जब मैं 20 साल की थी
जब मैं 20 साल की थी, परमेश्वर में विश्वास करने के कारण पुलिस ने मुझे गिरफ्तार करके काफ़ी यातनाएं दीं। मैं वो अनुभव कभी नहीं भुला सकूँगी। जून के महीने में, एक दिन सुबह 7 बजे के बाद, मैं एक बुजुर्ग बहन के घर के बेडरूम में तीन और बहनों के साथ एक बैठक कर रही थी। अचानक, लिविंग रूम से बुजुर्ग बहन के चिल्लाने की आवाज़ आई, "तुम लोग कौन हो? क्या चाहते हो?" किसी आदमी ने जवाब दिया, "हम पुलिसवाले हैं, तुम्हारे घर की तलाशी लेने आए हैं!" ये सुनकर मैं डर गई, मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा, मैंने फटाफट बेडरूम का दरवाज़ा बंद किया और परमेश्वर के वचनों की किताबें छुपा दीं। मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना करती रही, उससे मेरी रक्षा करने, मुझे हिम्मत और बुद्धि देने को कहती रही, ताकि मैं अच्छे से गवाही दे सकूँ। प्रार्थना के बाद, मैंने परमेश्वर के इन वचनों पर विचार किया, "तुम्हें किसी भी चीज़ से भयभीत नहीं होना चाहिए; चाहे तुम्हें कितनी भी मुसीबतों या खतरों का सामना करना पड़े, तुम किसी भी चीज़ से बाधित हुए बिना, मेरे सम्मुख स्थिर रहने के काबिल हो, ताकि मेरी इच्छा बेरोक-टोक पूरी हो सके। यह तुम्हारा कर्तव्य है; ... डरो मत; मेरी सहायता के होते हुए, कौन इस मार्ग में बाधा डाल सकता है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। परमेश्वर के वचनों से मुझे हिम्मत और आस्था मिली। परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, जब वो मेरे साथ खड़ा है, तो मुझे किस बात का डर? मुझे लगा कि परमेश्वर मेरे साथ है, फिर मैं धीरे-धीरे शांत हो गई। उसके बाद, पुलिस हमारे दरवाज़े को जोर-जोर से पीटने लगी, जल्दी ही, उन्होंने दरवाज़े पर लात मारकर एक बड़ा छेद कर दिया। कुछ पुलिसवाले अंदर घुस आए और हमें लिविंग रूम में लेकर गए, लिविंग रूम तहस-नहस हो चुका था, परमेश्वर के वचनों की कई किताबें फ़र्श पर पड़ी थीं। मुझे बुरा लगा और गुस्सा भी आया। पुलिसवालों ने लुटेरों की तरह हमारे घर में घुसकर चप्पा-चप्पा छान मारा था। ये गैरकानूनी उपद्रव था!
थाने पहुँचने पर, पुलिस एक-एक करके हमसे पूछताछ करने लगी। पूछताछ वाले कमरे में करीब पाँच-छह पुलिसवाले होते थे, सभी विशालकाय, हट्टे-कट्टे और दानव जैसे दिखते थे। एक के पास लोहे की रॉड थी जो करीब तीन से चार सेंटीमीटर मोटी और आधा मीटर लंबी थी। उसने कुटिल मुस्कान के साथ कहा, "हम बहुत पहले से तुम लोगों पर नज़र रख रहे हैं। तुम्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने का उपदेश किसने दिया? परमेश्वर के वचनों की किताबें तुम्हें कहाँ से मिलीं?" जब मैंने कोई जवाब नहीं दिया, तो उसने ठहाके लगाते हुए कहा, "नहीं बोलोगी? ठीक है, फिर मैं तुम्हें अभी नहीं मारूँगा। पहले तुम्हें थोड़ा कमज़ोर होने देता हूँ। फिर मैं तुम्हारी हालत और भी बदतर कर दूँगा।" फिर उसने मुझे उकडूं होकर बैठने को कहा। जब उसे लगता कि मेरे बैठने का तरीका गलत है, तो मेरे पैरों पर ज़ोर से लात मारता। मेरे हाथों को नीचे आते देख, वो मेरे हाथों पर मेटल की रॉड से मारता। जल्दी ही, मेरे हाथ थक गए और उन्हें उठाकर रखना मुश्किल हो गया, मेरे पैरों में काफी दर्द होने लगा और शरीर काँपने लगा। फिर उसने मुझे मेटल की अलमारी के सहारे आगे झुकते हुए आधा उकडूं होकर बैठने को कहा। करीब 10 मिनट इसी तरह बैठे रहने के बाद, मेरी हालत खराब हो गई और मैं लड़खड़ा कर ज़मीन पर गिर पड़ी। दो पुलिसवालों ने आकर मुझे उठाया और उकडूं होकर बैठे रहने को कहा, वे मुझसे सवाल भी पूछते रहे। मेरे कुछ ना कहने पर, एक पुलिसवाले ने मेरे बाल पकड़कर मुझे मेटल की आलमारी के सामने दे मारा, इस झटके से मेरे बालों के दो गुच्छे टूट गए। वहाँ खड़ा दूसरा पुलिसवाला हाथ में बिजली का डंडा लेकर उसे बार-बार ऑन-ऑफ कर रहा था। हवा में बिजली की चरचराहट को मैं साफ़ सुन पा रही थी। उसने मुझे धमकाते हुए कहा, "ध्यान से सुनो, जब इस डंडे में बिजली दौड़ती है, तो जोर का झटका लगता है, इस झटके से मांस भी पक जाता है। अगर तुमने अपना मुँह नहीं खोला, तो मैं इस डंडे को तुम पर आज़माऊंगा!" मैंने मन-ही-मन सोचा: "ये पुलिसवाले कुछ भी कर सकते हैं। अगर उसने सचमुच वो बिजली का डंडा मुझ पर इस्तेमाल किया, तो क्या मैं इसे सह पाऊँगी?" मैंने जितना सोचा, उतनी ही ज़्यादा डर गई। मैंने परमेश्वर से मुझे रास्ता दिखाने के लिए प्रार्थना की, तभी मुझे प्रभु यीशु की यह बात याद आई, "जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उनसे मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नष्ट कर सकता है" (मत्ती 10:28)। फिर मैंने समझा, शैतान सिर्फ मेरे शरीर को नष्ट कर सकता है, मेरी आत्मा को नहीं। अगर मैं पुलिस की यातना सहते-सहते मर भी गई, तो यह सिर्फ मेरे शरीर की मौत होगी। मेरी आत्मा परमेश्वर के हाथों में है, अगर मैं सिर्फ अपने शरीर के बारे में सोचती रही, तो मेरा जीवन निरर्थक और बेकार हो जाएगा और मैं यहूदा बनकर रह जाऊँगी। अंत में, मेरी आत्मा, मेरे मन और मेरे शरीर को दंड देकर नष्ट कर दिया जाएगा। मैंने इस बात पर भी गौर किया कि कैसे हर चीज़ पर परमेश्वर का नियंत्रण है और वही सबका मालिक भी है। परमेश्वर की अनुमति के बिना, शैतान मेरी जिंदगी छीनने की हिम्मत नहीं