भेज दिया जाएगा, जबकि जो परमेश्वर से संबंधित हैं, वे निश्चित रूप से सत्य की खोज में चले जाएँगे; यह उनकी प्रकृति के अनुसार तय होता है। उन सभी को नष्ट हो जाने दो जो शैतान का अनुसरण करते हैं! इन लोगों के प्रति कोई दया-भाव नहीं दिखाया जायेगा। जो सत्य के खोजी हैं उनका भरण-पोषण होने दो और वे अपने हृदय के तृप्त होने तक परमेश्वर के वचनों में आनंद प्राप्त करें। परमेश्वर धार्मिक है; वह किसी से पक्षपात नहीं करता। यदि तुम शैतान हो, तो तुम सत्य का अभ्यास नहीं कर सकते; और यदि तुम सत्य की खोज करने वाले हो, तो यह निश्चित है कि तुम शैतान के बंदी नहीं बनोगे—इसमें कोई संदेह नहीं है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी

जो लोग विवेकशून्य हैं, वे अपनी तुच्छ चालाकी के कारण दुष्ट लोगों के हाथों विनाश को प्राप्त होंगे, और ऐसे लोग दुष्ट लोगों के द्वारा पथभ्रष्ट कर दिये जायेंगे तथा लौटकर आने में असमर्थ होंगे। इन लोगों के साथ इसी प्रकार पेश आना चाहिए, क्योंकि इन्हें सत्य से प्रेम नहीं है, क्योंकि ये सत्य के पक्ष में खड़े होने में अक्षम हैं, क्योंकि ये दुष्ट लोगों का अनुसरण करते हैं, ये दुष्ट लोगों के पक्ष में खड़े होते हैं, क्योंकि ये दुष्ट लोगों के साथ साँठ-गाँठ करते हैं और परमेश्वर की अवमानना करते हैं। वे बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि वे दुष्ट लोग दुष्टता विकीर्ण करते हैं, मगर वे अपना हृदय कड़ा कर लेते हैं और उनका अनुसरण करने के लिए सत्य के विपरीत चलते हैं। क्या ये लोग जो सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं लेकिन जो विनाशकारी और घृणास्पद कार्यों को करते हैं, दुष्टता नहीं कर रहे हैं? यद्यपि उनमें से कुछ ऐसे हैं जो अपने आप को सम्राटों की तरह पेश करते हैं और कुछ ऐसे हैं जो उनका अनुसरण करते हैं, किन्तु क्या परमेश्वर की अवहेलना करने की उनकी प्रकृति एक-सी नहीं है? उनके पास इस बात का दावा करने का क्या बहाना हो सकता है कि परमेश्वर उन्हें नहीं बचाता है? उनके पास इस बात का दावा करने का क्या बहाना हो सकता है कि परमेश्वर धार्मिक नहीं है? क्या यह उनकी अपनी दुष्टता नहीं है जो उनका विनाश कर रही है? क्या यह उनकी खुद की विद्रोहशीलता नहीं है जो उन्हें नरक में नहीं धकेल रही है? जो लोग सत्य का अभ्यास करते हैं, अंत में, उन्हें सत्य की वजह से बचा लिया जाएगा और सिद्ध बना दिया जाएगा। जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं, अंत में, वे सत्य की वजह से विनाश को आमंत्रण देंगे। ये वे अंत हैं जो उन लोगों की प्रतीक्षा में हैं जो सत्य का अभ्यास करते हैं और जो नहीं करते हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी

