केवल परमेश्वर के पास ही सृष्टिकर्ता की पहचान है, वही अद्वितीय अधिकार रखता है

07 अगस्त, 2018

शैतान की विशिष्ट पहचान ने बहुत से लोगों से उसके विभिन्न पहलुओं के प्रकटीकरण में गहरी रूचि का प्रदर्शन करवाया है। यहाँ तक कि बहुत से मूर्ख लोग हैं जो यह विश्वास करते हैं कि परमेश्वर के साथ-साथ, शैतान भी अधिकार रखता है, क्योंकि शैतान चमत्कार करने में सक्षम है, ऐसे काम करने में सक्षम है जो मानवजाति के लिए असंभव हैं। इस प्रकार, परमेश्वर की आराधना करने के अतिरिक्त, मानवजाति अपने हृदय में शैतान के लिए भी एक स्थान रखती है, यहाँ तक कि परमेश्वर के रूप में शैतान की आराधना भी करती है। ऐसे लोग दयनीय और घृणित हैं। अपनी अज्ञानता के कारण वे दयनीय हैं, अपने पाखंड और अंतर्निहित बुराई के सार के कारण घृणित हैं। इस बिन्दु पर, मैं महसूस करता हूँ कि तुम लोगों को बता दूँ कि अधिकार क्या है और यह किसका प्रतीक है, यह किसे दर्शाता है। व्यापक रूप से कहें तो परमेश्वर स्वयं ही अधिकार है, उसका अधिकार उसकी श्रेष्ठता और सार की ओर संकेत करते हैं, स्वयं परमेश्वर का अधिकार परमेश्वर के स्थान और पहचान को दर्शाता है। जब बात यह है तो, क्या शैतान यह कहने की हिम्मत करता है कि वह स्वयं परमेश्वर है? क्या शैतान यह कहने की हिम्मत करता है कि उसने सभी चीज़ों को बनाया है; सभी चीज़ों पर प्रभुत्व रखता है? बिलकुल नहीं करता! क्योंकि वह किसी भी चीज़ को बनाने में असमर्थ है; अब तक उसने परमेश्वर के द्वारा सृजित की गई वस्तुओं में से कुछ भी नहीं बनाया है, कभी ऐसा कुछ नहीं बनाया है जिसमें जीवन हो। क्योंकि उसके पास परमेश्वर का अधिकार नहीं है, इसलिए वह संभवत: कभी भी परमेश्वर की हैसियत और पहचान प्राप्त नहीं कर पाएगा, यह उसके सार से तय होता है। क्या उसके पास परमेश्वर के समान सामर्थ्‍य है? बिलकुल नहीं है! हम शैतान के कार्यों को और शैतान द्वारा प्रदर्शित चमत्कारों को क्या कहते हैं? क्या यह सामर्थ्‍य है? क्या इसे अधिकार कहा जा सकता है? बिलकुल नहीं! शैतान बुराई की लहर को दिशा देता है, परमेश्वर के कार्य के हर एक पहलू में अस्थिरता पैदा करता है, बाधा और रूकावट डालता है। पिछले कई हज़ार सालों से, मानवजाति को बिगाड़ने, शोषित करने, भ्रष्ट करने हेतु लुभाने, धोखा देकर पतित करने और परमेश्वर का तिरस्कार करने के अलावा, जिससे कि मनुष्य मृत्यु की छाया की घाटी की ओर चला जाये, क्या शैतान ने ऐसा कुछ किया है जो मनुष्य के द्वारा उत्सव मनाने, तारीफ करने या दुलार पाने के ज़रा-सा भी योग्य हो? यदि शैतान के पास अधिकार और सामर्थ्‍य होता तो क्या उससे मानवजाति भ्रष्ट हो जाती? यदि शैतान के पास अधिकार और सामर्थ्‍य होता तो क्या उसने मानवजाति को नुकसान पहुँचाया होता? यदि शैतान के पास अधिकार और सामर्थ्‍य होता तो क्या मनुष्य परमेश्वर को छोड़कर मृत्यु की ओर मुड़ जाता? चूँकि शैतान के पास कोई अधिकार और सामर्थ्‍य नहीं है, इसलिये जो कुछ वह करता है उससे उसके सार के विषय में हमें क्या निष्कर्ष निकालना चाहिए? ऐसे लोग भी हैं जो शैतान के हर कार्य को महज एक छल के रूप में परिभाषित करते है, फिर भी मैं विश्वास करता हूँ कि ऐसी परिभाषा उतनी उचित नहीं है। क्या मानवजाति को भ्रष्ट करने के लिए उसके बुरे कार्य महज एक छल हैं? वह बुरी