सृजित प्राणी का कर्तव्य भली-भाँति निभाने में ही जीने का मूल्य है
आज तुम सभी लोग अपने कर्तव्य निभाने में व्यस्त होकर प्रवचन देने और परमेश्वर के वचनों के साथ ही अंत के दिनों में उसके कार्य की गवाही देने का प्रशिक्षण ले रहे हो। चाहे फिल्में बनाना हो या परमेश्वर की गवाही देने के लिए भजन गाना, तुम लोग जो कर्तव्य निभाते हो क्या वे भ्रष्ट मानवजाति के लिए मूल्यवान हैं? (बिल्कुल हैं।) उनका मूल्य कहाँ निहित है? उनका मूल्य परमेश्वर द्वारा व्यक्त इन वचनों और सत्यों को देखने के बाद लोगों को सही मार्ग पर चलने में मदद करने में और लोगों को यह समझने में मदद करने में निहित है कि वे सृजित प्राणियों में से एक हैं, और उन्हें सृष्टिकर्ता के समक्ष आना चाहिए। बहुत से लोग जिन चीजों का सामना करते हैं उनमें से कई चीजों की असलियत जानने या इन्हें समझने में असमर्थ होते हैं। वे असहाय महसूस करते हैं और उन्हें जीवन निरर्थक और खोखला लगता है, उनके पास कोई आध्यात्मिक पोषण नहीं होता। इस सबका स्रोत क्या है? इन सबका उत्तर परमेश्वर के वचनों में निहित है। जब से तुम लोगों ने परमेश्वर में विश्वास किया है, तुम सभी ने उसके वचनों को बहुत पढ़ा है और तुमने कुछ सत्यों को भी समझा है, तो तुम लोगों को जो कर्तव्य निभाना चाहिए वह है परमेश्वर के वचन का उपयोग करके इन लोगों को प्रबुद्ध बनाना और उनके गलत विचारों और नजरियों को बदलना, उन्हें परमेश्वर के वचन के भीतर के सत्य को समझने और संसार के अँधेरे और बुराई को समझने में सक्षम बनाना, उन्हें सच्चा मार्ग खोजने, सृष्टिकर्ता को खोजने, परमेश्वर की वाणी सुनने, और उसके वचनों को पढ़ने में मदद करना। इससे वे कुछ सत्यों को समझ सकेंगे और परमेश्वर द्वारा किए जा रहे उद्धार के कार्य को देख पाएँगे, ताकि वे उसकी ओर मुड़कर उसके कार्य को स्वीकार सकें। यही वह कर्तव्य है जो तुम लोगों को निभाना चाहिए। तुम सबका दिल जानता है कि परमेश्वर में विश्वास रखने के बाद से तुमने कितने सत्यों को समझा है और कितनी समस्याओं का समाधान किया है। आजकल, धर्मावलंबी और अविश्वासी दोनों तरह के बहुत से लोग सच्चा मार्ग खोजकर उद्धारकर्ता की तलाश में हैं। वे विशिष्ट प्रश्नों के उत्तर नहीं जानते, जैसे कि लोग क्यों जीते और मरते हैं, किसी व्यक्ति के जीवन का मूल्य और अर्थ क्या है, या लोग कहाँ से आते हैं और कहाँ जा रहे हैं। वे तुम लोगों के इंतजार में हैं, ताकि तुम सुसमाचार फैलाते हुए और परमेश्वर के लिए गवाही देते हुए, उन्हें सृष्टिकर्ता के समक्ष ले जाओ—यही कारण है कि आज जो कर्तव्य तुम लोग निभा रहे हो वे बहुत अर्थपूर्ण हैं! एक ओर तुम खुद परमेश्वर के कार्य का अनुभव कर रहे हो, वहीं दूसरी ओर तुम दूसरों को भी परमेश्वर के कार्य के बारे में गवाही दे रहे हो। जितना अधिक तुम लोग इसका अनुभव करोगे, तुम्हें उतने ही अधिक सत्यों को समझने और उनसे सुसज्जित होने की जरूरत होगी, और तुम्हें उतना ही अधिक कार्य भी करना होगा। यह परमेश्वर के लिए लोगों को पूर्ण बनाने का एक बेहतरीन अवसर है। अपने कर्तव्य निभाते समय चाहे किसी भी कठिनाई का सामना करना पड़े, तुम्हें परमेश्वर से प्रार्थना कर उसकी ओर देखना चाहिए; जब सभी लोग परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं और मिलकर सत्य की खोज अधिक करते हैं, तो ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसे हल न किया जा सके। परमेश्वर के वचनों में ऐसे बहुत से सत्य हैं जिन्हें तुम लोगों को समझना है, इसलिए तुम्हें उन पर अक्सर विचार और संगति करनी चाहिए, तभी तुम्हें पवित्र आत्मा का प्रबोधन और रोशनी मिलेगी। ऐसी कोई समस्या नहीं है जिसका समाधान परमेश्वर पर भरोसा करके न किया जा सके, तुम लोगों की यह आस्था होनी चाहिए।
परमेश्वर ने इस मानवजाति को बनाने के बाद एक प्रबंधन योजना बनाई। पिछले कुछ हजार वर्षों में इस मानवजाति ने कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं उठाई या सृष्टिकर्ता के लिए गवाही देने का कार्य नहीं किया, और परमेश्वर ने मानवजाति के बीच जो कार्य किया वह अपेक्षाकृत छिपा हुआ और सरल था। लेकिन अंत के दिनों में चीजें पहले जैसी नहीं हैं। सृष्टिकर्ता ने वचन व्यक्त करने शुरू कर दिए हैं। वह बहुत सारे सत्य व्यक्त कर अपनी प्रबंधन योजना के रहस्यों का खुलासा कर चुका है, लेकिन भ्रष्ट मानवजाति मंदबुद्धि और सुन्न है : लोग देखते हैं लेकिन जानते नहीं हैं, वे सुनते हैं लेकिन समझते नहीं हैं, मानो उनके मन पर अज्ञानता की परत चढ़ी हुई हो। इसलिए तुम लोगों पर एक बड़ी जिम्मेदारी है! इसमें इतनी बड़ी बात क्या है? परमेश्वर द्वारा व्यक्त ये वचन और सत्य फैलाने के अलावा यह बात अभी और भी महत्वपूर्ण है कि तुम हरेक सृजित प्राणी को सृष्टिकर्ता की गवाही दो और परमेश्वर का सुसमाचार सुन चुके उन सभी सृजित प्राणियों को सृष्टिकर्ता के समक्ष लेकर आओ, ताकि वे परमेश्वर द्वारा मानवजाति की रचना के महत्व को जान सकें, और यह समझ सकें कि सृजित प्राणी के रूप में उन्हें सृष्टिकर्ता के समक्ष लौटना चाहिए, उसके कथन सुनने चाहिए और उसके द्वारा व्यक्त सभी सत्य स्वीकारने चाहिए। इस प्रकार सभी मनुष्यों को सृष्टिकर्ता की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित कराया जा सकता है। क्या परमेश्वर के वचनों के केवल कुछ अंश पढ़कर या सिर्फ कुछ भजन गाना सीखकर या कार्य का केवल एक ही पहलू पूरा करके ये नतीजे हासिल करना मुमकिन है? बिल्कुल नहीं। इसलिए यदि तुम लोगों को अपने कर्तव्य भली-भाँति निभाने हैं, तो तुम्हें विभिन्न तरीकों और विभिन्न रूपों का उपयोग कर सृष्टिकर्ता के कार्यों और उसकी संप्रभुता और व्यवस्थाओं की गवाही देनी चाहिए। इस तरह तुम अधिक लोगों को सृष्टिकर्ता के समक्ष लाने में सक्षम रहोगे और उसकी संप्रभुता और व्यवस्थाओं को स्वीकार करके उसके प्रति समर्पित होने में उनकी मदद करोगे। क्या यह एक बड़ी जिम्मेदारी