एक झूठे अगुआ की रिपोर्ट करने की कहानी
2010 में, मैं लगातार कलीसिया की एक अगुआ लूसिया के संपर्क में था। वह हमसे अक्सर कहती, “पिछले कुछ वर्षों में, परमेश्वर ने मुझ पर बहुत दया की है। मेरे अगुआ हमेशा मुझे उन कलीसियाओं में भेज देते हैं, जो मुश्किलों से जूझ रहे होते हैं। कभी-कभी मैं नहीं जाना चाहती, मगर जानती हूँ कि यह परमेश्वर का आदेश है, इसलिए मुझे अपने देह-सुख पर ध्यान न देकर, उसके प्रति वफादार रहना होगा। इसलिए मैं स्वीकार कर लेती हूँ। मैं जिस कलीसिया में जाती हूँ वहां जाकर दौरे करती हूँ, कुछ समारोह करती हूँ, जिससे कलीसिया का अस्तव्यस्त माहौल सामान्य हो जाता है, और कलीसिया का जीवन और सुसमाचार का कार्य दोबारा असरदार हो जाते हैं। कभी-कभार मुश्किलों से सामना होता है, तो मैं परमेश्वर से प्रार्थना करती हूँ, और वह आगे का रास्ता खोल देता है, और सब-कुछ आसान हो जाता है। मैं देखती हूँ कि परमेश्वर का कार्य कितना अद्भुत है...।” लूसिया का अनुभव सुनकर मैं उसे सराहने लगा। मुझे लगा कि वह बोझ उठाने में सक्षम है, एक काबिल अगुआ है। एक बार बैठक से पहले, मैं यूं ही बातें कर रहा था, कि लूसिया ने मेरी बात काटकर कहा, “यहाँ समय अनमोल है, इसलिए हम यूँ बैठकर बातें न करें। आइए परमेश्वर के वचनों पर संगति कर समय का सदुपयोग करें।” उसकी बात सुनकर मैंने सोचा, “इतने सालों में, मैं बहुत-से अगुआओं से मिला, लेकिन लूसिया पहली है, जो इतनी धर्मपारायण और पवित्र है, और सत्य का अनुसरण करने के प्रति समर्पित है।” मैं उसे आदर से देखकर और भी सराहने लगा। लेकिन उसके साथ लंबे समय तक बातचीत करके, मुझे एहसास हुआ कि हालांकि उसकी संगति हमेशा बहुत तर्कसंगत होती है, और बाहर से वह सत्य का अनुसरण करने वाली लगती है, मगर इस पर संगति कम करती है कि परमेश्वर के वचनों के आधार पर आत्मचिंतन करके उसने खुद को कैसे जाना, या परमेश्वर के वचनों का उसका व्यवहारिक अनुभव क्या है। उसकी ज़्यादातर संगतियां खुद को उठाने और दिखावा करने का छिपा हुआ रूप होती हैं, जिससे दूसरे समझें कि उसे कलीसिया द्वारा विकसित कर महत्वपूर्ण भूमिकाएं दी जाती हैं, और वे उसका आदर करें। लेकिन उससे भी ज़्यादा गंभीर सच्चाई यह है कि कलीसिया के हितों से जुड़े कुछ अहम मसलों में वह सत्य का अभ्यास नहीं करती थी, पूरे होशो-हवास में झूठ बोलती और धोखा देती थी, और जिम्मेदारी से बचकर निकल जाती थी। मिसाल के लिए, लूसिया के काम के प्रभारी फिन ने कलीसिया में गलत काम किए। उसने कलीसिया के पैसों का गबन कर लिया तो उसे मसीह-विरोधी कहकर निकाल दिया गया। लूसिया को फिन के दुष्कर्मों की पूरी जानकारी थी, और वह भी उन कामों में हिस्सेदार थी। लेकिन फिन के निष्कासन के बाद, लूसिया ने न तो आत्मचिंतन किया और न ही परमेश्वर के सामने प्रायश्चित किया, बल्कि उसने फिन के दुष्कर्मों में अपनी किसी भी भागीदारी को स्वीकार तकनहीं किया। उसने यूं दिखाया जैसे इस मामले में वह पूरी तरह से निर्दोष है, मानो उसे कुछ नहीं मालूम और वह इसमें शामिल न हो। उस वक्त मुझे पता चला कि लूसिया ढोंगी है। चूँकि लूसिया खुद को छिपाने और बड़ी-बड़ी बातों से धोखा देने में माहिर थी, तो कुछ भाई-बहन के मन में, जिन्हें समझ नहीं थी, उसके नाम के जिक्र भर से सराहना का भाव उभर जाता था। जब मेरे साथी भाई और मैंने लूसिया के बर्ताव और उसके कार्य और धर्मोपदेशों के नतीजे देखे, तो हमने झूठे अगुआओं को पहचानने के सिद्धांत लगाकर यह निर्धारित किया कि लूसिया एक झूठी अगुआ है, और लूसिया के बारे में इन मामलों को लेकर एक पत्र लिखकर रिपोर्ट कर दी।
