शैतान एक पतित स्वर्गदूत है जो कभी स्वर्ग, पृथ्वी और सभी चीज़ों की रचना नहीं कर सकता, और कभी भी परमेश्वर के अधिकार से बढ़कर नहीं हो सकता है
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन :
पृथ्वी के अस्तित्व से पहले, प्रधान स्वर्गदूत स्वर्ग के स्वर्गदूतों में सबसे महान था। स्वर्ग के सभी स्वर्गदूतों पर उसका अधिकार था; और यह अधिकार उसे परमेश्वर ने दिया था। परमेश्वर के अपवाद के साथ, वह स्वर्ग के स्वर्गदूतों में सर्वोच्च था। बाद में जब परमेश्वर ने मानवजाति का सृजन किया, तब प्रधान स्वर्गदूत ने पृथ्वी पर परमेश्वर के विरुद्ध और भी बड़ा विश्वासघात किया। मैं इसलिए कहता हूँ कि उसने परमेश्वर के साथ विश्वासघात किया क्योंकि वह मानवजाति का प्रबंधन करना और परमेश्वर के अधिकार से आगे बढ़ना चाहता था। यह प्रधान स्वर्गदूत ही था जिसने हव्वा को पाप करने के लिए प्रलोभित किया; उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह पृथ्वी पर अपना राज्य स्थापित करना और मानवजाति द्वारा परमेश्वर से मुख फेरकर अपना आज्ञापालन करवाना चाहता था। उसने देखा कि बहुत-सी चीजें हैं जो उसका आज्ञापालन कर सकती थीं—स्वर्गदूत उसकी आज्ञा मान सकते थे, ऐसे ही पृथ्वी पर लोग भी उसकी आज्ञा मान सकते थे। पृथ्वी पर पक्षी और पशु, वृक्ष और जंगल, पर्वत और नदियाँ और सभी वस्तुएँ मनुष्य—अर्थात, आदम और हव्वा—की देखभाल के अधीन थीं, जबकि आदम और हव्वा प्रधान स्वर्गदूत का आज्ञापालन करते थे। इसलिए प्रधान स्वर्गदूत परमेश्वर के अधिकार से आगे बढ़ना और परमेश्वर के साथ विश्वासघात करना चाहता था। इसके बाद उसने परमेश्वर के साथ विश्वासघात करने के लिए बहुत से स्वर्गदूतों की अगुआई की, जो बाद में विभिन्न अशुद्ध आत्माएँ बन गए। क्या आज के दिन तक मानवजाति का विकास प्रधान स्वर्गदूत की भ्रष्टता के कारण नहीं है? मानवजाति जैसी आज है, केवल इसलिए है क्योंकि प्रधान स्वर्गदूत ने परमेश्वर के साथ विश्वासघात किया और मानवजाति को भ्रष्ट कर दिया। यह कदम-दर-कदम कार्य उतना अमूर्त और आसान नहीं है जितना कि लोग कल्पना कर सकते हैं। शैतान ने एक कारणवश विश्वासघात किया, फिर भी लोग इतनी आसान-सी बात को समझने में असमर्थ हैं। जिस परमेश्वर ने स्वर्ग और पृथ्वी और सब वस्तुओं का सृजन किया, उसने क्यों शैतान का भी सृजन किया? चूँकि परमेश्वर शैतान से बहुत अधिक घृणा करता है, और शैतान परमेश्वर का शत्रु है, तो परमेश्वर ने उसका सृजन क्यों किया? शैतान का सृजन करके, क्या वह एक शत्रु का सृजन नहीं कर रहा था? परमेश्वर ने वास्तव में एक शत्रु का सृजन नहीं किया था; बल्कि उसने एक स्वर्गदूत का सृजन किया था, और बाद में इस स्वर्गदूत ने परमेश्वर के साथ विश्वासघात किया। उसकी हैसियत इतनी बढ़ गई थी कि उसमें परमेश्वर के साथ विश्वासघात करने की इच्छा होने लगी। कहा जा सकता है कि यह मात्र एक संयोग था, परंतु यह अपरिहार्य भी था। यह उस बात के समान है कि कैसे कोई व्यक्ति एक निश्चित आयु तक बढ्ने के बाद अपरिहार्य रूप से मरेगा; चीजें उस स्तर तक विकसित हो चुकी हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें पता होना चाहिए कि समस्त मानवजाति आज के दिन तक कैसे विकसित हुई
