36. पुस्तकें वितरित करने पर उत्पीड़न
एक बार 2015 की सर्दियों में मैं देर रात गए गाड़ी चलाकर परमेश्वर के वचनों की कुछ पुस्तकें वितरित करने जा रहा था। पहाड़ी सड़क के एक मोड़ पर मैंने देखा कि कुछ दूरी पर पुलिस की तीन गाड़ियां खड़ी हैं और वह आने-जाने वाले वाहनों की जाँच कर रही है। मेरे दिल की धड़कन थम गई : “अरे नहीं! मेरे पास ट्रक में सौ से ज्यादा पुस्तकें हैं। अगर पुलिस ने इन्हें देख लिया, तो मैं तो गया काम से।” लेकिन रात में हेडलाइट्स बेहद नुमायाँ होती हैं, इसलिए अगर मैं उस जगह रुककर मुड़ता, तो पुलिस निश्चित रूप से मेरी जाँच करने आ जाती। तब संयोग से बर्फ भी गिर रही थी; पहाड़ी सड़क फिसलन भरी थी, और वह एक सँकरी सड़क थी, जिससे मुड़ना बहुत मुश्किल था—मेरे पास आगे बढ़ने के अलावा कोई चारा नहीं था। बेहद घबराहट महसूस करते हुए मैंने तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना कर मेरे दिल पर नजर रखने और मुझे शांत करने में मदद करने के लिए कहा। तभी मुझे खयाल आया कि मेरे पास एक सेलफोन भी है जिससे मैं भाई-बहनों से बात करता हूँ, इसलिए मैंने तुरंत गति धीमी कर अपना सेलफोन और सिम-कार्ड नष्ट कर दिया और फिर उन्हें खिड़की से बाहर फेंक दिया। जब मैं वहाँ पहुँचा जहाँ पुलिस थी, तो उनमें से एक ने मुझसे पूछा कि ट्रक में क्या है। मैंने कहा, “आलू।” तभी दो और अधिकारी आगे आकर ट्रक पर चढ़ गए। रियरव्यू मिरर में मैंने उन्हें आलू की बोरियों पर बोरियाँ उठाते, उनके नीचे छिपे बक्सों का पता लगाते और उनमें से कई पुस्तकें निकालते देखा। मेरा दिमाग घूमने लगा, और मैंने सोचा, “बस! इस बार मैं पकड़ा गया। परमेश्वर के वचनों की ये पुस्तकें सत्य के हमारे अनुसरण के लिए बहुत महत्वपूर्ण, बहुत कीमती हैं। मुझे इनकी रक्षा करनी है, फिर चाहे मेरी जान ही क्यों न चली जाए—मैं इन्हें पुलिस के हाथों में पड़ने नहीं दे सकता।” इसलिए मैंने वहाँ से भाग जाने के लिए कार गियर में डालकर एक्सीलरेटर पूरा दबा दिया। लेकिन चूँकि बर्फ ने सड़क को बहुत चिकना बना दिया था, इसलिए पहिए फिसल गए और मैं फँस गया। तभी एक अधिकारी ने पुलिस की गाड़ी से कुछ निकालकर मेरी कार के शीशे पर फेंका, जिससे वह टूट गया। ट्रक के दोनों ओर खड़े दो अधिकारियों ने दरवाजे पकड़ लिए और दोनों खिड़कियाँ तोड़ दीं, दरवाजे खोल दिए, और फिर मुझे ट्रक से बाहर निकालने की कोशिश करते हुए मेरे सिर और शरीर पर डंडे मारते हुए पागलों की तरह मुझे पीटना शुरू कर दिया। उनमें से एक ने अंदर आकर मुझे लात मारकर जमीन पर पटक दिया, हथकड़ी डालकर दोनों तरफ से मेरे हाथ मेरे पैरों से जकड़ दिए, फिर मुझे बुरी तरह पीटा। चूँकि सर्दी का मौसम था, इसलिए सभी अधिकारी बेहद कड़े, मोटे पुलिसिया जूते पहने थे। जब उन्होंने मुझे लात मारी, तो ऐसा लगा जैसे मेरा मांस फट गया हो। फिर उन्होंने मुझे पुलिस की गाड़ी में डाल दिया, मेरे हाथ-पैर अभी भी जकड़े हुए थे, उन्होंने मुझे मेरा सिर नीचे झुकाकर आगे और पीछे की सीटों के बीच की जगह में डाल दिया। ऐसा लगा, जैसे मेरी गर्दन तड़कने वाली हो—मुझे बहुत दर्द हो रहा था, मेरे कपड़े पसीने से पूरी तरह भीग गए थे।
मेरे भीतर उथल-पुथल मची थी। मुझे नहीं पता था कि पुलिस मुझे किस तरह की यातना देगी। क्या ये मुझे पीट-पीटकर मार डालेंगे, या मुझे अपंग बना देंगे? क्या ये मुझे जेल की सजा देंगे? क्या मैं फिर कभी अपने परिवार को देख पाऊँगा? जितना मैंने इस बारे में सोचा, मैं उतना ही डर गया। मैं इस सबके बारे में सोच ही रहा था, कि अचानक मुझे एहसास हुआ कि उत्पीड़न और कठिनाई से सामना होने पर मेरे दिमाग में केवल मेरी देह और सुरक्षा थी, न कि परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए अपनी गवाही में दृढ़ कैसे रहा जाए। मैंने फौरन प्रार्थना की : “परमेश्वर, मुझे पीटे जाने और जेल भेजे जाने का डर है। कृपया मुझे आस्था दो। मैं तुम्हारे लिए अपनी गवाही में दृढ़ रहना चाहता हूँ।” प्रार्थना के बाद मुझे परमेश्वर के वचनों का एक भजन याद आया :
परीक्षण माँग करते हैं आस्था की
1 परीक्षणों से गुजरते समय लोगों का कमजोर होना, या उनके भीतर नकारात्मकता आना, या परमेश्वर के इरादों या अपने अभ्यास के मार्ग के बारे में स्पष्टता का अभाव होना सामान्य है। चाहे जो हो, तुम्हें परमेश्वर के कार्य पर आस्था होनी चाहिए, परमेश्वर को नकारना नहीं चाहिए, बिल्कुल अय्यूब की तरह। ...
