86. सीसीपी की जेल में बिताया हर दिन
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "कई जगहों पर परमेश्वर ने सीनियों के देश में विजेताओं के एक समूह को प्राप्त करने की भविष्यवाणी की है। चूँकि विजेताओं को दुनिया के पूर्व में प्राप्त किया जाना है, इसलिए परमेश्वर अपने दूसरे देहधारण में जहाँ कदम रखता है, वह बिना किसी संदेह के सीनियों का देश है, ठीक वह स्थान, जहाँ बड़ा लाल अजगर कुंडली मारे पड़ा है। वहाँ परमेश्वर बड़े लाल अजगर के वंशजों को प्राप्त करेगा, ताकि वह पूर्णतः पराजित और शर्मिंदा हो जाए। परमेश्वर पीड़ा के बोझ से अत्यधिक दबे इन लोगों को जगाने जा रहा है, जब तक कि वे पूरी तरह से जाग नहीं जाते, वह उन्हें कोहरे से बाहर निकालेगा, और उनसे उस बड़े लाल अजगर को अस्वीकार करवाएगा। वे अपने सपने से जागेंगे, बड़े लाल अजगर के सार को जानेंगे, परमेश्वर को अपना संपूर्ण हृदय देने में सक्षम होंगे, अँधेरे की ताक़तों के दमन से बाहर निकलेंगे, दुनिया के पूर्व में खड़े होंगे, और परमेश्वर की जीत का सबूत बनेंगे। केवल इसी तरीके से परमेश्वर महिमा प्राप्त करेगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (6))। इन वचनों को पढ़कर, मुझे करीब दस साल पहले चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा की गयी अपनी गिरफ्तारी याद आ गयी।
23 जनवरी, 2004 की बात है। कलीसिया की एक बहन के पास जाने के लिए मैं जल्दी उठ गयी। लेकिन रास्ते में मुझे सीसीपी की पुलिस ने अवैध तरीके से गिरफ्तार कर लिया। उन्होंने मेरे बैग की तलाशी ली और उसमें उन्हें आस्था से जुड़ी कुछ सामग्री मिल गयी, एक फोन, पेजर तथा कुछ और चीजें। वो लोग मुझे लोक सुरक्षा ब्यूरो ले गए। वहाँ पहुँचकर पुलिस मुझे एक कमरे में ले गई। उनमें से एक, सुराग की तलाश में, मेरे पेजर और मोबाइल फोन से छेड़छाड़ करने लगा। उसने फोन चालू किया लेकिन उसमें बैटरी कम दिखी, थोड़ी देर में बैटरी पूरी तरह से खाली हो गयी। तमाम कोशिशों के बावदजूद, वह उसे चालू नहीं कर सका। फोन लेकर, वह चिंतित लग रहा था। मैं भी परेशान थी—मैंने सुबह ही फोन चार्ज किया था। इसमें बैटरी खाली कैसे हो सकती है? मुझे अचानक एहसास हुआ कि परमेश्वर ने पुलिस को अन्य भाई-बहनों के बारे में कोई जानकारी खोजने से रोकने के लिए चमत्कारिक तरीके से यह व्यवस्था की थी। मैंने परमेश्वर द्वारा कहे गए वचनों को भी समझा : "कोई भी और सभी चीज़ें, चाहे जीवित हों या मृत, परमेश्वर के विचारों के अनुसार ही जगह बदलेंगी, परिवर्तित, नवीनीकृत और गायब होंगी। परमेश्वर सभी चीज़ों को इसी तरीके से संचालित करता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)। वास्तव में, सभी चीज़ें और घटनाएं परमेश्वर के हाथों में हैं। चाहे सजीव हो या निर्जीव, सभी चीज़ें परमेश्वर के विचारों के अनुसार बदलती हैं। उस समय, मुझे इस बात का एहसास हुआ कि कि कैसे सभी चीज़ों पर परमेश्वर की संप्रभुता है, कैसे वह उनका आयोजन करता है। इस चीज़ ने आगे होने वाली पूछताछ का सामना करने के लिए परमेश्वर पर मेरा विश्वास मजबूत किया। बैग की चीज़ों को इंगित करते हुए, पुलिस अधिकारी ने आरोप लगाते हुए पूछा, "ये चीज़ें बताती हैं कि तुम कलीसिया की कोई साधारण सदस्या नहीं हो। तुम जरूर वरिष्ठ नेताओं में से कोई एक हो, कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति हो। छोटे ओहदे के नेताओं के पास पेजर या मोबाइल फोन नहीं होते। क्या मैं सही हूँ?" मैंने जवाब दिया, "मैं समझ नहीं पा रही हूँ कि आप क्या कह रहे हैं"। "तुम नहीं समझने का नाटक कर रही हो", वह गुर्राकर बोला, और मुझे फ़र्श पर बैठकर सब-कुछ बताने का आदेश दिया। यह देखकर कि मैं उनके कहे अनुसार नहीं कर रही