पीड़ा से प्रेम की सुगंध उत्सर्जित होती है

26 जुलाई, 2018

ज़ियाओकाई, जियांग्ज़ी प्रांत

मैं एक साधारण ग्रामीण महिला हूँ और, केवल लड़कों को महत्व देने के सामंती विचार की वजह से, मैं लड़का पैदा नही करने के कारण शर्म से दूसरों के सामने सिर उठाने में असमर्थ थी। जब मैं बहुत अधिक पीड़ित थी, तभी मुझे प्रभु यीशु द्वारा चुना लिया गया और दो साल बाद, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उद्धार को स्वीकार कर लिया। इसके अलावा, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के भीतर से मुझे बहुत सच्चाई समझ में आई और मेरे हृदय को सच्ची मुक्ति मिली। हालाँकि, जब मैं परमेश्वर के प्रेम का भुगतान करने के लिए अपना कर्तव्य कर रही थी, तो मुझे सीसीपी सरकार द्वारा दो बार गिरफ्तार किया गया और मैंने सीसीपी के प्यादों के हाथों क्रूर यातना और पीड़ा का सामना किया। जब मैं मौत के कग़ार पर थी, तभी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने मेरा मार्गदर्शन किया और मुझे प्रेरित किया और वे शैतान के क्रूर नुकसान के बीच गवाही देने के लिए मेरा कारण बने, जिससे मेरी पूरी ज़िन्दगी परमेश्वर का अनुसरण करने और परमेश्वर से प्रेम करने का मेरा संकल्प मज़बूत हो गया।

मई 2003 की एक दोपहर, लगभग 5 बजे अपराह्न में, मैं अपना कर्तव्य करने के अपने रास्ते पर थी जब अचानक गाँव की समिति का सचिव मोटरबाइक पर चढ़ कर आया और उसने मेरा रास्ता रोक दिया। उसने चिल्ला कर मुझे आदेश देते हुए कहा: "रुक! तू क्या कर रही है? मेरे साथ आ!" मैं आश्चर्य में पड़ गई, और मैंने महसूस किया कि मेरा पीछा किया गया था। मैंने तुरंत पेजर, कलीसिया की नकद रसीदों और अपने थैले की अन्य चीजों के बारे में सोचा और कि, एक बार ये चीजें उसके हाथों में पड़ गई, तो कलीसिया के कार्य को बड़ा नुकसान पहुँचाएगी। इसलिए अपने थैले की चीजों को फेंकने का अवसर मिलने की आशा करते हुए मैं जितना तेज भाग सकती थी भागी, लेकिन मैं अधिक दूर तक नहीं पहुँची थी कि उसने मुझे पकड़ लिया। कुछ देर बाद, एक काली कार मेरे पास आई और इसमें से पाँच या छह क्रूर-दिखने-वाले पुलिसकर्मी कूद कर उतरे जिन्होंने तुरंत मुझे घेर लिया। उन्होंने दुर्भावनापूर्वक हँसते हुए कहा: "इस बार हमने तुझे, अगुआ को, वास्तव में पकड़ लिया है। क्या अभी भी लगता है कि तू भाग सकती है? सपना देख!" फिर उन्होंने मज़बूती से मेरे हाथों को ऐँठ कर मेरी पीठ के पीछे मोड़ दिया, मुझे पुलिस की कार में डाल दिया और स्थानीय पुलिस स्टेशन ले गए।

जब मैं पुलिस स्टेशन पहुँची, तो दुष्ट पुलिस ने मुझे एक छोटे, अँधेरेरे, बदबूदार कमरे में धकेल दिया, और उन्होंने मुझ पर भयंकर रूप से चिल्लाना शुरू कर दिया: "अपराध स्वीकार कर ले! तेरा नाम क्या है? तू कहाँ से आई हैं? तू यहाँ क्या कर रही है? बोल!" उनके ख़तरनाक तरीके को देख कर मेरा हृदय तेजी से धड़क रहा था, और मुझे डर था कि मेरे थैले की चीजें उनके हाथों में पड़ जाएँगी, और मुझे यह भी डर था कि वे मुझे क्रूरता से यातना देंगे। जबकि यह सब हो रहा था, तो मैंने हताशापूर्वक परमेश्वर को पुकारा: "हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर, आज मैं शैतानों के हाथों में पड़ गई हूँ और यह तेरी अनुमति से हुआ है। चाहे वे मेरे साथ कुछ भी करें, मैं केवल तेरा समर्थन करने की अभिलाषा रखती हूँ। मैं गवाही देने हेतु बुद्धि और विश्वास के लिए प्रार्थना करती हूँ।" ठीक उसी क्षण, मैंने परमेश्वर के वचनों के बारे में सोचा: "आपको इससे या उससे भयभीत नहीं होना चाहिए। चाहे तुम कितनी भी मुसीबतों या खतरों का सामना करो, तुम मेरे सम्मुख स्थिर रहो...। मत डरो; मेरी सहायता के कारण कौन तुम्हारे मार्ग में बाधा डाल सकता है?" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 10")। हाँ वास्तव में, परमेश्वर अद्वितीय है। वह सभी चीजों को प्रशासित करता है और हर चीज़ पर प्रभुत्व रखता है, तो क्या ये कुछ दुष्ट पुलिसकर्मी परमेश्वर की व्यवस्था का और अधिक हिस्सा नहीं हैं? जब परमेश्वर मुझे सहारा दे रहा है और मेरे साथ है, तो डरने की और क्या बात है? परमेश्वर के वचनों ने मुझमें विश्वास उत्पन्न किया और कभी भी शैतान से नहीं डरने के लिए, मेरा पूरा शरीर शक्ति से भर गया। लेकिन उस समय, मैं अभी भी अपने थैले की चीजों के बारे में चिंतित थी, और मेरा हृदय लगातार सुरक्षा के लिए परमेश्वर को पुकार रहा था। मेरी प्रार्थना सुनने के लिए मैंने परमेश्वर को धन्यवाद दिया, और दुष्ट पुलिसकर्मियों के इस गिरोह ने मुझसे केवल पूछताछ की और मेरे थैले की तलाशी नहीं ली। जब उनकी पारी बदलने का समय आया, तो वे सभी कमरे से चले गए, और मैंने जल्दी से अपने बैग के अंदर मौजूद लेखांकन रसीदों और विश्वास की सामग्रियों को निकाला और उन्हें खिड़की से बाहर फेंक दिया, और मैंने पैजर को फर्श पर तोड़ दिया और उसे कचरे के डिब्बे में फेंक दिया, और केवल तभी मेरा हृदय राहत की साँस ले सका था। मैंने ऐसा करना समाप्त किया ही था कि दुष्ट पुलिसकर्मियों की नई पारी ने कमरे में प्रवेश किया। उन्होंने मुझ पर एक खूँखार नज़र डाली, फिर उन्होंने जल्दी से मेरे थैले की तलाशी ली, लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला। मैंने अपनी स्वयं की आँखों से परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और संप्रभुता को देखा, और मेरा विश्वास बहुत अधिक बढ़ गया। क्योंकि वे खाली हाथ निकले थे, इसलिए