90. परीक्षणों और क्लेशों से पूर्ण हुई आस्था

शु चांग, दक्षिण कोरिया

1993 में मेरी माँ बीमार पड़ गई, जिसके परिणामस्वरूप मेरा पूरा परिवार प्रभु यीशु में आस्था रखने लगा। उसके बाद चमत्कारी ढंग से उसकी सेहत ठीक हो गई और तब से मैं हर रविवार उनके साथ कलीसिया जाने लगी। फ़िर साल 2000 के बसंत में हमें प्रभु यीशु की वापसी की खुशखबरी मिली। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़कर हमें यकीन हो गया कि वह लौटकर आया प्रभु यीशु है और हमने अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कर लिया। हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के सिंचन और पोषण का आनंद उठाते हुए हर रोज उन्हें पढ़ने लगे। इससे मुझे वास्तव में आध्यात्मिक पोषण मिला। यह सोचकर कि प्रभु की वापसी के लिए तरस रहे कितने ही लोगों ने अब तक परमेश्वर की वाणी नहीं सुनी है या प्रभु की वापसी का स्वागत नहीं किया है, मैं समझ गई कि मुझे परमेश्वर की इच्छा का खयाल रखना होगा और उन लोगों के साथ राज्य का सुसमाचार साझा करना होगा। जल्द ही मैंने सुसमाचार साझा करने का काम शुरू कर दिया। लेकिन आश्चर्य की बात है कि इसके कारण सीसीपी सरकार ने मुझे गिरफ्तार कर लिया।

यह जनवरी 2013 की बात है, जब मैं छह अन्य भाई-बहनों के साथ एक सभा में थी, कि अचानक 20 से ज्यादा पुलिस-अफसरों ने धावा बोल दिया। हाथ में बंदूक लिए दो पुलिस-अफसर हमारी तरह दौड़ते हुए आए और हम पर चिल्लाने लगे, "हिलना मत! तुम्हें चारों तरफ से घेर लिया गया है।" दो अन्य पुलिस-अफसर, जिनके पास बिजली के डंडे थे, हम पर चिल्लाए, "हाथ ऊपर करके दीवार की ओर घूम जाओ!" एक बंदूकधारी अफसर ने कहा, "हम कुछ हफ्तों से तुम्हारा पीछा कर रहे हैं। तुम शाओशाओ हो।" यह सुनकर मैं डर गई। इन्हें मेरा दूसरा नाम कैसे पता चला? और उसने कहा कि वे दो हफ्तों से मेरा पीछा कर रहे हैं, तो क्या इससे इन्हें मेरे हाल ही के सभी ठिकानों का पता चल गया है? क्या उन सब भाई-बहनों को भी गिरफ्तार कर लिया गया है? मैं इस बारे में और ज्यादा नहीं सोच पाई। मैं बस मन ही मन उनके लिए परमेश्वर से प्रार्थना करती रही। पुलिसवालों की तैयारियाँ देखकर मैं समझ गई कि वे मुझे आसानी से नहीं छोड़ेंगे। बेचैन होकर मैंने परमेश्वर को पुकारा। तभी मेरे ध्यान में परमेश्वर के ये वचन आए : "तुम्हें किसी भी चीज से भयभीत नहीं होना चाहिए; चाहे तुम्हें कितनी भी मुसीबतों या खतरों का सामना करना पड़े, तुम किसी भी चीज से बाधित हुए बिना, मेरे सम्मुख स्थिर रहने के काबिल हो, ताकि मेरी इच्छा बेरोक-टोक पूरी हो सके। यह तुम्हारा कर्तव्य है ...। डरो मत; मेरी सहायता के होते हुए, कौन इस मार्ग में बाधा डाल सकता है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। परमेश्वर के वचनों से मुझे थोड़ी शांति मिली। मैं जानती थी कि सब-कुछ उसके हाथों में है, यहाँ तक कि ये सब पुलिसवाले भी। परमेश्वर ही मेरा सहारा था, इसलिए मुझे उसी से प्रार्थना करनी थी और उसी पर भरोसा रखना था। यह सोचकर कि पुलिस इतने समय से मेरा पीछा कर रही थी और मुझे इसकी भनक तक नहीं लगी, जिससे अब कलीसिया इतनी बड़ी मुश्किल में है, मुझे खुद से नफरत होने लगी कि मैं कितनी अनजान और मंदबुद्धि थी। इस वक्त मैं अपने भाई-बहनों के लिए प्रार्थना करने के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी। एक संकल्प लेकर मैंने यह प्रार्थना की, "चाहे पुलिसवाले मुझ पर कितना भी अत्याचार करें, मैं कभी अपने भाई-बहनों को धोखा नहीं दूँगी। मैं यहूदा बनकर परमेश्वर के साथ विश्वासघात नहीं करूँगी।" प्रार्थना के बाद मेरा डर कम हो गया। मैं आस्था और हिम्मत से भर गई।

