अहंकार से पैदा हुई मुश्किलें

23 अप्रैल, 2022

क्षीय क्षीण, स्पेन

अगस्त 2018 में, मैंने नये विश्वासियों की कलीसिया की जिम्मेदारी संभाली। ये कलीसिया हाल ही में बनी थी, इसलिए सारी नियुक्तियाँ नहीं हुई थीं, प्रोजेक्ट भी धीमे चल रहे थे। मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करके भरोसा किया, अपनी साथी के साथ मिलकर अच्छे उम्मीदवार खोजे, भाई-बहनों को उनकी क्षमताओं और काबिलियत के हिसाब से काम सौंपा। कलीसिया का काम तेजी से बढ़ने लगा। इससे लगा मुझमें चीज़ों की गहरी समझ है, खास काबिलियत और क्षमता है। खास कर, एक बार टीम अगुआ ने बताया कि भाई शाओ काम में बहुत सुस्त और निष्क्रिय हैं, वो उन्हें बर्खास्त करने जा रही हैं। मैं इससे सहमत नहीं थी। मैं पहले उनसे बात कर चुकी थी, उन्हें थोड़ा-बहुत समझती थी। वे मेहनती थे, उनमें अच्छी इंसानियत थी, पर ज़्यादा अनुभव नहीं था। क्या पता वे कुछ परेशानियों से जूझ रहे हों, जिससे उनके काम पर असर पड़ा है। मैंने उन्हें बर्खास्त करने से पहले टीम अगुआ को यह पता लगाने को कहा कि उनके साथ क्या समस्या है। अगुआ को पता चला, उनकी कलाई में मोच आ गई थी, तो वे ठीक से कंप्यूटर नहीं चला पा रहे थे, इसी वजह से उनके काम की प्रगति धीमी थी। उन्होंने किसी को नहीं बताया, तो लोग गलती से समझ बैठे कि वे मेहनती नहीं हैं। कलाई की मोच ठीक होने के बाद, उन्होंने बहुत अच्छा काम किया। उसके बाद मुझे और भी लगने लगा कि मैं लोगों को समझ पाती हूँ। तब से, लोगों को चुनते समय, भाई-बहनों की राय मुझसे अलग होने पर भी, मैं अपनी बात पर अड़ी रहती। मुझे लगता उनमें विवेक या लोगों के बारे में गहरी समझ नहीं है। समय के साथ, कुछ ज़्यादा ही विश्वास के साथ व्यवस्था करने लगी।

फिर मैंने कलीसिया की वीडियो टीम के काम का जिम्मा संभाला। एक बार जब हम वीडियो बनाने जा रहे थे, हमारे पास लोगों की कमी थी, टीम में और लोगों की ज़रूरत थी। उस प्रोजेक्ट में स्पेशल इफेक्ट के काफी उच्च मानक थे, ये काफी चुनौती भरा काम था। मैंने तय किया, हमें तकनीकी कौशल वाले किसी उच्च शिक्षित व्यक्ति की ज़रूरत होगी, ताकि काम ठीक से चल सके। मैंने ऐसी काबिलियत वाले इंसान को खोजने में कई दिन लगाये, पर कोई अच्छा उम्मीदवार नहीं मिला। कुछ भाई-बहन ऐसे कौशल पर काम करना चाहते थे, पर जब देखा कि उन्हें उच्च शिक्षा नहीं मिली और पेशेवर विशेषज्ञता नहीं है, तो मैंने उन्हें ख़ारिज कर दिया। कुछ लोग मेरे हिसाब से सही थे, पर वे किसी न किसी वजह से यह काम नहीं कर सकते थे। फिर संयोग से, मुझे पता चला भाई वू ने पहले सीजी ऐनिमेशन की पढ़ाई की थी, उनके पास अच्छा-खासा पेशेवर अनुभव था। उन्हें स्पेशल इफेक्ट का काम करने में कोई दिक्कत नहीं होगी, मैं वो काम उन्हें सौंपना चाहती थी। तभी एक बहन से आगाह किया, मुझे उनके बारे में किए गए मूल्यांकन देखने चाहिए। उसने बताया कि पहले कुछ लोगों ने उनमें अच्छी इंसानियत न होने की शिकायत की है, ऐसे में, उन्हें काम सौंपने से पहले मुझे सचेत होना चाहिए। उसने मुझे खोजने की सलाह दी। मैंने कहा, ज़रूर खोजूँगी, पर मैं सोचने लगी, अगर वे थोड़े मक्कार हैं, उनमें अच्छी इंसानियत नहीं है, तब भी वे उच्च शिक्षित और काबिल इंसान हैं, वे तकनीकी