दुष्ट पुलिसकर्मियों ने मुझसे यह पूछते हुए क़्रोधावेश में प्रश्न किए कि मेरे वास्तव में किसके साथ संपर्क हैं, ऊपरी स्तर के अगुआ कौन हैं, इत्यादि। मुझे डर था कि मेरे मुँह से कुछ निकल जाएगा और मैं उनके जाल में फँस जाऊँगी, इसलिए मैंने बिल्कुल भी कुछ नहीं कहा। यह देखकर, सभी पाँच या छह दुष्ट पुलिसकर्मियों ने गालियाँ देते हुए पीटने और लातें मारने के त्वरीत आवेश में मुझ पर आक्रमण कर दिया, कहने लगे: "यदि तू हमें नहीं बताएगी, तो हम तुझे पीट-पीट कर जान से मार डालेंगे!" मुझे इतनी कठोरता से पीटा गया था कि जमीन पर आगे और आगे लुढ़काते हुए मुझे एक गेंद की तरह घुमाया गया था। फिर एक दुष्ट पुलिसकर्मी ने मुझे बालों से हिंसक तरीके से खींचा और मुझे भयंकर रूप से धमकी दी कि: "तू अभी भी बहुत जिद्दी है। क्या तू नहीं बोलेगी? हमारे पास अपने तरीके हैं, इसलिए तू देखेगी कि आज रात हम तुझे कैसे ठीक करते हैं!" मुझे पता था कि परमेश्वर मेरे साथ है, और इसलिए मैंने शांत हृदय से आगामी यातना का सामना किया।

यह उस रात 8 बजे के बाद की बात है जब दो दुष्ट पुलिसकर्मियों ने मेरे हाथ में हथकड़ी डाली और मुझे नगरपालिका लोक सुरक्षा ब्यूरो में ले गए। पूछताछ कक्ष में प्रवेश करने पर, चालीस से कुछ अधिककी उम्र वाले एक दुष्ट पुलिसकर्मी ने मुझे लुभाने और मुझे राजी करने की कोशिश करते हुए अच्छा पुलिसवाला होने का अभिनय करना शुरू कर दिया: "तू जवान है, और तू सुंदर है। परमेश्वर में विश्वास करने के बारे में यह सब क्या है? हमारे कार्य में सहयोग कर। यदि तू हमें बताएगी कि ऊपरी स्तर के अगुआ कौन हैं, तो मैं तुझे सीधा घर छोड़ आने के लिए किसी को ले आऊँगा। मैं किसी भी कठिनाई में तेरी सहायता कर सकता हूँ। यहाँ क्यों पीड़ित होती है? ..." परमेश्वर की सुरक्षा की वजह से, मुझे पता था कि यह शैतान की कपट चाल थी, और उसने जो कुछ भी कहा मैंने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया। दुष्ट पुलिसकर्मी ने देखा कि उसकी चाल काम नहीं आई थी, इसलिए उसने तुरंत अपने असली रंग दिखा दिए। उसने मुझे बालों से कस कर पकड़ लिया और मुझे फ़र्श पर दबा दिया, जब तक मुझे चक्कर नहीं आ गए और पूरी जगह घूमती हुई महसूस नहीं होने लगी तब तक निर्दयतापूर्वक मेरे सिर पर लातें मारता रहा। उसके साथ उसमे मेरे सिर पर लातों से प्रहार किया और बहुत खूँखार ढंग से कहा: "बोलेगी नहीं क्या? मैं आज तुझे यातना देने के लिए सभी तरीकों का उपयोग करूँगा, और तू कामना करेगी कि कभी भी पैदा न हो। क्या तू हमें वह बताएगी जो हम जानना चाहते हैं?" यह देखते हुए कि मैंने अभी भी कुछ भी नहीं कहा, उसने कई और दुष्ट पुलिसकर्मियों को बुलाया जिन्होंने मेरे पैरों को पकड़ कर मुझे घसीटा और मेरे चेहरे पर तब तक बार-बार थप्पड़ मारने शुरू कर दिए जब तक कि मेरा चेहरा इतना दर्द न करने लगे जैसे कि यह आग से जल रहा हो। लेकिन इस बात की परवाह किए बिना कि उन्होंने मुझे कैसे पीटा, मैं लगातार और चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना करती रही, और मैंने अपने दाँत भींच लिए और एक शब्द भी नहीं बोली। यह देखकर कि मैं अभी भी आत्मसमर्पण नहीं कर रही थी, वे मुझे घसीट कर गुस्से में बड़बड़ाते हुए दूसरे कमरे में ले गए। एक दुष्ट पुलिसकर्मी ने एक बिजली की छड़ी उठायी और यह कहते हुए मुझ पर दुर्भावना पूर्ण ढंग से हँसा, कि: "कोई बात नहीं कि तू जिद्दी बन रही है। हमारे पास अपने तरीके हैं! चल देखते हैं कि कौन सबसे लंबे समय तक टिकेगा—तू या हमारी विद्युत की छड़ी!" फिर उसने निर्दयतापूर्वक इसे मुझे भोंक दिया। एक पल में, मेरे पूरे शरीर में एक विशाल विद्युत प्रवाह चुभ गया और मुझमें अनैच्छिक रूप से ऐँठन पड़ गई। ऐसा लगता था कि अनगिनत कीड़े मेरे शरीर को काट रहे थे, और मैं मरोड़ उत्सर्जित करने, कर्णभेदी आवाज में रोने के अलावा और कुछ नहीं कर सकती थी। मेरी साँस के सामान्य होने की प्रतीक्षा किए बिना, एक अन्य दुष्ट पुलिसकर्मी ने मोटी पत्रिकाओं का ढेर उठाया और उनसे अपनी पूरी ताकत लगा कर मेरे सिर पर प्रहार करना शुरू कर दिया, और फिर, उसने झटके से मुझे बालों से खींचा और मेरे सिर को क्रूरता से दीवार से पटक दिया। सब कुछ अँधकारमय हो गया और मैं फर्श पर गिर पड़ी। दुष्ट पुलिसकर्मी मुझ पर चिल्लाए, "मरे होने का नाटक कर रही है!" फिर उन्होंने मुझे फर्श से घसीट कर उठाया लिया और मुझे घुटने टेकने का आदेश दिया, लेकिन मैं इतनी कमज़ोर हो गई थी कि मैं कुछ क्षणों तक ही घुटने टेक सकी और फिर से फर्श पर गिर पड़ी। उस स्थिति में, मुझे वास्तव में लगा था कि मैं अब और अधिक समय तक नहीं टिक सकती, मैं कमज़ोर महसूस करने के अलावा और कुछ नहीं कर सकती थी, और मैंने सोचा: "ये शैतान वास्तव में बहुत क्रूर हैं, और मैं आज उनके हाथों में वास्तव में मर जाऊँगी। ..." दर्द और असहायता में, मैंने मेरा मार्गदर्शन करने और मुझे शैतान को हराने की ताक़त देने के लिए परमेश्वर से पूर्ण ईमानदारी से प्रार्थना की। ठीक तभी, मेरे मन में परमेश्वर के वचन कोंधे: "सर्वसामर्थी परमेश्वर, समस्त वस्तुओं का प्रमुख, जो अपने सिंहासन से अपनी राजसी सामर्थ्य को संभालता है। वह समस्त ब्रह्माण्ड और सब वस्तुओं पर राज करता और सारी पृथ्वी पर हमारा मार्गदर्शन करता है। हम अक्सर उसके समीप होते हैं ... अगर तुम्हारी एक भी सांस बाकी है तो, परमेश्वर तुम्हें मरने नहीं देगा" ("वचन देह में प्रकट होता है" में आरम्भ में मसीह के कथन के "अध्याय 6")। परमेश्वर के वचनों से मेरी समझ में आ गया कि मेरा जीवन परमेश्वर के हाथों में रखा जा रहा है और यह कि जब तक परमेश्वर अपनी अनुमति नहीं देगा, ये शैतान मेरी ज़िंदगी लेने की हिम्मत नहीं करेंगे। मैं सोचती थी कि मैं अब तक परमेश्वर का अनुसरण कैसे करती थी, कैसे परमेश्वर ने मुझे सभी तरह से संरक्षित किया था, कैसे मैंने परमेश्वर के प्रेम का इतना आनंद और इतने अधिक ढंग से लिया था और मैं सोचती थी कि कैसे यह माहौल जो अब हो रहा था, यह मेरी वफादारी और मेरे प्रेम का परीक्षण करने का परमेश्वर का समय था, और यह कि मेरे लिए परमेश्वर के प्रेम का भुगतान करने का समय भी था। शैतान मुझे इस तरह से यातना दे रहे थे जैसे कि उनका मुझसे परमेश्वर के साथ विश्वासघात करवाने का अपमानजनक उद्देश्य हो; लेकिन मैं एक न झुकनेवाली व्यक्ति, एक दृढ़ संकल्प वाली व्यक्ति रहूँगी और, भले ही वे मुझे यातना दे कर मार डालें, तब भी मैं शैतान के सामने आत्मसमर्पण नहीं करूँगी। मैं किसी भी तरीके से यहूदा नहीं बनूँगी वह भी बस इसलिए कि मैं एक अधम अस्तित्व पा सकूँ—मैं शैतान की साजिश को सफल नहीं होने दूँगी, मैं पूरी तरह से परमेश्वर के लिए गवाही दूँगी और परमेश्वर के हृदय को सांत्वना लेने दूँगी! परमेश्वर के वचनों ने मुझे अक्षय ताक़त प्रदान की, मैं उस दर्द को भूल गई जिसने मेरे पूरे शरीर को तोड़ दिया था, और फिर मुझमें इन शैतानों से लड़ने के लिए विश्वास और साहस आ गया था।

फिर, मुझसे अपराध स्वीकारोक्ति करवाने के लिए, दुष्ट पुलिस ने मेरी पहरेदारी करना और मुझे सोने से रोकने के लिए बारी-बारी से आना शुरू कर दिया, मुझ पर प्रश्नों से बारंबार दबाव डालने लगे कि: "तेरी कलीसिया में ऊपरी स्तर के अगुआ कौन हैं? वे कहाँ रहते हैं? अन्य सदस्य कौन है? ..." मुझे चुप रहा देख कर, समय-समय पर वे मुझे बालों से पकड़ते और मुझे लातें मारते। मुझे केवल अपनी आँखें बंद करनी पड़ती थी और वे मुझे पीटते और लातें मारते और अपनी पूरी ताक़त से मेरी अँगुलियो के जोड़ों को कुचलने और रगड़ने के लिए अपने चमड़े के जूते की टोपी का उपयोग करते। एक चुभने वाले दर्द के कारण मुझे अकथनीय पीड़ा होती थी, और मैं बस चीत्कार किया करती थी। वे मुझे चारों ओर ऐसे लातें मारते थे जैसे कि मैं कोई फुटबॉल हूँ।... जब तक सुबह नज़दीक आती, मुझे इतनी अधिक यातना दी गई होती थी कि मेरा शरीर अनगिनत चोटों में ढका होता था और मैं असहनीय दर्द में होती थी। इस बारे में सोचते हुए कि मैंने इससे पहले इस तरह की कठिनाइयों का सामना कभी नहीं किया था, और परमेश्वर में विश्वास के कारण अब सीसीपी की दुष्ट पुलिस के हाथों जो नुकसान और पीड़ा भुगत रही थी उस बारे में सोचते हुए, मेरा हृदय दुःख और कमजोरी महसूस करने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता था। उस स्थिति में, मेरे भीतर सर्वत्र अंधकार छा गया था, और मेरा डर अधिकाधिक बढ़ गया था, मैं नहीं जानती थी कि मेरे लिए अगली किस प्रकार की क्रूर यातनाएँ उनके भंडार में हैं। जब मैं दर्द में पड़ी होती, तो मैं चुपचाप परमेश्वर से प्रार्थना करती: "हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मुझे प्रबुद्ध करने और मेरी दुर्दशा में तेरी इच्छा को समझने हेतु मेरा मार्गदर्शन करने की मैं तुझसे प्रार्थना करती हूँ, ताकि मैं अपनी गवाही को न गँवा सकूँ।" जब मैं प्रार्थना करती थी, तो मैं परमेश्वर के वचनों के भजन के बारे में सोचती थी: "तुझे सत्य के लिए कठिनाई उठानी होगी, तुझे स्वयं को सत्य के लिए देना होगा, तुझे सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुझे अधिक कष्ट से होकर गुज़रना होगा। तुझे यही करना चाहिए। ... तुझे उन सब चीज़ों का अनुसरण करना चाहिए जो ख़ूबसूरत और अच्छा है, और तुझे अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज़्यादा अर्थपूर्ण है। ... तुझे एक सत्य के लिए देह के सारे सुख विलासों को छोड़ देना चाहिए, थोड़े से सुख विलास के लिए सारे सत्य को नहीं फेंकना चाहिए" ("मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना" में "सत्य के लिए तुम्हें सब कुछ त्याग देना चाहिए")। परमेश्वर के वचनों ने मेरे हृदय को जगा दिया और मेरी समझ में आ गया कि उत्पीड़न की पीड़ा जिसे अब मैं परमेश्वर में अपने विश्वास में सह रही थी अत्यंत मूल्य और अत्यंत महत्व की थी। मेरी समझ में आ गया था कि परमेश्वर मुझे इस शैतान के सार को स्पष्ट रूप से दिखाने के लिए कष्ट के इस माहौल का उपयोग कर रहा है जो कि परमेश्वर के प्रति शत्रुता में है, ताकि मैं इसे पूरी तरह से त्याग सकूँ और इस प्रकार अपने हृदय को परमेश्वर की ओर वापस मोड़ सकूँ और परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम प्राप्त कर सकूँ। परमेश्वर ने मुझे बचाने के लिए पहले से ही सभी पीड़ाओं को सहन किया है, तो क्या मेरे जैसे भ्रष्ट मनुष्य को सत्य प्राप्त करने के वास्ते और अपने जीवन स्वभाव में एक वास्तविक परिवर्तन प्राप्त करने के लिए और भी अधिक कष्ट नहीं सहना चाहिए? यह पीड़ा कुछ ऐसी है जो मुझे उद्धार प्राप्त करने के अपने प्रयास में सहन करनी चाहिए, और मुझे शांत करने और शिक्षा देने के लिए मुझे इस तरह की दुर्दशा की आवश्यकता है; यही मेरी ज़िंदगी की आवश्यकता है और मैं परमेश्वर के महान प्रेम को स्वीकार करने की अभिलाषा करती हूँ। आज, मैं मसीह के साथ-साथ पीड़ित होती हूँ और मैं मसीह के राज्य और उनकी विपत्तियों दोनों में साझा करती