चूँकि स्वर्गदूत विशेष रूप से निर्बल थे और उनमें कोई उल्लेखनीय योग्यता नहीं थी, इसलिए अधिकार मिलते ही वे घमंडी बन जाते थे। प्रधान स्वर्गदूत के लिए यह विशेष रूप से सत्य था, जिसका पद किसी भी अन्य स्वर्गदूत से उच्चतर था। स्वर्गदूतों के मध्य एक राजा की तरह होते हुए उसने लाखों स्वर्गदूतों की अगुआई की, और यहोवा के अधीन उसका अधिकार किसी भी अन्य स्वर्गदूत से बढ़चढ़कर था। वह बहुत-सी चीजें करना चाहता था, और संसार पर नियंत्रण करने के लिए स्वर्गदूतों की अगुआई करके उन्हें मनुष्यों के संसार में ले जाना चाहता था। परमेश्वर ने कहा कि वह ब्रह्मांड का कर्ता-धर्ता है; किंतु प्रधान स्वर्गदूत ने दावा किया कि वह ब्रह्मांड का कर्ता-धर्ता है, और तभी से उसने परमेश्वर के साथ विश्वासघात कर दिया। स्वर्ग में, परमेश्वर ने एक अन्य संसार का सृजन किया था। प्रधान स्वर्गदूत उस संसार पर भी प्रशासन करना चाहता था और साथ ही नश्वर संसार में भी उतरना चाहता था। क्या परमेश्वर उसे ऐसा करने की अनुमति दे सकता था? इसलिए, उसने स्वर्गदूत पर प्रहार किया और उसे अधर में गिरा दिया। जबसे उसने मनुष्यों को भ्रष्ट किया, तबसे मनुष्यों के उद्धार के लिए परमेश्वर ने उसके विरुद्ध युद्ध छेड़ रखा है; उसने इन छह सहस्राब्दियों का उपयोग उसे हराने के लिए किया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के विषय में तुम लोगों की अवधारणा परमेश्वर द्वारा वर्तमान में किए जा रहे कामों से असंगत है; यह पूरी तरह अव्यवहारिक है और काफी हद तक गलत है! वास्तव में, परमेश्वर ने प्रधान स्वर्गदूत द्वारा विश्वासघात के बाद ही उसे अपना शत्रु घोषित कर दिया। अपने विश्वासघात के कारण ही नश्वर संसार में आने के बाद प्रधान स्वर्गदूत ने मानवजाति को कुचलना शुरू किया, और इसी कारण मानवजाति इस चरण तक पहुँच गई है। इसके बाद, परमेश्वर ने शैतान के सामने शपथ ली : "मैं तुझे पराजित करूँगा और मेरे द्वारा सृजित मनुष्यों को बचाऊँगा।" पहले-पहल तो शैतान को विश्वास नहीं हुआ और उसने कहा, "तू आखिर मेरा क्या बिगाड़ सकता है? क्या तू मुझे वास्तव में प्रहार कर अधर में गिरा सकता है? क्या तू सच में मुझे पराजित कर सकता है?" जब परमेश्वर ने उसे अधर में गिरा दिया, उसके बाद उसने उस पर और ध्यान नहीं दिया और फिर, शैतान द्वारा निरंतर तंग किए जाने के बावजूद, उसने मानवजाति को बचाना और अपना कार्य करना शुरू कर दिया। शैतान बहुत कुछ कर सकता था, यह उसे परमेश्वर द्वारा पहले दी गई सामर्थ्य के कारण था; वह इन चीज़ों को अपने साथ अधर में ले गया और आज के दिन तक उन्हें धारण किए हुए है। स्वर्गदूत को प्रहार करके अधर में गिराते समय, परमेश्वर ने उसका अधिकार वापस नहीं लिया, और इसलिए वह मानवजाति को भ्रष्ट करता रहा। दूसरी ओर, परमेश्वर ने मानवजाति को बचाना आरंभ कर दिया, जिसे उनके सृजन के बाद ही शैतान ने भ्रष्ट कर दिया था। परमेश्वर ने स्वर्ग में रहने के दौरान अपने कार्यों को प्रकट नहीं किया; हालाँकि, पृथ्वी का सृजन करने से पहले, उसने स्वर्ग में सृजित संसार के लोगों को अवसर दिया कि वे उसके क्रिया-कलाप को देख सकें और इस प्रकार उसने लोगों की ऊपर स्वर्ग में अगुवाई की। उसने उन्हें बुद्धि और सूझबूझ दी, और उन लोगों की उस संसार में रहने में अगुवाई की। स्वाभाविक है कि तुम लोगों में से किसी ने भी यह पहले नहीं सुना है। बाद में, जब परमेश्वर ने मानवजाति का सृजन कर लिया तो प्रधान स्वर्गदूत ने मानवजाति को भ्रष्ट करना आरंभ कर दिया; पृथ्वी पर समस्त मानवजाति अराजकता में घिर गई। इसी समय परमेश्वर ने शैतान के विरुद्ध अपना युद्ध आरंभ कर दिया, और यह केवल इसी समय था कि लोगों ने उसके कर्मों को देखा। आरंभ में उसके क्रिया-कलाप मानवजाति से छिपे हुए थे। जब शैतान अधर में गिरा दिया गया तो उसने अपने काम किए और परमेश्वर ने अपने काम जारी रखे, और अंत के दिनों तक उसके