मैंने एक मसीह-विरोधी की रिपोर्ट कैसे की

05 फ़रवरी, 2023

वेन जिंग, चीन

कुछ साल पहले, अपना कर्तव्य निभाने, मैं शहर के बाहर से अपनी स्थानीय कलीसिया लौट आई। जब मैंने अगुआ झैंग शिन को यह कहते सुना कि शाओ लियू सिंचन उपयाजिका थी, तो मैं भौंचक्की रह गई। मुझे मालूम था कि शाओ लियू फूट डालती थी, लोगों का दमन कर दंड देती थी। कलीसिया में सत्ता हथियाने के लिए उसने कुछ बुरे लोगों के साथ मिलकर यह दावा करते हुए उपद्रव मचाया कि अगुआ और कर्मी झूठे हैं। तब भाई-बहनों ने उसके बर्ताव से पहचान लिया था कि वह बुरी इंसान है और वे उसके निष्कासन की तैयारी कर रहे थे। तो अब वह सिंचन उपयाजिका कैसे बन गई? मैंने झैंग शिन से पूछा, तो उसने बताया कि शाओ लियू अब बदल गई थी, कर्तव्य की जिम्मेदारी उठाती थी, मुझे विकास के नजरिए से उसे प्रेम से देखना चाहिए। हालाँकि मुझे शंका थी, पर मैं हाल ही में लौटी थी, तो मुझे कुछ पता नहीं था कि क्या चल रहा है, मैंने सोचा कि एक अगुआ के नाते, झैंग शिन सिद्धांतों के खिलाफ जाकर लोगों को नहीं चुनेगी, इसलिए मैंने और ज्यादा नहीं पूछा। झैंग शिन ने यह भी कहा कि अगुआ के रूप में उसकी सहयोगी रही बहन फैन्ग लिंग ने बर्खास्त होने के बाद से, न कोई कर्तव्य निभाया था, न सभाओं में भाग लियाऔर बार-बार संगति के बाद भी उसमें कोई बदलाव नहीं आया था। इसलिए उसे हटाया जाना था, झैंग शिन ने मुझे फैन्ग लिंग के कुकर्मों की जानकारी जुटाने को कहा। इससे मुझे थोड़ा शक हुआ। फैन्ग लिंग ने कभी अपने कर्तव्य में बोझ नहीं उठाया था और वह वास्तविक कार्य न करने वाली एक झूठी अगुआ थी। लेकिन बर्खास्त होने के बाद सुसमाचार प्रचार कर रही थी, सामान्य मामले देखती थी, बुरे काम नहीं करती थी। उसे हटाना क्यों था? मैंने जितना सोचा, उतना ही यह गलत लगा। मुझे याद आया कि पहले झैंग शिन काफी प्रतिशोधी हुआ करती थी। फैन्ग लिंग ने एक बार उच्च-स्तर के अगुआओं को रिपोर्ट की कि झैंग शिन कर्तव्य में कोई बोझ नहीं उठाती थी। कहीं ऐसा तो नहीं कि इसे लेकर वह बैर पाले हुए थी और फैन्ग लिंग से बदला लेना चाहती थी? अगर बात यह थी, तो झैंग शिन फैन्ग लिंग को दंड दे रही थी, और यह दुष्कर्म करना था! लेकिन फिर लगा कि मुझे फैन्ग लिंग का हाल का बर्ताव मालूम नहीं था, इसलिए मैं निश्चित नहीं थी कि झैंग शिन में ही कोई समस्या थी। पक्का होने तक मैंने रुकने का फैसला किया।

बाद में, मैंने सुना कि झैंग शिन ने एक सभा में तथ्य तोड़-मरोड़ कर फैन्ग लिंग की आलोचना की थी, एक बहन के खंडन करने पर, उसने उस बहन और फैन्ग लिंग की निंदा कर कहा कि वे दोनों मिलकर अगुआ पर हमला कर रहे हैं, और उस बहन को चिंतन के लिए अलग करने की व्यवस्था कर दी। एक दूसरी बहन ने कहा कि फैन्ग लिंग दूसरों से प्रेम से पेश आती थी, इसलिए झैंग शिन ने झूठ बोला कि उस बहन की सुरक्षा खतरे में थी, और उसे तीन महीने तक सभा में शामिल नहीं होने दिया। एक बहन थी, जो सामान्य मामलों की प्रभारी थी, उसे झैंग शिन ने कर्तव्य निभाने से सिर्फ इसलिए रोक दिया क्योंकि उसने झैंग शिन को सलाह दी थी। इससे मैं बिल्कुल चौंक गई। कैसे झैंग शिन परमेश्वर का जरा-सा भी भय नहीं मानती थी? उसने लोगों को दबाने के बहुत-से बुरे काम किए थे। उसने जिन्हें दबाया, वे कलीसिया में सत्य का अनुसरण करने वाले लोग थे। निश्चित रूप से झैंग शिन के साथ समस्या थी। मैं मसला समझने के लिए, सिंचनकर्मी बहन ली शिंरूई के पास गई। उसने मुझे बताया, “शाओ लियू को जरा भी पछतावा नहीं है। वह अब भी हर सभा में अपने साथ हुए अन्याय का रोना रोती है और कौन सही था, कौन गलत इस पर बहस करती रहती है, और कलीसियाई जीवन में बाधा डालती है। जब फैन्ग लिंग अगुआ थी, तो उसने शाओ लियू के बुरे बर्ताव की जाँच की थी, इसलिए शाओ लियू ने खुलेआम कहा है कि वह उससे बदला लेना चाहती है।” मुझे बहुत गुस्सा आया। झैंग शिन ने कहा था कि शाओ लियू ने प्रायश्चित्त किया था। वह कलीसिया को बाधित करने वाली एक बुरी इंसान को माफ कर रही थी। क्या यह एक झूठे अगुआ की निशानी नहीं है? लेकिन फिर सोचा किअगर ने झैंग शिन ने अपने आपको नहीं बदला, तो वह कलीसिया के काम को अटकाएगी, इसलिए मैंने पहले उसे ये बातें बतानी चाही। मैंने झैंग शिन से मिलने के बाद उसे बताया कि उसने इन बहनों को कर्तव्य निभाने से रोककर सिद्धांतों का उल्लंघन किया था। मुझे उम्मीद नहीं थी कि वह मुझ पर चिल्लाने लगेगी, “कुछ लोग मेरी बात नहीं मानते, पीठ पीछे मेरी बुराई करते हैं! मुझे सब पता है कि मेरे बारे में ऐसी राय किसकी है। अगर वे मेरी बात नहीं मानना चाहते, तो जाकर उच्च अगुआओं को रिपोर्ट करें! मेरा हर काम न्याय-संगत और सही है। कोई मेरे बारे में क्या कहता है, मैं इससे नहीं डरती।” उसके उल्टे जवाब से मैं सहम गई। अब कलीसिया में सिर्फ वह ही फैसला लेती थी, जो उसकी बात न मानता, उसे दबाकर दंडित करती थी। वह एक अत्याचारी थी, और कुछ नहीं। मैंने बस एक ही बात कही थी तो उसने इतनी दुष्टता दिखाई, मुझे डर लगा कि अगर मैंने और समस्याएँ बताकर उसे उजागर किया, तो वह मुझे कर्तव्य निभाने से रोक देगी। अगर ऐसा हुआ तो मेरे जीवन-प्रवेश को नुकसान होगा। यह ख्याल आते ही, मैंने उसकी समस्याएँ बताना बंद कर दिया। घर पहुँचकर मैंने बहुत दोषी महसूस किया। एक बुरी इंसान कलीसिया को बाधित कर रही थी, मेरे भाई-बहनों का दमन हो रहा था। मामला निपटाने के बजाय झैंग शिन लोगों का दमन कर रही थी, जब मैंने उसकी समस्याएँ बताईं, तो वह नहीं मानी। मैं जानती थी कि मुझे उच्च अगुआओं से इसकी रिपोर्ट करनी चाहिए। इसके बाद, मैं शिंरूई से मिलने गई। रिपोर्ट-लेटर लिखने के सिद्धांतों पर चर्चा कर हमने झैंग शिन की रिपोर्ट की तैयारी की। लेकिन जब हमने उसके बुरे बर्ताव के बारे में लिख लिया और उसे सौंपने की बात आई, तो मैं झिझकने लगी। अगर झैंग शिन को हमारे रिपोर्ट-लेटर का पता चल गया, और उसने आरोप लगाकर हमें फँसा दिया और निष्कासित करवा दिया, तो हम क्या करेंगे? अगर मुझे निष्कासित कर दिया गया, तो कैसे बचाई जा सकूँगी? इस बारे में सोचने के बाद मैंने लंबे समय तक रिपोर्ट नहीं सौंपी। लेकिन कलीसिया में हो रहा उपद्रव देखकर, मुझे रिपोर्ट न करने को लेकर अपराधबोध महसूस हुआ। उन कुछ दिनों में, जब भी मैं इस मामले के बारे में सोचती तो मुझे बहुत बुरा लगता।