हूँ—यह पूरी तरह से परमेश्वर के उन्नयन द्वारा है, यह मेरे लिए परमेश्वर का सबसे बड़ा प्रेम और आशीष है, और मुझे खुश होना चाहिए। यह सोचकर, मेरे हृदय में बहुत दिलासा महसूस होती थी, और मैंने यह विश्वास करना बंद कर दिया था कि इस तरह के माहौल का सामना करना कुछ पीड़ादायक है, बल्कि इसके विपरीत मुझे लगता था कि यह परमेश्वर का विशेष आशीष था जो मुझ पर हुआ है। मैं चुपचाप परमेश्वर को प्रार्थना अर्पित करती थी: "हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर! मुझे प्रबुद्ध करने के लिए मैं तेरा धन्यवाद करती हूँ जिसकी वजह से मैं तेरी इच्छा को समझती हूँ। इस बात की परवाह किए बिना कि शैतान मुझे कैसे यंत्रणा देता है, मैं इससे बिल्कुल भी समझौता नहीं करूँगी या इसके प्रति आत्मसमर्पण नहीं करूँगी। चाहे मैं जीवित रहूँ या मर जाऊँ, मैं तेरी योजनाओं के प्रति समर्पण करना, स्वयं को पूरी तरह से तेरे प्रति समर्पित करना, और अपने मरने तक तुझसे प्रेम करना चाहती हूँ!" दुष्ट पुलिस ने मुझे दो रात और एक दिन तक यातना दी और मुझसे कुछ भी नहीं मिला। अंत में, वे केवल इतना ही कह सके थे कि मुझे तो पहले से ही "परमेश्वर बना दिया गया" था, और मुझे हिरासत गृह में भेज दिया गया था।

जैसे ही मैं हिरासत गृह की कोठरी में गई, कोठरी खंड के प्रमुख ने, दुष्ट पुलिस द्वारा उकसाए जाने पर, मुझे धमकी देना शुरू कर दिया: "चल, अपराध स्वीकार कर! अन्यथा तू भुगतेगी!" यह देखते हुए कि मैं झुकने वाली नहीं हूँ, उसने मुझे हर तरह से दंडित करने के लिए अन्य कैदियों के साथ साँठ-गाँठ कर ली: वे मुझे खाने के लिए कुछ भी नहीं देते थे, मुझे गर्म पानी नहीं देते थे, वे मुझे हर रात ठंडे सीमेंट पर सुलाते, और मुझसे गंदे, थकाने वाले कार्य करवाते थे। यदि मैं इसे खत्म नहीं करती तो मुझे अतिरिक्त-समय लगाना पड़ता, और यदि मैं इसे पर्याप्त रूप से अच्छा नहीं करती तो मेरे साथ मौखिक रूप से दुर्व्यवहार किया जाता था और सजा के रूप में खड़े रखा जाता था ... हर दिन मुझे अन्य कैदियों द्वारा उपहास, अपमान, भेदभाव, पिटाई और मौखिक रूप से दुर्व्यवहार किए जाने का सामना करना पड़ता था। इसके अलावा, दुष्ट पुलिस द्वारा मेरा पैसा जब्त कर लिया गया था, इसलिए, मेरे नाम पर एक पैसा न होने से, मैं दैनिक आवश्यकताओं को भी नहीं खरीद सकती थी। मुझे नहीं पता था कि ये दिन कब खत्म होंगे और मैं अंदर से बहुत दुःखी, बहुत अकेली और पीड़ा में महसूस करती थी, हमेशा जितना शीघ्र मेरे लिए संभव हो सके उतना शीघ्र मैं उस राक्षसी जगह से बाहर निकलने की इच्छा करती थी। लेकिन मैं जितना अधिक उस माहौल से बाहर निकलना चाहती थी, मेरा हृदय उतना ही अधिक अंधकारमय और संतप्त हो जाता था, और अनजाने में मेरी आँखों से आँसू टपक जाते थे। इतना असहाय हो कर, मैं एक बार फिर से मेरी अगुआई करने और परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं का पालन करने में मुझे समर्थ बनाने के लिए ईमानदारी से परमेश्वर से आशा करते हुए, अपनी पीड़ा को बार-बार उससे कह सकती थी। परमेश्वर हर समय मेरी सहायता और मेरा सहारा है, और एक बार फिर उसने मेरा मार्गदर्शन किया जिससे मैं वचनों के इस अंश के बारे में सोचूँ: "चाहे परमेश्वर कैसे भी कार्य करे या तुम किस प्रकार के वातावरण में हो, अगर तुम जीवन की खोज करने में समर्थ होगे, अपने अंदर परमेश्वर के कार्य की पूर्ति के तलाश कर पाओगे, और सत्य की खोज करने में समर्थ होगे और अगर तुम्हारे पास परमेश्वर के कार्यों की समझ होगी और तुम सत्य के अनुसार कार्य करने में समर्थ होगे, तो यह तुम्हारा सच्चा विश्वास है, और यह दिखाता है कि तुमने परमेश्वर में अपना विश्वास नहीं खोया है। केवल जब तुम अभी भी शुद्धिकरण द्वारा सत्य का अनुसरण करने में समर्थ हो, तुम सच में परमेश्वर से प्रेम करने समर्थ हो और उसके बारे में संदेहों को पैदा नहीं करते हो, अगर वो जो भी करे, तुम फिर भी उसे संतुष्ट करने के लिए सत्य का अभ्यास करते हो, और तुम गहराई से उसकी इच्छा की खोज करने में समर्थ होते हो और उसकी इच्छा के बारे में विचारशील होते हो, तो इसका अर्थ है कि तुम्हें परमेश्वर में सच्चा विश्वास है। इससे पहले, जब परमेश्वर ने कहा कि तुम एक सम्राट के रूप में शासन करोगे, तो तुमने उससे प्रेम किया, और जब उसने स्वयं को खुलेआम तुम्हें दिखाया, तो तुमने उसका अनुसरण किया। परन्तु अब परमेश्वर छिपा हुआ है, तुम उसे देख नहीं सकते हो, और परेशानियाँ तुम पर आ गई हैं। इस समय, क्या तुम परमेश्वर पर आशा छोड़ देते हो? इसलिए हर समय तुम्हें जीवन की खोज अवश्य करनी चाहिए और परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए। यही सच्चा विश्वास कहलाता है, और यही सबसे सच्चा और सबसे सुंदर प्रकार का प्रेम है" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "पूर्ण बनाए जाने वालों को शुद्धिकरण से अवश्य गुज़रना चाहिए")। परमेश्वर के वचन एक व्यथित बच्चे को शांति देने वाली एक प्यारी माँ की तरह थे, और उन्होंने मुझे वैसी ही दिलासा और प्रोत्साहन दिया। मुझे लगा था कि परमेश्वर ठीक मेरे बगल में है और मेरी रक्षा कर रहा है और मुझसे अपेक्षा कर रहा है कि मैं शैतान के सामने परमेश्वर में सच्चा विश्वास बनाए रखने में सक्षम रहूँ, पीड़ा को चुपचाप सहन करूँ, पीड़ादायक माहौल के बीच, और जब अंधकार की शक्तियों से आक्रांत हूँ तब भी परमेश्वर को प्रेम और संतुष्ट करने में समर्थ रहूँ, और परमेश्वर के लिए गवाही