हूँ, उन्होंने मुझे घेर लिया और लातों और घूंसों से मारना शुरू कर दिया—मानो मुझे जान से मार दे देना चाहते हों। मेरा चेहरा रक्त-रंजित हो चुका था और सूज गया था। मेरे पूरे शरीर में असहनीय दर्द हो रहा था। मैं फ़र्श पर गिर पड़ी। मैं गुस्से में थी। मैं उनसे जानना चाहती थी कि वो मेरे साथ इस ढंग से क्यों पेश आ रहे हैं, "मैंने क्या गलत किया है? तुमने मुझे ऐसे क्यों मारा?" लेकिन मेरे पास उनके साथ तर्क करने का कोई तरीका नहीं था, क्योंकि सीसीपी सरकार तर्कसंगत काम नहीं करती। मैं परेशान थी, लेकिन मैं उनकी पिटाई के सामने घुटने टेकना भी नहीं चाहती थी। मैं इसी असमंजस में थी कि मैंने अचानक सोचा, चूंकि सीसीपी सरकार के ये दुष्ट अधिकारी इतने बेतुके हैं, मुझे कोई तर्कसंगत बात कहने का मौका नहीं दे रहे, इसलिए मुझे उनसे कोई बात नहीं करनी चाहिए। मेरा चुप रहना ही बेहतर है—इस तरह मैं उनके किसी काम की नहीं रहूँगी। जब मैंने यह सोच लिया, तो मैंने उनकी किसी भी बात पर ध्यान देना बंद कर दिया। यह देखकर कि इस तरकीब का मुझ पर कोई असर नहीं हो रहा है, दुष्ट पुलिसकर्मी आपे से बाहर हो गए तथा और भी बर्बर हो गए : जबरन क़बूल करवाने के लिए उन्होंने मुझे यातना देनी शुरू कर दी। ज़मीन पर पेच से कसी एक धातु की कुर्सी के साथ उन्होंने मुझे इस तरह बेड़ियों से जकड़ दिया कि मैं न तो बैठ सकती थी और न ही खड़ी रह सकती थी। उनमें से एक ने मेरे उस हाथ को जिस पर हथकड़ी नहीं थी, कुर्सी पर रख दिया और जूते से वह उस पर तब तक मारता रहा, जब तक मेरे हाथ का दूसरी ओर का भाग काला और नीला नहीं पड़ गया; दूसरे ने अपने चमड़े के जूते के नीचे मेरे पैर की उंगलियों को कुचल दिया। मेरी उंगलियों में इतना भयानक दर्द हुआ कि उसका असर सीधे मेरे दिल तक गया। उसके बाद, छह-सात पुलिसकर्मी मुझ पर बारी-बारी से टूट पड़े। एक मेरे जोड़ों पर पिल पड़ा और उन्हें इतनी ज़ोर से कोंचने लगा कि एक महीने बाद भी मैं अपनी बांह को मोड़ नहीं पाती थी। दूसरा मेरे बालों को पकड़कर मेरे सिर को इधर-उधर झकझोरने लगा और फिर उसे इतनी जोर से पीछे की ओर खींचा कि मेरा चेहरा ऊपर की तरफ हो गया। उसने दुष्टता से कहा, "देख ऊपर और बता क्या कहीं कोई परमेश्वर है!" दिन ढलने तक यही सब चलता रहा। यह देखकर कि उन्हें मुझसे कुछ भी हासिल नहीं हो रहा है और चीनी नव वर्ष चल रहा है, उन्होंने मुझे सीधे सुधार गृह भेज दिया।
जब मैं सुधार गृह पहुंची, तो वहाँ के सुरक्षाकर्मियों ने मुझे जेल में डाल दिया और मेरे बारे में तरह-तरह की अफवाहें फैला दीं और वहाँ की कैदियों को मुझे यातना देने के लिए उकसाया। वहाँ के कैदी हर दिन मेरे साथ चाल चलते थे : जब तापमान शून्य से 8 या 9 डिग्री होता था, तो वे मेरे जूते भिगो देते; छिप कर मेरे भोजन में बिना उबला पानी डाल देते; शाम को, जब मैं सो जाती तो वे मेरे कपास के गद्देदार जैकेट को भिगो देते; मुझे शौचालय के बगल में सोने को मजबूर करते, अक्सर रात में मेरी रजाई खींच लेते, मेरे बालों को खींचते और मुझे सोने नहीं देते थे; वे मेरी उबली हुई पाव रोटी छीन लेते; मुझे शौचालय साफ़ करने के लिए मजबूर करते और अपनी बची हुई दवाई मेरे मुंह में ठूँस देते, मुझे शौचालय नहीं जाने देते थे; अगर मैं उनकी बात न मानती तो वे गिरोह बनाकर मुझे पीटते—और अक्सर ऐसे समय में सुधार अधिकारी या ग़श्त लगाने वाले संतरी जल्दी से दूर हो जाते या नाटक करते कि उन्होंने कुछ देखा ही नहीं; कभी-कभी वे कुछ दूरी पर हटकर छिप जाते और देखते रहते। अगर कुछ दिन कैदी मुझे न पीटते, तो सुधार अधिकारी उन्हें मुझे मारने के लिए उकसाते। सुरक्षाकर्मियों की क्रूर यातना ने मुझे उनके प्रति नफ़रत से भर दिया। अगर ये सब मैंने अपनी आंखों से न