पत्र भेजने के बाद, हमने प्रतीक्षा की कि हमारे ऊपर के अगुआ लूसिया के मामले को समझेंगे, लेकिन पंद्रह दिन बाद भी हमें कोई जवाब नहीं मिला। मेरे साथी भाई और मैं इस बारे में सोच रहे थे कि एक दिन लूसियाखुशी-खुशी हमारे साथ एक बैठक में आ पहुँची और बोली कि ऊपर के अगुआ उसे विकसित करना चाहते हैं। मुझे यकीन नहीं हुआ : “बर्खास्त करने के बजाय इस झूठी अगुआ को विकसित कर महत्वपूर्ण भूमिकाएँ दी जा रही हैं? सत्य सिद्धांतों को न समझ पाने और विवेक की कमी के कारण कहीं हमने उसकी गलत रिपोर्ट तो नहीं दे दी?” बाद में लूसिया दोबारा यह बताने आई कि कलीसिया नए अगुआ के लिए चुनाव की योजना बना रही है, और ज़्यादातर भाई-बहनों ने उसका सकारात्मक आकलन किया है, वे उसे चुनने की ओर झुकाव रखते हैं। यह सुनकर मैं चौंक गया। मैंने सोचा, “लूसिया कुटिल और चालाक है। वह बिल्कुल अगुआ बनने लायक नहीं है। मुझे उसकी रिपोर्ट करने के लिए एक और पत्र लिखना चाहिए।” लेकिन पत्र लिखते वक्त मैं झिझकने लगा : “अभी बहुत-से लोग लूसिया को नहीं समझे थे। वो सभी उसके बाहरी झूठे रूप से धोखा खा चुके थे। अगर मैं उसकी रिपोर्ट करने के लिए दोबारा पत्र लिखता हूँ, और हमारे ऊपरी अगुआ असली हालात नहीं समझे, तो कहीं उन्हें यह तो लगेगा कि मैं मामले को बेवजह तूल दे रहा हूँ? और अगर लूसिया को पता चल गया कि वह पत्र मैंने लिखा है, तो क्या वह मुझसे बैर नहीं रखेगी और चोरी-छिपे मुझे नुकसान नहीं पहुँचाएगी? वही हमें परमेश्वर के वचनों की किताबें, उपदेश, संगतियाँ, तमाम चीज़ें परमेश्वर के घर से जारी करती है, अगर मैंने उसे नीचा दिखाया, तो उसे मुझे किसी तरह दबाने की सक्रिय कोशिश नहीं करनी होगी, मुझे मुश्किल में डालने के लिए उसका सिर्फ मुझे नजरअंदाज करना और किताबें जारी न करना ही काफी होगा।” ये सब सोचकर मैं बहुत उलझन में पड़ गया। मैं दोबारा उसकी रिपोर्ट करूँ या फिर मामला भूल जाऊँ? अपने निजी हितों, भविष्य और भाग्य की सोचकर लगा जैसे कोई अनदेखी काली छाया मुझे बांधकर रोक रही है। मैंने थोड़ा संघर्ष किया और उसके दमन से खुद को बचाने के लिए आखिर में, मैंने समझौता करने का फैसला किया। मैंने उस पल उसकी रिपोर्ट न करने का फैसला किया। मैंने खुद को यह समझाकर सांत्वना दी, “कम-से-कम अब हम ली को जानते हैं, उससे धोखा नहीं खाएंगे, तो फिलहाल यह ठीक है। शायद किसी दिन, परमेश्वर उसे उजागर करेगा और सभी लोग लूसिया के बारे में जान जाएंगे और उसकी असलियत समझ जाएंगे। जाहिर है उसे हटा दिया जाएगा।”
महीने भर बाद हमें दो बहनों से एक पत्र मिला। उनके पत्र में लिखा था कि वे जान गई हैं कि लूसिया झूठी अगुआ है, और वे उसकी रिपोर्ट करना चाहती हैं, उन्होंने हमारी राय जाननी चाही, और पूछा कि क्या हमारी कोई सलाह है। मैंने सोचा, “पिछली बार लूसिया की रिपोर्ट करने के बाद हमें कोई जवाब नहीं मिला था। अगर हमने इन बहनों के साथ फिर से उसकी रिपोर्ट की, तो क्या हमारे ऊपरी अगुआ कहेंगे कि हमने लूसिया पर हमला करने के लिए गुट बना लिया है, और कलीसिया के कार्य में बाधा पहुंचा रहे हैं? अगर ऐसा होता है तो बहुत मुमकिन है कि लूसिया के बजाय, हम ही बर्खास्त हो जाएँ।” यह विचार मन में लिए, मेरे साथी भाई और मैंने यह जवाबी पत्र लिखा कि “आप स्वयं उसकी सूचना दे सकती हैं। हमने पहले एक बार उसकी रिपोर्ट की थी, इसलिए हम दोबारा ऐसा नहीं करेंगे।” इस तरह जवाब देने के बाद, मुझे बहुत पछतावा हुआ। मुझे एहसास हुआ कि मैं खुद को बचाने के लिए पैंतरेबाजी कर रहा हूँ। यह एक काली छाया के आगे, समझौता और समर्पण करना था। इस अपराध-बोध से खुद को बचाने और खुद को तसल्ली देने के लिए मैंने उसी तर्क का प्रयोग किया जिसका पहले किया था : “फिलहाल, बहुत-से लोग लूसिया को नहीं समझ पाए हैं। अगर हम रिपोर्ट करके उसे बर्खास्त करने की वकालत करेंगे, तो भाई-बहन ऐसा नहीं होने देंगे। वे उसे बचाने की कोशिश करेंगे। हमें भाई-बहनों में इसका विवेक पैदा होने तक इंतजार करना होगा। सही समय पर, उसे हटा ही दिया जाएगा।” हालांकि मैंने यही सोचा था, मगर जब भी मैं झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को उजागर करने के परमेश्वर के वचनों के अंश देखता, तो मेरा जमीर मुझे कोसता। मुझे साफ तौर पर एक झूठा अगुआ मिला था और मैं उसकी रिपोर्ट कर सामने नहीं ला रहा था। क्या मैं शैतान को बर्दाश्त नहीं कर रहा था क्योंकि इससे कलीसिया के कार्य में गड़बड़ी और बाधा पहुँच रही थी? हमारी मेजबानी करने वाले सभी भाई-बहन लूसिया को पसंद