आवाज उठाने में नाकाम रहने के पीछे की वजह
2021 में, केटी को अगुआ चुना गया, और हम साथ मिलकर कलीसिया के काम का निरीक्षण करते थे। कुछ समय के बाद मैंने देखा कि केटी को अकेले काम करना पसंद था। पाठ्य सामग्री का काम उसकी मुख्य जिम्मेदारी थी, उसमें व्यस्त रहने के अलावा वह हम सभी से काम के बारे में शायद ही कभी बात या चर्चा करती थी, तो हम लोगों के बीच तालमेल तो लगभग था ही नहीं। उच्च अगुआ जो भी प्रोजेक्ट हमें साथ में करने के लिए सौंपते, उनमें वह भाग नहीं लेती थी। बस हमें संदेश भेज देती थी कि उन्हें हम ही निबटाएँ। बाद में मुझे पता चला कि जिस पाठ्य सामग्री के काम की वह प्रभारी थी, उसमें समस्याएँ थीं, जिन्हें वह समय रहते नहीं सुधार रही थी। मेरा साथी जॉयस और मैं केटी के साथ संगति करने गए, और उससे कहा कि अगुआ होने का अर्थ कलीसिया के सभी कामों में शामिल होना और उनकी खोज-खबर रखना होता है। उसने जवाब दिया कि वह कलीसिया के प्रोजेक्ट के बारे में कुछ नहीं जानती, और उसे काम के सिद्धांत और खोज-खबर रखने के तरीके समझ नहीं आते। उसने कहा कि वह सब हम ही संभालें, वह पाठ्य सामग्री के काम में पहले ही बहुत व्यस्त है, उसके पास और ज़्यादा वक्त या ऊर्जा नहीं है।
एक बार, केटी को एक चिट्ठी मिली जिसमें कलीसिया अगुआ और सुसमाचार उपयाजक की अपने कार्य में सिद्धांतों का पालन न करने की शिकायत की गई थी। केटी ने बस वह चिट्ठी उच्च अगुआओं को भेज दी, जिन्होंने हम दोनों को मिलकर इस मसले को निबटाने के लिए कहा। पर उसके बाद, केटी ने मुझे एक ग्रुप चैट में शामिल किया, और उस चिट्ठी को लिखने वाले भाई-बहन से कहा कि किसी भी समस्या की रिपोर्ट सीधे मुझे दें। फिर उसने मुझे मैसेज कर के कहा कि उसके पास इन चीजों के लिए वक्त नहीं है, इसलिए उसने उस चिट्ठी को पढ़ा ही नहीं था बस उच्च अगुआओं को थमा दिया था। वह चाहती थी कि मैं इस मामले की जाँच और निबटारा कर दूँ। केटी का संदेश पढ़ने के बाद, मुझे लगा कि कुछ तो गड़बड़ है। उच्च अगुआओं ने अभी-अभी हमें इस मुद्दे को साथ में सुलझाने के लिए कहा है, तो वह इस तरह ये सब मामले मुझ पर लाद कर, उनसे मुँह फेर कर चैन से कैसे बैठ सकती है? अगुआओं और कार्यकर्ताओं का अपने काम की तरफ ऐसा नजरिया तो नहीं होना चाहिए। हाल ही में जब मैंने और जॉयस ने उससे बात की कि कलीसिया के कामकाज की दिक्कतों को कैसे सुलझाएँ, तो उसने कहा कि वह व्यस्त है, यह सब उसे समझ में नहीं आता और वह ये काम नहीं कर सकती। अब, उच्च अगुआओं ने खास तौर से हम दोनों को इस रिपोर्ट पर काम करने को कहा, और उसने बिल्कुल यही बहाना बनाया। उसे अगुआ बने कई महीने हो चुके थे, पर वह समस्याएँ सुलझाने या काम की खोज-खबर रखने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही थी। वह व्यावहारिक काम न करने वाली एक झूठी अगुआ की तरह बर्ताव कर रही थी। परमेश्वर ने अगुआओं की जिम्मेदारियाँ बहुत बारीकी से बताई है और अपनी सहभागिता में बिल्कुल स्पष्ट बताया है कि उन्हें अपना काम कैसे करना चाहिए। भले ही उसने अगुआ के तौर पर काम करना शुरू ही किया था, तो भी, परमेश्वर के वचन के अनुसार, कुछ चीजें उसे करनी चाहिए थीं। अगर उसे काम या सिद्धांत समझ में नहीं भी आ रहे थे, तो कम से कम खोज-खबर तो रख ही सकती थी कि काम कैसा चल रहा है। पर केटी हमेशा व्यस्त होने, अनाड़ी होने या काम समझ में न आने का बहाना बनाती रहती। उसने परमेश्वर के वचन के अनुसार बर्ताव नहीं किया, यहाँ तक कि जब उसे सुझाव दिए गए, तो भी वह नहीं सुनती थी। उसका रवैया सच को स्वीकारने वाला नहीं था। मैंने सोचा कि क्या मुझे उच्च अगुआओं को उसके बर्ताव की रिपोर्ट करनी चाहिए? कुछ समय से मैं इसी बात पर लगातार सोच-विचार करे जा रही थी, और कभी-कभी मन हुआ भी, कि उच्च अगुआओं को बता दूँ। पर फिर मुझे पहले का एक मौका याद आया, जब केटी ने एक अगुआ के मामले की रिपोर्ट की थी। मामले की तह तक गए बिना, मैंने बस मान लिया कि वह बिना कारण ही अगुआ की आलोचना कर रही है, इसलिए मैंने बेरहमी से उसका विश्लेषण कर उसे उजागर किया। बाद में, जब उच्च अगुआओं को इसका पता चला, तो उन्होंने अन्यायी होने, आलोचना करने और लोगों को दबाने को लेकर मेरा निपटान किया, यहाँ तक कि एक सभा में मेरे व्यवहार का विश्लेषण कर उसे उजागर किया। अगर मैं उच्च अगुआओं को उसकी रिपोर्ट करती हूँ, तो क्या वे समझेंगे कि मैं उसे दबा रही हूँ, अलग-थलग कर रही हूँ, और उसके खिलाफ कोई साजिश कर रही हूँ? मैं उच्च अगुआओं के सामने अपनी यह छवि नहीं बना सकती थी। अगर इस चिट्ठी के कारण मुझे निकाल दिया गया, तो फायदों से ज़्यादा नुकसान नहीं हो जाएगा? इसलिए, मैंने फैसला किया कि मैं फिलहाल उसकी दिक्कतों का जिक्र नहीं करूँगी।
