कार्य और प्रवेश (4)

यदि मनुष्य वास्तव में पवित्र आत्मा के कार्य के अनुसार प्रवेश कर सके, तो उसका जीवन वसंत ऋतु की वर्षा के बाद बाँस की कली की तरह शीघ्र अंकुरित हो जाएगा। अधिकांश लोगों की मौज़ूदा कद-काठी को देखते हुए, लोग जीवन को कोई महत्व नहीं देते, और इसके बजाय वे कुछ निरर्थक मामलों को महत्व देते हैं। या वे यह न जानते हुए कि किस दिशा में जाना है और यह तो बिलकुल भी न जानते हुए कि किसके लिए जाना है, इधर-उधर भाग रहे हैं और ध्यान केंद्रित किए बिना, उद्देश्यहीन और मनमाने तरीके से कार्य कर रहे हैं। वे केवल “विनम्रतापूर्वक स्वयं को छिपा रहे हैं।” सच्चाई यह है कि तुम लोगों में से कुछ ही लोग अंत के दिनों के लिए परमेश्वर के इरादों को जानते हैं। तुम लोगों में से शायद ही कोई परमेश्वर के पदचिह्न को जानता है, लेकिन उससे भी बुरा यह है कि कोई नहीं जानता, कि परमेश्वर का अंतिम निष्पादन क्या होगा। फिर भी, हर कोई, विशुद्ध साहस और सहनशीलता के द्वारा, दूसरों के अनुशासन और व्यवहार से गुज़र रहा है, मानो जीत की घड़ी की प्रत्याशा में मांसपेशियों की कसरत कर लड़ाई के लिए तैयार हो रहा हो।[1] मनुष्यों के बीच चल रहे इन “अजीब तमाशों” पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करूँगा, लेकिन एक बात है, जो तुम सभी को समझनी चाहिए। अभी ज्यादातर लोग असामान्यता[2] की दिशा में प्रगति कर रहे हैं, और प्रवेश में अपने कदमों से वे एक अंधी गली[3] की ओर बढ़ रहे हैं। ऐसे कई लोग हो सकते हैं, जो मानते हों कि वह मानव-जगत के बाहर एक आदर्श-लोक है, जिसे स्वतंत्रता-क्षेत्र मानते हुए, मनुष्य उसकी लालसा करता है। किंतु वास्तव में, वह नहीं है। या शायद कोई कह सकता है कि लोग पहले ही भटक चुके हैं। लेकिन लोग चाहे कुछ भी कर रहे हों, मैं अभी भी इस बारे में बात करना चाहता हूँ कि वह क्या है, जिसमें मनुष्य को प्रवेश करना चाहिए। बहुसंख्यकों की खूबियाँ और खामियाँ इस प्रवचन का मुख्य विषय नहीं हैं। मुझे आशा है कि तुम सभी भाई-बहन मेरे वचनों को सही रूप में ग्रहण करने में सक्षम होगे और मेरे इरादे को ग़लत नहीं समझोगे।

