संकट के बीच एक विकल्प
कुछ समय पहले, मुझे भाई झाओ का पत्र मिला। उनकी कलीसिया के अगुआ और भाई-बहन को, सुसमाचार का प्रचार करते समय पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। अब जहाँ पुस्तकें रखी थीं, वो जगह खतरे में आ गयी। पुलिस किसी भी समय उस जगह की तलाशी लेकर पुस्तकें ज़ब्त कर सकती थी। वह और कई उपयाजक गिरफ्तार किए गए लोगों के संपर्क में रहते थे, इसलिए वे सभी निगरानी में थे, वे पुस्तकों को हटा नहीं पा रहे थे। तब उन्होंने मुझसे संपर्क किया और पूछा कि क्या मैं उन पुस्तकों को वहाँ से हटाकर कहीं और ले जाने में मदद कर सकता हूँ। पत्र पाकर, मैं दुविधा में पड़ गया। ईसाइयों को गिरफ्तार करने के लिए, सीसीपी ने हर गाँव में "पाँच-घरों की जिम्मेदारी" अभियान चला रखा था, और वे इस बात की निगरानी करते थे कि किसके घर पर अजनबी आया है। अगर किसी परमेश्वर के विश्वासी के बारे में पता चलता था, तो तुरंत खबर कर दी जाती थी। उस कलीसिया के भाई-बहनों को हाल ही में गिरफ्तार किया गया था, और सीसीपी तो हर जगह नजरें गड़ाए बैठी थी। ऐसे वक्त में परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों को हटाना खतरे से खाली न था। अगर किसी दुष्ट ने हमारी रिपोर्ट कर दी या पुलिस को पता चल गया, तो पुलिस गाड़ी और उसमें बैठे लोगों को अपने कब्जे में ले लेगी। अगर उन्होंने परमेश्वर के वचनों की इतनी सारी पुस्तकें देखीं, तो पूछताछ के दौरान पक्का वो मुझे यातना देंगे। अगर मैं मरा नहीं तो बुरी तरह जख्मी तो ज़रूर हो जाऊँगा। अगर मैं यातना नहीं सह पाया और यहूदा बन गया, तो मुझे धिक्कारा और दंडित किया जाएगा, और इस तरह मेरा अंत हो जाएगा, है न? लेकिन अगर हमने वक्त रहते पुस्तकों को नहीं हटाया, और पुलिस ने पुस्तकें ढूंढकर ज़ब्त कर लीं, तो भाई-बहन परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ पाएँगे। मैं तमाशबीन बनकर पुलिस को उन पुस्तकों को ज़ब्त करते हुए नहीं देख सकता था। मेरे अंदर संघर्ष चल रहा था, तो मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, "परमेश्वर, मैं कायर और डरपोक बना हुआ हूँ। मुझे गिरफ्तारी का डर है, मेरे अंदर सहयोग का हौसला नहीं है। मुझे आस्था और मजबूती दो।"
प्रार्थना के बाद, मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश देखा। "जो लोग परमेश्वर के प्रति वफादार होते हैं, वे स्पष्ट रूप से जानते हैं कि इसमें जोखिम शामिल होते हैं, और वे परिणाम से निपटने के लिए उन जोखिमों को उठाने के लिए तैयार रहते हैं और वहाँ से हटने से पहले परमेश्वर के घर को होने वाले नुकसान को न्यूनतम रखते हैं। वे अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं देते। तुम लोग इसे क्या कहते हो : क्या लोग अपनी सुरक्षा की जरा-भी परवाह नहीं कर सकते? अपने परिवेश के खतरों से कौन वाकिफ नहीं होता? लेकिन तुम्हें अपना कर्तव्य पूरा करने के लिए जोखिम उठाने चाहिए। यह तुम्हारी जिम्मेदारी है। तुम्हें अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को प्राथमिकता नहीं देनी चाहिए। परमेश्वर के घर का कार्य और वह जो परमेश्वर तुम्हें सौंपता है, सबसे महत्वपूर्ण हैं, और उन्हें प्राथमिकता देना सभी चीजों से ऊपर है" ("मसीह-विरोधियों को उजागर करना" में 'वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग दो)')। परमेश्वर