शक्ति जिसके द्वारा शैतान ने अय्यूब का शोषण किया, उसका शोषण करने और उसे नष्ट करने की उसकी प्रचण्ड इच्छा, संभवतः महज छल के द्वारा प्राप्त नहीं की जा सकती। अगर हम विचार करें तो यह देखते हैं कि पहाड़ों और पर्वतों में दूर-दूर तक फैले हुए अय्यूब के पशुओं का झुण्ड और समूह, एक पल में सब कुछ चला गया; अय्यूब की अत्यधिक धन-संपत्ति, एक क्षण में ग़ायब हो गयी। क्या इसे महज छल के द्वारा प्राप्त किया जा सकता था? शैतान के हर कार्य की प्रकृति नकारात्मक शब्दों जैसे अड़चन डालना, रूकावट डालना, नष्ट करना, नुकसान पहुँचाना, बुराई, ईर्ष्‍या और अँधकार के साथ मेल खाती है और बिलकुल सही बैठती है, इस प्रकार उन सबका घटित होना जो अधर्मी और बुरा है, वह पूरी तरह शैतान के कार्यों के साथ जुड़ा हुआ है, इसे शैतान के बुरे सार से जुदा नहीं किया जा सकता है। इसके बावजूद कि शैतान कितना "सामर्थी" है, इसके बावजूद कि वह कितना ढीठ और महत्वाकांक्षी है, इसके बावजूद कि नुकसान पहुँचाने की उसकी क्षमता कितनी बड़ी है, इसके बावजूद कि उसकी तकनीक का दायरा कितना व्यापक है जिससे वह मनुष्य को भ्रष्ट करता और लुभाता है, इसके बावजूद कि उसके छल और प्रपंच कितने चतुर हैं जिससे वह मनुष्य को डराता है, इसके बावजूद कि वह रूप जिसमें वह अस्तित्व में रहता है कितना परिवर्तनशील है, वह एक भी जीवित प्राणी को बनाने में कभी सक्षम नहीं हुआ है, सभी चीज़ों के अस्तित्व के लिए व्यवस्थाओं और नियमों को निर्धारित करने में कभी सक्षम नहीं हुआ है, किसी भी जीवित या निर्जीव वस्तु पर शासन और नियन्त्रण करने में कभी सक्षम नहीं हुआ है। ब्रह्मांड और नभमंडल के भीतर, एक भी व्यक्ति या वस्तु नहीं है जो उससे उत्पन्न हुआ हो या उसके द्वारा अस्तित्व में बना हुआ हो; एक भी व्यक्ति या वस्तु नहीं है जिस पर उसके द्वारा शासन किया जाता हो या उसके द्वारा नियन्त्रण किया जाता हो। इसके विपरीत, उसे न केवल परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन जीना है, बल्कि, उसे परमेश्वर के सारे आदेशों और आज्ञाओं को भी मानना होगा। परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए भूमि की सतह पर पानी की एक बूँद या रेत के एक कण को भी छूना कठिन है; परमेश्वर की अनुमति के बिना, शैतान के पास इतनी भी आज़ादी नहीं है कि वह भूमि की सतह पर से एक चींटी को हटा सके, परमेश्वर द्वारा सृजित इंसान को हटाने की तो बात ही क्या है। परमेश्वर की नज़रों में शैतान पहाड़ों के सोसन फूलों, हवा में उड़ते हुए पक्षियों, समुद्र की मछलियों और पृथ्वी के कीड़े-मकौड़ों से भी कमतर है। सभी चीज़ों के बीच में उसकी भूमिका यह है कि वह सभी चीज़ों की सेवा करे, मानवजाति के लिए कार्य करे, परमेश्वर और उसकी प्रबंधकीय योजना के कार्य करे। इसके बावजूद कि उसका स्वभाव कितना ईर्ष्यालु है, उसका सार कितना बुरा है, एकमात्र कार्य जो वो कर सकता है वह है आज्ञाकारिता से अपने कार्यों को करना : परमेश्वर की सेवाके योग्य होना, परमेश्वर के कार्यों में पूरक होना। शैतान का सार-तत्व और हैसियत ऐसे ही हैं। उसका सार जीवन से जुड़ा हुआ नहीं है, सामर्थ्‍य से जुड़ा हुआ नहीं है, अधिकार से जुड़ा हुआ नहीं है; वह परमेश्वर के हाथों में मात्र एक खिलौना है, परमेश्वर की सेवा में लगा मात्र एक मशीन है!