इस साल जून में, चूँकि केटी की कलीसिया का सुसमाचार कार्य अच्छा नहीं चल रहा था, तो उच्च अगुआओं ने भाई जेरी को सुसमाचार कार्य की जिम्मेदारी लेने को कहा। स्टाफ में कुछ फेरबदल हुए, जेरी और सुसमाचार कार्य से जुड़े कई सुपरवाइजरों ने आपस में चर्चा कर सिद्धांतों के अनुसार कुछ इंतजाम किए पर इसके लिए केटी की स्वीकृति नहीं ली। जब केटी को पता चला, तो उसे लगा कि जेरी उसे गंभीरता से नहीं लेता और वह पीठ-पीछे उसकी आलोचना करने लगी। उसने कहा कि जेरी मसीह-विरोधी जैसा है जो अपना एक अलग राज्य चाहता है, और अगर वह मसीह-विरोधी न भी हो, तो एक झूठा अगुआ तो है ही, जो व्यावहारिक काम नहीं करता। केटी भाई-बहनों और सुपरवाइजरों के बीच फूट डाल रही थी। उसने कुछ सहकर्मियों और सुपरवाइजरों को भड़का कर उनमें द्वेषपूर्ण झगड़े करवा दिए, जिससे वहाँ सुसमाचार का काम कर पाना मुश्किल हो गया। उसने सुसमाचार कार्य में हिस्सा लेने के लिए एक बहन को भी लगा दिया, सिर्फ इसलिए ताकि वह इस पर नजर गड़ाए रखे कि जेरी का काम कैसा चल रहा है, उससे अधिक प्रभाव हासिल कर सके और बदला लेने का मौका तलाश सके। बाद में, उसने जेरी के कामकाज के कुछ मामूली-से मसलों को पकड़ कर तिल का ताड़ बना डाला, और उच्च अगुआओं को जेरी की रिपोर्ट करने के लिए एक बहन को राजी कर लिया। उच्च अगुआओं के सहारे वह जेरी को पूरी तरह तोड़ देने की कोशिश कर रही थी। मुझे यह जान कर बहुत हैरत हुई। केटी अपने रुतबे और इज्जत के लिए अपने सहकर्मियों पर हमला कर उन्हें बहिष्कृत करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही थी। वह उन भाई-बहनों को गिराना चाहती थी जो कलीसिया के खास कामों के लिए जिम्मेदार थे। वह कलीसिया के काम की बिल्कुल भी रक्षा नहीं कर रही थी। जैसे कि परमेश्वर के वचन बताते हैं : “मसीह-विरोधियों द्वारा लोगों का सार्वजनिक दमन, लोगों का बहिष्कार, लोगों के विरुद्ध हमले, और लोगों की समस्याएँ उजागर करना, सब निशाना बनाने के लिए होते हैं। निस्संदेह, वे ऐसे साधनों का उपयोग उन लोगों को निशाना बनाने के लिए करते हैं, जो सत्य का अनुसरण करते हैं और मसीह-विरोधियों को पहचान सकते हैं, जिसका उद्देश्य उन्हें हराकर अपनी स्थिति मजबूत करना होता है। इस तरह से लोगों पर हमला कर उन्हें बाहर करना गुण में दुर्भावनापूर्ण है। उनकी भाषा और बोलने के तरीके में आक्रामकता होती है : उजागर करना, निंदा करना, बदनामी करना और दुष्टतापूर्वक चरित्रहनन करना। यहाँ तक कि वे तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं, सकारात्मक चीजों के बारे में ऐसे बोलते हैं, मानो वे नकारात्मक हों और नकारात्मक चीजों के बारे में ऐसे, मानो वे सकारात्मक हों। इस तरह काले और सफेद को उलटना और सही और गलत को मिश्रित करना मसीह-विरोधियों का लोगों को हराने और उनका नाम खराब करने का लक्ष्य पूरा करता है। भिन्न-मतावलंबियों पर हमला और उनका बहिष्कार कौन-सी मानसिकता से उत्पन्न होता है? ज्यादातर समय यह ईर्ष्यालु मानसिकता से आता है। शातिर स्वभाव में ईर्ष्या के साथ तीव्र घृणा रहती है; और अपनी ईर्ष्या के परिणामस्वरूप मसीह-विरोधी लोगों पर हमला कर उन्हें अलग-थलग कर देते हैं। इस तरह की स्थिति में, अगर मसीह-विरोधियों को उजागर किया जाता है, उनकी रिपोर्ट की जाती है और वे अपनी हैसियत खो देते हैं, तो उनके दिमाग पर वार होता है; वे न तो समर्पण करते हैं और न ही इससे खुश होते हैं, जिससे प्रतिशोध की एक मजबूत मानसिकता बनाना और भी आसान हो जाता है। बदला एक तरह की मानसिकता है, और वह एक तरह का भ्रष्ट स्वभाव भी है। जब मसीह-विरोधी देखते हैं कि किसी ने जो किया है, वह उनके लिए नुकसानदेह है, कि दूसरे उनसे ज्यादा सक्षम हैं, या किसी के कथन और सुझाव उनसे बेहतर या उत्कृष्ट हैं, और हर कोई उस व्यक्ति के कथनों और सुझावों से सहमत है, तो मसीह-विरोधी महसूस करते हैं कि उनका पद खतरे में है, उनके दिलों में ईर्ष्या और घृणा पैदा हो जाती है, और वे हमला कर बदला लेते हैं। बदला लेते समय लोग आम तौर पर अपने लक्ष्य पर पूर्वनिर्धारित वार करते हैं। वे तब तक लोगों पर हमला करने और उन्हें तोड़ने में सक्रिय रहते हैं, जब तक दूसरा पक्ष समर्पण नहीं कर देता। तब जाकर उन्हें लगता है कि उनकी भड़ास निकल गई। लोगों पर हमला कर उन्हें अलग करने की और क्या अभिव्यक्तियाँ होती हैं? (दूसरों को नीचा दिखाना।) दूसरों को नीचा दिखाना इसे अभिव्यक्त करने के तरीकों में से एक है; चाहे तुम कितना भी अच्छा काम करो, वे फिर भी तुम्हें नीचा दिखाएँगे या तुम्हारी निंदा करेंगे, जब तक कि तुम निष्क्रिय, कमजोर और खड़े होने में अक्षम नहीं हो जाते। तब वे प्रसन्न होंगे, क्योंकि उन्होंने अपना लक्ष्य पूरा कर लिया होता है। क्या निंदा करना दूसरों को नीचा दिखाने के अर्थ का एक हिस्सा है? (हाँ।) मसीह-विरोधी लोगों की निंदा कैसे करते हैं? वे राई का पहाड़ बनाते हैं। उदाहरण के लिए, तुमने कुछ ऐसा किया जो कोई समस्या नहीं थी, लेकिन वे इस बारे में बहुत हुज्जत करते हैं ताकि तुम पर हमला कर