1. न्याय स्वर्ग-राज्य की कुंजी है

झेंगलू, चीन

मेरा जन्म एक ईसाई परिवार में हुआ था। मेरे पिता अक्सर कहते थे, "प्रभु में विश्वास करने से हमारे पाप क्षमा कर दिए जाते हैं और उसके बाद हम पापी नहीं रहते। प्रभु जब आएगा तो वह हमें स्वर्ग के राज्य में ले जाएगा, क्योंकि बाइबल कहती है, 'क्योंकि धार्मिकता के लिये मन से विश्‍वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुँह से अंगीकार किया जाता है' (रोमियों 10:10)।" इसलिए सालों से, मेरा मानना था कि अपनी आस्था के कारण मैं न्यायसंगत हूँ, मुझे बचा लिया गया है और मैं स्वर्ग जाऊंगा। फिर मैंने प्रभु यीशु के ये वचन पढ़े : "मैं तुम से सच कहता हूँ कि जब तक तुम न फिरो और बालकों के समान न बनो , तुम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने नहीं पाओगे" (मत्ती 18:3)। "जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है" (मत्ती 7:21)। इसने मुझे बहुत भ्रमित कर दिया। प्रभु कहता है स्वर्ग में वही लोग प्रवेश कर सकते हैं जो परमपिता की इच्छा पूरी करते हैं, वह हमें लोगों का तिरस्कार या उनसे ईर्ष्या करने के लिए नहीं बल्कि एक दूसरे से प्यार करने के लिए कहता है। और मैं जानता था कि मैं इस पर खरा नहीं उतर रहा। मैं अपने हितों के लिए हर समय झूठ बोलता और धोखा करता था, मैं भाई-बहनों के साथ न तो बहुत सहनशील था, न ही लोगों से उतना प्रेम कर पाता था जितना खुद से। काम बिगड़ जाने पर परमेश्वर को दोष देता मैं सही अर्थों में परमेश्वर से प्रेम नहीं करता था। मैं न तो प्रभु का आज्ञापालन कर सका और न ही उसकी इच्छा को पूरा कर रहा था। मैं स्वर्ग में प्रवेश कैसे पाता? तब मुझे परमेश्वर के वचन याद आए : "इसलिये तुम पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ" (लैव्यव्यवस्था 11:45)। मैं हर समय पाप करता और फिर उन्हें स्वीकार करता, फिर भी पाप से बँधा हुआ था। जब प्रभु आएगा तो क्या वह मुझे स्वर्ग ले जाएगा? यह सब समझने के लिए मैंने बाइबल को ध्यान से पढ़ा। मैंने उसे बार-बार पढ़ा, लेकिन पाप से छुटकारा पाने का कोई रास्ता नहीं खोज सका। मुझे पौलुस के शब्द याद आए : "मैं कैसा अभागा मनुष्य हूँ! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा?" (रोमियों 7:24)। जब पौलुस खोज नहीं पाया, तो मैं कैसे खोज पाता? मेरी उम्र बढती जा रही थी, अधिकांश जीवन में मैं विश्वासी रहा, फिर भी यकीन नहीं था कि मै स्वर्ग जा जाऊंगा। मैं निराश और खोया-खोया-सा रहता। मुझे स्वर्ग का रास्ता खोजकर शांति से प्रभु से मिलने की बड़ी चाह थी। तो मैं ढूँढ़-ढूँढ़कर जाने-माने वरिष्ठ ईसाइयों से मिलता, लेकिन वे भी मेरी मदद नहीं कर सके। मैंने कुछ अन्य संप्रदायों के समारोहों में भाग लिया, लेकिन वे केवल विश्वास द्वारा न्यायसंगत होने और बचा लिए जाने जैसी पुरानी बातों के बारे में विचार विमर्श करते थे। मुझे बहुत निराशा हुई।