शैतान के वास्तविक चेहरे को समझने के बाद भी, बहुत से लोग नहीं जानते हैं कि अधिकार क्या है, तो मैं तुम्हें बताता हूँ! स्वयं अधिकार का वर्णन परमेश्वर की सामर्थ्‍य के रूप में किया जा सकता है। पहले, यह निश्चितता के साथ कहा जा सकता है कि अधिकार और सामर्थ्‍य दोनों सकारात्मक हैं। उनका किसी नकारात्मक चीज़ से कोई संबंध नहीं है, वे किसी भी सृजित और गैर-सृजित प्राणी से जुड़े हुए नहीं हैं। परमेश्वर की सामर्थ्‍य किसी भी तरह की चीज़ की सृष्टि करने में सक्षम है जिनके पास जीवन और चेतना हो, यह परमेश्वर के जीवन के द्वारा निर्धारित होता है। परमेश्वर जीवन है, इस प्रकार वह सभी जीवित प्राणियों का स्रोत है। इसके अतिरिक्त, परमेश्वर का अधिकार सभी जीवित प्राणियों को परमेश्वर के हर एक वचन का पालन करवा सकता है, अर्थात् परमेश्वर के मुँह के वचनों के अनुसार अस्तित्व में आना, परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार जीना और प्रजनन करना, उसके बाद परमेश्वर सभी जीवित प्राणियों पर शासन करता और आज्ञा देता है और उसमें, सदा-सर्वदा के लिए कभी भी कोई भटकाव नहीं होगा। किसी व्यक्ति या वस्तु में ये चीज़ें नहीं हैं; केवल सृष्टिकर्ता ही ऐसी सामर्थ्‍य को धारण करता और रखता है, इसलिए इसे अधिकार कहा जाता है। यह सृष्टिकर्ता की अद्वितीयता है। इस प्रकार, चाहे वह शब्द स्वयं "अधिकार" हो या इस अधिकार का सार, प्रत्येक को सिर्फ सृष्टिकर्ता के साथ ही जोड़ा जा सकता है, क्योंकि यह सृष्टिकर्ता की अद्वितीय पहचान व सार का एक प्रतीक है, यह सृष्टिकर्ता की पहचान और हैसियत को दर्शाता है; सृष्टिकर्ता के अलावा, किसी भी व्यक्ति या वस्तु को "अधिकार" शब्द के साथ जोड़ा नहीं जा सकता है। यह सृष्टिकर्ता के अद्वितीय अधिकार की एक व्याख्या है।

यद्यपि शैतान अय्यूब को लालच भरी नज़रों से देख रहा था, परन्तु बिना परमेश्वर की इजाज़त के वह अय्यूब के शरीर के एक बाल को भी छूने की हिम्मत नहीं कर सकता था। यद्यपि वह स्वाभाविक रूप से बुरा और निर्दयी है, किन्तु परमेश्वर के द्वारा उसे आज्ञा दिये जाने के बाद, शैतान के पास उसकी आज्ञा में बने रहने के सिवाए और कोई विकल्प नहीं था। इस प्रकार, जब शैतान अय्यूब के पास आया तो भले ही वह भेड़ों के बीच में एक भेड़िए के समान उन्माद में था, परन्तु उसने परमेश्वर द्वारा तय की गई सीमाओं को भूलने की हिम्मत नहीं की, जो कुछ भी उसने किया उसमें उसने परमेश्वर के आदेशों को तोड़ने की हिम्मत नहीं की, शैतान को परमेश्वर के वचनों के सिद्धांतों और सीमाओं से भटकने की हिम्मत नहीं हुई—क्या यह तथ्य नहीं है? इससे यह देखा जा सकता है कि शैतान यहोवा