करेगा। ठीक उसी तरह जैसे शैतान ने जब अय्यूब को लालच दिया, परमेश्वर की अनुमति के बिना, उसने अय्यूब को मारने की हिम्मत नहीं की। उन बातों को याद करके मेरा डर काफी कम हो गया। मैंने सोच लिया कि चाहे वे मुझे बिजली के झटके देकर मेरी जान ही क्यों न ले लें, मैं परमेश्वर या अपने भाई-बहनों को धोखा नहीं दूँगी। मैंने उनसे कहा कि मुझे कुछ नहीं पता। उसने गुस्से में आकर बिजली के डंडे से मुझे ज़ोर से मारा। तभी अचानक बिजली के डंडे का सारा चार्ज ख़त्म हो गया। परेशान होकर, उसने कहा, "इसका चार्ज कैसे ख़त्म हो गया? अभी तो इसमें पूरा चार्ज था!" मैं मन-ही-मन, परमेश्वर को धन्यवाद करती रही। जब पुलिसवालों की यह चाल काम नहीं आई, तो उन्होंने दूसरी तरकीब सोची। कुछ पुलिसवालों ने मुझे ज़बरदस्ती नीचे बैठाया और जलती हुई सिगरेट से मेरे हाथों को जलाने लगे। मैं दर्द से चीखती रही, मगर उन्होंने मुझे बहुत कसकर पकड़ रखा था, मैं हिल भी नहीं सकी। उस पल मैंने खुद को बहुत दुखी और बेबस महसूस किया। मैंने सोचा, "पूछताछ की शुरुआत में ही, वे मुझे यातना देने के लिए कई अलग-अलग तरीके इस्तेमाल कर चुके हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा, तो क्या मैं बर्दाश्त कर पाऊँगी?" तभी, मुझे यह भजन याद आया, "मैं अपना प्यार और अपनी निष्ठा परमेश्वर को अर्पित कर दूँगा और परमेश्वर को महिमान्वित करने के अपने लक्ष्य को पूरा करूँगा। मैं परमेश्वर की गवाही में डटे रहने, और शैतान के आगे कभी हार न मानने के लिये दृढ़निश्चयी हूँ। मेरा सिर फूट सकता है, मेरा लहू बह सकता है, मगर परमेश्वर-जनों का जोश कभी ख़त्म नहीं हो सकता। परमेश्वर के उपदेश दिल में बसते हैं, मैं दुष्ट शैतान को अपमानित करने का निश्चय करता हूँ। पीड़ा और कठिनाइयाँ परमेश्वर द्वारा पूर्वनिर्धारित हैं। मैं मृत्युपर्यंत उसके प्रति वफादार और आज्ञाकारी रहूँगा। मैं फिर कभी परमेश्वर के आँसू बहाने या चिंता करने का कारण नहीं बनूँगा। ..." ("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में 'परमेश्वर के महिमा दिवस को देखना मेरी अभिलाषा है')। इस भजन ने फ़ौरन मुझे बहुत आत्मविश्वास और शक्ति दी। भले ही पुलिसवालों ने मुझे गिरफ्तार करके यातनाएं दी थी, मगर सिर्फ़ शारीरिक पीड़ा के कारण मैं शैतान की चाल में नहीं फंस सकती। इसलिए, मैंने खुद को संभाला और उनसे कुछ नहीं कहा।
हालांकि, एक पुलिसवाला लगातार मुझसे सवाल करता रहा। "तुम्हारा कर्तव्य क्या है? तुम्हारा अगुआ कौन है? दान में मिले पैसे कहाँ हैं?" मैंने कहा कि मैं कुछ नहीं जानती। उसने बौखलाकर अपना फ़ोन उठाया और मेरे चेहरे के दोनों तरफ बार-बार मारता और चिल्लाता रहा, "अब अपना मुँह खोलेगी? और अब!" ... मुझे तो याद भी नहीं उसने मुझे कितनी बार मारा, मगर मेरा चेहरा सूज गया था, उस पर बहुत-सी चोटें आई थीं और वह सुन्न पड़ने वाला था। तभी उसके बगल में खड़े दूसरे पुलिसवाले ने कहा, "फ़ोन से मारने से कुछ नहीं होगा। अब ये देखो।" इतना कहकर, उसने मेटल की रॉड उठाई और मुझे मारने ही वाला था, तभी एक पुलिसवाले ने उसे रोका और कपटी अंदाज़ में मुझसे कहा, "बेहतर होगा कि तुम हमारे सवालों के जवाब दे दो। अगर उसने मेटल की रॉड से तुम्हें मारा, तो क्या तुम सह पाओगी?" मैंने कोई जवाब नहीं दिया, तो उस पुलिसवाले ने पूरी ताकत से रॉड उठाकर क्रूरता से मेरी कमर और पैरों पर मारता रहा, मैं दर्द से चीखती रही। उन्हें डर था कि मेरी चीखों से सभी लोग चौंक जाएँगे, इसलिए उन्होंने ज़बरदस्ती मेरे मोज़े निकाले और मेरे मुँह में डाल दिया, फिर उस मेटल की रॉड से मेरे कूल्हे पर लगातार मारते रहे। जब मैंने किसी तरह चकमा देकर बचने की कोशिश की, तो तीन पुलिसवाले अचानक मुझ पर चढ़ दौड़े। एक ने मेरा सिर पकड़ा, दूसरे ने मेरी कमर पकड़ी, और तीसरा मेरे पैर पकड़े हुए था, इस तरह वे मुझे लगातार मारते रहे। हर प्रहार के साथ मुझे भयंकर पीड़ा हो रही थी। सात-आठ बार मारने के बाद, उन्होंने दोबारा मुझे उठाकर पूछा, "तुम्हारा अगुआ कौन है? दान के पैसे कहाँ हैं?" कोई जवाब न देने पर, उन्होंने मुझे बिस्तर पर पटक दिया और मारते रहे। जल्दी ही, मुझे महसूस हुआ कि मेरे कूल्हे के एक तरफ का हिस्सा बुरी तरह सूज गया है। मगर वो इसी तरह मुझसे बार-बार सवाल पूछते रहे, फिर जल्दी ही, मेरी हिम्मत टूटने लगी। मैंने सोचा, "ये यातना और मार-पिटाई कब तक चलती रहेगी? क्या ये लोग सचमुच यातना देकर मेरी जान ले लेंगे?" मैं बहुत कमज़ोर पड़ गई, इसलिए मैंने बार-बार परमेश्वर से प्रार्थना की, "परमेश्वर! मुझे डर है कि अब मैं पुलिसवालों की ऐसी यातना और नहीं सह पाऊँगी। मुझे विश्वास और शक्ति दो, मुझे राह दिखाओ, ताकि मैं अपनी गवाही में डटकर खड़ी रह सकूँ।" प्रार्थना के बाद, मुझे परमेश्वर के वचनों की यह पंक्ति याद आई, "जब लोग अपने जीवन का त्याग करने के लिए तैयार होते हैं, तो हर चीज तुच्छ हो जाती है, और कोई उन्हें हरा नहीं सकता। जीवन से अधिक महत्वपूर्ण क्या हो सकता है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 36)। मैं जान गई कि मेरी कमज़ोरी का कारण कुछ और नहीं, बल्कि मौत का भय था। शैतान मेरी कमज़ोरी जान गया है, वह यातना का इस्तेमाल करके मुझे परमेश्वर को धोखा देने पर मजबूर करना चाहता है। मैं उसके इस जाल में नहीं फँस सकती। आज मैं जिंदा रहूँ या मर