हम अंत के दिनों के परमेश्‍वर के कार्य को स्वीकार करते हैं, लेकिन हम किस प्रकार परमेश्‍वर के न्याय और ताड़ना को अनुभव करें जिससे कि हम सत्य और जीवन को प्राप्त कर सकें, हमारी पापी प्रकृति से छुटकारा पा सकें, और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के लिए उद्धार प्राप्त कर सकें?

15 मार्च, 2021

उत्तर: सत्‍य और जीवन प्राप्त करने के लिए परमेश्‍वर के न्याय और ताड़ना का अनुभव कैसे करें, किस तरह अपनी पापी प्रकृति से छुटकारा पाएं और किस तरह उद्धार प्राप्त कर स्वर्ग के राज्य में प्रवेश पायें... यह जो सवाल आप लोगों उठाया है, बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमारे अंत और मंज़िल के प्रमुख मुद्दों से संबंधित है। सत्‍य के इस पहलू की खोज करने के लिए, हमें सबसे पहले सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचन के कुछ अंश पढ़ना चाहिए:

"परमेश्वर में सच्चे विश्वास का अर्थ यह है: इस विश्वास के आधार पर कि सभी वस्तुओं पर परमेश्वर की संप्रभुता है, व्यक्ति परमेश्वर के वचनों और कार्यों का अनुभव करता है, अपने भ्रष्ट स्वभाव को शुद्ध करता है, परमेश्वर की इच्छा पूरी करता है और परमेश्वर को जान पाता है। केवल इस प्रकार की यात्रा को ही 'परमेश्वर में विश्वास' कहा जा सकता है" ("वचन देह में प्रकट होता है" की 'प्रस्तावना')

"बोलने की वर्तमान प्रक्रिया, जीतने की ही प्रक्रिया है। और लोगों को किस प्रकार सहयोग देना चाहिए? यह जानकर कि इन वचनों को कैसे खाना-पीना है और उनकी समझ हासिल करके। जहाँ तक लोग कैसे जीते जाते हैं इस की बात है, इसे इंसान खुद नहीं कर सकता। तुम सिर्फ इतना कर सकते हो कि इन वचनों को खाने और पीने के द्वारा, अपनी भ्रष्टता और अशुद्धता, अपने विद्रोहीपन और अपनी अधार्मिकता को जानकर, परमेश्वर के समक्ष दण्डवत हो सकते हो। यदि तुम परमेश्वर की इच्छा को समझकर, इसे अभ्यास में ला सको, और अगर तुम्हारे पास दर्शन हों, और इन वचनों के प्रति पूरी तरह से समर्पित हो सकते हो, और खुद कोई चुनाव नहीं करते हो, तब तुम जीत लिए जाओगे और ये उन वचनों का परिणाम होगा" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'विजय के कार्य की आंतरिक सच्चाई(1)')

"परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए, सत्य की खोज पर ध्यान लगाना, और परमेश्वर के वचनों में उसके इरादों की खोज पर अवश्य ध्यान केन्द्रित करना चाहिए, और हर चीज़ में परमेश्वर की इच्छा को समझने का प्रयास करना चाहिए। यह अभ्यास की सबसे बुनियादी और प्राणाधार पद्धति है। ... परमेश्वर के वचनों के प्रति हार्दिक समर्पण में मुख्यत: सत्य की खोज करना, परमेश्वर के वचनों में उसके इरादों की खोज करना, परमेश्वर की इच्छा को समझने पर ध्यान केन्द्रित करना, और परमेश्वर के वचनों से सत्य को समझना तथा और अधिक प्राप्त करना शामिल है। ... साथ ही उसके स्वभाव और उसकी सुंदरता की समझ को प्राप्त करने पर ध्यान लगाया था। पतरस ने परमेश्वर के वचनों से मनुष्य की विभिन्न भ्रष्ट अवस्थाओं के साथ ही मनुष्य की भ्रष्ट प्रकृति को तथा मनुष्य की वास्तविक कमियों को समझने का भी प्रयास किया, और इस प्रकार परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए, उसकी इंसान से अपेक्षाओं के सभी पहलुओं को प्राप्त किया। पतरस के पास ऐसे बहुत से अभ्यास थे जो परमेश्वर के वचनों के अनुरूप थे; यह परमेश्वर की इच्छा के सर्वाधिक अनुकूल था, और यह वो सर्वोत्त्म तरीका था जिससे कोई व्यक्ति परमेश्वर के कार्य का अनुभव करते हुए सहयोग कर सकता है" ("मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'पतरस के मार्ग पर कैसे चलें')

