सृष्टिकर्ता का अधिकार अपरिवर्तनीय और अपमान न किए जाने योग्य है

06 अगस्त, 2018

पवित्रशास्त्र के इन तीन भागों में तुमने क्या देखा है? क्या तुम लोगों ने देखा है कि एक सिद्धांत है, जिसके द्वारा परमेश्वर अपने अधिकार का प्रयोग करता है? उदाहरण के लिए, परमेश्वर ने मनुष्य के साथ वाचा बाँधने के लिए इंद्रधनुष का उपयोग किया—उसने मनुष्य को यह बताने के लिए बादलों में इंद्रधनुष रखा कि वह दुनिया को नष्ट करने के लिए फिर कभी जलप्रलय का उपयोग नहीं करेगा। क्या लोग जो इंद्रधनुष आज देखते हैं, वह अभी भी वही है जो परमेश्वर के मुख से बोला गया था? क्या उसका स्वरूप और अर्थ बदल गया है? बेशक, नहीं। परमेश्वर ने यह कार्य करने के लिए अपने अधिकार का उपयोग किया, और जो वाचा उसने मनुष्य के साथ बाँधी थी, वह आज तक चलती आई है, और जिस समय इस वाचा को बदला जाएगा, वह निश्चित रूप से परमेश्वर का निर्णय होगा। परमेश्वर के यह कहने के बाद कि “बादल में अपना धनुष रखा है,” परमेश्वर ने आज तक हमेशा इस वाचा का पालन किया। तुम इसमें क्या देखते हो? हालाँकि परमेश्वर के पास अधिकार और सामर्थ्य है, लेकिन वह अपने कार्यों में बहुत कठोर और सिद्धांतवादी है, और अपने वचन पर अडिग रहता है। उसकी कठोरता और उसके कार्यों के सिद्धांत दर्शाते हैं कि सृष्टिकर्ता का अपमान नहीं किया जा सकता और सृष्टिकर्ता का अधिकार अलंघ्य है। हालाँकि उसके पास सर्वोच्च अधिकार है, और सभी चीजें उसके प्रभुत्व के अधीन हैं, और हालाँकि उसके पास सभी चीजों पर शासन करने का सामर्थ्य है, फिर भी परमेश्वर ने कभी भी अपनी योजना क्षतिग्रस्त या बाधित नहीं की है, और हर बार जब वह अपने अधिकार का उपयोग करता है, तो यह कड़ाई से उसके सिद्धांतों के अनुसार ही होता है, और ठीक उसी का अनुसरण करता है जो उसके मुँह से बोला गया था, और उसकी योजना के चरणों और उद्देश्यों का पालन करता है। कहने की जरूरत नहीं कि परमेश्वर द्वारा शासित सभी चीजें उन सिद्धांतों का भी पालन करती हैं, जिनके द्वारा परमेश्वर के अधिकार का प्रयोग किया जाता है, और कोई भी व्यक्ति या वस्तु उसके अधिकार के आयोजनों से मुक्त नहीं है, न ही वे उन सिद्धांतों को बदल सकते हैं जिनके द्वारा उसका अधिकार प्रयुक्त किया जाता है। परमेश्वर की दृष्टि में, जिन लोगों को आशीष दिया जाता है, वे उसके अधिकार द्वारा लाया गया सौभाग्य प्राप्त करते हैं, और जिन्हें शाप दिया जाता है, उन्हें परमेश्वर के अधिकार के कारण दंड मिलता है। परमेश्वर के अधिकार की संप्रभुता के तहत, कोई भी व्यक्ति या वस्तु उसके अधिकार के प्रयोग से मुक्त नहीं है, न ही वे उन सिद्धांतों को बदल सकते हैं जिनके द्वारा उसका अधिकार प्रयुक्त किया जाता है। सृष्टिकर्ता का अधिकार किसी भी कारक में होने वाले परिवर्तन से नहीं बदलता, और इसी तरह, वे सिद्धांत, जिनके द्वारा उसका अधिकार प्रयुक्त किया जाता है, किसी भी कारण से नहीं बदलते। आसमान और धरती भारी उथल-पुथल से गुजर सकते हैं, लेकिन सृष्टिकर्ता का अधिकार नहीं बदलेगा; सभी चीजें गायब हो सकती हैं, लेकिन सृष्टिकर्ता का अधिकार कभी गायब नहीं होगा। यह सृष्टिकर्ता के अपरिवर्तनीय और अपमान न किए जा सकने योग्य अधिकार का सार है, और यही सृष्टिकर्ता की अद्वितीयता है!

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I

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