2 ... लोगों का विश्वास तब आवश्यक होता है, जब कोई चीज खुली आँखों से न देखी जा सकती हो, और तुम्हारा विश्वास तब आवश्यक होता है, जब तुम अपनी धारणाएँ नहीं छोड़ पाते। जब तुम परमेश्वर के कार्य के बारे में स्पष्ट नहीं होते, तो तुमसे यही अपेक्षा की जाती है कि तुम आस्था बनाए रखो, दृढ़ रुख अपनाए रखो और अपनी गवाही में मजबूती से खड़े रहो। जब अय्यूब इस मुकाम पर पहुँचा, तो परमेश्वर उसे दिखाई दिया और उससे बोला। अर्थात्, केवल अपनी आस्था के भीतर से ही तुम परमेश्वर को देखने में समर्थ हो पाओगे, और जब तुम्हारे पास आस्था होगी तो परमेश्वर तुम्हें पूर्ण बनाएगा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जिन्हें पूर्ण बनाया जाना है उन्हें शोधन से गुजरना होगा
तब मैंने सोचा कि मैं अय्यूब के उदाहरण का अनुसरण करना चाहता हूँ और सब-कुछ परमेश्वर के हाथों में छोड़ देना चाहता हूँ। हालाँकि मैं पुलिस के चंगुल में पड़ गया था, लेकिन परमेश्वर की अनुमति के बिना वे मेरी जान नहीं ले सकते। मुझे परमेश्वर पर आस्था रखनी है, और चाहे मेरी पीड़ा कितनी भी बड़ी क्यों न हो, यहाँ तक कि मैं मर भी क्यों न जाऊँ, मुझे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में दृढ़ रहना है और शैतान को अपमानित करना है।
वे मुझे एक थाने ले गए, जहाँ दो अधिकारियों ने मेरा एक-एक पैर पकड़कर मुझे आगे घसीट लिया। मेरी पूरी पीठ फर्श से रगड़ खा रही थी और मेरे पूरे शरीर का भार हथकड़ी पर था, जो मेरी कलाई और टखनों के मांस में गड़ी जा रही थी। ऐसा लगा जैसे जोर पड़ने से मेरी कलाइयाँ तड़क रही हों। वे मुझे घसीटते हुए एक कमरे में ले गए और किसी बोरे की तरह मुझे एक कोने में पटक दिया। मेरे एक-एक अंग में इतना दर्द था कि मुझे साँस लेने में भी तकलीफ हो रही थी। थोड़ी देर बाद कुछ अधिकारी आए और मेरे सिर पर जोर से लात मारने और मुझे कुचलने लगे, और एक ने गुस्से से कहा, “तुम्हें लगता है कि तुम इतने महान हो कि धार्मिक पुस्तकें वितरित करने की हिम्मत कर रहे हो? मैं तुम्हें पीट-पीटकर मार भी सकता हूँ!” अगले घंटों में, पुलिस अधिकारी आते रहे, घिनौनी बातें करते हुए मुझे लात-घूँसे मारते रहे। उन मोटे पुलिसिया जूतों से पड़ी एक-एक लात भयंकर रूप से दर्दनाक थी। मेरे हाथ-पैर जकड़े होने के कारण मेरे पास उनसे बचने का कोई रास्ता नहीं था—मुझे बस इसे सहना था। मुझे बाइबल के ये वचन याद आए : “तुम्हें पता होना चाहिए कि ये अंत के दिन हैं। दानव और शैतान, दहाड़ते हुए शेर की तरह घूम रहे हैं और ऐसे लोगों की तलाश कर रहे हैं जिन्हें वे फाड़ खाएँ” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 28)। चीनी संविधान स्पष्ट रूप से विश्वास की स्वतंत्रता प्रदान करता है, और मैं केवल परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें वितरित करने जा रहा था। मैंने कोई कानून नहीं तोड़ा था, लेकिन पुलिस ने मुझे पकड़ लिया और वह मुझे पीटकर मार डालने की धमकी दे रही थी। कम्युनिस्ट पार्टी सचमुच एक ऐसा दानव है, जो परमेश्वर का विरोध करता है! वे मुझे इस तरह इसलिए पीट रहे थे, ताकि मैं यहूदा बन जाऊँ और परमेश्वर को धोखा दे दूँ—मैं शैतान की चालों में नहीं आ सकता था। चाहे मैं कितना भी कष्ट सहूँ, मुझे परमेश्वर पर भरोसा करना था, परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में दृढ़ रहना था और शैतान को लज्जित करना था।
मुझे इस हद तक पीटा जा रहा था कि मैं ज्यादातर समय अर्ध-चेतन अवस्था में रहता था। मुझे नहीं पता कि पुलिस ने कब मेरी हथकड़ी खोली, लेकिन जब मुझे होश आया तो मैंने देखा कि मेरे बाएँ हाथ-पैर एक-साथ बँधे थे और ठीक उसी तरह दाएँ हाथ-पैर भी बँधे थे। एक रस्सी भी मेरी गर्दन के पीछे से निकलकर कई बार मेरी जाँघों के इर्द-गिर्द लिपटी हुई थी। उन्होंने मुझे गठरी की तरह बाँधकर एक कोने पर टिका दिया था। मेरा पूरा बदन दुख रहा था, साँस लेने में दिक्कत हो रही थी और मेरा सिर दर्द से सूज गया था। अधिकारी अभी भी अंदर आ रहे थे और बिना रुके मुझे पीट रहे थे। कभी-कभी दो अधिकारी आमने-सामने खड़े हो जाते और लात मारकर मुझे फुटबॉल की तरह आगे-पीछे लुढ़काते रहते। मैं सन्न था। जब वे मुझे थोड़ा हलके-से मारते, तो मुझे महसूस ही न होता। जब वे मुझे बहुत जोर से मारते या किसी ऐसी जगह मारते जहाँ पहले से जख्म लगा हो तो मुझे थोड़ी-सी