दूँ—यही वह सबसे शक्तिशाली गवाही है जो शैतान को शर्मिंदा करती है। हालाँकि मैं इस शैतान की माँद में फँसी हुई थी, किन्तु परमेश्वर का प्रेम सदैव मेरे साथ था। जब मैं क्रूर यातना और यंत्रणा का सामना करती थी और कमज़ोर महसूस करती थी, और जब मैं शैतान के हमलों को सहन करती थी और पीड़ित और व्यथित महसूस करती थी, तो मैं सदैव अपने जीवन के लिए परमेश्वर के प्रावधान को देख सकती थी, मैं परमेश्वर के प्रेम की सांत्वना महसूस कर सकती थी, और मेरे लिए बाहर निकलने का मार्ग खोलते हुए मैं परमेश्वर के हाथ को देख सकती थी। मैं सोचती थी कि परमेश्वर हमेशा मेरे पक्ष में है, मेरे लिए सावधान रहता है और मेरे साथ रहता है। मेरे लिए परमेश्वर का प्रेम इतना गहरा है, कि मैं कभी उसकी इच्छा को निराश कैसे कर सकती हूँ? मुझे अपने शरीर पर विचार नहीं करना चाहिए और मुझे उन माहौलों से भागने की कोशिश तो और भी कम करनी चाहिए जो परमेश्वर ने मेरे लिए व्यवस्थित किए हैं। मुझे पहले जो विश्वास था वह याद रखना चाहिए, अपने सच्चे प्रेम को परमेश्वर के प्रति समर्पित करना चाहिए और शैतान के सामने परमेश्वर के लिए गवाही देनी चाहिए। इन बातों को सोच कर, मेरे हृदय की पीड़ा लुप्त हो गई, और मैंने परमेश्वर को प्रेम और संतुष्ट करने का संकल्प किया, भले ही मुझे सभी संतापों को भुगतना पड़े। मैं कलीसिया का भजन गाने के अलावा और कुछ नहीं कर सकती थी: "मैं दिल और आत्मा वाला व्यक्ति हूं, तो क्यों मैं परमेश्वर से प्यार नहीं कर सकता? परमेश्वर मेरा सहारा है, मैं किससे डरूं? अंत तक शैतान के साथ लड़ने के लिए अपने जीवन को सौंपने की मैं प्रतिज्ञा करता हूं। परमेश्वर हमें उठाता है, हमें सब कुछ पीछे छोड़कर मसीह के लिए गवाही देने के लिए लड़ना चाहिए। परमेश्वर पृथ्वी पर अपनी इच्छा पूरी करेगा। मैं अपना प्यार और वफ़ादारी तैयार करूंगा और परमेश्वर को ये सब समर्पित करूंगा। जब वह महिमा में उतरेगा, तो मैं ख़ुशी से परमेश्वर की वापसी का स्वागत करूंगा, और जब मसीह का राज्य साकार होगा, मैं उससे फिर से मिलूंगा" ("मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना" में "राज्य")। जब मैंने अपने विश्वास को मज़बूत किया और परमेश्वर को संतुष्ट करने की अभिलाषा की, तो मैंने एक बार फिर मेरे लिए परमेश्वर के मृदु प्रेम का अनुभव किया। परमेश्वर ने मेरे दैनिक उपयोग की कई वस्तुएँ मुझे देने के लिए एक जेल अधिकारी की व्यवस्था की। मेरा हृदय अत्यंत द्रवित हो गया था और मैंने अपने हृदय की गहराई से परमेश्वर को धन्यवाद दिया। 40 दिनों के बाद, दुष्ट पुलिस ने देखा कि उनके पास मुझसे कुछ भी पाने का कोई तरीका नहीं था, इसलिए उन्होंने जबरदस्ती मुझ पर "पंथ का सदस्य" होने का आरोप लगाया और मुझे रिहा करने से पहले मेरे परिवार से कई हजार युआन का भुगतान करने को कहा।

मैं सोचती थी कि घर जाने के बाद मुझे मेरी आजादी वापस मिल जाएगी, लेकिन सीसीपी पुलिस ने मेरी निगरानी करना कभी नहीं छोड़ा और उन्होंने अभी भी मेरी निजी स्वतंत्रता को प्रतिबंधित कर दिया था। उन्होंने मुझे मेरा घर छोड़ने से वर्जित कर दिया, मुझे हमेशा उनके लिए उपलब्ध होने का आदेश दिया, और मुझ पर नज़र रखने के लिए किसी को भेज दिया था। वे लगभग हर कुछ दिनों में मेरे परिवार को धमकी भी देते थे, उन्हें मुझ पर नज़दीकी से नजर रखने की चेतावनी देते थे। बाहर से, ऐसा प्रतीत होता था मानो मुझे रिहा कर दिया गया था, लेकिन मुझे दुष्ट पुलिस द्वारा असल में घर में नजरबंद करके रखा दिया गया था। इसलिए मैं कलीसिया में अपने भाइयों और बहनों के साथ संपर्क करने की हिम्मत नहीं कर सकती थी, न ही मैं अपना कर्तव्य कर सकती थी, और मेरा हृदय बहुत दमित और पीड़ित महसूस करता था। जिस चीज़ ने मुझे और भी अधिक क्रोधित कर दिया था वह थी कि दुष्ट पुलिस अपने दुष्ट झूठ से गाँव के लोगों को भ्रमित कर रही थी, उन्हें बता रही थी कि परमेश्वर में मेरे विश्वास ने मुझे पागल कर दिया है, कि मैं दिमाग से सही नहीं हूँ और कि मैं कुछ भी करने में सक्षम थी...। उनके इस तरह के अफ़वाह-उड़ाने वाले और बदनामी करने वाले घृणास्पद आचरण का सामना करने पर, मैं इससे अपने क्रोध की ज्वाला को भड़कने देने के अलावा और कुछ नहीं कर सकती थी। मैं इस तरह से शैतानों द्वारा नियंत्रित नहीं की जा सकती थी, और मुझे उनके राक्षसी शिकंजों से मुक्त होने और परमेश्वर के प्रेम को चुकाने के लिए संघर्ष करना चाहिए। और इसलिए, दुष्ट पुलिस की निगरानी से बचने के लिए, मेरे पास घर छोड़ने और अपना कर्तव्य करने के लिए जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।

पलक झपकते ही तीन साल बीत गए। मैं सोचती थी कि सीसीपी पुलिस मेरी निगरानी अब और नहीं कर रही होगी, इसलिए मैं अपना कर्तव्य करने के लिए घर लौट आई। हालाँकि, यह एक अचानक और अनपेक्षित घटना की तरह हुआ जब अगस्त 2006 की एक सुबह-सुबह, तब मुझे घर आए कुछ दिनों से अधिक ही हुए थे, दुष्ट पुलिस मुझसे मिलने के लिए आई। उस सुबह, एक चिल्लाने की आवाज ने मुझे नींद की शुरूआत से जगा दिया था: "जल्दी करो और दरवाजा खोलो, अन्यथा हम इसे तोड़ देंगे!" मेरे पति ने अभी दरवाजा खोला ही था कि सात या आठ दुष्ट पुलिसकर्मी दस्युओं की तरह घर में घुस गए और, बिना किसी स्पष्टीकरण के, मुझे पकड़ लिया और मुझे घसीट कर अपनी कार में ले गए। क्योंकि परमेश्वर मेरी रक्षा कर रहा था, इसलिए मुझे कोई डर नहीं लगा था। मैं बस केवल प्रार्थना और प्रार्थना करती रही: "हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर! आज मैं फिर से इन शैतानों के हाथों में पड़ गई हूँ। तू मेरे हृदय की रक्षा कर, मुझे शक्ति दे, और मैं एक बार फिर तेरे लिए गवाही दे सकूँ।" एक बार जब हम पुलिस स्टेशन पहुँच गए, तो दुष्ट पुलिस ने जबरन मेरी तस्वीर ली और मेरी अँगुलियों की छाप ली। फिर उन्होंने नामों की एक सूची ली और मुझ पर प्रश्नों से दबाव डालना शुरू कर दिया: "क्या तू इन लोगों को जानती है? तेरे सहयोगी कौन हैं?" सूची में अपनी कुछ बहनों के परिचित नामों को देखते हुए, मैंने शांतचित्त से उत्तर दिया: "मैं उन्हें नहीं जानती, और मेरा कोई सहयोगी नहीं है!" मेरा बोलना समाप्त करते ही उनमें से एक मुझ पर दहाड़ा, "तू कई सालों से गायब रही थी, तो तू कहाँ थी? तेरे सहयोगी तो हैं। क्या तू अभी भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करती है? अपना अपराध स्वीकार कर ले।" दुष्ट पुलिसकर्मी के वचनों ने मुझे एक ही समय में दुःखी और क्रोधित दोनों कर दिया, और मुझे इतना गुस्सा आ रहा था कि शब्दों से नहीं कह सकती: जिस पर आज मैं विश्वास करती हूँ वही एक सच्चा परमेश्वर है जिसने स्वर्ग और पृथ्वी और सभी चीजों को बनाया है, जिसकी मैं तलाश करती हूँ वही सत्य है, जिस मार्ग पर मैं चलती हूँ जीवन में वही सही मार्ग है, और ये सभी चीजें उज्ज्वल हैं और न्याय संगत हैं। और फिर भी ये शैतान, पूरी तरह से विवेक शून्य, मेरे पीछे लगे रहते हैं, मेरी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करते हैं, मुझे मेरे घर से जबरदस्ती बाहर निकालते हैं, मुझे मेरे परिवार से अलग करते हैं और परमेश्वर के साथ विश्वासघात करने के लिए मुझे बाध्य करने की कोशिश करते हैं। परमेश्वर में विश्वास करने और एक अच्छे व्यक्ति बनने की कोशिश करने में क्या ग़लत है? ये मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करने और जीवन में सही रास्ते पर चलने की अनुमति क्यों नहीं देंगे? सीसीपी सरकार बनाने वाले शैतानों का गिरोह वास्तव में बहुत विकृत और नास्तिक है; वे परमेश्वर के कट्टर-विरोधी दुश्मन हैं और इससे भी ज्यादा वे ऐसे दुश्मन हैं जिनके साथ मैं सह-अस्तित्व में नहीं रह सकती हूँ। मेरी उदासी और क्रोध में, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के इन वचनों को मन में लाने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी: "ये दास! ये दयालुता का बदला घृणा से चुकाते हैं, उन्होंने लंबे समय से परमेश्वर की निंदा की है, वे परमेश्वर को अपशब्द बोलते हैं, वे चरमसीमा तक क्रूर हैं, उनमें परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी सम्मान नहीं है, वे लूटते हैं और डाका डालते हैं, वे सभी विवेक खो चुके हैं, और उनमें दयालुता का कोई निशान नहीं बचा ... उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे के सभी लोगों को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने के तरीके हैं! ... दिल में हज़ारों वर्ष की घृणा भरी हुई है, पापमयता की सहस्राब्दियाँ दिल पर अंकित हैं—यह कैसे घृणा को प्रेरित नहीं करेगा? परमेश्वर का बदला लो, अपने शत्रु को पूरी तरह समाप्त कर दो, उसे अब अनियंत्रित ढंग से फैलने की अनुमति न दो, और उसे अपनी इच्छानुसार परेशानी पैदा मत करने दो! यही समय है: मनुष्य अपनी सभी शक्तियों को लंबे समय से इकट्ठा करता आ रहा है, उसने इसके लिए अपने सभी प्रयासों को समर्पित किया है, हर कीमत चुकाई है, ताकि वह इस दानव के घृणित चेहरे को तोड़ सके और जो लोग अंधे हो गए हैं, जिन्होंने हर प्रकार की पीड़ा और कठिनाई सही है, उन्हें अनुमति दे कि वे अपने दर्द से उठें और इस दुष्ट प्राचीन शैतान को अपनी पीठ दिखाएं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। परमेश्वर के इन वचनों से मैं उसकी इच्छा को समझ गई, और मुझ में इन शैतानों के बारे में कटु नफ़रत उत्पन्न हो गई। परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी और सभी चीजों को बनाया और वह मानवजाति का पालन-पोषण करता है; मानवजाति परमेश्वर की प्रचुर उदारता का आनंद लेती है, और परमेश्वर पर विश्वास करना और परमेश्वर की आराधना करना सदैव स्वर्ग का कानून और पृथ्वी का सिद्धांत रहा है। और फिर भी सीसीपी सरकार उन सभी को जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करते हैं क्रूरता से दबाने के लिए हर वह चीज़ करती है जो वह कर सकती है; व्यर्थ की आशा करते हुए कि उन सभी को निर्मूल कर देगी जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं और अंत के दिनों में मनुष्य को बचाने के परमेश्वर के कार्य का उन्मूलन करने के लिए यह उन्हें बेतहाशा चोट पहुँचाती है, उन्हें अवैध रूप से कैद करती है, उन पर क्रूरता से अत्याचार करती है और यंत्रणा देती है, उन्हें श्रम शिविरों में हिरासत में डालती है और उन्हें अपमानित और उनका उपहास करती है—यह वास्तव में चरम रूप से दुष्ट और घृणित है! इन वर्षों में, यदि मेरी रक्षा और देखभाल करने के लिए यह सर्वशक्तिमान परमेश्वर नहीं होता, तो मैं नर-पिशाच शैतान के द्वारा बहुत पहले ही क्रूरता से मार दी गई होती। जीवन और मृत्यु की इस आध्यात्मिक लड़ाई के सामने, मैं कृतसंकल्प हो गई थी कि: मुझे सच्चाई के लिए अवश्य खड़ा होना चाहिए और, भले ही मैं चरम पीड़ा सहूँ मुझे तब भी परमेश्वर से प्रेम अवश्य करना चाहिए, और मैं परमेश्वर की गवाही देने के लिए अपने जीवन की शपथ लेती हूँ!

