खून और आँसुओं से भीगे उन्नीस वर्ष

06 मई, 2024

वांग युफेंग, चीन

जब मैं छोटी लड़की थी, तभी से मैं अपने माता-पिता के साथ प्रभु में विश्वास रखती आई हूँ। जब मैं अपनी उम्र के तीसवें दशक में थी, मेरे पति का एक बीमारी से देहांत हो गया, और अपने दो बेटों और एक बेटी के पालन-पोषण का जिम्मा अकेले मुझ पर आ गया। प्रभु के अनुग्रह से मेरे बच्चों ने अपने करियर में कामयाबी हासिल की और वे अपने परिवारों के साथ बहुत खुशहाल जीवन जीने लगे। फिर 1999 में मेरे पूरे परिवार ने और मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार कर लिया और हम उत्साह से राज्य के सुसमाचार को फैलाकर गवाही देने लगे। लेकिन अचानक हुई एक गिरफ्तारी ने हमारे परिवार का शांतिपूर्ण जीवन नष्ट कर दिया।

जून 2002 में एक रात मुझे पता चला कि पुलिस मेरे सबसे बड़े बेटे को गिरफ्तार करने उसके दफ्तर गई थी, लेकिन जिस क्षण पुलिस का ध्यान कहीं और था, वह आँख बचाकर भाग निकला। पुलिस वाले हर जगह उसकी तलाश कर रहे थे। यह खबर सुनकर मैं घबरा गई और आशंकाओं से भर गई। क्या वे उसे पकड़ लेंगे? अगर वह सचमुच गिरफ्तार हो गया, तो वे निश्चित रूप से उसे प्रताड़ित करेंगे और वास्तव में उस पर कहर बरपाएँगे। हमारा परिवार खुशहाल था और हमारी सारी जरूरतें पूरी हो रही थीं। मेरे सभी बच्चे विश्वासी थे और अपने कर्तव्य में सक्रिय थे—सब-कुछ बढ़िया चल रहा था! लेकिन अब पुलिस मेरे बेटे के पीछे थी, उसकी नौकरी जा चुकी थी और वह घर जाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था। हमारा परिवार टूट गया। समझ नहीं आया, क्या करें। मैंने इस बारे में जितना ज्यादा सोचा, उतनी ही ज्यादा बेचैन हो गई, इसलिए मैंने परमेश्वर के सामने आकर उससे प्रार्थना की कि वह मेरे बेटे की देखभाल करे और अपनी इच्छा समझने मेरा मार्गदर्शन करे। प्रार्थना के बाद मुझे परमेश्वर की कही यह बात याद आई : “निराश न हो, कमज़ोर न बनो, मैं तुम्हारे लिए चीज़ें स्पष्ट कर दूँगा। राज्य की राह इतनी आसान नहीं है; कुछ भी इतना सरल नहीं है! तुम चाहते हो कि आशीष आसानी से मिल जाएँ, है न? आज हर किसी को कठोर परीक्षणों का सामना करना होगा। बिना इन परीक्षणों के मुझे प्यार करने वाला तुम लोगों का दिल मजबूत नहीं होगा और तुम्हें मुझसे सच्चा प्यार नहीं होगा। यदि ये परीक्षण केवल मामूली परिस्थितियों से युक्त भी हों, तो भी सभी को इनसे गुज़रना होगा; अंतर केवल इतना है कि परीक्षणों की कठिनाई हर एक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होगी(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 41)। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि आस्था रखना और परमेश्वर का अनुसरण करना कोई आसान मार्ग नहीं है—सबको तकलीफों और परीक्षणों से गुजरना पड़ता है। पुलिस का मेरे बेटे के पीछे पड़ना परेश्वर की इजाजत से हो रहा था। वह ऐसी तकलीफदेह हालत का इस्तेमाल हमारी आस्था और प्रेम को पूर्ण करने के लिए कर रहा था—यह तकलीफ परमेश्वर का एक आशीष थी। इस बारे में इस तरह से सोचकर मुझे सुकून मिला, और अपने बेटे को परमेश्वर के हाथों में छोड़ देने और उसके शासन और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने के लिए तैयार होकर मैंने प्रार्थना की।

बाद में जब पुलिस को पता चला कि मेरा बेटा कलीसिया में परमेश्वर के वचनों की किताबें छापा करता था, तो उन्होंने उसे राष्ट्रीय स्तर पर वांछित अपराधी के रूप में सूचीबद्ध कर दिया, और यह घोषणा करते हुए कि वे उसे पकड़ने के लिए बाध्य और दृढ़ हैं, उसकी तलाश में बड़ी संख्या में अफसर लामबंद कर दिए। इस खबर ने मुझे बहुत बेचैन और परेशान कर दिया—अगर कम्युनिस्ट पार्टी ने उसे उच्च प्राथमिकता वाला लक्ष्य बना दिया है, तो वह गिरफ्तारी से कैसे बच पाएगा? मैंने हाल ही में एक भाई के बारे में सुना था, जिसे पुलिस ने गिरफ्तार कर पीट-पीटकर मार डाला था। कम्युनिस्ट पार्टी जब विश्वासियों से इतनी घृणा करती है, तो अगर मेरा बेटा पकड़ा गया, तो क्या वे उसे जबरदस्त यातना नहीं देंगे? जितना अधिक मैं इस बारे में सोचती थी, उतनी ही अधिक भयभीत होती जा रही थी, मेरा हर दिन शंका और परेशानी में बीतता। न खा पाती, न सो पाती, हर बार जब पुलिस-कार के सायरन की आवाज सुनती, मेरा दिल जोर से धड़कने लगता। उस दौरान मैं अत्यधिक चिंता की स्थिति में थी, और मेरी सेहत भी ठीक नहीं थी। कुछ दिन बाद पुलिस ने हमारे घर दो बार यह पूछने के लिए फोन किया कि मेरा बेटा कहाँ है, और खतरनाक ढंग से धमकाते हुए कहा, “अगर तुम लोगों ने उसे हमारे हवाले नहीं किया, तो यह अपराधी को शरण देना होगा और तुम्हारे परिवार का एक भी सदस्य बच नहीं पाएगा!” यह सुनकर मैं बहुत डर गई, पता नहीं कब पुलिस हमारे घर की तलाशी लेने और शायद मुझे, मेरे छोटे बेटे और उसकी पत्नी को गिरफ्तार करने आ धमके। मुझे और भी ज्यादा फ़िक्र इस बात की थी कि पता नहीं कब वे मेरे बड़े बेटे को पकड़ लें। मैं बार-बार परमेश्वर से प्रार्थना कर उससे विनती करती कि मुझे आस्था और शक्ति दे, और मेरे बड़े बेटे की देखभाल करे, ताकि वह मजबूत बना रहे। प्रार्थना के बाद मैंने परमेश्वर के वचनों में से इसके बारे में सोचा : “तुम्हें किसी भी चीज़ से भयभीत नहीं होना चाहिए; चाहे तुम्हें कितनी भी मुसीबतों या खतरों का सामना करना पड़े, तुम किसी भी चीज़ से बाधित हुए बिना, मेरे सम्मुख स्थिर रहने के काबिल हो, ताकि मेरी इच्छा बेरोक-टोक पूरी हो सके। यह तुम्हारा कर्तव्य है...। अब वह समय है जब मैं तुम्हें परखूंगा : क्या तुम अपनी निष्ठा मुझे अर्पित करोगे? क्या तुम ईमानदारी से मार्ग के अंत तक मेरे पीछे चलोगे? डरो मत; मेरी सहायता के होते हुए, कौन इस मार्ग में बाधा डाल सकता है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। परमेश्वर के वचनों ने मेरी आस्था मजबूत की—परमेश्वर सर्वशक्तिमान है और सारी चीजें उसके हाथों में हैं, तो क्या हमारे परिवार के सभी लोगों का भाग्य भी उसी के हाथों में नहीं है? परमेश्वर की इजाजत के बिना पुलिस हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। अपने परिवार के सदस्यों की गिरफ्तारी को लेकर मेरी चिंता और मेरे लगातार डर की हालत में रहने का अर्थ था कि मुझमें परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था नहीं है। परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन से मुझे सुकून मिला। परमेश्वर मेरे साथ है, तो मेरे लिए डरने की कोई बात नहीं है—मैं अपने पूरे परिवार को उसके हाथों में सौंप देने को तैयार थी, और मैंने संकल्प किया कि अगर मैं गिरफ्तार हो भी गई, तो भी मैं अपने भाई-बहनों को कभी धोखा नहीं दूँगी, परमेश्वर को कभी धोखा नहीं दूँगी!