परमेश्वर ने चीन की मुख्य भूमि में देहधारण किया है, जिसे हांगकांग और ताइवान के हमवतन लोग “आंतरिक भाग” कहते हैं। जब परमेश्वर ऊपर से पृथ्वी पर आया, तो स्वर्ग में और पृथ्वी पर कोई इसके बारे में नहीं जानता था, क्योंकि यही परमेश्वर का एक गुप्त हालत में लौटने का वास्तविक अर्थ है। वह लंबे समय से देह में रहकर कार्य कर रहा है, फिर भी इसके बारे में कोई नहीं जानता। यहाँ तक कि आज भी इसे कोई नहीं पहचानता। शायद यह एक शाश्वत पहेली बनी रहेगी। इस बार परमेश्वर का देह में आना ऐसा नहीं है, जिसके बारे कोई मनुष्य नहीं जान सकता। पवित्रात्मा का कार्य चाहे कितने भी बड़े पैमाने का और कितना भी शक्तिशाली हो, परमेश्वर हमेशा भावहीन बना रहता है, अपने बारे में कभी कुछ नहीं बताता। कोई कह सकता है कि उसके कार्य का यह चरण ऐसा है, मानो स्वर्ग के क्षेत्र में हो रहा हो। यद्यपि यह हर उस व्यक्ति को बिल्कुल स्पष्ट है, जिसके पास देखने के लिए आँखें हैं, किंतु कोई इसे नहीं पहचानता। जब परमेश्वर अपने कार्य के इस चरण को समाप्त कर लेगा, तो हर मनुष्य अपना सामान्य रवैया छोड़ देगा[4] और अपने लंबे सपने से जाग जाएगा। मुझे याद है, परमेश्वर ने एक बार कहा था, “इस बार देह में आना शेर की माँद में गिरने जैसा है।” इसका अर्थ यह है कि, चूँकि परमेश्वर के कार्य के इस चक्र में परमेश्वर देह में आता है और इतना ही नहीं, बड़े लाल अजगर के निवास-स्थान में पैदा होता है, इसलिए इस बार धरती पर आकर वह पहले से भी अधिक बड़े ख़तरे का सामना करता है। वह चाकुओं, बंदूकों, लाठियों और डंडों का सामना करता है; वह प्रलोभन का सामना करता है; वह हत्या के इरादे से भरे चेहरों वाली भीड़ का सामना करता है। वह किसी भी समय मारे जाने का जोख़िम उठाता है। परमेश्वर अपने साथ कोप लेकर आया। किंतु वह पूर्णता का कार्य करने के लिए आया, जिसका अर्थ है कि वह कार्य का दूसरा भाग करने के लिए आया, जो छुटकारे के कार्य के बाद जारी रहता है। अपने कार्य के इस चरण के वास्ते, परमेश्वर ने अत्यधिक विचार किया है और इस पर अत्यधिक ध्यान दिया है, और स्वयं को विनम्रतापूर्वक छिपाते हुए और अपनी पहचान का कभी घमंड न करते हुए, प्रलोभन के हमलों से बचने के लिए हर कल्पनीय साधन का उपयोग कर रहा है। सलीब से मनुष्य को बचाने में यीशु केवल छुटकारे का कार्य पूरा कर रहा था; वह पूर्णता का कार्य नहीं कर रहा था। इस प्रकार परमेश्वर का केवल आधा कार्य ही किया जा रहा था, छुटकारे का कार्य पूरा करना उसकी संपूर्ण योजना का केवल आधा भाग ही था। चूँकि नया युग शुरू और पुराना युग समाप्त होने वाला था, इसलिए परमपिता परमेश्वर ने अपने कार्य के दूसरे हिस्से पर विचार करना शुरू किया और उसके लिए तैयारी करनी शुरू कर दी। अंत के दिनों में इस देहधारण की भविष्यवाणी अतीत में स्पष्ट रूप से नहीं की गई थी, जिसके परिणामस्वरूप इस बार परमेश्वर के देह में आने को लेकर अधिक गोपनीयता की नींव रखी गई। भोर के समय, अधिकांश लोगों की जानकारी में आए बिना, परमेश्वर पृथ्वी पर आया और देह में अपना जीवन शुरू कर दिया। लोग इस क्षण के आगमन से अनभिज्ञ थे। कदाचित वे सब घोर निद्रा में थे, कदाचित बहुत-से लोग जो सतर्कतापूर्वक जागे हुए थे, प्रतीक्षा कर रहे थे, और कदाचित कई लोग स्वर्ग के परमेश्वर से चुपचाप प्रार्थना कर रहे थे। किंतु इन सभी अनेक लोगों के बीच, एक भी व्यक्ति नहीं जानता था कि परमेश्वर पहले ही पृथ्वी पर आ चुका है। परमेश्वर ने ऐसा इसलिए किया, ताकि वह अपना कार्य अधिक सुचारु रूप से कर सके और बेहतर परिणाम प्राप्त कर सके, और साथ ही, पहले से अधिक प्रलोभनों की पहले से रोकथाम कर सके। जब मनुष्य की वसंत की नींद टूटेगी, तो परमेश्वर का कार्य बहुत पहले ही समाप्त हो गया होगा और वह पृथ्वी पर भ्रमण और अस्थायी निवास का अपना जीवन पूरा करके चला जाएगा। चूँकि परमेश्वर के कार्य के लिए परमेश्वर का व्यक्तिगत रूप से कार्य करना और बोलना आवश्यक है, और चूँकि उसमें