परमेश्वर के किसी भी वचन का विरोध करने की हिम्मत नहीं करता। शैतान के लिए, परमेश्वर के मुँह से निकला हर एक वचन एक आदेश है, एक स्वर्गीय नियम है, परमेश्वर के अधिकार का प्रकटीकरण है—क्योंकि परमेश्वर के हर एक वचन के पीछे, परमेश्वर के आदेशों को तोड़ने वालों, स्वर्गीय व्यवस्थाओं की आज्ञा का पालन नहीं करने और विरोध करने वालों के लिए, परमेश्वर का दण्ड निहित है। शैतान स्पष्ट रीति से जानता है कि यदि उसने परमेश्वर के आदेशों को तोड़ा तो उसे परमेश्वर के अधिकार के उल्लंघन करने, और स्वर्गीय व्यवस्थाओं का विरोध करने का परिणाम स्वीकार करना होगा। ये परिणाम आखिर क्या हैं? कहने की आवश्यकता नहीं है, ये परमेश्वर के द्वारा उसे दिए जाने वाले दण्ड हैं। अय्यूब के खिलाफ शैतान के कार्य उसके द्वारा मनुष्य की भ्रष्टता का एक छोटा-सा दृश्य था, जब शैतान इन कार्यों को अन्जाम दे रहा था, तब वे सीमाएँ जिन्हें परमेश्वर ने ठहराया था और वे आदेश जिन्हें उसने शैतान को दिया था, वह शैतान के हर कार्य के पीछे के सिद्धांतों की महज एक छोटी-सी झलक थी। इसके अतिरिक्त, इस मामले में शैतान की भूमिका और पद परमेश्वर के प्रबन्धन कार्य में उसकी भूमिका और पद का मात्र एक छोटा-सा दृश्य था, शैतान के द्वारा अय्यूब की परीक्षा में परमेश्वर के प्रति उसकी सम्पूर्ण आज्ञाकारिता की महज एक छोटी-सी तस्वीर थी कि किस प्रकार शैतान ने परमेश्वर के प्रबन्धन कार्य में परमेश्वर के विरूद्ध ज़रा-सा भी विरोध करने का साहस नहीं किया। ये सूक्ष्म दर्शन तुम लोगों को क्या चेतावनी देते हैं? शैतान समेत सभी चीजों में ऐसा कोई व्यक्ति या चीज़ नहीं है जो सृष्टिकर्ता द्वारा निर्धारित स्वर्गीय कानूनों और आदेशों का उल्लंघन कर सके, और किसी व्यक्ति या वस्तु की इतनी हिम्मत नहीं है जो सृष्टिकर्ता द्वारा स्थापित की गयी इन स्वर्गीय व्यवस्थाओं और आदेशों को तोड़ सके, क्योंकि ऐसा कोई व्यक्ति या वस्तु नहीं है जो उस दण्ड को पलट सके या उससे बच सके जिसे सृष्टिकर्ता उसकी आज्ञा न मानने वाले लोगों को देता है। केवल सृष्टिकर्ता ही स्वर्गीय व्यवस्थाओं और आदेशों को बना सकता है, केवल सृष्टिकर्ता के पास ही उन्हें प्रभाव में लाने की सामर्थ्‍य है, किसी व्यक्ति या वस्तु के द्वारा मात्र सृष्टिकर्ता की सामर्थ्‍य का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है। यह सृष्टिकर्ता का अद्वितीय अधिकार है, यह अधिकार सभी चीज़ों में सर्वोपरि है, इस प्रकार, यह कहना नामुमकिन है कि "परमेश्वर सबसे महान है और शैतान दूसरे नम्बर पर है।" उस सृष्टिकर्ता को छोड़ जिसके पास अद्वितीय अधिकार है, और कोई परमेश्वर नहीं है!