के वचनों को पढ़कर, मुझे खुद पर शर्म आयी। जब परमेश्वर के निष्ठावान लोग परमेश्वर के घर के हितों को चोट पहुँचते देखते हैं, तो खतरे के बावजूद, वे डटकर अपना दायित्व निभाते हैं। लेकिन मैं? मैं सामने आए संकट को समझ अच्छी तरह समझता था। मैं जानता था कि अगर मैंने परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों को तुरंत नहीं हटाया, तो पुलिस किसी भी समय उन्हें ढूँढ़कर ज़ब्त कर सकती है। ऐसे संकट के समय, मुझे चिंता थी कि मैं कहीं गिरफ्तार न हो जाऊँ। मुझे परमेश्वर के घर के हितों की चिंता नहीं थी, मुझे यह चिंता नहीं थी कि अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य के निर्वहन के लिए अपनी सारी शक्ति कैसे लगाऊँ। यह निष्ठा तो बिल्कुल नहीं थी! मैं स्वार्थी बन रहा था। इसका एहसास होते ही, मैंने खुद को फटकारा। मैंने सोचा, बड़ा लाल अजगर चाहे कितना भी पागल हो जाए, लेकिन है तो वो भी परमेश्वर के हाथों में? उसने इतने बरसों से परमेश्वर के कार्य में बाधा और रुकावट डाली है, लेकिन उसके बावजूद, क्या परमेश्वर का कार्य दुनिया भर में नहीं फैल गया? मेरी कायरता और डर के पीछे इस ज्ञान की कमी थी कि परमेश्वर सर्वव्यापी है और उसी का प्रभुत्व है। परमेश्वर के प्रति मेरी आस्था बहुत थोड़ी-सी थी। परमेश्वर इस स्थिति के ज़रिए मुझे सबक सिखा रहा था और सत्य का ज्ञान दे रहा था, ताकि मुझे परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धि का ज्ञान हो, और ऐसा परमेश्वर पर भरोसा करके ही हो सकता था। इसका एहसास होने पर, मेरी कायरता चली गयी, और मैं परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों को हटाने के लिए तैयार हो गया।
मैं सुबह-सुबह भाई झाओ की कलीसिया में गया। सबसे पहले मैंने एक बहन को खोजा और उनसे कहा कि वो मुझे उस घर में ले चलें जहाँ पुस्तकें रखी हैं, लेकिन दरवाज़े पर उन्होंने मुझे धीरे से कहा, घर पर मेरा पति मुझ पर नजर रखे हुए है और मुझे बाहर नहीं जाने दे रहा है, क्योंकि उसे डर है कि मैं गिरफ्तार हो जाऊँगी। यह सुनकर मैं परेशान हो गया। वह मुझे उस जगह तक नहीं ले जा पायी, मैं वहां किसी को जानता नहीं था, हालात और मुश्किल हो गए। अगर पुलिस ने पुस्तकें ज़ब्त कर लीं, तो क्या होगा? मैं घर वापस जाने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था। रास्ते में मैं सोच रहा था कि मुझे वहाँ ले जाने के लिए किससे कहूँ। अगर मैंने किसी को तैयार भी कर लिया, और अगर मैं उस गाँव में वापस गया, तो लोगों का ध्यान मेरी ओर जा सकता है। क्या वो मेरी रिपोर्ट कर देंगे? सोच-सोचकर मेरा डर बढ़ता जा रहा था। लगा जैसे खतरा हर तरफ है। घर आकर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, तो मुझे उसके वचनों के ये अंश दिखे, "तुम्हें किसी भी चीज़ से भयभीत नहीं होना चाहिए; चाहे तुम्हें कितनी भी मुसीबतों या खतरों का सामना करना पड़े, तुम किसी भी चीज़ से बाधित हुए बिना, मेरे सम्मुख स्थिर रहने के काबिल हो, ताकि मेरी इच्छा बेरोक-टोक पूरी हो सके। यह तुम्हारा कर्तव्य है; ... तुम्हें सबकुछ सहना होगा; मेरे लिए, तुम्हें अपनी हर चीज़ का त्याग करने को तैयार रहना होगा, और मेरा अनुसरण करने के लिए सबकुछ करना होगा, अपना सर्वस्व व्यय करने के लिए तैयार रहना होगा। अब वह समय है जब मैं तुम्हें परखूंगा : क्या तुम