अचानक मैंने विदेशियों द्वारा संचालित एक सेमिनरी में अध्ययन करना शुरू कर दिया। मुझे लगा कि विदेशियों के धर्मोपदेश बड़े अच्छे होंगे, और मुझे वहाँ निश्चित ही उत्तर मिलेंगे। पूरी आस्था से, मैंने वहां दो महीने अध्ययन किया। दुर्भाग्य से, वह पादरी अपने पाठों में कलीसिया का इतिहास, यीशु का जीवन, नए और पुराने नियमों की समीक्षा आदि के बारे में सिर्फ पुस्तकों से पढ़कर सुनाते थे। उन्होंने कभी भी जीवन-पथ के बारे में बात नहीं की। एक शाम खाने के बाद, मैंने पादरी से पूछा, "क्या आप हमें जीवन‌पथ के बारे में बता सकते हैं?" उन्होंने कहा, "हम यहां वही तो सिखाते हैं। हम दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक संगठन हैं, जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है। तीन साल बाद आपको अंतर्राष्ट्रीय पादरी का प्रमाणपत्र मिलेगा। तब आप सुसमाचार का प्रचार कर सकते हैं और दुनिया में कहीं भी कलीसिया स्थापित कर सकते हैं।" इससे मुझे बड़ी निराशा हुई। मुझे पादरी नहीं बनना था। मैं तो बस यह जानना चाहता था कि स्वर्ग कैसे पहुंचे। तो मैंने पूछा, "अगर प्रमाणपत्र इतनी बड़ी चीज़ है, तो क्या मैं इससे स्वर्ग जा सकता हूं?" पादरी ने कोई उत्तर नहीं दिया। मैंने कई और सवाल पूछे। "मैंने सुना है आप दशकों से विश्वास करते आए हैं। क्या आपको बचा लिया गया है? क्या आप स्वर्ग जा सकते हैं?" पूरे आत्मविश्वास के साथ उन्होंने कहा, "बेशक! मेरा स्वर्ग जाना निश्चित है।" तो मैंने पूछा, "आप किस आधार पर यह दावा करते हैं? क्या आप दूसरों से भी उतना ही प्रेम करते हैं जितना खुद से ? क्या आप पाप-मुक्त होकर पवित्र हो गए? क्या आप मासूम बच्चे बन गए ? हम पाप करते हैं और हमेशा प्रभु की शिक्षाओं के खिलाफ जाते हैं। हम दिन भर पाप करते हैं और फिर रात को पाप स्वीकार कर लेते हैं। परमेश्वर पवित्र है। आपका मतलब है हम जैसे पापी लोग स्वर्ग के राज्य में जा सकते हैं?" ये सवाल सुनकर, उनका चेहरा लाल हो गया और एक शब्द नहीं बोले। मैं हार चुका था। मैं धर्मगोष्ठी छोड़कर निकल गया।

घर लौटते समय, मेरा दिल बैठ हुआ था और मुझे लगा जैसे मेरी आखिरी उम्मीद भी टूट गयी। मुझे कोई अंदाजा नहीं था कि स्वर्ग का रास्ता कहां ढूँढ़ूँ। फिर मुझे अपने बूढ़े पिता का रोता हुआ चेहरा याद आया। जीवन भर उन्होंने विश्वास के द्वारा न्यायसंगत होने का उपदेश दिया और कहा कि मरने के बाद हम स्वर्ग जाएंगे, लेकिन वे पछतावा लेकर मरे। अपने अधिकांश जीवन में मैंने प्रभु में विश्वास किया था और हर दिन लोगों को बताया था कि मरने के बाद वे स्वर्ग जाएंगे। लेकिन अब मुझे इस बात पर पक्का भरोसा नहीं था कि स्वर्ग के राज्य में कैसे जाना है। क्या मैं भी अपने पिता की तरह पछतावा लेकर मरूंगा? मुझे अचानक प्रभु यीशु की बात याद आ गयी : "माँगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूँढ़ो तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जाएगा" (मत्ती 7:7)। "प्रभु निष्ठावान है," मैंने सोचा। "मुझे निराश नहीं होना चाहिए! जब तक सांस में सांस है, मैं स्वर्ग में प्रवेश पाने का रास्ता खोजता रहूंगा।" मैंने प्रभु से प्रार्थना की : "प्रिय प्रभु, मैं हर जगह पाप से मुक्त होने और स्वर्ग जाने का रास्ता ढूंढ रहा हूं, लेकिन कोई भी मेरी मदद नहीं कर रहा। हे प्रभु, मैं क्या करूं? मैं प्रचारक होने के नाते लोगों से कहता रहता हूँ कि स्वर्ग जाने के लिए वे अपने विश्वास में दृढ़ बने रहें और अंत तक टिके रहें। लेकिन अब तो मैं भी नहीं जानता कि पाप से छुटकारा पाकर स्वर्ग कैसे पहुंचा जा सकता है। क्या मैं उस अंधे अगुआ की तरह नहीं हूँ जो दूसरे अंधों को लेकर खाई में जा गिरता है? हे प्रभु! मुझे स्वर्ग का रास्ता कहां मिल सकेगा? मेरा मार्गदर्शन करो।"