क्या अब तुम लोगों के पास परमेश्वर के अधिकार का एक नया ज्ञान है? सबसे पहले, क्या परमेश्वर का अधिकार जिसका अभी जिक्र किया गया, और मनुष्य की सामर्थ्‍य में कोई अन्तर है? वह अन्तर क्या है? कुछ लोग कहते हैं कि दोनों के बीच कोई तुलना नहीं की जा सकती है। यह सही है! यद्यपि लोग कहते हैं कि दोनों के बीच में कोई तुलना नहीं की जा सकती है, फिर भी मनुष्य के विचारों और धारणाओं में कई बार उन दोनों की तुलना करते समय, मनुष्य की सामर्थ्‍य को अकसर गलती से अधिकार समझ लिया जाता है, और दोनों को अगल-बगल रखकर तुलना की जाती है। यहाँ क्या चल रहा है? क्या लोग अनजाने में एक स्थान पर दूसरे को रखने की ग़लती नहीं कर रहे हैं? ये दोनों जुड़े हुए नहीं हैं, उनके बीच में कोई तुलना नहीं है, फिर भी लोग ऐसा करने से खुद को रोकने में असमर्थ हैं। इस का समाधान कैसे किया जाना चाहिए? यदि तुम सचमुच में कोई समाधान चाहते हो तो उसका एकमात्र तरीका परमेश्वर के अधिकार को समझना और जानना है। सृष्टिकर्ता के अधिकार और सामर्थ्‍य को समझने और जानने के बाद, तुम एक ही साँस में मनुष्य की सामर्थ्‍य और परमेश्वर के अधिकार का ज़िक्र नहीं करोगे।

मनुष्य की सामर्थ्‍य किस की ओर संकेत करती है? सरल रीति से कहें तो यह एक योग्यता या कुशलता है जो मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव, उसकी इच्छा और महत्वाकांक्षा को अतिविशाल मात्रा में फैलाने या पूरा करने में सक्षम बनाती है। क्या इसे अधिकार माना जा सकता है? मनुष्य की महत्वाकांक्षाएँ और इच्छाएँ कितनी भी बड़ी या हितकारी हों, उस व्यक्ति के विषय में यह नहीं कहा जा सकता है कि उसके पास अधिकार है; अधिक से अधिक, इस प्रकार का फूलना और सफलता मनुष्यों के बीच शैतान के हँसी-ठट्ठे का महज एक प्रदर्शन है; ज़्यादा से ज़्यादा यह एक हँसी-ठिठोली है जिसमें शैतान अपने स्वयं के पूर्वज के समान कार्य करता है जिससे परमेश्वर बनने की अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा कर सके।

अब तुम परमेश्वर के अधिकार को किस तरह से देखते हो? अब चूँकि इन वचनों पर सहभागिता की जा चुकी है, तुम्हारे पास में परमेश्वर के अधिकार का एक नया ज्ञान होना चाहिए। अतः मैं तुम लोगों से पूछता हूँ : परमेश्वर का अधिकार किस का प्रतीक है? क्या वह स्वयं परमेश्वर की पहचान का प्रतीक है? क्या वह स्वयं परमेश्वर की सामर्थ्‍य का प्रतीक है? क्या वह स्वयं परमेश्वर की अद्वितीय हैसियत का प्रतीक है? सभी चीज़ों के मध्य, तुमने किस में परमेश्वर के अधिकार को देखा है? तुमने उसे कैसे देखा है? मनुष्यों के द्वारा अनुभव किए जाने वाली चार ऋतुओं के सन्दर्भ में, क्या कोई बसंत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, शरद ऋतु, शीत ऋतु के मध्य आपस में परिवर्तन के नियमों को बदल सकता है? बसंत ऋतु में वृक्ष फलते-फूलते हैं; ग्रीष्म ऋतु में वे पत्तों से भर जाते हैं; शरद ऋतु में वे फल उत्पन्न करते हैं और शीत ऋतु में पत्ते झड़ते हैं। क्या कोई इन नियमों को पलट सकता है? क्या यह परमेश्वर के एक पहलू को प्रतिबिम्बित करता है? परमेश्वर ने कहा, "उजियाला हो," और उजियाला हो गया। क्या यह उजियाला