जाऊं, मुझे हर हाल में परमेश्वर के आयोजनों और व्यवस्थाओं का पालन करना होगा। इसमें मेरी मौत ही क्यों न हो जाए, मैं परमेश्वर या अपने भाई-बहनों को धोखा नहीं दूँगी। अपने जीवन को दांव पर लगाने का फैसला करने के बाद, मेरी सारी पीड़ा दूर हो गई। जब पुलिस वालों ने देखा कि उनकी मार-पिटाई से कोई बात नहीं बन रही, तो वे मुझसे छोटी एक बहन को अंदर लेकर आये, मुझे ज़बरदस्ती बिस्तर पर बिठाया, उसे मुझे पिटते हुए देखने को मजबूर किया, फिर वे मुझे कमरे से बाहर ले आये। बाहर से, मैं उस बहन की चीखें सुन पा रही थी, मेरे चेहरे पर आँसुओं की धार बहने लगी। मेरा गुस्सा और भी ज़्यादा बढ़ गया। ये पुलिसवाले हद से ज़्यादा दुष्ट थे। पहले तो उन्होंने मुझे यातनाएं दी और अब वही सब कुछ मेरी बहन के साथ कर रहे थे। मन-ही-मन, मैं उसके लिए प्रार्थना करती रही, परमेश्वर से कहती रही कि उसे राह दिखाए, ताकि वह पुलिसवालों की यातना से उबरकर मजबूती से अपनी गवाही दे सके।
तभी, एक पुलिसवाला मेरे पास ब्रेड और ड्रिंक लेकर आया, फिर उसने शांत लहज़े में कहा, "मैं समझ सकता हूँ कि तुम्हें बहुत पीड़ा हो रही है। तुम ये सब क्यों कर रही हो? जो कुछ भी जानती हो, हमें बता दो, फिर तुम्हें ये सब नहीं सहना पड़ेगा। मैं जानता हूँ कि तुम परमेश्वर के विश्वासी कोई गलत काम नहीं करते, मगर चीन में ऐसा ही होता है। अगर कम्युनिस्ट पार्टी कहती है कि तुम परमेश्वर में विश्वास नहीं रख सकती, तो नहीं रख सकती।" मैंने उसे नज़रंदाज़ करते हुए मन-ही-मन सोचा, "चाहे कुछ भी कह लो, मैं अपने भाई-बहनों या परमेश्वर को धोखा नहीं दूँगी।" कुछ समय बाद, उस बहन को बाहर लाया गया। मैंने देखा, उसके बाल बिखरे हुए थे और वो चल भी नहीं पा रही थी, मैं समझ गई कि पुलिसवालों ने उसे यातना देकर बुरी तरह मारा है, ये देखकर मुझे बहुत दुख हुआ और गुस्सा भी आया। उन्होंने दोबारा मेरा नाम पुकारा, तो मेरा गला भर आया। मैं नहीं जानती थी, इस बार वे मुझे कैसी यातना देने वाले थे। मेरी सारी चोटें अभी भी हरी थीं, ज़रा भी हिलने-डुलने पर बहुत दर्द होता था। ये पीड़ा कब ख़त्म होगी? पूछताछ वाले कमरे में जाते ही, एक अफसर ने मेटल की रॉड उठाई और मुझे मारने ही वाला था, तभी जो अफसर मेरे लिए ब्रेड और ड्रिंक लेकर आया था, उसने कहा कि वो मुझसे अकेले में बात करना चाहता है। वह मुझे कमरे से बाहर लेकर गया और कहने लगा, "मेरी बात समझने की कोशिश करो। अगर तुमने अपना मुँह नहीं खोला, तो वो लोग तुम्हें दोबारा मारने लगेंगे। क्या तुम वाकई दोबारा पिटना चाहती हो?" उस समय, मुझे लगने लगा कि वह ये सब मेरी भलाई के लिए ही कह रहा है। मैंने सोचा, "क्यों न मैं उन्हें थोड़ी इधर-उधर की जानकारी दे दूँ। अगर मैं उन्हें अपनी बातों से भटकाने में कामयाब हुई, तो मुझे दोबारा उनकी मार नहीं सहनी पड़ेगी।" उस पल, मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा, "मेरे लोगों को, शैतान के कुटिल कुचर्क्रों से हर समय सावधान रहना चाहिए; ... ताकि शैतान के जाल में फँसने से बच सकें, और तब पछतावे के लिए बहुत देर हो जाएगी" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 3)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे याद दिलाया, मुझे एहसास हुआ कि ये पुलिसवाला केवल मेरी फ़िक्र करने का बहाना कर रहा है। वो सचमुच मेरी मदद नहीं करना चाहता। वह मुझे अपने जाल में फंसाना चाहता है, ताकि मैं अपने भाई-बहनों और परमेश्वर को धोखा दे दूँ। मुझे याद आया कि पहले इसी पुलिसवाले ने मुझे फ़ोन से मारा था, और जब दूसरा पुलिसवाला मुझे मेटल की रॉड से मार रहा था, तब उसने भी मुझे पकड़ने में उसकी मदद की थी। मगर अब, मुझे मनाने के लिए खाने-पीने की चीज़ें लाकर, चिकनी-चुपड़ी बातें कर रहा है। धोखेबाज़ कहीं का, मैं तो उसके जाल में फँसने ही वाली थी। जब मैंने कुछ नहीं कहा, तो उसने पूछा, "अपनी चुप्पी के लिए इस तरह मार खाते रहने का कोई फ़ायदा भी है?" मैंने दृढ़ता के साथ कहा, "हाँ! मैं कभी अपने भाई-बहनों या परमेश्वर को धोखा नहीं दूँगी।" मेरा दृढ़ संकल्प देखकर, उसने क्रूरता से कहा, "लगता है तुम आसानी से नहीं मानने वाली!" कमरे में वापस आने के बाद, वो पुलिसवाला मुझसे कलीसिया और अगुआओं के बारे में पूछता रहा, मगर मैंने एक शब्द भी नहीं कहा। तभी उनमें से एक पुलिसवाला अपना आपा खो बैठा, उसने मेटल की रॉड उठाकर मेरे घायल कूल्हे पर कई बार जोर-जोर से मारा। हर प्रहार ऐसा लग रहा था जैसे खुले ज़ख्मों पर नमक छिड़का जा रहा हो, मैं चीखती रही। फिर दूसरे अफसर ने मुझे धमकी दी, "अभी हम कुछ नंगी तारें लेकर आएंगे और तुम्हें बिजली के झटके देंगे, देखते हैं तुम कैसे नहीं मुँह खोलती हो!" ऐसा कहते ही, उसने अचानक मेरा गिरेबान पकड़ लिया और मुझे कोने में लेकर गया, वो मुझे लगातार चांटे मारता रहा जब तक वो थक नहीं गया और उसके पसीने नहीं छूटने लगे। मेरे चेहरे पर बहुत तेज़ दर्द और चुभन महसूस हो रही थी, मेरा सिर घूमने लगा, चक्कर आने लगे और मैं उल्टी करना चाहती थी। फिर, वो एक मेटल का हेलमेट लेकर आया, उसे मेरे सिर पर पहनाया, और मेटल की रॉड से हेलमेट पर बुरी तरीके से मारने लगा। हेलमेट पर मारते हुए, उसने मेरी खिल्ली उड़ाकर कहा, "अब मज़ा आ रहा है? अब ये आवाज़ तुम्हारे कानों में जिंदगी भर गूंजती रहेगी!" मेरे कानों की गूँज रुक ही