एक होटल में गुप्त पूछताछ
फरवरी 2013 में एक दिन, एक बहन और मैंने मिलकर एक सभा में जाना तय किया। दोपहर लगभग दो बजे, जब मैं एक जूतों की दुकान के पास, उसका इंतजार कर रही थी, तो मैंने एक आदमी को फोन पर बात करते हुए समय-समय पर मुझे घूरते देखा, लगा कुछ गड़बड़ है। जैसे ही मैं जाने को हुई, एक आवाज सुनी, “हिलना मत!” मैंने चार-पाँच लोगों को अपनी तरफ लपकते देखा, सोचा, “बाप रे, ये तो पुलिस है!” मैंने भागने की कोशिश की, मगर दो लोग करीब पहुँचे, मुझे धक्का देकर जमीन पर गिरा दिया, फिर कार में धकेल दिया, जहां मेरी नजर साथ गिरफ्तार होने वाली तीन और बहनों पर पड़ी।
पुलिस हमें थाने ले गई, और अहाते की दीवार के पास खड़ी होने को कहा। मैं बहुत घबरा गई। मैंने सच्चे दिल से परमेश्वर से प्रार्थना कर उसके वचनों को याद किया : “डरो मत, सेनाओं का सर्वशक्तिमान परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा; वह तुम लोगों के पीछे खड़ा है और तुम्हारी ढाल है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 26)। सचमुच परमेश्वर मेरे साथ है, फिर मुझे क्या डरना? इस हालत से गुजरने के लिए मुझे परमेश्वर पर भरोसा करना था। धीरे-धीरे किसी तरह मन शांत कर पाई। फिर, एक महिला पुलिस ने तलाशी के लिए जबरन मेरे कपड़े उतरवा दिए, और टांगें फैलाकर उकडूँ बैठने को कहा। मुझे अपमान और नाराजगी महसूस हुई।
अगली रात, पुलिस मुझे एक छह-मंजिले होटल में ले गई। उसने होटल की ऊपरी तीन मंजिलें किराये पर ले ली थीं, और उन्हें परमेश्वर के विश्वासियों को हिरासत में रखने और यातना देने के लिए गुप्त पूछताछ केंद्र में बदल दिया था। जब मैं छठी मंजिल पर पहुँची, तो 20 से भी ज्यादा भाई-बहनों को कतार में खड़े देख मैं हक्की-बक्की रह गई : इतने ज्यादा लोग गिरफ्तार कर लिए गए थे! लगा जैसे कम्युनिस्ट पार्टी ने सबको एक ही वक्त गिरफ्तार किया था। मुझे अंदाजा नहीं था पुलिस हमारे साथ कैसे पेश आएगी, इसलिए मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे हमारी रक्षा करने की विनती की, ताकि हम डटे रह सकें। फिर पुलिस ने हम लोगों को पूछताछ के लिए एक-दूसरे से अलग कर दिया।
तीसरे दिन सुबह पाँच बजे, एक मोटा पुलिसवाला अंदर आया और डाँटते हुए बोला, “मैं जिसकी पूछताछ कर रहा था, वह एक अगुआ था, और अड़ियल था। पूछताछ दो-तीन बजे से पहले ख़त्म नहीं हुई।” आगे बोलते हुए उसने घमंड से इशारे किए, “पहले, मैंने उसके चेहरे पर जोर से लात मारी, फिर उसके चेहरे की दूसरी तरफ जोर से लात मारी, इसके बाद दोनों हाथों से लगातार तमाचे मारे।” अपने हाथ हिलाकर वह गुस्से से शिकायत करता रहा, “मैंने उसे इतना कस के मारा कि मेरे हाथों में दर्द होने लगा, तो मैंने मिनरल वॉटर की आधी बोतल उठाई और उसके चेहरे पर तब तक मारता रहा, जब तक मेरी बाँहें अकड़ नहीं गईं। उसका पूरा चेहरा बदसूरत हो गया। उसे पहचानना नामुमकिन था।” पुलिसवाले की करतूत सुनकर मैं बुरी तरह डर गई। मेरा दिल तेज धड़क रहा था, और मैं खासी नाराज हो गई थी, “ये पुलिसवाले बहुत क्रूर हैं, अगर इन लोगों ने उस भाई की ही तरह मुझे भी पीटा, तो क्या मैं बर्दाश्त कर पाऊँगी?” मैं इस बारे में ज्यादा सोचने की हिम्मत नहीं कर सकी। मैंने तुरंत परमेश्वर से प्रार्थना की, पीटे गए भाई की और साथ ही मेरी भी रक्षा करने की विनती की, ताकि इस माहौल को सहने का विश्वास हममें हो।