एक रात, जब मैं शिंरूई के घर गई थी, तो झैंग शिन अचानक वहाँ पहुँच गई, उसने शिंरूई पर कलीसिया में उसे उजागर करने का आरोप लगाया। उसका खराब रवैया देखकर मुझे बहुत गुस्सा आया। वह सच में बहुत दंभी थी। वह बेतहाशा कुकर्म कर रही थी, लेकिन दूसरों को उसे उजागर करने से भी रोक रही थी। लोगों को बोलने तक का हक नहीं था, और पूरी कलीसिया उसके काबू में थी। मुझे न्याय के लिए खड़े होकर कलीसिया कार्य को बचाने के लिए झैंग शिन को उजागर करना था। लेकिन यह सोचकर कि वह कितनी घमंडी है, किसी की नहीं सुनती और बहुत प्रतिशोधी है, मुझे लगा कि अगर मैंने उसे उकसाया तो दंड पाने वाली अगली इंसान मैं ही बनूंगी। वह मुझे निष्कासित करने के लिए कोई भी आरोप लगा देगी। मैं बड़ी दुविधा में पड़ गई, इसलिए मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से हिम्मत और हौसला मांगा। मुझे परमेश्वर का वचन याद आया : “हर कलीसिया में ऐसे लोग होते हैं जो कलीसिया के लिए विघ्न पैदा करते हैं या परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी करते हैं। ये सभी लोग शैतान के छ्द्म वेष में परमेश्वर के परिवार में घुस आए हैं। ... ऐसे लोग कलीसिया में उपद्रव मचाते हैं, नकारात्मकता फैलाते हुए मौत का तांडव करते हैं, मनमर्जी करते हैं, जो चाहे बकते हैं; किसी में इन्हें रोकने की हिम्मत नहीं होती है, ये शैतानी स्वभाव से भरे होते हैं। जैसे ही ये लोग व्यवधान पैदा करते हैं, कलीसिया में मुर्दनी छा जाती है। कलीसिया के भीतर सत्य का अभ्यास करने वाले लोगों का तिरस्कार किया जाता है और वे अपना सर्वस्व अर्पित करने में असमर्थ हो जाते हैं, जबकि कलीसिया में परेशानियाँ खड़ी करने वाले, मौत का वातावरण निर्मित करने वाले लोग यहां उपद्रव मचाते फिरते हैं, और इतना ही नहीं, अधिकतर लोग उनका अनुसरण करते हैं। साफ बात है, ऐसी कलीसियाएँ शैतान के कब्ज़े में होती है; हैवान इनका सरदार होता है। यदि ऐसी कलीसियाओं में लोग विद्रोह नहीं करेंगे और उन प्रधान राक्षसों को खारिज नहीं करेंगे, तो देर-सवेर वे भी बर्बाद हो जाएँगे। अब ऐसी कलीसियाओं के ख़िलाफ कदम उठाए जाने चाहिए। जो लोग थोड़ा भी सत्य का अभ्यास करने में सक्षम हैं यदि वे खोज नहीं करते हैं, तो उस कलीसिया को मिटा दिया जाएगा। यदि कलीसिया में ऐसा कोई भी नहीं है जो सत्य का अभ्यास करने का इच्छुक हो, और परमेश्वर की गवाही में दृढ़ रह सकता हो, तो उस कलीसिया को पूरी तरह से अलग-थलग कर दिया जाना चाहिए और अन्य कलीसियाओं के साथ उसके संबंध समाप्त कर दिये जाने चाहिए। इसे ‘मृत्यु दफ़्न करना’ कहते हैं; इसी का अर्थ है शैतान को ठुकराना(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी)परमेश्वर के वचन ने मुझे हिम्मत और ताकत दी, अब मुझे डर नहीं लग रहा था। परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव अपमान सहन नहीं करता, इन बेहद बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों से परमेश्वर को अत्यधिक घृणा और चिढ़ है! वे भले ही कुछ समय तक सत्ता पाकर उपद्रव मचाएँ, अंत में उनका खुलासा कर हटा दिया जाएगा। परमेश्वर का वचन बहुत स्पष्ट है; जब बुरे लोग और मसीह-विरोधी कलीसिया को नियंत्रित करते हों, जब कोई भी सत्य पर अमल न करे, तो वे कलीसिया में उपद्रव मचाने वाली इन बुरी ताकतों को माफी देते हैं। ऐसी कलीसिया में शैतान का राज होता है, और सदस्यों के प्रायश्चित्त न करने पर वे परमेश्वर द्वारा त्यागे और हटाए जाएंगे। मैं इससे बिल्कुल स्तब्ध रह गई। झैंग शिन कलीसिया में एक अत्याचारी थी, भाई-बहनों पर हमला कर उन्हें दंड देती थी, फिर भी खुद को बचाने के लिए मैंने उसे उजागर कर नहीं रोका, उसे और शाओ लियू को बुराई करने और कलीसिया के कार्य को बिगाड़ने दिया। मैं शैतान के साथ खड़ी होकर परमेश्वर का प्रतिरोध कर रही थी और उनके दुष्कर्मों में मेरा भी हाथ था। यह एहसास होने पर मैंने यह सोचकर झैंग शिन को उजागर करने की हिम्मत की कि उसने एक बुरी इंसान को बचाया, अपने पद का लाभ उठाकर दूसरों को दंडित किया और मसीह-विरोधी का रास्ता अपनाया। यह सुन, झैंग शिन जवाब नहीं दे पाई। उसने तुरंत विषय बदल दिया, फैन्ग लिंग को कलीसिया में वापस लेने को राजी हो गई, फिर वह चली गई।

फिर परमेश्वर के वचन के कुछ अंशों से मुझे थोड़ी स्पष्टता मिली, और मैं झैंग शिन के सार को समझ पाई। परमेश्वर के वचन कहते हैं : “मसीह-विरोधी के सार की सबसे स्पष्ट विशेषताओं में से एक यह होती है कि वे अपनी सत्ता का एकाधिकार और अपनी तानाशाही चलाते हैं : वे किसी की नहीं सुनते हैं, किसी का आदर नहीं करते हैं, और लोगों की क्षमताओं की परवाह किए बिना, या इस बात की परवाह किए बिना कि वे क्या सही विचार या बुद्धिमत्तापूर्ण मत व्यक्त करते हैं और कौन-से उपयुक्त तरीके सामने रखते हैं, वे उन पर कोई ध्यान नहीं देते; यह ऐसा है मानो कोई भी उनके साथ सहयोग करने या उनके किसी भी काम में भाग लेने के योग्य न हो। मसीह-विरोधियों का स्वभाव ऐसा ही होता है। कुछ लोग कहते हैं कि यह बुरी मानवता वाला होना है—लेकिन यह सामान्य बुरी मानवता कैसे हो सकती है? यह पूरी तरह से एक शैतानी स्वभाव है; और ऐसा स्वभाव अत्यंत क्रूरतापूर्ण है। मैं क्यों कहता हूँ कि उनका स्वभाव अत्यंत क्रूरतापूर्ण है? मसीह-विरोधी परमेश्वर के घर और कलीसिया की संपत्ति से सब-कुछ हर लेते हैं और उससे अपनी निजी संपत्ति के समान पेश आते हैं जिसका प्रबंधन उन्हें ही करना हो, और वे इसमें किसी भी दूसरे को दखल देने की अनुमति नहीं देते हैं। कलीसिया का कार्य करते समय वे केवल अपने हितों, अपनी हैसियत और अपने गौरव के बारे में ही सोचते हैं। वे किसी को भी अपने हितों को नुकसान नहीं पहुँचाने देते, किसी योग्य व्यक्ति को या किसी ऐसे व्यक्ति को, जो अनुभवजन्य गवाही देने में सक्षम है, अपनी प्रतिष्ठा और हैसियत को खतरे में डालने तो बिल्कुल भी नहीं देते। और इसलिए, वे उन लोगों को दमित करने और प्रतिस्पर्धियों के रूप में बाहर करने की कोशिश करते हैं, जो अनुभवजन्य गवाही के बारे में बोलने में सक्षम होते हैं, जो सत्य पर संगति कर सकते हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को पोषण प्रदान कर सकते हैं, और वे हताशा से उन लोगों को बाकी सबसे पूरी तरह से अलग