मनुष्य के हस्तक्षेप करने का कोई उपाय नहीं है, इसलिए परमेश्वर ने स्वयं कार्य करने हेतु पृथ्वी पर आने के लिए अत्यधिक पीड़ा सही है। मनुष्य परमेश्वर के कार्य के लिए उसका स्थान लेने में असमर्थ है। इसलिए परमेश्वर ने पृथ्वी पर अपना स्वयं का कार्य करने, अपनी समस्त सोच और देखरेख दरिद्र लोगों के इस समूह को, गोबर के ढेर में पड़े लोगों के इस समूह को छुटकारा दिलाने हेतु, उस स्थान पर आने के लिए जहाँ बड़ा लाल अजगर निवास करता है, अनुग्रह के युग के ख़तरों की अपेक्षा कई हजार गुना बड़े ख़तरे उठाने का जोखिम लिया है। यद्यपि कोई भी व्यक्ति परमेश्वर के अस्तित्व के बारे में नहीं जानता, फिर भी परमेश्वर परेशान नहीं है, क्योंकि इससे परमेश्वर के कार्य में बहुत लाभ मिलता है। चूँकि हर कोई परम नृशंस और दुष्ट है, इसलिए वे परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे बरदाश्त कर सकते हैं? इसी कारण, पृथ्वी पर आकर, परमेश्वर हमेशा चुप रहता है। हालाँकि मनुष्य क्रूरता की निकृष्टतम अतियों में डूब चूका है, फिर भी परमेश्वर उनमें से किसी को भी गंभीरता से नहीं लेता, बल्कि उस कार्य को करता रहता है जिसे करने की उसे आवश्यकता है, ताकि उस बड़े कार्यभार को पूरा कर सके, जो स्वर्गिक पिता ने उसे सौंपा है। तुम लोगों में से किसने परमेश्वर की मनोरमता को पहचाना है? कौन परमपिता परमेश्वर के भार के प्रति उसके पुत्र से अधिक विचारशीलता दर्शाता है? कौन परमपिता परमेश्वर की इच्छा को समझने में सक्षम है? स्वर्ग में परमपिता परमेश्वर का आत्मा अक्सर परेशान रहता है, और पृथ्वी पर उसका पुत्र परमपिता परमेश्वर की इच्छा की खातिर बारंबार प्रार्थना करता है, जिससे उसका हृदय चिंता से टुकड़े-टुकड़े हो जाता है। क्या कोई है, जो परमपिता परमेश्वर के अपने बेटे के लिए प्यार को जानता हो? क्या कोई है, जो जानता हो कि कैसे प्यारा पुत्र परमपिता परमेश्वर को याद करता है? स्वर्ग और पृथ्वी के बीच विदीर्ण हुए, दोनों दूर से एक-दूसरे की ओर, पवित्रात्मा में एक-दूसरे का अनुसरण करते हुए, लगातार निहार रहे हैं। हे मानवजाति! तू परमेश्वर के हृदय के प्रति कब विचारशील होगी? तू कब परमेश्वर के अभिप्राय को समझेगी? पिता और पुत्र हमेशा एक-दूसरे पर निर्भर रहे हैं। फिर क्यों उन्हें पृथक किया जाना चाहिए, एक ऊपर स्वर्ग में और एक नीचे पृथ्वी पर? पिता अपने पुत्र से उतना ही प्यार करता है, जितना पुत्र अपने पिता से प्यार करता है। फिर क्यों पिता को इतनी गहरी और दर्दनाक उत्कंठा के साथ पुत्र की प्रतीक्षा करनी चाहिए? भले ही वे लंबे समय से पृथक न हुए हों, फिर भी किसे पता है कि कितने दिनों और रातों से पिता दर्दभरे उद्वेग से तड़प रहा है, और कितने लंबे समय से वह अपने प्रिय पुत्र की त्वरित वापसी के लिए प्रतीक्षा कर रहा है? वह देखता रहता है, मौन होकर बैठा रहता है और प्रतीक्षा करता रहता है; ऐसा कुछ नहीं है, जो वह अपने प्रिय पुत्र की त्वरित वापसी के लिए न करता हो। उसका पुत्र पृथ्वी के छोरों तक भटक चुका है : वे कब फिर एक-दूसरे से मिलेंगे? भले ही पुनः मिलने के बाद वे अनंत काल तक साथ रहेंगे, किंतु वह हजारों दिनों और रातों के अलगाव को कैसे सहन कर सकता है, एक ऊपर स्वर्ग में और दूसरा नीचे पृथ्वी पर? पृथ्वी के दशक स्वर्ग में शताब्दियों जैसे लगते हैं। कैसे परमपिता परमेश्वर चिंता न करे? जब परमेश्वर पृथ्वी पर आता है, तो वह मानव-जगत के अनगिनत उतार-चढ़ावों का वैसे ही अनुभव करता है, जैसे मनुष्य करता है। परमेश्वर निर्दोष है, फिर क्यों उसे वही दर्द सहना पड़े, जो आदमी सहता है? कोई आश्चर्य नहीं कि परमपिता परमेश्वर अपने पुत्र के लिए इतना अधिक लालायित रहता है; परमेश्वर के हृदय को कौन समझ सकता है? परमेश्वर मनुष्य को बहुत अधिक देता है; कैसे मनुष्य परमेश्वर के हृदय को पर्याप्त रूप से चुका सकता है? फिर भी मनुष्य परमेश्वर को बहुत कम देता है; इसलिए परमेश्वर चिंता क्यों नहीं कर सकता?

