परमेश्वर के दैनिक वचन : परमेश्वर को जानना | अंश 54

अय्यूब ने कानो कान परमेश्वर के विषय में सुना था

(अय्यूब 9:11) देखो, वह मेरे सामने से होकर तो चलता है परन्तु मुझको नहीं दिखाई पड़ता; और आगे को बढ़ जाता है, परन्तु मुझे सूझ ही नहीं पड़ता है।

(अय्यूब 23:8-9) देखो, मैं आगे जाता हूँ परन्तु वह नहीं मिलता; मैं पीछे हटता हूँ, परन्तु वह दिखाई नहीं पड़ता; जब वह बाईं ओर काम करता है, तब वह मुझे दिखाई नहीं देता; वह दाहिनी ओर ऐसा छिप जाता है, कि मुझे वह दिखाई ही नहीं पड़ता।

(अय्यूब 42:2-6) मैं जानता हूँ कि तू सब कुछ कर सकता है, और तेरी युक्‍तियों में से कोई रुक नहीं सकती। तू ने पूछा, "तू कौन है जो ज्ञानरहित होकर युक्‍ति पर परदा डालता है?" परन्तु मैं ने तो जो नहीं समझता था वही कहा, अर्थात् जो बातें मेरे लिये अधिक कठिन और मेरी समझ से बाहर थीं जिनको मैं जानता भी नहीं था। तू ने कहा, "मैं निवेदन करता हूँ सुन, मैं कुछ कहूँगा, मैं तुझ से प्रश्न करता हूँ, तू मुझे बता।" मैं ने कानों से तेरा समाचार सुना था, परन्तु अब मेरी आँखें तुझे देखती हैं; इसलिये मुझे अपने ऊपर घृणा आती है, और मैं धूल और राख में पश्चाताप करता हूँ।

हालाँकि परमेश्वर ने अय्यूब पर अपने आपको प्रकट नहीं किया था, फिर भी अय्यूब ने परमेश्वर की संप्रभुता पर विश्वास किया

इन वचनों का मुख्य बिन्दु क्या है? क्या तुम लोगों में से किसी ने यह महसूस किया कि यहाँ पर एक तथ्य है? पहला, अय्यूब को कैसे पता चला कि एक परमेश्वर है? और उसे कैसे पता चला कि स्वर्ग एवं पृथ्वी और सभी चीज़ों पर परमेश्वर शासन करता है? एक अंश है जो इन दोनों प्रश्नों का उत्तर देता है: "मैं ने कानों से तेरा समाचार सुना था, परन्तु अब मेरी आँखें तुझे देखती हैं; इसलिये मुझे अपने ऊपर घृणा आती है, और मैं धूल और राख में पश्‍चाताप करता हूँ" (अय्यूब 42:5-6)। इन वचनों से हम यह सीखते हैं कि, अपनी आंखों से परमेश्वर को देखने के बजाए, अय्यूब ने महापुरुषों से परमेश्वर के बारे में सीखा था। यह इन परिस्थितियों के अंतर्गत था कि उसने परमेश्वर के मार्ग का अनुसरण करना प्रारम्भ किया, जिसके बाद उसने अपने जीवन में, और सभी चीज़ों के मध्य में परमेश्वर के अस्तित्व की पुष्टि की थी। यहाँ पर एक निर्विवादित तथ्य है—और वह क्या है? परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग का अनुसरण करने के योग्य होने के बावजूद, अय्यूब ने कभी परमेश्वर को नहीं देखा था। क्या वह इसमें आज के समय के लोगों के समान ही नहीं था? अय्यूब ने परमेश्वर को कभी नहीं देखा था, जिसका अर्थ है कि यद्यपि उसने परमेश्वर के बारे में सुना था, फिर भी वह नहीं जानता था कि परमेश्वर कहाँ था, या परमेश्वर किस के समान था, या परमेश्वर क्या कर रहा था, जो आत्मनिष्ठ कारक हैं; वस्तुनिष्ठ रूप से कहें, हालाँकि वह परमेश्वर का अनुसरण करता था, फिर भी परमेश्वर कभी उसके सामने प्रकट नहीं हुआ था और कभी उससे बातचीत नहीं की थी। क्या यह एक तथ्य नहीं है? हालाँकि परमेश्वर ने अय्यूब से बातचीत नहीं की, या उसे कोई आदेश नहीं दिया, फिर भी अय्यूब ने परमेश्वर के अस्तित्व को देखा था, और सभी चीज़ों के मध्य और उन महापुरुषों में उसकी संप्रभुता को देखा था जिसके अंतर्गत उसने परमेश्वर के बारे में कानो कान सुना था, जिसके बाद उसने परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने का जीवन का प्रारम्भ किया। शुरूआती बातें एवं प्रक्रिया ऐसी ही थीं जिनके द्वारा अय्यूब ने परमेश्वर का अनुसरण किया था। परन्तु इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह किस प्रकार परमेश्वर का भय मानता और बुराई से दूर रहता था, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह अपनी ईमानदारी के प्रति किस प्रकार दृढ़ता से स्थिर रहा, क्योंकि परमेश्वर तब भी उस पर प्रकट नहीं हुआ। आओ हम इस अंश को पढ़ें। उसने कहा, "देखो, वह मेरे सामने से होकर तो चलता है परन्तु मुझको नहीं दिखाई पड़ता; और आगे को बढ़ जाता है, परन्तु मुझे सूझ ही नहीं पड़ता है" (अय्यूब 9:11)। जो कुछ ये वचन कह रहे हैं वह यह है कि शायद अय्यूब ने परमेश्वर को अपने आसपास महसूस किया था या शायद नहीं किया था—परन्तु वह कभी भी परमेश्वर को नहीं देख सका था। ऐसे भी समय थे जब उसने कल्पना की कि परमेश्वर उसके सामने से जा रहा था, या कार्य कर रहा था, या मनुष्य को मार्गदर्शन दे रहा था, परन्तु वह कभी नहीं जान पाया था। परमेश्वर तब मनुष्य के पास आ जाता है जब वह इसकी उम्मीद नहीं करता है; मनुष्य नहीं जानता है कि कब परमेश्वर उसके पास आ जाता है, और वह कहाँ से उसके पास आ जाता है, क्योंकि मनुष्य परमेश्वर को देख नहीं सकता है, और इस प्रकार, मनुष्य के लिए परमेश्वर छिपा हुआ है।