अपनी निष्ठा मुझे अर्पित करोगे? क्या तुम ईमानदारी से मार्ग के अंत तक मेरे पीछे चलोगे? डरो मत; मेरी सहायता के होते हुए, कौन इस मार्ग में बाधा डाल सकता है? यह स्मरण रखो! इस बात को भूलो मत! जो कुछ घटित होता है वह मेरी नेक इच्छा से होता है और सबकुछ मेरी निगाह में है। क्या तुम्हारा हर शब्द व कार्य मेरे वचन के अनुसार हो सकता है? जब तुम्हारी अग्नि परीक्षा होती है, तब क्या तुम घुटने टेक कर पुकारोगे? या दुबक कर आगे बढ़ने में असमर्थ होगे?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। "जब मैं औपचारिक रूप से अपना कार्य शुरू करता हूँ, तो सभी लोग वैसे ही चलते हैं जैसे मैं चलता हूँ, इस तरह कि समस्त संसार के लोग मेरे साथ कदम मिलाते हुए चलने लगते हैं, संसार भर में 'उल्लास' होता है, और मनुष्य को मेरे द्वारा आगे की ओर प्रेरित किया जाता है। परिणामस्वरूप, स्वयं बड़ा लाल अजगर मेरे द्वारा उन्माद और व्याकुलता की स्थिति में डाल दिया जाता है, और वह मेरा कार्य करता है और अनिच्छुक होने के बावजूद अपनी स्वयं की इच्छाओं का अनुसरण करने में समर्थ नहीं होता, और उसके पास मेरे नियंत्रण में समर्पित होने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहता। मेरी सभी योजनाओं में बड़ा लाल अजगर मेरी विषमता, मेरा शत्रु, और साथ ही मेरा सेवक भी है; उस हैसियत से मैंने उससे अपनी 'अपेक्षाओं' को कभी भी शिथिल नहीं किया है। इसलिए, मेरे देहधारण के काम का अंतिम चरण उसके घराने में पूरा होता है। इस तरह से बड़ा लाल अजगर मेरी उचित तरीके से सेवा करने में अधिक समर्थ है, जिसके माध्यम से मैं उस पर विजय पाऊँगा और अपनी योजना पूरी करूँगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 29)। परमेश्वर के वचनों से मेरी आस्था बढ़ी। परमेश्वर सर्वशक्तिमान है। हर चीज़ पर उसका नियंत्रण है और हर काम उसी की प्रेरणा से होता है। अंत के दिनों में परमेश्वर का कार्य बड़े लाल अजगर के देश में किया जाता है, ताकि बड़े लाल अजगर की यातना का इस्तेमाल परमेश्वर के चुने हुए लोगों को पूर्ण बनाने में किया जा सके। बड़ा लाल अजगर चाहे कितना भी पागल हो जाए, लेकिन वह परमेश्वर की प्रभुता और आयोजनों के अधीन ही रहता है। परमेश्वर की आज्ञा के बिना वह हमारा बाल भी बाँका नहीं कर सकता। मैंने विचार किया कि सीसीपी जब से सत्ता में आई है, तब से वह ईसाइयों को बुरी तरह से सता रही है, यातना दे रही है, उसने परमेश्वर की कलीसिया को बंद करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए हैं, लेकिन उसके षड्यंत्रों को कभी सफलता नहीं मिली। बल्कि उसका बर्ताव परमेश्वर की सेवा करना बना हुआ है। उसके बर्ताव के जरिए परमेश्वर के चुने हुए लोगों ने उसके दुष्ट सार को जाना है जिसे सत्य से घृणा है और जो परमेश्वर और उसके अधिकार के ज्ञान का विरोध करता है। परमेश्वर बड़े लाल अजगर का इस्तेमाल इंसान को उसकी किस्म के अनुसार छाँटने में भी करता है। जो लोग सामान्य रूप से परमेश्वर के वचनों को खा-पी सकते हैं, यातना और आपदा के बीच निष्ठापूर्वक अपना कर्तव्य निभा सकते हैं, जो गिरफ्तारी और यातना के बावजूद शैतान के आगे नहीं झुकते, वे विजेताओं की गवाही देते हैं। लेकिन जो कायर और डरपोक हैं और अपना कर्तव्य निभाने से घबराते हैं, वो परमेश्वर के कार्य से उजागर हुए घास-फूस और अविश्वासी हैं, और आखिरकार उन्हें हटा दिया जाता है। मैं समझ गया कि परमेश्वर इन हालात में मेरी परीक्षा ले रहा है। अगर मैं कायर बनकर अपने कर्तव्य-पालन से डर गया, तो क्या इसका मतलब यह नहीं होगा कि परमेश्वर ने मुझे उजागर कर दिया? इस एहसास के बाद, मैं अपने कर्तव्य से मुँह नहीं मोड़ सकता था। मुझे जल्द से जल्द परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों को हटाना था।