कँपकँपी होती थी, मानो मेरे बदन में बिजली दौड़ रही हो। जब मैं कभी-कभार होश में आता, तो मुझे महसूस होता कि मेरे शरीर के हर-एक हिस्से में दर्द हो रहा है। बर्फ जैसे ठंडे फर्श पर लेटा, भूखा-प्यासा और पूरे शरीर में दर्द महसूस करता हुआ, मैं सोचता कि पुलिस मेरी यह अंतहीन पिटाई कब बंद करेगी। मुझे लगता, इस यातना से तो मौत बेहतर होगी, क्योंकि कम से कम मुझे इस तरह तकलीफ तो नहीं सहनी पड़ेगी। इस नीम-बेहोशी और भ्रम की हालत में मेरे मन में अचानक यह भजन स्पष्ट रूप से कौंधा “मसीह का अनुसरण करना परमेश्वर द्वारा नियत किया गया है” : “यह परमेश्वर ने नियत किया है कि हम मसीह का अनुसरण करें और परीक्षणों एवं क्लेशों से गुजरें। अगर हम परमेश्वर से सच्चा प्रेम करते हैं तो हमें उसकी संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होना चाहिए। परीक्षणों और क्लेशों से गुजरना परमेश्वर से आशीष पाना है, और परमेश्वर कहता है कि मार्ग जितना दुरूह होगा, वह हमारे प्रेम को उतना ही ज्यादा दिखाएगा। हम आज जिस मार्ग पर चल रहे हैं उसे परमेश्वर ने ही नियत किया था। अंत के दिनों में मसीह का अनुसरण करना सबसे बड़ा आशीष है” (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ)। सही बात है। हमें इस जीवन में कितने मार्गों पर चलना है और कितना कष्ट उठाना है, यह सब परमेश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित है—इससे कोई नहीं बच सकता। इस तरह के उत्पीड़न और कठिनाई से गुजरना सतह पर एक खराब चीज लग रही थी, लेकिन वास्तव में, यह मेरे जीवन में प्रगति के लिए फायदेमंद थी और मेरी आस्था पूर्ण करने में मदद कर सकती थी। मैंने पहले भी कई खतरनाक परिस्थितियों का सामना किया है, इसलिए मैं सोचता था कि मेरे पास पहले से ही इतना आध्यात्मिक कद और आस्था है कि मैं परमेश्वर के लिए कष्ट उठा सकता हूँ और खुद को खपा सकता हूँ। लेकिन जब पुलिस की क्रूर यातना का सामना करना पड़ा, तो मैं डर गया कि मुझे पीट-पीटकर मार डाला जाएगा या अपंग बना दिया जाएगा, मुझे डर लगा कि मुझे जेल की सजा सुनाई जाएगी। मैंने जो कुछ भी सोचा, सिर्फ अपने दैहिक हितों और अपनी सुरक्षा के बारे में ही सोचा। जब चीजें बहुत दर्दनाक हो गईं, तो मैंने मरकर उनसे छुटकारा पाना चाहा। इस क्षण मैंने महसूस किया कि मेरी आस्था कितनी दयनीय थी, कि मुझमें सच्चे आध्यात्मिक कद का अभाव था, और इतना ही नहीं, मुझमें परमेश्वर के प्रति प्रेम की कमी थी। इस कठिनाई और उत्पीड़न ने मुझे बड़े लाल अजगर की दुष्ट और क्रूर राक्षसी प्रवृत्ति और ज्यादा स्पष्ट रूप से दिखा दी। कम्युनिस्ट पार्टी बाहरी लोगों के सामने डींग मारती है कि उसके यहाँ विश्वास की स्वतंत्रता है, लेकिन हकीकत में वह विश्वासियों को पागलों की तरह गिरफ्तार कर सताती है और उनके साथ दुश्मनों जैसा व्यवहार करती है। हम सभी परमेश्वर द्वारा बनाए गए हैं, इसलिए परमेश्वर पर आस्था रखना और उसकी आराधना करना सही और स्वाभाविक है, फिर भी ये पुलिस अधिकारी विश्वासियों को गिरफ्तार कर मौत के दरवाजे तक ले आते हैं। कम्युनिस्ट पार्टी सचमुच परमेश्वर का विरोध करने वाला दानव है! मैंने कम्युनिस्ट पार्टी के सार के बारे में पहले से ज्यादा समझ प्राप्त कर ली। मैंने परमेश्वर के इस कथन के बारे में सोचा : “परमेश्वर ने पृथ्वी पर अपना स्वयं का कार्य करने, अपनी समस्त सोच और देखरेख का विस्तार करने, दरिद्र लोगों के इस समूह को, गोबर के ढेर में पड़े लोगों के इस समूह को छुटकारा दिलाने के लिए और उस स्थान पर आने के लिए जहाँ बड़ा लाल अजगर निवास करता है, अनुग्रह के युग के खतरों की अपेक्षा कई हजार गुना बड़े खतरे उठाने का जोखिम लिया है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (4))। मैंने यह पहले भी पढ़ा था लेकिन मुझे इसकी वास्तविक समझ नहीं थी। इस गिरफ्तारी तक मैं व्यक्तिगत रूप से यह बात नहीं समझ पाया था कि चीन में मनुष्य के उद्धार के लिए कार्य करना परमेश्वर के लिए कितना ज्यादा कठिन है। सिर्फ एक विश्वासी के रूप में परमेश्वर का अनुसरण करने और अपना कर्तव्य निभाने पर ही मुझे कम्युनिस्ट पार्टी के इस तरह के क्रूर दुर्व्यवहार का शिकार होना पड़ा—राक्षसों का यह गिरोह देहधारी परमेश्वर के खिलाफ अपनी क्रूरता कहाँ तक ले जाएगा? लेकिन ऐसे खतरनाक वातावरण में भी परमेश्वर मानव-जाति के उद्धार के