सकें। वे तुम पर कीचड़ उछालने के तमाम तरीकों के बारे में सोचते हैं, और राई का पहाड़ बनाकर तुम्हारी निंदा करते हैं, ताकि सुनने वाले लोग सोचें कि मसीह-विरोधी जो कहते हैं, उसमें दम है और तुमने जरूर कुछ गलत किया है। इसके साथ, मसीह-विरोधी अपना लक्ष्य पूरा कर लेते हैं। यह असहमति व्यक्त करने वालों की निंदा करना, उन पर हमला करना और उन्हें अलग-थलग करना है। अलग-थलग करने का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है कि चाहे तुम अपने कार्यों में कितने भी सही हो—और वास्तव में, मसीह-विरोधी भी यह जानते हैं कि तुम सही हो—चूँकि वे तुमसे ईर्ष्या और घृणा करते हैं, और जानबूझकर तुम पर हमला करने की कोशिश करते हैं, इसलिए मसीह-विरोधी कहेंगे कि तुमने जो किया, वह गलत था। फिर वे तुम्हें बहस में हराने के लिए अपने विचारों और भ्रांतियों का उपयोग करेंगे, और सम्मोहक तरीके से बोलेंगे ताकि सुनने वाले सभी लोगों को लगे कि उनकी बात सही है और अच्छी तरह से कही गई है; तब, वे सभी लोग तुम्हारे विरोध में मसीह-विरोधियों के पक्ष में खड़े जाएँगे। मसीह-विरोधी तुम पर हमला करने, तुम्हें निष्क्रिय और कमजोर बनाने, और सभी की स्वीकृति प्राप्त करने के लिए इसका उपयोग करते हैं। इससे वे असहमति व्यक्त करने वालों पर हमला कर उन्हें अलग करने का अपना लक्ष्य हासिल कर लेते हैं। कभी आमने-सामने की बहस के रूप में असहमति व्यक्त करने वालों को अलग-थलग किया जा सकता है, या कभी आलोचना करने, विवाद खड़ा करने, उनकी बदनामी करने और पीठ पीछे उनके बारे में बातें बनाने के रूप में ऐसा किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, अगर मसीह-विरोधी असहमति व्यक्त करने वाले को अलग करना चाहते हैं, तो वे उस व्यक्ति की गलतियों के बारे में चारों ओर प्रचार करेंगे, असहमति व्यक्त करने वाले और अन्य लोगों के संबंध को खराब करेंगे, लोगों को असहमति व्यक्त करने वाले से दूर रहने पर मजबूर करेंगे, और असहमति व्यक्त करने वाले को अलग-थलग करने का अपना लक्ष्य पूरा करेंगे। फिर, वे असहमति व्यक्त करने वाले के खिलाफ हानिकारक जानकारी का उपयोग करने का अवसर तलाशेंगे, जब तक कि वह पराजित नहीं हो जाता और उसकी प्रतिष्ठा नष्ट नहीं हो जाती। मसीह-विरोधियों के मन में, यह प्रतिद्वंद्वी को तोड़ना है, अन्यथा वह मसीह-विरोधियों का पद खतरे में डाल देगा” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद दो : वे विरोधियों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें निकाल देते हैं)। परमेश्वर कहता है कि मसीह-विरोधी अपनी इज्जत और रुतबे के लिए बड़ी से बड़ी हद पार कर देते हैं। एक राजा की तरह कलीसिया पर राज करने के लिए, वे सत्य की राह पर चलने वालों पर कीचड़ उछालते हैं, उन्हें नकारते हैं, और यहाँ तक कि उनके लिए नफरत पाल लेते हैं। सत्य के खोजी उनकी राह के काँटे होते हैं, इसलिए वे उनकी छोटी-छोटी गलतियों में भी बात का बतंगड़ बनाते हैं, जानबूझकर उनकी आलोचना और उन पर हमले करते हैं ताकि उन्हें सजा दे सकें। वे सत्य के खोजियों को हानि पहुँचाते हैं ताकि कलीसिया की सत्ता अपने हाथ में रख सकें। केटी ने कलीसिया में फूट के बीज बो दिये। उसने जेरी पर हमले किये, उसकी निंदा की, और उसे सजा देने के लिए उच्च अगुआओं का इस्तेमाल करने की भी कोशिश की। इससे भी बदतर, वह कोई काम अपने साथियों के साथ मिलकर नहीं बल्कि अकेले ही करती थी। लेकिन उसने अफवाहें फैला दीं, उच्च अगुआओं पर यह ठप्पा लगा दिया कि वे आपसी तालमेल के साथ काम नहीं कर रहे हैं, जिसके कारण भाई-बहनों के मन में उच्च अगुआओं के प्रति पूर्वाग्रह पैदा हो गया। उसने कलीसिया में एक राजा की तरह शासन करने के लिए ऐसा किया। वह जानबूझ कर लोगों को सजा दे रही थी और सुसमाचार कार्य को खराब कर रही थी। जब उच्च अगुआओं को पता चल गया कि केटी क्या कर रही थी, वे समझ गए कि वह मसीह-विरोधी राह पर चलने वाली झूठी अगुआ है और उसे तुरंत अगुआ के पद से हटा दिया।
बाद में, मेरे साथी और मैंने केटी के साथ सहभागिता की और उसके व्यवहार का विश्लेषण किया। हमने कहा कि किसी को जेरी की रिपोर्ट करने के लिए उकसाना कलीसिया के काम को नुकसान पहुँचाना और उसे बाधित करना था और वह मसीह-विरोधी रास्ते पर थी। न सिर्फ उसने यह मानने से इनकार कर दिया, बल्कि खुद का बचाव भी किया, कहा कि उसके कोई निजी मकसद नहीं थे, वह तो केवल सामान्य तरीके से एक समस्या की रिपोर्ट कर रही थी, यह कलीसिया के काम में अड़ंगे लगाना कैसे था? मैंने देखा कि सारे तथ्य देखकर भी उसने अपनी गलतियाँ मानने से साफ इनकार कर दिया, वह अपने पक्ष में बहसबाजी और अनर्गल बातें करती रही। मैंने परमेश्वर के वचनों को याद किया, “अगर कुछ नहीं हुआ है, तो तुम सत्य के प्रति व्यक्ति का सच्चा दृष्टिकोण नहीं देख सकते। जब लोगों की काट-छाँट की जाती है, उनसे निपटा जाता है और उन्हें