एक शब्द भी कहे बिना मुझे उन्हें गुस्से से घूरते हुए देखकर, दुष्ट पुलिस ने मुझे खीज में चिढ़ कर कहा: "तू बात नहीं करेगी, हाँ? जब तक हमारे साहब लोग स्वयं तुझसे पूछताछ करने नहीं आते हैं, तब तक रुक, और हम देखेंगे कि क्या तेरा मुँह बंद रहता है!" यह सुनकर कि दुष्ट पुलिस के प्रमुख स्वयं मुझसे पूछताछ करने जा रहे हैं, मैं थोड़ा घबराहट महसूस करने के अलावा और कुछ नहीं कर सकती थी। लेकिन मैंने इस बारे में सोचा कि कैसे मैंने विपत्ति में सभी के ऊपर परमेश्वर की संप्रभुता और उसका सभी चीजों को प्रशासित करना अनुभव किया था, और इस बारे में अनुभव किया था कि कैसे परमेश्वर के वचनों में एक अद्वितीय अधिकार और शक्तिशाली जीवन-शक्ति है, और तुरंत मेरे भीतर शैतान की अँधेरी ताक़तों को जीतने का विश्वास और साहस उत्पन्न हो गया। यद्यपि ये दुष्ट पुलिसकर्मी बेहद क्रूर और निर्दयी हैं, किन्तु वे केवल कागजी शेर हैं—वे बाहर से मज़बूत दिखाई देते हैं किन्तु वे अंदर से कमज़ोर हैं—और उनके साथ भी सृष्टा के हाथों से छेड़छाड़ की जाती है। मेरे हृदय में, परमेश्वर के प्रति मेरा संकल्प निर्धारित हो गया: हे परमेश्वर, चाहे शैतान मुझे कैसी भी यंत्रणा क्यों न दे, मैं केवल इतनी प्रार्थना करती हूँ कि तू मेरा विश्वास स्थिर रख, मेरे हृदय को मज़बूत कर जो तुझे प्रेम करता है, और यहाँ तक कि मेरे अपने जीवन की क़ीमत पर भी मुझे तेरी विजयी गवाही बनने दे। सुबह के 10 बजे होंगे जब दो पुरुष आए जो अपने आप को लोक सुरक्षा ब्यूरो का उप निदेशक बता रहे थे। उन्होंने एक भी शब्द बोले बिना मुझे देखा, फिर उनमें से एक ने मुझे बालों से कस कर पकड़ लिया और मुझ पर प्रश्नों से दबाव डाला: "क्या तू अभी भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करती है?" यह देखते हुए कि मैं चुप थी, अन्य दुष्ट पुलिस प्रमुख बर्बरता से गरजा: "यदि तू नहीं बोलेगी, तो हम तुझे आज दर्द का स्वाद चखाएँगे!" यह कहते ही, एक जंगली जानवर की तरह भौंकते हुए, उसने मेरे बालों को पकड़ा लिया, और मुझे उठाकर जमीन पर फेंक दिया, और मैं इतनी बुरी तरह से गिरी कि मैं फिर से उठने में असमर्थ थी। फिर उन्होंने मुझे बालों से पकड़ कर घसीटा और मुझे पीटा और मुझे लातें मारी और चिल्लाया, जब वे मुझे मार रहे थे तो वे चिल्ला रहे थे: "क्या तू बोलेगी?" एकाएक, मेरा चेहरा दर्द से जलने लगा और मेरी खोपड़ी असहनीय रूप से घायल हो गई जैसे कि यह फट कर अलग हो गई हो। मानव कपड़ों में ये दो जंगली जानवर बाहर से सम्मानजनक सज्जनों की तरह दिखाई देते थे, किन्तु अंदर से वे जंगली जानवरों की तरह क्रूर और निर्दयी थे। उन्होंने मुझे और भी स्पष्ट रूप से दिखा दिया कि यह दुष्ट राजनीतिक दल—सीसीपी—शैतान का मूर्त-रूप है, और इसके प्यादे राक्षसों और दुष्ट आत्माओं का गिरोह हैं! उन्हें अंत में परमेश्वर का शाप मिलेगा! दुष्ट पुलिस के इन दो साहबों ने देखा कि मैं उनकी निरंकुश सामर्थ्य के सामने आत्मसमर्पण नहीं कर रही थी, इसलिए उन्होंने मेरे बालों को कस कर पकड़ लिया और मुझे जमीन के ऊपर दबाना शुरू कर दिया मानो कि वे अपने दिमाग खो चुके हों, निर्दयतापूर्वक मुझे लातें मारने और मुझे कुचलने के लिए वे दोनों अपने पैरों का उपयोग कर रहे थे। फिर उन्होंने मुझे खींचा और मेरी टाँगों के पिछले हिस्से को भयंकर रूप से कुचल दिया, मुझे इतनी जोर से लात मारी कि मैं घुटनों के बल जमीन पर झुक गई, और उन्होंने बर्बरतापूर्वक कहा: "घुटने टेक और हिलना मत! जब तू अपना अपराध स्वीकार कर ले तब तू खड़ी हो सकती है। यदि तू नहीं बोलेगी, तो इसके बारे में सोचना भी मत!" यदि मैं थोड़ा सा भी हिलती, तो वे हिंसक रूप से मेरे बालों को खींचते और मुझे पीटते और मुझे लातें मारते थे। मैं तीन या चार घंटों तक घुटनों के बल झुकी रही, जिस दौरान उन्होंने मुझे कितनी बार पीटा मैं वह गिनती भूल गई थी क्योंकि मैं स्वयं को सँभाल नहीं सकती थी। अंत में, मैं स्तब्ध हो कर जमीन पर गिर पड़ी, और वे मुझे मृत होने का नाटक करने के लिए डाँट रहे थे, और निरंतर और हिंसक रूप से मेरे बालों को खींच रहे थे ताकि मेरी खोपड़ी इतनी घायल हो जाए जैसे कि यह फट गई हो। उस क्षण, ऐसा लगता था जैसे कि मेरा पूरा शरीर टुकड़े-टुकड़े हो कर गिर गया हो—मैं एक माँसपेशी भी नहीं हिला सकती थी और मैं असहनीय पीड़ा में थी। मुझे लगता था कि जैसे मेरा हृदय किसी भी पल धड़कना बंद कर सकता है। मुझे शक्ति देने के लिए मैं परमेश्वर को पुकारती रहती थी, और परमेश्वर के प्रबोधन और प्रोत्साहन के वचन मेरे मन में प्रवाहित होते थे: "पतरस ने मृत्यु तक परमेश्वर से प्रेम रखा। जब वह मरा—जब उसे क्रूस पर चढ़ाया गया—तब भी उसने परमेश्वर से प्रेम किया, उसने अपने हित या महिमामयी आशा को या अनावश्यक विचारों को स्थान नहीं दिया, और केवल परमेश्वर से प्रेम करने और परमेश्वर की व्यवस्था को पूर्णतः मानने की ही इच्छा की। तुमने गवाही दी है यह माने जाने से पूर्व, ऐसा व्यक्ति बनने से पहले, जिसे विजय प्राप्त करने के बाद पूर्ण बनाया गया है, तुम्हें ऐसा स्तर हासिल करना होगा" ("वचन देह में प्रकट होता है" में "विजयी कार्यों का आंतरिक सत्य (2)")। परमेश्वर के वचनों ने मुझे विश्वास और ताक़त दी: हाँ! पतरस को परमेश्वर के लिए उल्टा करके कीलों से ठोक दिया गया था और वह तब भी परमेश्वर से बहुत अधिक प्रेम करने में समर्थ था जब कि उसकी देह असहनीय पीड़ा में थी। उसने देह पर विजय प्राप्त कर ली थी, शैतान को हरा दिया था, और केवल इसी तरह की गवाही जबरदस्त होती है और परमेश्वर के हृदय को राहत देने में सक्षम होती है। मैं पतरस की नकल करना चाहती हूँ, जिससे परमेश्वर मुझमें महिमा प्राप्त करे। यद्यपि मेरी देह अत्यधिक पीड़ा में है, फिर भी यह उस पीड़ा से बहुत कम है जो उल्टा करके कीलों से ठोक दिए जाने पर पतरस ने सहन की थी। शैतान मेरी देह को यातना देकर मुझसे परमेश्वर के साथ विश्वासघात करवाने की इच्छा रखता है, लेकिन परमेश्वर इस अवसर का उपयोग उसके लिए मेरे सच्चे प्रेम को सिद्ध करने के लिए करता है। आज, मैं शैतान के सामने बिल्कुल भी आत्मसमर्पण नहीं करूँगी और इसकी साज़िश को सफल नहीं होने दूँगी! मैं परमेश्वर के प्रेम के लिए जीना चाहती हूँ! एकाएक, मुझे मरने का अब और कोई डर नहीं रहा; मैं परमेश्वर के लिए पूरी तरह से त्याग करने हेतु