लिए भरसक प्रयास करते हुए सत्य व्यक्त करना जारी रखता है। हमारे लिए उसका प्रेम इतना महान है! परमेश्वर के प्रेम पर विचार करना मेरे लिए बेहद मार्मिक और उत्साहवर्धक था। मैंने चुपचाप निश्चय किया कि मुझे यातना देने के लिए बड़ा लाल अजगर चाहे जो भी तरकीबें अपनाए, मैं परमेश्वर पर निर्भर रहकर अपनी गवाही में अडिग रहूँगा; अगर मैं किसी दिन जीवित बच पाया, तो मैं परमेश्वर का अनुसरण करता रहूँगा और उसे संतुष्ट करने के लिए अपना कर्तव्य अच्छे से निभाता रहूँगा। परमेश्वर के वचनों ने मुझे जो विश्वास और शक्ति दी, उससे मैंने बहुत शांत महसूस किया। मेरी कल्पना अब अनियंत्रित नहीं दौड़ रही थी, और भले ही मैं शारीरिक रूप से कष्ट भोग रहा था, फिर भी मैंने अपने दिल में शांति महसूस की।
कुछ समय बाद—पता नहीं कितनी देर बाद—एक अधिकारी आया और उसने मुझे दो बार लात मारकर देखा कि मैं अभी भी जीवित हूँ या नहीं। मैं अभी भी बँधा हुआ कोने में पड़ा था और अपना सिर भी नहीं उठा सकता था। मैं सिर्फ उसके पैर ही देख सकता था। अधिकारी ने मुझसे पूछा, “क्या तुम जानते हो कि तुम कौन-सी पुस्तकें वितरित कर रहे थे?” मैने कहा, “हाँ।” तब उसने कहा, “क्या तुम एक विश्वासी हो?” मैंने जवाब दिया, “हाँ।” इसके बाद वह बार-बार यह जानने की कोशिश करता रहा कि पुस्तकें कहाँ से आई थीं, मैं उन्हें कहाँ ले जा रहा था, मैंने दूसरों से कैसे संपर्क किया, मैंने पुस्तकों की कितनी खेपें वितरित कीं, इत्यादि। मुझे कुछ भी कहने से इनकार करते देख उसने आकर मुझे दो-तीन बार लात मारी और कहा, “बेहतर होगा कि तुम बता दो! हमें सब-कुछ बता दोगे, तो हम तुम्हें जाने देंगे—तुम्हारे साथ और मार-पीट नहीं की जाएगी!” अगले कुछ दिन उन्होंने मुझसे ये सवाल लगातार पूछे, और जब उन्हें कोई जवाब नहीं मिला, तो मुझे बार-बार पीटा। मुझे याद है, एक बार जब वे मुझसे सवाल कर रहे थे, तो मैंने अपना सिर उठाकर देखा कि वे कैसे दिखते हैं। नतीजतन, एक पुलिस वाले ने मेरे चेहरे पर मुक्का मारा, फिर एक मेज पर रखा पुलिस का डंडा उठाकर मेरी गर्दन पर मारा। मैं वहीं बेहोश हो गया। मुझे नहीं पता कि मैं जितने दिन वहाँ रहा, उनमें कितनी बार बेहोश हुआ। वे न केवल मुझे पीटते थे, बल्कि अपमानित भी करते थे, और बाथरूम का इस्तेमाल भी नहीं करने देते थे। एक बार मैंने उन्हें टॉयलेट जाने देने के लिए पुकारा, लेकिन इससे मुझ पर प्रहारों का एक और दौर चला। एक अधिकारी ने मुझसे दुर्भावना से कहा, “अपनी पैंट में हगो! अपनी पैंट में मूतो!” फिर वह बाहर चला गया। मेरे पास इसे रोके रखने के अलावा कोई चारा नहीं था। मेरा पेट सूज गया था और उसमें दर्द हो रहा था, और बाद में वह इतना सुन्न हो गया कि मुझे उसमें कुछ भी महसूस होना बंद हो गया। मुझे नहीं पता कि मैंने कब अपने मूत्राशय पर से नियंत्रण खो दिया—मुझे बस यही लगा कि मेरा निचला शरीर गीला और बर्फ की तरह ठंडा हो गया है। यह भयंकर रूप से शर्मनाक, बेहद अपमानजनक था।
मुझे गिरफ्तार करने के बाद उन्होंने मुझे खाने के लिए एक भी चीज नहीं दी। मुझे पहले तो बहुत भूख लगी, लेकिन बाद में मेरी खाने की इच्छा मार गई—मुझे सिर्फ दर्द और बेचैनी ही महसूस हो रही थी। मेरी आँखें इतनी सूज गई थीं कि मैं उन्हें खोल नहीं पाता था, लेकिन यह जरूर महसूस कर सकता था कि कोई मेरा मुँह खोलकर उसमें ठंडा पानी डाल रहा है। पहले तो मुझे प्यास लगी थी, लेकिन थोड़ी देर बाद पानी गले से नहीं उतरा, इसलिए वे जबरन मेरे मुँह में पानी डाल रहे थे। मैं पूरी तरह से अशक्त हो गया था और जब मैंने जबरन अपनी आँखें थोड़ी खोलीं, तो अस्पष्ट रूप से एक अधिकारी को देख पाया। उसने मेरे सीने में घूँसा मारा और मुझ पर चिल्लाने लगा, “तुम बोलोगे या नहीं?” मैंने कहा, “मुझे जो कुछ कहना था, वह सब बता चुका हूँ। मुझसे और क्या कहलवाना चाहते हो?” फिर उसने मुझे जोर से लात-घूँसे मारने शुरू कर दिए। मुझे लगा जैसे मेरे शरीर से मांस फाड़ा जा रहा हो। दर्जन भर बार मारने के बाद उसने सीधे मेरे सीने में लात मारी—ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरा दिल अपने हाथों से भींच लिया हो, और इससे इतना दर्द हुआ कि मैं बेदम रह गया। फिर उसने मुझे कॉलर से पकड़कर कोने में धकेल दिया, और बार-बार मेरे सिर, छाती और पेट पर जोर से मारा। मुझे नहीं पता कि उसने मुझे कितनी बार या कितनी देर तक मारा। बस