मनुष्यों में से में शायद ही कोई परमेश्वर की मनःस्थिति की अत्यावश्यकता को समझता है, क्योंकि मनुष्यों की क्षमता बहुत निम्न और उनकी आत्मा काफी सुस्त है, और इसलिए वे सब न तो परवाह करते हैं और न ही ध्यान देते हैं कि परमेश्वर क्या कर रहा है। इसलिए परमेश्वर मनुष्य के बारे में लगातार व्यग्र रहता है, मानो मनुष्य की पाशविक प्रकृति किसी भी क्षण बाहर आ सकती हो। इससे मनुष्य और भी ज्यादा स्पष्टता से देख सकता है कि परमेश्वर का पृथ्वी पर आना अत्यधिक बड़े प्रलोभनों से जुड़ा है। किंतु लोगों के एक समूह को पूर्ण करने के वास्ते, महिमा से पूरी तरह भरे हुए परमेश्वर ने मनुष्य को, उससे कुछ भी न छिपाते हुए, अपने हर इरादे के बारे में बता दिया। उसने लोगों के इस समूह को पूर्ण करने के लिए दृढ़ता से संकल्प किया है, और इसलिए, चाहे जो कठिनाई या प्रलोभन आ जाए, वह नज़र फेर लेता है और इस सबको अनदेखा करता है। वह केवल चुपचाप अपना कार्य करता है, और दृढ़ता से यह विश्वास करता है कि एक दिन जब परमेश्वर महिमा प्राप्त कर लेगा, तो मनुष्य उसे जान लेगा, और वह यह भी विश्वास करता है कि जब मनुष्य परमेश्वर द्वारा पूर्ण कर दिया जाएगा, तो वह परमेश्वर के हृदय को पूरी तरह से समझ जाएगा। अभी ऐसे लोग हो सकते हैं, जो परमेश्वर को प्रलोभित कर सकते हैं या उसे गलत समझ सकते हैं या उसे दोष दे सकते हैं; परमेश्वर इनमें से किसी को भी गंभीरता से नहीं लेता। जब परमेश्वर महिमा में उतरेगा, तो सभी लोग समझ जाएँगे कि परमेश्वर जो कुछ भी करता है, मानव-जाति की खुशी के लिए करता है, और वे सब समझ जाएँगे कि परमेश्वर जो कुछ भी करता है, इसलिए करता है ताकि मानव-जाति बेहतर ढंग से जीवित रह सके। परमेश्वर प्रलोभन लेकर आता है, और वह प्रताप और कोप लेकर भी आता है। जब परमेश्वर मनुष्य को छोड़कर जाएगा, तो उसने बहुत पहले ही महिमा प्राप्त कर ली होगी, और वह पूरी तरह से महिमा से भरा हुआ और वापसी की खुशी के साथ चला जाएगा। लोग चाहे परमेश्वर को कैसे भी नकारें, पृथ्वी पर कार्य करने वाला परमेश्वर ऐसी बातों को गंभीरता से नहीं लेता। वह केवल अपना कार्य करता रहता है। परमेश्वर द्वारा विश्व का सृजन हजारों वर्ष पहले का है। वह पृथ्वी पर एक असीमित मात्रा में कार्य करने के लिए आया है, और उसने मानव-जगत की अस्वीकृति और बदनामी का पूरी तरह से अनुभव किया है। परमेश्वर के आगमन का कोई स्वागत नहीं करता; उसका बेरुखी से अभिवादन किया जाता है। इन हजारों वर्षों की कठिनाइयों के दौरान, मनुष्य के आचरण ने बहुत पहले ही परमेश्वर को बहुत गहरा घाव दिया है। वह अब लोगों के विद्रोह पर ध्यान नहीं देता, बल्कि इसके बजाय उसने मनुष्य को रूपांतरित और शुद्ध करने के लिए एक अलग योजना बनाई है। उपहास, निंदा, उत्पीड़न, क्लेश, सलीब पर चढ़ने की पीड़ा, मनुष्य द्वारा बहिष्कार आदि वे चीज़ें हैं, जिनका परमेश्वर ने देह में आने के बाद से सामना किया है : परमेश्वर ने इन चीज़ों का खूब स्वाद चखा है, और जहाँ तक मानव-जगत की कठिनाइयों का संबंध है, देह में आए परमेश्वर ने इन्हें पूरी तरह से भुगता है। स्वर्ग के परमपिता परमेश्वर के आत्मा ने बहुत समय पहले ही ऐसे दृश्यों की असहनीयता जान ली थी, और अपना सिर पीछे करके और आँखें मूँदकर वह अपने प्यारे पुत्र की वापसी का इंतजार करता है। वह केवल इतना ही चाहता है कि सभी लोग सुनें और आज्ञापालन करें, और उसके देह के सामने अत्यधिक शर्मिंदगी महसूस करके उसके ख़िलाफ विद्रोह करना बंद करें। वह केवल इतना ही चाहता है कि मनुष्य परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास करने में सक्षम हो। उसने बहुत समय पहले ही मनुष्य से अधिक माँगें करनी बंद कर दी हैं, क्योंकि परमेश्वर ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई है, फिर भी मनुष्य निश्चिंत है[5] और परमेश्वर के कार्य को ज़रा भी गंभीरता से नहीं लेता।