विरुद्ध लगातार युद्ध करता रहा है। अब वह समय है जिसमें शैतान को नष्ट कर दिया जाना चाहिए। आरंभ में परमेश्वर ने उसे अधिकार दिया, बाद में उसने उसे अधर में गिरा दिया, मगर वह अवज्ञाकारी बना रहा। इसके बाद उसने पृथ्वी पर मानवजाति को भ्रष्ट किया, परंतु परमेश्वर पृथ्वी पर मनुष्यों का प्रबंधन कर रहा था। परमेश्वर लोगों के प्रबंधन का उपयोग शैतान को पराजित करने के लिए करता है। लोगों को भ्रष्ट करके शैतान लोगों के भाग्य का अंत कर देता है और परमेश्वर के कार्य में व्यवधान उत्पन्न करता है। दूसरी ओर, परमेश्वर का कार्य मनुष्यों का उद्धार करना है। परमेश्वर के कार्य का कौनसा कदम मानवजाति को बचाने के अभिप्राय से नहीं है? कौनसा कदम लोगों को स्वच्छ बनाने, उनसे धार्मिक आचरण करवाने और उनके ऐसी छवि में ढल जाने के लिए नहीं है जिससे प्रेम किया जा सके? पर शैतान ऐसा नहीं करता है। वह मानवजाति को भ्रष्ट करता है; मानवजाति को भ्रष्ट करने के अपने कार्य को सारे ब्रह्मांड में निरंतर करता रहता है। निस्संदेह, परमेश्वर भी अपना स्वयं का कार्य करता है। वह शैतान की ओर जरा भी ध्यान नहीं देता है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि शैतान के पास कितना अधिकार है, उसे यह अधिकार परमेश्वर द्वारा ही दिया गया था; परमेश्वर ने उसे अपना पूरा अधिकार नहीं दिया था, और इसलिए वह चाहे जो कुछ करे, वह परमेश्वर से आगे नहीं बढ़ सकता और सदैव परमेश्वर की पकड़ में रहेगा। परमेश्वर ने स्वर्ग में रहने के समय अपने क्रिया-कलाप को प्रकट नहीं किया। उसने शैतान को स्वर्गदूतों पर नियंत्रण रखने की अनुमति देने के लिए उसे अपने अधिकार में से मात्र कुछ हिस्सा ही दिया था। इसलिए वह चाहे जो कुछ करे, वह परमेश्वर के अधिकार से बढ़कर नहीं हो सकता है, क्योंकि परमेश्वर ने मूल रूप से उसे जो अधिकार दिया है वह सीमित है। जब परमेश्वर कार्य करता है, तो शैतान बाधा उत्पन्न करता है। अंत के दिनों में, उसकी बाधाएँ समाप्त हो जाएंगी; उसी तरह, परमेश्वर का कार्य भी पूरा हो जाएगा, और परमेश्वर जिस प्रकार के व्यक्ति को संपूर्ण बनाना चाहता है वह संपूर्ण बना दिया जाएगा। परमेश्वर लोगों को सकारात्मक रूप से निर्देशित करता है; उसका जीवन जीवित जल है, अगाध और असीम है। शैतान ने मनुष्य को एक हद तक भ्रष्ट किया है; अंत में, जीवन का जीवित जल मनुष्य को संपूर्ण बनाएगा, और शैतान के लिए हस्तक्षेप करना और अपना कार्य करना असंभव हो जायेगा। इस प्रकार, परमेश्वर इन लोगों को पूर्णतः प्राप्त करने में समर्थ हो जाएगा। शैतान अब भी इसे मानने से मना करता है; वह लगातार स्वयं को परमेश्वर के विरोध में खड़ा रखता है, परंतु परमेश्वर उस पर कोई ध्यान नहीं देता है। परमेश्वर ने कहा है, "मैं शैतान की सभी अँधेरी शक्तियों के ऊपर और उसके सभी अँधेरे प्रभावों के ऊपर विजय प्राप्त करूंगा।" यही वह कार्य है जो अब देह में अवश्य किया जाना चाहिए, और यही देहधारण को महत्वपूर्ण बनाता है : अर्थात अंत के दिनों में शैतान को पराजित करने के चरण को पूरा करना और शैतान से जुड़ी सभी चीज़ों को मिटाना। परमेश्वर की शैतान पर विजय अपरिहार्य है! वास्तव में शैतान बहुत पहले ही असफल हो चुका है। जब बड़े लाल अजगर के पूरे देश में सुसमाचार फैलने लगा, अर्थात्, जब देहधारी परमेश्वर ने कार्य करना आरंभ किया, और यह कार्य गति पकड़ने लगा, तो शैतान बुरी तरह परास्त हो गया था, क्योंकि देहधारण का मूल उद्देश्य ही शैतान को पराजित करना था। जैसे ही शैतान ने देखा कि परमेश्वर एक बार फिर से देह बन गया