दृढ़ संकल्पी हो गई और मैंने अपने जीवन की कसम खाई कि मैं परमेश्वर के प्रति वफादार रहूँगी! इसके बाद, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की: "हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मैं एक सृजित प्राणी हूँ जो तेरी आराधना करती है और उस तरह से आज्ञापालन करती है जैसे मुझे करनी चाहिए। मैं अपना जीवन तुझे समर्पित करती हूँ, और चाहे मैं जीवित रहूँ या मर जाऊँ, मैं तुझ पर विश्वास करती हूँ और तुझसे प्रेम करती हूँ!" मुझे तुरंत महसूस हुआ कि मेरे शरीर में बहुत कम पीड़ा हो रही है, और मेरे पूरे शरीर और मन में हल्केपन और रिहाई महसूस हो रही है। इस समय, मैं अपने हृदय में कलीसिया का एक भजन गुनगुनाने से खुद को रोक नहीं सकी: "आज मैं परमेश्वर के न्याय और शुद्धिकरण को स्वीकारता हूँ, कल मैं उसके आशीष पाऊँगा। परमेश्वर के महिमा दिवस को देखने के लिये मैं अपनी जवानी को त्यागने और अपना जीवन अर्पित करने के लिए तैयार हूँ। परमेश्वर के प्रेम ने मेरे हृदय को मोह लिया है। वह कार्य करता और सत्य व्यक्त करता है, हमें नया जीवन प्रदान कर रहा है। मैं कड़वे प्याले से पीने और सत्य को पाने के लिये कष्ट उठाने को तैयार हूँ। मैं बिना किसी शिकायत के अपमान सह लूँगा, मैं अपना जीवन परमेश्वर की दया को चुकाने में बिताना चाहता हूँ" ("मेमने का अनुसरण करना और नए गीत गाना" में "परमेश्वर के महिमा दिवस को देखना मेरी अभिलाषा है")। दुष्ट पुलिस के साहब मुझे पीड़ा देते हुए पूरी तरह से थक गए थे, और वे लंबे समय तक कुछ भी बोले बिना वहाँ खड़े रहे। अंत में, यह न समझ पाने के कारण कि क्या करें, वे मुझ पर गुस्से से कड़के: "तू जरा इंतज़ार कर!" फिर वे चले गए। अन्य दुष्ट पुलिस वाले चर्चा करते हुए आसपास इकट्ठा खड़े थे: "यह महिला बहुत सख़्त है, इसके साथ कोई कुछ नहीं कर सकता है। वह लियू हूलान से भी अधिक सख़्त है ..." उस स्थिति में, मैं इतनी अधिक द्रवित हो गई थी कि मैं अपने आँसूओं को बहने से नहीं रोक सकी थी। परमेश्वर विजयी हुआ था! यदि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन बार-बार मेरा भरण-पोषण नहीं कर रहे होते, और यदि गुप्त रूप से परमेश्वर मुझे नहीं थाम रहा होता, तो मैं अडिग रहने से समर्थ नहीं होती। समस्त महिमा और स्तुति सर्वशक्तिमान परमेश्वर की हो! अंत में, दुष्ट पुलिस ने मुझे एक हिरासत गृह में बंद कर दिया।

हिरासत गृह में, दुष्ट पुलिस अभी भी इसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी, और वे हर कुछ दिनों में मुझसे प्रश्न करते थे। हर बार जब वे मुझसे प्रश्न करते, तो वे मुझे पूछताछ के कमरे में आर-पार धातु के सलाखों वाली खिड़की के सामने बिठाते, और जिस क्षण वे मेरी उत्तर से असंतुष्ट महसूस करते, वे उस पार आते और मेरे चेहरे पर हिंसक रूप से मारते या मेरे बालों को पकड़ कर मेरे सिर को सलाखों पर पटकते थे। यह देखते हुए कि उन्हें अभी भी कुछ नहीं मिला था, वे क्रोध से उन्मत्त हो गए। अंत में, उन्होंने महसूस किया कि मुझ पर कठोर होना व्यर्थ है, इसलिए वे नरम युक्तियों की ओर बदल गए और मुझे यह कहते हुए लुभाने और फुसलाने की कोशिश करने लगे कि: "तेरे बच्चे और तेरा पति सभी घर पर तेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं! और तेरे पति ने तेरी ओर से हमसे निवेदन किया है। हमसे बात कर और तू शीघ्र ही वापस चली जाएगी और उनके साथ फिर से मिल जाएगी।" इन झूठे वचनों से मुझे घृणा हुई और इन्होंने मुझे उनसे इतनी नफ़रत करवा दी कि मैंने अपने हृदय में परमेश्वर से उन्हें शाप देने के लिए प्रार्थना की। मैं इस अधम और बेशर्म दुष्ट पुलिस के गिरोह से नफ़रत करती थी। चाहे वे किसी के भी हाथों में क्यों न खेल रहे थे, मैं एक इंच भी नहीं हटने जा रही थी! इस जीवन में, कोई भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करने के मेरे दृढ़ संकल्प को नहीं हिला सकता है! अंत में, दुष्ट पुलिस ने अपने सभी पत्ते खेल लिए थे, और उन्होंने मुझे 40 दिनों तक बंद करके रखा, मुझ पर 2000 युआन का जुर्माना लगाया और फिर मुझे छोड़ दिया।

आज तक के मेरे अनुभवों के दौरान, मार्ग के आरंभ से ही, मुझे एक गहरा अहसास हो गया है कि मेरे जैसी कोई व्यक्ति—एक साधारण देहाती महिला, जिसे पूर्व में कोई अंतर्दृष्टि या साहस नहीं था—अपराध स्वीकार करवाने के लिए सीसीपी पुलिस द्वारा अत्याचार किए जाने की कई पारियों और क्रूरता से पीड़ित और क्षतिग्रस्त किए जाने के बीच जीत सकती है, स्पष्ट रूप से सीसीपी सरकार के प्रतिक्रियात्मक सार को देख सकती है जो अड़ियल ढंग से परमेश्वर का विरोध करती है और परमेश्वर के चुने हुए लोगों को बेतहाशा नुकसान पहुँचाती है, स्पष्ट रूप से इसके घृणास्पद प्रदर्शन को देख सकती है जो इसकी स्वयं की प्रतिष्ठा का समर्थन करवाने के लिए जनता को धोखा देती है और जो अपने दुष्ट तरीकों को छुपाती है, और कि यह पूरी तरह से परमेश्वर के अद्भुत कर्मों और उसकी सामर्थ्य के द्वारा है। मेरे व्यावहारिक अनुभवों में, मैं वास्तव में इस बात की सराहना करने आ गई हूँ कि परमेश्वर के वचनों का अधिकार और सामर्थ्य इतने अधिक महान हैं, कि वह जीवन शक्ति जो परमेश्वर मनुष्य को प्रदान करता है अनंत है और यह कि शैतान की सभी दुष्ट शक्तियों को पराजित कर सकती है! कष्ट में, मुझे महसूस हुआ कि यह परमेश्वर का प्रेम है जो मुझे सूकून और प्रोत्साहन देता है, और मुझे अपना रास्ता खोने से रोकता है। चाहे मैं कहीँ भी क्यों न हूँ या मैं अपने आप को किसी भी तरह की परिस्थितियों में क्यों न पाऊँ, परमेश्वर सदैव मेरा ध्यान रख रहा है, और उसका प्रेम सदैव मेरे साथ है। यह मेरे लिए सम्मान की बात है कि मैं इस व्यावहारिक, सच्चे परमेश्वर का अनुसरण करने में समर्थ हूँ, और यह कि मैं इस तरह के उत्पीड़न और विपत्ति का अनुभव करने और परमेश्वर की चमत्कारिकता का स्वाद प्राप्त करने में समर्थ हूँ। उसकी बुद्धि और उसकी सर्वशक्तिमत्ता मेरा और भी अधिक सौभाग्य है। इस दिन से, मैं सच्चाई की तलाश करने और परमेश्वर के सच्चे ज्ञान को प्राप्त करने, अंत तक परमेश्वर से प्रेम करने, और अपनी वफादारी में अटल रहने का अपना पूरा प्रयास कर सकती हूँ!

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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