यद्यपि आज मैं परमेश्वर के कार्य के बारे में जो बातें कह रहा हूँ, वे बहुत “निराधार विसंगति”[6] से भरी हो सकती हैं, फिर भी मनुष्य के प्रवेश के संबंध में उनकी बहुत अधिक प्रासंगिकता है। मैं मात्र कार्य के बारे में कुछ बात कर रहा हूँ और फिर प्रवेश के बारे में कुछ बात कर रहा हूँ, लेकिन दोनों पहलू समान रूप से अपरिहार्य हैं, और जब वे संयुक्त होते हैं, तो मनुष्य के जीवन के लिए और भी अधिक लाभकारी हो जाते हैं। ये दोनों पहलू एक-दूसरे के पूरक[7] और बहुत लाभदायक हैं, जो लोगों को परमेश्वर की इच्छा को बेहतर ढंग से समझने देते हैं और लोगों और परमेश्वर के बीच संप्रेषण संभव बनाते हैं। कार्य पर आज की बातचीत के माध्यम से परमेश्वर के साथ मनुष्य का संबंध और सुधरा है, आपसी समझ गहरी हुई है, और मनुष्य परमेश्वर के भार के प्रति और अधिक विचारशीलता और परवाह करने में समर्थ हुआ है; मनुष्य को वह महसूस करवा दिया गया है जो परमेश्वर महसूस करता है, वह परमेश्वर द्वारा परिवर्तित किए जाने के बारे में अधिक आश्वस्त है, और परमेश्वर के पुनः प्रकट होने की प्रतीक्षा करता है। यह आज मनुष्य से परमेश्वर की एकमात्र माँग है—एक ऐसे व्यक्ति की छवि जीना, जो परमेश्वर से प्यार करता है, ताकि परमेश्वर की बुद्धि के क्रिस्टलीकरण का प्रकाश अंधकार के युग में चमके और मनुष्य का जीवन दुनिया के ध्यानाकर्षण और सभी की प्रशंसा का अधिकारी होकर, सदैव के लिए विश्व के पूर्व में चमकते हुए, परमेश्वर के कार्य में एक उज्ज्वल पृष्ठ पीछे छोड़े। वर्तमान युग में जो लोग परमेश्वर से प्यार करते हैं, उनके लिए यह सबसे निश्चित रूप से, और भी अधिक बेहतर प्रवेश है।