जब मैं घर पहुंचा, तो मैंने सुना कि कई कलीसियाओं के अच्छे सदस्य और अगुआ चमकती पूर्वी बिजली में गए थे। वे लोग कह रहे थे कि उनके धर्मोपदेश बहुत अच्छे हैं, उनके पास नई रोशनी है, कुछ पादरी तो उनके प्रशंसक बन गए । मैंने सोचा, "चमकती पूर्वी बिजली के किसी व्यक्ति से मेरी भेंट अब तक कैसे नहीं हुई? किसी दिन उनसे मिलना बड़ा अच्छा रहेगा! मुझे जाकर उन्हें ढूंढना चाहिए और देखना चाहिए कि उनके धर्मोपदेश इतने अच्छे कैसे हैं, क्या वे मेरी समस्या हल कर सकते हैं।"

मेरी कलीसिया के भाई वांग एक दिन मेरे यहां आए और बोले कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने वाले उनके दो रिश्तेदार उनसे मिलने आ रहे हैं। उन्होंने मुझे भी अपने घर बुलाया। उनकी बात सुनकर मैं बहुत खुश हुआ, हम लोग तुरंत उनके घर की ओर चल दिए। परिचय के बाद मैंने उन्हें अपनी समस्या बताई। मैंने कहा, "मैंने हमेशा माना है कि बपतिस्मा लेने का मतलब है कि हमें बचा लिया गया है, दिल में विश्वास करने और मुंह से पाप स्वीकार करने का मतलब है कि हम विश्वास के द्वारा न्यायसंगत हो गए हैं, और जब प्रभु आएगा तो हमें स्वर्ग में ले जाएगा। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से मैं उलझन में हूं कि मैं स्वर्ग जा पाऊंगा या नहीं। मुझे यह इतना आसान नहीं लगता। बाइबल कहती है : 'उस पवित्रता के खोजी हो जिसके बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा' (इब्रानियों 12:14)। मैं खुद और कलीसिया के भाई-बहन हमेशा पाप करते हैं। मुझे नहीं लगता कि हमारी तरह पाप में जीने वाले लोग स्वर्ग जा सकते हैं। मैं पक्के तौर पर जानना चाहता हूँ कि हम स्वर्ग के राज्य में कैसे प्रवेश पा सकते हैं। क्या आप इस विषय में मेरे साथ सहभागिता कर सकती हैं?"