कुछ महीने बाद भी जब मेरा बेटा पुलिस के हाथ नहीं लगा, तो वे मेरे पूरे परिवार को गिरफ्तार करने की धमकी देने लगे। मेरे छोटे बेटे, उसकी पत्नी और मेरे पास घर छोड़कर कहीं और छिप जाने के सिवाय कोई चारा नहीं था। जाने से पहले मेरे मन में बड़ी उथल-पुथल मची थी, और मैं सोच रही थी कि मेरा बड़ा बेटा फरार है और मुझे नहीं पता कि वह कहाँ है, और अब जबकि हमें भी अपने घर से भागना पड़ रहा है, तो एक पूरा खुशहाल परिवार सीसीपी द्वारा पूरी तरह से तोड़ा जा रहा है। मैं बहुत दुखी थी। परमेश्वर में आस्था रखने और उसकी आराधना करने में क्या गलत है? कम्युनिस्ट पार्टी हमें तबाह होने के लिए मजबूर करने पर आमादा थी। वह सच में विश्वासियों के जीते रहने के लिए कोई रास्ता नहीं छोड़ना चाहती—कम्युनिस्ट पार्टी बहुत घिनौनी है! मैं उम्र के तीसवें दशक में विधवा हो गई थी, और मैंने अकेले तीन बच्चे पालने के लिए संघर्ष किया था। मैं अपनी अधिकांश जिंदगी अथक काम करती रही थी, और अंततः सफल रही। मैंने कभी नहीं सोचा था कि बुढ़ापे में कम्युनिस्ट पार्टी मुझे भगोड़ा बनने पर मजबूर कर देगी। इस तरह भाग जाने से क्या पार्टी हमारी सारी संपत्ति और घर जब्त नहीं कर लेगी? फिर हमारा गुजारा कैसे होगा? ये खयाल मेरे लिए बहुत दर्दनाक थे। मैंने परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! मैं अपने दिल से अपनी संपत्ति छोड़ नहीं पा रही हूँ, और मुझे फिक्र है कि आज के बाद मेरा गुजारा कैसे होगा। कृपया अपनी इच्छा समझने में मेरी मदद करो।” प्रार्थना के बाद मुझे प्रभु यीशु का एक उद्धरण याद आया : “तुम में से जो कोई अपना सब कुछ त्याग न दे, वह मेरा चेला नहीं हो सकता(लूका 14:33)प्रभु यीशु के शिष्य उसका अनुसरण करने के लिए अपना सब-कुछ त्यागने में सक्षम थे। मैंने मत्ती के बारे में सोचा—वह एक कर-संग्रहकर्ता था, लेकिन जब प्रभु यीशु ने उसे पुकारा, तो उसने प्रभु का अनुसरण करने के लिए अपनी सारी संपत्ति छोड़ दी और अपना सब-कुछ त्याग दिया। और जब प्रभु ने पतरस को पुकारा, तो उसने उसका अनुसरण करने के लिए अपना मछुआरे का काम छोड़ दिया। लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी के दमन से सामना होने पर मैं अपनी थोड़ी-सी चीजें भी नहीं छोड़ पाई। मुझमें आस्था की इतनी कमी थी। हवा में उड़ने वाले पक्षी न फसल बोते हैं, न काटते हैं, लेकिन परमेश्वर उनकी परवाह करता है—और हम इंसान? इस विचार ने मेरी चिंताएँ कम कर दीं। अंत के दिनों में परमेश्वर देहधारी हुआ है और हमें शुद्ध करके बचाने के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे परमेश्वर का अनुसरण करने, और सत्य और जीवन पाने का मौका मिला है—इसके लिए थोड़ा कष्ट उठाना बनता है! सत्य ऐसा अनमोल खजाना है, जो बड़ी-से-बड़ी भौतिक संपत्ति से भी नहीं खरीदा जा सकता, और मैं जान गई थी कि भविष्य में होने वाली बड़ी-से-बड़ी तकलीफ भी उठाने लायक होगी।