मसीह द्वारा बोले गए सत्य पर भरोसा किए बिना जो लोग जीवन प्राप्त करना चाहते हैं, वे पृथ्वी पर सबसे बेतुके लोग हैं, और जो मसीह द्वारा लाए गए जीवन के मार्ग को स्वीकार नहीं करते हैं, वे कोरी कल्पना में खोए हैं। और इसलिए मैं कहता हूँ कि वे लोग जो अंत के दिनों के मसीह को स्वीकार नहीं करते हैं सदा के लिए परमेश्वर की घृणा के भागी होंगे। मसीह अंत के दिनों के दौरान राज्य में जाने के लिए मनुष्य का प्रवेशद्वार है, और ऐसा कोई नहीं जो उससे कन्नी काटकर जा सके। मसीह के माध्यम के अलावा किसी को भी परमेश्वर द्वारा पूर्ण नहीं बनाया जा सकता। तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, और इसलिए तुम्हें उसके वचनों को स्वीकार करना और उसके मार्ग का पालन करना चाहिए। सत्य को प्राप्त करने में या जीवन का पोषण स्वीकार करने में असमर्थ रहते हुए तुम केवल आशीष प्राप्त करने के बारे में नहीं सोच सकते हो। मसीह अंत के दिनों में आता है ताकि वह उसमें सच्चा विश्वास करने वाले सभी लोगों को जीवन प्रदान कर सके। उसका कार्य पुराने युग को समाप्त करने और नए युग में प्रवेश करने के लिए है, और उसका कार्य वह मार्ग है जिसे उन सभी लोगों को अपनाना चाहिए जो नए युग में प्रवेश करेंगे। यदि तुम उसे पहचानने में असमर्थ हो, और इसकी बजाय उसकी भर्त्सना, निंदा, या यहाँ तक कि उसे उत्पीड़ित करते हो, तो तुम्हें अनंतकाल तक जलाया जाना तय है और तुम परमेश्वर के राज्य में कभी प्रवेश नहीं करोगे। क्योंकि यह मसीह स्वयं पवित्र आत्मा की अभिव्यक्ति है, और परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वह जिसे परमेश्वर ने पृथ्वी पर करने के लिए अपना कार्य सौंपा है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि यदि तुम वह सब स्वीकार नहीं करते हो जो अंत के दिनों के मसीह के द्वारा किया जाता है, तो तुम पवित्र आत्मा की निंदा करते हो। पवित्र आत्मा की निंदा करने वालों को जो प्रतिशोध सहना होगा वह सभी के लिए स्वत: स्पष्ट है। मैं तुम्हें यह भी बताता हूँ कि यदि तुम अंत के दिनों के मसीह का प्रतिरोध करोगे, यदि तुम अंत के दिनों के मसीह को ठुकराओगे, तो तुम्हारी ओर से परिणाम भुगतने वाला कोई अन्य नहीं होगा। इतना ही नहीं, इस दिन के बाद तुम्हें परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करने का दूसरा अवसर नहीं मिलेगा; यदि तुम अपने प्रायश्चित का प्रयास भी करते हो, तब भी तुम दोबारा कभी परमेश्वर का चेहरा नहीं देखोगे। क्योंकि तुम जिसका प्रतिरोध करते हो वह मनुष्य नहीं है, तुम जिसे ठुकरा रहे हो वह कोई अदना प्राणी नहीं है, बल्कि मसीह है। क्या तुम जानते हो कि इसके क्या परिणाम होंगे? तुमन कोई छोटी-मोटी गलती नहीं, बल्कि एक जघन्य अपराध किया होगा। और इसलिए मैं सभी को सलाह देता हूँ कि सत्य के सामने अपने जहरीले दाँत मत दिखाओ, या छिछोरी आलोचना मत करो, क्योंकि केवल सत्य ही तुम्हें जीवन दिला सकता है, और सत्य के अलावा कुछ भी तुम्हें पुनः जन्म लेने नहीं दे सकता, और न ही तुम्हें दोबारा परमेश्वर का चेहरा देखने दे सकता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रभु ने हमसे यह कहते हुए, एक वादा किया, "मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। प्रभु यीशु पुनर्जीवित हुआ और हमारे लिए एक जगह तैयार करने के लिए स्वर्ग में चढ़ा, और इसलिए यह स्थान स्वर्ग में होना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है और पृथ्वी पर ईश्वर का राज्य स्थापित कर चुका है। मुझे समझ में नहीं आता: स्वर्ग का राज्य स्वर्ग में है या पृथ्वी पर?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद: "हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी...

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