करते थे, उसे झूठे अगुआ के रूप में उजागर करते ही, उन्होंने उसे समझने की कोशिश नहीं की बल्कि नाराज होकर हमें दोष देने लगे, और सोचने लगे कि हम लूसिया पर हमला कर रहे हैं। मैंने देखा कि इस झूठी अगुआ ने लोगों को गहराई से धोखा दिया था। मुझे पता नहीं कि कितने भाई-बहन इस धोखे का शिकार थे, तो मुझे और भी लगा कि झूठे अगुआ परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश की राह का रोड़ा हैं। उस पल, मैं जल्द से जल्द लूसिया को पद से हटते हुए देखना चाहता था, लेकिन मुझमें फिर से पत्र लिखकर उसकी रिपोर्ट करने का साहस नहीं था। बल्कि मेजबानी कर रहे भाई-बहनों को नाराज करने से बचने के लिए मैं लूसिया के व्यवहार को फिर से उजागर नहीं कर पाया। मगर मन-ही-मन मैंने खुद की निंदा की और खुद को दोषी माना। मुझे ताज्जुब हुआ कि मैं इतना कायर और बेकार कैसे हो सकता हूँ। मैंने एक झूठे अगुआ को कलीसिया के कार्य में बाधा पहुँचाते देखकर भी उसकी रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं की थी। मैंने सच बोलने तक की हिम्मत नहीं की थी। क्या मैं सिर्फ शैतान का नौकर नहीं था? मैंने परमेश्वर के वचन याद किए : “तुम सभी कहते हो कि तुम परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील हो और कलीसिया की गवाही की रक्षा करोगे, लेकिन वास्तव में तुम में से कौन परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील रहा है? अपने आप से पूछो : क्या तुम उसके बोझ के प्रति विचारशील रहे हो? क्या तुम उसके लिए धार्मिकता का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुम मेरे लिए खड़े होकर बोल सकते हो? क्या तुम दृढ़ता से सत्य का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुममें शैतान के सभी दुष्कर्मों के विरूद्ध लड़ने का साहस है? क्या तुम अपनी भावनाओं को किनारे रखकर मेरे सत्य की खातिर शैतान का पर्दाफ़ाश कर सकोगे? क्या तुम मेरी इच्छा को स्वयं में पूरा होने दोगे? सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में क्या तुमने अपने दिल को समर्पित किया है? क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो जो मेरी इच्छा पर चलता है? स्वयं से ये सवाल पूछो और अक्सर इनके बारे में सोचो” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 13)। परमेश्वर के प्रत्येक प्रश्न ने मुझे शर्मिंदा कर दिया। आमतौर पर, मैं ज़ोरों से नारे लगाते हुए कहता था, मैं परमेश्वर की इच्छा का ध्यान रखूँगा और परमेश्वर की अपनी गवाही में मजबूत रहूँगा, अक्सर प्रार्थना करता, कहता कि मैं सत्य का अभ्यास कर परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहता हूँ। लेकिन जब कुछ हुआ और मुझे कलीसिया के हितों के लिए खड़ा होना था, उनकी रक्षा करनी थी, तो मैं अपने खोल में दुबक गया। मुझे साफ़ तौर पर पता था कि झूठे अगुआओं की तुरंत रिपोर्ट कर देनी चाहिए, लेकिन दमन और बर्खास्तगी के डर से मैंने दोबारा लूसिया की रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं की और उसे हमारे भाई-बहनों को नुकसान पहुँचाने दिया, धोखा देने दिया। इससे भी बुरा तथ्य यह था कि अपनी मेजबानी कर रहे भाई-बहनों को लूसिया से धोखा खाते देखकर भी मैंने नहीं सोचा कि झूठे अगुआ को समझने में उनकी मदद कैसे करूँ। इसके बजाय, मैंने समझौते किए। इस डर से कि लूसिया को उजागर करने से वे भाई-बहन नाराज़ हो जाएंगे और वे हमारी मेजबानी नहीं करेंगे, मैंने लूसिया की झूठी अगुआई के व्यवहार पर चुप्पी साध ली। मैं सच में स्वार्थी और नीच हो गया था। मैंने परमेश्वर द्वारा मुहैया की गई हर चीज का आनंद लिया, मेरे भाई-बहनों ने मेरी मेजबानी और देखभाल की, फिर भी मुझे परमेश्वर की इच्छा का कोई खयाल नहीं था और मैंने कलीसिया के कार्य की रक्षा नहीं की। मैं एक तरफ बना रहा और एक झूठे अगुआ को कलीसिया के भीतर सत्ता पर काबिज होने और कलीसिया के काम में बाधा डालने की अनुमति दी। मेरा ज़मीर और तर्क कहां था? मैं बिल्कुल भी परमेश्वर के सामने जीने लायक नहीं था!