हमारे घर छोड़ देने के बाद पुलिस को पता चला कि मैं और मेरा पूरा परिवार सर्वशक्तिमान परमेश्वर का विश्वासी है, और उन्होंने शहर भर में हमारी तलाश शुरू कर दी। हम गिरफ्तारी से बचने की कोशिश में जगह-जगह जा रहे थे, कभी-कभी तो किसी जगह हम एक महीने से भी कम रह पाते थे। हर बार मैं थक जाती और मेरी पीठ में दर्द हो जाता। पुलिस द्वारा पकड़े जाने के डर से हमें चोरी-छिपे बनाए गए छोटे-छोटे एक-मंजिला घरों में रहना पड़ता। सर्दियों में घर में इतनी ठंड होती कि पानी जम जाता, और पूरे हफ्ते जलाए रखने के बावजूद स्टोव घर को गर्म न कर पाता। ठंड से मेरे हाथों की त्वचा फट जाती, और पानी के संपर्क में आने से बहुत दर्द होता। जिस आखिरी जगह हम गए, वह एक गाँव में मुर्गी के चूजे पालने के लिए बनी एक छोटी-सी झोपड़ी थी, जो अँधेरी, नम और कीड़ों से भरी थी। वहाँ इतनी उलटी आती थी कि मैं खाना न खा पाती। मुझे अपने घर में बिताए दिन याद आते, जो एक बढ़िया-सा गर्म और आरामदेह अपार्टमेंट था। हमारे आज के हालात से उसकी तुलना करना मेरे लिए सचमुच दुखद था। मुझे पता नहीं था ये दिन कब खत्म होंगे। यह महसूस करके कि मैं सही हालत में नहीं हूँ, मैंने तुरंत परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना की कि वह मुझे प्रबुद्ध करे और अपनी इच्छा समझने में मेरा मार्गदर्शन करे। प्रार्थना के बाद मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “तुम सृजित प्राणी हो—तुम्हें निस्संदेह परमेश्वर की आराधना और सार्थक जीवन का अनुसरण करना चाहिए। यदि तुम परमेश्वर की आराधना नहीं करते हो बल्कि अपनी अशुद्ध देह के भीतर रहते हो, तो क्या तुम बस मानव भेष में जानवर नहीं हो? चूँकि तुम मानव प्राणी हो, इसलिए तुम्हें स्वयं को परमेश्वर के लिए खपाना और सारे कष्ट सहने चाहिए! आज तुम्हें जो थोड़ा-सा कष्ट दिया जाता है, वह तुम्हें प्रसन्नतापूर्वक और दृढ़तापूर्वक स्वीकार करना चाहिए और अय्यूब तथा पतरस के समान सार्थक जीवन जीना चाहिए। ... तुम सब वे लोग हो, जो सही मार्ग का अनुसरण करते हो, जो सुधार की खोज करते हो। तुम सब वे लोग हो, जो बड़े लाल अजगर के देश में ऊपर उठते हो, जिन्हें परमेश्वर धार्मिक कहता है। क्या यह सबसे सार्थक जीवन नहीं है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (2))परमेश्वर के वचन सचमुच मेरे लिए उत्साहवर्धक थे। मैंने शैतान द्वारा अय्यूब को परखे जाने के बारे में सोचा—अय्यूब ने अपने परिवार की सारी संपत्ति खो दी थी और उसके बच्चों को रौंदकर मार डाला गया था। उसका अपना शरीर फोड़ों से भर गया था। ऐसी भयानक तकलीफ के बावजूद उसने परमेश्वर के नाम की स्तुति की और परमेश्वर की शानदार गवाही दी। परमेश्वर ने अय्यूब को स्वीकृत कर उसे आशीष दिए। पतरस का प्रयास परमेश्वर से प्रेम कर उसे जानने का था। वह आस्था गँवाए बिना सैकड़ों परीक्षणों से गुजरा और आखिरकार परमेश्वर के लिए उसे सूली पर उलटा लटका दिया गया। वह सुंदर गवाही देते हुए और एक अत्यंत सार्थक जीवन जीते हुए मृत्युपर्यंत समर्पण करने में सक्षम रहा। लेकिन जहाँ तक मेरी बात है, मैं कुछ बार यहाँ-वहाँ आना-जाना और थोड़ा कष्ट भी नहीं झेल सकी। मुझमें परमेश्वर के प्रति सच्चा समर्पण नहीं था! तब जो दुख मैं सह रही थी, वह पूरी तरह से बड़े लाल अजगर के सताने के कारण था। बड़े लाल अजगर से घृणा करने के बजाय मैं नकारात्मक होकर भुनभुना रही थी—मैं कितनी नासमझ थी! बड़े लाल अजगर द्वारा पीछा किए जाने के कारण मुझे थोड़ा कष्ट जरूर हुआ, लेकिन मैं उसके सार को समझ पा रही थी, परमेश्वर से घृणा और उसका विरोध करने के उसके दानवी सार को स्पष्ट देख पा रही थी। हम परमेश्वर द्वारा रचे गए थे, इसलिए उसकी आराधना करना सही और उचित है। यह जीवन में सही रास्ते पर चलना है, और सुसमाचार फैलाना परमेश्वर की वाणी सुनने और सत्य स्वीकारने में सबकी मदद करना है, तभी वे बचाए जा सकेंगे। लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी हमारा दमन कर हर मोड़ पर हमारे आड़े आती है, यहाँ तक कि माँ को बच्चों से भी जबरन अलग कर देती है। मैं सचमुच यह देख पाई कि वह एक दुष्ट पार्टी है और परमेश्वर की कट्टर दुश्मन है—मैंने उससे घृणा की और दिल की गहराइयों से उसे कोसा। अगर मैंने उस दर्द का अनुभव न किया होता, बल्कि घर पर शांत जीवन जीती रहती, तो मैं बड़े लाल अजगर के सार की असलियत न देख पाती, उसे छोड़ न पाती और उसे दिल से ठुकरा न पाती। उस समय मैं परमेश्वर का अनुसरण करने पर थोड़ा कष्ट जरूर झेल रही थी, लेकिन मुझे सत्य और जीवन हासिल हो रहा था—वह कष्ट बहुत सार्थक था। परमेश्वर देहधारी होकर बड़े लाल अजगर के देश में कार्य करने आया, कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा सताया और दौड़ाया जाता रहा, और उसे अपना सिर टिकाने के लिए एक तकिया भी नहीं मिला। जो विपत्ति उसने झेली है, उसकी मात्रा नहीं बताई जा सकती। अब हमारा परिवार परमेश्वर का अनुसरण कर रहा है और कम्युनिस्ट पार्टी देयरा सताया जा रहा है और हमें भगोड़ा बनना पड़ा है, जो मसीह की तकलीफों में साझीदार होना है। यह परमेश्वर का उत्कर्ष है! मैंने चुपचाप निश्चय किया कि चाहे मुझे कितना भी कष्ट सहना पड़े, मैं बिलकुल अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करूँगी।