चौथे दिन सुबह, पुलिस मुझे थाने ले गई। वू कुलनाम के एक पुलिसवाले ने मुझसे पूछा कि मैं कलीसिया में किस पद पर थी। जब मैंने कहा मैं एक सामान्य विश्वासी थी, तो वह एकाएक खड़े होकर बोला, “मेरे ख्याल से थोड़ा दर्द सहे बिना तू सच नहीं बोलेगी!” उसने मुझे अपनी बाँहें सीधी रख उकडूँ बैठने, खड़े होने और फिर यही क्रम दोहराते रहने को कहा। बड़ी देर तक ऐसा करने से मैं इतनी ज्यादा थक गई कि पसीने से तर हो गई, मेरी टाँगों में दर्द होने लगा। मैं जमीन पर गिर पड़ी। उसने नाक चढ़ाकर कहा, “जानती है? कोई कितना भी सख्त हो, यहाँ उसे मेरे सामने घुटने टेकने ही पड़ते हैं। तू अगुआ है क्या? तेरा अधिकारी कौन है?” मेरे जवाब न देने पर, उसने मुझे उकडूँ बैठे रहने को कहा, कुछ ही मिनट उकडूँ बैठते ही मेरी टाँगें काँपने लगीं, वे सूज गई थीं, जल्द ही मैं ढेर हो गई। उसने मुझे उठकर फिर से उकडूँ बैठने को कहा, मुझे यह 800 बार दोहराना पड़ा। एक पुलिसवाला डरावने ढंग से बोला, “देख, तू कितना पसीना-पसीना हो रही है। बहुत गंदी लग रही है। ऐसे क्यों दुख झेल रही है? ये परमेश्वर कहाँ है? जो भी जानती है हमें बता देगी, तो तुझे तकलीफ नहीं सहनी पड़ेगी। नहीं बताएगी, तो ऐसी तकलीफ सहेगी जिसका तुझे अंदाजा भी नहीं है।” पुलिसवाले की बातें सुनकर, मैं चिढ़ गई। उसकी तरफ मैंने एक उचटती सी निगाह डाली और कहा कि मुझे कुछ नहीं मालूम। उन्होंने मेरे हाथ पीछे करके टाइगर बेंच के साथ मुझे हथकड़ी लगा दी। हथकड़ी लगने के थोड़ी ही देर बाद मेरे सीने में कसाव महसूस होने लगा, साँस लेना मुश्किल हो गया। मेरा दम लगभग घुट रहा था। मैंने उनसे हथकड़ी हटाने को कहा, और काफी देर बाद आखिरकार उन्होंने हथकड़ी खोल दी। फिर एक पुलिस अफसर अंदर आकर बोला, “अपनी हालत को समझने की कोशिश कर। बाकी सबने क़ुबूल कर लिया है। यहाँ बैठना और अकेले टिके रहना बेवकूफी है, है न? जो कुछ जानती है, अभी बता दे, हम तुझे जाने देंगे।” फिर उसने कुछ फोटो निकाले और उसमें मौजूद लोगों को पहचानने को कहा। उसने कहा, “ये सब गिरफ्तार किए गए थे, सबने कहा कि वे तुझे जानते हैं। क्या तू उन्हें जानती है? कलीसिया में वे क्या काम करते हैं?” मैंने सोचा, “अगर भाई-बहन सच में मानते हैं कि वे मुझे जानते हैं, मगर मैं कहूँ कि उन्हें नहीं जानती, फिर पुलिस मुझे यकीनन नहीं छोड़नेवाली। लेकिन अगर मैं कहूँ कि उन्हें जानती हूँ, तो यह भाई-बहनों को धोखा देना होगा। इससे मैं परमेश्वर को धोखा देनेवाला यहूदा बन जाऊंगी। क्या करूँ?” तभी मुझे परमेश्वर के वचन का एक अंश याद आया : “मेरे लोगों को, मेरे लिए मेरे घर के द्वार की रखवाली करते हुए, शैतान के कुटिल कुचर्क्रों से हर समय सावधान रहना चाहिए ... ताकि शैतान के जाल में फँसने से बच सकें, और तब पछतावे के लिए बहुत देर हो जाएगी” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 3)। मुझे एहसास हुआ कि यह शैतान की एक चाल थी। पुलिस मुझे धोखा देने, मुझसे भाई-बहनों और परमेश्वर को धोखा दिलवाने के लिए यह तरीका इस्तेमाल कर रही थी। मुझे इसमें नहीं फँसना चाहिए। भाई-बहनों ने मुझे जानने की बात मान भी ली हो, तो भी मैं उन्हें धोखा नहीं दे सकती। यह सोचकर मैंने कहा कि मैं उन्हें नहीं जानती।
वू कुलनाम का पुलिस अफसर समझ गया कि मुझे बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता, तो उसने गुस्से से कहा, “देखता हूँ तू कितनी अड़ियल है!” फिर उसने मुझे खड़े होने का आदेश दिया और हॉलवे की खिड़की में लगी धातु-छड़ों के साथ मुझे हथकड़ी लगा दी। मेरा शरीर हवा में झूल रहा था, कलाइयों में जबर्दस्त दर्द हो रहा था, और इस बीच पुलिस मुझे देखकर हँस रही थी। थोड़ी देर बाद उन्होंने मुझे नीचे उतारकर उकडूँ बैठे रहने को कहा। उस रात, पुलिस मुझे होटल वापस ले गई। अगली सुबह, वू कुलनाम के पुलिस अफसर ने कहा, “आज से, मैं तुझे खिड़की के साथ हथकड़ी लगाऊंगा। अगर तू सच नहीं बोली, तो खाना भी नहीं मिलेगा।” इसके बाद, उन्होंने धातु-छड़ों के साथ मेरे एक हाथ में हथकड़ी लगा दी। समय-समय पर वे मुझसे कलीसिया की जानकारी पूछने आते। जब एक पुलिसवाले ने देखा कि मैं अब भी नहीं बता रही, तो उसने मेरे चहरे पर एक फोल्डर दे मारा, और जान-बूझकर दरवाजा खोल दिया ताकि यातना दी जा रही दूसरी बहनों की चीख-पुकार सुन सकूँ। उनकी दर्दभरी आहें सुनकर मेरा दिल टूट गया, मैं आगबबूला थी।