इसके बाद, मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “परमेश्वर का परिवार उन लोगों को बने रहने की अनुमति नहीं देता है जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं, और न ही यह उन लोगों को बने रहने की अनुमति देता है जो जानबूझकर कलीसियाओं को ध्वस्त करते हैं। हालाँकि, अभी निष्कासन के कार्य को करने का समय नहीं है; ऐसे लोगों को सिर्फ उजागर किया जाएगा और अंत में हटा दिया जाएगा। इन लोगों पर व्यर्थ का कार्य और नहीं किया जाना है; जिनका सम्बंध शैतान से है, वे सत्य के पक्ष में खड़े नहीं रह सकते हैं, जबकि जो सत्य की खोज करते हैं, वे सत्य के पक्ष में खड़े रह सकते हैं। जो लोग सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं, वे सत्य के वचन को सुनने के अयोग्य हैं और सत्य के लिये गवाही देने के अयोग्य हैं। सत्य बस उनके कानों के लिए नहीं है; बल्कि, यह उन पर निर्देशित है जो इसका अभ्यास करते हैं। इससे पहले कि हर व्यक्ति का अंत प्रकट किया जाए, जो लोग कलीसिया को परेशान करते हैं और परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी करते हैं, अभी के लिए उन्हें सबसे पहले एक ओर छोड़ दिया जाएगा, और उनसे बाद में निपटा जाएगा। एक बार जब कार्य पूरा हो जाएगा, तो इन लोगों को एक के बाद एक करके उजागर किया जाएगा, और फिर हटा दिया जाएगा। फिलहाल, जबकि सत्य प्रदान किया जा रहा है, तो उनकी उपेक्षा की जाएगी। जब मनुष्य जाति के सामने पूर्ण सत्य प्रकट कर दिया जाता है, तो उन लोगों को हटा दिया जाना चाहिए; यही वह समय होगा जब लोगों को उनके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा। जो लोग विवेकशून्य हैं, वे अपनी तुच्छ चालाकी के कारण दुष्ट लोगों के हाथों विनाश को प्राप्त होंगे, और ऐसे लोग दुष्ट लोगों के द्वारा पथभ्रष्ट कर दिये जायेंगे तथा लौटकर आने में असमर्थ होंगे। इन लोगों के साथ इसी प्रकार पेश आना चाहिए, क्योंकि इन्हें सत्य से प्रेम नहीं है, क्योंकि ये सत्य के पक्ष में खड़े होने में अक्षम हैं, क्योंकि ये दुष्ट लोगों का अनुसरण करते हैं, ये दुष्ट लोगों के पक्ष में खड़े होते हैं, क्योंकि ये दुष्ट लोगों के साथ साँठ-गाँठ करते हैं और परमेश्वर की अवमानना करते हैं। वे बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि वे दुष्ट लोग दुष्टता विकीर्ण करते हैं, मगर वे अपना हृदय कड़ा कर लेते हैं और उनका अनुसरण करने के लिए सत्य के विपरीत चलते हैं। क्या ये लोग जो सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं लेकिन जो विनाशकारी और घृणास्पद कार्यों को करते हैं, दुष्टता नहीं कर रहे हैं? यद्यपि उनमें से कुछ ऐसे हैं जो अपने आप को सम्राटों की तरह पेश करते हैं और कुछ ऐसे हैं जो उनका अनुसरण करते हैं, किन्तु क्या परमेश्वर की अवहेलना करने की उनकी प्रकृति एक-सी नहीं है? उनके पास इस बात का दावा करने का क्या बहाना हो सकता है कि परमेश्वर उन्हें नहीं बचाता है? उनके पास इस बात का दावा करने का क्या बहाना हो सकता है कि परमेश्वर धार्मिक नहीं है? क्या यह उनकी अपनी दुष्टता नहीं है जो उनका विनाश कर रही है? क्या यह उनकी खुद की विद्रोहशीलता नहीं है जो उन्हें नरक में नहीं धकेल रही है? जो लोग सत्य का अभ्यास करते हैं, अंत में, उन्हें सत्य की वजह से बचा लिया जाएगा और सिद्ध बना दिया जाएगा। जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं, अंत में, वे सत्य की वजह से विनाश को आमंत्रण देंगे। ये वे अंत हैं जो उन लोगों की प्रतीक्षा में हैं जो सत्य का अभ्यास करते हैं और जो नहीं करते हैं” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी)। मैं समझ गया कि मैं एक ऐसा इंसान था जो परमेश्वर के वचन से प्रकाशित है और ऐसा इंसान जो सत्य का अभ्यास नहीं करता। मैं ऐसा इंसान था जिससे परमेश्वर को घृणा है। हर बात में, मैं खुद को संरक्षित करने और बचाने की कोशिश करता था। झूठे अगुआ के सामने मेरी हिम्मत नहीं हुई कि सिद्धांतों से बंधा रहूँ, उसकी रिपोर्ट करूँ और उसे उजागर करूँ। क्या मैं बस शैतान के आगे घुटने टेककर उसके साथ साँठ-गाँठ नहीं कर रहा था? ऊपर से तो, मैंने लूसिया की ओर से उसकी रक्षा नहीं की थी, लेकिन उसके झूठा अगुआ होने पर भी मैंने न रिपोर्ट की, न उसे उजागर किया था। मैंने उसे कलीसिया के भाई-बहनों को उलझाने और धोखा देने दिया, और कलीसिया के कार्य में बाधा और गड़बड़ी करने दी थी। ऐसा करके मैं शैतान की तरफ खड़ा था। परमेश्वर के वचन में कहा गया है : “वे बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि वे दुष्ट लोग दुष्टता विकीर्ण करते हैं, मगर वे अपना हृदय कड़ा कर लेते हैं और उनका अनुसरण करने के लिए सत्य के विपरीत चलते हैं। क्या ये लोग जो सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं लेकिन जो विनाशकारी और घृणास्पद कार्यों को करते हैं, दुष्टता नहीं कर रहे हैं?” परमेश्वर के वचनों ने ठीक मेरे व्यवहार को उजागर किया। मैंने प्रभु यीशु की बात याद की : “जो मेरे साथ नहीं वह मेरे विरोध में है, और जो मेरे साथ नहीं बटोरता वह बिखेरता है” (मत्ती 12:30)। परमेश्वर और शैतान के बीच के युद्ध में, परमेश्वर के साथ न खड़े होने का अर्थ है शैतान के साथ खड़े होना। बीच का कोई रास्ता है ही नहीं। लेकिन झूठी अगुआ की रिपोर्ट करने के मामले में, मैं तो चालाक बनने, निष्पक्ष होने, जोखिम न लेने और अपनी रक्षा करने की कोशिश कर रहा था। क्या यह शैतान के पक्ष में खड़ा होना और परमेश्वर को धोखा देना नहीं था? मैं सोचता था कि बहुत-से लोग लूसिया को नहीं समझते, लेकिन जब परमेश्वर उसे पूरी तरह प्रकट कर देगा, और सही समय आएगा, तब उसे सहज ही हटा दिया जाएगा। ऊपर से तो यह विचार बहुत उचित लग रहा था, लेकिन असल में, मैं अपनी ज़िम्मेदारी से बच रहा था और सत्य का अभ्यास करने से बचने के लिए बहाने खोज रहा था। मैं उसे बेनकाब करने और रिपोर्ट करने के लिए अपनी जिम्मेदारी पूरी करने के बजाय बस परमेश्वर के उसे प्रकट करने की प्रतीक्षा कर रहा था। वास्तव में, मैं एक झूठी अगुआ को बचा रहा था जो कलीसिया के कार्य में बाधा डाल रही थी और बुरा कर रही थी। उसे एक झूठी अगुआ का साथी कहना गलत नहीं होगा। इन सबके बारे में सोचकर मुझे खुद से नफरत हुई कि मैं इतना स्वार्थी, नीच, कमज़ोर और नाकाबिल हूँ। मैं बेकार और शैतान का गुलाम हो गया था! बुराई के खिलाफ जंग में मेरे पास कोई गवाही नहीं थी। सच में परमेश्वर इससे घृणा करता है! मैंने परमेश्वर के सामने आकर प्रायश्चित करने के लिए प्रार्थना की। मैंने परमेश्वर से ऐसी शक्ति देने की विनती की जिससे मैं काली ताकतों के नियंत्रण से निकल सकूं, परमेश्वर के साथ खड़ा हो सकूं, और शैतान की ताकतों को “ना” कर सकूं। कुछ और सबूत मिलने के बाद मैंने लूसिया की रिपोर्ट के लिए पत्र लिखना चाहा। लेकिन ऐसा करने से पहले, कलीसिया ने जांच-पड़ताल कर तय कर दिया कि लूसिया एक झूठी अगुआ है, जिसने मसीह-विरोधी का रास्ता अपनाया था, और उसे उसके काम से हटा दिया। बाद में मुझे पता चला कि हमारा पहला लेटर दूसरे झूठे अगुआ ने रास्ते में रोककर अपने पास रख लिया था। व्यावहारिक कार्य न करने के कारण उस झूठे अगुआ को भी हटा दिया गया। उस वक्त यह खबर सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई थी, पर मुझे अपराधबोध भी महसूस हुआ, क्योंकि मैंने इस मामले में शैतान के गुलाम की सी भूमिका निभाई और मैं कलीसिया के कार्य की रक्षा नहीं कर पाया, और गवाही में मजबूत नहीं रह पाया।
लूसिया के हटा दिए जाने के बाद, कलीसिया की एक नई बहन ने कलीसिया का काम संभाला, और मैंने सोचा कि इस मामले का अंत हो गया है, मगर ऐसा नहीं था। महीने भर बाद एक दिन, जो भाई मेरा पार्टनर था, उसने मुझे बताया कि हटा दिए जाने के बाद भी लूसिया ज़िद्दी बनी हुई है। वह अब भी भाई-बहनों को धोखा देने और उनकी सहानुभूति पाने के लिए फैला रही है कि नया चुना हुआ अगुआ झूठा है, और अपना एक गुट बना रही है, ताकि नई अगुआ को हटा दिया जाए और वह फिर से अगुआ का स्थान ले सके। यह सुनकर मैं चिंता में पड़ गया। जल्द से जल्द, मुझे लूसिया के दुष्ट बर्ताव के बारे में ऊपरी अगुआओं को बताने का रास्ता खोजना होगा। उस समय कलीसिया की नई अगुआ भी अपने अगुआओं को लूसिया की रिपोर्ट करने के बारे में लिख रही थी, और यह तय करने की कोशिश कर रही थी कि हालात को स्पष्ट रूप से कैसे समझाया जाए। मैं लिखने में काफी अच्छा हूँ, इसलिए मैंने पहल की और उनकी ओर से