और उसने अपना कार्य करना भी आरंभ कर दिया, जिसे कोई भी शक्ति रोक नहीं सकती, तो जब उसने इस कार्य को देखा, तो वह अवाक रह गया और उसने कोई और शरारत करने का साहस नहीं किया। पहले-पहल तो शैतान ने सोचा कि उसके पास भी प्रचुर बुद्धि है, और उसने परमेश्वर के कार्य में बाधा और परेशानियाँ डालीं; लेकिन, उसने यह आशा नहीं की थी कि परमेश्वर एक बार फिर देह बन जाएगा, या अपने कार्य में, परमेश्वर शैतान के विद्रोहीपन को मानवजाति के लिए प्रकटन और न्याय के रूप में काम में लायेगा, और परिणामस्वरूप मानवजाति को जीतेगा और शैतान को पराजित करेगा। परमेश्वर शैतान की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान है, और उसका कार्य शैतान के कार्य से बहुत बढ़कर है। इसलिए, जैसा मैंने पहले कहा था : "मैं जिस कार्य को करता हूँ वह शैतान की चालबाजियों के प्रत्युत्तर में किया जाता है; अंत में, मैं अपनी सर्वशक्तिमत्ता और शैतान की सामर्थ्यहीनता को प्रकट करूँगा।" परमेश्वर अपना कार्य सामने आकर करेगा तो शैतान पीछे छूट जाएगा, जब तक कि अंत में वह अंततः नष्ट नहीं हो जाता है—उसे पता भी नहीं चलेगा कि उस पर किसने प्रहार किया! कुचलकर चूर—चूर कर दिए जाने के बाद ही उसे सत्य का ज्ञान होगा; उस समय तक उसे पहले से ही आग की झील में जला दिया गया होगा। तब क्या वह पूरी तरह से विश्वस्त नहीं हो जाएगा? क्योंकि उसके पास चलने के लिए और कोई चालें नहीं होंगी!
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम्हें पता होना चाहिए कि समस्त मानवजाति आज के दिन तक कैसे विकसित हुई
शैतान की विशिष्ट पहचान ने बहुत से लोगों से उसके विभिन्न पहलुओं के प्रकटीकरण में गहरी रूचि का प्रदर्शन करवाया है। यहाँ तक कि बहुत से मूर्ख लोग हैं जो यह विश्वास करते हैं कि परमेश्वर के साथ-साथ, शैतान भी अधिकार रखता है, क्योंकि शैतान चमत्कार करने में सक्षम है, ऐसे काम करने में सक्षम है जो मानवजाति के लिए असंभव हैं। इस प्रकार, परमेश्वर की आराधना करने के अतिरिक्त, मानवजाति अपने हृदय में शैतान के लिए भी एक स्थान रखती है, यहाँ तक कि परमेश्वर के रूप में शैतान की आराधना भी करती है। ऐसे लोग दयनीय और घृणित हैं। अपनी अज्ञानता के कारण वे दयनीय हैं, अपने पाखंड और अंतर्निहित बुराई के सार के कारण घृणित हैं। इस बिन्दु पर, मैं महसूस करता हूँ कि तुम लोगों को बता दूँ कि अधिकार क्या है और यह किसका प्रतीक है, यह किसे दर्शाता है। व्यापक रूप से कहें तो परमेश्वर स्वयं ही अधिकार है, उसका अधिकार उसकी श्रेष्ठता और सार की ओर संकेत करते हैं, स्वयं परमेश्वर का अधिकार परमेश्वर के स्थान और पहचान को दर्शाता है। जब बात यह है तो, क्या शैतान यह कहने की हिम्मत करता है कि वह स्वयं परमेश्वर है? क्या शैतान यह कहने की हिम्मत करता है कि उसने सभी चीज़ों को बनाया है; सभी चीज़ों पर प्रभुत्व रखता है? बिलकुल नहीं करता! क्योंकि वह किसी भी चीज़ को बनाने में असमर्थ है; अब तक उसने परमेश्वर के द्वारा सृजित की गई वस्तुओं में से कुछ भी नहीं बनाया है, कभी ऐसा कुछ नहीं बनाया है जिसमें जीवन हो। क्योंकि उसके पास परमेश्वर का अधिकार नहीं है, इसलिए वह संभवत: कभी भी परमेश्वर की हैसियत और पहचान प्राप्त नहीं कर पाएगा, यह उसके सार से तय होता है। क्या उसके पास परमेश्वर के समान सामर्थ्य है? बिलकुल नहीं है! हम शैतान के कार्यों को और शैतान द्वारा प्रदर्शित चमत्कारों को क्या कहते हैं? क्या यह सामर्थ्य है? क्या इसे अधिकार कहा जा सकता है? बिलकुल नहीं! शैतान बुराई की लहर को दिशा