चार दिन बाद, मू कुलनाम के एक पुलिसवाले ने मेरा नोटबुक लेकर उसमें लिखे नंबर दिखाए और पूछा कि क्या ये मेरे भाई-बहनों के सेल फोन के नंबर थे। मेरे जवाब न देने पर, वह जोर से चीखा, “तूने मुँह नहीं खोला, तो भी तुझे सजा देने के लिए यह नोटबुक काफी है!” उसने एक फोटो निकालकर पूछा कि क्या यह कलीसिया के अगुआ की तस्वीर है। फिर उसने कलीसिया के मेजबान-घरों की तीन तस्वीरें निकालीं, और उन्हें पहचानने को कहा। मैं ये सभी घर जानती थी, लेकिन मैंने कहा मैं इन्हें नहीं पहचानती। उसने आगे कहा, “हम तुझे एक कार में डालकर वहाँ ले जाएंगे। तुझे सिर्फ उस जगह की ओर इशारा करना होगा। हम तेरा ये राज छिपाए रखेंगे, किसी को पता नहीं चलेगा कि जानकारी तूने दी।” अब भी मेरा मुँह खुलते न देखकर, उसने अपने बाजू के पुलिसवाले से कहा, “इसे नंगी कर दो, मुँह खिड़की की तरफ करके इसे लटका दो, ताकि आते-जाते लोग इसे देख सकें। फिर इसकी एक फोटो खींचकर इंटरनेट पर डाल दो, लिख दो कि यह यहूदा है, इसने हमें सब-कुछ बता दिया है।” इसके बाद, वह मेरे कपड़े उतारने आ गया। मुझे बहुत डर लग रहा था। अगर इसने सच में ऐसा कर दिया और इंटरनेट पर मेरा फोटो डाल दिया, तो मेरे रिश्तेदार और दोस्त इसे देखेंगे। इसके बाद मैं कैसे जी पाऊँगी? मैंने उससे मेरे कपड़े न उतारने की भीख माँगी, मगर उसने हँसी में नाक चढ़ाकर कहा, “क्या? डरती है?” फिर वे सबके सब हँस पड़े। उनके बेपरवाह चेहरे देखकर मुझे एहसास हो गया कि यह शैतान की एक और चाल थी, इसलिए मैंने जल्द शांत होकर परमेश्वर को पुकारा। उस समय मुझे परमेश्वर के वचन का एक भजन याद आया, जिसका शीर्षक था, “सत्य के लिए तुम्हें सब कुछ त्याग देना चाहिए” : “तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें अपने जीवन की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे विश्वास और शक्ति दी। मैंने परमेश्वर में विश्वास रखकर जीवन में सही मार्ग का अनुसरण किया था। परमेश्वर में विश्वास रखने के कारण, यातना सहना, अपमानित होना शर्मिंदगी की बात नहीं थी। धार्मिकता के लिए मुझे सताया जा रहा था, और परमेश्वर ने इसकी स्वीकृति दी थी। अगर मैं अपनी हैसियत बचाए रखने के लिए शैतान के सामने झुककर परमेश्वर को धोखा दूँगी, तो यह सबसे बेशर्म काम होगा, और मैं सच में अपनी इंसानी मर्यादा खो दूँगी। डरपोक होकर, शैतान से दया की भीख माँगकर, खुद को शैतान के मखौल का विषय बनाने के लिए मुझे खुद से घृणा हुई। मैंने कसम खाई कि ये कमीने पुलिसवाले चाहे जैसे मेरा अपमान करें, वे मेरे सारे कपड़े उतार दें, तो भी मैं उनके सामने नहीं झुकूँगी, दया की भीख नहीं माँगूंगी, कभी भी यहूदा नहीं बनूँगी। जब पुलिसवालों ने देखा कि मैं अब डर नहीं रही थी, तो उन्हें इतना गुस्सा आया कि उन्होंने धातु-छड़ों के साथ मेरे दोनों हाथों में हथकड़ी लगा दी। एक महिला पुलिस चीखी, “तुम लोगों को इसे नंगी करना था न? सारे कपड़े उतार दो, ताकि सब कुछ पूरा देख सको।” पुलिसवालों के समूह ने जोर का ठहाका लगाया, पाताल लोक के राक्षसों की तरह। उस वक्त मेरे पैर हवा में झूल रहे थे, मेरा वजन कलाइयों पर था, उनमें इतना दर्द हो रहा था मानो बस टूटने ही वाली हैं। मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की, विश्वास और शक्ति देने की विनती की, ताकि पुलिस की यातना सह सकूँ और शैतान के साथ समझौता न करूँ। आधे घंटे से भी ज्यादा होने के बाद, पुलिस ने मुझे नीचे उतारा। मेरे पैर सुन्न पड़ गए थे, जैसे ही मेरे पाँव जमीन पर पड़े, मैं फर्श पर ढेर हो गई। एक पुलिस अफसर ने क्रूरता से कहा, “अपनी हालत के बारे में सोच। अब भी मुँह नहीं खोला, तो तुझसे निपटने के लिए हमारे पास और भी तरीके हैं।” फिर वे चले गए।
