186 मैं देखता हूँ कि परमेश्वर का प्रेम कितना सच्चा है
1
हमें परमेश्वर के सामने उन्नत किया गया है, उसके वचनों से हमारा दिल मधुर हो गया है।
मैं वास्तव में परमेश्वर के भोज में शामिल होने का आनंद लेता हूँ: यह सचमुच उसका सबसे बड़ा आशीष है।
उसके न्याय के वचन एक तेज़ तलवार की तरह हैं जो मेरी दुष्ट आत्मा को उजागर करते हैं।
मैंने केवल परमेश्वर का आशीष पाने के लिए स्वयं को खपाया है: मुझमें वास्तव में न तो अंतरात्मा है, न ही समझ है।
मैंने अपने भ्रष्टाचार की गहराई देख ली है और यह कि मुझमें कोई इंसानियत नहीं है।
पछतावे से भरा, मैं परमेश्वर के आगे प्रायश्चित करता हूँ और याचना करता हूँ कि वो मुझे क्षमा कर दे और मुझ पर दया करे।
मेरे साथ परमेश्वर का व्यवहार मेरे अपराधों पर आधारित नहीं है; वह ख़ामोशी से प्रतीक्षा करता है कि मैं उसकी शरण में जाऊँ।
यह देखते हुए कि उसका प्रेम कितना सच्चा है, अब मैं और आत्मविश्वास से उसका अनुसरण करता हूँ।
2
परमेश्वर के सामने मौन होकर सत्य खोजता हूँ, मैं उसके सच्चे इरादों को समझता हूँ;
उसके न्याय के वचनों के पीछे उसका प्रेम और आशीष छुपा है।
परमेश्वर के वचनों के न्याय को स्वीकार करने के बाद ही मैं खुद को सच में जान पाता हूँ।
परीक्षण और सभी प्रकार की पीड़ा से गुज़रने से मेरा भ्रष्टाचार दूर हो गया है।
यह देखकर कि परमेश्वर का स्वभाव कितना मनोहर है, मैं आभार और स्तुति से भर जाता हूँ।
मैं परमेश्वर के आगे सहर्ष समर्पित होता हूँ, और मेरा दिल शांति और आनंद जानता है।
एक ईमानदार इंसान होना,सत्य का अभ्यास करना, परमेश्वर के सामने जीना कितना आनंददायक है।
शैतान से बचकर, परमेश्वर द्वारा बचाए जाने के बाद एक व्यक्ति इंसान की तरह जी सकता है और परमेश्वर को महिमान्वित कर सकता है।