रिपोर्ट का पत्र लिखने की पेशकश की। अगली सुबह रिपोर्ट का पत्र पूरा करने के बाद मेरे भाई ने अचानक कहा, “लेटर पर दस्तखत कर देते हैं।” यह सुनकर मैं स्तब्ध रह गया और मैंने सोचा, “लूसिया द्वेषपूर्ण, और चालबाज़ है, वह जानती है कि दूसरों को धोखा कैसे दें। अगर इस बार हम उसकी रिपोर्ट करने में असफल रहे, और लूसिया फिर से सत्ता हथिया कर कलीसिया की अगुआ बन गई, अगर लोगों को निष्कासित कर अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने का उसका इतिहास देखें, तो यकीनन वह हमें घर भेज देगी, या निष्कासित कर देगी। लेकिन लेटर पर दस्तख़त न करने से वह मान्य नहीं होगा, क्योंकि इसे हमने किसी और के नाम से लिखा है।” मैंने पल भर के लिए सोचा, फिर कहा, “चलो हम अनाम लोगों के दस्तखत कर देते हैं।” सच तो यह है कि मैं खुद इससे थोड़ी दूरी बनाए रखना चाहता था, ताकि मेरा दमन हो तो भी ज्यादा सख्ती नहीं हो। मेरे पार्टनर भाई ने तब मेरी काट-छाँट की, “इस लेटर पर अपने दस्तख़त करने में इतनी मुश्किल क्या है? तुम बहुत चालाक बन रहे हो!” इस बात ने मेरे दिल को छलनी कर दिया। मैं चालाक बनकर खुद को बचाता नहीं रह सकता, और मुझे सत्य का अभ्यास करके एक ईमानदार इंसान बनना होगा।
बाद में मैंने आत्मचिंतन किया। ऐसा क्यों है कि हर बार जब कलीसिया के हितों से जुड़ी कोई घटना घटती है जिस पर मुझे राय देनी होती है, तो मैं डरकर दुबक जाता हूँ, खुद को बचाने की कोशिश करता हूँ? किस प्रकृति के काबू में आकर मैं ऐसा करता हूँ? मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े : “शैतान राष्ट्रीय सरकारों और प्रसिद्ध एवं महान व्यक्तियों की शिक्षा और प्रभाव के माध्यम से लोगों को दूषित करता है। उनके शैतानी शब्द मनुष्य के जीवन और प्रकृति बन गए हैं। ‘हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए’ एक प्रसिद्ध शैतानी कहावत है जिसे हर किसी में डाल दिया गया है और यह मनुष्य का जीवन बन गया है। जीने के लिए दर्शन के कुछ अन्य शब्द भी हैं जो इसी तरह के हैं। शैतान प्रत्येक देश के लोगों को शिक्षित करने, धोखा देने और भ्रष्ट करने के लिए की पारंपरिक संस्कृति का इस्तेमाल करता है, और मानवजाति को विनाश की विशाल खाई में गिरने और उसके द्वारा निगल लिए जाने पर मजबूर कर देता है, और अंत में, परमेश्वर लोगों को नष्ट कर देता है क्योंकि वे शैतान की सेवा करते हैं और परमेश्वर का विरोध करते हैं। कुछ लोग समाज में कई वर्षों से लोक अधिकारी रहे हैं। उनसे यह प्रश्न पूछने की कल्पना करो : ‘तुमने इस पद पर रहते हुए इतना अच्छा काम किया है, ऐसी कौन-सी मुख्य प्रसिद्ध कहावतें हैं जिनके अनुसार तुम लोग जीते हो?’ शायद वे कहें, ‘मैंने एक चीज जो समझी है, वह है कि “अधिकारी उपहार देने वालों के लिए मुश्किलें खड़ी नहीं करते, और जो चापलूसी नहीं करते हैं वे कुछ भी हासिल नहीं करते हैं।”’ उनका करियर इसी शैतानी दर्शन पर आधारित है। क्या ये शब्द ऐसे लोगों की प्रकृति का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं? पद पाने के लिए अनैतिक साधनों का इस्तेमाल करना उसकी प्रकृति बन गयी है, अफसरशाही और करियर में सफलता उसके लक्ष्य हैं। अभी भी लोगों के जीवन, आचरण और व्यवहार में कई शैतानी विष उपस्थित हैं। उदाहरण के लिए, उनके जीवन दर्शन, काम करने के उनके तरीके, और उनकी सभी कहावतें बड़े लाल अजगर के विषों से भरी हैं, और ये सभी शैतान से आते हैं। इस प्रकार, लोगों की हड्डियों और रक्त से बहने वाली सभी चीजें शैतान की हैं। ... शैतान ने मनुष्य को गंभीर ढंग से दूषित कर दिया है। शैतान का विष हर व्यक्ति के रक्त में बहता है, और यह कहा जा सकता है कि मनुष्य की प्रकृति भ्रष्ट, बुरी, प्रतिरोधात्मक और परमेश्वर के विरोध में है, शैतान के दर्शन और विषों से भरी हुई और उनमें डूबी हुई है। यह पूरी तरह शैतान का प्रकृति-सार बन गया है। इसीलिए लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं और परमेश्वर के विरूद्ध खड़े रहते हैं” (वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें)। परमेश्वर के वचन पढ़ते समय, मैंने जाना कि मुझमें झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों का सामना करने की हिम्मत नहीं