133 हर युग में नया कार्य करता है परमेश्वर
1
बदलती नहीं कभी बुद्धि परमेश्वर की,
बदलता नहीं कभी चमत्कार परमेश्वर का,
बदलती नहीं कभी धार्मिकता परमेश्वर की,
बदलता नहीं कभी प्रताप परमेश्वर का।
बदलता नहीं कभी सार-तत्व परमेश्वर का,
बदलता नहीं कभी स्वरुप परमेश्वर का,
और कार्य उसका आगे बढ़ रहा है, गहरा हो रहा है;
कभी पुराना नहीं होता, सदा नया रहता है परमेश्वर।
नया नाम, नया काम, नई इच्छा, नया स्वभाव होता है हर युग में।
नया नाम, नया काम, नई इच्छा, नया स्वभाव होता है हर युग में।
2
लोग अगर न देख पाए इस स्वभाव को,
तो चढ़ा देंगे सूली पर, सीमांकित कर देंगे परमेश्वर को!
कार्य परमेश्वर का नया होता है सदा, कभी पुराना नहीं होता,
मगर स्वरूप परमेश्वर का कभी परिवर्तित नहीं होता।
परिभाषित कर नहीं सकते तुम गतिहीन भाषा में,
6,000 साल परमेश्वर के काम के।
जितना समझते हो तुम उतना सरल नहीं है परमेश्वर,
युगयुगांतर तक चलता है काम उसका।
यहोवा से यीशु बदल गया नाम उसका।
युगयुगान्तर में देखो बदल गया काम उसका!
नया नाम, नया काम, नई इच्छा, नया स्वभाव होता है हर युग में।
3
अग्रसर हो रहा है इतिहास, और आगे बढ़ रहा है।
6,000 साल की योजना का अंत करने,
काम परमेश्वर का सदा आगे बढ़ रहा है।
मगर अभी भी हर दिन, हर वर्ष, करने के लिये है नया काम।
नए मार्ग, नया काल, नई चीज़ें और ज़्यादा बड़े काम।
अटका नहीं है परमेश्वर पुराने तरीकों पर,
सदा अविरल चल रहा है नया काम।
नया नाम, नया काम, नई इच्छा, नया स्वभाव होता है हर युग में।
नया नाम, नया काम, नई इच्छा, नया स्वभाव होता है हर युग में।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3) से रूपांतरित