786 इंसान परमेश्वर को उसके वचनों के अनुभव से जानता है
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ईश्वर का स्वरूप, सार, स्वभाव, सब,
बता दिया गया इंसान को ईश-वचनों में।
अमल में लाकर जान लेगा इंसान
उनके लक्ष्य, मूल और इच्छित प्रभाव को।
इंसान को ये चीज़ें समझनी, अनुभव करनी होंगी सत्य और जीवन पाने को,
ईश-इच्छा समझने को, स्वभाव बदलने को,
ईश-नियमों, आयोजनों का पालन करने को।
इंसान धीरे-धीरे ईश्वर को समझेगा,
उसके बारे में विभिन्न स्तर का ज्ञान पाएगा।
2
ईश-वचनों की सराहना, अनुभव, पुष्टि से
सच में समझना ईश्वर को इंसान और ईश्वर में सच्चा संपर्क है,
जहाँ इंसान समझे ईश्वर के इरादे, सचमुच समझे उसके स्वरूप को,
जाने उसके सार और स्वभाव को, उसे विश्वास हो सर्वत्र ईश-प्रभुता का,
जाने उसकी पहचान और रुतबे को।
ईश्वर के प्रति इंसान की परवाह, आज्ञाकारिता बढ़ेगी,
उसकी श्रद्धा ज़्यादा असली और गहरी होगी।
3
इस संपर्क से, इंसान न सिर्फ़ जीवन का बपतिस्मा और सत्य पाएगा,
ईश्वर का सच्चा ज्ञान भी पाएगा, वो बदलेगा और उद्धार पाएगा।
ईश्वर के प्रति उसमें सृजित प्राणी की सच्ची श्रद्धा और आराधना पैदा होगी।
इस संपर्क से आध्यात्मिक बनकर इंसान धीरे-धीरे बदलेगा।
इंसान की अज्ञात आस्था बदलेगी सच्ची आज्ञाकारिता, परवाह और श्रद्धा में।
इंसान निष्क्रिय नहीं सक्रिय होकर ईश्वर का अनुसरण करेगा।
इसी संपर्क से इंसान ईश्वर की सच्ची समझ और ज्ञान हासिल करेगा।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, प्रस्तावना से रूपांतरित