दो दिन बाद, एक मोटा पुलिसवाला अंदर आया। अंदर आते ही, उसने मुझ पर नजर रखनेवाले दोनों पुलिसवालों से कहा, “जानते हो इस औरत को तुम क्यों नहीं तोड़ पा रहे हो? इसलिए कि तुम लोग बहुत नरम हो, सही तकनीकों का इस्तेमाल नहीं कर रहे हो। आज मैं तुम्हें कुछ तरीके सिखाऊंगा, दिखाऊंगा मैं कैसे उगलवाता हूँ!” उसने मुझे उकडूँ, फिर आधा उकडूँ बैठने को कहा, और ऐसा तब तक करते रहने को कहा जब तक मैं अपनी पूरी ताकत खोकर ढेर नहीं हो गई। फिर उसने दोनों पुलिस अफसरों से मेरी एक-एक बाँह पकड़कर नीचे-ऊपर करने को कहा और बार-बार ऐसा ही करते रहने को कहा। उनके खूंखार चेहरे देखकर मैं जान गई कि अब और ज्यादा कठोर यातना की बारी है। मैंने अपने उस नीच रूप को याद किया जब दो दिन पहले अपमान के डर से मैंने शैतान के सामने सिर झुकाकर दया की भीख माँगी थी, इसलिए आज मैंने तय कर लिया कि मैं परमेश्वर पर भरोसा करूँगी और शैतान के सामने परमेश्वर की गवाही दूँगी। मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रर्थना की, “हे परमेश्वर, मुझे नहीं मालूम पुलिस मुझे यातना देने के और कौन-से तरीके इस्तेमाल करेगी, लेकिन मैं तुम्हारी सशक्त और शानदार गवाही देना चाहती हूँ, इसलिए विनती करती हूँ मुझे विश्वास और शक्ति दो।” थोड़ी ही देर में, वे थककर इतने चूर हो गए और पसीने से भीग गए कि मुझे उठा नहीं सके। उनके हाथों से छूटते ही मैं धड़ाम से फर्श पर गिर पड़ी। उन्होंने मुझे खड़े होकर फिर से उकडूँ बैठने और ऐसा ही बार-बार करते रहने का आदेश दिया। मोटे पुलिसवाले ने नाक चढ़ाकर कहा, “बहुत हॉट लगती है। इस पर थोड़ा ठंडा पानी उंड़ेलो। उसे जरूर मजा आएगा।” फिर उन लोगों ने मुझ पर तब तक ठंडा पानी डाला जब तक मैं पूरी भीग नहीं गई। मगर हैरत की बात यह थी कि मुझे अपने शरीर से गर्म भाप उठती महसूस हुई, और जरा भी ठंड नहीं लगी। मैं जान गई कि परमेश्वर मेरी रक्षा कर रहा है। मैंने मन-ही-मन लगातार परमेश्वर का धन्यवाद किया, लगा जैसे परमेश्वर में मेरी आस्था बढ़ रही है।
फिर दोनों पुलिसवालों ने मुझे ऊपर घसीटा और मेरे बाएँ हाथ में धातु-छड़ों के साथ हथकड़ी लगा दी। पहले टाँगे जाने के कारण मेरी कलाई पहले से ही जख्मी थी, इसलिए इस बार हथकड़ी लगाने से दर्द ज्यादा बढ़ गया। मेरी पीड़ा देखकर पुलिसवाले ठहाके लगाने लगे, मैं नहीं चाहती थी कि वे मेरी कमजोरी देखें, इसलिए मैं बिना कोई आवाज किए दर्द सहती रही। दर्द घटाने के लिए, मैं पैरों की उँगलियों के सहारे खड़े होने की कड़ी मेहनत करती रही। मेरी एक उँगली मुश्किल से जमीन को छू पा रही थी, फिर भी जब एक पुलिस अफसर ने यह देखा तो उसने मेरी एड़ी पर अपना पाँव दबा दिया, जिससे मेरा शरीर थोड़ी देर के लिए लटका रहा, फिर उसने अपना पाँव सरका दिया, जिससे मेरे हाथ में जोर का दर्दनाक झटका लगा। मुझे अब भी चुप देखकर, पुलिस ने मेरे एक पाँव को रस्से से बाँधकर उसे ऊपर खींचा ताकि मेरा शरीर ऊपर हवा में लटका रहे, और फिर अचानक छोड़ दिया। ऐसा उन्होंने बार-बार किया। इस तरह मेरा शरीर इस बाजू से उस बाजू होता रहा, लगा जैसे एक छुरी मेरी कलाई को चीर रही हो। यह चलता रहा, तो मैंने जल्द मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की। फिर, मोटा पुलिसवाला बेंत की एक कुर्सी ले आया। दूसरे दोनों पुलिसवालों ने मेरी एक-एक टांग पकड़ी, और कुर्सी के पीछे की तरफ ऊपर रख दिया और फिर कुर्सी को दूर खींच दिया। मेरा पूरा वजन मेरी कलाई पर आ गया। दर्द सहना मुश्किल था। तीस-चालीस मिनट बाद, पुलिस ने मेरा बायाँ हाथ नीचे करके दाएँ हाथ में धातु-छड़ों के साथ हथकड़ी लगा दी और यातना देना जारी रखा। मेरी साँस फूलने लगी, सोचा, “पता नहीं पुलिस मुझे और कितनी यातना देगी। अगर उन्होंने मुझे इसी तरह लटकाए रखा, तो मेरे हाथ बेकार हो जाएंगे और अगर मेरे हाथ बेकार हो गए, तो भविष्य में मैं कैसे जी सकूंगी?” मैंने जितना ज्यादा सोचा, उतना ही ज्यादा दुख महसूस हुआ, इतना ज्यादा कि साँस लेना मुश्किल हो गया। लगा, अब मैं नहीं सह पाऊँगी, तो मैंने सच्चे दिल से परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मेरी देह बहुत कमजोर है। मैं अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती। मुझे शक्ति दो, ताकि मैं डटी रह सकूँ, शैतान को नीचा दिखा सकूँ।” उस पल, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “यरूशलम जाने के मार्ग पर यीशु बहुत संतप्त था, मानो उसके हृदय में कोई चाकू भोंक दिया गया हो, फिर भी उसमें अपने वचन से पीछे हटने की जरा-सी भी इच्छा नहीं थी; एक सामर्थ्यवान ताक़त उसे लगातार उस ओर बढ़ने के लिए बाध्य कर रही थी, जहाँ उसे सलीब पर चढ़ाया जाना था। अंततः उसे सलीब पर चढ़ा दिया गया और वह मानवजाति के छुटकारे का कार्य पूरा करते हुए पापमय देह के सदृश बन गया। वह मृत्यु एवं अधोलोक की बेड़ियों से मुक्त हो गया। उसके सामने नैतिकता, नरक एवं अधोलोक ने अपना सामर्थ्य खो दिया और उससे परास्त हो गए” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप सेवा कैसे करें)। परमेश्वर के वचन ने मुझे शक्ति दी। मनुष्य जाति के छुटकारे के लिए प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ा दिया गया, उसने बहुत अपमान और दर्द सहे, फिर भी उसने बेझिझक ऐसा किया। लोगों के लिए परमेश्वर का प्रेम बहुत महान है, इस मामले में, परमेश्वर हमारे लिए एक मिसाल पेश कर चुका है। लेकिन पुलिस की यातना झेलते समय मैंने यह नहीं सोचा कि गवाही कैसे दूँ। इसके बजाय, मैंने अपनी ही देह के बारे में सोचा। मैं बहुत स्वार्थी और नीच थी! यह सोचकर मैंने शर्मिंदगी महसूस की। इस बार, मैंने तय कर लिया था कि परमेश्वर को संतुष्ट करूँगी। परमेश्वर के प्रेम के बारे में सोचकर मुझे प्रेरणा मिली, और आखिर तक शैतान से लड़ने का हौसला मिला। तभी, जब एक पुलिसवाले ने मेरी आँखें बंद देखीं, तो बोल पड़ा, “यह अपने परमेश्वर से प्रार्थना कर रही है, हर बार ऐसा करने से उसे ताकत मिलती है।” एक दूसरे पुलिसवाले ने मेरी भौंहों में धातु-छड़ी चुभाई। आँखों में चुभाते हुए बोला, “आँखें खोल। तुझे अपने परमेश्वर से प्रार्थना करने की इजाजत नहीं है।” मुझे अब भी चुप देखकर उसने मेरे चेहरे पर तीन-चार बार बेल्ट से मारा, फिर भी मुझे जरा भी दर्द नहीं हुआ। आधे घंटे से ज्यादा होने के बाद एक पुलिसवाले ने कहा, “इसे और ऊपर करके हथकड़ी लगाओ, ताकि ये जमीन न छू सके। देखते हैं इसे कितना मजा आता है।” फिर दो पुलिसवालों ने मुझे उठाया, लेकिन जैसे ही तीसरे ने हथकड़ी खोलकर ऊपरवाले छड़ पर बांधना चाहा, हथकड़ी अचानक टूट गई और बंद नहीं हो पाई। उन्होंने एक और जोड़ी आजमाई, फिर भी काम नहीं बना। मैं जान गई कि परमेश्वर रक्षा कर रहा है, मैंने दिल से परमेश्वर को धन्यवाद दिया। पुलिसवाले अब थक चुके थे, मुझे ऊपर पकड़े नहीं रख पा रहे थे, तो उन्होंने छोड़ दिया, और मैं एकाएक जमीन पर गिर पड़ी। उन लोगों ने मुझे करीब दो घंटे तक यातना दी थी, और मैं इतनी थक गई कि बिना हिले-डुले वहीं पड़ी रही। पुलिस द्वारा अपनी यातना के बारे में सोचूँ, तो उसकी दुष्ट और क्रूर प्रकृति साफ समझ आई। मैंने यह भी महसूस किया कि परमेश्वर को मेरी परवाह थी, और परमेश्वर में मेरा विश्वास और पक्का हो गया। कुछ देर बाद, एक पुलिसवाला आया और उसने मुझे चार-पाँच बार लात मारी। अभी तक मुझे बिना हिलते-डुलते देख उसने मेरी आँखों पर ठंडे मलहम की पूरी बोतल लगा दी, मगर मुझे कुछ भी महसूस नहीं हुआ। मुझे कोई प्रतिक्रिया न देते देख पुलिसवाला चला गया। मैं जान गई कि परमेश्वर मेरी रक्षा कर रहा था।