अभी भी है? वह किस वजह से अस्तित्व में बना हुआ है? यह वास्तव में परमेश्वर के वचन के कारण, परमेश्वर के अधिकार के कारण अस्तित्व में बना हुआ है। जिस वायु को परमेश्वर ने बनाया था क्या व‍ह अब भी अस्तित्व में बनी हुई है? क्या वह वायु जिसमें मनुष्य साँस लेता है परमेश्वर से आयी है? क्या कोई उन चीज़ों को दूर कर सकता है जो परमेश्वर से आती हैं? क्या कोई उनके सार और कार्य को पलट सकता है? क्या कोई परमेश्वर के द्वारा नियुक्त रात और दिन को, परमेश्वर के द्वारा आदेशित रात व दिन के नियम में गड़बड़ी कर सकता है? क्या शैतान ऐसा कुछ कर सकता है? भले ही तुम रात में न सोओ, रात को दिन के समान लो, तो भी यह रात का समय ही है; तुम अपनी दिनचर्या बदल सकते हो, लेकिन तुम रात और दिन के परिवर्तन के नियम को बदलने में असमर्थ हो—और इस तथ्य को किसी भी व्यक्ति के द्वारा पलटा नहीं जा सकता है, क्या ऐसा नहीं है? क्या कोई बैल की तरह शेर से भूमि जुतवा सकता है? क्या कोई हाथी को गधे में बदलने में सक्षम हो सकता है? क्या कोई मुर्गी को बाज के समान आकाश में हवा में लहराने में सक्षम हो सकता है? क्या कोई भेड़िऐ को भेड़ के समान घास खिलाने में सक्षम हो सकता है? (नहीं।) क्या कोई मछली को सूखी भूमि पर रहने के योग्य बनाने में सक्षम हो सकता है? यह मनुष्यों द्वारा नहीं किया जा सकता है। क्यों नहीं किया जा सकता? क्योंकि परमेश्वर ने मछलियों को पानी में रहने की आज्ञा दी है, इसलिए वे पानी में रहती हैं। वे भूमि पर जीवित रहने में सक्षम नहीं हैं, वे मर जाएँगीं; वे परमेश्वर की आज्ञाओं की सीमाओं का उल्लंघन करने में असमर्थ हैं। सभी चीज़ों के पास उनके अस्तित्व के लिए नियम और सीमा है, हर एक के पास उनका स्वयं का अंतःज्ञान है। इन्हें सृष्टिकर्ता के द्वारा नियुक्त किया गया है, किसी मनुष्य के द्वारा उन्हें पलटा और उनका अतिक्रमण नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, शेर हमेशा मनुष्य के समुदायों से दूर जंगल में ही रहेगा, वह बैल के समान, जो मनुष्य के साथ रहता है और मनुष्य के लिए काम करता है, कभी भी पालतू और वफादार नहीं हो सकता। यद्यपि हाथी और गधे दोनों जानवर हैं और दोनों के पास चार पैर हैं, वे ऐसे जीव हैं जो साँस लेते हैं, फिर भी वे अलग-अलग प्रजातियाँ हैं, क्योंकि उन्हें दो भिन्न प्रकारों में बाँटा गया है, उनमें से प्रत्येक के पास उनका अपना सहज ज्ञान है, इस प्रकार उन्हें कभी भी आपस में बदला नहीं जाएगा। यद्यपि मुर्गी के पास दो पैर है और बाज के समान पंख भी हैं, फिर भी वह कभी हवा में उड़ नहीं पाएगी। वह ज़्यादा से ज़्यादा एक पेड़ पर उड़ सकती है—और यह उसके सहज ज्ञान के द्वारा निर्धारित किया गया है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि यह सब कुछ परमेश्वर के अधिकार और आज्ञाओं के कारण है।