नहीं है? (बिल्कुल है।) तो फिर तुम लोगों को अपने कर्तव्यों के प्रति कैसा रवैया अपनाना चाहिए? क्या उलझन की स्थिति में रहना ठीक है? क्या चीजों से आँखें मूँद लेना ठीक है? क्या आधे-अधूरे मन से और लापरवाही से काम करना ठीक है? क्या काम को टालना और चीजों को लापरवाही से करना ठीक है? (नहीं।) तो फिर क्या करना चाहिए? (पूरे दिल से काम करना चाहिए।) तुम्हारे पास जितनी भी ऊर्जा, अनुभव और अंतर्दृष्टि है, उसका उपयोग करते हुए, तुम्हें पूरे दिल से काम करना चाहिए। अविश्वासियों को यह समझ नहीं आता कि कोई व्यक्ति अपने जीवन में सबसे सार्थक काम क्या कर सकता है, लेकिन तुम लोग तो इस बारे में थोड़ा-बहुत समझते हो, है ना? (बिल्कुल।) परमेश्वर ने तुम्हें जो काम सौंपा है उसे स्वीकारना और अपना लक्ष्य पूरा करना—ये सबसे महत्वपूर्ण चीजें हैं। आज तुम लोग जो कर्तव्य निभा रहे हो वे मूल्यवान हैं! हो सकता है कि तुम्हें अभी इसका प्रभाव दिखाई न दे, और यह भी हो सकता है कि तुम्हें अभी उनसे अच्छे नतीजे न मिलें, लेकिन उनका फल मिलने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। यदि यह काम अच्छी तरह कर लिया गया तो लंबे समय में मानवजाति के लिए इसके योगदान को पैसों से नहीं मापा जा सकेगा। ऐसी सच्ची गवाहियाँ किसी भी अन्य चीज से अधिक कीमती और मूल्यवान हैं और वे अनंत काल तक बनी रहेंगी। ये परमेश्वर का अनुसरण करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के अच्छे कर्म हैं, और ये याद रखने योग्य हैं। परमेश्वर में विश्वास रखने, सत्य का अनुसरण करने और सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाने के अलावा मनुष्य के जीवन में सब कुछ खोखला है और याद रखने योग्य नहीं है। भले ही तुमने धरती को हिला देने वाले कारनामे किए हों, भले ही तुम चंद्रमा पर जाकर लौटे हो, भले ही तुमने ऐसी वैज्ञानिक प्रगति की हो जिससे मानवजाति को कुछ लाभ या मदद मिली हो, यह सब व्यर्थ है और एक दिन खत्म हो जाएगा। ऐसी एकमात्र चीज कौन-सी है जो कभी खत्म नहीं होगी? (परमेश्वर के वचन।) केवल परमेश्वर के वचन, परमेश्वर की गवाहियाँ, वे सभी गवाहियाँ और कार्य जो सृष्टिकर्ता की गवाही देते हैं, और लोगों के अच्छे कर्म खत्म नहीं होंगे। ये चीजें हमेशा रहेंगी और ये बहुत मूल्यवान हैं। इसलिए अपनी सभी सीमाएँ लाँघ दो, इस महान प्रयास को अंजाम दो और खुद को किसी भी व्यक्ति, घटनाओं और चीजों से बाधित मत होने दो; ईमानदारी से खुद को परमेश्वर के लिए खपाओ, और अपनी सारी ऊर्जा और प्रयास अपने कर्तव्य निभाने में लगाओ। यही वह चीज है जिसे परमेश्वर सबसे अधिक आशीष देता है और इसके लिए किसी भी हद तक कष्ट उठाना सार्थक है!
आज तुम परमेश्वर का अनुसरण करते हो, उसके वचन सुनते हो और सृष्टिकर्ता का आदेश स्वीकारते हो। कभी-कभी यह थोड़ा कठिन और थकाऊ होता है, और कभी-कभी तुम्हारा थोड़ा अपमान और शोधन होता है; लेकिन ये बुरी चीजें नहीं, बल्कि अच्छी चीजें हैं। अंत में तुम्हें क्या हासिल होगा? तुम्हें सत्य और जीवन प्राप्त होगा, और आखिर में तुम्हें सृष्टिकर्ता की स्वीकृति और समर्थन मिलेगा। परमेश्वर कहता है, “तुम मेरा अनुसरण करो, और मैं तुम पर अनुग्रह करता हूँ, और तुमसे प्रसन्न हूँ।” यदि परमेश्वर इसके अलावा कुछ नहीं कहता कि तुम उसकी नजरों में एक सृजित प्राणी हो, तुम व्यर्थ में नहीं जी रहे हो, और तुम उपयोगी हो। इस तरह से परमेश्वर द्वारा स्वीकारा जाना अद्भुत है और यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। यदि लोग शैतान का अनुसरण करेंगे, तो उन्हें क्या मिलेगा? (विनाश।) विनाश से पहले वे लोग क्या बन जाएँगे? (वे राक्षस बन जाएँगे।) वे लोग राक्षस बन जाएँगे। लोग चाहे कितने भी कौशल हासिल कर लें, कितने भी पैसे कमा लें, उन्हें कितनी भी शोहरत और लाभ मिल जाए, वे कितने भी सांसारिक सुखों का आनंद उठाएँ, या लौकिक संसार में उनका दर्जा चाहे कितना भी ऊँचा हो, अंदर से वे अधिक से अधिक भ्रष्ट, अधिक से अधिक दुष्ट और गंदे, और अधिक से अधिक विद्रोही और पाखंडी बन जाएँगे, और आखिर में वे जीते-जागते भूत बन जाएँगे—वे अमानवीय हो जाएँगे। ऐसे लोग सृष्टिकर्ता की नजरों में कैसे माने जाते हैं? बस “अमानवीय,” और कुछ नहीं? ऐसे व्यक्ति के प्रति सृष्टिकर्ता का दृष्टिकोण और रवैया क्या है? यह विरक्ति, घृणा, तिरस्कार, अस्वीकृति और आखिर में अभिशाप, दंड और विनाश का रवैया है। लोग अलग-अलग मार्ग पर चलते हैं और अंत में अलग-अलग परिणाम पाते हैं। तुम लोग कौन-सा मार्ग चुनते हो? (परमेश्वर में विश्वास रखने और उसका अनुसरण करने का मार्ग।) परमेश्वर का अनुसरण करना सही मार्ग चुनना है : यह प्रकाश के मार्ग पर चलना है। यदि लोग एक उपयोगी और सार्थक जीवन जीना चाहते हैं, साफ अंतरात्मा रखना चाहते हैं, और वास्तव में सृष्टिकर्ता के समक्ष और उसके पक्ष में लौटना चाहते हैं, तो उन्हें पूरे दिल से खुद को समर्पित करना चाहिए, सृजित प्राणियों के रूप में अपने कर्तव्य निभाते हुए परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहिए और उसका गुणगान करना चाहिए—वे आधे-अधूरे मन से कार्य नहीं कर सकते। तुम्हें कहना चाहिए, “अपने जीवनकाल में और इस संसार में, मैं धन-दौलत कमाने, दूसरों के बीच अलग दिखने या अपने पूर्वजों को गर्वित करने, अपने साथियों के बीच श्रेष्ठ बनने या अपने बारे में ऊँचा सोचे जाने की उम्मीद नहीं करता हूँ—मैं इन चीजों के लिए नहीं लड़ूँगा। मैं उस मार्ग पर नहीं चलूँगा। मैं बस परमेश्वर का अनुसरण करूँगा और अपना कर्तव्य निभाने के लिए अपना जीवन, अपनी ऊर्जा और मेरे पास जो भी क्षमताएँ, गुण और प्रतिभाएँ हैं, उन सभी को परमेश्वर को समर्पित कर दूँगा। इस दौरान, भले ही दूसरे लोग मेरा तिरस्कार करें और कभी-कभी मेरे भाई-बहन मेरी काट-छाँट करें या मुझे गलत समझ बैठें; या यदि परमेश्वर मेरा शोधन करे या मेरी परीक्षा ले और मुझे बहुत कष्ट