बाद में पुलिस ने मेरी बेटी द्वारा सुसमाचार साझा किए जाते समय उसकी निगरानी कर उसका पीछा किया। वह एक बड़े सुपरमार्केट में जाकर कपडे बदलकर उन्हें चकमा देने में कामयाब रही। इसके बाद उसे उस इलाके से भागने के लिए बाध्य होना पड़ा। इसका पता चलने से पहले ही हमारा परिवार टूट चुका था और पूरे साल भागा-भागा फिर रहा था। मैं लगातार सोचती कि मेरा बड़ा बेटा और बेटी जाने किस हाल में होंगे, और मुझे हमेशा उनकी गिरफ्तारी की चिंता सताती। मैं बड़ी मुश्किल से थोड़ा खा पाती या थोड़ा सो पाती, और मेरी दमे की बीमारी बढ़ गई। मैं आसानी से विचलित होने लगी और अक्सर विचारों में खोई रहती। मेरा छोटा बेटा मेरी यह हालत सहन नहीं कर पाया, इसलिए उसने घर लौटकर वहाँ का हालचाल पता करने का जोखिम उठाने का फैसला किया। उसके जाने के बाद मैं बस वहाँ इंतजार करती रही, उम्मीद करती रही...। शाम के 7 बज जाने के बाद भी उसे वापस न आते देख मैं घबराने लगी। मैं सोचने लगी : वह कहाँ रह गया? कहीं पुलिस ने उसे पकड़ तो नहीं लिया? नहीं, एक साल से ज्यादा समय के बाद भी वे हमारे घर की निगरानी नहीं कर सकते। लेकिन मैं पूरी रात इंतजार करती रही, तब भी वह वापस नहीं आया। मुझे पक्का लगने लगा कि कुछ हुआ है, क्योंकि उसे कहीं और तो निश्चित रूप से नहीं जाना था। अगर उसे सचमुच गिरफ्तार कर लिया गया होगा, तो पता नहीं, पुलिस कैसे भयानक तरीकों से उसे यातना देगी। वे उसे पीट-पीटकर अपंग भी कर सकते हैं। ऐसा कोई भी खयाल आते ही मैं अपने आँसू बहने से न रोक पाती। मैं कई दिनों तक न खा पाई, न सो पाई, बस अपने बिस्तर पर बैठी सूनी आँखों से बाहर ताकती रहती। मुझे बहुत पीड़ा हो रही थी—लगता, जैसे कोई नश्तर मेरे दिल पर चल गया हो। पता नहीं मेरा बड़ा बेटा जिंदा है या मर गया, पता नहीं मेरी बेटी खतरे में है या नहीं, और अब अगर मेरे छोटे बेटे को गिरफ्तार कर लिया गया, तो मैं क्या करूँगी? अपनी पीड़ा और लाचारी में मैंने परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना की, और फिर उसके ये वचन मेरे मन में कौंध गए : “मनुष्य का भाग्य परमेश्वर के हाथों से नियंत्रित होता है। तुम स्वयं को नियंत्रित करने में असमर्थ हो : हमेशा अपनी ओर से भाग-दौड़ करते रहने और व्यस्त रहने के बावजूद मनुष्य स्वयं को नियंत्रित करने में अक्षम रहता है। यदि तुम अपने भविष्य की संभावनाओं को जान सकते, यदि तुम अपने भाग्य को नियंत्रित कर सकते, तो क्या तुम तब भी एक सृजित प्राणी होते?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मनुष्य के सामान्य जीवन को बहाल करना और उसे एक अद्भुत मंज़िल पर ले जाना)। इस पर विचार करके मैं समझ पाई कि लोगों का भाग्य पूरी तरह से परमेश्वर की मुट्ठी में है, इसलिए जितना भी कष्ट हम उठाते हैं और जिन भी स्थितियों का सामना करते हैं, वह सब परमेश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित है। मैं कितनी भी फिक्र करूँ, कोई फायदा नहीं होगा। मैंने मन-ही-मन प्रार्थना की और अपने बच्चों को परमेश्वर के हाथों में सौंपने को तैयार हो गई। बाद में मेरी बहू को कलीसिया की एक बहन से पता चला कि मेरे छोटे बेटे को हमारे घर की निगरानी करती पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। पुलिस उसे पीटते और चिल्लाते हुए थाने ले गई, और उससे हमारा पता पूछती रही। उसने कुछ नहीं बताया, इसलिए पुलिस ने उसे गैरकानूनी रूप से 15 दिन हिरासत में रखा और आखिरकार छोड़ दिया। उसे अभी हाल ही में छोड़ा गया था। पुलिस को जाहिर तौर पर उसकी रिहाई पर पछतावा हुआ, और इसलिए उसने फिर से उसकी तलाश शुरू कर दी थी। पुलिस उसका पीछा करते हुए हम तक न पहुँच जाए, इसलिए मेरे बेटे ने कभी वापस घर आने की हिम्मत नहीं की, बस बाहर ही भागता रहा। यह सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया। साल भर से ज्यादा हो गया, हम घर नहीं गए, लेकिन पुलिस अभी भी हमारा पता लगाने, हमारी निगरानी करने, हमें पकड़ लेने की भरसक कोशिश कर रही थी। वे हमें मटियामेट कर देना चाहते थे। बड़ा लाल अजगर बहुत दुष्ट है! उसने मेरा जितना दमन किया, उतना ही ज्यादा मैं उसका दानवी रूप देख पाई, और उतना ही ज्यादा मैं आस्था रखने और परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए दृढ़संकल्प हुई।