देखा होता और व्यक्तिगत रूप से इसका अनुभव न किया होता, तो मुझे कभी विश्वास नहीं होता कि सीसीपी सरकार, जो उदारता और नैतिकता से भरी हुई मानी जाती है, इतनी बुरी, भयावह और विकराल हो सकती है—मैंने कभी भी इसका असली चेहरा न देखा होता, एक ऐसा चेहरा जो धोखेबाज और दोगला है। "लोगों की सेवा करने, एक सभ्य और सामंजस्यपूर्ण समाज बनाने"—की ये सभी बातें झूठी हैं और ये लोगों को धोखा देने के लिए रची गई हैं, ये बातें सिर्फ एक साधन है, एक चाल है, खुद को सुन्दर बनाकर पेश करने की और वाह-वाही लूटने की जिसके यह लायक ही नहीं है। उस समय, मैंने परमेश्वर के वचनों के वचनों बारे में विचार किया : "फिर, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि देहधारी परमेश्वर पूरी तरह से छिपा रहता है : इस तरह के अंधकारपूर्ण समाज में, जहां राक्षस बेरहम और अमानवीय हैं, पलक झपकते ही लोगों को मार डालने वाला शैतानों का सरदार, ऐसे मनोहर, दयालु और पवित्र परमेश्वर के अस्तित्व को कैसे सहन कर सकता है? वह परमेश्वर के आगमन की सराहना और जयजयकार कैसे कर सकता है? ये अनुचर! ये दया के बदले घृणा देते हैं, ये लंबे समय से परमेश्वर का तिरस्कार करते रहे हैं, ये परमेश्वर को अपशब्द बोलते हैं, ये बेहद बर्बर हैं, इनमें परमेश्वर के प्रति थोड़ा-सा भी सम्मान नहीं है, ये लूटते और डाका डालते हैं, इनका विवेक मर चुका है, ये विवेक के विरुद्ध कार्य करते हैं, और ये लालच देकर निर्दोषों को अचेत देते हैं। प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुवा? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज़को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। मुझे परमेश्वर को अस्वीकार करने और उसे धोखा देने के लिए मजबूर करने में, सीसीपी सरकार ने मुझे यातना देने और तबाह करने में कोई कोर-कसर नहीं रखी—लेकिन उन्हें पता नहीं था कि वे जितना अधिक मुझे सताएँगे, उतनी ही अधिक स्पष्टता से मैं उनके शैतानी चेहरे देख पाऊँगी, उतनी ही अधिक मैं उनसे घृणा करूँगी और अपने दिल की गहराई से उन्हें नकारूँगी। मैं परमेश्वर के अनुसरण में और भी दृढ़ होती गयी।
यह देखकर कि वे जो कुछ चाहते हैं मुझसे नहीं उगलवा पा रहे हैं, अब उन्होंने कोई भी कसर नहीं छोड़ी—चाहे श्रमशक्ति हो या भौतिक और वित्तीय संसाधन हों—उन्होंने एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दिया, इस सबूत को पाने के लिए कि मैं परमेश्वर में विश्वास करती हूँ। तीन महीने बाद भी, उनकी सारी भाग-दौड़ बेकार गयी। अंत में, उन्होंने अपना तुरुप का पत्ता खेला : उन्हें पूछताछ के लिए एक विशेषज्ञ मिल गया। ऐसा कहा जाता था कि जो भी उसके समक्ष लाया गया था, उसे वह तीन प्रकार की यातनाएँ देता था, और ऐसा कोई नहीं था जिसने क़बूल न किया हो। एक दिन, चार पुलिस अधिकारी आए और मुझसे बोले, "आज हम तुझे एक नए घर में ले जा रहे हैं"। इसके बाद उन्होंने मुझे एक क़ैदी परिवहन गाड़ी में धकेल दिया, पीठ के पीछे मेरे हाथों में बेड़ियाँ लगा दीं, और मेरे सिर पर एक टोप लगा दिया। पता नहीं वे मुझे कैसे यातना देने वाले थे, इसलिए मैं थोड़ी घबराई हुई थी। तभी मैंने प्रभु के इन वचनों पर विचार किया, "क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे, वह उसे खोएगा; और जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे पाएगा" (मत्ती 16:25)। प्रभु के वचनों ने मुझे आस्था और शक्ति दी। अगर हम चीन के भूतिया शहर में परमेश्वर पर विश्वास करना और उसका अनुसरण करना चाहते हैं, तो हममें अपनी जान देने का हौसला होना चाहिए। मैं परमेश्वर के लिए मरने को तैयार थी। आश्चर्य की बात है कि गाड़ी में बैठने के बाद, मैंने अनायास ही दुष्ट पुलिस