बर्खास्त किया जाता है, तो सत्य के प्रति उनका सच्चा रवैया प्रकट होता है। जो सत्य स्वीकारते हैं, वे उसे हर हालत में स्वीकार करने में सक्षम होते हैं; अगर वे गलत होते हैं, तो वे अपनी गलती मानने, वास्तविकता का सामना करने और सत्य स्वीकारने में सक्षम होते हैं। जहाँ तक उन लोगों की बात है, जो सत्य से प्रेम नहीं करते, तो भले ही उनकी गलती प्रदर्शित हो, वे स्वीकार नहीं करते कि वे गलत थे, उनके परमेश्वर के घर द्वारा उन्हें सँभाले जाने की बात स्वीकार करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। और कुछ लोगों के पास क्या कारण होते हैं? ‘मेरा इरादा इसे अच्छी तरह से करने का था, लेकिन मैंने इसे अच्छी तरह से नहीं किया, इसलिए तुम मुझे खराब काम करने का दोष नहीं दे सकते। मेरा इरादा नेक है और मैंने भुगता है, कीमत चुकाई है और खुद को खपाया है। यह बुराई करना नहीं है!’ वे इसे परमेश्वर के घर द्वारा उन्हें सँभाले जाने से मना करने के कारण और बहाने के रूप में इस्तेमाल करते हैं। क्या यह उचित है? व्यक्ति चाहे जिस भी कारण या बहाने का उपयोग करे, वह सत्य और परमेश्वर के प्रति उसके रवैये को नहीं छिपा सकता। यह व्यक्ति की प्रकृति और सार से संबंधित मुद्दा है, और समस्या के बारे में सबसे ज्यादा बताता है। चाहे तुमने किसी समस्या का सामना किया हो या नहीं, सत्य के प्रति तुम्हारा रवैया तुम्हारी प्रकृति और सार दर्शाता है—यह परमेश्वर के प्रति तुम्हारा रवैया है। सत्य के प्रति तुम्हारे व्यवहार से परमेश्वर के प्रति तुम्हारे व्यवहार को जाना जा सकता है” (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपना आज्ञापालन करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर का नहीं (भाग एक))। बस यही बात थी। जो लोग सत्य नहीं स्वीकारते, कभी अपनी गलतियाँ नहीं मानेंगे। भले ही वे दुष्टता करें और कलीसिया के काम में रुकावट पैदा करें, फिर भी यही कहेंगे कि उनके इरादे नेक हैं, क्योंकि वे अपने अपराधों और कुकर्मों से खुद को बरी कर देना चाहते हैं, मानो उनके इरादे बिल्कुल भी गलत नहीं थे, और कलीसिया के काम में अड़ंगा लगाने के बाद भी आपको उन्हें इसका जिम्मेदार नहीं मानना चाहिए। मुझे एहसास हुआ कि केटी बिल्कुल ऐसी ही थी। साफ दिख रहा था कि वह छुप कर गड़बड़ियाँ कर रही थी, रुकावट डाल रही थी और लोगों को सजा दे रही थी, फिर भी सफाई दे रही थी कि उसका इरादा बुराई करने का नहीं था। सारे तथ्य आँखों के सामने होने पर भी उसने गलतियाँ मानने से इनकार कर दिया। उसने सच को पूरी तरह नकार दिया। केटी यह भी बोलती रही कि वह ज़्यादा समय से अगुआ नहीं थी, और उसे इतना सारा काम न समझ में आ रहा था, न ही करते बन रहा था। इससे साबित हो गया कि भले ही वह जानती थी कि परमेश्वर की अगुआओं से क्या अपेक्षाएं हैं फिर भी उसने परमेश्वर के वचन नहीं माने। उच्च अगुआओं ने सहभागिता की थी कि हर कोई प्रेमपूर्वक सहयोग करे, लेकिन वह नहीं मानी और अपने मनमुताबिक अकेले ही काम करती रही। उसके बर्ताव से यह साफ हो गया कि वह परमेश्वर के वचनों या सकारात्मक चीजों को स्वीकार नहीं करेगी, न ही वह उनके प्रति समर्पण करेगी। अंत में, वह भाई जेरी को सजा तक देना चाहती थी अपने नाम और रुतबे के चक्कर में सुसमाचार कार्य को तहस-नहस करना चाहती थी। यह पर्याप्त सबूत है कि उसने कलीसिया के काम को रत्ती भर भी कायम नहीं रखा, अपनी प्रकृति के अनुसार, वह न तो सत्य से प्रेम करती थी और न ही उसे स्वीकारती थी, उसका बर्खास्त होना पूरी तरह परमेश्वर की धार्मिकता थी। इस एहसास के बाद मैं उसे बेहतर ढंग से समझ पाई। मैंने आत्मचिंतन भी किया। पहले, मुझे लगा था कि केटी एक झूठी अगुआ है जो व्यावहारिक काम नहीं करती, और मैंने उच्च अगुआओं को उसकी समस्याओं की रिपोर्ट करनी चाही थी, तो फिर अंत में मैंने ऐसा करने का इरादा छोड़ क्यों दिया? मैने प्रार्थना करते हुए अपनी स्थिति परमेश्वर के समक्ष रखी, और अपनी समस्या को समझने में उसका मार्गदर्शन माँगा।
परमेश्वर के वचनों में मैंने यह पढ़ा। “कुछ लोग कार्य करते समय अपनी इच्छा का अनुसरण करते हैं। वे सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं और काट-छाँट किए जाने और निपटे जाने पर वे केवल मौखिक रूप से यह स्वीकार करते हैं कि वे अभिमानी हैं, और उन्होंने केवल इसलिए भूल की क्योंकि वे सत्य से अनभिज्ञ हैं। लेकिन अपने दिलों में वे अभी भी शिकायत करते हैं, ‘कोई और ज़िम्मेदारी उठाने आगे नहीं आता है, बस मैं ही ऐसा करता हूँ, और अंत में, जब कुछ गलत हो जाता है, तो वे सारी ज़िम्मेदारी मुझ पर डाल देते हैं। क्या यह मेरी मूर्खता नहीं है? मैं अगली बार ऐसा नहीं कर सकता, इस तरह आगे नहीं आ सकता। बाहर निकली हुई कील ही ठोकी जाती है!’ इस रवैये के बारे में तुम क्या सोचते हो? क्या यह पश्चात्ताप का रवैया है? (नहीं।) यह कैसा रवैया है? क्या वे अविश्वसनीय और धोखेबाज नहीं बन जाते? अपने दिलों में वे सोचते हैं, ‘मैं भाग्यशाली हूँ कि इस बार यह आपदा में नहीं बदला। दूसरे शब्दों में, अनुभव सिखाता है। मुझे भविष्य में और अधिक सावधान रहना होगा।’ वे सत्य की तलाश नहीं करते, बल्कि मामले को देखने और संभालने के लिए अपने ओछेपन और धूर्त योजनाओं का प्रयोग करते हैं। क्या वे इस तरह सत्य हासिल कर सकते हैं? वे ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि उन्होंने पश्चात्ताप नहीं किया है। पश्चात्ताप करते समय सबसे पहले की जाने वाली चीज यह समझना है कि तुमने क्या गलत किया है; यह देखना है कि तुम्हारी गलती कहाँ है, समस्या का सार क्या है, और तुमने कैसा स्वभाव प्रकट किया है; तुम्हें इन बातों पर विचार करना चाहिए और सत्य स्वीकारना चाहिए, फिर सत्य के अनुसार अभ्यास करना चाहिए। सिर्फ यही पश्चात्ताप का रवैया है। दूसरी ओर, यदि तुम व्यापक रूप से शातिर तरीकों पर विचार करते हो, तुम पहले की तुलना में अधिक धूर्त बन जाते हो, तुम्हारी तरकीबें और भी अधिक चालाकी भरी और गुप्त होती हैं, और तुम्हारे पास चीजों से निपटने के और भी तरीके होते हैं, तो समस्या सिर्फ़ धोखेबाज़ होने जितनी सरल नहीं है। तुम छलपूर्ण साधनों का उपयोग कर रहे हो और तुम्हारे पास ऐसे रहस्य हैं जिन्हें तुम प्रकट नहीं कर सकते। यह बुराई है। न सिर्फ तुमने पश्चात्ताप नहीं किया है, बल्कि तुम और ज्यादा धूर्त और धोखेबाज बन गए हो। परमेश्वर देखता है कि तुम हठी और दुष्ट हो, एक ऐसा व्यक्ति जो सतही तौर पर यह मानता है कि वह गलत था, और निपटे जाने और काट-छाँट किए जाने को स्वीकारता है, लेकिन वास्तव में जिसमें पश्चात्ताप का रवैया लेशमात्र भी नहीं होता। हम ऐसा क्यों कहते हैं? क्योंकि जब यह घटना हो रही थी या उसके बाद, तुमने सत्य नहीं खोजा, और तुमने सत्य के अनुसार अभ्यास नहीं किया। तुम्हारा रवैया समस्या हल करने के लिए शैतान के फलसफे, तर्क और तरीकों का उपयोग करने का है। वास्तव में तुम समस्या से बचकर निकल रहे हो और उसे साफ-सुथरे पैकेज में लपेट रहे हो, ताकि दूसरे समस्या का कोई नामोनिशान न देख पाएँ, उन्हें कोई सुराग न मिले। अंत में, तुम्हें लगता है कि तुम बहुत सयाने हो। ये वे चीज़ें हैं जो परमेश्वर को नज़र आती हैं, बजाय इसके कि तुम वास्तव में आत्म-चिंतन करो, पाप स्वीकारो और पश्चात्ताप करो, उस मामले के सामने ही, जो आ पड़ा है, फिर सत्य की तलाश करो और सत्य के अनुसार अभ्यास करो। तुम्हारा रवैया सत्य की तलाश या उसका अभ्यास करने का नहीं है, न ही यह परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्था के प्रति समर्पण करने का है, बल्कि समस्या को हल करने के लिए शैतान की तरकीबों और तरीकों का उपयोग करने का है। तुम दूसरों को अपने बारे में एक ग़लत धारणा देते हो और परमेश्वर द्वारा उजागर किए जाने का विरोध करते हो, और परमेश्वर ने तुम्हारे लिए जिन परिस्थितियों का आयोजन किया है, उनके प्रति रक्षात्मक और टकरावपूर्ण होते हो। तुम्हारा दिल पहले से ज्यादा अवरुद्ध और परमेश्वर से अलग है। इस तरह, क्या इसमें से कोई अच्छा परिणाम आ सकता है? क्या तुम अभी भी शांति और आनंद का लाभ उठाते हुए प्रकाश में रह सकते हो? नहीं रह सकते। अगर तुम सत्य और परमेश्वर से दूर हो जाते हो, तो तुम निश्चित रूप से अँधेरे में गिरोगे और रोते हुए दाँत पीसोगे। क्या ऐसी स्थिति लोगों में व्याप्त है? (हाँ।) कुछ लोग अक्सर यह कहते हुए खुद को धिक्कारते हैं, ‘इस बार मेरे साथ निपटा गया था। अगली बार, मुझे अधिक सयाना और सावधान बनना होगा। सयाना बनना जीवन की नींव होती है—और जो लोग सयाने नहीं होते हैं, वे बेवकूफ़ होते हैं।’ यदि तुम इस तरह से खुद का मार्गदर्शन कर रहे हो और खुद को धिक्कार रहे हो, तो क्या तुम कभी भी, कहीं भी पहुँच पाओगे? क्या तुम सत्य को हासिल कर पाओगे? यदि कोई समस्या तुम पर आ पड़ती है, तो तुम्हें सत्य का एक पहलू खोजना और समझना चाहिए और सत्य के उस पहलू को प्राप्त करना चाहिए। सत्य को समझने से क्या हासिल हो सकता है? जब तुम सत्य के एक पहलू को समझते हो, तो तुम परमेश्वर की इच्छा के एक पहलू को समझ लेते हो; तुम यह समझ लेते हो कि परमेश्वर ने तुम्हारे साथ यह चीज क्यों की, क्यों वह तुमसे ऐसी माँग करेगा, क्यों वह तुम्हें इस तरह से ताड़ना देने और अनुशासित करने के लिए परिस्थितियों का आयोजन करेगा, क्यों वह तुम्हारी काट-छाँट करने और तुमसे निपटने के लिए इस मामले का उपयोग करेगा, और क्यों तुम इस मामले में गिरे, असफल हुए, और उजागर किए गए हो। यदि तुम इन चीजों को समझते हो, तो तुम सत्य की तलाश करने में सक्षम होगे और जीवन-प्रवेश हासिल करोगे। यदि तुम इन चीजों को नहीं समझते और इन तथ्यों को स्वीकार नहीं करते, बल्कि इनका विरोध और प्रतिरोध करने, अपनी गलतियाँ छिपाने के लिए अपनी ही तरकीबों का उपयोग करने और एक झूठे चेहरे