मानवजाति को छुटकारा दिलाने के लिए पाप बलि के रूप में प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ाया गया था। हमने प्रभु को स्वीकार कर लिया है, और उनके अनुग्रह से उद्धार प्राप्त किया है। फ़िर भी हमें सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के अंत के दिनों के न्याय और शुद्धिकरण के कार्य को क्यों स्वीकार करना है?

15 मार्च, 2021

उत्तर: अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु ने छुटकारे का कार्य किया। वह मानवजाति को पूरी तरह से बचाने के लिए परमेश्‍वर का अंत के दिनों का न्याय कार्य नहीं था। छुटकारे के कार्य से जो कुछ हासिल हुआ, वह प्रभु यीशु का हमारे लिए पाप बलि के रूप में प्रस्तुत होना था, और यह कि उन्होंने हमें शैतान के चंगुल से छुटकारा दिलाया, हमसे हमारे पापों का पश्चाताप कराया और परमेश्‍वर के उद्धार को स्वीकार कराया। उन्‍होंने हमें परमेश्‍वर के सामने जाने और परमेश्‍वर के अनुग्रह और आशीष का आनंद लेने की योग्यता दी। यह छुटकारे के कार्य का असली महत्व था। लेकिन बहुत से लोग इसे समझ नहीं पाते हैं। वे हमेशा प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य को पूरी मानवजाति के पूर्ण उद्धार और हमें स्वर्ग के राज्य में प्रवेश की अनुमति देना समझते हैं। यह अवधारणा पूरी तरह से मनुष्य की कल्पना से उत्पन्न होती है। हमें प्रभु यीशु ने पापों से छुटकारा दिलाया था, यह सच है। लेकिन क्‍या इससे हमारा पापी स्वभाव बदला? क्या यह तथ्य कि परमेश्‍वर ने हमारे पाप क्षमा कर दिए हैं, इसका मतलब यह है कि हम वाकई पवित्र हो गए हैं? तो फ़िर हम अभी भी बार-बार पाप क्यों करते है? क्या वे लोग जो बार-बार पाप करते हैं, वाकई कभी भी प्रभु द्वारा स्वीकार किये जा सकते हैं? बहुत से लोगों ने इस समस्या पर विचार नहीं किया है, और हमने किसी को वाकई इस समस्या को समझते नहीं देखा। प्रभु यीशु ने हमें पाप की स्थिति से छुटकारा दिलाया। हमारे पापों को माफ़ कर दिया गया, अनुग्रह से हमारा उद्धार किया गया, यह सत्य है। लेकिन जैसे हम प्रभु में विश्वास करते हैं और प्रभु का अनुसरण करते है, हम अक्सर प्रभु की शिक्षाओं के साथ विश्वासघात करते है, और पाप करने की हमारी शारीरिक कामनाओं के आगे झुक जाते हैं। हम झूठ बोलने, धोखा देने, छल करने, साज़िशें रचने जैसे काम करते हैं, शोहरत और दौलत के पीछे भागते हैं, हम घमंड, धन की लालसा के आगे झुक जाते है, और बुरी सांसारिक प्रवृत्तियों का अनुसरण करते हैं... कड़वे अनुभवों और परीक्षाओं के समय में, हम अक्सर परमेश्‍वर को गलत समझते हैं और उनको दोष देते हैं, या यहां तक कि परमेश्‍वर को छोड़ देते हैं और धोखा देते हैं। जब परमेश्‍वर का कार्य मनुष्य की अवधारणाओं के अनुरूप नहीं होता है, तो हम लापरवाही से परमेश्‍वर का आकलन और निंदा करते हैं। हम एक ही समय में परमेश्‍वर का अनुसरण और मनुष्यों की आराधना और अनुसरण करते हैं। हम पाप करने और पश्चाताप करने के चक्र में रहते हैं, जिससे बचना मुश्किल है। हम ख़ुद को अपने शैतानी प्रकृति के बंधनों और नियंत्रण से मुक्त नहीं कर पाते, यह एक तथ्य है। हालांकि प्रभु यीशु का छुटकारे का कार्य पूरा हो चुका है, और हमें हमारे पापों को क्षमा कर दिया गया है, और अब हम परमेश्‍वर के नियमों का उल्लंघन करने के लिए शापित नहीं हैं, हम परमेश्‍वर के सामने उनकी प्रार्थना करने और परमेश्‍वर के संपूर्ण अनुग्रह का आनंद लेने के लिए आ सकते हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि परमेश्‍वर का मानवजाति को बचाने का कार्य खत्म हो चुका है, क्योंकि हमारे अंदर की पापी प्रकृति अभी भी बनी हुई है। हम अभी भी अपनी शैतानी प्रकृति के कारण परमेश्‍वर का विरोध और विश्वासघात करने के लिए मज़बूर हैं। इतना ही नहीं, परमेश्‍वर को जाने बिना, हम परमेश्‍वर से कभी नहीं डरेंगे, और न ही ख़ुद को बुराइयों से दूर करेंगे, परमेश्‍वर के प्रति पूरी आज्ञाकारिता की अवस्था, परमेश्‍वर और पवित्रता के अनुरूप होने तक पहुंचना तो दूर की बात रही। हम वाकई परमेश्‍वर द्वारा प्राप्त नहीं किये गए हैं। हम सभी जानते हैं, परमेश्‍वर पवित्र और धार्मिक हैं। अगर लोग अपवित्र हैं तो वे प्रभु को नहीं देख सकते। परमेश्‍वर भ्रष्ट और अपवित्रों को अपने राज्य में आने की इज़ाज़त नहीं देंगे। यह परमेश्‍वर के धार्मिक स्वभाव से निश्चित होता है। इसलिए, अंत के दिनों में, परमेश्‍वर ने मानवजाति को बचाने की अपनी प्रबंधन योजना के अनुसार, अपना न्याय और ताड़ना का कार्य पूरा किया ताकि भ्रष्ट मानवजाति को पाप के मूल कारण, पाप करने की मज़बूरियों और बंधनों से दूर किया जा सके, और मानवजाति को पूरी तरह से शैतान के प्रभाव से बचने में मदद की जा सके, उसे परमेश्‍वर द्वारा बचाया जा सके और वह परमेश्‍वर के राज्य में प्रवेश कर सके। आइये सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचन के दो और अंश देखें।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "तुम लोगों जैसा पापी, जिसे परमेश्वर के द्वारा अभी-अभी छुड़ाया गया है, और जो परिवर्तित नहीं किया गया है, या सिद्ध नहीं बनाया गया है, क्या तुम परमेश्वर के हृदय के अनुसार हो सकते हो? तुम्हारे लिए, तुम जो कि अभी भी पुराने अहम् वाले हो, यह सत्य है कि तुम्हें यीशु के द्वारा बचाया गया था, और कि परमेश्वर द्वारा उद्धार की वजह से तुम्हें एक पापी के रूप में नहीं गिना जाता है, परन्तु इससे यह साबित नहीं होता है कि तुम पापपूर्ण नहीं हो, और अशुद्ध नहीं हो। यदि तुम्हें बदला नहीं गया तो तुम संत जैसे कैसे हो सकते हो? भीतर से, तुम अशुद्धता से घिरे हुए हो, स्वार्थी और कुटिल हो, मगर तब भी तुम यीशु के साथ अवतरण चाहते हो—क्या तुम इतने भाग्यशाली हो सकते हो? तुम परमेश्वर पर अपने विश्वास में एक कदम चूक गए हो: तुम्हें मात्र छुटकारा दिया गया है, परन्तु परिवर्तित नहीं किया गया है। तुम्हें परमेश्वर के हृदय के अनुसार होने के लिए, परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से तुम्हें परिवर्तित और शुद्ध करने का कार्य करना होगा; यदि तुम्हें सिर्फ छुटकारा दिया जाता है, तो तुम पवित्रता को प्राप्त करने में असमर्थ होंगे। इस तरह से तुम परमेश्वर के आशीषों में साझेदारी के अयोग्य होंगे, क्योंकि तुमने मनुष्य का प्रबंधन करने के परमेश्वर के कार्य के एक कदम का सुअवसर खो दिया है, जो कि परिवर्तित करने और सिद्ध बनाने का मुख्य कदम है। और इसलिए तुम, एक पापी जिसे अभी-अभी छुटकारा दिया गया है, परमेश्वर की विरासत को सीधे तौर पर उत्तराधिकार के रूप में पाने में असमर्थ हो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पदवियों और पहचान के सम्बन्ध में)