मुस्कुराते हुए, बहन झोउ ने कहा, "स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करना हर ईसाई के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है। इस मुद्दे पर, प्रभु यीशु ने हमें स्पष्ट रूप से बताया है : 'जो मुझ से, "हे प्रभु! हे प्रभु!" कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है' (मत्ती 7:21)। प्रभु के वचन बहुत स्पष्ट हैं। स्वर्ग के राज्य में केवल वे लोग प्रवेश कर सकते हैं जो परमेश्वर के वचनों का अभ्यास करते हैं और उसकी इच्छा को पूरा करते हैं। प्रभु ने कभी नहीं कहा कि एक बार बचा लिए जाने का मतलब हमेशा के लिए बचा लिया जाना है, और न ही ये कहा है कि हम विश्वास के द्वारा न्यायसंगत हैं, इसलिए उसके राज्य में प्रवेश पा सकते हैं। विश्वास के द्वारा न्यायसंगत हो पाना पौलुस का विचार था। पौलुस सिर्फ एक प्रेरित था, एक भ्रष्ट मनुष्य था। वह मसीह नहीं था, और उसके वचन भी मसीह के वचन नहीं थे। हम स्वर्ग जाने के लिए उसकी बातों पर भरोसा नहीं कर सकते। केवल यीशु ही स्वर्गिक राज्य का प्रभु और राजा है। केवल उसी के वचनों में अधिकार है और वही सत्य हैं। मनुष्य की धारणाएँ सत्य नहीं हैं और उसके राज्य में प्रवेश के लिए मानक निर्धारित नहीं कर सकती। इसमें हम केवल प्रभु के वचनों के अनुसार ही चल सकते हैं। हम पौलुस के शब्दों के अनुसार नहीं चल सकते, बस सीधी-सी बात है।" तब बहन झोउ ने हमारे लिए विश्वास के द्वारा न्यायसंगत होने और बचा लिए जाने का क्या मतलब होता है, और क्या बचा लिए जाने का मतलब स्वर्ग में प्रवेश पाना होता है, इस विषय पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के कई अंशों को पढ़ा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "उस समय यीशु का कार्य समस्त मानवजाति को छुटकारा दिलाना था। उन सभी के पापों को क्षमा कर दिया गया था जो उसमें विश्वास करते थे; अगर तुम उस पर विश्वास करते हो, तो वह तुम्हें छुटकारा दिलाएगा; यदि तुम उस पर विश्वास करते, तो तुम पापी नहीं रह जाते, तुम अपने पापों से मुक्त हो जाते हो। यही बचाए जाने और विश्वास द्वारा उचित ठहराए जाने का अर्थ है। फिर विश्वासियों के अंदर परमेश्वर के प्रति विद्रोह और विरोध का भाव था, और जिसे अभी भी धीरे-धीरे हटाया जाना था। उद्धार का अर्थ यह नहीं था कि मनुष्य पूरी तरह से यीशु द्वारा प्राप्त कर लिया गया है, बल्कि यह था कि मनुष्य अब पापी नहीं रह गया है, उसे उसके पापों से मुक्त कर दिया गया है। अगर तुम विश्वास करते हो, तो तुम फिर कभी भी पापी नहीं रहोगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (2))। "तुम सिर्फ यह जानते हो कि यीशु अंत के दिनों में उतरेगा, परन्तु वास्तव में वह कैसे उतरेगा? तुम लोगों जैसा पापी, जिसे परमेश्वर के द्वारा अभी-अभी छुड़ाया गया है, और जो परिवर्तित नहीं किया गया है, या सिद्ध नहीं बनाया गया है, क्या तुम परमेश्वर के हृदय के अनुसार हो सकते हो? तुम्हारे लिए, तुम जो कि अभी भी पुराने अहम् वाले हो, यह सत्य है कि तुम्हें यीशु के द्वारा बचाया गया था, और कि परमेश्वर द्वारा उद्धार की वजह से तुम्हें एक पापी के रूप में नहीं गिना जाता है, परन्तु इससे यह साबित नहीं होता है कि तुम पापपूर्ण नहीं हो, और अशुद्ध नहीं हो। यदि तुम्हें बदला नहीं गया तो तुम संत जैसे कैसे हो सकते हो? भीतर से, तुम अशुद्धता से घिरे हुए हो, स्वार्थी और कुटिल हो, मगर तब भी तुम यीशु के साथ अवतरण चाहते हो—क्या तुम इतने भाग्यशाली हो सकते हो? तुम परमेश्वर पर अपने विश्वास में एक कदम चूक गए हो: तुम्हें मात्र छुटकारा दिया गया है, परन्तु परिवर्तित नहीं किया गया है। तुम्हें परमेश्वर के हृदय के अनुसार होने के लिए, परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से तुम्हें परिवर्तित और शुद्ध करने का कार्य करना होगा; यदि तुम्हें सिर्फ छुटकारा दिया जाता है, तो तुम पवित्रता को प्राप्त करने में असमर्थ होंगे। इस तरह से तुम परमेश्वर के आशीषों में साझेदारी के अयोग्य होंगे, क्योंकि तुमने मनुष्य का प्रबंधन करने के परमेश्वर के कार्य के एक कदम का सुअवसर खो दिया है, जो कि परिवर्तित करने और सिद्ध बनाने का मुख्य कदम है। और इसलिए तुम, एक पापी जिसे अभी-अभी छुटकारा दिया गया है, परमेश्वर की विरासत को सीधे तौर पर उत्तराधिकार के रूप में पाने में असमर्थ हो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पदवियों और पहचान के सम्बन्ध में)। "यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति की मुक्ति का कार्य पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, अब जबकि मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिया गया है, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए वापस देह में लौट आया है, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया है। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)