पहलुओं में दूसरों का मार्गदर्शन कर सकते हैं। उन्हें ये जिम्मेदारी लेने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। उसके बाद, मैंने भाई वू के बारे में भाई-बहनों के मूल्यांकन पढ़े, जिसमें लोगों ने कहा था कि उनमें अच्छी इंसानियत नहीं है, मेजबानी के काम में, वे दूसरों के साथ बेहद कठोरता से पेश आते थे, इससे लोग बेबस महसूस करते। इन्हें पढ़कर मैंने सोचा, पहले कई बार मैंने उनसे बातचीत की है, वे मुझे अच्छे इंसान लगे, जैसा लिखा है वो वैसे नहीं हैं। शायद उन्होंने किसी खास मामले को लेकर ऐसा कहा हो। जो भी हो, मेरे हिसाब से वे सही हैं, उनके पास काम का काफी अनुभव है, उनके जैसी प्रतिभा मुश्किल से मिलती है। उन्हें नियुक्त करने में कोई समस्या नहीं होगी। फिर मैंने दूसरों के सुझावों पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया, भाई वू के बारे में उन मूल्यांकनों की गहराई में नहीं गई। मैंने वीडियो प्रोडक्शन के काम की जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी।

मैं हैरान रह गई जब एक महीने में ही मैंने सुना, समस्याएं सामने आने पर वे आत्मचिंतन नहीं करते, मीनमेख निकालते रहते हैं, धारणाएं फैलाते हैं, मतभेद के बीज बोते हैं। मुझे इसकी उम्मीद बिल्कुल नहीं थी। क्या मैं गलत हो सकती हूँ? इस बारे में ज़्यादा सोचने से पहले, मैं हालात का जायजा लेने गई, तो पता चला कि लोगों की कही हर बात सही थी। उनके किये स्पेशल इफेक्ट के काम में इतनी समस्याएं थीं कि इसे दोबारा करना था, जब सभी मुश्किलों से निबटने के बारे में चर्चा कर रहे थे, तब भाई वू ने कहा इसे दोबारा करने की ज़रूरत नहीं है, अगुआओं की अपेक्षाएं बहुत अधिक हैं, वे बाल की खाल निकाल रहे हैं। ये सुनकर कुछ भाई-बहन भी अगुआओं से नाराज हो गए। यही नहीं, जब भाई वू दूसरों के काम में कोई समस्या देखते, तो वे उसे हल करने के बारे में न सोचकर, टीम अगुआ को अयोग्य बताते हुए उसे अलग-थलग करने में लग जाते, जिससे सदस्यों और टीम अगुआ के बीच समस्याएं खड़ी हो जातीं। टीम अगुआ निराश और बेबस महसूस करते। इसी वजह से एक भाई टीम अगुआ के खिलाफ हो गये और उनके साथ-साथ दूसरे अगुआओं के पीछे पड़ गये। एक बार भाई वू ने काम के लिए कुछ सुझाव दिए। टीम अगुआ ने सोचा पर उसे सुझाव सही नहीं लगे तो उन्हें नहीं अपनाया। फिर वे उसके प्रति असंतोष दिखाने लगे, सभाओं में अपनी सहभागिता में ये कहने लगे कि उन्होंने काम में समस्याएं देखकर भी उन्हें सामने लाने की हिम्मत नहीं की, क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें बर्खास्त होने का डर था, जिससे लोग ये सोचने लगे कि सुझाव देने पर उन्हें दबाया जाएगा। वो दिखाते थे कि वे तो परमेश्वर की इच्छा का ध्यान रखना चाहते हैं, पर टीम अगुआ ही उन्हें दबाकर अच्छे से काम नहीं करने दे रहा। उनके बर्ताव से पता चला, वे न सिर्फ मीनमेख निकालते थे बल्कि ऐसा दिखाते थे मानो वे धार्मिकता के संरक्षक हैं और परमेश्वर की इच्छा का ध्यान रखते हैं। परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा करने का झंडा लहराते हुए, वे असल में नकारात्मकता फैला रहे थे, लोगों के बीच कलह के बीज बो रहे थे, उन्हें अगुआओं के खिलाफ कर रहे थे, ताकि लगे कि