विश्वासियों के रूप में हमें सबसे पहले यह समझने की आवश्‍यकता है कि परमेश्‍वर पर विश्वास करने का मतलब क्या है। परमेश्‍वर में विश्वास करने का अर्थ है सत्‍य को समझने और सत्‍य की वास्तविकता को जानने के लिए, परमेश्‍वर के कार्य और उनके वचन का अनुभव करना। यही परमेश्‍वर में विश्वास करने की प्रक्रिया है। अंत के दिनों में परमेश्‍वर का कार्य उनके वचन के माध्यम से न्याय कर रहा है। तब अगर हम चाहते हैं कि हमारे भ्रष्ट स्वभाव शुद्ध हो जाए और हम उद्धार प्राप्त करें, तो हमें पहले परमेश्‍वर के वचन को जानने के कुछ प्रयास करना चाहिए और वास्तव में परमेश्‍वर के वचनों को ग्रहण करना चाहिए, और उनके वचन में परमेश्‍वर के न्याय और प्रकाशन को स्वीकार करना चाहिए। चाहे परमेश्‍वर के वचन कितना ही हृदय को बींधे, वे कितने ही कठोर क्‍यों न हों, या इससे हमें कितनी ही पीड़ा क्‍यों न सहनी पड़े, सबसे पहले यह सुनिश्चित करें कि परमेश्‍वर के वचन सभी सत्य और जीवन की सच्‍चाई हैं, जिनमें हमें प्रवेश करना चाहिए। परमेश्‍वर के वचन की हर अभिव्‍यक्ति हमें शुद्ध करने और बदलने के लिए, हमें हमारे भ्रष्ट स्वभाव को छुड़ाकर उद्धार प्राप्‍त कराने के लिए, और इससे भी अधिक हमें परमेश्‍वर का ज्ञान प्राप्त कर सत्य को समझने के योग्‍य बनाने के लिए है। इसलिए हमें परमेश्‍वर के वचन के न्याय और ताड़ना, कांट-छांट और व्यवहार को स्वीकार करना चाहिए। अगर हम परमेश्‍वर के वचन के सत्य को प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें परमेश्‍वर के वचन और सत्‍य को स्वीकारने और उसका पालन करने के लिए कष्ट झेलने में सक्षम होना चाहिए। हमें परमेश्‍वर के वचन में सत्‍य की खोज करनी चाहिए, परमेश्‍वर की इच्छा को महसूस करना चाहिए, और चिंतन कर स्‍वयं को जानना चाहिए, परमेश्‍वर के वचन पर मनन कर अपने स्वयं के अहंकार, धोखे, स्वार्थ और अधमता को जानना चाहिए, हमें यह जानना चाहिए कि हम कैसे परमेश्‍वर के साथ सौदेबाजी करते हैं, परमेश्‍वर का लाभ उठाते हैं, परमेश्‍वर को धोखा देते हैं, सत्‍य और अन्य शैतानी प्रवृत्तियों के साथ खिलवाड़ करते हैं, और साथ ही हमें परमेश्‍वर में विश्‍वास की अशुद्धियों और परमेश्‍वर का आशीष पाने के हमारे इरादों के विषय में भी जानना चाहिये। इस तरह, हम धीरे-धीरे हमारे भ्रष्टाचार के सत्‍य और हमारे स्वभाव के सार को जान सकते हैं। और अधिक सत्‍य को समझने के बाद, परमेश्‍वर के बारे में हमारा ज्ञान धीरे-धीरे गहरा होता जाएगा, और हम स्वाभाविक रूप से जान पायेंगे कि परमेश्‍वर किस तरह के व्यक्तियों को पसंद और नापसंद करते हैं, वे किस तरह के व्यक्तियों को बचायेंगे या समाप्‍त करेंगे, किस तरह के व्यक्ति का वे इस्तेमाल करेंगे और किस तरह के व्यक्ति को वे आशीष देंगे। इन बातों को समझने के बाद, हम परमेश्‍वर के स्वभाव को समझना शुरू कर देंगे। ये सभी परमेश्‍वर के वचन के न्याय और ताड़ना का अनुभव करने के परिणाम हैं। जो लोग सत्‍य की खोज करते हैं, वे परमेश्‍वर के वचन के न्याय और ताड़ना का अनुभव करने पर ध्यान देते हैं, वे हर बात में सत्‍य की खोज करने पर, और परमेश्‍वर के वचन का अभ्‍यास करने और परमेश्‍वर का आज्ञापालन करने पर ध्यान देते हैं। ऐसे लोग धीरे-धीरे सत्य को समझने और परमेश्‍वर के वचन का अनुभव करके वास्तविकता में प्रवेश करने, और उद्धार प्राप्त करने में सक्षम होंगे और पूर्ण किये जायेंगे। जो लोग सत्‍य से प्रेम नहीं करते, वे भले ही परमेश्‍वर की उपस्थिति को पहचान सकते हैं और परमेश्‍वर द्वारा व्यक्त किये गए सत्य से कार्य करते हैं, वे सोचते हैं कि परमेश्‍वर के लिए सब कुछ छोड़ देने और अपना कर्तव्य पूरा करने मात्र से वे निश्चित रूप से उद्धार प्राप्त कर सकते हैं। अंत में, वे कई सालों तक परमेश्‍वर पर विश्वास करने के बाद भी सत्‍य और जीवन प्राप्त नहीं कर सकते। वे केवल कुछ वचनों, पत्रों और सिद्धांतों को समझते हैं, लेकिन उन्‍हें लगता है कि वे सत्‍य को जानते हैं और उन्होंने सच्‍चाई को हासिल कर लिया है। वे खुद से झूठ बोल रहे हैं और निश्चित रूप से परमेश्‍वर द्वारा समाप्त कर दिए जायेंगे। हम उद्धार प्राप्त करने के लिए परमेश्‍वर के कार्य का अनुभव कैसे करते हैं? आइए सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचन के कुछ और अंश पढ़ते हैं।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "किसी इंसान का जीवन मात्र परमेश्वर के वचनों को पढ़कर विकसित नहीं हो सकता, बल्कि परमेश्वर के वचनों को अमल में लाने से ही होता है। अगर तुम्हारी सोच यह है कि जीवन और आध्यात्मिक कद पाने के लिए परमेश्वर के वचनों को समझना ही पर्याप्त है, तो तुम्हारी समझ विकृत है। परमेश्वर के वचनों की सच्ची समझ तब पैदा होती है जब तुम सत्य का अभ्यास करते हो, और तुम्हें यह समझ लेना चाहिए कि 'इसे हमेशा सत्य पर अमल करके ही समझा जा सकता है।'" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सत्य को समझने के बाद, तुम्हें उस पर अमल करना चाहिए)