के साथ अन्य सभी का और परमेश्वर का सामना करने पर, ज़ोर देते हो, तो तुम सत्य को हासिल करने में हमेशा असमर्थ रहोगे” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, केवल सत्य की खोज से ही परमेश्वर के बारे में अपनी धारणाओं और गलतफ़हमियों को दूर किया जा सकता है)। परमेश्वर के वचन बताते हैं कि यदि गलती करने वाले अपनी असफलता की असली वजह पर चिंतन नहीं करते या अपनी समस्या सुलझाने के लिए सत्य नहीं खोजते, बल्कि दूसरी गलती करने पर निपटाये जाने की चिंता करते हैं, और इस कारण दोबारा समस्याएं आने पर चालें चलते हैं और परमेश्वर के खिलाफ अपना बचाव करते हैं, तो ऐसे व्यक्ति का स्वभाव कपटी, दुराग्रही होता है। मैं इसी तरह का बर्ताव कर रही थी। पहले, केटी की स्थिति समझे बिना, मैंने उस पर आलोचनात्मक होने का आरोप लगाया और उसे दबाया था। उसके लिए अगुआ ने मेरा विश्लेषण कर मुझे उजागर किया था। बाद में मैंने अपने घमंडी स्वभाव को पहचाना, खुद को चेताया कि यह नाकामी एक विश्वासी के तौर पर मेरे जीवन में एक अपराध था, मैं जान गई कि मुझे सबक सीखकर इस गलती को कभी नहीं दोहराना है। हालांकि, मैं परमेश्वर के खिलाफ थोड़ी रक्षात्मक भी हो गई थी। मैं बहुत चिंतित थी कि अगर मैंने दोबारा इस तरह किसी का दमन किया, और मसीह-विरोधी राह पर दृढ़ता से चलती रही, तो बतौर अगुआ मेरे काम का अंत हो जाएगा और मेरी सारी गरिमा मिट्टी में मिल जाएगी। इसलिए इस बार, जब मुझे पता चला कि केटी एक झूठी अगुआ है जो असली कार्य नहीं करती, तो उसकी रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं हुई और मैं आशंकाओं से भरी हुई थी। मुझे चिंता थी कि कहीं अगुआ को यह न लगे मैं उससे बहुत सख्ती कर रही हूँ, छोटी-मोटी बातों को छोड़ने के बजाय मीन-मेख निकाल कर उसका दमन और बहिष्कार कर रही हूँ। अपना रुतबा और इज्जत बचाने के लिए, मैंने चुप रहने का विकल्प चुना। मुझे डर था कि रिपोर्ट करना उल्टा मुझ पर भारी पड़ेगा और मेरे रुतबे को खतरे में डाल देगा। केटी की समस्या की रिपोर्ट करना बिल्कुल सामान्य था, पर मैं आशंका से भरी हुई, यह विचार कर रही थी कि उच्च अगुआ क्या सोचेंगे। मैं उनके और परमेश्वर, दोनों के प्रति रक्षात्मक हो गई, और परमेश्वर से बेईमानी की। कितनी धोखेबाज थी मैं! केटी फूट के बीज बो रही थी, सुसमाचार कार्य को बाधित और नाकाम कर रही थी। यह परमेश्वर का उसे उजागर करने और अपने कार्य की रक्षा करने का तरीका था। मैंने देखा था कि किसी के भी विचार, इरादे या कर्म परमेश्वर की नजर से नहीं बचते। तो मैंने यह विश्वास क्यों नहीं रखा कि परमेश्वर सब देख रहा है? मुझे हमेशा अगुआ के द्वारा निकाले जाने की चिंता क्यों लगी हुई थी, जबकि मैं निष्पक्षता से सिर्फ केटी के उस बर्ताव की रिपोर्ट कर रही थी जो मैंने सचमुच देखा था, बिना उसे दबाने का इरादा लिए?
अपनी भक्ति में, मैंने परमेश्वर के वचन का एक अंश पढ़ा जिसने मुझे अपनी समस्या की बेहतर समझ दी। परमेश्वर के वचन कहते हैं, “अगर तुम्हें परमेश्वर पर वास्तविक आस्था नहीं है, और तुम नहीं मानते कि परमेश्वर के घर में सत्य का राज है, तो तुम कुछ भी नहीं कर सकते। बहुत-से लोग सत्य नहीं समझते; वे नहीं मानते कि परमेश्वर के घर में सत्य राज करता है, और उनके पास ऐसा हृदय नहीं है जो परमेश्वर का भय मानता हो। वे हमेशा सोचते हैं कि दुनिया के तमाम अधिकारी एक-दूसरे के हितों की रक्षा करते हैं, और परमेश्वर का घर भी ऐसा ही होगा। निश्चित रूप से, वे नहीं मानते कि परमेश्वर सत्य और धार्मिकता है। इसलिए ऐसे व्यक्ति को गैर-विश्वासी कहा जा सकता है। लेकिन लोगों की एक छोटी संख्या व्यावहारिक समस्याओं की रिपोर्ट करने में सक्षम है। ऐसे लोगों को परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने वाले लोग कहा जा सकता है; वे जिम्मेदार लोग हैं। कई लोग हैं, जो गंभीर समस्याओं का पता चलने पर उनका समाधान नहीं करते, न ही वे उनकी ऊपर वाले को रिपोर्ट करते हैं। वे समस्या की रिपोर्ट करना तभी शुरू करते हैं और उसकी गंभीरता तभी समझते हैं, जब ऊपर वाला सीधे उसकी जाँच करता है। इससे चीजों में देरी होती है। इसलिए, चाहे तुम कोई साधारण भाई या बहन हो या कोई अगुआ या कार्यकर्ता, जब भी तुम किसी ऐसे मुद्दे का सामना करो जिसे तुम हल न कर पाओ और जो कार्य के ज्यादा बड़े सिद्धांतों से संबंधित हो, तो तुम्हें हमेशा समय पर ऊपर वाले को उसकी रिपोर्ट करनी चाहिए और उससे मार्गदर्शन लेना चाहिए। अगर तुम पेचीदा समस्याओं या कठिनाइयों का सामना करते हो लेकिन उनका समाधान नहीं करते, तो कुछ कार्य आगे नहीं बढ़ पाएगा; उसे दरकिनार कर रोक देना पड़ेगा। यह कलीसिया के कार्य की प्रगति को प्रभावित करता है। इसलिए, जब ऐसी समस्याएँ उत्पन्न हों, जो सीधे तौर पर कार्य की प्रगति को प्रभावित कर सकती हैं, तो उन्हें उजागर कर समयबद्ध तरीके से हल किया जाना चाहिए। अगर