समस्याएं उनमें हैं, लोग सावधान नहीं रहे, तो उन्हें दबाया और बेड़ियों में बांधा जा सकता है। इससे लोगों को, कलीसिया में सत्य का राज होने पर शक हो गया, वे सही-गलत पर बहस करने लगे, अगुआओं को आंकते हुए उनसे सावधान रहने लगे। उनके बर्ताव ने कलीसिया के काम में रुकावट पैदा कर दी थी। उस दौरान भाई वू तकीनीकी काम संभाल रहे थे, पर वे ज्यादा उपयोगी नहीं थे। उनका हर सुझाव सैद्धांतिक होता, व्यावहारिक नहीं। मैं उनकी समस्याएं देख सकती थी, पर अपनी गलती पूरी तरह मानना नहीं चाहती थी। मैं उनसे बात करके उनकी समस्याएँ बताना चाहती थी, अगर वे समझ गए तो शायद वो सत्य स्वीकार सकते हों, उनमें अच्छी इंसानियत हो, तो मेरा फैसला बहुत गलत साबित नहीं होगा। मैंने उन्हें उनकी समस्याएँ बताईं। इस पर आत्मचिंतन करने के बजाय उन्होंने कहा मैं अपने से अलग आवाजों को दबाना चाहती हूँ। तब मैंने देखा, न सिर्फ उनकी इंसानियत बुरी है, और वे सत्य नहीं स्वीकार सकते, बल्कि वे कपटी इंसान थे, उनके बात करने का तरीका भी पूरी तरह सत्य के विपरीत था। यह देखकर लगा मानो मेरे चेहरे पर जोरदार थप्पड़ पड़ा हो। परमेश्वर के घर ने कई बार जोर दिया कि खराब इंसानियत वाले लोगों को हम महत्वपूर्ण काम नहीं सौंप सकते, पर मैं ऐसे बुनियादी सिद्धांत के खिलाफ गई। मैं लोगों को चुनने में बुनियादी गलती की, जिससे कलीसिया जीवन पर बुरा असर पड़ा। इस बारे में जितना सोचा उतना ही मुझे बुरा लगा, फिर मैंने सिद्धांत के आधार पर भाई वू को बर्खास्त कर दिया।

ऐसा करने के बाद, मैं अपनी विफलता के असली कारणों पर विचार करने लगी। परमेश्वर के वचनों में मैंने ये पढ़ा : "नकली अगुआ खराब क्षमता वाले, आँख और दिल के अंधे होते हैं, और वे सत्य के सिद्धांत नहीं समझते, जो अपने तुम में एक बहुत गंभीर समस्या है। लेकिन उनकी एक और भी अधिक गंभीर समस्या होती है, जो यह है कि जब वे सिद्धांत के कुछ अक्षर और शब्द समझ लेते हैं और उनमें महारत हासिल कर लेते हैं और कुछ नारे लगा सकते हैं, तो उन्हें लगता है कि उनमें सत्य की वास्तविकता है। इसलिए वे जो भी कार्य करते हैं और जिसे भी उपयोग में लाने के लिए चुनते हैं, उसमें वे खोज और विचार-विमर्श तथा दूसरों के साथ सहभागिता नहीं करते, कार्य-व्यवस्थाओं और परमेश्वर के घर के सिद्धांतों को विस्तार से जाँचने की तो बात ही छोड़ो। वे बहुत आश्वस्त होते हैं, और यह मानते हैं कि वे जो कर रहे हैं वह सही है, वे जो सोचते हैं वही किया जाना चाहिए और वे जो कुछ मानते हैं, वही सही और सटीक है, और वह सब सिद्धांतों के अनुरूप है। इतना ही नहीं, वे गलत ढंग से यह भी मानते हैं कि कई वर्षों तक कार्य करने के बाद उनके पास परमेश्वर के घर में एक अगुआ के रूप में सेवा करने का पर्याप्त अनुभव है, कि वे जानते हैं कि परमेश्वर के घर का कार्य कैसे संचालित और विकसित होता है, और यह सब उनके हृदय में है। वे परमेश्वर के घर के काम को मापते हैं और उसे अपने अनुभव, कल्पनाओं, धारणाओं और नियमों के अनुसार करते हैं, जिससे उनके कार्यकाल के दौरान परमेश्वर के घर का काम गड़बड़, अराजक और अव्यवस्थित हो जाता है" (नकली अगुआओं की पहचान करना (5))। झूठे अगुआ आँखों के साथ-साथ दिल से भी अंधे होते हैं, वे लोगों के सार को नहीं देख