देता है, परमेश्वर के कार्य के हर एक पहलू में अस्थिरता पैदा करता है, बाधा और रूकावट डालता है। पिछले कई हज़ार सालों से, मानवजाति को बिगाड़ने, शोषित करने, भ्रष्ट करने हेतु लुभाने, धोखा देकर पतित करने और परमेश्वर का तिरस्कार करने के अलावा, जिससे कि मनुष्य मृत्यु की छाया की घाटी की ओर चला जाये, क्या शैतान ने ऐसा कुछ किया है जो मनुष्य के द्वारा उत्सव मनाने, तारीफ करने या दुलार पाने के ज़रा-सा भी योग्य हो? यदि शैतान के पास अधिकार और सामर्थ्य होता तो क्या उससे मानवजाति भ्रष्ट हो जाती? यदि शैतान के पास अधिकार और सामर्थ्य होता तो क्या उसने मानवजाति को नुकसान पहुँचाया होता? यदि शैतान के पास अधिकार और सामर्थ्य होता तो क्या मनुष्य परमेश्वर को छोड़कर मृत्यु की ओर मुड़ जाता? चूँकि शैतान के पास कोई अधिकार और सामर्थ्य नहीं है, इसलिये जो कुछ वह करता है उससे उसके सार के विषय में हमें क्या निष्कर्ष निकालना चाहिए? ऐसे लोग भी हैं जो शैतान के हर कार्य को महज एक छल के रूप में परिभाषित करते है, फिर भी मैं विश्वास करता हूँ कि ऐसी परिभाषा उतनी उचित नहीं है। क्या मानवजाति को भ्रष्ट करने के लिए उसके बुरे कार्य महज एक छल हैं? वह बुरी शक्ति जिसके द्वारा शैतान ने अय्यूब का शोषण किया, उसका शोषण करने और उसे नष्ट करने की उसकी प्रचण्ड इच्छा, संभवतः महज छल के द्वारा प्राप्त नहीं की जा सकती। अगर हम विचार करें तो यह देखते हैं कि पहाड़ों और पर्वतों में दूर-दूर तक फैले हुए अय्यूब के पशुओं का झुण्ड और समूह, एक पल में सब कुछ चला गया; अय्यूब की अत्यधिक धन-संपत्ति, एक क्षण में ग़ायब हो गयी। क्या इसे महज छल के द्वारा प्राप्त किया जा सकता था? शैतान के हर कार्य की प्रकृति नकारात्मक शब्दों जैसे अड़चन डालना, रूकावट डालना, नष्ट करना, नुकसान पहुँचाना, बुराई, ईर्ष्या और अँधकार के साथ मेल खाती है और बिलकुल सही बैठती है, इस प्रकार उन सबका घटित होना जो अधर्मी और बुरा है, वह पूरी तरह शैतान के कार्यों के साथ जुड़ा हुआ है, इसे शैतान के बुरे सार से जुदा नहीं किया जा सकता है। इसके बावजूद कि शैतान कितना "सामर्थी" है, इसके बावजूद कि वह कितना ढीठ और महत्वाकांक्षी है, इसके बावजूद कि नुकसान पहुँचाने की उसकी क्षमता कितनी बड़ी है, इसके बावजूद कि उसकी तकनीक का दायरा कितना व्यापक है जिससे वह मनुष्य को भ्रष्ट करता और लुभाता है, इसके बावजूद कि उसके छल और प्रपंच कितने चतुर हैं जिससे वह मनुष्य को डराता है, इसके बावजूद कि वह रूप जिसमें वह अस्तित्व में रहता है कितना परिवर्तनशील है, वह एक भी जीवित प्राणी को बनाने में कभी सक्षम नहीं हुआ है, सभी चीज़ों के अस्तित्व के लिए व्यवस्थाओं और नियमों को निर्धारित करने में कभी सक्षम नहीं हुआ है, किसी भी जीवित या निर्जीव वस्तु पर शासन और नियन्त्रण करने में कभी सक्षम नहीं हुआ है। ब्रह्मांड और नभमंडल के भीतर, एक भी व्यक्ति या वस्तु नहीं है जो उससे उत्पन्न हुआ हो या उसके द्वारा अस्तित्व में बना हुआ हो; एक भी व्यक्ति या वस्तु नहीं है जिस पर उसके द्वारा शासन किया जाता हो या उसके द्वारा नियन्त्रण किया जाता हो। इसके विपरीत, उसे न केवल परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन जीना है, बल्कि, उसे परमेश्वर के सारे आदेशों और आज्ञाओं को भी मानना होगा। परमेश्वर की अनुमति के बिना शैतान के लिए भूमि की सतह पर पानी की एक बूँद या रेत के एक कण को भी छूना कठिन है; परमेश्वर की अनुमति के बिना, शैतान के पास इतनी भी आज़ादी नहीं है कि वह भूमि की सतह पर से एक