जल्दी ही भाई-बहनों की मदद से मेरा छोटा बेटा उस इलाके से बाहर निकलने में कामयाब रहा। इसके बाद जल्दी ही मेरी बहू और मैं एक दूसरे प्रांत में चले गए। हमारी सुरक्षा की खातिर उसके पास मुझसे अलग छिपकर रहने के सिवाय कोई चारा नहीं था। यह सोचना कि कम्युनिस्ट पार्टी ने किस तरह हमारे पूरे परिवार को बिखेर दिया है, मेरे लिए बहुत दर्दनाक था। खास तौर से जब मैं देखती कि दूसरे लोग किस तरह अपने माता-पिता का खयाल रखते और उनकी देखभाल करते हैं, तो मुझे अपने बच्चों की कमी और भी ज्यादा खलती। मैं टूट जाने के कगार पर थी। मैं सत्य खोजने के लिए परमेश्वर के सामने आई, और उसके वचनों के इस अंश के बारे में सोचा : “परमेश्वर हमें राह दिखाता हुआ जिस मार्ग पर ले जाता है, वह कोई सीधा मार्ग नहीं है, बल्कि वह गड्ढों से भरी टेढ़ी-मेढ़ी सड़क है; इसके अतिरिक्त, परमेश्वर कहता है कि मार्ग जितना ही ज्‍़यादा पथरीला होगा, उतना ही ज्‍़यादा वह हमारे स्‍नेहिल हृदयों को प्रकट कर सकता है। लेकिन हममें से कोई भी ऐसा मार्ग उपलब्‍ध नहीं करा सकता। अपने अनुभव में, मैं बहुत-से पथरीले, जोखिम-भरे मार्गों पर चला हूँ और मैंने भीषण दुख झेले हैं; कभी-कभी मैं इतना शोकग्रस्‍त रहा हूँ कि मेरा मन रोने को करता था, लेकिन मैं इस मार्ग पर आज तक चलता आया हूँ। मेरा विश्‍वास है कि यही वह मार्ग है जो परमेश्वर ने दिखाया है, इसलिए मैं सारे कष्टों के संताप सहता हुआ आगे बढ़ता जाता हूँ। चूँकि यह परमेश्वर का विधान है, इसलिए इससे कौन बच सकता है? मैं किसी आशीष के लिए याचना नहीं करता; मैं तो सिर्फ़ इतनी याचना करता हूँ कि मैं उस मार्ग पर चलता रह सकूँ, जिस पर मुझे परमेश्वर की इच्‍छा के मुताबिक चलना अनिवार्य है। मैं दूसरों की नकल करते हुए उस मार्ग पर नहीं चलना चाहता, जिस पर वे चलते हैं; मैं तो सिर्फ़ इतना चाहता हूँ कि मैं आखिरी क्षण तक अपने निर्दिष्‍ट मार्ग पर चलने की अपनी निष्‍ठा का निर्वाह कर सकूँ। ... किसी व्‍यक्ति को जितना भी दुख भोगना है और अपने मार्ग पर जितनी दूर तक चलना है, वह सब परमेश्वर ने पहले से ही तय किया होता है, और इसमें सचमुच कोई किसी की मदद नहीं कर सकता(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मार्ग ... (6))। परमेश्वर के वचनों पर विचार करके मैं समझ पाई कि कोई इंसान कितने कष्ट झेलता है, उसे कितने रास्तों पर चलना पड़ता है, यह सब परमेश्वर पहले से तय करके रखता है। रास्ता जितना घुमावदार होगा, मेरा वास्तविक आध्यात्मिक कद उतना ही अधिक दिखाया जा सकेगा। पहले मेरे सभी बच्चे मेरे साथ थे और हमारा परिवार पूरी तरह सुखी और संयुक्त था। उस समय मैं अपने अनुसरण में बहुत गतिशील थी। लेकिन अब बड़े लाल अजगर के दमन और पीछा करने से और अपने बच्चों के भागते रहने से मैं दुखी, उदास और शिकायतों से भरी हुई थी। उस दमन और तकलीफ ने मुझे उजागर कर दिया था। तभी मैं यह समझ पाई कि मेरे आस्था रखने का एकमात्र कारण परमेश्वर का आशीष और अनुग्रह पाना और दैहिक सुख भोगना था। वह सत्य का अनुसरण करने या परमेश्वर के प्रति समर्पण करने के लिए बिलकुल नहीं थी। वह सच्ची आस्था कैसे थी? अगर उस तरह के मुश्किल हालात ने मुझे उजागर न किया होता, तो मैं अपनी आस्था में अनुसरण के गलत नजरिये कभी न देख पाती। शांतिपूर्ण माहौल में मैं ऐसी समझ हासिल न कर पाती। आखिरकार मैंने देखा कि अनुग्रह परमेश्वर का आशीष है, लेकिन उससे भी बढ़कर कष्ट और परीक्षण परमेश्वर के आशीष हैं। मैं जान गई कि भविष्य में मेरा रास्ता कितना भी कठिन क्यों न हो, मुझे परमेश्वर का सहारा लेकर उससे गुजरना होगा—मुझे परमेश्वर के शासन और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करना होगा। मैं दूसरी बहनों के साथ नियमित रूप से परमेश्वर के वचन पढ़ती रही और सभाओं में जाकर परमेश्वर के वचनों पर संगति करती रही। धीरे-धीरे मैं बेहतर महसूस करने लगी।