ऐसा लगा, जैसे समय बहुत धीरे-धीरे बीत रहा हो। जैसे-जैसे मैं होश में आता और बेहोश होता रहा, वह और ज्यादा पागल होता गया। मुझे अब दर्द महसूस ही नहीं होता था। मुझे महसूस होने लगा कि मेरे पेट से कुछ निकल रहा है और अंततः मैं उसे और नहीं रोक पाया, और मुँह से उलटी करने लगा। मैंने अस्पष्ट रूप से अधिकारी को चिल्लाते हुए सुना, “कोई यहाँ आओ, यह खून की उलटी कर रहा है!” इसके बाद मैं बेहोश हो गया, और मुझे नहीं पता कि क्या हुआ। जब मुझे होश आया, तो मैंने देखा कि मेरे कपड़ों पर सब जगह खून बिखरा हुआ था। मैं पूरी तरह सचेत नहीं था और पता नहीं कब फिर से बेहोश हो गया। जब मुझे फिर होश आया, तो मुझमें हिलने-डुलने की ताकत बिल्कुल नहीं थी—मुझे लगा, जैसे मेरे टुकड़े-टुकड़े होने वाले हैं। मुझे लगा कि शायद मैं बच नहीं पाऊँगा, जो बेहद परेशान करने वाली बात थी। तभी मेरे मन में परमेश्वर के वचनों का कुछ अंश बहुत स्पष्ट रूप से आया। परमेश्वर कहता है : “मैं तेरा सहारा और तेरी ढाल हूँ, और सब कुछ मेरे हाथों में है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 9)। सही बात है। सब-कुछ परमेश्वर के हाथों में है, और परमेश्वर तय करेगा कि मैं जीवित रहूँगा या मर जाऊँगा। मुझे याद आया कि जब अय्यूब की परीक्षा हुई थी, तो शैतान ने उस पर हमला किया था, जिससे उसके पूरे शरीर में बेहद दर्दनाक फोड़े फूट आए थे, लेकिन परमेश्वर ने शैतान को अय्यूब की जान नहीं लेने दी, और शैतान ने सीमा लाँघने की हिम्मत नहीं की। मैंने अपनी गिरफ्तारी के बाद के दिनों के बारे में सोचा। हालाँकि पुलिस मुझे लगातार पीट रही थी और मुझे नहीं पता कि मैं कितनी बार बेहोश हुआ, लेकिन परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा की बदौलत मैं अभी भी जीवित था। मैंने वाकई देख लिया कि हमारा जीवन-मरण पूरी तरह से परमेश्वर के हाथ में है, और अगर वह अनुमति न दे, तो शैतान हमारा जीवन नहीं छीन सकता। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी, और मैंने चुपचाप प्रार्थना की, “परमेश्वर, मैं अपना जीवन तुम्हारे हाथों में देने और तुम्हारी संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने के लिए तैयार हूँ।”
उन दिनों मैं जीवन और मृत्यु के बीच डोल रहा था। संभावित मौत का सामना करते हुए जिनकी मुझे सबसे ज्यादा चिंता हुई, वे थे मेरी पत्नी और बच्ची। 2012 में पुलिस मेरी आस्था के कारण मुझे गिरफ्तार करने के लिए मेरे घर गई थी, लेकिन सौभाग्य से मैं उस दिन घर पर नहीं था। तब से मैंने वापस जाने की हिम्मत नहीं की थी, और मुझे उन्हें देखे हुए तीन साल हो चुके थे। मैं सोच रहा था कि अगर मैं मर गया, तो फिर कभी उन्हें नहीं देख पाऊँगा। मैं वर्षों से उनकी देखभाल करने के लिए घर नहीं जा पाया था। मुझे नहीं पता था कि वे किस हाल में थे और हमारी बेटी अभी भी बीमार थी। वे भविष्य में कैसे जिएँगे? इस विचार से मेरी रोने की इच्छा हुई, लेकिन मुझमें रोने की भी ताकत नहीं थी। बाद में मुझे एक भजन याद आया जो मैं अक्सर गाता था, जिसका शीर्षक है “उजाड़ और दुखद दुनिया के लिए एक विलाप” : “लोगों के पास अपने आश्रय हैं, लेकिन परमेश्वर के पास अपना सिर टिकाने के लिए कोई जगह नहीं है। कितने लोग ऐसे हैं जो अपना सब-कुछ अर्पित कर देते हैं? परमेश्वर ने संसार की बेरुखी का पूरा स्वाद चखा है, और संसार के सभी कष्ट सहे हैं, फिर भी उसके लिए मनुष्य की सहानुभूति पाना बहुत कठिन है। परमेश्वर लगातार मानवता के बारे में चिंता करता है, मानवजाति के बीच चलता है। उसकी सुरक्षा की चिंता कौन करता है? वह बदलते मौसम में अथक परिश्रम करता है, मानवता के लिए अपना सब-कुछ त्याग देता है। लेकिन कभी किसी ने परमेश्वर के आराम की चिंता नहीं की। लोग केवल परमेश्वर से माँग करना जानते हैं, लेकिन परमेश्वर के इरादों के बारे में थोड़ा और सोचने को तैयार नहीं हैं। मानवता घरेलू आनंद का सुख लेती है, फिर वह हमेशा परमेश्वर को आँसू बहाने पर मजबूर क्यों करती है?” (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ)। यह गीत मेरे लिए बहुत मर्मस्पर्शी था, और मुझे लगा कि मैं परमेश्वर का कितना ऋणी हूँ। हमारे उद्धार के लिए परमेश्वर देह बन गया है और बड़े लाल अजगर के इस देश में प्रकट होकर कार्य करता है। कम्युनिस्ट पार्टी उसका उत्पीड़न और पीछा करती है, यह पीढ़ी