अहंकार को खत्म करने का मार्ग है
अहंकार मेरा घातक दोष है। मैं अक्सर ही अपना अहंकारी स्वभाव दिखाया करती थी, हमेशा सोचती थी कि मैं अन्य लोगों से बेहतर हूं। खासतौर पर जब मैं एक साझेदार के साथ लेखों को संशोधित करती थी या काम के बारे में संवाद किया करती थी, तो मैं हमेशा ही हठधर्मी रहा करती थी और विनम्रता के साथ दूसरों के विचारों को नहीं सुना करती थी। सद्भावपूर्ण ढंग से अपने साझेदारों का सहयोग करने में मेरी असक्षमता की वजह से अक्सर ही काम में समस्याएं पैदा होती थी। भाइयों व बहनों ने कई बार इस समस्या पर मेरे साथ बात की थी, और मैं भी नियमित रूप से परमेश्वर द्वारा लोगों की अहंकारी प्रकृति को उजागर करने के बारे में पढ़ती थी। लेकिन चूंकि मैंने तब भी अपनी खुद की प्रकृति व सार को सही मायनों में नहीं समझा था और असलियत में इससे नफरत भी नहीं कर पाई थी, इसलिए जब भी मुझे उपयुक्त माहौल मिलता था, तो मैं अपना नियंत्रण खो दिया करती थी। कुछ समय बाद, मैं घृणा महसूस हुआ करती, लेकिन चूंकि जो होना था वह तो हो गया था, इसलिए मैं बस इसे समझने की कोशिश बस कर सकती थी। और इसलिए ऐसा बार—बार हुआ। इस वजह से मैं बहुत ही शर्मिंदा व असहाय महसूस किया करती थी।
आध्यात्मिक प्रार्थना का अभ्यास करते हुए एक बार मैंने परमेश्वर के निम्न वचनों को पढ़ा: "तुम्हें मानवीय प्रकृति का समाधान कैसे करना चाहिए? पहले, तुम्हें अपनी प्रकृति को जानना होगा और साथ ही तुम्हें परमेश्वर के वचन एवं इच्छा दोनों को समझना होगा। तब तुम अधिकतम सीमा तक कैसे सुनिश्चित कर सकते हो, कि तुम दोषपूर्ण कार्यों को अंजाम देने से परहेज करते हो, केवल उसे करके जो सत्य के अनुरूप है? यदि तुम एक परिवर्तन करने की इच्छा करते हो, तो तुम्हें इस पर विचार-विमर्श करना होगा। तुम्हारी दूषित प्रकृति के सम्बन्ध में, तुममें किस प्रकार के भ्रष्ट स्वभाव हैं और तुम किस तरह के कार्यों को करने में सक्षम हो, तब किस प्रकार के दृष्टिकोण को अपनाया जा सकता है और उस पर नियन्त्रण करने के लिए उसका अभ्यास कैसे किया जा सकता है—यह वह निर्णायक प्रश्न है। ... लिन ज़ेक्सु बहुत जल्दी क्रोधित हो जाता था। अपनी स्वयं की कमज़ोरी के आधार पर उसने अपने कमरे में निम्नलिखित आदर्श-वाक्य लिखा था: अपने गुस्से पर लगाम लगाओl यह मनुष्य का दृष्टिकोण है, फिर भी यह सचमुच में कार्य करता है। हर स्त्री या पुरुष के पास अनुसरण करने के लिए उसके स्वयं के सिद्धान्त होते हैं, अतः तुम्हें भी अपने स्वयं के स्वभाव के अनुसार अपने सिद्धान्त स्थापित करने चाहिए। ये सिद्धान्त ज़रुरी हैं, उनके न होने का तो सवाल ही नहीं है। परमेश्वर पर और तुम्हारी आचरण संहिता में विश्वास करने के लिए यह तुम्हारा आदर्श-वाक्य होना चाहिए" ("मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'सत्य का अभ्यास और अपनी प्रकृति का समाधान करना')। परमेश्वर के वचनों ने मुझे तुरंत एक ऐसा मार्ग दिया जिसे पर मैं चल सकती थी। मैंने समझा: विद्रोही स्वभाव को बदलने के लिए, तुम्हें एक तरफ तो मनुष्य के भ्रष्ट सार को उजागर करने वाले परमेश्वर के वचनों को खाना व पीना होगा, और दूसरी तरफ तुम्हें अपनी प्रकृति को नियंत्रित करने के सिद्धांत पर ध्यान देना होगा ताकि तुम अपनी