है, क्योंकि मैं शैतानी तर्क, व्यवस्था और सांसारिक फलसफों के मुताबिक जिया, जैसे कि “हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाए,” “जितनी कम परेशानी, उतना ही बेहतर,” और “ज्ञानी लोग आत्म-रक्षा में अच्छे होते हैं वे बस गलतियाँ करने से बचते हैं।” यह भी है, “अपना काम करो, दूसरों के मामले में दखल न दो।” चूँकि मैं इन शैतानी फलसफों के सहारे जी रहा था, इसलिए मैं खासतौर से स्वार्थी, नीच, कायर और कपटी हो गया था। हर बात में, सबसे पहली चीज़ जिस पर मेरा ध्यान होता वह था मेरे अपने हित, और संभावित लाभ और हानि। जब पहली बार मैंने लूसिया की रिपोर्ट करनी चाही, तो मैंने ऐसा करने की हिम्मत नहीं की, क्योंकि मैं खुद को बचाना चाहता था। अब, लूसिया सत्ता पाने के लिए कलीसिया में गुट बना रही है, सत्ता पाने के लिए लड़ रही है, और कलीसिया के कार्य में बाधा और गड़बड़ी पैदा कर रही है, पर मुझमें अभी भी साहस नहीं है कि डटकर सत्य का सामना और अभ्यास करूँ। मैं कछुए की तरह अपने ही खोल में दुबक रहा हूँ, डरा हुआ हूँ कि अगर मुझे सिर उठाते हुए झूठे अगुआ और मसीह-विरोधी ने देख लिया तो वे मुझे दंड देंगे। मैं नाम भर के लिए परमेश्वर में विश्वास रखता था, उसका अनुसरण करता था, लेकिन मेरे दिल में परमेश्वर के लिए जगह नहीं थी। यहां तक कि मैं परमेश्वर के घर को समाज के रूप में देखता था, मुझे भरोसा था कि परमेश्वर का घर निष्पक्षता और धार्मिकता रहित जगह थी, जहां मुझे सतर्क रहते हुए खुद को बचाना सीखना होगा, या फिर मुझे दमन और दंड का खतरा मोल लेना होगा। लेकिन इस प्रकार का नज़रिया अपयश और ईश-निंदा के सिवाय कुछ भी नहीं था! परमेश्वर का घर बाहरी दुनिया नहीं है। दुनिया पर शैतान का शासन होता है, और दुष्ट शासन करते हैं, और नेक लोगों को धमकाकर दबाया जाता है। हालाँकि परमेश्वर के घर में मसीह और सत्य का शासन होता है। परमेश्वर के घर में झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधी लोगों के लिए कोई जगह नहीं होती, और जैसे ही परमेश्वर के चुने हुए लोग सत्य और विवेक की समझ हासिल करते हैं, वैसे-वैसे उन सभी की रिपोर्ट की जाती है, उन्हें प्रकाश में लाया जाता है, निर्वासित और त्याग दिया जाता है। यह है परमेश्वर की धार्मिकता। परमेश्वर के वचन कहते हैं : “दुष्टों को निश्चित ही दंड दिया जाएगा” (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य)। परमेश्वर का वचन ही सत्य और तथ्य है जिसे परमेश्वर पूरा करेगा। मैंने झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों के हटाए जाने या निकाले जाने के असली उदाहरण देखे थे। क्या यह परमेश्वर की धार्मिकता नहीं थी? लेकिन मैं सिर्फ अपने निजी हितों से पूरी तरह अंधा हो गया था। और सोचता था कि कैसे खुद को बचाऊँ। मैंने परमेश्वर में विश्वास रखा, मगर उसके वचनों, वफादारी या उसकी धार्मिकता में विश्वास नहीं रखा। मैंने अविश्वासियों के नज़रिए से चीजों को देखा। यह एक गैर-विश्वासी की अभिव्यक्ति थी! अगर मैं शैतानी फलसफों के सहारे जीता रहा, सत्य का अभ्यास नहीं किया, और कलीसिया के कार्य का बचाव न किया, तो अंत में परमेश्वर मुझे दंडित कर त्याग देगा। इन बातों से एहसास हुआ कि लूसिया की रिपोर्ट के मामले में मुझे अपनी ज़िम्मेदारी भरसक निभानी थी, अगर किसी दिन लूसियामुझे दबा दे या निष्कासित भी कर दे, तो भी सीखने को सबक मिलेगा और उसमें परमेश्वर के नेक इरादे निहित होंगे। शांत होकर यह सोचते हुए, बेबाकी के साथ मैंने रिपोर्ट लेटर पर दस्तख़त कर दिए। उस वक्त, मैंने सुरक्षित और शांत महसूस किया, और गर्व का भी अनुभव किया। मुझे लगा कि आखिर मैं डटकर खड़ा हूँ और एक अच्छा इंसान बन गया हूँ।