नहीं रही थी, यह बहुत दर्दनाक था। कुछ मिनटों के बाद, बेहोशी छाने लगी और दम घुटने लगा। इसके बाद उन्होंने हेलमेट को मेरे सिर पर पीछे की ओर घुमा दिया। मैं कुछ देख नहीं पा रही थी, मगर सुन सकती थी कि वो कूद-कूदकर हेलमेट पर लात मार रहे थे, मैं बुरी तरह लड़खड़ाकर ज़मीन पर गिर पड़ी। उन्होंने मुझे उठाया और दोबारा हेलमेट पर मारने लगे, मैं फिर से ज़मीन पर गिर पड़ी। उनकी हर मार पहले से ज़्यादा तेज़ होती थी, जब भी मैं ज़मीन पर गिरती, मेरे घायल कूल्हे का दर्द मेरी जान निकाल देता। वो मुझे तब तक मारते रहे, जब तक थक नहीं गए। कुछ पल बाद, उन्होंने मुझे हेलमेट पहनने के साथ-साथ उकडूं होकर बैठने को कहा। मेरा सिर घूम रहा था, बेहोशी छा रही थी। खड़ी भी नहीं रह पा रही थी। उन्होंने मुझे अपने हाथ सामने की ओर करने को कहा और उन पर दो ग्लास पानी रख दिया। मेरे हाथ-पैरों में भयानक दर्द हो रहा था, पैर लगातार काँप रहे थे, मैं उन चीज़ों को संभाल नहीं पा रही थी। जैसे ही मेरे उकडूं होकर बैठने का तरीका खराब होता, वो मेरे पैरों पर लात मारते। इसके बाद, कुछ पुलिसवालों ने मुझे पकड़कर सोफे पर बिठा दिया, एक पुलिसवाला मेटल की रॉड से मेरी पीठ के निचले हिस्से और कूल्हों पर जोर-जोर से मारने लगा। दूसरे पुलिसवाले ने कहा, "एक ही जगह पर जोर-जोर से मारते रहो। जल्दी ही वो ये सब सह नहीं पाएगी, उसकी हिम्मत टूट जाएगी।" उसकी हर मार पर मुझे बहुत तेज़ दर्द होता और मैं चीखती रहती, फिर उन्होंने मेरे मुँह में एक कपड़ा ठूँस दिया। पुलिस की इस लगातार यातना को सहते-सहते, मैं बहुत डर गई और बेबस महसूस करने लगी, मैंने मन-ही-मन परमेश्वर को पुकारा, "परमेश्वर! मुझे डर है कि अब मेरे सब्र का बाँध टूटने वाला है। मुझे आस्था दो और राह दिखाओ, ताकि मैं इन सबका अनुभव कर सकूँ।" प्रार्थना के बाद, मैंने परमेश्वर के इन वचनों को याद किया, "विश्वास एक ही लट्ठे से बने पुल की तरह है: जो लोग घृणास्पद ढंग से जीवन से चिपके रहते हैं उन्हें इसे पार करने में परेशानी होगी, परन्तु जो आत्म बलिदान करने को तैयार रहते हैं, वे बिना किसी फ़िक्र के, मज़बूती से कदम रखते हुए उसे पार कर सकते हैं। अगर मनुष्य कायरता और भय के विचार रखते हैं तो ऐसा इसलिए है कि शैतान ने उन्हें मूर्ख बनाया है क्योंकि उसे इस बात का डर है कि हम विश्वास का पुल पार कर परमेश्वर में प्रवेश कर जायेंगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 6)। परमेश्वर के वचनों पर विचार करने पर मुझे समझ आया कि मैं कष्ट और पीड़ा के अपने डर के कारण, मैं हर हाल में इन हालात से बचकर निकलना चाहती थी, शैतान मुझे बेवकूफ़ बना चुका था। मेरा जीवन परमेश्वर के हाथों में था, और उसकी अनुमति के बिना, शैतान मेरा बाल भी बांका नहीं कर सकता था, उदके बाद मेरा सारा डर ख़त्म हो गया।
डिनर के बाद, वे लोग मुझे पुलिस थाने के डिप्टी चीफ के दफ़्तर लेकर गए। डिप्टी चीफ ने मेरी तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा, "शाओ झाओ, जिसे तुम्हारे साथ गिरफ्तार किया गया था, उसने अपनी गलती मान ली है, अब हम उसे घर भेजने वाले हैं। अगर तुमने भी अपनी गलती मान ली, तो मैं फ़ौरन तुम्हारे लिए डिनर तैयार करवाऊँगा, और फिर ट्रेन की टिकट खरीदकर तुम्हें उसके साथ सीधा घर भेज दूँगा। क्या कहती हो? तुम्हारे पास सोचने के लिए कुछ ही मिनट हैं। अगर तुमने अपना मुँह नहीं खोला, तो तुम्हें वापस वहीं भेज दिया जाएगा, जहाँ से तुम अभी आई हो, तुम्हारी पिटाई और यातनाओं पर मेरा कोई काबू नहीं है।" मैंने सोचा, "अगर मैंने उनके सवालों के जवाब नहीं दिये, तो मुझे यातना देते रहेंगे, और शायद मुझे जेल भी भेज दें ..." मैंने इस बारे में जितना सोचा, उतना ही दुख हुआ। मैं जानती थी कि मैं परमेश्वर से बहुत दूर हूँ, इसलिए मन-ही-मन उसे पुकारती रही, "परमेश्वर, मुझे जेल जाने से डर लग रहा है, मुझे यह पीड़ा सहने की शक्ति दो, अपने शरीर की कमज़ोरी पर विजय पाने के लिए मेरा मार्गदर्शन करो।" प्रार्थना के बाद, मैंने परमेश्वर के वचनों के इस भजन पर विचार किया, "तुम सृजित प्राणी हो—तुम्हें निस्संदेह परमेश्वर की आराधना और सार्थक जीवन का अनुसरण करना चाहिए। चूँकि तुम मानव प्राणी हो, इसलिए तुम्हें स्वयं को परमेश्वर के लिए खपाना और सारे कष्ट सहने चाहिए! आज तुम्हें जो थोड़ा-सा कष्ट दिया जाता है, वह तुम्हें प्रसन्नतापूर्वक और दृढ़तापूर्वक स्वीकार करना चाहिए और अय्यूब तथा पतरस के समान सार्थक जीवन जीना चाहिए। तुम सब वे लोग हो, जो सही मार्ग का अनुसरण करते हो, जो सुधार की खोज करते हो। तुम सब वे लोग हो, जो बड़े लाल अजगर के देश में ऊपर उठते हो, जिन्हें परमेश्वर धार्मिक कहता है। क्या यह सबसे सार्थक जीवन नहीं है?" ("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में 'सबसे सार्थक जीवन')। परमेश्वर के वचनों पर विचार करके मुझे समझ आया कि परमेश्वर में विश्वास करने के कारण ही मुझे गिरफ़्तार करके यातना दी गई, शायद मुझे जेल भी जाना पड़े, मगर मैं ये सारा अत्याचार सिर्फ धार्मिकता के लिए सह रही थी। मेरा कष्ट सहना सार्थक था, इससे मुझे परमेश्वर की स्वीकृति मिलेगी। मैं केवल अपनी शारीरिक पीड़ा के कारण परमेश्वर को धोखा नहीं दे सकती। अपने भाई-बहनों को धोखा देने से अच्छा तो मैं जेल ही चली जाऊँ। इसके बाद से, उसने मुझे