पुलिस ने डाकुओं की तरह पूरे घर को तहस-नहस कर दिया। उन्होंने हमारे सेल फोन, आठ वीडियो प्लेयर, चार टैबलेट, दर्जनों सुसमाचार की किताबें और 10,000 युआन जब्त कर लिए। वे मुझे और दो अन्य बहनों को लिविंग रूम में ले गए और फर्श पर उकड़ूँ बैठने पर मजबूर कर दिया। तभी एक बेडरूम से पुलिस द्वारा भाइयों को लगातार पीटे जाने की आवाजें आने लगीं। गुस्से में आकर मैंने कहा, "हम तो सिर्फ परमेश्वर के विश्वासी हैं, हमने कोई गैरकानूनी काम नहीं किया। आप लोग हमें गिरफ्तार क्यों कर रहे हैं?" उनमें से एक अफसर ने घृणा से कहा, "आस्था रखना गैरकानूनी है, यह एक अपराध है। अगर कम्युनिस्ट पार्टी कहती है कि तुम कानून तोड़ रहे हो, तो तुम कानून तोड़ रहे हो। पार्टी परमेश्वर में विश्वास रखने की इजाजत नहीं देती, फिर भी तुम लोगों ने उनके इलाके में ऐसा करने की जुर्रत की। यह पार्टी के खिलाफ खड़ा होना है। शायद तुम्हें अपनी जान प्यारी नहीं!" मैंने कहा, "क्या कानून आस्था की आजादी की गारंटी नहीं देता?" उन्होंने ठहाके लगाते हुए कहा, "तुम कुछ नहीं जानती! आस्था की आजादी सिर्फ दिखाने के लिए है, विदेशियों को दिखाने के लिए, लेकिन तुम विश्वासियों को यही मिलता है!" यह कहते हुए उसने मुझे एक थप्पड़ मार दिया और एक महिला अफसर ने आकर मेरी बाँह पर लात मारी। मुझे बहुत गुस्सा आया और परमेश्वर के ये वचन मेरे ध्यान में आए : "धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। कम्युनिस्ट पार्टी के राज में जीना वास्तव में शैतान के राज में जीना है। उनके सभी कानून धोखा देने के लिए हैं। वे बाहरी लोगों से कहते हैं कि यहाँ आस्था की आजादी है, लेकिन असलियत यह है कि वे किसी को भी परमेश्वर में विश्वास रखने और सही मार्ग पर चलने नहीं देते, किसी भी सकारात्मक चीज की अनुमति नहीं देते। वे बड़े पैमाने पर ईसाइयों को गिरफ्तार करके उन्हें नुकसान पहुँचाते हैं। वे पुलिस-अफसर वर्दी वाले लुटेरे और बदमाश थे। मेरा उनसे तर्क करने की कोशिश करना हास्यास्पद था! जब उन्होंने मुझे पुलिस-वाहन में डाला, तो मैंने देखा कि हमारे आसपास एक दर्जन से अधिक पुलिस-वाहन हैं।

जब हम जिले के नेशनल सिक्योरिटी ब्रिगेड में पहुँचे, तो एक अफसर ने मुझसे कहा, "हमने तुम्हें गिरफ्तार करके एक बड़ी मछली पकड़ी है। हमें तुम्हारे बारे में सब पता है, हम जानते हैं कि तुम पिछले कुछ हफ्तों में किस शहर और जिले में ठहरी हो। तुम जरूर कलीसिया की अगुआ होगी, वरना हमने तुम्हें पकड़ने के लिए इतना पुलिस-बल न लगाया होता। हम तुमसे यहाँ पूछताछ नहीं करेंगे। उसके लिए हमारे पास एक 'अच्छी जगह' है। उम्मीद है, वह तुम्हें गद्गद कर देगी!" केवल तभी मुझे एहसास हुआ कि वे गलती से मुझे कलीसिया की अगुआ समझ बैठे हैं। यह जानकर मुझे थोड़ी राहत मिली कि कलीसिया के असली अगुआ थोड़े सुरक्षित होंगे। लेकिन मैं अभी भी चिंतित थी। मैं जानती थी कि वे मुझे आसानी से नहीं छोड़ेंगे, क्योंकि वे मुझे कलीसिया की अगुआ समझ रहे थे। मैं नहीं जानती थी कि वे मुझे कितनी यातना देंगे। मैंने आस्था और हौसला पाने के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की, ताकि मुझे गवाही देने में मदद मिले। उस रात 11 बजे के बाद उन्होंने मुझे उस "अच्छी जगह" ले जाने के लिए पुलिस-वाहन में डाल दिया। कार में एक पुलिसवाले ने कहा, "तुम लोगों को सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखने वाले इन विश्वासियों से निपटना नहीं आता। इनका मुँह खुलवाने के लिए तुम्हें बहुत कठोरता से काम लेना पड़ेगा। हमें हर मुमकिन तरीका अपनाना होगा, वरना ये अपना मुँह नहीं खोलेंगे।" दूसरे अफसर ने कहा, "ओह हाँ, बिलकुल। सुना है, आपके पास इन विश्वासियों से निपटने के बेहतरीन तरीके हैं। इसीलिये हमने यह काम आपको सौंपा है।" यह सुनकर मैं अंदाजा लगाने लगी कि ये लोग मुझ पर किस तरह का अत्याचार करेंगे। मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की, और प्रभु यीशु के ये वचन मेरे मन में आए : "जो शरीर को घात करते हैं, पर आत्मा को घात नहीं कर सकते, उनसे मत डरना; पर उसी से डरो, जो आत्मा और शरीर दोनों को नरक में नष्‍ट कर सकता है" (मत्ती 10:28)। "क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे, वह उसे खोएगा; और जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे पाएगा" (मत्ती 16:25)। परमेश्वर के वचनों ने मेरी आस्था को मजबूती दी। मैं जानती थी मेरा जीवन परमेश्वर के हाथों में है, कि मेरी आत्मा परमेश्वर के हाथों में है। मैंने परमेश्वर के आयोजनों के प्रति समर्पित होने और उसे कभी धोखा न देने का संकल्प लिया, फिर चाहे इसके कारण मुझे मौत का सामना ही क्यों न करना पड़े!