आज मानवजाति के विकास में, मानवजाति के विज्ञान को प्रगतिशील कहा जा सकता है, मनुष्य के वैज्ञानिक अनुसन्धानों की उपलब्धियों को प्रभावशील कहा जा सकता है। मनुष्य की काबिलियत लगातार बढ़ती जा रही है, परन्तु एक अति-महत्वपूर्ण उपलब्धि है जिसे मानवजाति हासिल करने में असमर्थ है : मानवजाति ने हवाई जहाज़, मालवाहक विमान और परमाणु बम बनाया है, मानवजाति अंतरिक्ष में जा चुकी है, चन्द्रमा पर चल चुकी है, इंटरनेट का अविष्कार किया है, ऊँची तकनीक युक्त जीवन-शैली जीने लगी है, फिर भी, मानवजाति किसी प्राणी को बनाने में असमर्थ है। प्रत्येक जीवित प्राणी का सहज ज्ञान और वे नियम जिनके द्वारा वे जीते हैं, और हर प्रकार के जीवित प्राणी के जीवन और मृत्यु का जीवन चक्र—यह सब कुछ मनुष्य के विज्ञान के द्वारा असम्भव और नियन्त्रण के बाहर है। इस बिन्दु पर, ऐसा कहना होगा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मानवजाति कितनी ऊँचाइयों को छूती है, उसकी तुलना सृष्टिकर्ता के किसी भी विचार से नहीं की जा सकती, वे सृष्टिकर्ता की सृष्टि की अद्भुतता और उसके अधिकार की शक्ति को परखने में असमर्थ हैं। पृथ्वी के ऊपर कितने सारे महासागर हैं, फिर भी उन्होंने कभी भी अपनी सीमाओं का उल्लंघन नहीं किया, अपनी इच्छा से भूमि पर नहीं आए, ऐसा इसलिए है क्योंकि परमेश्वर ने उनमें से प्रत्येक के लिए सीमाएँ तय कर दी हैं; वे वहीं ठहर गए जहाँ उसने उन्हें ठहरने की आज्ञा दी थी, बिना परमेश्वर की आज्ञा के वे यहाँ-वहाँ स्वतन्त्रता से जा नहीं सकते हैं। बिना परमेश्वर की आज्ञा के, वे एक-दूसरे की सरहदों का अतिक्रमण नहीं सकते, वे तभी आगे बढ़ सकते हैं जब परमेश्वर ऐसा करने लिए कहेगा, वे कहाँ जाएँगे और कहाँ ठहरेंगे यह परमेश्वर के अधिकार के द्वारा निर्धारित होता है।

इसे साफ तौर पर कहें तो, "परमेश्वर के अधिकार" का अर्थ है कि यह परमेश्वर पर निर्भर है। परमेश्वर के पास यह निर्णय लेने का अधिकार है कि वह किसी कार्य को कैसे करे, और जैसा वह चाहता है उसे उसी रीति से किया जाता है। सभी चीज़ों का नियम परमेश्वर पर निर्भर है, मनुष्य पर निर्भर नहीं है; न ही उसे मनुष्य के द्वारा पलटा जा सकता है। उसे मनुष्य की इच्छा के द्वारा हिलाया नहीं जा सकता है, बल्कि उसे परमेश्वर के विचारों, परमेश्वर की बुद्धि, परमेश्वर के आदेशों द्वारा बदला जा सकता है। यह तथ्य है जिसे मनुष्य नकार नहीं सकता। स्वर्ग, पृथ्वी और सभी चीज़ें, ब्रह्मांड, सितारों से जगमगाता हुआ आसमान, साल की चार ऋतुएँ, वह जो मनुष्य के लिए दृश्य और अदृश्य हैं—वे सभी परमेश्वर के अधिकार की अधीनता में, परमेश्वर के आदेशों के अनुसार, परमेश्वर की आज्ञाओं के अनुसार और सृष्टि के आरंभ के नियमों के अनुसार बिना किसी ग़लती के अस्तित्व में बने रहते हैं, कार्य करते हैं और परिवर्तित होते हैं। कोई वस्तु या व्यक्ति अपने नियमों को नहीं बदल सकता, न ही अपने स्वाभाविक क्रम जिस के तहत वह कार्य करता है उन्हें बदल सकता है; वे परमेश्वर के अधिकार के कारण अस्तित्व में आए और परमेश्वर के अधिकार के कारण ही नष्ट होते हैं। यही परमेश्वर का अधिकार है। अब जबकि इतना सब कुछ कहा जा चुका है, क्या तुम महसूस कर सकते हो कि परमेश्वर का अधिकार परमेश्वर की पहचान और परमेश्वर की हैसियत का प्रतीक है? क्या किसी सृजित या गैर-सृजित प्राणी द्वारा परमेश्वर के अधिकार को धारण किया जा सकता है? क्या किसी व्यक्ति, वस्तु या चीज़ द्वारा उसका अनुकरण, रूप धारण या उसका स्थान लिया जा सकता है?