"परमेश्वर में अपने विश्वास में, पतरस ने प्रत्येक चीज़ में परमेश्वर को संतुष्ट करने की चेष्टा की थी, और उस सब की आज्ञा मानने की चेष्टा की थी जो परमेश्वर से आया था। रत्ती भर शिकायत के बिना, वह ताड़ना और न्याय, साथ ही शुद्धिकरण, घोर पीड़ा और अपने जीवन की वंचनाओं को स्वीकार कर पाता था, जिनमें से कुछ भी परमेश्वर के प्रति उसके प्रेम को बदल नहीं सका था। क्या यह परमेश्वर के प्रति सर्वोत्तम प्रेम नहीं था? क्या यह परमेश्वर के सृजित प्राणी के कर्तव्य की पूर्ति नहीं थी? चाहे ताड़ना में हो, न्याय में हो, या घोर पीड़ा में हो, तुम मृत्यु पर्यंत आज्ञाकारिता प्राप्त करने में सदैव सक्षम होते हो, और यह वह है जो परमेश्वर के सृजित प्राणी को प्राप्त करना चाहिए, यह परमेश्वर के प्रति प्रेम की शुद्धता है। यदि मनुष्य इतना प्राप्त कर सकता है, तो वह परमेश्वर का गुणसंपन्न सृजित प्राणी है, और ऐसा कुछ भी नहीं है जो सृष्टिकर्ता की इच्छा को इससे बेहतर ढंग से संतुष्ट कर सकता हो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सफलता या विफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है)