किसी समस्या को हल करना आसान न हो, तो तुम्हें ऐसे लोग ढूँढ़ने चाहिए जो सत्य समझते हों और जो उस क्षेत्र में विशेषज्ञता रखते हों, फिर उनके साथ बैठकर जाँच करनी चाहिए और मिलकर समस्या का समाधान करना चाहिए। इस तरह की समस्याओं में देरी नहीं की जा सकती। तुम्हारे द्वारा उन्हें हल करने में की जाने वाली हर दिन की देरी, कार्य की प्रगति में एक दिन की देरी होती है। यह किसी व्यक्ति को बाधित करने का मामला नहीं है; यह कलीसिया के कार्य को प्रभावित करता है, साथ ही इस बात को भी कि परमेश्वर के चुने हुए लोग अपने कर्तव्य कैसे निभाते हैं। इसलिए, जब तुम इस तरह की जटिल समस्या या कठिनाई का सामना करो, तो उसे हल किया जाना चाहिए। अगर तुम वाकई उसे हल नहीं कर सकते, तो जल्दी से उसकी रिपोर्ट ऊपर वाले को करो। वह सीधे उसे हल कर देगा, या तुम्हें मार्ग बता देगा। अगर कोई अगुआ इस प्रकार की समस्याएँ सँभालने में असमर्थ है, और ऊपर वाले को उनकी रिपोर्ट करने और उससे मार्गदर्शन प्राप्त करने के बजाय उन पर बैठा रहता है, तो वह अगुआ अंधा है; मूर्ख है, बेकार है। उसे बर्खास्त कर उसके पद से हटा दिया जाना चाहिए। अगर इस तरह का बेकार व्यक्ति उसके पद से हटाया नहीं जाता, तो परमेश्वर के घर का कार्य आगे नहीं बढ़ पाएगा; वह उसके हाथों में नष्ट हो जाएगा। इससे तुरंत निपटा जाना चाहिए” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ)। “कोई भी पेचीदा समस्या या कठिनाई, जिसका तुम अपने कार्य के दौरान सामना करते हो, अगर इस बात को प्रभावित करती है कि परमेश्वर के चुने हुए लोग अपना कर्तव्य कैसे निभाते हैं, या कलीसिया के कार्य की सामान्य प्रगति को बाधित करती है, तो उसे समयबद्ध तरीके से हल किया जाना चाहिए। अगर तुम इसे खुद हल नहीं कर सकते, तो तुम्हें उसे हल करने में सहयोग करने के लिए कई ऐसे लोग ढूँढ़ने चाहिए, जो सत्य समझते हों। अगर इस तरह भी समस्या हल न हो पाए, तो तुम्हें समस्या की रिपोर्ट ऊपर वाले को करनी चाहिए और उसका मार्गदर्शन लेना चाहिए। यह अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी और दायित्व है” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ)। परमेश्वर के वचन पढ़कर, मुझे एहसास हुआ कि भले ही मैं कई सालों से विश्वासी थी और परमेश्वर का वचन खूब पढ़ा था, मगर परमेश्वर में मेरी आस्था बहुत कम थी और मैं उसके धार्मिक स्वभाव को नहीं समझ पाई। मुझे यह सच्चा विश्वास नहीं था कि परमेश्वर के घर में सत्य का शासन है, इसलिए मेरे दिल में अब भी संदेह और सतर्कता मौजूद थी। वास्तव में, कलीसिया सत्य के सिद्धांतों के आधार पर लोगों को आँकती और निष्कासित करती है। भले ही कोई अगुआ हो, यदि वे कुछ समय तक असली कार्य नहीं करते, अपने कार्य में अनुशासनहीनता बरतते हैं, मनमर्जी चलाते हैं, या संगति करने और बार-बार निपटाये जाने के बाद भी बदलाव नहीं करते, तो उन्हें बचाये या बढ़ावा दिये जाने के बजाय उनका तबादला होगा या बर्खास्त किया जाएगा। जब परमेश्वर के घर से किसी को हटाया या बर्खास्त किया जाता है, तो वह उनके कर्तव्य के दौरान निरंतर बर्ताव पर आधारित होता है, इसमें परमेश्वर और सत्य के प्रति उनके रवैये को भी ध्यान में रखा जाता है। ये चीजें कभी भी मनमाने ढंग से नहीं की जातीं। अगर मैं अगुआ के तौर पर पिछले दो सालों को याद करूँ, तो जब भी मेरे कर्तव्य में कोई समस्या आती, तो मेरे अगुआ हमेशा सत्य पर संगति करते, मेरी मदद करते, और पता चलने पर मुख्य बातें बताते। जब बात गंभीर होती, वे मुझसे निपटते, मुझे उजागर कर मेरा विश्लेषण करते, और खुद को समझने में मेरी मदद करते। जैसे, जब सत्य न समझने और अपने घमंडी स्वभाव के भरोसे रहने के कारण मैंने केटी का दमन किया, तो अगुआ ने इसके लिए मुझे बर्खास्त नहीं किया, बल्कि मेरी समस्याएं बताईं और मुझे पश्चात्ताप का एक मौका दिया। फिर, केटी कलीसिया अगुआ भी चुनी गई, पर उसने कभी कोई व्यावहारिक कार्य नहीं किया और मसीह-विरोधी राह पर चलते हुए दुष्टता की, सुसमाचार कार्य में रुकावट डाली और उसे तहस-नहस किया। जब उच्च अगुआओं को इसका पता चला, तो उन्होंने उसे तुरंत बर्खास्त कर दिया। जो चीजें मैंने खुद देखीं और अनुभव कीं वे इस बात का सबूत थीं कि परमेश्वर के घर में सत्य और धार्मिकता का शासन है। हालांकि मैंने सोचा था कि केटी की समस्याओं की रिपोर्ट करने से यह समझा जाएगा कि मैं एक प्रतिभाशाली व्यक्ति का दमन और बहिष्कार कर रही हूँ, और मुझे बर्खास्त कर दिया जाएगा। यह सोच बिल्कुल गलत थी, मैं बहुत कपटी थी और मुझमें परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था का अभाव था। मैंने यह भी जाना कि मुझे स्पष्ट समझ नहीं थी कि कलीसिया के कार्य को कायम रखना क्या है और लोगों को दबाना क्या है। वास्तव में, यदि सिद्धांतों के जरिये किसी व्यक्ति की पहचान झूठे अगुआ के रूप में होती है जो असली