शाम करीब सात बजे, एक पुलिस अफसर अंदर आया। उसने देखा कि मैं बुरी तरह भीगी हुई ठंड से काँप रही थी, तो उसने दूसरे पुलिसवालों को फटकार लगाई। झूठी दया दिखाते हुए उसने उन लोगों से मेरे लिए सूखे कपड़े लाने को कहा, फिर मुझे कटोरी भर नूडल्स दिए, और फिर वह मेरे साथ कृपालु बनने की कोशिश करने लगा। उसने कहा, “तू अपने घर से बहुत दूर है, अब तू वापस नहीं जा सकती। तेरे बच्चे तुझे याद नहीं करते? इतनी छोटी उम्र में परमेश्वर में विश्वास रखकर तू क्या कर रही है? मैंने सुना है तू अगुआ है, तो बस हम जो चाहते हैं, वो बता दे, और मेरा वादा है, हम तुझे जाने देंगे। तू घर जा सकेगी, अपने परिवार से मिल सकेगी।” यह सुनते ही, मैं समझ गई कि वह उस पर भरोसा करके कलीसिया की जानकारी देने के लिए मुझे धोखा दे रहा था। मैंने कहा, “मैं जो कुछ जानती थी पहले ही बता चुकी हूँ। इसके अलावा और कुछ नहीं जानती।” उसने अचानक मेज ठोकी, खड़ा हो गया, और क्रूरतापूर्वक बोला, “मत सोच कि तूने मुँह नहीं खोला तो हम तेरे साथ कुछ नहीं कर सकते! केंद्र सरकार ने हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विश्वासियों को पूरी तरह मिटा देने का आदेश दिया है। हम तेरे संगठन को खत्म कर देंगे। अगर तूने सहयोग नहीं किया, तो तुझे सजा दी जाएगी।” फिर वह चला गया। तभी वू कुलनाम के पुलिसवाले ने कहा, “चालाकी दिखा और हम जो चाहते हैं वो जानकारी दे दे। इस तरह तुझे इतनी तकलीफ नहीं झेलनी पड़ेगी।” मैंने सोचा, “पुलिसवालों को जरूरी जानकारी नहीं मिली, तो वे रुकेंगे नहीं। अगर मैं यातना सह नहीं पाई और यहूदा बन गई, तो यह परमेश्वर को धोखा देना होगा, इसलिए शायद आत्महत्या करना ठीक रहेगा।” मुझे आत्महत्या के ख्याल आने लगे। तभी मुझे एहसास हुआ कि मेरी हालत ठीक नहीं है, मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! मेरी देह कमजोर है, मैं जान देकर इस माहौल से बचकर निकल जाना चाहती हूँ। मैं बहुत कमजोर हूँ और मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है। मुझे प्रबुद्ध कर रास्ता दिखाओ, डटे रहने के लिए मुझे विश्वास और शक्ति दो।” प्रार्थना करने के बाद, मुझे एकाएक याद आया कि मेरे एमपी5 प्लेयर में परमेश्वर के वचनों की फाइलें हैं। मैंने युवा पुलिस अफसर से कहा, “मुझे अपना एमपी5 दे दीजिए। मैं आपको कुछ दिखाना चाहती हूँ।” उसे लगा मैं कबूल कर बताना चाहती हूँ, तो उसने मुझे दे दिया। मैंने एमपी5 प्लेयर शुरू किया जहां मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश दिखा : “जिन लोगों का उल्लेख परमेश्वर ‘विजेताओं’ के रूप में करता है, वे लोग वे होते हैं, जो तब भी गवाह बनने और परमेश्वर के प्रति अपना विश्वास और भक्ति बनाए रखने में सक्षम होते हैं, जब वे शैतान के प्रभाव और उसकी घेरेबंदी में होते हैं, अर्थात् जब वे स्वयं को अंधकार की शक्तियों के बीच पाते हैं। यदि तुम, चाहे कुछ भी हो जाए, फिर भी परमेश्वर के समक्ष पवित्र दिल और उसके लिए अपना वास्तविक प्यार बनाए रखने में सक्षम रहते हो, तो तुम परमेश्वर के सामने गवाह बनते हो, और इसी को परमेश्वर ‘विजेता’ होने के रूप में संदर्भित करता है” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखनी चाहिए)। परमेश्वर के वचनों से मैंने उसकी इच्छा समझ ली। उत्पीड़न और पीड़ा झेलते समय परमेश्वर मुझसे आस्था और वफादारी चाहता है। परमेश्वर चाहता है कि शैतान के कब्जे में रहकर मैं विजय की गवाही दूँ। इन कमीने पुलिसवालों ने मुझसे परमेश्वर को धोखा दिलवाने के लिए मुझे ऐसी यातना दी थी। अगर मैं अपनी जान ले लूँ, अपनी गवाही खो दूँ, तो यह शैतान की चालों में फँसना होगा, परमेश्वर द्वारा मेरे लिए किए गए प्रयासों की कीमत चुकाना नहीं होगा—इससे परमेश्वर को बहुत दुख होगा। मैं मर नहीं सकती, मुझे जीते रहना है, मजबूत बनना है, डटे रहना है, और परमेश्वर को संतुष्ट करना है। इस बारे में सोचकर लगा जैसे मुझे शक्ति मिल गई थी। मैंने घुटने टेककर परमेश्वर से धन्यवाद-प्रार्थना की। युवा पुलिसवाले ने चकित होकर कहा, “तू बहुत बहादुर है, यहाँ घुटने टेककर प्रार्थना करने की हिम्मत कर रही है!” मैंने उसे अनदेखा कर दिया। प्रार्थना के बाद, उसने मुझसे पूछा, “क्या तूने तय कर लिया? ठीक से सोच ले, और जो जानती है बता दे।” मैंने ठानकर कहा, “जो भी कहना था कह चुकी। कुछ और नहीं कहना।” वू कुलनाम का अफसर इतना गुस्सा हो गया कि उसने हथकड़ी उठाई औरधातु-छड़ों के साथ मेरे एक हाथ में लगा दी। युवा पुलिस अफसर ने कहा, “प्रार्थना सचमुच सामर्थ्यवान है, इससे यह बिल्कुल दूसरी इंसान बन जाती है। इसे किसी से डर नहीं लगता, यह कुछ नहीं बताती।” यह सुनकर मैंने अपने दिल की गहराई से परमेश्वर को धन्यवाद दिया, मैं और ज्यादा आश्वस्त हो गई कि अपनी बात पर डटी रह सकती हूँ।
