224 मैं पूरी निष्ठा से परमेश्वर को संतुष्ट करने का निश्चय कर चुका हूँ
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मैं देखता हूँ कि परमेश्वर के गौरव प्राप्त करने का दिन करीब आ रहा है। अतीत को याद करते हुए, मुझे बहुत पश्चाताप हो रहा है।
परमेश्वर के साथ अपने संबंध में मैं इतना विद्रोही था कि मेरे अंदर असहनीय यादें बसी हुई हैं।
मुझे अफ़सोस है कि मैं इतनी देर से होश में आया, परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान न दे पाने के कारण मैं ख़ुद को अपराधी महसूस कर रहा हूँ।
मेरा कोई भी काम परमेश्वर की इच्छा के मुताबिक नहीं था; फिर मेरा दिल शांति और आनंद कैसे पा सकता है?
परमेश्वर ने दुनिया में काम करने, इंसान के साथ रहने और उसकी पीड़ा को साझा करने के लिए देहधारण किया।
परमेश्वर से प्रेम करना इंसान के लिये कितना सार्थक है, मेरे अंदर न ज़मीर है न विवेक है, इस कारण मैं ख़ुद से घृणा करता हूँ।
मैं सच्चे मन से परमेश्वर से प्रेम न कर पाने के कारण खुद को बहुत ऋणी महसूस करता हूँ।
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मैं परमेश्वर के प्यार का बहुत आनंद लेता हूँ, मेरा दिल जल्द से जल्द परमेश्वर के प्रेम को चुकाने के लिए तड़पता है।
लेकिन मेरी प्रकृति विद्रोह करती है, मैं सत्य का अभ्यास नहीं करता, मैंने पूर्ण होने के बहुत से मौके गँवा दिए हैं।
मेरे पास पछतावे और अफ़सोस के अलावा कुछ नहीं बचा, मैं खुद से और भी अधिक घृणा और नफ़रत करता हूँ।
मैं देखता हूँ कि मेरे अंदर सत्य की कोई वास्तविकता नहीं है, मैं अभी भी अपना कर्तव्य निभाने में ढुलमुल हूँ।
मेरा दिल बेचैन है, मैं फूट-फूट कर रोता हूँ, मुझे गहराई से महसूस होता है कि मैं परमेश्वर का सामना नहीं कर सकता।
परमेश्वर की कृपा का ध्यान से हिसाब लगाकर, मैं देखता हूँ कि परमेश्वर कितना नेक और मनोहर है।
परमेश्वर मुझे बचाने के लिए कितनी अधिक कीमत चुकाता है, तो फिर मैं उसके प्रेम का प्रतिदान क्यों नहीं दे सकता?
हालाँकि मैंने अपनी भ्रष्टता को पूरी तरह से खत्म नहीं किया है, लेकिन मैं सत्य का अनुसरण करने में अपनी पूरी शक्ति लगा दूँगा।
पथ के अंतिम पड़ाव में, मैं ईश्वर को पूरी निष्ठा से संतुष्ट करना चाहता हूँ।