503 परमेश्वर की मनोरमता को देखने के लिए देहासक्ति को त्याग दो
1
अगर सच में ईश्वर को चाहते हो, देह को तृप्त नहीं करते हो,
तुम पाओगे, ईश्वर का हर काम, एकदम सही और नेक है।
उसका तुम्हारे विद्रोह को शापित करना,
तुम्हारी अधार्मिकता का न्याय करना,
एकदम सही और उचित है।
ईश्वर परिवेश बनाकर (कभी-कभी) तुम्हें मज़बूत करेगा।
(तुम्हें) अनुशासित करेगा, ताड़ना देगा,
अपने सामने आने के लिए तुम्हें मजबूर करेगा।
तुम्हें उसके कर्म अद्भुत लगेंगे, लगेगा दर्द कम है।
ईश्वर की मनोरमता का एहसास होगा।
तुम्हें देहासक्ति से विद्रोह करना है, बढ़ावा नहीं देना।
तुम ये संकल्प लो :
मेरे लिए परिवार और भविष्य के कोई मायने नहीं,
मेरे दिल में केवल ईश्वर है।
मैं देह को नहीं, ईश्वर को संतुष्ट करने का (पूरा) प्रयास करूँगा।
2
अगर तुम देहासक्ति को बढ़ावा दो, कहो, ईश्वर ज़्यादती करे,
तो तुम हमेशा कष्ट उठाओगे, उदासी तुम्हें खोजती रहेगी।
तुम ईश-कार्य को समझ न पाओगे,
इंसानी कमज़ोरी और मुश्किलों के प्रति
उसकी हमदर्दी को महसूस न कर पाओगे।
दुख और अकेलेपन का एहसास करोगे, मानो अन्याय है तुम्हारा दुख।
तुम दुहाई दोगे, शिकायत करोगे।
तुम्हें देहासक्ति से विद्रोह करना है, बढ़ावा नहीं देना।
तुम ये संकल्प लो :
मेरे लिए परिवार और भविष्य के कोई मायने नहीं,
मेरे दिल में केवल ईश्वर है।
मैं देह को नहीं, ईश्वर को संतुष्ट करने का (पूरा) प्रयास करूँगा।
देह की कमज़ोरियों के आगे जितना झुकोगे,
उतना ही महसूस करोगे कि ईश्वर ज़्यादती करे,
उस मुकाम पर पहुँचने तक
जहाँ (तुम) उसके काम को नकारो, उसका विरोध करो।
पूरी तरह उसकी अवज्ञा करो।
तुम्हें देहासक्ति से विद्रोह करना है, बढ़ावा नहीं देना।
तुम ये संकल्प लो :
मेरे लिए परिवार और भविष्य के कोई मायने नहीं,
मेरे दिल में केवल ईश्वर है।
मैं देह को नहीं, ईश्वर को संतुष्ट करने का (पूरा) प्रयास करूँगा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है से रूपांतरित