करने, उनके नाम पूरी तरह से कीचड़ में घसीटने और उन्हें नीचे गिराने की कोशिश करते हैं। सिर्फ तभी मसीह-विरोधी शांति का अनुभव करते हैं। ... क्या वे परमेश्वर के घर के हितों पर विचार करते हैं? नहीं। वे किस बारे में सोचते हैं? वे केवल यही सोचते हैं कि अपनी हैसियत कैसे बनाए रखें। हालाँकि मसीह-विरोधी जानते हैं कि वे वास्तविक कार्य करने में असमर्थ हैं, फिर भी वे सत्य का अनुसरण करने वाले और अच्छी योग्यता वाले लोगों को विकसित नहीं करते या बढ़ावा नहीं देते; वे केवल उन्हीं को बढ़ावा देते हैं जो उनकी चापलूसी करते हैं, जो दूसरों की आराधना करने को तत्पर रहते हैं, जो अपने दिलों में उनका अनुमोदन और सराहना करते हैं, जो सहज संचालक हैं, जिन्हें सत्य की कोई समझ नहीं और जो अच्छे-बुरे की पहचान करने में असमर्थ हैं। मसीह-विरोधी अपनी सेवा करवाने, अपने लिए दौड़-भाग करवाने, और हर दिन अपने चारों ओर घूमते रहने के लिए इन लोगों को अपनी ओर ले आते हैं। इससे मसीह-विरोधियों को कलीसिया में सामर्थ्य मिलती है, और इसका अर्थ होता है कि बहुत-से लोग उनके करीब आते हैं, उनका अनुसरण करते हैं, और कोई उनका अपमान करने की हिम्मत नहीं करता है। ये सभी लोग, जिन्हें मसीह-विरोधी विकसित करते हैं, वे सत्य का अनुसरण नहीं करते। उनमें से ज्यादातर लोगों में आध्यात्मिक समझ नहीं होती है और वे नियम-पालन के सिवा कुछ नहीं जानते हैं। वे रुझानों और शक्तिशाली लोगों का अनुसरण करना पसंद करते हैं। वे ऐसे लोग होते हैं जो शक्तिशाली मालिक के होने से हिम्मत पाते हैं—भ्रमित लोगों की मंडली होते हैं। अविश्वासियों की उस कहावत में क्या कहा गया है? किसी बुरे आदमी का आराध्य पूर्वज होने की तुलना में किसी अच्छे इंसान का अनुचर होना बेहतर है। मसीह-विरोधी ठीक इसका उल्टा करते हैं—वे ऐसे लोगों के आराधित पूर्वजों के तौर पर कार्य करते हैं, और उन्हें अपना झंडा लहराने वालों और प्रोत्साहित करने वालों के रूप में पालते हैं। जब भी कोई मसीह-विरोधी किसी कलीसिया में सत्ता में होता है, तो वह हमेशा अपने सहायकों के रूप में भ्रमित लोगों और आँखें मूँद कर समय गँवाने वालों को भर्ती करता है, और उन काबिलियत वाले लोगों को छोड़ देता है और दबाता है, जो सत्य को समझकर उसका अभ्यास कर सकते हैं, जो काम सँभाल सकते हैं—विशेष रूप से उन अगुआओं और कार्यकर्ताओं को, जो वास्तविक कार्य करने में सक्षम होते हैं(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद आठ : वे दूसरों से केवल अपने प्रति समर्पण करवाएँगे, सत्य या परमेश्वर के प्रति नहीं (भाग एक))। “वे कौन लोग होते हैं, जिन्हें मसीह-विरोधी अपना विरोधी समझता है? कम से कम, वे वो लोग होते हैं जो अगुआ के रूप में मसीह-विरोधी को गंभीरता से नहीं लेते; अर्थात् वे उनका आदर या आराधना नहीं करते, जो उन्हें सामान्य व्यक्ति समझते हैं। यह एक किस्म है। फिर ऐसे लोग भी होते हैं, जो सत्य से प्रेम करते हैं, सत्य का अनुसरण करते हैं, अपने स्वभाव में बदलाव लाने की कोशिश करते हैं, और परमेश्वर से प्रेम करने का प्रयास करते हैं; वे मसीह-विरोधी के मार्ग से भिन्न मार्ग अपनाते हैं, और वे मसीह-विरोधी की दृष्टि में विरोधी होते हैं। क्या इसके अलावा भी कोई और होते हैं? (जो लोग हमेशा मसीह-विरोधियों को सुझाव देते रहते हैं और उन्हें उजागर करने का साहस करते हैं।) जो कोई मसीह-विरोधी को सुझाव देने और उसे उजागर करने का साहस करता है, या जिसके विचार उसके विचारों से भिन्न होते हैं, उसे उसके द्वारा विरोधी समझा जाता है। एक किस्म और है : वे जो क्षमता और काबिलियत में मसीह-विरोधी के बराबर होते हैं, जिनकी बोलने और कार्य करने की क्षमता उनके समान होती है, या जिन्हें वे खुद से ऊँचा समझते और पहचानने में सक्षम होते हैं। मसीह-विरोधी के लिए यह असहनीय है, उसकी हैसियत के लिए खतरा है। ऐसे लोग मसीह-विरोधी के सबसे बड़े विरोधी होते हैं। मसीह-विरोधी ऐसे लोगों की उपेक्षा करने की हिम्मत नहीं करता या उनके प्रति जरा भी शिथिल नहीं होता। वह उन्हें अपने लिए एक काँटा समझते हैं जो उन्हें लगातार परेशान करता है और हर समय उनसे सावधान और सँभलकर रहता है और वह अपने हर काम में उनसे बचता है। खासकर तब जब मसीह-विरोधी देखता है कि कोई विरोधी उसे पहचानने वाला और उजागर करने वाला है, तो एक खास दहशत उन्हें जकड़ लेती है; वह इस तरह के विरोधी को निकाल देने और उस पर आक्रमण करने के लिए बेताब हो जाता है, और तब तक संतुष्ट नहीं होता, जब तक कलीसिया से उस विरोधी को हटा नहीं देता। ऐसी मानसिकता और इन चीजों से भरे दिल के साथ, वे किस तरह की चीजों में सक्षम हैं? क्या वे इन भाई-बहनों को दुश्मन समझेंगे, और इन्हें नीचे गिराने और इनसे छुटकारा पाने के तरीके सोचेंगे? वे निश्चित रूप से ऐसा करेंगे। वे विरोधियों को झुकाने के तरीकों के बारे में सोचने के लिए अपने दिमाग पर जोर डालेंगे और उन्हें हराने के लिए किसी भी हद तक चले जाएँगे, ऐसा ही है न? विरोधियों पर काबू पाने का मतलब यह है कि मसीह-विरोधी हर किसी को उनकी बातें सुनने के लिए मजबूर करता है, ताकि कोई भी उन्हें उजागर करने की बात तो दूर, कुछ और कहने या उनसे अलग राय रखने की हिम्मत न करे। विरोधी को हराने का मतलब यह है कि मसीह-विरोधी उन्हें फँसाता है और उन्हें अपराधी ठहराता है, उनके बारे में झूठी धारणाएँ बनाता है ताकि विरोधी को मूर्ख बनाकर उसकी काट-छाँट की जाए, जिससे उसकी प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल जाए। क्या ऐसा करना सबसे बुरा कर्म नहीं है? क्या इसके कारण परमेश्वर का स्वभाव नाराज नहीं होता?