तो मैंने इस बारे में फौरन भाई-बहनों से बात की, मुझे पता चला कि दो और बहनों को उस जगह की जानकारी है जहां पुस्तकें रखी हैं, तो मैं उन्हें लेने और पुस्तकों वाली जगह पर जाने के लिए निकला। मैं रास्ते भर डरा हुआ था और लगातार परमेश्वर से प्रार्थना कर रहा था। जब हम गाँव के मुहाने पर पहुँचे, तो वहाँ कोई बड़ा उत्सव चल रहा था। उत्साह से भरे काफी लोग उसमें शामिल थे। मुझे लगा परमेश्वर हमारे लिए रास्ता बना रहा है। मैंने मन ही मन परमेश्वर को धन्यवाद दिया, लोगों का ध्यान कहीं और देखकर, हम चुपचाप बगल के दूसरे रास्ते से गाँव में घुस गए और परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें वहाँ से निकाल लीं। जैसे ही हमने पुस्तकें सुरक्षित जगह पहुँचायीं, हमारे पास मैसेज आया कि हमारे वहाँ से निकलते ही हमारी रिपोर्ट कर दी गयी है। पुलिस हमारी तलाश में लग गयी, लेकिन तब तक हम बहुत दूर निकल चुके थे। मैंने परमेश्वर का धन्यवाद किया क्योंकि सभी कुछ उसके हाथ में है, एक-एक मिनट, एक-एक पल। हमें रास्ता देने के लिए परमेश्वर ने ही लोगों और उत्सव की व्यवस्था की, वरना पुस्तकें हटाना नामुमकिन था।
कुछ ही समय बाद, एक सभा के दौरान, कलीसिया के पाँच भाई-बहनों को गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी अचानक हुई थी, तो हमें पता नहीं था कि उस जगह पर कितने भाई-बहनों की निगरानी की जा रही थी। हमें उन भाई-बहनों को खबर करनी थी जो गिरफ्तार हो चुके भाई-बहनों के संपर्क में थे, ताकि वे छिप जाएँ। वहाँ से शीघ्र परमेश्वर के वचनों की पुस्तकें भी हटानी थीं। मैं उस जगह की कलीसिया से वाकिफ था, तो इन चीजों से निपटने में कलीसिया के अगुआओं की मदद करने के लिए मैं सही व्यक्ति था। लेकिन मुझे अपनी गिरफ्तारी और उत्पीड़न का डर था, तो मैंने अपनी चिंता अपनी पत्नी को बतायी, उसने मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़कर सुनाया। परमेश्वर कहते हैं, "संसार में घटित होने वाली समस्त चीजों में से ऐसी कोई चीज नहीं है, जिसमें मेरी बात आखिरी न हो। क्या कोई ऐसी चीज है, जो मेरे हाथ में न हो? जो कुछ मैं कहता हूँ, वह किया जाता है, और मनुष्यों के बीच कौन है, जो मेरे मन को बदल सकता है? क्या यह मेरे द्वारा पृथ्वी पर बनाई गई वाचा हो सकती है? कोई भी चीज मेरी योजना के आगे बढ़ने में बाधा नहीं डाल सकती; मैं अपने कार्य में और साथ ही अपने प्रबंधन की योजना में भी हमेशा उपस्थित हूँ। मनुष्यों में से कौन इसमें हस्तक्षेप कर सकता है? क्या मैंने स्वयं ही व्यक्तिगत रूप से ये व्यवस्थाएँ नहीं की हैं?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 1)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था दी। मैंने जाना कि हर मामला और चीजें परमेश्वर के हाथ में है। हर दिन, हर पल मेरे साथ घटने वाली घटना और मेरी गिरफ्तारी सब परमेश्वर के हाथ में है। परमेश्वर की अनुमति के बिना, बड़े लाल अजगर का उत्पीड़न चाहे कितना भी भयंकर हो, वो मुझे कभी गिरफ्तार नहीं कर सकते। मेरी गिरफ्तारी हो भी गयी, तो वह समय परमेश्वर के लिए गवाही देने का होगा। इसका एहसास होने पर, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, और मैं उस पर भरोसा और सहयोग करने को तैयार हो गया।