"न्याय और ताड़ना के इस कार्य के माध्यम से मनुष्य अपने भीतर के गंदे और भ्रष्ट सार को पूरी तरह से जान जाएगा, और वह पूरी तरह से बदलने और स्वच्छ होने में समर्थ हो जाएगा। केवल इसी तरीके से मनुष्य परमेश्वर के सिंहासन के सामने वापस लौटने के योग्य हो सकता है। आज किया जाने वाला समस्त कार्य इसलिए है, ताकि मनुष्य को स्वच्छ और परिवर्तित किया जा सके; वचन के द्वारा न्याय और ताड़ना के माध्यम से, और साथ ही शुद्धिकरण के माध्यम से भी, मनुष्य अपनी भ्रष्टता दूर कर सकता है और शुद्ध बनाया जा सकता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (4))

अंत के दिनों में, परमेश्‍वर मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह बचाएंगे, जिससे मनुष्य को सही मायनों में परमेश्‍वर की ओर मुड़ने और मसीह के अनुरूप होने में मदद मिलेगी, और वे ऐसे पवित्र लोग बन पाएंगे जो परमेश्‍वर का आदर करते और उनकी आज्ञा मानते हैं। इस लक्ष्य को पाने का एकमात्र तरीका अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के न्याय के कार्य के ज़रिए है। सिर्फ़ सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों के न्याय और प्रकाशनों के माध्यम से ही लोग अंत में शैतान द्वारा अपने आपको भ्रष्ट किए जाने की सच्चाई को, अपनी प्रकृति के सार को, और परमेश्‍वर के धार्मिक और प्रतापी स्वभाव को जान सकते हैं जो किसी भी अपमान को सहन नहीं करता। सिर्फ़ इसी तरह लोग सच्‍चा अफसोस और पश्चाताप कर सकते हैं, शरीर से घृणा करने, शैतान के विरुद्ध विद्रोह करने और परमेश्‍वर से डरने वाले दिलों की इच्‍छा कर सकते हैं, शैतान के बुरे प्रभाव से सचमुच बच सकते हैं, परमेश्‍वर की ओर मुड़ सकते हैं और परमेश्‍वर द्वारा हासिल किए जा सकते हैं। सिर्फ़ इसी तरह से अंत में मानवजाति को बचाया जा सकता है और वह स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकती है।

"सिंहासन से बहता है जीवन जल" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

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