(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद दो : वे विरोधियों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें निकाल देते हैं)। मसीह-विरोधियों की प्रकृति खासतौर पर डरावनी और बुरी होती है। सत्ता अपने हाथों में लेकर एक स्वतंत्र राज्य बनाने के लिए, वे अपने पसंदीदा लोगों को दाहिना हाथ बना लेते हैं, जो उनकी कमियाँ बताए, उन्हें उजागर करे या उनके रुतबे के लिए खतरा बने, वे उन्हें अपने रास्ते का काँटा मान, उन पर हमले कर उन्हें किसी तरीके से दूर कर देते हैं, यहाँ तक कि उन्हें कलीसिया से निकाल देते हैं। मसीह-विरोधियों का सार बुरे लोगों का सार है। वे सत्य से चिढ़ते हैं, उनमें जमीर या समझ नहीं होती, वे दूसरों को कितना भी दंडित करें, उन्हें थोड़ा-भी अपराध-बोध नहीं होता। एक अगुआ के तौर पर झैंग शिन का बर्ताव देखें, तो उसने कलीसिया के कार्य को बिल्कुल बनाए नहीं रखा, अपनी सत्ता का इस्तेमाल अपने अनुयायियों को बढ़ाने और विरोधियों को हटाने के लिए किया ताकि कलीसिया पर काबू कर सके। शाओ लियू एक बुरी इंसान थी, उसे निष्कासित करना था, लेकिन चूंकि उसने झैंग शिन का बचाव किया, उसने उसकी तरक्की की, अपना अपराध-बोध दूर करने के लिए बहाने बनाए। फैन्ग लिंग में न्याय की भावना थी, और जब उसने झैंग शिन की समस्याएँ बताईं, तो झैंग शिन ने उससे बैर रखा। फैन्ग लिंग के बर्खास्त होने में झैंग शिन ने बदले का एक मौका देखा, और उसे कलीसिया से निकाल देने की हरसंभव कोशिश की। जब दूसरी बहनों ने फैन्ग लिंग की निंदा का विरोध किया, तो उसने उन्हें भी दबाया और दंडित किया। झैंग शिन डरावनी और बुरी थी, जो उसकी नहीं सुनते थे, उसके रुतबे के लिए खतरा थे, उन्हें दंडित करती थी, कलीसिया में उपद्रव मचाने वाली अत्याचारी थी, जिसे जरा भी पछतावा नहीं था। वह एक सच्ची मसीह-विरोधी थी। झैंग शिन में यह पहचानने के बाद, हमने रिपोर्ट लेटर सौंप दिया।

झैंग शिन को हमसे बदला लेने में ज्यादा वक्त नहीं लगा। उसने यह बहाना बनाकर मुझे सभाओं में आने से रोक दिया कि मैं सुरक्षा के लिए जोखिम हूँ। चूँकि बहनें ली शिंरूई और युआन सियु ने भी झैंग शिन की असलियत पहचान ली थी, तो उसने उन दोनों का भी सभा में आना बंद करवा दिया। इसलिए हमने साथ मिलकर संगति करने का फैसला किया। इसके कुछ समय बाद, झैंग शिन ने मुझे और शिंरूई को अगुआई के लिए लड़ने, कलीसिया में उपद्रव मचाने और बुरे लोग होने के आरोप में फँसा दिया और भाई-बहनों से हमें ठुकराने को कहा। कुछ ने बिना कुछ समझे झैंग शिन की बातें मान लीं और मुझे रास्ते में देखकर निष्ठुरता से आँखें फेरने लगे। इस पर, मेरा दिल दुखता, और लगता मेरे साथ गलत हो रहा था। सत्य पर अमल करने के बाद भी, हमें दबाया और दंडित क्यों किया जा रहा था, इन बुरी ताकतों द्वारा फँसाया क्यों जा रहा था? दुष्कर्मों के बावजूद झैंग शिन कलीसिया में अब भी क्यों फल-फूल रही थी? हमारे भाई-बहनों ने हमें गलत समझकर क्यों ठुकरा दिया था? मैं अत्यधिक पीड़ा में थी, पता नहीं भविष्य में अपनी राह कैसे चलूँगी, मैं निराशा में फंस गई थी। सभाओं में, जब बहनें झैंग शिन का बर्ताव समझ लेतीं, तब भी मैं कुछ नहीं बोलना चाहती थी। मैं सोचती, “मैंने झैंग शिन को उजागर किया, मुझे न केवल दबा दिया गया, बल्कि भाई-बहनों ने भी मुझे गलत समझा कि मैं अगुआ बनने के लिए लड़ रही थी। अब मुझे दबाकर अलग कर दिया गया है। मेरे लिए कौन आवाज उठाएगा? जाने दो, कलीसिया के मामलों से मेरा कोई लेना-देना नहीं।” मैं बहुत कमजोर महसूस कर रही थी, गहरे आध्यात्मिक अँधेरे में थी। अपने कष्ट में, आँखों में आंसू लिए मैंने घुटने टेककर परमेश्वर से विनती की और उससे बार-बार कहा, “हे परमेश्वर! ये सब अनुभव कर मैं बहुत कष्ट में हूँ। कलीसिया के हितों की रक्षा और सत्य पर अमल करने पर मुझे क्यों दबाया और ठुकराया जा रहा है? हे परमेश्वर, मुझे रास्ता दिखाओ, अपने इरादे समझने में मेरी मदद करो।”

बाद में, मैंने परमेश्वर के वचन में पढ़ा : “जीवन की वास्तविक समस्याओं का सामना करते समय, तुम्हें किस प्रकार परमेश्वर के अधिकार और उसकी संप्रभुता को जानना और समझना चाहिए? जब तुम्हारे सामने ये समस्याएँ आती हैं और तुम्हें पता नहीं होता कि किस प्रकार इन समस्याओं को समझें, सँभालें और अनुभव करें, तो तुम्हें समर्पण करने की नीयत, समर्पण करने की तुम्हारी इच्छा, और परमेश्वर की संप्रभुता और उसकी व्यवस्थाओं के प्रति समर्पण करने की तुम्हारी सच्चाई को दर्शाने के लिए तुम्हें किस प्रकार का दृष्टिकोण अपनाना चाहिए? पहले तुम्हें प्रतीक्षा करना सीखना होगा; फिर तुम्हें खोजना सीखना होगा; फिर तुम्हें समर्पण करना सीखना होगा। ‘प्रतीक्षा’ का अर्थ है परमेश्वर के समय की प्रतीक्षा करना, उन लोगों, घटनाओं एवं चीज़ों की प्रतीक्षा करना जो उसने तुम्हारे लिए व्यवस्थित की हैं, और इसकी प्रतीक्षा करना कि उसके इरादे धीरे-धीरे तुम्हारे सामने प्रकट किए जाएँ। ‘खोजने’ का अर्थ है परमेश्वर द्वारा निर्धारित लोगों, घटनाओं और चीज़ों के माध्यम से, तुम्हारे लिए परमेश्वर के जो विचारशील इरादे हैं उनका अवलोकन करना और उन्हें समझना, उनके माध्यम से सत्य को समझना, जो मनुष्यों को अवश्य पूरा करना चाहिए, उसे समझना और उन सच्चे मार्गों को समझना जिनका उन्हें पालन अवश्य करना चाहिए, यह समझना कि परमेश्वर मनुष्यों में किन परिणामों को प्राप्त करने का अभिप्राय रखता है और उनमें किन उपलब्धियों को पाना चाहता है। निस्सन्देह, ‘समर्पण करने’, का अर्थ उन लोगों, घटनाओं, और चीज़ों को स्वीकार करना है जो परमेश्वर ने आयोजित की हैं, उसकी संप्रभुता को स्वीकार करना और उसके माध्यम से यह जान लेना है कि किस प्रकार सृजनकर्ता मनुष्य के भाग्य पर नियंत्रण करता है, वह किस प्रकार अपना जीवन मनुष्य को प्रदान करता है, वह किस प्रकार मनुष्यों के भीतर सत्य गढ़ता है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। परमेश्वर के वचन पर मनन कर मुझे एकाएक समझ आया कि जब ऐसा कुछ होता है जिसे मैं नहीं समझ पाती, तो मुझमें समर्पण का रवैया होना चाहिए। परमेश्वर के इरादे खोजने चाहिए, उसके समय के अनुसार चीजें होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। मुझे एहसास हुआ कि रिपोर्ट-लेटर देने के बाद, उससे निपटने के लिए उच्च अगुआओं की एक प्रक्रिया होती है। उनके निपटान करने से पहले, झैंग शिन दुष्कर्म करती रहेगी, विरोधियों पर हमले कर उन्हें अलग करेगी, यह उसकी दुष्ट प्रकृति थी जो उजागर हो रही थी। इस दौरान, हमें धैर्य के साथ प्रतीक्षा करनी होगी। प्रक्रिया का यह एक जरूरी हिस्सा था। लेकिन मेरा हृदय समर्पित होने और प्रतीक्षा करने वाला नहीं था, इस माहौल में मैं सबक नहीं सीखना चाहती थी। यह देखकर कि झैंग शिन का निपटान तो हुआ नहीं, बल्कि मुझे ही निंदित किया और ठुकराया गया, तो मैंने परमेश्वर के खिलाफ शिकायत की और उसे गलत समझा, उसकी धार्मिकता को नकारा और उससे मुझे निराशा भी हुई। मैं बहुत नासमझ थी!