अगले दिन, मैं एक अनाज-व्यापारी बनकर हालात जानने के लिए गाँव में पहुँचा। वहाँ पहुँचने पर, मुझे कैमरों और भीड़-भाड़ वाली जगह से बचना था, तो मैंने लंबा रास्ता लिया, मुश्किल सफर के बाद, मैं कलीसिया अगुआ के घर पहुँचा, तो पता चला कि कोई घर पर नहीं है। मुझे चिंता और बेचैनी हुई, सूर्यास्त तक रुका, लेकिन कोई नहीं आया। तो मैं रात को नजदीक के एक विश्वासी रिश्तेदार के घर रुक गया। रात को सोचता रहा, मैं दिन भर इतना जोखिम उठाकर, लंबा सफर तय करके आया, लेकिन कोई काम नहीं हुआ, मन खिन्न हो गया। अगले दिन फिर जाना था। अगर किसी ने रिपोर्ट कर दी और मैं गिरफ्तार हो गया तो (क्या होगा)? मैं जानता था, पिछली बार की तरह मैं अपने कर्तव्य से बच नहीं सकता। मुझे पुस्तकें हटाने का कोई रास्ता ढूँढ़ना होगा, लेकिन मैं कायर और डरपोक था, लगा यह काम तो बहुत जोखिम भरा है। तो मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, "परमेश्वर! मैं कायर हूँ, डरपोक हूँ। मुझे आस्था दो। काम चाहे कितना भी खतरनाक हो, मैं तुझ पर भरोसा करके, इस काम को जल्दी से जल्दी पूरा करना चाहता हूँ, ताकि परमेश्वर के घर के हित आहत न हों।" प्रार्थना के बाद, मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश याद आया, "बड़ा लाल अजगर परमेश्वर को सताता है और परमेश्वर का शत्रु है, और इसीलिए, इस देश में, परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों को इस प्रकार अपमान और अत्याचार का शिकार बनाया जाता है, और परिणामस्वरूप, ये वचन तुम लोगों में, लोगों के इस समूह में, पूरे किए जाते हैं। चूँकि परमेश्वर का कार्य उस देश में आरंभ किया जाता है जो परमेश्वर का विरोध करता है, इसलिए परमेश्वर के कार्य को भयंकर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, और उसके बहुत-से वचनों को संपन्न करने में समय लगता है; इस प्रकार, परमेश्वर के वचनों के परिणामस्वरूप लोग शुद्ध किए जाते हैं, जो कष्ट झेलने का भाग भी है। परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना अत्यंत कठिन है—परंतु इसी कठिनाई के माध्यम से परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा करता है, अपनी बुद्धि और अपने अद्भुत कर्म प्रत्यक्ष करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। पहले, परमेश्वर के वचनों के इस अंश के मायने को मैं समझ नहीं पाया था, लेकिन जब इन्हें हालात के आईने में देखा, तो समझा परमेश्वर के वचन कितने व्यावहारिक हैं। बड़े लाल अजगर को सत्य से घृणा है और वह परमेश्वर का घोर विरोधी है। बड़े लाल अजगर के देश में परमेश्वर के विश्वासी के नाते, हमारी गिरफ्तारी और उत्पीड़न तय है, लेकिन परमेश्वर विजाताओं के समूह को पूर्ण बनाने के लिए बड़े लाल अजगर के उत्पीड़न का इस्तेमाल करता है। यही परमेश्वर के कार्य की बुद्धिमानी है। पहले मुझे लगता था कि मुझमें आस्था है, लेकिन जोखिम भरे हालात में जहाँ मुझे गिरफ्तारी का डर था, वहाँ मेरी कायरता, आस्था में कमी और स्वार्थ उजागर हो गए। मैं गिरफ्तारी के बाद के उत्पीड़न को सहन न कर पाने, यहूदा बन जाने और अपने बुरे अंत की संभावना से डर गया। मैंने अपने बर्ताव के बारे में सोचा, अपने हित और सुरक्षा का विचार किया, लेकिन मैंने कलीसिया के काम के बारे में नहीं सोचा। उसमें न तो परमेश्वर के प्रति कोई निष्ठा थी और न ही गवाही। मैं परमेश्वर की अनुमति ही ऐसे हालात में था। परमेश्वर मेरी आस्था को पूर्ण बनाने, मुझे हौसला और विवेक देने के लिए इसका इस्तेमाल कर रहा था, ताकि मुझे परमेश्वर के कार्य का व्यावहारिक अनुभव मिले और मैं उसके कर्मों को देख सकूँ। चीन में पैदा होना और खुशकिस्मती से परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य का अनुभव करना मेरे लिए परमेश्वर का उत्कर्ष और प्रेम था। अगर सत्य पाने के लिए मैंने कष्ट नहीं उठाए और न ही कोई कीमत चुकाई, अगर मैं इस कर्तव्य को पूरा करने में नाकाम रहा, तो फिर मेरा जीवन बेमानी और निरर्थक है। इसका एहसास होने पर, मैंने चिंतन किया : जोखिम भरे हालात में, मैं सबसे पहले अपने हितों की क्यों सोचता हूँ? इसका मूल कारण क्या है?
फिर मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : "सभी भ्रष्ट लोग स्वयं के लिए जीते हैं। मैं तो बस अपने लिए सोचूँगा, बाकियों को शैतान ले जाए—यह मानव प्रकृति का निचोड़ है। लोग अपनी ख़ातिर परमेश्वर पर विश्वास करते हैं; वे चीजों को त्यागते हैं, परमेश्वर के लिए स्वयं को खपाते हैं और परमेश्वर के प्रति वफादार रहते हैं—लेकिन फिर भी वे ये सब स्वयं के लिए करते हैं। संक्षेप में, यह सब स्वयं के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने के उद्देश्य से किया जाता है। दुनिया में, सब कुछ निजी लाभ के लिए होता है। परमेश्वर पर विश्वास करना आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए है, और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए ही कोई व्यक्ति सब कुछ छोड़ देता है, और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कोई व्यक्ति बहुत दुःख का भी सामना कर सकता है। यह सब मनुष्य की भ्रष्ट प्रकृति का प्रयोगसिद्ध प्रमाण है। जिन लोगों के स्वभाव बदल गए हैं, वे अलग हैं, उन्हें लगता है कि अर्थ सत्य के अनुसार जीने से आता है, कि परमेश्वर के प्राणी के कर्तव्य निभाने वाले ही इंसान कहलाने योग्य हैं, कि इंसान होने का आधार ईश्वर के प्रति समर्पित होना, परमेश्वर का भय मानना और बुराई से दूर रहना है, कि परमेश्वर की आज्ञा स्वीकार करना स्वर्ग और पृथ्वी द्वारा आदेशित जिम्मेदारी है—और अगर वे परमेश्वर से प्रेम करने और उसके प्रेम का प्रतिफल देने में सक्षम नहीं हैं, तो वे इंसान कहलाने योग्य नहीं हैं; उनकी दृष्टि में, अपने लिए जीना खोखला और अर्थहीन है। वे यह महसूस करते हैं कि लोगों को परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए, अपने कर्तव्य अच्छी तरह से पूरे करने के लिए जीना चाहिए, उन्हें एक सार्थक जीवन जीना चाहिए, ताकि जब उनके मरने का समय हो तब भी, वे संतुष्ट महसूस करें और उनमें जरा-सा भी पछतावा न हो, और यह कि वे व्यर्थ नहीं जिए हैं" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'बाहरी परिवर्तन और स्वभाव में परिवर्तन के बीच अंतर')। परमेश्वर के वचन पढ़कर, मैं समझ गया कि मैं हर चीज में अपने हितों और सुरक्षा की