फिर बहन वांग ने यह कहकर सहभागिता की, "व्यवस्था के युग के अंत में, शैतान मनुष्य को बुरी तरह से भ्रष्ट करता चला जा रहा था, लोग भी और ज़्यादा पाप करते जा रहे थे। सबको व्यवस्था के हाथों मौत का डर था। इसलिए प्रभु यीशु ने अनुग्रह के युग में छुटकारे का कार्य किया। मनुष्य के लिए पापबलि के रूप में क्रूस पर चढ़कर उसने मनुष्य के पापों को क्षमा किया। उन दिनों, प्रभु में विश्वास करना, पाप स्वीकारना और पश्चाताप करना ही काफी होता था, और हमारे पापों को क्षमा कर दिया जाता था, हम उसके दिए अनुग्रह का आनंद ले सकते थे। व्यवस्था के अधीन रह रहे लोगों के लिए यही उद्धार था। इस 'उद्धार' का अर्थ था, व्यवस्था की निंदा और शाप से मुक्त किया जाना और फिर कभी व्यवस्था द्वारा निन्दित न होना। यह है 'विश्वास द्वारा बचा लिया जाना'। विश्वास द्वारा न्यायसंगत होने का मतलब यह नहीं है कि हम धार्मिक बन जाते हैं। विश्वास द्वारा न्यायसंगत होने और बचा लिए जाने का मतलब यह नहीं है कि हम पापमुक्त हैं, हम पूरी तरह से शुद्ध हैं और पूर्ण उद्धार प्राप्त कर चुके हैं, या फिर हम स्वर्ग में प्रवेश कर पाएंगे। हालांकि हमारे पाप क्षमा कर दिए गए हैं, फिर भी हमारी पापी प्रकृति और शैतानी स्वभावों का हम पर गहरा प्रभाव है। हम अब भी झूठ बोलते हैं, धोखा देते हैं, ईर्ष्या करते हैं और दूसरों का तिरस्कार करते हैं। हम अक्सर पाप करते हैं और परमेश्वर का विरोध करते हैं। शैतानी स्वभावों से इस कदर भरे हुए हम जैसे लोग, जो परमेश्वर की अवज्ञा और विरोध करते हैं, वे कभी स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कैसे पा सकते हैं? इसीलिए प्रभु यीशु ने लौटने का वादा किया। अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर वापस आ चुका है। उसने वे सभी सत्य व्यक्त किए हैं जो हमें शुद्ध करते हैं और बचा लेते हैं। हमारी शैतानी प्रकृति और स्वभावों को दूर करने, हमें पाप से पूरी तरह से बचाने और हमें शुद्ध करने के लिए वह न्याय का कार्य कर रहा है ताकि हम स्वर्गिक राज्य में प्रवेश पा सकें। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का न्याय का कार्य प्रभु यीशु की भविष्यवाणी को पूरा करता है : 'मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा' (यूहन्ना 16:12-13)। 'क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा' (यूहन्ना 12:47-48)। 1 पतरस बताता है : 'क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्‍वर के लोगों का न्याय किया जाए' (1 पतरस 4:17)। अनुग्रह के युग के छुटकारे के कार्य का अनुभव करके, हम केवल प्रभु के अनुग्रह का आनंद ले सकते हैं और हमारे पापों को क्षमा किया जा सकता है। लेकिन हमें पाप से छुटकारा नहीं दिलाया जा सकता या हमारी शुद्धि नहीं की जा सकती। इसीलिए हमें अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य को स्वीकारना और मानना होगा, पाप-मुक्त होने और सदा के लिए पूरी तरह से बचा लिए जाने के लिए हमें सही अर्थों में पश्चाताप करके भ्रष्टता से शुद्धि प्राप्त करनी होगी। तब जाकर हम आपदाओं से बच सकेंगे और परमेश्वर हमें अपने राज्य में ले जाएगा।"