वालों के बीच की बातचीत सुन ली। ऐसा लगा कि वे पूछताछ करने के लिए मुझे कहीं और ले जा रहे हैं। आह, वे मुझे मार डालने के लिए नहीं ले जा रहे थे—और मैं तो परमेश्वर के लिए शहीद होकर मरने की तैयारी कर रही थी! जैसे ही मैं यह सोच रही थी, किसी अज्ञात कारण से एक पुलिसकर्मी ने मेरे सिर पर टोप की डोरियों को और कसकर बाँध दिया। इसके तुरंत बाद, मुझे असहज महसूस होना शुरू हो गया—ऐसा लगा कि मेरा दम घुट रहा है। मेरे मुंह से झाग आने शुरू हो गए, और मैं उल्टी न रोक सकी। लगा मैं अपने अंदर का सब कुछ उल्टी में उगलने जा रही हूँ। मुझे चक्कर आने लगे, सिर खाली-सा हो गया, मैं अपनी आंखें नहीं खोल सकी। मेरे शरीर में ताक़त नहीं बची थी, मानो मुझे लकवा मार गया हो। लगा मेरे मुंह में कुछ चिपचिपा-सा है जिसे मैं बाहर नहीं उगल पा रही हूँ। मैं तो वैसे ही हमेशा से नाज़ुक-सी रही हूँ, और इस तरह के दुर्व्यवहार के बाद तो मुझे लगा मैं किसी मुसीबत में हूँ, मेरी सांस किसी भी समय बंद हो सकती है। दर्द के बीच, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की : "हे परमेश्वर! मेरे हृदय की रक्षा करो। मैं मरूँ या जिऊँ, लेकिन मैं तुम्हें धोखा नहीं दूँगी।" कुछ समय के बाद, हमारी गाड़ी एक होटल में पहुंची। वे मुझे एक सील किए हुए कमरे में ले गए। इसके तुरंत बाद, पुलिस ने जिस "पूछताछ विशेषज्ञ" का ज़िक्र किया था, वह पहुंच गया। वह मेरे सामने आया और उसने मुझे पकड़ लिया। मेरे चेहरे पर दर्जनों थप्पड़ जड़ देने के बाद, उसने मुझे छाती और पीठ पर कई बार घूंसों से मारा, फिर अपना चमड़े का जूता मेरे चेहरे पर दे मारा। इस तरह उसके द्वारा पीटे जाने के बाद, मुझे अब यह एहसास नहीं रहा कि कुछ ऐसा था जो मैं अपने मुंह या पेट से नहीं निकाल सकती थी। मैं अब बेसुध अवस्था में नहीं थी और अपनी आंखें खोल सकती थी। धीरे-धीरे मेरे अंगों में सुध वापस आ रही थी, और मेरे शरीर में ताक़त लौटने लगी थी। इसके बाद, उसने बेदर्दी से मेरे कंधों को पकड़ा और मुझे दीवार से दे मारा। उसने मुझे अपनी ओर देखकर उसके सवालों के जवाब देने का आदेश दिया। यह देखकर कि मैं उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दे रही हूँ, वह भड़क गया, और उसने परमेश्वर की बुराई, निंदा और बदनामी करके मेरी प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की। मुझे फँसाने के लिए उसने सबसे ज्यादा घृणास्पद, घटिया तरीकों का उपयोग किया, और कुछ अनिष्ट होने की संभावना वाले अंदाज में बोला, "मैं जानबूझकर तुझे ऐसी यातनाएं दे रहा हूँ जिन्हें तेरा शरीर और आत्मा बर्दाश्त न कर पाएं, तुझे ऐसा दर्द हो जिसे कोई भी सामान्य व्यक्ति सहन नहीं कर सकता—तू चाहेगी कि तू मर जाए। अंत में, तू मेरे आगे गिड़गिड़ाएगी कि मैं तुझे जाने दूँ, और तभी तू अपनी जबान खोलेगी और मानेगी कि तेरा नसीब परमेश्वर के हाथों में नहीं—बल्कि मेरे हाथों में है। अगर मैं तेरी मौत चाहूँ, तो यह काम तुरंत हो जाएगा; अगर मैं तुझे जीने देना चाहूँ, तो तू जीवित रहेगी, और जो भी कष्ट मैं तुझे देना चाहूँ, वह तुझे भुगतना होगा। तेरा सर्वशक्तिमान परमेश्वर तुझे नहीं बचा सकता—तू तभी जीवित रहेगी जब तू हमसे तुझे बचाने के लिए प्रार्थना करेगी।" मैं इन घृणास्पद, बेशर्म घिनौने ठगों, जंगली जानवरों और दुष्ट राक्षसों का सामना करते हुए, इनसे लड़ना चाहती थी। मैंने सोचा, "आकाश और पृथ्वी की सभी चीज़ें परमेश्वर द्वारा सृजित और नियंत्रित हैं। मेरा भाग्य भी परमेश्वर की संप्रभुता और व्यवस्थाओं के अधीन है। परमेश्वर जीवन और मृत्यु का फैसला करने वाला है; तुम लोगों को लगता है मैं तुम्हारे चाहने मात्र से मर जाऊँगी?" उस पल, मेरा दिल आक्रोश से भर गया था। पुलिसकर्मियों द्वारा मेरे खिलाफ किये गए सारे घृणित कृत्य और आज परमेश्वर की निंदा और विरोध करने वाली जो बातें उन्होंने कही थीं, वे सब उनके उस शैतानी सार को स्पष्ट रूप से उजागर करती हैं जो सत्य से नफरत करता है और परमेश्वर का विरोधी है, और यही वह सबूत है जिसके आधार पर परमेश्वर उन्हें दोषी ठहराकर, सज़ा देगा और उनका विनाश करेगा।