कुछ समय बीत गया, और कम्युनिस्ट पार्टी फिर से हर जगह विश्वासियों की अंधाधुंध तलाश कर उन्हें गिरफ्तार करने लगी, हर कहीं स्काउट, खबरी और “लाल आस्तीन वाले जासूस” भेजने लगी। मैं उस इलाके से न होने के कारण उनका बड़ा निशाना थी। उस दौरान मुझे डर था कि मैं गिरफ्तार हो जाऊँगी, और मुझे लगातार अपने बच्चों के गिरफ्तार होने का भी डर सता रहा था। मैं रात में सो न पाती, और कभी-कभी मुझे डरावने सपने भी आते। मैं सपने में देखती कि पुलिस मेरे बच्चों को यातना दे रही है। इतने लंबे समय तक घबराहट और डर की हालत में रहने, इतना उदास रहने के कारण मुझे हाइपरथायरॉयडिज्म हो गया, और मेरा वजन इतना कम हो गया कि मैं हड्डियों की थैली भर रह गई। मेरे दिल की धड़कन बहुत कमजोर हो गई और मेरे लिए चलना बहुत मुश्किल हो गया। बिस्तर से उठने के लिए भी मुझे संघर्ष करना पड़ता। मैं घर पर बिताए दिनों के बारे में सोचती। जब कभी मैं बीमार होती, सब बच्चे मेरे साथ होते, मेरी देखभाल करते, मेरा नन्हा पोता चिल्लाता, “दादी! दादी!” सब-कुछ बहुत गर्मजोशी से भरा था। लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी ने हम सबको जबरन अलग कर दिया था, मैं अपने बच्चों से मिल नहीं पा रही थी, पता नहीं वे कहाँ थे। इस बारे में जितना सोचती, उतनी ही परेशान हो जाती। उठने की कोशिश करते हुए मैं बस अपने बिस्तर पर घुटने टेक पाई, दर्द से रोते हुए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! मैं अब सचमुच संघर्ष कर रही हूँ! मैं अपनी मौत के कगार पर हूँ। हे परमेश्वर, मुझे यह तकलीफ झेलने का संकल्प और आस्था दे, ताकि मैं मजबूत होकर खड़ी हो सकूँ।” अपनी प्रार्थना के बाद मैंने परमेश्वर के वचनों में यह पढ़ा : “कार्य के इस चरण में हमसे परम आस्था और प्रेम की अपेक्षा की जाती है। थोड़ी-सी लापरवाही से हम लड़खड़ा सकते हैं, क्योंकि कार्य का यह चरण पिछले सभी चरणों से अलग है : परमेश्वर मानवजाति की आस्था को पूर्ण कर रहा है—जो कि अदृश्य और अमूर्त दोनों है। इस चरण में परमेश्वर वचनों को आस्था में, प्रेम में और जीवन में परिवर्तित करता है। लोगों को उस बिंदु तक पहुँचने की आवश्यकता है जहाँ वे सैकड़ों बार शुद्धिकरणों का सामना कर चुके हैं और अय्यूब से भी ज़्यादा आस्था रखते हैं। किसी भी समय परमेश्वर से दूर जाए बिना उन्हें अविश्वसनीय पीड़ा और सभी प्रकार की यातनाओं को सहना आवश्यक है। जब वे मृत्यु तक आज्ञाकारी रहते हैं, और परमेश्वर में अत्यंत विश्वास रखते हैं, तो परमेश्वर के कार्य का यह चरण पूरा हो जाता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मार्ग ... (8))। परमेश्वर के वचनों से मैंने समझा कि अंत के दिनों का उसका कार्य लोगों की आस्था पूर्ण करने के लिए है। जब हम बीमार होते हैं, तो उसमें परमेश्वर के नेक इरादे निहित होते हैं; हमें सत्य खोजकर अय्यूब की आस्था की मिसाल पर चलना चाहिए। अय्यूब ने बहुत जबरदस्त परीक्षणों का सामना किया, और उसके पूरे शरीर पर फोड़े हो गए, और जब वह बिलकुल सह नहीं सका, तो वह राख में बैठ गया और खुद को बरतन के टुकड़े से खुरच लिया। जब अय्यूब की पत्नी ने उससे परमेश्वर में अपनी आस्था छोड़ देने को कहा, तो वह बोला, “क्या हम जो परमेश्वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुःख न लें?” (अय्यूब 2:10)। अय्यूब के मन में परमेश्वर के बारे में कोई गलतफहमी या आरोप नहीं था—उसने अपनी आस्था कायम रखी। लेकिन जहाँ तक मेरी बात है, हाइपरथायरॉयडिज्म होते ही मैंने परमेश्वर पर दोष मढ़ दिया। मैंने देखा कि परमेश्वर में मेरी आस्था कितनी कम है, और किस तरह मैं परमेश्वर की इच्छा नहीं समझ पाई। हमें बचाने के लिए परमेश्वर देहधारी होकर पृथ्वी पर आया है, उसने इतना भारी अपमान सहा है, कम्युनिस्ट पार्टी का उत्पीड़न और दमन, और धार्मिक दुनिया का अस्वीकार सहा है। परमेश्वर ने मनुष्य को बचाने के लिए सब-कुछ त्याग दिया, लेकिन मैं थोड़ी-सी तकलीफ से ही नकारात्मक हो गई, यहाँ तक कि परमेश्वर पर दोष भी मढ़ दिया। मुझ पर परमेश्वर का बहुत बड़ा ऋण था। फिर मैंने पुराने युगों के संतों के बारे में सोचा, जिन्हें परमेश्वर के लिए सताया और शहीद किया गया था। उन्होंने अपना जीवन देकर परमेश्वर की गवाही दी थी—इससे बढ़कर सम्मानजंक कुछ नहीं था। भले ही हमारा पूरा परिवार कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा सताया जा रहा था, हमारे पास परमेश्वर की गवाही देने का मौका था। यह परमेश्वर का उत्कर्ष था। अपनी मलिनता और भ्रष्टता के आधार पर, अपनी पहचान के आधार पर हम परमेश्वर की गवाही देने योग्य नहीं थे। परमेश्वर की इच्छा समझ लेने के बाद मुझे उतना बुरा नहीं लगा। एक बहन को मेरी खराब सेहत के बारे में पता चला, तो उसने अस्पताल से कुछ दवाएँ लाकर मुझे दे दीं। मैं दिन-ब-दिन बेहतर होने लगी। परमेश्वर का सच में धन्यवाद!