बहकाने की जितनी भी कोशिशें की, मगर मैंने कुछ भी नहीं कहा। उसने परेशान होकर अपना सिर हिलाया। दूसरे पुलिसवाले ने मेटल की रॉड उठाकर, मेरी कमर और कूल्हों पर फिर से मारने लगा। उनके हर प्रहार से मेरा पूरा शरीर काँप उठता था, मुझसे सहा भी नहीं जा रहा था। मुझे कम्युनिस्ट पार्टी जैसे राक्षस से और भी ज़्यादा नफ़रत होने लगी, फिर वो मुझे कितना भी मारते, मैंने अपने दांत पीसते हुए यह फैसला कर लिया था कि मैं परमेश्वर के लिए गवाही ज़रूर दूँगी। काफी देर हो चुकी थी, जब थाने के डिप्टी चीफ ने देखा कि उन्हें मुझसे कोई जानकारी नहीं मिलने वाली, तो वो वहाँ से चला गया। फिर, जो पुलिसवाला मेरे लिए रोटी लेकर आया था, उसने कहा, "अब भी नहीं बोलोगी? तो आज मैं भी नहीं सोऊंगा। मैं तुम्हारी हालत खराब कर दूँगा। मेरा वादा है तुमसे, मैं तुम्हारा मुँह खुलवा कर रहूँगा!" फिर वो 30-40 सेंटीमीटर लंबा रूलर लेकर आया, उसने मेरे हाथ पकड़े और क्रूरता से मेरी हथेली पर मारने लगा। हर प्रहार के साथ मेरी हथेली में भयंकर दर्द होता, मार से बचने के लिए मैं झटके से अपने हाथ खींच लेती, मगर उसकी पकड़ मज़बूत थी, वो मेरी हथेलियों पर तब तक मारता रहा जब तक मेरी हथेलियां सूज नहीं गईं। फिर, उसने मेटल की रॉड उठाई और दोबारा मेरे कूल्हों पर मारने लगा। रॉड की हर मार से दर्द के मारे मेरी जान निकाली जा रही थी। दर्द इतना भयानक था कि मेरे पसीने छूट रहे थे और मैं चीख रही थी। उसने गुस्से से कहा, "हमने तुम पर इतने पैंतरे आज़माएं, मगर तुमने अपना मुँह नहीं खोला। हम ऐसा क्या करें जो तुम परमेश्वर को धोखा देने पर मजबूर हो जाओ? बताओ, जान ले लें तुम्हारी? या और भी ज़्यादा तकलीफ़ दें?"
जब मैंने कुछ नहीं बोला, तो उसने बौखलाते हुए मुझसे कहा, "मेरे पास तुम्हें सही रास्ते पर लाने के और भी तरीके हैं। देखते हैं तुम्हें कौन बचाता है!" ये कहकर, उसने एक मोटा जैकेट पहन लिया, एयर कंडीशनर का तापमान एकदम कम कर दिया, मुझे एयर कंडीशनर के सामने उकडूं होकर बैठने का आदेश दिया, फिर रुक-रुककर मेरे सिर और शरीर पर पानी डालता गया। मैं पूरी तरह भीग चुकी थी और ठंड से कांप रही थी। शरीर में गर्मी लाने के लिए मैंने अपने हाथों को नीचे करके रगड़ा, ये देखकर, उसने मेरे हाथों पर मेटल की रॉड से मारा और मुझे उन्हें सीधा रखने को कहा। कुछ देर बाद, उसने मुझे अपने पैर ज़्यादा से ज़्यादा फैलाने को कहा, फिर अंडरवियर को छोड़कर सारे कपड़े और पैंट उतार देने को कहा और नंगे पैर पानी में खड़े होने का आदेश दिया। जब मैंने उसकी बात नहीं सुनी, तो उसने कठोरता के साथ कहा, "उतारो इन्हें! कहीं मुझे खुद न उतारना पड़ जाये!" मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। मैं बहुत अपमानित महसूस कर रही थी और अपमान के कारण रोने लगी। फिर, उसने वाटर डिस्पेंसर का तापमान एकदम कम कर दिया और लगातार मुझ पर पानी डालता रहा। मैं ठंड के मारे निरंतर काँप रही थी, घुटने के जोड़ों में दर्द होने लगा था। मुझ पर पानी डालते हुए, उसने कहा, "मज़ा आ रहा है? आज की रात और भी मजेदार बनाना चाहता हूँ!" कुछ घंटों बाद, मेरा दम घुटने लगा, दिल बेचैन होने लगा, मेरा पूरा शरीर ठंड के मारे नीला पड़ चुका था। इस अमानवीय यातना का सामना करते हुए, मैं बहुत कमज़ोर हो गई। क्या 20 साल की उम्र में ही मेरी मौत हो जाएगी? मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना की, "परमेश्वर! मैं इन पुलिसवालों की यातना अब और नहीं सह सकती, मैं बहुत कमज़ोर महसूस कर रही हूँ। मेरा मार्गदर्शन करो, ताकि मैं तुम्हारी इच्छा को समझ सकूँ।" प्रार्थना के बाद, मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश याद आया। "तुम सब लोगों को शायद ये वचन स्मरण हों : 'क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है।' तुम सब लोगों ने पहले भी ये वचन सुने हैं, किंतु तुममें से कोई भी इनका सच्चा अर्थ नहीं समझा। आज, तुम उनकी सच्ची महत्ता से गहराई से अवगत हो। ये वचन परमेश्वर द्वारा अंत के दिनों के दौरान पूरे किए जाएँगे, और वे उन लोगों में पूरे किए जाएँगे जिन्हें बड़े लाल अजगर द्वारा निर्दयतापूर्वक उत्पीड़ित किया गया है, उस देश में जहाँ वह कुण्डली मारकर बैठा है। बड़ा लाल अजगर परमेश्वर को सताता है और परमेश्वर का शत्रु है, और इसीलिए, इस देश में, परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों को इस प्रकार अपमान और अत्याचार का शिकार बनाया जाता है, और परिणामस्वरूप, ये वचन तुम लोगों में, लोगों के इस समूह में, पूरे किए जाते हैं। चूँकि परमेश्वर का कार्य उस देश में आरंभ किया जाता है जो परमेश्वर का विरोध करता है, इसलिए परमेश्वर के कार्य को भयंकर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, और उसके बहुत-से वचनों को संपन्न करने में समय लगता है; इस प्रकार, परमेश्वर के वचनों के परिणामस्वरूप लोग शुद्ध किए जाते हैं, जो कष्ट झेलने का भाग भी है। परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना अत्यंत कठिन है—परंतु इसी कठिनाई के माध्यम से परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा करता है, अपनी बुद्धि और अपने अद्भुत कर्म प्रत्यक्ष करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। बड़ा लाल अजगर परमेश्वर से सबसे ज़्यादा नफ़रत और