क़बूल करने से मेरे इनकार ने उस तथा-कथित विशेषज्ञ के नाम को बहुत अधिक चोट पहुंचाई थी। उसने मेरी पीठ के पीछे मेरी एक बाँह को मजबूती से मोड़ दिया और दूसरी बाँह को मेरे कंधे के पीछे खींच लिया, फिर कसकर मेरे हाथों को हथकड़ी पहना दी। आधे घंटे से भी कम समय में, पसीने की बड़ी-बड़ी बूंदें मेरे चेहरे से टपककर मेरी आँखों में जा रही थीं जिससे मैं अपनी आंखें नहीं खोल पा रही थी। यह देखकर कि मैं अभी भी उसके सवालों के जवाब नहीं दे रही हूँ, उसने मुझे जमीन पर पटक दिया, फिर मुझे मेरी पीठ के पीछे लगी हथकड़ियों से उठा लिया। मेरी बाहें एकदम से भयंकर दर्द से बज उठीं, जैसे कि वे टूट ही गई हों। दर्द इतना भयानक था कि मैं मुश्किल से सांस ले पा रही थी। इसके बाद, उसने मुझे दीवार पर दे मारा और मुझे उसके सहारे खड़ा कर दिया। पसीना मेरी आंखों को धुंधला कर रहा था। पीड़ा इतनी अधिक थी कि मेरा पूरा शरीर पसीने से भर गया—यहाँ तक कि मेरे जूते भी भीग गए थे। मैं वैसे भी हमेशा कमज़ोर रही थी, और इस पल तो मैं लुढ़क ही पड़ी। लग रहा था जैसे मैं नाक से साँस लेने की शक्ति ही खो चुकी हूँ। मैं आधा मुँह खोलकर ही किसी तरह साँस ले पा रही थी। मुझे एक बार फिर मौत क़रीब आते हुए महसूस हुई—शायद इस बार मैं वास्तव में मर जाऊंगी। लेकिन उस पल, मैंने यीशु के शिष्यों में से एक, लूका के बारे में और जीते-जी फांसी चढ़ जाने के उसके अनुभव के बारे में सोचा। जैसे फिर से मुझे अपनी सारी ताक़त वापस मिल गयी, मैं खुद को याद दिलाने के लिए एक ही बात दुहराती रही : "लूका जीते-जी फांसी दिए जाने से मरा था। मुझे भी लूका जैसा होना चाहिए, मुझे लूका बनना चाहिए, लूका होना ... मैं स्वेच्छा से परमेश्वर के आयोजनों और उसकी व्यवस्थाओं का पालन करुँगी, मैं लूका की तरह मृत्यु पर्यंत परमेश्वर के प्रति वफादार होना चाहती हूँ।" जैसे ही दर्द असहनीय होने लगा और मैं मृत्यु के कगार पर पहुँचने लगी कि मैंने अचानक एक दुष्ट पुलिसवाले को यह कहते हुए सुना कि उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने वाले कई भाई-बहनों को गिरफ्तार कर लिया गया है। मन ही मन, मैं चौंक गई : कई अन्य भाई-बहनों को यह यातना दी जाने वाली है। भाइयों पर तो विशेष रूप से अधिक अत्याचार किए जाएँगे। मेरा दिल चिंता से भर गया। मैं मन ही मन उनके लिए प्रार्थना करती रही। शायद मुझे पवित्र आत्मा ने छुआ था; मैंने जितनी अधिक प्रार्थना की, मैं उतनी ही प्रेरित होती गई। मैं अनजाने में अपना दर्द भूल गई। मैं अच्छी तरह जानती थी कि ये सब परमेश्वर की बुद्धिमान व्यवस्थाएं हैं; परमेश्वर को मेरी कमज़ोरी का पता है, और वह मेरे सबसे दर्दनाक समय में मेरी अगुआई कर रहा है। उस रात, मैंने इस बात की कोई परवाह नहीं कि दुष्ट पुलिसवालों ने मुझसे कैसा व्यवहार किया, और न ही मैंने उनके सवालों की ज़रा-सा भी परवाह की। यह होते देखकर, दुष्ट पुलिसवालों ने मेरे चेहरे पर कस-कसकर मुक्कों से प्रहार किया, फिर कनपटियों के बालों को अपनी उंगलियों में लपेट कर उन्हें खींचा और मरोड़ा। मेरे कान मड़ने के कारण सूज गए थे, मेरा चेहरा पहचानना मुश्किल था, लकड़ी के मोटे टुकड़े से मारे जाने के कारण मेरे निचले और ऊपरी पैरों पर खरोंचें पड़ गईं थीं और खाल निकल रही थी, मेरे पैर की उंगलियाँ भी लकड़ी से कुचले जाने के कारण काली और नीली पड़ गई