दे; या यदि मुझे इस जीवन में कोई भी दैहिक सुख न मिले और मैं खुद को अकेला पाऊँ और कोई मेरी देखरेख न करे—तो भी मुझे यह सब स्वीकार है और मैं अपना पूरा अस्तित्व परमेश्वर को समर्पित करता हूँ।” तुम्हारे पास यही इच्छाशक्ति होनी चाहिए! इस तरह की इच्छाशक्ति के साथ व्यक्ति कई कठिनाइयों को सहन कर सकता है, लेकिन इसके बिना यदि किसी के पास केवल एक इच्छा है या वह अचानक उत्साहित हो जाता है, तो इससे काम नहीं चलेगा : इसमें कोई प्रेरणा नहीं है। अपने कर्तव्यों में व्यस्त होने पर कुछ लोग एक-दो वक्त का खाना-पीना छोड़ देते हैं और थोड़ी कम नींद लेते हैं, और जब उन्हें एहसास होता है कि वे अच्छे नहीं दिख रहे तो सोचते हैं, “यह काम नहीं कर रहा। चाहे मैं कितना भी व्यस्त क्यों न रहूँ, मुझे आराम करना होगा; मैं समय से पहले बूढ़ा नहीं हो सकता और इतनी कठिनाइयाँ नहीं सह सकता। अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना जरूरी है।” इन विचारों के बारे में तुम्हारा क्या खयाल है? वे परमेश्वर के इरादों के प्रति लापरवाह हैं। वे अपने कर्तव्य और परमेश्वर के आदेश की तुलना में शरीर को अधिक संजोते हैं; जरा-सा कष्ट होने पर वे अपनी इच्छाशक्ति खो देते हैं और कछुए की तरह अपना सिर वापस कवच में खींचकर शिकायत करने लगते हैं; वे उन चीजों के बारे में चिंता नहीं कर पाते जिनके बारे में परमेश्वर चिंता करता है, और वे उन चीजों के बारे में सोच नहीं पाते हैं जिनके बारे में परमेश्वर सोचता है, वे परमेश्वर के इरादों के प्रति लापरवाह होते हैं। यदि अगुआ कहता है कि कोई कार्य बहुत जरूरी है तो ऐसे लोग जवाब देंगे, “मैं उन चीजों की परवाह करना नहीं छोड़ सकता, और मैं असुविधा नहीं चाहता। मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है।” क्या ऐसे लोग होते हैं? (बिल्कुल, होते हैं।) ऐसे लोग स्वार्थी, नीच और विश्वासघाती होते हैं। वे चालें चलते हैं, वे भरोसेमंद नहीं होते और वे उनमें से नहीं हैं जो ईमानदारी से परमेश्वर को चाहते हैं। वे यह भी कहेंगे कि उन्होंने खुद को परमेश्वर के प्रति समर्पित कर दिया है, लेकिन ये केवल खोखले शब्द हैं—ये लोग किसी भी व्यावहारिक मामले को नहीं संभालते, वे थोड़ी-सी भी कठिनाई नहीं सहते, या थोड़ी-सी भी कीमत नहीं चुकाते हैं। ऐसे लोगों से परमेश्वर प्रसन्न नहीं होता और उन्हें उसकी आशीष नहीं मिलती है। कुछ लोग अपने शरीर को थोड़ा-सा कष्ट होते ही अपने कर्तव्य निभाने से पीछे हट जाते हैं। खास तौर पर युवा लोग अपने रंग-रूप की बहुत परवाह करते हैं और जब वे देखते हैं कि उनके चेहरे मुरझाने लगे हैं, उनकी त्वचा अब चिकनी नहीं रही या उनके बाल पकने लगे हैं तो वे दुखी हो जाते हैं। वे हमेशा बूढ़े और बदसूरत होने, कोई साथी न ढूँढ़ पाने या अपना घर न बसा पाने को लेकर चिंतित रहते हैं। क्या ऐसे लोग सत्य प्राप्त कर सकते हैं? यह निर्धारित करने के लिए परमेश्वर के सिद्धांत क्या हैं कि लोग अपने कर्तव्य निर्वहन में कीमत चुकाने में सक्षम हैं या नहीं, और क्या वे अपने कर्तव्यों को स्वीकार्य मानक के अनुसार निभाते हैं? परमेश्वर बस लोगों की ईमानदारी देखना चाहता है। कभी-कभी लोग सोचते हैं, “मैं बस अपना दिल खोलकर रख दूँगा और यह काफी होगा,” लेकिन वे जरा-सा भी बदले बिना वही करते रहते हैं जो वे आम तौर पर करते हैं। परमेश्वर इस मामले को किस प्रकार देखता है? एक ओर परमेश्वर तुम्हारी आकांक्षाओं को देखेगा, वहीं दूसरी ओर वह तुम्हारे वास्तविक क्रियाकलापों को देखेगा। परमेश्वर इन चीजों की जाँच-पड़ताल करेगा। यदि तुम्हारे पास आकांक्षा और इच्छाशक्ति है और तुम वास्तव में कीमत चुका सकते हो, तो भले ही तुम कभी-कभी कमजोर पड़ जाओ, परमेश्वर देखेगा कि तुम्हारे दिल ने वास्तव में हार नहीं मानी है, और यह अभी भी आगे बढ़ने की कोशिशों में जुटा है, और तुम सत्य, निष्पक्षता, धार्मिकता और सकारात्मक चीजों से प्रेम करते हो, और तब वह तुम्हारा त्याग नहीं करेगा। कुछ लोग बहुत अच्छा बोलते हैं, लेकिन वे दिल से प्रेरित नहीं होते; वे जरा भी सत्य का अभ्यास नहीं करते और सिर्फ और सिर्फ दूसरों को बेवकूफ बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं। उनके पास इस तरह से बोलने के अलावा और कोई चारा नहीं है, वे अपने आस-पास के लोगों के साथ इसी तरह पेश आते हैं। वे कुछ हद तक सम्मानित लग सकते हैं, लेकिन वास्तव में वे काम नहीं करना चाहते हैं। यदि वे काम करते भी हैं, तो वे जो कहते हैं उसे अमल में नहीं लाते हैं। इसके बजाय वे अपनी मनमर्जी के काम करते हैं, वही करते हैं जो उनके लिए अच्छा है और जिनसे उनकी रक्षा होती है। क्या उनकी कथनी-करनी में अंतर नहीं है? क्या परमेश्वर इस अंतर को देख सकता है? परमेश्वर इसकी जाँच-पड़ताल करता है, और वह इसे देखने में भी सक्षम है। कुछ लोग कपटी होते हैं और छोटी-छोटी चालें चलते हैं। वे सोचते हैं कि परमेश्वर नहीं जानता, वह न तो परवाह करता है और न ही यह सब देखता है। क्या वाकई ऐसा है? परमेश्वर ईमानदार लोगों और छोटी-छोटी चालें चलने वालों के साथ कैसा व्यवहार करता है? क्या तुम लोग इन दोनों प्रकार के लोगों के प्रति परमेश्वर के व्यवहार के बीच अंतर देख सकते हो? (परमेश्वर ईमानदार लोगों को आशीष देता है और कपटी लोगों से घृणा करता है।) परमेश्वर ईमानदार लोगों को कैसे आशीष देता है? ईमानदार लोगों के पास परमेश्वर की आशीष होने के बारे में तुम्हारा क्या खयाल है? (ईमानदार लोगों को अपने कर्तव्यों के अच्छे नतीजे मिलते हैं।) (परमेश्वर ईमानदार लोगों को प्रबुद्ध करता है और ईमानदार लोग आसानी से सत्य समझकर वास्तविकता में प्रवेश कर सकते हैं।) (परमेश्वर ईमानदार लोगों से प्रेम करता है और उनकी परवाह करता है, और केवल ईमानदार लोग ही परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर सकते हैं।) ये सभी कथन सही हैं, और ये ईमानदार लोगों के लिए परमेश्वर की आशीष है। क्या