वे मुझे जिले के पुलिस-थाने लेकर आए और जैसे ही हम पूछताछ वाले कमरे में गए, मैंने एक भाई की जोर-जोर से रोने की आवाज सुनी। एक अफसर ने निगरानी-उपकरण बंद करने का आदेश दिया, फिर दो अन्य पुलिसवालों ने आकर मुझे हथकड़ियाँ पहना दीं, मेरा दायाँ हाथ मेरे कंधे के पीछे मोड़ दिया और बायाँ हाथ पीठ पर ऊपर की ओर खींच लिया। वे हथकड़ियों को ऊपर-नीचे झटकाते रहे, और ऐसा लगा, जैसे मेरी बाँहें टूटने वाली हैं। इसके बाद उन्होंने टाइगर चेयर का एक हत्था मेरी बाँहों और पीठ के बीच ठूँस दिया। ऐसा लगा, जैसे मेरी बाँहें मेरे शरीर से अलग हो जाएँगी। दर्द के मारे मेरा चेहरा पसीने से भीग गया। एक अफसर ने मेरी हथकड़ियाँ खींचकर कहा, "चोट ज्यादा लग गई? कैसा महसूस हो रहा है?" दूसरे अफसर ने ठहाके लगाते हुए कहा, "तुम वेश्या क्यों नहीं बन जाती? फिर हम तुम्हें गिरफ्तार नहीं करेंगे।" यह सुनकर बाकी सभी जोर-जोर से हँसने लगे। मुझे उनकी बेशर्मी देखकर उनसे घृणा होने लगी। मैंने कभी नहीं सोचा था कि किसी पुलिस अफसर के मुँह से ऐसी बेहूदा बात भी निकल सकती है। ये जानवरों से भी बदतर हैं! फिर उनमें से एक ने कहा, "हमें पूछताछ में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। आखिर में यह हमें सब-कुछ बताने के लिए बेताब होगी। अभी के लिए इसका खाना, पीना और शौचालय जाना बंद कर दो। देखते हैं, कब तक सह पाती है!" फिर उसने जोर से मेरी बाँहें खींचीं और कमर तक ऊँची धातु की छड़ से बँधे हुए हाथों को मोड़ दिया। मैं न तो खड़ी हो पा रही थी और न ही बैठ पा रही थी, और जल्दी ही मेरी पीठ और पैरों में दर्द होने लगा। उन्होंने मुझे सोने नहीं दिया, बल्कि आँखें तक बंद नहीं करने दीं। जैसे ही मेरी आँखें बंद होने लगतीं, पुलिस-अफसर टेबल पर हाथ या स्टूल पर लात मार देता या धातु की छड़ों को हिलाने लगता। या फिर, मुझे डराने के लिए वे ठीक मेरे कानों में चिल्लाते या अजीब-अजीब सी आवाजें निकालते। इससे मैं बहुत बेचैन हो गई, और मुझे एक पल के लिए भी शांति नहीं मिली। मैंने मन ही मन परमेश्वर से प्रार्थना की और लगातार उसे पुकारा और तब सर्वशक्तिमान परमेश्वर के ये वचन मेरे मन में आए : "तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान)। परमेश्वर के वचनों से मुझे विश्वास मिला। सत्य को पाने के लिए कोई भी पीड़ा सहनी पड़े तो वह सार्थक है, मुझे उसके साथ अडिग रहना होगा, चाहे मुझे कितनी भी पीड़ा क्यों न सहनी पड़े। मैंने फैसला कर लिया कि मैं गवाही देकर शैतान को नीचा दिखाऊँगी।

अगली सुबह छह-सात अफसर कलीसिया की निधियों के स्थान और बड़े अगुआओं के नाम जानने के लिए मुझसे पूछताछ करने आए। जब मैंने कुछ नहीं बताया, तो उन्होंने मुझे बुरी तरह मारा। उनके जाने के तुरंत बाद कुछ और अफसर मुझसे वही सवाल करने आए। वे मुझसे चौबीसों घंटे लगातार पूछताछ करते रहे। चार दिन बाद मेरा पूरा शरीर सूज गया और मेरी पिंडलियाँ सूजकर मेरी जाँघों जितनी मोटी हो गईं। मैं भूखी और कमजोर थी। मेरी आँखें बंद होती देख एक महिला अफसर ने जोर से मेरे पैर पर लात मारी। मेरी कमर से नीचे का पूरा हिस्सा सुन्न पड़ गया था और मेरी पीठ में असहनीय दर्द हो रहा था, मानो वह टूट गई हो। मेरी आँखें सूज गई थीं और उनमें बुरी तरह चुभन हो रही थी। ऐसा लग रहा था, जैसे मेरी आँखें कभी भी बाहर निकल आएँगी। यह बहुत ही दर्दनाक था। एक पल के लिए भी आँखें बंद करने या अपने पैरों को आराम देने का विचार किसी सच्ची विलासिता जैसा लगा। मुझे कोई अंदाजा नहीं था कि वे कब तक मुझे यातना देते रहेंगे। मुझे लगा, जैसे मेरा शरीर सहने की सीमा पार कर चुका है, और मैं ज्यादा देर यह सब नहीं सह पाऊँगी। मेरा दिल बेहद कमजोर पड़ चुका था। मैंने विश्वास और हिम्मत पाने के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की। फिर मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा : "क्या तुम लोगों ने कभी मिलने वाले आशीषों को स्वीकार किया है? क्या कभी तुमने उन वादों को खोजा जो तुम्हारे लिए किए गए थे? तुम लोग निश्चय ही मेरी रोशनी के नेतृत्व