थीं। छः घंटों तक मुझे हथकड़ियों से लटकाने के बाद, जब दुष्ट पुलिसवालों ने हथकड़ियाँ खोलीं, तो मेरे बाएं अंगूठे के नीचे का मांस निकल गया था—हड्डी पर केवल एक पतली-सी परत रह गई थी। हथकड़ियों ने मेरी कलाइयों को भी पीले फफोलों से ढक दिया था, और उन्हें फिर से पहन सकने का कोई तरीका नहीं था। उस समय, एक महत्वपूर्ण दिखने वाली महिला पुलिस अधिकारी अंदर आई। उसने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा, फिर बोली : "अब तुम इसे और नहीं पीट सकते—यह मरने वाली है।" पुलिसवालों ने मुझे होटल के एक कमरे में बंद कर दिया। उसके पर्दे चौबीस घंटे लगे रहते थे। दरवाज़े पर चौबीस घंटे पहरा रहता था और किसी भी सेवाकर्मी को वहाँ प्रवेश करने की इजाज़त नहीं थी, और न ही किसी को कमरे के अंदर होती प्रताड़ना और बर्बरता के दृश्यों को देखने की इजाज़त थी। उन्होंने बारी-बारी से बिना कोई विराम लिए, मुझसे पूछताछ जारी रखी। पांच दिनों तक दिन-रात, उन्होंने मुझे न सोने दिया, न बैठने की अनुमति दी और न ही उन्होंने मुझे खाना खाने की अनुमति दी। मुझे केवल दीवार के सहारे खड़े होने की इजाज़त थी। एक दिन, एक अधिकारी मुझसे पूछताछ करने आया। यह देखकर कि मैं उसे अनदेखा कर रही हूँ, वह आगबबूला हो गया और मुझे ठोकर मारकर मेज के नीचे धकेल दिया। इसके बाद, उसने मुझे बाहर खींचा और घूंसों से मारा, जिससे मेरे मुंह के कोने से खून बहने लगा था। अपनी वहशियत को ढकने के लिए, उसने जल्दी से दरवाज़ा बंद कर दिया ताकि कोई अंदर न आ सके। फिर उसने कागज के कुछ रूमाल लिए और मेरे खून को साफ़ कर दिया, मेरे चेहरे पर लगे खून को पानी से धोया और फर्श से खून को साफ कर दिया। मैंने जानबूझकर अपने सफेद स्वेटर पर कुछ रक्त छोड़ दिया। जब मैं सुधार गृह में लौट आई, तो दुष्ट पुलिसवालों ने अन्य कैदियों को बताया कि मेरे कपड़ों पर खून तब से था जब मुझे मानसिक अस्पताल में प्रमाणित किया जा रहा था, और उनसे कहा कि मैं पिछले कई दिनों से वहीं थी। मेरे शरीर पर घाव और खून के निशान रोगियों के कारण थे—उन्होंने अर्थात पुलिसवालों ने तो मुझे छुआ तक नहीं था...। इन निर्मम तथ्यों ने मुझे "जनता" की पुलिस की क्रूरता, कपटपूर्ण चालाकी और अमानवीयता दिखा दी और साथ ही मैंने अपने लिए परमेश्वर की सुरक्षा और परवाह को महसूस किया। जब भी मेरा दर्द सबसे बुरी अवस्था में होता, तो परमेश्वर मुझे प्रबुद्ध करता और रास्ता दिखाता था, जिससे मेरे विश्वास और मेरी शक्ति को बढ़ावा मिलता, मुझे उसकी गवाही देने का साहस मिलता था। जब दुष्ट पुलिसवाले की वहशियत ने मुझे मौत के दरवाज़े पर छोड़ दिया, तो परमेश्वर ने मुझे अन्य भाई-बहनों की गिरफ्तारी की खबर सुनायी, ताकि मैं उनके लिए प्रार्थना करने के लिए प्रेरित हो सकूं, जिससे मैं अपना दर्द भूल गई और अनजाने में ही मौत की अड़चनों को पार कर गई। जब शैतान दुष्टता और शातिर विषमता के रूप में कार्य कर रहा था, तो मैंने देखा कि केवल परमेश्वर ही सत्य, मार्ग और जीवन है, और केवल परमेश्वर का स्वभाव ही धार्मिकता और अच्छाई का प्रतीक है। केवल परमेश्वर ही सब कुछ नियंत्रित करता है और सब कुछ व्यवस्थित करता है, और वह राक्षसों की भीड़ की घेराबंदी को पराजित करने के लिए, देह की कमज़ोरी और मृत्यु की बाधाओं पर काबू पाने के लिए, अपनी महान शक्ति और अपने ज्ञान का उपयोग करते हुए मेरे हर बढ़ते कदम का मार्गदर्शन करता है, ताकि मैं इस अँधेरी माँद में दृढ़ता से जीवित रह सकूँ। जब मैंने परमेश्वर के प्रेम और उद्धार के बारे में सोचा, तो मुझे बहुत प्रेरणा मिली और मैंने शैतान से अंत तक लड़ने का संकल्प कर लिया। अगर मुझे जेल में ही सड़ना पड़ा, तो भी मैं अपनी गवाही में दृढ़ रहकर परमेश्वर को संतुष्ट करूँगी।