सृष्टिकर्ता की पहचान अद्वितीय है और तुम्हें बहु-ईश्वरवाद के विचार का पालन नहीं करना चाहिए

यद्यपि मनुष्य की अपेक्षा शैतान की कुशलताएँ और योग्यताएँ कहीं बढ़कर हैं, यद्यपि वह ऐसे काम कर सकता है जिन्हें मनुष्य प्राप्त नहीं कर सकता है, तुम चाहे शैतान से ईर्ष्या करो या वह जो करता है उसकी आकांक्षा करो, इन चीजों से नफरत करो या घृणा से भर जाओ, चाहे तुम उसे देख पाओ या नहीं, चाहे शैतान कितना भी हासिल कर पाए या वह कितने भी लोगों को धोखा देखर उनसे अपनी आराधना करवाये में और खुद को पवित्र मनवाए, चाहे तुम इसे कैसे भी परिभाषित करो, तुम यह नहीं कह सकते कि उसके पास परमेश्वर का अधिकार और सामर्थ्‍य है। तुम्हें जानना चाहिए कि परमेश्वर ही परमेश्वर है, सिर्फ एक ही परमेश्वर है, इसके अतिरिक्त, तुम्हें यह जानना चाहिए कि सिर्फ परमेश्वर के पास ही अधिकार है, सभी चीज़ों पर शासन करने और उन पर नियन्त्रण करने की सामर्थ्‍य उसी के पास है। सिर्फ इसलिए कि शैतान के पास लोगों को धोखा देने की क्षमता है, वह परमेश्वर का रूप धारण कर सकता है, परमेश्वर द्वारा किए गए चिन्हों और चमत्कारों की नकल कर सकता है, उसने परमेश्वर के समान ही कुछ समान काम किये हैं, तो तुम भूलवश विश्वास करने लग जाते हो कि परमेश्वर अद्वितीय नहीं है, बल्कि बहुत सारे ईश्वर हैं, बस उनके पास कुछ कम या कुछ ज़्यादा कुशलताएँ हैं और उस सामर्थ्‍य का विस्तार अलग-अलग है जिसे वे काम में लाते हैं। उनके आगमन के क्रम, उनके युग के अनुसार तुम उनकी महानता को आँकते हो, तुम यह विश्वास करने में गलती करते हो कि परमेश्वर से अलग कुछ अन्य देवता हैं, तुम यह सोचते हो कि परमेश्वर की सामर्थ्‍य और उसका अधिकार अद्वितीय नहीं हैं। यदि तुम्हारे विचार ऐसे हैं, यदि तुम परमेश्वर की अद्वितीयता को पहचान नहीं पाते हो, यह विश्वास नहीं करते हो कि सिर्फ परमेश्वर के पास ही ऐसा अधिकार है, यदि तुम बहु-ईश्वरवाद को महत्व देते हो तो मैं कहूँगा कि तुम जीवधारियों में सबसे निकृष्ट हो, तुम शैतान का साकार रूप हो और तुम निश्चित तौर पर एक बुरे इंसान हो! क्या तुम समझ रहे हो कि मैं इन वचनों के द्वारा तुम्हें क्या सिखाने की कोशिश कर रहा हूँ? इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि समय, स्थान या तुम्हारी पृष्ठभूमि क्या है, तुम परमेश्वर और किसी अन्य व्यक्ति, वस्तु, या चीज़ के बीच भ्रमित मत हो। भले ही तुम्‍हें स्वयं-परमेश्वर का अधिकार और परमेश्वर का सार कितना ही अज्ञात और अगम्य लगे, शैतान के कार्य और शब्द तुम्हारी धारणा और कल्पना से कितना ही मेल खाते हों, वे तुम्हें कितनी ही संतुष्टि प्रदान करते हों, मूर्ख न बनो, इन धारणाओं में भ्रमित मत हो, परमेश्वर के अस्तित्व को नकारो मत, परमेश्वर की पहचान और हैसियत को नकारो मत, परमेश्वर को दरवाज़े के बाहर मत धकेलो और परमेश्वर को हटाकर शैतान को अपना परमेश्‍वर बनाने के लिए उसे अपने हृदय के भीतर मत लाओ। मुझे कोई सन्देह नहीं है कि तुम ऐसा करने के परिणामों की कल्पना करने में समर्थ हो!

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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