मैं कई साल तक भगोड़ी रही, और पुलिस की तलाश और गिरफ्तारी से बचने के लिए मैं बक्सों और आलू की कोठरियों में छिपती रही, और परमेश्वर की चमत्कारी रक्षा के जरिये मैं एक-के-बाद-एक खतरनाक हालत से बचती रही। दिसंबर 2008 में सुसमाचार फैलाने के लिए मेरी शिकायत कर दी गई। बड़ी तनावपूर्ण हालत थी—धार्मिक पादरी हमें गिरफ्तार करवाने के लिए पुलिस अफसरों को ले आए। मेरी तलाश चल रही थी, इसलिए अगर पुलिस मुझे सच में गिरफ्तार कर लेती, तो मुझे आसानी से न छोड़ती। मेरे भाई-बहन मुझे तुरंत एक छोटे-से गुप्त गाँव में ले गए, और बहन ली शिनयू मेरे लिए थोड़ा खाना और दूसरी जरूरी चीजें ले आई। लेकिन कुछ महीने बाद अचानक शिनयू ने आना बंद कर दिया—पता नहीं क्यों। वहाँ गर्मी पैदा करने के लिए लोग गोबर के कंडे जलाते थे। दिसंबर में काफी ठंड थी, और तापमान शून्य से 20 डिग्री नीचे चला गया था। जब मैंने देखा कि कंडे खत्म होने वाले हैं, तो मैं उन्हें कम जलाने लगी। अंदर बहुत ठंड होती और दीवारों पर बर्फ जम जाती। सुबह उठने पर मेरे सिर पर भी बर्फ जमी होती। मुझे उम्मीद थी कि शिनयू जल्दी ही आ जाएगी, लेकिन मैं इंतजार करती ही रह गई, वह कभी वापस नहीं आई। ठंड इतनी ज्यादा थी कि मैं घर के अंदर कदमताल करती रहती। मैं सोचती, मैं इस जगह अजनबी हूँ। मेरी बाहर जाकर जलाऊ लकड़ी खरीदने की भी हिम्मत न होती, और मुझे दूसरे भाई-बहन भी दिखाई न पड़ते। वह इलाका बर्फ से ढका हुआ था और मेरे पास बाहर जाकर जलाऊ लकड़ी लाने का कोई उपाय नहीं था। अगर शिनयू न आई, तो मैं क्या करूँगी? क्या मैं यहाँ ठंड से जमकर मर जाऊँगी? इस विचार से मैं सच में काँप गई और लाचार महसूस करने लगी। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उसे मन-ही-मन बार-बार पुकारा। फिर मैंने नबी एलिय्याह के बारे में सोचा—जब वह वीराने में था और उसके पास खाने-पीने को कुछ नहीं था, तो परमेश्वर ने काले कौवों को आदेश दिया कि वे उसके खाने के लिए रोटी और मांस लाएँ। क्या बहुत पहले परमेश्वर ने खुद ऐसा नहीं किया था? उस तरह की स्थिति का सामना करने पर ऐसा कैसे हुआ कि मुझे परमेश्वर में आस्था नहीं रही? मैंने परमेश्वर के वचनों में यह पढ़ा : “बड़ा लाल अजगर परमेश्वर को सताता है और परमेश्वर का शत्रु है, और इसीलिए, इस देश में, परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों को इस प्रकार अपमान और अत्याचार का शिकार बनाया जाता है...। परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना अत्यंत कठिन है—परंतु इसी कठिनाई के माध्यम से परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा करता है, अपनी बुद्धि और अपने अद्भुत कर्म प्रत्यक्ष करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है। लोगों की पीड़ा के माध्यम से, उनकी क्षमता के माध्यम से, और इस कुत्सित देश के लोगों के समस्त शैतानी स्वभावों के माध्यम से परमेश्वर अपना शुद्धिकरण और विजय का कार्य करता है, ताकि इससे वह महिमा प्राप्त कर सके, और ताकि उन्हें प्राप्त कर सके जो उसके कर्मों की गवाही देंगे। इस समूह के लोगों के लिए परमेश्वर द्वारा किए गए सारे त्यागों का संपूर्ण महत्व ऐसा ही है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। इसे पढ़कर मुझे तुरंत प्रबुद्धता मिली। अंत के दिनों में परमेश्वर विजेताओं का एक समूह बनाने का कार्य पूरा करने के लिए बड़े लाल अजगर का एक सेवक के रूप में इस्तेमाल करता है। मैं एक भ्रष्ट इंसान हूँ, इसलिए परमेश्वर के कार्य के अनुभव का मौका पाना और बड़े लाल अजगर के दमन और गिरफ्तारी के तहत परमेश्वर की गवाही देना परमेश्वर से प्राप्त बहुत बड़ा सम्मान था, और यह किसी भी तरह का कष्ट उठाने योग्य था! इसका एहसास होने पर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, और उसके शासन और व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने के लिए तैयार हो गई। अगर मैं वहाँ ठंड से जमकर मर भी गई, तो भी मुझे कोई शिकायत नहीं होगी। जब मैंने समर्पण कर दिया, तो अचानक एक दूसरी बहन वहाँ आ गई। पता चला कि पुलिस शिनयू पर नजर रख रही थी, इसलिए वह इस डर से लौटकर नहीं आई कि उसका पीछा करते हुए पुलिस मुझे पकड़ न ले। यह देखकर कि यह जगह कितनी ठंडी है, वह दूसरी बहन मुझे अपने घर रहने के लिए ले गई। उसने बताया कि उसका पति विश्वासी नहीं है, और बरसों से काम नहीं कर रहा। लेकिन अब वह काम पर जाने का निश्चय कर चुका है और उसे रोका नहीं जा सकता। अगर उसका पति घर पर रहता, तो मैं वहाँ नहीं रह सकती थी—यह सच में परमेश्वर द्वारा मेरे लिए एक रास्ता खोला जा रहा था! उसकी यह बात सुनकर मैं इतनी रोमांचित हो गई कि मेरी आँखों से आँसू बहने लगे। मैंने देखा कि परमेश्वर पहले ही मेरे लिए व्यवस्था कर चुका है—बस मुझमें ही आस्था की कमी थी, मुश्किलें आने पर मैं ही नकारात्मक और कमजोर हो गई थी। परमेश्वर का प्रेम बहुत सच्चा है और मुझे उसका सच्चा स्वाद मिला।

2014 में कम्युनिस्ट पार्टी ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के खिलाफ अपना उत्पीड़न तेज कर दिया, और अपनी सशस्त्र सेना लगाकर देश भर में ईसाइयों की अंधाधुंध गिरफ्तारी शुरू कर दी। मुझे अपने बच्चों की फिर से चिंता होने लगी, मुझे पता नहीं था उस वक्त वे कहाँ थे, क्या कर रहे थे। फिर एक दिन जब मैं अपनी बहनों के साथ एक वीडियो देख रही थी, तो अचानक एक दृश्य आया जिसमें मुझे लगा कि शायद मेरा बड़ा बेटा है। मैं अपनी आँखों पर भरोसा करने की हिम्मत नहीं कर पाई—मैंने आँखें मलकर इस डर से दोबारा वीडियो देखा कि कहीं मुझसे कुछ छूट न गया हो। जल्दी ही मेरा बेटा फिर दिखाई दिया, और इस बार यह स्पष्ट दृश्य था। मुझे यकीन था कि यह वही है। मैं चिल्लाई, “अरे, वाह!” और फिर चिल्लाई, “मेरा बेटा, मेरा बेटा! वह देश से बाहर चला गया!” इसके ठीक बाद एक दूसरा दृश्य दिखा, जिसमें मुझे अपना छोटा बेटा दिखाई पड़ा। मैं इतनी खुश हो गई कि अपनी कुर्सी से उछल पड़ी। वे चीन से बाहर कब चले गए? परमेश्वर सचमुच सर्वशक्तिमान है! मैं देखती रही, फिर मुझे अपनी बहू भी दिखाई दी। वे सब देश छोड़कर जा चुके थे, और मुझे अब उनकी सुरक्षा की फिक्र करने की जरूरत नहीं थी। मैं इतनी द्रवित हो गई कि मेरी दृष्टि आँसुओं से धुँधली हो गई, मैं चुपचाप परमेश्वर को बार-बार धन्यवाद देती रही। मेरी बहनें भी खुशी से परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता का गुणगान करती रहीं। मेरे दोनों बेटे और बहू, सभी की कम्युनिस्ट पार्टी तलाश कर रही थी, लेकिन वे पार्टी की निगरानी के ठीक नीचे से बचकर विदेश चले गए थे—यह था परमेश्वर का अधिकार और सामर्थ्य। पहले मैं हमेशा अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर परेशान रहती थी, लेकिन उस दिन मैंने देखा कि शैतान कितना भी क्रूर क्यों न हो, वह अभी भी परमेश्वर के काबू में है। अगर परमेश्वर इजाजत न दे, तो शैतान हमें नहीं पकड़ सकता। इस एहसास से परमेश्वर में मेरी आस्था मजबूत हो गई।

