193 परमेश्वर के वचन मुझे फिर से उठाते हैं
1 मैंने बरसों प्रभु में आस्था रखी और इस पूरी अवधि में मैं झूठ बोलती रही, पाप करती रही और अपने पापों को स्वीकार करती रही, लेकिन कभी पाप के बंधनों से मुक्त नहीं हो पाई। प्रभु के लिए खुद को खपाते हुए और कष्ट उठाते हुए, मुझे लगता था कि मैं उसके आने पर स्वर्ग में जाने की हकदार बन जाऊँगी। फिर भी परमेश्वर की वाणी सुनकर, मैंने आंख मूंदकर उसकी आलोचना की, मैंने न खोज की और न ही जाँच की, मैंने परमेश्वर के देहधारण की आलोचना और निंदा करने के लिए बाइबल के वचनों और वाक्यांशों के उपयोग में पादरियों का अनुसरण किया। मैं अपनी बेवकूफी से अंधकार में जा गिरी, और आपदा से पहले स्वर्गिक अनुभूति के अवसर को लगभग गँवा बैठी। मुझे सुसमाचार का उपदेश देने के लिए, परमेश्वर समय-समय पर लोगों को भेजता रहा और अंततः उन्होंने मेरे हृदय के द्वार खोल दिए : सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अनेक वचन पढ़कर मैं जाग उठी—यह परमेश्वर की वाणी थी। मेरा दिल पश्चाताप से भर उठा, मैं इतनी शर्मिंदा हुई कि परमेश्वर की ओर चेहरा उठाकर भी नहीं देख पा रही थी; मैं सचमुच परमेश्वर के इतने महान प्रेम का आनंद उठाने के काबिल नहीं थी।
2 परमेश्वर ने मुझे मेरे कर्तव्य निर्वहन के लिए ऊंचा उठाया था, फिर भी मैंने सत्य का अनुसरण नहीं किया, मुझे हैसियत के आशीष का लालच था, मैंने ऐसा कोई प्रयास नहीं किया कि मेरे कर्तव्य निर्वहन का कोई वास्तविक प्रभाव हो सके। मैं आत्मतुष्ट होकर अपने कर्तव्य का निर्वहन इस तरह से करती रही जैसे कोई नींद में चलता है, मैं हमेशा वचनों और सिद्धांतों का उपदेश देती रही, दिखावा करती रही और लोगों को बेवकूफ बनाती रही, ताकि वे मुझे ऊँचा दर्जा दें और मेरा सम्मान करें। अगर कोई समस्या आती तो मैं बाकी लोगों के साथ उस पर कोई चर्चा न करती; मैं चाहती थी कि हमेशा मेरी ही बात मानी जाए, और मैं अनजाने में ही परमेश्वर का प्रतिरोध करती रही। परमेश्वर लोगों से सख्ती से निपटने और उन्हें उजागर करने के लिए वचनों का उपयोग करता है, फिर भी मैं उसके न्याय से कन्नी काटने की कोशिश करती रही। मेरे अड़ियल और विद्रोही रवैये ने परमेश्वर का दिल दुखाया, और मैंने पूर्ण किए जाने के अनेक अवसर गँवा दिए। मैं आज भी सत्य की वास्तविकता में प्रवेश नहीं कर पाई हूँ। मैं कैसे परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान और उसकी गवाही दे सकती हूँ? हे परमेश्वर, मैं प्रायश्चित करके नई शुरुआत करना और सत्य की खोज करना चाहती हूँ। मैं सब कुछ नए सिरे से करना चाहती हूँ।
3 परमेश्वर के वचनों ने मेरा न्याय इस तरह किया जैसे कोई ब्लेड से दिल को चीरता है और मैंने जाना कि मैं कितनी बुरी तरह से भ्रष्ट हो चुकी थी। मेरे अंदर कोई मानवीयता नहीं थी। मैं इतनी ज्यादा अहंकारी थी कि मेरे अंदर विवेक नाम की कोई चीज नहीं थी, न ही परमेश्वर के प्रति मेरे मन में कोई भय या आज्ञाकारिता थी। मेरे स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं आया था, मैं अभी भी शैतान के प्रभाव में थी, मैं सचमुच परमेश्वर का प्रतिरोध करने वाली किस्म की इंसान थी। बार-बार के न्याय के बाद ही मैं जागी; उसके बाद ही मेरे मन में प्रायश्चित और आत्म-ग्लानि का भाव जागा। पीड़ा के दौरान, परमेश्वर के वचनों ने मुझे दिलासा दी और मेरा हौसला बढ़ाया, मुझे इस काबिल बनाया कि मैं अपनी गिरी हुई स्थिति से एक बार फिर से उठ पाई। मैं परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान देने के लिए, उसके प्रति निष्ठावान और आज्ञाकारी होना चाहती हूँ और एक मनुष्य की तरह सत्य का अभ्यास और अपने कर्तव्य का निर्वहन करना चाहती हूँ। परमेश्वर का धन्यवाद कि उसने मेरा न्याय किया और मेरी भ्रष्टता को दूर किया। मैंने अनुभव किया कि उसका प्रेम कितना महान है--हे परमेश्वर! मैं अच्छी तरह से सत्य का अनुसरण करना चाहती हूँ और एक नई छवि में ढलकर तुम्हारे दिल को सुख पहुँचाना चाहती हूँ।