अगली सुबह जब पुलिस ने देखा कि उनकी किसी भी चाल का मुझ पर कोई असर नहीं हो रहा है, तो वे बोले, “आज से, हम हर दिन तुझे खिड़की से हथकड़ी लगाएंगे, और हम तुझे खाने, पीने और सोने नहीं देंगे। देखते हैं कितने दिन टिक पाती है।” मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मुझे यकीन है मेरा जीवन और मृत्यु तुम्हारे हाथ में हैं। मेरी रक्षा करो। मर भी जाऊँ, तो भी डटी रहूँगी, तुम्हारी गवाही दूँगी!” इसके बाद, पुलिस बारी-बारी से मुझ पर नजर रखती रही, मेरी आँख लगते ही वे मुझे जोर से जगाते। तीसरे दिन, एक राहगीर ने मुझे खिड़की के साथ हथकड़ी लगा देखा, तो चिल्ला पड़ा, “क्या किसी ने तुम्हारा अपहरण किया है? अगर हाँ है, तो हाथ हिलाओ, मैं तुम्हारे लिए 110 पर फोन करूँगा।” मैंने सोचा, “मुझे यहाँ पुलिस ने कैद कर रखा है। क्या तुम्हें लगता है पुलिस आम लोगों के लिए नेक काम करती है? कम्युनिस्ट पार्टी की पुलिस, जानवर जैसे दानवों का जत्था है।” कुछ और दिन बाद, सीढ़ियों से नीचे से और ज्यादा लोगों ने मुझे खिड़की से हथकड़ी लगे देखा। वे मेरी और इशारा कर कुछ बोलते ही जाते थे, तो पुलिस ने मुझे सामनेवाले कमरे में रख दिया।
20 मार्च के आसपास एक रात, मुझे विशेष जांच-पड़ताल ऑफिस ले जाया गया। वहां तीन पुलिसवाले सुबह चार बजे तक जबरन मेरा नजरिया बदलने की कोशिश करते थे, लियू कुलनाम के एक पुलिस अफसर ने मुझसे कहा, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में अब कई करोड़ लोग हैं, इससे कम्युनिस्ट पार्टी के हितों के लिए सीधा खतरा पैदा हो गया है। अगर हम इसका दमन न करें, तो कम्युनिस्ट पार्टी की कौन सुनेगा? प्रेसिडेंट शी ने खुद आदेश दिया है कि ‘चमकती पूर्वी बिजली’ को पूरी तरह मिटा दिया जाए, और जो लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखते हैं, उन्हें फिर से शिक्षा दी जाए, ताकि वे अपनी आस्थाएं छोड़ दें और पार्टी की शिक्षा और अगुआई को स्वीकार कर लें। अगर वे नहीं माने तो उन्हें जेल की सजा होगी, उन्हें पीट-पीट कर मार भी डाला गया तो कोई परवाह नहीं करेगा।” उसने आगे कहा, “फिलहाल, पूरा प्रांत और पूरा देश सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के सदस्यों को गिरफ्तार कर रहा है। देर-सबेर, इसकी जड़ें उखाड़ दी जाएँगी। अगर तुझे लगता है कि तू आगे भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रख सकेगी, तो जान ले कि यह नामुमकिन है!” मैंने कहा, “हम परमेश्वर के विश्वासी बस सभाओं में जाते हैं, परमेश्वर के वचन पढ़ते हैं, ईमानदार इंसान बनने के लिए अपना स्वभाव बदलने की कोशिश करते हैं, और जीवन में सच्चे मार्ग का अनुसरण करते हैं। हम कम्युनिस्ट पार्टी के हितों को नुकसान कैसे पहुंचा सकते हैं? अगर आपको मेरी बातों पर यकीन नहीं है, तो सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ लें, समझ जाएंगे। आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों की ढेरों किताबें जब्त कर चुके हैं, तो एक किताब खोलकर क्यों नहीं देख लेते?” दूसरे पुलिस अफसर ने ऊँची आवाज में कहा, “परमेश्वर में विश्वास रखने के बारे में हमें मत बता! हम इसमें विश्वास नहीं करते, हम सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी और प्रेसिडेंट शी में विश्वास रखते हैं।” फिर उसने मुझे धमकी दी, “इस बारे में अच्छी तरह सोच ले। अगर तू वो बातें बता देगी जो हम चाहते हैं, तो मेरा वादा है कि तुझे जेल की सजा नहीं होगी। हम तुझे सीधे घर जाने देंगे। अगर तुझे अब