में, अंधकार की शक्तियों के गढ़ को तोड़ोगे। तुम अंधकार के मध्य निश्चय ही मार्गदर्शन करने वाली ज्योति को नहीं खोओगे। तुम सब निश्चय ही सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी होगे। तुम लोग निश्चय ही शैतान के सामने विजेता बनोगे। तुम सब निश्चय ही बड़े लाल अजगर के राज्य के पतन के समय, मेरी विजय की गवाही देने के लिए असंख्य लोगों की भीड़ में खड़े होगे। तुम लोग निश्चय ही सिनिम के देश में दृढ़ और अटूट खड़े रहोगे। तुम लोग जो कष्ट सह रहे हो, उनसे तुम मेरे आशीष प्राप्त करोगे और निश्चय ही सकल ब्रह्माण्ड में मेरी महिमा का विस्तार करोगे"("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में 'विजेताओं का गीत')। "अतीत में, पतरस को परमेश्वर के लिए क्रूस पर उलटा लटका दिया गया था; परंतु तुम्हें अंत में परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहिए, और अपनी सारी ऊर्जा परमेश्वर के लिए खर्च करनी चाहिए। एक सृजित प्राणी परमेश्वर के लिए क्या कर सकता है?"("मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ" में 'सृजित जीव को होना चाहिये परमेश्वर की दया पर')। परमेश्वर के वचनों ने मुझे हौसला दिया और मेरी हिम्मत बढ़ाई। मैं क्रूर यातना के दौर से गुजरी थी, लेकिन परमेश्वर मेरे साथ रहा था और अपने वचनों से मेरा मार्गदर्शन करता रहा था। मैं यह भी जानती थी कि मैं इस तरह के क्लेश से इसलिए गुजर रही थी, ताकि परमेश्वर मेरी आस्था पूर्ण कर सके, और कि मुझे बड़े लाल अजगर के सामने विजयपूर्ण गवाही देनी होगी। अगर मैंने शारीरिक पीड़ा के डर से परमेश्वर को धोखा दिया, तो मेरी जिंदगी निरर्थक हो जाएगी। यह बहुत बड़ा अपमान होगा। मैंने युगों-युगों के उन सब प्रेरितों और नबियों को याद किया—उन्होंने यातना झेली और मौत का सामना किया, लेकिन उन्होंने परमेश्वर में आस्था बनाए रखी और उसके लिए जबरदस्त गवाही दी। मैं परमेश्वर की अनुमति से पुलिस द्वारा सताई और प्रताड़ित की जा रही थी। मेरा आध्यात्मिक कद छोटा था और मैं उस जमाने के संतों जैसी बिलकुल नहीं थी, लेकिन मेरी खुशकिस्मती थी कि मुझे परमेश्वर के लिए गवाही देने का मौका मिला था। मैं परमेश्वर की गवाही देने के लिए अपना जीवन दाँव पर लगाने को तैयार थी, ताकि परमेश्वर के दिल को थोड़ा सुकून मिले। परमेश्वर के वचनों पर विचार करने से मेरी शारीरिक पीड़ा भी थोड़ी कम हो गई लगती थी। मुझे झपकी लेते देख उनके कप्तान ने मेरे बाल पकड़कर मेरा सिर आगे-पीछे किया, और मेरे सिर और सीने पर मुक्के मारे। उन्होंने यह कहते हुए मुझे शौचालय भी नहीं जाने दिया कि एक निश्चित समय तक तुम शौचालय नहीं जा सकती। आखिरकार जब मुझे शौचालय जाने दिया गया, तब कुछ पुलिस-अफसर शौचालय की बगल में खड़े होकर हर तरह की नीच बातें कहने लगे। मुझे बहुत शर्म आई। मैं मर जाना चाहती थी। फिर मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा : "तुम सब लोगों को शायद ये वचन स्मरण हों : 'क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है।' तुम सब लोगों ने पहले भी ये वचन सुने हैं, किंतु तुममें से कोई भी इनका सच्चा अर्थ नहीं समझा। आज, तुम उनकी सच्ची महत्ता से गहराई से अवगत हो। ये वचन परमेश्वर द्वारा अंत के दिनों के दौरान पूरे किये जाएँगे, और वे उन लोगों में पूरे किये जाएँगे जिन्हें बड़े लाल अजगर द्वारा निर्दयतापूर्वक उत्पीड़ित किया गया है, उस देश में जहाँ वह कुण्डली मारकर बैठा है। बड़ा लाल अजगर परमेश्वर को सताता है और परमेश्वर का शत्रु है, और इसीलिए, इस देश में, परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों को इस प्रकार अपमान और अत्याचार का शिकार बनाया जाता है, और परिणामस्वरूप, ये वचन तुम लोगों में, लोगों के इस समूह में, पूरे किये जाते हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। परमेश्वर के वचनों की प्रबुद्धता से मैंने जाना कि अपनी आस्था के लिए अपमानित होना और पीड़ा सहना वास्तव में धार्मिकता के लिए कष्ट सहना है। यह वास्तव में परमेश्वर का अनुग्रह था, जो मुझे गवाही