"यदि तुम जिसकी खोज करते हो वह सत्य है, तुम जिसे अभ्यास में लाते हो वह सत्य है, और यदि तुम जो प्राप्त करते हो वह तुम्हारे स्वभाव में परिवर्तन है, तो तुम जिस पथ पर क़दम रखते हो वह सही पथ है। यदि तुम जिसे खोजते हो वह देह के आशीष हैं, और तुम जिसे अभ्यास में लाते हो वह तुम्हारी अपनी अवधारणाओं का सत्य है, और यदि तुम्हारे स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं होता है, और तुम देहधारी परमेश्वर के प्रति बिल्कुल भी आज्ञाकारी नहीं हो, और तुम अभी भी अस्पष्टता में जीते हो, तो तुम जिसकी खोज कर रहे हो वह निश्चय ही तुम्हें नरक ले जाएगा, क्योंकि जिस पथ पर तुम चल रहे हो वह विफलता का पथ है। तुम्हें पूर्ण बनाया जाएगा या हटा दिया जाएगा यह तुम्हारे अपने अनुसरण पर निर्भर करता है, जिसका तात्पर्य यह भी है कि सफलता या विफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सफलता या विफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है)

"यदि कोई अपना कर्तव्य पूरा करते हुए परमेश्वर को संतुष्ट कर सकता है, और अपने कार्यों और क्रियाकलापों में सैद्धांतिक है और सत्य के समस्त पहलुओं की वास्तविकता में प्रवेश कर सकता है, तो वह ऐसा व्यक्ति है जो परमेश्वर द्वारा पूर्ण किया गया है। यह कहा जा सकता है कि परमेश्वर का कार्य और उसके वचन ऐसे लोगों के लिए पूरी तरह से प्रभावी हो गए हैं, कि परमेश्वर के वचन उनका जीवन बन गए हैं, उन्होंने सच्चाई को प्राप्त कर लिया है, और वे परमेश्वर के वचनों के अनुसार जीने में समर्थ हैं। इसके बाद, उनके देह की प्रकृति—अर्थात, उनके मूल अस्तित्व की नींव—हिलकर अलग हो जाएगी और ढह जाएगी। जब लोग परमेश्वर के वचन को अपने जीवन के रूप में धारण कर लेंगे, तो वे नए लोग बन जाएंगे। अगर परमेश्वर के वचन उनका जीवन बन जाते हैं; परमेश्वर के कार्य का दर्शन, मानवता से उसकी अपेक्षाएँ, मनुष्यों को उसके प्रकाशन, और एक सच्चे जीवन के वे मानक जो परमेश्वर अपेक्षा करता है कि वे प्राप्त करें, उनका जीवन बन जाते हैं, अगर वे इन वचनों और सच्चाइयों के अनुसार जीते हैं, और वे परमेश्वर के वचनों द्वारा सिद्ध बनाए जाते हैं। ऐसे लोग परमेश्वर के वचनों के माध्यम से पुनर्जन्म लेते हैं और नए लोग बन गए हैं" ("मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'पतरस के मार्ग पर कैसे चलें')

सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर कहते हैं, "किसी इंसान का जीवन मात्र परमेश्वर के वचनों को पढ़कर विकसित नहीं हो सकता, बल्कि परमेश्वर के वचनों को अमल में लाने से ही होता है।" यह पंक्ति सत्‍य है। यह बहुत ही व्यावहारिक है। जिन विश्वासियों ने परमेश्‍वर के वचन का अभ्यास और अनुभव नहीं किया है, वे सत्य को प्राप्त नहीं कर सकते। सत्‍य के बिना व्यक्ति जीवन-रहित व्यक्ति के समान है। सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर ने इस बात की गवाही दी है कि पतरस ने किस प्रकार पूर्ण होने के लिए सत्‍य का अनुसरण किया। पतरस एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने सत्‍य का अनुसरण किया था। उन्होंने न केवल परमेश्‍वर से प्रेम करने का तरीका जाना, बल्कि अपने जीवन स्वभाव को बदलने पर भी ध्यान दिया। प्राथमिक अभिव्यक्ति यह है कि वे परमेश्‍वर के न्याय और ताड़ना का पालन कर परीक्षणों और शुद्धि को स्वीकार कर सके। यहां तक कि अगर प्रभु ने उन्हें शैतान को भी सौंप दिया होता, तब भी वे मृत्युपर्यंत आज्ञाकारी बने रहते। उनका प्रभु के लिए क्रूस पर उल्टा चढ़ाया जाना एक सुंदर और शानदार गवाही प्रदान कर रहा था। पतरस ने परमेश्‍वर का कर्मठतापूर्वक पालन करते हुए और उन्‍हें प्यार करते हुए, परमेश्‍वर पर विश्वास करने पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने न केवल उपदेश देने और कार्य करने पर ध्यान दिया, बल्कि विशेष रूप से सत्‍य का अभ्यास करने और सच्‍चाई में प्रवेश करने पर भी ध्यान दिया। इसीलिए पतरस को अंततः परमेश्‍वर ने पूर्ण किया और उन्हें परमेश्‍वर की स्‍वीकृति प्राप्त हुई। पतरस की गवाही के अनुसार, अगर हम उद्धार प्राप्त करना चाहते हैं, तो हम विश्‍‍वासियों को सत्‍य का अनुसरण करना चाहिए, और परमेश्‍वर के वचन को जानने का प्रयास करना चाहिए, हमें सत्‍य की खोज करने, परमेश्‍वर के इरादों को महसूस करने, सत्‍य का अभ्यास करने और वास्तविकता में प्रवेश करने पर ध्‍यान देना चाहिए। इस तरह से अनुसरण करके, हम सत्‍य के बारे में अधिक से अधिक स्पष्ट हो जाएंगे, और इसे अभ्यास करने के लिए हमारे पास अधिक से अधिक मार्ग होंगे। इससे पहले कि हम इसे जान पायें, हम सत्य की वास्तविकता में प्रवेश कर चुके होंगे। अगर हम सिर्फ़ सिद्धांतों को समझकर संतुष्ट हैं, तो हम सत्‍य का अभ्यास नहीं कर सकते हैं और वास्तविकता में प्रवेश नहीं कर सकते हैं। सिद्धांतों को जानने का मतलब यह नहीं है कि हम सत्‍य को समझते हैं। केवल सत्‍य को समझने से हमें परमेश्‍वर को जानने, स्‍वयं को जानने और सचमुच पश्‍चाताप करने में मदद मिलती है। परंतु सिद्धांतों को जानने के साथ ऐसा नहीं है। जो लोग अधिक सिद्धांतों को जानते हैं, वे अधिक दंभी और आत्म-अभिमानी हो जाएंगे। और वे कभी भी परमेश्‍वर या खुद को नहीं जान पायेंगे। जब अंत के दिनों के परमेश्‍वर के कार्य का अनुभव करने की बात आती है, जो लोग सत्‍य से प्यार नहीं करते, वे स्वाभाविक रूप से परमेश्‍वर के वचन के न्याय और ताड़ना को टालेंगे, और परमेश्‍वर से और अधिक दूर चले जायेंगे, खासकर जब वे परमेश्‍वर के वचन को हृदयभेदी और कठोर पायेंगे। ऐसे लोगों को सत्‍य कैसे प्राप्त हो सकता है? जो लोग सत्‍य से सचमुच प्यार करते हैं, वे सत्‍य को प्राप्त करने के लिए किसी भी तरह की पीड़ा का सामना करने को तैयार रहते हैं। परमेश्‍वर के वचन के न्याय से पीड़ित होकर भी वे आज्ञापालन कर सकते हैं। परीक्षण और शुद्धिकरण का सामना होने पर भी वे अविचलित रह सकते हैं। भले ही उनके परिवार अलग कर दिये जायें, वे कैद में रहें या उन्हें अपना जीवन छोड़ना पड़े, तो भी परमेश्‍वर के लिए खड़े रहकर गवाही बन सकते हैं। ऐसे लोग निश्चित रूप से सत्य को प्राप्त कर सकते हैं और परमेश्‍वर के कार्य का अनुभव करने के बाद परमेश्‍वर की स्‍वीकृति प्राप्त कर सकते हैं!

"विजय गान" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

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पिछले कुछ सालों में हमने हमारे कलीसीया में बढ़ती हुई वीरानी को महसूस किया है। हमने अपने शुरुआती विश्वास और प्यार को खो दिया है, हम कमज़ोर और ज्‍़यादा नकारात्मक बन गए हैं। यहां तक कि कभी-कभी हम उपदेशक भी खोया-खोया महसूस करते हैं, और नहीं जानते कि किस बारे में बात करनी है। हमें लगता है कि हमने पवित्र आत्मा का कार्य खो दिया है। हमने पवित्र आत्मा के कार्य वाली किसी कलीसिया के लिए भी हर जगह खोज की। लेकिन जिस भी कलीसिया को हमने देखा, वह हमारी कलीसिया की तरह ही वीरान है। इतनी सारी कलीसियाएं भूखी और वीरान क्यों हैं?

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