57 मेरे दिल में परमेश्वर है
1
घर से दूर जब निभाता हूँ फर्ज़ अपना मैं,
तो आता है ख़्याल तुम्हारा, करता हूँ प्रार्थना तुमसे मैं।
पढ़कर वचन तुम्हारे,
यकीन तुम पर बढ़ा है मेरा, और सुकून मिला है दिल को मेरे।
गवाही देने की ख़ातिर तुम्हारी, दर्द बहुत सहता हूँ मैं,
कितने प्यारे हो तुम, और बेहतर ढंग से जान पाया हूँ मैं।
अनुसरण करके तुम्हारा, अंत तक चलता रहूँगा मैं।
जब बदलोगे रूप अपना तुम,
तुम्हारी वापसी की अगवानी करेंगे हम,
तुम्हारी वापसी की अगवानी करेंगे हम।
2
तुम्हारे वचन ही हैं जो करते हैं परवरिश मेरी,
और देते हैं इंसानी ज़िंदगी मुझको।
ख़्याल करके तुम्हारे प्यार का, दिल आनंद महसूस करता है मेरा,
और भर जाता है शक्ति से पूरा जिस्म मेरा।
छोड़कर सबकुछ मैं व्यय करता हूँ तुम्हारी ख़ातिर।
तुम्हीं तो हो जो ऊँचा उठाते हो मुझे।
अनुसरण करके तुम्हारा, अंत तक चलता रहूँगा मैं।
जब बदलोगे रूप अपना तुम,
तुम्हारी वापसी की अगवानी करेंगे हम,
तुम्हारी वापसी की अगवानी करेंगे हम।
3
मुश्किलें और सदा बढ़ते रहना आगे,
देते नहीं दर्द का अहसास मुझे, क्योंकि साथ होते हो तुम मेरे।
देख नहीं पाता हूँ जबकि मैं चेहरा तुम्हारा,
दिल फिर भी करता है प्यार तुम्हें, और दिल में तुम्हीं होते हो मेरे।
तुम्हारे प्यार ने जमा ली हैं पहले ही जड़ें मेरे दिल में,
और रहूँगा वफादार तुम्हारा सदा मैं।
अनुसरण करके तुम्हारा, अंत तक चलता रहूँगा मैं।
जब बदलोगे रूप अपना तुम,
तुम्हारी वापसी की अगवानी करेंगे हम।
तुम्हारी वापसी की अगवानी करेंगे हम।