बहन की सहभागिता ने सचमुच मेरी आँखें खोल दीं। हमारे विश्वास द्वारा बचा लिए जाने और स्वर्ग में प्रवेश पाने का विचार सिर्फ हमारी कल्पना थी और यह प्रभु के वचनों के विपरीत थी। प्रभु यीशु ने छुटकारे का कार्य किया, पाप को मिटाने का कार्य नहीं, इसलिए हमारी पापी प्रकृति हमारे भीतर बनी हुई है। हम अभी भी पाप करते हैं और परमेश्वर का विरोध करते हैं। इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि इतने वर्षों में मैं खुद को पाप-मुक्त नहीं कर सका, भले ही मैंने अपने शरीर की इच्छाओं को त्याग दिया हो या अपनी देह को अधीन कर लिया हो। मालूम पड़ा कि यह मेरी पापी प्रकृति के कारण था और परमेश्वर के नए कार्य का अनुभव नहीं करने की वजह से था। सर्वशक्तिमान परमेश्वर हमारी पापी प्रकृति को जड़ से उखाड़ने और हमारी शुद्धि करके हमें सदा के लिए पूरी तरह से बचाने के लिए न्याय का कार्य करता है। हमें इसी की तो आवश्यकता है। यह बहुत अद्भुत है! लेकिन मैं नहीं जानता था कि परमेश्वर अंत के दिनों में हमारे न्याय और शुद्धि का कार्य कैसे करता है, इसलिए मैंने बहनों से इस बारे में पूछा।

बहन वांग ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक और अंश पढ़ा : "अंत के दिनों में मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों की चीर-फाड़ करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर का आज्ञापालन किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, उससे निपटता है और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, निपटने और काट-छाँट करने की इन विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति समर्पण के लिए पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य मनुष्य में परमेश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करने और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता का सत्य उसके सामने लाने का काम करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त कराता है, जो उसकी समझ से परे हैं। यह मनुष्य को अपने भ्रष्ट सार तथा अपनी भ्रष्टता की जड़ों को जानने-पहचानने और साथ ही अपनी कुरूपता को खोजने का अवसर देता है। ये सभी परिणाम न्याय के कार्य द्वारा लाए जाते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)