पाते, सिद्धांत नहीं समझते, सबसे बुरी बात, वे सत्य को नहीं खोजते। अपने अनुभव और धारणाओं के भरोसे वे कलीसिया का काम करते हैं, जिससे सब गड़बड़ हो जाता है। भाई वू को उस पद पर नियुक्त करने में मैंने परमेश्वर के घर में लोगों को काम पर लगाने से जुड़े सिद्धांत खोजने के बजाय अपनी ही चलाई, ये सोचकर कि उनके पास काफी अनुभव है इसलिए वे वीडियो प्रोडक्शन के लिए सही हैं। जब दूसरों ने बताया कि उनमें अच्छी इंसानियत नहीं है, तो मुझे सचेत हो जाना था, उन्होंने मुझे थोड़ी छानबीन करने की सलाह दी, पर मैंने पूरी तरह अनदेखा कर दिया। मुझे लगा मेरे पास गहरी समझ और पहचान है, इससे पहले मेरी नियुक्तियों में कोई बड़ी समस्या नहीं आई, इसलिए भाई वू को चुनना भी सही साबित होगा। मैंने अपने काम के अनुभव को अपनी निजी पूंजी माना, सत्य के सिद्धांतों को बिल्कुल नहीं खोजा, दूसरों के सुझावों को विनम्रता से मानकर ईमानदारी से खोज या पूछताछ नहीं की, ताकि ये समझ सकूं कि भाई वू कैसे इंसान थे, उनके बर्ताव में बस कुछ पलों की भ्रष्टता दिखती है या उनका सार ही बुराई का है। अगर भ्रष्टता कुछ पलों की है या किसी कारण वश है, और उन्होंने खुद को बदल लिया है, तो उनका इस्तेमाल किया जा सकता था। पर अगर उनका बर्ताव ऐसा ही था, तो वे अच्छे नहीं कुकर्मी इंसान हैं, हम उनका इस्तेमाल नहीं कर सकते। ऐसा इंसान परमेश्वर के घर के काम को नुकसान ही पहुंचाएगा। मैंने चीज़ों को जानने के लिए पूछताछ नहीं की। अपने अनुभव और कल्पना के आधार पर आँखें मूंदकर फैसला किया। सच जानकर पता चला कि मैं एक झूठी अगुआ थी, आँखों और दिल से अंधी थी। मैं सत्य या सिद्धांत नहीं समझती थी, खुद पर हद से ज़्यादा भरोसा था, मैं दूसरों के सुझाव नहीं मानती थी। काम का थोड़ा अनुभव और शाब्दिक सिद्धांत की थोड़ी समझ होने से, मुझे लगा मैं सिद्धांतों को जानती हूँ, कलीसिया का काम कर सकती हूँ, फिर भी मैंने गलत इंसान को नियुक्त किया, जिससे हमारी प्रगति धीमी हो गई और कलीसियाई जीवन बाधित हुआ। मैं पूरी तरह शैतान की मददगार बनकर, कलीसिया के काम का नुकसान कर रही थी।

फिर मैंने परमेश्वर की इन बातों पर आत्मचिंतन किया : "अगर, अपने हृदय में, तुम वास्तव में सत्य को समझते हो, तो तुम्हें पता होगा कि सत्य का अभ्यास और परमेश्वर की आज्ञा का पालन कैसे करना है, तुम स्वाभाविक रूप से सत्य का अनुसरण करने के मार्ग पर चलना शुरू कर दोगे। अगर तुम जिस मार्ग पर चल रहे हो वह सही है, और परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप है, तो पवित्र आत्मा का कार्य तुम्हारा साथ नहीं छोड़ेगा—ऐसी स्थिति में तुम्हारे परमेश्वर को धोखा देने की संभावना कम से कम होगी। सत्य के बिना, बुरे काम करना आसान है और तुम यह अपनी मर्जी के बिना करोगे। उदाहरण के लिए, यदि तुम्हारा स्वभाव अहंकारी और दंभी है, तो तुम्हें परमेश्वर का विरोध न करने को कहने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, तुम खुद को रोक नहीं सकते, यह तुम्हारे नियंत्रण के बाहर है। तुम ऐसा जानबूझकर नहीं करोगे; तुम ऐसा अपनी अहंकारी और दंभी प्रकृति के प्रभुत्व के अधीन करोगे। तुम्हारे अहंकार और दंभ के कारण तुम परमेश्वर को तुच्छ समझोगे और उसे ऐसे देखोगे जैसे कि