फुटनोट :

1. “मांसपेशियों की कसरत कर लड़ाई के लिए तैयार हो रहा हो” का उपयोग उपहासपूर्वक किया गया है।

2. “असामान्यता” का अर्थ है कि लोगों की प्रविष्टि विचलन-भरी है और उनके अनुभव एकतरफ़ा हैं।

3. “एक अंधी गली” का अर्थ है कि लोग जिस मार्ग पर चल रहे हैं, वह परमेश्वर की इच्छा के विपरीत है।

4. “अपना सामान्य रवैया छोड़ देगा” इस बात को संदर्भित करता है कि एक बार परमेश्वर को जान लेने पर उसके बारे में लोगों की धारणाएँ और विचार किस तरह बदल जाते हैं।

5. “निश्चिंत है” का अर्थ है कि लोग परमेश्वर के कार्य के बारे में बेपरवाह हैं और उसे उतना महत्वपूर्ण नहीं समझते।

6. “निराधार विसंगति” का अर्थ है कि लोग परमेश्वर द्वारा बोले जाने वाले वचनों का आधार समझने में बुनियादी रूप से अक्षम हैं और वे नहीं जानते कि वह किस बारे में बात कर रहा है। यह वाक्यांश व्यंग्यात्मक रूप में इस्तेमाल किया गया है।

7. “एक-दूसरे के पूरक” का अर्थ है कि संगति में “कार्य” और “प्रवेश” को संयुक्त करना परमेश्वर के बारे में हमारे ज्ञान के लिए और भी अधिक लाभदायक होगा।

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