चींटी को हटा सके, परमेश्वर द्वारा सृजित इंसान को हटाने की तो बात ही क्या है। परमेश्वर की नज़रों में शैतान पहाड़ों के सोसन फूलों, हवा में उड़ते हुए पक्षियों, समुद्र की मछलियों और पृथ्वी के कीड़े-मकौड़ों से भी कमतर है। सभी चीज़ों के बीच में उसकी भूमिका यह है कि वह सभी चीज़ों की सेवा करे, मानवजाति के लिए कार्य करे, परमेश्वर और उसकी प्रबंधकीय योजना के कार्य करे। इसके बावजूद कि उसका स्वभाव कितना ईर्ष्यालु है, उसका सार कितना बुरा है, एकमात्र कार्य जो वो कर सकता है वह है आज्ञाकारिता से अपने कार्यों को करना : परमेश्वर की सेवाके योग्य होना, परमेश्वर के कार्यों में पूरक होना। शैतान का सार-तत्व और हैसियत ऐसे ही हैं। उसका सार जीवन से जुड़ा हुआ नहीं है, सामर्थ्य से जुड़ा हुआ नहीं है, अधिकार से जुड़ा हुआ नहीं है; वह परमेश्वर के हाथों में मात्र एक खिलौना है, परमेश्वर की सेवा में लगा मात्र एक मशीन है!
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I
शैतान की कभी भी यह हिम्मत नहीं हुई है कि वह परमेश्वर के अधिकार का उल्लंघन करे, इसके अतिरिक्त, उसने हमेशा परमेश्वर के आदेशों और विशेष आज्ञाओं को सावधानीपूर्वक सुना है, उनका पालन किया है, उनको चुनौती देने की कभी हिम्मत नहीं की है, और निश्चय ही, परमेश्वर की किसी आज्ञा को कभी खुल्लमखुल्ला पलटने की हिम्मत नहीं की है। वे सीमाएँ ऐसी ही हैं जिन्हें परमेश्वर ने शैतान के लिए निर्धारित किया, और शैतान ने कभी इन सीमाओं को लाँघने की हिम्मत नहीं की है। क्या यह परमेश्वर के अधिकार की शक्ति नहीं है? क्या यह परमेश्वर के अधिकार की गवाही नहीं है? शैतान के पास मानवजाति से कहीं अधिक स्पष्ट समझ है कि परमेश्वर के प्रति कैसा आचरण करना है, उसे किस नज़र से देखना है, इस प्रकार, आत्मिक संसार में, शैतान परमेश्वर के अधिकार व उसके स्थान को बिलकुल साफ-साफ देखता है, उसके पास परमेश्वर के अधिकार की शक्ति और उसके अधिकार के इस्तेमाल के पीछे के सिद्धांतों की गहरी समझ है। उन्हें नज़रअन्दाज़ करने की हिम्मत वह बिलकुल भी नहीं करता है, न ही वह उन्हें किसी भी तरीके से तोड़ने की हिम्मत करता है, न ही वह ऐसा कुछ करता है जिससे परमेश्वर के अधिकार का उल्लंघन हो, वह किसी भी रीति से परमेश्वर के क्रोध को चुनौती देने की हिम्मत नहीं करता है। यद्यपि वह स्वभाव से बुरा और घमण्डी है, फिर भी उसने परमेश्वर के द्वारा उसके लिए निर्धारित की गयी सीमाओं को लाँघने की कभी हिम्मत नहीं की है। लाखों सालों से, वह कड़ाई से इन सीमाओं पालन करता रहा है, परमेश्वर के द्वारा उसे दिए गए हर आज्ञा और आदेश का पालन करता रहा और कभी उस सीमा के बाहर पैर रखने की हिम्मत नहीं की। यद्यपि वह डाह करने वाला है, तो भी शैतान पतित मानवजाति से कहीं ज़्यादा "चतुर" है; वह सृष्टिकर्ता की पहचान को जानता है, अपनी सीमाओं को भी जानता है। शैतान के "आज्ञाकारी" कार्यों से यह देखा जा सकता है कि परमेश्वर का अधिकार और सामर्थ्य, स्वर्गीय आदेश हैं जिनका उल्लंघन शैतान के द्वारा नहीं किया जा सकता है, परमेश्वर के अधिकार और अद्वितीयता के कारण सभी चीज़ें क्रमागत रीति से बदलती और बढ़ती हैं, और मनुष्य परमेश्वर द्वारा निर्धारित जीवन-क्रम के भीतर रह सकते हैं और बहुगुणित हो सकते हैं, कोई व्यक्ति या वस्तु इस व्यवस्था में उथल-पुथल नहीं कर सकती है, कोई व्यक्ति या वस्तु इस नियम को बदलने में सक्षम नहीं है—क्योंकि वे सभी सृष्टिकर्ता के हाथों, सृष्टिकर्ता के आदेश और अधिकार से आते हैं।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I
यद्यपि शैतान अय्यूब को लालच भरी नज़रों से देख रहा था, परन्तु बिना परमेश्वर की इजाज़त के वह अय्यूब के शरीर के एक बाल को भी छूने की हिम्मत नहीं कर सकता था। यद्यपि वह स्वाभाविक रूप से बुरा और निर्दयी है, किन्तु परमेश्वर के द्वारा उसे आज्ञा दिये जाने के बाद, शैतान के पास उसकी आज्ञा में बने रहने के सिवाए और कोई विकल्प नहीं था। इस प्रकार, जब शैतान अय्यूब के पास आया तो भले ही वह भेड़ों के बीच में एक भेड़िए के समान उन्माद में था, परन्तु उसने परमेश्वर द्वारा तय की गई सीमाओं को भूलने की हिम्मत नहीं की, जो कुछ भी उसने किया उसमें उसने परमेश्वर के आदेशों को तोड़ने की हिम्मत नहीं की, शैतान को परमेश्वर के वचनों के सिद्धांतों और सीमाओं से भटकने की हिम्मत नहीं हुई—क्या यह तथ्य नहीं है? इससे यह देखा जा सकता है कि शैतान यहोवा परमेश्वर के किसी भी वचन का विरोध करने की हिम्मत नहीं करता। शैतान के लिए, परमेश्वर के मुँह से निकला हर एक वचन एक आदेश है, एक स्वर्गीय नियम है, परमेश्वर के अधिकार का प्रकटीकरण है—क्योंकि परमेश्वर के हर एक वचन के पीछे, परमेश्वर के आदेशों को तोड़ने वालों, स्वर्गीय व्यवस्थाओं की आज्ञा का पालन नहीं करने और विरोध करने वालों के लिए, परमेश्वर का दण्ड निहित है। शैतान स्पष्ट रीति से जानता है कि यदि उसने परमेश्वर के आदेशों को तोड़ा तो उसे परमेश्वर के अधिकार के उल्लंघन करने, और स्वर्गीय व्यवस्थाओं का विरोध करने का परिणाम स्वीकार करना होगा। ये परिणाम आखिर क्या हैं? कहने की आवश्यकता नहीं है, ये परमेश्वर के द्वारा उसे दिए जाने वाले दण्ड हैं। अय्यूब के खिलाफ शैतान के कार्य उसके द्वारा मनुष्य की भ्रष्टता का एक छोटा-सा दृश्य था, जब शैतान इन कार्यों को अन्जाम दे रहा था, तब वे सीमाएँ जिन्हें परमेश्वर ने ठहराया था और वे आदेश जिन्हें उसने शैतान को दिया था, वह शैतान के हर कार्य के पीछे के सिद्धांतों की महज एक छोटी-सी झलक थी। इसके अतिरिक्त, इस मामले में शैतान की भूमिका और पद परमेश्वर के प्रबन्धन कार्य में उसकी भूमिका और पद का मात्र एक छोटा-सा दृश्य था, शैतान के द्वारा अय्यूब की परीक्षा में परमेश्वर के प्रति उसकी सम्पूर्ण आज्ञाकारिता की महज एक छोटी-सी तस्वीर थी कि किस प्रकार शैतान ने परमेश्वर के प्रबन्धन कार्य में परमेश्वर के विरूद्ध ज़रा-सा भी विरोध करने का साहस नहीं किया। ये सूक्ष्म दर्शन तुम लोगों को क्या चेतावनी देते हैं? शैतान समेत सभी चीजों में ऐसा कोई व्यक्ति या चीज़ नहीं है जो सृष्टिकर्ता द्वारा निर्धारित स्वर्गीय कानूनों और आदेशों का उल्लंघन कर सके, और किसी व्यक्ति या वस्तु की इतनी हिम्मत नहीं है जो सृष्टिकर्ता द्वारा स्थापित की गयी इन स्वर्गीय व्यवस्थाओं और आदेशों को तोड़ सके, क्योंकि ऐसा कोई व्यक्ति या वस्तु नहीं है जो उस दण्ड को पलट सके या उससे बच सके जिसे सृष्टिकर्ता उसकी आज्ञा न मानने वाले लोगों को देता है। केवल सृष्टिकर्ता ही स्वर्गीय व्यवस्थाओं और आदेशों को बना सकता है, केवल सृष्टिकर्ता के पास ही उन्हें प्रभाव में लाने की सामर्थ्य है, किसी व्यक्ति या वस्तु के द्वारा मात्र सृष्टिकर्ता की सामर्थ्य का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है। यह सृष्टिकर्ता का अद्वितीय अधिकार है, यह अधिकार सभी चीज़ों में सर्वोपरि है, इस प्रकार, यह कहना नामुमकिन है कि "परमेश्वर सबसे महान है और शैतान दूसरे नम्बर पर है।" उस सृष्टिकर्ता को छोड़ जिसके पास अद्वितीय अधिकार है, और कोई परमेश्वर नहीं है!