उसका कोई महत्व ही न हो, वे तुमसे स्वयं की प्रशंसा करवाने की वजह होंगे, निरंतर तुमको दिखावे में रखवाएंगे; वे तुम्हें दूसरों का तिरस्कार करने के लिए मजबूर करेंगे, वे तुम्हारे दिल में तुम्हें छोड़कर और किसी को नहीं रहने देंगे; वे तुम्हें खुद को अन्य लोगों और परमेश्वर से श्रेष्ठ समझने के लिए मजबूर करेंगे, और अंतत: तुम्हें परमेश्वर के स्थान पर बैठने और यह माँग करने के लिए मजबूर करेंगे और चाहेंगे कि लोग तुम्हें समर्पित हों, तुम्हारे विचारों, ख्यालों और धारणाओं को सत्य मानकर पूजें। देखो लोग अपनी उद्दंडता और अहंकारी प्रकृति के प्रभुत्व के अधीन कितनी बुराई करते हैं!" ("अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन" में 'केवल सत्य की खोज करके ही स्वभाव में बदलाव लाया जा सकता है')। वचनों से पता चला कि मैंने काम में सत्य के सिद्धांतों को नहीं खोजा, क्योंकि मैं बहुत अहंकारी थी, मेरे मन में परमेश्वर के प्रति श्रद्धा नहीं थी। अहंकारी प्रकृति के काबू में होकर, खुद पर ज़्यादा ही विश्वास करती थी। मुझे हमेशा लगा कि मैं अनुभवी हूँ, मुझमें गहरी समझ है, दूसरों की चेतावनियों को गंभीरता से नहीं लिया। मैंने वही करने पर अड़ी रही, जो मैं करना चाहती थी। जिसके चलते मैंने गलत इंसान को नियुक्त किया और कलीसिया का काम रुक गया। मैंने अपनी राय और अनुभव को सत्य मान लिया, सोचा जो मुझे पसंद है वही परमेश्वर को पसंद है, जो मुझे सही लगता है, वो परमेश्वर की नज़रों में भी सही होगा। मैंने तो गलत ढंग से अपनी राय को ही परमेश्वर की राय मान लिया। इससे सत्य का निरादर ही नहीं, बल्कि परमेश्वर का तिरस्कार भी हुआ। मैं अहंकार में जी रही थी, खुद को बड़ा दिखा रही थी, कर्तव्य निभाने का दावा करते हुए अपने तरीके से काम कर रही थी। ये दरअसल परमेश्वर का विरोध है। मैं जानती थी मुझे पश्चाताप करना होगा, वरना परमेश्वर का अपमान करने पर हटा दी जाऊँगी। परमेश्वर ने अगुआ का पद देकर मुझे ऊंचा उठाया, उसकी इच्छा थी कि मैं उस काम में सत्य खोजने पर ध्यान दूं, ताकि अपने कर्मों में सिद्धांतों पर चल सकूं। काम से जुड़ा हर फैसला परमेश्वर के घर के हितों पर असर डालता है, अगर मैंने सत्य खोजने के बजाय, अहंकार और दंभ के साथ काम किया, मनमाना और तानाशाही रवैया दिखाया, तो कलीसिया का काम बाधित कर सकती हूँ। आखिर में, इससे कलीसिया के हितों और भाई-बहनों को नुकसान पहुंचेगा। फिर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए मन में संकल्प लिया, अब मैं अहंकार के साथ अपना काम करने के बजाय, सत्य खोजूँगी, सिद्धांत के अनुसार काम करूंगी।

उसके बाद, अपने चिंतन में मुझे मेरी नाकामी की एक और वजह का एहसास हुआ। लोगों और चीज़ों के बारे में मेरे विचार भ्रांतिपूर्ण थे। मैंने परमेश्वर के वचनों में ये पढ़ा : "नकली अगुआ अकसर अपना यह दृष्टिकोण प्रकट करते हैं : वे मानते हैं कि समाज में ज्ञान और स्थान रखने वाले लोग और वे, जो लोक सेवक रहे हैं, वे सभी प्रतिभाशाली लोग हैं, जिन्हें परमेश्वर के घर द्वारा विकसित कर उनका उपयोग किया जाना चाहिए। नकली अगुआ इन लोगों का बहुत सम्मान करता है, यहाँ तक कि उनके साथ ऐसा व्यवहार करता है मानो वे उसके रिश्तेदार या परिवार ही हों; वह उन्हें