देने का मौका दे रहा था; यह मेरे लिए सम्मान की बात थी। लेकिन जब मैंने थोड़ा-सा अपमान या शारीरिक पीड़ा सही, तो मैं परमेश्वर में आस्था खोकर मर जाने के बारे में सोचने लगी। मैंने व्यक्तिगत महिमा या अपमान की प्राप्ति को बहुत ज्यादा महत्त्व दे दिया था। आखिर यह किस तरह की गवाही थी? मैंने संकल्प लिया था कि चाहे मुझे मौत ही क्यों न आ जाए, मैं परमेश्वर के लिए गवाही दूँगी, लेकिन अब मैं जरा-सी शारीरिक पीड़ा के कारण अपनी बात से पीछे हट रही थी। क्या मैं शैतान की चाल में नहीं फँस रही थी? क्या शैतान मुझसे परमेश्वर को धोखा दिलवाने की कोशिश नहीं कर रहा था? अपनी बात से पीछे हटकर मैं शैतान की हँसी का पात्र नहीं बन सकती। मुझे जिंदा रहकर परमेश्वर के लिए गवाही देनी होगी और शैतान को शर्मिंदा करना होगा! परमेश्वर की इच्छा समझने के बाद मैंने उससे यह प्रार्थना की : "परमेश्वर, मैं खुद को तुम्हारे हवाले करने के लिए तैयार हूँ। चाहे शैतान मुझे कितनी भी यातना दे, मैं तुम्हारे लिए गवाही दूँगी और तुम्हें कभी धोखा नहीं दूँगी। मैं हर चीज में तुम्हारे आयोजनों और व्यवस्थाओं का पालन करूँगी!" अपनी प्रार्थना के बाद मैंने खुद को मजबूत महसूस किया।

फिर पूछताछ वाले कमरे में पुलिसवालों ने एक कंप्यूटर चलाया और उसमें कुछ बहनों की तसवीरें दिखाकर मुझे उन्हें पहचानने के लिए कहा। उन्होंने यह भी कहा कि 24 जनवरी को दोपहर 2 बजे के आसपास उन्होंने कई अलग-अलग जगहों से भाई-बहनों को गिरफ्तार किया था। यह एक समन्वित कार्रवाई थी। मुझे बहुत गुस्सा आया। यह देखकर कि मैं जवाब नहीं दे रही, वे मुझे इस तरह की बातें कहते हुए धमकाने भी लगे और फुसलाने भी, "हम तुम लोगों के बारे में पहले से ही सब-कुछ जानते हैं। अकड़ दिखाने का कोई फायदा नहीं। वे सभी अपना मुँह खोल चुके हैं, आखिर तुम क्यों उनके लिए इतनी महान बन रही हो? अगर हमने तुम्हें अभी छोड़ भी दिया, तो तुम्हारी कलीसिया तुम्हें वापस नहीं लेगी। अकलमंद बनो—हमें बताओ कि तुम्हारे बड़े अगुआ कौन हैं और कलीसिया का सारा धन कहाँ रखा है। फिर हम नए साल के जश्न के लिए तुम्हें घर वापस जाने देंगे।" मैंने अब भी कुछ नहीं कहा, तो वे मुझ पर चिल्लाने लगे, "अगर तुमने हमें कलीसिया के धन की जगह के बारे में नहीं बताया, तो हम तुम्हारे कपड़े उतारकर छत से लटका देंगे और मार-मारकर तुम्हारा भरता बना देंगे। हम इसके हर क्षण का स्वाद लेंगे।" यह सुनकर मैं डर गई। मैंने देखा कि वे शैतान कुछ भी कर सकते हैं और पता नहीं, मैं उसे बरदाश्त कर पाऊँगी या नहीं। मैं तनाव में थी, और नहीं जानती थी कि उस रात वे मेरे साथ क्या करने वाले थे। डर और उदासी की लहर के बाद लहर आने से मैं खुद को बहुत लाचार महसूस करने लगी। मैंने तुरंत परमेश्वर से अपनी रक्षा करने की प्रार्थना की। प्रार्थना के बाद मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा : "जब लोग अपने जीवन का त्याग करने के लिए तैयार होते हैं, तो हर चीज तुच्छ हो जाती है, और कोई उन्हें हरा नहीं सकता। जीवन से अधिक महत्वपूर्ण क्या हो सकता है? इस प्रकार, शैतान लोगों में आगे कुछ करने में असमर्थ हो जाता है, वह मनुष्य के साथ कुछ भी नहीं कर सकता। हालाँकि, 'देह' की परिभाषा में यह कहा जाता है कि देह शैतान द्वारा दूषित है, लेकिन अगर लोग वास्तव में स्वयं को अर्पित कर देते हैं, और शैतान से प्रेरित नहीं रहते, तो कोई भी उन्हें मात नहीं दे सकता" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, “संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचनों” के रहस्यों की व्याख्या, अध्याय 36)। परमेश्वर के वचनों की प्रबुद्धता से मैंने समझा कि कि मैं अपने अपमान और मौत को लेकर बहुत डरी हुई थी। शैतान मुझे परमेश्वर को धोखा देने पर मजबूर करने के लिए मेरी कमजोरियों का इस्तेमाल कर रहा था। यह उसकी चाल थी। अगर मैं अपना जीवन दाँव पर लगा सकूँ, तो उसके पास मुझे मजबूर करने के लिए क्या बचेगा? मैंने यह भी जाना कि पुलिस के मेरे साथ ऐसा बरताव करने में मेरा अपमान नहीं था, बल्कि ऐसा करके वे खुद बुरे और नीच बन रहे थे। मेरे शरीर का कोई मोल नहीं। मैं परमेश्वर के लिए गवाही देने और शैतान को शर्मिंदा करने के लिए अपने जीवन का त्याग करने के लिए तैयार हो गई। मैं जानती थी कि परमेश्वर के लिए गवाही देना सार्थक होगा, कि मेरा जीना बेकार नहीं जाएगा। इस विचार से मेरा सारा डर खत्म हो गया। मैं शक्ति और आस्था से भर गई।