प्रकृति के प्रकाशन को होशहवास में नियंत्रित कर सको और इस प्रकार सत्य के अभ्यास के लिए खुद का त्याग सको। इसलिए, मेरी अहंकारी प्रकृति, दंभ, और सहयोगियों के विचारों को सुनने की अनिच्छा रखने जैसे मेरे भ्रष्टाचार के पहलुओं के अनुसार, मैंने एक सिद्धांत बनाया: "गोबर का ढेर अपनी बदबू पर अहंकार कैसे कर सकता है?" जब भी मैं अपने सहयोगियों के साथ किसी प्रश्न पर संवाद करती थी, तो मैं पहले इस सिद्धांत का प्रयोग खुद को चेतावनी देने के लिए किया करती थी, दृढ़ता के साथ खुद को याद दिलाती कि मेरा सार गोबर है और यह कि मेरा पूरा शरीर बदबू से आच्छादित है। मैं यह भी याद करती कि अपने अहंकार व दंभ की वजह से मैंने अपने काम में कितनी सारी समस्याएं खड़ी की थी, और कि उसमें अहंकार करने जैसा कुछ था भी नहीं। इस तरह से, मैं यह नहीं मानती रहती कि मैं ही हमेशा सही थी, और इसने मुझे एक खोजी ह्रदय की अलक भी दी, जिसने मुझमें खुद को विनम्र करने और दूसरों के विचार सुनने की इच्छा जगाई। तब पर भी मैं कभी-कभी दूसरों के दृष्टिकोणों का खंडन करना चाहती थी, लेकिन जैसे ही मेरे मन में वह सिद्धांत आता था, तो मैं जानबूझकर खुद को त्याग दिया करती थी और सद्भावनापूर्ण समन्वय के सत्य का अभ्यास करने लगती थी।
कुछ समय के बाद, मैंने आश्चर्यजनक रूप से यह पाया कि, जब मैंने खुद को विनम्र किया, तो मुझे अपने सहयोगियों के संवाद से पवित्र आत्मा की थोड़ी प्रबुद्धता और रोशनी मिली, और अपने सत्य की प्राप्ति में कुछ अनर्गल पहलुओं को देख पाई। उसी के साथ, मैंने दूसरों की कुछ ताकतों को भी समझा, और मैं खुद की मदद करने के लिए उनकी ओर अग्रसर होने की इच्छा कर रही थी। मैं यह भी नहीं सोचती थी कि मैं हर चीज में दूसरे लोगों से बेहतर हूं और मैंने अपने अकड़े हुए सिर को नीचे कर लिया था। खुद को छोड़ना पहले की तरह दर्दभरा नहीं लगता था, और मुझे दिल से यह महसूस होता था कि खुद को विनम्र बनाना और विनम्रता के साथ अपने सहयोगियों के विचारों को सुनना काफी अच्छी बात थी, जिससे न केवल मेरी खुद की जिंदगी की प्रगति को फायदा मिल रहा था बल्कि साथ ही एक-दूसरे की कमियों को दूर करने और एक साथ होकर काम करने की वजह से हमारे काम के परिणाम भी बेहतर हो रहे थे।
इस अनुभव के माध्यम से, मैंने सत्य का अभ्यास करने की मिठास को चखा और यह देखा कि एक सिद्धांत का निर्माण करने से मैं अपने भ्रष्टाचार के प्रकाशन को जागरुकता के साथ नियंत्रित कर सकती थी, और न केवल अपने उल्लंघनों को कम कर रही थी बल्कि सत्य को समझने के ज्यादा मौके भी पा रही थी। उसी के साथ, मुझे यह भी अहसास हुआ कि मेरी अहंकारी प्रकृति के पिछले प्रकाशन बहुत ज्यादा बुरे व घृणात्मक थे। इन चीजों को जानने के लिए मेरा नेतृत्व करने हेतु परमेश्वर का धन्यवाद। अब से, मैं अपने भ्रष्टाचार के विभिन्न पहलुओं के लिए संबंधित सिद्धांतों का निर्माण करूंगी और खुद का नियंत्रण करूंगी ताकि मैं सत्य का अभ्यास कर सकूं। मैं खुद की प्रकृति के सार को जानने के लिए अक्सर ही परमेश्वर के वचनों को भी पढ़ूंगी ताकि मैं परमेश्वर को जल्द से जल्द संतुष्ट करने के लिए सच में खुद से नफरत कर सकूं और अपने भ्रष्टाचार को त्याग सकूं।
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?