फिर, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उसके धार्मिक स्वभाव को समझने के लिए मार्गदर्शन माँगा। फिर मैंने परमेश्वर के वचन का यह अंश पढ़ा : “लोग परमेश्वर के धार्मिक स्‍वभाव को कैसे जानते और समझते हैं? धार्मिक व्‍यक्ति उसके आशीष प्राप्‍त करते हैं और दुष्ट उसके द्वारा शापित होते हैं। यही परमेश्वर की धार्मिकता है। परमेश्वर अच्छाई को पुरस्‍कृत और बुराई को दण्डित करता है, और वह प्रत्‍येक मनुष्‍य के कर्मों के अनुसार उसका फल देता है। यह सही है, लेकिन वर्तमान में कुछ घटनाएँ ऐसी हैं जो मनुष्य की धारणाओं के अनुरूप नहीं हैं, जैसे कि कुछ लोग परमेश्वर पर विश्वास और उसकी आराधना करते हैं, वे उसके द्वारा मारे या शापित किए जाते हैं, या जिन्हें परमेश्वर ने न तो कभी आशीष दी और न ही उन पर कोई ध्यान दिया; वे चाहे उसकी जितनी भी आराधना करें, वह उन्हें अनदेखा करता है। कुछ ऐसे कुकर्मी लोग भी हैं जिन्हें परमेश्वर न तो आशीष देता है, न ही दंड देता है, तब भी वे समृद्ध हैं और उनकी कई संततियाँ हैं, और उनके लिए सब अच्छा ही होता है; वे हर चीज में सफल होते हैं। क्‍या यही परमेश्वर की धार्मिकता है? कुछ लोग कहते हैं, ‘हम परमेश्वर की आराधना करते हैं, फिर भी हमें उससे आशीष प्राप्त नहीं हुए, जबकि परमेश्वर की आराधना न करने वाले, यहाँ तक कि उसका विरोध करने वाले कुकर्मी लोग भी हमसे बेहतर और अधिक समृद्ध जीवन जी रहे हैं। परमेश्वर धार्मिक नहीं है!’ यह तुम लोगों को क्‍या दर्शाता है? मैंने अभी तुम्‍हें दो उदाहरण दिए। इनमें से कौन-सा परमेश्वर की धार्मिकता की बात करता है? कुछ लोग कहते हैं, ‘वे दोनों परमेश्वर की धार्मिकता को सामने लाते हैं!’ वे यह क्‍यों कहते हैं? परमेश्वर के कार्यों के सिद्धांत हैं—बस लोग उन्हें स्पष्ट रूप से देख नहीं पाते, और उन्हें स्पष्ट रूप से न देख पाने के कारण वे यह नहीं कह सकते कि परमेश्वर धार्मिक नहीं है। मनुष्य केवल वही देख सकता है जो सतह पर होता है; वे चीजों को उनके सही रूप में नहीं देख पाते। इसलिए, परमेश्वर जो करता है वह धार्मिक होता है, चाहे वह मनुष्य की धारणाओं और कल्पनाओं के कितना भी कम अनुरूप क्यों न हो। ऐसे बहुत-से लोग हैं, जो लगातार शिकायत करते रहते हैं कि परमेश्वर धार्मिक नहीं है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि वे स्थिति की असलियत नहीं समझते। चीजों को हमेशा अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आलोक में देखने पर उनके लिए गलतियाँ करना आसान होता है। लोगों का ज्ञान उनके विचारों और दृष्टिकोणों में, लेनदेन करने के उनके विचारों के भीतर, या अच्छे और बुरे, सही और गलत या तर्क के संबंध में उनके परिप्रेक्ष्यों के भीतर मौजूद होता है। जब कोई चीजों को ऐसे परिप्रेक्ष्यों से देखता है, तो उसके लिए परमेश्वर को गलत समझना और धारणाओं को जन्म देना आसान होता है, और वह व्यक्ति परमेश्वर का विरोध और उसके बारे में शिकायत करेगा(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। “तुम लोग क्‍या कहोगे—परमेश्वर द्वारा शैतान का विनाश क्‍या उसकी धार्मिकता की अभिव्‍यक्ति है? (हाँ।) अगर उसने शैतान को बने रहने दिया होता, तब तुम क्‍या कहते? तुम हाँ कहने का दुस्‍साहस तो नहीं करते? परमेश्वर का सार धार्मिकता है। हालाँकि वह जो करता है उसे बूझना आसान नहीं है, तब भी वह जो कुछ भी करता है वह सब धार्मिक है; बात सिर्फ इतनी है कि लोग समझते नहीं हैं। जब परमेश्वर ने पतरस को शैतान के सुपुर्द कर दिया था, तब पतरस की प्रतिक्रिया क्‍या थी? ‘तुम जो भी करते हो उसकी थाह तो मनुष्‍य नहीं पा सकता, लेकिन तुम जो भी करते हो उस सब में तुम्‍हारी सदिच्छा समाई है; उस सब में धार्मिकता है। यह कैसे सम्‍भव है कि मैं तुम्‍हारी बुद्धि और कर्मों की सराहना न करूँ?’ अब तुम्हें यह देखना चाहिए कि मनुष्य के उद्धार के समय परमेश्वर द्वारा शैतान को नष्ट न किए जाने का कारण यह है कि मनुष्य स्पष्ट रूप से देख सकें कि शैतान ने उन्हें कैसे और किस हद तक भ्रष्ट किया है, और परमेश्वर कैसे उन्हें शुद्ध करके बचाता है। अंततः, जब लोग सत्य समझ लेंगे और शैतान का घिनौना चेहरा स्पष्ट रूप से देख लेंगे, और शैतान द्वारा उन्हें भ्रष्ट किए जाने का राक्षसी पाप देख लेंगे, तो परमेश्वर उन्हें अपनी धार्मिकता दिखाते हुए शैतान को नष्ट कर देगा। जब परमेश्वर शैतान को नष्ट करेगा, वह समय परमेश्वर के स्वभाव और बुद्धि से भरा होगा। वह सब जो परमेश्वर करता है धार्मिक है। भले ही लोग परमेश्वर की धार्मिकता को समझ न पाएँ, तब भी उन्हें मनमाने ढंग से आलोचना नहीं करनी चाहिए। अगर मनुष्यों को उसका कोई कृत्‍य अतर्कसंगत प्रतीत होता है, या उसके बारे में उनकी कोई धारणाएँ हैं, और उसकी वजह से वे कहते हैं कि वह धार्मिक नहीं है, तो वे सर्वाधिक अतर्कसंगत हो रहे हैं। तुम देखो कि पतरस ने पाया कि कुछ चीजें अबूझ थीं, लेकिन उसे पक्का विश्‍वास था कि परमेश्वर की बुद्धिमता विद्यमान थी और उन चीजों में उसकी इच्छा थी। मनुष्‍य हर चीज की थाह नहीं पा सकते; इतनी सारी चीजें हैं जिन्‍हें वे समझ नहीं सकते(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर के वचन पर मनन करने से मुझे एहसास हुआ कि मैंने यह धारणा बना रखी थी कि धार्मिकता का अर्थ निष्पक्षता और औचित्य होता है। एक बुरी इंसान और मसीह-विरोधी ने कलीसिया कार्य में गड़बड़ी पैदा की और हमने उसे उजागर कर उसकी रिपोर्ट की, कलीसिया के हितों की सुरक्षा की, इसलिए परमेश्वर को हमारी निगरानी और रक्षा करनी चाहिए, हमारा दमन नहीं होने देना चाहिए, बुरी इंसान और मसीह-विरोधी को फौरन निष्कासित किया जाना चाहिए। मुझे लगा, यही परमेश्वर की धार्मिकता है। हमारे रिपोर्ट-लेटर लिखने के बाद, जब मैंने देखा कि मसीह-विरोधी और बुरी इंसान का निपटान नहीं हुआ, वे कलीसिया में ऊँचे पदों पर बने रहे, और वे हमें अलग कर हमारी निंदा करते रहे, तो मुझे परमेश्वर की