उसे नकारती है और उसके पास सिर टिकाने की भी जगह नहीं है। परमेश्वर सृष्टि का प्रभु है—वह इतना सर्वोच्च और सम्माननीय है, लेकिन हमारे उद्धार के लिए भारी अपमान सहता है, हमारे लिए इतनी बड़ी कीमत चुकाता है। मानव-जाति के लिए उसका प्रेम कितना महान है! मैं इन तमाम वर्षों में विश्वासी रहा हूँ और मैंने उसके वचनों से बहुत ज्यादा सिंचन और पोषण प्राप्त किया है, लेकिन जब मैंने उत्पीड़न और कठिनाई का सामना किया, तो मेरे हृदय में परमेश्वर के लिए कोई स्थान नहीं था। मैं यह नहीं सोच रहा था कि कैसे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में दृढ़ रहूँ और शैतान को लज्जित करूँ, मैं सिर्फ अपनी देह और अपने परिवार के बारे में सोच रहा था। मुझे इस पीड़ा से अन्याय तक महसूस हुआ। मैंने देखा कि मैं परमेश्वर के इरादों के प्रति बिल्कुल भी विचारशील नहीं था, मैं बहुत स्वार्थी और नीच था। असल में, यह कठिनाई मेरे जीवन के लिए फायदेमंद थी, इसने मुझे मेरी भ्रष्टता और दोष दिखाए और परमेश्वर में मेरी आस्था बढ़ाने में मदद की। जब मैंने परमेश्वर के प्रेम पर विचार किया, तो मैंने बहुत प्रेरित और उत्साहित महसूस किया, और मैंने शपथ ली कि मैं यह जीवन परमेश्वर के लिए जिऊँगा, और परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए जिऊँगा। चाहे मुझे कितना भी कष्ट क्यों न उठाना पड़े, भले ही इसका मतलब मेरी मृत्यु ही क्यों न हो, मैं परमेश्वर पर निर्भर रहूँगा और उसके लिए अपनी गवाही में दृढ़ रहूँगा।
पुलिस ने मुझसे कुछ उगलवाने के अपने प्रयासों में कठोर और नरम दोनों तरह के हथकंडे अपनाए। मुझे याद है, एक दिन एक अधिकारी मेरे लिए चावलों और टमाटरों से आधा-आधा भरे कटोरे लेकर आया और बोला, “तुमने कई दिनों से कुछ नहीं खाया। इतनी सारी तकलीफ और इतनी पिटाई, यह सब भला किसलिए? तुमने न किसी का खून किया है, न कहीं आग लगाई। तुमने इतनी मार-पिटाई सह ली है—यह सब नाहक है। अब तुमसे गली के भिखारी से भी ज्यादा बदबू आती है। जो कुछ जानते हो वो बस हमें बता दो, तुम्हें और कष्ट नहीं सहना पड़ेगा। तुम वापस अपने घर चले जाओगे और अपनी पत्नी और बच्ची के साथ रह पाओगे।” उसने आगे कहा, “तुम्हें वे पुस्तकें कहाँ से मिलीं? तुम उन्हें कहाँ ले जा रहे थे? अगर तुम इनमें से किसी एक प्रश्न का भी उत्तर दे दो, तो हम तुम्हें तुरंत जाने देंगे।” मैंने फिर भी एक शब्द भी नहीं बोला, तो उसने मुझे दो बार लात मारी और चिल्लाया, “मांस के गंदे ढेर! लगता है तुम्हें एक जोरदार ठुकाई की जरूरत है! तुम इस वक्त ठीक से बोल भी नहीं पा रहे, लेकिन अभी भी बात छिपा रहे हो।” मैं सोच रहा था कि चाहे कुछ भी हो जाए, मैं भाई-बहनों को धोखा बिल्कुल नहीं दे सकता। मैं यहूदा बनकर परमेश्वर को धोखा नहीं दे सकता। यह देखकर कि वह मुझसे कुछ नहीं उगलवा पाएगा, वह बस मुड़ा और बाहर चला गया। मेरे हाथ-पैर पूरे समय बँधे हुए थे; मैं उनके द्वारा किया जाने वाला अपमान और मार-पीट सहते हुए कोने में सिकुड़ा हुआ था। थोड़ी देर बाद मैं बेहद दुखी और कमजोर महसूस करने लगा। पीटे जाने और बार-बार होश खोने से मैं गंभीर रूप से घायल हो गया था। जब मैं होश में आता, तो परमेश्वर से प्रार्थना करता और अक्सर परमेश्वर के वचनों के कुछ अंशों के बारे में सोच पाता। परमेश्वर के वचनों के दो उद्धरणों ने मुझ पर खास तौर से गहरी छाप छोड़ी। परमेश्वर कहता है : “परमेश्वर हमें राह दिखाता हुआ जिस मार्ग पर ले जाता है, वह कोई सीधा मार्ग नहीं है, बल्कि वह गड्ढों से भरी टेढ़ी-मेढ़ी सड़क है; इसके अतिरिक्त, परमेश्वर कहता है कि मार्ग जितना ही ज़्यादा पथरीला होगा, उतना ही ज़्यादा वह हमारे स्नेहिल हृदयों को प्रकट कर सकता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मार्ग ... (6))। “डरो मत, सेनाओं का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे खड़ा है और तुम्हारी ढाल है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 26)। जब मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा, तो मुझे लगा कि वह मेरे साथ ही है, मेरा मार्गदर्शन कर रहा है। परमेश्वर के वचन ही थे, जिन्होंने मुझे आस्था और शक्ति दी और मुझे जिंदा रखा। मैंने एक मौन प्रार्थना की : “हे परमेश्वर! तुम्हारी देखभाल और सुरक्षा की बदौलत ही मैं अभी तक जीवित हूँ। मैं तुम्हें धन्यवाद देता हूँ!”