हर संभव कोशिश करने के बाद भी, दुष्ट पुलिस को मुझसे कुछ भी नहीं मिला था। अंत में, उन्होंने दृढ़ विश्वास के साथ कहा : "सीसीपी इस्पात की बनी है, लेकिन जो लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करते हैं वे हीरे के बने होते हैं—वे लोग हर मामले में कम्युनिस्टों की तुलना में बेहतर होते हैं।" इन शब्दों को सुनने के बाद मैं अपने दिल में परमेश्वर की वाहवाही और प्रशंसा किये बिना न रह सकी : "हे परमेश्वर, मैं तुम्हारा धन्यवाद करती हूँ और तुम्हारी प्रशंसा करती हूँ! अपनी सर्वशक्तिमत्ता और अपने ज्ञान से तुमने शैतान पर विजय पा ली है और अपने दुश्मनों को हराया है। तुम ही सर्वोच्च सत्ता हो और तुम्हारी महिमा हो!" दौरान मैंने देखा कि सीसीपी चाहे जितनी भी क्रूर हो, इसका नियंत्रण और आयोजन परमेश्वर के हाथों में है। जैसा कि परमेश्वर के वचन कहते हैं : "आकाश में और धरती पर सभी चीज़ों को उसके प्रभुत्व के अधीन आना ही होगा। उनके पास कोई विकल्प नहीं हो सकता है और सभी को उसके आयोजनों के समक्ष समर्पण करना ही होगा। इसकी आज्ञा परमेश्वर द्वारा दी गई थी, और यह परमेश्वर का अधिकार है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सफलता या विफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है)।
एक दिन, दुष्ट पुलिस एक बार फिर मुझसे पूछताछ करने आई। इस बार वे सब लोग कुछ अजीब-से लग रहे थे। बात करते वक़्त वे मेरी ओर देखते थे, लेकिन ऐसा नहीं लगता था कि वे मुझसे बात कर रहे हैं। वे आपस में कुछ चर्चा करते हुए लगे। पिछले मौकों की तरह, यह पूछताछ भी विफल रही। बाद में, दुष्ट पुलिस मुझे अपनी कोठरी में वापस ले आई। रास्ते में, मैंने अनायास उन्हें यह कहते हुए सुन लिया कि ऐसा लगता था कि मुझे अगले महीने के पहले दिन रिहा कर दिया जाएगा। यह सुनकर, मेरा दिल उत्साह से लगभग बेकाबू हो गया : "इसका मतलब है कि मैं तीन दिनों में रिहा कर दी जाऊँगी!" मैंने सोचा। अंततः मैं इस पैशाचिक नरक को छोड़ सकूँगी। अपने दिल की ख़ुशी को दबाकर, मैं उम्मीद लगाए रही और हर पल इंतज़ार करती रही। तीन दिन, तीन साल की तरह महसूस हुए। अंततः, महीने का पहला दिन भी आ पहुंचा! उस दिन, मैं दरवाज़े पर टकटकी लगाये रही और इस बात की प्रतीक्षा करती रही कि कोई मेरा नाम पुकारेगा। सुबह बीत गई और कुछ नहीं हुआ। मैंने अब अपनी सारी उम्मीदें दोपहर में निकल जाने पर लगा दीं—पर जब शाम हो आई, तब भी कुछ नहीं हुआ। जब शाम के भोजन का समय आया, तो मुझे खाने की इच्छा नहीं हुई। मेरे दिल में, एक निराशा का भाव पैदा हो गया था; उस पल ऐसा लगा जैसे मेरा दिल स्वर्ग से नरक में आ गिरा हो। सुधार अधिकारी ने अन्य क़ैदियों से पूछा, "वह खा क्यों नहीं रही है?" क़ैदियों में से एक ने जवाब दिया, "उस दिन पूछताछ से वापस आने के बाद से ही उसने कुछ ख़ास नहीं खाया है।" सुधार अधिकारी ने कहा, "उसके माथे को छू कर देखो, कहीं वह बीमार तो नहीं है?" एक कैदी ने आकर मेरे माथे पर हाथ रखकर देखा। उसने कहा कि इसका माथा बहुत गर्म है, इसे तो बुखार है। मुझे वास्तव में बुखार था। बीमारी अचानक ही आ गयी थी, और बहुत गंभीर हो गयी थी। उसी समय मैं गिर पड़ी। अगले दो घंटों के दौरान, बुखार और भी बिगड़ गया। मैं रो पड़ी! सुधार अधिकारी सहित सभी ने मुझे रोते देखा। वे सभी हैरान थे : मेरे बारे में उनकी धारणा यह थी कि मैं सुख-दुःख सभी से परे हूँ, जिसने घोर यातना के बाद भी कभी एक आंसू नहीं बहाया, जिसे छह-छह घंटों तक हथकड़ियों से लटकाया गया था, लेकिन कभी मुँह से कराह नहीं निकली। फिर भी आज, मैं बिना किसी यातना के रो पड़ी थी। उन्हें समझ में नहीं आया कि मेरे आँसू क्यों निकल आए—उन्हें बस ये लगा कि मेरी तबियत ठीक