अब तुम लोग अलग-अलग लोगों और अलग-अलग रास्तों पर चलने वाले लोगों के प्रति परमेश्वर के व्यवहार में अंतर और रवैया नहीं देख सकते हो? ईमानदार लोग मूर्खतापूर्ण चीजें करते हैं और कमजोरी का अनुभव भी करते हैं; लेकिन उनके पास परमेश्वर का प्रबोधन और मार्गदर्शन होता है, वे उसकी सुरक्षा का आनंद लेते हैं और हर जगह उसकी आशीषों को महसूस कर सकते हैं। परमेश्वर उन्हें अनुशासित करता है और उनके साथ काट-छाँट करता है या उनका परीक्षण और शोधन करता है ताकि वे बदल सकें और प्रगति कर सकें। जो लोग हमेशा अपनी कथनी-करनी से चालें चलते हैं और अपने कर्तव्य निर्वहन में हमेशा धूर्तता बरतकर जिम्मेदारी से भागते हैं, वे ऐसे लोग हैं जो सत्य को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करते। उनके पास पवित्र आत्मा का कार्य नहीं है, जो दलदल में, अँधेरे में जीने जैसा है। वे चाहे कैसे भी ढूँढें लें, चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, वे न तो प्रकाश देख सकते हैं और न ही कोई दिशा पा सकते हैं। वे प्रेरणा और परमेश्वर के मार्गदर्शन के बिना अपने कर्तव्य निभाते हैं, कई मामलों में एक मुकाम से आगे नहीं बढ़ पाते और कुछ चीजें करते समय वे अनजाने में बेनकाब हो जाते हैं। उन्हें बेनकाब करने का उद्देश्य क्या है? ऐसा इसलिए है कि हर कोई उन्हें पहचान सके और जान सके कि वे किस प्रकार के लोग हैं। वास्तव में इस प्रकार के सभी लोग श्रमिक होते हैं। जब खुद में कोई वास्तविक बदलाव लाए बिना उनका श्रम समाप्त हो जाता है, तो उन्हें बेनकाब कर हटाया जाने लगेगा। जिन लोगों ने तमाम बुरे कर्म किए हैं उन्हें दंडित किया जाएगा और अविश्वासियों की तरह वे तमाम तरह की भयानक मौत मरेंगे। कुछ लोगों ने ईशनिंदा वाली और धृष्टतापूर्ण बातें बोली हैं, और इस वजह से परमेश्वर अब उन्हें नहीं चाहता है, और वह उन्हें शैतान को सौंप देता है। क्या उन्हें शैतान को सौंपने से अभी भी अच्छे नतीजे मिल सकते हैं? उनके पास परमेश्वर की सुरक्षा नहीं होगी, शैतान उन्हें पीड़ा देगा और उन पर कार्रवाई करेगा; वे राक्षसों के वश में हो जाएँगे, भूतों जैसे दिखेंगे और अंत में बुरी आत्माएँ अत्याचार कर-करके उन्हें मार डालेंगीं। क्या परमेश्वर अलग-अलग लोगों के साथ अलग-अलग तरह से व्यवहार नहीं करता? जब परमेश्वर लोगों में कार्य करता है, तो वह उन्हें प्रेरित कर रहा होता है, उन्हें प्रबोधन और मार्गदर्शन देता है, और उनकी आंतरिक दशाओं को बदल रहा होता है। अच्छे लोग अधिक से अधिक ईमानदार रहना पसंद करते हैं, क्योंकि ईमानदार रहकर ही वे अपने कर्तव्य भली-भाँति निभा सकते हैं और सत्य के मार्ग का अनुसरण कर सकते हैं। केवल ईमानदार रहकर ही वे पवित्र आत्मा का कार्य प्राप्त कर लगातार आत्म-चिंतन कर सकते हैं, परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करने से बच सकते हैं, अपने ऊपर आने वाली मुसीबतों में परमेश्वर के प्रति समर्पित हो सकते हैं, और हर चीज में सत्य की खोज और प्रयास कर सकते हैं। परमेश्वर लोगों से यही अपेक्षा करता है और जब वे उसकी अपेक्षाओं को पूरा कर लेते हैं, तो वह उनमें कार्य करता है, उन्हें प्रबुद्ध और रोशन करता है, उनका मार्गदर्शन करते हुए उन्हें आशीष देता है। परमेश्वर उन लोगों को अलग कर देता है जो सत्य से विमुख हो चुके हैं और उससे नफरत करते हैं। परमेश्वर उन बुरे और दुष्ट लोगों से कैसे निपटता है जो तमाम कुकर्म करते हैं और कलीसिया के कार्य में लगातार बाधा डालकर गड़बड़ी करते हैं? परमेश्वर उन्हें बेनकाब करके शैतान को सौंप देगा। वे परेशानियाँ पैदा करना शुरू कर देंगे और अपना असली चेहरा उजागर कर देंगे, वे न चाहते हुए भी प्रतिकूल और नकारात्मक बातें कहेंगे, और मसखरों जैसा व्यवहार करते हुए कलह के बीज बोएँगे। वे कई बुरे काम करेंगे जिससे कलीसिया में बाधाएँ और गड़बड़ियाँ पैदा होंगी, और जब परमेश्वर के चुने हुए लोग सत्य को समझेंगे और उन्हें पहचानकर उजागर कर सकेंगे, तो उन्हें हटाकर निष्कासित कर दिया जाएगा। क्या वे यही चाहते हैं? (नहीं।) जो लोग सत्य नहीं स्वीकारते और अपने उचित कर्तव्यों का पालन नहीं करते हैं, उनके लिए चीजें इसी तरह समाप्त होती हैं। जब लोग सही मार्ग पर नहीं चलते हैं, और यदि परमेश्वर उन्हें शैतान और उसके छोटे राक्षसों को सौंप देता है, तो वे पूरी तरह से बर्बाद हो जाते हैं और सदा-सर्वदा के लिए त्याग दिए जाते हैं। बेनकाब किए जाने पर वे सोचेंगे, “यह क्या हो रहा है? क्या मैंने कोई समस्या खड़ी की? क्या मैं बाधक था, क्या मैंने परेशानी पैदा की थी? मुझे इसकी जानकारी क्यों नहीं थी?” परमेश्वर हर चीज की जाँच-पड़ताल करता है, और यदि वह उन्हें बेनकाब करने और हटाने का माहौल बनाता है, तो यह सब बहुत जल्दी हो जाएगा। यह मुमकिन है कि एक-दो घटनाओं के बाद ही उन्हें दुष्ट घोषित कर दिया जाए और फिर उनसे निपटा जाए। कुछ चीजों का ध्यान परमेश्वर खुद रखता है, और कुछ अन्य चीजें वह राक्षसों, शैतान या बुरी आत्माओं से सेवा लेकर करता है। एक ओर वह परमेश्वर के चुने हुए लोगों को पूर्ण और शिक्षित करता है; वहीं दूसरी ओर वह बुरे लोगों को बेनकाब कर हटाता है। यदि तुम इसे अपनी धारणाओं का उपयोग करके मापते हो और सोचते हो कि यह परमेश्वर ने नहीं किया है, वह ऐसी चीजें नहीं करता है, ये चीजें उसके द्वारा आयोजित नहीं की जाती हैं, तो क्या यह गलत नहीं है? सभी चीजें परमेश्वर के हाथ में हैं और जब तुम लोग इसका अनुभव कर लोगे तो इस बात को जान लोगे।