धार्मिकता पर शक होने लगा, मैंने अनुचित ढंग से परमेश्वर की धार्मिकता पर सवाल किए। मैं बहुत घमंडी थी! मैंने सोचा कि जब पतरस की परीक्षा ली गई, वह दर्दनाक शोधन से गुजरा। परमेश्वर के कार्य को नहीं समझ पाया, पर उसे यकीन था कि परमेश्वर कुछ भी करे, वह धार्मिक ही था, और इसमें परमेश्वर की बुद्धिमत्ता थी। इसी वजह से वह परमेश्वर को समर्पित हो पाया, अंत में, उसे परमेश्वर से अगाध प्रेम था, वह मृत्यु तक उसके प्रति समर्पित रहा और सुंदर गवाही दी। लेकिन मैं सत्य नहीं समझती थी, मैंने लेन-देन के नजरिए और जो कुछ मेरे सामने था, बस उस आधार पर, परमेश्वर की धार्मिकता मापी। जब परमेश्वर ने वह किया जो मेरे धारणाओं के अनुरूप था, जिससे मुझे लाभ हुआ, तो मैंने परमेश्वर को धार्मिक माना, उसकी प्रशंसा की। जब एक मसीह-विरोधी ने मेरा दमन किया, मेरा भविष्य और भाग्य इससे जुड़ गए, तो मैंने परमेश्वर में आस्था खो दी, इस पर भी शक किया कि परमेश्वर धार्मिक है, यह नकार दिया कि कलीसिया में सत्य और धार्मिकता का राज्य है। मैंने परमेश्वर की धार्मिकता का आकलन सिर्फ इस पर किया कि क्या उसके क्रियाकलापों से मुझे लाभ होता है। यह बिल्कुल बेतुका था। परमेश्वर सृजनकर्ता है, उसका सार धार्मिकता है, वह बुराई से घृणा करता है, यह उसके सार से तय होता है। हालाँकि कलीसिया ने मसीह-विरोधी और बुरी इंसान को फिलहाल नहीं निकाला था, पर इसका अर्थ यह नहीं कि परमेश्वर को उनके कर्मों से घृणा नहीं थी, कि वह बुराई से घृणा नहीं करता, और कलीसिया में सत्य का राज्य नहीं था। इसमें परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और अच्छे इरादे थे, बस मैं ही इसे समझ नहीं पाई थी। मुझे समझदार होना होगा, सृजित प्राणी का स्थान लेकर परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं को समर्पित होना होगा, खोजकर और परमेश्वर से प्रार्थना कर उसकी प्रबुद्धता और मार्गदर्शन की प्रतीक्षा करनी होगी। सब समझने पर, मेरा दिल उजला हो गया, परमेश्वर के बारे में गलतफहमी नहीं रही। मैं यह भी समझी कि कलीसिया के कुछ भाई-बहन अब भी झैंग शिन को असल में नहीं पहचान पाए थे। इन चीजों के जरिये, वे झैंग शिन के सार को धीरे-धीरे समझ जाएंगे। उसे ठुकराने से पहले हर किसी को उसकी असलियत पहचाननी थी। इससे हमारा विवेक के विकास में सच में मदद मिलेगी। यह समझने के बाद, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि मैं उसके आयोजनों और व्यवस्थाओं को समर्पित होना और इस माहौल में सबक सीखना चाहती हूँ।

बाद में, परमेश्वर के वचन में मैंने पढ़ा : “अगर तुम बचाए जाना चाहते हो, तो तुम्हें न केवल बड़े लाल अजगर की बाधा पार करनी होगी, और न केवल बड़े लाल अजगर को पहचानने, उसके भयानक चेहरे की असलियत देखने और इसके खिलाफ पूरी तरह से विद्रोह करने में सक्षम होना होगा—बल्कि मसीह-विरोधियों की बाधा भी पार करनी होगी। कलीसिया में मसीह-विरोधी न केवल परमेश्वर का शत्रु होता है, बल्कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों का भी शत्रु होता है। अगर तुम मसीह-विरोधी को नहीं पहचान सकते, तो तुम्हारे गुमराह होने और उनकी बातों में आ जाने, मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलने, और परमेश्वर द्वारा शापित और दंडित किए जाने की संभावना है। अगर ऐसा होता है, तो परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास पूरी तरह से विफल हो गया है। उद्धार प्रदान किए जाने के लिए लोगों में क्या होना चाहिए? पहले, उन्हें कई सत्य समझने चाहिए, और मसीह-विरोधी का सार, स्वभाव और मार्ग पहचानने में सक्षम होना चाहिए। परमेश्वर में विश्वास करते हुए लोगों की आराधना या अनुसरण न करना सुनिश्चित करने का यह एकमात्र तरीका है, और अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करने का भी यही एकमात्र तरीका है। मसीह-विरोधी की पहचान करने में सक्षम लोग ही वास्तव में परमेश्वर में विश्वास कर सकते हैं, उसका अनुसरण कर सकते हैं और उसकी गवाही दे सकते हैं। तब कुछ लोग कहेंगे, ‘अगर मेरे पास इसके लिए फिलहाल सत्य नहीं है तो मैं क्या करूँ?’ तुम्हें खुद को जल्दी से जल्दी सत्य से सुसज्जित करना चाहिए; तुम्हें लोगों और चीजों को समझना सीखना चाहिए। मसीह-विरोधी की पहचान करना कोई आसान बात नहीं है, इसके लिए उनका सार स्पष्ट रूप से देखने और उनके हर काम के पीछे की साजिशें, चालें और इरादे देख पाने की क्षमता होनी आवश्यक है। इस तरह तुम उनके द्वारा गुमराह नहीं होगे या उनके काबू में नहीं आओगे, और तुम अडिग होकर, सुरक्षित रूप से सत्य का अनुसरण कर सकते हो, और सत्य का अनुसरण करने और उद्धार प्राप्त करने के मार्ग पर दृढ़ रह सकते हो। अगर तुम मसीह-विरोधी की बाधा को पार नहीं कर सकते, तो यह कहा जा सकता है कि तुम एक बड़े ख़तरे में हो, और तुम्हें मसीह-विरोधी द्वारा गुमराह करके अपने कब्जे में किया जा सकता है और तुम्हें शैतान के प्रभाव में जीवन व्यतीत करना पड़ सकता है। ... इसलिए, अगर तुम उस जगह पहुँचना चाहते हो जहाँ पर तुम्हें उद्धार प्राप्त हो सके, तो पहली परीक्षा जो तुम्हें पास करनी होगी वह है शैतान की पहचान करने में सक्षम होना, और तुम्हारे अंदर शैतान के विरुद्ध खड़ा होने, उसे बेनकाब करने और उसे छोड़ देने का साहस भी होना चाहिए। फिर, शैतान कहाँ है? शैतान तुम्हारे बाजू में और तुम्हारे चारों तरफ़ है; हो सकता है कि वह तुम्हारे हृदय के भीतर भी रह रहा हो। अगर तुम शैतान के स्वभाव के अधीन रह रहे हो, तो यह कहा जा सकता है कि तुम शैतान के हो। तुम आध्यात्मिक क्षेत्र के शैतान और दुष्ट आत्माओं को देख या छू नहीं सकते, लेकिन व्यावहारिक जीवन में मौजूद शैतान और दुष्ट आत्माएँ हर जगह हैं। जो भी व्यक्ति सत्य से विमुख है, वह बुरा है, और जो भी अगुआ या कार्यकर्ता सत्य को स्वीकार नहीं करता, वह मसीह-विरोधी या नकली अगुआ है। क्या ऐसे लोग शैतान और जीवित दानव नहीं हैं? हो सकता