भी अपनी हालत की समझ नहीं है, तो मैं तुझे एक मानसिक अस्पताल में भेज दूँगा। डॉक्टर हर दिन तुझे इंजेक्शन देगा, ताकि तेरा दिमाग सुन्न पड़ जाए। तू हर तरह के मानसिक रोगियों के बीच रहेगी, वे तुझे हर दिन पीटेंगे, डांटेंगे। हम भी तो देखें, तू वहां कितने दिन टिक पाती है।” यह सुनकर मुझे बहुत ज्यादा डर लगा। अगर मुझे मानसिक अस्पताल भेज दिया गया, तो हर दिन मुझे मानसिक रोगियों के बीच रहना होगा। ऐसे लोगों के साथ रहकर एक सामान्य इंसान भी पागल हो जाएगा। मुझे चुप देखकर पुलिस ने फिर से धमकी दी, “वापस जाकर इस बारे में सोच। हमारे लिए जरूरी सारी जानकारी कागज पर लिख दे। हमारे पास जो सबूत हैं, उनके आधार पर हम तुझे तीन से सात साल की सजा दे सकते हैं।”
होटल वापस आकर पुलिस की बातों के बारे में सोचते हुए मैं जरा भी नहीं सो पाई। मानसिक रोगियों के मेरे पीछे भागने और मुझे पीटने और मेरे पागल होकर सडकों पर नंगी दौड़ने के बारे में सोचकर मैं बेहद घबरा गई, और बिस्तर पर उठकर बैठ गई। मैंने रोते हुए परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर! मैं पागल होने से डरती हूँ। मेरी मदद करो, अगुआई करो, मुझे सुकून दो। किसी भी तरह के हालात से मेरा सामना हो, मैं तुम्हें कभी धोखा नहीं दूँगी।” प्रार्थना के बाद, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “जब लोग अपने जीवन का त्याग करने के लिए तैयार होते हैं, तो हर चीज तुच्छ हो जाती है, और कोई उन्हें हरा नहीं सकता। जीवन से अधिक महत्वपूर्ण क्या हो सकता है? इस प्रकार, शैतान लोगों में आगे कुछ करने में असमर्थ हो जाता है, वह मनुष्य के साथ कुछ भी नहीं कर सकता” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 36)। परमेश्वर के वचन पर मनन करके मैं धीरे-धीरे शांत हो गई। अगर मैं अपनी जान दाँव पर लगाने को तैयार थी, तो ऐसा कौन-सा कष्ट था जो मैं नहीं झेल सकती थी? मेरा जीवन और मृत्यु परमेश्वर के हाथ में थे, और परमेश्वर की इजाजत के बिना मैं मानसिक रोगी नहीं बनती। सूर्योदय के बाद, मैंने कागज-कलम निकालकर एक पंक्ति लिखी, “ऊंची दीवारें, बड़े-बड़े आँगन, हमेशा है जेल में सड़ना।” पुलिस अफसर ने देखा तो उसके चेहरे का रंग बदल गया। वह इतना ज्यादा नाराज हुआ कि दरवाजा धड़ाम से बंद करके चला गया।
महीने भर से ज्यादा के बाद, मुझे हिरासत घर भेज दिया गया। पूछताछ अभी भी पूरी नहीं हो सकी थी, इसलिए उन्होंने मुझे छह महीने की रिहायशी निगरानी की सजा दी और चेतावनी दी, “अब तू एक संदिग्ध अपराधी है, तुझे कहीं कोई आजादी नहीं मिलेगी। तूने फिर से परमेश्वर में विश्वास रखा और हमने तुझे पकड़ लिया तो सजा दी जाएगी।” पुलिस समय-समय पर मेरे घर फोन करती, और धार्मिक मामला ब्यूरो के लोग परमेश्वर में मेरी आस्था के बारे में सवाल करने मेरे घर आ जाते। मैंने अपने भाई-बहनों से संपर्क करने की हिम्मत नहीं की, और कलीसिया जीवन नहीं जी सकी। पुलिस की यातना के कारण, मैं अपने दोनों हाथों की उँगलियाँ नहीं मोड़ पाती थी, मेरी कलाइयों में इतना दर्द होता था कि मैं उन्हें हिला नहीं पाती थी। मुझमें एक कंघी भी उठाने की ताकत नहीं थी, और अभी भी मेरी कलाइयों में कोई ताकत नहीं है।
कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा गिरफ्तार होने, सताए जाने और यातना दिए जाने के बाद, मैं उसकी क्रूर, दुष्ट और स्वर्ग की अवज्ञा करनेवाली प्रकृति को साफ समझ सकी। मैंने यह भी साफ तौर पर देखा कि वह शैतान ही है जो परमेश्वर का प्रतिरोध कर लोगों को नुकसान पहुँचाता है। साथ ही मैं यह भी देख पाई कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान और बुद्धिमान है, मैंने परमेश्वर की रक्षा और देखरेख का अनुभव किया। परमेश्वर के वचनों ने ही शैतान पर विजय पाने और डटे रहने में कदम-दर-कदम मेरी अगुआई की थी। परमेश्वर का धन्यवाद!
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?