कुछ लोग भले ही परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, मगर उनके दिल अभी भी लौकिक संसार में लगे हैं; वे अपने कर्तव्य निभा सकते हैं, लेकिन अभी भी अमीर बनने का सपना देखते हैं। उनके दिल बेचैन और असंतुष्ट रहते हैं और कभी-कभी तो वे परमेश्वर का घर छोड़ देना चाहते हैं, लेकिन डरते हैं कि उन्हें आशीष नहीं मिलेगी और वे आपदाओं में घिर जाएँगे, इसलिए वे बस अनमने ढंग से अपने कर्तव्य निभा पाते हैं। समय-समय वे नकारात्मकता फैलाकर थोड़ी शिकायत कर सकते हैं और भले ही उन्होंने बहुत ज्यादा बुरे काम नकिए हों मगर वे सकारात्मक भूमिका नहीं निभाते हैं। क्या परमेश्वर उनके इस व्यवहार के बारे में जानता है? (जानता है।) क्या लोग इसके बारे जानते हैं? अक्सर लोग इसे देख नहीं पाते। उन्हें लगता है कि ऐसे लोग अच्छे हैं, अपने कर्तव्य निभाने के लिए जल्दी उठकर देर तक जागते हैं और वे कष्ट सहने और कीमत चुकाने में सक्षम हैं, और वे बस कभी-कभार कमजोर पड़ते हैं और दूसरों के साथ मेलजोल करना पसंद नहीं करते। लेकिन परमेश्वर जानता है कि ऐसे लोग अपने दिलों में क्या सोचते हैं और कैसे व्यवहार करते हैं, और इसके लिए उसके पास उपयुक्त व्यवस्थाएँ हैं। जब समय आता है तो वह उन्हें बीमार पड़ने देता है और जब वे बीमार हो जाते हैं, तो अपने कर्तव्य नहीं निभा पाते। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब यह है कि उन्हें कर्तव्य पालन करने वालों की श्रेणी से हटा दिया गया है। यह अच्छी बात है या बुरी? (बुरी बात है।) तुम सभी अपने कर्तव्य निष्ठापूर्वक निभाने के लिए तैयार हो, तुम कष्ट, बीमारी या पीड़ा का सामना नहीं करना चाहते और तुम्हें लगता है कि इन सबके कारण तुम्हारे कर्तव्य निर्वहन में देरी होती है। लेकिन जो लोग अपने कर्तव्य नहीं निभाना चाहते, उन्हें लगेगा कि यदि उन्हें कष्टों या बीमारी का सामना करना पड़ेगा तो यह अच्छा है और वे सोचते हैं, “इस बार मुझे एक कारण, एक बहाना मिल गया है; मुझे अब और अपना कर्तव्य निभाने की जरूरत नहीं है।” वास्तव में यह एक बुरी बात है : इसका मतलब है कि परमेश्वर अब उन्हें नहीं चाहता, उनका अब कोई महत्व नहीं है और यह उन्हें स्वच्छ करने का परमेश्वर का तरीका है। स्वच्छ किए जाने के बाद मुमकिन है कि उनकी बीमारियाँ अचानक ठीक हो जाएँ, और जब वे बेहतर हो जाएँगे तो काम पर जाएँगे और पैसे कमाएँगे, अपना जीवन जीते हुए धन-दौलत कमाएँगे। परमेश्वर इस प्रकार के व्यक्ति को नहीं चाहता—जब परमेश्वर किसी को नहीं चाहता तो इसका क्या मतलब होता है? इसका मतलब है कि ऐसे व्यक्तियों का कोई परिणाम नहीं है; वे परमेश्वर की दृष्टि से हट गए हैं और उनके पास अब उद्धार प्राप्त करने का कोई अवसर नहीं है। परमेश्वर ने उन्हें पूर्वनियत करके चुना था, लेकिन अब वह उन्हें ठुकरा देता है; वह ऐसे व्यक्ति को बचाने का नहीं, बल्कि अपने घर से पूरी तरह निकालने का निर्णय लेता है। परमेश्वर ऐसे व्यक्ति को कभी नहीं बचाएगा। इस पल से ही, उसने उद्धार पाने के सभी अवसर खो दिए हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे क्या करते हैं या कैसा व्यवहार करते हैं, परमेश्वर अब उन्हें नहीं चाहता। यदि परमेश्वर अब किसी को नहीं चाहता, तो क्या यह उसका अंत है? इस शख्स की कहानी अभी खत्म नहीं हुई है। इससे पहले कि परमेश्वर किसी व्यक्ति को चुने, वे शैतान की सत्ता के अधीन रहते हैं। जब परमेश्वर उन्हें चुनता है, तो वे उसके घर में आते हैं और उसकी देखभाल और सुरक्षा में रहते हैं। जब वे परमेश्वर का विरोध करके उसे धोखा देते हैं, और परमेश्वर उन्हें अलग कर देता है, तो वे लौटकर कहाँ जाते हैं? (शैतान की सत्ता में।) वे फिर से शैतान की सत्ता में लौट जाते हैं। इसका मतलब है कि परमेश्वर ने वापस उन्हें शैतान को सौंप दिया है, जिसका अर्थ है, “मैं अब इस व्यक्ति को नहीं चाहता। वे सत्य नहीं स्वीकारते; मैं उन्हें तुम्हें देता हूँ,” और शैतान उन्हें ले लेता है। वह व्यक्ति शैतान के पास लौट जाता है और उसके पास उद्धार का कोई अवसर नहीं रहता। जब परमेश्वर किसी व्यक्ति को शैतान को लौटा देता है तो वह व्यक्ति क्या खो देता है? उसका परिणाम और अंत कैसा होगा? तुम लोगों को यह बात स्पष्ट होनी चाहिए। परमेश्वर द्वारा हटाया जाना कोई सरल बात नहीं है, और यह यकीनन किसी व्यक्ति के क्षणिक अपराध के कारण नहीं होता है, क्योंकि परमेश्वर लोगों को बचाने की हर मुमकिन कोशिश करता है और यूँ ही उन्हें नहीं हटाता है। जब परमेश्वर किसी व्यक्ति को चुनता है, तो उस व्यक्ति को क्या लाभ होता है? (उसे बचाए जाने का अवसर मिलता है।) और क्या? (वे सत्य प्राप्त करते हैं।) हाँ, स्वाभाविक रूप से परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करने के लिए उन्हें सत्य प्राप्त करना होगा। जब परमेश्वर किसी व्यक्ति को चुनता है और उसे शैतान की सत्ता से निकालकर अपने घर में ले जाता है, तो क्या शैतान परमेश्वर के लिए कोई शर्तें रखने की हिम्मत करता है? वह कोई भी शर्त रखने की हिम्मत नहीं करता, न ही कुछ कहने का साहस करता है। यदि परमेश्वर कहता है, “यह व्यक्ति मेरा है, तुम्हें अब इसे छूने की अनुमति नहीं है” तो शैतान आज्ञाकारी बनकर उस व्यक्ति को सौंप देता है। इस व्यक्ति के खान-पान, कपड़े-लत्ते, रहन-रहन, आने-जाने और हर गतिविधि पर परमेश्वर की देखरेख और नजर होती है, और परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान उस व्यक्ति को दोबारा छूने की हिम्मत नहीं करेगा। इसका क्या अर्थ है? इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति पूरी तरह से परमेश्वर की देखरेख और सुरक्षा के अधीन रहता है, जिसमें बाहरी ताकतों का कोई हस्तक्षेप या अतिक्रमण नहीं होता है, और उसके दिन-प्रतिदिन के सुख, दुख और दर्द, सभी परमेश्वर की नजरों में और उसकी देखरेख और सुरक्षा के अधीन होते हैं। यदि कोई आपदा या विपत्ति आती है, तो परमेश्वर उस व्यक्ति को इससे बचने देगा और उसे कुछ नहीं होगा; जबकि अविश्वासियों का और जिन्हें परमेश्वर ने नहीं चुना है उनका भाग्य वही होगा जिसके वे लायक हैं। यदि उन्हें मरना चाहिए तो वे मरेंगे; यदि उन्हें आपदा का सामना करना चाहिए तो वे आपदा का सामना करेंगे। कोई भी व्यक्ति इसे बदल नहीं सकता और कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे को बचा नहीं सकता। जब विपत्तियाँ आती हैं तो वे कई लोगों पर पड़ती हैं; लेकिन ऐसा कैसे है कि ये आपदाएँ तुम पर नहीं आतीं? यह परमेश्वर की सुरक्षा है। न तो शैतान, न राक्षस और न ही बुरी आत्माएँ तुम्हें छूने की हिम्मत करती हैं। जब ये सब तुम्हारे सामने आते हैं, तो ऐसा लगता है मानो उनके आगे एक बाधित इलाका बनाकर उनका रास्ता रोक दिया गया हो, मानो वे इन शब्दों को देख रहे हों, “इस व्यक्ति को हाथ मत लगाना,” या मानो वे स्वर्ग के आदेश की झलक देख रहे हों, और वे तुम्हें छूने की हिम्मत नहीं करते, और तुम सुरक्षित रहते हो। तुमने इन वर्षों में बहुत अच्छा जीवन जीया है, तुम्हारे लिए सब कुछ अच्छा रहा है और तुम सामान्य रूप से अपना कर्तव्य निभाने में सक्षम रहे हो—यह एक ऐसा व्यक्ति है जिसे परमेश्वर के हाथों से सुरक्षा मिल रही है। लेकिन जैसे व्यक्ति का मैंने अभी जिक्र किया उसे परमेश्वर की सुरक्षा मिलने के बाद न तो इसका एहसास होता है और न ही वह इसके प्रति सचेत होता है। वह कहता है, “यह शायद मेरी किस्मत या मेरा सौभाग्य ही है जो मैं इतने वर्षों तक शांति से जीता रहा, शैतान और वे राक्षस मुझसे बहुत दूर ही रहे।” यह व्यक्ति ऐसा नहीं कहता कि यह परमेश्वर की सुरक्षा थी, न ही वह परमेश्वर के प्रेम और अनुग्रह का मूल्य चुकाना जानता है। ऐसे लोग अपना कर्तव्य अच्छी तरह से नहीं निभाते, बल्कि वे बाधाएँ और गड़बड़ी पैदा कर केवल बुरे काम करते हैं। परमेश्वर उनके सिलसिलेवार व्यवहार को देखता है, उनके अंतरतम की जाँच-पड़ताल करता है, और उन्हें कई वर्षों तक समय और अवसर देता है, फिर भी वे पश्चात्ताप नहीं करते। परमेश्वर कहता है कि ऐसे व्यक्ति को बचाया नहीं जा सकता और आखिरकार उसे वापस शैतान को सौंप देने का फैसला करता है। यह व्यक्ति बेकार है और परमेश्वर अब और उसे नहीं चाहता। जब परमेश्वर ऐसे व्यक्ति को हटाता है तो सबसे ज्यादा खुश कौन होता है? शैतान सबसे ज्यादा खुश होता है और कहता है, “मेरे शिविर में एक और राक्षस, एक और साथी होना कितना बढ़िया है!” वह व्यक्ति, जो सरल स्वभाव का है और डरना नहीं जानता, इस प्रकार शैतान के आगोश में लौट आता है। शैतान उसके साथ क्या करेगा? (शैतान उसे कुचल देगा और नुकसान पहुँचाएगा।) शैतान लोगों को नुकसान पहुँचाने में इतना माहिर है कि कुछ लोग राक्षसों के वश में हो जाते हैं, कुछ को अजीब बीमारियाँ हो जाती हैं और कुछ अचानक असामान्य व्यवहार करने लगते हैं, जिससे उनका राक्षसी स्वरूप उजागर होता है, मानो कि वे पागल हों। शैतान अक्सर इस तरह से लोगों को नुकसान पहुँचाकर निगल जाता है। शैतान के क्रियाकलापों की यही प्रकृति है : वह चालबाजी और दुष्टता के भरोसे रहता है और लोगों को लालच देकर समर्पण करने, नुकसान पहुँचाने और निगल जाने के लिए विभिन्न तरीके इस्तेमाल करता है। क्या लोगों को नुकसान पहुँचाने के शैतान के तरीके यहीं तक सीमित हैं? बिल्कुल नहीं। शैतान लोगों को सिर्फ नुकसान पहुँचाकर, बर्बाद और तबाह कर भ्रष्ट नहीं करता, जैसा कि लोग कहते हैं। उसके पास और भी कई धूर्त और शातिर तरीके हैं, जिन सभी का भ्रष्ट मानवजाति ने प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया है। लोगों को शैतान को सौंपे जाने के बाद, उनमें से कुछ अचानक विशेष रूप से चतुर बन जाते हैं और चालें चलने में माहिर हो जाते हैं; अचानक उनके करियर के रास्ते बेहद सुगम हो जाते हैं और वे प्रोन्नत होकर अमीर बन जाते हैं। यह अच्छी बात है या बुरी? (बुरी बात।) मनुष्य की नजरों में यह अच्छी बात है, तो इसे बुरी कैसे माना जा सकता है? (ये लोग शैतान की चालों में फँस गए हैं और वे तेजी से परमेश्वर से अलग होते जाएँगे।) वे प्रोन्नत होकर अमीर बन जाते हैं और उनके लिए सब कुछ अच्छा चलने लगता है; जल्द ही, वे पैसे, रुतबे और प्रसिद्धि वाले दिग्गज कारोबारी बन जाते हैं। वे बहुत अच्छे से रहते हैं और पूरी तरह से लौकिक संसार में लौट आते हैं। क्या वे इस समय भी परमेश्वर के बारे में सोच सकते हैं? क्या वे अब भी परमेश्वर में विश्वास करना चाहते हैं? क्या उनके दिलों में अभी भी परमेश्वर बसता है? (नहीं।) उन्होंने खुद को पूरी तरह परमेश्वर से दूर कर लिया है और वे सच्चे मार्ग से विमुख हो गए हैं, और शैतान ने उन्हें पूरी तरह से अपना दास बना लिया है। वे अब परमेश्वर के घर के सदस्य नहीं हैं; वे अविश्वासी बन गए हैं, और इस तरह वे एकदम बर्बाद हो चुके हैं। क्या ऐसे लोग अभी भी परमेश्वर की सुरक्षा का आनंद ले सकते हैं? (नहीं ले सकते।) लौकिक संसार में और शैतान की सत्ता के अधीन रहकर वे किस स्थिति में जी रहे हैं? हर दिन, वे नहीं जानते कि वे जीवित रहेंगे या मर जाएँगे; जब भी वे बाहर जाते हैं तो नहीं जानते कि उन्हें किसी बदकिस्मती का सामना करना पड़ेगा या नहीं; उन्हें न तो सुकून का पता है, न ही खुशी का; और उनके दिल आतंक, बेचैनी और डर से भरे रहते हैं। वे जानते हैं कि परमेश्वर को धोखा देने के दुष्परिणाम क्या होंगे, इसलिए वे दिन भर चिंता में डूबे रहते हैं, वे यह भी नहीं जानते कि न जाने कब उन पर आपदा आ पड़ेगी और कब उन्हें दंडित किया जाएगा। लोगों के दिलों में ऐसा ही महसूस होता है जब परमेश्वर उन्हें ठुकराता है : वे अंधकार में फँस जाते हैं, बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं होता, वे जो भी कदम उठाते हैं वह बहुत कठिन और भयावह होता है, और उनका जीवन बहुत कष्टदायी होता है। क्या तुम्हें लगता है कि ये लोग इसलिए कष्टदायी जीवन जीते हैं क्योंकि ये शोहरत और लाभ के पीछे भागते हैं, लौकिक संसार का अनुसरण करते हैं, आरामदायक जीवन जीते हैं और अविश्वासियों के मार्ग पर चलते हैं? नहीं। ऐसा इसलिए है क्योंकि जब परमेश्वर उन्हें त्याग देता है, तो वह उनकी परवाह नहीं करता। परमेश्वर की सुरक्षा और देखरेख के बिना वे शैतान की सत्ता के अधीन रहने वाले लोग बन जाते हैं और तुरंत अंधकार में घिर जाते हैं। अंधकार में घिरने पर लोग सबसे पहले यही महसूस करते हैं कि उनके दिल अब शांत नहीं हैं और उन्हें अब परमेश्वर की उपस्थिति महसूस नहीं होती है। उन्हें लगता है कि संसार आतंक, जाल, धोखे और खतरे से भरा है, और जीवन बेहद कठिन है। क्या इससे कोई फर्क पड़ता है कि संसार में उनका रुतबा क्या है? क्या इससे कोई फर्क पड़ता है कि वे कितने काबिल या शक्तिशाली हैं? नहीं, जो परमेश्वर में विश्वास नहीं करते या जिन्हें उसने हटा है, उन सभी का यही परिणाम होगा, वे जीते-जागते नरक में गिर जाएँगे, जो बहुत दर्दनाक है। वहाँ तमाम जिंदा भूत हर दिन तुम्हें नुकसान पहुँचाएँगे। यह रहने लायक जगह नहीं है; यह मौत से भी बदतर जीवन है।