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I
यद्यपि मनुष्य की अपेक्षा शैतान की कुशलताएँ और योग्यताएँ कहीं बढ़कर हैं, यद्यपि वह ऐसे काम कर सकता है जिन्हें मनुष्य प्राप्त नहीं कर सकता है, तुम चाहे शैतान से ईर्ष्या करो या वह जो करता है उसकी आकांक्षा करो, इन चीजों से नफरत करो या घृणा से भर जाओ, चाहे तुम उसे देख पाओ या नहीं, चाहे शैतान कितना भी हासिल कर पाए या वह कितने भी लोगों को धोखा देखर उनसे अपनी आराधना करवाये में और खुद को पवित्र मनवाए, चाहे तुम इसे कैसे भी परिभाषित करो, तुम यह नहीं कह सकते कि उसके पास परमेश्वर का अधिकार और सामर्थ्य है। तुम्हें जानना चाहिए कि परमेश्वर ही परमेश्वर है, सिर्फ एक ही परमेश्वर है, इसके अतिरिक्त, तुम्हें यह जानना चाहिए कि सिर्फ परमेश्वर के पास ही अधिकार है, सभी चीज़ों पर शासन करने और उन पर नियन्त्रण करने की सामर्थ्य उसी के पास है। सिर्फ इसलिए कि शैतान के पास लोगों को धोखा देने की क्षमता है, वह परमेश्वर का रूप धारण कर सकता है, परमेश्वर द्वारा किए गए चिन्हों और चमत्कारों की नकल कर सकता है, उसने परमेश्वर के समान ही कुछ समान काम किये हैं, तो तुम भूलवश विश्वास करने लग जाते हो कि परमेश्वर अद्वितीय नहीं है, बल्कि बहुत सारे ईश्वर हैं, बस उनके पास कुछ कम या कुछ ज़्यादा कुशलताएँ हैं और उस सामर्थ्य का विस्तार अलग-अलग है जिसे वे काम में लाते हैं। उनके आगमन के क्रम, उनके युग के अनुसार तुम उनकी महानता को आँकते हो, तुम यह विश्वास करने में गलती करते हो कि परमेश्वर से अलग कुछ अन्य देवता हैं, तुम यह सोचते हो कि परमेश्वर की सामर्थ्य और उसका अधिकार अद्वितीय नहीं हैं। यदि तुम्हारे विचार ऐसे हैं, यदि तुम परमेश्वर की अद्वितीयता को पहचान नहीं पाते हो, यह विश्वास नहीं करते हो कि सिर्फ परमेश्वर के पास ही ऐसा अधिकार है, यदि तुम बहु-ईश्वरवाद को महत्व देते हो तो मैं कहूँगा कि तुम जीवधारियों में सबसे निकृष्ट हो, तुम शैतान का साकार रूप हो और तुम निश्चित तौर पर एक बुरे इंसान हो! क्या तुम समझ रहे हो कि मैं इन वचनों के द्वारा तुम्हें क्या सिखाने की कोशिश कर रहा हूँ? इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि समय, स्थान या तुम्हारी पृष्ठभूमि क्या है, तुम परमेश्वर और किसी अन्य व्यक्ति, वस्तु, या चीज़ के बीच भ्रमित मत हो। भले ही तुम्हें स्वयं-परमेश्वर का अधिकार और परमेश्वर का सार कितना ही अज्ञात और अगम्य लगे, शैतान के कार्य और शब्द तुम्हारी धारणा और कल्पना से कितना ही मेल खाते हों, वे तुम्हें कितनी ही संतुष्टि प्रदान करते हों, मूर्ख न बनो, इन धारणाओं में भ्रमित मत हो, परमेश्वर के अस्तित्व को नकारो मत, परमेश्वर की पहचान और हैसियत को नकारो मत, परमेश्वर को दरवाज़े के बाहर मत धकेलो और परमेश्वर को हटाकर शैतान को अपना परमेश्वर बनाने के लिए उसे अपने हृदय के भीतर मत लाओ। मुझे कोई सन्देह नहीं है कि तुम ऐसा करने के परिणामों की कल्पना करने में समर्थ हो!
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है I
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?