उस दोपहर 1 बजे के आस-पास मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा और मेरे लिए ठीक से साँस लेना भी मुश्किल हो गया। मेरे पैर इतने कमजोर पड़ गए थे कि मैं जमीन पर गिर पड़ी। मेरी हालत देखकर उन्होंने बस इतना कहा, "मरने का नाटक करने की जरूरत नहीं। हम तुम्हें अब भी नहीं जाने देंगे। सेंट्रल कमिटी का कहना है कि अगर हमने किसी विश्वासी को पीट-पीटकर मार भी दिया, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। एक और विश्वासी के मरने का मतलब है एक विश्वासी कम होना! हम गड्ढा खोदकर सीधा तुम्हें उसमें फेंक देंगे। किसी को पता भी नहीं चलेगा।" बाद में उन्होंने देखा कि मेरी हालत सच में खराब हो रही है, तो इस डर से कि मेरी मौत से वे अपना एकमात्र सुराग खो बैठेंगे, वे मुझे जाँच के लिए अस्पताल ले गए। डॉक्टर ने कहा कि मेरी ताकत खत्म हो चुकी है और इससे मुझे दिल की समस्या शुरू हो गई है। उन्होंने कहा कि मुझे कुछ खाने के लिए दिया जाना चाहिए और आराम करने देना चाहिए। लेकिन उन्हें मेरे मरने या जीने की कोई परवाह नहीं थी। अस्पताल से वापस आने के आधे घंटे बाद उन्होंने मुझे दोबारा उस धातु की छड से बाँध दिया। यह देखकर कि सख्त रवैया अपनाने से उन्हें कुछ हासिल नहीं हो रहा, उन्होंने मुझसे नरमी से पेश आने की कोशिश की। उनमें से एक अफसर ने बनावटी उदारता दिखाते हुए मुझसे कहा कि वे प्रभु में आस्था रखने के खिलाफ नहीं हैं, और उसकी दादी भी ईसाई ही है। उसने यह भी कहा कि उसकी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है, और मेरी खूबसूरती देखकर वह वाकई मुझे अपनी गर्लफ्रेंड बनाना पसंद करेगा। फिर दूसरे अफसर ने कहा, "अगर तुम्हें अपनी परवाह नहीं, तो कम से कम अपने माता-पिता की तो परवाह करो। चीन में नया साल लगभग आने ही वाला है, हर कोई अपने परिवार के साथ है। लेकिन तुम यहाँ पीड़ा सह रही हो। तुम्हारे माता-पिता को तुम्हारे बारे में जानकर कितना दुख होगा।" एक और अफसर बोला, "लगभग तुम्हारी ही उम्र की मेरी एक बेटी है और तुम्हें इतनी पीड़ा सहते देख मुझे अच्छा नहीं लग रहा। बताओ, तुम्हें क्या चाहिए—यहाँ आखिरी फैसला मेरा ही होता है। मैं तुम्हें कोई नौकरी भी दिला दूँगा। बस, तुम जो कुछ जानती हो, मुझे बता दो।" उनका यह खुशामदी बरताव देखकर मुझे उनसे नफरत होने लगी, और मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा : "तुम लोगों को जागते रहना चाहिए और समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए, और तुम लोगों को मेरे सामने अधिक बार प्रार्थना करनी चाहिए। तुम्हें शैतान की विभिन्न साजिशों और चालाक योजनाओं को पहचानना चाहिए, आत्माओं को पहचानना चाहिए, लोगों को जानना चाहिए और सभी प्रकार के लोगों, घटनाओं और चीजों को समझने में सक्षम होना चाहिए" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 17)। शैतान मुझसे जीतने के लिए मेरी भावनाओं से खेलकर मुझे बहकाने की कोशिश में लगा था, ताकि मैं परमेश्वर को धोखा दे दूँ। यह बेशर्मी और नीचता थी! मैं जानती थी, मैं शैतान की चालों में नहीं फँस सकती। इसके बाद वे मुझे कितना भी डराते या बहकाते रहे, मैंने अपना मुँह नहीं खोला। वे छह-सात लोगों के समूह में आकर आठ दिनों तक बारी-बारी से दिन-रात मुझसे पूछताछ करते रहे। मेरा मुँह खुलवाने के लिए उन्होंने मुझे डराने, धमकाने और यातनाएँ देने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन वे मुझसे कोई जानकारी नहीं पा सके। आखिरकार एक अफसर ने कहा, "तुम्हारा संकल्प बेहतरीन है, और तुम्हारा परमेश्वर महान है।" यह सुनकर मुझे बहुत खुशी हुई—मैं शैतान को शर्मिंदा होते और हारते हुए देख रही थी।