दूसरों से मिलवाते हुए ऐसी बातें कहता है, 'ये बाहरी दुनिया में एक अखबार की संपादक हुआ करती थीं,' 'ये वस्त्रागार-निदेशक थे,' 'ये सार्वजनिक सुरक्षा मंत्रालय में काम करती थीं,' 'ये व्यवसाय में थे, और इनका परिवार समृद्ध है,' 'ये समाजशास्त्र का अध्ययन करती थीं,' या 'ये बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई करते थे।' नकली अगुआ ऐसे लोगों को बहुत महत्व देते हैं। मुझे बताओ, क्या नकली अगुआ क्षमतावान लोग होते हैं? क्या वे नकली आध्यात्मिक लोग नहीं होते, जो चीजें स्पष्ट रूप से नहीं देख सकते? उनका मानना है कि जैसा ऊपर वर्णित है, वैसे लोग जब परमेश्वर के घर आते हैं, तो उन्हें महत्वपूर्ण उपयोग में लाया जाना चाहिए। वे उन्हें प्रतिभाशाली लोग समझते हैं, इसलिए जब कोई नकली अगुआ उन्हें देखता है, तो वह इस तरह पेश आता है, मानो वह उनका अनुचर हो, वह सहमति दिखाता और सिर झुकाता है, चापलूसी और खुशामदी करता है। वास्तव में और अदृश्य रूप से, जहाँ नकली अगुआ प्रभारी होता है, वहाँ ये लोग अपनी औकात से बहुत बड़े हो जाते हैं और राजाओं की तरह राज करते हैं। मुझे बताओ, क्या ऐसे लोगों को परमेश्वर के घर में राजाओं की तरह राज करने दिया जा सकता है? यह सिद्धांतों के विपरीत है! परमेश्वर के वचनों में यह कहाँ कहा गया है या उसके घर के किस सिद्धांत में यह निर्धारित किया गया है कि जिन्हें पदोन्नत किया जाता है और परमेश्वर के घर में महत्वपूर्ण उपयोग में लगाया जाता है, उन्हें समाज के कुलीन वर्ग से चुना जाना चाहिए? क्या परमेश्वर के वचन ऐसा कहते हैं? (नहीं।) लोगों से परमेश्वर की अपेक्षाओं के कितने मानदंड हैं? मुख्य रूप से दो हैं : पहला यह है कि व्यक्ति अच्छी मानवता का है या नहीं; दूसरा वह रवैया है जिससे व्यक्ति सत्य के साथ पेश आता है और यह कि वह सत्य से प्रेम करता है या नहीं। ये दो ही मानदंड हैं" (नकली अगुआओं की पहचान करना (5))। "नकली अगुआ वे लोग होते हैं, जो वर्षों से परमेश्वर में विश्वास करते आए हैं और अकसर उपदेश सुनते हैं, फिर ऐसा क्यों है कि वे गैर-विश्वासियों की पहचान नहीं कर सकते? यह इस बात का और भी सबूत है कि नकली अगुआ बहुत खराब क्षमता वाले होते हैं, कि वे सत्य प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं, और वे कितना भी सत्य सुनें, उससे कोई फायदा नहीं होता। वे आँख और दिल से अंधे होते हैं, दूसरों को पहचान नहीं पाते। वे कलीसिया में अगुआ या कार्यकर्ता होने के योग्य कैसे हो सकते हैं? वे मानते हैं कि अच्छे वक्ता प्रतिभावान लोग होते हैं; जब वे किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो नाच-गा सकता है, तो वे उसे प्रतिभाशाली व्यक्ति समझते हैं; जब वे किसी चश्मा पहने व्यक्ति को देखते हैं जो कॉलेज जा चुका है, तो वे उसे प्रतिभाशाली व्यक्ति समझते हैं; जब वे समाज में किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति को देखते हैं, जो अमीर है, व्यापार और कपटपूर्ण काम में संलग्न हो सकता है, जो समाज में किसी प्रकार का महत्वपूर्ण कार्य करता है, तो नकली अगुआ को लगता है कि वह भी परमेश्वर के घर में प्रतिभाशाली व्यक्ति है। वे ऐसे लोगों की मानवता की गुणवत्ता नहीं देखते, न ही यह देखते हैं कि