फिर उन्होंने इस प्रकार सहभागिता की : "अंत के दिनों में हमारे न्याय और शुद्धि का कार्य करने के लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर सत्य व्यक्त करता है। वह मनुष्य की परमेश्वर-विरोधी शैतानी प्रकृति और स्वभावों को प्रकट करता है। उसके वचनों के न्याय, प्रकाशन और तथ्यों से हम देखते हैं कि हम शैतान द्वारा किस हद तक भ्रष्ट किए गए हैं। हम अभिमानी, धोखेबाज, सत्य से नफ़रत करने वाले, कठोर और दुष्ट प्रकृति के होते हैं। शैतानी स्वभाव हमारी हड्डियों और रक्त में भरे होते हैं, और हम इंसान नहीं लगते । इन भ्रष्ट स्वभावों से नियंत्रित होकर हम परमेश्वर का विरोध और उससे विद्रोह करते हैं। उदाहरण के लिए, दूसरों से सम्मान पाने के लिए हम अक्सर डींग हांकते हैं, काम और प्रचार करते समय दिखावा करते हैं। हम अपने हितों के लिए कुछ भी कर सकते हैं। हम प्रतिष्ठा के लिए होड़ लगाते हैं और एक-दूसरे के खिलाफ षड़यंत्र रचते हैं। हम अपने से बेहतर लोगों से जलते हैं, उनका तिरस्कार करते हैं, हम केवल आशीष और उसके राज्य में प्रवेश पाने के लिए स्वयं को खपाते हैं, जैसे ही घर में कोई गड़बड़ होती है, हम तुरंत परमेश्वर को दोष देते हैं और उसे गलत समझते हैं। परमेश्वर के न्याय और ताड़ना से हम खुद की भ्रष्टता को जान जाते हैं। फिर हम अपनी शैतानी प्रकृति से घृणा करते हैं। हम पश्चाताप और खुद से घृणा करने लगते हैं। फिर हम परमेश्वर के सामने पश्चाताप करते हैं। हमें परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव का भी थोड़ा-बहुत ज्ञान हो जाता है। हम भय मानने लगते हैं और परमेश्वर को समर्पित हो जाते हैं हम होशहवास में अपने शरीर की इच्छाओं को त्यागकर परमेश्वर के वचनों का अभ्यास कर सकते हैं। हम उपयुक्त सृजित प्राणियों के रूप में अपना कर्तव्य निभाकर मानवोचित जीवन जीना शुरू कर सकते हैं। यह सब अनुभव करके, हमें महसूस होता है कि शैतान ने हमें कितनी गहराई तक भ्रष्ट कर दिया है, हमें परमेश्वर के वचनों के न्याय को स्वीकार करना चाहिए, हमारे शैतानी स्वभावों की शुद्धि होनी चाहिए, अब हम परमेश्वर का विरोध नहीं कर सकते और यही परमेश्वर के राज्य में प्रवेश पाने का एकमात्र तरीका है।"

ये सहभगिताएं सुनकर मेरा हृदय रोशन हुआ। अगर हम केवल अनुग्रह के युग के छुटकारे के कार्य को स्वीकार करते हैं और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय के कार्य को स्वीकार नहीं करते, तो आजीवन प्रभु में विश्वास रखकर भी, हम पाप से ही बंधे रहेंगे। हम कभी भी परमेश्वर की इच्छा को पूरा नहीं कर पाएँगे या परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर पाएँगे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का सत्य व्यक्त करना और न्याय-कार्य करना ही स्वर्गिक राज्य में प्रवेश पाने का एकमात्र तरीका है! मैंने बरसों तक हर तरफ स्वर्गीय राज्य में प्रवेश पाने का रास्ता खोजा। आखिरकार मुझे वह मिल ही गया। खुशी से मेरी आँखें भर आयीं—कई सालों की मेरी इच्छा पूरी हो गई। यह परमेश्वर की वाणी है और सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आया प्रभु यीशु है! जब प्रभु यीशु का जन्म हुआ, उसके जन्म के आठ दिन बाद ही उसे देख पाने पर शिमोन को बहुत खुशी हुई। परमेश्वर की वाणी सुन पाने और अपने जीवनकाल में परमेश्वर का स्वागत कर पाने पर मैं खुद को शिमोन से भी अधिक आनन्दित और धन्य महसूस करता हूँ! मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर का बहुत कृतज्ञ हूँ!

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