606 इंसान को मापने के लिए परमेश्वर उसकी प्रकृति का इस्तेमाल करता है

1

पौलुस जीवन खोजता था, पर उसे अपना सार पता न था।

न वो विनम्र था, न ही आज्ञाकारी,

न जानता था कि वो कैसे ईश्वर का विरोध करता था।

और इसलिए पौलुस नहीं गुज़रा

विस्तृत अनुभव से, न किया सत्य का अभ्यास उसने।

पतरस था काफी अलग।

पतरस जानता था अपनी कमज़ोरियाँ, दोष और भ्रष्टता।

इसलिए उसके पास अपना स्वभाव बदलने के लिए अभ्यास का पथ था।

हों बस सिद्धांत, वास्तविकता नहीं, ऐसा इंसान नहीं था।


इंसान दूसरों को उनके योगदान के अनुसार मापे।

पर इंसान को ईश्वर उसकी प्रकृति से मापे।

इंसान दूसरों को उनके योगदान के अनुसार मापे।

पर इंसान को ईश्वर उसकी प्रकृति से मापे।


2

जो बदल जाते, वे बचाए गए, नए लोग हैं,

वे सत्य खोजने के योग्य हैं,

न बदलने वाले स्वाभाविक रूप से पुराने हैं।

वे वो हैं जो बचाए नहीं गए।

ईश्वर उनसे घृणा करे, उन्हें अस्वीकार करे।

चाहे जितना भी बड़ा काम हो उनका,

ईश्वर न बदलने वालों को याद न रखेगा।


इंसान दूसरों को उनके योगदान के अनुसार मापे।

पर इंसान को ईश्वर उसकी प्रकृति से मापे।

इंसान दूसरों को उनके योगदान के अनुसार मापे।

पर इंसान को ईश्वर उसकी प्रकृति से मापे।


3

जो तुम खोजते, उसमें अगर सत्य नहीं,

अगर तुम हो पौलुस की तरह असभ्य,

अहंकारी, डींगे मारते बकवादी,

तो तुम हो नाकामयाब, पतित इंसान।

लेकिन अगर पतरस की तरह अभ्यास,

सच्चा बदलाव खोजते तुम, अहंकारी और ज़िद्दी नहीं,

कर्तव्य निभाने का प्रयास करते हो,

तो तुम ईश्वर के प्राणी हो जो विजय पा सके।


इंसान दूसरों को उनके योगदान के अनुसार मापे।

पर इंसान को ईश्वर उसकी प्रकृति से मापे।

इंसान दूसरों को उनके योगदान के अनुसार मापे।

पर इंसान को ईश्वर उसकी प्रकृति से मापे।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सफलता या विफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है से रूपांतरित

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