अगले दिन पुलिस वालों ने देखा कि मेरी सहने की सीमा खत्म होने वाली है, इसलिए वे मुझे एक कमरे में ले गए, पानी के पाइप से मुझे साफ किया, फिर दस्तखत कराने के लिए एक कागज ले आए। मेरी दृष्टि बहुत धुँधली थी, और मैं अस्पष्ट रूप से सिर्फ एक पंक्ति पढ़ पाया। वे मुझ पर इन अपराधों का आरोप लगा रहे थे : प्रतिबंधित वस्तुओं का परिवहन, एक पंथ में विश्वास और सामाजिक व्यवस्था बिगाड़ना। जब मैंने उस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया, तो एक अधिकारी ने मेरा हाथ पकड़कर मुझे अँगूठे का निशान लगाने पर मजबूर कर दिया। कुछ समय बाद, पता नहीं कब, उन्होंने मेरे सिर पर नकाब डाला, मुझे जबरन पुलिस की कार में बैठाया और किसी जगह ले जाकर मुझे लात मारकर कार से फेंक दिया। जब मैंने खड़े होकर नकाब उतारा, तब तक पुलिस की कार दूर जा चुकी थी। मैं कुछ कदम चला और फिर वाकई मुझमें आगे चलने की ताकत नहीं रही। सड़क किनारे बैठने के सिवाय मेरे पास कोई चारा नहीं था। कई बार की नाकामियों के बाद आखिर मैं अपने किराये के कमरे में लौट सका। चलना मेरे लिए बहुत कठिन था, और कार में भी मैं बमुश्किल सरक-सरककर बैठ पाया। मेरी दाढ़ी भी बड़ी हो गई थी, इसलिए ड्राइवर ने सोचा कि मैं बूढ़ा आदमी हूँ, और उसने मेरा हाथ पकड़कर बैठाने की पेशकश की। बाद में जब एक कैलेंडर पर मेरी नजर पड़ी तो पता चला कि मुझे पुलिस थाने में आठ दिन यातनाएँ दी गई थीं। अगर परमेश्वर की सुरक्षा न होती, तो मेरे बचने का कोई उपाय न होता। जब मैं अपने कमरे में पहुँचा तो बस बिस्तर पर लेटे रहने के सिवाय कुछ नहीं कर सकता था—मेरा पूरा शरीर दर्द से छटपटा रहा था। मेरे शरीर पर हर जगह नीले और बैंगनी रंग के धब्बे थे, जो छूने पर रसौली जैसे लग रहे थे। इन सभी गाँठों पर थोड़ा-सा भी दबाव पड़ने से बेहद दर्द होता था। मैं बस वहीं पड़ा रहा, और दसवें दिन जाकर उठकर चल पाया और पंद्रहवें दिन जाकर मुझमें परमेश्वर के वचनों की एक पुस्तक उठाकर पढ़ने की ताकत आ पाई। पहले तो मैं पूरा पन्ना भी नहीं पढ़ पाता था, क्योंकि बैठने से मेरी पीठ में दर्द होता था, और लेटने की हालत में मुझमें पुस्तक पकड़ने की ताकत नहीं रहती थी। मैं हर बार सिर्फ तीन या चार मिनट ही पढ़ पाता था।
मेरी रिहाई के बाद मुझे लगातार निगरानी में रखा गया और पुलिस मुझे फोन कर परेशान करती रही। मुझे याद है, एक बार मेरी माँ बीमार हो गई थी और मैं उसे देखने के लिए वापस अपने गृहनगर चला गया था। नतीजतन, अगले दिन पुलिस ने मुझे बुलाकर पूछा कि मैं घर वापस क्यों गया था। मेरे लिए यह सोचना बहुत कठिन था कि गंभीर रूप से जख्मी होने के कारण मैं भाई-बहनों से संपर्क नहीं कर सकता या किसी तरह का कर्तव्य नहीं निभा सकता। मुझे नहीं पता था कि मैं ऐसे कैसे जी सकूँगा। जब मैं सच में दुखी महसूस कर रहा था, तभी मैंने परमेश्वर के वचनों में एक चीज पढ़ी। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है : “जिन लोगों का उल्लेख परमेश्वर ‘विजेताओं’ के रूप में करता है, वे लोग वे होते हैं, जो तब भी गवाही में दृढ़ बने रहने और परमेश्वर के प्रति अपना विश्वास और भक्ति बनाए रखने में सक्षम होते हैं, जब वे शैतान के प्रभाव और उसकी घेरेबंदी में होते हैं, अर्थात् जब वे स्वयं को अंधकार की शक्तियों के बीच पाते हैं। यदि तुम, चाहे कुछ भी हो जाए, फिर भी परमेश्वर के समक्ष पवित्र दिल और उसके लिए अपना वास्तविक प्यार बनाए रखने में सक्षम रहते हो, तो तुम परमेश्वर के सामने गवाही में दृढ़ रहते हो, और इसी को परमेश्वर ‘विजेता’ होने के रूप में संदर्भित करता है। ... परमेश्वर को एक पवित्र आध्यात्मिक देह और एक शुद्ध कुँवारापन अर्पित करने का अर्थ है परमेश्वर के सामने ईमानदार दिल बनाए रखना। मनुष्य के लिए ईमानदारी ही पवित्रता है, और परमेश्वर के प्रति ईमानदार होने में सक्षम होना ही पवित्रता बनाए रखना है। यही वह चीज है, जिसे तुम्हें अभ्यास में लाना चाहिए। जब तुम्हें प्रार्थना करनी चाहिए, तब तुम प्रार्थना करो; जब तुम्हें संगति में एक-साथ इकट्ठे होना चाहिए, तो