है कि ये लोग वही हों, जिनकी तुम आराधना करते हो और जिनका सम्मान करते हो; ये वही लोग हो सकते हैं जो तुम्हारी अगुआई कर रहे हैं या वे लोग जिन्हें तुमने लंबे समय से अपने हृदय में सराहा है, जिन पर भरोसा किया है, जिन पर निर्भर रहे हो और जिनकी आशा की है। जबकि वास्तव में, वे तुम्हारे मार्ग में खड़ी बाधाएँ हैं और तुम्हें सत्य का अनुसरण करने और उद्धार पाने से रोक रहे हैं; वे नकली अगुआ और मसीह-विरोधी हैं। वे तुम्हारे जीवन और तुम्हारे मार्ग पर नियंत्रण कर सकते हैं, और वे तुम्हारे उद्धार के अवसर को बर्बाद कर सकते हैं। अगर तुम उन्हें पहचानने और उनकी वास्तविकता को समझने में विफल रहते हो, तो किसी भी क्षण तुम गुमराह हो सकते हो या उनके द्वारा पकड़े और दूर ले जाए जा सकते हो। इस प्रकार, तुम बहुत बड़े ख़तरे में हो। अगर तुम इस खतरे से खुद को मुक्त नहीं कर सकते, तो तुम शैतान के बलि के बकरे हो। वैसे भी, जो लोग गुमराह और नियंत्रित होते हैं, और मसीह-विरोधी के अनुयायी बन जाते हैं, वे कभी उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते। चूँकि वे सत्य से प्रेम नहीं करते या उसका अनुसरण नहीं करते, इसलिए इसका अपरिहार्य परिणाम यह होगा कि वे गुमराह हो जाएंगे और मसीह-विरोधी का अनुसरण करेंगे(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद तीन : सत्य का अनुसरण करने वालों को वे निकाल देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं)। परमेश्वर के वचन पर मनन कर, मैं उसका इरादा समझ सकी। मसीह-विरोधियों और बुरे लोगों को कलीसिया में प्रकट होने देने के पीछे उसकी बुद्धिमत्ता है। परमेश्वर उनकी गड़बड़ी और भटकाव कोएक औजार के रूप में इस्तेमाल करके लोगों को समझ-बूझ प्रदान करता है, ताकि वे शैतान के काले प्रभाव से आजाद होकर उद्धार पा सकें। मैंने सोचा कि कैसे झैंग शिन ने मुझे दबाकर दंडित किया, मेरे भाई-बहनों ने मुझे गलत समझकर ठुकरा दिया। इससे मुझे थोड़ा कष्ट जरूर हुआ था, मगर इस प्रक्रिया में, मैंने सच में यह मिसाल देखी कि मसीह-विरोधी किस तरह लोगों से छल कर उन्हें हानि पहुँचाते हैं, मैंने ज्ञान और विवेक हासिल किया, साफ देखा कि झैंग शिन मसीह-विरोधी थी, जिसका सार सत्य से घृणा करने और परमेश्वर से शत्रुता रखने वाला था। अब मैं उससे लाचार और नियंत्रित नहीं थी, मैंने उसकी नाकामियों से सबक सीखा और गलत रास्ता पकड़ने से बच सकी। क्या ये वास्तविक लाभ नहीं थे? क्या यह सब परमेश्वर का प्रेम और उद्धार नहीं था? इस बारे में जितना सोचा, उतना ही एहसास हुआ कि परमेश्वर इतना बुद्धिमान और धार्मिक है, उतना ही पछतावा हुआ कि मैं उसके धार्मिक स्वभाव को नहीं जानती थी। जब मेरा दमन किया गया, तो मैंने उस सारे अन्याय का दोष परमेश्वर पर डाल दिया, उसे गलत समझकर उसके बारे में शिकायत की। मैं बहुत विद्रोही थी। इसका एहसास होने पर, मैंने खुद को परमेश्वर का ऋणी पाया, और प्रायश्चित्त करना चाहा। झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को उजागर करना एक अच्छा और धार्मिक कर्म है, यह मेरी जिम्मेदारी और दायित्व है। अगर बुरे लोग उजागर कर निष्कासित कर दिए जाएँ, तो मेरे भाई-बहनों का कलीसियाई जीवन अच्छा हो जाएगा। भले ही भाई-बहन मुझे गलत समझें, मसीह-विरोधी मुझे निकाल दें, यह अफसोस की बात नहीं। परमेश्वर के वचन के एक और अंश याद आया : “बुरा इंसान हमेशा बुरा ही बना रहेगा, वह कभी दण्ड के दिन से बच नहीं सकता। अच्छे लोग हमेशा अच्छे बने रहेंगे और उन्हें तब प्रकट किया जाएगा जब परमेश्वर का कार्य समाप्त हो जाएगा। किसी भी बुरे इंसान को धार्मिक नहीं समझा जाएगा, न ही किसी धार्मिक को बुरा समझा जाएगा। क्या मैं किसी इंसान पर गलत दोषारोपण होने दूँगा?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सच्चे हृदय से परमेश्वर के प्रति समर्पण करते हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर द्वारा हासिल किए जाएँगे)। परमेश्वर का वचन बिल्कुल स्पष्ट है। परमेश्वर धार्मिक है, उससे सच्चा प्रेम करने वालों को वह दया और उद्धार देता है, बुरे लोगों और मसीह-विरोधियों को शापित और दंडित करता है। यह परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव से तय होता है। मैं बचाई जाऊँगी या नहीं, यह परमेश्वर के हाथ में है, मसीह-विरोधियों के नहीं। अभी हमारी कलीसिया मसीह-विरोधियों के काबू में थी, हमारा दमन हो रहा था, पर यह कुछ समय के लिए था। परमेश्वर सब-कुछ देखता है, पवित्र आत्मा सबका खुलासा करता है, देर-सवेर, मसीह-विरोधियों को उजागर करके हटा दिया जाएगा। उन दिनों मैं अक्सर परमेश्वर के वचन पर मनन करती थी, धीरे-धीरे, मुझे राहत मिली, और परमेश्वर के कार्य में मेरा विश्वास बढ़ गया।

एक दिन, उच्च-स्तर के अगुआओं ने हमारी कलीसिया की गड़बड़ी के हल के लिए दो बहनों को भेजा। हम बहुत उत्साहित थे, हमने बार-बार परमेश्वर का धन्यवाद किया। झैंग शिन के बुरे बर्ताव की हमारी रिपोर्ट के बाद, अप्रत्याशित रूप से, उसे सिर्फ एक झूठी अगुआ होने के लिए बर्खास्त किया गया। हम सबका कलीसियाई जीवन बहाल हो जाने पर भी मेरी बेचैनी बनी हुई थी। झैंग शिन प्रकृति से दुष्ट थी। वह अपने रुतबे के लिए सीधे-सीधे लोगों को दंडित करती और दबाती थी, तो बुरे लोगों को बचाती थी। वह सत्य भी बिल्कुल नहीं स्वीकारती थी, प्रायश्चित्त करने से मना करती थी। वह झूठी अगुआ नहीं, वास्तव में मसीह-विरोधी थी। मगर फिर मैंने सोचा, “अगर मैंने यह मामला उठाया, तो क्या भाई-बहन कहेंगे कि मैं उसके पीछे ही पड़ गई हूँ? जाने दो, मेरा इससे लेना-देना नहीं है। वैसे भी, वह अब मेरा कुछ नहीं बिगाड़ेगी।” यह सोचकर मैंने अब इन बातों का जिक्र न करने का फैसला किया। अपने धार्मिक कार्यों के दौरान, मैंने परमेश्वर के वचन में पढ़ा : “मसीह-विरोधी कभी सत्य नहीं स्वीकारते; वे अंत तक अपने गलत कामों में लगे रहते हैं, कभी अपना रास्ता नहीं बदलते, न ही कभी