परमेश्वर में अय्यूब का विश्वास नहीं हिला क्योंकि परमेश्वर उससे छिपा हुआ था

पवित्र शास्त्र के निम्नलिखित अंश में, तब अय्यूब कहता है, "देखो, मैं आगे जाता हूँ परन्तु वह नहीं मिलता; मैं पीछे हटता हूँ, परन्तु वह दिखाई नहीं पड़ता; जब वह बाईं ओर काम करता है, तब वह मुझे दिखाई नहीं देता; वह दाहिनी ओर ऐसा छिप जाता है, कि मुझे वह दिखाई ही नहीं पड़ता" (अय्यूब 23:8-9)। इस लेख में, हम यह सीखते हैं कि अय्यूब के अनुभवों में, परमेश्वर पूरे समय उससे छिपा हुआ था; परमेश्वर उसके सामने खुलकर प्रकट नहीं हुआ था, न ही उसने खुलकर उससे कोई बातचीत की थी, फिर भी परमेश्वर के अस्तित्व के विषय में अय्यूब अपने हृदय में आश्वस्त था। उसने हमेशा से विश्वास किया था कि शायद परमेश्वर उसके सामने चल रहा था, या शायद उसके बगल में रहकर कार्य कर रहा था, और यह कि हालाँकि वह परमेश्वर को देख नहीं सकता था, फिर भी परमेश्वर उसके बगल में था और उसकी सभी चीज़ों पर शासन कर रहा था। अय्यूब ने परमेश्वर को कभी नहीं देखा था, परन्तु वह अपने विश्वास के प्रति सच्चाई में बना रह सकता था, जो कोई और व्यक्ति नहीं कर सकता था। और वे ऐसा क्यों नहीं कर सकते थे? क्योंकि परमेश्वर ने अय्यूब से बात नहीं की थी, या उस पर प्रकट नहीं हुआ था, और यदि उसने सचमुच में विश्वास नहीं किया होता, तो वह आगे नहीं बढ़ सकता था, न ही वह परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग को दृढ़ता से थामे रह सकता था। क्या यह सही नहीं है? तू कैसा महसूस करता है जब तू पढ़ता है कि अय्यूब इन वचनों को बोल रहा है? क्या तू महसूस करता है कि अय्यूब की खराई एवं सीधाई, और उसकी धार्मिकता सही है, और परमेश्वर की ओर से कोई अतिश्योक्ति नहीं है? भले ही परमेश्वर ने अय्यूब से अन्य लोगों के समान ही व्यवहार किया था, और उसके सामने प्रकट नहीं हुआ या उससे बातचीत नहीं की थी, तब भी अय्यूब अपनी ईमानदारी को दृढ़ता से थामे हुए था, वह तब भी परमेश्वर की संप्रभुता पर विश्वास करता था, और इससे बढ़कर, वह परमेश्वर को ठेस पहुंचाने के विषय में अपने भय के फलस्वरूप लगातार होमबलि चढ़ाता था और परमेश्वर से प्रार्थना किया करता था। परमेश्वर को देखे बिना भी परमेश्वर का भय मानने की अय्यूब की योग्यता में, हम देखते हैं कि वह सकारात्मक चीज़ों से कितना प्रेम करता था, और उसका वास्तविक विश्वास कितना दृढ़ था। उसने परमेश्वर के अस्तित्व को नहीं नकारा क्योंकि परमेश्वर उससे छिपा हुआ था, न ही उसने अपने विश्वास को खोया और परमेश्वर को छोड़ा क्योंकि उसने उसे कभी देखा ही नहीं था। इसके बजाए, सभी चीज़ों पर शासन करने के लिए परमेश्वर के छिपे हुए कार्यों के बीच, उसने परमेश्वर के अस्तित्व को महसूस किया, और परमेश्वर की संप्रभुता एवं सामर्थ का एहसास किया था। उसने ईमानदार होना नहीं त्यागा क्योंकि परमेश्वर छिपा हुआ था, न ही उसने परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के मार्ग को छोड़ा क्योंकि परमेश्वर उसके सामने कभी प्रकट नहीं हुआ था। अय्यूब ने कभी नहीं कहा कि परमेश्वर अपने अस्तित्व को साबित करने के लिए उसके सामने खुलकर प्रकट हो, क्योंकि उसने पहले ही सभी चीज़ों में परमेश्वर की संप्रभुता को देख लिया था, और वह विश्वास करता था कि उसने उन आशीषों एवं उस अनुग्रह को हासिल किया था जिन्हें अन्य लोगों ने हासिल नहीं किया था। हालाँकि परमेश्वर उससे छिपा रहा, फिर भी परमेश्वर में अय्यूब का विश्वास कभी नहीं डगमगाया था। इस प्रकार, उसने उन वस्तुओं की फसल काटी जिन्हें अन्य लोगों ने प्राप्त नहीं किया था: परमेश्वर की स्वीकृति और परमेश्वर की आशीषें।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II

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