विरोध करता है, और मैं उसी बड़े लाल अजगर के देश में पैदा हुई हूँ। परमेश्वर में विश्वास करने वालों को कम्युनिस्ट पार्टी के अत्याचार और क्रूरता का सामना करना ही पड़ता है, मगर परमेश्वर इसी अत्याचार और विपत्ति के ज़रिए हमारी आस्था को पूर्ण करता है। फिर मैंने विचार किया कि जब मुझे पहले गिरफ़्तार करके सताया गया था, तब मैं अपनी आस्था को लेकर बहुत दृढ़ थी, परमेश्वर के लिए त्याग करने और खुद को खपाने को तैयार थी, मगर अब मैं जानती हूँ कि वह सच्ची आस्था नहीं थी, बस कुछ पल का संकल्प था। उसे गवाही नहीं माना जाएगा और न ही शैतान उसे स्वीकार करेगा। अब अत्याचार, पीड़ा और यातना झेलने के बाद, अगर मैं गवाही देने के लिए डटी रही और शैतान के सामने नहीं झुकी, तो यही सच्ची आस्था कही जाएगी। मैंने उन गवाही लेखों के बारे में सोचा जो मैंने आज तक पढ़े थे, किस तरह कई भाई-बहनों को गिरफ़्तार किया गया, उन्होंने जो यातनाएं सहीं वो मुझसे भी ज़्यादा भयानक थे, मगर इन सबके बावजूद वे शैतान के सामने नहीं झुके। प्रार्थना करते हुए, परमेश्वर पर भरोसा करके और सच्ची आस्था रखकर, उन्होंने ज़ोरदार गवाही दी, अब मुझे भी परमेश्वर पर भरोसा करके उसके लिए गवाही देनी होगी। इसका एहसास होते ही, मुझे मेरी शक्ति वापस मिल गई।
दोपहर में, मुझे नज़रबंदी केंद्र ले जाया गया, वहां पुलिसवालों ने मुझे चेताया, "जल्दी ही, हम चेक अप के लिए तुम्हें अस्पताल लेकर जाएँगे, और खबरदार जो तुमने उन्हें बताया कि तुम्हें ये चोटें हमारे कारण आई हैं। उनसे बस ये कहना कि तुम इस शहर में आना चाहती थी, तुम्हारे मॉम-डैड इसके लिए राज़ी नहीं थे, इसलिए उन्होंने तुम्हें इतना मारा। अगर तुमने उन्हें सच बताने की हिम्मत की, तो मैं तुम्हारा हाल बाद से बदतर कर दूँगा!" उसकी बात सुनकर, मेरा पारा चढ़ गया। ये पुलिसवाले इतने बेशर्म थे कि उन्होंने मुझे झूठ बोलने को कहा! मेरी शारीरिक जांच के दौरान, डॉक्टर ने मुझसे कहा कि मेरे दिल की धड़कनें बहुत धीरे चल रही हैं। उन्होंने यह भी गौर किया कि मेरी हथेलियां और चेहरा सूजकर लाल हो गया था, मेरे कूल्हे भी सूजकर काले-नीले पड़ चुके थे, मेरी जाँघों पर हर तरफ चोटें लगी थीं। उन्होंने हैरान होकर मुझसे पूछा, "तुम्हें इतनी चोटें कैसे आईं?" मैंने अपने बगल में खड़े पुलिसवाले की ओर नज़र घुमाई, और बेबस होकर बस इतना कहा, "मैं लापरवाही के कारण गिर पड़ी थी"। जब नज़रबंदी केंद्र में वापस आई, मेरे कूल्हों और जाँघों पर गंभीर चोटें थीं। उस रात मैं सोने के लिए बिस्तर पर सीधा लेट भी नहीं पा रही थी, आराम से बैठने के लिए, मुझे हाथों का सहारा लेना पड़ रहा था। नहाते वक्त, गलती से भी चोट वाली जगह पर हाथ लग जाने पर पूरा शरीर दर्द से सुन्न पड़ जाता था। एक डॉक्टर जिसे मेरी वाली कोठरी में ही रखा गया था, उसने कहा, "ये पुलिसवाले बहुत निर्दयी हैं। तुम्हारी चोटें ठीक होने में एक महीने से ज़्यादा का वक्त लगेगा।" मगर दस दिन के बाद ही, मेरी चोटों का दर्द काफी कम हो गया, मैं खुद को परमेश्वर का धन्यवाद करने से रोक नहीं सकी।
नज़रबंदी केंद्र में बिताये दो महीनों के दौरान, पुलिसवालों ने करीब दस बार मुझसे पूछताछ की, जब मैंने अपना मुँह नहीं खोला, तो उन्होंने मुझसे "तीन पत्रों" पर दस्तखत करवाने की कोशिश की, पहला, इस गारंटी का पत्र कि मैं परमेश्वर में विश्वास नहीं करूंगी; दूसरा, पश्चाताप का पत्र और तीसरा, कलीसिया से संबंध तोड़ने का पत्र। जब मैंने उन पर दस्तखत करने से मना कर दिया, तब वे मुझे यह कहकर धमकाने लगे, "अगर तुमने दस्तखत नहीं किए, तो तुम्हें कई सालों के लिए जेल में डाल दिया जाएगा। बाहर निकलने की तो सोचना भी मत।" मैंने जेल में बीतने वाले लंबे, अंतहीन समय के बारे में सोचा, जहाँ मेरे पास बात करने के लिए भी कोई नहीं होगा, जहाँ मुझे हर रोज़ कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी, फिर मैंने उस मार-पीट, बुरे बर्ताव और बदमाशियों के बारे में भी सोचा जो मुझे जेल रक्षकों और दूसरे कैदियों की वजह से सहना पड़ेगा ... मैं ऐसे माहौल में कैसे जी पाऊँगी? इस बारे में जितना सोचती, उतना ही ज़्यादा डर लगता, फिर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, "परमेश्वर! जेल में ऐसा अंधकारमय जीवन बिताने का विचार भी मेरे लिए भयंकर यातना के समान है, मैं तुमसे विनती करती हूँ, मुझे राह दिखाओ, ताकि मुझे आने वाले माहौल का सामने करने की आस्था मिले।" प्रार्थना के बाद, मुझे परमेश्वर के ये वचन याद आये, "कार्य के इस चरण में हमसे परम आस्था और प्रेम की अपेक्षा की जाती है। थोड़ी-सी लापरवाही से हम लड़खड़ा सकते हैं, क्योंकि कार्य का यह चरण पिछले सभी चरणों से अलग है : परमेश्वर मानवजाति की आस्था को पूर्ण कर रहा है—जो कि अदृश्य और अमूर्त दोनों है। इस चरण में परमेश्वर वचनों को आस्था में, प्रेम में और जीवन में परिवर्तित करता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मार्ग ... (8))। परमेश्वर के वचनों पर विचार करके मुझे सब कुछ समझ आ गया। अपनी परीक्षा के दौरान मैं परमेश्वर की इच्छा को समझ पाऊँ या नहीं, मुझे परमेश्वर में आस्था रखनी ही होगी। मैंने सोचा कि जब से मुझे गिरफ़्तार किया गया है, भले ही मैंने पुलिस के हाथों कुछ यातनाएं सही हैं, वास्तव में मैंने अपने लिए परमेश्वर की सुरक्षा भी देखी