पश्चात्ताप करते हैं(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, प्रकरण छह : मसीह-विरोधियों के चरित्र और उनके स्वभाव सार का सारांश (भाग तीन))। मुझे मालूम था कि झैंग शिन में मसीह-विरोधी का सार था, अगर उसे निष्कासित नहीं किया गया, तो वह कलीसियाई जीवन बाधित करने का कोई मौका नहीं छोड़ेगी, और गड़बड़ करेगी, तब मेरे भाई-बहन उसके कारण फिर से कष्ट झेलेंगे। मुझे खड़े होकर झैंग शिन को उजागर करना होगा। मैं खुद को बचाती नहीं रह सकती। परमेश्वर के वचन में मैंने पढ़ा : “एक बार जब सत्य तुम्हारा जीवन बन जाता है, तो जब तुम किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हो जो ईशनिंदा करता है, परमेश्वर का भय नहीं मानता, कर्तव्य निभाते समय अनमना रहता है या कलीसिया के काम में गड़बड़ी कर बाधा डालता है, तो तुम सत्य-सिद्धांतों के अनुसार प्रतिक्रिया दोगे, तुम आवश्यकतानुसार उसे पहचानकर उजागर कर पाओगे। अगर सत्य तुम्हारा जीवन नहीं बना है और तुम अभी भी अपने शैतानी स्वभाव के भीतर रहते हो, तो जब तुम्हें उन बुरे लोगों और शैतानों का पता चलता है जो कलीसिया के कार्य में व्यवधान और गड़बड़ी पैदा करते हैं, तुम उन पर ध्यान नहीं दोगे और उन्हें अनसुना कर दोगे; अपने विवेक द्वारा धिक्कारे जाए बिना, तुम उन्हें नजरअंदाज कर दोगे। तुम यह भी सोचोगे कि कलीसिया के कार्य में कोई भी बाधाएँ डाले तो इससे तुम्हारा कोई लेना-देना नहीं है। कलीसिया के काम और परमेश्वर के घर के हितों को चाहे कितना भी नुकसान पहुँचे, तुम परवाह नहीं करते, हस्तक्षेप नहीं करते, या दोषी महसूस नहीं करते—जो तुम्हें एक ऐसा व्यक्ति बनाता है जिसमें जमीर और विवेक नहीं है, एक छद्म-विश्वासी बनाता है, मजदूर बनाता है। तुम जो खाते हो वह परमेश्वर का है, तुम जो पीते हो वह परमेश्वर का है, और तुम परमेश्वर से आने वाली हर चीज का आनंद लेते हो, फिर भी तुम महसूस करते हो कि परमेश्वर के घर के हितों का नुकसान तुमसे संबंधित नहीं है—जो तुम्हें गद्दार बनाता है, जो उसी हाथ को काटता है जो उसे भोजन देता है। अगर तुम परमेश्वर के घर के हितों की रक्षा नहीं करते, तो क्या तुम इंसान भी हो? यह एक दानव है, जिसने कलीसिया में पैठ बना ली है। तुम परमेश्वर में विश्वास का दिखावा करते हो, चुने हुए होने का दिखावा करते हो, और तुम परमेश्वर के घर में मुफ्तखोरी करना चाहते हो। तुम एक इंसान का जीवन नहीं जी रहे, इंसान से ज्यादा राक्षस जैसे हो, और स्पष्ट रूप से छद्म-विश्वासियों में से एक हो। अगर तुम्हें परमेश्वर में सच्चा विश्वास है, तब यदि तुमने सत्य और जीवन नहीं भी प्राप्त किया है, तो भी तुम कम से कम परमेश्वर की ओर से बोलोगे और कार्य करोगे; कम से कम, जब परमेश्वर के घर के हितों का नुकसान किया जा रहा हो, तो तुम उस समय खड़े होकर तमाशा नहीं देखोगे। यदि तुम अनदेखी करना चाहोगे, तो तुम्हारा मन कचोटेगा, तुम असहज हो जाओगे और मन ही मन सोचोगे, ‘मैं चुपचाप बैठकर तमाशा नहीं देख सकता, मुझे दृढ़ रहकर कुछ कहना होगा, मुझे जिम्मेदारी लेनी होगी, इस बुरे बर्ताव को उजागर करना होगा, इसे रोकना होगा, ताकि परमेश्वर के घर के हितों को नुकसान न पहुँचे और कलीसियाई जीवन अस्त-व्यस्त न हो।’ यदि सत्य तुम्हारा जीवन बन चुका है, तो न केवल तुममें यह साहस और संकल्प होगा, और तुम इस मामले को पूरी तरह से समझने में सक्षम होगे, बल्कि तुम परमेश्वर के कार्य और उसके घर के हितों के लिए भी उस ज़िम्मेदारी को पूरा करोगे जो तुम्हें उठानी चाहिए, और उससे तुम्हारे कर्तव्य की पूर्ति हो जाएगी(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन)। परमेश्वर का वचन पढ़कर मैं समझी कि उसके प्रबोधन और मार्गदर्शन से ही मैं झैंग शिन और शाओ लियू के दुष्कर्मों को थोड़ा समझ पाई थी, अगर मैंने उन्हें उजागर नहीं किया, तो इसका अर्थ था कि मुझमें जमीर नहीं था, मैं कलीसिया के कार्य की रक्षा में नाकाम हो जाऊँगी। मैं नजरें फेरकर स्वार्थी और घिनौनी नहीं हो सकती। मैंने राज्य के युग के प्रशासनिक आदेश में लिखी एक चीज के बारे में सोचा : “वह सब कुछ करो जो परमेश्वर के कार्य के लिए लाभदायक है और ऐसा कुछ भी न करो जो परमेश्वर के कार्य के हितों के लिए हानिकर हो। परमेश्वर के नाम, परमेश्वर की गवाही और परमेश्वर के कार्य की रक्षा करो(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दस प्रशासनिक आदेश जो राज्य के युग में परमेश्वर के चुने लोगों द्वारा पालन किए जाने चाहिए)। मैं परमेश्वर की अपेक्षाएँ समझ गई। मैं कलीसिया की सदस्य थी, इसलिए कलीसिया के कार्य की बात हो तो, उसकी रक्षा करना मेरी जिम्मेदारी थी। बाद में, उच्च-स्तर के अगुआ जायजा लेने आए, मैंने झैंग शिन और शाओ लियू के दुष्टतापूर्ण व्यवहार की रिपोर्ट की, उच्च-स्तर के अगुआओं ने इसकी पुष्टि के लिए फिर से जाँच शुरू कर दी। एक सभा में, मसीह-विरोधियों को पहचानने के सत्य पर संगति द्वारा, सभी भाई-बहनों ने विवेक पा लिया। बारी-बारी से उन्होंने झैंग शिन और शाओ लियू के दुष्कर्मों को उजागर कर उनकी रिपोर्ट की। अंत में यह तय हो गया कि झैंग शिन सच में मसीह-विरोधी थी, और उसे कलीसिया से निकाल दिया गया। शाओ लियू ने अपने दुष्कर्मों पर प्रायश्चित करने से इनकार कर दिया, उसे मसीह-विरोधी का साथी होने के लिए निकाल दिया गया। झैंग शिन के हाथों गुमराह हुए कुछ भाई-बहनों को भी होश आया, उन सबने उसे ठुकरा कर उसका साथ देना बंदकर दिया। और, कलीसियाई जीवन फिर से सामान्य हो गया।

इस मसीह-विरोधी की रिपोर्ट करने में बहुत-से घुमावदार मोड़ आए, उसके दमन के जरिए, मैं मसीह-विरोधियों को समझने में सक्षम हुई, थोड़ी अंतर्दृष्टि का विकास हुआ, परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव का वास्तविक अनुभव और ज्ञान पाया, परमेश्वर में मेरी आस्था और अधिक बढ़ गई। सर्वशक्तिमान परमेश्वर को अनेकानेक धन्यवाद!

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