जब लोग परमेश्वर की सुरक्षा में होते हैं, तो वे सुरक्षित, शांत और आनंदित महसूस करते हैं। वे मनुष्य की तरह जी सकते हैं और सामान्य मानवता वाली सभी गतिविधियाँ कर सकते हैं; उनके बारे में सब कुछ सामान्य और वैसा ही है जैसा होना चाहिए, और उनके दिल स्वतंत्र और सहज हैं। जब लोग परमेश्वर की देखरेख और सुरक्षा खो देते हैं, तो ये भावनाएँ गायब हो जाती हैं, फिर वे अपने कौशल, क्षमताओं, विचारों और सांसारिक आचरण के फलसफों और अपने गुस्से के साथ अपने आस-पास के तमाम लोगों, घटनाओं और चीजों पर प्रतिक्रिया करते हैं। ये तमाम लोग, घटनाएँ और उनके आस-पास की चीजें क्या हैं? ये सभी बुरे लोग, दुष्ट लोग, बड़े और छोटे राक्षस और दुष्ट आत्माएँ हैं। अगर लोग परमेश्वर की सुरक्षा के बिना नापाक आत्माओं वाली जगह पर रहें, तो क्या उनका जीवन अच्छा होगा? (नहीं।) यही कारण है कि लोग परमेश्वर को त्यागने के बाद एक भी अच्छे दिन का आनंद नहीं ले पाते हैं; उनके लिए जीना बेहद कठिन हो जाता है। जब लोग परमेश्वर की देखरेख और सुरक्षा के अधीन रहते हैं, तो वे इसे संजोना नहीं जानते और वे इसे गंभीरता से नहीं लेते हैं; जब परमेश्वर उन्हें त्याग देता है, तो पछतावे के लिए बहुत देर हो चुकी होती है, और यह वास्तव में बहुत बड़ी तबाही है! जब लोग परमेश्वर के आयोजन, देखरेख और सुरक्षा के अधीन रहते हैं, तभी वे सच्ची खुशी, शांति और आनंद का अनुभव कर सकते हैं, जो कि व्यक्ति के दिल की गहराई में महसूस होने वाली ऐसी शांति और खुशी है जो परमेश्वर से आती है। जब लोग परमेश्वर की देखरेख और सुरक्षा खो देते हैं, तो उनके दिलों की गहराई में मौजूद दर्द, चिंता, व्यग्रता, असहजता और भय धीरे-धीरे बढ़ने लगता है। उनके दिलों में पीड़ा बढ़ती जाती है और इससे बाहर निकलना उनके लिए कठिन हो जाता है; वे मुक्त नहीं हो पाते। किसी व्यक्ति के कौशल और खूबियाँ कितनी बड़ी हो सकती हैं? ऐसा क्या है जिसका सामना तुम अकेले करते हो? तुम तमाम नापाक और बुरी आत्माओं का सामना करते हो! बाहर से वे लोगों जैसे दिखते हैं : उनमें आकार, स्वरूप, देह और रक्त होता है। लेकिन वे सभी शैतान के लोग हैं, शैतान और हर प्रकार की बुरी और नापाक आत्मा ही उन्हें बहकाती है। इन चीजों के सामने कोई व्यक्ति कितना काबिल हो सकता है? क्या वे निडर हो सकते हैं? क्या वे सुकून और आनंद महसूस कर सकते हैं? चाहे वे कितनी भी बड़ी हस्ती हों, कितने भी काबिल या प्रखर व्यक्ति हों, शैतान की सत्ता के अधीन और इस संसार में रहकर उन्हें कैसा महसूस होगा? जब वे अकेले और शांत होंगे, तो वे अपने आस-पास के लोगों, घटनाओं और चीजों के बारे में सोचेंगे और तब अपने रास्ते में आने वाली हर चीज से निपटना उनके लिए कितना मुश्किल होगा; उन सभी को संभालने के लिए उन्हें अपना दिमाग लड़ाना होगा। इन सभी चीजों को निपटाने के लिए मनुष्य की ताकत और साधनों का उपयोग करना उनके लिए कितनी कठिन परीक्षा है! उनके लिए जीना इतना मुश्किल है; इतना दर्दनाक है। कुछ लोग कहते हैं कि महान हस्तियों को इतना कष्ट नहीं होता, लेकिन वास्तव में उन्हें ज्यादा कष्ट होता है। सामान्य लोग जीवन के एक छोटे से चक्र का सामना करते हैं जबकि महान हस्तियों को जीवन के एक बड़े चक्र के साथ ही अधिक कष्ट और पीड़ा का सामना करना पड़ता है। क्या वे खुशी महसूस करते हैं? (नहीं महसूस करते।) तो फिर परमेश्वर की देखरेख और सुरक्षा खो देने और उसके द्वारा त्याग दिए जाने पर लोगों को किस प्रकार के जीवन का सामना करना पड़ेगा? वे उन सभी नापाक और बुरी आत्माओं का सामना अपने-आप और अकेले ही करेंगे—जिससे उनका जीवन असहनीय हो जाएगा! वे किसी भी समय अपने शत्रुओं की लगाई आग में या उनकी साजिशों के परिणामस्वरूप मर सकते हैं, और वे थकाऊ, दर्दनाक और संतप्त जीवन जीते हैं। कुछ लोग मूर्ख होते हैं और सोचते हैं कि परमेश्वर पर विश्वास करना, लगातार सत्य का अनुसरण करना और हमेशा परमेश्वर के प्रति समर्पण करने और परमेश्वर के वचनों को सुनने पर ध्यान देना कठिन है; वे सोचते हैं कि सांसारिक लोग ही स्वतंत्र हैं और उन्हें लगता है कि परमेश्वर में विश्वास रखना बेकार है, इसलिए वे अब और विश्वास नहीं रखना चाहते हैं। वे हमेशा इसी तरह सोचते हैं, लेकिन एक दिन उन्हें जरूर पता चलेगा कि इसके परिणाम क्या हैं।
सृष्टिकर्ता के हाथों में लोग अनंत शांति, आनंद, आशीष, सुरक्षा और देखरेख का आनंद लेते हैं, जबकि जिन लोगों में मानवता और अंतरात्मा का अभाव है, उन्हें इन चीजों का अनुभव नहीं होगा। लेकिन जब परमेश्वर किसी व्यक्ति को त्याग देता है, तो उसे तुरंत अंधकार में घिरने की पीड़ा महसूस होगी, और उस समय वह पूरी तरह से समझ जाएगा कि परमेश्वर में विश्वास रखना, अपने कर्तव्यों का पालन करना और परमेश्वर के घर में और उसकी उपस्थिति में रहना कितना खुशहाल और आनंददायक होता था, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। तुम कह सकते हो, “परमेश्वर को त्यागने का मुझे पछतावा है। क्या मैं उस पर नए सिरे से विश्वास रखना शुरू कर सकता हूँ?” क्या परमेश्वर ऐसे अवसर देता है? (नहीं देता है।) यदि तुम अब परमेश्वर को नहीं चाहते, तो क्या परमेश्वर अब भी तुम्हें चाहेगा? क्या तुम शैतान