है। मैं पुलिस की क्रूर यातना को खुद कभी नहीं झेल पाती। मैं ऐसा करने में इसलिए सफल हो पाई, क्योंकि परमेश्वर का मार्गदर्शन और सुरक्षा हर कदम पर मेरे साथ थी। मैंने यह भी जाना कि परमेश्वर मेरी आस्था को पूर्ण करने के लिए इन हालात का इस्तेमाल कर रहा था, और अगर मुझे सजा देकर जेल भी भेज दिया गया, तो वो भी परमेश्वर की ही इच्छा होगी। मुझे हर हाल में इसका पालन करना था, परमेश्वर पर भरोसा करके इसका अनुभव करना था और विश्वास रखना था कि वह मेरा मार्गदर्शन ज़रूर करेगा। इसलिए, मैंने दृढ़ता के साथ उससे कहा कि, "मैं दस्तखत नहीं करूँगी!" उसने बेबसी में आह भरते हुए मेरी ओर उँगली दिखाकर कहा, "तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता।" फिर वो निराश होकर वहाँ से चला गया।
सितंबर की एक सुबह, पुलिसवाले मेरी आंटी और अंकल को वहाँ लेकर आए। मुझे मेटल की कुर्सी से बंधे देख, मेरी आंटी ने रोते हुए कहा, "बेवकूफ़ लड़की, तुमने यहाँ इतने दिन कैसे बिता लिए? हमने तुम्हें कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढा। तुम्हारे अंकल इतने परेशान हैं कि उनकी आँखें सूज गईं हैं, अब वे ठीक से देख भी नहीं पाते। बस परमेश्वर में विश्वास करना बंद करने के दस्तावेज़ पर दस्तखत करो और मेरे साथ घर चलो। तुम्हें यहाँ इतनी पीड़ा सहने की कोई ज़रूरत नहीं। पुलिस अधिकारी ने कहा, अगर तुमने इस शपथ पत्र पर दस्तखत कर दिये, तो वे तुम्हें ज़मानत दे देंगे, और फिर तुम घर जा सकोगी।" मेरे बगल में खड़े पुलिस अधिकारी ने कहा, "देखो, तुम्हारे अंकल-आंटी तुम्हारा कितना ख्याल रखते हैं, तुम्हारी कितनी फ़िक्र करते हैं। उनकी बात मानो, इस पत्र पर दस्तखत करो और उनके साथ घर चली जाओ।" मैंने अपने अंकल की ओर देखा, सफ़ेद बाल, मुरझाया हुआ चेहरा, धुंधली और सूजी हुई आँखें, और मेरी तरफ देखते हुए उनकी आँखों से आंसुओं की धार बह रही थी। उस पल, मैं अपने खुद के आँसू नहीं रोक पाई, मुझे काफी दुख हुआ। मुझे एहसास हुआ कि मेरी गिरफ़्तारी के कारण वे मेरे लिए इतने परेशान थे कि रात भर ड्राइव करके मुझसे मिलने पुलिस थाने आ गए। मेरे अंकल ने हमेशा मुझे अपनी बेटी माना था, मगर अब वो बूढ़े और बीमार हो चुके थे। मैंने आज तक उनके लिए कुछ नहीं किया, उल्टा मेरे कारण उन्हें इतनी परेशानी हुई। मुझे उनके साथ ऐसा करके बहुत बुरा लगा। अपने अंकल-आंटी को रोते-बिलखते देख मेरा दिल टूट गया। मेरी सब्र का बाँध टूट गया। मुझे लगा मैं उनकी ऋणी हूँ। मैंने सोचा, "क्या मुझे वाकई इन पत्रों पर दस्तखत करके उनके साथ घर चले जाना चाहिए?" मैंने देखा कि उस शपथ पत्र में परमेश्वर का तिरस्कार करने जैसी कोई बात नहीं लिखी थी, इसलिए इस पर दस्तखत करना इतना भी बुरा नहीं होगा। अगर मैं इस पर दस्तखत करके उनके साथ घर चली गई, तो मैं आने वाली हर परेशानी और मुसीबत से उनकी रक्षा भी कर सकूँगी। लेकिन अगर मैंने दस्तखत किए, तो मैं परमेश्वर का विरोध करके उसे धोखा दूँगी ... मैं इसी उधेड़बुन में थी, तभी मेरी आंटी ने सिसकते हुए कहा, "नादान लड़की, मेरी बात मानो और इस पर दस्तखत कर दो!" अपने अंकल-आंटी की उम्मीद भरी आँखों में देखकर, मैंने सोचा कि मैं अपने कारण उन्हें परेशान या दुखी नहीं होने दे सकती। इसलिए, मैंने शपथ पत्र पर अपने दस्तखत कर दिए। दस्तखत करते ही, मेरे दिल में सब कुछ खाली महसूस होने लगा, और तब जाकर मुझे होश आया: मैंने इस शपथ पत्र पर दस्तखत क्यों किए? क्या मैं ऐसा करके परमेश्वर को धोखा नहीं दे रही? परमेश्वर मेरे जैसी इंसान को कभी नहीं अपनाएगा, इसका मतलब तो यही है न कि परमेश्वर में विश्वास करने की मेरी यात्रा यहीं समाप्त हो गई? उस वक्त मेरा दिमाग बिलकुल खोखला हो चुका था। मुझे याद भी नहीं कि मैं जेल की कोठरी में वापस कब आई। उस दौरान, जब भी मैंने उस शपथ पत्र पर दस्तखत करने के बारे में सोचा, मुझे बहुत अफ़सोस और पछतावा हुआ, मैं अपने आँसू नहीं रोक पाई। मुझे लगा जैसे मेरी दुनिया ही ख़त्म हो गई, मैंने फ़ौरन परमेश्वर के वचनों के इस अंश को याद किया, "मैं उन लोगों पर अब और दया नहीं करूँगा, जिन्होंने गहरी पीड़ा के समय में मेरे प्रति रत्ती भर भी निष्ठा नहीं दिखाई, क्योंकि मेरी दया का विस्तार केवल इतनी दूर तक ही है। इसके अतिरिक्त, मुझे ऐसा कोई इंसान पसंद नहीं, जिसने कभी मेरे साथ विश्वासघात किया हो, और ऐसे लोगों के साथ जुड़ना तो मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं, जो अपने मित्रों के हितों को बेच देते हैं। चाहे जो भी व्यक्ति हो, मेरा यही स्वभाव है। मुझे तुम लोगों को बता देना चाहिए : जो कोई मेरा दिल तोड़ता है, उसे दूसरी बार मुझसे क्षमा प्राप्त नहीं होगी, और जो कोई मेरे प्रति निष्ठावान रहा है, वह सदैव मेरे हृदय में बना रहेगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपनी मंजिल के लिए पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करो)। परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव का अपमान नहीं किया जा सकता। मैंने विचार किया कि कैसे मैं इस परीक्षा के अनुभव से गुज़री और कैसे मैंने परमेश्वर में विश्वास न करने के शपथ पर दस्तखत कर दिए। मुझे एहसास हुआ कि यह शैतान के सामने परमेश्वर को नकारना और उसे धोखा देना है, और अब मुझ पर जीवन भर के लिए यह दाग लग चुका है जो कभी नहीं मिटेगा। अपने