आज हम प्रभु यीशु में विश्वास करते हैं; उनके नाम को फैलाने के लिये इतना त्याग करते हैं, हर चीज़ छोड़ रहे हैं। हम स्‍वर्गिक पिता की इच्छा का पालन ही तो कर रहे हैं। इसका मतलब है कि हम पवित्र बन चुके हैं। जब प्रभु आएंगे तो वो ज़रूर हमें स्वर्ग के राज्य में स्वर्गारोहित करेंगे।

15 मार्च, 2021

उत्तर: जहां तक सवाल है कि स्वर्ग के राज्य में कौन प्रवेश कर सकता है: प्रभु यीशु ने कहा था, "जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है" (मत्ती 7:21)प्रभु यीशु ने साफ तौर पर हमसे कहा है कि जो स्वर्ग के पिता की इच्छा पूरी कर सकता है, वही स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकता है। भाइयो और बहनो, ये बात सही है कि लोग प्रभु का नाम फैलाने के लिये हर चीज़ का त्याग करते हैं, लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि वो पाप भी अधिक कर रहे हैं। पाप करने का मतलब है कि वे शैतान के साथ हैं और अभी भी गंदे और दूषित हैं। वे अभी भी परमेश्‍वर का विरोध कर सकते हैं, धोखा दे सकते हैं। मतलब ये कि वे सही मायने में शुद्ध नहीं हुए हैं। अगर उन्हें राजा बना दिया जाए, तो वे परमेश्वर के ख़िलाफ़ ही अपना राज्य बना लेंगे। ये साबित करने के लिये इतना काफी है कि उन्हें अभी भी शुद्ध और पवित्र नहीं बनाया गया है। इस तरह से परमेश्वर का विरोध करने वाले लोग स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने लायक कैसे हो सकते हैं? प्रभु के लिये त्याग करना, सुसमाचार का प्रचार करना, कलीसिया बनाना, विश्वासियों को समर्थन देना वगैरह, ये सब इंसान का अच्छा बर्ताव है। अगर लोग परमेश्वर के लिये प्यार की खातिर अच्छा बर्ताव करते हैं, वाकई परमेश्वर के लिये त्याग करते हैं, समझबूझकर परमेश्‍वर का कहा मानते हैं और उन्हें संतुष्‍ट करते हैं, अगर वे अपनी मंशा पूरी नहीं करते हैं या परमेश्वर से सौदेबाज़ी करते हैं, तो फिर इस तरह का बर्ताव अच्छा कार्य कहलाता है; परमेश्वर ऐसा बर्ताव याद रखते हैं और ऐसे लोगों को अपना आशीष देते हैं। लेकिन अगर उनका ये बर्ताव परमेश्वर से सौदेबाज़ी की कोशिश है, अपनी देह की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये है, स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिये है और इनाम के लिये है, फिर तो ऐसा बर्ताव परमेश्वर के साथ ठगी है; ऐसे लोग परमेश्वर का विरोध कर रहे हैं! इसलिये, क्या लोगों का दिखावे का ये बर्ताव इस बात का प्रमाण है कि वो ये सब स्वर्ग के पिता की इच्छा को पूरा करने के लिये कर रहे हैं? इसके मायने, क्या वे पवित्र हैं? बिल्कुल नहीं! इस तरह के दिखावे का बर्ताव, उनके पापी स्वभाव की वजह से है। परमेश्वर से सौदेबाज़ी के लिये वो ऐसा करते हैं, अपनी व्यर्थ की कामनाओं को पूरा करने के लिये ऐसा करते हैं। इससे सिद्ध होता है कि इंसान के दिल में बहुत-सी अशुद्धियां हैं। इस तरह के लोग परमेश्वर से सच्चा प्रेम और उसकी आज्ञाओं का पालन कैसे कर सकते हैं? लोग अपने पापी स्वभाव से मजबूर हैं। परमेश्वर जब कोई ऐसी बात कहते हैं जो उनकी मान्यताओं से मेल नहीं खाती, वो उनकी आलोचना शुरु कर देते हैं, उन्हें नकारते हैं और उनकी निंदा करते हैं। जब परमेश्वर उनकी परीक्षा लेते हैं, तो वे उन्हें गलत समझते हैं, उन पर आरोप लगाते हैं और उन्हें धोखा देते हैं। एक तरफ परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, दूसरी तरफ इंसान को पूजते और उसका अनुसरण करते हैं। परमेश्वर से भी पहले वे इंसान की सुनते हैं। परमेश्वर की सेवा करते हुए भी ऐसे लोग अपनी मान्यताओं पर चलते हैं, अपना गुणगान करते हैं, अपनी ही गवाही देते हैं, और परमेश्वर को अपना दुश्मन मानते हैं। इंसान अपने पापी स्वभाव की कैद में है। जैसे ही उन्हें सामर्थ्य मिलेगी, वो परमेश्वर का विरोध करेंगे और अपना राज्य स्थापित करेंगे। ऐसी ही हरकतें यहूदी मुख्य पादरियों, धर्मशास्त्रियों और फरीसियों ने की थी; जब प्रभु यीशु अपना कार्य करने आए, तो उनकी निंदा की और विरोध किया ताकि उनकी सत्ता बनी रहे। और नतीजा ये हुआ कि यहूदियों ने प्रभु यीशु के उद्धार को कभी स्वीकार नहीं किया। क्या वे परमेश्वर के विरोध में अपने राज्य की स्थापना नहीं कर रहे थे? इसलिये जो लोग दिखावे के लिये मेहनत करते हैं और अच्छा बर्ताव करते हैं, अगर उनके पापी स्वभाव में सुधार नहीं आया है, और उनके शैतानी स्वभाव की शुद्धि नहीं हुई है, तो भले ही उन्होंने कितने भी कष्ट उठाएं हों कोई भी कार्य किया हो, वे परमेश्वर की इच्छा कैसे पूरी करेंगे? जो लोग परमेश्वर की इच्छा पूरी करते हैं वही पूरी तरह से परमेश्वर की आज्ञा मानते हैं। उनका मन परमेश्वर के समान ही होता है। ऐसे लोग यकीनी तौर पर न तो परमेश्वर से विद्रोह करेंगे और न ही उनके विरुद्ध जाएंगे। ऐसे लोग ही स्वर्ग के राज्य में प्रवेश के अधिकारी हैं और उन्हें परमेश्वर की प्रतिज्ञाएं प्राप्त होती हैं।