से प्रेम नहीं करते? तुम अपने दिल में शैतान से प्यार करते हो, लेकिन तुम अभी भी कुछ आशीष पाने के लिए परमेश्वर का अनुसरण करना चाहते हो। क्या परमेश्वर को यह मंजूर हो सकता है? (नहीं हो सकता।) ऐसा ही होता है। इसलिए लोगों को इन बातों पर गौर से सोच-विचार करने के लिए अक्सर परमेश्वर की उपस्थिति में आना चाहिए, जैसे कि : सच्ची खुशी क्या है; सच्ची खुशी, आनंद और शांति पाने के लिए कैसे जिएँ; और कौन-सी चीजें लोगों के जीवन में सबसे अधिक मूल्यवान और संजोए जाने योग्य हैं। इन बातों पर अवश्य विचार करना चाहिए। जितना अधिक तुम उचित चीजों और सत्य पर विचार करोगे, उतना ही ज्यादा परमेश्वर तुम्हें प्रबुद्ध कर तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा, और तुम्हें समझने, जानने और देखने देगा, और तुम सत्य का अभ्यास करने और सत्य में प्रवेश करने में उतना ही अधिक प्रबुद्ध और रोशन होओगे—क्या तब तुम्हारा विश्वास और अधिक बढ़ता नहीं जाएगा? यदि तुम हमेशा आलसी और अवज्ञाकारी बने रहते हो, हमेशा सत्य से विमुख रहते हो और इसे पसंद नहीं करते; यदि तुम कभी भी परमेश्वर की उपस्थिति में नहीं आना चाहते और हमेशा स्वच्छंद होने और परमेश्वर से दूर जाने के बारे में सोचते हो; और यदि तुम न तो उसका मार्गदर्शन, न उसकी देखभाल, और न ही उसकी सुरक्षा स्वीकारते हो, तो क्या परमेश्वर तुम्हें बाध्य कर सकता है? यदि यही तुम्हारा रवैया है, तो परमेश्वर यकीनन तुम्हें प्रबुद्ध नहीं करेगा, लिहाजा तुम्हारा विश्वास कम हो जाएगा। तुम जितना अधिक समय तक विश्वास रखोगे, तुम्हारी ऊर्जा उतनी ही कम होगी, और फिर तुम शिकायत करने लगोगे, अपनी धारणाएँ और नकारात्मकता फैलाओगे, और समय आने पर परेशानी खड़ी करोगे। एक बार अगर तुमने परेशानी खड़ी कर दी और कलीसिया के कार्य में बाधा डाल दी तो परमेश्वर का घर तुम्हारे साथ इतनी उदारता से व्यवहार नहीं करेगा, और वह तुम्हें निकाल देगा या निलंबित कर देगा, और तब परमेश्वर में विश्वास रखने के तुम्हारे मार्ग का अंत हो जाएगा। इसका दोषी कौन होगा? (तुम ही होगे।) ऐसा अंत उन लोगों का होता है जो परमेश्वर में विश्वास तो रखते हैं, लेकिन सत्य का अनुसरण नहीं करते। जैसी कि कहावत भी है, “तीन फुट गहरी बर्फ एक दिन में नहीं जम सकती।” यदि तुमने कई वर्षों तक परमेश्वर में विश्वास किया लेकिन सत्य का अनुसरण नहीं किया, और तुमने संसार का मार्ग चुना है, और परमेश्वर के बजाय शैतान का अनुसरण किया है तो परमेश्वर तुम्हें त्याग देगा और अकेला छोड़ देगा। परमेश्वर लोगों को मजबूर नहीं करता। परमेश्वर का उद्धार, उसका वचन, और उसका सत्य और जीवन मनुष्य को मुफ्त में दिया गया है; वह तुमसे पैसे नहीं माँगता या तुम्हारे साथ सौदा नहीं करता। यदि तुम न केवल सत्य को स्वीकारने से इनकार करते हो, बल्कि परमेश्वर से शिकायत कर कलीसिया के कार्य में बाधा भी डालते हो तो क्या तुम मुसीबत नहीं बुला रहे हो? फिर परमेश्वर क्या करेगा? वह यकीनन तुम्हें त्याग देगा, और यही तुम्हारे किये की सजा होगी। यदि तुम अपने हाथ आए परमेश्वर के महान उद्धार को तत्काल ठुकरा देते और फिर भी महसूस करते हो कि तुम्हारे साथ अन्याय हुआ है और परमेश्वर के साथ सौदा करना चाहते हो, तो यह वाकई अनुचित है! यदि ऐसा मामला है, तो तुम्हें संसार के दलदल भरे गड्ढे में लौटकर अपनी मर्जी से काम करना चाहिए! परमेश्वर अब कोई परवाह नहीं करेगा और इसी में तुम्हारा परिणाम तय होगा। कुछ लोग कहते हैं, “यदि लोग अब परमेश्वर को नहीं चाहते, तो वह उन्हें मरने क्यों नहीं देता?” क्या ऐसा सोचने वाले लोग नहीं हैं? (बिल्कुल हैं।) कुछ लोग क्रूर होते हैं और कहते हैं, “यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर का अनुसरण नहीं करता, तो परमेश्वर को उन्हें शाप देना चाहिए, उन्हें दंडित करके नष्ट कर देना चाहिए!” क्या तुम लोगों को लगता है कि परमेश्वर का स्वभाव ऐसा है? (नहीं, ऐसा नहीं है।) परमेश्वर ऐसा नहीं करता; वह लोगों पर दबाव नहीं डालता। किसी व्यक्ति का जीवन कैसा होगा यह परमेश्वर पहले ही तय कर देता है, वह बेतरतीब ढंग से कार्य नहीं करता है। उस व्यक्ति का भाग्य, मंजिल और परिणाम परमेश्वर पहले से तय कर चुका है, और यदि वह परमेश्वर का अनुसरण नहीं करता है, तब भी परमेश्वर उसे उसकी मूल नियति के अनुसार स्वाभाविक रूप से जीने देगा। परमेश्वर उसे शैतान को सौंप देगा, और बात खत्म; आखिरकार जब सही समय आएगा यानी उसके जीवन के अंत में उसका परिणाम वही होगा जो परमेश्वर ने तय किया है। परमेश्वर इन सभी व्यवस्थाओं को नहीं बिगाड़ेगा। मनुष्य के शब्दों में, मसीह-विरोधियों की धूर्तता और दुष्टता के विपरीत, परमेश्वर एक विशेष तर्कसंगत तरीके से कार्य करता है; मसीह-विरोधी कहते हैं : “यदि तुम मेरा अनुसरण नहीं करोगे, तो मैं तुम्हें मार डालूँगा!” यह कैसा स्वभाव है? यह तो एक डाकू का स्वभाव है, यह एक लुटेरे और दुष्ट व्यक्ति का स्वभाव है। परमेश्वर इस तरह से व्यवहार नहीं करता। परमेश्वर कहता है, “यदि तुम मेरा अनुसरण नहीं करते हो, तो शैतान के पास लौट जाओ, और अब से हमारे बीच के सभी संबंध टूट जाएँगे। तुम्हें न तो मेरी सुरक्षा और न ही मेरी देखरेख का आनंद मिलेगा; इस आशीष में तुम्हारा कोई हिस्सा नहीं होगा। जैसे चाहो वैसे जियो; फैसला तुम्हारा है!” परमेश्वर लोगों के प्रति सहनशील है और शैतान की तरह उन्हें मजबूर नहीं करता है; शैतान हमेशा तुम्हें काबू करना और तुम पर हमेशा के लिए कब्जा बनाए रखना चाहता है, भले ही तुम ऐसा न चाहो। परमेश्वर ऐसा नहीं करता। चीजों को करने के लिए परमेश्वर के अपने सिद्धांत हैं; वह लोगों से उसका अनुसरण करने के लिए कहता है, लेकिन वह उन्हें कभी मजबूर नहीं करता। एक सृजित प्राणी के रूप में, यदि तुम सत्य नहीं स्वीकार सकते, यदि तुम एक सृजित प्राणी के कर्तव्य पूरे नहीं कर सकते, तो तुम्हें कभी परमेश्वर की आशीष नहीं मिलेगी।
7 नवंबर 2017