सोचता हूँ, और जोखिम भरे हालात में मैं काम से बचना और छिपना चाहता हूँ, क्योंकि मैं इस तरह के शैतानी फलसफों के मुताबिक जी रहा था "हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाये।" और "चीजों को प्रवाहित होने दें यदि वे किसी को व्यक्तिगत रूप से प्रभावित न करती हों।" ये फलसफे मेरी प्रकृति बनकर मेरे विचारों और बर्ताव को नियंत्रित कर रहे थे। इन्होंने मुझे स्वार्थी और घृणित बना दिया था। मुझे परमेश्वर के घर के कार्य का कोई ख्याल ही नहीं था। मुझे परमेश्वर के वचनों की पुस्तकों का महत्व पता था, कि उन्हें हर हाल में बचाना है, फिर भी अपने हितों की सोच रहा था, ऐसे नाजुक पलों में, मैं अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान नहीं हो सका। मैंने विचार किया, भ्रष्टता में डूबे इंसान को बचाने के लिए, परमेश्वर ने चीन में कार्य करने का कितना बड़ा जोखिम उठाया, जहाँ सीसीपी ने उसका पीछा किया, उसने धार्मिक जगत की निंदा और तिरस्कार को सहा। परमेश्वर ने एक बार भी अपनी सुरक्षा की नहीं सोची, उसने हमें पोषण देने के लिए लगातार सत्य व्यक्त किया है। हालाँकि हम विद्रोही और भ्रष्ट हैं, लेकिन परमेश्वर ने हमें कभी नहीं त्यागा, उसने हमें प्रबुद्ध करने और राह दिखाने के लिए अपने वचनों का इस्तेमाल किया। इससे, मुझे एहसास हुआ कि मुझ पर परमेश्वर के कितने एहसान हैं, मुझे खुद से घृणा हो गई कि मैं कितना स्वार्थी और नीच बन गया था। मैंने परमेश्वर के अनुग्रह और वचनों के पोषण का कितना आनंद लिया है, फिर भी मैंने हर बार खुद को बचाने की कोशिश की, एक बार भी यह ख्याल नहीं आया कि परमेश्वर के घर के हितों को कैसे सुरक्षित रखना है। मुझमें इंसानियत नाम की कोई चीज़ नहीं थी। मैं परमेश्वर के समक्ष रहने लायक नहीं था। (घुटनों के बल बैठकर) मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, "परमेश्वर! शैतान ने मुझे बुरी तरह भ्रष्ट कर दिया है, मैं स्वार्थी और नीच हूँ, मुझमें ज़रा सी भी इंसानियत नहीं है। अब मैं इस तरह नहीं जीना चाहता, मैं देह-सुख त्यागना और पूरी काबिलियत से अपना कर्तव्य निभाना चाहता हूँ, परमेश्वर के कार्य को कायम रखना चाहता हूँ।"
फिर मैंने वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 11 से लिए गए परमेश्वर के ये वचन पढ़े : "संपूर्ण मानवजाति में कौन है जिसकी सर्वशक्तिमान की नज़रों में देखभाल नहीं की जाती? कौन सर्वशक्तिमान द्वारा तय प्रारब्ध के बीच नहीं रहता? क्या मनुष्य का जीवन और मृत्यु उसका अपना चुनाव है? क्या मनुष्य अपने भाग्य को खुद नियंत्रित करता है? बहुत से लोग मृत्यु की कामना करते हैं, फिर भी वह उनसे काफी दूर रहती है; बहुत से लोग जीवन में मज़बूत होना चाहते हैं और मृत्यु से डरते हैं, फिर भी उनकी जानकारी के बिना, उनकी मृत्यु का दिन निकट आ जाता है, उन्हें मृत्यु की खाई में डुबा देता है" (वचन देह में प्रकट होता है)। "जब लोग अपने जीवन का त्याग करने के लिए तैयार होते हैं, तो हर चीज तुच्छ हो जाती है, और कोई उन्हें हरा नहीं सकता। जीवन से अधिक महत्वपूर्ण क्या हो सकता है? इस प्रकार, शैतान लोगों में आगे कुछ करने में असमर्थ हो जाता है, वह मनुष्य के साथ कुछ भी नहीं कर सकता। हालाँकि, 'देह' की परिभाषा में यह कहा जाता है कि देह शैतान द्वारा दूषित है, लेकिन अगर लोग वास्तव में स्वयं को