नहीं है। जबकि सच ये है कि केवल मुझे और परमेश्वर को ही इसका कारण मालूम था। यह सब मेरे विद्रोह और मेरी अवज्ञा के कारण था। ये आँसू इसलिए निकल आए क्योंकि मुझे निराशा हुई जब मेरी उम्मीदें नाकाम हुईं और मेरी आशाओं पर तुषारापात हो गया। ये आँसू विद्रोह और शिकायत के थे। उस पल, मैं परमेश्वर के प्रति गवाही देने के अपने संकल्प पर टिकी नहीं रहना चाहती थी। मेरे अंदर इस तरह की और परीक्षा देने का साहस नहीं बचा था। उस शाम, मैंने दुःख के आँसू बहाए, क्योंकि मैं जेल में पर्याप्त रह ली थी, मुझे इन राक्षसों से घृणा हो गयी थी और उससे भी ज्यादा, मुझे इस इस भयावह स्थान से नफ़रत हो गयी थी। मैं वहाँ अब एक पल भी और नहीं रहना चाहती थी। जितना अधिक मैंने इस बारे में सोचा, मैं उतनी ही मायूस होती गई, और उतनी ही अधिक मुझे शिकायत, दयनीयता और अकेलेपन का एहसास हुआ। मुझे लगा कि मैं समुद्र में एक अकेली नाव की तरह हूँ, जिसे किसी भी समय समुद्र का पानी निगल सकता है; इसके अलावा, मुझे लगा कि मेरे आस-पास के लोग इतने कपटी और भयावह हैं कि वे किसी भी समय अपने क्रोध को मुझ पर निकाल सकते हैं। मैंने बार-बार परमेश्वर से प्रार्थना की और ये वचन मेरे मन में कौंधे : "परमेश्वर से प्रेम करने की चाह रखने वाले व्यक्ति के लिए कोई भी सत्य अप्राप्य नहीं है, और ऐसा कोई न्याय नहीं जिस पर वह अटल न रह सके। तुम्हें अपना जीवन कैसे जीना चाहिए? तुम्हें परमेश्वर से कैसे प्रेम करना चाहिए और इस प्रेम का उपयोग करके उसकी इच्छा को कैसे संतुष्ट करना चाहिए? तुम्हारे जीवन में इससे बड़ा कोई मुद्दा नहीं है। सबसे बढ़कर, तुम्हारे अंदर ऐसी आकांक्षा और कर्मठता होनी चाहिए, न कि तुम्हें एक रीढ़विहीन और निर्बल प्राणी की तरह होना चाहिए। तुम्हें सीखना चाहिए कि एक अर्थपूर्ण जीवन का अनुभव कैसे किया जाता है, तुम्हें अर्थपूर्ण सत्यों का अनुभव करना चाहिए, और अपने-आपसे लापरवाही से पेश नहीं आना चाहिए" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे आस्था दी। मैंने याद किया कि कैसे मैंने परमेश्वर के सामने कसम खाई थी कि चाहे मुझे कितने भी कष्ट क्यों न सहनें पड़ें, मैं गवाही दूँगी और शैतान को शर्मिंदा करूंगी। पर जब मैं लंबे समय तक पुलिस की यातना झेल रही थी, तो मेरा संकल्प जाता रहा और बस उस दिन की प्रतीक्षा करने लगी जब मैं इस बुरी जगह से बचकर निकल सकूँगी। यह किसी प्रकार का समर्पण कैसे हुआ? यह किसी प्रकार की गवाही कैसे हुई? मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए कसम खाई थी कि अगर मुझे अपना पूरा जीवन भी जेल में बिताना पड़े तो भी मैं शैतान के सामने नहीं झुकूंगी। मैं गवाही दूँगी और शैतान को शर्मिंदा करूंगी। फिर 6 दिसंबर, 2005 को मुझे रिहा कर दिया गया और मुझे इस नारकीय जेल की ज़िंदगी से छुटकारा मिल गया।
इस गिरफ़्तारी और यातना का सामना करने के बाद, हालांकि मेरी देह ने कुछ मुसीबतें सहीं थीं, लेकिन मैंने अपनी अंतर्दृष्टि और अपने विवेक को विकसित किया था, और यह जान लिया था कि सीसीपी सरकार दुष्ट शैतान का मूर्त रूप है, हत्यारों का एक ऐसा गिरोह है जो लोगों को पलक झपकते ही मार डालता है, लेकिन साथ ही मैंने परमेश्वर की सर्वशक्तिमत्ता और ज्ञान को, उसकी धार्मिकता और पवित्रता को भी समझ लिया था; मुझे बचाने में परमेश्वर के अच्छे इरादों को, उसकी देखभाल और मुझे दी गई सुरक्षा को भी मैंने जान लिया था, ताकि शैतान की वहशियत के दौरान, एक-एक कर मैं शैतान पर विजय पा सकूँ, और अपनी गवाही में दृढ़ रह सकूँ। उस दिन से, मैं पूरी तरह से परमेश्वर को अपना सब-कुछ दे देना चाहती हूँ, और मैं पूरी दृढ़ता से परमेश्वर का अनुसरण करुँगी ताकि मैं उसे जल्दी से जल्दी प्राप्त हो जाऊं।