रिपोर्ट लेटर भेजने के करीब एक महीने बाद, हमें आखिर शुभ समाचार मिला। लूसिया ने बहुत-से दुष्कर्म किए थे और बदलने से मना किया था, इसलिए उसे मसीह-विरोधी कहकर कलीसिया से निष्कासित कर दिया गया। दुष्कर्म करने और कलीसिया के कार्य में बाधा पहुँचाने में लूसिया का अनुसरण करने वाले दुष्कर्मियों को भी निष्कासित कर दिया गया। जिन लोगों ने प्रायश्चित की भावना दिखाई, उन्हें दुष्कर्मी न समझते हुए, कलीसिया में रहने दिया गया और प्रायश्चित का मौक़ा दिया गया। महीनों से जो बवाल मचा हुआ था, आखिर शांत हो गया, कलीसिया का सामान्य जीवन फिर शुरू हो गया। यह नतीजा देखकर मैं बहुत खुश था, लेकिन मुझे पछतावा और खेद भी हुआ, क्योंकि झूठी अगुआ और मसीह-विरोधी की रिपोर्ट करने में मैं स्वार्थी और घृणित रहा था और खुद को बचा रहा था और परमेश्वर की धार्मिकता और उसके घर में सत्य के शासन पर भी शक किया था। मैं अभी भी काफी हद तक एक गैर-विश्वासी था। मैंने पाया कि मैं गहराई से भ्रष्ट था, और परमेश्वर का बहुत ऋणी था। इसलिए, मैंने कसम खाई कि अगली बार ऐसा कुछ हुआ तो मैं परमेश्वर की तरफ रहूँगा।
चार साल बाद, फिर एक बार ऐसा ही कुछ हुआ। मेरी कलीसिया के अगुआ केडन और दो अन्य लोग, जो शब्दों और धर्म-सिद्धांतों की बातें करते थे, पर व्यावहारिक कार्य नहीं करते थे, उन्हें झूठे अगुआ होने के लिए उनकी निंदा की गई और उन्हें बर्खास्त कर दिया गया, और कलीसिया ने उनकी जिम्मेदारी संभालने के लिए दो अगुआ भेजे। जब ये दो बहनें आईं, तो केडन ने यह झूठ फैला दिया कि हमारी कलीसिया “दान की बछिया” नहीं लेती। यानी उसने उन दो बहनों को स्वीकार नहीं किया जो हमारी अगुआ बनने के लिए बाहर से स्थानांतरित की गई थीं। उन्होंने इन दोनों बहनों पर हमले करने के बहाने ढूंढना शुरू कर दिया और कलीसिया के दूसरे भाइयों-बहनों को अपनी ओर आने और रिपोर्ट लिखने को बहकाया कि दोनों को बुला लिया जाए। बाद में, उन्होंने मुझे भी इसमें शामिल होने को कहा। जैसे ही मैंने उनकी लिखी रिपोर्ट पढ़ी, तो मैंने पाया कि दुष्कर्मी व्यवहार के जो सबूत उन्होंने दिए थे, वे असल में भ्रष्टता उजागर करने के आम उदाहरण थे, दुष्कर्मी व्यवहार तो थे ही नहीं। कई में बात को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया था, और कुछ तो बिल्कुल मिथ्या आरोप और झूठ थे जिनमें सच्चाई को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया था। लेटर में उनकी निंदा हद से ज्यादा, अनियंत्रित और द्वेषपूर्ण थी। मुझे एहसास हुआ कि उनके रिपोर्ट लेटर का उनका असली मकसद कलीसिया के कार्य को बचाना, झूठे अगुआओं को निकालना या परमेश्वर के चुने हुए लोगों की रक्षा करना नहीं था, बल्कि सत्ता हथियाना, कलीसिया के अगुआओं के पदों पर दोबारा आसीन होना, कलीसिया को काबू में करना और परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर नियंत्रण करना था। वे मसीह-विरोधी थे! शुरू में मैंने इस मामले से अलग रहना चाहा, क्योंकि मेरे ग्रुप के अगुआ को भी उन्होंने धोखा दिया था और वह रिपोर्ट में शामिल था, मैं महज एक साधारण विश्वासी था, इसलिए ऐसे लोगों को नीचा दिखाना मेरे लिए अच्छा नहीं था। लेकिन जब मैंने सोचा कि कई साल पहले किस तरह मसीह-विरोधी लूसिया की रिपोर्ट करने से वह निकाल दी गई थी, और कैसे मैंने कोई वास्तविक गवाही नहीं दी थी, तो मैंने फिर छिपने या न दुबकने का फैसला किया। मैंने अपने आसपास के भाई-बहनों के साथ संगति की, ताकि वे साफ़-साफ़ समझ सकें कि इस रिपोर्ट लेटर को लिखने वाले लोगों के असली लक्ष्य और इरादे क्या हैं, और वे उन लोगों की समझ रख सकें। इसके बाद, मैंने सत्ता पाने के लिए किए गए इस गुट के किए दुष्कर्मों को कलीसिया में रिपोर्ट और उजागर किया। कलीसिया ने हालात की जांच-पड़ताल की, सच का पता लगाया, तय किया कि ये लोग मसीह-विरोधी हैं, और उन्हें कलीसिया से निष्कासित कर दिया। जब मैंने देखा कि मसीह-विरोधियों के इस समूह के निष्कासन की रिपोर्ट में मेरे दिए कुछ सबूत हैं, तो मैं बहुत खुश हुआ और मुझे बहुत सुकून मिला। इस मामले में अपनी ज़िम्मेदारियाँ अच्छी तरह निभाने के कारण मैंने सम्मानित अनुभव किया।
इन बातों का अनुभव करके मैं समझ पाया कि परमेश्वर के कार्य की बुद्धिमत्ता कितनी अद्भुत है! परमेश्वर झूठे अगुआओं और मसीह-विरोधियों को कलीसिया में पनपने की अनुमति देता है ताकि मुझमें विवेक का विकास हो सके। उनके पग-पग पर उजागर होकर निष्कासित कर दिए जाने से मुझे परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव का थोड़ा ज्ञान हुआ, मैंने देखा कि परमेश्वर के घर में मसीह और सत्य का शासन होता है, और परमेश्वर में मेरा भरोसा बढ़ा। परमेश्वर का धन्यवाद!
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?