कार्य नहीं करता, और अगर उनकी रिपोर्ट कलीसिया के कार्य की रक्षा के लिए की जाती है, और यह तथ्यों के आधार पर किया जाता है, न कि साजिश या कपट-जाल रच कर, तो यह सिद्धांतों को कायम रखना और कलीसिया के कार्य की रक्षा करना है, दमन करना नहीं। अगर आपके इरादे किसी से बदला लेने या उसे सजा देने के हैं, यदि आप किसी व्यक्ति की आलोचना और निंदा इसलिए करते हैं क्योंकि वह आपके हिसाब से काम नहीं करता या आपके रुतबे के लिए खतरा बनकर उसके आगे झुकने से इनकार करता है, और उसे फँसाने या सजा देने के लिए आप तथ्यों को तोड़-मरोड़ तक देते हैं, तो यह दमन है। केटी के जिन व्यवहारों की मैं रिपोर्ट करना चाहती थी वे चीजें मैंने उसके साथ अपने मेलजोल में खुद देखी थीं। मेरी रिपोर्ट बेबुनियाद नहीं थी और न ही जानबूझ कर बदले की भावना से की गई थी। यह सिर्फ इसलिए थी क्योंकि मैं समस्याओं की रिपोर्ट कर कलीसिया के काम को नुकसान से बचाना चाहती थी। यह कलीसिया के कार्य की रक्षा थी, न कि उसे दबाना या सजा देना। साथ ही, अगुआ के दायित्वों में से एक यह भी तो है, “काम में आने वाली उलझन और कठिनाइयों की तुरंत सूचना दो और मार्गदर्शन प्राप्त करो” (वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ)। फिलहाल, हम में से कोई भी सत्य को नहीं समझता, इसलिए अपने काम में बहुत-सी उलझनों और कठिनाइयों से सामना होने पर, जो बातें हम पूरी तरह नहीं समझ पाते या जिन लोगों को हम पूरी तरह पहचान नहीं पाते, हमें तुरंत इसकी रिपोर्ट उच्च अगुआओं को करनी चाहिए। यह खासकर उन पर लागू होता है जो कलीसिया में महत्वपूर्ण काम संभालते हैं। सिर्फ इसलिए कि कोई व्यक्ति अगुआ है या किसी प्रोजेक्ट का निरीक्षण कर रहा है इसका मतलब यह नहीं कि वह उस काम के लिए सही है, क्योंकि सत्य हासिल होने से पहले, व्यक्ति अपने भ्रष्ट स्वभाव का अनुसरण कर सकता है और कभी भी कलीसिया के कार्य को बाधित कर सकता है। क्या पता वे कब भटक जाएँ और परमेश्वर का विरोध करने लगें। उनकी रिपोर्ट करना उनके बारे में बकवास करना नहीं है। यह उनकी कमियों को पकड़ कर बैठे रहना, या उनमें मीन-मेख निकालना नहीं है, बल्कि दूसरों को समझने और उनसे बर्ताव करने के सिद्धांतों की खोज करना है। यह कलीसिया के कार्य को बरकरार रखने के लिए किया जाता है। यदि पता चलता है कि यह व्यक्ति सही है और दिक्कत आपकी अपनी समझ में है, तो उच्च अगुआओं को रिपोर्ट कर और संगति का अनुरोध कर आप सिद्धांत सीख पाएँगे और लोगों के साथ निष्पक्ष व्यवहार कर सकेंगे। यदि सत्य की खोज से पता चलता है कि व्यक्ति के काम में सचमुच समस्याएँ हैं, तो आप तुरंत उसके साथ सहभागिता कर उसे अपनी दिक्कत पहचानने और सिद्धांतों के अनुसार कर्तव्य निभाने में मदद कर सकते हैं। यह कलीसिया के कार्य और भाई-बहनों के लिए फायदेमंद है। बेशक, जिनमें मानवता की कमी है और जो कलीसिया के कार्य को बिल्कुल कायम नहीं रखते उनका फौरन तबादला या बर्खास्त कर देना चाहिए जिससे कार्य की प्रगति पर किसी भी दुष्प्रभाव को रोका जा सके। इसलिए, समस्याओं की तुरंत रिपोर्ट करना अगुआओं का कर्तव्य और जिम्मेदारी है। परमेश्वर की इच्छा समझ में आने पर मैंने संकल्प लिया कि यदि मुझे किसी और कलीसिया अगुआ या सुपरवाइजर की समस्याओं का पता चला, तो मैं तुरंत अपने सहकर्मियों से उस बात पर चर्चा करूँगी जो मैं पूरी तरह नहीं समझ पाई, और यदि कोई भी पूरी तरह मामले को नहीं समझ पाया, तो मैं फौरन इसकी रिपोर्ट उच्च अगुआओं को करूँगी और सिद्धांतों की खोज करूँगी। मैं सिर्फ अपने हितों के बारे में सोच कर अधिक स्वार्थी और कपटी नहीं बन सकती। जल्द ही, मुझे पता चला कि मेरी साथी बहन जेनी को अपने कर्तव्य में सिद्धांतों की समझ नहीं थी, वह हमेशा मामूली बातों को तूल देकर, वीडियो के कार्य की प्रगति में देर कर रही थी। जब उच्च अगुआओं ने पूछा कि वीडियो कार्य की प्रगति धीमी क्यों हुई, तो मैंने तथ्यों के आधार पर जेनी की समस्याएँ बता दीं। फिर उन्होंने इस कर्तव्य को निभाने से जुड़े कुछ सिद्धांतों पर संगति की, जिससे रास्ता साफ हो गया और वीडियो कार्य की प्रगति में काफी सुधार हुआ। यह परिणाम देखकर मुझे गहरी शांति मिली और मैने सत्य पर अमल करने के आनंद का अनुभव किया।
इस अनुभव से, मुझे अपने भ्रष्ट स्वभाव की थोड़ी समझ आई और यह भी जाना कि मेरी रिपोर्ट करने की हिम्मत क्यों नहीं हुई थी। मैंने देखा कि मैं बहुत ज्यादा स्वार्थी और कपटी थी, मुझे अपना रुतबा बहुत अधिक प्यारा था। सिर्फ अपने हितों की रक्षा के लिए, मैं समस्या की रिपोर्ट करने और एक प्रतिभाशाली व्यक्ति को दबाने के आरोप से डरती थी। यह परमेश्वर के वचन का मार्गदर्शन ही था जिसने मुझे अपना भ्रष्ट स्वभाव जानने, अपनी गलत सोच और नजरिया सुधारने, और अभ्यास का मार्ग पाने में मदद की। परमेश्वर का धन्यवाद!
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?