परमेश्वर में उनके विश्वास का कोई आधार है या नहीं, और उस रवैये को तो बिलकुल भी नहीं देखते, जिससे वे लोग सत्य और परमेश्वर के साथ पेश आते हैं। वे केवल लोगों की सामाजिक स्थिति और पृष्ठभूमि ही देखते हैं। नतीजा ये है कि, नकली अगुआ व्यक्ति में यही चीजें पसंद करते हैं। क्या यह बहुत दंभी होना नहीं है? वे सचमुच अंधे हैं—बहुत ज्यादा!" (नकली अगुआओं की पहचान करना (5))। परमेश्वर के वचन बताते हैं कि झूठे अगुआ अंधे और मूर्ख हैं, लोगों को नियुक्त करने में अच्छे नहीं होते। वे सिर्फ सांसारिक शिक्षा, रुतबे और पेशेवर कौशल देखते हैं, सोचते हैं कि ज्ञान और संस्कृति के साथ-साथ अत्यंत कुशल होना मतलब कि वे परमेश्वर के घर में प्रतिभाशाली लोग हैं। वे नहीं देखते कि उनमें इंसानियत है या नहीं, वे सत्य स्वीकारते हैं या नहीं, या वे किस हद तक सत्य को समझते हैं। स्पेशल इफेक्ट के काम के लिए व्यक्ति खोजते समय, मेरी सोच ऐसी ही थी, सोचती थी उच्च शिक्षा और कौशल होने का मतलब है वे काम को अच्छे से कर सकते हैं। मैंने पूरे समय भाई-बहनों की शिक्षा और तकीनीकी कौशल पर ध्यान दिया। भाई वू की डिग्री और उनके काम के अनुभव को देखकर, मैंने सोचा वे टीम में दूसरों के लिए काफी मददगार साबित होंगे, तकनीकी रूप से पेचीदा कामों को संभाल पाएंगे। मैंने उनकी इंसानियत और उनके पहले के बर्ताव बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। इसी वजह से, उनके होने से काम का नुकसान ही नहीं हुआ, बल्कि मीनमेख निकालते हुए उन्होंने अगुआओं और सदस्यों के बीच मतभेद पैदा किया। कलीसियाई जीवन और कलीसिया का काम काफी बाधित हुआ। मुझे एहसास हुआ कि चीज़ों के बारे में मेरी सोच कितनी बेतुकी थी। परमेश्वर का घर प्रतिभाओं का सम्मान और पोषण करता है, पर ये उन सबसे अलग ही मामला है। ये किसी की डिग्री की नहीं, बल्कि उसकी इंसानियत की बात है, क्या वह सत्य से प्रेम और उसका अनुसरण करता है। मैंने देखा कुछ भाई-बहनों ने समाज के कई क्षेत्रों में बहुत अच्छा काम किया, पर कुछ की इंसानियत अच्छी नहीं थी, वे सत्य से प्रेम नहीं करते थे। काम में सत्य के सिद्धांत नहीं खोजते थे, सत्य नहीं स्वीकारते थे, बल्कि भ्रष्टता दिखाते हुए वही करते थे जो करना चाहते थे। उन्होंने अपना काम अच्छे से नहीं किया, कलीसिया के काम को भी बाधित किया। फायदे की जगह नुकसान ज़्यादा थे, तो अंत में उन्हें हटा दिया गया। जो लोग अडिग रहकर अपना कर्तव्य निभाते हैं, उनमें न केवल पेशेवर कौशल होता है, बल्कि अच्छी इंसानियत भी होती है। कुछ लोग सत्य से प्रेम करते और उसे स्वीकारते हैं, अपने काम में व्यावहारिक होते हैं। वे अपने काम में अपने हर पेशेवर कौशल का इस्तेमाल करते हैं, उनमें से कुछ शायद उच्च स्तर के न हों, पर उनका दिल सही जगह होता है, वे अपने काम में पूरी मेहनत करते हैं। परमेश्वर के प्रबोधन और मार्गदर्शन से वे अपना काम सुधारते हैं। वे न केवल अपने पेशेवर कौशल को सुधारते हैं, बल्कि बेहतर ढंग से सिद्धांतों पर चलते हैं।