तुम इकट्ठे हो जाओ; जब तुम्हें भजन गाने चाहिए, तो तुम भजन गाओ; और जब तुम्हें देह-सुख के खिलाफ विद्रोह करना चाहिए, तो तुम देह-सुख के खिलाफ विद्रोह करो। जब तुम अपना कर्तव्य करते हो, तो तुम उसमें गड़बड़ नहीं करते; जब तुम्हें परीक्षणों का सामना करना पड़ता है, तो तुम मजबूती से खड़े रहते हो। यह परमेश्वर के प्रति भक्ति है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखनी चाहिए)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी और मेरा हृदय उज्ज्वल कर दिया। चाहे बड़ा लाल अजगर मुझे कैसे भी सताए, चाहे मैं कलीसिया के अन्य सदस्यों के साथ संपर्क कर पाऊँ या नहीं या कोई कर्तव्य निभा पाऊँ या नहीं, और चाहे मुझे कोई भी परिणाम मिले, मैं अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करूँगा।
पुलिस की क्रूर यातना के कारण मुझे बहुत-सी स्वास्थ्य-समस्याओं का सामना करना पड़ा। एक डॉक्टर ने कहा कि मेरे हृदय के वॉल्व क्षतिग्रस्त हो गए हैं, मेरे हृदय में रक्त का प्रवाह कम हो गया है, और मेरे यकृत, पित्ताशय, तिल्ली और गुर्दों में समस्याएँ हैं। उसने कहा कि मैं वाकई टूट-फूट चुका हूँ। पहले मेरा स्वास्थ्य बहुत अच्छा था, लेकिन अब मैं खाली हाथ होकर भी एक बार में सीढ़ियाँ चढ़ने में हाँफने लगता हूँ और मेरे दिल में दर्द होता है। जब उन्होंने मुझे छोड़ा था तो शुरू में ऐसा लगता था मानो मेरी खोपड़ी उखाड़ दी गई हो। उसमें बेहद दर्द था और छूने भर से दर्द और बढ़ जाता था। चीनी दवा के 80 से भी ज्यादा पैकेट पीने के बाद मेरा सिरदर्द आखिरकार थोड़ा कम हुआ। मुझे ऐसा भी लगता था कि मेरा पेड़ू गिरकर बाहर निकलने वाला है। उसमें भयंकर दर्द था और दो दिन तक मेरे पेशाब में खून आता रहा। उस समय, मेरे पास डॉक्टर के पास जाने के लिए पैसे नहीं थे, और मुझे लगा कि शायद मैं वास्तव में जीवित नहीं रहूँगा, इसलिए मैंने परमेश्वर से यह प्रार्थना की : “परमेश्वर, मेरा जीना-मरना पूरी तरह से तुम्हारे हाथों में है। मैं बचूँ या नहीं, मैं तुम्हें धन्यवाद देता हूँ।” मैं यह देखकर चकित रह गया कि तीन दिन तक सूजन घटाने की दवाएँ लेने के बाद ही मेरे मूत्र में खून आना बंद हो गया।
हालाँकि कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा गिरफ्तार कर प्रताड़ित किए जाने से मुझे कष्ट हुआ, लेकिन मैंने वास्तव में बहुत-कुछ हासिल भी किया। नरक में बिताए उन आठ दिनों ने मुझे स्पष्ट रूप से दिखा दिया कि कम्युनिस्ट पार्टी एक राक्षस है, जो परमेश्वर का विरोध करती है। मैं एक आम, सीधा-सादा ईसाई हूँ, जो कानून का पालन करता है और अपने काम से काम रखता है। मैं सिर्फ यह चाहता हूँ कि अपनी आस्था का पालन कर सकूँ, सत्य का अनुसरण करूँ, परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करूँ और अपनी पूरी क्षमता के साथ एक सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाऊँ। फिर भी कम्युनिस्ट पार्टी की पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर लिया और लगभग मार ही डाला था। कम्युनिस्ट पार्टी विश्वासियों को डराने के लिए हिंसक, क्रूर उत्पीड़न का इस्तेमाल करना चाहती है, ताकि लोग आस्था रखने और परमेश्वर का अनुसरण करने का साहस न करें, और इस प्रकार वह परमेश्वर का उद्धार का कार्य नष्ट कर दे। लेकिन जितना ज्यादा वह इस तरह का उत्पीड़न करती है, उतना ही ज्यादा हम उसकी बुराई और क्रूरता देखते हैं, उससे घृणा कर उसे नकारते हैं, और उतना ही ज्यादा हम प्रकाश और परमेश्वर के राज्य के आने की लालसा करते हैं, उस दिन की लालसा करते हैं जब धरती पर निष्पक्षता और न्याय का शासन होगा। इसके माध्यम से मैंने परमेश्वर के प्रेम का भी अनुभव किया। अगर परमेश्वर की सुरक्षा और उसके वचनों का मार्गदर्शन न होता, तो मैं किसी भी सूरत में उन राक्षसों की माँद से जिंदा न लौट पाता। मैं अपने हृदय की गहराई से परमेश्वर का आभारी हूँ, और मैं परमेश्वर के प्रेम का बदला चुकाने के लिए सत्य का अनुसरण करना चाहता हूँ और अपना कर्तव्य अच्छी तरह से निभाना चाहता हूँ।