उसके बाद वे मुझे जेल लेकर गए। वहाँ पहुँचने के बाद एक महिला अफसर ने निगरानी-उपकरण चालू करके मेरे कपडे उतरवाकर मेरी तलाशी ली। जेल की कोठरी में पहुँचने पर अन्य सभी कैदी मुझे बुरी नजरों से देखने लगे, और जेल के गार्ड उन कैदियों को उकसाते हुए कहने लगे, "यह एक और विश्वासी है। इसकी 'अच्छी खातिरदारी' करना।" मैं अपने आपको सँभाल भी नहीं पाई थी कि एक कैदी ने मुझे ठंडे पानी से नहाने का आदेश दिया, फिर मुझ पर बाल्टी भर-भरकर ठंडा पानी डाला जाने लगा, और मैं बुरी तरह काँपने लगी। दूसरे कैदी एक कोने में खड़े होकर ठहाके लगा रहे थे। बाथरूम साफ करने और साफ-सफाई के दूसरे काम करने के लिए मुझे रोज दर्जनों बाल्टी पानी उठाना पड़ता था और खाने के वक्त वे जानबूझकर मुझे कम खाना देते। मैं कभी भरपेट खाना नहीं खा पाती थी। रात में वे मेरे बिस्तर पर इतने जोर-जोर से लात मारते कि मैं सो न पाती। इन सबसे मैं डर गई और मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। यह बहुत भयंकर था। बाद में उन्होंने मुझे ठंड में पक्की जमीन पर अकेले सोने को मजबूर कर दिया। इतना ही नहीं, गार्ड मुख्य कैदी और कुछ हत्यारों को मुझे यातना पहुँचाने के लिए उकसाते रहते, और पुलिसवाले यह कहते हुए हमेशा मुझसे सवाल-जवाब करते और मुझे डराते रहते कि "तुम एक राजनीतिक अपराधी हो। तुम्हारी मौत से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अगर तुमने अपना मुँह नहीं खोला, तो हम तुम्हें अनिश्चित काल के लिए यहीं बंद रखेंगे। यहाँ से कभी भी निकल पाने की उम्मीद मत करना!" यह सुनकर मुझे बहुत बुरा लगा। उन चार महीनों का हर दिन मेरे लिए नर्क की यातना के बराबर था और अब मैं और नहीं सह सकती थी। मुझे कोई अंदाजा नहीं था कि यह सब कब खत्म होगा। मुझे लगा कि मुझमें आगे सहने की ताकत नहीं बची है। मैं बहुत कमजोर पड़ चुकी थी। पीड़ा से बचने के लिए मैं मौत की कामना कर रही थी। अपनी पीड़ा में मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, और प्रार्थना के दौरान जोर-जोर से रोने लगी। मैंने सोचा कि कैसे परमेश्वर देहधारण करके सत्य व्यक्त करने और मानवजाति को बचाने के लिए धरती पर आया था। मैं परमेश्वर के वचनों के सिंचन और पोषण का आनंद उठा रही थी, लेकिन अब मैं परमेश्वर के प्रेम का मूल्य चुकाए बिना ही इस दुनिया से जाना चाहती थी। मैं अपराध-बोध और पछतावे से भर गई; मुझे इतना बुरा लगा, मानो मेरे दिल को जबरदस्त धक्का लगा हो। फिर मैंने परमेश्वर के इन वचनों के बारे में सोचा : "इस प्रकार, इन अंतिम दिनों में, तुम्हें अवश्य ही परमेश्वर के प्रति गवाही देनी है। इस बात की परवाह किए बिना कि तुम्हारे कष्ट कितने बड़े हैं, तुम्हें अपने अंत की ओर बढ़ना है, अपनी अंतिम सांस तक भी तुम्हें अवश्य ही परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसकी कृपा पर बने रहना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। "चूँकि तुम मानव प्राणी हो, इसलिए तुम्हें स्वयं को परमेश्वर के लिए खपाना और सारे कष्ट सहने चाहिए! आज तुम्हें जो थोड़ा-सा कष्ट दिया जाता है, वह तुम्हें प्रसन्नतापूर्वक और दृढ़तापूर्वक स्वीकार करना चाहिए और अय्यूब तथा पतरस के समान सार्थक जीवन जीना चाहिए। ... तुम सब वे लोग हो, जो सही मार्ग का अनुसरण करते हो, जो सुधार की खोज करते हो। तुम सब वे लोग हो, जो बड़े लाल अजगर के देश में ऊपर उठते हो, जिन्हें परमेश्वर धार्मिक कहता है। क्या यह सबसे सार्थक जीवन नहीं है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (2))। परमेश्वर के इन वचनों के सामने मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। परमेश्वर देहधारण करके हमारे पोषण के लिए इतने सारे सत्य व्यक्त करने धरती पर आया, और अब उसे गवाही के लिए हम जैसे लोगों की जरूरत है, लेकिन मौत के जरिये मैं इस स्थिति से बचना चाहती हूँ, सिर्फ इसलिए कि मुझे थोड़ा-सा अपमान और थोड़ी शारीरिक पीड़ा सहनी पड़ गई। यह सच्ची आज्ञाकारिता नहीं है। क्या यह परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह करना नहीं है? मैंने