फिर मैंने परमेश्वर के ये वचन पढ़े : "चाहे तुम अपना कर्तव्य निभा रहे हो, दूसरों के साथ बातचीत कर रहे हो, या अपने साथ हो रही किसी विशेष चीज से निपट रहे हो, तुममें खोज और आज्ञाकारिता का रवैया होना चाहिए। इस तरह का रवैया होने पर यह कहा जा सकता है कि तुम्हारे दिल में परमेश्वर के प्रति कुछ श्रद्धा है, और तुम सत्य की खोज और उसका पालन करने में सक्षम हो। यह परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने का मार्ग है। अगर तुममें खोज और आज्ञाकारिता के रवैये का अभाव है, और इसके बजाय तुम अड़ियल विरोधी हो और स्वयं से चिपके रहते हो, सत्य को नकारते और उससे घृणा करते हो, तो तुम स्वाभाविक रूप से बहुत अधिक बुराई करोगे। तुम खुद को ऐसा करने से रोक नहीं सकते! ... अपने कर्तव्य को अच्छी तरह से निभाना, परमेश्वर को संतुष्ट करना और उसका भय मानना, और अपने विश्वास में बुराई से दूर रहना आसान नहीं है। फिर भी तुम लोगों को अभ्यास के एक सिद्धांत के बारे में अभी-अभी सूचित किया गया था : अगर अपने साथ कुछ होने पर तुम्हारा रवैया खोज और आज्ञाकारिता का रहता है, तो वह तुम्हारी रक्षा करेगा। अंतिम लक्ष्य तुम्हारी रक्षा करना नहीं है। वह है तुम्हें सत्य समझाना और सत्य की वास्तविकता में प्रवेश करने और परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करने में सक्षम बनाना; यही अंतिम लक्ष्य है। अगर समस्त अनुभवों में तुम्हारा यह रवैया रहता है, तो तुम यह महसूस करना बंद कर दोगे कि अपना कर्तव्य निभाना और परमेश्वर की इच्छा पूरी करना खोखले शब्द और घिसी-पिटी बातें हैं; वह अब इतना कठिन नहीं लगेगा। इसके बजाय, तुम्हें पता भी नहीं चलेगा और तुम पहले ही कई सत्य समझ जाओगे। अगर तुम इस तरह अनुभव करते रहोगे, तो तुम निश्चित रूप से फल प्राप्त करोगे" (परमेश्‍वर की संगति)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे एक मार्ग दिखाया। चाहे जैसी भी मुश्किल आये, मुझे परमेश्वर के प्रति समर्पण कर श्रद्धा रखनी होगी, सत्य के सिद्धांत खोजने होंगे। परमेश्वर का मार्गदर्शन पाने और अच्छे से काम करने का यही तरीका है। वरना, संभव है कि मैं अहंकार में काम करते हुए बाधा डालती रहूँगी। उसके बाद, मैंने और मेरी साथी ने लोगों की नियुक्ति के सिद्धांतों के आधार पर, वीडियो प्रोडक्शन के लिए कुछ और लोगों को चुना। उनके पास भाई वू जैसा सैद्धांतिक ज्ञान नहीं था, पर उनका रवैया बेहतर था, उन्होंने व्यावहारिक ढंग से काम को सीखा। कोई समस्या आने पर, वे साथ मिलकर सत्य खोजते और सहभागिता करते। किसी के भ्रष्टता दिखाने से उनके काम की प्रगति पर असर पड़ता, तो वे आत्मचिंतन करके इससे सबक सीखते। कुछ समय बाद, जब सभी लोग मिलकर काम करने लगे, वीडियो बनाने के काम में काफी तेजी आई, बहुत बेहतर नतीजे भी मिले। ये मेरे लिए बेहद खुशनुमा एहसास था। मैंने सचमुच अनुभव किया, परमेश्वर के घर के काम के लिए सिर्फ तकनीकी कौशल या काबिलियत नहीं, बल्कि सही और व्यावहारिक इंसान होना, सत्य खोजना और परमेश्वर के प्रति श्रद्धा रखना अहम है। यही पवित्र आत्मा का मार्गदर्शन पाने और कर्तव्य में कुछ भी हासिल करने का एकमात्र तरीका है। मैंने ये भी देखा कि सत्य खोजना और सिद्धांत पर चलना परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप होने का एकमात्र तरीका है। परमेश्वर का धन्यवाद!

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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