मन में परमेश्वर के लिए जगह न रखने और अपनी परीक्षा के दौरान परमेश्वर की इच्छा को न खोजने के कारण मुझे खुद से नफरत हो गई। अगर मैंने उस वक्त प्रार्थना करके थोड़ी और खोज की होती, तो शैतान मुझे बेवकूफ़ नहीं बना पाता। उस दौरान, मैं खुद को दोष देने की हालत में जीती रही, इस बात पर विचार करती रही कि क्यों मैंने परमेश्वर को धोखा दिया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मेरे अंकल-आंटी मेरा बहुत ख़याल रखते थे। मैं उन्हें परेशान नहीं करना चाहती थी, उनकी ऋणी बनकर नहीं रहना चाहती थी। मैं अपनी भावनाओं के जाल में फँसकर जीवन जी रही थी। दरअसल, पुलिसवालों ने ही मेरे अंकल-आंटी को वहाँ बुलाया था। उन्होंने मुझे परमेश्वर को धोखा देने पर मजबूर करने के लिए, परिवार के प्रति मेरी भावनाओं का इस्तेमाल किया, क्योंकि मेरी भावनाएं बहुत गहरी थीं और मुझमें विवेक की कमी थी, मैं शैतान के जाल में फँसकर अंत में परमेश्वर को धोखा दे बैठी। मैं कितनी बेवक़ूफ़ थी। इस बारे में जितना सोचा, मुझे उतना ही पछतावा हुआ और मैंने खुद को दोषी महसूस किया। मैंने सोचा, अगर मुझे एक और मौका मिला, तो मैं कभी परमेश्वर को नहीं ठुकराऊँगी और किसी पत्र पर दस्तखत नहीं करूंगी।
इसके बाद, मेरी बहन ने पुलिसवालों को मेरी सेहत सुधारने वाली कई कीमती दवाएं दीं, जैसे कि जिनसेंग और डीयर एंटलर, पुलिसवालों को 2,000 युआन भी दिए, मेरे अंकल ने मेरी ज़मानत के लिए 5,000 युआन और जमा किए, तब जाकर पुलिस ने मुझे ज़मानत दी। ज़मानत की प्रक्रियाएं पूरी करने के दौरान, पुलिसवालों ने मुझे उस कंप्यूटर को अनलॉक करने के लिए कहा जिसे उन्होंने ज़ब्त किया था। उन्होंने कहा कि अगर मैंने ऐसा नहीं किया, तो मुझे जेल जाना ही पड़ेगा। मेरे भाई और परिवार के अन्य लोगों ने मुझे उनकी बात मानने की सलाह दी। मैंने सोचा, "कंप्यूटर में तो कलीसिया की सारी जानकारी है, और अगर पुलिस को ये मिल गई, तो इससे कलीसिया के काम को पक्के तौर पर नुकसान पहुँचेगा। मैं गवाही देने का एक मौका पहले ही गँवा चुकी हूँ, इसलिए मुझे परमेश्वर को धोखा देनेवाले सभी कामों से इनकार करना होगा।" मैंने पुलिसवालों को कहा कि मुझे पासवर्ड नहीं पता। उन्होंने हार नहीं मानी। वे बार-बार मुझ पर दबाव बनाते रहे कि मैं पहले कंप्यूटर ऑन करूँ और फिर पासवर्ड याद करने की कोशिश करूँ, मगर चमत्कार की बात है कि कंप्यूटर चालू ही नहीं हुआ। पुलिसवालों ने वजह जानने के लिए एक तकनीशियन को फ़ोन लगाया, तो उन्हें पता चला कि ऐसा हार्ड ड्राइव खराब होने के कारण हो सकता है। उसने बेबस होकर कहा, "दफ़्तर जाकर पैसे जमा करो और ज़मानत की प्रक्रिया पूरी करो।" ये सब देखकर, मुझे परमेश्वर की यह बात याद आई, "कोई भी और सभी चीज़ें, चाहे जीवित हों या मृत, परमेश्वर के विचारों के अनुसार ही जगह बदलेंगी, परिवर्तित, नवीनीकृत और गायब होंगी। परमेश्वर सभी चीज़ों को इसी तरीके से संचालित करता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)। मैंने सचमुच यह अनुभव किया कि परमेश्वर का अधिकार हर जगह है, और सब कुछ उसके हाथों में ही है। मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर असल में मेरे साथ ही है, मुझ पर नज़र रखकर मेरा मार्गदर्शन कर रहा है, मेरा दिल परमेश्वर के प्रति आभार और प्रशंसा से भर गया!
बाद में, "कानून लागू करने की प्रक्रिया में रुकावट डालने के लिए कुपंथ संगठनों का आयोजन और इस्तेमाल करने" के अपराध में कम्युनिस्ट पार्टी ने मुझे 1.5 साल जेल की सजा दी और 1.5 साल के लिए सजा पर अस्थायी रोक लगाया। मुझे डर था कि अपने भाई-बहनों से संपर्क करना उनके लिए खतरनाक साबित हो सकता है, इसलिए मैं गुप्त रूप से घर पर ही रहकर परमेश्वर के वचन पढ़ती रही। हालांकि कम्युनिस्ट पार्टी ने मेरी निजी आज़ादी को सीमित कर दिया था, मगर वो परमेश्वर का अनुसरण करने की मेरी इच्छा को सीमित नहीं कर सके। इस यादगार अनुभव से मैं कम्युनिस्ट पार्टी के परमेश्वर विरोधी और सत्य से नफरत करने वाले राक्षसी सार को साफ़ तौर पर समझ पाई, और उसका पूरी तरह से त्याग करके ठुकराने में भी सफल हुई। मैं परमेश्वर के वचनों के अधिकार और सामर्थ्य को भी महसूस कर पाई। कई बार ऐसा हुआ जब मैं क्रूर शारीरिक यातना को सहन नहीं कर पाती थी। तब परमेश्वर के वचनों ने ही मुझे आस्था और हिम्मत दी, बार-बार की यातना से उबर पाने में मेरा मार्गदर्शन किया। मुझे एहसास हुआ कि मैं केवल परमेश्वर पर ही भरोसा कर सकती हूँ। अत्याचार और विपत्ति का अनुभव करके, मैंने देखा कि मेरा आध्यात्मिक कद भी बहुत छोटा था। क्योंकि मुझे सत्य की समझ नहीं थी, और मैं अपनी भावनाओं के सार को नहीं समझ पा रही थी, इसलिए मैंने अपने परिवार वालों की बात मानकर शपथ पत्र पर दस्तखत कर दिए, मगर परमेश्वर ने मेरे अपराध के कारण मुझे हटाया नहीं, बल्कि पश्चाताप का एक और मौक़ा दिया। उसने मुझे अपने वचनों से प्रबुद्ध करके मेरा मार्गदर्शन किया, मैंने अपने लिए उसके प्रेम और दया को महसूस किया, जिसने मुझे सत्य का अनुसरण करने के लिए और भी ज़्यादा दृढ़-संकल्प बना दिया। हो सकता है एक दिन कम्युनिस्ट पार्टी मुझे दोबारा गिरफ्तार कर ले, मगर मैं परमेश्वर पर भरोसा करके उसे संतुष्ट करने के लिए ज़ोरदार गवाही देने को तैयार हूँ।
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?