याद किया कि कैसे अय्यूब ने अपना सब-कुछ और अपने बच्चे तक खो दिए, उसे बीमारी की पीड़ा भी सहनी पड़ी, लेकिन उसने कभी परमेश्वर को दोषी नहीं ठहराया। वह परमेश्वर का गुणगान करता रहा और उसके प्रति समर्पित हो गया। वह परमेश्वर का एक बेहतरीन गवाह था। युगों-युगों से अनुयायियों और नबियों ने परमेश्वर के लिए अपना खून बहाया और जीवन त्याग दिया। मैंने परमेश्वर से इतना आनंद उठाया, लेकिन मैंने उसके लिए क्या त्याग किया? मैं बहुत ही स्वार्थी और नीच हूँ, और परमेश्वर ने हमारे लिए जो कीमत चुकाई है, उसका मान नहीं रख रही हूँ। मैं तो इंसान कहलाने लायक भी नहीं हूँ! पश्चात्ताप में डूबकर प्रार्थना करते हुए मैं परमेश्वर के सामने आई और बोली, "हे परमेश्वर, मैं गलत थी। मुझे मरने की बात नहीं सोचनी चाहिए थी। मैं अय्यूब और पतरस जैसी बनना चाहती हूँ, और चाहे मुझे कुछ भी सहना पड़े, मैं तुम्हारे लिए गवाही देना चाहती हूँ।" प्रार्थना से मुझे आने वाली मुसीबत का सामना करने की हिम्मत मिली। जल्दी ही मुख्य कैदी को अपनी सजा काटने के लिए मेरी जेल से बाहर निकालकर दूसरी जेल में डाल दिया गया, और कुछ अन्य कैदियों को इस जेल में लाया गया, जो मेरा ध्यान रखने लगे। उन्होंने रोजमर्रा की जरूरत की कुछ चीजें मुझे दीं और ठंड में पहनने के लिए कपड़े भी दिए। मैं जानती थी, यह परमेश्वर का आयोजन और व्यवस्था है। जैसा कि परमेश्वर के वचनों में कहा गया है : "कोई भी और सभी चीज़ें, चाहे जीवित हों या मृत, परमेश्वर के विचारों के अनुसार ही जगह बदलेंगी, परिवर्तित, नवीनीकृत और गायब होंगी। परमेश्वर सभी चीज़ों को इसी तरीके से संचालित करता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर मनुष्य के जीवन का स्रोत है)

बाद में, जेल में एक बहन से मेरी मुलाकात हुई। उससे मिलकर मुझे बहुत खुशी हुई। हमने एक-दूसरे का हौसला बढ़ाने के लिए चुपके से परमेश्वर के कुछ वचनों पर चर्चा और सहभागिता की। मेरा मन शांत और संतुष्ट हो गया। फिर सितंबर में एक दिन पुलिस दोबारा मुझसे सवाल-जवाब करने आई। पूछताछ वाले कमरे में पहुँचते ही उन्होंने मेरी तसवीर खींची और कहा कि वे इसकी मदद से ऑनलाइन मेरी पहचान ढूँढ़ेंगे। उन्होंने मुझे यह कहते हुए धमकी दी कि "तुम्हारा मामला अभी निपटा नहीं है। यहाँ से निकलने की सोचना भी मत! ईसाइयों के लिए कम्युनिस्ट पार्टी की नीति एक साल की कैद को तीन साल में और तीन साल की कैद को सात साल में बदलने की है। वे एक सनक के आधार पर किसी को पीट-पीटकर मार भी सकते हैं और किसी को इसका जिम्मेदार नहीं ठहराया आएगा। देखते हैं, तुम कब तक चुप रहती हो।" सीसीपी की बुराई और नीचता देखकर मुझे शैतान से और भी ज्यादा नफरत होने लगी। मैं कभी हार मानकर परमेश्वर को धोखा नहीं दूँगी। मैंने उनसे गंभीरता से कहा, "आप इसे भूल जाएँ। मेरा यहाँ से बाहर निकलने का कोई इरादा नहीं है। अगर मैं परमेश्वर को जानकर अपने जीवनकाल में सृष्टिकर्ता के लिए गवाही दे सकूँ, तो यह सार्थक होगा, फिर चाहे यहाँ मेरी मौत ही क्यों न हो जाए!" यह सुनकर पुलिसवालों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया।

अधिकारियों द्वारा 10 महीनों तक गैरकानूनी ढंग से जेल में रखे जाने के बाद नवंबर 2013 में मुझे छोड़ दिया गया। भले ही कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा गिरफ्तार किए जाने के अपने अनुभव में मुझे शारीरिक पीड़ा सहनी पड़ी, लेकिन परमेश्वर के वचन हर पल मुझे प्रबुद्ध बनाते रहे थे, और शैतान के प्रलोभनों पर विजय पाने और गवाही देने में मेरा मार्गदर्शन कर रहे थे। मैंने सच में परमेश्वर के वचनों के सामर्थ्य और अधिकार का अनुभव किया, और परमेश्वर में मेरी आस्था बढ़ गई। मैंने सीसीपी के परमेश्वर से नफरत करने और उसका दुश्मन होने के शैतानी सार को भी साफ तौर पर देखा। मैंने सीसीपी से पूरी तरह से मुँह मोड़कर उसे नकार दिया, और परमेश्वर का अनुसरण करने के अपने संकल्प को दृढ़ बनाया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद!

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