152 सार में मसीह स्वर्गिक पिता की इच्छा का पालन करता है
मसीह का सार आत्मा है, ये सार तो दिव्यता है।
1
मसीह का सार स्वयं ईश्वर का सार है,
जो उसके काम को बाधित नहीं करेगा।
वो ऐसा कोई काम नहीं कर सकता
जो उसके ही काम को नष्ट करे।
मसीह ऐसे वचन नहीं बोल सकता
जो उसकी ही इच्छा के विरुद्ध हों।
देहधारी ईश्वर ऐसा काम नहीं करेगा
जो उसके ही प्रबंधन को रोके।
ईश्वर में कोई विद्रोह नहीं;
ईश्वर का सार सिर्फ अच्छाई है।
वो सारी सुंदरता, अच्छाई और प्रेम को व्यक्त करे।
देह में भी, पिता की आज्ञा माने।
अपना जीवन देना पड़े तो भी,
वो हमेशा पूरे मन से तैयार रहेगा।
2
ईश्वर में कोई आत्मतुष्टि नहीं;
कोई छल या घमंड नहीं।
काम कितना भी कठिन हो,
देह कितना भी कमजोर हो,
देहधारी ईश्वर ईश-कार्य बाधित नहीं करेगा।
अपनी अवज्ञा से पिता की इच्छा
को कभी नहीं त्यागेगा।
पिता की इच्छा न मानने के बजाय
वो देह के कष्ट सहना पसंद करेगा।
इंसान अपने मन से चुन सकता है,
पर मसीह ऐसा कभी नहीं करेगा।
भले ही उसकी पहचान ईश्वर की है,
फिर भी वो पिता की इच्छा खोजे,
देह में पूरा करे वो जो ईश्वर उसे सौंपे।
इंसान इसे हासिल न कर सके।
3
मसीह के अलावा सभी इंसान
ईश-विरोधी चीज़ें कर सकें।
कोई भी सीधे वो काम न कर सके जो ईश्वर सौंपे;
कोई भी ईश्वर के प्रबंधन को अपना
कर्तव्य न मान सके।
पिता परमेश्वर की इच्छा का पालन करना,
ये बस मसीह का सार है।
ईश्वर की आज्ञा न मानना, शैतान की विशेषता है।
ये दोनों बातें परस्पर विरोधी हैं।
शैतान के लक्षणों वाला मसीह नहीं कहला सकता।
इंसान कभी ईश-कार्य नहीं कर सकता,
क्योंकि उसमें ईश्वर का सार नहीं।
इंसान काम करे अपने हितों, अपने भविष्य के लिए,
जबकि मसीह काम करे पिता की इच्छा पूरी करने को।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, स्वर्गिक परमपिता की इच्छा के प्रति आज्ञाकारिता ही मसीह का सार है से रूपांतरित