16 वर्ष भागते रहने के बाद 2018 में मेरी बेटी ने हालचाल जानने के लिए घर लौटने का खतरा मोल लिया, और वह बहुत दर्दनाक खबर लाई—मेरा 12 साल का पोता बड़े लाल अजगर का उत्पीड़न बरदाश्त नहीं कर पाया था और उसने आत्महत्या कर ली थी। मेरे बड़े बेटे के बच निकलने के बाद प्रत्यक्ष रूप से पुलिस लगातार मेरे घर और स्कूल जाकर मेरे पोते को डराती-धमकाती, उसे अपने पिता का पता बताने पर मजबूर करने की कोशिश करती, न बताने पर उसे जिंदगी भर के लिए जेल में बंद कर देने की बात कहती। वह बहुत डर गया, इसलिए उसे हमेशा डरावने सपने आते रहते। पुलिस ने उसके शिक्षकों से कहकर उसके सहपाठियों द्वारा उसका बहिष्कार भी करवाया और उसे धौंस भी दिलवाई। वह अपने शिक्षकों और सहपाठियों से डर गया, और इससे भी ज्यादा डर उसे पुलिस से लगा, जो उससे पूछताछ करने और उसे अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी। पुलिस की दादागीरी और धमकियों के आतंक के चार साल बाद, मेरा पोता आखिरकार बरदाश्त नहीं कर पाया। उसने घर पर फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली। यह खबर सुनकर मेरा सिर चकरा गया और मैं लगभग बेहोश हो गई। काफी देर तक मुझे होश नहीं आया। पुराने दानव कम्युनिस्ट पार्टी ने न सिर्फ हमारे पूरे परिवार को अलग कर दिया था, बल्कि मेरे छोटे-से पोते तक को नहीं छोड़ा था। वह सिर्फ 12 साल का था, ठीक उस उम्र का, जब वह उल्लास से भरा था और बड़ा हो रहा था, लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी ने उसे मौत के घाट उतार दिया। मैं पूरी तरह से शोक-संतप्त और दानव कम्युनिस्ट पार्टी के प्रति आक्रोश से भरी हुई थी। जब मेरी बेटी ने देखा कि मैं कितनी पीड़ित हूँ, तो उसने मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश पढ़कर सुनाया : “इस तरह के अंधकारपूर्ण समाज में, जहाँ राक्षस बेरहम और अमानवीय हैं, पलक झपकते ही लोगों को मार डालने वाला शैतानों का सरदार, ऐसे मनोहर, दयालु और पवित्र परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे सहन कर सकता है? वह परमेश्वर के आगमन की सराहना और जयजयकार कैसे कर सकता है? ये अनुचर! ये दया के बदले घृणा देते हैं, लंबे समय पहले ही वे परमेश्वर से शत्रु की तरह पेश आने लगे थे, ये परमेश्वर को अपशब्द बोलते हैं, ये बेहद बर्बर हैं, इनमें परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी सम्मान नहीं है, ये लूटते और डाका डालते हैं, इनका विवेक मर चुका है, ये विवेक के विरुद्ध कार्य करते हैं, और ये लालच देकर निर्दोषों को अचेत कर देते हैं। प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुवा? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं! ... यही समय है : मनुष्य अपनी सभी शक्तियाँ लंबे समय से इकट्ठा करता आ रहा है, उसने इसके लिए सभी प्रयास किए हैं, हर कीमत चुकाई है, ताकि वह इस दानव के घृणित चेहरे से नकाब उतार सके और जो लोग अंधे हो गए हैं, जिन्होंने हर प्रकार की पीड़ा और कठिनाई सही है, उन्हें अपने दर्द से उबरने और इस दुष्ट प्राचीन शैतान से मुँह मोड़ने दे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। कम्युनिस्ट पार्टी परमेश्वर की दुश्मन है—वह एक दानव है, जो परमेश्वर का विरोध करती है और लोगों को खा जाती है। वह सभी विश्वासियों को कब्जे में कर परमेश्वर के कार्य को पूरी तरह खत्म कर देना पसंद करेगी—वह पूरी मानवजाति को हमेशा के लिए कब्जे में करने को मरी जा रही है। अंत के दिनों में परमेश्वर मानवजाति को बचाने के लिए कार्य कर रहा है, और कम्युनिस्ट पार्टी पागलों की तरह उसे रोकने, बाधित करने की कोशिश कर रही है। वह सभी विश्वासियों का पूरी तरह से सफाया करने के लिए बेताब है—वह किसी 12 साल के बच्चे को भी नहीं छोड़ेगी। उसने हमें इतना सताया कि हमारा परिवार अपने घर नहीं लौट सका, हम बिखर गए और मेरा पोता मर गया। कम्युनिस्ट पार्टी बहुत दुष्ट है, बहुत द्वेषपूर्ण है, उसे इंसानी जिंदगी की कोई कद्र नहीं। वह दानवों की राजकुमारी है, जो पलक झपकाए बिना लोगों की हत्या कर देगी। मैं अपने दिल की गहराई से उससे घृणा करती हूँ, और जितना ज्यादा वह मुझे इस तरह सताएगी, मैं परमेश्वर का अनुसरण करने और इस पुराने दानव को नीचा दिखाने के लिए उतनी ही ज्यादा दृढ़संकल्प हूँगी।

कम्युनिस्ट पार्टी आज भी हमारे परिवार का पीछा कर रही है। अपनी 19 साल की भगोड़ी जिंदगी पर नजर डालूँ, तो परमेश्वर के वचन मुझे रास्ता दिखाते और प्रबुद्ध करते रहे हैं, आस्था और शक्ति देते रहे हैं, और मुझे वर्तमान तक लेकर आए हैं। परमेश्वर की सुरक्षा के बिना, परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन और पोषण के बिना, मुझे डर है कि मैं इस दुनिया से बहुत पहले ही चल बसी होती, मैं या तो मर चुकी होती या पागल हो गई होती। कम्युनिस्ट पार्टी पागलों की तरह हर संभव तरीके से हमारा पीछा करती रही है, सिर्फ इसलिए कि हम परमेश्वर के विश्वासी हैं, उसने मुझे घर लौटने लायक नहीं छोड़ा और मेरे परिवार को अलग कर दिया। कम्युनिस्ट पार्टी बहुत दुर्भावनाग्रस्त है—वह परमेश्वर से घृणा करने वाली, परमेश्वर-विरोधी दानव है। मैं दिल की गहराई से उसे छोड़ती और ठुकराती हूँ! आज तक जीवित रहने का सौभाग्य मुझे पूरी तरह से परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा के कारण ही मिला है। केवल परमेश्वर ही लोगों से सच्चा प्रेम करता है, और केवल परमेश्वर ही लोगों को बचा सकता है। मैंने देखा है कि परमेश्वर कितना ज्यादा प्यारा है, और हालात चाहे कितने भी मुश्किल क्यों न हो जाएँ, मैं बिलकुल अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करूँगी, अपना कर्तव्य निभाऊँगी और परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान करूँगी! परमेश्वर का धन्यवाद!

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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