"मर्मभेदी यादें" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: आप कहते हैं कि हमें अंतिम दिनों के परमेश्वर के न्याय के कार्य को स्वीकार करना चाहिए, क्योंकि केवल तभी हमारे भ्रष्ट शैतानी स्वभावों को शुद्ध और परिवर्तित किया जाएगा, और उसके बाद ही हम परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करेंगे। इसलिए, जैसा कि परमेश्वर द्वारा अपेक्षित है, हम विनम्र और सहनशील हैं, हम अपने शत्रुओं से प्रेम करते हैं, हम अपने क्रूस को सहन करते हैं, हम अपने शरीर को अनुशासित करते हैं, हम सांसारिक चीज़ों को त्यागते हैं, हम काम करते हैं और प्रभु के लिए प्रचार करते हैं, इत्यादि। क्या ये सभी वो परिवर्तन नहीं जो हमारे अंदर हुए हैं? क्या आप कह रहे हैं कि स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए यह फिर भी पर्याप्त नहीं है? मेरा मानना है कि जब तक हम इस तरह से प्रयास करते रहेंगे, हम पवित्र होने लगेंगे और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे।

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प्रेरित पौलुस ने कहा, "मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूँ, मैं ने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैं ने विश्‍वास की रखवाली की है। भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है" (2 तीमुथियुस 4:7-8)। हमने कई वर्षों से प्रभु पर विश्वास किया है, और हर समय, हमने इस राह पर चलने और प्रभु के लिए काम करने में पौलुस का अनुकरण किया है। हमने सुसमाचार का प्रसार और कलीसियाओं का निर्माण किया है, और हम प्रभु के नाम और प्रभु के मार्ग के प्रति एकनिष्ठ रहे हैं। कोई संदेह नहीं है कि धार्मिकता का ताज़ हमारे लिए तैयार रखा जाएगा। जब तक हम प्रभु के लिए अपने प्रयास में परिश्रमी हैं और प्रभु की वापसी की प्रतीक्षा करने में सजग हैं, हमारा स्वर्ग के राज्य में सीधे ही स्वर्गारोहण किया जाएगा। क्या आप यह कह रहे हैं कि हम जो अभ्यास करते हैं उसमें कोई त्रुटि है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद: "जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे...

प्रभु यीशु ने कहा था, "जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, 'हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्‍टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्‍चर्यकर्म नहीं किए?' तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, 'मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ'" (मत्ती 7:21-23)। जो लोग "परमेश्वर, परमेश्वर" कहते हैं, वे सभी परमेश्वर में विश्वास करते हैं और उसकी सेवा करते हैं। उन्होंने हमेशा बलिदान दिया है, खुद को खपाया है, और प्रभु के लिए कड़ी मेहनत की है, और उन्होंने सुसमाचार का प्रचार और कलीसियाओं का निर्माण किया है। यह सब करके क्या उन्होंने प्रभु की इच्छा का पालन नहीं किया है? जब प्रभु यीशु वापस आता है, तो वे प्रभु द्वारा सराहे क्यों नहीं जाएँगे, और क्यों इसके बजाय उन्हें बुराई करने वालों के रूप में निंदित किया जाएगा?

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन: मनुष्य जिस मानक से दूसरे मनुष्य को आंकता है, वह व्यवहार पर आधारित है; वे जिनका आचरण अच्छा है, धार्मिक हैं और...

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