अर्पित कर देते हैं, और शैतान से प्रेरित नहीं रहते, तो कोई भी उन्हें मात नहीं दे सकता" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 36)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करते हुए, मुझे समझ आया कि इंसान का जीवन और मृत्यु परमेश्वर के हाथों में है। ठीक उसी तरह, जब शैतान ने अय्यूब पर अपनी क्रूरता दिखायी, तो परमेश्वर की अनुमति के बिना, शैतान अय्यूब की जान नहीं ले पाया। इस समस्या से जूझते हुए, मेरी गिरफ्तारी होना, न होना परमेश्वर पर निर्भर है। अगर परमेश्वर ने पुलिस को मेरी गिरफ्तारी की अनुमति दे दी, और भयंकर उत्पीड़न से अगर मेरी मौत भी हो गई, तो मैं अडिग रहकर परमेश्वर के लिए गवाही दूँगा। उसके लिए शहीद होना सार्थक और मूल्यवान है। जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा है, "क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहेगा वह उसे खोएगा, परन्तु जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा वही उसे बचाएगा" (लूका 9:24)। मुझे पहले के संतों का भी ख्याल आया। जब उन्हें मारने की धमकी दी जाती थी, तो वे अपने हितों की या अपने जीवन की चिंता नहीं करते थे। बल्कि वे परमेश्वर की शानदार गवाही देते थे, जैसे दानियेल को शेर के सामने फेंक दिया गया था, याकूब का सिर कलम कर दिया गया था, या पतरस को सूली पर उल्टा लटका दिया गया था। मुझे परमेश्वर के प्रति उनकी आस्था, निष्ठा और आज्ञाकारिता का अनुकरण करना चाहिए। अब मुझे शैतान के अंधकारमय प्रभाव का भय नहीं था, न ही मैं स्वार्थी, घृणित और गरिमाविहीन जीवन जी सकता था। मुझे अपना कर्तव्य निभाने के लिए हर तरह का जोखिम उठाना था।
अगली सुबह, अचानक मुझे ख्याल आया कि बहन वांग, जो पास में ही रहती हैं, उन्हें भी वह जगह पता होगी जहाँ पुस्तकें रखी हैं, तो मैं उनके घर गया। वे सदमे में थीं, बोलीं, "कल कुछ पुलिसवाले और गाँववाले परमेश्वर के विश्वासियों की जाँच-पड़ताल करने आए थे। अगर कल तुम कलीसिया अगुआ से मिलकर पुस्तकें हटाते, तो पकड़े जाते।" बहन वांग की बात सुनकर, मैंने परमेश्वर का धन्यवाद किया। स्थानीय हालात के बारे में जानने के बाद, मैंने पुस्तकें सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दीं, और मेरी चिंता खत्म हुई। हालाँकि इस पूरी प्रक्रिया के दौरान, मैं भयंकर मानसिक यंत्रणा से गुज़रा, लेकिन मैंने परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और हर चीज पर उसके प्रभुत्व को देखा। बड़ा लाल अजगर कितना भी पागलपन करे, लेकिन वह कहाँ सेवा करेगा, यह परमेश्वर के हाथ में है। वह परमेश्वर के चुने हुए लोगों को पूर्ण बनाने और उनके जीवन की प्रगति में मदद का ज़रिया है, परमेश्वर की अनुमति के बिना, वह हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
अपने अनुभव के बाद, परमेश्वर में मेरी आस्था बढ़ गयी। मुझे अपनी भ्रष्टता की थोड़ी-बहुत समझ भी हासिल हुई। अब मैं शैतान के अंधकारपूर्ण प्रभाव से घबराता नहीं, बल्कि अपने कर्तव्य का पालन करके, परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा के करता हूँ। इस तरह से परमेश्वर का मार्गदर्शन पाकर मैं समझदार और लाभांवित हुआ हूँ। सुखद परिवेश में मैं कभी भी ये चीज़ें हासिल न कर पाता। परमेश्वर का धन्यवाद!
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?